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Education System : परीक्षाओं से भी कठिन है, इनका फौर्म भरना

Education System :  छात्रों के लिए परीक्षा का फौर्म भरना परीक्षा देने से भी कठिन होता है. क्या परीक्षा फौर्म को सरल नहीं किया जा सकता जिस से छात्र बिना किसी मदद के इन्हें सही तरह से भर सकें?
    सरकारों ने धीरेधीरे न केवल परीक्षाओं को बल्कि परीक्षा फौर्म को भरना इतना कठिन कर दिया है कि छात्र इन के ही चक्कर काटता रहे. वह नौकरी के लेवल तक पहुंच ही न पाएं. ऐसे में अच्छे खासे पढ़ेलिखे छात्र भी परीक्षा फौर्म भरने में दूसरे जानकार लोगों की मदद लेने को मजबूर होते हैं. कई बार हिंदी के ऐसे शब्द लिखे होते हैं जिन को समझने के लिए अंगरेजी में ट्रांसलेशन करना पड़ता है.
परीक्षा फौर्म भरने के लिए अब कंप्यूटर और हाईपावर इंटरनेट का होना भी जरूरी होता है. मोबाइल से फौर्म नहीं भरा जा सकता. ऐेसे में पहली जरूरत लैपटौप या कंप्यूटर हो गई है. दूसरी जरूरत जानकार व्यक्ति जो सही तरह से फौर्म भरवा सके. इन दोनों के लिए ही छात्र को पैसा खर्च करना पड़ता है. परीक्षा फौर्म भरवाने के लिए कंप्यूटर सेंटर खुल गए हैं.
आज भी बहुत सारे ऐसे छात्र हैं जिन के पास लैपटौप या कंप्यूटर नहीं है. यह लोग बिना किसी मदद के औनलाइन फौर्म नहीं भर सकते हैं. इस के ऊपर फौर्म में तमाम सवालों के जवाब देने पड़ते हैं. सरकार का दावा है कि यह सब छात्रों के भले के लिए किया गया है. जिस से परीक्षा में गड़बड़ी न हो. परीक्षा का परिणाम समय पर आए और छात्रों को जल्द नौकरी मिल सके.
सचाई सरकारी दावे के पूरी तरह से उलट हैं. आज परीक्षाओं में गड़बड़ी बड़े स्तर पर हो रही है. नकल और पर्चा आउट होना आमबात है. परीक्षा के परिणाम सालोंसाल लेट हो रहे हैं. सरकारी नौकरी के इंतजार में आधी उम्र निकल जा रही है.
    संघ लोक सेवा आयोग यानि यूपीएससी ने एनडीए नैशनल डिफेंस एकेडमी और नेवल एकैडेमी एग्जाम 2024 के लिए नोटिस दी. एग्जाम नोटिस नंबर 3 /2025-एनडीए-1 में परीक्षा के बारे में 109 पेज का एक फौर्म बनाया. इस में परीक्षा कैसे दें ? कितने नंबर के सवाल हैं जैसी तमाम चर्चा की गई थी. 109 पेज पढ़ कर उस को परीक्षा का फौर्म भरना था.
    परीक्षा फौर्म भरने से ले कर सवालों के जवाब भरने तक एक लंबी प्रक्रिया होती है. इस में तमाम ऐसी जानकारियां मांगने के कालम हैं जो गैर जरूरी हैं और इन को नौकरी देते समय मांगा जा सकता है. परीक्षा फौर्म में एक भी गड़बड़ी होने का मतलब होता है पूरी परीक्षा का रद्द हो जाना. कठिन होते फौर्म के चलते गड़बड़ी होने की संभावना बढ़ जाती है. इस में सुधार के अवसर भी सीमित होते हैं. उस का भी निर्धारत समय होता है.
11 दिसंबर को नोटिस दिया गया कि परीक्षा होगी और 31 दिसंबर तक फौर्म भर देना था. उस के लिए जो परीक्षा होनी थी उस में परीक्षा का मोड ओएमआर तरीके से होनी है. यानी सरकारी टैस्ट एजेंसी दूसरी परीक्षाओं की तरह रिजल्टों के लिए कंप्यूटरों पर ही निर्भर है. फौर्म भरने में कठिनाई आएगी, उस का अंदाजा यूपीएससी को था इसलिए उस ने एक सहायता कक्ष भी बनाया और पूरे देश के लिए एक, दिल्ली में.
सरकारी टैस्टिंग एजेंसी जो हर सूचना के लिए मोबाइल को जबरन करती है, कहती है, कैंडिडेट को अपने साथ परीक्षा कक्ष में मोबाइल ले जाने पर मना कर देते और परीक्षा केंद्र में कोई जगह भी बनाती नहीं जहां परीक्षा के दौरान अपना सामान कैंडिडेट रख सकें. यह नितांत तानाशाही और मनमानी है कि कैंडिडेट सैंकड़ों मीलों से आएं और उन के पास अपना बैकपैक रखने की भी जगह न हो.
406 पदों के लिए कितने कैंडिडेट बैठेंगे इस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह 78 शहरों में कराई जा रही है. इस परीक्षा में 18 से 21 साल तक के युवायुवतियां समेत भाग लेंगे और सैंकड़ों निकटतम परीक्षा केंद्र में पहुंचेंगे. उन को न ठहराने की व्यवस्था है, न बनाने की. जानबूझ कर तानाशाही का पाठ पहले ही दिन से पढ़ाया जाता है. यही लोग आगे चल कर और कठिन परीक्षाएं कराते हैं. इस सूचना की एकएक शर्त पर पूरा पेज लिखा जा सकता है.

पूरे फौर्म में नहीं होती सुधार की गुंजाइश

    काउंसिल औफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च यानी सीएसआईआर यूजीसी नेट दिसंबर परीक्षा का आयोजन 16 से 28 फरवरी 2025 तक आयोजित होगी. यह परीक्षा देश भर के विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर आयोजित कराई जाएगी. यह एग्जाम 180 मिनट के लिए होगा. परीक्षा का माध्यम हिंदी और अंगरेजी दोनों होगा. परीक्षा का फौर्म आधिकारिक वेबसाइट पर भरा जाएगा. 2 जनवरी, 2025 तक परीक्षा के लिए आवेदन फौर्म भरे गए थे. 3 जनवरी तक परीक्षा के लिए निर्धारित फीस भरी गई थी. 04 जनवरी 2025 से परीक्षा के लिए करेक्शन विंडो ओपन होगी.
    परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन करने वाले कैंडिडेट्स 4 जनवरी से अपने एप्लीकेशन फौर्म में हुई गलती को सुधार सकते हैं. इस के लिए अभ्यर्थियों को औफिशियल वेबसाइट पर जा कर लोगइन करना होगा. परीक्षा फौर्म में करेक्शन करने के लिए अभ्यर्थियों को 5 जनवरी, 2025 तक ही समय दिया गया था. कैंडिडेट्स को केवल एक दिन के भीतर ही अपने आवेदन पत्र में सुधार करना होगा. इस के बाद कोई भी सुधार स्वीकार नहीं किया जाएगा.
    सुधार में भी शर्ते लागू थी. परीक्षा फौर्म में सुधार के इच्छुक ऐसे कैंडिडेट्स जिन्होंने करेक्शन करने के लिए आधार कार्ड यूज नहीं किया है, वे डेट औफ बर्थ, जेंडर, पिता का नाम, माता का नाम के सेक्शन में बदलाव कर सकते थे. आधार कार्ड यूज करने वाले कैंडिडेट्स को भी इसी सेक्शन में बदलाव की अनुमति दी गई थी. अभ्यर्थियों को उम्मीदवार का नाम, लिंग, फोटो, हस्ताक्षर, मोबाइल नंबर, ईमेल पता, एड्रेस एवं पत्राचार पता, परीक्षा शहर को बदलने की अनुमति नहीं थी.
    परीक्षा फौर्म में करेक्शन करने के लिए सब से पहले उम्मीदवारों को आधिकारिक वेबसाइट पर जाना था. होमपेज पर सीएसआईआर नेट दिसंबर 2024 आवेदन सुधार लिंक पर क्लिक करना था. यहां लोगइन कर के और बदलाव करना था. इस के बाद किसी भी तरह के बदलाव को मान्य नहीं किया जाना है. इस का मतलब यह है कि पूरे परीक्षा फौर्म में की गई गलती स्वीकार नहीं थी. केवल चुनी गई जानकारी में ही बदलाव किया जा सकता था.

शरारतन एडमिट कार्ड पर एक्ट्रैस कैटरीना की फोटो

    बिहार के दरभंगा स्थित ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी (एलएनएमयू) के कर्मचारियों ने छात्रछात्राओं के एडमिट कार्ड पर नरेंद्र मोदी, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी, एक्ट्रैस कैटरीना कैफ जैसे लोगों की फोटो छाप दी. जिस के बाद छात्र संगठन यूनिवर्सिटी की गलती बता कर धरना प्रदर्शन और आंदोलन करने लगे. एडमिट कार्ड के लिए छात्रों को अपनी फोटो और जरूरी डिटेल दर्ज करनी होती है. इस के बाद एडमिट कार्ड बनाया जाता है. एडमिट कार्ड औनलाइन जारी किए जाते हैं. शरारतन कुछ एडमिट कार्ड पर फोटो गलत छप गई.
    इस से पहले भी बिहार में एडमिट कार्ड पर ऐक्टर इमरान हाशमी और एक्स पोर्न स्टार सनी लियोनी का नाम छपने का मामला सामने आया था. मुजफ्फरपुर में छात्रों के मातापिता के नाम के सामने इन दोनों फिल्म स्टार का नाम छपा था. औनलाइन फौर्म भरते समय मांगी गई सभी डिटेल पर ध्यान देना चाहिए. किसी साइबर कैफे के भरोसे फौर्म भरने से बचना चाहिए. दलाल के चक्कर में भी उन को नहीं फंसना चाहिए, क्योंकि ऐसी गलती यहीं से फौर्म भरने के दौरान ही होती है.
    जब परीक्षा के फौर्म भरना सरल नहीं होगा छात्रों को साइबर कैफे की मदद लेनी पड़ेगी तो इस तरह की परेषानी संभव है. इस तरह की परेशानियों से बचने का एक ही उपाय है कि फौर्म भरना सरल किया जाए. छात्र खुद से भर सकें. उन के पास अगर कंप्यूटर और लैपटौप न भी हो तो भी वह अपने मोबाइल से फौर्म भर सकें. परीक्षा फौर्म में केवल उतनी ही जानकारी भरने का कहा जाए. जब छात्र परीक्षा पास कर लें और नौकरी देने का समय आए तो उस से सारा विवरण लिया जाए. ऐसे में छात्र परेशानी से बच सकेंगे.

साइन और फोटो की एक गलती से रिजैक्ट होता है फौर्म

    नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा देने से पहले परीक्षा फौर्म भरना किसी चुनौती से कम नहीं होता है. यह परीक्षा देने से भी कठिन होता है. जहां एक छोटी सी गलती परीक्षा में बैठने से छात्र को रोक सकती है. परीक्षा फौर्म भरने वाले उम्मीदवारों को अपनी फोटो और साइन अपलोड करने होते हैं. फौर्म भरते समय इस का ध्यान रखना चाहिए कि यह सही तरह से अपलोड हो.  ज्यादातर परीक्षा फौर्म उम्मीदवारों के गलत सिग्नेचर की वजह से रिजैक्ट हो जाते हैं. कई बार हस्ताक्षर का आकार छोटा होता है इस को वेरिफाई करना कठिन हो जाता है. ऐसे में फौर्म रिजैक्ट हो जाता है.
    इस के लिए परीक्षा फौर्म में साइन के लिए दिए गए बौक्स को काट लें और उस में अपने साइन करें. यह भी ध्यान रखें कि साइन बौक्स का कम से कम 80 प्रतिशत हिस्सा भर जाए. वेबसाइट पर सही और गलत साइन के प्रकार दिखाए जाते हैं. साइन हमेशा काले पेन से करें. यह पढ़ने में आसानी से आ जाते हैं. साइन की ही तरह से परीक्षा फौर्म में फोटो लगाते समय भी सावधानी रखनी चाहिए. फौर्म की फोटो हमेशा क्लियर बैकग्राउंड में और अच्छी रोशनी में क्लिक की जानी चाहिए. प्लेन बैकग्राउंड के बिना फोटो, कैप पहने कैंडिडेट्स की फोटो, शर्ट के बिना फोटो, अच्छी तरह से ब्राइट न होना और धुंधली फोटो स्वीकार नहीं होती है.
    हर परीक्षा के अपनेअपने नियम होते हैं. यह इतने कठिन और समय लेने वाले होते हैं कि इन को समझना सरल नहीं होता है. फौर्म भरने की प्रक्रिया औनलाइन होने की वजह से यह और कठिन हो जाती है. कई छात्र ग्रामीण इलाके से आते हैं. उन के लिए यह और कठिन हो जाता है. इस कारण ही सैकड़ों छात्रों के फौर्म रिजैक्ट हो जाते हैं. उन की फीस भी बरबाद हो जाती है.
    परीक्षा फौर्म के जटिल होने से कोचिंग संस्थाओं, फौर्म भरवाने वाले कंप्यूटर सेंटर की चांदी हो जाती है. वह इस के बदले फीस वसूल करते हैं. ऐसे में पूरी व्यवस्था ऐसे हाथों में चली जाती है जो इंटरनैट ऐप्स के जानकार होते हैं. सरकार इन ऐप्स को सुविधा के नाम पर प्रयोग करती है. सचाई यह होती है कि परीक्षा फौर्मों को औनलाइन भरना मुसीबत हो गया है. यह परीक्षा देने से भी कठिन हो गया है

Romantic Story 2025 : प्रेम का तराजू

Romantic Story 2025 : मन के प्रेम को जबान पर लाना भी जरूरी है, यह मैं तब समझा जब बहुत देर हो चुकी थी लेकिन शायद इतनी भी देर नहीं हुई थी कि अपनी गलती सुधार न पाता.

‘‘सु नो, आज औफिस मत जाओ न,’’ अर्चना ने बड़ी  मनुहार से सकपकाए से स्वर में कहा.

‘‘क्यों?’’ मेरे रूखे लहजे ने उस की घबराहट बढ़ा दी.

‘‘जी, पता नहीं क्यों, जी, कुछ अच्छा नहीं लग रहा,’’ उस ने  िझ झकते हुए कहा.

‘‘तुम औरतें भी न और तुम्हारा त्रिया चरित्र, आज मत जाओ,’’ मैं ने खी झ कर कहा, ‘‘वाह, अगर नौकरी नहीं करूंगा तो तुम्हारी फरमाइशें कैसे पूरी करूंगा. जी खराब है, पैसे रखे हैं टेबल पर, चली जाना किसी के साथ डाक्टर के यहां.’’ जातेजाते इतना एहसान अवश्य कर दिया उस पर.

और एक बार फिर, हमेशा की तरह, आज भी उसे अनसुना कर दिया. उस की डबडबाई आंखें यों भी मेरे लिए विशेष माने नहीं रखती थीं.

पुरुषोचित अहम का पुजारी मैं उस के प्रेम को उस का अर्थ सम झता, उस की आवाज वैसे भी मेरे सामने कभी खुली ही नहीं. मैं बस अपनी मनवाता गया और वह मानती ही गई. कभी ठहर कर सोच ही नहीं पाया कि आखिर उस की भी अपनी कभी कोई मरजी तो रही होगी. घर के सभी मर्दों की तरह घर की जरूरतों को पूरा करने के अलावा उस के पास बैठना मु झे मुनासिब न लगा. नौकरी के बाद मिले खाली वक्त में अपने दोस्तों के साथ रहना, अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का हिमायती था मैं.

विवाह के शुरुआत के दिनों में उस के जल्दी आने के लिए टोकने को खुद पर अंकुश लगाने का प्रयास सम झता. विवाह के प्रारंभिक समय में जब होली पर उसे लेने मायके गया था तो एकांत में उस ने शरारत के साथ थोड़ा सकुचाते हुए मेरे गालों पर गुलाल लगा दिया. मैं क्रोध में उसे बहुतकुछ कह गया, जैसे मेरे साथ पत्नी नहीं कोई नौकर खड़ा हो, जिस ने कर्तव्य में कोई चूक कर दी हो. वह इसे अपनी गलती मान कर चुप हो गई और थोड़ी खामोश भी.

उस ने अपने सभी कर्तव्य निष्ठा से निभाए. इसे मैं अपनी सख्ती के परिणाम का फल मानने लगा. और उस ने धीरेधीरे खुद को खोते हुए यह भी छोड़ दिया, बस खामोशी के साथ मेरी पसंद में यों घुलती गई जैसे शरबत में शक्कर. कभी किसी विवाहित जोड़े को चुहलबाजी करते देखती तो उस के होंठों पर मीठी मुसकान आ जाती. मगर उस की तरसी निगाहें तनिक से प्रेम के लिए मेरी क्रोधित भंगिमा से सहम जातीं.

मैं खामोशी का पुजारी बस अपनी गृहस्थी के दायित्व की पूर्ति को प्रेम मानता रहा और वह धीरेधीरे खामोश होने लगी. उस की प्रेम की फरमाइश मु झे बचपना लगती, सो, मैं ने कभी उसे उस के मन को सम झने का प्रयास भी न किया. हां, बंद कमरे में मु झे प्रेम की आवश्यकता हुई तो उस ने कभी शिकायत का मौका न दिया, न ही मैं ने कभी उस से यह जानने की कोशिश की कि वह खुश है भी या नहीं. प्रेम का प्रदर्शन मु झे फुजूल लगता और रूमानी बातें कोरी किताबी. हकीकतपसंद मैं उस के नारीमन, उस के समर्पण और सहयोग को अपना हक मानता रहा.

लंचटाइम में कैंटीन में दोस्तों के साथ हंसीमजाक का दौर चल ही रहा था कि अचानक आए फोन ने जैसे मेरे दिमाग की सारी चूलें हिला दीं.

मु झे अपने कानों पर जो खबर सुनाई दे रही थी उस पर यकीन नहीं हो रहा था. किसी तरह चार्ज दूसरे अधिकारी को दे कर कैसे हौस्पिटल पहुंच पाया, यह मेरी सम झ से बाहर था.

हौस्पिटल में इमरजैंसी विभाग के बैड पर बेहोश लेटी अर्चना को शायद पता भी नहीं था कि उस का अकड़ू पति उस के सिरहाने 3 घंटे से उसी का चेहरा देख रहा है. उस की हालत काफी खराब हो गई थी. जब अस्पताल पहुंचा, उस के डाक्टर विकास ने मु झ से उस के बारे में कुछ बातें पूछीं, जिन्हें मैं उन्हें बता ही न पाया, कुछ मालूम होता तो ही बताता न.

तब डाक्टर ने मु झे लगभग फटकारते  हुए कहा, ‘‘मिस्टर रवि, कब से इन की तबीयत खराब है और ये अकेले ही आती रहीं. इन्हें डेंगू हुआ है और प्लेटलेट्स भी काफी डाउन हो गई हैं. आप इन पर ध्यान नहीं देते क्या?’’

मैं ने घबरा कर कहा, ‘‘आप अच्छे से अच्छा इलाज कीजिए, सर. पैसों की कोई चिंता नहीं, बस यह ठीक हो जाए.’’

उस के बाद अपने छोटे भाई शशिकांत को फोन किया. वह थोड़ी देर बाद मेरे पास आ गया. उस की आंखों में जो मेरे लिए क्रोध के भाव थे, उन्हें पहचानने में मेरी आंखें बिलकुल चूक नहीं कर रही थीं.

मु झे हमारी पड़ोसिन स्नेहा भाभी ने अर्चना के सामान के साथ उस के जेवर और चूडि़यां जाने से पहले पकड़ा दी थीं. उस के सूने हाथों में धीरेधीरे जीवन, ग्लूकोज और खून की शक्ल में घुल रहा था.

 

मैं रवि, अर्चना का पति, बेहद अनुशासनपसंद था. बचपन से और उस से भी ज्यादा जिद्दी व अकड़ू पर शर्मीला भी था जो अपनी भावनाएं जल्दी नहीं बांट पाता था. मेहनती और मेधावी था, इसलिए जल्दी ही अच्छे सरकारी पद पर रेलवे में इंजीनियर की नौकरी पा गया.

उधर, छोटा भाई शशि मेरे स्वभाव के बिलकुल उलट, नरमदिल और खुशमिजाज. वह मां और अर्चना सभी के लिए कोमल हृदय रखता था तो अपनी पत्नी सुमेधा के लिए क्यों न रखता. मैं उसे जोरू का गुलाम कहता क्योंकि उस का हर कदम मेरे स्वभाव के उलट था, भरी सभा में किसी अच्छे पकवान की तारीफ में कोई कंजूसी न करता. शौपिंग हो या बीमारी, वह थकान के बाद भी हाजिर रहता. मु झे ससुराल जाने से परहेज था मगर शशि में व्यावहारिक बातें कूटकूट कर भरी थीं. दफ्तर से सीधे घर आने और रसोईघर में पत्नी की बीमारी में सहयोग के लिए तो मु झे वह कभी अच्छा न लगता.

मु झे लगता था कि स्त्री को इतना तो मजबूत होना ही चाहिए, फिर भी हम दोनों भाइयों में बहुत प्यार था. इसीलिए मेरे जीवनसाथी की तलाश चल रही थी तो उस की खोज महानगर की मेरी पसंद की रिया से आ कर छोटे कसबे की अर्चना पर रुकी.

गौरवर्ण, सुंदर और सुघड़, अर्चना ने हर तरह से मेरा साथ दिया पर मैं न जाने कब से उस की भावनाओं को बिना सम झे, बस, मनमानियों की दुनिया में जिए जा रहा था. तब तक शशि की ‘‘दादा, यह लीजिए भाभी की रिपोर्ट और दवाइयां’’ की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई.

 

मु झे पता था, एक दिन यह नौबत आनी है. उस

ने क्रोधित स्वर में कहा, ‘‘यह सरासर आप की लापरवाही है. भाभी आप के

अहं की कीमत चुका रही हैं. आखिर अपनी ही पत्नी के साथ अस्पताल जाने में कैसी शर्म?’’

मैं निरुत्तर था. वह मेरी आंखों मे आंखें डाल कर बोला, ‘‘दादा, भाभी ने आप को प्रेम देने में कोई कसर नहीं रखी पर आप चूक गए. अगर उन्हें कुछ हो गया तो आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा.’’

इतना कह कर उस ने मुंह दूसरी तरफ फेर लिया और मैं उस के तर्क की कसौटियों पर खुद को तोलने लगा.

अर्चना के प्रेम का पलड़ा हर तरह से भारी था. मैं इस मामले में कंगाल था. कर्तव्यों की पूर्ति प्रेम कहां होती है, अब सम झ पा रहा था. शशि कहीं से गलत

नहीं लगा मु झे. हमारे समाज में सिनेमा में प्रेम स्वीकार है पर अपनों को प्रेम देने

में कृपणता.

‘‘शशि, गलती मेरी भी नहीं है. लड़कों का पालनपोषण ही ऐसे किया जाता है कि जैसे कोमलता को मारना ही पौरुष की निशानी हो.’’

‘‘दादा, यही तो बुराई है. हमें कोमल हृदय का भाई और पिता तो स्वीकार है पर पति की कसौटियों पर हृदय से कोमल पुरुष को हम जोरू का गुलाम कह डालते हैं. हो सके तो आप खुद को थोड़ा सा बदल कर देखिए, जिन को खुश करने के लिए आप अपनों को दरकिनार कर रहे उन का मोल जीवनसाथी से ज्यादा थोड़ी न है.’’

‘‘हां छोटे, शायद मैं पुरुष बनने में प्रेम की कीमत कभी सम झ ही न पाया. हम सर्वाधिक प्रेम जिस से पाते हैं उस की कीमत तो न हम चुकाते हैं और न सम झते हैं.

शीशे की दीवार के पार पीला पड़ा मौन अर्चना का चेहरा कितना बोल रहा था और मेरे तर्क आज स्पंदनहीन थे. मु झे याद आ रहा था, अगर वह कह देती कि शेव बनवा लीजिए तो मैं कई दिन उस को चिढ़ाने के लिए ही न बनाता, उस के फेवरेट कलर को कम पहनता आदिआदि.

उसे सजनासंवरना पसंद था पर मैं उसे गंवार कह देता. सुबहसुबह उस की चूडि़यों की आवाज जब वह चाय ले कर आती, मेरे लिए मेरी नींद खराब कर डालती, इसलिए उसे कड़े ला कर दे दिए. पायल अब शायद ही कोईकोई पहनता होगा पर अर्चना लपक कर पायलें ही पसंद करती.

मु झे सिंदूर भी थोड़ा सा ही लगाना अच्छा लगता पर वह हंस कर कहती, ‘यह आप की सलामती की निशानी है और कोई मु झे गंवार कहे तो कह ले.’

ऊपरी नाराजगी तो मैं उसे दिखलाता पर मन में मु झे भी अच्छा लगता कि यह मेरे होने का एहसास है. उसे कसबे से मेगा सिटी की नागरिक में बदलने की कोशिश में ही लगा रहा मैं.

घर में मेरे आते ही शांति छा जाती जो मेरे रहने तक बरकरार रहती. उस की उपस्थिति की हर आवाज को मेरी सोच ने दबा डाला किसी कोने में. किसी से फोन पर बात करती तो उस की उन्मुक्त खिलखिलाहट से मेरे अनुशासन का किला दरकने लगता. अब वह खुद में सिमटने लग गई थी और मैं यह देख कर खुश था.

 

अब तो हम दोनों 2 बच्चों के मातापिता भी बन चुके थे और बच्चे अपनी पढ़ाईलिखाई में मस्त थे. अर्चना ने हर फर्ज निभाया बिना शिकायत पर मैं शायद उस को इतना बदल चुका था कि उस का मन नहीं पढ़ पाया.

कुछ दिनों से थकी लग रही थी पर मैं ने पैसे दे कर फुरसत पा ली कि अकेले जा कर दिखा लो खुद को. अब नौकरी करूं या तुम्हें ले कर घूमता फिरूं.

वह अकेली चली जाती और एक दिन डाक्टर के ही फोन पर भागा हौस्पिटल आया तो वह बेहोश पड़ी थी बैड पर. आज वह साथ में पड़ोस की स्नेहा भाभी को लाई थी.

आज डाक्टर ने मु झे आईना दिखा दिया था मेरी सीरत की बदसूरत शक्ल का. अर्चना के पास अपने मित्र की पत्नी को छोड़ कर घर आया तो बच्चे कोचिंग से आ चुके थे.

रसोईघर और कमरे अपनी मालकिन के बिना अनाथ लग रहे थे. आज नीरवता से घबराहट हो रही थी. मैं उस में उस की चूडि़यों और पायल की आवाज को खोज रहा था.

सूना घर बहुत डरा रहा था. माहौल वैसा ही शांत था जैसा मु झे पसंद था पर आज यह दिल दहला रहा था. बारबार एहसास होता उस के टोकने का लेकिन वह तो  अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच आंखमिचौली खेल रही थी.

घबराहट हो रही थी उस के बिना कि अगर उसे कुछ हो गया तो क्या करूंगा. रातभर जागता रहा. सुबह जल्दी उठा. आज पहली बार मेरे कदम रसोईघर की ओर बढ़े. बच्चों की मदद से चाय और नाश्ता बना कर हौस्पिटल गया.

अब अर्चना को होश आ चुका था और वह मु झे देख कर मुसकराई भी. हफ्तेभर में उसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया.

इतने दिनों में मु झे उस के प्रेम का एहसास शिद्दत से हो चुका था. उस को खोने के डर ने मु झे दहला रखा था. मैं अब अर्चना को जीने लगा था. आज मैं ने अपने शर्मीले स्वभाव को पीछे छोड़ कर अपने अनगढ़ हाथों से खुद उस के बाल संवारे, बिंदी लगाई और चूडि़यां हाथों में पहना दीं.

जब उस की मांग में सिंदूर लगा कर उस के पास फूल रखे तो उस की आंखें भर आईं, शायद उसे मु झ से ऐसी उम्मीद न थी.

पर कहीं न कहीं वह उन तरसे पलों को जी कर छलक उठी जो उसे आज यों ही मिल गए थे. आज प्रेम में गुलाब नहीं, दवाओं की महक भले थी लेकिन मेरी बीमार सोच स्वस्थ हो चुकी थी.

मोबाइल में उस का चेहरा दिखा कर पूछा, ‘‘ठीक तैयार किया है?’’ तो उस ने क्षीण मुसकान से कहा, ‘‘पहली बार आप ने सजाया है मु झे, मैं बहुत खुश हूं.’’

5 दिनों बाद अस्पताल से जब उसे घर लाया तो साफसुथरा घर उस का स्वागत कर रहा था.

‘‘जब उसे कमरे में बैड पर अंदर लिटा कर चाय बना कर और ब्रैड सेंक कर लाया तो उस ने मु झे अपने पास बैठने को कहा.

बच्चे कोचिंग जा चुके थे. मेरा गला बुरी तरह भर गया था, बोला, ‘‘मैं बहुत डर गया था तुम्हें इस हालत में देख कर.’’

पर मैं इन दिनों में आप के बदलाव पर री झ गई, रवि.’’

शाम को मैं अपनी पसंद की पायल लाया और उस के पैरों में पहना कर कहा, ‘‘मु झे हर उस आवाज से प्यार हो गया है जो घर में तुम्हारे होने का एहसास कराती हो. तुम अब ऐसे कभी मत सोना. तुम सोती हो तो घर में सूनापन छा जाता है.

‘‘पता है, शांति से सूनापन डरावना होता है. आज मैं तुम्हें अपनी बनाई दीवारों से आजाद करता हूं. तुम खुद से भी प्रेम करो. आज मैं अपने प्रेम को बे िझ झक स्वीकार करता हूं. तुम सही कहती थीं कि चूडि़यों, पायल की आवाजें आत्मविश्वास बढ़ाती हैं कि मेरी जीवन संगिनी मेरे साथ है.

‘‘मकान को घर उस की मालकिन ही बनाती है, जो बात तुम कह कर न सम झा पाईं वह तुम्हारी बेहोशी ने बता दी.’’

उस ने जवाब में मुसकरा कर मेरे हाथों में अपना हाथ रख दिया.

मेरा घर अब फिर चहकने लगा था उस की उपस्थिति से, उस की कद्र करना अब मैं सीख गया था. शाम को शशि और सुमेधा भी आए. उन्हें मेरे सुखद बदलाव पर विशेष खुशी हो रही थी.

शशि ने मु झे सीने से लगा कर कहा, ‘‘दादा, प्रेम रैस्टोरैंट में खाना या पेड़ों के इधरउधर नाचना नहीं है, कभीकभी अपनों से व्यक्त करना चाहिए, यह जीवन का अन्न है.’’

‘‘हां शशि, अपनापन भी किसी डाक्टर से कम नहीं होता है, हर तकलीफ में ताकत की दवा देता है. यह सबक तू ने मु झे छोटे हो कर सिखाया है. बोल, आज अपने भैया के हाथ की चाय पिएगा?’’

वह इस बात पर आश्चर्यजनक तरीके से मुसकरा  दिया और मैं उसे होंठों में ‘थैंक यू छोटे’ कह कर मुसकरा दिया.

online hindi story : सच्चा पुरुषार्थ

online hindi story :  इंसान कई बार अपने को कितना बेबस महसूस करता है. अपना गुस्सा, डिप्रैशन निकाले तो किस पर. ऐसे में घर में स्त्री पर हावी होना आसान लगता है क्योंकि वह चुप रहती है. वह समझती है पुरुष की मनोदशा.
पूरे दिन दफ्तर में मेहनत की पीपनी से बजतेबजाते, बौस की खरीखोटी सुनतेसुनाते और शाम तक अपने होशोहवास को क्लाइंट्स की चिल्लपों से बचतेबचाते धीरज फुरसत के कुछ पलों की खोज में बसस्टैंड की एक बैंच पर बैठा था.
जीवन की नकली बेचैनियों में झूठी तसल्ली ढूंढ़ने की नाकाम कोशिश कर रहा था शायद. बेचारा नाकाम इसलिए क्योंकि अभी उन्हें बैठे 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि बाइक पर 4 लड़के यों ही मस्ती में उन के सिर पर टपली मारते हुए बिलकुल उन के पास से गीदड़ का जिगर और सियार की आवाज करते हुए निकले.
यह सब इतनी जल्दी हुआ कि मोटरसाइकिल की रफ्तार और धीरज के मनमस्तिष्क की गति का संसार एक धरातल पर आने से पहले ही वह बाइक उन की आंखों से ओ झल हो गई थी. चंद मिनटों बाद जब तक उन्हें सम झ पड़ा कि उन के साथ हुआ क्या है तब तक पास खड़े लोगों के एक समूह की बातें उन के कानों में पहुंचनी शुरू हो चुकी थीं. उन की बातों में उन्हें खुद के कायर और डरपोक होने की महक आ गई थी.
कुछ देर बाद उस समूह में से एक व्यक्ति उन के नजदीक आया और उन से सहानुभूति दिखाते हुए बोला, ‘‘भलाई और अच्छाई का जमाना नहीं है, भाईसाहब, अब देखिए न, आप के साथ बिलकुल अच्छा नहीं हुआ. हमें बेहद अफसोस है.’’ यह कह कर उस ने अपना एक हाथ उन के कंधे पर रख दिया.
अभी सहानुभूति की उष्णता उन के हृदय तक पहुंच भी न पाई थी की उस व्यक्ति ने फिर मुंह खोला, ‘‘पर भाईसाहब, इतनी अच्छाई भी किस काम की, आप को भी ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए था.’’
‘‘हां, लेकिन…’’ वे अपनी बात पूरी भी न कर पाए थे कि उन्होंने देखा वह पूरा समूह ही उन की ओर चला आ रहा है. उन में से एक व्यक्ति बोला, ‘‘क्या लेकिनवेकिन साहब, आप मु झे यह बताइए कि आप मर्द हैं कि नहीं?’’ सच है कि कई बार हमारे ईगो को इतनी ठेस नहीं भी पहुंचती है पर समाज के लोग इसे इतना बढ़ाचढ़ा कर बतलाते हैं कि हमें खुद पर ही संशय होने लगता है.
अभी उन का मर्द अंदर से जीवंत होना शुरू ही हुआ था कि उस समूह के लोगों की बस आ गई और वे सभी उन में कृत्रिम वीरता के कीटाणु छोड़ कर बस में चढ़ गए. कुछ देर बाद उन की बस भी आ गई. घर पहुंच कर अपनी मर्दांगी के माप के पैमाने को नापने की उधेड़बुन में उन्होंने खाना भी अनमने मन से खाया.
पत्नी ने खराब मूड का कारण पूछा तो उसी बेचारी पर झल्ला पड़े. सच है, जबरदस्ती कुरेदा हुआ पुरुषार्थ ही स्त्री पर चिल्लाता है. उन का यह रूप पहली बार देख कर 5 वर्षीया एकलौती बेटी कमरे के एक कोने में बैठ गई. खाना खा कर वे कंप्यूटर पर मेल चैक करने लगे. अपना अकाउंट साइनइन करने के लिए स्क्रीन पर लिखा आया, ‘आर यू अ रोबोट?’ सच है, कैसा जमाना आ गया है कि एक मशीन इंसान से पूछ रही है कि क्या आप एक रोबोट हैं?

बहरहाल, मेल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्होंने देखा, बौस के कुछ मेल्स आए हुए हैं. मेल्स में उन के इस महीने के काम की फीडबैक रिपोर्ट थी. रिपोर्ट के अधिकांश भाग में उन के काम की कड़ी निंदा की गई थी और अंत में लिखा था- ‘और तुम, अपने नाम के आगे इंजीनियर लगाते हो!’

असली जिंदगी से मन के टैब में मायूसी छा गई तो उन्होंने कंप्यूटर का टैब बदल कर सोशल मीडिया खोल लिया. वहां रंग, नाम, धर्म आदि के नाम पर क्या चल रहा था, इस बात से शायद सभी परिचित हैं. यह सब पढ़ कर उन के अंदर इतने वक्त से उबल रहा ज्वालामुखी आखिर फट ही पड़ा. उस लावा का वेग, उन का आवेग इतना था कि उन्होंने आधारकार्ड की वैबसाइट पर जा कर अपना नाम धीरज से हटा कर ‘इंसान’ करने की एप्लीकेशन भर दी थी और अपने जीवन की एकमात्र खुशी को कोने से समेट कर अपनी बिखरी बांहों में भरने को बिस्तर से उठ खड़े हुए थे.
खिड़की से झांका तो देखा कि उन की पत्नी आंगन में चारपाई की निवाड़ बांध रही थी अकेले. उस वक्त उस के कंधों का दम देख कर उन्हें सम झ आया कि पुरुषार्थ पुल्लिंग और स्त्रीलिंग की समाज की बनाई सीमाओं और भाषा से परे होता है और असली इंसान वही है जो दबे हुए पुरुषार्थ में स्त्रीत्व को खोज लेता है.

 

लेख‍क – अभिषु शर्मा 

emotional story : माई डौग सीजर

emotional story :  बेजुबान जानवर कुछ बोल नहीं सकता लेकिन रेवती और शेखर के दिल के जज्बात डौगी सीजर शायद समझ गया था इसलिए 2 तड़पते दिलों को मिलाने में वह भी पीछे न रहा. सोसाइटी में होली मिलन का कार्यक्रम चल रहा था.

20 वर्षीया रेवती अपनी मां, भाई और पापा के साथ कार्यक्रम में थी. लोग एकदूसरे को गुझिया खिलाते और गले मिल रहे थे. रेवती की नजर सामने से आते हुए तनेजा परिवार पर पड़ी. तनेजा उन के पड़ोसी भी हैं पर जब से रेवती ने होश संभाला है तब से दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव ही पाया है. पता नहीं क्यों एक तनाव और खामोशी सी छाई रहती है दोनों परिवारों के बीच. यही सब सोच कर उस का मन कसैला हो गया.

शायद तनेजा परिवार के मन में यही चल रहा होगा तभी तो उन लोगों ने सिन्हा अंकल को तो गुझिया खिलाई और गले भी मिले लेकिन रेवती व उस के मांपापा को अनदेखा कर दिया और आगे बढ़ गए.

आज से पहले रेवती ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया था पर आज जब अचानक से तनेजा अंकल, आंटी और उन का 24 साल का बेटा शेखर ठीक सामने आ कर भी नहीं बोले तो उस के मन को बुरा जरूर लगा. ‘‘मां, एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘हां, पूछ,’’

मां ने कहा. ‘‘ये जो पड़ोस वाले तनेजा अंकल हैं, हम लोगों से क्यों नहीं बोलते?’’

मां थोड़ी देर तो चुप थी, फिर जवाब देना शुरू किया, ‘‘बेटा, तेरे पापा को डौगी बहुत अच्छे लगते हैं. जब तू छोटी थी तब वे एक जरमन शेफर्ड ब्रीड का डौगी ले कर आए थे. उस के बाल भूरे और काले से थे कुछ धूपछांव लिए हुए. इसलिए कभी वह भूरा लगता तो कभी काला. उस की चमकीली आंखों में हम लोगों के लिए हमेशा प्यार झलकता. सोसाइटी के पार्क में तेरे पापा के संग खूब खेलता था वह. हम सब उसे ब्रूनो नाम से बुलाते थे.

एक बार की बात है, तेरे पापा ब्रूनो को मौर्निंग वाक पर ले कर जा रहे थे. उस समय मिस्टर तनेजा का छोटा भाई अपने घर से निकला. उस के हाथ में डंडा था. ब्रूनो ने समझा कि वे उसे मारने के लिए आ रहे हैं, वह आतंकित हो कर उन पर भूंकने लगा और तेरे पापा के हाथ में जंजीर होने के बावजूद वह उन पर झपटने लगा.
जरमन शेफर्ड देखने में थोड़े तेजतर्रार लगते हैं, इसलिए वे भी ब्रूनो के भूंकने से डर गए और बिना आगेपीछे देखे ही भागे, इस से पहले कि वे उस पार पहुंच पाते, पीछे से आती एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी. बस, तब से तनेजा परिवार उन की मृत्यु के लिए हमें जिम्मेदार मानता है और हम लोगों से संबंध नहीं रखता.
अकसर ही वे लोग गाड़ी की पार्किंग या म्यूजिक से होने वाली आवाज के लिए हम से लड़ते हैं. हालांकि तेरे पापा ने तब से ब्रूनो को अपने एक दोस्त को सौंप दिया है और इस घर में उसे कभी ले कर नहीं आए.’’
मां चुप हो गई थी पर रेवती अपनेआप में डूब गई और सवाल करने लगी कि यह तो एक कुसंयोग था कि ब्रूनो के भूंकने से वे भागे और दुर्घटनाग्रस्त हो गए. इस के लिए 2 पड़ोसियों में दुश्मनी को पालना कहां उचित है.ध्
रेवती ने इन बातों पर ज्यादा सोचविचार करना छोड़ दिया और किचन में जा कर अपने लिए नूडल्स बनाने लगी. सर्दी की धूप में एक दिन रेवती अपनी सहेली रिया के साथ सोसाइटी के पार्क में बैठी हुई थी. सूरज की किरणें उस के गोरे चेहरे को और भी सुनहरा बना रही थीं. आज कई दिनों बाद धूप खिली थी, इसलिए पार्क में काफी गहमागहमी थी.

एक छोटा सा डौगी, जो एक बुलडौग था, रेवती के पैरों के पास आ खड़ा हुआ और अपनी छोटी सी जीभ निकाल कर उस की तरफ एकटक देखने लगा. रेवती को उस का अपनी तरफ टुकुरटुकुर देखना बहुत अच्छा लगा. उस ने प्यार से डौगी के बालों को सहला दिया. डौगी तो जैसे इसी प्यारभरे स्पर्श का इंतजार कर रहा था, उस ने झट से अपनी दोनों अगली टांगें पसार दीं और वहीं घास पर बैठने की तैयारी करने लगा.

इतने में उसे ढूंढ़ते हुए एक लड़का आवाज देते हुए आया. रेवती ने आवाज की दिशा में अपनी नजर दौड़ाई तो देखा कि यह तो उस के पड़ोसी मिस्टर तनेजा का लड़का शेखर था. शेखर पहले तो रेवती को देख कर ठिठक गया लेकिन अगले कुछ पलों में रेवती की तरफ एक फीकी सी मुसकराहट दे दी और बोला, ‘‘इसी को ढूंढ़ रहा था. बहुत नौटी हो गया है. सर्दी में नहाने से बहुत कतराता है. लेकिन आज मैं ने इसे नहला ही दिया.’’

रेवती को समझ नहीं आया कि वह आखिर कहे तो क्या कहे. ‘‘इस का नाम क्या है?’’ रिया ने पूछ लिया.
‘‘सीजर, सीजर रखा है मैं ने इस का नाम. अच्छा है न?’’
शेखर ने रेवती की तरफ देखते हुए कहा पर उत्तर रिया ने दिया, ‘‘डैम गुड.’’
शेखर ने सीजर को पुकारा और उस के साथ धीरेधीरे दौड़ लगाने लगा. ‘‘हाय, कितना सुंदर है,’’ रिया ने कहा.
‘‘कौन, डौगी या डौगी वाला,’’ रेवती ने चुटकी ली.
‘‘मुझे तो दोनों पसंद आ गए हैं, किसी के साथ भी अफेयर करवा दे,’’ शरारती अंदाज में रिया कह रही थी, ‘‘कितना अच्छा लड़का है, हैंडसम और मीठा बोलने वाला, उस की आंखें भी बोलते समय उस की जबान का साथ देती हैं और तुझे देख कर तो वह मुसकराया भी था.’’ ‘क्यों न मुसकराए, पड़ोसी ही तो है और फिर, हम दोनों हमउम्र भी हैं और युवा. पुरानी दुश्मनी से हमें क्या?’ मन ही मन में सोचने लगी थी रेवती.

अगले दिन जब रेवती कालेज से लौट रही थी तभी उस की स्कूटी रास्ते में खराब हो गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, उस ने आसपास देखा, कोई मेकैनिक नजर नहीं आया. वह स्कूटी को किनारे खड़ी कर अपने पापा को फोन लगाने जा रही थी कि वहां पर शेखर आ गया. ‘‘क्या हुआ, कोई प्रौब्लम?’’ ‘‘स्कूटी खराब हो गई है.’’ ‘‘कोई बात नहीं, मैं देख लेता हूं,’’ यह कह कर शेखर ने स्कूटी को स्टार्ट करने की कोशिश की और स्कूटी स्टार्ट हो गई.
‘‘थैंक यू,’’रेवती ने कहा. ‘‘इट्स औल राइट,’’ शेखर ने मुसकरा कर जवाब दिया. इस के बाद वे दोनों सड़क के किनारे खड़े हो कर बातें करने लगे जिस में शेखर ने अपनेआप को डौगी का बहुत बड़ा प्रेमी बताया और रेवती से यह भी कहा कि 2 दिनों बाद ही शहर में एक डौग शो होने जा रहा है जिस में बहुत सारे लोग अपने पैट्स ले कर आएंगे. जिस का डौगी सब से प्यारा व स्मार्ट होगा उसे विजेता घोषित किया जाएगा. हालांकि रेवती को डौग्स पसंद तो थे पर इतने नहीं कि वह किसी डौग शो को देखने जाए पर शेखर की बातों में उसे ऐसा आमंत्रण महसूस हुआ कि उस ने मन ही मन डौग शो में जाने का विचार बना लिया.
अपनी सहेली रिया को ले कर रेवती डौग शो में पहुंची. उस का मन खुशियों से भर गया. कितनी ही तरह के डौगीज थे वहां. भूटिया, लेब्राडोर, साइबेरियन हस्की और दुर्लभ प्रजाति का पूडल अपनी अदाएं दिखा रहे थे. डौग्स से अधिक तो उन के मालिक इठला रहे थे और वे कभी अपने पालतू को निहारते तो कभी उन के पेट्स पर पड़ने वाली दूसरों की निगाहों को देखते जैसे वे कहना चाह रहे हों कि अरे भाई, मेरे डौग को नजर तो मत लगाओ. इतने में शेखर ने रेवती को देख लिया था और हाथ से हैलो का वेव किया. सीजर तो आज एकदम तरोताजा और खूबसूरत लग रहा था. उस के बाल चमकीले लग रहे थे. शेखर रेवती के पास आया और दोनों बातें करने लगे. शेखर उसे डौग्स से संबंधित तरहतरह की जानकारियां दे रहा था. रेवती और शेखर को एकसाथ समय बिताना काफी अच्छा लग रहा था और उन दोनों ने अपने घर में बरसों से पल रहे तनाव पर भी बातें कीं. अब तक दोनों के बीच मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान भी हो चुका था.
शो के अंत में आयोजकों द्वारा जलपान की व्यवस्था की गई थी. शेखर, रेवती और रिया जलपान करने लगे और उस के बाद दोनों ने एकदूसरे से विदा ली.
शेखर और रेवती दोनों के बीच व्हाट्सऐप पर चैटिंग की शुरुआत भी हो गई थी और कहना गलत न होगा कि दोनों के बीच प्रेम का अंकुर जन्म ले चुका था.
एक दिन की बात है जब शेखर अपने फ्लैट से निकल रहा था, सामने से रेवती आ रही थी और दोनों की आंखों में एकदूसरे के प्रति प्रेमभरी मुसकराहट थी. कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, इन दोनों के मामले में ऐसा ही हुआ.

शेखर और रेवती को मुसकराते हुए रेवती के भाई ने देख लिया और उसे रेवती पर शक हो गया.उस ने घर आ कर चुपके से रेवती का मोबाइल चैक किया जिस में व्हाट्सऐप पर ढेर सारे मैसेज और चैट थे. इतना ही नहीं, उस ने कौल रिकौर्डिंग भी सुन ली. यह बात उस ने मम्मीपापा को बता दी. चूंकि दोनों परिवारों में तनातनी थी इसलिए रेवती और शेखर की दोस्ती किसी को रास नहीं आई और रेवती का मोबाइल छीन लिया गया व उस के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई.
रेवती का भाई ही उसे कालेज छोड़ने और लेने जाता. पिछले कई दिनों से रेवती का कोई मैसेज नहीं आया और न ही उस का फोन लगा तो शेखर परेशान हो उठा. उस ने रेवती की बालकनी के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. उस की मेहनत बेकार नहीं गई. एक बार रेवती बालकनी में निकली तो उस की निगाहें शेखर से मिलीं.
रेवती की सूनी आंखों को देख कर वह जान गया कि उन दोनों के प्रेम संबंधों का पता रेवती के घरवालों को लग गया है. इस मामले में शेखर को भी समझ नहीं आ रहा था कि आगे वह क्या करे. दोनों परिवारों के संबंध इतने खराब थे कि शेखर उन के घर जाना अफोर्ड भी नहीं कर सकता था. पता नहीं रेवती के मातापिता और भाई कैसा व्यवहार करें. लेकिन प्रेम इन दोनों के दिलों की तड़प बढ़ा रहा था.
रेवती से बात करने का मन कर रहा था शेखर का. रविवार का दिन था, शेखर ब्रूनो को ले कर सोसाइटी के पार्क में आया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उस ने पार्क में रेवती को भी देखा पर अगले ही पल वह गंभीर हो गया क्योंकि शेखर जानता था कि कहीं न कहीं से रेवती पर नजर जरूर रखी जा रही है.
रेवती उसे देख कर मुसकराई भी नहीं और उस का फोन अब भी बंद आ रहा था. रेवती को सामने देख कर भी उस से बात नहीं कर पाना शेखर को और भी परेशान कर रहा था. फिर अचानक उसे संदेश आदानप्रदान का बहुत पुराना पर कारगर तरीका याद आया और उस ने फौरन ही सीजर को पास बुलाया व उस के गले में लटके पट्टे में एक क्लिप की सहायता से एक परची फंसा दी.
उस परची पर लिखा था, ‘मैं तुम से बात करना चाहता हूं.’ सीजर खेलतेखेलते रेवती के पास पहुंचा और अपनी छोटीछोटी चमकीली आंखों से रेवती को निहारने लगा. रेवती ने थकी आंखों से सीजर को देखा और उस के सिर को सहलाया.
तभी उस की नजर उस परची पर पड़ गई. रेवती ने धीरे से वह परची निकाली और सरसरी निगाह से उसे पढ़ा व सब की नजर बचाते हुए उस का जवाब लिखा, ‘मैं बात नहीं कर सकती, घर में सब को पता चला गया है.’ सीजर फिर से भाग कर शेखर के पास वह परची दे आया और कुछ दिनों तक बिलकुल फिल्मी अंदाज में सीजर उन दोनों के प्रेम की पातियां एकदूसरे तक पहुंचाने और लाने का काम करता रहा.
सीजर के इस काम पर किसी को शक भी न हुआ था. ‘आखिर कब तक मैं और रेवती इस तरह से बात करते रहेंगे. हम दोनों ही बालिग हैं और हमें अपना जीवनसाथी चुनने का हक है.’ मन ही मन सोच रहा था शेखर.
उस दिन रेवती अपनी मां के साथ पार्क में आई तो शेखर के अंदर बहता हुआ जवान खून जोर मारने लगा और वह बिना कुछ सोचेसमझे रेवती और उस की मां के पास पहुंच गया.सीजर भी उस के साथ था. ‘‘नमस्ते आंटी, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं?’’ शेखर को इस तरह से बोलते देख कर रेवती की मां चौंक पड़ी थी.
‘‘हां, बोलो.’’
‘‘दरअसल मैं और रेवती एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं और एकदूसरे से शादी भी करना चाहते हैं. समय आ गया है कि हम दोनों परिवार पुरानी कड़वाहट मिटा लें क्योंकि जो भी हुआ उस में किसी की गलती नहीं थी.’’ ऐसी बातें शेखर के मुंह से सुन कर रेवती की मां रेवती का मुंह ताकने लगी थी.
मां ने कुछ नहीं कहा, बस, रेवती का हाथ पकड़ा और घर चली आई. कुछ दिनों तक रेवती पार्क में भी नहीं आई. इस बीच शेखर का बैंक पीओ का रिजल्ट निकल आया था और उस ने इम्तिहान पास कर लिया था. अब बैंक की अच्छी नौकरी के रास्ते उस के लिए खुल गए थे.

रेवती के फ्लैट की घंटी बजी तो उस की मां ने दरवाजा खोला. सामने मिस्टर तनेजा अपना परिवार लिए हुए खड़े थे. ‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी,’’ शेखर की मां ने कहा. दोनों परिवारों के लोग आमनेसामने बैठ गए और बातचीत शेखर के पिताजी ने शुरू की, कहा, ‘‘देखिए, अभी तक हम दोनों पड़ोसी एक गलतफहमी के कारण आपस में तनाव में रहे जिस का हमें कोई लाभ नहीं हुआ पर अब समय आ गया है कि हम लोग दुश्मनी भुला दें.’’
इतना कह कर वे चुप हुए तो शेखर की मां कहने लगीं, ‘‘दरअसल हम शेखर के लिए रेवती का हाथ मांगने आए हैं. दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं और शेखर की जौब भी लग गई है. इसलिए हमारा विनम्र निवेदन है कि,’’ और उन्होंने हाथ जोड़ लिए, आगे का वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया था जबकि सीजर बारीबारी सब का मुंह ताक रहा था. रेवती के पापा ने रेवती की ओर देखा और फिर एक नजर उस की मां के चेहरे की तरफ डाली और वे समझ गए कि वे सब क्या चाहते हैं.
उन्होंने सीजर को पास बुलाया और उस के बालों में हाथ घुमाने लगे, ‘‘बहुत दिनों से मैं देख रहा था कि आप ने इतना सुंदर डौगी पाला हुआ है, मैं इसे प्यार भी करना चाहता था पर हिचकता था पर जब आप के घर से रिश्ता जुड़ जाएगा तब मैं सीजर से खेल सकूंगा. हमारी तरफ से रिश्ता पक्का समझिए आप लोग.’’
सभी के चेहरों पर खुशी की मुसकराहट थी. रेवती ने शरमा कर नजरें झुका रखी थीं. शेखर ने सीजर को गोद में उठा लिया और उस के कान में कहने लगा, ‘‘वी लव यू सीजर.’’ सीजर अपनी छोटी सी जीभ निकाल कर शेखर और रेवती को बारीबारी देख रहा था. एक बेजबान जानवर ने 2 परिवारों के बीच तनाव को खत्म कर के 2 प्यार करने वालों को मिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी.

Hindi Story : अधूरा प्यार

Hindi Story : अपने अधूरे प्यार को पाने की लालसा एक बार फिर मन में बलवती हो उठी थी. लेकिन रोज ने मुझे ऐसा आईना दिखाया कि उस में अपना चेहरा देख मुझे शर्म आ रही थी.

दादाजी मुझे बहुत स्नेह करते थे. मैं केवल उन के लिए हुक्का भर कर स्कूल चला जाता था. पढ़ने में तेज था, इसलिए 12वीं में मैरिट लिस्ट में आया था. उन्हीं दिनों एनडीए यानी सेना में अफसर बनने के लिए नैशनल डिफैंस अकादमी के लिए वैकेंसी निकली. मैं ने दादाजी के सहयोग से फौर्म भर कर भेज दिया. पूरे भारत में परीक्षा एकसाथ हुई थी. मैं सफल कैंडिडेट था.

मैं 4 साल के लिए नैशनल डिफैंस अकादमी में चला गया. वहां ट्रेनिंग के साथ ग्रेजुएशन करवाई जानी थी. फिर हमारे दिमागों के हिसाब से हमें सेना के तीनों अंगों में भेजा जाना था. किसी को नेवी में जगह मिली तो वे नेवल अकादमी में ट्रेनिंग के लिए चले गए. किसी को एयरफोर्स में जगह मिली, वे एयरफोर्स अकादमी में चले गए. मु?ो सेना आयुद्ध कोर में जगह मिली. मैं आईएमए देहरादून में आ गया था.

अंतिम परेड में मैं ने अपने दादू को बुलाया था. जब मैं बहुत छोटा था तभी मांबाप दुनिया छोड़ गए थे. मु?ो दादू ने ही पाला था. अफसर बनने के बाद मैं कई जगह पोस्ट हुआ. एक लंबी सेवा कर के मैं कर्नल रैंक से रिटायर्ड हुआ था. इस बीच, दादू मु?ो छोड़ कर चले गए थे. मेरे लिए जमीन का 500 गज का एक टुकड़ा छोड़ गए थे. पुश्तैनी जमीन और मकान चाचा को दे दिया था. मैं ने कोई एतराज नहीं किया था. सर्विस में रहते मैं ने 500 गज में कोठी बनवा ली थी.

शादी हुई थी. एक बेटा भी हुआ. लेकिन वह अपनी मां को ले कर विदेश में बस गया. मैं अपना देश छोड़ कर जाना नहीं चाहता था, नहीं गया.

मैं जब यहां शिफ्ट हुआ तो नितांत अकेला था. मैं ने अपने पुराने नौकर गिरधारी और उस की पत्नी दीपा को घर के रोज के कामों, जैसे साफसफाई और खाना बनाने आदि के लिए रख लिया था.

यहां कलानौर में मेरी बहुत सी यादें जुड़ी हुई थीं. राजबीर, प्यार से मैं उसे रोज कहा करता था. सुंदर, सजीली और गुगलीमुगली थी. वह 7वीं में मेरी कलास में आई थी. पढ़ाई के कारण मेरी उस से दोस्ती हुई थी. वह भी पढ़ने में बहुत तेज थी. 12वीं में मेरे साथ वह भी मैरिट लिस्ट में थी. मैं सेना में चला गया था. वह कहां चली गई थी, पता नहीं चला था. आज याद आई तो मैं ने गिरधारी से पूछा. उस ने कहा, ‘‘आजकल वह यहीं रह रही है. गुरदासपुर में प्रोफैसर है. रोज आतीजाती है.’’

बस, उस ने इतना ही बताया. कल संडे था. उस की छुट्टी होगी. मैं ने उस से मिलने का मन बना लिया था. मैं नाश्ता कर के ऐसे ही मिलने के लिए निकला. मन के भीतर आज भी उस के लिए आकर्षण था चाहे हम एकदूसरे से इस का इजहार नहीं कर पाए थे.

मुझे याद है, मैं उस समय 10वीं में पढ़ता था. सुबह उठ कर नहर के किनारे घूमा करता था और लहरों में खो जाता था. मन से मैं नदी से प्रश्न पूछता था, ‘हे नदी, अगर तुम अपनी आई पर आओ तो अपने बहाव में बड़ेबड़े पहाड़, पत्थर और वृक्षों को बहा कर ले जाती हो. लेकिन बीच मध्य में एक पतली शहतूत की टहनी का तुम कुछ बिगाड़ नहीं सकती हो?’

मुझे  लगा, नदी ने जवाब दिया था, ‘वह मेरे सामने झुक जाती है.’

मैं ने समझ लिया था कि झुक कर जीना खराब नहीं है. झुक कर सीधे न होना खराब है. ?ाकना एक समस्या है, जिस का समाधान निकाल कर आगे बढ़ना ही जीवनधारा है. मेरे नन्हे मन में उस समय ?ाकने वाली बात ऐसी ही समझ में आई थी.

उस रोज, रोज ने मुझे  एकदम सामने आ कर चौंका दिया था. नदी की ओर उछाला गया यही प्रश्न मैं ने रोज से किया था. उस ने हंस कर कहा था, ‘छोड़ो न ये फिलौसफी की बातें. कितना अच्छा मौसम है, कुछ और बातें करो न.’

उस रोज शायद पहली बार हम एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए थे. कुछ न कह कर थोड़ी देर हम घूमे थे और लौट आए थे. स्कूल में भी हम अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहते थे. लेकिन जब भी अकेले में मिलते थे, वह अपनी खूबसूरत आंखों सें मुझे  देखती, फिर उन्हें झुका कर भाग जाती थी. इन सब का, आंखमिचौनी का हमारी पढ़ाई पर असर नहीं पड़ा था. मैं 4 साल की ट्रेनिंग पर जाने से पहले उस से मिलने गया था. विदा करने पर उस की आंखें डबडबाई महसूस हुई थीं मुझे . मैं उन आंखों को कभी भूल नहीं पाया था. आज बरसों बाद जब मैं उस से मिलने जा रहा था तो मुझे  सब याद आ रहा था.

मैं ने उस के घर की घंटी बजाई तो एक अनजान औरत ने दरवाजा खोला. मैं ने उसे अपना परिचय देते हुए राजबीर से मिलने की इच्छा जाहिर की.

उस ने कहा, ‘‘ठहरें, मैं पूछती हूं.’’

थोड़ी देर बाद उस ने मुझे  ड्राइंगरूम में ला कर बैठा दिया. रोज आई तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाया था. गुगलीमुगली से वह एकदम पतली हो गई थी. खूबसूरत आंखों पर मोटा चश्मा लग गया था. जीवन के 50 साल पार करने पर भी उस की खूबसूरती में कमी नहीं आई थी.

मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो रोज, तुम इतनी बदल कैसे गईं, गुगलीमुगली से इतनी दुबली कैसे हो गईं?’’

‘‘देख लें, आप की रोज को वक्त और ठोकरों ने इतना घिसा दिया कि मैं ऐसी हो गई.’’

मैं ने उस की आंखों में बचपन जैसा प्यार देखा. आंखें नम भी थीं.

उस ने बात बदल दी. शायद इस पर वह आगे बात नहीं करना चाहती थी. उस ने पूछा, ‘‘आप को तो विदेश में होना चाहिए था. आप यहां कैसे?’’

मैं जल्दी से उस की बात का उत्तर नहीं दे पाया था. फिर कहा, ‘‘रोज, मैं अपना देश छोड़ कर जाना नहीं चाहता था और वे यहां मेरे साथ रहना नहीं चाहते थे. इसलिए वे विदेश में हैं और मैं यहां.’’

‘‘कैसी विडंबना है कि आप की रोज भी बिखर गई और आप भी बिखर गए हैं.’’

‘‘यह बिखरनामिलना थोड़े से बदलाव के साथ सब के साथ है. मेरा मोह मेरे गांव कलानौर के साथ था. मैं यहां रह गया. मेरी पत्नी और बेटे का मोह विदेश से था वे वहां चले गए और बस गए. मैं नहीं रहूंगा तो मेरी बनाई यह कोठी भी नहीं रहेगी, जैसे दादू का पुराना मकान बेच कर चाचू दिल्ली में बस गए हैं.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं. मेरी शादी हुई और मैं भी बिखर गई. 2 साल में ही मुझे  मानसिक व शारीरिक रूप से इतना टौर्चर किया गया कि मेरे सारे मोह छूट गए. एक बेटा हुआ. वह भी उन के पास है. यह देखो, मेरे शरीर पर पड़े निशानों से आप अनुमान लगा सकते हो.’’

रोज ने अपनी टांगों, बाजुओं पर पड़े निशान दिखा दिए, ‘‘शरीर पर और जगह भी निशान हैं जो मैं दिखा नहीं सकती.’’

‘‘पर ऐसा क्यों हुआ, रोज?’’

‘‘पता नहीं ऐसा क्यों हुआ. लड़की बहुत से सपने ले कर अपनी ससुराल जाती है. वह घर बसाने जाती है, बिगाड़ने नहीं. मैं भी गई थी. आदमी के मिलने व बरतने पर ही पता चलता है कि कौन कैसा है. बहुत अमीर थे लेकिन साइको थे. वे मुझे  मारने का बहाना ढूंढ़ते रहते थे. मैं ने अपनी ओर से बहुत सहन किया और प्यार से समझने की कोशिश भी की लेकिन उन के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया.

‘‘मैं गुरदासपुर नईनई प्रोफैसर लगी थी. वे चाहते थे मैं नौकरी छोड़ कर घर को संभालूं. घर संभालने के लिए नौकरचाकर थे. मेरी घर में जरूरत नहीं थी. मैं नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थी. इस बात पर भी वे उखड़े रहते थे. मैं प्रैग्नैंट हुई तो मैं

ने लंबी छुट्टी ले ली. बेटा हुआ. बेटे को संभालने के लिए एक दाई तय कर के फिर नौकरी जौइन कर ली. मेरे पीरियड खाली होते तो मैं आ कर ब्रैस्ट फीडिंग दे जाती. उन का नौकरी न करने का आग्रह और रोजरोज मारना मुझ से बरदाश्त न हुआ.

‘‘बेटे को साथ ले कर बाऊजी मुझे  यहां ले आए. मैं ने तलाक का मुकदमा किया और महिला जज को मैं ने अपने शरीर के जख्म भी दिखाए. उन्होंने मु?ो कुछ देर साथ रहने के लिए भी नहीं कहा और तलाक मंजूर कर लिया. लेकिन बेटे का अधिकार मुझे  नहीं मिला. मैं ने बेटे का मोह भी छोड़ दिया हालांकि कोर्ट ने महीने में 2 बार मिलने की इजाजत दी थी. सोचा, आदमी नहीं तो बेटा भी नहीं.’’

आगे मैं सुन नहीं पाया था. जल्दी से वहां से चला आया था. मन दुखी था. रोज ने मु?ो रोकने की कोशिश भी नहीं की. मैं सोचता रहा कि ऐसे साइको आदमी से उस के मांबाप ने शादी क्यों की? इस प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं था. नहर के किनारे रोज मुझे  सैर करती रोज मिलती. मैं ने उस से मन का यह प्रश्न पूछा था. उस ने कहा, ‘‘कोर्ट ने भी उन के मांबाप से यही प्रश्न पूछा था. उन का उत्तर था, सोचा था कि शादी के बाद ठीक हो जाएगा.

‘‘आगे जज ने कहा था, इस का मतलब है कि जानते हुए कि आप का बेटा साइको है, आप ने शादी की और एक अच्छी लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी. आप को भी सजा मिलनी चाहिए. मैं आप को जेल तो नहीं भेजती लेकिन 10 लाख रुपए का जुर्माना करती हूं जिसे आप रोज के अकांउट में जमा कर के रसीद कोर्ट में जमा करेंगे. रोज जो दहेज अपने साथ लाई थी, एकएक चीज वापस की जाएगी. इस के लिए 2 इंस्पैक्टर तय किए जाएंगे. रोज का कोई सामान वहां नहीं छूटना चाहिए.

‘‘एक हफ्ते में सारा सामान लौट आया था. 10 लाख रुपए भी मेरे अकाउंट में जमा हो गए थे. तब से मैं यहां हूं. मां, बाऊजी इसी गम में चले गए.

‘‘मैं ने कई बार नहर के किनारे घूमते हुए नहर से पूछा था कि तुम तो कहती थीं शहतूत की टहनी मेरे सामने झुक जाती थी इसलिए मैं उसे उखाड़ नहीं पाती थी.’ मैं ने तो झुक कर भी देखा. फिर मैं क्यों उखड़ गई? नदी कुछ देर उग्र हुई, फिर शांत हो कर बहती रही. शायद उस के पास भी मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था.’’

‘‘हां रोज, कई बातों और प्रश्नों के उत्तर नहीं होते. इसलिए नदी भी अपना गुस्सा दिखा कर शांत हो गई थी.’’

हम दोनों यों ही चुपचाप नदी के किनारे घूमते रहे थे. फिर मैं ने पूछा, ‘‘रोज, तुम्हारे मन ने किसी और पुरुष को एडमायर नहीं किया था?’’

वह बहुत देर चुप रही थी. शायद कहने की हिम्मत जुटा रही थी. फिर कहा, ‘‘तुम्हें किया था लेकिन तुम बहुत पहले मेरे हाथ से निकल गए थे. मैं अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाई थी. वह समय ही ऐसा था. इस गलती की सजा मैं आज भुगत रही हूं.’’

‘‘हां रोज, गलती समझो या लोकलाज. उस समय ‘आई लव यू’ कहने का जमाना नहीं था. लेकिन आज है. क्या हम अब से अपनी वह जिंदगी शुरू नहीं कर सकते?’’

‘‘कैसे?’’

‘‘मैं ने अपनी पत्नी को बहुत बार लिखा कि वह मेरे साथ आ कर रहे. उस ने अपने अंतिम पत्र में लिखा था कि वह मुझे छोड़ सकती है लेकिन आ कर मेरे साथ रह नहीं सकती. सो, उस से तलाक ले कर हम इस अधूरे प्यार को पूरा कर सकते हैं.’’

रोज ने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और तेजी से अपने घर की ओर चल दी. मैं बहुत देर तक वहां की बैंच पर बैठा रहा. फिर घर लौट आया. 2 दिन रोज सैर के लिए नहीं आई. मेरे मन के भीतर पछतावा था कि मैं ने रोज से ऐसा क्यों कहा. तीसरे दिन वह मेरे साथ चुपचाप बैठ गई थी. मैं ने एक बार उसे देखा, फिर नहर की लहरों में खो गया था.

थोड़ी देर बैठने के बाद रोज ने प्यार, लेकिन दृढ़ता से कहा था, ‘‘मैं नारी हूं, पूर्ण नारी. क्या हुआ मैं ने तलाक लिया. मैं ने सृजन किया है. एक बेटे की मां हूं. मैं उस से मिलने नहीं जाती लेकिन वह मुझ से मिलने आता है. मुझे  मां का एहसास दे कर चला जाता है. लोकलाज से ही सही, मैं उम्र के इस दौर में किसी बंधन में नहीं बंधूंगी. मैं पुरुष नहीं हूं जो ‘तू नहीं और सही’ की वृत्ति रखूं. इस अधूरे प्यार को दोस्ती के रूप में पूरा रहने दो. आप की पत्नी जीवित है. विदेश में होने पर भी वह आप की पत्नी है.

‘‘मैं स्वतंत्र हूं, बिलकुल स्वतंत्र. अपनी मरजी की मालिक. अपनी मरजी से उठती हूं. अपनी मरजी से बैठती हूं. अपनी मरजी से जाती हूं. नहर की इन लहरों ने भी अपने मूक संदेश में यही कहा कि तुम उखड़ी जरूर हो लेकिन स्थापित हो गई हो. तुम ने पति जैसे पहाड़ को अपने जीवन से उखाड़ फेंका है. मेरी तरह बहो शांत और शाश्वत. छोटीमोटी बाधाएं आएं तो उन्हें उखाड़ फेंको. तुम नारी हो, पुरुष नहीं.’’

फिर वह चुप हो गई थी. थोड़ी देर बैठ कर वह लौट गई थी, एक तरह से मेरे मुंह पर तमाचा मार कर, पूरे पुरुष समाज पर तमाचा मार कर ‘तू नहीं और सही’ वृति के लिए. मैं वापस लौट आया था. उस के बाद रोज मुझे  कभी नहीं मिली. मैं ने समझ लिया कि मैं और रोज नदी के 2 किनारे हैं जो जीवन में कभी नहीं मिलते हैं चाहे लहरें कितना ही मिलाने की कोशिश करें. वे उग्र होने पर भी अपनी मर्यादा नहीं तोड़ती हैं.

True Murder Story : यूट्यूब जर्नलिस्‍ट मुकेश चंद्राकर की हत्‍या की वजह जान उड़ जाएंगे होश

True Murder Story : मुकेश चंद्राकर यूट्यूब पर ‘बस्तर जंक्शन’ नाम से अपना चैनल चलाते थे और बस्तर जैसे दुर्गम नक्सल प्रभावी क्षेत्र में पत्रकारिता किया करते थे. जनवरी 3 को उन की लाश स्थानीय ठेकेदार के सैप्टिक टैंक में पाई गई, जिस ने पत्रकारों के बीच सनसनी फैला दी.

नए साल की शुरुआत एक ऐसी खबर से भरी रही जो पत्रकारिता जगत से जुड़ी थी. बस्तर के स्थानीय ठेकेदार के यहां सैप्टिक टैंक में एक पत्रकार की तैरती लाश मिली. यह लाश एक ऐसे युवा पत्रकार की थी जो बस्तर के दुर्गम इलाकों में स्वतंत्र पत्रिकारिता करता था. ऐसे इलाके में, जहां काम करने के अपने डर और खतरे होते हैं. मगर हैरानी यह कि मौत की वजह खूंखार नक्सली नहीं बल्कि सिस्टम का ही वो भ्रष्ट अंग था जिस से हर कोई जूझता है.

 यूट्यूब चैनल ‘बस्तर जंक्शन’

बात 32 साल के मुकेश चंद्राकर की, जिन का ‘बस्तर जंक्शन’ नाम से एक यूट्यूब चैनल था. करीब 1 लाख 67 हजार के आसपास सब्सक्राइबर्स और 1 करोड़ से अधिक उन्होंने व्यूज पाए थे. इस चैनल पर  साल 2021 से ले कर अब तक 486 वीडियोज डाले गए थे, जिस में हालिया वीडियो 23 दिसंबर को डाली गई जिस का शीर्षक था, ‘नक्सलियों ने हथियार के नोंक पर युवक का किया अपहरण, फिर हत्या कर तालाब किनारे फेंक दिया शव!’. जाहिर है चैनल और पत्रकार अपने काम को ले कर खासे एक्टिव थे. मुकेश कभीकभी मैनस्ट्रीम चैनलों के लिए स्ट्रिंगर का काम किया करते थे.

आरोप है कि एक स्थानीय ठेकेदार सुरेश चंद्राकर ने 1 जनवरी को उन्हें अपने बीजापुर शहर के चट्टानपारा बस्ती के आवास पर बुलाया था. उस के बाद से मुकेश लापता थे. अगले 3 दिन तक स्थानीय पत्रकार और उन के भाई युकेश चंद्राकर जो खुद भी पत्रकार हैं, गुमशुदगी को ले कर यहांवहां लिखते रहे. पुलिस में तहरीर दी गई तो जांच शुरू हुई. सनसनी तब फैली जब लाश ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के सैप्टिक टैंक में तैरती मिली, जिस के ऊपर फ्रेश सीमेंट की चुनवाई की गई थी.

यह घटना निर्देशक अनुराग कश्यप के किसी फिल्म के प्लोट सरीकी है, जहां कोई हत्यारा हत्या करने के बाद लाश को छुपाने के लिए ऐसे तिकड़म करता दिखाई देता है. ठीक वैसे ही जैसे निठारी कांड में मासूम बच्चों को मारने के बाद बंगले के पीछे सड़ेगले गंदे नाले और सीवर में लाश फेंक दी गईं थी.

इस में कोई शक नहीं कि मौके पर मिले तमाम सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि मुकेश चंद्राकर की हत्या में सुरेश चंद्राकर का हाथ है, बल्कि आशंका इस बात की अधिक ही है कि ठेकेदार ने मुकेश की पत्रकारिता के चलते ही उस की हत्या की हो.

हत्‍या की वजह

दरअसल, जिस खबर को मुकेश की हत्या से जोड़ कrर देखा जा रहा है वह 24 दिसंबर की है. जो बस्तर में हो रहे एक सड़क निर्माण में भारी गड़बड़ी को ले कर एक एनडीटीवी में प्रकाशित हुई थी. हालांकि यह रिपोर्ट पत्रकार निलेश त्रिपाठी द्वारा लिखी गई थी मगर कहा जा रहा है कि इस में मुकेश भी सहायक की भूमिका में निलेश त्रिपाठी के साथ थे.

यह सड़क बीजापुर जिले के नक्सल प्रभावित इलाके गंगालूर से नेलसनार तक बनाई जा रही थी और इस के ठेकेदार सुरेश चंद्राकर थे. कथित तौर पर इसी खबर के बाद पत्रकार मुकेश को बारबार ठेकेदार द्वारा मिलने के लिए बुलाया जा रहा था.

इस में कोई शक नहीं कि पत्रकार को अपने पेशे के चलते जान गंवानी पड़ी होगी, क्योंकि जिस तरह की निर्भीक पत्रकारिता मुकेश करते आए थे वे भ्रष्ट लोगों के आंखों में चुभने जैसा ही था. और भविष्य में इस बात पर भी कोई हैरानी नहीं होगी यदि जांच के दौरान यह कह दिया जाए कि मुकेश की हत्या परिसर में काम कर रहे किसी ए, बी, या सी मजदूर ने आपसी रंजिश में की, क्योंकि ठेकेदार इलाके का बाहुबली है और प्रशासन तक पैठ है.

आदिवासियों की आवाज बनने की कोशिश

जाहिर है, मुकेश साहसी पत्रकार थे. अपने चैनल पर अपलोड किए अधिकतर वीडियोज में उन्होंने सिस्टम और नक्सलियों के बीच पिसते आदिवासियों के हालातों को दिखाने की कोशिश की. उदहारण के लिए, ‘आदिवासियों की बेबसी के साथ ‘सिस्टम और नक्सल संगठन की शवयात्रा’’ वाले थंबनेल वीडियो में वह एक ऐसी घटना पर रिपोर्ट बनाते हैं जिस में एक बच्चे की मौत नक्सलियों द्वारा इलाके में लगाए प्रेशर आईडी की चपेट में आने से हो जाती है और इलाके की सड़क का हाल यह है कि परिवारजन को शव ले जाने के लिए 3 किलोमीटर पैदल रोड तक चलना पड़ता है.

ऐसे ही एक दूसरे वीडियो, ‘चांद पर परचम लहराने वाले देश में जुगाड़ पर जिंदगी’ थंबनेल के साथ टूटे पुल की दुर्दशा दिखाते हैं, जहां ग्रामीण लोग महीनों से टूटे पुल की फ़रियाद प्रशासन से लगाते हैं पर कोई राहत न पाते देख जुगाड़ के सहारे खुद ही पुल बना लेते हैं.

अपने हाल के वीडियो में वे नक्सल हिंसा में मारे गए एक बुजुर्ग के परिवार वालों पर स्टोरी कवर करते हैं. इस के अलावा उन्होंने अमित शाह के बस्तर जिले में दो दिवसीय विजिट को ‘नक्सल की छाती पर अमित शाह के कदम’ नाम के थंबनेल से कवर किया. यह सारी रिपोर्टिंग बताती है कि वे निर्भीक काम करते आए थे जिस का खामियाजा जान दे कर उन्हें उठाना पड़ा. वो भी तब जब राज्य में ‘पत्रकार सुरक्षा अधिनियम कानून’ लागू है.

जिम्मेदार मैनस्ट्रीम मीडिया भी

आज जिस तरह मुकेश की हत्या हुई है उस के लिए जिम्मेदार कहीं न कहीं मैनस्ट्रीम मीडिया भी दिखाई देती है. बीते कुछ सालों में उस ने अपनी इमेज बुरी तरह गिराई है, जो 180 देशों में शर्मनाक 159वें नंबर पर है.

मसलन, तमाम चैनल अब न्यूज रूम में कन्वर्ट हो गए हैं जहां पत्रकार कम और चीखनेचिल्लाने वाले एजेंडाधारी एंकर ज्यादा दिखाई देते हैं. 4 पैनलिस्ट बैठा कर 1 घंटा काट दिया जाता है. खबर व जानकारी के नाम पर धार्मिक बहसें दिखाई जाती हैं. इस चलते संस्थागत पत्रकार लगभग गायब हो गए हैं. ये इन जगहों को छोड़ कर यूट्यूब उद्द्यमी पत्रकार बन गए हैं. अब चेहरे पर पत्रकारिता हो रही है और इसी राह पर इस संस्थानों से छटके पत्रकार भी स्वतंत्र रूप से चल पड़े हैं.

यहां न कोई संपादक है न संपादन. किस खबर पर रेवेन्यु आएगा, कौन सी न्यूज व्यूज देगी, कौन रियायत लेगा और कौन रडार में आएगा, अधिकतर खेल इसी का चलता है. यूट्यूब ने साधारण से मोबाइलधारी को भी पत्रकार बनने का अवसर दिया है. इस के कुछ फायदे हैं, जैसे किसी संपादक से आदेश नहीं लेने पड़ते और मनमर्जी चलती है पर कुछ नुकसान भी हैं जिस में एक नुकसान मुकेश चंद्राकर के रूप में सामने है.

ऐसा नहीं है कि मुकेश की हत्या कोई इकलौता मामला है. पत्रकारों पर हमले बीते सालों में काफी बढ़े हैं. पर स्वतंत्र पत्रकारिता के लिहाज से यह हत्या ज्यादा सनसनी इसलिए फैलाती है क्योंकि यूट्यूब में पत्रकारिता कर रहे पत्रकार भी चेहरे पर ही पत्रिकारिता करते हैं. इन के अपने फौलोवर्स और व्यूअर्स होते हैं. मसलन, ठेकेदार के भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट बनाने से यदि इस तरह की नौबत आई है तो यह सोचना भी जरुरी है कि आगे किसी दूसरे को ऐसी नौबत न देखनी पड़े. जब बाक़ी पत्रकार, मुकेश चंद्राकर की हत्या पर उचित जांच की मांग करते हैं तो साथ में संयम से एक जगह बैठ कर न्यूज़ और व्यूज के रिश्तों और भविष्य के परिदिर्श्यों पर चर्चा भी जरुरी है ताकि इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके.

Film Review : अग्नि

Film Review : हमारे धर्मग्रंथ अंधविश्वासों और ऊलजलूल बातों से भरे पड़े हैं. उन धर्मग्रंथों में अग्नि को हिंदुओं का देवता बताया गया है. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, अग्नि को आकाश, जल, वायु और पृथ्वी जैसे पंचभूत तत्त्वों में एक माना गया है. पौराणिक कथाओं- अग्नि पुराण और वैदिक शास्त्रों- में अग्नि को सब से युवा देवता माना गया है.
अंधविश्वासभरी इन बातों को मान कर हिंदू हर शुभकार्य में अग्नि का आह्वान करते हैं और आहुति देते हैं, खासकर यज्ञ आदि में तो अग्नि की आहुति देना अनिवार्य माना जाता है. लेकिन यही अग्नि जब विकराल रूप धारण कर उन्हीं लोगों के घरों को जलाती है और विनाश लाती है, तब भी अंधविश्वासी हिंदुओं का भ्रम नहीं टूटता कि अग्नि कोई देवता नहीं, बल्कि प्राकृतिक प्रकोप है.

फिल्म विनाशकारी जैसे अनछुए सब्जैक्ट अग्नि पर राहुल ढोलकिया ने फिल्म ‘अग्नि’ को बनाया है. मलयालम की ‘फायरमैन’ को छोड़ दें तो आग बुझाने की तैयारी करने वाले कर्मियों पर बनी यह पहली फिल्म है. यह फिल्म आग बुझाने  वाले कर्मियों के साहस और जुझारूपन को दिखाती है.

राहुल ढोलकिया का कमबैक

राहुल ढोलकिया ने 7 वर्षों बाद कमबैक किया है. उस ने 7 वर्ष पहले फिल्म ‘रईस’ बनाई थी. फिल्म का हीरो शाहरुख खान था. इस फिल्म में उस ने एक फायरमैन की कहानी को दिखाया है. आग बुझाने वालों का काम जितना आसान दिखता है, उतना होता नहीं है. दमकलकर्मी अपनी जान को जोखिम में डाल कर लोगों की जिंदगी बचाते हैं. इस के बावजूद उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिस के वे हकदार होते हैं. दमकलकर्मियों के काम को अनदेखा कर दिया जाता है. सारी वाहवाही पुलिस ले जाती है. इसी विषय को राहुल ढोलकिया ने अपनी इस फिल्म में उठाया है.

कहानी मुंबई के लोअर परेल इलाके की है. फायर ब्रिगेड टीम के हैड विट्ठल राव (प्रतीक गांधी) इस बात से नाराज हैं कि लोग दमकलकर्मियों को सम्मान नहीं देते. उस का बेटा पिता के बजाय पुलिस में कार्यरत मामा समित (दिव्येंदु शर्मा) को अपना आदर्श मानता है. कहीं पर आग लगने का फोन आने पर विट्ठल की पत्नी (सई ताम्हणकर) डरीडरी सी रहती है. विट्ठल तत्परता से अपनी टीम के साथ आग बुझाने को रवाना हो जाता है. उस की टीम में महिला दमकलकर्मी अवनि (सैयामी खेर) भी है. विट्ठल आग लगने के कारणों की पड़ताल करता है, मगर समित के साथ उस की तकरार होती है.

विट्ठल जांच करता है कि आग लगने की घटनाओं के पीछे कोई साजिश तो नहीं. आग लगने के एक भयानक हादसे में अवनि के मंगेतर की जान चली जाती है, जो खुद एक फायर फाइटर था. विट्ठल को आग लगने की घटनाओं से जुटे कुछ सुबूत मिलते हैं, जो उस के होश उड़ा देते हैं. उसे एक भीषण हादसे के होने की खबर मिलती है जिस में विट्ठल और समित के परिवार समेत कई राजनेता भी मौजूद हैं. वह असली मुजरिम का परदाफाश कर के उस हादसे को होने से रोक लेता है और साबित करता है कि फायर फाइटर्स भी असली हीरो होते हैं.

प्रतीक गांधी की भड़ास

अपनी इस फिल्म में राहुल ढोलकिया ने यह बताने की कोशिश की है कि हमारी सेना, पुलिस और सुरक्षा बलों की तरह एक फायर फाइटर भी सैनिक जैसा होता है. फिल्म की यह पटकथा अच्छी तो है, मगर कहानी सही दिशा में आगे नहीं बढ़ती है.मुख्य फायरमैन की भूमिका में प्रतीक गांधी ने अपने मन की भड़ास को दिखाया है. स्वार्थी पुलिसकर्मी की भूमिका में दिव्येंदु शर्मा का अभिनय बढि़या है. सैयामी खेर भी प्रभावित करती है. फिल्म में संदेश दिया गया है कि जो दमकलकर्मी आप को आग से बचाते हैं उन का सम्मान किया जाना चाहिए. आग लगने के दृश्यों में वीएफएक्स का इस्तेमाल किया गया है. फोटोग्राफी अच्छी है. पार्श्व संगीत ठीकठाक है.

Movie Review : ‘सिकंदर का मुकद्दर’ की कहानी में झोल

Movie Review :  बौलीवुड की इस साल की सब से कमजोर फिल्म मानी जाएगी ‘सिकंदर का मुकद्दर’. इस साल आई ‘औरों में कहां दम था’ और 2013 में आई ‘स्पैशल 26’ जैसी फिल्में बनाने वाले नीरज पांडे ने अपनी इस फिल्म में 3 क्लाइमैक्स दिखाए हैं. 3 क्लाइमैक्स दिखाने का चलन हौलीवुड सिनेमा में है जिसे नीरज पांडे ने अपनाया है. मगर अफसोस, उस ने ‘सिकंदर का मुकद्दर’ फिल्म को अधर में लटकते छोड़ दिया है.

फिल्म का टाइटल 1978 में आई अमिताभ बच्चन, रेखा, विनोद खन्ना, कादर खान वाली प्रकाश मेहरा की सुपरडुपर हिट फिल्म से लिया गया है. फिल्म एक थ्रिलर ड्रामा है. इस में ऐसे राज और घटनाएं छिपी हैं जो एक के बाद एक खुलती हैं. मगर ये घटनाएं पुरानी और घिसीपिटी हैं.

फिल्म की कहानी 15 साल का सफर तय करती है और इस दौरान आगेपीछे होती रहती है. टर्न और ट्विस्ट्स बिलकुल भी नहीं चौंकाते. कहानी 60 करोड़ रुपए की कीमत के हीरों की चोरी, उन की तलाश करते एक पुलिस इंस्पैक्टर के इर्दगिर्द घूमती है.

कहानी में झोल

कहानी 2009 से शुरू होती है. मुंबई में एक ज्वैलरी एक्जीबीशन लगी थी. तभी एक पुलिस वाले को फोन आता है कि एक्जीबीशन में हीरों की चोरी होने वाली है. वह बताता है कि इस चोरी को 4 लोग अंजाम देंगे जो बंदूकों से लैस हैं. पुलिस चौकन्नी हो जाती है. तभी सिक्योरिटी अलार्म बजने लगते हैं. पुलिस और चोरों के बीच वारपलटवार चलता है. पुलिस चारों चोरों को मार गिराती है.

तभी कामिनी सिंह (तमन्ना) देखती है कि 5 बड़ेबड़े डायमंड्स चुराए गए हैं जिन की कीमत 50-60 करोड़ रुपए के बीच है. पुलिस अफसर जसविंदर सिंह (जिमी शेरगिल) को बुलाया जाता है. जसविंदर वहां सभी से पूछताछ करता है. उसे 3 लोगों पर शक है, पहला सिकंदर (अविनाश तिवारी) जो कंप्यूटर रिपेयरिंग का काम करता था, दूसरी कामिनी (तमन्ना भाटिया) और कामिनी के कलीग जिसे अकसर लोग अंकल कहा करते थे. जसविंदर को लगता था कि ये तीनों मिले हुए हैं. वह उन्हें जेल में डाल देता है. जसविंदर से सिकंदर कहता है कि वह बेगुनाह साबित होगा और जसविंदर को उस से माफी मांगनी होगी.

15 साल का पेंच

कहानी 15 साल आगे जाती है. जसविंदर को शराब पीने की लत लग चुकी थी. उसे नौकरी से भी निकाला जा रहा था. उसी की बीवी कौशल्या (दिव्या दत्ता) भी उसे डिवोर्स दे रही थी. तभी जसविंदर को खबरी का फोन आता है कि जिसे वह ढूंढ़ रहा है वह अबूधाबी में है. यह शख्स सिकंदर था. जसविंदर सिकंदर से माफी मांगने के लिए उसे वापस बुलाता है.

कहानी फिर 15 साल पीछे जाती है. कामिनी और अंकल जमानत पर छूट जाते हैं. सिकंदर वापस घर आता है. कामिनी और सिकंदर की मुलाकात होती है. उसे उस का पति छोड़ कर चला गया था. सिकंदर और कामिनी नजदीक आते हैं. दोनों शादी कर लेते हैं. सिकंदर और कामिनी आगरा शिफ्ट हो जाते हैं. पुलिस सिकंदर, कामिनी और अंकल के खिलाफ वारंट जारी करती है परंतु जज उन्हें बेगुनाह साबित कर रिहा कर देती है.

तभी कामिनी बीमार हो जाती है. उस के इलाज के लिए सिकंदर को एक लाख रुपए की जरूरत है. वह अपने मकान मालिक से डिपौजिट रखे एक लाख रुपए वापस ले लेता है. मगर गुंडे उस से सारे पैसे छीन लेते हैं. वह पहले तो सुसाइड करने की सोचता है, फिर एक मंदिर से पैसे चुराता है. उसे अबूधाबी में काम मिल जाता है.

कहानी फिर पीछे लौटती है. जसविंदर को पता चलता है कि एक हीरा कामिनी के पास है तो वह उसे सिकंदर पर नजर रखने को कहता है. जसविंदर सिकंदर के लिए मुशकिलें पैदा कर रहा था. वह कामिनी को छोड़ कर चला जाता है और एक गांव पहुंचता है. वहां उस की पुरानी गर्लफ्रैंड प्रिया उसे एक नर्सरी में ले जाती है जहां उस ने डायमंड छिपाए थे, जिन्हें सिकंदर ने ही दिया था.

दरअसल वह चोरी सिकंदर ने ही की थी. जसविंदर उसे अरैस्ट कर लेता है. यहां सिकंदर का पूरा प्लान क्लीयर हो जाता है कि उस ने डायमंड्स की चोरी कैसे की. निर्देशक ने अपनी इस फिल्म के लिए बचकानी सी कहानी को खुद ही लिखा है. उस ने दर्शकों को बेवकूफ समझ लिया है. दर्शक फिल्म देखने पर मजबूर हो जाते हैं कि कौन किस का मुकद्दर लिख रहा है. फिल्म की लंबाई कम की जा सकती थी.

तबस्सुम (जोया अख्तर) का किरदार अगर न भी होता तो कोई फर्क न पड़ता. चोरी से पहले कभी एकदूसरे का नाम तक न जानने वाले कामिनी और सिकंदर के बीच अचानक लवस्टोरी कैसे शुरू हो गई, सोच से परे है. मंगेश देसाई के किरदार को एकदम गायब कर दिया गया है.

तमन्ना भाटिया अपने किरदार में जंची है. जिमी शेरगिल का काम अच्छा है. सिकंदर की भूमिका में अविनाश तिवारी जंचा है. पटकथा में काफी झोल है. डकैती का रहस्य खुलने पर मजा नहीं आता. पार्श्व संगीत साधारण है. सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है.

 

Gray Divorce : तलाक का नया ट्रैंड

Gray Divorce : आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.

बौलीवुड में शादियां क्यों नहीं टिकतीं

बौलीवुड के फेमस सिंगर ए आर रहमान और उन की पत्नी सायरा बानो शादी के 29 वर्षों बाद अलग हो गए हैं, जिसे सुन कर हरकोई हैरान है कि आखिर शादी के इतने सालों बाद ऐसा क्या हुआ जो संगीतकार को इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा. वैसे, इस के पहले कई मशहूर हस्तियां डिवोर्स ले कर लोगों को हैरानी में डाल चुकी हैं. आमिर खान, कमल हासन, आशीष विद्यार्थी, कबीर बेदी सहित कई लोगों के तलाक हो चुके हैं. इन सभी ने दशकों तक चले लंबे विवाह के बाद तलाक का फैसला लिया. सायरा बानो की वकील वंदना शाह ने एक इंटरव्यू में शोबीज में शादियों और असफलताओं के बारे में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं कि बौलीवुड में शादियां क्यों नहीं टिकतीं और आजकल तलाक का चलन इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है.

अलग सैक्स लाइफ

वंदना शाह ने ‘द चिल ओवर पोडकास्ट’ पर कहा कि बौलीवुड वालों की जिंदगी बहुत अलग होती है और ऐसी शादियों में, खासकर बौलीवुड में, बेवफाई नहीं बल्कि बोरियत अकसर अलगाव की ओर ले जाती है. वकील ने कहा कि मशहूर हस्तियां अकसर एक रिश्ते से दूसरे रिश्ते में बदलाव करते हुए कई शादियां करती हैं. ऐसे लोग बहुत अलग सैक्स लाइफ जीते हैं. एक सामान्य व्यक्ति की शादी की तुलना में इन लोगों की सैक्स को ले कर उम्मीद बहुत अधिक होती है. हालांकि इन के लिए ‘वन नाइट स्टैंड’ भी कोई माने नहीं रखता है. दरअसल असली मुद्दा नीरसता है जो रिश्ते टूटने का कारण बनती है. वंदना शाह ने यह भी कहा कि जीवनसाथी की मां, भाई और यहां तक कि ससुराल-परिवार सहित बाहरी लोगों का हस्तक्षेप अकसर सैलिब्रिटी मैरिज में चुनौतियों को बढ़ा देता है.

बड़ा कारण ‘घोंसला सिंड्रोम’

वैसे, केवल बौलीवुड और अमीर परिवारों में ही शादियां नहीं टूटतीं, बल्कि आम परिवारों में भी कई शादियां लंबे समय तक नहीं चल पाती हैं और पतिपत्नी तलाक ले कर अलग हो जाते हैं. पिछले 5 सालों में बुजुर्गों में तलाक के मामले दोगुने हुए हैं. दंपती आपसी रजामंदी से अलग हो रहे हैं, जिसे Gray Divorce कहते हैं. इस उम्र में तलाक लेने के पीछे का बड़ा कारण ‘घोंसला सिंड्रोम’ को माना जा रहा है. क्या है घोंसला सिंड्रोम खाली घोंसला वह स्थिति है जहां मातापिता अपने घर यानी सपनों के घोंसले में अकेले रह जाते हैं. उन के बच्चे पढ़ाई और कैरियर के कारण घर से बाहर चले जाते हैं. ऐसे में अकेले मातापिता दुख और अकेलेपन की भावना के शिकार होने लगते हैं.

ग्रे डिवोर्स क्या है

ग्रे डिवोर्स को अकसर ऐसे तलाक के रूप में परिभाषित किया जाता है जो लंबे समय तक चली शादी के बाद 50 वर्ष की आयु के बाद होता है. ऐसे व्यक्ति अकसर कई वर्षों या दशकों से विवाहित जिंदगी जीने के बाद आखिरकार अपनी शादी से अलग होने का फैसला ले लेते हैं. लंबे समय साथ रहने के बाद अलग होने को सिल्वर स्प्लिटर्स कहा जाता है. इधर पिछले कुछ सालों में ‘Gray Divorce’ के मामले दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे हैं. Gray Divorce की वजह क्या है

बच्चों का विदेश चले जाना : उम्र के इस पड़ाव में अलग होने का एक बड़ा कारण जीवन में अकेलापन है. ज्यादातर दंपती के बच्चे या तो विदेश में सैटल हो जाते हैं या किसी दूसरे शहर में जा कर बस जाते हैं. ऐसे में मातापिता अकेले रह जाते हैं और आपस में छोटीछोटी बातों पर लड़नेझगड़ने लगते हैं और फिर एक दिन अलग होने का फैसला कर लेते हैं.
दंपती का एकदूसरे से लगाव खत्म होना : एक उम्र के बाद पतिपत्नी का एकदूसरे से लगाव खत्म होने लगता है. वे एकदूसरे से इतने ज्यादा एरिटेड होने लगते हैं कि एकदूसरे से बात तक करना पसंद नहीं करते हैं. अधिकतर लोगों का तलाक एकदूसरे से लगाव खत्म हो जाने के कारण होता है.
बच्चों का अलग हो जाना : कई मामलों में यह भी देखा गया है कि बच्चे शादी के बाद मातापिता से दूरियां बना लेते हैं और अलग घर ले कर रहने लगते हैं, जिस की वजह से मातापिता में तनाव और कलह बढ़ने लगता है.
अपेक्षाएं पूरी न होना : 56 साल की ममता की आज भी अपने पति से यही शिकायत है कि उस ने उसे कभी नहीं समझा,  यह जानने की कोशिश तक नहीं की कि उसे चाहिए क्या? वहीं ममता के पति का कहना है कि उन की पत्नी ने कभी उन की इज्जत नहीं की. जब दो लोग साथ रहते हैं तो एकदूसरे से अपेक्षाएं तो होती ही हैं. लेकिन जब वही चीज पूरी नहीं हो पाती है तो दोनों के बीच मनमुटाव बढ़ने लगता है और उन के रास्ते अलग हो जाते हैं.
एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर : अब शादी कोई बंधन नहीं रहा है. क्या बुजुर्ग क्या जवान, हर इंसान सोशल मीडिया पर इंगेज हैं. नएनए रिश्ते बना रहे हैं वह भी अपने पार्टनर से छिपा कर. यह भी एक वजह है रिश्ते टूटने की.
Gray Divorce के संकेत : कहा जाता है कि तलाक होने से काफी पहले ही मानसिक तौर पर पतिपत्नी के बीच तलाक हो चुका होता है. यानी इस के संकेत काफी पहले से दिखने शुरू हो जाते हैं. कम्यूनिकेशन गैप, लंबे समय से एकदूसरे के बीच आई दूरी, आपसी तालमेल न होना, एकदूसरे की बातों से चिढ़ना, बच्चों के घर से जाने के बाद बहुत अकेला महसूस करना आदि संकेत बताते हैं कि पतिपत्नी के बीच अब पहले वाला लगाव नहीं रहा.

मध्यम आयुवर्ग और वृद्ध वयस्कों में तलाक

2022 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि मध्यम आयुवर्ग और वृद्ध वयस्कों में तलाक की दर 1970 के बाद से बड़ी है. 1970 में ग्रे तलाक अपेक्षाकृत असामान्य था और 1990 तक इस में मामूली वृद्धि हुई. 1990 में 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में 8.7 फीसदी विवाह तलाक में समाप्त हो गए. 2019 तक यह संख्या बढ़ कर 36 फीसदी हो गई.
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग ही एकमात्र ऐसा आयुवर्ग है जिस में तलाक की दर बढ़ रही है. इस के विपरीत, 20 और 30 के दशक के वयस्कों में तलाक की दर हाल के वर्षों में वास्तव में कम हुई है. gray divorce से कैसे निबटें इस के लिए आप अपनी लाइफ फिर से खुल कर जीने की कोशिश कीजिए. अपने दोस्तों को फोन कौल कीजिए. उन के साथ टाइम स्पैंड कीजिए. अगर कोई मैंटली परेशानी है तो डाक्टर को दिखाइए. इस तरह आप gray divorce से निबट सकते हैं.

 Family Matters : मैं बेटी के लिए लड़का ढूंढ़ रही हूं. सिंगल मदर हूं.

Family Matters : अगले महीने लड़के वाले मेरी बेटी को शादी के लिए देखने आने वाले हैं. लड़के की फैमिली मेरी फ्रैंड की जानपहचान की है. मैं थोड़ा नर्वस हूं क्योंकि मेरा यह फर्स्ट एक्सपीरिएंस होगा. ऐसा क्या करूं कि लड़के वाले शादी के लिए तैयार हो जाएं, सुझाव दीजिए.

यह एक महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील समय है, जब दोनों परिवारों की सोच और रिश्ते को समझ कर एक मजबूत और सकारात्मक इंप्रैशन बनाना जरूरी होता है. सब से पहले तो लड़के के परिवार का अच्छे से स्वागत करें. घर का माहौल सुखद, आरामदायक और दोस्ताना होना चाहिए. इस तरह का सकारात्मक और खुले विचारों का वातावरण रिश्ते को मजबूती प्रदान करता है.

लड़के के परिवार के साथ बातचीत में आदर और सम्मान का ध्यान रखें. उन की राय, विचार और सवालों का सम्मान करें चाहे वे किसी भी मुद्दे से संबंधित हों. आप की विनम्रता और समझदारी उन्हें प्रभावित कर सकती है.

अपनी बेटी के गुण, शिक्षा और व्यक्तिगत विशेषताओं का उल्लेख करें. यह लड़के के परिवार को यह एहसास दिलाएगा कि आप की बेटी अच्छी व समझदार है. अपने परिवार की आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति का भी एक हलका सा इशारा करें. हालांकि यह दिखाना जरूरी नहीं कि आप बहुत अमीर हैं लेकिन लड़के के परिवार को यह जानने की जरूरत है कि आप एक अच्छे, सुरक्षित और स्थिर परिवार से हैं.

अपने परिवार के सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों को भी साेल्‍व करें. यह दर्शाता है कि आप की पारिवारिक परंपराएं मजबूत हैं और आप अपने रिश्तों को गंभीरता से लेते हैं.

आप की बातों और व्यक्तित्व में आत्मविश्वास होना जरूरी है. जब आप अपने परिवार और बेटी के बारे में विश्वास के साथ बात करते हैं तो यह लड़के के परिवार को भी आप के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने में मदद करता है.

मुलाकात के दौरान केवल एकदूसरे की तारीफों के बजाय रिश्ते के बारे में खुल कर बात करें. आप अपनी बेटी के लिए क्या चाहते हैं, उस की शिक्षा, कैरियर और भविष्य के बारे में आप के विचार क्या हैं, इस पर चर्चा करें.

लड़के के परिवार से उन की उम्मीदों और सवालों का ध्यान से जवाब दें. जब आप अच्छे से सुनते हैं और सोचसमझ कर जवाब देते हैं तो यह एक अच्छे रिश्ते की शुरुआत हो सकती है.

रिश्ते बनने में कई बार समय लगता है और यह जरूरी नहीं कि सबकुछ एक ही मुलाकात में तय हो जाए. आप अपने परिवार के साथ ईमानदारी, प्यार और सचाई से पेश आएं. सब अच्छे की उम्मीद रखें.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

 

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