Prakriti Lamsal’s Death : है तो यह सीधीसादी कैम्पस लवस्टोरी और उस के बाद प्रेमी द्वारा प्रेमिका को ब्लैकमेल व प्रताड़ित करने की एक दुखद दास्तां जिस पर अब भगवा इबारत लिखी जा रही है.
वे दोनों भुवनेश्वर के कलिंग इंस्टिट्यूट औफ इंडस्ट्रियल टैक्नोलौजी यानी केआईआईटी में पढ़ते थे. अद्विक श्रीवास्तव लखनऊ से आया था और प्रकृति लामसाल नेपाल से आई थी. दोनों बीटैक के थर्ड ईयर के स्टूडैंट थे, उम्र वही 20-22 के बीच जो पढ़ाई के साथसाथ प्यार के लिए भी जानी जाती है. सो, दोनों एकदूसरे से प्यार कर बैठे लेकिन इसे निभा नहीं पाए. यह हर्ज की बात नहीं थी, हर्ज की बात थी अद्विक द्वारा प्रकृति को ब्लैकमेल और प्रताड़ित करना जिस की परिणति हुई प्रकृति की आत्महत्या की शक्ल में. ऐसा रोजरोज कहीं न कहीं हो रहा होता है पर इस में नई बात है प्रेमिका का नेपाली होना.
बीती 16 फरवरी की रात प्रकृति ने केआईआईटी के होस्टल में खुदकुशी कर ली थी जिस से आहत और व्यथित इस संस्थान के कोई एक हजार नेपाली छात्र लामबंद हो कर विरोध प्रदर्शन करने पर उतारू हो आए. हल्ला मचा तो नेपाल सरकार ने भी संज्ञान लिया. केआईआईटी प्रशासन ने मामले को गंभीरता से न ले कर टरकाऊ रवैया अपनाया था. उस ने नेपाली छात्रों से कहा, ‘चले जाओ नेपाल’ और उन्हें गाड़ियों में ठूंस कर 30 किलोमीटर दूर कटक रेलवे स्टेशन भेज दिया. इन छात्रों में से अधिकतर के पास टिकट को तो दूर की बात है, खानेपीने तक को पैसे न थे.
केआईआईटी प्रशासन ने आननफानन होस्टल्स खाली कराने का भी फरमान जारी कर दिया जबकि 28 फरवरी से इम्तिहान होने थे. नतीजतन, छात्रों का गुस्सा और भड़क गया. इसी बीच एक वीडियो वायरल हुआ जिस में केआईआईटी की 2 अधिकारी नेपाली छात्रों से अभद्र और अपमानजनक तरीके से यह कहती नजर आ रही हैं कि हम 40 हजार बच्चों को मुफ्त में पढ़ातेखिलाते हैं. इतना तो तुम्हारे देश का बजट भी नहीं होता. एक और वायरल हुए वीडियो में अद्विक प्रकृति से गालीगलौच कर रहा है.
बात नेपाल सरकार के बजट तक जा पहुंची तो वहां के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भारत सरकार से नेपाली छात्रों की सुरक्षा की मांग की और मामले में दखल देने की अपील की. अब बात प्रकृति की आत्महत्या की न रह कर नेपाली अस्मिता और राजनयिक संबंधों की भी हो गई थी, जिस के तहत नेपाल की संसद में भी मामला गूंजा और ओडिशा विधानसभा में भी उठा. हालांकि, दबाव और हल्ला बढ़ता देख केआईआईटी प्रशासन ने नेपाली छात्रों से न केवल माफी मांग ली, बल्कि दोषी स्टाफ को सस्पैंड भी कर दिया.
निशाने पर यह मसीहा
इस मामले पर ओडिशा विधानसभा में बीजद लगभग तटस्थ भूमिका में रही लेकिन कांग्रेस ने भाजपा सरकार को घेरने का मौका नहीं गंवाया. पर बिसात तब भगवा हो उठी जब एक भाजपा विधायक बाबू सिंह ने केआईआईटी और केआईएसएस के संस्थापक डाक्टर अच्युत सामंत की गिरफ्तारी की मांग कर डाली तो समझने वालों को समझ आ गया कि असल खेल तो अब शुरू हुआ है जिस के तहत भगवा फंदा डाक्टर सामंत के गले में डाले जाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं.
अच्युत सामंत एक लोकप्रिय और काबिल प्रतिभावान शिक्षाविद हैं, जिन्हें देशदुनिया से कोई 64 मानद डाक्टरेट मिल चुकी हैं. उन्होंने गरीबी और अभावों से लंबी लड़ाई जीत कर जो हासिल किया है वह उपलब्धियों की शक्ल में सामने है. केआईआईटी और केआईएसएस में 40 हजार आदिवासी छात्रों को रहनेखाने और शिक्षा की नि:शुल्क व्यवस्था किसी सुबूत की मुहताज नहीं है. उन की इमेज ओडिशा के आदिवासियों में मसीहा की है.
लेकिन विवादों से भी अचुय्त सामंत का गहरा नाता है. उन पर आदिवासी बच्चों के धर्म को ले कर आरोप अकसर लगते रहे हैं. कट्टर हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि उन के शैक्षणिक संस्थानों में भोलेभाले आदिवासी बच्चों को ईसाई बनने को उकसाया जाता है जबकि उलट आदिवासी संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि केआईआईटी और केआईएसएस में हिंदू तीजत्योहार मना कर छात्रों को हिंदू बनाने की साजिश रची जा रही है.
सच कुछ भी हो लेकिन इतना जरूर साबित हो गया कि गरीब आदिवासी बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई से दोनों धर्मों के ठेकेदार परेशान हैं क्योंकि शिक्षा उन्हें जागरूक तो बनाती है और यह गुनाह चूंकि डाक्टर सामंत कर रहे हैं इसलिए उन्हें सबक मिलना चाहिए. लेकिन यह आसान काम नहीं था क्योंकि उन की हस्ती और मसीही इमेज इस में बड़ा रोड़ा थी.
प्रकृति लामसाल की आत्महत्या के बाद कैसे सबक सिखाने का मकसद भगवा गैंग पूरा करने जा रहा है, इसे समझने से पहले अच्युत सामंत की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को समझना जरूरी है. एक वक्त में उन्हें राजनीति से कोई सरोकार नहीं था लेकिन जब आरोपों का पानी सिर से गुजरने लगा तो वे राजनीति में आ ही गए.
यों चढ़ा भगवा रंग
साल 2017 में जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने केआईएसएस जा कर 20 हजार बच्चों को संबोधित किया था तब यह मान लिया गया था कि अच्युत सामंत ने भाजपा में जाने का मन बना लिया है और इस से भाजपा को भारी फायदा होगा क्योंकि आदिवासी उसी पार्टी को वोट देंगे जिस के लिए उन का यह मसीहा कहेगा. इस से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक चौंकन्ने हो गए और जैसेतैसे उन्हें बीजद में ले आए और बतौर ईनाम, 2018 में राज्यसभा भी भेज दिया. लेकिन अभी भी सामंत का मन डांवांडोल था क्योंकि आरएसएस की पकड़ आदिवासी इलाकों में मजबूत होती जा रही थी.
2018 में ही अच्युत सामंत ने विज्ञान कांग्रेस के 105वें सैशन में यह कहते अटकलों का बाजार गरम कर दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूरदर्शी और देश के सच्चे सपूत हैं. अपने 8 मिनट के भाषण में उन्होंने 7 बार मोदी का नाम लिया तो नवीन बाबू की पेशानी पर बल पड़ गए थे.
उसी दौरान 2019 के लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो नवीन पटनायक ने फुरती दिखाते अच्युत को कंधमाल लोकसभा सीट से बीजद के टिकट पर लड़ने को तैयार कर लिया. इस से भाजपा में उन के जाने की अटकलों पर विराम लग गया.
इस चुनाव में मोदी नाम की आंधी से ओडिशा अछूता रहा था. कंधमाल में अंदरूनी मुद्दा था 2008 के दंगे जिन में दलित ईसाईयों के खिलाफ खुली हिंसा हिंदू संगठनों द्वारा की गई थी. इस हिंसा की चर्चा दुनियाभर में हुई थी. कट्टर हिंदुओं द्वारा हजारों आदिवासियों को मार दिया गया था. उन की औरतों का बलात्कार किया गया था, जम कर आगजनी की गई थी. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि नजारा कितना वीभत्स रहा होगा. एक अंदाजे के मुताबिक, कोई 60 हजार आदिवासी बेघर हो गए थे. तब नवीन पटनायक चूंकि भगवा खेमे के समर्थक थे इसलिए न्याय नहीं कर पाए थे और मामला गोधरा सरीखा आयागया हो गया था.
कैसे नवीन बाबू सीएम हाउस में बैठे गीतसंगीत, चित्रकारी और साहित्य में डूबे हुए 20 साल ओडिशा पर राज करते रहे, यह कोई रहस्य की बात नहीं रह गई थी. दरअसल, सवर्ण हिंदुओं और आदिवासियों के टकराव का फायदा उन्हें बैठेबिठाए मिलता रहा था. कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही थी और भाजपा अपना प्रभाव बढ़ा रही थी. लेकिन इस का बीजद के वोटों पर असर ज्यादा नहीं पड़ रहा था क्योंकि कांग्रेस का वोटबैंक भाजपा की तरफ खिसक रहा था.
कंधमाल दंगों के बाद जब नवीन पटनायक की धर्मनिरपेक्ष इमेज कठघरे में खड़ी होने लगी तो उन्होंने तुरंत भाजपा से अपना समर्थन वापस ले लिया जिस से आदिवासी समुदाय का झुकाव, मजबूरी में ही सही, उन की तरफ बना रहा. 2019 तक बीजद को इस का फायदा मिलता रहा और वह सत्ता में बनी रही.
अच्युत सामंत ने 2019 का लोकसभा चुनाव शान से जीता. उन्हें भाजपा उम्मीदवार एरा खरबेला स्वेन के मुकाबले लगभग डेढ़ लाख वोट ज्यादा मिले थे. इस चुनाव में कांग्रेस 21 में से महज एक सीट ले जा पाई थी जबकि भाजपा 8 सीट जीत कर दूसरे नंबर पर आ गई थी. ठीक यही हाल विधानसभा का भी रहा था. भाजपा हालांकि 213 में से केवल 23 सीटें ही जीत पाई थी लेकिन उस का वोट शेयर 32 फीसदी हो गया था, जबकि कांग्रेस 16 फीसदी से कुछ कम वोटों के साथ 9 सीट पर सिमट पर रह गई थी.
तब किसी ने न बीजद ने और न ही कांग्रेस ने इस पर गौर किया था कि आरएसएस की नफरत की राजनीति अंदरूनी तौर पर पैठ बना रही है जो आदिवासियों को उन के हिंदू होने का एहसास कराते ईसाईयत के खिलाफ जहर उगलती रहती है.
2024 के नतीजों ने साबित कर दिया कि ओडिशा भगवा रंग में रंग चुका है और 2 दशकों से राज कर रहे नवीन पटनायक आदिवासियों की उम्मीदों पर नाकाम साबित हो गए हैं. भाजपा ने 78 सीटें जीत कर सत्ता पर कब्जा कर लिया और बीजद को 51 सीटों पर तसल्ली करना पड़ी. कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थीं. भाजपा और बीजद का वोट शेयर लगभग बराबर का 40 फीसदी के इर्दगिर्द रहा था. कांग्रेस ने 13.26 फीसदी वोट हासिल कर बीजद को नुकसान और भाजपा को फायदा ही पहुंचाया था.
लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम बेहद चौंकाने वाला रहा था. भाजपा ने 20 सीटें 45.34 फीसदी वोटों के साथ जीती थीं जबकि बीजद को एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी. इस अंधड़ से कंधमाल सीट अछूती नहीं रही थी जहां से अच्युत सामंत भाजपा के सुकांत कुमार पाणिग्रही से महज 21,371 वोटों से पराजित हुए थे.
फंस गए सामंत
इस हार की असल कीमत अब उन्हें जिंदगीभर चुकानी पड़ेगी. प्रकृति की आत्महत्या अच्युत सामंत के लिए त्रासदी बनती जा रही है. इस पर बवाल अब हिंदूवादी मचा रहे हैं. 23 फरवरी को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने केआईआईटी कैंपस के बाहर जम कर हुड़दंग मचाते अच्युत सामंत के खिलाफ नारेबाजी की. ये हुड़दंगी जयश्रीराम के नारे भी लगा रहे थे. यह सब बेवजह नहीं है खासतौर से उस सूरत में जब अद्विक श्रीवास्तव गिरफ्तार किया जा चुका है और दूसरे आरोपी भी जेल में हैं. केआईआईटी का माहौल सामान्य हो चला है लेकिन हिंदूवादी चाहते हैं कि बवाल मचे जिस से अच्युत सामंत पर दबाव बनाया जा सके.
गुजरे कल में सामंत ने भाजपा को जो नुकसान पहुंचाया है और लाखों आदिवासी बच्चों को शिक्षित और जागरूक किया है उस की कीमत तो उन्हें चुकानी ही पड़ेगी. उन के शिक्षण संस्थानों पर कभी भी आईटी, ईडी, सीबीआई जैसी संस्थाओं के चरण कमल पड़ सकते हैं. उन की जमीनों की खरीदफरोख्त में दर्जनों कानूनी नुक्स निकाल कर उन्हें राजसात किया जा सकता है.
इस हालत से बचने का एक ही रास्ता है कि वे फिर से मोदी को सच्चा सपूत कहते उन की दूरदर्शिता के कायल हो जाएं यानी भगवा गैंग जौइन कर लें, केआईआईटी और केआईएसएस में आदिवासी बच्चों को रामायण और गीता पढ़ने की व्यवस्था करें, वेदपुराणों की वाणी गुंजाएं, यज्ञहवन, पंडों को बुला कर करवाएं और आदिवासियों को बताएं कि वे दरअसल हिंदू हैं. वरना वे ओडिशा का केजरीवाल बनने को तैयार रहें.
ओडिशा सरकार ने प्रकृति की आत्महत्या के मामले की जांच के लिए एक हाईलैवल कमेटी बना दी है. अच्युत सामंत इस कमेटी के सामने पेश हो चुके हैं लेकिन इस मुलाकात का ब्योरा सामने नहीं आया है. फिलहाल तो बजरंग दल वही कर रहा है जो देशभर के हिंदू संगठन अपने विरोधियों यानी वामपंथियों को सबक सिखाने को करते रहते हैं कि बाद में सलीके से घेरने से पहले ही माहौल तैयार करना.
रही बात प्रकृति लामसाल से हमदर्दी की, तो वह किसी को नहीं है. अब तो उस की खुदकुशी पर हिंदुत्व की आंच सुलगाई जा रही है. उपद्रव मचा रहे बजरंगी दलील दे रहे हैं कि डाक्टर सामंत की वजह से भारत की इमेज बिगड़ी है और नेपाल से उस के संबंध खराब हुए हैं तो इन लोगों को पहले अमेरिका पर ऊंगली उठानी चाहिए जिस ने भारतीयों को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ कर भारत पहुंचाया तब किस की इमेज खराब हुई थी नरेंद्र मोदी की या अच्युत सामंत की. ये लोग और दूसरे सनातनी शायद ही सच बोल और स्वीकार पाएं कि मोदी की इमेज और साख दोनों पर बट्टा लगा है और भारत में नेपालियों की वही स्थिति व हैसियत है जो अमेरिका में भारतीयों की है कि वे सछूत शूद्र हैं, मजदूर हैं, दोयम दर्जे के हैं और जो ऊंचे पदों पर पहुंचने के बाद भी तिरस्कृत हैं.