Emotional Story : मां का अचानक सब को छोड़ कर चले जाने का दर्द आज भी मिट्ठी को साल रहा था. उन की मौत का सच वह सब के सामने लाना चाहती थी.

‘‘राजकुमारी, वापस आ गई वर्क फ्रौम होम से? सुना तो था कि घर पर रह कर काम करते हैं पर मैडम के तो ठाट ही अलग हैं, हिमाचल को चुना है इस काम के लिए.’’ बूआ आपे से बाहर हो गई थी मिट्ठी को अपनी आंखों के सामने देख कर.

‘‘अपनाअपना समय है, बूआ. कोई अपनी पूरी जिंदगी उसी घर में बिता देता है जहां पैदा हुआ हो और किसी को काम करने के लिए अलगअलग औफिस मिल जाते हैं, वह भी मनपसंद जगह पर,’’ मिट्ठी ने इतराते हुए बूआ के ताने का ताना मान कर ही जवाब दिया.

बूआ पहले से ही गुस्से में थी, अब तो बिफर पड़ी, ‘‘सिर पर कुछ ज्यादा चढ़ा दिया है तुझे, पर मुझे हलके में लेने की गलती मत करना. तेरी सारी पोलपट्टी खोल दूंगी भाई के सामने. नौकरी ख्वाब बन कर रह जाएगी. मुंह पर खुद ही पट्टी लग जाएगी.’’

‘‘आप से ऐसी ही उम्मीद है, बूआ. लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लेना कि मैं मां की तरह नहीं हूं, जो तुम्हारे टौर्चर से तंग आ कर अपनी जान से चली गई.’’

बूआ मिट्ठी को मारने के लिए दौड़ी ही थी कि कुक्कू बीच में आ गया. उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर अंदर ले गया तब तक गुरु भी आ गया था. वह मिट्ठी को उस के कमरे तक छोड़ कर आया. मिट्ठी आंख बंद कर के अपनी कुरसी पर बैठ गई. जो उस ने जाना था उस से भक्ति बूआ के लिए उस की नफरत और भी बढ़ गई थी. बचपन से ही उसे बूआ से नफरत थी. वजह, उन का दोगला व्यवहार. कुक्कू और गुरु को हमेशा प्राथमिकता देती. घर का कोई भी काम हो, मिट्ठी से करवाती और हर बात में उसे ही पीछे रखती.

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