Varna System : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कोलकाता के वर्धमान के साईं ग्राउंड से एक बार फिर वही बात कही जिसे वे पिछले 4 सालों से अलगअलग तरीके से दोहराते आ रहे हैं. वह बात है हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की. बकौल भागवत, यह हिंदू समाज है जो दुनिया की विविधता को स्वीकार कर के फलताफूलता है. उन के मुताबिक वे केवल हिंदू समाज पर इसलिए ध्यान दें क्योंकि वह देश का जिम्मेदार समाज है. (यानी बाकी सारे समाज गैरजिम्मेदार हैं).

इन गैरजिम्मेदार समाजों में कौनकौन सी जातियां शामिल हैं, यह उन्होंने नहीं बताया क्योंकि इस से बात उलझ जाती और जाति पर आ कर टिक जाती. अपने भाषण के अंत तक आतेआते तो उन्होंने विविधता और एकता में फर्क ही खत्म कर डाला.

हिंदू समाज की विविधता जिसे हर कोई बचपन में ही समझ और अपना लेता है यह है कि वह चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण में बंटा हुआ है. यह वर्ण व्यवस्था जो जातियों के जन्म की जिम्मेदार है में सब से निचले पायदान पर (85 फीसदी) शुद्र हैं. इन का तिरस्कार अनदेखी और इन्हें हर स्तर पर प्रताड़ित करने के मामले में बाकी तीन वर्ण (15 फीसदी) जरूर एकजुट हैं.

अब इस कोढ़ को खत्म किए बिना ही कोई एकता और मजबूती का राग अलापे तो उसे सपना नहीं बल्कि दिवा स्वप्न कहना ज्यादा सटीक होगा. जब तक शूद्रों यानी दलित, आदिवासी और पिछड़ों और सवर्णों के बीच रोटीबेटी के संबंध स्थापित होने पर हिंदू सवर्ण समाज के ठेकेदार जोर नहीं देंगे और शादी में जन्म पत्री मिलान के अवैज्ञानिक रिवाज को खत्म करने की बात नहीं कहेंगे, तब तक वे गोलमोल बातें कर वर्ण व्यवस्था को और पुख्ता करने का ही मैसेज देते नजर आएंगे.

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