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अब मैदानी इलाकों में भी मुमकिन है सेब की खेती

हमें सेब का नाम लेते ही बर्फीली वादियों से घिरा हिमाचल प्रदेश का किन्नौर जिला याद आ जाता है जहां के किन्नौरी सेब दुनियाभर में मशहूर हैं. यह बात सही भी है कि सेब के पेड़ उगाने के लिए ऐसी आबोहवा की जरूरत होती है जो पहाड़ी इलाकों में ही पाई जाती है. इस के बावजूद वैज्ञानिक ऐसी तकनीक विकसित करने में लगे रहते हैं जिस से सेब को किसी तरह मैदानी इलाकों में भी उगाया जा सके.

कुछ प्रगतिशील किसान भी कोशिश कर रहे हैं कि वे सेब को मैदानी इलाकों का भी सिरमौर बना दें. इसी कड़ी में हम उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक कर्मठ किसान अरविंद कुमार का जिक्र कर सकते?हैं. उन्हीं की कोशिशों से अब उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से आने वाला ‘अन्ना’ प्रजाति का हरा सेब अब गोरखपुर की बंजर जमीन पर पैदा होने जा रहा है.

‘शबला सेवा संस्थान’ के संस्थापक अविनाश कुमार ने 3 पहले सेब का पौधा लगाया था और अब इस पेड़ में पहली बार फल आने लगे हैं. अविनाश कुमार को उम्मीद?है कि इस बार भले ही 15 से 20 किलोग्राम सेब ही बच पाएं, लेकिन आने वाले समय में इस इलाके की बंजर जमीन पर सेब के बगीचे नजर आएंगे.

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उत्तर प्रदेश पुलिस की सरकारी नौकरी छोड़ कर खेतीकिसानी में रम चुके अविनाश कुमार पादरी बाजार, गोरखपुर में रहते?हैं. उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में किसानों को औषधीय खेती के लिए प्रेरित कर उन की जिंदगी बदलने वाले अविनाश कुमार ने पूर्वांचल ही नहीं, बल्कि मैदानी इलाकों में भी सेब की पैदावार बढ़ाने का बीड़ा उठाया?है. अपने खेत में लगाने के साथ ही उन्होंने इस की पौधशाला भी तैयार की?है. 3 साल पहले लगाए गए पेड़ पर इस बार न केवल फूल आए हैं बल्कि वे फल भी बन गए हैं. फलों की क्वालिटी को देख कर अविनाश कुमार अब सेब का बाग लगाने की तैयारी में हैं.

अविनाश कुमार बताते हैं कि 3 साल पहले वे उत्तराखंड से सेब का पौधा लाए थे. उन का मानना?है कि अगर वहां की पथरीली जमीन पर सेब के पेड़ फल देते हैं तो गोरखपुर समेत मैदानी क्षेत्र के कई इलाकों में बंजर पड़ी सैकड़ों एकड़ जमीन पर सेब का बाग लहलहा सकता है. प्रयोग के लिए उन्होंने अपनी पौधशाला में सेब का पेड़ लगाया जो इस बार फल देने को तैयार है.

अविनाश कुमार कहते हैं कि अगर इस इलाके में सेब की पैदावार होने लगे तो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से सेब मंगाने की जरूरत नहीं होगी. आम लोगों को जहां सस्ते में यह पौष्टिक फल मिल सकेगा, वहीं किसान अपनी बेकार पड़ी बंजर जमीन से भी हर साल अच्छी कमाई कर सकेंगे. इतना ही नहीं, अगर पौलीहाउस के जरीए तापमान को कंट्रोल करने का इंतजाम कर लिया जाए तो सेब का रंग लाल भी हो सकता है.

अरविंद कुमार के मुताबिक, कोई भी किसान एक एकड़ जमीन में 50,000 रुपए खर्च के सेब की खेती शुरू कर सकता है. पहली फसल में उसे तकरीबन ढाई लाख रुपए की कमाई हो सकती?है. एक एकड़ जमीन में सेब की 227 पौध लगाई जा सकती हैं. इन पौधों पर अगर समयसमय पर आर्गेनिक खाद का छिड़काव किया जाए तो पेड़ अच्छे से फलताफूलता है.

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उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में किसानों को तुलसी, ब्रह्मी जैसे औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के साथ उन की फसल खरीद कर जीवनशैली बदलने वाले अविनाश कुमार ने अगले साल गोरखपुर और मैदानी क्षेत्रों में बंजर जमीन पर सेब के बाग लगाने के लिए दूसरे किसानों से संपर्क करना शुरू कर दिया है.

‘शबला सेवा संस्थान’ के अध्यक्ष किरण यादव का कहना है कि हरे सेब की व्यावसायिक खेती कर के किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

देर आए दुरुस्त आए या आते आते देर हो गई?

गोरख पांडे की इस कविता “राजा बोला रात है, रानी बोली रात है, यह सुबह सुबह की बात है” की प्रासंगिकता ऐसे समय के लिए फिट बैठती है जब लोगों को सिर्फ भेड़ बकरियों की तरह हंकवाया जाता है. जो ऊपर से कहा जाता है उसे ही अंतिम सत्य मान लिया जाता है. फिर उन सवालों की एहमियत ख़त्म कर दी जाती है जिनका जवाब जानने का सभी को पूरा हक है.

भारत में कोविड-19 का पहला मामला 30 जनवरी को आया था. इसके बाद लगातार मामले बढ़ने लगे थे. किन्तु प्रधानमंत्री मोदी लगभग डेढ़ महीने बाद 19 मार्च को कोरोना संक्रमण पर बात रखने आते हैं. आए तो आए पुरे देश को तालीथाली वाले मदारी के खेल में उलझा गए. इससे पहले 12, फरवरी को राहुल गाँधी ट्वीट के जरिये प्रधानमंत्री को कोरोना के खतरे को लेकर आगाह कर चुके थे. लेकिन सोशल मीडिया और मीडिया ट्रॉल्लिंग के जरिये उस दौरान उनका मखोल बनाया गया.

यही नहीं पुरे देश में लगे लाकडाउन की शुरुआत से ही राहुल गाँधी ने सरकार पर सवाल करने शुरू कर दिए थे. उन्होंने बाकायदा वीडियो कांफ्रेस्सिंग के जरिये यह बात मुखर तरीके से कही कि “तालाबंदी कोरोना की गति धीमी करता है, किन्तु यह कोरोना संक्रमण का समाधान नहीं है. इसे रोकने के लिए ‘मास टेस्टिंग’ किया जाना जरूरी है.” लेकिन उन पर कटाक्ष किया जाने लगा, उन्हें इटली जाने की नसीहत दी जाने लगी.

जबकि डब्ल्यूएचओ इस बात को मार्च के बीच में पहले ही कह चुका था कि कोरोना संक्रमण को अगर रोकना है तो टेस्टिंग पर जोर देने की सख्त जरुरत है. तो आईसीएमआर ने उस दौरान इस पर कहा कि यह भारत पर अप्लाई नहीं करता. जाहिर है भारत पूरी तरह लाकडाउन के भरोसे बैठे हुआ था. मोदीजी टीवी चेनल में जब आए तो लच्छेदार भाषण, आडम्बर और रिटोरिक के अलावा कुछ नहीं होता था. उनके भाषणों में टेस्टिंग को लेकर आकड़े पूरी तरह नदारत रहते थे. तालाबंदी के अलावा कोई रणनीति उनके समझ के परे की बात लगती थी. उनसे तालाबंदी से उपजे प्रवासी बेरोजगारी और भुखमरी पर सवाल किया जाता तो वे दियाटोर्च जलाने की बात करते वहीँ स्वास्थ्य कर्मियों की सुविधाओ पर सवाल होते तो फूल बरसाने की करते.

मीडिया एंकर चेनलों के स्टूडियो में बैठकर वाहवाही करती, तो मंत्री संत्री और सरकारी संस्था जी हुजूरी करती. लेकिन यह सवाल चर्चा के हिस्से नहीं बनाए जाते कि भारत में टेस्टिंग पर जोर क्यों नहीं दिया जा रहा है? आखिर इतनी बड़ी आबादी वाले देश में इतने कम टेस्ट क्यों किये जा रहे हैं? आखिर क्यों जैसे जैसे देश में कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो प्रधानमंत्री मोदी का पब्लिक इंटरेक्शन लगातार कम होने लगा? बल्कि इन सवालों पर चर्चा करने की जगह पर्दा डालने पर पूरा जोर डाला जाता रहा.

आज देश में कोरोना के मामलों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है. हर दिन 15,000 से ऊपर मामले आने लगे हैं. इन बढ़ते मामलों के बीच सरकार को अपनी मीटिंग में बारंबारता लाने की जरुरत है किन्तु इसके उलट मंत्री समूह की बैठकों में भारी कमी देखने को मिल रही है. सरकारी सूचनाएं और दिशानिर्देश में भारी कमियां देखने को मिलने लगी है.

आईसीएमआर का ताजा परामर्श

इस बीच कोविड-19 जांच को लेकर आईसीएमआर द्वारा 23 जून को जारी एक संशोधन परामर्श में कहा गया, “संक्रमण रोकने और लोगों की जान बचाने का एकमात्र तरीका है कि हम जांच करें, संक्रमण के कारण पता करें और फिर इलाज करें. इसलिए देश के हर कोने में कोरोना लक्षण वाले लोगों के लिए जांच व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराई जाए. इसके साथ ही संक्रमण के कारणों का पता कर उसके प्रसार को रोकने की प्रक्रिया को और मजबूत करना होगा.” वहीँ आईसीएमआर ने बुधवार 24 जून को कहा कि देश भर में कोविड-19 के लक्षण वाले हर व्यक्ति की जांच सुविधा व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराई जाएगी.

किन्तु सवाल यह है कि इस तरह के परामर्श देने में आईसीएमआर द्वारा इतनी देर क्यों की गई है? जिस समय तालाबंदी की गई और कोरोना संक्रमण को तालाबंदी के भरोसे छोड़ दिया गया उस दौरान इस तरह के परामर्श से सरकार पर दबाव क्यों नहीं बनाया गया?

जाहिर सी बात है अधिकाधिक टेस्ट चलाए जाना अपने आप में बहुत जरूरी कदम है, यह भी सही बात है कि कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए पिछले कुछ दिनों से उठाने की कोशिश भी की जा रही है. किन्तु टेस्टिंग के मामले में शुरुआत में चपलता क्यों नहीं दिखाई गई? आज रैंडम सेम्पल की बात की जा रही है. लेकिन मामला यह कि यहां तक नोबत आई क्यों?

क्या फिर भी उपयुक्त टेस्टिंग हो रही है?

आईसीएमआर ने टेस्टिंग को लेकर अपने ट्विटर से 25 जून के आकडे सामने रखे है. जिसमें पुरे देश में 77,76,228 टेस्ट होने की बात की गई. साथ ही 25 जून के 2,15,446 सैंपल इकठ्ठे किये गए. यह एक सकारात्मक बात है कि हम अपने टेस्टिंग पर जोर देने की बात अब करने लगे हैं. किन्तु भारत की जनसँख्या के बरख्स यह आकड़ा अभी भी बहुत बोना है. यह देखा जाना जरुरी है कि लगभग 77 लाख टेस्ट करने के बाद कोरोना के लगभग 5 लाख मामले सामने आ चुके हैं.

वहीँ, अगर बात की जाए बाकी देशों से तुलना की, तो प्रति 1000 लोगों में टेस्टिंग को लेकर भारत अभी भी बहुत पीछे चल रहा है. 24 जून के आकड़ों के हिसाब से देखे तो इटली प्रति 1000 में 84.45 लोगों को टेस्ट कर रहा है वहीँ, न्यूजीलैंड 76.40, कनाडा 65.80, डेनमार्क 165.80, व यूएस में 86.31 के टेस्टिंग का आकड़ा है. अगर भारत की बात की जाए तो हमारे देश में 5.33 प्रति 1000 लोगों के हिसाब से टेस्ट किया जा रहा है. हम से ऊपर बहुत से देश हैं जहां कोरोना संक्रमण अब कर्व हो चुका है, लेकिन उन देशों में भी हम से ज्यादा टेस्टिंग सैंपल लिए जा रहे हैं. यानी ताजा परामर्श के बावजूद भी जनसँख्या अनुपात के हिसाब से हम फिलहाल टेस्टिंग में काफी पीछे चल रहे हैं.

आज आईसीएमआर यह कह तो रहा है कि टेस्टिंग प्रक्रिया को तेज करने पर जोर दिया जाना चाहिए लेकिन एक हकीकत यह भी है कि वर्तमान में आईसीएमआर ने 1000 प्रयोगशालाओं को ही जांच करने की अनुमति दी है. जिसमें 730 सरकारी और 270 निजी लैब हैं. जो 130 करोड़ की आबादी के अनुसार अभी भी कम है. इन लबों में अगर प्रॉपर जांच की भी जाती है तो हम फिलहाल प्रतिदिन 3 लाख जांच कर पाएंगे. अगर देश में कोरोना से बड़े स्तर पर जीतना है तो जितना टेस्ट को बढ़ाया जा सकता है उतना बढाने की आवश्यकता है. हलके लक्षण वाले लोगों की भी जांच करनी जरूरी है.

समस्या का आंकलन जरूरी

यह बात जगजाहिर है कि भारत में लाकडाउन विफल साबित हुआ. अब चाहे सरकार इस पर लाख बाते बनाए. हकीकत यह है कि न तो कोरोना के मामले रुके न उसकी गति धीमी कर सके. उलटा इसकी विफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस समय तालाबंदी हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई देश में कोरोना का ग्राफ ऊपर की तरफ बढ़ रहा था. जो अभी भी बढ़ रहा है. हालत यह है कि तालाबंदी के कारण आज देश की बची कुची अर्थव्यवस्था भी गर्त में पहुंच चुकी है.

इसमें सबसे जरूरी बात कि जिस समय देश में कठोर तालाबंदी लगाई गई थी, वह सरकार के लिए मोका था कि वह टेस्टिंग प्रक्रिया को और मजबूती से तेज करवाती और उस समय की दिक्कतों का सही आंकलन करती. दुसरे राज्य में रह रहे प्रवासी लोगों को सुविधाएं पहुंचा कर अपने विश्वास में लेती. शहरी इलाकों में ‘मास टेस्टिंग’ प्रक्रिया चलाती. खासकर उन क्षेत्रों में जहां इसके अधिकाधिक मामले आ रहे थे, या जहां फैलने का अधिक खतरा था. तो संभव था कि इतने बड़े डैमेज को कम किया जा सकता था. खैर, यह अच्छी बात है कि इस दिशा में अब सोचा जा रहा है. लेकिन मौजूदा आकडे बता रहे है कि अभी भी यह समस्या हमारे लिए टेढ़ी खीर साबित होगी. इसलिए यह देखना बाकी है कि हम ‘देर में ही सही लेकिन पहुँच तो गए’ वाली स्थिति में है या इस जगह आने में हमने काफी देर कर दी है?

दिल्ली में शुरू हुआ सीरोलाजिकल सर्वे, जानें क्या है ये?

दिल्ली में शनिवार, 27 जून से 10 जुलाई तक सीरोलाजिकल सर्वे किया जा रहा है. इस सर्वे के दौरान करीब 20,000 लोगों का सैंपल टेस्ट किया जाएगा. साथ ही, कन्टेनमेंट जोन के बाहर उन घरों की सूची लगाई जाएगी जहां कोरोना का खतरा है, ताकि लोग सावधान रहें. इसके अलावा कोंटेक्ट ट्रेसिंग और क्वारेंटीन पर भी जोर दिया जाएगा.

यह सर्वे दिल्ली के सभी 11 जिलों में किया जा रहा है. शनिवार से शुरू हुए इस सर्वे में यह जानने की कोशिश की जाएगी कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण का कितना इम्पैक्ट है.

इस सर्वे की खासियत क्या है?

सीरोलाजिकल सर्वे में ब्लड सैंपल इकठ्ठे करके लिया जाएगा. इकठ्ठा किये गए सैंपल से पता चलेगा कि सख्स कोरोना से संक्रमित है या नहीं या वह किसी कोरोना संक्रमित के संपर्क में टू नहीं आया. साथ इस सर्वे का इस्तेमाल यह पता करने में भी किया जाएगा कि व्यक्ति कोरोना से संक्रमित पहले था या नहीं. इस सर्वे में वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी की पहचान भी की जाएगी. जाहिर है दिल्ली में कोरोना संक्रमण किस स्तर तक फ़ैल चुका है उसके लिए, लगभग 20,000 घरों को कवर किया जाएगा. सर्वे करने और घर चुनने का आधार रैंडम होगा. जिसमें देखा जाएगा कि दिल्ली में कोरोना को लेकर अभी क्या स्थिति है.

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केंद्र और राज्य सरकार साथ में स्थिति संभालेगी

राजधानी दिल्ली में राजनीति को लेकर उठा पटक चलती रहती है. केंद्र और राज्य सरकार एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाती रहती है. लेकिन राजधानी दिल्ली की इस समय खराब स्थिति को देखते हुए, दोनों साथ में मिलकर इस कार्यवाही को पूरा करेंगे. सेरोलोगिकल सर्वे को लेकर गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट में इसकी जानकारी दी, जिसमें कहा “दिल्ली में सर्वेक्षण का काम 27 जून से शुरू होगा. सभी सम्बंधित टीमों की ट्रेनिंग का काम कल से होगा.”

इसमें अधिकारिक तौर पर आदेश दिया गया कि सभी 11 जिलों में सर्वेक्षण का काम होगा. इसमें सभी उम्र और वर्ग के लोग शामिल होंगे. आदेश में कहा गया कि जिलों के दीप्ती कमिश्नर सर्वेक्षण करने वाली टीमों के साथ तालमेल के साथ काम करेगी.”

यह सर्वे कोविड-19 रिस्पोंस प्लान का हिस्सा है और अधिकारीयों को उम्मीद है कि इससे कोरोना महामारी से लड़ने के लिए व्यापक रणनीति तैयार करने में मदद मिलेगी. सर्वेक्षण का काम दिल्ली सरकार और नॅशनल सेंटर डिजीज कण्ट्रोल के सहयोग से किया जाएगा. हांलाकि साथ में मिल कर यह काम पहले किया जा सकता था.

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इस सर्वे की जरुरत क्यों पड़ी?

दिल्ली में कोरोना संक्रमण काफी तेजी से फ़ैल रहा है. साथ ही दिल्ली में कोरोना पॉजिटिव रेट काफी ज्यादा है. यह सर्वे इसलिए भी है कि सैंपल से यह भी पता चलेगा कि इकठ्ठा किये गए डाटा में कितनी फीसदी पॉजिटिव मामले आ रहे हैं. ताकि कोरोना के अनुमानत आकड़े सामने आ सके जिस पर रणनीतिक तौर पर काम किया जा सके.

दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से कम्युनिटी ट्रांसमिशन होने की आशंकाएं भी जताई जा रही है. दिल्ली में टेस्ट किया जाने वाला हर तीसरा व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव निकल रहा है, किन्तु आशंका इसके बढ़ने की जताई जा रही है. पिछले कुछ हफ़्तों से दिल्ली में कोरोना पॉजिटिव की दर में बढ़ोतरी हो रही है.

दिल्ली में इस समय 73,000 से ऊपर संक्रमित मामले सामने आ चुके हैं. वहीँ मरने वालों का आकड़ा यह रिपोर्ट लिखने तक 2,429 तक पहुच चुका है. ऐसे में पुरे देश में क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे ज्यादा मामले इस समय दिल्ली से सामने आ रहे हैं. दिल्ली सरकार ने अनुमान लगाया था कि यह आकड़ा जून अंत तक दिल्ली में कोरोना के संक्रमण के मामले 1 लाख पार हो जाएँगे. वहीँ 31 जुलाई तक साढ़े 5 लाख मामले होने की बात कही गई थी. यही कारण भी था कि आज सीरोलाजिकल सर्वे की अनिवार्यता महसूस की गई.

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इससे पहले भी किया जा चुका है सीरोलाजिकल सर्वे

इससे पहले भी इस तरह का सर्वे आईसीएमआर ने देश के 83 जिलों में किया था. जिसमें लगभग 26,400 रेंडम सैंपल कलेक्ट किये गए थे. यह स्टडी तालाबंदी शुरूआती समय में किया गया था. जिस समय देश में कोरोना के मामले 40 हजार से नीचे थे. उसी सर्वे को आधार बना कर सरकार ने तालाबंदी को सफल भी बताया था, और कहा था कि देश में कम्युनिटी ट्रांसमिशन वाली स्थिति नहीं हुई है. किन्तु किसी राज्य स्तर पर विशेष तौर यह पहली बार देश में किया जा रहा है. हांलाकि इसी तरह से हरियाणा में भी इस तरह सर्वे किये जाने की बात है. यह इसलिए है क्योंकि हरियाणा में इस समय मौतों का आकड़ा 5 गुना बढ़ गया है, वहीँ कोरोना के मामलों में 3 गुना की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है.

वैसे तो सीरोलाजिकल टेस्ट साउथ कोरिया, सिंगापुर, चीन में धड़ल्ले से शुरू किया गया था जब वहां बहुत ही कम समय में तेजी से कोरोना मामले बढ़ने लगे थे. हर हफ्ते साउथ कोरिया ओसतन 20 से 25 हजार टेस्ट किया करता था. यह साउथ कोरिया के लिए एक मजबूत हथियार के तौर पर काम भी किया जिससे उन्होंने अपने देश में कोरोना के मामले रोके. इसी तरह से चीन और सिंगापुर ने भी कई माध्यमों में से एक इस माध्यम से अपने देश में इसी तरह कोरोना के मामलों पर नियंत्रण पाने में कामयाबी हांसिल की थी.

सीरोलाजिकल सर्वे के कुछ ख़ास बिंदु

• सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली में कोरोना संक्रमण की तैयारी को बदलने की जरुरत होगा तो बदला जाएगा.
• कम्युनिटी ट्रांसमिशन कितना फैला है इसका पता लगा कर उसे रोकने की की रणनीति पर काम किया जाएगा.
• आने वाले समय की जरुरत के अनुसार कोरोना मरीजों के लिए बिस्तर, वेंटीलेटर इत्यादि की जरुरत को दिखायेगा यह सर्वे.
• इस सर्वे में को पूरा करने के लिए दिल्ली की आशा वर्कर, आंगनवाडी वर्कर की मदद लेकर ब्लड निकालने के लिए प्रशिक्षित नर्स और लैब टेकनीसियंस भी होंगे.
• इस सर्वे में की गई जांच मुफ्त होगी.
• इलाकों की जनसँख्या के हिसाब से सैंपल लिया जाएगा. जिसमें हर उम्र और लिंग के लोगों की जाँच शामिल होगी.

फिलहाल यह देखना बाकी है कि सीरोलोजिकल सर्वे दिल्ली की कोरोना संक्रमण दिशा बदलने में कितनी कामयाब साबित होती है. देश की धड़कन दिल्ली की साँसे कोरोना से फूलती दिखाई जरूर दे रही है. लेकिन यह ख़ुशी की बात है कि केंद्र और राज्य के सहयोग से किये जाने वाले इस कार्यवाही से फिर से जान जरूर फूंक दी है.

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गुडन्यूज: 13 जुलाई से शुरू होंगे ‘कुमकुम भाग्य’ और ‘कुंडली भाग्य के नए एपिसोड

ज़ी टीवी ने सुरक्षात्मक रवैया अपनाते हुए 13 जुलाई से ‘कुमकुम भाग्य’ और ‘कुंडली भाग्य’ सहित सभी सीरियल के नए एपिसोड का प्रसारण शुरू करने का ऐलान किया है.

ज़ी टीवी पर ‘कुमकुम भाग्य’, ‘कुंडली भाग्य’ सहित सभी सीरियल  के नए एपिसोड का प्रसारण 13 जुलाई से नियमित रूप से शुरू होंगे. सीरियल के नए एपिसोड की शूटिंग एडिटिंग वगैरह के बाद नए एपिसोड तैयार हो रहे हैं.

खतरों के खिलाड़ी हुआ शुरू…

कलर्स चैनल ने भी 28 जून से खतरों के खिलाड़ी के नए एपिसोड का प्रसारण शुरू कर दिया है. बाकी सीरियल के नए एपिसोड के प्रसारण की तारीख एक-दो दिन में घोषित की जाएगी. दंगल, सोनी टीवी ,स्टार भारत आदि चैनलों ने अभी तक घोषणा नहीं की है कि उनके चैनलों पर नए एपिसोड किस तारीख से प्रसारित होंगे.

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कोरोना की वजह से 17 मार्च से बंद है शूटिंग…

कोरोनावायरस और लॉकडाउन की वजह से 17 मार्च से मुंबई में फिल्म टीवी सीरियल और विभिन्न वेब सीरीज की शूटिंग बंद हो गई थी. परिणामस्वरूप सभी टीवी चैनलों पर प्रसारित हो रहे सीरियल के नए के नए एपिसोड का प्रसारण 1 अप्रैल से पूरी तरह से बंद हो गए थे.

लॉकडाउन के दौरान दिखाए पुराने शोज…

इसके बाद हर चैनल ने पुराने एपिसोड ही प्रसारित करना शुरू किया. कलर्स चैनल ने अपने चैनल पर 10 साल पुराने सीरियल बालिका वधू के अलावा धार्मिक सीरियल महाभारत का प्रसारण शुरू किया. मगर हर चैनल के दर्शकों में लगातार कमी आती रही.

बढ़ी थी दूरदर्शन की टीआरपी…

जबकि दूरदर्शन DD1 डीडी भारती और डीडी रेट्रो चैनलों पर 30 साल पुराने रामायण महाभारत चाणक्य बुनियाद उपनिषद गंगा जैसे सीरियलों का प्रसारण कर सारे दर्शक अपनी तरफ खींच लिए. इस घटनाक्रम से हर सेटेलाइट चैनल के अंदर हड़कंप मच गया.

मई माह के दूसरे सप्ताह में सैटेलाइट चैनलों के कर्ता-धर्ता अर्थात बाड कॉस्टर और सीरियल के निर्माताओं ने महाराष्ट्र मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर सीरियल की शूटिंग शुरू करने की इजाजत मांगी.

2 बैठकों के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 31 मई को 16 पन्ने के दिशा निर्देश के साथ शूटिंग शुरू करने की इजाजत दे दी. मगर ब्रॉडकास्टर व सीरियल के निर्माता संगठन ने कलाकारों की संस्था सिंटा वा फेडरेशन से बात नहीं की. जिसके चलते विवाद बढ़े और शूटिंग शुरू नहीं हो पाई.

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मिल गई मंजूरी…

इसके बाद 23 जून को महाराष्ट्र सरकार ने पुरानी गाइडलाइंस मैं बदलाव करते हुए सिंटा की  कुछ मांगे मान ली. फिर 24 जून को ब्रॉडकास्टर सीरियल के निर्माता संगठन और सिंटा वह फेडरेशन के बीच लंबी बातचीत हुई तक शुरू शुरू करने के लिए सहमति बन पाई. उसके बाद 2 सीरियल की शूटिंग 25 जून से और बाकी सीरियलों की शूटिंग क्रमशः 26 जून और 27 जून से शुरू हो सकी.

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रसभरी वेबसीरीज रिव्यू: क्या चल पाया स्वरा भास्कर का जादू?

वेब सीरीजः रसभरी

रेटिंग: ढाई स्टार

निर्देशकः निखिल नागेश भट्ट

कहानीः शांतनु श्रीवास्तव

संगीतकारः चिरंतन भट्ट

कलाकार: स्वरा भास्कर, आयुष्मान सक्सेना, प्रदुम्न सिंह, अक्षय युरी

अवधिः 8 एपीसोड- कुल समय तीन घंटे 5 मिनट

पुरूष प्रधान समाज में औरतों की स्थिति के साथ साथ किशोरवय में लड़के व लड़कियों की सेक्स को लेकर रसीली बातें, सेक्स के प्रति उनके आकर्षण, कौमार्य भंग की कल्पना और दमित इच्छाओं को उन्हीं की भाषा में फिल्मकार निखिल नागेश भट्ट बोल्ड वेब सीरीज ‘‘रसभरी’’ लेकर आए हैं, जो कि ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म अमैजॉन प्राइम वीडियो पर प्रसारित हो रही है.

कहानीः

वेब सीरीज की कहानी उत्तरप्रदेश के मेरठ शहर में घूमती है. कहानी का केंद्र अंग्रेजी की टीचर शानू बंसल (स्वरा भास्कर) और किशोरवय छात्र नंद (आयुष्मान सक्सेना) है. एक दिन नंद किशोर त्यागी उर्फ नंद अपने दोस्तों को अपनी ग्यारहवीं कक्षा की पढ़ाई की मजेदार कहानी सुनाता है. ग्यारहवीं कक्षा के यह सभी लड़के व लड़कियां सेक्स क्रेजी हैं, सभी ‘अफेयर’ आदि की ही बातें करते रहते हैं. महिला वस्त्रों के व्यापारी त्यागी के बेटे नंद के स्कूल के दोस्तों में विपुल (अक्षय युरी), रूपाली (सुनाक्षी ग्रोवर), प्रियंका(रश्मि अगड़ेकर) वगैरह हैं. नंद, प्रियंका को पहले बहन मानता था, अब उसे अच्छा दोस्त बना लिया है. प्रियंका मन ही मन नंद के प्रति आकर्षित है, इसलिए एक दिन वह कक्षा के ब्लैक बोर्ड पर ‘नंद लव प्रियंका’ लिख देती है. इस तरह नंद व प्रियंका के बीच प्रेम की शुरूआत होती है. किशोरवय के नंद को अपने कौमार्य को खोने की कल्पना परेशान कर रही हैं. एक दिन कौमार्य खोने की कल्पना को साकार करने के लिए स्कूल के एक चपरासी की सलाह पर नंद एक महिला के घर पहुंचता है, उसे मुंहमांगे पैसे देता है, पर फिर उसे लगता है कि वह ‘गे’ के पास पहुंच गया है, तो वहां से भागता है.

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इसी बीच स्कूल में उन्हे अंग्रेजी पढ़ाने के लिए शानू बंसल (स्वरा भास्कर) नामक नई शिक्षक का आगमन होता है, जिसके पति नवीन(प्रद्युम्न सिंह) दुकान दुकान जाकर मोबाइल बेचते हैं. स्कूल के सभी लड़के शानू की खूबसूरती व उनके आधुनिक पहनावे पर लट्टू हो जाते हैं. नंद भी शिक्षक शानू बंसल की ओर आकर्षित होकर स्कूटर से उसका पीछा करने का फैसला करता है. तो वहीं पूरे इलाके में शानू बंसल के ही चर्चे होने लगते हैं कि वह हर पुरूष को अपनी तरफ खींच रही है. चर्चा होती है कि पप्पू केबल वाले से लेकर पुलिस अफसर तक उसके घर जाकर वापस आने पर रसभरी बातें करते हैं. इन पुरूषों के लिए उसका नाम रसभरी है. नंद एक पुरानी घर काम करने वाली वीरा बाई को कुछ रकम देकर उसे शानू बंसल के घर पर काम करने और उस पर नजर रखकर जानकारी देने के लिए कहता कि कब कौन शानू बंसल के घर आता है. पर वीरा की नजर में शानू गलत नही है. पर व्यक्तिगत रूप से एकांत में शानू का संग पाने का समय न मिलने से नंद की हताशा कोई सीमा नहीं रहती. इतना ही नहीं शिक्षक शानू के चक्कर में नंद, प्रियंका को भी नजरंदाज करने लगता है.

शानू का जीवन शहर के हर इंसान के जीवन का केंद्र बिंदु बन चुका है. पुरूष उसके बारे में सोचना बंद नहीं करते, जबकि उनकी पत्नियां भी शानू की ही चर्चा करती रहती हैं. पर नंद अपने माता पिता को मनाकर शानू बंसल के पास अंग्रेजी का ट्यूशन पढ़ने जाने लगता है. शानू के बारे में चर्चाएं सुनकर शानू बंसल के साथ अपना कौमार्य भंग करने की कल्पना से ओतप्रोत नंद एक दिन अपनी शिक्षक शानू का चुंबन ले लेता है. इस पर शानू बंसल उसे थप्पड़ जड़ते हुए अपने घर से भगा देती है. नंद की माफी भी वह कबूल नही करती. तब शआनू की जिंदगी बर्बाद करने के लिए नंद, शानू के पति नवीन से मिलकर शानू के खिलाफ बहुत कुछ बकता है. पर जब नवीन उसे अपनी पत्नी शानू का अतीत बताते हुए रसभरी की कथा बताता है, तो नंद खुद को एक दोषी मानने के साथ ही अजीब सी स्थिति मे पाता है.व ह पुनः माफी मांग कर शानू से उनके घर अंग्रेजी पढ़ने जाने लगता है. शानू ट्यूशन लेते हुए जिंदगी की बहुत बड़ी शिक्षा नंद को मिलती है. वह अपनी मां सहित शहर की औरतों को समझा भले न पाए, मगर शानू बंसल के लिए रक्षक जरुर बनता है.

लेखनः

लेखक शांतनु श्रीवास्तव ने विषय एकदम सटीक उठाया है, मगर पटकथा लेखन में वह काफी चूक गए. इस वेब सीरीज में यॅूं तो किरदारों की भरमार है, मगर लेखक शानू बंसल, नंद और प्रियंका के अलावा अन्य किरदारों का सही चित्रण नहीं कर पाए, परिणामतः यह बेहतर वेब सीरीज न बन सकी. बेवजह भूत व झाड़फूंक के दृष्य को जोड़ा गया है, इससे दर्शक भ्रमित होता है. कहानी व पटकथा में काफी झोल है. शानू ही रसभरी भी है, पर यह कैसे इसे स्पष्ट करने में लेखक व निर्देशक दोनों असफल रहे हैं. किशोर वय के बच्चों के मुंह से कुछ गंदी गालियां अखरती हैं. किशोरवय के लड़के व लड़कियों के मुंह में द्विअर्थी संवाद ठूंसे गए हैं.

इसमें ‘हर रिश्ते में ऑनेस्टी/ईमानदारी होनी चाहिए’ तथा ‘हमारी और तुम्हारी जांघो के बीच जो आग लगी है, वही सच है.’ जैसे कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं.

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निर्देशनः

बतौर निर्देशक निखिल नागेश भट्ट भी कई जगह चूक गए हैं. निर्देशक ने इस वेब सीरीज में ‘सेक्स की भावना प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है.’ तथा ‘किशोरवय में पहुंचते ही हर लड़का, लड़की चाहता है कि स्कूल में उसके अफेयर की चर्चा हो, पर उसमें ईमानदारी होनी चाहिए.’ के माध्यम से कुछ संदेश देने का भी प्रयास किया है.

अभिनयः

बोल्ड वेब सीरीज ‘‘रसभरी’’ का टीजर व ट्रेलर देखकर अहसास हुआ था कि इसमें स्वरा भास्कर रसभरी के रूप में सेक्स सिंबल नजर आएंगी, मगर ऐसा कुछ नहीं है. शानू बंसल और रसभरी चरित्र प्रभावशाली है, जो लोगों के दिलो दिमाग में अपनी जगह बना लेते हैं. यह केंद्रीय चरित्र है, इसमें कोई संदेह नहीं है. लेकिन यह स्वरा द्वारा निभाए गए अब तक के चरित्रों से भिन्न नहीं है. रसभरी को देखकर ‘अनारकली आफ आरा’ की याद आ जाती है, जिसमें अनारकली के किरदार मे इसी तरह के लटके झटके करते हुए स्वरा भास्कर नजर आयी थी.

नंद की किशोरावस्था के विभिन्न रंगों को चित्रित करने में आयुष्मान सक्सेना सफल रहे हैं. उनके शानदार अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, कम है. वह नंद के किरदार को निभाते हुए कथानक को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.

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प्रियंका के किरदार में रश्मि अडगेकर ने भी अच्छा परफार्म किया है. आयुष्मान के साथ उनकी केमिस्ट्री बहुत अच्छी जमी है. प्रदुम्न सिंह व नीलू कोहली के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं…इनकी प्रतिभा को तो जाया किया गया..

लुभा रही तरबूज की नई किस्म बाहर से हरा अंदर से पीला

आमतौर पर देशभर की मंडियों में तरबूज की तमाम किस्में देखने को मिली हैं. इन मंडियों में आप लाल तरबूज ही देखते हैं, खरीदते हैं और उस का स्वाद लेते हैं. लेकिन पहली बार पीले तरबूज की खेती की गई है. गरमी में प्यास बुझाने वाला तरबूज सेहत के लिहाज से बहुत ही लाभकारी है. पर अब देखने में बाहर से तो आम तरबूज की तरह हरा ही दिखता है लेकिन अंदर से लाल तरबूज के बजाय पीला तरबूज नजर आता  है.

ऐसा कमाल किया है झारखंड में रामगढ़ के गोला प्रखंड के चोकड़बेड़ा गांव के एक किसान राजेंद्र बेदिया ने. उन्होंने ऐसा तरबूज उगाया है, जिस का रंग अंदर से पीला और बाहर से हरा है.

उन्होंने पीले ताइवानी तरबूज की खेती की और आज इस अनूठे तरबूज की जम कर तारीफ हो रही है. साथ ही, पूरे इलाके में इस तरबूज की खासी चर्चा है.

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उन्होंने पहली बार स्वदेशी नहीं, बल्कि ताइवानी तरबूज उगाए. इस के लिए औनलाइन बीज मंगवा कर उन्होंने खेती की.

इस पीले तरबूज का रंग और आकार बिलकुल लाल तरबूज जैसा ही है, लेकिन जब इसे काटा गया तो उस में लाल की जगह अंदर से पीला तरबूज निकलता है.

किसान राजेंद्र बेदिया ने पीले तरबूज की खेती कर सभी को चौंका दिया. यह तरबूज अनमोल हाइब्रिड किस्म का है. इस का रंग बाहर से सामान्य तरबूज की तरह हरा ही है, लेकिन काटने पर अंदर में लाल की जगह पीला निकलता है. इस के स्वाद में मीठापन और खाने में अधिक रसीला है.

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उन का कहना है कि ताइवान से औनलाइन बिग हाट के माध्यम से 800 रुपए में 10 ग्राम अनमोल किस्म का बीज मंगाया. अपने खेत के एक छोटे से हिस्से में प्रयोग के तौर पर और्गेनिक विधि से उन्होंने इस की खेती की.

खास बात यह है कि इस में उन्होंने किसीे तरह के रासायनिक खाद या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है. जब फसल तैयार हुई है, उसे देख कर लोग हैरान रह गए.

उन्होंने बताया कि खेत में 15 क्विंटल से अधिक पीले तरबूज की उपज हुई है. अगर दाम सही मिला तो अच्छीखासी आमदनी हो सकती है. इस की इतनी अधिक उपज देख लोग हैरान हैं.

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अंदर से पीले रंग का तरबूज लोगों को काफी लुभा रहा है, वहीं पीला तरबूज खाने में काफी स्वादिष्ठ भी है. यह तरबूज रसदार होने के साथसाथ मीठा भी बहुत है. इसलिए कहा जा सकता है कि यह तरबूज वाकई खाने में लाजवाब है.

तरबूज की अलग किस्म देख गांव के दूसरे लोग भी इस की खेती करना चाहते हैं. गांव में तरबूज की अधिक पैदावार हो, ताकि रोजगार का साधन बढ़े.

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वैसे भी रामगढ़ के गोला प्रखंड का इलाका कृषि बहुल इलाके तौर पर जाना जाता है. इस इलाके के किसान कई तरह की आधुनिक खेती करते आए हैं. यहां के तमाम किसानों को खेती के गुण सीखने के लिए इजरायल भी भेजा गया था. इस बीच ताइवान से बीज मंगवा कर ताइवानी तरबूज उपजा कर किसान राजेंद्र बेदिया ने मिसाल कायम की है.

कैंसर अब लाइलाज नहीं

लेखक-डा. मधुकर एस. भट्ट

कैंसर का इलाज अब लाइलाज नहीं रहा. विशेषज्ञों के अनुसार, 60 प्रतिशत कैंसर रोगियों को बचाया जा सकता है.

जी हां, यह चिकित्सा बहुत ही महंगी है. वजह, इस चिकित्सा की सरकारी व्यवस्था अपर्याप्त तो है ही और प्राइवेट कैंसर अस्पतालों की संख्या भी बहुत कम है, और है भी तो बहुत महंगे हैं.

कैंसर का समुचित इलाज भारत की बहुसंख्य अभावग्रस्त आबादी की कल्पना के परे है. यदि कैंसर का इलाज कराना ही पड़े तो उन के जेवर, घर, बैल, खेत आदि तक बिक जाते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंकलन है कि भारत में तकरीबन 2 करोड़ से ज्यादा व्यक्ति हर साल चिकित्सा व्यय के कारण मध्यम श्रेणी से गरीबी रेखा के नीचे चले आते हैं. वहीं दूसरी ओर भारत सरकार को भी  दोहरी मार पड़ रही है. पहली, उन की चिकित्सा व्यवस्था पर व्यय. और दूसरी, उन की उत्पादन क्षमता से वंचित हो कर. रोग झेलने का कष्ट, परिवार पर विपत्ति और अनावश्यक व्यय आदि की मुसीबतों से बचने के लिए अच्छा होगा कि हम कैंसर रोग और उस के कारक तत्वों या कार्सिनोजन के प्रति अपनी जागरूकता बढ़ा कर बचाव के लिए सचेत हो जाएं.

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क्या कैंसर रोगियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है?: यह रोग नया नहीं है. आदि मानवों के कंकाल की हड्डियों में और इजिप्ट की ममियों में इस रोग के होने की पुष्टि हो चुकी है.

हमारे प्राचीन आयुर्विज्ञान के ग्रंथों में भी इस का वर्णन किया गया है. हां, यह सही है कि रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है. यह हाल केवल भारत का ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का है.

वर्तमान आंकड़ों से उपरोक्त कथन की पुष्टि होती है. एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था आईएसीआर यानी इंटरनेशनल एजेंसी फौर रिसर्च औन कैंसर के आंकलन के अनुसार, पूरी दुनिया में प्रति वर्ष कैंसर के लगभग 1 करोड़, 70 लाख नए रोगियों की संख्या दर्ज की जाती है और लगभग 82 लाख रोगियों की मृत्यु होती है. भारत में कैंसर का प्रकोप पाश्चात्य देशों की तुलना में कुछ कम है.

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उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, यहां हर साल तकरीबन 10 लाख नए रोगियों का नाम दर्ज होता है और तकरीबन सात लाख रोगियों की मौत. (cancerindia.org.in2018).

आंकलन के अनुसार, साल 1990 की तुलना में यह संख्या साल 2016 में दोगुनी थी. जागरूकता और स्तरीय अस्पतालों की कमी के कारण भारत में मृत्यु दर ज्यादा है. संख्या में वृद्धि केवल रोग का प्रकोप बढ़ने के कारण ही नहीं है, बल्कि अन्य कारण भी हैं, जैसे-

1. मनुष्य की बढ़ती औसत आयु-  बढ़ती चिकित्सा सुविधा ने हमारे जीने की औसत आयु बढ़ा दी है. भारत का ही उदाहरण लें, तो आजादी के समय यहां की औसत आयु 32 वर्ष ही मानी जाती थी, जो अब लगभग 68 वर्ष के करीब है, और ज्यादातर उन्नत देशों में यह 80 वर्ष के ऊपर हो गई है. वयस्क आयु के बाद बढ़ती आयु के साथ आनुपातिक रूप में इस रोग से ग्रस्त होने की संभावना बढ़ती जाती है.

2. बढ़ती जनसंख्या- स्वाभाविक है कि बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में कैंसर से ग्रस्त रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है. साल 1947 में हमारी जनसंख्या महज 33 करोड़ थी, जो वर्तमान में 135 करोड़ के लगभग है और विश्व की जनसंख्या 1950 में अढ़ाई अरब के लगभग थी, जो अब साढ़े 7 अरब को पार कर गई  है.

3. चिकित्सा के क्षेत्र में : इस क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रगति ने रोगों का निदान सहज बना दिया है. पहले की तुलना में अब इस रोग का सही निदान प्रारंभिक अवस्था में ही हो सकता है.

4. रोगों के डाटा का रिकौर्ड रखना और पहले से बेहतर रिपोर्टिंग: जी हां, यह सच है कि रोगों के डाटा का रिकौर्ड रखना और रिपोर्टिंग पहले से बहुत बेहतर हो गई है. इस संदर्भ में भारत अभी भी पीछे है, लेकिन स्थिति में सुधार हो रहा है.

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5. कैंसरजनक कारणों और परिस्थितियों में वृद्धि: इन्हें कार्सिनोजन कहा जाता है.

कैंसर क्या है?

किसी भी अंग की किसी कोशिका के असामान्य और असंयमित वृद्धि और बाद में उस के शरीर के अन्य अंगों में फैलने से उत्पन्न होने वाले रोग को कैंसर कहते हैं.

मानव शरीर की सूक्ष्म संरचना और कार्यप्रणाली को समझने से यह परिभाषा और भी स्पष्ट होगी. एक वयस्क मनुष्य का शरीर लगभग सौ ट्रिलियन कोशिकाओं से निर्मित है. प्रत्येक कोशिका का जन्म, विकास, वृद्धि, उस के अंदर चलने वाली सैकड़ों प्रकार की प्रक्रियाएं, विभाजन की संख्या और मृत्यु आदि एक अनुशासन के अंतर्गत सुचारु रूप से निरंतर चलती रहती हैं. इन सारी प्रक्रियाओं का नियंत्रण कोशिकाओं के अंदर अवस्थित, क्रोमोजोम द्वारा संचालित होता है.

क्रोमोजोम, प्राणी के जीनों का संग्रह है. जीन की  संख्या प्रत्येक प्राणी में निश्चित होती है. मानव में इन की संख्या 46 है. जीन की संरचना डीएनए नामक प्रोटीन के अणुओं के संगठन से होती है. प्रत्येक व्यक्ति के जीन में ये अणु अलगअलग प्रकार से संगठित होते हैं. इस प्रकार यह उस व्यक्ति की जेनेटिक पहचान बन जाती है. कुछ विशेष परिस्थितियों में क्रोमोजोम की संरचना में बदलाव या म्यूटेशन होने की संभावना रहती है.

ऐसा होने पर वह कोशिका नियंत्रणविहीन हो कर, पागलों जैसा मनमाना व्यवहार करने लगती है. उस की वृद्धि और विभाजन दर की कोई सीमा नहीं रह जाती. कोशिका के इस परिवर्तन को मैलीग्नेंट चेंज या कार्सिनोजेनेसिस कहा जाता है.

तेजी से बढ़ती हुई इन कोशिकाओं का समूह, उस स्थान पर एक गांठ या ट्यूमर का रूप ले लेता है, जिसे मैलीग्नेंट ट्यूमर या कैंसर कहते हैं.

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प्रारंभ में यह ट्यूमर कठोर और दर्दहीन होता है. कुछ ही दिनों में निरंतर बढ़ती हुई यह गांठ फट कर, उस स्थान पर एक घाव या अल्सर बन सकता  है, जिस में संक्रमण होने की पूरी संभावना रहती है, और तब वहां एक भयानक, बदबूदार  घाव बन जाता है. उस से खून भी बह सकता है.

तेजी से  वृद्धि करती हुई इन कोशिकाओं को अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसे वह शरीर की सामान्य   कोशिकाओं को  मिलने  वाली ऊर्जा को अपनी ओर खींच कर प्राप्त कर लेती है. फलस्वरूप, धीरेधीरे पूरा शरीर क्षीणकाय, शक्तिहीन और कमजोर पड़ने लगता है.

देखते ही देखते इनफिल्ट्रेशन की प्रक्रिया द्वारा कैंसर उस पूरे अंग में फैल जाता है. इन असामान्य कोशिकाओं को  अपने मूल स्थान से अलग हो कर रक्त प्रवाह या अन्य माध्यमों से शरीर के किसी भी भाग में पहुंच कर, वहां बस जाने की और  वृद्धि करने की क्षमता होती है. इस प्रकार कैंसर का प्रसार या मेटास्टेसिस शरीर के अन्य अंगों में होने लगता है.

कैंसर कोशिकाओं से कुछ विशिष्ट रसायन का स्राव हो सकता है, जिन्हें रक्त के नमूने में पहचान कर कैंसर के निदान में सहायता मिलती है. इन्हें ट्यूमर मार्कर कहा जाता है.

कुछ रोगियों में, यह भविष्य में होने वाले कैंसर से पहले ही रक्त में झलकने लगते हैं. ट्यूमर मार्कर के स्तर को माप कर उपचार के लाभ या अप्रभावी रहने का भी पता किया जा सकता है.

यह रोग किसी भी अंग में हो सकता है, लेकिन किसी देश, क्षेत्र या समुदाय में विभिन्न कारणों से किसी अंग विशेष में कैंसर की अधिकता हो सकती है.

उदाहरण के लिए भारत में मुख गुहा यानी मुंह के अंदर और गर्भाशय ग्रीवा का, अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों में स्तन का, जापान में अमाशय का, अफ्रीकी देशों में लिवर के कैंसर का ज्यादा प्रकोप देखने में आता है.

कैंसर का कारण

निःसन्देह, शरीर की कोशिका के अंदर अवस्थित क्रोमोजोम की संरचना में म्यूटेशन या बदलाव ही कैंसर का मूल कारण है. इस म्यूटेशन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे

1. आनुवांशिकता: कुछ कैंसर आनुवांशिक या खानदानी होते हैं. किसी अंग की कोशिकाओं के क्रोमोजोम में आनुवांशिक रूप से मैलीग्नेंट परिवर्तन होने की संभावना विद्यमान रहती है. उस अंग की किसी एक या एक से ज्यादा कोशिकाओं में, कभी भी यह परिवर्तन हो सकता है.

इस प्रकार की संभावना वाले व्यक्ति के उस अंग से कुछ टिशू निकाल कर कोशिका में उस प्रकार की संभावना का जेनेटिक अध्ययन किया जा सकता है. यह जांच बहुत कम स्थानों में होती है और यह बहुत महंगी भी है.

उदाहरण के लिए, स्तन कैंसर के आनुवांशिक होने का खतरा बहुत ज्यादा रहता है. जिस महिला की नानी, मां, मौसी या बहन को स्तन कैंसर होने का इतिहास हो, उस महिला में आम महिलाओं से कई गुना ज्यादा स्तन कैंसर होने का खतरा रहता है.

पाश्च्यात्य देशों में स्तन कैंसर का प्रकोप बहुत ज्यादा है, यहां तक कि कुछ देशों  में प्रत्येक 8 महिलाओं में एक को स्तन कैंसर होने की संभावना रहती है. उन देशों में क्रोमोजोमल अध्ययन की अच्छी सुविधा है.

यदि इस जांच में उन के स्तन की कोशिकाओं में क्रोमोजोमल पैटर्न में इस प्रकार की संभावना पाई जाती है, तो उन्हें  शल्य क्रिया द्वारा दोनों स्तनों को समय रहते निकलवा देने की सलाह दी जाती है.

कई नामीगिरामी फिल्मी हस्तियों और मौडल ने ऐसा करवाया है, जिन का  नाम मीडिया में भी आ चुका है.

2. गर्भकाल में क्रोमोजोमल गड़बड़ी: गर्भकाल में शिशु के विकास क्रम के दौरान कभीकभी किसी अंग की कोशिकाओं में क्रोमोजोमल गड़बड़ी हो सकती है, जो आगे चल कर उस अंग में कैंसर को जन्म दे सकता है, जैसे गुरदे का नेफ्रोब्लास्टोमा, आंख का रेटिनोब्लास्टोमा आदि. ये कैंसर बाल्यकाल में ही होते हैं, और अच्छी बात है कि यह आम नहीं हैं. इन का उपचार कठिन है.

3. कैंसरजनक तत्व या कार्सिनोजन: किसी भी अंग का लंबे समय तक इन से संपर्क बने रहने पर उस अंग की किसी एक या अनेक कोशिकाओं में क्रोमोजोमल पैटर्न का रुख कैंसर की ओर मुड़ सकता है या फिर कार्सिनोजेनेसिस प्रारंभ हो सकता है. कार्सिनोजन के कुछ उदाहरण यहां दिए जा रहे हैं :-

i. शरीर के अंदर का प्रतिकूल वातावरण किसी अंग विशेष में कैंसर उत्पन्न कर सकता है, जैसे- स्तन कैंसर होने की संभावना उन महिलाओं में बढ़ जाती है, जिन में ओवरी या अंडाशय से स्रावित होने वाले  इस्ट्रोजन हार्मोन का स्तन पर प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है.

यह हार्मोन महिलाओं के विकास एवं प्रजनन के लिए अत्यंत आवश्यक है. गर्भकाल  और दुग्धपान काल में इस का स्राव बंद हो जाता है. अतः निसंतान महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावना ज्यादा रहती है, साथ ही उन में भी जिन के प्रजनन काल की अवधि लंबी होती है यानी जिन में कम उम्र में मासिक शुरू हो कर देर से रजोनिवृत्ति होती है.
पुरुषों में भी प्रोस्टेट या पौरुष ग्रंथि के कैंसर में उन के सैक्स हार्मोन की भूमिका मानी जाती है.

ii. विकृत जीवनशैली: अस्वास्थ्यकर जीवनशैली हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है. कैंसर के प्रारंभिक काल में हमारा रोग निरोधक तंत्र, नवजात कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने का पूरा प्रयास करता है और उन्हें विजय भी मिलते हुए पाया गया है. एड्स से संक्रमित व्यक्ति में रोग निरोधक क्षमता का अभाव हो जाता है, अतः उन में ल्यूकीमिया और कुछ अन्य प्रकार के कैंसर होने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है. कैंसर से बचाव के लिए स्वस्थ्य जीवनशैली को अंगीकृत करना आवश्यक है.

iii. प्रदूषित वातावरण: मोटर वाहन से उत्सर्जित पेट्रोलियम का धूम्र, कारखानों से उत्सर्जित कुछ हानिकारक गैसें व निकेल, एसबेस्टस आदि के कणों से प्रदूषित वातावरण फेफड़े के कैंसर का कारण बन सकता है.

iv. खानपान:  हम अपने खानपान के माध्यम से असंख्य कार्सिनोजनिक पदार्थों का सेवन कर रहे हैं. कुछ रासायनिक प्रदूषण एवं मिलावट द्वारा जानेअनजाने सेवन करने को विवश हैं, तो कुछ को लत के रूप जानबूझ कर ले रहे हैं.

इस प्रकार के  खाद्य पदार्थों का उल्लेख करना आवश्यक है, जैसे- ज्यादा तले हुए उच्च हाइड्रोकार्बोनयुक्त पदार्थ और कीटनाशक, अखाद्य रंग, डब्बाबंद भोज्य को सुरक्षित रखने वाले रसायनों आदि द्वारा प्रदूषित खाद्य पदार्थों को कार्सिनोजनिक माना जाता है. सुपारी, दाल, मूंगफली जैसे अनाजों को लंबे समय तक संग्रहित रखने से एफ़्लोटोक्सिन पैदा करने वाली फफूंदी लग जाती है, जिस से लिवर का कैंसर होने का खतरा रहता है. शराब की लत से लिवर, भोजन नली व अमाशय का कैंसर हो सकता है.

v. धूम्रपान: यह मुख गुहा, कंठ, श्वास नली, भोजन नली, फेफड़े, बड़ी आंत के कैंसर का मुख्य कारक है.

vi. तंबाकू का सेवन: भारत में खैनी, गुटखा, जर्दा आदि के रूप में तंबाकू के सेवन के कारण मुख गुहा के कैंसर का प्रकोप शीर्ष पर है.

vii. व्यवसायजनक रंग और रसायन, रेडियोधर्मिता उत्सर्जन करने वाले पदार्थों से निरंतर संपर्क आदि भी कैंसर जनक होता है.

viii. जैविक कार्सिनोजन: हैपेटाइटिस बी और सी वायरस से लिवर में, एचपीवी वायरस से महिलाओं के गर्भाशय ग्रीवा में, एच पाइलोरी बैक्टीरिया से अमाशय में और सिस्टोसोमा परजीवी से मूत्राशय में कैंसर उत्पन्न हो सकता है.

निदान: कैंसर किसी भी अंग में प्रारंभ हो सकता है. शरीर के बाहरी सतह पर होने से समय रहते ध्यान में आ जाता है, परंतु भीतरी अंगों में होने से प्रारंभिक अवस्था में पता नहीं चल पाता है. लेकिन उस अंग या अवयव की कार्यप्रणाली में फर्क पड़ने से अन्य लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं.

एक कुशल चिकित्सक उन लक्षणों के आधार पर और आवश्यकतानुसार अन्य जांच जैसे  एक्स-रे, एंडोस्कोपी, अल्ट्रासोनोग्राफी, मैमोग्राफी, सिटी स्कैन, एमआरआई, खून के नमूने में रासायनिक परिवर्तन या ट्यूमर मार्कर  की जांच और अन्य स्कैनों से प्राप्त जानकारी के आधार पर  निदान करने में सफल हो जाता  है.

फिर भी, अंतिम और निश्चित निदान, उस स्थान के थोड़े से ऊतकों को सूई या एफेनेसी या शल्य क्रिया द्वारा प्राप्त कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा जांचने से ही हो सकता है. इस जांच द्वारा कैंसर का प्रकार और गंभीरता के स्तर का भी पता चलता है.

प्रसार को जानने के लिए जरूरत के मुताबिक शरीर के अन्य संदिग्ध अंगों से ऊतकों को निकाल कर जांच की जा सकती है. इन सब के आधार पर प्रत्येक कैंसर का स्तर या स्टेज निर्धारित किया जाता है और इसी स्तर के अनुसार उपचार की योजना बनाई जाती है.

उपचार निःसन्देह प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का इलाज संभव है. कैंसर विशेषज्ञ रोग की अवस्था के अनुसार उपचार की विधि तय करते हैं. किसी एक विधि या कई विधियों का सम्मिलित प्रयोग किया जा सकता है, जैसे- शल्य चिकित्सा द्वारा रोगग्रस्त अंग को पूर्णरूप से या आंशिक रूप से हटा कर, कैंसर कोशिकाओं को मारने वाली कीमोथेरेपी दवाओं के प्रयोग द्वारा, कैंसर कोशिकाओं को  रेडियोथेरेपी के विकिरण द्वारा जला कर, इम्युनोथेरेपी, हार्मोन के प्रयोग द्वारा आदि. विशेष चिकित्सा के साथ ही आवश्यकतानुसार अन्य सहायक चिकित्सा भी दी जाती है. उपचार लंबे समय तक चलता है.

बचाव-

1 – अंतर्राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ यानी यूआईसीसी ने साल 1933 में प्रत्येक 4 फरवरी को “विश्व कैंसर दिवस” मनाने का आव्हान किया है. उद्देश्य के अनुसार उस दिन सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थानों को विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा जनसाधारण की कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाना है.

2 – उचित जीवनशैली, योग, प्राणायाम, व्यायाम एवं पोषाहार के  नियमित  व्यवहार से संभावना कम हो जाती है.

3 – कैंसरकारक खाद्य पदार्थों, जैसे- प्रदूषण, मिलावटी पदार्थों व औद्योगिक रंगों से युक्त खाद्य पदार्थों आदि के बहिष्कार द्वारा हम कैंसर से बच सकते हैं.

4 – तंबाकू, धूम्रपान और शराब  का सख्त निषेध. अच्छा तो होता कि सरकार की ओर से इन पर सख्त पाबंदी की जाए. इन पदार्थों की बिक्री से प्राप्त करों से कई गुना ज्यादा उन के इलाज की व्यवस्था पर सरकार को खर्च करना पड़ रहा है, साथ ही उन व्यक्तियों की उत्पादक क्षमता से भी देश वंचित हो रहा है. यह भी देश को एक घाटा है.

5 – वयस्क व्यक्ति के वार्षिक स्वास्थ्य परीक्षण में संभावित कैंसर संबंधी जांच भी कराना आवश्यक है.

आवश्यकतानुसार ट्यूमर मार्कर व अन्य जांच भी चिकित्सक  करवा सकते हैं. जापान का उदाहरण दिया जा सकता है. वहां अमाशय के कैंसर का प्रकोप बहुत ही ज्यादा था. वहां वयस्क व्यक्तियों के स्वास्थ्य परीक्षण में अमाशय की एंडोस्कोपी जांच भी आवश्यक कर दी गई. परिणामस्वरूप प्रारंभिक अवस्था में ही इस  रोग का पता चल जाने से उपचार सहज हो गया और अब इस रोग से ग्रस्त लोगों की संख्या बहुत कम हो गई है. उसी प्रकार पाश्च्यात देशों में स्तन कैंसर की विशिष्ट जांच की व्यवस्था बनाई गई है.

6- याद रखें, प्रारंभिक अवस्था में निदान और उचित इलाज ही इस रोग की विभीषिका से बचाव का साधन है. इसलिए आवश्यक है कि निम्नलिखित  लक्षणों पर ध्यान दिया जाए और समय रहते चिकित्सक की राय ली जाए –

– नवजात शिशु में या बाल्यकाल में शरीर के किसी भाग में कोई सूजन, बिना कारण निरंतर बुखार, मल या मूत्र में रक्त का आना आदि कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– महिलाओं को, विशेषकर 30 वर्ष की उम्र के बाद स्तन की स्वयं जांच करने में किसी भी प्रकार की गांठ का अनुभव, आकार में परिवर्तन, निपल का अंदर धंसना या किसी ओर झुकना, त्वचा के रंग में परिवर्तन या सिकुड़न, निपल से रक्तस्राव आदि स्तन कैंसर का लक्षण हो सकता है. रोग का पारिवारिक इतिहास यदि हो तो ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता है.

– त्वचा पर ऐसा घाव, विशेषकर पुराने स्कार पर जो लंबे समय से भर न रहा हो, बल्कि फैल रहा हो या कोई गांठ, जो कठोर और दर्दविहीन हो और निरंतर बढ़ रही हो या काले तिल में खुजली, आकार में वृद्धि या उभार प्रारंभ हो रहा हो.

– किसी भी आयु  में अकारण किसी एक हड्डी में सूजन और दर्द हड्डी के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– महिलापुरुष दोनों की वयस्क अवस्था में बिना किसी ज्ञात कारण के कमजोरी, भूख का अभाव, वजन घटना, खून की कमी प्रारंभिक लक्षण हो सकता है.

– मूत्र मार्ग से पेशाब के साथ बिना पीड़ा के रक्तस्राव, गुदा मार्ग से पीड़ारहित रक्तस्राव या शौच क्रिया में परिवर्तन जैसे बारबार जाना, मल के साथ म्यूकस का आना या निरंतर बढ़ता हुआ कब्ज इत्यादि, क्रमशः मूत्र संस्थान या बड़ी आंत के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– जिन्हें तंबाकू, गुटखा, धूम्रपान  आदि की लत हो, उन के मुख गुहा के अंदर लंबे समय से घाव का बने रहना, मुख गुहा का पूरी तरह से नहीं खुलना या  सफेद या लाल छाला पड़ना  कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– घुटकने में भोजन नली में रुकावट लगना, जिस की तीव्रता धीरेधीरे बढ़ रही हो, भोजन नली के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– धूम्रपान की लत वाले व्यक्ति में निरंतर खांसी और खांसी के साथ बलगम में खून आना या छाती में दर्द आदि फेंफड़े, श्वास नली या ध्वनि यंत्र के कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

– वयस्क को भोजन में अरुचि के साथसाथ खाने के कुछ समय बाद वमन होना और वमन में पिछले दिन के खाए हुए अन्न के दाने का रहना अमाशय के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– वयस्क महिला में दुर्गंधयुक्त रक्त प्रदर, गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– वयस्क में उत्तरोत्तर बढ़ती हुई पीड़ारहित जौंडिस पित्त की थैली, नली, पैंक्रियाज और लिवर के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

नया ठिकाना-भाग 3: मेनका को प्रथम पुरस्कार किसने दिया

रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘अरे, बहुत फेरा हो गया.’’

 

‘‘क्या फेरा हुआ?’’ मेनका ने पूछा.

 

‘‘कुछ रिश्तेदार आए थे शादी के लिए.

 

‘‘तुम्हारी शादी के लिए आए थे क्या?’’

 

‘‘अरे हां, उसी के लिए तो आए थे. तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’

 

‘‘अरे, मैं तुम्हारी एकएक चीज का पता करती रहती हूं.’’

 

‘‘अच्छा छोड़ो, मुझे कुछ उपाय बताओ. इस से छुटकारा कैसे मिलेगा? हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते. मांबाबूजी शादी करने के लिए अड़े हुए हैं. रिश्तेदार ले कर मामा आए हुए थे. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? तुम्हीं कुछ उपाय निकालो.’’

 

मेनका बोली, ‘‘एक ही उपाय है. हम लोग यहां से कहीं दूसरी जगह यानी किसी दूसरे शहर में निकल जाएं.’’

 

‘‘गुमटी का क्या करें?’’

 

‘‘बेच दो.’’

 

‘‘बाहर में क्या करेंगे?’’

 

‘‘वहां जौब ढूंढ लेना. मेरे लायक कुछ काम होगा, तो हम भी कर लेंगे.’’

 

‘‘लेकिन यहां मांबाबूजी का क्या होगा?’’

 

‘‘रवि, तुम्हें दो में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा. मांबाबूजी को छोड़ो या फिर मुझे. इसलिए कि यहां हमारे मांपिताजी भी तुम से शादी करने के लिए किसी शर्त पर राजी नहीं होंगे.

 

‘‘इस की दो वजह हैं. पहली तो यही कि हम लोग अलगअलग जाति के हैं. दूसरी, हमारे मांपिताजी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करना चाहते हैं.’’

 

रवि बोलने लगा, ‘‘मेरे सामने तो सांपछछूंदर वाला हाल हो गया है. मांबाबूजी को भी छोड़ना मुश्किल लग रहा है. दूसरी बात यह कि तुम्हारे बिना हम जिंदा नहीं रह सकते.’’

 

मेनका बोली, ‘‘सभी लड़के तो बाहर जा कर काम कर ही रहे हैं. वे लोग क्या अपने मांबाप को छोड़ दिए हैं. वहां से तुम पैसे मांबाप के पास भेजते रहना. यहां जब गुमटी बेचना, तो कुछ पैसे मांबाबूजी को भी दे देना. मांबाबूजी को पहले ही समझा देना.’’

 

‘‘अच्छा ठीक है. इस पर जरा विचार करते हैं,’’ रवि बोला.

 

रवि का दोस्त संजय गुरुग्राम दिल्ली में काम करता था. उस से मोबाइल पर बराबर बातें होती थीं. रवि और संजय दोनों ही पहली क्लास से मैट्रिक क्लास तक साथ में पढ़े थे. संजय मैट्रिक के बाद दिल्ली चला गया था. रवि पान की गुमटी खोल लिया था. दोनों की बातें मोबाइल से बराबर होती रहती थी.

 

संजय की शादी भी हो गई थी. संजय की पत्नी गांव में ही रहती थी. इसलिए वह साल में एक या दो बार गांव आता था.

 

अगले दिन रवि ने संजय को फोन किया, ‘‘यार संजय, मेरे लिए भी काम दिल्ली में खोज कर रखना. साथ ही, एक रूम भी खोज कर रखना.’’

 

संजय बोला, ‘‘मजाक मत कर यार.’’

 

‘‘नहीं यार, मैं सीरियसली बोल रहा हूं. अब गुमटी भी पहले जैसी नहीं चल रही है. बहुत दिक्कत हो गई है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. तुम हमारे लंगोटिया यार हो. हम अपना दुखदर्द तुम से नही ंतो किस से कहेंगे?’’

 

संजय बोला, ‘‘मैं यहां  एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हंू.तुम चाहोगे तो मैं तुझे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा सकता हूं. हर महीने 10,000 रुपए मिलेंगे. ओवरटाइम करोगे, तो 12,000 से 13,000 रुपए तक कमा लोगे.’’

 

‘‘ठीक है. एक रूम भी खोज लेना,’’ रवि बोला.

 

‘‘ठीक है, जब मन करे ,तब आ जाना.’’ संजय ने ऐसा बोल कर फोन काट दिया.

 

रवि यहां से जाने का मन बनाने लगा. मांबाबूजी से वह बोला, ‘‘मुझे बाहर में अच्छा काम मिलने वाला है. एक साल कमा कर आएंगे, तो घर बना लेंगे. उस के बाद शादी करेंगे.’’

 

रवि के बाबूजी बोलने लगे, ‘‘हम लोग यहां तुम्हारे बिना कैसे रहेंगें?’’

 

‘‘सब इंतजाम कर के जाएंगे. वहां से पैसा भेजते रहेंगे. संजय बाहर रहता है, तो उस के मांबाबूजी यहां कौन सी दिक्कत में हैं? सब पैसा कराता है. पैसा है तो सबकुछ है. अगर हाथ में पैसा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है.’’

 

‘‘हां बेटा, वह तो है. तुम जिस में भलाई सोचो.’’

 

रवि ने 70,000 रुपए में सामान सहित गुमटी बेच दी. 30,000 रुपए अपने मांबाबूजी को दे दिया. 40,000 रुपए अपने पास रखा. अब वह यहां से निकलने के लिए प्लानिंग करने लगा.

 

मेनका के मोबाइल पर काल किया. उस ने बताया कि सारा इंतजाम  कर लिया है. उपाय सोचो कि कैसे निकला जाएगा?

 

मेनका बोली, ‘‘आज हमारे पापा मामा के यहां जाने वाले हैं. हम स्कूल जाने के बहाने घर से निकलेंगे और ठीक 10 बजे बसस्टैंड रहेंगे.’’

 

दूसरे दिन दोनों ठीक 10 बजे बसस्टैंड पहुंचे. बस से दोनों गया स्टेशन पहुंचे. वहां से महाबोधि ऐक्सप्रेस पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए. अपने दोस्त संजय को फोन किया.

 

संजय स्टेशन पर उसे लेने पहुंच गया. एक लड़की के साथ में रवि को देख कर वह हैरानी में पड़ गया. फिर भी कुछ पूछ नहीं सका. दोनों को अपने डेरे पर ले आया और नाश्ता कराया. उस के बाद दोनों को फ्रेश होने के लिए बोला. जब लड़की बाथरूम में नहाने के लिए गई, तो संजय ने पूछा, ‘‘तुम साथ में किस को ले कर आ गए हो? मुझे पहले कुछ बताया भी नहीं.’’

 

रवि ने सारी बातें बता दीं. संजय जहां पर रहता था, उसी मकान में एक कमरा, जो हाल में ही खाली हुआ था, उसे इन लोगों को दिलवा दिया.

 

रवि और संजय दोनों बाजार से जा कर बिस्तर, बेड सीट, गैस, चावलदाल वगैरह जरूरत का सामान खरीद कर लाए. रवि और मेनका दोनों साथसाथ रहने लगे.

 

संजय जब अपने घर फोन किया, तो उस की मां रवि के बारे में बताने लगी कि तुम्हारा दोस्त रवि एक लड़की को कहीं ले कर भाग गया है. यहां पंचायत ने रवि के मातापिता को गांव से निकल जाने का फैसला सुनाया है. दोनों गांव से निकल गए हैं. मालूम हुआ कि रवि के मामा के यहां दोनों चले गए हैं. रवि को ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन संजय इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया.

 

संजय ने रवि को सारी बातें बता दीं. रवि जब अपने मामा के यहां फोन किया, तो उस के मामा ने बहुत भलाबुरा कहा. उस के मांपिताजी ने भी कहा कि अब हम लोग गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम ने कभी सपने में भी नहीं  सोंचा था कि तुम इस तरह का काम करोगे. लेकिन एक बात बता दे रहे हैं कि कभी भूल कर भी तुम लोग अपने गांव नहीं आना, नहीं तो लड़की के मातापिता तुम लोगों की हत्या तक कर देंगे.

 

रवि बोलने लगा, ‘‘आप लोग चिंता मत कीजिए. हम आप लोगों को 6,000 रुपए महीना भेजते रहेंगे. किसी तरह वहां का घरजमीन बेच कर मामा के गांव में ही जमीन ले लीजिए. अगर दिक्कत होगी, तो आप दोनो को यहां भी ला सकते हैं.’’

 

‘‘नहीं बाबू, हम लोग यहीं रहेंगे. शहर में नहीं जाएंगे.’’

 

रवि 12,000 रुपए महीना पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.मेनका एक ब्यूटीपार्लर में रिशेप्शन पर 8,000 रुपए महीना पर काम करने लगी थी. दोनों का दिन खुशीखुशी बीत रहा था. प्रत्येक रविवार को संजय के साथ दोनों कभी इंडिया गेट तो कभी लाल किला और लोटस टेंपल घूमने के लिए चले जाते.

 

इसी बीच कोरोना बीमारी की चर्चा होने लगी. लोगों के बीच भी गरमागरम चर्चा थी. आज प्रधानमंत्रीजी का भाषण टीवी पर होने वाला है. प्रधानमंत्रीजी ने सभी लोगों को एक दिन का जनता कफ्र्यू की घोषणा कर दी. 21 मार्च को शाम 5 बजे 5 मिनट तक अपने बालकोनी से थाली और ताली बजाने की घोषणा की. देशभर के लोगों ने थालीताली, घंटी और शंख के साथसाथ सिंघा तक बजा दिया.

 

प्रधानमंत्री समझ गए. हम जो बोलेंगे, जनता मानेगी. प्रधानमंत्रीजी फिर से टीवी पर आए. उन्होंने इस बार बड़ा फैसला सुनाया. 21 दिन का संपूर्ण लौकडाउन. जो जहां हैं, वहीं रहेंगे. सभी गाड़ियां, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक बंद रहेंगे. सिर्फ राशन और दवा की दुकानें खुली रहंेगी.

 

दूसरे दिन से हर जगह पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो गया. किसी तरह बंद कमरे में 21 दिन बिताए. फिर से 19 दिन का लौकडाउन बढ़ा दिया गया. अब जितने भी काम करने वाले लोग थे. हर हाल में घर जाने का मन बनाने लगे. कंपनी का मालिक ठेकेदार को पैसा देना बंद कर दिया. रवि और मेनका के अगलबगल के सारे लोग अपने घर के लिए निकल पड़े. संजय भी एक पुरानी साइकिल 12,00 रुपए में खरीद कर घर चलने का मन बना लिया.

 

रवि अपने मामा के यहां जब फोन किया, तो मामा ने कहा कि यहां भूल कर भी नहीं आना. अगर लड़की वाले लोगों को मालूम हो गया, तो तुम लोगों के साथसाथ हम लोग भी मुसीबत में पड़ जाएंगे.

 

आखिर मेनका और रवि जाएं तो जाएं कहां? मेनका पेट से हो गई थी.संजय दूसरे दिन साइकिल ले कर गांव निकल गया था. अगलबगल के सारे काम करने वाले बिहार और यूपी के भैया लोग निकल पड़े थे. पूरे मकान में सिर्फ रवि और मेनका बच गए थे. आखिर करें तो क्या? समझ में नहीं आ रहा था. अगलबगल के लोग भी बोलने लगे. यहां सुरक्षित नहीं रहोगे. यहां कोरोना के मरीज हर रोज बढ़ रहे हैं. कुछ हो गया, तो कोई साथ नहीं देगा.

 

रवि भी एक साइकिल खरीद लिया. मेनका से वह बोला कि चलो, हम लोग भी निकल चलें. चाहे जो भी हो, एक दिन तो सब को मरना ही है. सारा सामान मकान मालिक को 15,000 रुपए में बेच कर निकल पड़ा.

 

रास्ते के लिए रवि ने निमकी, खुरमा, पराठा और भुजिया बना कर रख ली. 4 बजे भोर में रवि मेनका को साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा कर चल पड़ा. शाम हो गई थी. रवि को जोरो की प्यास लगी थी.

 

सड़क के किनारे एक आलीशान मकान था. गेट के पास एक चापाकल था. रवि रुक कर दोनों बोतलों में पानी भर रहा था. उस आलीशान मकान में से गेट तक एक बुढ़िया आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा, तुम लोग कहां से आ रहे हो?’’

 

‘‘माताजी, हम लोग दिल्ली से आ रहे हैं. बिहार जाएंगे.’’

 

‘‘अरे, साइकिल से तुम लोग इतनी दूर जाओगे?’’

 

‘‘हां माताजी, क्या करें? जिस कंपनी में काम करते थे, अब वह कंपनी बंद हो गई. मकान मालिक किराया मांगने लगा. सभी मजदूर निकल गए. हम लोग क्या करते? बात समझ में नहीं आ रही थी. हम लोग भी निकल पड़े.’’

 

‘‘अब रात में तुम लोग कहां रुकोगे?’’

 

‘‘माताजी, कहीं भी रुक जाएंगे.’’

 

‘‘अरे, तुम दोनो यहीं रुक जाओ. यहां मेरे घर में कोई नहीं रहता. एक हम और एक खाना बनाने वाली दाई रहती है. तुम लोग चिंता मत करो. मेरे भी बेटापतोहू है, जो अमेरिका में रहता है. वहां दोनों डाक्टर हैं. आखिर कहीं तो रुकना ही था. इस से अच्छी जगह और कहां मिलती? दोनों को घर में ले गई. दाई को बोली, ‘‘2 आदमी का और खाना बना देना.’’

 

रवि बोला, ‘‘माताजी, हम लोगों के पास खाना है. आप रुकने के लिए जगह दे दी, यही बहुत है. कोई बात नहीं. वह खाना तुम लोगों को रास्ते में काम आएगा.’’

 

‘‘अच्छा ठीक है, माताजी. दोनों फ्रेश हुए. उस के बाद मेनका और बूढ़ी माताजी आपस में बातें करने लगीं. बूढ़ी माताजी कहने लगीं. मेरा भी एक ही बेटा है. अमेरिका में डाक्टर है. वहीं शादी कर लिया. 10 साल बाद वह पिछले साल यहां आया था. जब उस के पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे.

 

हमारे पति आईएएस अफसर थे. बहुत अरमान से बेटे को डाक्टरी पढ़ाए थे.मुझे पैसे की कोई कमी नहीं है. 40,000 रुपए पेंशन मिलती है. जमीनजायदाद से साल में 5 लाख रुपए आमदनी हो जाती है. बेटा भी सिर्फ पैसे के लिए पूछता रहता है.

 

खाना खा कर बात करतेकरते काफी रात बीत गई. सुबह जब रवि और मेनका उठे, तो दिन के 8 बज गए थे. मुंहहाथ धो कर स्नान करते 9 बज गए थे. जब दोनों निकलने की तैयारी करने लगे, तो बूढ़ी माता ने कहा, ‘‘धूप बहुत हो गई है. अब कल सुबह दोनों निकलना.’’

 

कुछ सोच कर दोनों आज भी रुक गए थे. दाई के साथ खाना बनाने में मेनका सहयोग करने लगी थी. अहाते में फले हुए कटहल को रवि ने तोड़ा और रात में मेनका ने कटहल की सब्जी और रोटी बनाई. बूढ़ी माता बोलने लगी, ‘‘तुम तो गजब की टेस्टी सब्जी बनाई हो. ऐसी सब्जी तो बहुत दिनों के बाद खाने को मिली.’’

 

बूढ़ी माता रात में अपना दुखदर्द सुनाते हुए रोने लगीं. वे बोलने लगीं सिर्फ पैसे से ही खुशी नहीं मिलती. बेटे को शादी किए 10 साल से ज्यादा हो गए. आज तक पतोहू को देखा तक नहीं. एक पोता भी हुआ है, लेकिन सिर्फ सुने हैं. आज तक उसे देखने का मौका नहीं मिला.

 

मेनका को लगा कि मुझे मां मिल गई हैं. वह भी भावना में आ कर सारी बातें बता दी. रात में बूढ़ी माताजी को जबरदस्ती पैर दबाई और तेल लगाई. बूढ़ी माताजी को आज वास्तविक सुख का एहसास होने लगा.

 

सुबह जब रवि निकलने के लिए बोला, तो बूढ़ी माता जिद पर अड़ गईं और बोलीं कि तुम लोग यहीं रहो. इन लोगों को भी नया ठिकाना मिल गया और दोनों खुशीखुशी यहीं रहने लगे.

Crime Story: खून से सनी नशे की लकीर

मनमोहन गली नंबर-24, बस्ती टोकावली, फिरोजपुर निवासी सुभाष ठाकुर का पुत्र था. मनमोहन की शादी 4 साल पहले बी1-5/6, गली नंबर-3, जनता कालोनी, जालंधर में रहने वाले चानन सिंह राजपूत की बेटी पूजा के साथ हुई थी. दोनों राजपूत परिवारों से थे, दोनों के बीच आपसी प्रेमप्यार था.

पूजा के पिता चानन सिंह आर्मी में थे. उन की 2 ही संतानें थीं, बेटा विनोद और बेटी पूजा. दोनों ही शादीशुदा थे और अपनेअपने परिवारों के साथ खुश थे. पूजा की शादी चानन सिंह ने 4 साल पहले मनमोहन के साथ की थी.

पूजा बीए पास और अच्छे संस्कारों वाली समझदार लड़की थी. ससुराल आ कर उस ने पति ही नहीं, बल्कि सब का मन मोह लिया था. मनमोहन ने एमबीए कर रखा था. कोई अच्छी सरकारी नौकरी न मिलने के कारण वह हिंदुस्तान हाइड्रोलिक कंपनी में नौकरी कर रहा था.

मनमोहन की मां के निधन के बाद वह और उस के पिता जब काम पर चले जाते थे, तो पूजा दिन भर घर में अकेली रहती थी. घर का मुख्यद्वार पूरे दिन बंद रहता था, क्योंकि उन के यहां किसी का आनाजाना नहीं था.

शाम को मनमोहन या उस के पिता के घर लौटने पर ही मुख्यद्वार खोला जाता था. लेकिन उस दिन मनमोहन घर लौटा तो ऐसा नहीं हुआ. मनमोहन के 2-3 बार डोरबैल बजाने के बाद भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने दरवाजा थपथपाया तो दरवाजा हाथ रखते ही खुल गया.

यह देख कर मनमोहन को और अधिक आश्चर्य हुआ. असमंजस की स्थिति में  अपनी पत्नी पूजा को आवाज देते हुए उस ने घर के भीतर जा कर देखा तो कमरे का दृश्य देख उस के होश उड़ गए. भीतर पूरा सामान बिखरा पड़ा था. देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में 2 लोगों का आपस में जबरदस्त संघर्ष हुआ हो.

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घर के सभी कमरे खुले हुए थे और उन का सामान बिखरा पड़ा था. घर में ऐसा क्या हुआ, यह जानने के लिए वह पूजा को लगातार आवाज देता रहा, पर पूजा कहीं नहीं दिखी. पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. उस के काम से लौटने पर पूजा होंठों पर मुसकान लिए दरवाजा खोलती थी.

मनमोहन किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा. पागलों की तरह पूजा को आवाज देते हुए वह घर से बाहर निकल आया. उस की पड़ोसन ने बताया कि दोपहर को उन के घर कोई रिश्तेदार आया था और पूजा ने उस के लिए दरवाजा खोला था.

आने वाला कौन था, यह वह नहीं बता सकी. हां, उस ने इतना जरूर बताया कि शाम को उसी ने दरवाजा अंदर की ओर धकेला था, क्योंकि कुत्ते घर के अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे.

पड़ोसन की बात सुन कर मनमोहन को चिंता हुई. उस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिर ऐसा कौन रिश्तेदार था, जिस के घर आने के बाद यह हालत हुई. इस से भी बड़ा सवाल यह था कि पूजा कहां गई?

उस की समझ में यह भी नहीं आ रहा था कि घर बैठ कर पूजा का इंतजार करे या उस की तलाश में कहीं जाए. लेकिन जाए तो कहां जाए. फिर भी मनमोहन ने पड़ोसियों के साथ पूजा की तलाश की, उसे अस्पतालों में भी देखा. पर पूजा का पता नहीं चला.

मनमोहन बदहवासी में कुछ सोचने का प्रयास कर रहा था कि तभी उस के पिता सुभाष भी घर पहुंच गए. वह पिछले एक सप्ताह से संगत के लिए हिमाचल स्थित बाबा बालक नाथ के डेरे पर गए हुए थे.

बेटे को यूं बदहवास देख और पूजा के गायब होने की बात सुन कर उन्हें भी चिंता होने लगी. इस के बाद पूरे मोहल्ले में पूजा के घर से लापता होने की बात फैल गई. सांत्वना और सहयोग के लिए पूरा मोहल्ला उन के घर आ जुटा था.

अचानक एक पड़ोसी की नजर मनमोहन के कमरे में पड़े पर बैड पर गई तो वह चौंका. बंद बैड पर गद्दे के नीचे से किसी औरत की चोटी के बाल बाहर झांक रहे थे. उस के बताने पर वहां मौजूद सभी लोगों ने बैड को देखा.

गद्दे को उठा कर बैड का बौक्स खोला गया तो बौक्स के भीतर का दृश्य देख सभी लोगों के मुंह से चीख निकल गई. बैड के भीतर पूजा की लाश पड़ी थी. एकाएक किसी को भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था.

उस समय मनमोहन की जो हालत थी, उस का अनुमान लगाना मुश्किल था. वह बैड पकड़ कर वहीं फर्श पर बैठ गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि पूजा की हत्या कर के लाश बैड में किस ने छिपाई.

काफी देर बाद लोगों के सांत्वना देने पर जब वह सामान्य हुआ. घर के अंदर के किसी भी सामान को छुए बिना सब से पहले उस ने इस घटना की सूचना थाना कैंट, फिरोजपुर पुलिस को दी. साथ ही उस ने पूजा की हत्या की खबर अपने ससुर चानन सिंह को भी दे दी. यह घटना 27 नवंबर, 2018 की है.

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पूजा की हत्या की खबर मिलते ही उस के मातापिता वहां पहुंच गए. पुलिस ने क्राइम टीम सहित वहां पहुंच कर अपनी काररवाई शुरू कर दी. पूरे घर को सील कर दिया गया. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने जगहजगह से अंगुलियों के निशान उठाए.

सबूतों की तलाश में घर की बारीकी से तलाशी ली गई. थाना कैंट एसएचओ इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने बड़ी बारीकी से लाश का मुआयना किया. पूजा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. उस के गले पर दबाव के निशान स्पष्ट नजर आ रहे थे.

इस घटना की सूचना मिलते ही एसपी (डी) बलजीत सिंह सिद्धू, डीएसपी जसपाल सिंह ढिल्लों, सीआईए प्रभारी तरलोचन सिंह ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर मुआयना किया. क्राइम टीम का काम खत्म हो गया तो इंसपेक्टर जसबीर सिंह पूजा के पिता चानन सिंह को थाने ले गए. वहां उन के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 302 के तहत पूजा की हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया. इस के बाद पूजा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

शुरुआती जांच में इंसपेक्टर जसबीर सिंह को मनमोहन के बयानों से पता चला कि उस के घर में किसी बाहरी व्यक्ति का आनाजाना बिलकुल नहीं था. रिश्तेदारों का आनाजाना भी न के बराबर था. इस परिवार की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी.

बापबेटा अपने काम से काम रखने वाले थे. ऐसे में शहर के व्यस्ततम इलाके में दिनदहाड़े किसी के घर में घुस कर उस की हत्या करने जैसी बात न तो पुलिस को हजम हो रही थी और न ही मोहल्ले वालों को.

इंसपेक्टर जसबीर को एक बात शुरू से ही खटक रही थी कि यह काम घर के ही किसी आदमी का हो सकता है. किसी बाहरी व्यक्ति की संभावना कम नजर आ रही थी. बहरहाल, पुलिस ने मनमोहन को शक के दायरे में रख कर जांच शुरू कर दी.

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, घटना के समय मनमोहन और उस के पिता सुभाष भले ही अपने घर के आसपास नहीं थे, पर यह काम पैसे दे कर किसी किराए के हत्यारे से भी करवा सकते थे.

घटना वाले दिन मनमोहन और सुभाष घटनास्थल से दूर थे. उन के फोन रिकौर्ड से भी पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा. मृतका पूजा के फोन रिकौर्ड भी चैक किए गए, सब बेदाग थे. पोस्टमार्टम के अनुसार पूजा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम के बाद उस की लाश घर वालों के हवाले कर दी गई. उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पूजा की हत्या की खबर शहर भर में चर्चा का विषय बन गई थी. एसपी साहब खुद पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे. लेकिन अभी तक पुलिस के हाथ खाली थे. पूजा का पति मनमोहन शुरू से ही शक के दायरे में था, इसलिए पुलिस ने मनमोहन और उस के पिता से कई बार अलगअलग घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन वे लोग निर्दोष लग रहे थे.

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पूजा के पति पर शक करने की वजह यह थी कि पूजा संतानहीन थी. शादी के 4 साल बाद भी उस की गोद नहीं भरी थी. पुलिस सोच रही थी कि कहीं संतानहीन पत्नी से पीछा छुड़ाने के लिए मनमोहन ने ही तो पूजा की हत्या नहीं कर दी.

पुलिस ने मनमोहन के अलावा उस के खास दोस्तों और करीबी रिश्तेदारों से भी पूछताछ की. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस केस पर जिले के स्पैशल स्टाफ के अलावा और भी कई टीमें काम कर रही थीं. पुलिस के मुखबिर इस मामले में कोई खास जानकारी नहीं जुटा पाए थे.

इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने इस मामले को लूटपाट के नजरिए से भी देखा और इलाके के छोटेबड़े सभी हिस्ट्रीशीटरों से ले कर चोरों, जेबतराशों और उठाईगीरों को भी राउंडअप किया. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. पूजा की हत्या हुए एक महीने से ऊपर का वक्त गुजर चुका था. धीरेधीरे यह केस ठंडे बस्ते की ओर बढ़ने लगा था.

हालांकि इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने अभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था. यह अलग बात है कि उन के तमाम प्रयासों के बाद भी कोई ऐसा सूत्र हाथ नहीं लगा था, जिस से इस मामले की कोई भी कड़ी जुड़ती नजर आती.

लोग भी धीरेधीरे इस घटना को भूलने लगे थे. 2 महीने से भी ज्यादा गुजर चुके थे, तभी एक दिन एक ऐसा सूत्र खुद सामने से चल कर आया कि जसबीर सिंह की बांछें खिल गईं. इस सूत्र ने इस केस को एक नई दिशा दे दी थी.

इस घटना के लगभग 2 महीने बाद मनमोहन घर की अलमारी के लौकर में कोई जरूरी कागजात ढूंढ रहा था, तभी अचानक उसे झटका सा लगा. अलमारी के लौकर में रखे कीमती जेवरात गायब थे.

मनमोहन ने इस बात की खबर इंसपेक्टर जसबीर सिंह को दी. जेवरात कैसे गायब हुए, यह तो वह ठीक से नहीं बता पाया, पर यह बात उस ने दावे के साथ कही कि जेवरात पूजा की हत्या से पहले ही गायब हुए थे. क्योंकि उस के और पूजा के अतिरिक्त जेवरातों की जानकारी किसी को नहीं थी.

पूजा मरने के बाद जेवरात अपने साथ नहीं ले जा सकती थी. जाहिर है उस के सामने या उस की हत्या के बाद ही जेवरात गायब हुए होंगे.

यह भी संभव थी कि इन्हीं जेवरातों की वजह से पूजा की हत्या की गई हो. यह जबरदस्त पौइंट इंसपेक्टर जसबीर के सामने था. उन्होंने अपनी जांच का दायरा बदलते हुए शहर के सुनारों, खासकर उन सुनारों की तरफ मोड़ दिया जो चोरी का माल खरीदते थे. इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने उन्हें मनमोहन के घर से गायब सामान की लिस्ट देते हुए सख्त चेतावनी दी कि अगर कोई चोर चोरी का सामान बेचने आए तो उन्हें खबर दें. और फिर एक दिन पुलिस की मेहनत रंग लाई.

20 फरवरी, 2019 को शहर के एक सुनार ने फोन द्वारा इंसपेक्टर जसबीर सिंह को सूचना दी कि अजय पटियाल नाम का एक व्यक्ति उस की दुकान पर मनमोहन के घर से चोरी हुए गहनों से मिलतेजुलते गहने बेचने आया है. इस सूचना पर इंसपेक्टर जसबीर सिंह एएसआई जसपाल सिंह, बलविंदर सिंह, हवलदार गुरतेज सिंह और जसवीर सिंह के साथ सुनार की दुकान पर पहुंचे.

अजय को देख कर सभी चौंके. अजय मनमोहन का ही रिश्तेदार था. वह वीर नगर गली नंबर-1 निवासी उस के मामा का बेटा था. मजे की बात यह कि इंसपेक्टर जसबीर सिंह शक के आधार पर उसे 3 बार पूछताछ के लिए थाने बुला चुके थे, लेकिन ठोस सबूतों के अभाव में उसे छोड़ना पड़ा था. बहरहाल, वे गहनों सहित अजय को गिरफ्तार कर थाने ले आए.

पूछने पर अजय ने बताया कि गहने उस के अपने हैं. फिर बताया कि गहने उस के किसी दोस्त के हैं और उस ने अपनी बीमार मां का इलाज करवाने के लिए उसे बेचने के लिए दिए थे. किस दोस्त ने गहने दिए थे, यह बात वह नहीं बता पाया.

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इंसपेक्टर जसबीर सिंह ने मनमोहन और उस के पिता सहित मृतक पूजा के मातापिता को भी थाने बुलवा कर जब गहनों की शिनाख्त करवाई तो उन्होंने तुरंत गहने पहचान लिए.

अजय से बरामद गहने पूरे नहीं थे, इसलिए इंसपेक्टर जसबीर ने अजय को अदालत में पेश कर उस का 2 दिन का रिमांड ले लिया. रिमांड के दौरान अजय से बाकी गहने भी बरामद कर लिए गए जो उस ने अपने घर में छिपा कर रखे थे.

दरअसल, अजय नशे का आदी था. पूजा की हत्या उस ने नशे की पूर्ति के लिए की थी. इसे इत्तफाक समझा जाए या कुछ और कि घटना वाले दिन वह पूजा की हत्या के इरादे से मनमोहन के घर नहीं गया था. अजय के नशेड़ी होने की वजह से कोई रिश्तेदार उसे पसंद नहीं करता था. न ही कोई उसे अपने घर में घुसने देता था.

पूछताछ के दौरान अजय ने बताया कि उस दिन वह मनमोहन से कुछ रुपए उधार लेने उस के घर गया था. लेकिन मनमोहन अपने काम पर जा चुका था. पूजा घर में अकेली थी.

पूजा ने अजय को इज्जत से बिठाया और उस के लिए चाय बनाने रसोईघर में चली गई. क्योंकि अजय रिश्ते में मनमोहन के मामा का बेटा था, चायपानी के लिए पूछना उस का फर्ज था. जिस समय अजय मनमोहन के घर आया था, उस समय पूजा अलमारी खोल कर उस में कुछ सामान रख रही थी. अजय के आ जाने की वजह से वह अलमारी खुली छोड़ कर चाय बनाने चली गई.

अचानक अजय की नजर खुली अलमारी पर पड़ी तो वह यह सोच कर अलमारी की ओर चला गया कि संभव है उस में रखे कुछ रुपए उस के हाथ लग जाएं. लेकिन अलमारी में रखे जेवर देख कर उस की आंखें चमक उठीं.

गहने देख कर उसे लगा जैसे उस की कई दिन की नशापूर्ति का इंतजाम हो गया हो. उस ने अलमारी में रखे सारे गहने उठा लिए. तभी पूजा ने चाय ले कर कमरे में प्रवेश किया.

अजय को गहने चोरी करते देख वह भौचक्की रह गई. हैरान हो कर उस ने अजय के हाथों से गहने छीनने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘भैयाजी, यह आप क्या कर रहे हैं?’’

अजय के सिर पर तो नशे का भूत सवार था, सो उस ने पूजा को एक ओर धकेलते हुए घर से भाग जाने की कोशिश की. पर पूजा ने उस का रास्ता रोक लिया. वह किसी भी कीमत पर अजय को वहां से गहने ले कर नहीं जाने देना चाहती थी.

पूजा द्वारा विरोध करने पर अजय को ऐसा लगा जैसे वह उस की दुनिया छीन लेना चाहती हो. इसी छीनाझपटी में अजय ने पूजा का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. पूजा की हत्या करने के बाद अजय घबरा गया. उस ने पूजा की लाश को एक सूटकेस में भरा और सूटकेस बैड में रख कर वहां से चुपचाप निकल आया.

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काररवाई और पूछताछ के बाद पुलिस ने 22 फरवरी, 2019 को अजय को अदालत में पेश किया, जहां से अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य कहानी: मनोहर कहानी

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