लेखक-डा. मधुकर एस. भट्ट

कैंसर का इलाज अब लाइलाज नहीं रहा. विशेषज्ञों के अनुसार, 60 प्रतिशत कैंसर रोगियों को बचाया जा सकता है.

जी हां, यह चिकित्सा बहुत ही महंगी है. वजह, इस चिकित्सा की सरकारी व्यवस्था अपर्याप्त तो है ही और प्राइवेट कैंसर अस्पतालों की संख्या भी बहुत कम है, और है भी तो बहुत महंगे हैं.

कैंसर का समुचित इलाज भारत की बहुसंख्य अभावग्रस्त आबादी की कल्पना के परे है. यदि कैंसर का इलाज कराना ही पड़े तो उन के जेवर, घर, बैल, खेत आदि तक बिक जाते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंकलन है कि भारत में तकरीबन 2 करोड़ से ज्यादा व्यक्ति हर साल चिकित्सा व्यय के कारण मध्यम श्रेणी से गरीबी रेखा के नीचे चले आते हैं. वहीं दूसरी ओर भारत सरकार को भी  दोहरी मार पड़ रही है. पहली, उन की चिकित्सा व्यवस्था पर व्यय. और दूसरी, उन की उत्पादन क्षमता से वंचित हो कर. रोग झेलने का कष्ट, परिवार पर विपत्ति और अनावश्यक व्यय आदि की मुसीबतों से बचने के लिए अच्छा होगा कि हम कैंसर रोग और उस के कारक तत्वों या कार्सिनोजन के प्रति अपनी जागरूकता बढ़ा कर बचाव के लिए सचेत हो जाएं.

ये भी पढ़ें-आंखों की बीमारी: कई बार नहीं मिलते संकेत या लक्षण, ऐसे रखें ध्यान

क्या कैंसर रोगियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है?: यह रोग नया नहीं है. आदि मानवों के कंकाल की हड्डियों में और इजिप्ट की ममियों में इस रोग के होने की पुष्टि हो चुकी है.

हमारे प्राचीन आयुर्विज्ञान के ग्रंथों में भी इस का वर्णन किया गया है. हां, यह सही है कि रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है. यह हाल केवल भारत का ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का है.

वर्तमान आंकड़ों से उपरोक्त कथन की पुष्टि होती है. एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था आईएसीआर यानी इंटरनेशनल एजेंसी फौर रिसर्च औन कैंसर के आंकलन के अनुसार, पूरी दुनिया में प्रति वर्ष कैंसर के लगभग 1 करोड़, 70 लाख नए रोगियों की संख्या दर्ज की जाती है और लगभग 82 लाख रोगियों की मृत्यु होती है. भारत में कैंसर का प्रकोप पाश्चात्य देशों की तुलना में कुछ कम है.

ये भी पढ़ें-जब निकले छोटे बच्चों के दांत तो करें ये काम

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, यहां हर साल तकरीबन 10 लाख नए रोगियों का नाम दर्ज होता है और तकरीबन सात लाख रोगियों की मौत. (cancerindia.org.in2018).

आंकलन के अनुसार, साल 1990 की तुलना में यह संख्या साल 2016 में दोगुनी थी. जागरूकता और स्तरीय अस्पतालों की कमी के कारण भारत में मृत्यु दर ज्यादा है. संख्या में वृद्धि केवल रोग का प्रकोप बढ़ने के कारण ही नहीं है, बल्कि अन्य कारण भी हैं, जैसे-

1. मनुष्य की बढ़ती औसत आयु-  बढ़ती चिकित्सा सुविधा ने हमारे जीने की औसत आयु बढ़ा दी है. भारत का ही उदाहरण लें, तो आजादी के समय यहां की औसत आयु 32 वर्ष ही मानी जाती थी, जो अब लगभग 68 वर्ष के करीब है, और ज्यादातर उन्नत देशों में यह 80 वर्ष के ऊपर हो गई है. वयस्क आयु के बाद बढ़ती आयु के साथ आनुपातिक रूप में इस रोग से ग्रस्त होने की संभावना बढ़ती जाती है.

2. बढ़ती जनसंख्या- स्वाभाविक है कि बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में कैंसर से ग्रस्त रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है. साल 1947 में हमारी जनसंख्या महज 33 करोड़ थी, जो वर्तमान में 135 करोड़ के लगभग है और विश्व की जनसंख्या 1950 में अढ़ाई अरब के लगभग थी, जो अब साढ़े 7 अरब को पार कर गई  है.

3. चिकित्सा के क्षेत्र में : इस क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रगति ने रोगों का निदान सहज बना दिया है. पहले की तुलना में अब इस रोग का सही निदान प्रारंभिक अवस्था में ही हो सकता है.

4. रोगों के डाटा का रिकौर्ड रखना और पहले से बेहतर रिपोर्टिंग: जी हां, यह सच है कि रोगों के डाटा का रिकौर्ड रखना और रिपोर्टिंग पहले से बहुत बेहतर हो गई है. इस संदर्भ में भारत अभी भी पीछे है, लेकिन स्थिति में सुधार हो रहा है.

ये भी पढ़ें-मानसून में खाने पीने का रखें खास ख्याल

5. कैंसरजनक कारणों और परिस्थितियों में वृद्धि: इन्हें कार्सिनोजन कहा जाता है.

कैंसर क्या है?

किसी भी अंग की किसी कोशिका के असामान्य और असंयमित वृद्धि और बाद में उस के शरीर के अन्य अंगों में फैलने से उत्पन्न होने वाले रोग को कैंसर कहते हैं.

मानव शरीर की सूक्ष्म संरचना और कार्यप्रणाली को समझने से यह परिभाषा और भी स्पष्ट होगी. एक वयस्क मनुष्य का शरीर लगभग सौ ट्रिलियन कोशिकाओं से निर्मित है. प्रत्येक कोशिका का जन्म, विकास, वृद्धि, उस के अंदर चलने वाली सैकड़ों प्रकार की प्रक्रियाएं, विभाजन की संख्या और मृत्यु आदि एक अनुशासन के अंतर्गत सुचारु रूप से निरंतर चलती रहती हैं. इन सारी प्रक्रियाओं का नियंत्रण कोशिकाओं के अंदर अवस्थित, क्रोमोजोम द्वारा संचालित होता है.

क्रोमोजोम, प्राणी के जीनों का संग्रह है. जीन की  संख्या प्रत्येक प्राणी में निश्चित होती है. मानव में इन की संख्या 46 है. जीन की संरचना डीएनए नामक प्रोटीन के अणुओं के संगठन से होती है. प्रत्येक व्यक्ति के जीन में ये अणु अलगअलग प्रकार से संगठित होते हैं. इस प्रकार यह उस व्यक्ति की जेनेटिक पहचान बन जाती है. कुछ विशेष परिस्थितियों में क्रोमोजोम की संरचना में बदलाव या म्यूटेशन होने की संभावना रहती है.

ऐसा होने पर वह कोशिका नियंत्रणविहीन हो कर, पागलों जैसा मनमाना व्यवहार करने लगती है. उस की वृद्धि और विभाजन दर की कोई सीमा नहीं रह जाती. कोशिका के इस परिवर्तन को मैलीग्नेंट चेंज या कार्सिनोजेनेसिस कहा जाता है.

तेजी से बढ़ती हुई इन कोशिकाओं का समूह, उस स्थान पर एक गांठ या ट्यूमर का रूप ले लेता है, जिसे मैलीग्नेंट ट्यूमर या कैंसर कहते हैं.

ये भी पढ़ें-बारिश के मौसम में कैसे रखें अपनी सेहत का ध्यान…

प्रारंभ में यह ट्यूमर कठोर और दर्दहीन होता है. कुछ ही दिनों में निरंतर बढ़ती हुई यह गांठ फट कर, उस स्थान पर एक घाव या अल्सर बन सकता  है, जिस में संक्रमण होने की पूरी संभावना रहती है, और तब वहां एक भयानक, बदबूदार  घाव बन जाता है. उस से खून भी बह सकता है.

तेजी से  वृद्धि करती हुई इन कोशिकाओं को अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसे वह शरीर की सामान्य   कोशिकाओं को  मिलने  वाली ऊर्जा को अपनी ओर खींच कर प्राप्त कर लेती है. फलस्वरूप, धीरेधीरे पूरा शरीर क्षीणकाय, शक्तिहीन और कमजोर पड़ने लगता है.

देखते ही देखते इनफिल्ट्रेशन की प्रक्रिया द्वारा कैंसर उस पूरे अंग में फैल जाता है. इन असामान्य कोशिकाओं को  अपने मूल स्थान से अलग हो कर रक्त प्रवाह या अन्य माध्यमों से शरीर के किसी भी भाग में पहुंच कर, वहां बस जाने की और  वृद्धि करने की क्षमता होती है. इस प्रकार कैंसर का प्रसार या मेटास्टेसिस शरीर के अन्य अंगों में होने लगता है.

कैंसर कोशिकाओं से कुछ विशिष्ट रसायन का स्राव हो सकता है, जिन्हें रक्त के नमूने में पहचान कर कैंसर के निदान में सहायता मिलती है. इन्हें ट्यूमर मार्कर कहा जाता है.

कुछ रोगियों में, यह भविष्य में होने वाले कैंसर से पहले ही रक्त में झलकने लगते हैं. ट्यूमर मार्कर के स्तर को माप कर उपचार के लाभ या अप्रभावी रहने का भी पता किया जा सकता है.

यह रोग किसी भी अंग में हो सकता है, लेकिन किसी देश, क्षेत्र या समुदाय में विभिन्न कारणों से किसी अंग विशेष में कैंसर की अधिकता हो सकती है.

उदाहरण के लिए भारत में मुख गुहा यानी मुंह के अंदर और गर्भाशय ग्रीवा का, अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों में स्तन का, जापान में अमाशय का, अफ्रीकी देशों में लिवर के कैंसर का ज्यादा प्रकोप देखने में आता है.

कैंसर का कारण

निःसन्देह, शरीर की कोशिका के अंदर अवस्थित क्रोमोजोम की संरचना में म्यूटेशन या बदलाव ही कैंसर का मूल कारण है. इस म्यूटेशन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे

1. आनुवांशिकता: कुछ कैंसर आनुवांशिक या खानदानी होते हैं. किसी अंग की कोशिकाओं के क्रोमोजोम में आनुवांशिक रूप से मैलीग्नेंट परिवर्तन होने की संभावना विद्यमान रहती है. उस अंग की किसी एक या एक से ज्यादा कोशिकाओं में, कभी भी यह परिवर्तन हो सकता है.

इस प्रकार की संभावना वाले व्यक्ति के उस अंग से कुछ टिशू निकाल कर कोशिका में उस प्रकार की संभावना का जेनेटिक अध्ययन किया जा सकता है. यह जांच बहुत कम स्थानों में होती है और यह बहुत महंगी भी है.

उदाहरण के लिए, स्तन कैंसर के आनुवांशिक होने का खतरा बहुत ज्यादा रहता है. जिस महिला की नानी, मां, मौसी या बहन को स्तन कैंसर होने का इतिहास हो, उस महिला में आम महिलाओं से कई गुना ज्यादा स्तन कैंसर होने का खतरा रहता है.

पाश्च्यात्य देशों में स्तन कैंसर का प्रकोप बहुत ज्यादा है, यहां तक कि कुछ देशों  में प्रत्येक 8 महिलाओं में एक को स्तन कैंसर होने की संभावना रहती है. उन देशों में क्रोमोजोमल अध्ययन की अच्छी सुविधा है.

यदि इस जांच में उन के स्तन की कोशिकाओं में क्रोमोजोमल पैटर्न में इस प्रकार की संभावना पाई जाती है, तो उन्हें  शल्य क्रिया द्वारा दोनों स्तनों को समय रहते निकलवा देने की सलाह दी जाती है.

कई नामीगिरामी फिल्मी हस्तियों और मौडल ने ऐसा करवाया है, जिन का  नाम मीडिया में भी आ चुका है.

2. गर्भकाल में क्रोमोजोमल गड़बड़ी: गर्भकाल में शिशु के विकास क्रम के दौरान कभीकभी किसी अंग की कोशिकाओं में क्रोमोजोमल गड़बड़ी हो सकती है, जो आगे चल कर उस अंग में कैंसर को जन्म दे सकता है, जैसे गुरदे का नेफ्रोब्लास्टोमा, आंख का रेटिनोब्लास्टोमा आदि. ये कैंसर बाल्यकाल में ही होते हैं, और अच्छी बात है कि यह आम नहीं हैं. इन का उपचार कठिन है.

3. कैंसरजनक तत्व या कार्सिनोजन: किसी भी अंग का लंबे समय तक इन से संपर्क बने रहने पर उस अंग की किसी एक या अनेक कोशिकाओं में क्रोमोजोमल पैटर्न का रुख कैंसर की ओर मुड़ सकता है या फिर कार्सिनोजेनेसिस प्रारंभ हो सकता है. कार्सिनोजन के कुछ उदाहरण यहां दिए जा रहे हैं :-

i. शरीर के अंदर का प्रतिकूल वातावरण किसी अंग विशेष में कैंसर उत्पन्न कर सकता है, जैसे- स्तन कैंसर होने की संभावना उन महिलाओं में बढ़ जाती है, जिन में ओवरी या अंडाशय से स्रावित होने वाले  इस्ट्रोजन हार्मोन का स्तन पर प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है.

यह हार्मोन महिलाओं के विकास एवं प्रजनन के लिए अत्यंत आवश्यक है. गर्भकाल  और दुग्धपान काल में इस का स्राव बंद हो जाता है. अतः निसंतान महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावना ज्यादा रहती है, साथ ही उन में भी जिन के प्रजनन काल की अवधि लंबी होती है यानी जिन में कम उम्र में मासिक शुरू हो कर देर से रजोनिवृत्ति होती है.
पुरुषों में भी प्रोस्टेट या पौरुष ग्रंथि के कैंसर में उन के सैक्स हार्मोन की भूमिका मानी जाती है.

ii. विकृत जीवनशैली: अस्वास्थ्यकर जीवनशैली हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है. कैंसर के प्रारंभिक काल में हमारा रोग निरोधक तंत्र, नवजात कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने का पूरा प्रयास करता है और उन्हें विजय भी मिलते हुए पाया गया है. एड्स से संक्रमित व्यक्ति में रोग निरोधक क्षमता का अभाव हो जाता है, अतः उन में ल्यूकीमिया और कुछ अन्य प्रकार के कैंसर होने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है. कैंसर से बचाव के लिए स्वस्थ्य जीवनशैली को अंगीकृत करना आवश्यक है.

iii. प्रदूषित वातावरण: मोटर वाहन से उत्सर्जित पेट्रोलियम का धूम्र, कारखानों से उत्सर्जित कुछ हानिकारक गैसें व निकेल, एसबेस्टस आदि के कणों से प्रदूषित वातावरण फेफड़े के कैंसर का कारण बन सकता है.

iv. खानपान:  हम अपने खानपान के माध्यम से असंख्य कार्सिनोजनिक पदार्थों का सेवन कर रहे हैं. कुछ रासायनिक प्रदूषण एवं मिलावट द्वारा जानेअनजाने सेवन करने को विवश हैं, तो कुछ को लत के रूप जानबूझ कर ले रहे हैं.

इस प्रकार के  खाद्य पदार्थों का उल्लेख करना आवश्यक है, जैसे- ज्यादा तले हुए उच्च हाइड्रोकार्बोनयुक्त पदार्थ और कीटनाशक, अखाद्य रंग, डब्बाबंद भोज्य को सुरक्षित रखने वाले रसायनों आदि द्वारा प्रदूषित खाद्य पदार्थों को कार्सिनोजनिक माना जाता है. सुपारी, दाल, मूंगफली जैसे अनाजों को लंबे समय तक संग्रहित रखने से एफ़्लोटोक्सिन पैदा करने वाली फफूंदी लग जाती है, जिस से लिवर का कैंसर होने का खतरा रहता है. शराब की लत से लिवर, भोजन नली व अमाशय का कैंसर हो सकता है.

v. धूम्रपान: यह मुख गुहा, कंठ, श्वास नली, भोजन नली, फेफड़े, बड़ी आंत के कैंसर का मुख्य कारक है.

vi. तंबाकू का सेवन: भारत में खैनी, गुटखा, जर्दा आदि के रूप में तंबाकू के सेवन के कारण मुख गुहा के कैंसर का प्रकोप शीर्ष पर है.

vii. व्यवसायजनक रंग और रसायन, रेडियोधर्मिता उत्सर्जन करने वाले पदार्थों से निरंतर संपर्क आदि भी कैंसर जनक होता है.

viii. जैविक कार्सिनोजन: हैपेटाइटिस बी और सी वायरस से लिवर में, एचपीवी वायरस से महिलाओं के गर्भाशय ग्रीवा में, एच पाइलोरी बैक्टीरिया से अमाशय में और सिस्टोसोमा परजीवी से मूत्राशय में कैंसर उत्पन्न हो सकता है.

निदान: कैंसर किसी भी अंग में प्रारंभ हो सकता है. शरीर के बाहरी सतह पर होने से समय रहते ध्यान में आ जाता है, परंतु भीतरी अंगों में होने से प्रारंभिक अवस्था में पता नहीं चल पाता है. लेकिन उस अंग या अवयव की कार्यप्रणाली में फर्क पड़ने से अन्य लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं.

एक कुशल चिकित्सक उन लक्षणों के आधार पर और आवश्यकतानुसार अन्य जांच जैसे  एक्स-रे, एंडोस्कोपी, अल्ट्रासोनोग्राफी, मैमोग्राफी, सिटी स्कैन, एमआरआई, खून के नमूने में रासायनिक परिवर्तन या ट्यूमर मार्कर  की जांच और अन्य स्कैनों से प्राप्त जानकारी के आधार पर  निदान करने में सफल हो जाता  है.

फिर भी, अंतिम और निश्चित निदान, उस स्थान के थोड़े से ऊतकों को सूई या एफेनेसी या शल्य क्रिया द्वारा प्राप्त कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा जांचने से ही हो सकता है. इस जांच द्वारा कैंसर का प्रकार और गंभीरता के स्तर का भी पता चलता है.

प्रसार को जानने के लिए जरूरत के मुताबिक शरीर के अन्य संदिग्ध अंगों से ऊतकों को निकाल कर जांच की जा सकती है. इन सब के आधार पर प्रत्येक कैंसर का स्तर या स्टेज निर्धारित किया जाता है और इसी स्तर के अनुसार उपचार की योजना बनाई जाती है.

उपचार निःसन्देह प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का इलाज संभव है. कैंसर विशेषज्ञ रोग की अवस्था के अनुसार उपचार की विधि तय करते हैं. किसी एक विधि या कई विधियों का सम्मिलित प्रयोग किया जा सकता है, जैसे- शल्य चिकित्सा द्वारा रोगग्रस्त अंग को पूर्णरूप से या आंशिक रूप से हटा कर, कैंसर कोशिकाओं को मारने वाली कीमोथेरेपी दवाओं के प्रयोग द्वारा, कैंसर कोशिकाओं को  रेडियोथेरेपी के विकिरण द्वारा जला कर, इम्युनोथेरेपी, हार्मोन के प्रयोग द्वारा आदि. विशेष चिकित्सा के साथ ही आवश्यकतानुसार अन्य सहायक चिकित्सा भी दी जाती है. उपचार लंबे समय तक चलता है.

बचाव-

1 – अंतर्राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ यानी यूआईसीसी ने साल 1933 में प्रत्येक 4 फरवरी को “विश्व कैंसर दिवस” मनाने का आव्हान किया है. उद्देश्य के अनुसार उस दिन सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थानों को विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा जनसाधारण की कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाना है.

2 – उचित जीवनशैली, योग, प्राणायाम, व्यायाम एवं पोषाहार के  नियमित  व्यवहार से संभावना कम हो जाती है.

3 – कैंसरकारक खाद्य पदार्थों, जैसे- प्रदूषण, मिलावटी पदार्थों व औद्योगिक रंगों से युक्त खाद्य पदार्थों आदि के बहिष्कार द्वारा हम कैंसर से बच सकते हैं.

4 – तंबाकू, धूम्रपान और शराब  का सख्त निषेध. अच्छा तो होता कि सरकार की ओर से इन पर सख्त पाबंदी की जाए. इन पदार्थों की बिक्री से प्राप्त करों से कई गुना ज्यादा उन के इलाज की व्यवस्था पर सरकार को खर्च करना पड़ रहा है, साथ ही उन व्यक्तियों की उत्पादक क्षमता से भी देश वंचित हो रहा है. यह भी देश को एक घाटा है.

5 – वयस्क व्यक्ति के वार्षिक स्वास्थ्य परीक्षण में संभावित कैंसर संबंधी जांच भी कराना आवश्यक है.

आवश्यकतानुसार ट्यूमर मार्कर व अन्य जांच भी चिकित्सक  करवा सकते हैं. जापान का उदाहरण दिया जा सकता है. वहां अमाशय के कैंसर का प्रकोप बहुत ही ज्यादा था. वहां वयस्क व्यक्तियों के स्वास्थ्य परीक्षण में अमाशय की एंडोस्कोपी जांच भी आवश्यक कर दी गई. परिणामस्वरूप प्रारंभिक अवस्था में ही इस  रोग का पता चल जाने से उपचार सहज हो गया और अब इस रोग से ग्रस्त लोगों की संख्या बहुत कम हो गई है. उसी प्रकार पाश्च्यात देशों में स्तन कैंसर की विशिष्ट जांच की व्यवस्था बनाई गई है.

6- याद रखें, प्रारंभिक अवस्था में निदान और उचित इलाज ही इस रोग की विभीषिका से बचाव का साधन है. इसलिए आवश्यक है कि निम्नलिखित  लक्षणों पर ध्यान दिया जाए और समय रहते चिकित्सक की राय ली जाए –

– नवजात शिशु में या बाल्यकाल में शरीर के किसी भाग में कोई सूजन, बिना कारण निरंतर बुखार, मल या मूत्र में रक्त का आना आदि कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– महिलाओं को, विशेषकर 30 वर्ष की उम्र के बाद स्तन की स्वयं जांच करने में किसी भी प्रकार की गांठ का अनुभव, आकार में परिवर्तन, निपल का अंदर धंसना या किसी ओर झुकना, त्वचा के रंग में परिवर्तन या सिकुड़न, निपल से रक्तस्राव आदि स्तन कैंसर का लक्षण हो सकता है. रोग का पारिवारिक इतिहास यदि हो तो ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता है.

– त्वचा पर ऐसा घाव, विशेषकर पुराने स्कार पर जो लंबे समय से भर न रहा हो, बल्कि फैल रहा हो या कोई गांठ, जो कठोर और दर्दविहीन हो और निरंतर बढ़ रही हो या काले तिल में खुजली, आकार में वृद्धि या उभार प्रारंभ हो रहा हो.

– किसी भी आयु  में अकारण किसी एक हड्डी में सूजन और दर्द हड्डी के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– महिलापुरुष दोनों की वयस्क अवस्था में बिना किसी ज्ञात कारण के कमजोरी, भूख का अभाव, वजन घटना, खून की कमी प्रारंभिक लक्षण हो सकता है.

– मूत्र मार्ग से पेशाब के साथ बिना पीड़ा के रक्तस्राव, गुदा मार्ग से पीड़ारहित रक्तस्राव या शौच क्रिया में परिवर्तन जैसे बारबार जाना, मल के साथ म्यूकस का आना या निरंतर बढ़ता हुआ कब्ज इत्यादि, क्रमशः मूत्र संस्थान या बड़ी आंत के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– जिन्हें तंबाकू, गुटखा, धूम्रपान  आदि की लत हो, उन के मुख गुहा के अंदर लंबे समय से घाव का बने रहना, मुख गुहा का पूरी तरह से नहीं खुलना या  सफेद या लाल छाला पड़ना  कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– घुटकने में भोजन नली में रुकावट लगना, जिस की तीव्रता धीरेधीरे बढ़ रही हो, भोजन नली के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– धूम्रपान की लत वाले व्यक्ति में निरंतर खांसी और खांसी के साथ बलगम में खून आना या छाती में दर्द आदि फेंफड़े, श्वास नली या ध्वनि यंत्र के कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

– वयस्क को भोजन में अरुचि के साथसाथ खाने के कुछ समय बाद वमन होना और वमन में पिछले दिन के खाए हुए अन्न के दाने का रहना अमाशय के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– वयस्क महिला में दुर्गंधयुक्त रक्त प्रदर, गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

– वयस्क में उत्तरोत्तर बढ़ती हुई पीड़ारहित जौंडिस पित्त की थैली, नली, पैंक्रियाज और लिवर के कैंसर का लक्षण हो सकता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...