गोरख पांडे की इस कविता “राजा बोला रात है, रानी बोली रात है, यह सुबह सुबह की बात है” की प्रासंगिकता ऐसे समय के लिए फिट बैठती है जब लोगों को सिर्फ भेड़ बकरियों की तरह हंकवाया जाता है. जो ऊपर से कहा जाता है उसे ही अंतिम सत्य मान लिया जाता है. फिर उन सवालों की एहमियत ख़त्म कर दी जाती है जिनका जवाब जानने का सभी को पूरा हक है.
भारत में कोविड-19 का पहला मामला 30 जनवरी को आया था. इसके बाद लगातार मामले बढ़ने लगे थे. किन्तु प्रधानमंत्री मोदी लगभग डेढ़ महीने बाद 19 मार्च को कोरोना संक्रमण पर बात रखने आते हैं. आए तो आए पुरे देश को तालीथाली वाले मदारी के खेल में उलझा गए. इससे पहले 12, फरवरी को राहुल गाँधी ट्वीट के जरिये प्रधानमंत्री को कोरोना के खतरे को लेकर आगाह कर चुके थे. लेकिन सोशल मीडिया और मीडिया ट्रॉल्लिंग के जरिये उस दौरान उनका मखोल बनाया गया.
यही नहीं पुरे देश में लगे लाकडाउन की शुरुआत से ही राहुल गाँधी ने सरकार पर सवाल करने शुरू कर दिए थे. उन्होंने बाकायदा वीडियो कांफ्रेस्सिंग के जरिये यह बात मुखर तरीके से कही कि “तालाबंदी कोरोना की गति धीमी करता है, किन्तु यह कोरोना संक्रमण का समाधान नहीं है. इसे रोकने के लिए ‘मास टेस्टिंग’ किया जाना जरूरी है.” लेकिन उन पर कटाक्ष किया जाने लगा, उन्हें इटली जाने की नसीहत दी जाने लगी.
जबकि डब्ल्यूएचओ इस बात को मार्च के बीच में पहले ही कह चुका था कि कोरोना संक्रमण को अगर रोकना है तो टेस्टिंग पर जोर देने की सख्त जरुरत है. तो आईसीएमआर ने उस दौरान इस पर कहा कि यह भारत पर अप्लाई नहीं करता. जाहिर है भारत पूरी तरह लाकडाउन के भरोसे बैठे हुआ था. मोदीजी टीवी चेनल में जब आए तो लच्छेदार भाषण, आडम्बर और रिटोरिक के अलावा कुछ नहीं होता था. उनके भाषणों में टेस्टिंग को लेकर आकड़े पूरी तरह नदारत रहते थे. तालाबंदी के अलावा कोई रणनीति उनके समझ के परे की बात लगती थी. उनसे तालाबंदी से उपजे प्रवासी बेरोजगारी और भुखमरी पर सवाल किया जाता तो वे दियाटोर्च जलाने की बात करते वहीँ स्वास्थ्य कर्मियों की सुविधाओ पर सवाल होते तो फूल बरसाने की करते.