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अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिए

दूसरे अंक में आप ने पढ़ा था : बछिया के जन्म से 26 हफ्ते तक के उस के फीडिंग शैड्यूल में दूध, काफ स्टार्टर, सूखी और हरी घास की मात्रा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. काफ स्टार्टर को घर पर ही बनाया जा सकता है, जो ज्यादा पौष्टिक व सस्ता पड़ता है. बछिया के 9वें महीने से 24वें महीने तक के उस के खाने में रातिब भी बहुत अहम होता, ताकि वजन सही रहे. अब पढि़ए आगे…

आप की औसर अब 2 साल की हो चुकी है. उस का वजन 260 किलोग्राम हो चुका है और उस के जननांग भी पूर्ण विकसित हो चुके हैं. वह पहली हीट के लक्षण भी दिखा रही है, मगर आप को यह हीट छोड़ देनी है.

1.गाय ऋतुचक्र : यह 21 दिन का होता है, मगर इस की रेंज 18 से 24 दिन होती है. नियत समय पर गाय फिर से हीट में आती है तो आप को दूसरी हीट भी छोड़ देनी है और तीसरी हीट का इंतजार करना है.

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इस दौरान उसे 16 किलोग्राम हरा चारा,1 किलोग्राम भूसा और ढाई किलोग्राम रातिब मिश्रण देते रहना है. मगर अब रातिब मिश्रण में क्रूड प्रोटीन की मात्रा 16 फीसदी भी सही होगी.

2.ऐसा मान लीजिए कि 2 साल पौने 3 महीने की उम्र होने पर उस ने तीसरी हीट के लक्षण दिखाए, तो अब उसे गाभिन कराने का सही समय आ गया है.

3.किसी अच्छे कृत्रिम गर्भाधानकर्ता की मदद से उसे अच्छी पेडिग्री वाले सांड़ के वीर्य से ही गाभिन करवाना है. कृत्रिम गर्भाधान होने के बाद औसर को किसी भी तरह के तनाव में नहीं आने देना है.

4.अब उस के अंदर 2 चीजें एकसाथ चलेंगी. एक तो उस की खुद की वृद्धि हो रही होगी, दूसरे उस के अंदर एक नया जीवन भी पनपने लगेगा. गर्भाधान के पहले 6 महीने तक किसी अतिरिक्त पोषण की जरूरत नहीं है.

5.अब औसर की उम्र 33 महीने है और इस दौरान उस का वजन बढ़ कर 350 किलोग्राम हो चुका है. अब गर्भ की उचित बढ़वार के लिए उसे कुछ अतिरिक्त पोषण की जरूरत है.

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6.34वें महीने (गर्भकाल के 7वें महीने) में उसे 16 किलोग्राम हरा चारा, 1 किलोग्राम भूसा और 3 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे.

7.35वें महीने (गर्भकाल के 8वें महीने) में उसे 16 किलोग्राम हरा चारा, 1 किलोग्राम भूसा और साढ़े 3 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन तथा रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे.

8.36वें महीने (गर्भकाल के 9वें महीने) में उसे 16 किलोग्राम हरा चारा, 1 किलोग्राम भूसा और 4 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे.

9.16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर 40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को भलीभांति मिलाने की जरूरत होगी.

10.36 महीने पूरे होतेहोते आप की गाय लगभग 4 क्विंटल की हो चुकी होगी और अब एक नए जीवन को जन्म देगी. चूंकि इस की खिलाईपिलाई संतोषजनक हुई है, इसलिए यह जो बच्चा देगी उस का वजन भी 25 से 30 किलोग्राम के बीच होना चाहिए.

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आप के घर में बछिया और बछड़ा आने की संभावनाएं आधीआधी हैं. अगर बछिया आई तो आप के चेहरे पर मुसकान आना भी निश्चित है और अगर बछड़ा आया तो भी निराश होने की जरूरत नहीं है. यही बछड़ा बड़ा हो कर गौवंश को आगे बढ़ाएगा. वीर्यदान करने के लिए ‘विकी डोनर’ भी तो चाहिए कि नहीं?

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अगर बछड़ा हुआ तो उस बछड़े का भी उतना ही ध्यान रखना है, जितना बछिया का रखते होंगे. अगर सभी बछड़े मर गए या यों कहिए कि मार दिए गए तो ‘विकी डोनर’ कौन बनेगा? जब ‘विकी डोनर’ खत्म हो जाएंगे तो क्या वीर्य के लिए विदेशों पर निर्भर रहोगे? नहीं. हमें खुद ही सक्षम बनना होगा.

मानसून स्पेशल: इम्यून बॉडी है हेल्थ का राज, जानें कैसे बढ़ा सकते हैं इम्यूनिटी

स्वस्थ रहने की पहली शर्त यह है कि शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता हो. शरीर बीमार न पड़े, यह अच्छी बात है, लेकिन ऐसा होता नहीं है. शरीर में मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है तो बीमारी आप को दबोच लेगी. यानी बीमार पड़ने और बीमार न पड़ने के बीच की सब से मजबूत दीवार है रोग प्रतिरोधक क्षमता या बौडी इम्यून. जिस का बौडी इम्यून जितना ताकतवर होगा उस के सेहतमंद रहने और लंबी उम्र तक जीने के उतने ही ज्यादा आसार होंगे.

आज की तेज रफ्तार जीवनशैली ने इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता को पहले के मुकाबले कमजोर कर दिया है. नियमित ऐक्सरसाइज, संतुलित आहार व समय पर भोजन के चौतरफा सुझाव मिलते हैं ताकि मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहा जा सके लेकिन मल्टीनैशनल कल्चर के इस दौर में हम अपने खानपान व सेहत संबंधी कार्यक्रमों को जानतेबूझते हुए भी नियमित व अनुशासित नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी का कमजोर होना स्वाभाविक है. नतीजतन, शरीर में विभिन्न प्रकार के भौतिक व पर्यावरणीय तनावों को सह पाने की क्षमता नहीं होती.

आज अनुशासित जीवन जीना बहुत ज्यादा कठिन है फिर भी अगर बेहतर स्वास्थ्य चाहिए तो इस कठिन अनुशासन को भी अपनाना ही पड़ेगा. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम अपने शरीर को रोग प्रतरोधात्मक क्षमता के नजरिए से ऐसा बनाएं कि वह तमाम रोगों से लड़ सके और उन्हें शरीर में प्रविष्ट न होने दे. इस के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपनी सेहत, जीवनशैली और कार्यस्थल के माहौल पर विशेष ध्यान दे.

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मजबूत प्रतिरोधात्मक क्षमता

दरअसल, जब शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता कम होती है तो तापमान के गिरने या बढ़ने से या संक्रामक रोगों के फैलने से हम फौरन बीमार पड़ जाते हैं जबकि जिन की प्रतिरोधात्मक क्षमता मजबूत होती है वे कभीकभार ही बीमार पड़ते हैं. यह सही है कि इम्यूनिटी काफी हद तक वंशानुगत यानी जैनेटिक होती है लेकिन हमारे वातावरण में जो कीटाणु यानी जर्म्स होते हैं उन का सामना करने से यह बढ़ जाती है. जितने अधिक प्रकारों के कीटाणुओं का हम सामना करेंगे जाहिर है उतना ही मजबूत हमारा इम्यून सिस्टम हो जाएगा क्योंकि हमारा शरीर न केवल कीटाणुओं को पहचानने लगेगा बल्कि उन का प्रतिरोध भी करने लगेगा. इसलिए टीकाकरण महत्त्वपूर्ण हो जाता है. टीकाकरण के अतिरिक्त कोई और जरिया नहीं है जिस से विरासत में मिली इम्यूनिटी को मजबूत किया जा सके. लेकिन हम अपने वातावरण को जरूर परिवर्तित कर सकते हैं.

इम्यून कोशिकाएं शरीर में त्वचा से ले कर अंदर तक सभी जगह होती हैं. आमतौर से वयस्कों का इम्यून सिस्टम बहुत मजबूत होता है जिस में हजारों कीटाणुओं की मेमोरी होती है. लेकिन पर्यावरण की वजह से इन इम्यून कोशिकाओं का स्तर प्रभावित हो सकता है और अध्ययनों से मालूम हुआ है कि अस्वस्थ जीवनशैली, कान व तनाव भी इम्यूनिटी को कम कर देते हैं. शायद यही वजह है कि मधुमेह या डायबिटीज व हृदय रोगों को ‘जीवनशैली रोग’ कहा जाता है. यह अच्छी बात है कि जीवनशैली रोगों से हम अपनी जीवनशैली में सुधार कर के अच्छी तरह से निबट सकते हैं क्योंकि इस के जरिए हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ा सकते हैं.

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सक्रिय जीवनशैली सेहत के लिए हमेशा अच्छी होती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते भी हैं कि आप दिन में कम से कम आधा घंटा कोई न कोई ऐसा काम अवश्य करें जिस से शरीर हरकत में रहे, जैसे

तेज चहलकदमी करना, जिम, स्पोर्ट्स, साइकिलिंग, ऐरोबिक्स इत्यादि. ऐक्सरसाइज का सब से बड़ा फायदा यह है कि पसीने के जरिए शरीर से जहरीले पदार्थ यानी टौक्सिन बाहर निकल जाते हैं और शरीर के भीतर एंड्रोफिन्स हार्मोन जारी होते हैं जो तनाव स्तर को नियंत्रित रखते हैं. ध्यान रहे कि तनाव से इम्यूनिटी बहुत अधिक प्रभावित होती है. ऐक्सरसाइज का चयन हमेशा अपनी आयुवर्ग व खानपान के हिसाब से करें.

पुरानी कहावत पूरी तरह से सही है कि ‘हम जैसा खाएंगे अन्न वैसा ही बनेगा मन और शरीर.’ अगर हम पौष्टिक व संतुलित आहार लेते हैं तो शरीर में ऐसे लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता होगी जो संतुलित व पौष्टिक भोजन नहीं लेते.

संतुलित आहार

पौष्टिक और संतुलित भोजन हमें रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है. संतुलित आहार का अर्थ है वह भोजन जिस में सब्जियों और प्रोटीन का अच्छा मिश्रण होता है. पौष्टिक आहार का अर्थ है, ऐसा भोजन जिस में पर्याप्त मात्रा में विटामिंस व खनिज मौजूद हों ताकि शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को मजबूत किया जा सके. जिन फूड्स में विटामिन ए, बी, सी व ई, फोलेट और कैरोनाइड्स व खनिज जैसे जिंक, क्रोमियम व सेलिनियम होते हैं वे न केवल इम्यूनिटी बढ़ाते हैं बल्कि स्वस्थ इम्यून सिस्टम के लिए भी जरूरी हैं. प्रोटीन के लिए चिकन, फिश और दाल (विशेष रूप से मूंग व मसूर) खाएं ताकि शरीर को ईंधन मिले. विटामिन सी के लिए संतरा, मौसमी, आंवला, नीबू आदि लें और अपनी इम्यूनिटी का स्तर बढ़ाएं.

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शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में 5 खाद्य  पदार्थों को 5 वंडर फूड्स की संज्ञा दी गई है. इस में दही को पहले नंबर पर इसलिए रखा गया है कि वह प्रोबायोटिक्स, अच्छे बैक्टीरिया जो पाचन में मदद करते हैं, का अच्छा स्रोत है. बाकी अन्य 4 फूड्स हैं – संतरा, पालक, मछली व नट्स.

वहीं, यह भी आवश्यक है कि जो भी फूड्स हम लें वे ताजे अवश्य हों. रैफ्रिजरेटर में रखे या प्रोसैस्ड फूड सांस व पेट की परेशानियां पैदा कर सकते हैं. दमा या कुछ प्रकार की एलर्जियां पहले विरासत में मिले रोग समझे जाते थे लेकिन अब ये जीवनशैली रोगों में शामिल हो गए हैं क्योंकि हम ऐसी चीजें खाने लगे हैं जिन में कृत्रिम रंग या प्रिजर्वेटिव्स होते हैं.

संतुलित जीवन

इम्यूनिटी का मन व शरीर से गहरा संबंध है. अगर हम तनावग्रस्त होंगे तो बहुत आसानी से हमें संक्रामक रोग पकड़ लेंगे. डिप्रैशन या तनावग्रस्त होने पर हम अपने आहार और जीवनशैली पर भी ध्यान नहीं दे पाते. मानसिक थकान की वजह से नींद नहीं आती और हम रोगों से लड़ने के लायक नहीं रहते. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि तनाव को नियंत्रित रखें या तनावमुक्त रहें. तनावमुक्त रहने के लिए यह सुनिश्चित करें कि रोजमर्रा की स्थितियों पर हमारी प्रतिक्रिया संतुलित हो. हास्य, ऐक्सरसाइज व सैक्स के जरिए हम अपने मस्तिष्क में अच्छे रसायनों का स्तर बढ़ा सकते हैं और तनावमुक्त रह सकते हैं.

बहरहाल, ऐक्सरसाइज, संतुलित व पौष्टिक आहार और तनावमुक्त रहने से हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता या इम्यूनिटी को मजबूत कर लेते हैं और इस तरह हमारा शरीर ऐसा कवच बन जाता है जो हमें रोगों से दूर रखता है, फिर चाहे मौसम का मिजाज कितना ही बदलता रहे.

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विशेषज्ञों का कहना है कि दिन में 3 बार पेट भर कर खाने से बेहतर है छोटेछोटे मील दिन में 4 या 5 बार लिए जाएं जिन में विशेष रूप से फल, सब्जियां, ओमेगा-3 युक्त मछली, थोड़ा सा जैतून का तेल विशेष रूप से शामिल हो. अदरक व लहसुन को नियमित सप्लीमैंट के तौर पर लेना चाहिए. यह भी सुनिश्चित कर लें कि हमें पर्याप्त मात्रा में ऐंटीऔक्सिडैंट विटामिन सी और ई मिल रहे हैं. सक्रिय जीवनशैली भी बहुत जरूरी है.

Hyundai Grand i10 Nios: Exterior

हुंडई ग्रैंड आई 10 निओस एक स्पोर्टी कार है जो हर तरह से आरामदायक है, जिसे प्रमाण की कोई आवश्यकता नही है. एक बोल्ड, ग्लॉसी ब्लैक, कैस्केडिंग ग्रिल के साथ स्वेप्ट-बैक प्रोजेक्टर हेडलैम्प्स आपको आकर्षित करती हैं. साथ ही Boomerang के आकार का LED DRLs  और प्रोजेक्टर फॉग लैंप एड कैरेक्टर को फ्रंट-एंड से जोड़ते हैं.

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Hyundai Grand i10 Nios मे कोई बुरा एंगल नहीं है, ये आपकी सहूलियत के हिसाब से फिट बैठता है. इसीलिए हुंडई ग्रैंड आई 10 Nios निश्चित रूप से #MakesYouFeelAlive.

BIGG BOSS 14 के लिए सलमान खान लेंगे इतने करोड़! लॉकडाउन के बाद भी बढ़ी फीस

बॉलीवुड में हमेशा जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत ही चरितार्थ होती रही है. फिर चाहे वह किसी कलाकार के पारिश्रमिक का मसला हो अथवा छोटे बड़े किरदार का मिलना हो या  सीरियल में अभिनय का मसला हो. जो सफल है, जो ताकतवर है, उनकी हर बात मानी जाती है.

एक कटु सत्य है. कोरोनावायरस व लॉकडाउन की वजह से पूरे 3 महीने तक  फिल्म टीवी सीरियल और वेब सीरीज की शूटिंग बंद रही. कोरोना महामारी अभी भी अपने चरम पर है. मगर ब्रॉडकास्टर को विज्ञापन से जो नुकसान हो रहा था उसके चलते सभी ब्रॉड कॉस्टर ने सीरियल निर्माताओं पर दबाव डाला और फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से बात करके शूटिंग शुरू करने की इजाजत ले ली. महाराष्ट्र सरकार ने 31 मई को शूटिंग शुरू करने की इजाजत दे दी थी. मगर शूटिंग शुरू नहीं हो हो पा रही थी, क्योंकि ब्रॉड कास्टर यानी कि चैनल ने हर सीरियल के बजट में 30% तक की कटौती कर दी है.

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इस कटौती के चलते सीरियल के निर्माताओं ने अपने कलाकारों कि पारिश्रमिक राशि में कटौती करनी शुरू कर दी. इस पर कलाकार तैयार नहीं थे. लगभग 22 से 24 दिनों तक काफी बातचीत होती रही, अंततः कलाकार को झुकना पड़ा और कुछ कटौती के साथ 25 जून से सीरियल की शूटिंग शुरू हो सकी. कुछ कलाकारों ने अपनी फीस में कटौती करने की बजाए सीरियल को अलविदा कह दिया.

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मगर वही ब्रॉडकास्टर यानी कि चैनल सलमान खान के सामने झुक गया है. अब चैनल सलमान खान की फेसबुक कोई कटौती नहीं कर पा रहा है. सूत्रों की माने तो कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाले रियलिटी शो बिग बॉस तेरह के लिए सलमान खान को प्रति एपिसोड 14 करोड़ रुपए मिले थे. कोरोना के चलते इस फीस में कटौती होनी चाहिए थी. मगर सूत्रों की माने तो ऐसा नहीं हुआ, बल्कि सूट दावा कर रहे हैं कि बिग बॉस 14 के लिए सलमान खान को कलर्स चैनल प्रति एपिसोड 16 करोड़ रुपए दे रहा है. यानी कि सलमान खान कि अपनी सफलता है उनका अपना रुतबा है इसलिए उनकी फीस में कटौती करने की बजाय उनकी फीस बढ़ा दी गई है.

1 साल बाद ‘इश्क सुभान अल्लाह’ में नजर आएंगी असली ‘जारा’, ऐसा होगा

काश चैनल इसी तरह हर कलाकार की राशि बढ़ाई होती. क्योंकि पिछले 3 माह से सभी कलाकार घर पर बैठे हुए थे .और कलाकार ही क्यों सारे तकनीशियन और सभी वर्कर घर पर बैठे हुए थे .ऐसे में जरूरी था कि हर किसी की फीस में कुछ बढ़ोतरी की जाति, पर ऐसा नहीं हुआ. जिन कलाकारों ने फीस में कटौती स्वीकार नहीं की उन्हें सीरियल से हाथ धोना पड़ा. इसे बालू उसके अंदर का भेदभाव ही कहा जाएगा, लेकिन इस पर कोई खुलकर बोल नहीं पाता.

सुशांत की मौत के बाद सदमे में हैं अंकिता, बॉयफ्रेंड विकी जैन ने उठाया यह कदम

सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद फैंस का गुस्सा लगातार किसी न किसी पर निकल रहा है. इसी बीच लोगों ने अंकिता लोखंडे के कथित ब्यॉफ्रेंड विकी जैन पर निशाना साधते हुए उन्हें कुछ दिनों से ट्रोल कर रहे है.

बता दें कि अभिनेता के आकास्मिक मौत के बाद लोग इसे नेपोटिज्म और गुटबाजी भी कह रहे हैं. इन सभी चीजों को देखते हुए अंकिता लोखंडे के ब्यॉफ्रेंड ने एक अहम फैसला लिया है. विक्की जैन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के कमेंट बॉक्स को बंद कर दिया है. जिससे लोगों के कमेंट उन्हें परेशान नहीं करेंगे.

लोग लगातार उन्हें कमेंट करके परेशान कर रहे थें. हालांकि यह बात अंकिता लोखड़े को पता है या नहीं यह कोई नहीं जानता है लेकिन विकी जैन फैंस के कमेंट से परेशान होकर यह कदम उठाएं हैं.

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अंकिता लोखंडे एक्स ब्यॉफ्रेंड के निधन के बाद अभी तक सोशल मीडिया पर आने का हिम्मत नहीं जुटा पाई हैं. अंकिता सुशांत के मौत के बाद बहुत ज्यादा टूट गई हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है यह सब क्यों हुआ.

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बता दें कि अंकिता और सुशांत की जोड़ी को पर्दे पर खूब पसंद कि जाती थी. वहीं कुछ फैंस यह भी चाहते थे कि अंकिता और सुशांत हमेशा के लिए एक-दूसरे के हो जाए.

सुशांत और अंकिता सीरियल पवित्र रिश्ता से एक-दूसरे के करीब आए थें. सेट पर ही दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया था साथ ही सुशांत ने नेशनल टीवी पर भी अंकिता लोखड़े को प्रपोज किया था पूरी दुनिया के सामने.

 

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That day and this ♥️,yet so much to know about JHALKARI in YOU.. proud proud proud @lokhandeankita

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6 साल तक एक-दूसरे के साथ रिलेशनशिप में रहने के बाद एक-दूसरे से अलग हो गए थें, सुशांत ने कभी खुलकर अंकिता के बारे में कुछ गलत नहीं बोला तो वहीं अंकिता ने भी सुशांत के बारे में कुछ गलत नहीं कहा.

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दोनों अपने – अपने जिंदगी में आगे बढ़ने लगे थें. दोनों ने अपने रास्ते भी अलग कर दिए थें. सुशांत की शादी कि तारीख भी निकल गई थी तभी उसका अचानक छोड़कर चले जाना सभी को तोड़कर रख दिया.

 

मानसून स्पेशल: बीमारियों से बचें और ले मानसून का मजा

मानसून के शुरू होते ही गरमी से निदान मिल जाता है. युवाओं के मन में बरसात का अलग ही मजा होता है. रेन डांस से ले कर बरसात में मस्ती के तमाम रास्ते वे तलाश लेते हैं. खानेपीने की पार्टी और मस्ती के बहुत सारे फंडे युवाओं के मन में होते हैं लेकिन इस बरसात में पहले जैसी मस्ती करने को नहीं मिलेगी. इस का कारण कोरोना वायरस है जो पूरी दुनिया में फैला हुआ है. कोविड संक्रमण के दौर में बरसात में होने वाली बीमारियां और भी घातक रूप ले सकती हैं. इस का कारण यह है कि कोविड-19 के कोरोना वायरस को बरसात के दिनों में दूसरे संक्रमण का साथ मिल जाएगा. जिस से वह और भी अधिक खतरनाक रूप में बढ़ सकता है.

बरसात का मौसम सब से अलग होता है. वातावरण में हरियाली पैदा हो जाती है. ऐसे में तन और मन दोनों में उमंग भर जाती है. बरसात में भीगने के साथ ही साथ तलीभुनी चीजों के खाने का भी बहुत मन करता है. परेशानी की बात यह है कि यही चीजें बरसात में बीमारियों का भी कारण बनती हैं. ऐसे में बरसात का मजा लेने के लिए जरूरी है कि खाने और भीगने दोनों में सावधानी रखें. तभी बरसात का मजा ले पाएंगे. इस के साथ ही साथ कोरोना वायरस से भी बच कर रहना है. लखनऊ की डाक्टर मधु गुप्ता कहती हैं, ‘‘बरसात में पानी, गंदगी, मच्छरों से होने वाले संक्र्रमण से पहले भी बीमारियां बढ़ती थीं. इस बार कोविड-19 के कारण बरसात में और भी अधिक सतर्क रहने की जरूरत है.’’

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बरसात में और फैल सकता है कोविड-19

बरसात के साथ ही साथ संक्रमण से होने वाली बीमारियों की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी हो जाती है. कोविड-19 के इस दौर में यह बरसात और भी अधिक बीमारियों को लाने वाली है. कोविड-19 यानी कोरोना वायरस के लक्षण और सामान्य सर्दीजुकाम व बुखार के शुरुआती लक्षण काफी हद तक मेल खाने वाले होते हैं. गले की खराश, सांस लेने में दिक्कत, नाक का बहना, सूखी खांसी का आना बरसात के समय में मौसम के बदलने से होने वाली बीमारियां हैं. पहले इन का सामान्य इलाज हो जाता था. अब सब से पहले कोविड-19 का टैस्ट कराना होगा.

बरसात अपने साथ कई बीमारियां भी ले कर आती है. मौसम में होने वाले परिवर्तन का स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. ऐसे में यदि खानपान को ले कर थोड़ी सावधानी बरती जाए तो मौसम का आनंद उठाते हुए खुद को स्वस्थ भी रखा जा सकता है. इस मौसम में तापमान में बारबार बदलाव और उमस के कारण बीमारियां फैलाने वाले बैक्टीरिया और वायरस तेजी से पनपते हैं. इस कारण पाचनक्रिया ठीक नहीं रहती. बरसात के मौसम में इन्फैक्शन, एलर्जी, सर्दीजुकाम, डायरिया, फ्लू, वायरल जैसी पानी और हवा से होने वाली बीमारियां लोगों को घेर लेती हैं.

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खानपान और साफसफाई का रखें खयाल

बरसात के मौसम में बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है सफाई और खानपान का विशेष ध्यान रखा जाए. इस मौसम में मच्छरों से पैदा होने वाली समस्याएं सब से अधिक होती हैं. ज्यादातर बीमारियों के फैलने का कारण भी मच्छर होते हैं. मच्छरों के काटने पर उन का सलाइवा बौडी के प्रोटीन से मिल कर रिऐक्शन पैदा करता है जिस से एलर्जी शुरू हो जाती है. इस से स्किन में सूजन आ जाती है और लाल चकत्ते बन जाते हैं. उन में खुजली भी होने लगती है. ज्यादा खुजली कई बार बड़े घाव का कारण बन जाती है. बरसात के दिनों में स्किन पर होने वाली एलर्जी सब से अधिक होती है.

इस मौसम में पानी में गंदगी बढ़ जाती है. गंदे पानी और खराब खाद्य पदार्थों से भी कई रोग हो जाते हैं. इन में दस्त, हैजा, टायफाइड और प्रदूषित खाने से होने वाली बीमारियां प्रमुख हैं. खराब पानी पीने से दस्त जैसी बीमारी लग जाती है. दस्त में पेटदर्द और बुखार के साथ आंतों में सूजन आ जाती है. बुखार का जब समय पर सही तरह से इलाज नहीं मिलता तो कई बार यह टायफायड में बदल जाता है.

डेंगू और मलेरिया

मलेरिया बरसात में होने वाली आम लेकिन गंभीर संक्रामक बीमारी है जो रुके हुए पानी में पैदा होने वाले मच्छरों के काटने से होती है. यह रोग मादा ऐनाफिलिज मच्छर के काटने से फैलता है. इस से बचने के लिए अपने आसपास पानी का जमाव न होने दें. मलेरिया की ही तरह डेंगू बुखार भी मच्छरों के काटने से ही फैलता है. लेकिन डेंगू फैलाने वाले मच्छर साफ पानी में पनपते हैं. मच्छर के काटने से फैलने वाले इस रोग का प्रभाव मरीज के पूरे शरीर और जोड़ों में तेज दर्द के रूप में होता है. इस से बचने के लिए मच्छरों से बचें और घर से निकलने से पहले शरीर को पूरी तरह ढक लें.

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चिकनगुनिया भी मच्छरों से फैलने वाला बुखार है जिस का संक्रमण मरीज के शरीर के जोड़ों पर भी होता है और जोड़ों में तेज दर्द होता है. इस से बचने के लिए अपने आसपास जलभराव न होने दें. जिस से उस में पनपने वाले मच्छर बीमारी न फैला सकें.

टायफाइड

बरसात के मौसम में गंदे हाथों से खाने से संक्रमण हो जाता है जिस से टायफाइड जैसा बुखार भी हो सकता है. इस के लक्षणों में सूखी खांसी, सिरदर्द, भूख की कमी प्रमुख होते हैं. टायफाइड से बचाव के लिए रोगी को पूरा आराम करना चाहिए. पीने का पानी उबाल कर पीना चाहिए.

डायरिया

डायरिया का रोग भी बरसात में होता है. डायरिया एक बैक्टीरिया के जरिए फैलता है. डायरिया दूषित खाना ग्रहण करने से होता है. प्रदूषित पानी पीने से भी डायरिया हो जाता है. इस के लक्षणों में दस्त, थकान, बुखार शामिल हैं. डायरिया से बचाव करने के लिए बारिश के मौसम में गरम खाना खाएं तथा उबला हुआ पानी पिएं.

त्वचा संबंधी बीमारियां

बरसात के मौसम में त्वचा चिपचिप होने लगती है जिस से त्वचा में एलर्जी के साथ बैक्टीरिया पैदा होने लगते हैं. इस से त्वचा खराब होने लगती है. चोट, घाव और मच्छरों के काटने से स्किन की बीमारियां भी बहुत होती हैं. चोट और घाव को जल्दी ठीक करने के लिए बाहर जाते समय घाव को ढक कर चलें. सड़कों पर पड़े खराब पानी के संपर्क में न आएं. बाहर से आ कर स्नान जरूर करें.

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आंखों के रोग

बरसात के मौसम में आंखों की बीमारियां भी बहुत होती हैं. आई फ्लू में आंखें लाल हो जाती हैं और सूजन की वजह से आंखों में दर्द होता है. इस से बचने के लिए साफ हाथों से ही आंखों को साफ करना चाहिए. अपने खुद के तौलिए से ही शरीर को पोंछना चाहिए. आंखों को दिन में 3-4 बार साफ पानी से धोना चाहिए. यदि तब भी यह बीमारी दूर न हो तो डाक्टर को दिखाना चाहिए.

प्रायश्चित्त-भाग 3: जनार्दन और सावित्री का क्या रिश्ता था?

सावित्री के आकर्षण से भीड़ खिंचने लगी और पार्टी की छवि व उन का कद बढ़ता चला गया. अब वे पार्टी महासचिव की खास बन गई थीं. वे सफलता की सीढि़यां लांघती चली गईं, पहले एमएलसी, एमएलए, फिर एमपी. अपनी काली कमाई से नालायक बेटे को दुबई में शानदार होटल खुलवा दिया, जहां वह अपनी विदेशी गर्लफ्रैंड के साथ ऐशभरी जिंदगी जी रहा है. जब शिक्षा मंत्री बनीं तो मौडलिंग में असफल हुई बेटी, जो आत्महत्या करने को उद्दत थी, की इच्छा के अनुसार उस के नाम पर देशविदेश में फैशन डिजाइनिंग और मौडलिंग के कई कोचिंग इंस्ट्टियूट खुलवा दिए जहां हाईसोसाइटी के बच्चे कोर्स कर प्रतिभाशाली बनने की कोशिश में लगे हुए हैं.

बच्चों द्वारा की गई उपेक्षा पर मन खिन्न था, खुद को सांत्वना देते हुए सोचा. शायद बच्चों को इस बात का पता ही न हो, जनार्दनजी ने बताया भी है कि नहीं? चलो, मैं ही बात कर लेती हूं बच्चों से. तभी याद आया कि उन का मोबाइल भी तो पुलिस वालों ने रख लिया है अपने पास. इस तरह के उलटेसीधे खयाल आते रहे इन 24 घंटों में. अगले दिन जब समय कटना मुश्किल हो गया तो सोचा अखबार ही पढ़ लिया जाए. आवाज लगा कर अखबार मंगवाया तो एक कर्मचारी ने एक दिन पुराना मुड़ातुड़ा

अखबार ला कर सामने रख दिया. बड़े बेमन से बासी खबर पढ़ने के लिए अखबार खोला. अखबार के मुख्यपृष्ठ पर छपा था. ‘ड्रग्सघोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद सांसद सावित्री देवी को लोकसभा से अयोग्य ठहराया गया. चुनाव के नए नियमों के अनुसार, सांसद सावित्री देवी की लोकसभा की सदस्यता समाप्त होने के साथसाथ अब वे अगले 11 साल तक लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगी. लोकसभा के महासचिव ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है.’ आम जनता के साथसाथ देश की सभी पार्टियों ने कोर्ट के इस निष्पक्ष फैसले का स्वागत किया है. आगे लिखा था, ‘कोर्ट के इस फैसले से जाहिर होता है कि आज की जनता जागरूक हो चुकी है. वह भ्रष्टाचार और घोटालों को कतई बरदाश्त नहीं कर सकती. जनता जिसे सिर पर बैठाती है, गलती करने पर उसे कदमों तले भी रख सकती है. सीबीआई द्वारा सावित्री देवी की देशविदेश में संचित चलअचल संपत्ति पर छापा मारा जा रहा है.’

एक झटका सा लगा उन्हें. फिर संभल कर सोचने लगीं, सब प्रतिद्वंदी पार्टियों की करतूत है मेरी छवि खराब करने के लिए.

तभी उन की नजर नीचे लिखी एक दूसरी खबर पर पड़ी जिस में एक प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर ‘बढ़ते कदम’ के महासचिव ने यह घोषणा की कि हमारी पार्टी सदैव से देश की निस्वार्थ सेवा करने वाली पार्टी रही है. ऐसे में भ्रष्टाचार में लिप्त किसी भी सदस्य को पार्टी माफ नहीं करेगी. मैं मीडिया के माध्यम से जनता को बताना चाहता हूं कि भ्रष्टाचार की दोषी सांसद सावित्री देवी को पार्टी से निष्कासित किया जाता है. मीडिया के पूछने पर कि अब पार्टी में उन का रिक्त स्थान कौन भरेगा? महासचिव का उत्तर था- ‘पार्टी और जनता के सेवक सच्चे जनार्दनजी.’

सन्न रह गईं इस खबर को पढ़ कर. ‘ओह, तो यह बात है. अब समझ में आया कि जनार्दन क्यों नहीं आया इस बार मुझ से मिलने, कितनी गहरी चाल चली उस ने, मेरे सामने सोने की थाली परोस कर पीछे से छुरा घोंप दिया उस ने’ अचानक ही उन के मुंह से निकल गया. जनार्दन तो उस के सामने कुछ था ही नहीं, सिर्फ एक कार्यकर्ता (दलाल) भर था पार्टी का, जिस ने न कभी चंदा जुटाया और न कभी अपना एक पैसा ही खर्च किया. हां, पिछले कुछ दिनों में उन के नाम का फायदा उठा कर अपनी संपत्ति और अच्छीखासी पहचान बना ली थी.

याद आने लगे 20 वर्ष पुराने वे दिन जब पार्टी के नए सदस्य के रूप में उन्होंने शपथ ग्रहण की थी. किस तरह दिनरात एक कर के चंदा जुटाया करती थीं, सदस्यों की संख्या बढ़ाने और पार्टी को जिताने के लिए कैसेकैसे लोगों से मिलना पड़ा, क्याक्या समझौते किए, कितने पापड़ बेलने पड़े थे उन्हें. आंखों से आंसू अविरल बहने लगे. आंसुओं के बह जाने से जब मन थोड़ा शांत हुआ, सोचने लगीं कि जनार्दन ने उन्हें ऊपर उठाने में अपना कंधा दिया था, आज मौका देख कर वह उन के कंधों का सहारा ले कर ऊपर चढ़ गया तो कौन सा बुरा किया. चलो जनार्दन तो पराया था पर बच्चे, उन्हें तो मैं ने जन्म दिया है. पति की इच्छा के विरुद्ध जा कर हर सुखसुविधा जुटाई, उन की हर मनमानी को पूरा किया. अगर वे चाहते तो फ्लाइट से जरूर पहुंच सकते थे संकट की इस घड़ी में. दोनों बच्चों के चेहरे एकबारगी आंखों के सामने घूम गए. फिर खुद मन ने ही उन से कहना शुरू किया, ‘कौन से बच्चे, किस के बच्चे? ‘नमन और नीना?’ तुम ने उन्हें एक मां बन कर बच्चों की तरह पाला कहां? सहीगलत, उचितअनुचित की पहचान कराने की जगह पति के आदर्शों, विचारों को तुच्छ दिखाने के लिए उन की हर इच्छा को पूरी कर पति के खिलाफ एक हथियार की तरह प्रयोग किया.’ बात में सचाई थी. मन विक्षोभ से भर उठा अपनेआप पर.

एक दिन और निकल गया जेल में. अकेलापन खाए जा रहा था. तभी पता नहीं क्यों राजन की याद आने लगी उन्हें. याद आने लगा राजन का स्नेह, सादगीपूर्ण व्यवहार और आदर्शवादी बातें. कितनी सचाई थी उन की बातों में कि गलत काम कर के पैसा कमाना गुनाह है. गुनाह ही तो किया था उन्होंने अभी तक. महसूस होने लगा था राजन का अकेलापन, उन का तिलतिल कर घुटना. ऐसा नहीं था कि राजन ने उन्हें समझाने की चेष्टा नहीं की हो. जब पार्टी से पहली बार चुनाव लड़ने का टिकट मिला था तभी कहा था, ‘सावित्री, राजनीति की दलदल में पैर मत रखो. एक बार घुस गई तो जितना निकलने की कोशिश करोगी उतना ही फंसती चली जाओगी.’

‘आप जलते हैं मेरी कामयाबियों से’ कह कर उन्हें झटक दिया था तब. उस के बाद से राजन गुमसुम रहने लगे थे पत्नीबच्चों से कट कर. ज्यादा समय घर से बाहर बिताते, गम भुलाने के लिए कभीकभी पीने भी लगे थे. इतना अंदाज तो सावित्री को भी हो गया था. फिर एक दिन सावित्री को जनार्दन ने बताया कि राजन साहब आजकल अकसर किसी औरत के साथ अपनी दुकान पर बैठे बातें करते रहते हैं, यह ठीक नहीं है पार्टी और उन के हित में. सुन कर आगबबूला हो गईं. कारण, चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में राजन का किसी अन्य स्त्री से ज्यादा बातें करना या नजदीकियां बढ़ाना उन के लिए महंगा साबित हो सकता है.

किसी तरह खुद को संयत किया. पता लगवाया उस औरत के विषय में. पता चला किसी प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका है, कांति नाम है उस का, पति एक दुर्घटना में अपंग हो कर बिस्तर पर पड़ा हुआ है. वह पति की दवाई के सिलसिले में अकसर दुकान पर आती रहती है. एक बार पैसे की तंगी होने पर राजन ने उसे कुछ दवाएं उधार में दे दीं. तनख्वाह मिलने पर वह पैसे चुकाने आई तो धन्यवाद के रूप में अपने हाथ की बनी खीर लेती आई. राजन को खीर बहुत पसंद आई.

इस तरह दोनों के बीच कुछ लगाव उत्पन्न हो गया था. आपस में बातें कर के वे अपना मन हलका कर लिया करते थे. बात ज्यादा गंभीर नहीं थी पर कांति में उन्हें अपनी सौतन दिखी, अपना राजनीतिक भविष्य डूबता हुआ नजर आया. चुपचाप भेज दिया अपने शागिर्दों को उस के पास डरानेधमकाने. अगली सुबह ही कांति का तबादला करवा दिया किसी अनजान सुदूर क्षेत्र में. इस घटना के बाद राजन गांव चले गए थे अपने अम्माबाबूजी के पास. वहां जिंदगी कैसे चल रही होगी, यह सावित्री को पता नहीं था और न जानने की उत्सुकता थी. कुछ दिन बाद एक सिपाही ने आ कर सूचना दी, ‘‘मैडम, आप से कोई मिलने आया है.’’‘‘नहीं मिलना है मुझे किसी से,’’ विरक्त भाव से कह तो दिया सावित्री ने पर नाम पूछना न भूलीं.

‘‘जी, राजन नाम है,’’ सिपाही के कहने पर सहसा विश्वास नहीं हुआ उन्हें. पैर तेजी से बढ़े आगंतुक से मिलने को पर एकाएक ठिठक भी गए.

किस मुंह से जाऊं राजन के पास? हिम्मत नहीं हो रही थी. मन ग्लानि से भर गया था अपने किए गए कुकर्मों को सोच कर. लोग क्षेत्र, जाति, धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं पर उन्होंने तो अपनी महत्त्वाकांक्षा के लिए रिश्तों से ही राजनीति कर डाली थी. पति की भावनाओं से, बच्चों के भविष्य से, समाज के आदर्शों से. सचमुच अति महत्त्वाकांक्षा की परिणति दुखदायी होती है.

चंचल मन ने फिर सचेत किया, ‘सावित्री, यही समय है माफी मांग कर अपनी गलतियां सुधारने का, किए गए गुनाहों के प्रायश्चित्त करने का.’

मन में पश्चात्ताप और ग्लानि का भाव लिए, भरे नैनों से वे राजन से मिलने चल पड़ीं. आखिर अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त जो करना था उन्हें. पता चला कि राजन अपने साथ एक वकील लाए थे. खेत बेच कर वे किसी भी तरह सावित्री को जेल से निकलवाने के लिए हर कोशिश कर रहे थे.

प्रायश्चित्त-भाग 2: जनार्दन और सावित्री का क्या रिश्ता था?

राजन ने कुछ कहा तो नहीं, बस, चुपचाप सुनते रहे. जब सावित्री चुप हो गईं तो राजन ने कहा, ‘देखो सावित्री, ऐसे प्रस्ताव मेरे दुकान पर भी कई लोग ले कर आते हैं. वास्तव में वे नकली दवाइयों का बिजनैस करना चाहते हैं. माना कि इस में मुनाफा ज्यादा है पर सोचो, इस के परिणाम कितने भयावह होंगे? क्या यह समाज के लिए उचित होगा? फिर पुलिस का चक्कर अलग से. मेरा तो मन कांप जाता है ऐसा सोच कर भी.’

‘तुम भावुक हो, ईमानदार हो, पर सुखी जिंदगी भावनाओं या ईमानदारी से नहीं, बल्कि पैसों से चलती है, राजन,’ सावित्री ने स्वर में तल्खी लाते हुए कहा. जनार्दन के दिखाए सपनों का फितूर अभी भी सावित्री के सिर पर चढ़ा हुआ था.

‘मुझ से यह सब अवैध काम नहीं होगा. यह मेरे आदर्शों के खिलाफ है. मैं अपने परिवार के साथ सीधीसादी जिंदगी जीना चाहता हूं, बस.’ राजन ने यह कहा तो सावित्री चिल्ला पड़ी थीं उन पर, यह कहते हुए कि आदर्शों से झोंपड़ी बन सकती है, महल नहीं. कई दवा विक्रेता करते हैं यह काम. कुछ नहीं होता. अगर कुछ हुआ भी तो जनार्दन सब संभाल लेंगे.’ पति से प्रत्युत्तर न पा कर फिर कहना शुरू किया, ‘सच पूछो तो तुम हीनभावना से ग्रस्त हो. बड़े लोगों के बीच उठनाबैठना ही नहीं चाहते. एक मौका मिला है हमें अमीर बनने का जर्नादन के रूप में, हर इच्छा पूरी करने का, बच्चों को खुशहाल बनाने का पर तुम तो मुझे और मेरे बच्चों को सुखी देखना ही नहीं चाहते.’

‘गलत ढंग से पैसा कमाना गुनाह है और मैं नहीं चाहता कि मेरा परिवार इस गुनाह का भागीदार बने,’ कह राजन करवट बदल कर सो गए.

उन की आवाज सुन दूसरे कमरे में सो रहे बच्चों की आंखें खुल गई थीं. वे मम्मीपापा की बातों को ध्यान से सुन रहे थे. पूरी बात तो समझ नहीं आई पर दोनों बच्चों को मम्मी की यह बात समझ आ गई कि पापा हमें सुखी देखना नहीं चाहते. तभी तो हर बात में रोकटोक और फुजूलखर्ची पर उपदेश देते रहते हैं. उस घटना के बाद से राजन और सावित्री एक ही छत के नीचे तो अवश्य रह रहे थे पर मन पूरी तरह से अलग हो चुके थे. सावित्री ने समझ लिया कि झूठसच के चक्कर में जिंदगी यों ही अभावों में निकल जाएगी, खुशहाल जिंदगी जीने के लिए अब उन्हें ही कुछ करना होगा. कुछ दिनों बाद ही जर्नादन की सलाह पर सावित्री ने ‘बढ़ते कदम’ नामक राजनीतिक पार्टी जौइन कर ली थी.

मन बहुत चंचल होता है, कभी आशंकाओं से घबराता है तो कभी खुद को सांत्वना देने की कोशिश भी करता है. मन ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘लगता है इस बार मेरी अग्रिम जमानत करवा कर ही जनार्दन आंएगे.’ ऐसा सोच कर सावित्री को थोड़ी तसल्ली हुई. भरी भीड़ के सामने पूछे गए सवालों का जवाब देते समय उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘मुझे कानून और न्यायप्रणाली पर पूरा भरोसा है.’ पर वास्तविकता यह थी कि उन्हें अपने जनार्दन पर पूरा भरोसा था. सोचतेसोचते पता नहीं कब नींद ने उन्हें अपनी आगोश में ले लिया. सुबह महिला कौंस्टेबल की कड़क आवाज, ‘‘मैडम उठो, सफाई करवानी है, आज जेलर साहब राउंड पर हैं,’’ सुन कर उन की नींद खुली. पहले तो कुछ समझ नहीं आया, फिर धीरेधीरे कल की सारी बातें याद आने लगीं. ‘‘तुम्हारी इतनी हिम्मत, जानती नहीं किस से बातें कर रही हो? मैं ‘बढ़ते कदम’ पार्टी की सांसद सावित्री हूं.’’ कैद में थी तो क्या हुआ गरूर में कोई कमी न थी.

‘‘जानती हूं तभी तो, ‘मैडम’ कह रही हूं आप को’’ कह कर वह कौंस्टेबल अपने काम में लग गई.

‘‘देख लूंगी तुम्हें,’’ भुनभुनाते हुए सावित्री भी जल्दी से नित्यकर्म निबटा कर मिलने आने वालों का इंतजार करने लगीं, खास कर जनार्दनजी का कि क्या खबर लाते हैं मेरी रिहाई के बारे में.

पर अगले 24 घंटों तक जनार्दनजी तो क्या, पार्टी का कोई लल्लूटाइप सदस्य भी उन से मिलने नहीं आया. और तो और, उन के अपने दोनों बच्चे भी, जिन की मनमानी पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी सावित्री ने.

बड़ा बेटा नमन थोड़ा चंचल स्वभाव का था. पेरैंट्स डे के दिन जब भी वह अपने पति राजन के साथ टीचर से मिलने स्कूल जाती, शिकायत सुनने को मिलती कि यह कक्षा में पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय या तो कहानी की किताबें पढ़ता है या दूसरे दोस्तों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न करता है. एक बार तो इस बात पर घर आ कर राजन ने उस की पिटाई भी की थी और चेतावनी दी थी कि अपनी आदतें सुधार लो वरना पौकेटमनी बंद हो जाएगी. नमन डर गया और तुरंत पढ़ने बैठ गया था. पर उन्हें लगा कि नमन की पौकेटमनी बंद करना उन के व्यवसायी पति का पैसे बचाने का एक बहाना है. मन ही मन सोचा, अच्छा उपाय निकाला है पैसे बचाने का, अगर बचाएंगे नहीं तो गांव कैसे भेज पाएंगे ढेर सारे पैसे अपने मांबाप की मुंहमांगी मुराद पूरी करने को. कितना निरीह लगा था नमन उस दिन सावित्री को और पति उतने ही कंजूस.

बेटी नीना की मौडलिंग, फैशन डिजाइनिंग में रुचि थी. सामान्य नैननक्श वाली वह लड़की अकसर अपनी इच्छा जाहिर करती तो पापा समझाते बेटा, ‘ये सब खर्चीले शौक हैं. हम लोग मध्यवर्गीय परिवार के हैं. अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान दो और शरीर की जगह मन से सुंदर बनने की कोशिश करो.’

उफ, हर समय खर्चे की तंगी. आदर्शभरी बातें. तंग आ चुकी थी वह इन सब बातों से. तभी दोपहर के खाने की सीटी बजी. ध्यान भंग हुआ, खाना खाने का मन नहीं था. भूख तो खत्म हो चुकी थी लोगों का इंतजार करतेकरते. मन फिर अतीत की ओर चला गया. पार्टी जौइन करने के बाद तो समय, जैसे पंख लगा कर उड़ने लगा था. वे सावित्री देवी बन गईं. पतली, लंबी, आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी, बोलने में दक्ष सदस्य को पा कर पार्टी महासचिव गदगद हो उठे थे. थोड़े दिनों में ही उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बना दिया गया. मीडिया और विरोधियों के प्रश्नों का वे ऐसा दो टूक उत्तर देतीं कि प्रश्न पूछने वाले दंग रह जाते. ज्योंज्यों राजनीतिक व्यस्तता बढ़ती गई, त्योंत्यों राजन के प्रति उन की उदासीनता भी बढ़ती चली गई. एक बार मन हुआ ऐसे दब्बू और आदर्शवादी पति को तलाक देने का, पर इस से विरोधी पार्टियों को उन के विरुद्ध बोलने का मौका मिल जाता, शादीशुदा भारतीय नारियों के वोट निकल जाते उन के हाथ से. चुप रहना ही उचित समझा पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए वे जानबूझ कर पति की इच्छाओं के विपरीत काम कर के उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त करतीं. बच्चों को भी अच्छेअच्छे गिफ्ट मिलने लगे तो पापा की जगह मां की इज्जत उन की नजरों में बढ़ गई.

मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं,पर उनका भाई यानी मेरा देवर मुझे बहुत पसंद करता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं. समस्या यह है कि उन का भाई यानी मेरा देवर मुझे बहुत पसंद करता है. कई दफा वह मेरे साथ कुछ ऐसा व्यवहार कर जाता है जो मेरे पति को नागवार गुजरता है. मैं देवर को भी नाराज नहीं करना चाहती. क्या करूं?

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जवाब

आप को पहले इस मामले में स्वयं क्लियर होना होगा. यदि आप अपने पति से प्यार करती हैं तो फिर इस प्यार को बनाए रखने के लिए दूसरे रिश्तों से एक मर्यादित दूरी बना कर रखें. अपने देवर से स्पष्ट तौर पर कह दें कि आप उन्हें सिर्फ देवर के तौर पर देखती हैं और वह आप को ले कर किसी तरह की ख्वाहिशें न पाले.

अकसर देवर भाभी के अवैध रिश्ते जिंदगी में तूफान ले आते हैं. पति की भावनाओं का खयाल रखें. मुमकिन हो तो आप दोनों पति पत्नी कहीं अलग एक छोटा सा फ्लैट ले लें ताकि देवर से थोड़ी दूरी कायम हो जाए. हर वक्त साथ रहने से इस तरह के नाजुक रिश्तों में गलतफहमियां बढ़ने के आसार बढ़ जाते हैं.

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रोजगार चाहिए, मंदिर-मस्जिद नहीं

राहुल एक ऐंड्रौयड डैवलपर है और अमेरिका की एक कंपनी में काम करता है. कंपनी का हैड औफिस सान फ्रांसिस्को में है. उस का 3-4 बार वहां चक्कर लगता ही था, क्योंकि वह उन के अच्छे कर्मचारियों में से एक था.

बैंगलुरू में भी इस कंपनी का ब्रांच औफिस है. 4 मार्च को ही वह वहां से भारत लौटा था. 1 अप्रैल को कंपनी के सीईओ की मेल आई कि उस की टीम के सारे लोगों को जो अमेरिका में हैं, नौकरी से निकाल दिया गया है. वजह कोरोना के इस संकटग्रस्त समय में मंदी थी. अब राहुल परेशान है, क्योंकि उसे नहीं पता कि उसे भी कब नौकरी से हाथ धोना पड़े.

कोरोना वायरस महामारी के बीच लागू लौकडाउन का असर हर क्षेत्र में पड़ा है, जिस की वजह बेरोजगारी की समस्या और उस से जुड़ी आर्थिक मंदी ने युवाओं के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया है. उन के पास योग्यता है, अनुभव है पर नौकरी नहीं.

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प्राइवेट संस्थानों से महंगी शिक्षा प्राप्त करने के पीछे युवाओं का उद्देश्य केवल मोटे वेतन वाली नौकरियां पाना होता है, जि सके लिए वे कर्ज लेते हैं. लेकिन लौकडाउन के बाद परिस्थितियां ही बदल गईं. वे घर बैठे हैं और कर्ज चुकाना तो दूर, उस पर लगने वाला ब्याज देना भी भारी हो गया है.

बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े

कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामले किस ऊंचाई पर पहुंच कर कम होंगे, फिलहाल इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन लौकडाउन ने नौकरियों का कितना नुकसान किया है, यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है.

नौकरियों के नुकसान के आंकड़े बेहद भयावह हैं. रोजगार के मोरचे पर अनिश्चितता झेल रहे लोगों की तादाद आज भारत में रूस की आबादी जितनी हो सकती है.

एक अनुमान के मुताबिक लौकडाउन से पहले लगभग 3.4 करोड़ लोग बेरोजगार थे, लौकडाउन के बाद नौकरी गंवाने वाले लगभग 12 करोड़ लोगों में इस संख्या को जोड़ दें तो आंकड़ा 15 करोड़ तक पहुंच जाता है. लेकिन इन युवाओं का आंकड़ा अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, जो पढ़ाई करने के बाद नौकरी पाने की लालसा पाले थे मगर उस से पहले ही लौकडाउन हो गया और देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई.

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उधर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि देश में 2.70 करोड़ युवा जिन की उम्र 20 से 30 साल के बीच है, वे अप्रैल महीने में बेरोजगार हो गए हैं.

बड़े शहरों में तो लौकडाउन के कारण कई कंपनियों के दफ्तर तक बंद हो गए या फिर वहां वर्क फ्रौम होम का नियम अपनाया जा रहा है.

सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई) के एक आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर 24% दर्ज की गई जबकि यह मार्च में 8.74% थी.

3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बेरोजगारी दर 27% थी.

आंकड़े बताते हैं कि देश में फिलहाल 11 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं. सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वे के डाटा के मुताबिक नौकरियां गंवाने वाले लोगों में 20 से 24 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 11% है. सीएमआईई के मुताबिक 2019-20 में देश में कुल 3.42 करोड़ युवा काम कर रहे थे जो अप्रैल में केवल 2.9 करोड़ रह गए.

इसी तरह से 25 से 29 साल की उम्र वाले 1.4 करोड़ लोगों की नौकरियां  चली गईं. 2019-20 में इस वर्ग के पास कुल रोजगार का 11.1%

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हिस्सा था लेकिन नौकरी जाने का प्रतिशत 11.5% रहा. अप्रैल में 3.3 करोड़ पुरुष और महिलाओं की नौकरियां चली गईं. इस में से 86% नौकरियां पुरुषों की गईं.

एक खबर के मुताबिक, बेरोजगारी दर भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिल रही है. अप्रैल के महीने में अमेरिका में करीब 1 करोड़ लोग बेरोजगार हुए. पढ़ाई पूरी कर निकले युवा तो नौकरी पाने की बात सोच भी नहीं रहे हैं.

महंगी पढ़ाई और ऊंचे सपने

लेकिन यह तो उन युवाओं की बात है जो नौकरी कर रहे थे और लौकडाउन के कारण जिन की नौकरियां चली गईं, पर उन का क्या जिन्होंने अच्छे प्राइवेट कालेजों से पढ़ाई करने के लिए ऊंची रकम इस आशा से चुकाई थी कि वहां से निकलते ही उन्हें मोटी सैलरी वाली नौकरियां मिल जाएंगी.

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों में कई ऐसे सैक्टर में नौकरी पाने के लिए डिप्लोमा कोर्स कराने वाली संस्थाएं मौजूद हैं, जो 1 साल से ले कर 2 साल तक का कोर्स करा कर नौकरी देने का औफर करती हैं.

एमबीए, इंजीनियरिंग और कानून की महंगी पढ़ाई जहां एक तरफ ऊंचे सपने दिखाती हैं, वहीं लोन भी इसी उम्मीद से लिया जाता है कि नौकरी मिलने के बाद उसे चुकाना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन उन की उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब नौकरी मिलने के बजाए अचानक लौकडाउन हो जाने से वे बेरोजगारों की कतार में आ खड़े हुए और लोन पर चढ़ने वाले ब्याज को चुकाने की चिंता उन पर सवार हो गई.

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अपनी महंगी पढ़ाई उन्हें आज चुभ रही है और कहीं न कहीं उन्हें लग रहा है कि अशिक्षित होते तो कम से कम उन्हें सरकार या गैरसरकारी संगठनों से आर्थिक मदद तो मिल ही जाती.

नौकरी जाना न केवल युवाओं के लिए इस समय चिंता की बात है, बल्कि नई नौकरी तलाशना भी चुनौतीभरा काम है.

भारत में इस साल मार्च में नौकरियों  पर रखने के आंकड़ों में 18% की गिरावट आई है.

नौकरी डौट कौम के मुताबिक ट्रैवल, ऐविएशन, रिटैल और हौस्पिटैलिटी सैक्टर्स में नौकरियों पर रखने के मामलों में सब से ज्यादा 56% की गिरावट दर्ज की गई है.

भारतीय अर्थव्यवस्था का जायजा लेने वाली ऐजेंसी सीएमआईई की भी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च, 2020 में भारत में बेरोजगारी दर 8.7% रही, जोकि पिछले 43 महीनों में सब से अधिक है और इस समय भारत में बेरोजगारी की दर 23% फीसदी से ऊपर पहुंच गई है.

कहां से जुटाएं धन

जयपुर में रहने वाले मयंक ने कानून की पढ़ाई करने के लिए बैंक से करीब ₹5 लाख का ऐजुकेशन लोन लिया. अच्छे अंकों से पास हो कर वह इस क्षेत्र में कदम रखने ही वाला था कि लौकडाउन हो गया और उसे घर पर ही बैठना पड़ा. अब उसे समझ नहीं आ रहा कि वह बैंक का कर्ज कैसे चुकाएगा, क्योंकि निकट भविष्य में लौकडाउन के खुलने के बाद भी तुरंत नौकरी मिल पाना उसे सपना ही लग रहा है. वह कोई भी काम करने को तैयार है, जिस से कुछ तो कमाई हो सके.

दिल्ली की दीपा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जब कर्ज लिया था तो उसे यकीन था कि वह नौकरी मिलते ही उसे चुकाना शुरू कर देगी. लेकिन आज वह घर में बैठी है. निराशा उस पर हावी है और अगर यही हाल रहा तो मां के गहने बेच कर उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा.

बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले अश्विनी कुमार ने पंजाब नैशनल बैंक से करीब ₹10 लाख का लोन ले कर जयपुर के एक निजी संस्थाआन से एमबीए किया। उस ने सोचा था कि दिल्ली में अपने कैरियर की शुरुआत करेगा और मोटा वेतन ले कर सारे सपने पूरे करेगा. उस के पिता के खेत हैं. वह नहीं जानता कि आज के हालातों में उसे कब नौकरी मिलेगी और वह कैसे कर्ज चुकाएगा.

यह अजीब विडंबना है कि उच्च शिक्षित प्राप्त युवाओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. एक तरफ तो उन के पास कमाई का कोई साधन नहीं है, दूसरी तरफ पढ़ाई के लिए लिया लोन भी उसे चुकाना ही है. बड़ीबड़ी मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी पाने का सपना तो चूरचूर हो ही चुका है, उस पर उन के पास करने को कोई काम नहीं है, क्योंकि सारे ही क्षेत्रों के हालात बुरे हैं और व्यापार से ले कर हर काम ठप्प हो चुके हैं.

सरकार लोन चुकाने के लिए बेशक कुछ मुहलत दे रही है, पर वह स्थाई समाधान नहीं है, क्योंकि नौकरी तो जरूरी है. शिक्षित युवा हताश है क्योंकि उन की डिग्रियां आज रद्दी हो गई हैं.

देश में तकनीकी शिक्षा में 70% हिस्सेदारी इंजीनि‌यरिंग कालेजों की है. बाकी 30% में एमबीए, फार्मा, आर्किटैक्चर जैसे सारे कोर्स आते हैं.

इंजीनियरिंग और एमबीए का क्रेज हमेशा से युवाओं में रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि अच्छी नौकरी और बेहतर भविष्य की गारंटी यही दे सकते हैं. फिर चाहे पढ़ाई पूरी करने के लिए कर्ज ही क्यों न लेना पड़े.

महंगी शिक्षा के कारण लोन लेना भी एक फैशन ही है. कर्ज लो और अपनी कमाई से उसे चुकाते रहो, ताकि मातापिता पर बोझ न पड़े.

अवसाद घेर रहा है

उच्च शिक्षित पीढ़ी के सामने इस समय अगर एक तरफ बेरोजगारी सिर उठाए खड़ी है तो दूसरी ओर कर्ज चुकाने की समस्या इन्हें आत्महत्या व अवसाद की ओर धकेल रही है.

गौरव ने तकरीबन 6 महीने पहले अपनी इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. ₹10 लाख कर्ज लिया इस उम्मीद से कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह इंडस्ट्रियल औटोमेशन में कैरियर बना लेगा, लेकिन उस का वह सपना पूरा नहीं हुआ तो उस ने एक दुकान में मिक्सर, पंखे जैसी घरेलू चीजों को सुधारने का काम करने की नौकरी कर ली, जो इस समय बंद पड़ी है. जो लोन लिया था, उसे चुकाना तो उस ने शुरू नहीं किया है और पता भी नहीं कि वह इसे चुका भी पाएगा या नहीं.

इस समय हजारों ऐसे युवा हैं जो महंगी शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरियों के लिए दरदर भटक रहे हैं.

सिविल इंजीनियरिंग से ले कर कंप्यूटर कोडिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों को न केवल नौकरी की चिंता है, बल्कि लोन चुकाना भी किसी मानसिक तनाव से कम नहीं है. यह चिंता उन्हें किस ओर ले जाएगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर यह तो तय है कि इस कोरोना वायरस की वजह से न सिर्फ मंदी का दौर दोबारा लौट आया है, वरन तनाव, अवसाद, आशंका और भय भी हर चेहरे पर साफ दिख रहा है.

मगर इस कठिन समय में सरकार से उम्मीद पालना बेकार है क्योंकि उन्हें बेरोजगारों को रोजगार देने से अधिक मंदिर बनवाने की चिंता है. धर्मकर्म में उलझी सरकार से लगता नहीं कि उन्हें बेरोजगारों की फिक्र होगी.

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