बिग बॉस 13 के विनर और टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का महज 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. जिससे हर कोई सदमे में हैं. उनके फैंस इसलिए भी दुखी और हैरान हैं क्योंकि वो एक हेल्दी पर्सन थे और फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे. फिर भी वो हार्ट अटैक का शिकार हो गए.
मौजूदा समय में बदलती लाइफस्टाइल और तनाव के बीच आम लोग भी इस समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ताकी आपका दिल स्वस्थ रहे.
बदलती लाइफ स्टाइल ने हमारे दिल के लिए खतरा बढ़ा दिया है. जीवनशैली व खानपान में बदलाव जहां लोगों को हृदय संबंधी रोगों के करीब पहुंचा रहा है वहीं वैवाहिक जीवन में मनमुटाव और मनमुताबिक नौकरी नहीं मिलने या काम का अधिक प्रैशर हार्ट अटैक का कारण बन रहा है. डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां देश में मौत की सब से बड़ी वजह बन जाएंगी. मुंबई के लीलावती और नानावटी अस्पताल से जुड़े जानेमाने हार्ट सर्जन डा. पवन कुमार अपना अनुभव बांटते हुए कहते हैं कि हर साल पूरे विश्व में दिल के रोग से 17 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं.
बदलते लाइफस्टाइल से दिल के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. हार्ट डिजीज के लिहाज से 20 से 35 साल का एज ग्रुप बहुत अहम है. युवाओं को दिल का दौरा पड़ने का मुख्य कारण यह है कि वे हृदय रोग को गंभीरता से नहीं लेते. लाइफस्टाइल को ले कर कैजुअल अप्रोच, स्मोकिंग, अल्कोहल के इस्तेमाल व खानपान और रहनसहन की गलत आदतें हृदय की बीमारी की ओर ले जाती हैं. अपनेआप को सेहतमंद रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना, स्ट्रैस कम लेना, डाइट का खयाल रखना और धूम्रपान से दूर रहने के अलावा जैनेटिक प्रोफाइलिंग भी बेहद जरूरी है.
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डा. पवन कुमार चिंता जताते हुए कहते हैं कि हमारे पास 30 प्रतिशत मरीज ऐसे आते हैं जिन्हें दिल का दौरा या तो आ चुका होता है या फिर बीमारी की शुरुआत हो चुकी होती है. आश्चर्य की बात यह है कि इन मरीजों की उम्र 40 वर्ष से कम होती है. इन में से 50 प्रतिशत डायबिटीक होते हैं. इसे आप यंग डायबिटीक कह सकते हैं. बाईपास सर्जरी के मामले में हम यह भी पा रहे हैं कि ऐसे मरीजों के 6-7 बाईपास करने पड़ते हैं. कुछ मामले ऐसे भी आए हैं कि 27 साल की उम्र में ही मरीज की बाईपास सर्जरी करनी पड़ी.
सिर्फ उम्रदराज ही नहीं बल्कि अब तो नौजवान भी दिल से जुड़ी बीमारी के शिकार हो रहे हैं. देश में हर साल 3 करोड़ से ज्यादा भारतीयों को यह बीमारी अपनी चपेट में ले रही है और इस से 24 लाख मौतें होती हैं.
मैट्रो अस्पताल, नोएडा के जानेमाने वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. पुरुषोत्तम लाल कहते हैं कि अकसर लोग सीने, कंधे, गरदन, हाथ, जबड़े या पीठ के दर्द को छोटामोटा दर्द समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं. कई बार घर व बाहर की जिम्मेदारी के कारण उन्हें अपनी देखभाल करना समय की बरबादी महसूस होता है. परंतु आप ऐसे दर्द को लंबे समय तक न टालें क्योंकि इस प्रकार के दर्द का लक्षण एंजाइना हो सकता है.
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एंजाइना कोई बीमारी नहीं है पर यह लक्षण कोरोनरी धमनी रोग या कोरोनरी हृदय रोग में तबदील हो सकता है. आजकल लोगों की जिंदगी आपाधापी से भरी है. सभी व्यस्त जीवन गुजार रहे हैं. ऐसे में कोरोनरी हृदय रोग के मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. बहुत सारे लोग इस के लक्षण को समझ ही नहीं पाते हैं. वे जब तक समझ पाते हैं तब तक देर हो जाती है.
कोरोनरी धमनी रोग यानी सीएडी या कोरोनरी हृदय रोग यानी सीएचडी एक गंभीर अवस्था है. इस में हृदय को औक्सीजन और पोषक तत्त्वयुक्त रक्त पहुंचाने वाली धमनियां क्षतिग्रस्त या रोगग्रस्त हो जाती हैं. प्लाक के कारण कोरोनरी धमनियां सिकुड़ जाती हैं, जिस के चलते हृदय को कम मात्रा में खून प्राप्त होता है. कम रक्त प्रवाह होने के कारण सीने में दर्द यानी एंजाइना हो सकता है या अन्य कोरोनरी धमनी की बीमारी के संकेत और लक्षण पैदा हो सकते हैं. प्लाक के कारण कोरोनरी धमनियों में एक पूर्व रुकावट दिल के दौरे का कारण बन सकती है.
इस रोग के कई रिस्क फैक्टर हैं जो एकदूसरे से जुड़े हुए हैं : उच्च रक्तचाप भी कोरोनरी हृदय रोग की संभावनाओं को बढ़ा देता है. किसी काम या मेहनत वाली गतिविधि के दौरान हृदय की मांसपेशियां शरीर की औक्सीजन की मांग के अनुसार तेजी से धड़कने लगती हैं. डिस्लीपिडेमिया रक्त लिपिड और लेपोप्रोटीन में असामान्यताओं को दर्शाता है. अगर कम घनत्व लेपोप्रोटीन (एचडीएल) अर्थात खराब कोलैस्ट्रौल, 130 एसजी/डीएल से अधिक या उच्च घनत्व (एचडीएल) लेपोप्रोटीन, जो अच्छा कोलैस्ट्रौल है, 40 एमजी/डीएल से कम हो या कुल कोलैस्ट्रौल 200 एमजी/डीएल से अधिक हो तो सीएडी का खतरा बढ़ जाता है.
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अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होने का सीएचडी के सभी अन्य जोखिम वाले कारकों के साथ सीधा संबंध है. जिन लोगों के पेट पर चरबी अधिक होती है उन्हें इस का खतरा अधिक होता है. जो लोग नियमित व्यायाम कार्यक्रम में कम से कम 30 मिनट या सप्ताह के ज्यादातर दिन शामिल नहीं होते उन्हें सीएडी का जोखिम अधिक होता है. आसान जीवनशैली सीएडी के अन्य जोखिम वाले कारकों को प्रेरित करती है. समयसमय पर नियमित रूप से ब्लडप्रैशर की जांच करवाएं. कोलैस्ट्रौल के स्तर पर नजर रखें. साथ ही खानपान पर भी ध्यान रखें.
इन बातों का रखें खयाल
यदि किसी व्यक्ति को उच्च कोलैस्ट्रौल, रक्तचाप जैसी समस्याएं होती हैं तो उस को हृदयाघात का अधिक जोखिम रहता है. गुड कोलैस्ट्रौल का 50 से कम होना और बैड कोलैस्ट्रौल का 100 से अधिक होना खतरनाक है. ब्लडप्रैशर का 130/85 से अधिक होना ठीक नहीं. आज युवाओं में हृदयाघात और हृदय की बीमारियों की बढ़ती संख्या, चिंता का विषय बन रही है. ऐसे में हृदय की समस्याओं से बचने का एक ही उपाय है कि आप खुद अपनी कुछ सामान्य जांच करें और हृदय संबंधी समस्याओं को गंभीरता से लें.
कैसे बचें इस बीमारी से
आज अधिकतर औफिस की इमारतें बहुमंजिली हैं और लोग इस के लिए सीढि़यों के बजाय लिफ्ट का इस्तेमाल करते हैं, जिस से थोड़ा सा भी व्यायाम नहीं हो पाता. बेहतर यह होगा कि आप सीढि़यों का इस्तेमाल करें. गतिशील बनें और मादक पदार्थों का सेवन कदापि न करें. डायबिटीज, हाइपरटैंशन और कोलैस्ट्रौल के स्तर को नियंत्रित रखें. संतुलित आहार लें. बाहर का खाना कम से कम खाएं.
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भागमभाग भरी जिंदगी से थोड़ा वक्त अपने लिए भी निकालें. कहीं सैरसपाटे के लिए निकल जाएं. एक स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर का परिचायक होता है. तनाव को हावी न होने दें, हंसें और मुसकराएं व दूसरों से अपनी हंसी बांटें. याद रखें, जान है तो जहान है.