बच्चों की पसंदीदा आइसक्रीम कोरोना चट कर गया. पूरी गरमी का सीज़न निकल गया, बच्चों ने आइसक्रीम नहीं खाई. न आइसक्रीम पार्लर खुले, न महल्ले में आइसक्रीम बेचने वाले का साइकिलरिकशा दिखा,  न कुल्फी का ठेला नज़र आया और न इंडिया गेट वाले खट्टेमीठे बर्फीले कोला का स्वाद चखने को मिला. यहां तक कि घर के फ्रिज में भी आइसक्रीम नहीं जमाई गई. बच्चों का सारा मज़ा इस नामुराद कोरोना ने किरकिरा कर दिया. सारी छुट्टियां चारदीवारी की कैद में निकल गईं. ‘करेला वह भी नीम चढ़ा’ वाली कहावत तब चरित्रार्थ हुई जब कोरोना को भगाने के लिए बच्चे गरमी में भी गरम पानी ही पीते रहे. दिन में दोदो, तीनतीन बार गरम पानी के गरारे करते रहे. पूरे सीज़न कोल्डड्रिंक पर भी कोरोना का काली छाया पड़ी रही. मम्मी ने बोतल ही खोलने नहीं दी क्योंकि इस से खांसीज़ुकाम होने का ख़तरा था. खांसी मतलब ख़तरा. कोरोना का ख़तरा.

अब बरसात ने दस्तक दे दी है लेकिन कोरोना का खतरा कम होने का नाम नहीं ले रहा है. जून की उमस में भी लोग ठंडा पानी, आईस्क्रीम, कोल्डड्रिंक, एसी की ठंडी हवा से महरूम हैं. कोरोना ने पूरा आइसक्रीम सीज़न तो चौपट किया ही, आइसक्रीम इंडस्ट्री को हज़ारों करोड़ का चूना अलग लगाया.

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इंडियन आइसक्रीम मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन लगभग 80 सदस्यों के साथ भारतीय आइसक्रीम निर्माताओं का टौप संघ है, सभी बड़े आइसक्रीम ब्रैंड निर्माता जैसे क्वालिटी वाल, क्रीम बेल, वाडीलाल, अरुण और नेचुरल्स, मामा मिया जैसी कंपनियां इस एसोसिएशन की सदस्य हैं. संगठित क्षेत्र जो एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन का कारोबार लगभग 15-17 हजार करोड़ रुपए का है. आइसक्रीम का पीक सीजन आमतौर पर फरवरी से जून तक होता है, यानी गरमी की शुरुआत से ले कर मानसून की दस्तक तक. लेकिन कोरोना महामारी के चलते लौकडाउन की वजह से इस सीजन में आइसक्रीम की नगण्य बिक्री हुई है. इस से उद्योग को हज़ारों करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है. यह नुकसान संगठित क्षेत्र में 15 हजार करोड़ रुपए और असंगठित क्षेत्र में 30 हजार करोड़ रुपए से अधिक का माना जा रहा है.

आइसक्रीम उद्योग के लिए यह सब से बुरा दौर है. उल्लेखनीय है कि शादीविवाह का लगन भी इन्हीं 3 महीने में ज़्यादा रहता है और सर्वाधिक आइसक्रीम की खपत भी इन्हीं महीनों में होती है जो इस बार  नहीं हुई. शादीविवाह भी कोरोनाकाल में कैंसिल हो गए, जिस कारण भी आइसक्रीम की न मांग हुई और न खपत. छोटेबड़े होटल भी लंबे समय से बंद हैं. कुलमिला कर इस बार आइसक्रीम का धंधा पूरी तरह चौपट रहा.

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गौरतलब है कि गरमी का मौसम आते ही लोगों में ठंडे पेय पदार्थों की मांग बढ़ जाती है. जगहजगह गन्ना रस, आम, संतरा, पाइनएप्पल आदि के जूस, आइसक्रीम की दुकानें सज जाती हैं, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण ये दुकानें नहीं लग पाईं. अब इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों के सामने रोजीरोटी की समस्या उत्पन्न होने लगी है. वहीं इन दुकानों में 3 से 4 माह तक अनेक बेरोजगार युवक काम कर के अपने परिवार के लिए खासी धनराशि जमा कर लेते थे,  लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया. लौकडाउन के कारण चारों तरफ सन्नााटा पसरा रहा. आइसक्रीम उद्योग पर प्रवासी मजदूरों के पलायन से भी बहुत बुरा असर पड़ा है क्योंकि अधिकतर आइसक्रीम के ठेले यानी पुशकार्ट्स को यही मजदूर वर्ग चलाता है. इन के चले जाने से जो थोड़ेबहुत व्यापार की संभावना थी वह भी समाप्त हो गई.

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