राहुल एक ऐंड्रौयड डैवलपर है और अमेरिका की एक कंपनी में काम करता है. कंपनी का हैड औफिस सान फ्रांसिस्को में है. उस का 3-4 बार वहां चक्कर लगता ही था, क्योंकि वह उन के अच्छे कर्मचारियों में से एक था.

बैंगलुरू में भी इस कंपनी का ब्रांच औफिस है. 4 मार्च को ही वह वहां से भारत लौटा था. 1 अप्रैल को कंपनी के सीईओ की मेल आई कि उस की टीम के सारे लोगों को जो अमेरिका में हैं, नौकरी से निकाल दिया गया है. वजह कोरोना के इस संकटग्रस्त समय में मंदी थी. अब राहुल परेशान है, क्योंकि उसे नहीं पता कि उसे भी कब नौकरी से हाथ धोना पड़े.

कोरोना वायरस महामारी के बीच लागू लौकडाउन का असर हर क्षेत्र में पड़ा है, जिस की वजह बेरोजगारी की समस्या और उस से जुड़ी आर्थिक मंदी ने युवाओं के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया है. उन के पास योग्यता है, अनुभव है पर नौकरी नहीं.

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प्राइवेट संस्थानों से महंगी शिक्षा प्राप्त करने के पीछे युवाओं का उद्देश्य केवल मोटे वेतन वाली नौकरियां पाना होता है, जि सके लिए वे कर्ज लेते हैं. लेकिन लौकडाउन के बाद परिस्थितियां ही बदल गईं. वे घर बैठे हैं और कर्ज चुकाना तो दूर, उस पर लगने वाला ब्याज देना भी भारी हो गया है.

बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े

कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामले किस ऊंचाई पर पहुंच कर कम होंगे, फिलहाल इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन लौकडाउन ने नौकरियों का कितना नुकसान किया है, यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है.

नौकरियों के नुकसान के आंकड़े बेहद भयावह हैं. रोजगार के मोरचे पर अनिश्चितता झेल रहे लोगों की तादाद आज भारत में रूस की आबादी जितनी हो सकती है.

एक अनुमान के मुताबिक लौकडाउन से पहले लगभग 3.4 करोड़ लोग बेरोजगार थे, लौकडाउन के बाद नौकरी गंवाने वाले लगभग 12 करोड़ लोगों में इस संख्या को जोड़ दें तो आंकड़ा 15 करोड़ तक पहुंच जाता है. लेकिन इन युवाओं का आंकड़ा अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, जो पढ़ाई करने के बाद नौकरी पाने की लालसा पाले थे मगर उस से पहले ही लौकडाउन हो गया और देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई.

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उधर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि देश में 2.70 करोड़ युवा जिन की उम्र 20 से 30 साल के बीच है, वे अप्रैल महीने में बेरोजगार हो गए हैं.

बड़े शहरों में तो लौकडाउन के कारण कई कंपनियों के दफ्तर तक बंद हो गए या फिर वहां वर्क फ्रौम होम का नियम अपनाया जा रहा है.

सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई) के एक आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर 24% दर्ज की गई जबकि यह मार्च में 8.74% थी.

3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बेरोजगारी दर 27% थी.

आंकड़े बताते हैं कि देश में फिलहाल 11 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं. सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वे के डाटा के मुताबिक नौकरियां गंवाने वाले लोगों में 20 से 24 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 11% है. सीएमआईई के मुताबिक 2019-20 में देश में कुल 3.42 करोड़ युवा काम कर रहे थे जो अप्रैल में केवल 2.9 करोड़ रह गए.

इसी तरह से 25 से 29 साल की उम्र वाले 1.4 करोड़ लोगों की नौकरियां  चली गईं. 2019-20 में इस वर्ग के पास कुल रोजगार का 11.1%

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हिस्सा था लेकिन नौकरी जाने का प्रतिशत 11.5% रहा. अप्रैल में 3.3 करोड़ पुरुष और महिलाओं की नौकरियां चली गईं. इस में से 86% नौकरियां पुरुषों की गईं.

एक खबर के मुताबिक, बेरोजगारी दर भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिल रही है. अप्रैल के महीने में अमेरिका में करीब 1 करोड़ लोग बेरोजगार हुए. पढ़ाई पूरी कर निकले युवा तो नौकरी पाने की बात सोच भी नहीं रहे हैं.

महंगी पढ़ाई और ऊंचे सपने

लेकिन यह तो उन युवाओं की बात है जो नौकरी कर रहे थे और लौकडाउन के कारण जिन की नौकरियां चली गईं, पर उन का क्या जिन्होंने अच्छे प्राइवेट कालेजों से पढ़ाई करने के लिए ऊंची रकम इस आशा से चुकाई थी कि वहां से निकलते ही उन्हें मोटी सैलरी वाली नौकरियां मिल जाएंगी.

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों में कई ऐसे सैक्टर में नौकरी पाने के लिए डिप्लोमा कोर्स कराने वाली संस्थाएं मौजूद हैं, जो 1 साल से ले कर 2 साल तक का कोर्स करा कर नौकरी देने का औफर करती हैं.

एमबीए, इंजीनियरिंग और कानून की महंगी पढ़ाई जहां एक तरफ ऊंचे सपने दिखाती हैं, वहीं लोन भी इसी उम्मीद से लिया जाता है कि नौकरी मिलने के बाद उसे चुकाना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन उन की उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब नौकरी मिलने के बजाए अचानक लौकडाउन हो जाने से वे बेरोजगारों की कतार में आ खड़े हुए और लोन पर चढ़ने वाले ब्याज को चुकाने की चिंता उन पर सवार हो गई.

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अपनी महंगी पढ़ाई उन्हें आज चुभ रही है और कहीं न कहीं उन्हें लग रहा है कि अशिक्षित होते तो कम से कम उन्हें सरकार या गैरसरकारी संगठनों से आर्थिक मदद तो मिल ही जाती.

नौकरी जाना न केवल युवाओं के लिए इस समय चिंता की बात है, बल्कि नई नौकरी तलाशना भी चुनौतीभरा काम है.

भारत में इस साल मार्च में नौकरियों  पर रखने के आंकड़ों में 18% की गिरावट आई है.

नौकरी डौट कौम के मुताबिक ट्रैवल, ऐविएशन, रिटैल और हौस्पिटैलिटी सैक्टर्स में नौकरियों पर रखने के मामलों में सब से ज्यादा 56% की गिरावट दर्ज की गई है.

भारतीय अर्थव्यवस्था का जायजा लेने वाली ऐजेंसी सीएमआईई की भी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च, 2020 में भारत में बेरोजगारी दर 8.7% रही, जोकि पिछले 43 महीनों में सब से अधिक है और इस समय भारत में बेरोजगारी की दर 23% फीसदी से ऊपर पहुंच गई है.

कहां से जुटाएं धन

जयपुर में रहने वाले मयंक ने कानून की पढ़ाई करने के लिए बैंक से करीब ₹5 लाख का ऐजुकेशन लोन लिया. अच्छे अंकों से पास हो कर वह इस क्षेत्र में कदम रखने ही वाला था कि लौकडाउन हो गया और उसे घर पर ही बैठना पड़ा. अब उसे समझ नहीं आ रहा कि वह बैंक का कर्ज कैसे चुकाएगा, क्योंकि निकट भविष्य में लौकडाउन के खुलने के बाद भी तुरंत नौकरी मिल पाना उसे सपना ही लग रहा है. वह कोई भी काम करने को तैयार है, जिस से कुछ तो कमाई हो सके.

दिल्ली की दीपा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जब कर्ज लिया था तो उसे यकीन था कि वह नौकरी मिलते ही उसे चुकाना शुरू कर देगी. लेकिन आज वह घर में बैठी है. निराशा उस पर हावी है और अगर यही हाल रहा तो मां के गहने बेच कर उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा.

बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले अश्विनी कुमार ने पंजाब नैशनल बैंक से करीब ₹10 लाख का लोन ले कर जयपुर के एक निजी संस्थाआन से एमबीए किया। उस ने सोचा था कि दिल्ली में अपने कैरियर की शुरुआत करेगा और मोटा वेतन ले कर सारे सपने पूरे करेगा. उस के पिता के खेत हैं. वह नहीं जानता कि आज के हालातों में उसे कब नौकरी मिलेगी और वह कैसे कर्ज चुकाएगा.

यह अजीब विडंबना है कि उच्च शिक्षित प्राप्त युवाओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. एक तरफ तो उन के पास कमाई का कोई साधन नहीं है, दूसरी तरफ पढ़ाई के लिए लिया लोन भी उसे चुकाना ही है. बड़ीबड़ी मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी पाने का सपना तो चूरचूर हो ही चुका है, उस पर उन के पास करने को कोई काम नहीं है, क्योंकि सारे ही क्षेत्रों के हालात बुरे हैं और व्यापार से ले कर हर काम ठप्प हो चुके हैं.

सरकार लोन चुकाने के लिए बेशक कुछ मुहलत दे रही है, पर वह स्थाई समाधान नहीं है, क्योंकि नौकरी तो जरूरी है. शिक्षित युवा हताश है क्योंकि उन की डिग्रियां आज रद्दी हो गई हैं.

देश में तकनीकी शिक्षा में 70% हिस्सेदारी इंजीनि‌यरिंग कालेजों की है. बाकी 30% में एमबीए, फार्मा, आर्किटैक्चर जैसे सारे कोर्स आते हैं.

इंजीनियरिंग और एमबीए का क्रेज हमेशा से युवाओं में रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि अच्छी नौकरी और बेहतर भविष्य की गारंटी यही दे सकते हैं. फिर चाहे पढ़ाई पूरी करने के लिए कर्ज ही क्यों न लेना पड़े.

महंगी शिक्षा के कारण लोन लेना भी एक फैशन ही है. कर्ज लो और अपनी कमाई से उसे चुकाते रहो, ताकि मातापिता पर बोझ न पड़े.

अवसाद घेर रहा है

उच्च शिक्षित पीढ़ी के सामने इस समय अगर एक तरफ बेरोजगारी सिर उठाए खड़ी है तो दूसरी ओर कर्ज चुकाने की समस्या इन्हें आत्महत्या व अवसाद की ओर धकेल रही है.

गौरव ने तकरीबन 6 महीने पहले अपनी इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. ₹10 लाख कर्ज लिया इस उम्मीद से कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह इंडस्ट्रियल औटोमेशन में कैरियर बना लेगा, लेकिन उस का वह सपना पूरा नहीं हुआ तो उस ने एक दुकान में मिक्सर, पंखे जैसी घरेलू चीजों को सुधारने का काम करने की नौकरी कर ली, जो इस समय बंद पड़ी है. जो लोन लिया था, उसे चुकाना तो उस ने शुरू नहीं किया है और पता भी नहीं कि वह इसे चुका भी पाएगा या नहीं.

इस समय हजारों ऐसे युवा हैं जो महंगी शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरियों के लिए दरदर भटक रहे हैं.

सिविल इंजीनियरिंग से ले कर कंप्यूटर कोडिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों को न केवल नौकरी की चिंता है, बल्कि लोन चुकाना भी किसी मानसिक तनाव से कम नहीं है. यह चिंता उन्हें किस ओर ले जाएगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर यह तो तय है कि इस कोरोना वायरस की वजह से न सिर्फ मंदी का दौर दोबारा लौट आया है, वरन तनाव, अवसाद, आशंका और भय भी हर चेहरे पर साफ दिख रहा है.

मगर इस कठिन समय में सरकार से उम्मीद पालना बेकार है क्योंकि उन्हें बेरोजगारों को रोजगार देने से अधिक मंदिर बनवाने की चिंता है. धर्मकर्म में उलझी सरकार से लगता नहीं कि उन्हें बेरोजगारों की फिक्र होगी.

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