अमेरिका में पुलिस की बर्बरता का शिकार हुए जौर्ज फ्लोयड की मौत ने कई सवाल खड़े किए थे. जाति, धर्म, रंग आदि के आधार पर होने वाले भेद को उजागर कर पूरे अमेरिका को आग में झुलसा दिया था जिस का धुआं यहां भारत तक भी आया था. ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में भारतीयों ने भी सोशल मीडिया पर आवाज उठाई थी जिस से देश में रंगभेद को ले कर हर तरफ बहस छिड़ गई थी. अमेरिका में चल रहे आंदोलन का असर इतना गहरा हुआ था कि आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हुआ व उन्हें सजा सुनाई गई. हाल ही में भारत में भी पुलिस की बर्बरता का कुछ इसी तरह का मामला सामने आया जिस ने एक बार फिर पुलिस की प्रताड़ना को उजागर किया है. तमिलनाडु के तूतुकुड़ी जिले में जयराज और उन के बेटे बेनिक्स के साथ पुलिस हिरासत में जघन्य हिंसा हुई जिस से दोनों की मृत्यु हो गई. दोनों के साथ जो हुआ उस ने एक बार फिर पुलिस व न्यायिक प्रक्रिया को सवालों के घेरे में ला कर खड़ा कर दिया है.

पुलिस हिरासत में हिंसा व अत्याचार का यह पहला मामला नहीं है, ऐसे अनेक मामले हैं जहां पुलिस ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति के साथ बर्बरता की सीमाएं तोड़ी हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से 2016 तक भारत में पुलिस हिरासत में 1,022 लोगों की मौत हुई लेकिन पुलिस के खिलाफ केवल 428 एफआईआर लिखवाई गईं. इन में से भी सिर्फ 5 फीसदी पुलिस वालों को ही सजा मिली. यह आंकड़ें केवल मृत्यु के हैं व बुरी तरह घायल या अपंग होने वाले व्यक्तियों की गिनती का कोई जिक्र तक नहीं हैं. पुलिस जिसे जनता का रक्षक कहा जाता है यदि वह ही भक्षक बन जाए तो जनता न्याय के लिए किस का दरवाजा खटखटाएगी? पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार, बर्बरता, बलात्कार व अत्याचार का शिकार आमजन आखिर जाए तो जाए कहां?

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