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मानसून स्पेशल: बीमारियों से बचें और ले मानसून का मजा

मानसून के शुरू होते ही गरमी से निदान मिल जाता है. युवाओं के मन में बरसात का अलग ही मजा होता है. रेन डांस से ले कर बरसात में मस्ती के तमाम रास्ते वे तलाश लेते हैं. खानेपीने की पार्टी और मस्ती के बहुत सारे फंडे युवाओं के मन में होते हैं लेकिन इस बरसात में पहले जैसी मस्ती करने को नहीं मिलेगी. इस का कारण कोरोना वायरस है जो पूरी दुनिया में फैला हुआ है. कोविड संक्रमण के दौर में बरसात में होने वाली बीमारियां और भी घातक रूप ले सकती हैं. इस का कारण यह है कि कोविड-19 के कोरोना वायरस को बरसात के दिनों में दूसरे संक्रमण का साथ मिल जाएगा. जिस से वह और भी अधिक खतरनाक रूप में बढ़ सकता है.

बरसात का मौसम सब से अलग होता है. वातावरण में हरियाली पैदा हो जाती है. ऐसे में तन और मन दोनों में उमंग भर जाती है. बरसात में भीगने के साथ ही साथ तलीभुनी चीजों के खाने का भी बहुत मन करता है. परेशानी की बात यह है कि यही चीजें बरसात में बीमारियों का भी कारण बनती हैं. ऐसे में बरसात का मजा लेने के लिए जरूरी है कि खाने और भीगने दोनों में सावधानी रखें. तभी बरसात का मजा ले पाएंगे. इस के साथ ही साथ कोरोना वायरस से भी बच कर रहना है. लखनऊ की डाक्टर मधु गुप्ता कहती हैं, ‘‘बरसात में पानी, गंदगी, मच्छरों से होने वाले संक्र्रमण से पहले भी बीमारियां बढ़ती थीं. इस बार कोविड-19 के कारण बरसात में और भी अधिक सतर्क रहने की जरूरत है.’’

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बरसात में और फैल सकता है कोविड-19

बरसात के साथ ही साथ संक्रमण से होने वाली बीमारियों की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी हो जाती है. कोविड-19 के इस दौर में यह बरसात और भी अधिक बीमारियों को लाने वाली है. कोविड-19 यानी कोरोना वायरस के लक्षण और सामान्य सर्दीजुकाम व बुखार के शुरुआती लक्षण काफी हद तक मेल खाने वाले होते हैं. गले की खराश, सांस लेने में दिक्कत, नाक का बहना, सूखी खांसी का आना बरसात के समय में मौसम के बदलने से होने वाली बीमारियां हैं. पहले इन का सामान्य इलाज हो जाता था. अब सब से पहले कोविड-19 का टैस्ट कराना होगा.

बरसात अपने साथ कई बीमारियां भी ले कर आती है. मौसम में होने वाले परिवर्तन का स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. ऐसे में यदि खानपान को ले कर थोड़ी सावधानी बरती जाए तो मौसम का आनंद उठाते हुए खुद को स्वस्थ भी रखा जा सकता है. इस मौसम में तापमान में बारबार बदलाव और उमस के कारण बीमारियां फैलाने वाले बैक्टीरिया और वायरस तेजी से पनपते हैं. इस कारण पाचनक्रिया ठीक नहीं रहती. बरसात के मौसम में इन्फैक्शन, एलर्जी, सर्दीजुकाम, डायरिया, फ्लू, वायरल जैसी पानी और हवा से होने वाली बीमारियां लोगों को घेर लेती हैं.

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खानपान और साफसफाई का रखें खयाल

बरसात के मौसम में बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है सफाई और खानपान का विशेष ध्यान रखा जाए. इस मौसम में मच्छरों से पैदा होने वाली समस्याएं सब से अधिक होती हैं. ज्यादातर बीमारियों के फैलने का कारण भी मच्छर होते हैं. मच्छरों के काटने पर उन का सलाइवा बौडी के प्रोटीन से मिल कर रिऐक्शन पैदा करता है जिस से एलर्जी शुरू हो जाती है. इस से स्किन में सूजन आ जाती है और लाल चकत्ते बन जाते हैं. उन में खुजली भी होने लगती है. ज्यादा खुजली कई बार बड़े घाव का कारण बन जाती है. बरसात के दिनों में स्किन पर होने वाली एलर्जी सब से अधिक होती है.

इस मौसम में पानी में गंदगी बढ़ जाती है. गंदे पानी और खराब खाद्य पदार्थों से भी कई रोग हो जाते हैं. इन में दस्त, हैजा, टायफाइड और प्रदूषित खाने से होने वाली बीमारियां प्रमुख हैं. खराब पानी पीने से दस्त जैसी बीमारी लग जाती है. दस्त में पेटदर्द और बुखार के साथ आंतों में सूजन आ जाती है. बुखार का जब समय पर सही तरह से इलाज नहीं मिलता तो कई बार यह टायफायड में बदल जाता है.

डेंगू और मलेरिया

मलेरिया बरसात में होने वाली आम लेकिन गंभीर संक्रामक बीमारी है जो रुके हुए पानी में पैदा होने वाले मच्छरों के काटने से होती है. यह रोग मादा ऐनाफिलिज मच्छर के काटने से फैलता है. इस से बचने के लिए अपने आसपास पानी का जमाव न होने दें. मलेरिया की ही तरह डेंगू बुखार भी मच्छरों के काटने से ही फैलता है. लेकिन डेंगू फैलाने वाले मच्छर साफ पानी में पनपते हैं. मच्छर के काटने से फैलने वाले इस रोग का प्रभाव मरीज के पूरे शरीर और जोड़ों में तेज दर्द के रूप में होता है. इस से बचने के लिए मच्छरों से बचें और घर से निकलने से पहले शरीर को पूरी तरह ढक लें.

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चिकनगुनिया भी मच्छरों से फैलने वाला बुखार है जिस का संक्रमण मरीज के शरीर के जोड़ों पर भी होता है और जोड़ों में तेज दर्द होता है. इस से बचने के लिए अपने आसपास जलभराव न होने दें. जिस से उस में पनपने वाले मच्छर बीमारी न फैला सकें.

टायफाइड

बरसात के मौसम में गंदे हाथों से खाने से संक्रमण हो जाता है जिस से टायफाइड जैसा बुखार भी हो सकता है. इस के लक्षणों में सूखी खांसी, सिरदर्द, भूख की कमी प्रमुख होते हैं. टायफाइड से बचाव के लिए रोगी को पूरा आराम करना चाहिए. पीने का पानी उबाल कर पीना चाहिए.

डायरिया

डायरिया का रोग भी बरसात में होता है. डायरिया एक बैक्टीरिया के जरिए फैलता है. डायरिया दूषित खाना ग्रहण करने से होता है. प्रदूषित पानी पीने से भी डायरिया हो जाता है. इस के लक्षणों में दस्त, थकान, बुखार शामिल हैं. डायरिया से बचाव करने के लिए बारिश के मौसम में गरम खाना खाएं तथा उबला हुआ पानी पिएं.

त्वचा संबंधी बीमारियां

बरसात के मौसम में त्वचा चिपचिप होने लगती है जिस से त्वचा में एलर्जी के साथ बैक्टीरिया पैदा होने लगते हैं. इस से त्वचा खराब होने लगती है. चोट, घाव और मच्छरों के काटने से स्किन की बीमारियां भी बहुत होती हैं. चोट और घाव को जल्दी ठीक करने के लिए बाहर जाते समय घाव को ढक कर चलें. सड़कों पर पड़े खराब पानी के संपर्क में न आएं. बाहर से आ कर स्नान जरूर करें.

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आंखों के रोग

बरसात के मौसम में आंखों की बीमारियां भी बहुत होती हैं. आई फ्लू में आंखें लाल हो जाती हैं और सूजन की वजह से आंखों में दर्द होता है. इस से बचने के लिए साफ हाथों से ही आंखों को साफ करना चाहिए. अपने खुद के तौलिए से ही शरीर को पोंछना चाहिए. आंखों को दिन में 3-4 बार साफ पानी से धोना चाहिए. यदि तब भी यह बीमारी दूर न हो तो डाक्टर को दिखाना चाहिए.

प्रायश्चित्त-भाग 3: जनार्दन और सावित्री का क्या रिश्ता था?

सावित्री के आकर्षण से भीड़ खिंचने लगी और पार्टी की छवि व उन का कद बढ़ता चला गया. अब वे पार्टी महासचिव की खास बन गई थीं. वे सफलता की सीढि़यां लांघती चली गईं, पहले एमएलसी, एमएलए, फिर एमपी. अपनी काली कमाई से नालायक बेटे को दुबई में शानदार होटल खुलवा दिया, जहां वह अपनी विदेशी गर्लफ्रैंड के साथ ऐशभरी जिंदगी जी रहा है. जब शिक्षा मंत्री बनीं तो मौडलिंग में असफल हुई बेटी, जो आत्महत्या करने को उद्दत थी, की इच्छा के अनुसार उस के नाम पर देशविदेश में फैशन डिजाइनिंग और मौडलिंग के कई कोचिंग इंस्ट्टियूट खुलवा दिए जहां हाईसोसाइटी के बच्चे कोर्स कर प्रतिभाशाली बनने की कोशिश में लगे हुए हैं.

बच्चों द्वारा की गई उपेक्षा पर मन खिन्न था, खुद को सांत्वना देते हुए सोचा. शायद बच्चों को इस बात का पता ही न हो, जनार्दनजी ने बताया भी है कि नहीं? चलो, मैं ही बात कर लेती हूं बच्चों से. तभी याद आया कि उन का मोबाइल भी तो पुलिस वालों ने रख लिया है अपने पास. इस तरह के उलटेसीधे खयाल आते रहे इन 24 घंटों में. अगले दिन जब समय कटना मुश्किल हो गया तो सोचा अखबार ही पढ़ लिया जाए. आवाज लगा कर अखबार मंगवाया तो एक कर्मचारी ने एक दिन पुराना मुड़ातुड़ा

अखबार ला कर सामने रख दिया. बड़े बेमन से बासी खबर पढ़ने के लिए अखबार खोला. अखबार के मुख्यपृष्ठ पर छपा था. ‘ड्रग्सघोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद सांसद सावित्री देवी को लोकसभा से अयोग्य ठहराया गया. चुनाव के नए नियमों के अनुसार, सांसद सावित्री देवी की लोकसभा की सदस्यता समाप्त होने के साथसाथ अब वे अगले 11 साल तक लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगी. लोकसभा के महासचिव ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है.’ आम जनता के साथसाथ देश की सभी पार्टियों ने कोर्ट के इस निष्पक्ष फैसले का स्वागत किया है. आगे लिखा था, ‘कोर्ट के इस फैसले से जाहिर होता है कि आज की जनता जागरूक हो चुकी है. वह भ्रष्टाचार और घोटालों को कतई बरदाश्त नहीं कर सकती. जनता जिसे सिर पर बैठाती है, गलती करने पर उसे कदमों तले भी रख सकती है. सीबीआई द्वारा सावित्री देवी की देशविदेश में संचित चलअचल संपत्ति पर छापा मारा जा रहा है.’

एक झटका सा लगा उन्हें. फिर संभल कर सोचने लगीं, सब प्रतिद्वंदी पार्टियों की करतूत है मेरी छवि खराब करने के लिए.

तभी उन की नजर नीचे लिखी एक दूसरी खबर पर पड़ी जिस में एक प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर ‘बढ़ते कदम’ के महासचिव ने यह घोषणा की कि हमारी पार्टी सदैव से देश की निस्वार्थ सेवा करने वाली पार्टी रही है. ऐसे में भ्रष्टाचार में लिप्त किसी भी सदस्य को पार्टी माफ नहीं करेगी. मैं मीडिया के माध्यम से जनता को बताना चाहता हूं कि भ्रष्टाचार की दोषी सांसद सावित्री देवी को पार्टी से निष्कासित किया जाता है. मीडिया के पूछने पर कि अब पार्टी में उन का रिक्त स्थान कौन भरेगा? महासचिव का उत्तर था- ‘पार्टी और जनता के सेवक सच्चे जनार्दनजी.’

सन्न रह गईं इस खबर को पढ़ कर. ‘ओह, तो यह बात है. अब समझ में आया कि जनार्दन क्यों नहीं आया इस बार मुझ से मिलने, कितनी गहरी चाल चली उस ने, मेरे सामने सोने की थाली परोस कर पीछे से छुरा घोंप दिया उस ने’ अचानक ही उन के मुंह से निकल गया. जनार्दन तो उस के सामने कुछ था ही नहीं, सिर्फ एक कार्यकर्ता (दलाल) भर था पार्टी का, जिस ने न कभी चंदा जुटाया और न कभी अपना एक पैसा ही खर्च किया. हां, पिछले कुछ दिनों में उन के नाम का फायदा उठा कर अपनी संपत्ति और अच्छीखासी पहचान बना ली थी.

याद आने लगे 20 वर्ष पुराने वे दिन जब पार्टी के नए सदस्य के रूप में उन्होंने शपथ ग्रहण की थी. किस तरह दिनरात एक कर के चंदा जुटाया करती थीं, सदस्यों की संख्या बढ़ाने और पार्टी को जिताने के लिए कैसेकैसे लोगों से मिलना पड़ा, क्याक्या समझौते किए, कितने पापड़ बेलने पड़े थे उन्हें. आंखों से आंसू अविरल बहने लगे. आंसुओं के बह जाने से जब मन थोड़ा शांत हुआ, सोचने लगीं कि जनार्दन ने उन्हें ऊपर उठाने में अपना कंधा दिया था, आज मौका देख कर वह उन के कंधों का सहारा ले कर ऊपर चढ़ गया तो कौन सा बुरा किया. चलो जनार्दन तो पराया था पर बच्चे, उन्हें तो मैं ने जन्म दिया है. पति की इच्छा के विरुद्ध जा कर हर सुखसुविधा जुटाई, उन की हर मनमानी को पूरा किया. अगर वे चाहते तो फ्लाइट से जरूर पहुंच सकते थे संकट की इस घड़ी में. दोनों बच्चों के चेहरे एकबारगी आंखों के सामने घूम गए. फिर खुद मन ने ही उन से कहना शुरू किया, ‘कौन से बच्चे, किस के बच्चे? ‘नमन और नीना?’ तुम ने उन्हें एक मां बन कर बच्चों की तरह पाला कहां? सहीगलत, उचितअनुचित की पहचान कराने की जगह पति के आदर्शों, विचारों को तुच्छ दिखाने के लिए उन की हर इच्छा को पूरी कर पति के खिलाफ एक हथियार की तरह प्रयोग किया.’ बात में सचाई थी. मन विक्षोभ से भर उठा अपनेआप पर.

एक दिन और निकल गया जेल में. अकेलापन खाए जा रहा था. तभी पता नहीं क्यों राजन की याद आने लगी उन्हें. याद आने लगा राजन का स्नेह, सादगीपूर्ण व्यवहार और आदर्शवादी बातें. कितनी सचाई थी उन की बातों में कि गलत काम कर के पैसा कमाना गुनाह है. गुनाह ही तो किया था उन्होंने अभी तक. महसूस होने लगा था राजन का अकेलापन, उन का तिलतिल कर घुटना. ऐसा नहीं था कि राजन ने उन्हें समझाने की चेष्टा नहीं की हो. जब पार्टी से पहली बार चुनाव लड़ने का टिकट मिला था तभी कहा था, ‘सावित्री, राजनीति की दलदल में पैर मत रखो. एक बार घुस गई तो जितना निकलने की कोशिश करोगी उतना ही फंसती चली जाओगी.’

‘आप जलते हैं मेरी कामयाबियों से’ कह कर उन्हें झटक दिया था तब. उस के बाद से राजन गुमसुम रहने लगे थे पत्नीबच्चों से कट कर. ज्यादा समय घर से बाहर बिताते, गम भुलाने के लिए कभीकभी पीने भी लगे थे. इतना अंदाज तो सावित्री को भी हो गया था. फिर एक दिन सावित्री को जनार्दन ने बताया कि राजन साहब आजकल अकसर किसी औरत के साथ अपनी दुकान पर बैठे बातें करते रहते हैं, यह ठीक नहीं है पार्टी और उन के हित में. सुन कर आगबबूला हो गईं. कारण, चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में राजन का किसी अन्य स्त्री से ज्यादा बातें करना या नजदीकियां बढ़ाना उन के लिए महंगा साबित हो सकता है.

किसी तरह खुद को संयत किया. पता लगवाया उस औरत के विषय में. पता चला किसी प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका है, कांति नाम है उस का, पति एक दुर्घटना में अपंग हो कर बिस्तर पर पड़ा हुआ है. वह पति की दवाई के सिलसिले में अकसर दुकान पर आती रहती है. एक बार पैसे की तंगी होने पर राजन ने उसे कुछ दवाएं उधार में दे दीं. तनख्वाह मिलने पर वह पैसे चुकाने आई तो धन्यवाद के रूप में अपने हाथ की बनी खीर लेती आई. राजन को खीर बहुत पसंद आई.

इस तरह दोनों के बीच कुछ लगाव उत्पन्न हो गया था. आपस में बातें कर के वे अपना मन हलका कर लिया करते थे. बात ज्यादा गंभीर नहीं थी पर कांति में उन्हें अपनी सौतन दिखी, अपना राजनीतिक भविष्य डूबता हुआ नजर आया. चुपचाप भेज दिया अपने शागिर्दों को उस के पास डरानेधमकाने. अगली सुबह ही कांति का तबादला करवा दिया किसी अनजान सुदूर क्षेत्र में. इस घटना के बाद राजन गांव चले गए थे अपने अम्माबाबूजी के पास. वहां जिंदगी कैसे चल रही होगी, यह सावित्री को पता नहीं था और न जानने की उत्सुकता थी. कुछ दिन बाद एक सिपाही ने आ कर सूचना दी, ‘‘मैडम, आप से कोई मिलने आया है.’’‘‘नहीं मिलना है मुझे किसी से,’’ विरक्त भाव से कह तो दिया सावित्री ने पर नाम पूछना न भूलीं.

‘‘जी, राजन नाम है,’’ सिपाही के कहने पर सहसा विश्वास नहीं हुआ उन्हें. पैर तेजी से बढ़े आगंतुक से मिलने को पर एकाएक ठिठक भी गए.

किस मुंह से जाऊं राजन के पास? हिम्मत नहीं हो रही थी. मन ग्लानि से भर गया था अपने किए गए कुकर्मों को सोच कर. लोग क्षेत्र, जाति, धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं पर उन्होंने तो अपनी महत्त्वाकांक्षा के लिए रिश्तों से ही राजनीति कर डाली थी. पति की भावनाओं से, बच्चों के भविष्य से, समाज के आदर्शों से. सचमुच अति महत्त्वाकांक्षा की परिणति दुखदायी होती है.

चंचल मन ने फिर सचेत किया, ‘सावित्री, यही समय है माफी मांग कर अपनी गलतियां सुधारने का, किए गए गुनाहों के प्रायश्चित्त करने का.’

मन में पश्चात्ताप और ग्लानि का भाव लिए, भरे नैनों से वे राजन से मिलने चल पड़ीं. आखिर अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त जो करना था उन्हें. पता चला कि राजन अपने साथ एक वकील लाए थे. खेत बेच कर वे किसी भी तरह सावित्री को जेल से निकलवाने के लिए हर कोशिश कर रहे थे.

प्रायश्चित्त-भाग 2: जनार्दन और सावित्री का क्या रिश्ता था?

राजन ने कुछ कहा तो नहीं, बस, चुपचाप सुनते रहे. जब सावित्री चुप हो गईं तो राजन ने कहा, ‘देखो सावित्री, ऐसे प्रस्ताव मेरे दुकान पर भी कई लोग ले कर आते हैं. वास्तव में वे नकली दवाइयों का बिजनैस करना चाहते हैं. माना कि इस में मुनाफा ज्यादा है पर सोचो, इस के परिणाम कितने भयावह होंगे? क्या यह समाज के लिए उचित होगा? फिर पुलिस का चक्कर अलग से. मेरा तो मन कांप जाता है ऐसा सोच कर भी.’

‘तुम भावुक हो, ईमानदार हो, पर सुखी जिंदगी भावनाओं या ईमानदारी से नहीं, बल्कि पैसों से चलती है, राजन,’ सावित्री ने स्वर में तल्खी लाते हुए कहा. जनार्दन के दिखाए सपनों का फितूर अभी भी सावित्री के सिर पर चढ़ा हुआ था.

‘मुझ से यह सब अवैध काम नहीं होगा. यह मेरे आदर्शों के खिलाफ है. मैं अपने परिवार के साथ सीधीसादी जिंदगी जीना चाहता हूं, बस.’ राजन ने यह कहा तो सावित्री चिल्ला पड़ी थीं उन पर, यह कहते हुए कि आदर्शों से झोंपड़ी बन सकती है, महल नहीं. कई दवा विक्रेता करते हैं यह काम. कुछ नहीं होता. अगर कुछ हुआ भी तो जनार्दन सब संभाल लेंगे.’ पति से प्रत्युत्तर न पा कर फिर कहना शुरू किया, ‘सच पूछो तो तुम हीनभावना से ग्रस्त हो. बड़े लोगों के बीच उठनाबैठना ही नहीं चाहते. एक मौका मिला है हमें अमीर बनने का जर्नादन के रूप में, हर इच्छा पूरी करने का, बच्चों को खुशहाल बनाने का पर तुम तो मुझे और मेरे बच्चों को सुखी देखना ही नहीं चाहते.’

‘गलत ढंग से पैसा कमाना गुनाह है और मैं नहीं चाहता कि मेरा परिवार इस गुनाह का भागीदार बने,’ कह राजन करवट बदल कर सो गए.

उन की आवाज सुन दूसरे कमरे में सो रहे बच्चों की आंखें खुल गई थीं. वे मम्मीपापा की बातों को ध्यान से सुन रहे थे. पूरी बात तो समझ नहीं आई पर दोनों बच्चों को मम्मी की यह बात समझ आ गई कि पापा हमें सुखी देखना नहीं चाहते. तभी तो हर बात में रोकटोक और फुजूलखर्ची पर उपदेश देते रहते हैं. उस घटना के बाद से राजन और सावित्री एक ही छत के नीचे तो अवश्य रह रहे थे पर मन पूरी तरह से अलग हो चुके थे. सावित्री ने समझ लिया कि झूठसच के चक्कर में जिंदगी यों ही अभावों में निकल जाएगी, खुशहाल जिंदगी जीने के लिए अब उन्हें ही कुछ करना होगा. कुछ दिनों बाद ही जर्नादन की सलाह पर सावित्री ने ‘बढ़ते कदम’ नामक राजनीतिक पार्टी जौइन कर ली थी.

मन बहुत चंचल होता है, कभी आशंकाओं से घबराता है तो कभी खुद को सांत्वना देने की कोशिश भी करता है. मन ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘लगता है इस बार मेरी अग्रिम जमानत करवा कर ही जनार्दन आंएगे.’ ऐसा सोच कर सावित्री को थोड़ी तसल्ली हुई. भरी भीड़ के सामने पूछे गए सवालों का जवाब देते समय उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘मुझे कानून और न्यायप्रणाली पर पूरा भरोसा है.’ पर वास्तविकता यह थी कि उन्हें अपने जनार्दन पर पूरा भरोसा था. सोचतेसोचते पता नहीं कब नींद ने उन्हें अपनी आगोश में ले लिया. सुबह महिला कौंस्टेबल की कड़क आवाज, ‘‘मैडम उठो, सफाई करवानी है, आज जेलर साहब राउंड पर हैं,’’ सुन कर उन की नींद खुली. पहले तो कुछ समझ नहीं आया, फिर धीरेधीरे कल की सारी बातें याद आने लगीं. ‘‘तुम्हारी इतनी हिम्मत, जानती नहीं किस से बातें कर रही हो? मैं ‘बढ़ते कदम’ पार्टी की सांसद सावित्री हूं.’’ कैद में थी तो क्या हुआ गरूर में कोई कमी न थी.

‘‘जानती हूं तभी तो, ‘मैडम’ कह रही हूं आप को’’ कह कर वह कौंस्टेबल अपने काम में लग गई.

‘‘देख लूंगी तुम्हें,’’ भुनभुनाते हुए सावित्री भी जल्दी से नित्यकर्म निबटा कर मिलने आने वालों का इंतजार करने लगीं, खास कर जनार्दनजी का कि क्या खबर लाते हैं मेरी रिहाई के बारे में.

पर अगले 24 घंटों तक जनार्दनजी तो क्या, पार्टी का कोई लल्लूटाइप सदस्य भी उन से मिलने नहीं आया. और तो और, उन के अपने दोनों बच्चे भी, जिन की मनमानी पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी सावित्री ने.

बड़ा बेटा नमन थोड़ा चंचल स्वभाव का था. पेरैंट्स डे के दिन जब भी वह अपने पति राजन के साथ टीचर से मिलने स्कूल जाती, शिकायत सुनने को मिलती कि यह कक्षा में पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय या तो कहानी की किताबें पढ़ता है या दूसरे दोस्तों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न करता है. एक बार तो इस बात पर घर आ कर राजन ने उस की पिटाई भी की थी और चेतावनी दी थी कि अपनी आदतें सुधार लो वरना पौकेटमनी बंद हो जाएगी. नमन डर गया और तुरंत पढ़ने बैठ गया था. पर उन्हें लगा कि नमन की पौकेटमनी बंद करना उन के व्यवसायी पति का पैसे बचाने का एक बहाना है. मन ही मन सोचा, अच्छा उपाय निकाला है पैसे बचाने का, अगर बचाएंगे नहीं तो गांव कैसे भेज पाएंगे ढेर सारे पैसे अपने मांबाप की मुंहमांगी मुराद पूरी करने को. कितना निरीह लगा था नमन उस दिन सावित्री को और पति उतने ही कंजूस.

बेटी नीना की मौडलिंग, फैशन डिजाइनिंग में रुचि थी. सामान्य नैननक्श वाली वह लड़की अकसर अपनी इच्छा जाहिर करती तो पापा समझाते बेटा, ‘ये सब खर्चीले शौक हैं. हम लोग मध्यवर्गीय परिवार के हैं. अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान दो और शरीर की जगह मन से सुंदर बनने की कोशिश करो.’

उफ, हर समय खर्चे की तंगी. आदर्शभरी बातें. तंग आ चुकी थी वह इन सब बातों से. तभी दोपहर के खाने की सीटी बजी. ध्यान भंग हुआ, खाना खाने का मन नहीं था. भूख तो खत्म हो चुकी थी लोगों का इंतजार करतेकरते. मन फिर अतीत की ओर चला गया. पार्टी जौइन करने के बाद तो समय, जैसे पंख लगा कर उड़ने लगा था. वे सावित्री देवी बन गईं. पतली, लंबी, आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी, बोलने में दक्ष सदस्य को पा कर पार्टी महासचिव गदगद हो उठे थे. थोड़े दिनों में ही उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बना दिया गया. मीडिया और विरोधियों के प्रश्नों का वे ऐसा दो टूक उत्तर देतीं कि प्रश्न पूछने वाले दंग रह जाते. ज्योंज्यों राजनीतिक व्यस्तता बढ़ती गई, त्योंत्यों राजन के प्रति उन की उदासीनता भी बढ़ती चली गई. एक बार मन हुआ ऐसे दब्बू और आदर्शवादी पति को तलाक देने का, पर इस से विरोधी पार्टियों को उन के विरुद्ध बोलने का मौका मिल जाता, शादीशुदा भारतीय नारियों के वोट निकल जाते उन के हाथ से. चुप रहना ही उचित समझा पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए वे जानबूझ कर पति की इच्छाओं के विपरीत काम कर के उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त करतीं. बच्चों को भी अच्छेअच्छे गिफ्ट मिलने लगे तो पापा की जगह मां की इज्जत उन की नजरों में बढ़ गई.

मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं,पर उनका भाई यानी मेरा देवर मुझे बहुत पसंद करता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं. समस्या यह है कि उन का भाई यानी मेरा देवर मुझे बहुत पसंद करता है. कई दफा वह मेरे साथ कुछ ऐसा व्यवहार कर जाता है जो मेरे पति को नागवार गुजरता है. मैं देवर को भी नाराज नहीं करना चाहती. क्या करूं?

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जवाब

आप को पहले इस मामले में स्वयं क्लियर होना होगा. यदि आप अपने पति से प्यार करती हैं तो फिर इस प्यार को बनाए रखने के लिए दूसरे रिश्तों से एक मर्यादित दूरी बना कर रखें. अपने देवर से स्पष्ट तौर पर कह दें कि आप उन्हें सिर्फ देवर के तौर पर देखती हैं और वह आप को ले कर किसी तरह की ख्वाहिशें न पाले.

अकसर देवर भाभी के अवैध रिश्ते जिंदगी में तूफान ले आते हैं. पति की भावनाओं का खयाल रखें. मुमकिन हो तो आप दोनों पति पत्नी कहीं अलग एक छोटा सा फ्लैट ले लें ताकि देवर से थोड़ी दूरी कायम हो जाए. हर वक्त साथ रहने से इस तरह के नाजुक रिश्तों में गलतफहमियां बढ़ने के आसार बढ़ जाते हैं.

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रोजगार चाहिए, मंदिर-मस्जिद नहीं

राहुल एक ऐंड्रौयड डैवलपर है और अमेरिका की एक कंपनी में काम करता है. कंपनी का हैड औफिस सान फ्रांसिस्को में है. उस का 3-4 बार वहां चक्कर लगता ही था, क्योंकि वह उन के अच्छे कर्मचारियों में से एक था.

बैंगलुरू में भी इस कंपनी का ब्रांच औफिस है. 4 मार्च को ही वह वहां से भारत लौटा था. 1 अप्रैल को कंपनी के सीईओ की मेल आई कि उस की टीम के सारे लोगों को जो अमेरिका में हैं, नौकरी से निकाल दिया गया है. वजह कोरोना के इस संकटग्रस्त समय में मंदी थी. अब राहुल परेशान है, क्योंकि उसे नहीं पता कि उसे भी कब नौकरी से हाथ धोना पड़े.

कोरोना वायरस महामारी के बीच लागू लौकडाउन का असर हर क्षेत्र में पड़ा है, जिस की वजह बेरोजगारी की समस्या और उस से जुड़ी आर्थिक मंदी ने युवाओं के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया है. उन के पास योग्यता है, अनुभव है पर नौकरी नहीं.

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प्राइवेट संस्थानों से महंगी शिक्षा प्राप्त करने के पीछे युवाओं का उद्देश्य केवल मोटे वेतन वाली नौकरियां पाना होता है, जि सके लिए वे कर्ज लेते हैं. लेकिन लौकडाउन के बाद परिस्थितियां ही बदल गईं. वे घर बैठे हैं और कर्ज चुकाना तो दूर, उस पर लगने वाला ब्याज देना भी भारी हो गया है.

बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े

कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामले किस ऊंचाई पर पहुंच कर कम होंगे, फिलहाल इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन लौकडाउन ने नौकरियों का कितना नुकसान किया है, यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है.

नौकरियों के नुकसान के आंकड़े बेहद भयावह हैं. रोजगार के मोरचे पर अनिश्चितता झेल रहे लोगों की तादाद आज भारत में रूस की आबादी जितनी हो सकती है.

एक अनुमान के मुताबिक लौकडाउन से पहले लगभग 3.4 करोड़ लोग बेरोजगार थे, लौकडाउन के बाद नौकरी गंवाने वाले लगभग 12 करोड़ लोगों में इस संख्या को जोड़ दें तो आंकड़ा 15 करोड़ तक पहुंच जाता है. लेकिन इन युवाओं का आंकड़ा अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, जो पढ़ाई करने के बाद नौकरी पाने की लालसा पाले थे मगर उस से पहले ही लौकडाउन हो गया और देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई.

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उधर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि देश में 2.70 करोड़ युवा जिन की उम्र 20 से 30 साल के बीच है, वे अप्रैल महीने में बेरोजगार हो गए हैं.

बड़े शहरों में तो लौकडाउन के कारण कई कंपनियों के दफ्तर तक बंद हो गए या फिर वहां वर्क फ्रौम होम का नियम अपनाया जा रहा है.

सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई) के एक आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर 24% दर्ज की गई जबकि यह मार्च में 8.74% थी.

3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बेरोजगारी दर 27% थी.

आंकड़े बताते हैं कि देश में फिलहाल 11 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं. सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वे के डाटा के मुताबिक नौकरियां गंवाने वाले लोगों में 20 से 24 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 11% है. सीएमआईई के मुताबिक 2019-20 में देश में कुल 3.42 करोड़ युवा काम कर रहे थे जो अप्रैल में केवल 2.9 करोड़ रह गए.

इसी तरह से 25 से 29 साल की उम्र वाले 1.4 करोड़ लोगों की नौकरियां  चली गईं. 2019-20 में इस वर्ग के पास कुल रोजगार का 11.1%

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हिस्सा था लेकिन नौकरी जाने का प्रतिशत 11.5% रहा. अप्रैल में 3.3 करोड़ पुरुष और महिलाओं की नौकरियां चली गईं. इस में से 86% नौकरियां पुरुषों की गईं.

एक खबर के मुताबिक, बेरोजगारी दर भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिल रही है. अप्रैल के महीने में अमेरिका में करीब 1 करोड़ लोग बेरोजगार हुए. पढ़ाई पूरी कर निकले युवा तो नौकरी पाने की बात सोच भी नहीं रहे हैं.

महंगी पढ़ाई और ऊंचे सपने

लेकिन यह तो उन युवाओं की बात है जो नौकरी कर रहे थे और लौकडाउन के कारण जिन की नौकरियां चली गईं, पर उन का क्या जिन्होंने अच्छे प्राइवेट कालेजों से पढ़ाई करने के लिए ऊंची रकम इस आशा से चुकाई थी कि वहां से निकलते ही उन्हें मोटी सैलरी वाली नौकरियां मिल जाएंगी.

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों में कई ऐसे सैक्टर में नौकरी पाने के लिए डिप्लोमा कोर्स कराने वाली संस्थाएं मौजूद हैं, जो 1 साल से ले कर 2 साल तक का कोर्स करा कर नौकरी देने का औफर करती हैं.

एमबीए, इंजीनियरिंग और कानून की महंगी पढ़ाई जहां एक तरफ ऊंचे सपने दिखाती हैं, वहीं लोन भी इसी उम्मीद से लिया जाता है कि नौकरी मिलने के बाद उसे चुकाना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन उन की उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब नौकरी मिलने के बजाए अचानक लौकडाउन हो जाने से वे बेरोजगारों की कतार में आ खड़े हुए और लोन पर चढ़ने वाले ब्याज को चुकाने की चिंता उन पर सवार हो गई.

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अपनी महंगी पढ़ाई उन्हें आज चुभ रही है और कहीं न कहीं उन्हें लग रहा है कि अशिक्षित होते तो कम से कम उन्हें सरकार या गैरसरकारी संगठनों से आर्थिक मदद तो मिल ही जाती.

नौकरी जाना न केवल युवाओं के लिए इस समय चिंता की बात है, बल्कि नई नौकरी तलाशना भी चुनौतीभरा काम है.

भारत में इस साल मार्च में नौकरियों  पर रखने के आंकड़ों में 18% की गिरावट आई है.

नौकरी डौट कौम के मुताबिक ट्रैवल, ऐविएशन, रिटैल और हौस्पिटैलिटी सैक्टर्स में नौकरियों पर रखने के मामलों में सब से ज्यादा 56% की गिरावट दर्ज की गई है.

भारतीय अर्थव्यवस्था का जायजा लेने वाली ऐजेंसी सीएमआईई की भी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च, 2020 में भारत में बेरोजगारी दर 8.7% रही, जोकि पिछले 43 महीनों में सब से अधिक है और इस समय भारत में बेरोजगारी की दर 23% फीसदी से ऊपर पहुंच गई है.

कहां से जुटाएं धन

जयपुर में रहने वाले मयंक ने कानून की पढ़ाई करने के लिए बैंक से करीब ₹5 लाख का ऐजुकेशन लोन लिया. अच्छे अंकों से पास हो कर वह इस क्षेत्र में कदम रखने ही वाला था कि लौकडाउन हो गया और उसे घर पर ही बैठना पड़ा. अब उसे समझ नहीं आ रहा कि वह बैंक का कर्ज कैसे चुकाएगा, क्योंकि निकट भविष्य में लौकडाउन के खुलने के बाद भी तुरंत नौकरी मिल पाना उसे सपना ही लग रहा है. वह कोई भी काम करने को तैयार है, जिस से कुछ तो कमाई हो सके.

दिल्ली की दीपा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जब कर्ज लिया था तो उसे यकीन था कि वह नौकरी मिलते ही उसे चुकाना शुरू कर देगी. लेकिन आज वह घर में बैठी है. निराशा उस पर हावी है और अगर यही हाल रहा तो मां के गहने बेच कर उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा.

बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले अश्विनी कुमार ने पंजाब नैशनल बैंक से करीब ₹10 लाख का लोन ले कर जयपुर के एक निजी संस्थाआन से एमबीए किया। उस ने सोचा था कि दिल्ली में अपने कैरियर की शुरुआत करेगा और मोटा वेतन ले कर सारे सपने पूरे करेगा. उस के पिता के खेत हैं. वह नहीं जानता कि आज के हालातों में उसे कब नौकरी मिलेगी और वह कैसे कर्ज चुकाएगा.

यह अजीब विडंबना है कि उच्च शिक्षित प्राप्त युवाओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. एक तरफ तो उन के पास कमाई का कोई साधन नहीं है, दूसरी तरफ पढ़ाई के लिए लिया लोन भी उसे चुकाना ही है. बड़ीबड़ी मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी पाने का सपना तो चूरचूर हो ही चुका है, उस पर उन के पास करने को कोई काम नहीं है, क्योंकि सारे ही क्षेत्रों के हालात बुरे हैं और व्यापार से ले कर हर काम ठप्प हो चुके हैं.

सरकार लोन चुकाने के लिए बेशक कुछ मुहलत दे रही है, पर वह स्थाई समाधान नहीं है, क्योंकि नौकरी तो जरूरी है. शिक्षित युवा हताश है क्योंकि उन की डिग्रियां आज रद्दी हो गई हैं.

देश में तकनीकी शिक्षा में 70% हिस्सेदारी इंजीनि‌यरिंग कालेजों की है. बाकी 30% में एमबीए, फार्मा, आर्किटैक्चर जैसे सारे कोर्स आते हैं.

इंजीनियरिंग और एमबीए का क्रेज हमेशा से युवाओं में रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि अच्छी नौकरी और बेहतर भविष्य की गारंटी यही दे सकते हैं. फिर चाहे पढ़ाई पूरी करने के लिए कर्ज ही क्यों न लेना पड़े.

महंगी शिक्षा के कारण लोन लेना भी एक फैशन ही है. कर्ज लो और अपनी कमाई से उसे चुकाते रहो, ताकि मातापिता पर बोझ न पड़े.

अवसाद घेर रहा है

उच्च शिक्षित पीढ़ी के सामने इस समय अगर एक तरफ बेरोजगारी सिर उठाए खड़ी है तो दूसरी ओर कर्ज चुकाने की समस्या इन्हें आत्महत्या व अवसाद की ओर धकेल रही है.

गौरव ने तकरीबन 6 महीने पहले अपनी इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. ₹10 लाख कर्ज लिया इस उम्मीद से कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह इंडस्ट्रियल औटोमेशन में कैरियर बना लेगा, लेकिन उस का वह सपना पूरा नहीं हुआ तो उस ने एक दुकान में मिक्सर, पंखे जैसी घरेलू चीजों को सुधारने का काम करने की नौकरी कर ली, जो इस समय बंद पड़ी है. जो लोन लिया था, उसे चुकाना तो उस ने शुरू नहीं किया है और पता भी नहीं कि वह इसे चुका भी पाएगा या नहीं.

इस समय हजारों ऐसे युवा हैं जो महंगी शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरियों के लिए दरदर भटक रहे हैं.

सिविल इंजीनियरिंग से ले कर कंप्यूटर कोडिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों को न केवल नौकरी की चिंता है, बल्कि लोन चुकाना भी किसी मानसिक तनाव से कम नहीं है. यह चिंता उन्हें किस ओर ले जाएगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर यह तो तय है कि इस कोरोना वायरस की वजह से न सिर्फ मंदी का दौर दोबारा लौट आया है, वरन तनाव, अवसाद, आशंका और भय भी हर चेहरे पर साफ दिख रहा है.

मगर इस कठिन समय में सरकार से उम्मीद पालना बेकार है क्योंकि उन्हें बेरोजगारों को रोजगार देने से अधिक मंदिर बनवाने की चिंता है. धर्मकर्म में उलझी सरकार से लगता नहीं कि उन्हें बेरोजगारों की फिक्र होगी.

क्या चीन तीसरे विश्व युद्ध के संकेत दे रहा है?

इन पंक्तियों के लिखे जाने के कुछ घंटे पहले सैटेलाइट तस्वीरों के जरिये पता चला है कि चीन ने पूर्वी लद्दाख सेक्टर में एलएससी (लाइन आॅफ एक्चुअल कंट्रोल) के पास करीब 20,000 सैनिक तैनात कर दिये हैं. यही नहीं उसने लद्दाख सीमा से सटे अपने जिनसियांग प्रांत में भी 10 से 12 हजार सैनिकों की तैनाती की है. हिंदुस्तान की उसके इस मूवमेंट पर लगातार निगाह है और सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया चीनी मूवमेंट से भविष्य की कुछ खतरनाक इबारतें पढ़ रही है. इसी के मद्देनजर भारतीय सेना ने भी अपनी जबरदस्त तैयारी में लगी हुई है. भारत की तरफ से भी पूर्वी लद्दाख सीमा के समीप दो डिवीजन सेना तैनात कर दी गई है.

भारत ने पूर्वी लद्दाख सीमा के निकट टैंक और बीएमपी-2 (बोयेवाय मशीना पेखोटी-इंफैंट्री कंबाट व्हीकल – विशेष रशियन इंफैंट्री युद्धक वाहन) भी वायु सेना द्वारा वहां पहुंचा दिये गये हैं. भारत की तरफ से त्रिशूल इंफैंट्री डिवीजन यहां तैनात की गई है. इसके अलावा हिंदुस्तान की तरफ से सीमा के नजदीक तीन और बिग्रेड की तैनाती की गई है. अगर सूत्रों की मानें तो गलवान वैली से लेकर काराकोरम दर्रे तक चीन की बढ़ती हरकतों पर भारतीय सेना पल-पल पर नजर बनाये हुए है, इसे सैटेलाइट के साथ तमाम आधुनिक उपकरणों के जरिये भी माॅनिटर किया जा रहा है. सवाल है इस सबके पीछे सिद्धांत रूप से चीन का इरादा क्या है? क्या चीन तीसरे विश्व युद्ध की भूमिका रच रहा है?

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गौरतलब है कि चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब सत्ता में आये थे, तो उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और इसके सदस्यगणों से वायदा किया था कि वह चीन के प्राचीन गौरव को पुनःस्थापित करेंगे और उसे ‘ज्ञान व शक्ति से अजय राष्ट्र’ बना देंगे. दरअसल यही वह ‘चाइना ड्रीम’ है जिसकी हाल के सालों में कई बार गुपचुप तरीके से चीनी सैन्य कमांडरों ने, चीन के बुद्धिजीवियों ने और चीन के फिल्मकारों ने चर्चा की थी. इस चाइना ड्रीम के सबसे बड़े रचनाकार शी जिनपिंग हैं. इसीलिए उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी ने आजीवन या लंबे समय तक के लिए सत्ता सौंप दी है. अपने इसी चाइना ड्रीम को ताकतवर संदेश में बदलने के लिए राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद शी जिनपिंग उस युद्धपोत की यात्रा पर गये थे, जो दक्षिण चाइना सी में सैन्य निर्माण के जरिये अपना नियंत्रण स्थापित करने में शामिल था. संक्षेप में बात ये है कि अब तक के अपने कार्यकाल में ने चाइन ड्रीम को कई तरीके से साकार करने की कोशिश में लगे हुए हैं. शी ने ग्लोबल टेक्नोलॉजी पर कब्जा करने के ‘चाइना 2025’ प्रोग्राम से लेकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जो योजनाएं बनायी हैं,उनका एकमात्र उद्देश्य चाइना ड्रीम को साकार करने के लिए सुनियोजित बुनियाद रखने का रहा है.

अपने इस ड्रीम को हासिल करने के लिए चीन ने ‘कैरट एंड स्टिक’ नीति अपनायी हुई है. नेपाल, पाकिस्तान, म्यंमार व श्रीलंका को इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के नाम पर वह अपने पाले में किये हुए है, भूटान डर कर उसके ‘साथ’ है, जिसका नतीजा यह है कि आज भारत के पड़ोसियों में सिर्फ बांग्लादेश व मालद्वीप ही चीन के ‘कब्जे’ में नहीं हैं. भारत को अपना पिछलग्गू बनाने के लिए उसने व्यापर व आरआईसी (रूस-इंडिया-चीन) ग्रुप का सपना बेचा यह मकसद बताते हुए कि ग्लोबल शासन के नियमों का गठन अकेले अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम को न करने दिया जाये बल्कि ऐसा वैकल्पिक ग्लोबल शासन विकसित किया जाये जिसका नेतृत्व एशिया के पास हो.

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फलस्वरूप पश्चिमी नजरिए ‘ग्लोबल नियम आधारित व्यवस्था’ के मुकाबले में ‘साझा भाग्य का समुदाय’ दृष्टिकोण देने का प्रयास किया गया, जिसके तहत आरआईसी ग्रुप अपने विविध ऐतिहासिक अनुभव व मूल्यों के बल पर एक ऐसा वैकल्पिक दृष्टिकोण विकसित करे जो ग्लोबल शासन के पश्चिम आदर्श से टकराए बिना प्रगति का मार्ग प्रशस्त करे. जिनपिंग ने अपने ‘साझा भाग्य का समुदाय’ सपने को भारत को बेचने के लिए साबरमती नदी के किनारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ झूला झूला, चीनी झील के किनारे चहलकदमी की और द्विपक्षीय समझौतों के जरिये ‘वुहान स्पिरिट’ को बनाये रखने के वायदे किये. जिसका नतीजा यह हुआ कि नई दिल्ली में भी ‘विश्व गुरु’ बनने और 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था हासिल करने के सपने देखे जाने लगे.

लेकिन देर से ही सही, नई दिल्ली को एहसास हो गया कि ‘साझा भाग्य का समुदाय’ वास्तव में सिर्फ ‘चीन का भाग्य’ या चाइना ड्रीम साकार करने का प्रयास है,जिसके असंतुलित व्यापार में भारत की भूमिका पिछलग्गू से अधिक की न होगी, इसलिए उसने बीआरआई में शामिल न होकर बीजिंग को यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि वह पिछलग्गू की भूमिका स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. नई दिल्ली ने अमेरिका से सैन्य सहयोग भी किया और क्वैड में शामिल होने का प्रयास भी. चीन को भी एहसास होने लगा कि उसकी ‘सभ्यताओं की बराबरी’ की मीठी मीठी बातें और व्यापार व सहयोग के समझौते भी भारत को पश्चिम की बांहों में जाने से रोक नहीं पा रहे हैं.

बीजिंग के लिए इस ‘विद्रोह’ को कुचलना जरूरी था, खासकर इसलिए कि चाइना ड्रीम के चलते चीन में यह कहानियां आम कर दी गई हैं कि प्राचीन समय में जब विश्व ने चीन की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया था तो हर देश अपनी औकात व स्थान को समझता था. इसलिए सम्राट को कभी कभार ही विद्रोही को ‘सबक सिखाने’ के लिए बाहर निकलना पड़ता था ताकि शांति बनी रहे, तो इस समय जो वास्तविक नियन्त्रण रेखा (एलएसी) पर लद्दाख, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश के पास चीन से भारत का सैन्य टकराव चल रहा है,वह हिमालय के चंद वर्ग किमी बेजान पत्थरों पर कब्जा करने को लेकर नहीं है बल्कि बीजिंग का विशाल सामरिक उद्देश्य है- भारत अपनी शक्ति की सीमाओं को स्वीकार करे और चीन का पिछलग्गू बन जाये.

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ड्रैगन ‘विद्रोही’ को ‘सबक सिखाने’ के लिए निकला है. गौरतलब है कि 1979 में चीन ने इन्हीं कारणों के चलते वियतनाम में ‘सबक सिखाने’ के लिए प्रवेश किया था, मगर उसे मुंह की खानी पड़ी थी. ड्रैगन के मंसूबे भारत में भी कामयाब नहीं होंगे. लेकिन लगता यह है कि इस बार अगर तोपों ने आग उगली तो झगड़ा केवल गलवान घाटी तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि विश्व युद्ध में तब्दील हो जायेगा क्योंकि ड्रैगन पर गुस्सा सिर्फ भारत को ही नहीं है बल्कि संसार के अधिकतर देशों को है, हां, कारण अलग अलग हो सकते हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया को चीन से कोविड-19 महामारी फैलाने के लिए नाराजगी है और दस देशों के समूह एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स इस बात को लेकर नाराज हैं कि चीन साउथ चाइना सी में समुद्री नियमों का उल्लंघन करते हुए अपना अवैध कब्जा बढ़ा रहा है.

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एहसास बीजिंग को भी है कि विभिन्न देश उसके विरुद्ध लामबंद हो रहे हैं, इसलिए उसने अपने सैन्य रिजर्व बलों को एक केन्द्रीय कमांड के तहत करते हुए विश्वस्तरीय सेना विकसित करने का काम शुरू कर दिया है. कहने की बात यह है कि अगर चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो एक बार फिर विश्व युद्ध की परिस्थितियां पैदा हो गई हैं. जिन्हें साकार रूप लेने से रोक पाना बहुत मुश्किल होगा.

गौधन न्याय योजना के तहत छत्तीसगढ़ सरकार खरीदेगी गाय का गोबर

भैंस के गोबर से ज्यादा गाय का गोबर भले ही बड़े ही काम का है, पर बहुत से पशुपालक गोबर के उपले बनाने से ज्यादा अहमियत नहीं देते. इसी के मद्देनजर छत्तीसगढ़ सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है.

जी हां, ऐसा पहली बार हो रहा है, जब छत्तीसगढ़ सरकार गाय के गोबर को खरीदेगी और वह भी तय कीमत के हिसाब से.

इस बात को ले कर पशुपालकों और किसानों में उत्साह है. उम्मीद है कि यह योजना 21 जुलाई, 2020 यानी हरेली त्योहार के दिन ही शुरू हो जाए.

छत्तीसगढ़ सरकार का यह फैसला एक तरफ जहां सड़कों पर आवारा घूमने वाले पशुओं की रोकथाम करेगा, वहीं इस गोबर से बनने वाली खाद से राज्य में जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा. साथ ही, पशुपालकों को भी लाभ होगा और गांवों में रोजगार और अतिरिक्त आय के मौके भी बढ़ेंगे.

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राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि सरकार के इस फैसले से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.

जी हां, यह सच है कि छत्तीसगढ़ सरकार गौधन न्याय योजना के तहत गोबर खरीदी को अमलीजामा पहनाने में लगी है. इस योजना के तहत सरकार ने गोबर खरीदी के दाम भी तय कर दिए हैं. यह खरीदी डेढ़ रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से तय की गई है.

वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पशुओं के रखने के काम को व्यावसायिक रूप से फायदेमंद बनाने, सड़कों पर आवारा पशुओं की समस्या से निबटने और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से यह योजना काफी महत्वपूर्ण है.

पिछले दिनों मंत्रिमंडलीय उपसमिति की बैठक हुई. इस बैठक में वन मंत्री मोहम्मद अकबर, सहकारिता मंत्री डा. प्रेमसाय सिंह टेकाम, नगरीय प्रशासन मंत्री डा. शिवकुमार डहरिया शामिल हुए. यह बैठक बीज भवन, रायपुर में आयोजित हुई.

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छत्तीसगढ़ राज्य में गाय के संरक्षण व सवंर्धन, वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन को बढ़ावा देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के मकसद से यह योजना तैयार की गई.

गौधन न्याय योजना के तहत शासन द्वारा निर्धारित दरों पर किसानों और पशुपालकों से गोबर की खरीदी की जाएगी. इस के जरीए बडे़ पैमाने पर वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार की जाएगी.

कृषि मंत्री रवींद्र चौबे ने कहा कि गौठान समिति अथवा उस के द्वारा नामित समूह द्वारा घरघर जा कर गोबर को इकट्ठा यानी गोबर संग्रहण किया जाएगा. इस के लिए खरीदी कार्ड की भी व्यवस्था सुनिश्चित करने की बात कही गई है, ताकि रोजाना संग्रहित किए जाने वाले गोबर की मात्रा और भुगतान की राशि का उल्लेख कार्ड में किया जा सके.
साथ ही, समिति ने किसानों और पशुपालकों से खरीदी किए गए गोबर के एवज में पाक्षिक भुगतान किए जाने की भी अनुशंसा की.

छत्तीसगढ़ की सरकार गोबर खरीद कर किसानों के साथसाथ वन विभाग और उद्यानिकी विभाग को देगी, ताकि इस गोबर से जैविक खाद तैयार कर किसानों को मुहैया कराई जाए. इस के लिए राज्य में तकरीबन 2,200 गौठान, जहां पशुओं को रखा जा सके, बनाए जा चुके हैं. वहीं, 2800 गौठानों के बनाए जाने का अनुमान है.

गौठानों में पशुओं की संख्या और गौठान के रकबे को ध्यान में रखते हुए वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए कम से कम 10 पक्के टांके बनाए जाने के निर्देश दिए.

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समिति ने गोबर संग्रहण का दायित्व गौठान समिति अथवा महिला स्वसहायता समूह को देने की बात कही.

बैठक में कृषि उत्पादन आयुक्त डा. एम. गीता ने गौधन न्याय योजना के तहत गोबर के संग्रहण से ले कर वर्मी कंपोस्ट तैयार किए जाने के संबंध में गौठान समितियों व स्वसहायता समूहों को प्रशिक्षण दिए जाने की बात कही. वहीं शहरी इलाकों में भी गोबर की खरीदी नगरीय प्रशासन विभाग और वन क्षेत्रों में वन प्रबंधन समितियों द्वारा की जाएगी.

मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने गौठानों के प्रबंधन, पशुधन के लिए चारे की व्यवस्था, शहरी इलाकों में गौठानों के बनाने के संबंध में भी अधिकारियों को जरूरी कार्यवाही के निर्देश दिए.

कृषि मंत्री रवींद्र चौबे ने कहा कि वर्मी कंपोस्ट की आवश्यकता किसानों के साथसाथ उद्यानिकी, वन विभाग को बड़े पैमाने पर होती है. ऐसे में गोबर से तैयार वर्मी कंपोस्ट की खपत और उस की मार्केटिंग की चिंता सरकार को नहीं है.

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उन का यह भी कहना है कि गौठानों में पहले से ही गोबर से कंपोस्ट बनाया जा रहा है. यहां बनने वाले वर्मी कंपोस्ट को प्राथमिकता के आधार पर उसी गांव के किसानों को निर्धारित मूल्य पर दिया जाएगा.

भले ही छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शुरू की गई गौधन न्याय योजना को अमलीजामा पहना कर गोबर खरीदने की पहल को सराहा जा रहा हो, पर यह योजना कितनी कारगर होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.
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Crime Story: फौजी की रंगीली बीवी

दीपक पट्टनदार मिलिट्री में थे. साल में 1-2 महीने की छुट्टी पर ही आ पाते थे. इसी वजह से उन की पत्नी अंजलि ने अपने कार ड्राइवर प्रशांत पाटिल से संबंध बना लिए. इतना ही नहीं, बल्कि उन के छुट्टी पर आने पर…  कर्नाटक के जिला बेलगांव के कस्बा होन्निहाल की रहने वाली अंजलि पट्टनदार का पति दीपक पट्टनदार

जब 4-5 दिनों तक घर नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता सताने लगी. उन्होंने अंजलि पट्टनदार से दीपक के बारे में पूछताछ की. क्योंकि उस दिन दीपक पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के साथ अपनी टाटा इंडिका कार से बाहर गया था.

पूछने पर अंजलि ने बताया कि 28 जनवरी को जब वह गोडचिनमलकी से पिकनिक से लौट रही थी तो रात करीब साढ़े 9 बजे दीपक ने एक जगह कार रुकवाई और यह कहते हुए कार से नीचे उतर गए तुम कि तुम लोग घर जाओ, मुझे बेलगांव में कुछ जरूरी काम है, वह जल्दी ही घर आ जाऊंगा.

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ससुराल वालों को अंजलि की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि दीपक को अगर कोई काम होता तो निपटा कर अब तक घर आ गया होता. उस का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उन्होंने अंजलि से कहा कि वह दीपक के बारे में सही जानकारी दे. ससुराल वालों के दबाव को देखते हुए अंजलि मरिहाल पुलिस थाने पहुंच गई और अपने पति दीपक पट्टनदार की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

अपनी शिकायत में अंजलि ने वहां के ड्यूटी अफसर को वही बात बताई, जो उस ने ससुराल वालों को बताई थी. उस ने कहा, ‘‘उस दिन से आज तक मेरे फौजी पति घर नहीं  लौटे. ऐसे में मैं ससुराल वालों और परिवार को क्या बताऊं. सब लोग उन के न लौटने का जिम्मेदार मुझे मान रहे हैं.’’ कहते हुए अंजलि सिसकसिसक कर रोने लगी.

बहरहाल, ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने अंजलि को सांत्वना देते हुए उस के पति दीपक की गुमशुदगी दर्ज कर ली. दीपक का हुलिया और फोटो भी ले लिए और अंजलि को घर भेज दिया. पुलिस ने उसे भरोसा दिया. कि पुलिस जल्द ही दीपक पट्टनदार को ढूंढ निकालेगी.

जबकि पुलिस यह बात अच्छी तरह जानती थी कि यह काम इतना आसान नहीं था. फिर भी पुलिस को अपना दायित्व तो निभाना ही था. मामले की गंभीरता को देखते हुए ड्यूटी अफसर ने फौजी दीपक पट्टनदार के लापता होने की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. थाना पुलिस ने लापता दीपक पट्टनदार की खोजबीन शुरू कर दी. दीपक का हुलिया और फोटो जिले के सभी पुलिस थानों को भेज दिए गए. यह 4 फरवरी, 2020 की बात थी.

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एक तरफ जहां पुलिस दीपक की तलाश में लगी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ दीपक के घर वाले अपनी जानपहचान, नातेरिश्तेदारों और उन के दोस्तों से लगातार संपर्क कर रहे थे. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी दीपक के घर वालों और पुलिस को दीपक का कोई सुराग नहीं मिला.

ऐसी स्थिति में घर वालों का विश्वास डगमगा रहा था. उन्हें यकीन हो गया था कि दीपक के अचानक गायब होने के पीछे कोई गहरा राज है, जिस का रहस्य दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के पेट में छिपा है. इस का संकेत दीपक पट्टनदार के भाई उदय पट्टनदार ने थाने के अधिकारियों को दे दिया था. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.

पुलिस अधिकारियों ने दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल को कई बार थाने बुला कर पूछताछ भी की थी, लेकिन उन से दीपक के बारे में कोई सूचना नहीं मिली.

8-10 दिन और निकल जाने के बाद भी जब पुलिस दीपक के बारे में कोई पता नहीं लगा पाई तो उदय पट्टनदार और उस के घर वालों को लगने लगा कि दीपक के साथ कोई अनहोनी हुई है. जब धैर्य जवाब देने लगा तो वे लोग बेलगांव के एसपी लक्ष्मण निमबार्गी से मिले.

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उन लोगों ने कप्तान साहब को सारी कहानी सुनाई. एसपी लक्ष्मण निमबार्गी ने गुमशुदा फौजी दीपक पट्टनदार के घर वालों की बातों को बड़े ध्यान से सुना और थाना मरिहाल के थानाप्रभारी को शीघ्र से शीघ्र फौजी दीपक का पता लगाने के निर्देश दिए.

मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और आर्मी अफसर की गुमशुदगी से संबंधित था. थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में जांच शुरू कर दी. उन्होंने बिना किसी विलंब के इंसपेक्टर एम.वी. बड़ीगेर, वी.पी. मुकुंद, वी.एस. नाइक, आर.एस. तलेवार आदि के साथ मिल कर जांच की रूपरेखा तैयार की. सब से पहले उन्होंने केस का अध्ययन किया. इस के साथ ही साथ उन्होंने तेजतर्रार मुखबिरों को गुमशुदा दीपक पट्टनदार का सुराग लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी, जिस में उन्हें कामयाबी भी मिली.

मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने दीपक पट्टनदार की पत्नी अंजलि का बैकग्राउंड खंगाला तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं, जिस के बाद अंजलि पर उन का शक गहरा गया.

उन्होंने अंजलि को थाने बुला कर उस से पूछताछ शुरू की तो वह पहले जैसा ही बयान दे कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही. इतना ही नहीं, वह अपनी ससुराल पक्ष के लोगों पर कई तरह के गंभीर आरोप लगा कर उन्हें पुलिस के राडार पर खड़ा करने की कोशिश कर रही थी.

लेकिन इस बार वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई. क्योंकि पुलिस को अंजलि के चालचलन को ले कर कई तरह की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए वह पुलिस के शिकंजे में फंस ही गई. पुलिस ने उस के साथ जब थोड़ी सख्ती बरती तो उस के हौसले पस्त हो गए. अपना गुनाह स्वीकार करते हुए आखिर उस ने पति दीपक पट्टनदार की हत्या की कहानी पुलिस को बता दी.

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थानाप्रभारी के पूछताछ करने पर अंजलि ने पति दीपक की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंका देने वाली थी.35 वर्षीय दीपक पट्टनदार सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस के पिता का नाम चंद्रकांत पट्टनदार था. उस के परिवार में मांबाप के अलावा एक छोटा भाई उदय पट्टनदार के अलावा एक बहन थी.

दीपक की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी. समाज में प्रतिष्ठा और मानसम्मान था. पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपक ने अपनी किस्मत आजमाने के लिए इंडियन आर्मी का रुख किया तो उस का चयन हो गया. पहली पोस्टिंग के बाद जब वह अपने घर आया तो परिवार वालों ने उस की शादी अंजलि के साथ कर दी.

27 वर्षीय अंजलि के पास रूप भी था और यौवन भी. आर्मी जवान को पति के रूप में पा कर अंजलि खूब खुश थी. दीपक भी अंजलि का पूरापूरा ध्यान रखता था. उस की जरूरत की सारी चीजें घर में मौजदू रहती थीं.

इंडियन आर्मी में होने के कारण दीपक को अपने परिवार और पत्नी के साथ रहने के लिए बहुत ही कम समय मिलता था. वह साल में एकदो बार ही महीने 2 महीने के लिए घर आ पाता था. लेकिन इस से अंजलि का मन नहीं भरता था. छुट्टियों का यह समय तो पलक झपकते ही निकल जाता था.

पति दीपक के जाने के बाद अंजलि को फिर वही अकेलापन, तनहाइयां घेर लेती थीं. उस का दिन तो किसी तरह गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए नागिन बन जाती थी. वह पूरी रात करवटें बदलबदल कर बिताती थी, जिस का फायदा अंजलि के चतुर चालाक ड्राइवर प्रशांत पाटिल ने उठाया.

ड्राइवर प्रशांत पाटिल उसी के गांव का रहने वाला था. अंजलि और प्रशांत पाटिल के बीच की दूरियां जल्द ही दूर हो गईं. अंजलि जब बनसंवर कर कहीं आनेजाने के लिए कार में बैठती थी, प्रशांत उस की सुंदरता और कपड़ों की खूबसूरती का पुल बांध देता था. मन ही मन उस के शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती थी. जब वह दीपक पट्टनदार का वह नाम लेता तो अंजलि का मन विचलित हो जाता था.

एक कहावत है कि नारी मन की 2 कमजोरियां होती हैं. वह प्यार और अपनी प्रशंसा की अधिक भूखी होती है. यह बात प्रशांत अच्छी तरह से जानता था. अंजलि कभी प्रशांत पाटिल के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर मुसकराती तो कभी झेंप जाती थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. एक तरफ जहां दीपक पट्टनदार अंजलि से दूर था, वहीं प्रशांत पाटिल उस के करीब आता जा रहा था. अंजलि का मन आकर्षित करने का वह कोई मौका नहीं छोड़ता था. धीरेधीरे अंजलि भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी थी.

एक रात जब अंजलि की बेचैनी बढ़ी तो उस ने प्रशांत पाटिल को फोन कर सुबह ड्यूटी पर जल्दी आने के लिए कहा. सुबह जब प्रशांत पाटिल ड्यूटी पर आया तो अंजलि प्रशांत के मनपसंद कपड़े पहन कर कार में आ बैठी. कार जब घर के कंपाउंड से बाहर निकली तो अंजलि ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा, ‘‘प्रशांत देखो आज, मैं ने तुम्हारी पसंद के कपड़े पहने हैं.’’

‘‘वही तो देख रहा हूं मालकिन, आज किस पर बिजली गिराएंगी. बताओ, कहां चलना है?’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘बिजली किस पर गिरेगी, यह मैं बाद में बताऊंगी. पहले तुम मुझे अपनी मनपसंद जगह ले कर चलो, क्योंकि मैं ने आज तुम्हारे मनपसंद कपड़े पहने हैं. आज मैं केवल तुम्हारे लिए ही तैयार हुई हूं.’’

पहले तो प्रशांत पाटिल की समझ में अंजलि की रहस्यमय बातें नहीं आईं, लेकिन जब समझ में आईं तो अंजलि के अशांत मन का तूफान आ कर शांत हो चुका था.

 

अंजलि प्रशांत के साथ पहले एक पार्क में गई. वहां अंजलि ने उसे साफसाफ बता दिया कि वह उसे कितना प्यार करती है. मालकिन का यह झुकाव देख कर प्रशांत भी फूला नहीं समा रहा था. उस के बाद अंजलि उसे एक होटल में ले गई और पतिपत्नी के नाम से 3 घंटे के लिए एक कमरा बुक किया. वहां दोनों ने अपनी सीमाओं को तोड़ दिया.

एक बार जब मर्यादा की सीमाएं टूटीं तो फिर टूटती ही चली गईं. ज्योति जब से ड्राइवर प्रशात के संपर्क में आई, तब से अपने घर वालों से कटीकटी सी रहने लगी थी. घर के कामों में उस की कोई रुचि नहीं रह गई थी.

उस के मन में जब भी मौजमस्ती का तूफान उठता, वह घर वालों से कोई न कोई बहाना कर ड्राइवर प्रशांत के साथ कभी बेलगांव तो कभी गोकाक के लिए निकल जाती थी. कभी पार्कों में तो कभी मौल और कभी अच्छे होटलों में जा कर वह प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर लौट आती थी.

अंजलि के बदले हुए इस रूप से घर वाले अनभिज्ञ नहीं थे. वह जल्दी ही घर वालों की नजरों में आ गई. ये लोग जब अंजलि के बाहर जाने और लौटने पर सवाल उठाते तो वह उन पर बिफर पड़ती. वह यह कह कर सब का मुंह बंद कर देती, ड्राइवर उस का और पैसा उस के पति का है. जब वह इन चीजों का प्रयोग करती है तो उन के पेट में दर्द क्यों उठता है. उस का मन जहां करेगा, वहां जाएगी. मामला नाजुक होने के कारण घर वाले तब तक खामोश रहे, जब तक दीपक घर नहीं आया.

 

29 दिसंबर, 2019 को दीपक 2 महीने की छुट्टी पर जब घर आया तो घर वालों ने उसे उस की पत्नी के विषय में सारी बातें बता कर उसे सचेत कर दिया. पहले तो दीपक को घर वालों की बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

क्योंकि 7 साल के वैवाहिक जीवन में उसे कभी भी अंजलि के प्रति कोई शिकायत नहीं मिली थी. पूरा परिवार अंजलि के व्यवहार से खुश था. लेकिन बिना आग के धुआं तो उठता नहीं है. उसे यह बात जल्द समझ में आ गई. दीपक ने चुपचाप अंजलि पर नजर रखी तो अंजलि की बेवफाई जल्द ही उस के सामने आ गई. हालांकि अंजलि और प्रशांत अपने संबंधों के प्रति काफी सावधानी बरतते थे. लेकिन वह इस में सफल नहीं हुए. दीपक को जल्द ही महसूस होने लगा कि अंजलि का उस के प्रति अब पहले जैसा व्यवहार और लगाव नहीं है.

अंजलि के बदले हुए इस व्यवहार पर दीपक ने जब उसे आड़ेहाथों लिया तो अंजलि ने दीपक से माफी मांग कर उस समय तो मामला शांत कर दिया लेकिन अपने आप को वह समझा नहीं सकी. उस के दिल में प्रशांत पाटिल के प्रति जो लौ जल रही थी, वह बुझी नहीं थी. उस ने जब अपने मन में पति और प्रेमी की तुलना की तो उसे प्रेमी पति से ज्यादा प्यारा लगा.

लेकिन यह तभी संभव था जब पति नामक कांटा उस की जिंदगी से बाहर निकल जाता. इस विषय पर काफी मंथन के बाद अंजलि ने पतिरूपी कांटे को अपने और प्रेमी के बीच से निकाल फेंकने की एक गहरी साजिश रची.

अपनी साजिश की बात अंजलि ने जब प्रशांत को बताई तो वह खुशीखुशी अंजलि की साजिश में शामिल ही नहीं हुआ, बल्कि अपने दोस्त नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को भी योजना में शामिल कर लिया.

इस के बाद अंजलि ने पति को ज्यादा प्यार जताना शुरू कर दिया ताकि उसे शक न हो. घर का माहौल और दीपक का व्यवहार अपने अनुरूप देख कर अंजलि ने अपनी साजिश को अंतिम रूप देने के लिए पिकनिक का प्रोग्राम बनाया. पिकनिक के लिए गोडचिनमलकी फौल को चुना गया.

घटना के दिन अंजलि पति दीपक, ड्राइवर प्रशांत पाटिल और उस के 2 दोस्तों नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को साथ ले कर पिकनिक के लिए निकली.

योजना के अनुसार, ड्राइवर प्रशांत ने गोडचिनमलकी के पहले ही एक सुनसान जगह पर कार रोड की साइड में खड़ी कर दी. साथ ही उस ने शराब पीने की भी इच्छा जाहिर की. एक ही गांव और जानपहचान होने के कारण दीपक उन्हें मना नहीं कर सका. उन लोगों ने खुद तो शराब पी ही, दीपक को भी जम कर पिला दी थी.

शराब के नशे में मदहोश होने के बाद प्रशांत अपने दोनों दोस्तों की मदद से दीपक को जंगल के भीतर ले गया. जब तक काम खत्म नहीं हुआ, अंजलि कार में बैठी रही.

दीपक को जंगल के भीतर ले जाने के बाद प्रशांत पाटिल ने अपने साथ लाए चाकू से कई वार कर दीपक को मौत की नींद सुला दिया. इस के बाद उस के शव के 4 टुकड़े कर जंगल में फेंक दिए.

दीपक पट्टनदार की हत्या कर उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद सब अपनेअपने घर चले गए, जहां से मरिहाल पुलिस के हत्थे चढ़ गए. घर वालों के पूछने पर अंजलि ने वही बातें दोहरा दी थी, जो उस ने पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने के लिए बताई थीं.

मरिहाल पुलिस की गिरफ्त में आई अंजलि पट्टनदार, ड्राइवर प्रशांत पाटिल, नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने 20 फरवरी, 2020 को उन की निशानदेही पर गोडचिनमलकी के जंगलों में जा कर दीपक के अस्थिपंजर बरामद कर लिए.

जिन्हें पोस्टमार्टम के लिए बेलगांव जिला अस्पताल भेज दिया गया और सभी अभियुक्तों को फौजी दीपक पट्टनदार की हत्या कर लाश ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें हिडंलगा जिला जेल भेज दिया गया.

प्रायश्चित्त-भाग 1: जनार्दन और सावित्री का क्या रिश्ता था?

रात के 10 बजे थे. चारों ओर शांति थी. पहरेदारों की सीटी की कर्णभेदी आवाज यदाकदा दिल्ली के तिहाड़ जेल की शांति को भंग कर रही थी. सभी बेखबर सो रहे थे, पर पिछले 2 घंटे से करवटें बदलने के बावजूद सावित्री की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब भी आंखें बंद करतीं, आंखों के सामने कोर्ट का वह दृश्य और कानों में जज साहब का अंतिम फैसला सुनाई पड़ता, ‘नशा करना और नशाखोरी को बढ़ावा देना एक जुर्म है. इस से न केवल देश का वर्तमान खराब होता है बल्कि भविष्य भी अंधकारमय हो जाता है. प्राप्त सुबूतों के आधार पर सांसद सावित्री को नशा माफिया को संरक्षण देने में दोषी पाए जाने के जुर्म में 10 वर्षों की कैद की सजा सुनाई जाती है.’

फैसला सुन कर एकबारगी तो मन कांप उठा था उन का, क्योंकि पिछले 2-3 सालों से जिस तरह से भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर कोर्ट, कचहरी और कानून का शिकंजा कसता जा रहा है, बच निकलना मुश्किल ही लग रहा था. उन्होंने अपनी पीए जनार्दन की तरफ देखा, जो अपनी आंखें झुकाए विचारमग्न बैठे थे, शायद इस फैसले से वे भी काफी दुखी थे.

कोर्ट से निकलते समय जब मीडिया वालों ने सावित्री से पूछताछ करनी शुरू की, तब भी जनार्दन नजर नहीं आए. बहुत अजीब लगा उन्हें. इस के पूर्व 2 बार जब सावित्री पर ‘अनाज घोटाला’ व ‘शिक्षा घोटाला’ के संबंध में आरोप साबित हुए, सजा मिली, सब से पहले जनार्दन ही उन्हें सांत्वना देने पहुंचे थे, ‘डोंट वरी, मैडम. सब ठीक हो जाएगा.’ जेल जाने के पहले ही उन की अग्रिम जमानत करवा लेते और किए गए घोटालों का सारा मामला कब रफादफा हो जाता, उन्हें पता ही नहीं चलने देते. उन की इसी खासीयत के कारण तो सावित्री ने सांसद बनने के बाद जनार्दन को अपना खास आदमी बना लिया था. उन के इन एहसानों के बदले वे कभी उन्हें पैट्रोल पंप का लाइसैंस दिलवा देतीं तो कभी फार्महाउस बनाने के लिए सस्ते में कई बीघे जमीन. वैसे सच पूछा जाए तो एहसान तो जनार्दन ने किया था उन पर. उन्होंने ही सावित्री को पार्टी की सदस्यता दिलवाई थी महासचिव से मिलवा कर.

जनार्दन से मिलना भी एक संयोग ही था. बात यह थी कि उन की सहेली रजनी ने अपनी शादी की सालगिरह पर सावित्री को सपरिवार आमंत्रित किया था. पार्टी में जाने के लिए वे सब की खातिर नए और महंगे कपड़े खरीदना चाहती थीं, ताकि वहां जुटे लोगों को प्रभावित कर सकें. पर व्यवसाय से ज्यादा आमदनी न होने के कारण राजन महंगे कपड़े खरीदने में असमर्थ थे.

राजन ने समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि अभी दीवाली पर ही तो सब के नए कपड़े खरीदे गए हैं, उन्हें ही पहन कर चलते हैं पार्टी में. चूंकि बचपन की सहेली रजनी ने इतने प्यार से बुलाया था कि न चाहते हुए भी मनमसोस कर उन्हें जाना पड़ा. लेकिन नए कपड़ों के बजाय वही 4 महीने पहले खरीदे आउट औफ फैशन वाले कपड़े पहन कर. पार्टी में सब हंसहंस कर बातें कर रहे थे पर सावित्री का सारा ध्यान अपने परिवार के सस्ते कपड़ों और अपने नकली आभूषणों पर ही लगा रहा. ऐसी बात नहीं थी कि सावित्री बहुत अमीर घर की थीं, पर अमीर बनने की ख्वाइश जरूर रखती थीं. पार्टी में रजनी ने अपने एक रिश्तेदार से मिलवाया सब को. बड़े खुशमिजाज व्यक्ति लगे वे, पूरी पार्टी में सब का मन लगाते रहे थे. राजन के पूछने पर कि वे क्या करते हैं, बड़े ही बेफिक्री से कहा, ‘मैं तो समाजसेवक हूं, जनता की परेशानियों को दूर करने वाला.’ बात ज्यादा समझ नहीं आई पर घर आ कर भी सावित्री उन के बारे में ही सोचती रहीं.

अगले दिन दुकान जाते समय सावित्री भी राजन के साथ हो ली. कारण, रजनी को रात की पार्टी के लिए धन्यवाद जो कहना था. घर में फोन नहीं होने के कारण फोनबूथ पर जाना पड़ता था जो राजन की दुकान के बगल में था. दोनों सहेलियों में बातचीत के दौरान ही सावित्री को पता चला कि उस व्यक्ति का नाम जनार्दन है. बहुत पहुंच वाले शख्स हैं वे. उन्होंने अगले संडे को एक पिकनिक कार्यक्रम रखा है किसी फार्महाउस में, रजनी की सारी सहेलियों को आमंत्रित किया है पिकनिक में. सुन कर एकबारगी दिल खुश हो गया पर अपनी हैसियत देख चुप हो गई सावित्री.

रात सोते वक्त राजन से पिकनिक का जिक्र किया तो उन्होंने कहा कि देखो, इस तरह के अनजान लोगों के साथ पिकनिक मनाने और उठबैठ करने से अच्छा है कि अपनी हैसियत वाले रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ सुकून से समय गुजारा जाए. बहुत बुरा लगा था सावित्री को राजन की इस बात का, कई दिनों तक बात नहीं की गुस्से के मारे.

शनिवार को पत्नी का दुखी चेहरा देख राजन से रहा नहीं गया, कहा, ‘अगर तुम्हें खुशी मिलती है तो जाओ, पर मैं और बच्चे नहीं जाएंगे.’ बस, फिर क्या था घरखर्च के पैसे से अपने लिए एक नई साड़ी खरीदी और अगले दिन पहुंच गईं पिकनिक पर. शाम को जब घर आईं तो तीनों बेसब्री से उन का इंतजार कर रहे थे. दिन का खाना तो राजन ने किसी तरह कच्चापक्का बना लिया था पर रात का खाना सावित्री को ही बनाना था. आते ही ‘आज मैं बहुत थक गई हूं, मुझे भूख नहीं है, तुम तीनों अपना खाना बाहर से मंगवा लो,’ कह कर वे कमरे में जाने लगीं. ‘पर मम्मी, कल तो हमारा टैस्ट है, कुछ रिवीजन करवा दो’ बच्चों ने कहा तो किसी तरह उन्हें पढ़ाया और आराम करने चली गईं. रात को राजन जब सोने को आए, तब तक सावित्री की थकान उतर चुकी थी. उस ने बड़े प्यार से पति से कहा, ‘मुझे पता है, आज तुम्हें बच्चों के साथ परेशानी हुई होगी पर मैं ने भी सारा दिन मौजमस्ती में नहीं बिताया बल्कि तुम्हारे लिए एक आकर्षक प्रस्ताव ले कर आई हूं, जिस से हमसब की जिंदगी खुशहाल हो सकती है.’ फिर कहना शुरू किया, ‘आज जनार्दन से काफी देर तक बातचीत होती रही, तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे. मैं ने कह दिया बिजनैस के सिलसिले में थोड़ा व्यस्त थे, इस कारण नहीं आ सके. पूछने लगे कौन सा बिजनैस करते हैं? जब बताया कि तुम्हारी दवा की एक दुकान है तो पहले वे कुछ देर सोचते रहे, फिर कहने लगे कि मेरा एक मित्र है, जिस की दवा की फैक्टरी है. अगर वे उस के यहां की बनी दवाएं बेचने को तैयार हों तो मैं उन्हें उस दवा कंपनी की सीएनएफ दिलवा दूंगा सस्ते में. दवा भी कम दर पर उपलब्ध करवा दूंगा, इस से उन्हें मुनाफा ज्यादा होगा.’

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