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राजन ने कुछ कहा तो नहीं, बस, चुपचाप सुनते रहे. जब सावित्री चुप हो गईं तो राजन ने कहा, ‘देखो सावित्री, ऐसे प्रस्ताव मेरे दुकान पर भी कई लोग ले कर आते हैं. वास्तव में वे नकली दवाइयों का बिजनैस करना चाहते हैं. माना कि इस में मुनाफा ज्यादा है पर सोचो, इस के परिणाम कितने भयावह होंगे? क्या यह समाज के लिए उचित होगा? फिर पुलिस का चक्कर अलग से. मेरा तो मन कांप जाता है ऐसा सोच कर भी.’

‘तुम भावुक हो, ईमानदार हो, पर सुखी जिंदगी भावनाओं या ईमानदारी से नहीं, बल्कि पैसों से चलती है, राजन,’ सावित्री ने स्वर में तल्खी लाते हुए कहा. जनार्दन के दिखाए सपनों का फितूर अभी भी सावित्री के सिर पर चढ़ा हुआ था.

‘मुझ से यह सब अवैध काम नहीं होगा. यह मेरे आदर्शों के खिलाफ है. मैं अपने परिवार के साथ सीधीसादी जिंदगी जीना चाहता हूं, बस.’ राजन ने यह कहा तो सावित्री चिल्ला पड़ी थीं उन पर, यह कहते हुए कि आदर्शों से झोंपड़ी बन सकती है, महल नहीं. कई दवा विक्रेता करते हैं यह काम. कुछ नहीं होता. अगर कुछ हुआ भी तो जनार्दन सब संभाल लेंगे.’ पति से प्रत्युत्तर न पा कर फिर कहना शुरू किया, ‘सच पूछो तो तुम हीनभावना से ग्रस्त हो. बड़े लोगों के बीच उठनाबैठना ही नहीं चाहते. एक मौका मिला है हमें अमीर बनने का जर्नादन के रूप में, हर इच्छा पूरी करने का, बच्चों को खुशहाल बनाने का पर तुम तो मुझे और मेरे बच्चों को सुखी देखना ही नहीं चाहते.’

‘गलत ढंग से पैसा कमाना गुनाह है और मैं नहीं चाहता कि मेरा परिवार इस गुनाह का भागीदार बने,’ कह राजन करवट बदल कर सो गए.

उन की आवाज सुन दूसरे कमरे में सो रहे बच्चों की आंखें खुल गई थीं. वे मम्मीपापा की बातों को ध्यान से सुन रहे थे. पूरी बात तो समझ नहीं आई पर दोनों बच्चों को मम्मी की यह बात समझ आ गई कि पापा हमें सुखी देखना नहीं चाहते. तभी तो हर बात में रोकटोक और फुजूलखर्ची पर उपदेश देते रहते हैं. उस घटना के बाद से राजन और सावित्री एक ही छत के नीचे तो अवश्य रह रहे थे पर मन पूरी तरह से अलग हो चुके थे. सावित्री ने समझ लिया कि झूठसच के चक्कर में जिंदगी यों ही अभावों में निकल जाएगी, खुशहाल जिंदगी जीने के लिए अब उन्हें ही कुछ करना होगा. कुछ दिनों बाद ही जर्नादन की सलाह पर सावित्री ने ‘बढ़ते कदम’ नामक राजनीतिक पार्टी जौइन कर ली थी.

मन बहुत चंचल होता है, कभी आशंकाओं से घबराता है तो कभी खुद को सांत्वना देने की कोशिश भी करता है. मन ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘लगता है इस बार मेरी अग्रिम जमानत करवा कर ही जनार्दन आंएगे.’ ऐसा सोच कर सावित्री को थोड़ी तसल्ली हुई. भरी भीड़ के सामने पूछे गए सवालों का जवाब देते समय उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘मुझे कानून और न्यायप्रणाली पर पूरा भरोसा है.’ पर वास्तविकता यह थी कि उन्हें अपने जनार्दन पर पूरा भरोसा था. सोचतेसोचते पता नहीं कब नींद ने उन्हें अपनी आगोश में ले लिया. सुबह महिला कौंस्टेबल की कड़क आवाज, ‘‘मैडम उठो, सफाई करवानी है, आज जेलर साहब राउंड पर हैं,’’ सुन कर उन की नींद खुली. पहले तो कुछ समझ नहीं आया, फिर धीरेधीरे कल की सारी बातें याद आने लगीं. ‘‘तुम्हारी इतनी हिम्मत, जानती नहीं किस से बातें कर रही हो? मैं ‘बढ़ते कदम’ पार्टी की सांसद सावित्री हूं.’’ कैद में थी तो क्या हुआ गरूर में कोई कमी न थी.

‘‘जानती हूं तभी तो, ‘मैडम’ कह रही हूं आप को’’ कह कर वह कौंस्टेबल अपने काम में लग गई.

‘‘देख लूंगी तुम्हें,’’ भुनभुनाते हुए सावित्री भी जल्दी से नित्यकर्म निबटा कर मिलने आने वालों का इंतजार करने लगीं, खास कर जनार्दनजी का कि क्या खबर लाते हैं मेरी रिहाई के बारे में.

पर अगले 24 घंटों तक जनार्दनजी तो क्या, पार्टी का कोई लल्लूटाइप सदस्य भी उन से मिलने नहीं आया. और तो और, उन के अपने दोनों बच्चे भी, जिन की मनमानी पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी सावित्री ने.

बड़ा बेटा नमन थोड़ा चंचल स्वभाव का था. पेरैंट्स डे के दिन जब भी वह अपने पति राजन के साथ टीचर से मिलने स्कूल जाती, शिकायत सुनने को मिलती कि यह कक्षा में पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय या तो कहानी की किताबें पढ़ता है या दूसरे दोस्तों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न करता है. एक बार तो इस बात पर घर आ कर राजन ने उस की पिटाई भी की थी और चेतावनी दी थी कि अपनी आदतें सुधार लो वरना पौकेटमनी बंद हो जाएगी. नमन डर गया और तुरंत पढ़ने बैठ गया था. पर उन्हें लगा कि नमन की पौकेटमनी बंद करना उन के व्यवसायी पति का पैसे बचाने का एक बहाना है. मन ही मन सोचा, अच्छा उपाय निकाला है पैसे बचाने का, अगर बचाएंगे नहीं तो गांव कैसे भेज पाएंगे ढेर सारे पैसे अपने मांबाप की मुंहमांगी मुराद पूरी करने को. कितना निरीह लगा था नमन उस दिन सावित्री को और पति उतने ही कंजूस.

बेटी नीना की मौडलिंग, फैशन डिजाइनिंग में रुचि थी. सामान्य नैननक्श वाली वह लड़की अकसर अपनी इच्छा जाहिर करती तो पापा समझाते बेटा, ‘ये सब खर्चीले शौक हैं. हम लोग मध्यवर्गीय परिवार के हैं. अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान दो और शरीर की जगह मन से सुंदर बनने की कोशिश करो.’

उफ, हर समय खर्चे की तंगी. आदर्शभरी बातें. तंग आ चुकी थी वह इन सब बातों से. तभी दोपहर के खाने की सीटी बजी. ध्यान भंग हुआ, खाना खाने का मन नहीं था. भूख तो खत्म हो चुकी थी लोगों का इंतजार करतेकरते. मन फिर अतीत की ओर चला गया. पार्टी जौइन करने के बाद तो समय, जैसे पंख लगा कर उड़ने लगा था. वे सावित्री देवी बन गईं. पतली, लंबी, आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी, बोलने में दक्ष सदस्य को पा कर पार्टी महासचिव गदगद हो उठे थे. थोड़े दिनों में ही उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बना दिया गया. मीडिया और विरोधियों के प्रश्नों का वे ऐसा दो टूक उत्तर देतीं कि प्रश्न पूछने वाले दंग रह जाते. ज्योंज्यों राजनीतिक व्यस्तता बढ़ती गई, त्योंत्यों राजन के प्रति उन की उदासीनता भी बढ़ती चली गई. एक बार मन हुआ ऐसे दब्बू और आदर्शवादी पति को तलाक देने का, पर इस से विरोधी पार्टियों को उन के विरुद्ध बोलने का मौका मिल जाता, शादीशुदा भारतीय नारियों के वोट निकल जाते उन के हाथ से. चुप रहना ही उचित समझा पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए वे जानबूझ कर पति की इच्छाओं के विपरीत काम कर के उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त करतीं. बच्चों को भी अच्छेअच्छे गिफ्ट मिलने लगे तो पापा की जगह मां की इज्जत उन की नजरों में बढ़ गई.

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