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ओटीटी ने किया बौलीवुड स्क्रीनों पर कब्जा

ओटीटी प्लेटफौर्म की लगातार बढ़ती लोकप्रियता ने पहले ही बौलीवुड के स्क्रीन प्रदर्शन को चुनौती देनी शुरू कर दी थी और कोरोना वायरस के चलते जहां बौलीवुड ठप पड़ने लगा वहीं ओटीटी ने रफ्तार पकड़ ली. क्या बौलीवुड ओटीटी प्लेटफौर्म्स की मार से बच पाएगा?

सिनेमा मनोरंजन का अहम साधन है. विज्ञान व तकनीक के विकास के साथसाथ सिनेमा भी विकसित होता रहा है. तो वहीं समय के साथ सिनेमा को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कई बार तरहतरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा और हर चुनौती में सिनेमा सदैव निखर कर आता रहा है. यह कटु सत्य है कि कोरोना वायरस  व लौकडाउन के चलते कुछ फिल्मों के ओटीटी अर्थात ‘ओवर द टौप मीडिया सर्विसेस’ प्लेटफौर्म्स पर सीधे प्रसारित होने की वजह से चर्चा गरम है कि ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने बौलीवुड अर्थात सिनेमा पर हमला कर दिया है. मगर यह दौर अस्थायी है.

यदि ओटीटी प्लेटफौर्म्स के कर्ताधर्ताओं ने अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं किया, तो ओटीटी प्लेटफौर्म्स के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट गहरा जाएगा. कोरोना वायरस व लौकडाउन के

चलते 17 मार्च से फिल्म, टीवी सीरियल्स और वैब सीरीज की शूटिंग्स बंद हो गईं. परिणामस्वरूप, इन  ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने फिल्मकारों  की व्यावसायिक सोच पर हमला करते हुए प्रदर्शन के लिए तैयार फिल्में खरीदनी शुरू कर दीं. इधर कई फिल्में मार्च, अप्रैल व मई माह में प्रदर्शन के लिए तैयार थीं. फिल्मों के निर्माताओं के सामने भी समस्याएं थीं क्योंकि हर फिल्म के निर्माण में कई सौ करोड़ रुपए लगे होते हैं. इसी के चलते कुछ निर्माताओं ने अपनी फिल्में ओटीटी  प्लेटफौर्म को बेच दीं. मगर ओटीटी प्लेटफौर्म ने अवसर का बेहतर फायदा उठाते हुए कुछ बड़ी फिल्मों के साथसाथ छोटी फिल्मों और उन फिल्मों को भी हासिल कर लिया, जो शायद कमतर गुणवत्ता के चलते सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पा रही थीं.

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इस समय एंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में केवल ओटीटी प्लेटफौर्म्स ही ऐसे हैं जो फायदे में हैं. बहुचर्चित शोज और फिल्मों को लोग लौकडाउन के चलते बिंजवौच कर रहे हैं, जिन के जरिए इन प्लेटफौर्म्स की व्यूअरशिप बढ़ी है. भारत में इस समय 40 ओटीटी प्लेटफौर्म्स हैं जिन का मार्केट साल 2018 में कुल 2,150 करोड़ रुपए का था. वहीं, साल 2019 में इस इंडस्ट्री ने 17,300 करोड़ की कमाई की थी. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि साल 2020 में इन प्लेटफौर्म्स की कमाई के कितने रिकौर्ड टूटेंगे. ओटीटी का किंग कहे जाने वाले नैटफ्लिक्स ने न केवल यूएस बल्कि भारत में भी मजबूती से पैर जमा लिए हैं.

‘नैटफ्लिक्स एंड चिल’ का मजा जहां केवल कुछ लोग ही उठा रहे थे वहीं जरूरत से ज्यादा मिले खाली समय ने लोगों को बेवक्त फिल्में और शोज देखने की आदत डलवा दी है. नतीजतन, नैटफ्लिक्स की कमाई पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है और वैश्विक स्तर पर इस का सब्सक्रिप्शन 25 फीसदी बढ़ा है. लेकिन, यह सफलता की सीढि़यां केवल नैटफ्लिक्स ही नहीं चढ़ा है बल्कि अमेजोन प्राइम भी इस में शामिल है. अपनी ग्लोबल पौलिसी के चलते प्राइम ने आंकड़े नहीं बताए हैं लेकिन तेजी से बढ़ रहे प्रचारप्रसार और हालिया शो ‘पाताललोक’ सफलता की कहानी कह रहा है. इस प्लेटफौर्म पर कुछ और ओरिजिनल सीरीज की एडिटिंग का काम चल रहा है जो जल्द ही प्रसारित होंगी.

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लौकडाउन के दौरान हिंदीभाषी शोज भी लोगों को इन प्लेटफौर्म्स की तरफ अत्यधिक आकर्षित कर रहे हैं. जहां इंग्लिश भाषा के शोज केवल पढ़ेलिखे व इंग्लिश के जानकार, जिन में ज्यादातर युवा हैं, देख सकते हैं तो हिंदी शोज की पहुंच हर घर तक है. हिंदी के दर्शकों में औरतें, बुजुर्ग, युवा व हिंदीभाषी पुरुष हैं. यह भी एक कारण है कि छोटे ओटीटी प्लेटफौर्म वूट के शो ‘असुर’ को अप्रत्याशित सफलता मिली. हिंदी में होने के कारण इस शो को लौकडाउन की शुरुआत में ही अनेक लोगों ने देखा जिस से वूट की व्यूअरशिप अत्यधिक बढ़ गई. वहीं, फिल्मों की बात करें तो चाहे कुछ फिल्में ओटीटी पर न भी चली हों, फिर भी दर्शक अनेक फिल्में देख रहे हैं. इसी के चलते डिज्नी+हौटस्टार ने अक्षय कुमार की फिल्म ‘लक्ष्मी बौंब’ को 150 करोड़ रुपए में खरीदा है. इतनी महंगी फिल्म को खरीदने का मतलब साफ है कि लोगों का ध्यान इस ओटीटी प्लैटफौर्म की तरफ आकर्षित हो और ज्यादा से ज्यादा लोग फिल्म को देखने के लिए सब्सक्रिप्शन लें.

ओटीटी प्लेटफौर्म की लोकप्रियता और कोरोनाकाल में अत्यधिक कमाई का सब से बड़ा कारण इस का भारी स्टौक है. ओटीटी पर किसी भी साल की, कितनी ही पुरानी सीरीज या फिल्म को दिखाया जाता है. लोगों को विंटेज शोज अत्यधिक पसंद आते हैं. ‘ब्रैंड्स’, ‘ब्रूकलिन नाइन नाइन’, ‘मनी हाइस्ट’, ‘द औफिस’ जैसे कई सालों पुराने शोज आज भी यूथ की पहली पसंद हैं. न केवल यह अत्यधिक मनोरंजक हैं बल्कि बौलीवुड की दोहरी मानसिकता वाली फिल्मों से बेहद अलग भी हैं. ओटीटी पर केवल बौलीवुड या हौलीवुड शोज और मूवीज ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश, एशियन खासकर कोरियन शोज की भी भरमार है. ये शोज न केवल लोगों को दूसरे देशों के कल्चर और क्रिएटिविटी से अवगत कराते हैं बल्कि कुएं का मेंढक बने रहने की भावना से बाहर भी निकालते हैं. हर तबके और उम्र के व्यक्ति में बिंज वौच की जो आदत पनपी है, उसे लौकडाउन ने और ज्यादा हवा दी है. खाली समय और घर में मौजूदा हर आराम के बीच एक पैर पर दूसरे पैर को चढ़ा मोबाइल हाथ में ले शो देखते हुए आजकल हर कोई दिख जाता है. चाहे आंखें पथरा जाएं, चाहे नींद पूरी न हो लेकिन शो एक ही दिन में पूरा हो जाना चाहिए. यही भावना है जो व्यक्ति को इन प्लेटफौर्म्स से जोड़े रखती है. अब हर तरफ नए शो की चर्चा चल रही हो तो उस में भाग लेने का आनंद ही कुछ और है. ऐसे में बौलीवुड फिल्मों की चर्चा भर के लिए हर कोई सिनेमाघर का रास्ता नहीं ताकता. इसलिए यह एक बड़ा कारण है कि ओटीटी प्लेटफौर्म्स बौलीवुड को पछाड़ने की पूरी क्षमता रखते हैं.

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ऐप डिस्ट्रिब्यूशन प्लेटफौर्म मोमैजिक के हालिया सर्वे के अनुसार, 72 फीसदी दर्शकों का कहना है कि कोरोना के चलते सिनेमाघरों में फिल्म देखने से बेहतर वे अपने पैसे एक बड़े एलईडी टीवी और होम थिएटर पर खर्च करना अधिक पसंद करेंगे और घर पर ही नई फिल्मों का आनंद लेंगे.

ओटीटी प्लेटफौर्म की शुरुआत

पहला भारतीय ओटीटी प्लेटफौर्म बिगफ्लैक्स था जिसे 2008 में रिलायंस एंटरटेनमैंट ने लौंच किया था. 2010 में डिगिविव ने भारत की पहली मोबाइल ओटीटी ऐप नैक्सजीटीवी लौंच की थी जिस पर आईपीएल लाइव देखा जा सकता था. ओटीटी प्लेटफौर्म्स को भारत में डिट्टो टीवी और सोनी लाइव के लौंच होने के बाद सफलता मिलनी शुरू हुई.

नैटफ्लिक्स भारत में साल 2016 में आया जिसे वैश्विक शोज के कारण यूथ के बीच अपार लोकप्रियता मिली. इस के बाद से अनेक ओटीटी प्लेटफौर्म्स लौंच हुए जिन में से कुछ शुरुआत में फ्री थे, लेकिन जल्द ही वे सब्सक्रिप्शन पर उपलब्ध होने लगे. अमेजोन प्राइम (अमेजोन), नैटफ्लिक्स (नैटफ्लिक्स आईएनसी), विऊ (एच के टैलीविजन एंटरटेनमैंट), मुबी (मुबी आईएनसी), हौटस्टार+डिज्नी (स्टार इंडिया, द वाल्ट डिज्नी कंपनी इंडिया), औल्ट बालाजी (बालाजी टैलीफिल्म्स), इरोस नाओ (इरोस इंटरनैशनल), एमएक्स प्लेयर (टाइम्स इंटरनैट), सोनी लाइव (सोनी पिक्चर्स नैटवर्क्स इंडिया), वूट (वाइकौम 18), द वायरल फीवर, जी5 (जी एंटरटेनमैंट एंटरप्राइसेस), उल्लू ऐप आदि कुछ ओटीटी प्लेटफौर्म्स हैं जो भारत में लोकप्रिय हैं.

इन में कुछ क्षेत्रीय ओटीटी प्लेटफौर्म्स हैं जिन में होईचोई (श्री वेंकटेश्वर फिल्म्स) पहला भारतीय रीजनल ओटीटी प्लेटफौर्म था. होईचोई पर 200 से अधिक बंगाली फिल्में, शोज व कुछ ओरिजिनल कंटैंट भी हैं. इस प्लेटफौर्म पर हिंदी और इंग्लिश का डब कंटैंट भी है व इस की पहुंच केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि बंगलादेश और यूनाइटेड अरब अमीरात में भी इस के दर्शक हैं. इस के अलावा साउथ इंडियन भाषाओं के प्लेटफौर्म्स सन एनएक्सटी (सन टीवी नैटवर्क्स) और अहा (अरहा मीडिया एंड ब्रौडकास्ट प्राइवेट लिमिटेड) भी दर्शकों के लिए उपलब्ध हैं.

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शुरुआत में फिल्मकारों ने ओटीटी प्लेटफौर्म्स को महत्त्व नहीं दिया. तब नए लेखक, निर्देशक और कलाकारों ने ओटीटी प्लेटफौर्म्स के लिए लघु फिल्में और वैब सीरीज बनानी शुरू कीं. ओटीटी प्लेटफौर्म पर प्रसारित होने वाली लघु फिल्मों या वैब सीरीज को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से सैंसर प्रमाणपत्र लेने की भी जरूरत नहीं होती है. इस वजह से  90 प्रतिशत वैब सीरीज अश्लील दृश्यों व खूनखराबे से परिपूर्ण ही प्रसारित हुईं.

इस नई संस्कृति का फायदा उठाने में यशराज फिल्म्स भी पीछे नहीं रहा. यशराज फिल्म्स ने  ‘बैंड बाजा बरात’ और ‘सैक्स चैट विद पप्पू एंड पापा’ जैसी युवाओं को आकर्षित करने वाली वैब सीरीज बनाईं, तो वहीं एकता कपूर ने ‘ट्रिपलएक्स’, ‘गंदी बात’ व ‘रागिनी एमएमएस’ जैसी सैक्स से भरपूर इरोटिक वैब सीरीज परोसीं. इस के बाद इस तरह की वैब सीरीज का ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर बोलबाला हो गया. ऐसे में शाहरुख खान भी पीछे नहीं रहे. शाहरुख खान की कंपनी रैड चिली ने नैटफ्लिक्स के लिए ‘बार्ड औफ ब्लड’ और जौंबी पर आधारित हौरर रोमांचक ‘बेताल’ जैसी वैब सीरीज का निर्माण किया.

सैक्स से सराबोर वैब सीरीज की सफलता से प्रेरित हो कर सैक्स को भुनाने के लिए ओटीटी प्लेटफौर्म पर ‘उल्लू’ की शुरुआत हो गई. ‘उल्लू’ ने तो सारी मर्यादाएं लांघ डालीं. अब तो लोग कहते हैं कि पौर्न फिल्म देखने के बजाय ‘उल्लू’ पर जा कर वैब सीरीज देखें. शुरुआत में ‘उल्लू’ ने प्रतिमाह 16 रुपए का शुल्क रखा था पर इसे इतने दर्शक मिले कि अब उस का शुल्क 99 रुपए हो गया है.

यों हुए हौसले बुलंद

अनुराग कश्यप व विक्रमादित्य मोटवाणे ने विक्रम चंद्र के 2006 के चर्चित उपन्यास ‘सैक्रेड गेम्स’ पर इसी नाम की वैब सीरीज बनाई. ‘सैक्रेड गेम्स’ के पहले सीजन में सैफ अली खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, कुबरा सैत, पंकज त्रिपाठी, राधिका आप्टे जैसे दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया. इस का पहला सीजन 5 जुलाई, 2018 को  नैटफ्लिक्स पर प्रसारित हुआ. सैक्स, हिंसा सहित हर तरह के मसाले से भरपूर इस वैब सीरीज को जबरदस्त शोहरत मिली. इस के बाद अमेजोन, हौटस्टार, एमएक्स प्लेयर व जी 5 जैसे ओटीटी प्लेटफौर्म के अंदर नया जोश पैदा हुआ. इन सभी ने लगातार तमाम वैब सीरीज प्रसारित करनी शुरू कीं. हर ओटीटी प्लेटफौर्म पर कुछ वैब सीरीज सफल हुईं, पर ज्यादातर वैब सीरीज ने सैक्स व हिंसा को ही परोसा.

नैपोटिज्म की मार

बौलीवुड में व्याप्त नैपोटिज्म के चलते बहुत से कलाकरों के लिए बौलीवुड की राह जरूरत से ज्यादा लंबी हो गई है. उन कलाकारों, जिन्हें बौलीवुड में काम नहीं मिलता, छोटे परदे का सहारा लेने को मजबूर थे, को ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने एक नई मंजिल दी है. शमा सिकंदर, वत्सल सेठ, राधिका आप्टे कुछ ऐसे ही कलाकार हैं जिन्होंने ओटीटी की राह पकड़ी. और इस बात में तो कोई दोराय नहीं कि जितनी सफलता राधिका आप्टे को अपनी फिल्मों से नहीं मिली थी उस से कहीं ज्यादा शोहरत नैटफ्लिक्स से मिली है.

अब सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद बौलीवुड की गलियों में एक बार फिर नैपोटिज्म के नारे गूंजने लगे. सोशल मीडिया पर भी हर तरफ नैपोटिज्म और नैपोटिज्म के लिए सितारों को बुरी तरह खदेड़ा जा रहा है, चाहे फिर वे आलिया भट्ट हों या वरुण धवन.

बौलीवुड के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो कुछ फिल्मकारों ने न चाहते हुए भी अपनी फिल्में ओटीटी प्लेटफौर्म्स को बेच दीं. वास्तव में सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कंगना रनौत, शेखर सुमन जैसे कई लोगों ने करण जौहर व सोनाक्षी सिन्हा सहित कुछ निर्माताओं व कलाकारों की फिल्मों को बैन करने का ऐलान कर दिया. ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी फिल्में ओटीटी प्लेटफौर्म को देने में ही भलाई सम?ा.

फिर संकट में बौलीवुड

80 के दशक में वीडियो तकनीक के प्रादुर्भाव के बाद हर घर में किराए के वीडियो कैसेट मंगा कर टीवी पर फिल्में देखने का सिलसिला शुरू हुआ था. परिणामस्वरूप, लोगों ने फिल्म देखने के लिए सिनेमाघरों में जाना बंद कर दिया था. तब कई निर्माताओं ने ऐलान कर दिया था कि अब देश के सभी सिनेमाघरों  के अंत का समय आ गया. तब कहा गया था कि देश में ‘सिनेमाघर जा कर फिल्में देखने की संस्कृति’ का खात्मा हो जाएगा.

इस वीडियो संस्कृति के चलते कुछ समय के लिए सिनेमा का नुकसान हुआ था. देखते ही देखते हजारों घटिया वीडियो फिल्में बन कर बाजार में आ गई थीं. आखिरकार, एक दिन दर्शकों को एहसास हुआ कि वे तो चंद रुपयों को  बचाने के चक्कर में पायरेटेड सिनेमा और घटिया वीडियो फिल्मों को बढ़ावा दे रहे हैं. तो वहीं फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में बदलाव करते हुए भव्यता को महत्त्व दिया. अब इन फिल्मों को वीडियो कैसेट के माध्यम से टीवी पर देखने का मजा किरकिरा हो गया. परिणामस्वरूप,  लोगों ने फिल्म देखने के लिए फिर सिनेमाघर जाना शुरू कर दिया.

टीवी भी खतरा बना था

अक्तूबर 1992 में जी टीवी जैसे सैटेलाइट चैनल की शुरुआत के साथ ही मनोरंजन क्षेत्र में बड़ा धमाका हुआ था. तब भी लोगों ने घर में रहते हुए टीवी से मुफ्त मनोरंजन पाना शुरू कर दिया था और सिनेमाघर के भीतर जाना बंद कर दिया था. उस वक्त चर्चा गरम हो गई थी कि अब सिनेमा का अस्तित्व खत्म हो गया. इसी चर्चा के चलते इंडस्ट्री 2 भागों में विभाजित हो गई थी. जो लोग टीवी सीरियल के निर्माण, निर्देशन व लेखन के अलावा टीवी सीरियलों में अभिनय कर रहे थे, उन के साथ फिल्मकारों ने अछूत जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया था. इसी के साथ फिल्मकारों ने अपनी फिल्म के कथानक आदि पर खास ध्यान दिया. मगर टीवी के लिए कार्य करने वालों को अपने ऊपर से अछूत का ठप्पा हटाने में 15 वर्ष से अधिक का समय लग गया. अब टीवी कलाकार फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं. टीवी सीरियल के निर्मातानिर्देशक फिल्में भी बना रहे हैं, जिस के चलते टीवी चैनलों और फिल्मों दोनों का अपना अस्तित्व बरकरार रहा. दोनों जगह मनोरंजन का अपना अलग मजा है.

स्टूडियो सिस्टम का बोलबाला

2001 में फिल्म ‘लगान’ के साथ स्टूडियो सिस्टम आया. ‘स्टूडियो सिस्टम’ के नाम पर कई भारतीय कौर्पोरेट कंपनियों और कुछ विदेशी कंपनियों यानी कि व्यवसायियों ने भारतीय सिनेमा पर धावा बोला था. विदेशी धन की ताकत पर इन स्टूडियो ने 10 रुपए वाले कलाकार को हजार रुपए दे कर अपने स्टूडियो के साथ जोड़ फिल्में बनानी शुरू कीं और अपनी तरफ से भारतीय सिनेमा व सिनेमाघरों को तहसनहस करने के साथसाथ भारतीय आम जनमानस की गाढ़ी कमाई को बटोरने की असफल कोशिश की थी. आखिरकार, 90 प्रतिशत स्टूडियो कब आए और कब गए, पता ही न चला. हम यहां हर स्टूडियो के इतिहास को दोहराना नहीं चाहते, मगर कुछ समय के लिए लगा था कि बौलीवुड का खात्मा हो जाएगा. मगर फिर मल्टीप्लैक्स का जाल  बिछना शुरू हो गया. देखते ही देखते सिनेमाघर फिर भरने लगे.

हमें याद रखना होगा कि ‘गुलाबो सिताबो’, ‘धूमकेतु’ फिल्मों के बजाय ‘पाताललोक’, ‘पंचायत’ जैसी वैब सीरीज ज्यादा चर्चा में रहीं. जो पैसा इन फिल्मों के सिनेमाघर में प्रसार से कमाया जा सकता था उतना ओटीटी से नहीं कमाया जा सका.

ऐसे संभली ओटीटी

‘सैक्रेड गेम्स’ के पहले सीजन को मिली जबरदस्त सफलता के बाद नैटफ्लिक्स ने इस का दूसरा सीजन बनाया, जो 15 अगस्त, 2019 को प्रसारित हुआ. मगर सैक्रेड गेम्स का दूसरा सीजन बुरी तरह से असफल हो गया. परिणामस्वरूप,  हर ओटीटी प्लेटफौर्म के अंदर गहन मंथन की शुरुआत हुई. वहीं,  हौटस्टार और डिज्नी एक हो गया. अब जी 5 जैसे भारतीय ओटीटी प्लेटफौर्म के साथ अमेजोन, नैटफ्लिक्स और डिजनी हौटस्टार के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हुई. इसी बीच, इन के अमेरिका में बसे मूल मालिकों ने लंबीचौड़ी रकम इन्वैस्ट कर दी. परिणामस्वरूप, उन्होंने बड़े बजट की भव्य वैब सीरीज बनवानी शुरू कीं, जिस के चलते 17 मार्च, 2020 को हौटस्टार+डिज्नी पर बेहतरीन वैब सीरीज ‘स्पैशल ओप्स’ प्रसारित हुई.

नीरज पांडे निर्मित इस वैब सीरीज को काफी पसंद किया गया. 3 अप्रैल, 2020 को अमेजोन पर हास्य वैब सीरीज ‘पंचायत’ ने सफलता दर्ज कराई. दीपक कुमार मिश्रा निर्देशित इस वैब सीरीज को काफी पसंद किया गया. इस का दूसरा सीजन भी बनवाया जा रहा है. इस के बाद अमेजोन पर ही 15 मई, 2020 को अपराध व रोमांचप्रधान वैब सीरीज ‘पाताललोक’ ने  सफलता दर्ज कराई. तो वहीं 2020 में जी 5 पर ‘कोड एम’ को पसंद किया गया, जबकि हौटस्टार पर ‘क्रिमिनल जस्टिस’ के साथ  ‘आर्या’ भी काफी पसंद की गईं. वहीं लगभग हर ओटीटी प्लेटफौर्म पर घटिया वैब सीरीज व कुछ फिल्में भी प्रसारित हुईं.

क्या 5 लाख दर्शक मिलेंगे

ओटीटी प्लेटफौर्म्स के लिए खासतौर पर बनवाई गई कुछ वैब सीरीज की सफलता के बाद हर ओटीटी प्लेटफौर्म की मूल मालिकाना कंपनी को भारत में बड़ा बाजार नजर आने लगा. परिणामस्वरूप, अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच इन ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने भारत में 5 लाख नए ग्राहक बनाने की चुनौती रखते हुए इन की मूल कंपनियों ने लंबीचौड़ी रकम इन्वैस्ट कर दी. नैटफ्लिक्स पर मौलिक भारतीय कंटैंट को खरीदने के लिए इस की मूल कंपनी ने 3,000 करोड़ रुपए इन्वैस्ट किए हैं जबकि अमेजोन के सीईओ जेफ बेजोस भी कह चुके हैं कि भारतीय कंटैंट के लिए दोगुनी राशि इन्वैस्ट की है. इस वर्ष अप्रैल माह में डिज्नी हौटस्टार में 1,113 करोड़ रुपए इन्वैस्ट किए गए हैं. इस से पहले मार्च माह में स्टार इंडिया और स्टार अमेरिका ने एक हजार 66 करोड़ रुपए इन्वैस्ट किए थे. तो क्या इस रकम को जल्द से जल्द फिल्म खरीद कर खत्म करने की आपाधापी तो नहीं है.

इस के अलावा सभी ओटीटी प्लेटफौर्म्स की पैतृक कंपनियों ने उन पर 5 लाख नए ग्राहक बनाने की चुनौती भी सामने रखी है, जोकि असंभव है. इतना ही नहीं, लौकडाउन में यदि ग्राहक मिल भी गए तो सिनेमाघर शुरू होते ही ये ग्राहक ओटीटी से दूरी बना लेंगे, यदि उन्हें अच्छा कंटैंट नहीं दिया गया. अफसोस है कि दर्शक बढ़ाने के लिए हर ओटीटी प्लेटफौर्म कंटैंट की गुणवत्ता पर कम ध्यान दे रहा है.

सिनेमा एक उत्सव 

लोगों के लिए सिनेमा महज मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि सिनेमा देखना एक उत्सव है. लोग अपने दोस्तों या परिवार के साथ सिनेमाघर में फिल्म देख कर जिस आनंद की अनुभूति करते हैं, उस आनंद की अनुभूति वे अपने घरों में बंद हो कर टीवी, मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर पर ओटीटी प्लेटफौर्म की फिल्में देखते हुए कदापि नहीं पा सकते.

इस के अलावा दर्शक सिनेमाघरों में फिल्में देखते हुए उस में इस कदर मगन हो जाते हैं कि वे दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं, फिल्म के किरदारों के साथ जुड़ कर वे उसी की तरह के सपने देखने लगते हैं, कुछ घंटों के लिए वे अपना दुखदर्द, तनाव सबकुछ भूल जाते हैं. यह तो बिलकुल नहीं नकारा जा सकता कि गर्लफ्रैंड के साथ जो मजा मूवीडेट का है, वह और कहीं नहीं.

यहां पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी के विचार बहुत माने रखते हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म पर नवाजद्दीन सिद्दीकी की ‘घूमकेतु’ के अलावा ‘रात अकेली है’ जैसी 2 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं, मगर खुद नवाजुद्दीन सिद्दीकी खुश नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म के रिलीज को सही नहीं मानता. मेरी राय में ओटीटी पर फिल्म के रिलीज होने से कलाकार की अभिनय क्षमता को नुकसान होता है और अमूमन असफल फिल्म ही ओटीटी पर आती हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म से कलाकार की क्षमता की चर्चा नहीं होती है और न ही उसे सही समय पर यह पता चलता है कि उस ने फिल्म के किरदार को कितना सही ढंग से निभाया है. दर्शकों की प्रतिक्रिया भी सही ढंग से नहीं मिल पाती है.’’

इतना ही नहीं, अभिनेता पंकज त्रिपाठी के इस कथन से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि ‘‘दर्शकों का जो अनुभव थिएटर में होता है, वह तो ओटीटी प्लेटफौर्म पर नहीं होगा. बड़ी स्क्रीन पर फिल्म देखने का जो मजा होता है, वह टीवी की 20 से 25 इंच की स्क्रीन पर या मोबाइल पर देखते समय नहीं मिल सकता. मोबाइल, टीवी तथा सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने का अनुभव एकजैसा कभी नहीं हो सकता.’’

इसी के साथ एक तबका प्रचारित करने लगा कि अब बौलीवुड पूरी तरह से ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर ही निर्भर रहेगा. ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने यह भी प्रचारित किया कि अब सिनेमाघरों में लोग फिल्में देखने नहीं जाएंगे. इस तरह के प्रचार के साथ ओटीटी प्लेटफौर्म्स अपनी मूल कंपनियों से मिले धन का उपयोग फिल्मों को खरीदने में कर रहे हैं.

अब तक ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर ‘घूमकेतु’, ‘शकुंतला देवी’ और ‘गुलाबो सिताबो’ जैसी जो फिल्में प्रदर्शित हुई हैं, उन का हश्र कुछ अच्छा नहीं रहा. सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘दिल बेचारा’ को बिना ग्राहक बने भी लोग देख सकते थे, फिर भी इसे अपेक्षित दर्शक नहीं मिले.

‘गुलाबो सिताबो’ देख कर यह एहसास हो गया कि यह फिल्म बौक्सऔफिस पर औंधेमुंह गिर जाती. ‘घूमकेतु’ को पिछले 5 वर्षों से कोई खरीद नहीं रहा था. जी 5 पर यह आई, इसे कितने दर्शक मिले, यह शोध का विषय हो सकता है. इस के बाद अनुराग कश्यप की ‘चोक्ड: पैसा बोलता है’ और उर्वशी रौतेला की ‘वर्जिन भानुप्रिया’ का भी ओटीटी प्लेटफौर्म पर बुरा हश्र  हो चुका है.

अभी ओटीटी प्लेटफौर्म पर अक्षय कुमार की ‘लक्ष्मी बौंब,’ अजय देवगन की ‘भुज: द प्राइड औफ इंडिया,’ अभिषेक बच्चन की ‘लूडो,’ संजय दत्त की ‘टोरबाज,’ कोंकणा सेन शर्मा की ‘डोली किट्टी और वो चमकते सितारे,’ विक्रांत मैसे और यामी गौतम की ‘गिन्नी वैड्स सन्नी’ जैसी फिल्में प्रसारित होने वाली हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर इन फिल्मों का भविष्य क्या होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

तूफान के पहले की खामोशी

कलाकारों के कथन में यह बात छिपी है कि सिनेमाघरों को नजरंदाज कर ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर फिल्मों के प्रदर्शन से कलाकार खुश नहीं हैं. ‘गुलाबो सिताबो’ में अमिताभ बच्चन थे, इसलिए कलाकारों ने मुखर हो कर अपनी बात कहने में संकोच दिखाया. मगर सच यही है कि फिल्म के सब से पहले ओटीटी प्लेटफौर्म पर आने से हर कलाकार के स्टारडम पर गहरा असर होने वाला है. उन का स्टारडम बढ़ने के बजाय घटने वाला है.

कटु सत्य यही है कि ओटीटी  प्लेटफौर्म के चलते धीरेधीरे कलाकार की हालत ‘घर की मुरगी दाल बराबर’ जैसी हो जाएगी, जिस का असर उन के द्वारा किए जाने वाले विज्ञापन की राशि पर भी पड़ना लाजिमी है. यही वजह है कि कलाकारों के बीच तूफान के आने से पहले की खामोशी दिखाई दे रही है.

वैसे, कुछ कलाकारों ने दबी आवाज में कहा है कि उन्होंने फिल्म के लिए कई तरह की तैयारियां की थीं. मेकअप में लंबा समय खर्च किया था, मेहनत से फिल्म बनाई थी कि दर्शक सिनेमाघर में बड़े परदे पर उन को देखेंगे और अब जब यही फिल्म ओटीटी प्लेटफौर्म पर आने जा रही है, तो यह उन की मेहनत के साथ पूरा अन्याय है. मगर कुछ नए कलाकार, जोकि निर्मातानिर्देशक के रहमोकरम पर हैं, कह रहे हैं कि एक फिल्म में अभिनय करने के बाद कलाकार के वश में नहीं रहता कि वह तय करे कि उन की फिल्म कब, कैसे और कहां रिलीज होगी.

कड़वा सत्य यह भी है कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म के आने से कलाकार का आत्मविश्वास भी हिलेगा और उस का बाजार भी. इतना ही नहीं, ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म के असफल होने का सारा ठीकरा कलाकार के मत्थे मारा जाएगा. इस तरह, सब से अधिक नुकसान कलाकार को होना तय है. ऐसे में हर कलाकार को इस मसले पर गंभीरता से विचार कर अपनी फिल्म के निर्माताओं से बात करनी होगी. हर कलाकार को याद रखना होगा कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर स्टार कलाकार और नए कलाकार को एक ही नजर से देखा जाता है.

हिंदी फिल्मों के लिए नया ओटीटी प्लेटफौर्म

भारतीय फिल्मों को समर्पित एक नया ओटीटी प्लेटफौर्म ‘सिनेमाप्रेन्योर’ तेजी से उभर रहा है. इस ओटीटी प्लेटफौर्म का ग्राहक बनने की जरूरत नहीं है, बल्कि हर फिल्म देखने के लिए एक अलग राशि दे कर देख सकते हैं. इस पर फीचर फिल्मों के साथ ही डौक्यूमैंट्री व लघु फिल्में भी उपलब्ध हैं. यह ओटीटी प्लेटफौर्म दिल्ली निवासी गौरव रतुरी व रुपिंदर कौर ले कर आए हैं.

फिल्म बाजार में यदि हर साल 300 फिल्में बनती हैं तो उन में से 15 को थिएटर रिलीज मिलती है, 10 नैटफ्लिक्स पर जाती हैं, 5 अमेजोन पर जाती हैं. तो, बाकियों का क्या होता है? अनेक छोटे बजट की फिल्में व डौक्यूमैंट्री कहीं कोने में धूल खाती रह जाती हैं. इन छोटी बजट की फिल्मों को विदेशों में तो फिल्म फैस्टिवल्स में जगह मिलती है परंतु भारत में इन की कोई सराहना नहीं होती. उदाहरण के तौर पर, अनिरबान दत्ता की फिल्म ‘जहनबी’ को रोमानिया, यूके व हंगरी फिल्म फैस्टिवल्स में जगह मिली. इसे अमेजोन प्राइम यूके, कनाडा व यूएस में भी दिखाया गया लेकिन, अमेजोन इंडिया में इसे जगह नहीं मिली.

ओटीटी प्लेटफौर्म ‘सिनेमाप्रेन्योर’ को लाने के पीछे मकसद यह है कि आर्टिस्टिक और छोटे बजट की फिल्मों को भी भारतीयों तक पहुंचाया जा सके.

सिनेमा जगत छुआछूत के दौर में तो नहीं लौट रहा? सिनेमा खुलने के बाद बौलीवुड में एक बार फिर 90 के दशक यानी 1992-2000 के बीच का इतिहास दोहराया जा सकता है. उस वक्त जिस तरह से टीवी को फिल्म वालों ने ‘अछूत’ मान लिया था, उसी तरह सिनेमाघर खुलने के बाद एक बार फिर बौलीवुड में 2 भाग हो जाएंगे और ओटीटी प्लेटफौर्म के लिए वैब सीरीज व फिल्मों का निर्माण, निर्देशन, लेखन व अभिनय करने वालों को मेनस्ट्रीम सिनेमा से अलग कर अछूत जैसा व्यवहार किया जा सकता है.

टीवी ऐक्टर्स और बौलीवुड स्टार्स को आज भी कई स्तरों पर एकदूसरे से अलग माना जाता है. जो रुतबा, शोहरत, नाम और एक्सपोजर बौलीवुड स्टार्स को मिलता है, वह टीवी स्टार्स को नहीं मिलता. यही कारण है कि टीवी स्टार्स बौलीवुड की ओर बढ़ना चाहते हैं. ओटीटी एक ऐसा प्लेटफौर्म बन कर उभरा जिस ने टीवी और बौलीवुड के ऐक्टर्स को एकसमान स्तर देने की कोशिश की. देखना, वाकई दिलचस्प होगा कि क्या यह स्तर कायम रह पाता है.

 

राजनीति अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार भारतीय मूल की कमला हैरिस

भारतीय मूल की कमला हैरिस की अमेरिकी उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से दुनिया के सब से सशक्त लोकतांत्रिक देश का चुनाव और रोमांचकारी हो गया है. उदारवादी डैमोक्रैटिक पार्टी ने ट्रंप चाल चल दी है जिस की काट रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं. पढि़ए, इस विशेष रिपोर्ट में.

भारतीय मूल की कैलिफोर्निया की सीनेटर कमला हैरिस कुछ समय पहले तक राष्ट्रपति पद के लिए डोनाल्ड ट्रंप को चुनौती दे रही थीं. डैमोक्रेटिक पार्टी द्वारा जो बाइडेन को उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद वे इस रेस से अलग हो गई थीं. लेकिन कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर जो बाइडेन ने साफ कर दिया है कि उन की क्षमताओं और कार्यकुशलता के वे कायल हैं और अमेरिका को कमला के नेतृत्व की भी जरूरत है. बाइडेन ने कमला हैरिस को एक बहादुर योद्धा और अमेरिका के बेहतरीन नौकरशाहों में से एक बताते हुए उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है. उपराष्ट्रपति पद का टिकट पाने वालीं कमला हैरिस भारतीय और एशियाई मूल की पहली अमेरिकी हैं.

जो बाइडेन ने ट्वीट के जरिए इस बात की जानकारी दी और लिखा, ‘‘यह बताते हुए मु?ो गर्व हो रहा है कि कमला हैरिस को मैं ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना है. वे एक बहादुर योद्धा और अमेरिका के सब से बेहतरीन नौकरशाहों में से एक हैं.’’

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बाइडेन आगे लिखते हैं, ‘‘जब कमला हैरिस कैलिफोर्निया की अटौर्नी जनरल थीं, तब से मैं ने उन को काम करते हुए देखा है. मैं ने खुद देखा है कि उन्होंने कैसे बड़ेबड़े बैंकों को चुनौती दी, काम करने वाले लोगों की मदद की और महिलाओं व बच्चों को शोषण से बचाया. मैं उस समय भी गर्व महसूस करता था और आज भी गर्व महसूस कर रहा हूं जब वे इस अभियान में मेरी सहयोगी होंगी.’’

राष्ट्रपति पद की रेस से कमला के बाहर होने के बाद से ही इस बात की चर्चा लगातार हो रही थी कि जो बाइडेन उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना साथी उम्मीदवार चुनेंगे. अब जो बाइडेन ने इस बात का ऐलान कर दिया है. उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने के बाद कमला हैरिस ने ट्वीट कर के बाइडेन को धन्यवाद कहा है.

कमला हैरिस ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘जो बाइडेन अमेरिकी लोगों को एक कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने हम लोगों के लिए लड़ते हुए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी. राष्ट्रपति के तौर पर वे एक ऐसा अमेरिका बनाएंगे जो कि हमारे आदर्शों पर खरा उतरेगा. मैं अपनी पार्टी की तरफ से उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार की हैसियत से उन के साथ शामिल होने पर गर्व महसूस करती हूं और उन को अपना कमांडर इन चीफ बनाने के लिए जो भी करना पड़ेगा, वह सब करूंगी.’’

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फीमेल ओबामा केनाम से मशहूर

कैलिफोर्निया से डैमोक्रेटिक पार्टी की सीनेटर कमला हैरिस को, अमेरिकी मीडिया ग्रुप पोलिटिको की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल नवंबर में कराए गए डैमोक्रटिक वोटर्स पोल में राष्ट्रपति  चुनाव के लिए ट्रंप के खिलाफ 5वीं पसंदीदा नौमिनी माना जा रहा था. मगर डैमोक्रटिक पार्टी की तरफ से जो बाइडेन को उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद कमला रेस से अलग हो गईं. गौरतलब है कि ‘फीमेल ओबामा’ के नाम से प्रसिद्ध 54 साल की कमला हैरिस 2016 में अमेरिकी संसद के उच्च सदन (सीनेट) के लिए निर्वाचित हुई थीं. इस जीत के साथ ही वे सीनेट में पहुंचने वाली भारतीय मूल की पहली और इकलौती महिला सांसद बन गई थीं. उन्हें ओबामा का करीबी माना जाता है. 2016 में सीनेट के चुनाव अभियान में ओबामा ने कमला को सपोर्ट किया था.

कमला 2011 से 2017 तक कैलिफोर्निया की अटौर्नी जनरल भी रह चुकी हैं. उन का जन्म कैलिफोर्निया के ही औकलैंड में हुआ. उन की मां श्यामला गोपालन 1960 में 19 साल की उम्र में चेन्नई छोड़ कर अमेरिका में बस गई थीं. वे कैंसर रिसर्चर थीं. कमला के पिता डोनाल्ड हैरिस मूलरूप से जमैका के थे. वे अर्थशास्त्र पढ़ने के लिए अमेरिका आए थे. श्यामला और डोनाल्ड हैरिस एक मुलाकात के बाद अच्छे दोस्त हो गए और वर्ष 1963 में दोनों ने विवाह कर लिया.

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कमला अपनी सफलताओं के लिए अपनी मां को सब से बड़ी प्रेरणा मानती हैं. वे अपने राजनीतिक कैरियर का श्रेय अपनी सुपरहीरो मां को देती हैं. कमला हैरिस के मुताबिक उन की भारतीय मूल की अमेरिकी मां ने ही उन के अंदर जिम्मेदारी की भावना जगाई, जो उन के राजनीतिक कैरियर को प्रेरित करती है.

कमला हैरिस ने अपनी किताब ‘द ट्रूथ्स वी होल्ड : ऐन अमेरिकन जर्नी’ में लिखा, ‘‘असल में वे मेरी मां थीं, जिन्होंने हमारी परवरिश की जिम्मेदारी ली. हम एक महिला के तौर पर कैसे रहेंगी, इसे आकार देने की सब से अधिक जिम्मेदार वही थीं और वे बहुत असाधारण थीं.’’

हैरिस कहती हैं कि उन की दिवंगत मां ने ही उन्हें अपने सामने आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर कदम उठाने के लिए सशक्त बनाया. वे एक ऐसी थीम थीं, जो उन के राजनीतिक कैरियर को प्रभावित करती हैं. वहीं, बच्चों के लिए लिखी अपनी दूसरी किताब ‘सुपरहीरोज आर एवरीव्हेयर’ में उन्होंने अपनी मां को सुपरहीरो की सूची में सब से ऊपर रखा है.

संकीर्णता पर भारी उदारता

कमला हैरिस औकलैंड में पलीबढ़ी हैं. उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से  स्नातक की डिग्री ली है. इस के बाद कमला ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है. हैरिस सैन फ्रांसिस्को में जिला अटौर्नी के रूप में भी काम कर चुकी हैं. वे 2003 में सैन फ्रांसिस्को की जिला वकील बनी थीं. हैरिस ने साल 2017 में कैलिफोर्निया से संयुक्त राज्य सीनेटर के रूप में शपथ ली थी. वे ऐसा करने वाली दूसरी अश्वेत महिला थीं. उन्होंने होमलैंड सिक्योरिटी एंड गवर्नमैंट अफेयर्स कमेटी, इंटैलिजैंस पर सेलैक्ट कमेटी, ज्यूडीशियरी कमेटी और बजट कमेटी में भी काम किया.

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भारतीय मूल की 55 वर्षीया कमला हैरिस को ले कर अमेरिकी राजनीति में विदेशी मूल या हिंदू धर्म संस्कृति का कोई मुद्दा कभी नहीं उठा. इसलिए नहीं उठा क्योंकि अमेरिकी लोग शायद हम हिंदुस्तानियों से ज्यादा बड़े और खुले दिल वाले हैं. उन की सोच संकीर्ण नहीं है. वे व्यक्ति की कार्यक्षमता और ज्ञान को सर्वोपरि सम?ाते हैं. यही वजह है कि कमला जैसी महिला अपनी क्षमता और काबिलीयत के बल पर अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद पर अपनी दावेदारी पेश करेंगी. कोई भी भारतीय अमेरिका में चुनाव लड़ सकता है बशर्ते उसे अमेरिकी नागरिकता प्राप्त हो और वह कम से कम 7 वर्षों से वहां रह रहा हो.

याद होगा, भारत में मई 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस भारी बहुमत से जीती थी तो उस की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर इटली मूल की भारतीय बहू सोनिया गांधी के नाम की चर्चा चल रही थी. इंदिरा गांधी के सुपुत्र राजीव गांधी से शादी के बाद भारत की नागरिकता ले चुकीं सोनिया गांधी के नाम पर तब कैसे भाजपाई नेताओं ने हंगामा बरपा दिया था. सोनिया को विदेशी मूल का बताते हुए भारत के प्रति उन की ईमानदारी व निष्ठा पर बड़ा सवाल खड़ा किया गया था.

भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने तो बाकायदा कसम उठा ली थी कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन गईं तो वे अपना सिर मुंड़वा लेंगी, सादे कपड़े पहनेंगी और जिंदगीभर जमीन पर सोएंगी. इस हठ के साथ वे धरने पर भी बैठ गई थीं. सुषमा का तर्क था कि 60 साल की आजादी के बाद भी अगर कोई विदेशी मूल का शख्स देश के शीर्ष पद पर बैठता है तो इस का मतलब होगा कि देश के 100 करोड़ लोग अक्षम हैं. सुषमा ने साल 1999 में भी सोनिया गांधी को चुनौती देते हुए बेल्लारी से उन के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चुनाव हार गई थीं.

विदेशी मूल का मुद्दा

आज देश के प्रधानमंत्री और उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने भी सोनिया गांधी के संभावित प्रधानमंत्री बनने पर एतराज जताते हुए विदेशी मूल का मुद्दा बड़े जोरशोर से उठाया था. अकेले अटल बिहारी वाजपेयी एकमात्र भाजपाई थे जिन्होंने सोनिया के विदेशी मूल के होने को चुनावी मुद्दा न बनाने की अपील की थी.

कहना गलत न होगा कि हम भारतीय इतने छोटे दिल के हैं कि विदेशी मूल के लोगों को अपनी बहू या दामाद तो बना लेते हैं, मगर उन्हें दिल में जगह नहीं दे पाते. उन्हें पूरी तरह स्वीकार नहीं पाते. उन की क्षमता, उन की निष्ठा, उन की ईमानदारी, उन के समर्पण, उन की प्रीत पर हमेशा शक करते रहते हैं. वहीं अमेरिका को देखिए, जहां भारतीय मूल के वैज्ञानिकों को, सांसदों को, डाक्टरों, इंजीनियरों को कितना मानसम्मान दिया जाता है. ऊंचे ओहदों पर वे अपनी काबिलीयत के बल पर विराजते हैं.

सोनिया गांधी को नकारते और गरियाते वक्त नरेंद्र मोदी भूल जाते हैं गुजरात से संबंध रखने वाली अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को. भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स को 1987 में अमेरिकी सेना में कमीशन प्राप्त हुआ था. 6 महीने की अस्थायी नियुक्ति के बाद उन्हें ‘बेसिक डाइविंग औफिसर’ का पद मिला. वर्ष 1989 में उन्हें ‘नेवल एयर ट्रेनिंग कमांड’ पर भेजा गया, जहां उन्हें ‘नेवल एविएटर’ नियुक्त किया गया. इस के बाद उन्होंने ‘हैलिकौप्टर कौम्बैट सपोर्ट स्क्वाड्रन’ में ट्रेनिंग ली और कई विदेशी स्थानों पर तैनात हुईं. भूमध्यसागर, रैड सी और पर्शियन गल्फ में उन्होंने ‘औपरेशन डेजर्ट शील्ड’ और ‘औपरेशन प्रोवाइड कम्फर्ट’ के दौरान कार्य किया. सितंबर 1992 में उन्हें एच-46 टुकड़ी का औफिसर-इंचार्ज बना कर मियामी (फ्लोरिडा) भेजा गया. इस टुकड़ी को ‘हरिकेन एंड्रू’ से संबंधित राहत कार्य के लिए भेजा गया था. दिसंबर 1995 में उन्हें यूएस नेवल टैस्ट पायलट स्कूल में रोटरी विंग डिपार्टमैंट में प्रशिक्षक और स्कूल के सुरक्षा अधिकारी के तौर पर भेजा गया. वहां उन्होंने यूएच-60, ओएच-6 और ओएच-58 जैसे हैलिकौप्टर्स को उड़ाया. इस के बाद उन्हें यूएसएस सैपान पर वायुयान संचालक और असिस्टैंट एयर बौस के तौर पर नियुक्त किया गया. वर्ष 1998 में जब सुनीता का चयन नासा के लिए हुआ तब वे यूएसएस सैपान पर कार्यरत थीं.

अमेरिका में सुनीता विलियम्स की असाधारण कार्यक्षमता के आगे भारतीय मूल की बात कभी नहीं उठी. उन की क्षमता और ज्ञान को सर्वोपरि माना गया. आज सुनीता सदृश्य कितनी ही भारतीय मूल की हस्तियां अमेरिका में उच्च पदों पर सुशोभित हैं. यहां तक कि अमेरिकी संसद तक में भारतीय मूल की महिलाओं का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा है.

अमेरिका के मध्यावधि चुनावों में 12 भारतीय मूल के लोगों ने किस्मत आजमाई थी. ऐसा नहीं है कि किसी भारतीय को अमेरिका में चुनाव लड़ने के लिए वहां बहुत लंबे समय तक रहने की जरूरत है. अमेरिकी कांग्रेस के हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स के लिए अगर किसी भारतीय को चुनाव लड़ना है तो उस को अमेरिका का नागरिक होने के साथ यह बताना होगा कि वह 7 वर्षों से अमेरिका में रह रहा है.

अमेरिका में हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स में 435 सीटें हैं. भारतीय मूल के राजा कृष्णामूर्ति हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स के लिए चुने गए. कैलिफोर्निया से लगातार चौथी बार  डा. एमी बेरा ने जीत हासिल की. बेरा ने रिपब्लिकन पार्टी के एंड्रयू ग्रांट को 5 फीसदी मार्जिन से हराया. सिलिकौन वैली में भारतीय अमेरिकी रोहित खन्ना ने जीत हासिल की. जीतने वाली चौथी भारतीय महिला सांसद प्रमिला जयपाल हैं. प्रमिला जयपाल पहली महिला हैं, जो हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स तक पहुंची हैं.

 चुनाव अमेरिका में टैंशन भारत में

अमेरिका या अमेरिकन फर्स्ट नहीं, बल्कि अमेरिका सब का. कुछ इसी आधार पर अमेरिका में 3 नवंबर को चुनाव होने जा रहे हैं. रिपब्लिकन पार्टी के नेता व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ डैमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन मैदान में हैं. कैलिफोर्निया की सीनेटर, कमला हैरिस अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन की रनिंग मेट हैं, यानी यदि बाइडेन राष्ट्रपति बने तो कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनेंगी.

अमेरिकी संविधान के मुताबिक, चुनाव राष्ट्रपति का होता है, उपराष्ट्रपति का नहीं. मतदाता उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट नहीं देते, वे राष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट देते हैं. जो राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, उस का रनिंग मेट उपराष्ट्रपति बनता है.

भारतीय मूल की 55 वर्षीया कमला हैरिस की अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी तय किया जाना भारत व भारतीयों के लिए गर्व की बात है. लेकिन, क्या भारत की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार के लिए भी यह ऐसा ही है? इस सवाल का जवाब है, हकीकत में तो ऐसा होना ही चाहिए, लेकिन लगता नहीं.

संविधान के मानने वाले ‘हम भारत के लोग…’ के लिए भविष्य में गर्व करने के लिए एक बात यह है कि 55 वर्षीया कमला हैरिस 2024 में होने वाले चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ सकती हैं. दरअसल, 78 वर्षीय जो बाइडेन ने अगला चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी है. इस तरह, तब वे राष्ट्रपति भी बन सकती हैं.

देशों के संविधानों का सम्मान करने, सब को साथ ले कर चलने, धर्मनिरपेक्षता को मान्यता देने, अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने, दुनिया पर नजर रखने वाली कमला हैरिस अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनती हैं तो इस से भारत की चिंता बढ़ सकती है.  बता दें कि कश्मीर पर उन का रुख भारत की मान्यताओं के उलट है.  कमला हैरिस ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को तकरीबन खत्म सा करने के बाद वहां के हालात को काबू में करने के लिए मोदी सरकार द्वारा पाबंदियां लगाए जाने का विरोध किया था. उन्होंने सीधेतौर पर भारत सरकार से कश्मीर में लगाई गई पाबंदियों को हटाने की मांग की थी.

वहीं, कमला हैरिस जिस पार्टी से जुड़ी हैं यानी डैमोक्रेटिक पार्टी की सोच बहुलतावाद, उदारवाद, धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार करती है. जबकि, भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कट्टरवाद, हिंदूवाद व संकीर्ण सोच की पुजारिन है. इस वजह से नरेंद्र मोदी सरकार को कुछ टैंशन हो सकती है.

जो बाइडेन, जिन्हें सभी सर्वे जीतता हुआ बता रहे हैं, एक सशक्त उदारवादी हैं. उन्होंने अपने चुनाव से जुड़े पौलिसी डौक्यूमैंट में मोदी सरकार के बनाए सीएए कानून और एनआरसी नियम की तीखी आलोचना की है. दिलचस्प यह है कि उन की डिप्टी बनने जा रहीं कमला हैरिस उन से भी ज्यादा उदारवादी हैं.

मालूम हो कि कमला हैरिस का डैमोक्रेटिक पार्टी में बहुत ही सम्मान है. पार्टी पर उन की पकड़ है और पार्टी के नेता उन की इज्जत करते हैं. वे बहुत ही लचीले विचार रखती हैं और हर मुद्दे पर सभी को ले कर चलने में विश्वास रखती हैं.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कमला हैरिस वामपंथी रु?ान की हैं और डैमोक्रेटिक पार्टी में समाजवादी धड़े की अगुआई करती हैं. दूसरी ओर, बाइडेन केंद्रवादी यानी सैंटरिस्ट हैं, यानी न वामपंथी और न दक्षिणपंथी.

ध्यान देने की बात है कि कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार ऐसे समय बनाया गया है जब कुछ दिनों पहले ही अमेरिका में नस्लवाद को ले कर बहुत बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ था और लगभग हर राज्य में बड़े पैमाने पर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के तहत विरोध प्रदर्शन हुए थे. इन प्रदर्शनों में अश्वेत ही नहीं, श्वेत और लैटिन अमेरिकी मूल के लोगों ने भी बड़े पैमाने पर शिरकत की.

एक अश्वेत के ऐसे समय देश के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनना कई मानो में अहम है. कमला हैरिस स्वयं तो अश्वेत हैं ही, देश के एक मात्र अश्वेत राष्ट्रपति रह चुके बराक ओबामा ने उन का समर्थन किया है.

कमला हैरिस लोकतांत्रिक मूल्यों और धार्मिक एकता को ले कर काफी मुखर रही हैं. इस संबंध में विपरीत नीति अपनाने वाले देशों की वे आलोचना करती रही हैं. कुल मिला कर, कमला हैरिस का रुख मोदी सरकार के लिए शुभ समाचार नहीं है, बल्कि उन के अमेरिका के उपराष्ट्रपति बनने से मोदी सरकार की टैंशन बढे़गी.

पुरानी शिक्षा का नया संस्करण

सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 में सब से बड़ी आपत्ति तो ‘नई’ शब्द पर ही होनी चाहिए. इस नीति में आधुनिकता, नैतिकता, तार्किकता, वैज्ञानिकता पर जोर कम जबकि पौराणिकता, संस्कारिता, संस्कृत, पौराणिक हथियारों, पौराणिक काल की कपोलकल्पित प्रथाओं को अंतिम सत्य मान लेने पर ज्यादा है. इस का नाम तो असल में ‘प्राचीन शिक्षा नीति 2020’ होना चाहिए.

पहला वाक्य चाहे यह हो कि इस का उद्देश्य न्यायसंगत, न्यायपूर्ण समाज का विकास और राष्ट्रीय विकास है, पर ज्यादा जोर ‘सांस्कृतिक संरक्षण’, ‘बुनियादी कथा’, ‘साहित्य’, ‘संस्कृति’, ‘भारत की परंपरा’, ‘सांस्कृतिक मूल्यों’, ‘प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान व विचार की समृद्ध परंपरा’, ‘ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज’, ‘भारतीय परंपरा’, ‘भारतीय दर्शन’, ‘ज्ञान अर्जन नहीं पूर्ण आत्मज्ञान’, ‘मुक्ति’ जैसे शब्दों पर होने से इस नीति को प्रारंभ में ही इस तरह सजा दिया गया है जैसे पंडित किसी भी जन्म, विवाह और मृत्यु जैसे आवश्यक प्राकृतिक कर्म के प्रारंभ पर कब्जा कर के तथाकथित मंत्रों से उस की सफलता की गारंटी लेते हैं.

प्राचीन नीति के इस नए संस्करण में लचीलेपन शब्द का इस्तेमाल बहुत किया गया है. चाहे उस का शाब्दिक मतलब कुछ हो, वर्तमान में यही माना जाएगा कि लचीलेपन का मतलब है कि जो पढ़ने योग्य है उसे पढ़ाओ, बाकी को छोड़ दो. विशिष्ट क्षमताओं की स्वीकृति को पहचान कर के बच्चे को शिक्षा देने का अर्थ है कि जो बच्चे पढ़ना नहीं चाहते या जिन के परिवार उन्हें पढ़ा नहीं सकते, उन से कोई जोरजबरदस्ती न की जाए.

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क्या बच्चे अपनी क्षमता और प्रतिभा कक्षा में तय कर सकते हैं? पर यह नीति कहती है कि उसे निर्णय लेने दो. वह अपनी प्रतिभा के अनुसार जीवन का रास्ता चुने यानी जिसे गांव में गाय चराने में मजा आता है उसे करने दो, स्कूल तक न ले जाओ. दलितों, शूद्रों के बच्चे पढ़ कर क्या करेंगे? उन्हें अपने मन की मरजी करने दो. यह इस नीति की मूल आत्मा है जो पूरी तरह पौराणिक वर्णव्यवस्था के अनुसार है जिस में बच्चों और औरतों को पढ़ने पर पूरी पाबंदी है और अनपढ़ों के किस्सों को दिखादिखा कर ढोल बजाया जाता है.

मूलभूत सिद्धांतों में यह निर्देश स्पष्ट है कि शिक्षा का भारतीय जड़ों और गौरव से बंधे रहना अनिवार्य है. प्रधानमंत्री मानवनिर्मित रामलला की मूर्ति के सामने जिस तरह लोट लगा कर 5 अगस्त को फोटो खिंचवा रहे थे वह इस सिद्धांत का प्रैक्टिकल उदाहरण है. छात्रों और शिक्षकों को यह ज्ञान प्राप्त करना होगा कि कहां इस तरह का साष्टांग प्रणाम करना जरूरी है और कब असल ज्ञान के लिए किसी गुफा में जाना है. शिक्षा नीति कहती है कि जड़ों को वहां याद रखें और उन से बंधे रहें जहां प्रासंगिक लगें. गौमूत्र, गोबर के सिद्धांत आज भी हमें याद दिलाए जा रहे हैं और यह शिक्षा नीति का छिपा हुआ अतिरिक्त आदेश है.

प्रारंभिक शिक्षा अब कक्षा 1-2, कक्षा 3 से 5, कक्षा 6 से 8, कक्षा 9 से 12 के 4 वर्गों में विभाजित होगी. एलिमैंट्री चाइल्ड केयर शिक्षा के वर्ग में अक्षर, भाषा, खेल, पहेलियां, चित्रकला, नाटक, कठपुतली, शिष्टाचार, नैतिकता, समूह में काम करना या रैजिमैंटेशन, अच्छा व्यवहार यानी ओबिडियंस, सांस्कृतिक विकास यानी पूजापाठ आदि 6-7 वर्षों तक सिखा कर बच्चों को ऐसा बना दिया जाए कि वे आगे मस्तिष्क चलाने के लायक ही न रहें.

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इस शिक्षा नीति में इसी तरह की बातें कहीं छिपा कर, कहीं खुले शब्दों में बिना हिचक के कही गई हैं.

पिछली शिक्षा नीतियों का कोई अच्छा परिणाम निकला हो, ऐसा नहीं. आजादी के बाद से ही हमें कूपमंडूक बने रहने की शिक्षा मिली है. कभी केंद्र के निर्देश पर तो कभी राज्यों या स्थानीय शिक्षा नौकरशाही के कारण जो शिक्षा मिली है उस के कारण देश में हर वर्ष अंधविश्वासी लोगों की गिनती बढ़ी है. आधुनिक तकनीक का सहारा अंधविश्वास और अपना दंभ बढ़ाने के लिए पिछले सालों में लिया गया है. आज कुछ नया नहीं होने वाला है. कांग्रेस ने भी धार्मिक शिक्षा नीति बनाई थी, पर ढोल नहीं पीटा था.

भाजपा फेल, गहलोत पास

कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कांग्रेस से सत्ता छीन लेने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब राजस्थान में बेईमानी से सत्ता पर आना चाहती है. अपने को नैतिक व भ्रष्टाचारमुक्त कहने वाली पार्टी जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को खरीद कर रही है. यह असल में नया नहीं है. पौराणिक कहानियां इसी तरह के प्रपंचों से भरी हैं. विभीषण का तो नाम है ही, पर महाभारत के युद्ध में भी अपनों का साथ छोड़ कर दुश्मन से मिलने की कई कथाएं बिना आंख झपकाए बारबार दोहराई जाती हैं और उन पर धार्मिकता का ठप्पा भी लगा दिया जाता है.

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कांग्रेस को तोड़ने की पूरी कोशिश कर रही भाजपा को खासी असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि असल बात यह है कि रामधुन गाने भर से ही जनता का कल्याण नहीं होता. रामलला के सामने लोट लगाने से जनता का भला नहीं होता, उलटे, अपना खुद का आत्मविश्वास समाप्त होता है. राजस्थान में सचिन पायलट को मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह फोड़ कर मिलाने का काम आसान नहीं रहा. कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फिलहाल मात दे दी है.

भाजपा की राज्य सरकारें थोड़ेबहुत अच्छे काम कर रही हैं, इस का दावा नहीं किया जा रहा, बल्कि भाजपा के दोनों नेता देश की अर्थव्यवस्था से बेखबर होते हुए राज्यों की विपक्षी सरकारों को गिराने में लगे हैं. अपने कर्तव्य के प्रति भाजपा सरकार की इस तरह की उदासीनता एकदम खतरनाक है. खासतौर से तब जब देश कोविड से भी कराह रहा है और बढ़ती बेकारी व बंद होते उद्योगों तथा व्यापारों से भी.

यह कहना कि देश तो चल रहा है, गलत है. जब राजा नहीं होते तब भी तो देश चलते हैं. तब, लोकल गुंडों की बन आती है. जिस के हाथ में बंदूक होती है, वह अपना पैरेलल शासन बना लेता है. देश अब इस कगार पर पहुंच गया है कि जिस के हाथ में आज भगवा झंडा है, मुंह में जय श्रीराम है वह विधायकों को हड़का सकता है और थानेदार को पीट सकता है, आम आदमी की तो हैसियत ही क्या है.

जब देश सरकार से सही फैसलों की उम्मीद कर रहा है, उसे थालियों, तालियों, दीयों और रामनगरी के झुनझुने पकड़ाए जा रहे हैं, ताकि देश को चलाने वाले राज्यों की विपक्षी सरकारें गिरा सकें. मजेदार बात यह भी है कि इस हमले के शिकार कांग्रेसी शिकारी के छिप कर वार करने की पोल खोलने के बजाय अपनी ही कमियां गिनाने में लगे दिख रहे हैं.

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प्यार के रिश्ते में कानूनी दीवारें

पतिपत्नी विवादों में अब काजियों का दखल बढ़ता जा रहा है, क्योंकि अब पतिपत्नी एकदूसरे से ज्यादा ही मांग कर रहे हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस बारे में ऐलीमनी को निर्धारित करने के लिए पतिपत्नी दोनों को अपने बारे में और ज्यादा बताने का शपथपत्र तैयार किया है. इस में वे कौन सी घड़ी पहनते हैं, कौन सा मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, कौन सी मेड या डोमैस्टिक हैल्प रखते हैं और सोशल मीडिया अकाउंटों में किसकिस तरह के फोटो डालते हैं, बताने को कहा गया है.

ऐलीमनी मांगते समय पत्नियां पति की ब्लैक ऐंड व्हाइट इनकम बढ़ाचढ़ा कर बताती हैं और इतना ज्यादा पैसा मांगती हैं कि पति का दीवाला ही निकल जाए. दूसरी तरफ  गुस्सा हुआ पति सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार होता है, पर पैसा देने को तैयार नहीं होता. पति व्यवसाय बंद कर देते हैं, नौकरी छोड़ देते हैं.

विवाहपूर्व अपना सही खर्चा दोनों बताएं, इसलिए यह 99 पौइंट का शपथपत्र पति और पत्नी दोनों की पोल खोल देगा. पक्की बात है कि दोनों को लगेगा कि विवाह करना आसान है, झगड़ा करना मुश्किल नहीं है. हां, घर छोड़ना कठिन है. वहीं, तलाक पाना, वह भी झगड़ा कर के, सब से बड़ी मुसीबत है.

कहने को तो यह औरतों को बराबरी का हक दिलाने की सारी कोशिश है ताकि पति पत्नी से उस की जवानी छीन लेने के बाद उसे फ टेहाल बना कर दरदर भटकने को मजबूर न करे, पर असल में, यह दोनों के लिए एक आफ त लाएगा.

विवाह 2 जनों का आपसी सहमति से बना संबंध है. उसे संस्कार या कानूनी जामा पहना कर जटिल बना दिया गया है कि जिस पर आप पूरा विश्वास कर के अपना तनमन दे दें उसी से चीजें छिपा लें. विवाह तभी तक सफ ल होता है जब तक दोनों पक्ष रजामंदी से इसे निभाते हैं. जब एकदूसरे पर हावी होने लगें या किसी और के प्रति किसी भी कारण से आकर्षित होने लगें तो खटास पैदा होगी. पर इस में विवाद नहीं खड़ा होना चाहिए, यह आराम से टूटने वाला संबंध होना चाहिए.

आज आखिर बेटोंबेटियों का मातापिता पर क्या हक है, क्या वे बेघर और बेसहारा हैं? बिना कानूनी संरक्षण के बच्चों को मातापिता का पूरा कानूनी और सामाजिक प्रोटैक्शन मिलता है. उन्हें अपने हकों के लिए अदालतों के दरवाजे नहीं खटखटाने पड़ते.

अगर पतिपत्नी विवादों में सदियों से विवाद खड़े होते रहे हैं तो इस का मुख्य कारण धार्मिक कानून रहे हैं, जिन्होंने विवाह पर कब्जा कर के अपना हित साधा है. कानून उसी विवाह को मानता है जो धार्मिक बिचौलिए द्वारा या अदालत द्वारा संपन्न कराया गया हो.

पत्नी को सुरक्षा देने के नाम पर इस बहाने धर्म ने पत्नी को असल में अपने जाल में फंसाया होता है. हर धर्म में पतिपत्नी विवाद में औरतों को सब से पहले चर्च, मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे में जाने का आदेश दिया जाता है. वहां वे अपना रोना रोती हैं, अपना सबकुछ देती हैं. अब उन की जगह अदालतों ने ले ली है. पर, धर्म के दुकानदारों का रसूख आज भी बड़ा है.

पति-पत्नी में विवाद होंगे, दोनों एकसाथ न रह पाएं, यह असंभव बात नहीं. पति और पत्नी के बीच में कोई और भी भा सकता है और वे पुराने साथी को छोड़ कर नए के साथ कुछ समय या हमेशा के लिए रहने की जिद सी पकड़ सकते हैं. इसे ज्यादा तूल देना गलत है. उस ने विवादों को जन्म दिया है, सुलटाया नहीं है. पतिपत्नी के प्यार के रिश्ते में कानूनी दीवारें खड़ी कर दी गई हैं.

पति और पत्नी अब जरा सी अनबन होने पर मेरातेरा करने लगते हैं. पहले तो सबकु छ पति का ही होता था, तो विवाद की गुंजाइश ही नहीं होती थी. पति ने छोड़ा तो या तो मर जाओ या फि र मांबाप के पास लौट कर नौकरानी की तरह रहो. अबला की तरह भी बहुत थीं, आज भी बहुत हैं.

पतिपत्नी विवादों को देखते हए लगता है कि दोनों पक्षों को तो विवाह के पहले ही प्यार को ताक पर रख कर एक कौंट्रैक्ट साइन करना पडे़गा. विवाह के बाद भी तेरामेरा बना रहेगा. जीवनसाथी की ही कठिनाई उस की कठिनाई होगी, दोनों की नहीं. यह स्थिति और भयंकर व विवादों से भरी होगी. अफ सोस यह है, दुनियाभर की सरकारें धर्म की दुकानों की जिद के कारण पतिपत्नी संबंधों को सहज और सरल बनाने के लिए कुछ नहीं कर रही हैं, जबकि अदालतें इन्हें और उलझा रही हैं. तलाक आसान क्यों न हो, इस पर कहीं कोई चर्चा??? तक नहीं हो रही.

Crime Story: आलिया की नादानी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी के रामनगर थाना क्षेत्र में स्थित है घाघरा पुल.24 दिसंबर, 2019 की सुबह इसी पुल के नीचे किसी अज्ञात युवती की लाश पड़ी मिली. तपेसिपाह गांव के कुछ लोग उधर आए तो उन लोगों ने उस लाश को देखा. इस की खबर आग की तरह पूरे गांव में फैल गई. गांव के प्रधान महेंद्र सिंह यादव को जब यह खबर मिली तो वह भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद लोगों से पूछा कि क्या कोई इस युवती को जानता है, तो वहां उपस्थित लोगों ने इनकार कर दिया. तब सुबह के सवा 9 बजे प्रधान महेंद्र सिंह ने इस की सूचना संबंधित थाना रामनगर को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर के.के. मिश्रा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का मुआयना किया तो मृतका की उम्र यही कोई 21 से 25 साल के बीच लगी. उस के गले में दुपट्टे का फंदा पड़ा था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या उसी दुपट्टे से गला घोंट कर की गई होगी.

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इस के अलावा शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. कपड़ों की तलाशी ली गई तो जैकेट की जेब से एक कागज की परची मिली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. इंसपेक्टर मिश्रा ने कागज की वह परची अपने पास रख ली. वहां मौजूद किसी व्यक्ति द्वारा शिनाख्त न किए जाने पर पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

इस के बाद प्रधान महेंद्र सिंह की ओर से पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इंसपेक्टर के.के. मिश्रा ने मृतका की जैकेट से मिली परची पर लिखा मोबाइल नंबर मिलाया तो किसी आयशा नाम की युवती ने फोन रिसीव किया. जैसे ही इंसपेक्टर मिश्रा ने आयशा को अपना परिचय दिया, आयशा ने अपना मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिया.

कई बार नंबर रिडायल करने के बाद भी आयशा ने काल रिसीव नहीं की तो इंसपेक्टर मिश्रा ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि वह नंबर उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के थाना कौडि़या अंतर्गत आर्यनगर निवासी शिल्पी द्विवेदी पुत्री ओमप्रकाश द्विवेदी के नाम से लिया गया था.

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इंसपेक्टर मिश्रा ने एक पुलिस टीम उक्त पते पर भेज दी. वहां पर ओमप्रकाश द्विवेदी मिले. उन्हें युवती की बरामद लाश के बारे में बताया तो उन्होंने लाश की शिनाख्त करने से मना कर दिया. उन्होंने यह जरूर कहा कि यह नंबर उन की बेटी के नाम पर ही है, लेकिन उन की बेटी इस समय कहां है, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता.

उन्होंने बताया कि कई साल पहले शिल्पी ने लखनऊ के थाना ठाकुरगंज क्षेत्र निवासी किसी मुसलिम युवक से प्रेम विवाह कर लिया था, उस के बाद से ही उन्होंने शिल्पी से संबंध खत्म कर लिए थे.

इस का मतलब यह था कि जिस युवती ने इंसपेक्टर मिश्रा की काल रिसीव की थी, असल में वह शिल्पी द्विवेदी ही थी. इंसपेक्टर के.के. मिश्रा लखनऊ के ठाकुरगंज थाने में काफी समय तैनात रहे थे, इसलिए वहां के अपने मुखबिरों को उन्होंने आयशा नाम की युवती का पता लगाने के लिए लगा दिया. जल्द ही मुखबिरों ने आयशा के बारे में सारी जानकारी दे दी.

उन्हें बताया गया कि शिल्पी द्विवेदी ने शहंशाह नाम के शख्स से शादी करने के बाद अपना नाम आयशा रख लिया था. इतना ही नहीं, घटना की रात 24 दिसंबर को आयशा और उस का पति शहंशाह खान एक अन्य युवती और युवक के साथ घर से कार द्वारा निकले थे.

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मुखबिर से शहंशाह का पता मिल गया था. वह ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हसरत टाउन बरौरा हुसैनबाड़ी में आयशा के साथ रह रहा था. यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलते ही इंसपेक्टर मिश्रा ने उन के घर दबिश दी.

शहंशाह और आयशा घर पर ही मिल गए. पुलिस उन दोनों को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. थाने में जब दोनों को घाघरा पुल के नीचे मिली युवती की लाश के फोटो दिखाए गए तो उन के चेहरे का रंग उड़ गया.

इंसपेक्टर मिश्रा समझ गए कि ये दोनों मृतका के बारे में जानते हैं, इसलिए उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने स्वीकार कर लिया कि यह फोटो आलिया का है. उन्होंने ही योजनाबद्ध तरीके से उस की हत्या की थी. आलिया कौन थी और उन्होंने उसे क्यों मारा, इस बारे में पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा के कौडि़या थाना क्षेत्र के गांव आर्यनगर में ओमप्रकाश द्विवेदी रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा एक बेटी शिल्पी और एक बेटा शिवम था. ओमप्रकाश के पास खेती की कुछ उपजाऊ जमीन थी, जिस पर खेती कर के वह परिवार का खर्च उठाते थे.

उन की बेटी शिल्पी पढ़ने में काफी तेज थी. खूबसूरती में भी वह अव्वल थी. उस ने अपनी मेहनत और लगन से एमए तक पढ़ाई की. एक छोटे से गांव में रहने के बावजूद शिल्पी का हौसला ही था कि वह जो चाह रही थी, वह कर भी रही थी.

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उस ने सिपाही की भरती में भाग लिया और सेलेक्ट हो गई. उस ने ट्रेनिंग भी पूरी की, लेकिन उस के दिमाग में न जाने क्या आया कि उस ने सिपाही की नौकरी करने का खयाल दिलोदिमाग से निकाल दिया. फिर वह लखनऊ आ गई और एक मैडिकल कालेज से जीएनएम का डिप्लोमा कोर्स करने लगी.

रहने के लिए उस ने लखनऊ के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के बालागंज में हसरत टाउन बरौरा हुसैनबाड़ी में एक कमरा किराए पर ले लिया था. डिप्लोमा करने के बाद उस ने नौकरी की कोशिश की तो उसे लखनऊ के प्रसिद्ध चरक हौस्पिटल में नौकरी मिल गई.

इसी हौस्पिटल में शहंशाह खान नाम का व्यक्ति आताजाता था. शहंशाह उसे कई बार वहां देखा तो उस का चेहरा जानापहचाना सा लगा. उस ने दिमाग पर जोर दिया तो याद आया कि इस लड़की को उस ने कई बार अपने घर के आसपास देखा था. वह नाम तो नहीं जानता था, मगर चेहरा पहचानता था.

शहंशाह खान के पिता करीम खान का इंतकाल हो चुका था. उन के इंतकाल के कुछ समय बाद ही उस की मां का भी इंतकाल हो गया था. शहंशाह का सिर्फ एक भाई था, जो उस से अलग रहता था.

शहंशाह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. इसी काम के सिलसिले में वह इधरउधर जाता रहता था. चरक हौस्पिटल में भी वह किसी न किसी से मिलने जाया करता था.

शहंशाह को जब याद आ गया कि वह उस के मोहल्ले में ही कहीं रहती है तो परिचय बढ़ाने की सोच कर वह शिल्पी के पास पहुंचा. शिल्पी उस समय किसी काम में मशगूल थी. उस ने सिर उठा कर शहंशाह की ओर देखा और बोली, ‘‘हैलो, मैं आप की क्या मदद कर सकती हूं सर?’’

‘‘जी, मैं कुछ जानने आया हूं, उसी के लिए आप की मदद चाहिए.’’ शहंशाह मुसकरा कर हुए उस के चेहरे को देखते हुए बोला.  ‘‘जी, क्या मतलब?’’ शहंशाह की बात पर चौंकते हुए शिल्पी पूछ बैठी.

‘‘अरे चौंकिए नहीं, मेरा नाम शहंशाह खान है. मैं प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता हूं और बालागंज में हसरत टाउन बरौरा हुसैनबाड़ी में रहता हूं. मैं यहां हौस्पिटल में जब भी आता हूं, तो आप को देख कर मुझे आप का चेहरा जानापहचाना सा लगता है, जैसे कहीं देखा हो. मैं ने आप को अपने मोहल्ले में भी देखा है. क्या आप वहां रह रही हैं या किसी से मिलने जाती हैं?’’ शहंशाह खान ने पूछा.

शहंशाह की बात सुनने के बाद शिल्पी ने तसल्ली की सांस ली, फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जी, मैं वहीं किराए पर कमरा ले कर रहती हूं. इसीलिए आप ने मुझे आतेजाते देखा होगा.’’‘‘चलिए, हौस्पिटल आने का मुझे कुछ तो फायदा हुआ, आप जैसी खूबसूरत पड़ोसी के बारे में पता चल गया. अगर आप कहें तो एकएक कप कौफी हो जाए.’’ वह बोला.

‘‘जी, अभी तो पौसिबल नहीं, लेकिन नेक्स्ट टाइम जरूर…’’ बड़ी ही प्यारी मुसकान बिखेरते हुए शिल्पी ने मना किया. उस की मुसकान शहंशाह का दिल चुराने लगी.

‘‘कोई बात नहीं, शाम को ड्यूटी से फ्री होने के बाद मेरे घर आइए. मैं आप को खुद अपने हाथों से कौफी बना कर पिलाऊंगा. वैसे मेरी बनाई कौफी लोगों को बहुत पसंद आती है. आप को पसंद आती है या नहीं, वह आप पी कर ही बता सकती हैं. उस के लिए आप को आना पड़ेगा.’’ शहंशाह ने इस अंदाज में कहा कि शिल्पी मना ही नहीं कर पाई.शिल्पी के सहमति देने के बाद शहंशाह चलने को हुआ तो जैसे उसे कुछ याद आया, वह रुक कर शिल्पी से बोला, ‘‘अरे, इतनी बात हो गई और आप ने अपना नाम तो बताया ही नहीं.’’  ‘‘आप ने पूछा ही नहीं.’’ शिल्पी ने मजाकिया लहजे में कहा तो शहंशाह हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर शिल्पी ने अपना नाम बता दिया, जिस के बाद शहंशाह वहां से चला गया.

शाम को ड्यूटी पूरी करने के बाद शिल्पी अपने कमरे पर पहुंची और फ्रैश होने के बाद ढंग से तैयार हुई. फिर शहंशाह का घर पूछते हुए उस के घर पहुंच गई.  शहंशाह ने उसे बड़े प्यार से बिठाया और फिर खुद कौफी बना कर ले आया. कौफी का घूंट पीते ही उस के मुंह से निकला ‘वाह’.

शहंशाह भी समझ गया कि उस की बनाई कौफी शिल्पी को पसंद आई है. शिल्पी ने भी उस की खूब तारीफ की. इस के बाद उन के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं. दोनों ने एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जाना. उस बातचीत के दौरान दोनों ने अपने फोन नंबर भी एकदूसरे को दिए. इस के बाद शिल्पी जाने लगी तो शहंशाह उसे उस के कमरे तक छोड़ कर आया.

इस के बाद तो उन का रोज ही मिलनाजुलना होने लगा. शहंशाह का साथ शिल्पी को भी अच्छा लगने लगा. दोनों साथ घूमते, फिल्में देखते. धीरेधीरे वे एकदूसरे के करीब आने लगे. दोनों के दिलों में चाहत का दीया जला तो उस की रोशनी से उन की आंखें भी जगमगाने लगीं.

उस रोशनी की जगमगाहट को उन्होंने महसूस किया तो अपने प्यार का इजहार भी एकदूसरे से कर दिया. फिर जल्दी ही दोनों की दूरियां सिमट गईं.

दोनों साथ जिंदगी जीने के इरादे से आगे कदम बढ़ाते गए. शिल्पी जानती थी कि उस के पिता कभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगे, फिर भी उस ने अपनी तरफ से उन्हें पूरी बात बताई. किसी मुसलिम युवक से विवाह करने की बात सुन कर पिता ओमप्रकाश द्विवेदी बौखला गए.

उन्होंने शिल्पी को चेतावनी दी कि उस ने मुसलिम युवक से विवाह किया तो उस से उन का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. शिल्पी ने परिवार के बजाए अपने प्रेमी को चुना. उस ने एक बार भी अपने पिता और परिवार की फिक्र नहीं की.

सन 2013 में शिल्पी ने घर वालों को दरकिनार करते हुए शहंशाह खान से निकाह कर लिया और अपना नाम शिल्पी से आयशा रख लिया. कालांतर में आयशा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अनम रखा. यह 4 साल पहले की बात है. इसी दौरान शहंशाह की एक दिन आलिया नाम की युवती से मुलाकात हुई.

आलिया बरेली के प्रेमनगर थाना क्षेत्र के कोहाड़ापीर में रहने वाले अकबर अली की बेटी थी. अकबर अली के परिवार में पत्नी सलमा के अलावा 2 बेटियां शीबा और आलिया थीं. अकबर अली प्राइवेट जौब करते थे. समय रहते शीबा का उन्होंने महमूद हुसैन नाम के व्यक्ति से विवाह कर दिया.

आलिया ने हाईस्कूल पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. आलिया देखने में काफी खूबसूरत थी, उस के रिश्ते भी आने लगे थे. इस पर अकबर अली को लखनऊ के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के अकबरी गेट मोहल्ले में रहने वाले शमशेद अंसारी का रिश्ता पसंद आया. उन्होंने जल्द ही रिश्ता पक्का कर के आलिया का निकाह शमशेद से कर दिया.

शमशेद दुबई में रहता था. निकाह के बाद कुछ समय बिता कर दुबई चला गया. आलिया यहां ससुराल के लोगों के बीच रह कर भी अकेली थी, वजह थी उस का पति उस से बहुत दूर था. जब भी दोनों की बात होती, आलिया उस के साथ दुबई में रहने की बात करती. लेकिन शमशेद कुछ न कुछ बहाना बना कर उसे टाल देता था.

बारबार कहने पर भी शमशेद नहीं माना तो आलिया का शमशेद और अपने ससुराल वालों से आए दिन झगड़ा होने लगा. निकाह होने के बाद भी वह अनब्याही लड़कियों की तरह अकेले जिंदगी गुजारने को विवश थी.

एक दिन आलिया अपने एक परिचित के यहां गई थी. वहीं शहंशाह भी आया हुआ था. उस परिचित ने ही आलिया और शहंशाह का परिचय कराया था. 23 वर्षीय आलिया की खूबसूरती 41 वर्षीय शहंशाह को भा गई.

शहंशाह ने अपने बारे में आलिया को बताया तो उस के व्यक्तित्व और उस की कमाई देख कर आलिया भी दंग रह गई. आलिया ने शहंशाह को अपने विवाहित होने के बावजूद एकाकी जीवन जीने को मजबूर होने की बात बताई तो शहंशाह की बांछें खिल गईं.

अपने से 18 साल छोटी आलिया की जवानी का आनंद लेने का मौका मिलता दिखने लगा. कमसिन नवयौवना आलिया के यौवन का पराग उस के पति को चखने का मौका नहीं मिला था. वहीं भरी जवानी में पति सुख से वंचित रहने का दुख आलिया को भी कम नहीं था. इसी दुख पर मरहम लगाने का काम शहंशाह को करना था. इस में शहंशाह माहिर था.

उस मुलाकात के बाद उन की मुलाकातों का दौर चल निकला. शहंशाह उस पर जम कर पैसा उड़ाने लगा. आलिया भी शहंशाह की जर्रानवाजी से बहुत खुश थी.

वह अपने शौहर को छोड़ कर शहंशाह के साथ जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी. उसे मालूम था कि शहंशाह विवाहित है और उस के एक बेटी भी है. इस के बावजूद वह शहंशाह से निकाह करने को तैयार थी. दूसरी ओर शहंशाह उसे पाना तो चाहता था, लेकिन उस ने यह तय कर लिया था कि किसी भी हाल में उस से निकाह नहीं करेगा. दोनों की चाहत इस कदर बढ़ी कि जल्द ही दोनों के जिस्म एक हो गए. एक बार उन के बीच जिस्मों का जो खेल खेला गया तो वह बारबार दोहराया जाने लगा.

आलिया अपनी ससुराल हमेशा के लिए छोड़ कर चली आई. तब शहंशाह ने उसे अपने घर से कुछ दूर किराए पर एक कमरा दिला दिया. आलिया उस में रहने लगी. शहंशाह उस से मिलने के लिए आता रहता था.

आलिया उस से निकाह करने के लिए कहती तो शहंशाह टालमटोल कर जाता. वह कहता कि जब उस ने दिल से उसे अपना लिया और उसे पत्नी के रूप में ही अपने साथ रख रखा है तो निकाह की क्या जरूरत है. आलिया समझ जाती कि शहंशाह उस से निकाह करने से बच रहा है.

बिना निकाह वह उसे रखैल की तरह रखना चाहता था. ऐसे में वह शहंशाह से अपने हक और संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती थी, न उस का कोई अधिकार होता. उस पर केवल उस की पत्नी आयशा का ही हक रहता.

जब शहंशाह को इस संबंध में कोई कदम उठाते नहीं देखा तो आलिया ने खुद अपना हक हासिल करने की ठान ली. वह शहंशाह के घर भी जाती रहती थी. उस ने आयशा से दोस्ती भी कर ली थी. काफी दिनों तक आयशा को आलिया और उस के पति शहंशाह के संबंधों के बारे में पता नहीं चला.

23 दिसंबर, 2019 को आलिया शहंशाह के घर पहुंच गई और आयशा को शहंशाह से अपने संबंधों के बारे में बताते हुए कहा कि वह भी शहंशाह की पत्नी है और अब वह भी उस के साथ घर में रहेगी. आयशा का जितना हक शहंशाह पर है, उतना ही हक उस का भी है. शहंशाह की संपत्ति पर भी उस का हक है. यह सुन आयशा सन्न रह गई.

आयशा ने इस बारे में अपने पति शहंशाह से बात की तो शहंशाह ने उस से कह दिया कि उस के आलिया के साथ संबंध जरूर हैं, लेकिन वह उसे कभी उस की सौतन नहीं बनाएगा.

आयशा शहंशाह के जवाब से संतुष्ट हुई तो उस ने शहंशाह के साथ मिल कर आलिया को समझाने की काफी कोशिश की लेकिन आलिया नहीं मानी. इस पर आयशा शहंशाह के साथ मिल कर आलिया नाम की मुसीबत को दूर करने का उपाय सोचने लगी.

आलिया बातों से मानने वाली नहीं थी. शहंशाह ने आयशा को भी बताया कि वह काफी समय से उस के पीछे पड़ी थी, लाख समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी. ऐसे में दोनों ने आलिया को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. इस योजना में शहंशाह ने अपने दोस्त और साथ में प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने वाले आफताब को भी शामिल कर लिया.

23 दिसंबर की रात को शहंशाह आलिया को बाराबंकी के रामनगर क्षेत्र में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के यहां छोड़ने की बात कह कर कार में ले कर चल दिया. कार में आफताब भी था. उस के साथ उस की पत्नी आयशा भी थी.

रास्ते में आलिया को सर्दी लगी तो आयशा ने उसे अपनी जैकेट पहनने को दे दी. आलिया ने वह जैकेट पहन ली. रास्ते में कुछ जरूरी काम निपटाने का बहाना बना कर शहंशाह ने आलिया को आयशा और आफताब के साथ कार से उतार कर बस से भेज दिया.

रात लगभग साढ़े 3 बजे रामनगर थाना क्षेत्र के घाघरा पुल पर तीनों बस से उतर गए. आयशा और आफताब आलिया को ले कर घाघरा घाट पर पहुंचे. वहां आफताब ने मौका देख कर आलिया को दबोच लिया तो आयशा ने आलिया के गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला कस दिया, जिस से दम घुटने से उस की मौत हो गई. इस के बाद लाश पुल से नीचे गिरा कर आयशा और आफताब वहां से निकल कर वापस लखनऊ में अपने घर आ गए.

आयशा ने कुछ दिन पहले एक दुकान से अपनी आईडी पर एक सिम कार्ड खरीदा था. उस सिम का मोबाइल नंबर याद रखने के लिए उस ने दुकानदार से एक परची पर फोन नंबर लिखवा लिया था.

वह परची उस ने अपनी जैकेट की जेब में रख ली थी. वही जैकेट आयशा घटना वाले दिन पहने थी. जब आलिया को ठंड लगी तो उस ने आलिया को वही जैकेट पहनने के लिए दे दी थी. उस समय वह भूल गई थी कि उस की जैकेट की जेब में वह परची पड़ी है, जिस पर उस का फोन नंबर लिखा है. नंबर लिखी उसी परची के सहारे पुलिस उन तक पहुंच गई.

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर के.के. मिश्रा ने मुकदमे में धारा 120बी आईपीसी और बढ़ा दी. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद आयशा और शहंशाह खान को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक आफताब फरार था. पुलिस सरगरमी से उस की तलाश कर रही थी.

स्टिकी ट्रैप करे कीटों से सुरक्षा

टमाटर, भिंडी व बैगन में फल छेदक की सूंड़ी और सफेद मक्खी का प्रकोप दिखता है. इस के लिए ‘एनपीवी और वीटी’ जैव दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं. स्टिकी ट्रैप दरअसल पतली सी चिपचिपी शीट होती है. यह फसलों की रक्षा बिना किसी रसायन के इस्तेमाल से करती है और रसायन के मुकाबले सस्ती भी रहती है. स्टिकी ट्रैप शीट पर कीट आ कर चिपक जाते हैं. इस के बाद वे फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं.

रासायनिक दवाओं से कीट नियंत्रण में कई तरह की दिक्कत आती है, जिन में कृषि पर्यावरण को कई तरह के नुकसान शामिल रहते हैं, जबकि स्टिकी ट्रैप के इस्तेमाल से किसान इन सभी दिक्कतों से बच सकते हैं. रासायनिक कीटनाशकों के लगातार इस्तेमाल से कई गंभीर खतरे पैदा होते रहते हैं. रसायन  के ज्यादा इस्तेमाल से कीटों में रसायन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता, खाद्य शृंखला में कीटनाशक अवशेष, मृदा प्रदूषण, मित्र कीटों का अनचाहा नुकसान और पर्यावरण को कई दूसरे नुकसान भी होते हैं.

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  क्या होता है स्टिकी ट्रैप

स्टिकी ट्रैप कई तरह की रंगीन शीटें होती हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए खेत में लगाई जाती हैं. इस से फसलों पर आक्रमणकारी कीटों से रक्षा हो जाती है और खेत में किस तरह के कीटों का प्रकोप चल रहा है, इस का सर्वे भी हो सकता है.

  कैसे काम करता है  स्टिकी ट्रैप

हर कीट किसी खास रंग की ओर आकर्षित होता है. अब अगर उसी रंग की शीट पर कोई चिपचिपा पदार्थ लगा कर फसल की ऊंचाई से करीब एक फुट और ऊंचे पर टांग दिया जाए तो कीट रंग से आकर्षित हो कर इस शीट पर चिपक जाते हैं, फिर वे फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं.

1.घर पर बनाएं स्टिकी ट्रैप : ये बाजार में भी बनीबनाई आती हैं और इन्हें घर पर भी बनाया जा सकता है. एक स्टिकी ट्रैप बनाने में औसतन 15 रुपए का खर्च आता है. इसे टीन, प्लास्टिक और दफ्ती की शीट से बनाया जा सकता है.

अमूमन ये शीटें 4 रंग की बनाई जाती हैं, पीली, नीली, सफेद और काली. इन्हें बनाने के लिए डेढ़ फुट लंबा और एक फुट चौड़ा कार्ड बोर्ड, हार्ड बोर्ड या इतने ही आकार का टीन का टुकड़ा लें. इस पर सफेद ग्रीस की पतली सतह लगा दें.

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इस के अलावा एक बांस और एक डोरी की जरूरत होगी, जिस पर इस स्टिकी ट्रैप को टांगा जाएगा. इसे बनाने के लिए बोर्ड को लटकाने लायक 2 छेद बना लेें और उन पर ग्रीस की पतली परत चढ़ा दें.

एक एकड़ में तकरीबन 6-8 स्टिकी ट्रैप लगाएं. इन ट्रैपों को पौधे से 50-75 सैंटीमीटर ऊंचाई पर लगाएं. यह ऊंचाई कीटों के उड़ने के रास्ते में आएगी.

टीन, हार्ड बोर्ड और प्लास्टिक की शीट साफ कर के बारबार इस्तेमाल किया जा सकता है, जबकि दफ्ती और गत्ते से बने ट्रैप 1-2 इस्तेमाल के बाद खराब हो जाते हैं.

ट्रैप को गरम पानी से साफ करें और वापस फिर से ग्रीस लगा कर खेत में टांग दें.

स्टिकी ट्रैप के रंग और कीट

2.पीली स्टिकी ट्रैप : यह सफेद मक्खी, एफिड और लीफ माइनर जैसे कीटों के लिए बनाया जाता है. ये ज्यादातर सब्जियों की फसल में लगते हैं.

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3.नीली स्टिकी ट्रैप : नीला रंग थ्रिप्स कीट के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह कीट धान, फूलों और सब्जियों को नुकसान पहुंचाता है.

4.सफेद स्टिकी ट्रैप : फ्लाई बीटल कीट और बग कीट के लिए इस रंग की स्टिकी टै्रप का इस्तेमाल किया जाता है. ये कीट आमतौर पर फलों और सब्जियों में लगते हैं.

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5.काली स्टिकी टै्रप : अमेरिकन पिन वर्म के लिए यह ट्रैप इस्तेमाल होता है और ज्यादातर टमाटर पर लगने वाले कीटों का हमला रोकने के लिए लगाया जाता है.

मैं साल की हूं, मुझे सेक्स में इंट्रैस्ट नहीं है, मुझे क्या करना चाहिए, मैं सिर्फ लाइफ को एंजॉय करना चाहती हूं?

सवाल 

मैं 26 साल की हूं. शुरू से मेरा ध्यान पढ़ाईलिखाई में रहा. मेरा कभी कोई बौयफ्रैंड नहीं रहा. ऐसा नहीं है कि सैक्स में मुझे कोई इंट्रैस्ट नहीं है, बल्कि इसलिए कि पढ़ने में मेरा ध्यान लगा रहे, अपने को रोमांटिक, सैक्सी बातों से दूर रखती थी. मेरी सहेलियां इस बात के लिए मुझे बोलती भी थीं कि लाइफ में सब एंजौय करना चाहिए. खैर, मातापिता ने मेरे लिए एक लड़का पसंद कर लिया है. वे लोग जल्दी से जल्दी शादी करना चाहते हैं. उस लड़के से मेरी फौर्मल मीटिंग हुई है. मुझे वह बेहद पसंद आया. मैं खुश हूं. बस, जानना यह चाहती हूं कि लव मैरिज और अरैंज मैरिज के सैक्स में क्या अंतर होता है?

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जवाब

सैक्स का लव या अरैंज मैरिज से कोई लेनादेना नहीं है. यह तो अपनीअपनी सैक्स ड्राइव पर निर्भर करता है कि आप सैक्स की इच्छा को अपने अंदर कैसे ज्यादा से ज्यादा समय तक के लिए जीवित रखते हैं.

आप लव मैरिज और अरैंज मैरिज के अंतर की बात दिमाग से निकाल दें क्योंकि मैरिज में अच्छे सैक्स के लिए आप की और आप के पार्टनर की बैड पर सही कैमिस्ट्री होनी सब से ज्यादा जरूरी है. आप दोनों एकदूसरे की फीलिंग्स को, बौडी को और जरूरतों को जानें और सम?ों. मैरिड लाइफ के लिए यही अहम है.

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हुंडई वरना के साथ जा सकते हैं टेंशन फ्री लॉन्ग ड्राइव पर

हुंडई की नई वरना की खास क्वालिटी से आपको लॉन्ग ड्राइव के दौरान किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी. हुंडई वरना के साथ आप किसी तरह के धूल, मिट्टी वाले सड़क पर आसानी से यात्रा कर सकते हैं. यह आपके कार को प्रोटेक्ट रखेगी. दरअसल,

नई हुंडई वरना कार में मौजूद सस्पेंशन सोक अप बंप इसे हर तरह से बचाता है. हुंडई वरना अपनी कार की स्पीड को सड़क के अनुसार खुद कंट्रोल करके रखती है. इससे आपको यात्रा में कोई दिक्कत नहीं आएगी. इसलिए हुंडई वरना #BetterThanTheBest है

नर्सरी का मौडर्न तरीका प्लास्टिक ट्रे

कहा जाता है कि सब्जियों की खेती से किसानों को भरपूर आमदनी होती है,सालभर नकदी बनी रहती है. मगर सब्जियों की नर्सरी उगाना हर जगह मुमकिन नहीं है. बाढ़ या दियारा इलाके में यह काम बहुत मुश्किल है, वहीं दूसरी ओर छोटे किसानों के पास गुजारे लायक जमीन नहीं होती है कि नर्सरी उगा सकें.

सब्जियों से भरपूर आमदनी के लिए खेती अगेती करनी चाहिए, जिस के लिए नर्सरी भी अगेती हो व तापक्रम माकूल हो. प्लास्टिक ट्रे में नर्सरी को उगा कर उसे अनुकूलता प्रक्रम में आसानी से रखा जा सकता है, जबकि खुले खेत में यह काम बहुत मुश्किल है.

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प्लास्टिक ट्रे में सब्जियों की नर्सरी से ढेरों फायदे हैं, मसलन नर्सरी जल्दी और बेमौसम तैयार हो जाती है. बीज की जरूरत तकरीबन आधी होती है. रोग और कीट तकरीबन न के बराबर रहते हैं. नर्सरी को एक जगह से दूसरी जगह आसानी से भेज सकते हैं.

मतलब यह है कि नर्सरी के कारोबार को शानदार और दमदार बनाया जा सकता है. ऐसे में समय की मांग है कि अब प्लास्टिक ट्रे में नर्सरी लगाई जाए.

नर्सरी की इस विधि को भूमिरहित या प्लग ट्रे कहते हैं. प्लग ट्रे प्लास्टिक से बनी हुई ढेरनुमा आकार की होती है, जिस में प्लग (गहरे सैल) बने होते हैं.

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बाजार में प्लास्टिक की अनेक गहरे खानेदार (प्लग) वाली ट्रे मिलती हैं. एक प्लग (खाने) में एक पौध उगाई जाती है. हमेशा शंकु आकार वाली ट्रे को खरीदना चाहिए, क्योंकि शंकु आकार वाली टे्र में पौधों की जड़ें बहुत आसानी से और गहराई से विकसित हो जाती हैं.

कैसे उगाएं नर्सरी

सभी पौध रोग और कीट मुक्त हों, इस के लिए सब से पहले प्लास्टिक ट्रे को उपचारित कर देना चाहिए.

ट्रे को 0.1 फीसदी क्लोरीन ब्लीच के घोल पर 0.1 फीसदी सोडियम हाइपोक्लोराइड के घोल में

कुछ देर डुबो कर निकाल लेना चाहिए.

इस के बाद प्रति प्लग 3 भाग को कोपिट, एक भाग वर्मी क्यूलाइट, एक भाग पर लाइट के मिश्रण से भर देना चाहिए.

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इस के बाद ट्रे को पौलीहाउस, एग्रोनैट या छोटे किसान लोटनेल पौलीहाउस में रख दें. इस के बाद हर प्लग में

1 सैंटीमीटर की गहराई पर बीज को दबा कर हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

   खाद, पानी व उर्वरक

1.ट्रे में कार्बनिक खादों का भरपूर इस्तेमाल करते हुए घुलनशील उर्वरकों का इस्तेमाल करना बेहतर  होता है.

2.कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए हफ्ते में एक बार घोल बना कर छिड़काव करना उचित रहता है.

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3.पौधों की बेहतर बढ़वार के लिए अंकुरण के एक हफ्ते बाद सिंचाई के साथ बाजार में मुहैया

4. एनपीके के ग्रेड जैसे 20:20:20, 19:19:19 और 15:15:15 दे सकते हैं.

5.ध्यान देने वाली बात यह है कि सिंचाई की सूक्ष्म विधि जैसे ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाईयदि अपनाई गई, हो तो विभिन्न एनपीके ग्रेड वाले उर्वरकों का70-80 पीपीएम की मात्रा होनी चाहिए.

6.प्लग ट्रे में सिंचाई हमेशा शाम को फुहार के रूप में करनी चाहिए.

7.शाम को सिंचाई करने से पौध गलन की समस्या कम आती है.

  फायदे ही फायदे

* पौध सड़न, जड़ गलन जैसी बीमारियों का डर कम हो जाता है.

* एक प्लग में एक पौधे का बेहतर ढंग से जमाव होने के चलते

पौधों को समुचित पोषक तत्त्व और पानी मिलता है.

* खरपतवार नहीं उग पाते हैं.

* बेमौसम और जल्दी से पौधे तैयार हो जाते हैं,

जिस से बाजार में सब्जियों की अगली आवक से कीमतें ज्यादा मिलती हैं

और आमदनी में बढ़ोतरी होती है.

* 95-100 फीसदी पौधे जीवित और सेहतमंद होते हैं.

* पौध सामग्री को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में आसानी रहती है.

* सालभर में 5-6 बार नर्सरी तैयार की जा सकती है.

मन नहीं, मुनाफे की बात

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में स्टार्टअप उद्यमियों से ‘खिलौनों के लिए तैयारी’ का आह्वान किया है और कहा है कि स्थानीय खिलौनों के लिए आवाज बुलंद करने का वक्त आ गया है. उन्होंने युवा उद्यमियों से भारत में और भारत के बारे में कम्प्यूटर गेम्स बनाने का आहृवान किया और कहा ‘आईये खेलों की शुरुआत की जाये.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान में वर्चुअल गेम्स हों, टॉयज का सेक्टर हो, सब ने, बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है और ये अवसर भी है. जब आज से सौ बरस पहले, असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, तो गांधी जी ने लिखा था कि – ‘असहयोग आन्दोलन, देशवासियों में आत्मसम्मान और अपनी शक्ति का बोध कराने का एक प्रयास है.’ आज, जब हम देश को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं, तो, हमें, पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना है, हर क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना है. असहयोग आंदोलन के रूप में जो बीज बोया गया था, उसे, अब, आत्मनिर्भर भारत के वटवृक्ष में परिवर्तित करना हम सब का दायित्व है.

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प्रधानमंत्री के इस आह्वान पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तंज कसा है. राहुल गांधी ने कहा कि JEE-NEET परीक्षार्थियों की समस्या का जिक्र करते हुए कहा  “मन की नहीं बल्कि स्टूडेंट्स की बात की जाए.” राहुल ने प्रधानमंत्री के आह्वान पर भी निशाना साधा, जिस में उन्होंने खिलौना व्यापारियों, उद्यमियों से आगे आने की अपील की. वायनाड सांसद ने कहा कि “जेईई-एनईईटी के परीक्षार्थी चाहते थे कि पीएम परीक्षा पर चर्चा करें, लेकिन पीएम ने खिलौनों पर चर्चा की.”

बता दें मन की बात में प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक खिलौना उद्योग 7 लाख करोड़ रुपए से अधिक है, लेकिन इस में भारत का हिस्सा बेहद कम है, हमें इसे बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा. देश की खिलौना इंडस्ट्री भी आगे बढ़े और आत्मनिर्भर भारत बनने में सहयोग दे.

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार, 30 अगस्त को अपने मन की बात में जब यह कहा कि भारत खिलौने का हब बनता जा रहा है और लोगों को देश में निर्मित खिलौने खरीदने चाहिए तो यह सुन कर लोगों के अचरज का ठिकाना नहीं रहा. लोग सोचने लगे कि इस समय जब देश कोरोना महामारी के महासंकट से जूझ रहा है और रोजाना सैकड़ों लोग अकाल मौत के मुंह में समा रहे हैं, तब देश के प्रधानमंत्री को खिलौना कैसे याद आ सकता है?

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लेकिन शायद एक बात लोग भूल जाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के खून में व्यापार है. यह बात वह खुद बड़े गर्व से देश को बताते रहे हैं. आप को याद होगा जब रिलायंस अपना जीओ शुरू करने वाला था तो पीएम मोदी ने उस का विज्ञापन किया था और देशभर के तकरीबन हर अखबार के पहले पेज पर हाथ में जीओ मोबाइल लिए पीएम मोदी की तस्वीर थी. उस विज्ञापन को देख कर लोगों की आंखें खुली की खुली रह गई. हर तरफ से यह सवाल उठा कि आखिर देश का पीएम किसी प्राइवेट कंपनी के सामान का प्रचार कैसे कर सकता है? लेकिन यह तो मोदी हैं वह कुछ भी कर सकते हैं और उन के भक्त अपने इस भगवान पर भला कैसे अंगुली उठा सकते हैं?

प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर अपने उस चहेते उद्योगपति की मदद के लिए उतरे हैं. लेकिन इस बार उन्होंने बस तरीका दूसरा अपनाया है. सीधे हाथ में कंपनी का लोगो या फिर सामान लेने की जगह दूसरे तरीके से उस का प्रचार किया है. दरअसल मुकेश अंबानी ने कोविड-19 शुरू होने से ठीक पहले 260 साल पुरानी खिलौने की एक ब्रांड कंपनी हैमलीज को अधिग्रहीत कर लिया है. इस के लिए रिलायंस ने कंपनी के मालिक को 92 मिलियन डॉलर अदा किए हैं.

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लंदन आधारित यह कंपनी घाटे में चल रही थी. इस के 16 देशों में 179 स्टोर हैं. 2019 का इस का एकाउंट बताता है कि यह 13 मिलियन डॉलर के घाटे में है. ब्रांड खरीदने के बाद रिलायंस ने उस के विस्तार पर काम शुरू कर दिया है.

इकोनामिक टाइम्स के मुताबिक, इस के तहत कंपनी ने कोविड-19 संकट गहराने के बावजूद योयो मॉडल से ले कर हवाईजहाज जैसे उत्पादों को बनाने का फैसला लिया है. विस्तार योजना में नये स्टोरों को खोलने के साथ ही ऑनलाइन व्यवसाय को तरजीह दी जाएगी. ऐसा रिलायंस ब्रांड्स के चीफ एग्जीक्यूटिव आफसर सुमित यादव ने पिछले दिनों इकोनामिक टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू में बताया.

उन का कहना था कि विस्तार अपने आप में ब्रांड में विश्वास और रणनीति की जीत का परिचायक है. आप को बता दें कि पिछले 15 सालों में कंपनी को अपने 4 मालिक बदलने पड़े. उन्होंने कहा कि यह यात्रा घटनाओं से भरी है, लेकिन लंबे समय तक जो निवेश की योजना हम ने बनाई है उस को हम रोकने नहीं जा रहे हैं.

जानकारी के मुताबिक, हैमलीज को साल 1760 में विलियम हैमली ने शुरू किया था. हाल के सालों में इसे काफी संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ा. इस के पुराने मालिक फ्रांस के लुडेंडो ग्रुप और चीन की सी बैनर इंटरनेशनल होल्डिंग लिमिटेड बिक्री में और वैश्विक स्तर पर विस्तार दोनों में पूरी तरह से नाकाम रही.

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लेकिन रिलायंस को विश्वास है कि वह दुनिया के पैमाने पर इस की मार्केट बनाने में सफल होगा. उस का कहना है कि वह कपंनी की फ्रेंचाइजी के जरिये पिछले 10 सालों से उस के साथ काम कर रहा है. भारत की फ्रेंचाइजी रिलायंस के पास ही थी और इस तरह से ब्रांड के साथ उस का नजदीकी ताल्लुक है. हालांकि कंपनी के सीईओ डेविड स्मिथ ने इस्तीफा दे दिया है. वह 7 महीने के भीतर ही अपना पद छोड़ दिए. रिलायंस ने स्मिथ के जाने पर कुछ भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.

इस बीच, लंदन के रिजेंट स्ट्रीट में स्थित सात फ्लोर वाले कंपनी के स्टोर को फिर रंगरोगन कर तैयार किया जा रहा है. इस के अलावा मैनचेस्टर, लिवरपूल और न्यूकैस्टल, इंग्लैंड के स्टोरों में पॉपअप रियायत देने पर विचार चल रहा है. इस के साथ ही इस की पश्चिमी यूरोप, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा में विस्तार की योजना है.

साथ ही कंपनी कोविड चुनौती से निपटने के लिए जब कि शारीरिक तौर पर तमाम पाबंदियां लगी हुई हैं, आनलाइन व्यवसाय पर ज्यादा जोर दे रही है. इस के लिए वेबसाइट को फिर से लांच करने का फैसला लिया गया है.

हालांकि इस मद में रिलायंस कितना निवेश कर रहा है इस को बताने से यादव ने इंकार कर दिया. इशारों में ही कहा कि एक 260 साल पुराने किसी ब्रांड की जो कीमत हो सकती है उस के हिसाब से निवेश किया जा रहा है. तो इस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में न केवल खिलौनों का जिक्र कर के बल्कि पूरी बात उस पर ही केंद्रित कर के अपने गुजराती व्यवसायी मित्र को फायदा पहुंचाने का काम किया है. अगर किसी ने यह सोचा हो कि पीएम मोदी की पहल बच्चों के प्रति उन के प्यार का नतीजा है तो उन्हें यह भ्रम दूर कर लेना चाहिए. यह शुद्ध रूप से मन नहीं, बल्कि मुनाफे की बात थी.

लेकिन शायद जनता भी अब इस बात को समझने लगी है. उस के लक्षण पीएम मोदी के ‘मन की बात’ के आधिकारिक यूट्यूब पर लाइक से कई गुना डिसलाइक करने वालों की संख्या में देखे जा सकते हैं. यह घटना केवल यही नहीं बता रही है कि लोग उन के इस खास कार्यक्रम से असहमत हैं, बल्कि इस बात के भी संकेत देती है कि इस बीच उन की लोकप्रियता में बड़े स्तर पर गिरावट आई है.

खतरों की खिलाड़ी-10 की विनर बनी निया शर्मा, इस नागिन को दी मात

बीते रविवार को टीवी अभिनेत्री निया शर्मा ने रोहित शेट्टी के शो खतरों के खिलाड़ी मेड इन इंडिया का खिताब अपने नाम कर लिया है. इस शो के फाइनलिस्ट में जैस्मिन भसीन और करण वाही भी निया शर्मा के साथ फाइनलिस्ट में शामिल थें.

रोहित शेट्टी के इस शो में एक से बढ़कर एक धुरंधर आए थे उन्होंने शो को शानदार बनाया था. रोहित शेट्टी ने इन सभी से एक से बढ़कर एक काम भी करवाएं.

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आखिरकर इस शो कि विनर बनी सीरियल  ‘जमाई राजा’ फेम निया शर्मा . निया के विनर बनने के बाद से ही लोगों ने उन्हें बधाई देने शुरू कर दिए. या फिर आप यह कह लो कि लोगों के तांता लग गया बधाई देने का.

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बता दें कि इस शो के हिस्सा रहे रित्विक धानजानी को इस शो को बीच में ही छोड़कर जाना पड़ा था. उन्होंने इस शो को किसी कारण बस बीच में ही छोड़ दिया था.

 

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Because we don’t like it Neat. @rithvik_d

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खतरों के खिलाड़ी मेड इन इंडिया का खिताब अपने नाम करने के बाद से निया शर्मा फूली नहीं समा रही हैं. निया शर्मा ने ट्रॉफी की तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए सभी का शुक्रिया अदा किया है. आगे उन्होंने कलर्स टीवी को धन्यवाद करते हुए लिखा कि इस यात्रा के लिए शुक्रिया.

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इससे पहले निया शर्मा ने रोहित शेट्टी के शो खतरों के खिलाड़ी सीजन 8 में भी हिस्सा लिया था. उन्होंने वहां भी लोगों को अपने पर्फार्मेंस से सभी क चौका दिया था. निया शर्मा को इस शो में लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया है.

कुछ दिनों पहले रित्विक धानजानी के साथ निया शर्मा ने अपनी फोटो शूट की तस्वीर शेयर की थी, जिसमें वह बेहद ज्यादा क्यूट लग रही थी. इस तस्वीर को रित्विक धानजानी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया था.

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