भारतीय मूल की कमला हैरिस की अमेरिकी उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से दुनिया के सब से सशक्त लोकतांत्रिक देश का चुनाव और रोमांचकारी हो गया है. उदारवादी डैमोक्रैटिक पार्टी ने ट्रंप चाल चल दी है जिस की काट रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं. पढि़ए, इस विशेष रिपोर्ट में.

भारतीय मूल की कैलिफोर्निया की सीनेटर कमला हैरिस कुछ समय पहले तक राष्ट्रपति पद के लिए डोनाल्ड ट्रंप को चुनौती दे रही थीं. डैमोक्रेटिक पार्टी द्वारा जो बाइडेन को उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद वे इस रेस से अलग हो गई थीं. लेकिन कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर जो बाइडेन ने साफ कर दिया है कि उन की क्षमताओं और कार्यकुशलता के वे कायल हैं और अमेरिका को कमला के नेतृत्व की भी जरूरत है. बाइडेन ने कमला हैरिस को एक बहादुर योद्धा और अमेरिका के बेहतरीन नौकरशाहों में से एक बताते हुए उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है. उपराष्ट्रपति पद का टिकट पाने वालीं कमला हैरिस भारतीय और एशियाई मूल की पहली अमेरिकी हैं.

जो बाइडेन ने ट्वीट के जरिए इस बात की जानकारी दी और लिखा, ‘‘यह बताते हुए मु?ो गर्व हो रहा है कि कमला हैरिस को मैं ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना है. वे एक बहादुर योद्धा और अमेरिका के सब से बेहतरीन नौकरशाहों में से एक हैं.’’

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बाइडेन आगे लिखते हैं, ‘‘जब कमला हैरिस कैलिफोर्निया की अटौर्नी जनरल थीं, तब से मैं ने उन को काम करते हुए देखा है. मैं ने खुद देखा है कि उन्होंने कैसे बड़ेबड़े बैंकों को चुनौती दी, काम करने वाले लोगों की मदद की और महिलाओं व बच्चों को शोषण से बचाया. मैं उस समय भी गर्व महसूस करता था और आज भी गर्व महसूस कर रहा हूं जब वे इस अभियान में मेरी सहयोगी होंगी.’’

राष्ट्रपति पद की रेस से कमला के बाहर होने के बाद से ही इस बात की चर्चा लगातार हो रही थी कि जो बाइडेन उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना साथी उम्मीदवार चुनेंगे. अब जो बाइडेन ने इस बात का ऐलान कर दिया है. उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने के बाद कमला हैरिस ने ट्वीट कर के बाइडेन को धन्यवाद कहा है.

कमला हैरिस ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘जो बाइडेन अमेरिकी लोगों को एक कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने हम लोगों के लिए लड़ते हुए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी. राष्ट्रपति के तौर पर वे एक ऐसा अमेरिका बनाएंगे जो कि हमारे आदर्शों पर खरा उतरेगा. मैं अपनी पार्टी की तरफ से उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार की हैसियत से उन के साथ शामिल होने पर गर्व महसूस करती हूं और उन को अपना कमांडर इन चीफ बनाने के लिए जो भी करना पड़ेगा, वह सब करूंगी.’’

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फीमेल ओबामा केनाम से मशहूर

कैलिफोर्निया से डैमोक्रेटिक पार्टी की सीनेटर कमला हैरिस को, अमेरिकी मीडिया ग्रुप पोलिटिको की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल नवंबर में कराए गए डैमोक्रटिक वोटर्स पोल में राष्ट्रपति  चुनाव के लिए ट्रंप के खिलाफ 5वीं पसंदीदा नौमिनी माना जा रहा था. मगर डैमोक्रटिक पार्टी की तरफ से जो बाइडेन को उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद कमला रेस से अलग हो गईं. गौरतलब है कि ‘फीमेल ओबामा’ के नाम से प्रसिद्ध 54 साल की कमला हैरिस 2016 में अमेरिकी संसद के उच्च सदन (सीनेट) के लिए निर्वाचित हुई थीं. इस जीत के साथ ही वे सीनेट में पहुंचने वाली भारतीय मूल की पहली और इकलौती महिला सांसद बन गई थीं. उन्हें ओबामा का करीबी माना जाता है. 2016 में सीनेट के चुनाव अभियान में ओबामा ने कमला को सपोर्ट किया था.

कमला 2011 से 2017 तक कैलिफोर्निया की अटौर्नी जनरल भी रह चुकी हैं. उन का जन्म कैलिफोर्निया के ही औकलैंड में हुआ. उन की मां श्यामला गोपालन 1960 में 19 साल की उम्र में चेन्नई छोड़ कर अमेरिका में बस गई थीं. वे कैंसर रिसर्चर थीं. कमला के पिता डोनाल्ड हैरिस मूलरूप से जमैका के थे. वे अर्थशास्त्र पढ़ने के लिए अमेरिका आए थे. श्यामला और डोनाल्ड हैरिस एक मुलाकात के बाद अच्छे दोस्त हो गए और वर्ष 1963 में दोनों ने विवाह कर लिया.

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कमला अपनी सफलताओं के लिए अपनी मां को सब से बड़ी प्रेरणा मानती हैं. वे अपने राजनीतिक कैरियर का श्रेय अपनी सुपरहीरो मां को देती हैं. कमला हैरिस के मुताबिक उन की भारतीय मूल की अमेरिकी मां ने ही उन के अंदर जिम्मेदारी की भावना जगाई, जो उन के राजनीतिक कैरियर को प्रेरित करती है.

कमला हैरिस ने अपनी किताब ‘द ट्रूथ्स वी होल्ड : ऐन अमेरिकन जर्नी’ में लिखा, ‘‘असल में वे मेरी मां थीं, जिन्होंने हमारी परवरिश की जिम्मेदारी ली. हम एक महिला के तौर पर कैसे रहेंगी, इसे आकार देने की सब से अधिक जिम्मेदार वही थीं और वे बहुत असाधारण थीं.’’

हैरिस कहती हैं कि उन की दिवंगत मां ने ही उन्हें अपने सामने आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर कदम उठाने के लिए सशक्त बनाया. वे एक ऐसी थीम थीं, जो उन के राजनीतिक कैरियर को प्रभावित करती हैं. वहीं, बच्चों के लिए लिखी अपनी दूसरी किताब ‘सुपरहीरोज आर एवरीव्हेयर’ में उन्होंने अपनी मां को सुपरहीरो की सूची में सब से ऊपर रखा है.

संकीर्णता पर भारी उदारता

कमला हैरिस औकलैंड में पलीबढ़ी हैं. उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से  स्नातक की डिग्री ली है. इस के बाद कमला ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है. हैरिस सैन फ्रांसिस्को में जिला अटौर्नी के रूप में भी काम कर चुकी हैं. वे 2003 में सैन फ्रांसिस्को की जिला वकील बनी थीं. हैरिस ने साल 2017 में कैलिफोर्निया से संयुक्त राज्य सीनेटर के रूप में शपथ ली थी. वे ऐसा करने वाली दूसरी अश्वेत महिला थीं. उन्होंने होमलैंड सिक्योरिटी एंड गवर्नमैंट अफेयर्स कमेटी, इंटैलिजैंस पर सेलैक्ट कमेटी, ज्यूडीशियरी कमेटी और बजट कमेटी में भी काम किया.

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भारतीय मूल की 55 वर्षीया कमला हैरिस को ले कर अमेरिकी राजनीति में विदेशी मूल या हिंदू धर्म संस्कृति का कोई मुद्दा कभी नहीं उठा. इसलिए नहीं उठा क्योंकि अमेरिकी लोग शायद हम हिंदुस्तानियों से ज्यादा बड़े और खुले दिल वाले हैं. उन की सोच संकीर्ण नहीं है. वे व्यक्ति की कार्यक्षमता और ज्ञान को सर्वोपरि सम?ाते हैं. यही वजह है कि कमला जैसी महिला अपनी क्षमता और काबिलीयत के बल पर अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद पर अपनी दावेदारी पेश करेंगी. कोई भी भारतीय अमेरिका में चुनाव लड़ सकता है बशर्ते उसे अमेरिकी नागरिकता प्राप्त हो और वह कम से कम 7 वर्षों से वहां रह रहा हो.

याद होगा, भारत में मई 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस भारी बहुमत से जीती थी तो उस की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर इटली मूल की भारतीय बहू सोनिया गांधी के नाम की चर्चा चल रही थी. इंदिरा गांधी के सुपुत्र राजीव गांधी से शादी के बाद भारत की नागरिकता ले चुकीं सोनिया गांधी के नाम पर तब कैसे भाजपाई नेताओं ने हंगामा बरपा दिया था. सोनिया को विदेशी मूल का बताते हुए भारत के प्रति उन की ईमानदारी व निष्ठा पर बड़ा सवाल खड़ा किया गया था.

भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने तो बाकायदा कसम उठा ली थी कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन गईं तो वे अपना सिर मुंड़वा लेंगी, सादे कपड़े पहनेंगी और जिंदगीभर जमीन पर सोएंगी. इस हठ के साथ वे धरने पर भी बैठ गई थीं. सुषमा का तर्क था कि 60 साल की आजादी के बाद भी अगर कोई विदेशी मूल का शख्स देश के शीर्ष पद पर बैठता है तो इस का मतलब होगा कि देश के 100 करोड़ लोग अक्षम हैं. सुषमा ने साल 1999 में भी सोनिया गांधी को चुनौती देते हुए बेल्लारी से उन के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चुनाव हार गई थीं.

विदेशी मूल का मुद्दा

आज देश के प्रधानमंत्री और उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने भी सोनिया गांधी के संभावित प्रधानमंत्री बनने पर एतराज जताते हुए विदेशी मूल का मुद्दा बड़े जोरशोर से उठाया था. अकेले अटल बिहारी वाजपेयी एकमात्र भाजपाई थे जिन्होंने सोनिया के विदेशी मूल के होने को चुनावी मुद्दा न बनाने की अपील की थी.

कहना गलत न होगा कि हम भारतीय इतने छोटे दिल के हैं कि विदेशी मूल के लोगों को अपनी बहू या दामाद तो बना लेते हैं, मगर उन्हें दिल में जगह नहीं दे पाते. उन्हें पूरी तरह स्वीकार नहीं पाते. उन की क्षमता, उन की निष्ठा, उन की ईमानदारी, उन के समर्पण, उन की प्रीत पर हमेशा शक करते रहते हैं. वहीं अमेरिका को देखिए, जहां भारतीय मूल के वैज्ञानिकों को, सांसदों को, डाक्टरों, इंजीनियरों को कितना मानसम्मान दिया जाता है. ऊंचे ओहदों पर वे अपनी काबिलीयत के बल पर विराजते हैं.

सोनिया गांधी को नकारते और गरियाते वक्त नरेंद्र मोदी भूल जाते हैं गुजरात से संबंध रखने वाली अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को. भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स को 1987 में अमेरिकी सेना में कमीशन प्राप्त हुआ था. 6 महीने की अस्थायी नियुक्ति के बाद उन्हें ‘बेसिक डाइविंग औफिसर’ का पद मिला. वर्ष 1989 में उन्हें ‘नेवल एयर ट्रेनिंग कमांड’ पर भेजा गया, जहां उन्हें ‘नेवल एविएटर’ नियुक्त किया गया. इस के बाद उन्होंने ‘हैलिकौप्टर कौम्बैट सपोर्ट स्क्वाड्रन’ में ट्रेनिंग ली और कई विदेशी स्थानों पर तैनात हुईं. भूमध्यसागर, रैड सी और पर्शियन गल्फ में उन्होंने ‘औपरेशन डेजर्ट शील्ड’ और ‘औपरेशन प्रोवाइड कम्फर्ट’ के दौरान कार्य किया. सितंबर 1992 में उन्हें एच-46 टुकड़ी का औफिसर-इंचार्ज बना कर मियामी (फ्लोरिडा) भेजा गया. इस टुकड़ी को ‘हरिकेन एंड्रू’ से संबंधित राहत कार्य के लिए भेजा गया था. दिसंबर 1995 में उन्हें यूएस नेवल टैस्ट पायलट स्कूल में रोटरी विंग डिपार्टमैंट में प्रशिक्षक और स्कूल के सुरक्षा अधिकारी के तौर पर भेजा गया. वहां उन्होंने यूएच-60, ओएच-6 और ओएच-58 जैसे हैलिकौप्टर्स को उड़ाया. इस के बाद उन्हें यूएसएस सैपान पर वायुयान संचालक और असिस्टैंट एयर बौस के तौर पर नियुक्त किया गया. वर्ष 1998 में जब सुनीता का चयन नासा के लिए हुआ तब वे यूएसएस सैपान पर कार्यरत थीं.

अमेरिका में सुनीता विलियम्स की असाधारण कार्यक्षमता के आगे भारतीय मूल की बात कभी नहीं उठी. उन की क्षमता और ज्ञान को सर्वोपरि माना गया. आज सुनीता सदृश्य कितनी ही भारतीय मूल की हस्तियां अमेरिका में उच्च पदों पर सुशोभित हैं. यहां तक कि अमेरिकी संसद तक में भारतीय मूल की महिलाओं का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा है.

अमेरिका के मध्यावधि चुनावों में 12 भारतीय मूल के लोगों ने किस्मत आजमाई थी. ऐसा नहीं है कि किसी भारतीय को अमेरिका में चुनाव लड़ने के लिए वहां बहुत लंबे समय तक रहने की जरूरत है. अमेरिकी कांग्रेस के हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स के लिए अगर किसी भारतीय को चुनाव लड़ना है तो उस को अमेरिका का नागरिक होने के साथ यह बताना होगा कि वह 7 वर्षों से अमेरिका में रह रहा है.

अमेरिका में हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स में 435 सीटें हैं. भारतीय मूल के राजा कृष्णामूर्ति हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स के लिए चुने गए. कैलिफोर्निया से लगातार चौथी बार  डा. एमी बेरा ने जीत हासिल की. बेरा ने रिपब्लिकन पार्टी के एंड्रयू ग्रांट को 5 फीसदी मार्जिन से हराया. सिलिकौन वैली में भारतीय अमेरिकी रोहित खन्ना ने जीत हासिल की. जीतने वाली चौथी भारतीय महिला सांसद प्रमिला जयपाल हैं. प्रमिला जयपाल पहली महिला हैं, जो हाउस औफ रिप्रैजेंटेटिव्स तक पहुंची हैं.

 चुनाव अमेरिका में टैंशन भारत में

अमेरिका या अमेरिकन फर्स्ट नहीं, बल्कि अमेरिका सब का. कुछ इसी आधार पर अमेरिका में 3 नवंबर को चुनाव होने जा रहे हैं. रिपब्लिकन पार्टी के नेता व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ डैमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन मैदान में हैं. कैलिफोर्निया की सीनेटर, कमला हैरिस अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन की रनिंग मेट हैं, यानी यदि बाइडेन राष्ट्रपति बने तो कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनेंगी.

अमेरिकी संविधान के मुताबिक, चुनाव राष्ट्रपति का होता है, उपराष्ट्रपति का नहीं. मतदाता उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट नहीं देते, वे राष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट देते हैं. जो राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, उस का रनिंग मेट उपराष्ट्रपति बनता है.

भारतीय मूल की 55 वर्षीया कमला हैरिस की अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी तय किया जाना भारत व भारतीयों के लिए गर्व की बात है. लेकिन, क्या भारत की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार के लिए भी यह ऐसा ही है? इस सवाल का जवाब है, हकीकत में तो ऐसा होना ही चाहिए, लेकिन लगता नहीं.

संविधान के मानने वाले ‘हम भारत के लोग…’ के लिए भविष्य में गर्व करने के लिए एक बात यह है कि 55 वर्षीया कमला हैरिस 2024 में होने वाले चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ सकती हैं. दरअसल, 78 वर्षीय जो बाइडेन ने अगला चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी है. इस तरह, तब वे राष्ट्रपति भी बन सकती हैं.

देशों के संविधानों का सम्मान करने, सब को साथ ले कर चलने, धर्मनिरपेक्षता को मान्यता देने, अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने, दुनिया पर नजर रखने वाली कमला हैरिस अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनती हैं तो इस से भारत की चिंता बढ़ सकती है.  बता दें कि कश्मीर पर उन का रुख भारत की मान्यताओं के उलट है.  कमला हैरिस ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को तकरीबन खत्म सा करने के बाद वहां के हालात को काबू में करने के लिए मोदी सरकार द्वारा पाबंदियां लगाए जाने का विरोध किया था. उन्होंने सीधेतौर पर भारत सरकार से कश्मीर में लगाई गई पाबंदियों को हटाने की मांग की थी.

वहीं, कमला हैरिस जिस पार्टी से जुड़ी हैं यानी डैमोक्रेटिक पार्टी की सोच बहुलतावाद, उदारवाद, धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार करती है. जबकि, भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कट्टरवाद, हिंदूवाद व संकीर्ण सोच की पुजारिन है. इस वजह से नरेंद्र मोदी सरकार को कुछ टैंशन हो सकती है.

जो बाइडेन, जिन्हें सभी सर्वे जीतता हुआ बता रहे हैं, एक सशक्त उदारवादी हैं. उन्होंने अपने चुनाव से जुड़े पौलिसी डौक्यूमैंट में मोदी सरकार के बनाए सीएए कानून और एनआरसी नियम की तीखी आलोचना की है. दिलचस्प यह है कि उन की डिप्टी बनने जा रहीं कमला हैरिस उन से भी ज्यादा उदारवादी हैं.

मालूम हो कि कमला हैरिस का डैमोक्रेटिक पार्टी में बहुत ही सम्मान है. पार्टी पर उन की पकड़ है और पार्टी के नेता उन की इज्जत करते हैं. वे बहुत ही लचीले विचार रखती हैं और हर मुद्दे पर सभी को ले कर चलने में विश्वास रखती हैं.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कमला हैरिस वामपंथी रु?ान की हैं और डैमोक्रेटिक पार्टी में समाजवादी धड़े की अगुआई करती हैं. दूसरी ओर, बाइडेन केंद्रवादी यानी सैंटरिस्ट हैं, यानी न वामपंथी और न दक्षिणपंथी.

ध्यान देने की बात है कि कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार ऐसे समय बनाया गया है जब कुछ दिनों पहले ही अमेरिका में नस्लवाद को ले कर बहुत बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ था और लगभग हर राज्य में बड़े पैमाने पर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के तहत विरोध प्रदर्शन हुए थे. इन प्रदर्शनों में अश्वेत ही नहीं, श्वेत और लैटिन अमेरिकी मूल के लोगों ने भी बड़े पैमाने पर शिरकत की.

एक अश्वेत के ऐसे समय देश के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनना कई मानो में अहम है. कमला हैरिस स्वयं तो अश्वेत हैं ही, देश के एक मात्र अश्वेत राष्ट्रपति रह चुके बराक ओबामा ने उन का समर्थन किया है.

कमला हैरिस लोकतांत्रिक मूल्यों और धार्मिक एकता को ले कर काफी मुखर रही हैं. इस संबंध में विपरीत नीति अपनाने वाले देशों की वे आलोचना करती रही हैं. कुल मिला कर, कमला हैरिस का रुख मोदी सरकार के लिए शुभ समाचार नहीं है, बल्कि उन के अमेरिका के उपराष्ट्रपति बनने से मोदी सरकार की टैंशन बढे़गी.

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