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सौजन्य-सत्यकथा

नाम से ही जाहिर है कि उस के नाम के आगे बंगाली विशेषण महज इसलिए लग गया था
कि वह मूलरूप से बंगाल का रहने वाला है. पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के गांव चंडीपुरा से अपनी जिंदगी का सफर और दौड़ शुरू करने वाले महज 27 वर्षीय साजिद बंगाली को ढेर सा पैसा कमाने के लिए अपनी मंजिल भोपाल आ कर मिली थी.भोपाल की गिनती बेहद शांत और खूबसूरत शहरों मेें बेवजह नहीं होती. दुनिया भर की सर्वे रिपोर्ट्स मानती हैं कि बसने के लिहाज से भोपाल एक बेहतरीन शहर है. लेकिन इन दिनों भोपाल एक और जिस खूबी के चलते बदनाम हो रहा है वह धड़ल्ले से पसरता देहव्यापार है. अब तो इस में विदेशी लड़कियों ने भी पैठ बना ली है.

साजिद भोपाल आया तो था कामकाज की तलाश में, लेकिन काफी मेहनत और मशक्कत के बाद भी मनमाफिक काम और दाम नहीं मिले तो उस का माथा भन्ना गया. 2 साल पहले तक वह मुंबई में कपड़े काटने का काम करता था. मुंबई खर्चीला और महंगा शहर है, लिहाजा अच्छी आमदनी वाले भी बस पेट भर खापी पाते हैं, मौजमस्ती और ऐशोआराम की जिंदगी तो हाड़तोड़ मेहनत करने वालों को भी नसीब नहीं होती.

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2 साल पहले अपने एक दोस्त की सलाह पर साजिद भोपाल आया तो उस के साथ उस की पत्नी शबनम (बदला नाम) भी थी. साजिद को उम्मीद थी कि अगर भोपाल में भी मुंबई के बराबर आमदनी हो तो उस की माली हालत सुधर जाएगी, भोपाल में रहने और खाने पीने पर खर्च भी कम होगा. कुछ दिन उस का दोस्त उस के साथ भोपाल में रहा लेकिन मुनासिब काम न मिलने पर नाउम्मीद हो कर वापस मुंबई चला गया.

साजिद भी शायद वापस चला जाता लेकिन पुराने भोपाल में रहते उस ने पैसा कमाने का एक जो शार्टकट देखा तो उस की आंखें चमक उठीं. उसे यह तो समझ आ ही गया था कि मुंबई हो या भोपाल, कपड़े काटने के काम में उसे हर जगह उतने ही पैसे मिलेंगे, जिन से गुजारा महीने में एक हफ्ता रोजे रख कर ही होगा.

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कम उम्र में ही अभावों के थपेड़े खा चुके साजिद ने जब पड़ोस में रहने वाली एक अधेड़ महिला को देखा तो उसे लगा कि यह धंधा क्या बुरा है, जिस में पैसा बूंदबूंद कर नहीं आता बल्कि तेज बारिश सा बरसता है और मजे की बात यह कि इस में मेहनत भी कुछ खास नहीं करनी पड़ती.वह महिला जिसे साजिद और उस की पत्नी शबनम आंटी कहने लगे थे, अपनी 2 जवान बेटियों के साथ रहती थी. बहुत जल्द साजिद को समझ आ गया था कि आंटी अपनी दोनों बेटियों से देहव्यापार करवाती है. वह दौर बीत चुका है जब जिस्मफरोशी सिर्फ रात का धंधा हुआ करता था. आंटी के यहां तो सूरज सिर पर चढ़ते ही ग्राहकों की भीड़ लगने लगती थी, लेकिन रात की बात वाकई और होती थी.

तकरीबन बेरोजगारी काट रहे साजिद को यह देख हैरानी भी होती थी और कोफ्त भी कि आंटी के यहां ऐशोआराम की तमाम चीजें हैं. उन का पूरा घर खूब शौपिंग करता है, ठाठ से रहता है और पैसों की कमी क्या होती है, यह शायद ही वे तीनों जानती हों.गरीबी और अभाव आदमी को क्या कुछ करने को मजबूर नहीं कर देते, यह साजिद की इस वक्त की मानसिकता को देख सहज समझा जा सकता था. एक दिन उस ने ऐसा फैसला ले लिया जो कहने को तो नैतिकता के खिलाफ था, लेकिन इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें मौजूद हैं कि आखिर जिस्मफरोशी के धंधे में बुराई क्या है, सिवाय इस के कि यह कानूनन जुर्म है. सभ्य समाज की देह पर यह एक ऐसा कोढ़ है जिस के बगैर समाज भी पूरी तरह सभ्य नहीं कहा जा सकता.
साजिद का यह फैसला अपनी जवान बीवी शबनम सेदेहव्यापार करवाने का था. एक दिन कुछ झिझकते हुए उस ने शबनम से यह पेशकश की तो शबनम बिना किसी नानुकुर के तैयार हो गई. तय है शबनम साजिद से कहीं ज्यादा अपनी मजबूरियां समझ रही थी. वह सोचती थी कि यह भी कोई जिंदगी है कि शाम को चूल्हा जलेगा या नहीं, इस बात की गारंटी भी हर सुबह नहीं रहती. दूसरे पति की बेबसी भी उसे समझ आ रही थी, जो 24 परगना से शुरू होते वाया मुंबई भोपाल आने तक ज्यों की त्यों थी.

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शबनम के हां कहने पर साजिद कितना खुश हुआ होगा और उसे उस के जमीर ने कितना कचोटा होगा, इस का सटीक विश्लेषण तो शायद मशहूर कहानीकार प्रेमचंदजी भी होते तो न कर पाते. लेकिन इतना जरूर तय है कि इस दंपति के फैसले को एक झटके में अनैतिक करार दे देना उन के साथ ज्यादती ही होगी.

नैतिकताअनैतिकता, गलतसही और कानूनीगैरकानूनी की दार्शनिक बहस और पचड़े से परे साजिद दूसरे दिन सीधा आंटी के पास जा पहुंचा. पड़ोस में रहते उस ने यह बात शिद्दत से महसूस की थी कि उन की पत्नी शबनम आंटी की बेटियों से कहीं ज्यादा खूबसूरत, गदराई और जवान है, इसलिए ग्राहक उसे ज्यादा पसंद करेंगे और जल्द ही वे दोनों अपने आलीशान मकान में होंगे जहां कार, एसी, फ्रिज, नौकरचाकर जैसी तमाम सहूलियतें उन के पास होंगी. जैसी कि उम्मीद थी साजिद की पेशकश को आंटी ने एक झटके में कबूल कर लिया.

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इस की वजह यह थी कि उस के पास ग्राहकों की खासी तादाद थी जो खूबसूरत जवान लड़कियों पर पैसा लुटाने को बेताब रहते थे. ऐसे में शबनम उन्हें हीरे की खदान लगी, क्योंकि कई ऐसे नियमित ग्राहक भी थे जो उन की बेटियों से ऊबने लगे थे और नए माल की फरमाइश करते रहते थे.इस तरह शबनम देहव्यापार के धंधे में आ गई और वाकई देखते ही देखते उन की गरीबी दूर होने लगी. शबनम पर पैसा लुटाने वालों की भीड़ बढ़ने लगी तो साजिद के दिमाग में बिजली सी कौंधी कि क्यों न यह कारोबार खुद के दम पर चलाया जाए. इस खयाल के पीछे वजह यह थी कि अभी मोटा कमीशन आंटी की जेब में चला जाता था, जिसे देख साजिद को लगता था कि यह पैसे भी उस के हो सकते हैं बशर्ते वह स्वतंत्र रूप से बीवी का दलाल बन कर यह धंधा शुरू कर दे.

इस इच्छा को अमल में लाने उस ने भोपाल के देहव्यापार के दलालों से संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया. मेहनत रंग लाई और कुछ दिनों बाद ही साजिद ने मकान बदल लिया. आंटी ने इस पर कोई खास ऐतराज नहीं जताया. तजुर्बेकार होने के कारण वे इस धंधे के बुनियादी उसूल समझती थीं कि इस कारोबार में सप्लाई कम है और डिमांड ज्यादा है और वे शबनम से जितना ज्यादा कमा सकती थी उतना कमा चुकी थी.दलालों से मिलने पर साजिद की हिम्मत और बढ़ी तो जल्द ही उस ने ज्यादा पैसे कमाने की गरज से जरूरत की मारी दूसरी लड़कियों से भी धंधा करवाना शुरू कर दिया. इस तरह उस की आमदनी बढ़ने लगी, क्योंकि अब उसे भी मोटा कमीशन मिलने लगा था और शबनम की कमाई तो सौ टका उसी की होती थी. दूसरी लड़कियों के आ जाने से शबनम अब खास ग्राहकों को ही खुश करती थी जो भारीभरकम पैसे देते थे.

2 साल में ही साजिद और शबनम की गरीबी दूर हो गई थी. इस दौरान उन्होंने खासा पैसा बना लिया था. साजिद चाहता तो इस पैसे से अपना कारोबार शुरू कर सकता था, लेकिन लालच बुरी बला वाली कहावत बेवजह नहीं गढ़ी गई है, जिस के चलते आदमी की अक्ल और समझ पर परदा पड़ जाता है. यही साजिद के साथ हो रहा था.साजिद अब तक भोपाल के ही नहीं, बल्कि देश भर के दलालों के नेटवर्क से जुड़ चुका था. देहव्यापार का धंधा भी कितनी तरक्की कर रहा है, यह भी इसी दौरान उसे समझ आया था कि इस में कालगर्ल्स आजकल एक जगह टिक कर धंधा नहीं करतीं, बल्कि शहरशहर जा कर सर्विस देती हैं. इस में उन्हें पैसा भी ज्यादा मिलता है और पुलिस का खतरा भी कम होता है.

दुनिया का सब से बड़ा यह कारोबार हाइवे के टूटेफूटे ढाबों से ले कर फाइवस्टार होटल्स तक में चलता है. यह बात भी साजिद ने शिद्दत से देखी और समझी थी लेकिन होटलों के खतरों से भी वह नावाकिफ नहीं था. इसलिए उस ने और पैसा कमाने की गरज से दलाल के मार्फत भोपाल के एयरपोर्ट रोड पर बनी इंद्रविहार कालोनी में 11 हजार रुपए महीने का एक आलीशान मकान किराए पर ले लिया था.लेकिन पैसों के नशे में चूर साजिद खुद को होशियार समझ रहा था. वह यह नहीं सोच पा रहा था कि उस के नाम और काम के चर्चे पुलिस के कानों में पड़ चुके हैं और पुलिस मौके का इंतजार कर रही है, जो उसे आखिरकार बीती 28 जनवरी को मिल ही गया.

एयरपोर्ट कालोनी लालघाटी स्थित इंद्रविहार कालोनी का मकान नंबर सी-106 वह मकान था, जो साजिद ने 15 जनवरी के आसपास किराए पर लिया था. इस मकान की अंदरूनी सजावट उस ने दिल से की थी. साजिद जानता था कि जो कस्टमर एक बार के 10-15 हजार रुपए और एक रात के 25-30 हजार रुपए तक देने की हैसियत रखते हैं, उन्हें तमाम चीजें लग्जरी चाहिए होती हैं.अहतियात बरतते वह ठिकाने जरूर बदलता रहता था, लेकिन पुलिस वाले सैक्स रैकेट चलाने वालों की इस तरह की चालबाजियों को उन से ज्यादा जानतेसमझते हैं.

भोपाल क्राइम ब्रांच के एएसपी निश्चल झारिया कई दिनों से साजिद बंगाली नाम के इस दलाल पर मुखबिरों के जरिए नजर रखे हुए थे. लेकिन मौका उन्हें 28 जनवरी को तब मिला, जब एक भरोसेमंद मुखबिर ने उन्हें यह खबर दी कि इंद्रविहार कालोनी के मकान नंबर सी-106 में देहव्यापार हो रहा है और इस में कुछ विदेशी लड़कियां भी सर्विस दे रही हैं. निश्चल झारिया ने इस गिरोह को दबोचने की कमान और जिम्मेदारी डीएसपी क्राइम सलीम खान और टीआई आलोक श्रीवास्तव को सौंप दी. इन दोनों ने विदेशी चिडि़यों और देसी बहेलिए को रंगेहाथों पकड़ने की योजना बना कर एक सिपाही को ग्राहक बना कर भेजा.

ठीक इस के पहले रामकिशोर मीणा मोबाइल पर साजिद बंगाली से बात कर रहे थे. रामकिशोर सतना के स्टेट बैंक औफ इंडिया की ब्रांच में सहायक मैनेजर हैं, जो भोपाल किसी काम से आए थे. शौकीन और रंगीनमिजाज रामकिशोर को साजिद का मोबाइल नंबर उन के एक दोस्त ने दिया था. व्यावसायिक इलाके के एम.पी. नगर थाने के सामने भोपाल का सब से बड़ा मौल डीबी मौल है. यहां से रामकिशोर ने कड़ाके की ठंड में ‘गरमी’ पाने की मंशा से साजिद को फोन किया तो उन्हें निराशा हाथ नहीं लगी.

जब साजिद आश्वस्त हो गया कि रामकिशोर को उन के नियमित और विश्वसनीय ग्राहक ने भेजा है तो उस ने बातचीत के तुरंत बाद वाट्सऐप पर उन्हें 4 युवतियों की अर्धनग्न तस्वीरें भेज दीं. इन में से एक तसवीर रिया नाम की विदेशी गोरी चिकनी लड़की की भी थी, जिस का फिगर 36-28-36 बताया गया था. देसी तो कई बार आजमा चुके, क्यों न इस बार विदेशी लड़की ट्राई की जाए, यह सोचते हुए उन्होंने साजिद से रिया का रेट पूछा तो जवाब मिला एक बार के 10 हजार रुपए और लड़की हर तरह की सर्विस देगी.
रामकिशोर को चूंकि रिया पहली नजर में ही पसंद आ गई थी, इसलिए उन्होंने तुरंत हां कर दी. सौदा पट गया तो साजिद ने फोन पर उन से कहा कि आप वहीं इंतजार करें, एक स्कोडा कार आप को लेने आ रही है. इस कार का नंबर उस ने रामकिशोर को बता दिया.

इंतजार के 10 मिनट 10 साल सरीखे बीते, जिन में रामकिशोर रिया के संगमरमरी जिस्म के उतारचढ़ावों की कल्पना में डूबे रहे. जैसे ही कार उन के नजदीक आई तो वे फुरती से उस में बैठ गए. मानो देर हो गई तो गंगा डुबकी का मुहूर्त हाथ से निकल जाएगा.मकान के भव्य कमरे में जैसे ही रिया रामकिशोर के सामने पड़ी, तो उन के रहेसहे होश भी उड़ गए. सचमुच रिया संगमरमर की शिला जैसी थी और फिगर भी वही था जो साजिद ने बताया था. खजुराहो और अजंता एलोरा की मैथुनरत मूर्तियां भी रामकिशोर को साकार होती लग रही थीं.

आम भारतीय ग्राहक की सहज होने की कमजोरियां ऐसे वक्त में ही उजागर होती हैं. रामकिशोर रिया से उस की राष्ट्रीयता वगैरह पूछने लगे. अच्छा तो यह रहा कि उन्होंने उस से उस की जाति और गोत्र वगैरह नहीं पूछे.उधर रिया इस बेवजह और फिजूल की संगोष्ठी के मूड में कतई नहीं थी, फिर भी उस ने औपचारिक लेकिन पेशेवर अंदाज में जवाब दे दिया कि वह उजबेकिस्तान ताशकंद की रहने वाली है और इन बेकार की बातों में वक्त जाया करने से कोई फायदा नहीं, आप तो बस अपना काम करो और बढ़ लो.
रिया को मालूम था कि रामकिशोर ने उस की सिंगल यानी एक बार के लिए बुकिंग कराई है, जिस का चार्ज 10 हजार रुपए है और टाइम लिमिट 40 मिनिट. उसे रामकिशोर की बातों पर झल्लाहट आ रही थी कि आया है मौजमस्ती करने और देह सुख लेने, लेकिन बात 1966 में हुए ताशकंद समझौते की कर रहा है. इस ऐतराज पर रामकिशोर को गुस्सा आ गया और उन्होंने पूछा कि पूरी रात का क्या लोगी तो रिया ने झट जवाब दिया 25 हजार रुपए.

रामकिशोर की हालत बार में बैठे उस शराबी की तरह हुई जा रही थी, जो जाता तो एकदो पैग पीने की गरज से है लेकिन नशा न होते देख फुल बोतल गटक जाता है. लिहाजा वे 25 हजार देने को तैयार हो गए जो रिया ने तुरंत रखवा लिए. शर्त या प्रावधान यह भी था कि रामकिशोर जैसे चाहेंगे वैसे वह उन्हें मजा या सुख कुछ भी कह लें, देगी.पैसे दे कर रामकिशोर ने अपनी यह ख्वाहिश रिया को बता दी कि वे औरल सैक्स चाहते हैं तो उस ने कोई नानुकुर नहीं की क्योंकि पैकेज में यह शामिल था लेकिन उस बाबत उस ने लाइट बंद की तो रामकिशोर बोले यह सब मैं रोशनी में चाहता हूं.

इस पर रिया ने उन से कहा कि रोशनी में करवाना है तो 2 हजार रुपए एक्स्ट्रा देने होंगे. इस पर भी वे तैयार हो गए तो रिया ने ये पैसे भी नकद ले लिए और जैसा वे चाहते थे, करना शुरू कर दिया.

यही वह वक्त था जब पुलिस के भेजे सिपाही ने साजिद से एक लड़की के बाबत सौदा तय कर अपने अधिकारियों को छापा मारने का सिगनल दे दिया था. फिल्मी स्टाइल में पुलिस ने छापा मारा और हमेशा की तरह एकएक कर 4 कालगर्ल्स और 4 ग्राहकों को आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ा, जिन में से एक रामकिशोर मीणा भी थे.हर छापे की तर्ज पर ही मकान से आपत्तिजनक सामग्री जिन में कंडोम, ब्लू फिल्मों की सीडी और कामोत्तेजक दवाएं वगैरह होती हैं, भी जब्त हुईं और पंचनामा भी बन गया. साजिद के साथ उस की पत्नी शबनम भी गिरफ्तार कर लिए गए. पकड़ी गई लड़कियों में से 2 नेपाली थीं और एक पश्चिम बंगाल की थी.

पुलिसिया खानापूर्तियों के बाद पता चला कि रिया टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थी और वह दिल्ली के मालवीय नगर में रहती है. वह कोई 7 साल से यह धंधा कर रही थी और 17 साल की उम्र में ही इस धंधे में आ गई थी. साजिद ने एक दलाल अजय से उसे 15 दिन के लिए डेढ़ लाख रुपए में हायर किया था या ठेके पर लिया था एक ही बात है. पता यह भी चला कि इन कालगर्ल्स का सारा खर्च मेजबान दलाल उठाते हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों में घूम कर धंधा करती हैं. भोपाल में रिया और दूसरी कालगर्ल्स का खर्च साजिद उठा रहा था. नेपाली लड़कियां रिया के मुकाबले सस्ती थीं.

देखा जाए तो साजिद घाटे का सौदा नहीं कर रहा था, क्योंकि रिया औसतन उसे 30 हजार रुपए रोज दिलवा रही थी यानी 15 दिन के साढ़े 4 लाख रुपए. अजय को डेढ़ लाख देने के बाद साजिद बचे 3 लाख रुपए में से अगर एक लाख खर्च भी कर रहा था तो 15 दिन में 2 लाख रुपए तो कमा ही रहा था. इतनी ही रकम वह पत्नी शबनम और दूसरी कालगर्ल्स से बना रहा था.इस कहानी के लिखे जाने तक रिया के बारे में पुलिस और जानकारियां जुटाने में लगी थी और सभी की एचआईवी जांच भी करा रही थी क्योंकि कुछ महीने पहले ही एक छापे में कुछ अफ्रीकन लड़कियां पकड़ी गई थीं, जिन में से 2 की रिपोर्ट एचआईवी पाजिटिव आई थी.

एक साजिद का गिरोह पकड़े जाने से यह नहीं माना जा सकता कि देहव्यापार बंद हो गया. हां, इतना जरूर हर किसी को समझ आ गया कि अब देहव्यापार काफी हाईटेक हो चला है और भोपाल जैसे शहर में भी विदेशी कालगर्ल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है. रामकिशोर मीणा जैसे पकड़े गए लोग अपनी इच्छाओं को नहीं, बल्कि किस्मत को कोसते नजर आते हैं कि उन्होंने छापे वाले दिन ही सौदा क्यों किया या छापा उसी दिन क्यों पड़ा जिस दिन उन्होंने सौदा किया था.

रही बात साजिद की तो उसे कोई खास नुकसान होगा, ऐसा लग नहीं रहा. जमानत पर छूट जाने के बाद वह कहीं और जा कर कारोबार जमा लेगा. लेकिन मुकदमा लंबा खींचने में वह कोई कसर नहीं छोड़ेगा. जिस ने भी इस छापे की खबर पढ़ी उस ने साजिद को कोसा कि कैसा बेशर्म आदमी था जो बीवी को भी देहव्यापार की दलदल में घसीट लाया. शायद ही कोई इस बात का जवाब दे पाए कि गरीबी भुखमरी और अभावों की दलदल इस सब से बेहतर थी क्या?

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