झूठी और प्रोपेगेंडा खबरों के जरीये जनता में भ्रम फैलाया जा रहा है. जिससे आम आदमी तक सही सूचनायें नहीं पहुंच पा रही है. हर तरह से आम आदमी इसका शिकार हो रहा है. इलेक्ट्रानिक मीडिया तो इसका पहले से ही शिकार था. भरोसेमंद कहा जाने वाला प्रिंट भी इसका हिस्सा बन गया. आम आदमी को लगा कि सोशल मीडिया पर सही खबरे आ रही है. फेसबुक विवाद के बाद अब आम आदमी के पास कोई रास्ता नहीं रह गया जहां से वह सच्ची खबरे हासिलकर सके. अदालत ने भी माना है कि ‘प्रोपेगेंडा‘ के लिये खबरों को ‘फैब्रिकेट‘ किया जा रहा है. बांबे हाई कोर्ट ने तबलीगी जमात पर मीडिया की खबरों को साफ षब्दों में ‘प्रोपेगेंडा’ कहा है.

मार्च के महीने में भारत में कोविड-19 करोना संक्रमण का दौर शुरू हो चुका था. इसी बीच दिल्ली में तबलीगी जमात का कार्यक्रम हुआ था. जिसमें देश और विदेशों से बड़ी संख्या में जमाती एकत्र हुये थे. सरकार ने यह माना कि इन लोगों के कारण ही भारत में कोविड-19 का संक्रमण तेजी से बढा. केन्द्र सरकार के आदेश पर सभी राज्य सरकारों ने तबलीकी जमात में षामिल होने आये लोगों की तलाश का काम शुरू कर दिया. इन पर कोविड-19 कानून के तहत मुकदमा कायम कर जेल भी भेज दिया गया. देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही साथ इसमें विदेशो के नागरिक भी थे.

ये भी पढ़ें- #ChallengeAccepted: सोशल मीडिया पर महिला सशक्तिकरण की नई तस्वीर 

पूरे देश में मीडिया द्वारा यह भ्रम फैलाया गया कि कोविड-19 के फैलाव में तबलीगी जमात का रोल सबसे अधिक है. मीडिया मे तबलीकी जमात को लेकर एक पक्षीय रिपोर्टे प्रकाषित हुई. इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इस मुददे को सबसे अधिक हवा देने का काम किया. इलेक्ट्रानिक मीडिया में इस बात को लेकर तीखी बहसें तक कराई गई. जिससे देश का सामाजिक माहौल खराब हुआ. हिंदू मुसलिमों के बीच दूरियां बढ गई. इससे पहले देश में नागरिकता कानून को लेकर हिन्दू मुसलिम के बीच दूरी पैदा हुई थी. कोविड -19 में तबलीगी जमात की बहस ने उस दूरी को और भी बढा दिया.

इसको लेकर पूरे देश में यह माहौल बनाया गया जैसे कोविड-19 के फैलाने में तबलीगी जमात को ही हाथ हो. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे बडा रूख अपनाया. जमातियो की पहचान के लिये बडे पैमाने पर धरपकड शुरू की गई. मार्च-अप्रैल में प्रकाषित होने वाले हर अखबार में यह लिखा गया और चैनलों ने यह दिखाया कि अगर जमातियों की गलती नहीं होती तो कोरोना को फैलने से रोका जा सकता था. जैसे जैसे लौकडाउन बढा आम जनता का गुस्सा भी जमातियों के खिलाफ बढने लगा. जून माह के बाद जब पूरे देश में कोरोना ने फैलना शुरू किया तब लोगों को पता चला कि कोरोना के फैलने का कारण जमाती नहीं और भी चीजें है.

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज को रद्द करतेे हुये कहा कि तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा‘ बनाया गया. कोर्ट ने साथ ही मीडिया को फटकार लगाते हुए कहा कि इन लोगों को ही संक्रमण का जिम्मेदार बताने का प्रॉपेगेंडा चलाया गया. दिल्ली के मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़ा प्रॉपेगेंडा चलाया गया. ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई जिसमें भारत में फैले कोविड -19 संक्रमण का जिम्मेदार इन विदेशी लोगों को ही बनाने की कोशिश की गई. तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया.

ये भी पढ़ें- सत्ता के निशाने पर रहे जामिया-जेएनयू-एएमयू पढ़ाई में सरकार की ही रैंकिंग में टौप पर

मीडिया के चित्रण की आलोचना:

आइवरी कोस्ट, घाना, तंजानिया, जिबूती, बेनिन और इंडोनेशिया के विदेशी नागरिकों और उनको आश्रय देने के आरोप में छह भारतीय नागरिकों और मस्जिदों के ट्रस्टियों ने बांबे हाई कोर्ट औरंगाबाद पीठ के समक्ष अपील की थी. न्यायमूर्ति टीवी नलवाडे और न्यायमूर्ति एमजी सेवलिकरग की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं को सुना. इन सभी को पुलिस द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में मस्जिदों में रहने और लॉकडाउन के आदेशों का उल्लंघन कर नमाज अदा करने की सूचनाओं पर पकडा था. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे भारत सरकार द्वारा जारी वैध वीजा पर भारत आए थे.  वे भारतीय संस्कृति, परंपरा, आतिथ्य और भारतीय भोजन का अनुभव करने आए थे.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि भारत पहुंचने के बाद, हवाई अड्डे पर उनकी कोविड-19 की जांच की गई और जब उन्हें नेगेटिव पाया गया, तब उन्हें हवाई अड्डे से बाहर जाने की अनुमति दी गई. 23 मार्च के बाद लॉकडाउन के कारण, वाहनों की आवाजाही बंद कर दी गई. होटल और लॉज बंद कर दिए गए इसलिए उन्हें मस्जिद ने आश्रय दिया था. उन्होंने मर्कज में भी सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों का पालन किया था. पुलिस का कहना आरोप था कि इन लोगों ने कोविड -19 संक्रमण फैलने का खतरा पैदा किया. याचिकाकर्ताओं पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 269, 270, 290 के तहत धारा 37 (1) (3) आर डब्ल्यू के तहत, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 के 135 और महाराष्ट्र कोविड-19, उपाय और नियम, 2020 के सेक्शन 11, महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 2, 3 और 4, विदेशियों के लिए अधिनियम 1946 की धारा 14 (इ) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के सेक्शन 51(इ) के तहत अपराध दर्ज किया गया था.

ये भी पढ़ें- लौकडाउन में बढ़े घरेलू हिंसा के मामले

पुलिस के आरोप और याचिकाकर्ताओं के जबावों का अध्ययन के बाद न्यायमूर्ति नलवाडे ने कहा ‘मैनुअल ऑफ वीजा के तहत धार्मिक स्थानों पर जाने और धार्मिक प्रवचनों में शामिल होने जैसी सामान्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए विदेशियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है. तबलीग जमात मुस्लिमों का अलग संप्रदाय नहीं है, बल्कि यह धर्म के सुधार के लिए आंदोलन है. हर धर्म सालों तक सुधार के कारण विकसित हुआ है क्योंकि समाज में परिवर्तन के कारण और भौतिक दुनिया में हुए विकास के कारण सुधार हमेशा आवश्यक है. यह आरोप साबित नहीं है कि विदेशी नागरिक दूसरे धर्म के व्यक्तियों को इस्लाम में परिवर्तित कर इस्लाम धर्म का विस्तार कर रहे हैं.

तबलीगी जमात में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों के मीडिया के चित्रण की आलोचना करते हुए न्यायमूर्ति नलवाडे ने कहा ‘प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़े स्तर पर मरकज दिल्ली में शामिल होने वाले विदेशी नागरिकों के खिलाफ प्रोपेगंडा किया गया और ऐसी तस्वीर बनाने का प्रयास किया गया कि ये विदेशी भारत में कोविड-19 वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार थे. इन विदेशियों का वस्तुतः उत्पीड़न किया गया. जब महामारी या विपत्ति आती है तब एक राजनीतिक सरकार बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश करती है और हालात बताते हैं कि इस बात की संभावना है कि इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था.

ये भी पढ़ें- कोरोना वैक्सीन  कब तक ?

पुरानी भारतीय कहावत का ‘अथिति देवो भव‘ का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति नलवाडे ने कहा ‘वर्तमान मामले की परिस्थितिया एक सवाल पैदा करती हैं कि क्या हम वास्तव में अपनी महान परंपरा और संस्कृति के अनुसार काम कर रहे हैं ? कोविड -19 महामारी के दौरान, हमें अधिक सहिष्णुता दिखाने की आवश्यकता है और हमें अपने मेहमानों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है विशेष रूप से मौजूदा याचिकाकर्ताओं जेसे मेहमानों के प्रति आरोपों से पता चलता है कि हमने उनकी मदद करने के बजाय उन्हें जेलों में बंद कर दिया और आरोप लगाया कि वे यात्रा दस्तावेजों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं, वे वायरस आदि के प्रसार के लिए जिम्मेदार हैं.‘

कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे सही समय पर दिया गया फैसला करार दिया. ओवैसी ने ट्विट कर कहा ‘पूरी जिम्मेदारी से बीजेपी को बचाने के लिए मीडिया ने तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया. इस पूरे प्रॉपेगेंडा से देशभर में मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा.‘

निशाने पर फेसबुक भी:

जनता में जिस तरह से भ्रम फैलाया जा रहा तबलीगी जमात उसका एक छोटा उदाहरण है. बंाबे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में मीडिया की नकारात्मक भूमिका की कडे षब्दों में आलोचना की. यह भ्रम केवल मीडिया के द्वारा ही नहीं फैलाया जा रहा. सोषल मीडिया के सबसे बडे प्लेटफार्म फेसबुक  भी सवालों को घेरे में आ गया. जिससे साफ हो रहा कि आम आदमी को भ्रम का शिकार बनाया जा रहा है. ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल‘ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि फेसबुक भारत में अपने कारोबारी हितों को देखते हुए बीजेपी नेताओं के नफरत फैलाने वाले भाषणों पर सख्ती नहीं बरतता है. इस विवाद के पीछे अंखी दास का नाम लिया गया. अंखी दास अक्तूबर 2011 से फेसबुक के लिए काम कर रही हैं. वो भारत में कंपनी की पब्लिक पॉलिसी की प्रमुख हैं. अंखी दास ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से 1991-94 के बैच में अंतरराष्ट्रीय संबंध और राजनीति शास्त्र में मास्टर्स की पढ़ाई की है. ग्रेजुएशन की उनकी पढ़ाई कोलकाता के लॉरेटो कॉलेज से पूरी हुई है. विवाद का विषय यह है कि फेसबुक पर भारत में कुछ ऐसी सामग्रियाँ आईं हैं जिन्हें नफरत फैलाने वाली सामग्री बताया गया. मगर अंखी दास ने उन्हें हटाने का विरोध किया. अमरीकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल में 14 अगस्त को छपी एक रिपोर्ट में लिखा कि दुनिया की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी जो वॉट्सऐप की भी मालिक है ने भारत में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सामने हथियार डाल दिए हैं. फेसबुक ने अपने मंच से भाजपा नेताओं के नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकने के लिए ये कहते हुए कुछ नहीं किया कि सत्ताधारी दल के सदस्यों को रोकने से भारत में उसके व्यावसायिक हितों को नुकसान हो सकता है.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन से ऊब रहे हैं बच्चे

भरोसा खोता मीडिया:

राजनीतिक व्यंगकार संपत सरल मीडिया पर व्यंग करते कहते है ‘यह मीडिया दिखता दीये के साथ है. पर है हवा के साथ’. जो बात संपत सरल अपने व्यंग के जरीये कहते है वही बात समाजवादी पार्टी के नेता राजेन्द्र चैधरी ने दैनिक जागरण के कार्यक्रम में हिस्सा लेते कहा ’मीडिया का काम विपक्ष की आवाज बनना होता है. मीडिया विपक्ष से अधिक सत्ता पक्ष की आवाज बन रहा है‘. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने ट्वीट  में भारत की न्यूज मीडिया पर फासीवादी हितों के लिए काम करने का आरोप लगाते कहा है कि अब वो प्रतिदिन वीडियो के जरिए अपने विचार सोशल मीडिया पर शेयर किया करेंगे. राहुल गांधी चीन के साथ सीमा विवाद पर भी मीडिया और सरकार को घेरने वाले सवाल करते रहे है.

राहुल गांधी ने कहा है कि ‘वर्तमान समय में भारतीय न्यूज मीडिया का बड़ा हिस्सा फासीवादी हितों के लिए काम कर रहा है. घृणा से भरा नैरेटिव टीवी चैनल्स, वाट्सअप फारवर्ड्स और भ्रामक खबरों के जरिए फैलाया जा रहा है. झूठ से भरा ये नैरेटिव भारत को कई हिस्सों में बांट रहा है. मैं चाहता हूं कि हमारा वर्तमान, इतिहास और वास्तविक त्रासदी उन लोगों के सामने स्पष्ट हो, जो सच जानना चाहते हैं. इस वजह से मैं अपने विचार वीडियो के जरिए जनता से शेयर करूंगा‘. राहुल गांधी जैसे आरोप तमाम लोगों के है. यह बात और है कि लोग खुल कर बोलने से बचते है.

सोशल एक्टिविस्ट सदफ जफर कहती है ‘मीडिया का एक बडा तबका जनता के सामने सच को नहीं रख रहा है. यह बात और है कि प्रोपेगंडा को बढावा ज्यादा दे रहा है. नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्षन में जिस तरह से सच्चाई को नजर अंदाज किया वह खतरनाक संकेत है. शुरूआत में यह बातें समझ नहीं आ रही थी पर धीरेधीरे अब यह बातें खुलकर सामने आ रही है. जिससे मीडिया का सच खुल कर सामने आ रहा है.’

मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित संदीप पांडेय कहते है ‘मीडिया ना केवल गलत सूचनायें दे रहा बल्कि उन तर्को को बढावा देने का काम कर रहा जो सरकार अपने बचाव में देती है. मीडिया विपक्ष की बातों को अगर कहीं जगह देता भी है तो प्रमुखता के साथ ना देकर खानापूर्ति के नाम पर इधरउधर छाप देता है. कई बार तो विपक्ष की बात से बड़ी सत्ता पक्ष के खंडन को जगह दी जाती है. यह केवल राजनीति खबरों के साथ ही नहीं होता कई बार छोटे छोटे मुददो वाली स्थानीय खबरो जैसे किसी स्कूल काॅलेज की होती है तो उनके साथ भी यही हाल होता है जिससे आम आदमी को सही जानकारी नहीं मिल पाती है.’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...