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उमाशंकर पांडेय : पानी के पहरेदार को पद्मश्री- ‘खेत पर मेड़ और मेंड़ पर पेड़’ ने दिखायी राह

गणतंत्र दिवस के मौके पर पुरखों के पारंपरिक तरीकों को अपना कर बुंदलेखंड को पानीदार बनाने वाले ‘जलयोद्धा’ के नाम से चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय को साल 2023 के ‘पद्मश्री अवार्ड’ से नवाजे जाने की घोषणा हुई, तो देश के हर कोने में उन के बारे में लोग जानने को उत्सुक हो उठे. मूल रूप से बुंदेलखंड इलाके के बांदा जिले के जखनी गांव के बाशिंदे उमाशंकर पांडेय ने बिना किसी सरकारी या गैरसरकारी सहायता लिए ही समुदाय को साथ ले कर पानी बचाने के लिए पारंपरिक विधि ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ अभियान चला कर बुंदेलखंड क्षेत्र को इतना पानीदार बनाया कि जहां कभी पीने के पानी के लिए लाठियां चटकती थीं, वहीं आज सरकार धान क्रय केंद्र खोल कर करोड़ों रुपए की धान खरीदारी किसानों से कर रही है.

उमाशंकर पांडेय की इस मुहिम का ही कमाल है कि जो किसान पहले बरबाद हो चुकी खेती के चलते दूसरे शहरों को पलायन कर चुके थे, वे आज गांव वापस आ कर खेती कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं. साथ ही, जो गांव कभी पानी की समस्या से जूझ रहे थे, वहां अब मईजून की भीषण गरमी में भी पानी की कोई समस्या नहीं होती है. सूखे में खोजा पानी बचाने का उपाय बुंदेलखंड इलाके में कभी पानी की किल्लत के चलते ट्रेनों से भरभर कर पीने का पानी भेजा जाता था.

एक समय ऐसा आया कि जब मालगाड़ी से बुंदेलखंड में पानी लाया जाने लगा था, पानी की किल्लत का यह आलम था कि बुंदेलखंड इलाके के चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, जालौन, सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ सहित कई जिलों के हालात पानी की किल्लत के चलते इतने बिगड़ गए थे कि खेतीबारी पूरी तरह से बरबाद हो चुकी थी. इस इलाके में पानी की समस्या के कारण शादी का इंतजार करतेकरते कई लोग बूढ़े हो जाते थे, पानी के संकट ने उमाशंकर पांडेय के मन पर इतना गहरा असर डाला कि वे बिना किसी की सहायता के अकेले ही पानी बचाने की मुहिम में निकल पड़े.

पानी बचाने की इस मुहिम की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस साल उन्होंने यह कमाल कर दिखाया, उस के अगले साल जो लोग उन की इस मुहिम पर हंसते थे, वे खुद ही इस मुहिम का हिस्सा बन कर पानी बचाने में लग गए. इसी जल संकट के बीच सरकार के नाकाफी पड़ते उपायों के बीच ‘जलयोद्धा’ उमाशंकर पांडेय नें मेंड़बंदी जैसे पारंपरिक तरीके को समुदाय में बढ़ावा दे कर न केवल बुंदेलखंड, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी पानी के संकट को काफी हद तक कम कर दिया है. जखनी गांव के मौडल की सफलता को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में मेंड़बंदी के जरीए जल रोकने की बात कही है.

इसी का परिणाम है कि जखनी जल संरक्षण की परंपरागत विधि बगैर प्रचारप्रसार के देश के डेढ़ लाख से अधिक गांवों में पहुंच चुकी है. देश को 1,050 जलग्राम देने का काम भी इसी जलग्राम जखनी मौडल से हुआ है. उमाशंकर पांडेय ने बताया कि उन्होंने कुछ नया नहीं किया है, बल्कि मेंड़बंदी की पारंपरिक विधि को समुदाय के हाथों दोबारा जीवित कर दिया है. इस के लिए इस 30 साल के भूजल संरक्षण अभियान मेंड़बंदी के लिए किसी प्रकार का कोई अनुदान सरकार या किसी अन्य संगठनों से नहीं लिया है और न ही किसी नवीन ज्ञान का उपयोग किया है, बल्कि बिना किसी सरकारी इमदाद के ही ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ विधि से वर्षा जल संरक्षण की मुहिम को आगे बढ़ाया.

जखनी मौडल जैसा कोई नहीं ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ के जरीए उमाशंकर पांडेय ने जखनी गांव के खेतों में बनने वाली मेंड़ों पर पौधारोपण का काम भी शुरू किया. इस मुहिम की शुरुआत का ही परिणाम था कि एक साल के भीतर ही 2,552 बीघा वाले इस गांव के 33 कुओं, 25 हैंडपंपों व 6 तालाब पानी से लबालब भर गए. जखनी गांव में आई इस जलक्रांति ने यहां की तसवीर ही बदल दी. इस गांव की पहचान ‘जखनी जलग्राम’ के नाम से होने लगी. इस का परिणाम यह रहा कि इंटरनैट पर भी जलग्राम मौडल की धूम मच गई. मुहिम को बढ़ाया आगे पानी बचाने से हुए जखनी सहित दूसरे गांवों के कायाकल्प की कहानी धीरेधीरे जब स्थानीय मीडिया से राष्ट्रीय लैवल के मीडिया घरानों ने पानी रिपोर्टों के जरीए छापनी और दिखानी शुरू की, तो इस की भनक स्थानीय जिला प्रशासन तक भी पहुंची.

इस के बाद उस समय के जिलाधिकारी हीरालाल ने भ्रमण किया, तो वे अचंभित हुए बिना नहीं रह सके. उमाशंकर द्वारा शुरू किए गए इस अभियान की सफलता का परिणाम यह रहा कि इस की हनक राज्य और केंद्र सरकार तक भी पहुंच गई और इस गांव में पानी बचाने के मौडल को समझने के लिए भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह व नीति आयोग के जल भूमि विकास के सलाहकार अविनाश मिश्रा, उपनिदेशक, नियोजन विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार एसएन त्रिपाठी सहित मंडलायुक्त बांदा एल. वेंकटेश्वरलू, कृषि विश्वविद्यालय, बांदा के कुलपति डा. यूएस गौतम सहित कई अधिकारियों ने यहां का दौरा कर के इस मौडल को देश के दूसरे सूखाग्रस्त हिस्सों में लागू किए जाने की पहल शुरू की.

सभी ने सराहा जखनी जलग्राम के दौरे से वापस लौटे भारत सरकार के अधिकारियों और जिला लैवल से मिली रिपोर्ट के आधार पर उमाशंकर पांडेय के ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ मौडल के आधार पर भारत नीति आयोग ने साल 2019 के वाटर मैनेजमैंट इंडैक्स में ऐक्सीलैंट परंपरागत मौडल विलेज मानते हुए इसे ‘जखनी जलग्राम’ की संज्ञा दी है. इस रिपोर्ट को आधार मान कर भारत सरकार द्वारा देश के सूखे से जूझ रहे विभिन्न प्रदेशों में भी 1,050 जलग्राम स्थापित किए जाने का लक्ष्य रखा है.

देशव्यापी बन गई मुहिम जहां एक ओर मेंड़बंदी के परंपरागत जल संरक्षण के मौडल को बांदा के तब के जिलाधिकारी हीरालाल ने जखनी जल संरक्षण मौडल के नाम से जिले की 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया, वहीं दूसरी ओर नीति आयोग, भारत सरकार ने जखनी जलग्राम के मौडल को परंपरागत जल संरक्षण मौडल, जिस में न तो किसी मशीन का इस्तेमाल किया गया और न ही किसी नवीन विधि का, देश के लिए ऐक्सीलैंट मौडल माना. जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने ग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ को संपूर्ण देश के लिए उपयोगी माना है. ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने मनरेगा योजना के अंतर्गत देश के सूखा प्रभावित राज्यों में सब से अधिक प्राथमिकता के आधार पर मेंड़बंदी के माध्यम से रोजगार देने की बात कही है. वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में सर्वप्रथम मेंड़बंदी के माध्यम से जल रोकने की बात कही है.

बासमती की खेती बयां करती है कहानी बांदा जनपद में जखनी गांव से निकली पानी बचाने की मुहिम का ही कमाल है कि बांदा जनपद के इतिहास में पहली बार हजारों हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती लहलहा रही है. वहां धान की सब से सुगंधित व महंगे रेट पर बिकने वाली प्रजाति बासमती की खेती हो रही है. पिछले साल 10 लाख क्विंटल से अधिक बासमती धान केवल बांदा में पैदा किया गया था, जबकि दूसरे जिलों में भी धान की बंपर पैदावार हुई है. बुंदेलखंड में बासमती लाने का श्रेय भी जखनी गांव के किसानों को जाता है. वहां के किसान अकेले 20,000 क्विंटल से अधिक बासमती धान पैदा करते हैं. जखनी मौडल पर शोध उमाशंकर पांडेय के ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ मौडल के साथ ही ‘जखनी जलग्राम’ मौडल पर कई शोध भी हो रहे हैं. अभी तक इस मौडल को देखने और शोध के इरादे से इजराइल, नेपाल सहित देश के तेलंगाना, महाराष्ट्र और बाकी कई हिस्सों के लोग आ चुके हैं.

बांदा में स्थित कृषि विश्वविद्यालय के छात्र इस सफल मौडल पर शोध कर रहे हैं, जिस से दूसरे लोगों को भी इस का लाभ मिल सकेगा. जखनी से निकली जल संरक्षण की परंपरागत विधि ‘खेत के ऊपर मेंड़ और मेंड़ के ऊपर पेड़’ संपूर्ण भारत में स्वीकार की जा चुकी है. राज, समाज और सरकार तीनों ने इस विधि का स्वागत किया है. प्रयास भले ही छोटा हो, लेकिन परिणाम राष्ट्रव्यापी है. यह सफलता किसानों के जरीए मिली है, जिस ने बांदा, बुंदेलखंड और दूसरे हिस्सों के खेत और गांव को पानीदार बनाने का रास्ता खोल दिया है. उमाशंकर पांडेय के चलते देश की बड़ी समस्या के समाधान के लिए उन्हें जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय जलयोद्धा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है.

पहले ‘जलयोद्धा’ और अब ‘पद्मश्री’ के खिताब से नवाजे जा चुके उमाशंकर पांडेय का कहना है कि सरकार ने उन को यह सम्मान दे कर गौरव का पल दिया है. उन्होंने कहा कि पुरस्कार मिलने से मैं काफी गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं और पुरस्कार मिलने के बाद मुझे अपने काम में और भी खरा उतरना पड़ेगा. उमाशंकर पांडेय के इस सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा के साथ ही देशभर से उन को बधाइयां तो मिल ही रही हैं, साथ ही उन्हें पानी बचाने की मुहिम, सैमिनार और खेतीबारी से जुड़े नैशनल लैवल के कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाने लगा है.

मारपीट का मौडल

हिंदुमुसलिम अलगाव जल्दी ही हिंदू अलगाव में बदलेगा उस का अंत हमेशा था. जब आप कीकर की खेती अपने खेत में करोंगे तो उस के बीच आसपास तो फैलेंगे ही फलेफूलेंगे ही.  हिंदुमुसलिम झगड़े हर कट्टर  हिंदु को सिखा रहे है कि अलग रहना और पड़ोसी से झगडऩा. उस से मारपीट करना, उसे अपनी तरह ढालना आप का फर्ज ही नहीं हक और जिम्मेदारी भी है. पंचायतों, खापों, गांवों में यह सदियों से होता रहा है जहां लोगों को अपने घरों में पहनने, खाने, सोने, शादी करने और यहां तक की मरने पर भी पड़ोसियों की राय को मानना ही होता था.

आजादी के बाद नई पढ़ाई, विज्ञान, नई तकनीक, शहरों तक के सफर, किताबों, उपन्यासों, अखबारों, टीवी ने एक नई बात सिखाई कि हर जना अपनी सोच रखने का हक रखता है और एक समाज मजबूत तभी होता है जब अलगअलग तरह की सोच रखने वाले अपना जातियों, धर्मों के लोग एक समय काम करने की तरकीब सीख सकें.

मुसलिम मसजिदों में लाउडस्पीकरों को हटवाना या उन का शोर इतना कम करना कट्टरियों का कदम था ताकि उस की आवाज मसजिद से बाहर न जाए और मुसलिम अजान ङ्क्षहदू घरों को दूषित न करें. लेकिन यह करने पर उन्हें मंदिरों, गुरूदारों से भी लाउडस्पीकर हटवाने पड़े. देश में अभी इतनी अराजकता आने में समर्थ है जब एक वर्ग कहेगा कि हम चाहे जो करें तुम ऐसा नहीं करोंगे. संविधान जिस दिन चौराहों पर जलेगा. उसी दिन ऐसा होगा.

गुजरात सहसाना जिले में मंदिर में 2 भाई लाउडस्पीकर पर आरती आ रहे थे. आवाज ज्यादा थी तो पड़ोसी निकल आया, उसी धर्म का. इस पर झगड़ा हो गया तो पड़ोसी ने अपने साथियों को बुला लिया. गुजरात मौडल जो पूरे देश में लागू हो रहा है सिखा रहा है कि कानून को अपने हाथ में लेने का पूरा हक हर भीड़ को है चाहे वह भीड़ 4-5 जनों की हो. 4-5 जने औरतों की साडिय़ां उतार सकते है, दलितों को खंबे से बांध कर पीट सकते हैं. भीड़ पर गाड़ी चढ़ा सकते हैं, जबरन नारे लगवा सकते हैं. न प्रधानमंत्री उस पर बोलेंगे, न गृहमंत्री कुछ करेंगे. इन 6 जनों ने मिलकर 2 की जमकर घुनाई कर दी. लाठियों से, एक मर गया.

चलो कोई बात नहीं. यह होता है है. मुसलिम मसजिद का लाउडस्पीकर बंद कराने के लिए किसी ङ्क्षहदू की जान मंदिर में जाए या मसजिद के सामने, फर्म नहीं पड़ता. यह संदेशा तो गया कि लाउडस्पीकर चलाओगे तो जानें जा सकती हैं. सब से बड़ी बात है कि दूसरे धर्मों के लोगों को पाठ पढ़ाना कि वे खाल में रहें, हमारे कहे के हिसाब से चलें.

और जब हम लाठियां चलाना आ ही गया है तो दलितों पर भी चलाएंगे, औरतों पर भी चलाएंगे. 6 मई के जिस दिन गुजरात की यह खबर छपी उसी दिन खबर छपी की एक दलित ङ्क्षहदू को मुसलिम लडक़ी से शादी करने पर हैदराबाद में मार डाला गया. उसी रोज दिल्ली की एक गरीब बस्ती में ङ्क्षहदू और मुसलिम बच्चों में झगड़ा होने पर दोनों तरफ के कट्टर जवान कूद पड़े.

एक और मामला उसी रोज के (6 मई) के अखबार में छपा है जिस में 13 साल के लडक़े ने 8 माह के पड़ोसी ने बच्चे को पानी में डुबा कर मार डाला. मां अपने 3 बच्चों को घर पर छोड़ कर बाजार तक  गर्ई थी जिस दौरान पड़ोसियों के लडक़े ने यह किया क्योंकि वह उस की मां से कई बार फटकार खा चुका था.

मारपीट का मौडल अब और तेज और तीखा होता जा रहा है. यह हर रोज होगा, बढ़ेगा क्योंकि हमें पाठ पढ़ाया जा रहा है कि हमारा पड़ोसी अगर दूसरे धर्म, जाति, सोच का है तो उसे सावर रहने का हक नहीं है. वह कहीं और जाए, पाकिस्तान जाए या समुद्र में जाए उसे तो भीड़ के साथ रहना होगा, भीड़ वाले नार लगाने होंगे.

Crime Story: अंधेरा लेकर आई चांदनी

सौजन्या- सत्यकथा

डाक्टर संजय सिंह भदौरिया बरेली के धनेटा-शीशगढ़ मार्ग से सटे आनंदपुर गांव में रहते
थे. उन के पिता राजेंद्र सिंह गांव के संपन्न किसान थे. परिवार में मां और पिता के अलावा एक छोटा भाई हरिओम और एक बहन पूनम थी. पूनम का विवाह हो चुका था.

संजय डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1999 में बरेली के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देने लगे. सन 2000 में नीलम से उन का विवाह हो गया. लेकिन काफी समय बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला.
छोटे भाई हरिओम का विवाह बाद में हुआ. हरिओम के 3 बेटे हुए. संजय ने उन्हीं में से एक बेटे को गोद ले लिया था. कई अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने के बाद डा. संजय ने अपना अस्पताल खोलने का निश्चय किया.5 साल पहले उन्होने गौरीशंकर गौडि़या में किराए पर एक इमारत ले कर अस्पताल खोला.

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अस्पताल का नाम रखा ‘आनंद जीवन हौस्पिटल’. अस्पताल अच्छा चलने लगा. लेकिन घर से काफी दूर होने के कारण आनेजाने में दिक्कत होती थी. इसलिए डा. संजय कहीं घर के नजदीक अस्पताल खोलने पर विचार करने लगे. 6 महीने तक गौडि़या में अस्पताल चलाने के बाद संजय ने अपने गांव आनंदपुर से 2 किलोमीटर की दूरी पर विकसित गांव दुनका में एक इमारत किराए पर ले ली. इमारत दुनका गांव निवासी नत्थूलाल की थी, जिसे संजय ने 8 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था. संजय ने अपनी जरूरत के हिसाब से इमारत में बने हाल को 2 हिस्सों में बांट दिया.

एक हिस्से में बैठ कर वह मरीजों को देखते थे. जबकि दूसरा हिस्सा एडमिट किए गए मरीजों के लिए था. मरीजों को दवा भी वहीं दी जाती थी, यह काम उन के छोटे भाई हरिओम सिंह भदौरिया करते थे.
हरिओम बड़े भाई के अन्य कामों में भी सहयोग करते थे. संजय और हरिओम के मामा नत्थू सिंह भी उन के साथ लगे रहते थे. संजय कई सालों से हिंदू युवा वाहिनी से भी जुडे़ थे.

पिछले 5 सालों में संजय का अस्पताल अच्छा चल निकला था. रात में वह अधिकतर अस्पताल में ही रुकते थे. घर जाते तो कुछ ही देर में वापस लौट आते थे. रात में वह अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते थे. इमारत के बाहर लोहे का एक बड़ा सा गेट था, जो दिन में खुला रहता था लेकिन रात में बंद कर दिया जाता था. रात में कोई मरीज आता तो गेट खोल दिया जाता था.
16/17 सितंबर की रात डा. संजय अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सो गए. उन के भाई हरिओम अस्पताल के अंदर मामा नत्थू सिंह के साथ सोए थे.17 सितंबर की सुबह 6 बजे हरिओम उठ कर बाहर आए तो बड़े भाई संजय को मृत पाया. किसी ने बड़ी बेरहमी से उन की हत्या कर दी थी. यह देख कर हरिओम के मुंह से चीख निकल गई. चीख की आवाज सुन कर मामा नत्थू सिंह भी वहां आ गए. भांजे को मरा पाया तो वह भी सकते में आ गए.

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हरिओम ने अपने घर वालों को सूचना देने के बाद शाही थाना पुलिस को घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में शाही थाना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

हिंदू युवा वाहिनी के तहसील अध्यक्ष डा. संजय भदौरिया की हत्या की खबर फैलते देर नहीं लगी. हिंदू नेता की हत्या से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया. कई थानों की पुलिस और फील्ड यूनिट के साथ एसएसपी रोहित सिंह सजवान स्वयं मौके पर पहुंच गए.पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के गले, चेहरे, पेट व आंख पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. हत्या इतनी बेदर्दी से की गई थी जैसे हत्यारे को मृतक से बेइंतहा नफरत रही हो.

अस्पताल की इमारत के मालिक दुनका में रहने वाले नत्थूलाल थे. पीछे की ओर उन के भाई की दुकानों के टीन शेड में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उन कैमरों की रिकौर्डिंग की जांच की.रिकार्डिंग में रात साढ़े 3 बजे के करीब एक युवक अस्पताल में खड़ी टाटा मैजिक के पीछे से निकलते दिखा. वह संजय की चारपाई के नजदीक आया. फिर उस ने मच्छरदानी हटाते ही धारदार छुरे से संजय पर वार करने शुरू कर दिए. एक मिनट के अंदर उस ने संजय का काम तमाम कर दिया और जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापस लौट गया.

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हत्यारे युवक को हरिओम ने पहचान लिया. वह दुनका का ही रहने वाला इमरान था. हत्यारे की पहचान होते ही पुलिस अधिकरियों ने उस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए.पुलिस की कई टीमें इमरान की तलाश में लग गईं. इंसपेक्टर वीरेंद्र राणा की टीम ने दोपहर पौने एक बजे इमरान को रतनपुरा के जंगल में खोज निकाला. पुलिस को आया देख इमरान ने 315 बोर के तमंचे से पुलिस पर फायर कर दिया, जिस से कोई पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ.

जवाब में पुलिस ने उस के पैर को निशाना बना कर गोली चला दी, जो सीधे इमरान के पैर में लगी. गोली लगते ही इमरान के हाथ से तमंचा छूट गया और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इमरान के पास से पुलिस ने एक तमंचा, एक खोखा कारतूस, 2 जिंदा कारतूस और आलाकत्ल छुरा बरामद कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो पूरा मामला आइने की तरह साफ हो गया.

इमरान शाही थाना क्षेत्र के गांव दुनका में रहता था. वह भाड़े पर टाटा मैजिक चलाता था. इस से पहले वह संजय के अस्पताल के मालिक नत्थूलाल के यहां ड्राइवर था. इमरान की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. उस के पिता छोटे तांगा चलाते थे. इमरान 3 भाइयों में सब से बड़ा था.इमरान के घर से कुछ दूरी पर चांदनी उर्फ मायरा बानो (परिवर्तित नाम) रहती थी. नाम के अनुसार उस के रूप की चांदनी भी लोगों को लुभाती थी.

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उम्र के 18वें बसंत में चांदनी का यौवन अपने चरम पर था. खूबसूरत देहयष्टि वाली चांदनी युवकों से बात करने में हिचकती थी, वह बातबात में शरमा जाती थी. यौवन द्वार पर आते ही उस में कई परिवर्तन आ गए थे, शारीरिक रूप से भी और सोच में भी.कई युवक उस के आगेपीछे मंडराते थे, लेकिन चांदनी इमरान को पसंद करती थी. इमरान काफी स्मार्ट था, वह उस की नजरों से हो कर दिल में उतर गया था. इमरान भी उस के आगेपीछे मंडराता था.

दोनों एकदूसरे से परिचित थे. घर वाले भी एकदूसरे के घर आतेजाते थे. ऐसे में उन के बीच बातचीत होती रहती थी. लेकिन जब से उन के बीच प्यार के अंकुर फूटने लगे थे, तब से उन के बीच संकोच की दीवार सी खड़ी हो गई थी.जब भी इमरान उस की आंखों के सामने होता तो उस की निगाहें उसी पर जमी रहतीं. चेहरे पर इस की खुशी साफ झलकती थी. इमरान को भी उस का इस तरह से देखना भाता था, क्योंकि उस का दिल तो वैसे भी चांदनी के प्यार का मरीज था. दोनों की आंखों से एकदूसरे के लिए प्यार साफ झलकता था. दोनों इस बात को महसूस भी करते थे, लेकिन बात जुबां पर नहीं आ पाती थी.

एक दिन चांदनी जब इमरान के घर गई तो उस समय वह घर में अकेला था. चांदनी को देखते ही इमरान का दिल तेजी से धड़कने लगा. उसे लगा कि दिल की बात कहने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. इमरान ने उसे कमरे में बैठाया और फटाफट 2 कप चाय बना लाया.चाय का घूंट भर कर चांदनी उस से दिल्लगी करती हुई बोली, ‘‘चाय तो बहुत अच्छी बनी है. बेहतर होगा कहीं चाय की दुकान खोल लो. खूब बिक्री होगी.’’

‘‘अगर तुम रोजाना दुकान पर आ कर चाय पीने का वादा करो तो मैं दुकान भी खोल लूंगा.’’ इमरान ने चांदनी की बात का जवाब उसी अंदाज में दिया तो चांदनी लाजवाब हो गई.
दोनों इसी बात पर काफी देर हंसते रहे, फिर इमरान गंभीर हो कर बोला, ‘‘चांदनी, मुझे तुम से एक बात कहनी थी.’’‘‘हां, कहो न.’’‘‘सोचता हूं कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’‘‘जब तक कहोगे नहीं कि बात क्या है तो मुझे कैसे पता चलेगा कि अच्छा मानना है कि बुरा.’’‘‘चांदनी, मैं तुम से दिलोजान से प्यार करता हूं. ये प्यार आज का नहीं बरसों का है जो आज जुबां पर आया है. ये आंखें तो बस तुम्हें ही देखना पसंद करती हैं, तुम्हारे पास रहने से दिल को करार आता है. तुम्हारे प्यार में मैं इतना दीवाना हो चुका हूं कि अगर तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया तो मैं पागल हो जाऊंगा.’’

इमरान के दिल की बात जुबां पर आई तो सुन कर चांदनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पलकें झुक गईं, होंठों ने कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां ने साथ नहीं दिया. चांदनी की यह हालत देख कर इमरान बोला, ‘‘कुछ तो कहो चांदनी. क्या मैं इस लायक नहीं कि तुम से प्यार कर के तुम्हारा साथ पा सकूं.’’
‘‘क्या कहना ही जरूरी है, तुम अपने आप को दीवाना कहते हो और मेरी आंखों में बसी चाहत को नहीं देख सकते. सच पूछो तो जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. मैं ने भी तुम्हें बहुत पहले से दिल में बसा लिया था. पर डरती थी कि कहीं यह मेरा एकतरफा प्यार न हो.’’

चांदनी ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया तो इमरान खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे सारी दुनिया की दौलत चांदनी के रूप में उस की झोली में आ समाई हो.एक बार दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो फिर उन के मिलनेजुलने का सिलसिला बढ़ गया. अब दोनों रोज गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर मिलने लगे. वहां दोनों एकदूसरे पर जम कर प्यार बरसाते और हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते. जैसेजैसे समय बीतता गया, दोनों की चाहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई.

इसी बीच एक दिन चांदनी को पेट दर्द की समस्या हुई तो उस ने इमरान को बताया. इमरान डा. संजय भदौरिया से परिचित था. इसलिए वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के अस्पताल ले आया. डा. संजय ने चांदनी का चैकअप किया, फिर कुछ दवाइयां लिख दीं, जोकि उन के हौस्पिटल के मैडिकल स्टोर में उपलब्ध थीं, हरिओम ने पर्चे में लिखी दवाइयां दे दीं.

चांदनी को देखते और उसे छूते समय संजय को एक सुखद अनूभूति हुई थी. चांदनी की खूबसूरती को देख संजय की आंखें चुंधिया गई थीं, दिल में भी उमंगें उठने लगी थीं. उस दिन के बाद चांदनी संजय के पास दवा लेने के लिए अकेले ही आने लगी. संजय उसे अकेले में देखता और उस से खूब बातें करता. बातोंबातों में उस ने चांदनी को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया. उस ने चांदनी से दवा के पैसे लेना भी बंद कर दिया था.

चांदनी भी संजय से खुल कर बातें करती थी. एक दिन संजय ने उस से कहा, ‘‘चांदनी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. लगता है मैं तुम्हें बहुत चाहने लगा हूं.’’यह कह कर संजय ने चांदनी के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. यह सुन कर चांदनी पल भर के लिए चौंकी, फिर बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में बहुत बड़े हैं और शादीशुदा भी. ऐसे में प्यार मुझ से…’’‘‘पगली, प्यार उम्र और बंधन को कहां देखता है, जिस से होना होता है, हो जाता है. तुम मुझे अब मिली हो, अगर पहले मिल जाती तो मैं तुम से ही शादी करता. खैर अब वह तो हो नहीं सकता, उस की क्या बात करें. मैं तुम्हारा पूरा ख्याल रखूंगा, तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘मैं इमरान से प्यार करती हूं और हम दोनों शादी भी करने वाले हैं.’’‘‘इमरान से प्यार कर के तुम्हें क्या मिलेगा? वह एक मामूली इंसान है. तुम्हारी खुशियों का खयाल नहीं रख पाएगा. मेरे पास पैसा है, शोहरत है. मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. हर तरह से…’’‘‘आप की बात तो सही है लेकिन…’’ दुविधा में पड़ी चांदनी इस से आगे कुछ नहीं बोल पाई.‘‘सोच लो, विचार कर लो, वैसे भी जिंदगी के अहम फैसले जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. कोई जल्दी नहीं है, आराम से सोच कर बता देना.’’इस के बाद चांदनी अस्पताल से घर लौट आई. उस के दिमाग में तरहतरह के विचार उमड़घुमड़ रहे थे. इमरान उस का प्यार था लेकिन सिर्फ प्यार से अच्छी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती थी. अच्छी जिंदगी के लिए पैसों की जरूरत
होती है, वह जरूरत संजय से पूरी हो सकती थी.

संजय के प्यार को स्वीकार कर के वह अच्छी जिंदगी गुजार सकती थी. आगे चल कर वह उसे शादी के लिए भी मना सकती थी, नहीं तो वह उस की दूसरी बीवी की तरह ताउम्र गुजार सकती थी. चांदनी का मन बदल गया और उस का फैसला संजय के हक में गया था.अगले ही दिन चांदनी संजय के अस्पताल पहुंच कर उस से मिली. उस के चेहरे की खुशी देख कर संजय जान गया था कि चांदनी ने उस का होने का फैसला कर लिया है. फिर भी अनजान बनते हुए उस ने चांदनी से पूछ लिया, ‘‘तो चांदनी, तुम ने क्या सोचा…इमरान या मैं?’’

‘‘जाहिर है आप, आप को न चुनती तो मैं यहां वापस आती भी नहीं.’’ चांदनी ने बड़ी अदा से मुसकराते हुए कहा. संजय उस का फैसला सुन कर खुश हो गया.उस दिन के बाद से संजय और चांदनी का मिलनाजुलना बढ़ गया. दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. इन नजदीकियों के बाद चांदनी ने इमरान से दूरी बनानी शुरू कर दी. चांदनी का अपने प्रति रूखा व्यवहार देख कर इमरान को उस पर शक हो गया. वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे सारी सच्चाई पता चल गई.

इस बात को ले कर वह चांदनी से तो झगड़ा ही, संजय से भी लड़ा. संजय ने उसे डांटडपट कर वहां से भगा दिया. अपनी प्रेमिका को अपने से दूर जाते देख कर इमरान बौखला गया. वह उस दिन को कोसने लगा जब वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के पास ले गया था. संजय ने उस की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए उस ने संजय की जिंदगी छीन लेने का फैसला कर लिया.

16/17 सितंबर की रात साढ़े 3 बजे के करीब वह संजय के अस्पताल में घुसा. उस ने संजय को बाहर चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते देखा. वह चारपाई के नजदीक पहुंचा और मच्छरदानी हटा कर साथ लाए छुरे से संजय पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. सोता हुआ संजय चीख तक न सका और उस की मौत हो गई. संजय को मौत के घाट उतारने के बाद इमरान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से अस्पताल से बाहर निकल गया. वहां से जाने के बाद वह रतनपुरा के जंगल में जा कर छिप गया.

लेकिन उस का गुनाह तीसरी आंख में कैद हो गया था, जिस के बाद पुलिस को उस तक पहुंचने में देर नहीं लगी. इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा ने हरिओम को वादी बना कर इमरान के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के अलावा मुठभेड़ के दौरान पुलिस पर जानलेवा हमला करने के लिए भी उस के खिलाफ धारा 307 का मुकदमा भी दर्ज किया गया.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद इमरान को न्यायालय में पेश
कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज
दिया गया.

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में दिखेगा इमोशनल ड्रामा, कायरव पूछेगा अपने मां-पापा से सवाल

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है देखने वाले फैंस के लिए खुशखबरी है कि इस सीरियल में एक नया ट्विस्ट देखने को मिलेगा. इस सीरियल में नायरा और कार्तिक के लाइफ में कुछ इमोशनल ड्रामा देखने को मिलेगा.

दरअसल, सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा. नायरा और कार्तिक के जीवन में कायरव की वापसी हो गई है. वह आते से ही अपने मैं- पापा से कहता है कि वह उनसे प्यार नहीं करते है.

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इस बात का जिक्र सीरियल के नए प्रोमो में दिखाया गया है साथ ही प्रोमो में यह दिखाया गया है कि वह कृष्णा से नफरत करता है.

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इसे देखने के बाद फैंस सीरियल को देखने के लिए काफी ज्यादा उत्साहित नजर आ रहे हैं. फैंस को पता है कि अब इस सीरियल में धमाल होने वाला है.

गोयनका हाउस में कुछ वक्त पहले ही कायरव की वापसी हुई है आते ही सभी के जीवन में उसने अपने सवाल से भूचाल ला दिया है. जिसके बाद घरवाले परेशान है कि आखिर कैरव क्यों ऐसा सवाल पूछ रहा है.

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वहीं कुछ वक्त पहले खबर ये भी आई थी कि कार्तिक यानी मोहसिन खान जल्द ही इस सीरियल को अलविदा कहने वाले हैं. इसमें देखना यह है कि कायरव को कैसे उसके मम्मी पापा- समझाते हैं क्या वह वाकई में एक अच्छे पेरेंट्स बन पाएंगे.

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फैंस को इतंजार है इस सीरियल के नेक्स्ट एपिसोड का.

हार्टबर्न हो सकता है जानलेवा

सीने में असहजता, दर्द और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण एंजाइना या हार्ट अटैक से जुड़े होते हैं. हालांकि इन लक्षणों के साथ ही व्यक्ति में हमेशा हार्टबर्न या एसिड इनडाइजेशन तथा खट्टी डकार जैसे सब से आम लेकिन अपेक्षाकृत सुरक्षित लक्षण भी देखे जाते हैं. यही वजह है कि जब व्यक्ति को हार्ट अटैक होता है तो वह एसिड रिफ्लैक्स का मामूली मामला समझते हुए इन लक्षणों से भ्रमित रहता है और गंभीर परेशानी में पड़ जाता है. इसी तरह एसिड इनडाइजेशन के कारण सीने में दर्द को ले कर भी कुछ मरीज हार्ट अटैक समझ कर भ्रमित हो सकते हैं. हम अकसर ऐसे भी मरीज देखते हैं जो एसिड रिफ्लैक्स के कारण सीने में असहजता की शिकायत करते हैं और कार्डियोलौजिस्ट के पास जा कर सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उन के ये लक्षण गंभीर तो नहीं हैं.

सही माने में हार्टबर्न का नाम के अलावा हृदय की परेशानियों से कोई लेनादेना नहीं रहता. हार्टबर्न शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी को एसिड इनडाइजेशन (खट्टी डकार या अपच) होता है जिस में भोजन नली प्रभावित हो जाती है. भोजन नली चूंकि शरीर में हृदय के पास ही होती है इसलिए इस से आप को सीने में असहजता महसूस हो सकती है. इस कारण हृदय संबंधी किसी परेशानी से उबरने वाले लक्षणों को भी लोग गलतफहमी में एसिडिटी जैसी समस्या ही मान लेते हैं. कुछ लोग गफलत में हार्टबर्न को भी एंजाइना की तकलीफ (हृदय में रक्त आपूर्ति की कमी के कारण यह असहजता पैदा होती है) या हार्ट अटैक मान बैठते हैं.

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हार्टबर्न व हार्ट अटैक में अंतर

हार्टबर्न एक सामान्य परेशानी है जिस में एसिड आप के पेट से ऊपर निकल कर भोजन नली में पहुंच जाता है और सीने में दर्द का कारण बनता है. ऐसी स्थिति में कई बार सांस लेने में तकलीफ भी होती है. यह अपेक्षाकृत मामूली स्थिति होती है जिसे एंटीएसिड दवाओं से संभाला जा सकता है या खानपान की आदत ठीक करने से इस से बचा जा सकता है  दूसरी तरफ, हार्ट अटैक जान के लिए खतरा बन सकता है. हृदय से जुड़ी रक्त धमनी जब संकरी या अवरुद्ध हो जाती है तो वहां से हृदय तक रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है और यही हार्ट अटैक का कारण बनता है. इस का मतलब है कि इस औक्सीजनयुक्त रक्त की जरूरी आपूर्ति बाधित हो जाती है और यदि समय पर इस का इलाज नहीं कराया गया तो यह जान के लिए खतरा भी बन सकता है.खतरा मोल न लें

हार्ट अटैक से पीडि़त बहुत सारे लोग इसे हार्टबर्न समझने की गलती कर बैठते हैं और आखिरकार वे मौत का शिकार हो जाते हैं क्योंकि वे सही समय पर इलाज नहीं करवाते हैं. बहुत से लोग सीने में दर्द को पेट में गैस की वजह समझ लेते हैं. पहले के हार्ट अटैक के लक्षणों का उन्हें तभी पता चलता है जब वे बड़े अटैक की चपेट में आते हैं. तब तक कीमती समय जाया हो चुका होता है. अगर वे पहले ही जांच करवा लेते तो बीमारी पर बेहतर नियंत्रण किया जा सकता था. आमतौर पर हम मरीजों को बताते हैं कि यदि थोड़े समय बाद या कुछेक डकारों के बाद स्थिति सुधर जाती है तो उन्हें सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि सीने का यह दर्द पेट में गैस के कारण ही था. हालांकि यदि सीने में असहजता बनी रहती है तो इलाज के लिए आप को समय गंवाए बगैर तत्काल किसी अस्पताल में भरती हो जाना चाहिए.

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लक्षणों की अनदेखी न करें

यदि किसी व्यक्ति को एपिगैस्ट्रिक या सीने में नीचे की तरफ इस तरह के लक्षण उभरते हैं तथा इसी तरह के लक्षण कई महीनों या सालों से उभर रहे हैं तो आमतौर पर इसे पेट या ऐसोफेगस की समस्या समझी जाती है. लेकिन यदि हाल के दिनों में ऐसी समस्या हुई है या लक्षणों की प्रकृति में किसी तरह का बदलाव आया है या टहलने, सीढि़यां चढ़ने जैसे श्रम में भी ऐसी दिक्कत उभरी है और आराम करने पर अच्छा महसूस होता है तो संभव है कि यह हृदय संबंधी समस्या हो सकती है तथा मरीज को तत्काल किसी डाक्टर से संपर्क कर ईसीजी जांच करा लेनी चाहिए. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह ध्यान रखनी चाहिए कि इस तरह की तथाकथित एसिडिटी या गैस संबंधी समस्या एंटीएसिड दवा लेने के 20 मिनट बाद भी बनी रहती है तो यह भी बहुत हद तक हार्ट अटैक का लक्षण हो सकता है और मरीज को ईसीजी कराने के लिए तत्काल किसी नजदीकी अस्पताल में जाना चाहिए. सामान्य एसिडिटी या गैस की समस्या ज्यादातर अधिक भोजन करने या व्यायाम की कमी के कारण होती है. नियमित व्यायाम करने वाले हार्ट अटैक से बच सकते हैं.

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यदि सीने का दर्द बहुत कष्टदायी नहीं है लेकिन आप को आशंका है कि यह गंभीर हो सकता है तो इन लक्षणों के शांत पड़ने का इंतजार नहीं करें. एक के ऊपर दूसरा लक्षण उभरते रहने के कारण लोग अमूमन इन दोनों समस्याओं के बीच भ्रमित हो जाते हैं.  लिहाजा, डाक्टर को तुरंत दिखाएं. ऐसे लक्षणों को मामूली मान कर अनदेखी न करें ताकि बाद में पछताना न पड़े.    

– डा. टी एस क्ले
(लेखक फोर्टिस एस्कोर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट ऐंड रिसर्च सैंटर, नई दिल्ली में कार्यकारी निदेशक हैं)

नर्सरी का मौडर्न तरीका प्लास्टिक ट्रे

कहा जाता है कि सब्जियों की खेती से किसानों को भरपूर आमदनी होती है,सालभर नकदी बनी रहती है. मगर सब्जियों की नर्सरी उगाना हर जगह मुमकिन नहीं है. बाढ़ या दियारा इलाके में यह काम बहुत मुश्किल है, वहीं दूसरी ओर छोटे किसानों के पास गुजारे लायक जमीन नहीं होती है कि नर्सरी उगा सकें.

सब्जियों से भरपूर आमदनी के लिए खेती अगेती करनी चाहिए, जिस के लिए नर्सरी भी अगेती हो व तापक्रम माकूल हो. प्लास्टिक ट्रे में नर्सरी को उगा कर उसे अनुकूलता प्रक्रम में आसानी से रखा जा सकता है, जबकि खुले खेत में यह काम बहुत मुश्किल है.

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प्लास्टिक ट्रे में सब्जियों की नर्सरी से ढेरों फायदे हैं, मसलन नर्सरी जल्दी और बेमौसम तैयार हो जाती है. बीज की जरूरत तकरीबन आधी होती है. रोग और कीट तकरीबन न के बराबर रहते हैं. नर्सरी को एक जगह से दूसरी जगह आसानी से भेज सकते हैं.

मतलब यह है कि नर्सरी के कारोबार को शानदार और दमदार बनाया जा सकता है. ऐसे में समय की मांग है कि अब प्लास्टिक ट्रे में नर्सरी लगाई जाए.

नर्सरी की इस विधि को भूमिरहित या प्लग ट्रे कहते हैं. प्लग ट्रे प्लास्टिक से बनी हुई ढेरनुमा आकार की होती है, जिस में प्लग (गहरे सैल) बने होते हैं.

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बाजार में प्लास्टिक की अनेक गहरे खानेदार (प्लग) वाली ट्रे मिलती हैं. एक प्लग (खाने) में एक पौध उगाई जाती है. हमेशा शंकु आकार वाली ट्रे को खरीदना चाहिए, क्योंकि शंकु आकार वाली टे्र में पौधों की जड़ें बहुत आसानी से और गहराई से विकसित हो जाती हैं.

कैसे उगाएं नर्सरी

सभी पौध रोग और कीट मुक्त हों, इस के लिए सब से पहले प्लास्टिक ट्रे को उपचारित कर देना चाहिए.

ट्रे को 0.1 फीसदी क्लोरीन ब्लीच के घोल पर 0.1 फीसदी सोडियम हाइपोक्लोराइड के घोल में

कुछ देर डुबो कर निकाल लेना चाहिए.

इस के बाद प्रति प्लग 3 भाग को कोपिट, एक भाग वर्मी क्यूलाइट, एक भाग पर लाइट के मिश्रण से भर देना चाहिए.

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इस के बाद ट्रे को पौलीहाउस, एग्रोनैट या छोटे किसान लोटनेल पौलीहाउस में रख दें. इस के बाद हर प्लग में

1 सैंटीमीटर की गहराई पर बीज को दबा कर हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

   खाद, पानी व उर्वरक

1.ट्रे में कार्बनिक खादों का भरपूर इस्तेमाल करते हुए घुलनशील उर्वरकों का इस्तेमाल करना बेहतर  होता है.

2.कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए हफ्ते में एक बार घोल बना कर छिड़काव करना उचित रहता है.

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3.पौधों की बेहतर बढ़वार के लिए अंकुरण के एक हफ्ते बाद सिंचाई के साथ बाजार में मुहैया

4. एनपीके के ग्रेड जैसे 20:20:20, 19:19:19 और 15:15:15 दे सकते हैं.

5.ध्यान देने वाली बात यह है कि सिंचाई की सूक्ष्म विधि जैसे ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाईयदि अपनाई गई, हो तो विभिन्न एनपीके ग्रेड वाले उर्वरकों का70-80 पीपीएम की मात्रा होनी चाहिए.

6.प्लग ट्रे में सिंचाई हमेशा शाम को फुहार के रूप में करनी चाहिए.

7.शाम को सिंचाई करने से पौध गलन की समस्या कम आती है.

  फायदे ही फायदे

* पौध सड़न, जड़ गलन जैसी बीमारियों का डर कम हो जाता है.

* एक प्लग में एक पौधे का बेहतर ढंग से जमाव होने के चलते

पौधों को समुचित पोषक तत्त्व और पानी मिलता है.

* खरपतवार नहीं उग पाते हैं.

* बेमौसम और जल्दी से पौधे तैयार हो जाते हैं,

जिस से बाजार में सब्जियों की अगली आवक से कीमतें ज्यादा मिलती हैं

और आमदनी में बढ़ोतरी होती है.

* 95-100 फीसदी पौधे जीवित और सेहतमंद होते हैं.

* पौध सामग्री को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में आसानी रहती है.

* सालभर में 5-6 बार नर्सरी तैयार की जा सकती है.

अनोखा रिश्ता: भाग 2

पराग एक रोबोट की तरह अपना काम निबटा कर दफ्तर जाया करता था और दफ्तर से लौट कर घर आने पर एक अंधेरे कोने में बैठ जाया करता था. शायद शीतल की याद के साथ रहना चाहता था. नवजात शिशु के रोने पर यंत्रचालित मशीन की तरह चल कर आता, उसे चुप करा कर फिर अंधेरे में बैठ जाता. यही उस की दिनचर्या थी. दोनों वृद्ध माताएं बच्ची की परवरिश में लगी रहती थीं. 2 दिन वहां रुक कर हम वापस मुंबई लौट आए. मैं ने और सुरेश ने सब को आश्वासन दिया कि जब भी हमारी जरूरत पड़े, हमें खबर कर दें. पराग ने शिशु की देखभाल के लिए एक दाई रख ली. मौसीजी कब तक पराग के घर में पड़ी रहतीं. आखिर उन का अपना कहलाने वाला इस दुनिया में कोई और था भी तो नहीं.

मैं ने आग्रह कर के मौसीजी को अपने पास बुला लिया. मौसीजी दिन भर शीतल की ही बातें किया करती थी. मैं भी उन्हें बातें करने को प्रोत्साहित किया करती थी. इस तरह खुल कर बातें करने से उन का दुख कुछ तो कम हो रहा था. 2 महीने मेरे पास रहने के बाद मौसीजी ने वापस लौटने की इच्छा जाहिर की. वे कुछ हद तक सामान्य भी हो गई थीं. मैं भी अब उन पर रुकने के लिए दबाव नहीं डालना चाहती थी. मैं ने उन से कहा, ‘‘जब भी मन हो, बेझिझक मेरे पास आ जाइएगा.’’शीतल को गुजरे करीब 3 महीने हुए थे कि मां ने मुझे खबर दी कि मौसीजी ने बताया है कि पराग शादी कर रहा है. मौसीजी जैसे सांसारिक बंधनों से, मोहमाया से अपनेआप को मुक्त कर चुकी थीं. उन्हें अब कोई खबर विचलित नहीं कर सकती थी. पर खबर सुन कर मैं अवाक रह गई. पराग तो शीतल के गुजरने के बाद इस कदर टूट गया था कि मुझे डर लग रहा था कि कहीं उस का नर्वस बे्रकडाउन न हो जाए. मेरा दिल इस बात पर विश्वास करने से इनकार कर रहा था. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कोई इतनी जल्दी कैसे बदल सकता है. मैं सुरेश के दफ्तर से लौटने का इंतजार करने लगी. सुरेश ने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उन्हें देखते ही मैं फट पड़ी, ‘‘सुरेश, जानते हो, पराग शादी कर रहा है. अभी मुश्किल से 3 महीने बीते होंगे शीतल को गुजरे और वह शादी के लिए तैयार हो गया. ये सारे मर्द एक जैसे होते हैं. एक नहीं तो दूसरी मिल जाएगी.’’

सुरेश भी खबर सुन कर अचरज में पड़ गए. फिर तुरंत ही संभल कर उन्होंने कहा, ‘‘उमा, ऐसा नहीं कहते. शीतल अगर नहीं रही तो इस में पराग का क्या दोष? वह कितने दिन उस के शोक में बैठा रहेगा? बच्ची को संभालने वाला भी तो कोई चाहिए न? उस की बूढ़ी मां कब तक उसे संभालेगी?’’

सुरेश की बातों ने मुझे सांत्वना देने के बजाय आग में घी का काम किया. मैं चीखने लगी, ‘‘हांहां, आप भी तो मर्द हो, पराग का पक्ष तो लोगे ही. कल अगर मुझे कुछ हो जाए तो आप भी दूसरी शादी करने से बाज नहीं आओगे. बच्ची का बहाना मत बनाओ. बच्ची की आड़ में अपनी इच्छा पूरी की जा रही है. यही काम यदि कोई औरत करे तो समाज उस पर शब्दों के बाण चलाने से नहीं चूकेगा,’’ मैं आक्रोश में आ कर पराग और सुरेश ही नहीं, बल्कि पूरी पुरुष जाति को कोसने लगी. सुरेश ने मेरे भड़कने पर भी अपना आपा नहीं खोया. शांत स्वर में मुझे समझाने लगे, ‘‘उमा, तुम अभी गुस्से में हो. गुस्से में जब लोग अपना संयम खो बैठते हैं तो सहीगलत का निर्णय नहीं ले पाते. इस तरह दूसरों पर इलजाम लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता.’’

2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘‘दीदी, मैं शादी कर रहा हूं. बहुत ही सादे ढंग से मंदिर में हो रही है शादी. बाकी मिलने पर बताऊंगा.’’ मैं ने इस संक्षिप्त से मेल पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

एक दिन दोपहर का वक्त था. बच्चे स्कूल गए थे. काम निबटा कर मैं थोड़ा आराम कर रही थी. शीतल के बारे में ही सोच रही थी कि मुझे उस टेप की याद आई जिस में बच्चों की आवाज के साथसाथ शीतल की आवाज भी टेप थी. टेप चला का सुनने लगी कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा सामने पराग खड़ा था. अभी तक पराग से मेरी नाराजगी दूर नहीं हुई थी फिर भी औपचारिकतावश मैं ने पराग को अंदर बुलाया. टेप में शीतल की आवाज सुन कर चौंक गया पराग. वह कुछ कहना चाहता था, पर इतना भावुक हो गया कि उस की आवाज भर्रा गई. अचानक अपनी भावना पर काबू न पा सकने के कारण फूटफूट कर रोने लगा. मैं ने उसे पीने को पानी दिया. वह कुछ देर यों ही बैठा रहा. फिर उस ने मुझ से फिर शुरू से टेप चलाने को कहा.

थोड़ा संयत होने पर मैं ने उसे खाना खाने को कहा. उस ने जवाब में कहा, ‘‘दीदी, मुझे भूख नहीं है. आप बस थोड़ी देर मेरे पास बैठिए. मैं औफिस के काम से मुंबई आया हूं. आप से अकेले में बातें करना चाहता था, इसलिए आप के पास चला आया.’’

मैं ने उसे शादी की मुबारकबाद दी तो कुछ देर चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप सोच रही होंगी कि मैं ने इतनी जल्दी शादी कैसे कर ली? क्या करता दीदी, मैं मजबूर हो गया था. मां दमे की मरीज हैं कब तक श्रेया की देखभाल करतीं. मां की सहायता के लिए मैं ने 2 दाइयां रखीं. पहली आई बच्ची के मुंह में दूध का बोतल दे कर ऊंघती रहती थी. दूध किनारे से बह जाता था. दूसरी रखी तो घर से चीजें गायब होने लगीं. मामाजी आए थे, उन के समझाने पर मैं ने शादी के लिए हां कह दिया. मामाजी ने अखबारों में इश्तहार दे दिया. कई परिवारों की ओर से जवाब आया. मैं ने किसी भी लड़की की तसवीर की ओर नजर तक नहीं डाली. बस आए हुए पत्रों को पढ़ता रहा. तभी एक पत्र ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. यह पत्र गरिमा के पिता ने लिखा था. शादी के 1 साल बाद ही गरिमा के पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. पत्र पढ़ने के बाद मैं ने उन से संपर्क किया. मैं जब गरिमा से मिला तो मैं ने देखा कि गरिमा का बाह्यरूप अत्यंत साधारण था. पति की मृत्यु के बाद वह छोटीमोटी नौकरी करती हुई उद्देश्यहीन जीवन जी रही थी. गरिमा ने मुझे एक और बात बताई कि जब वह काफी छोटी थी, उस की मां नहीं रही थीं और विमाता ने ही उसे पाला था.

‘‘उस वक्त मुझे यही लगा कि जिस लड़की ने इस छोटी सी जिंदगी में इतने सारे उतारचढ़ाव देखे हों, वह मेरी श्रेया की देखभाल अवश्य अच्छी तरह करेगी. दूसरी बात जो उस वक्त मेरे जेहन में आई, वह यह थी कि गरिमा से शादी कर के मैं न सिर्फ श्रेया के लिए एक अच्छी मां ले कर आऊंगा, बल्कि एक अबला को भी नवजीवन दूंगा.’’ पराग के मुंह से उस के विचार जानने के बाद और यह जानने के बाद कि उस ने बाह्य रूप को ताक पर रख कर एक योग्य लड़की का चुनाव किया था, मुझे लज्जा आने लगी अपनेआप पर कि मैं ने पराग को कितना गलत समझा था. अकसर हम बिना पूरी जानकारी के लोगों के बारे में कितनी गलत राय बना लेते हैं.

श्रेया साल भर की हो गई थी. पराग ने उस के जन्मदिन की तसवीर भेजी थी. गुलाबी रंग की फ्रौक में परी लग रही थी श्रेया. श्रेया का जन्मदिन और शीतल की बरसी की तारीख एक ही थी. सुबह श्रेया को जन्म दे कर, उसी रात को नहीं रही थी शीतल. पराग ने लिखा था कि शीतल की खुशियों के लिए उस ने पूरे धूमधाम से श्रेया का जन्मदिन मनाया था, क्योंकि वह श्रेया की खुशियों के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता था.

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