पहले अर्थव्यवस्था से भरपूर खिलवाड़, फिर हिंदूमुस्लिम आग लगा कर समाज को तारतार करना, फिर कोविड-19 का कहर और अब चीन से युद्ध की तैयारी देश पर बहुत भारी पड़ने वाली है. 1962 के बाद जब गरीब भारत को सैनिक तैयारी में बहुत पैसा झोंकना पड़ा था तब भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी और देश पर भारी कर लगाए गए थे. आज वे ही दोहराए जा रहे हैं.

पैट्रोल और डीजल के दामों में लगातार वृद्धि इसी कड़ी का पहला कदम समझें. जो पैट्रोल (42 डौलर प्रति बैरल की दर पर जब कच्चा तेल हो) 26 रुपए प्रति लिटर होता है, अंतिम ग्राहक तक पहुंचतेपहुंचते वह 80 रुपए प्रति लिटर हो जाता है, क्योंकि आजकल सरकार की असली आय यही है. जीएसटी और प्रत्यक्ष
करों से इस साल सरकार को बहुत कम पैसा मिलेगा. उत्पादन ही नहीं हुआ, तो कैसा जीएसटी, कैसा आय कर?

पैट्रोल पर बढ़ता कर इसलिए जरूरी है कि  इसे राज्य सरकारों में बांटना नहीं पड़ता. जीएसटी में वृद्धि की जाए, तो महंगाईर् बढ़ेगी. और फिर जनता हायहाय करेगी. पर राज्य सरकारों को अपना हिस्सा केंद्र सरकार को देना होगा.

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केंद्र सरकार का अपना खर्च अब बढ़ रहा है, घट नहीं रहा. केंद्र सरकार ने निर्माण कार्य बंद कर दिए हैं, सड़कें, रेलें, हवाई जहाज, हवाई अड्डे नहीं बनेंगे. स्वास्थ्य सेवाओं पर भी केंद्र सरकार ने कोरोना के बावजूद खर्चा नहीं बढ़ाया है. उस ने सारा दायित्व राज्य सरकारों पर डाल दिया है.

चीन से युद्ध तो नहीं होगा, पर तैयारी वैसी ही करनी होगी मानो युद्ध हो रहा है. सेना की टुकडि़यां  इधर से उधर जाएंगी. हवाईर् जहाज उड़ेंगे, टैंक डीजल खाएंगे और प्रैक्टिस करेंगे. सड़कें बनेंगी. लगातार प्रशिक्षण
होगा. इन सब पर उतना ही खर्च होता है जो वास्तविक युद्ध पर होता है. टैंक युद्ध में चलें या प्रशिक्षण में, वे खराब होंगे ही, दुर्घटना में अंजरपंजर ढीले होंगे ही. सिवा जान की हानि के युद्ध की तैयारी पर लगभग
उतना ही खर्र्च होगा जितना युद्ध करने में होता है.

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