बिहार के हाजीपुर के रहने वाले अजीत पासवान परचून की दुकान चलाते हैं. उन के घर के सामने की सङक टूटीफूटी है, घर में बिजली तो है पर सामने बिजली के तार ऐसे उलझे पङे हैं जैसे किसी बङी मकड़ी ने जाल बुन दिया हो.
बारिश के दिनों तो उन के घर के सामने की सङक की हालत और भी खराब हो जाती है. सङक के गड्ढों में पानी भर जाता है और साथ में किचङ में फंस कर कभी राह चलते लोग तो कभी मोटरसाइकिल वाले आएदिन गिरतेपङते रहते हैं.
बावजूद वे अपने इलाके में हुए कामकाज से संतुष्ट हैं और कहते हैं,”देखिए, हमारे इलाके में पासवानजी ने सब ठीक कर दिया है. घर में बिजली रहती है और पानी भी आ गया है. पासवानजी की कृपा से हम को बहुत कुछ मिला है.”
भाई वीरेंद्र सिंह, विधायक व मुख्य प्रवक्ता, राजद
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अजीत कहते हैं कि रामविलास पासवान हमारी ही जाति से हैं और दुसाध समुदाय से हैं.
बिहार में दुसाध रामविलास पासवान का भरोसेमंद वोट बैंक है जिस की भूमिका बिहार की कुछ सीटों पर निर्णायक असर डालती है.
मगर पटना से लगभग 7 किलोमीटर दूर, गया जाने वाली सङक के नजदीक खपरैलचक की रहने वाली प्रतिमा पासवान क्षेत्र के विधायक के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं.
यहां परसा बाजार से खपरैलचक जाने के लिए एक सङक है. सङक भी ऐसा जो सिर्फ नक्शे में दिखता है पर इस सङक पर चलना किसी चुनौती से कम नहीं है.
रमेश शर्मा, नेता व प्रवक्ता, बिहार कांग्रेस
प्रतिमा कहती हैं,”हम ने कई मौकों पर क्षेत्र के विधायक श्याम रजक से सङक बनवाने के लिए कहा पर उन्होंने कभी न कहा नहीं और हां किया नहीं. परसा बाजार से खपरैलचक जाने के लिए यह मुख्य सङक है पर लोग इस सङक पर निकलने से पहले एक बार सोचते जरूर हैं.”
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वैसे यह इलाका फुलवारी विधानसभा में आता है, जहां के विधायक श्याम रजक बिहार सरकार में मंत्री रहे हैं मगर हाल ही में उन्होंने पार्टी बदल ली और राजद में शामिल हो गए.
श्याम रजक धोबी समुदाय से आते हैं और खपरैलचक में अधिकतर पिछङी जातियों के लोग ही रहते हैं, बावजूद यहां न तो कोई विकास हुआ और न ही कभी कोई शिलान्यास.
प्रतिमा बिहार दलित महिला विकास मंच की सदस्या भी हैं. वे कहती हैं,”बिहार चुनाव में विकास मुद्दा कहां रहता है? आज भी लोग जातिगत आधार पर वोट करते हैं और यह बात बिहार के नेता अच्छी तरह समझते हैं. यहां विकास के काम भी इसी आधार पर तय किए जाते हैं.”
सीमा पुर्बे, उपाध्यक्ष, महिला मोर्चा, जदयू
थकहार कर प्रतिमा ने लोगों के साथ मिल कल इस सङक को बनवाने का बीङा उठाया और आपस में चंदा दे कर सङक के गड्ढों को भरवाया ताकि कम से कम लोग चलतेफिरते किसी दुर्घटना के शिकार न हो जाएं.
विकास, रोजगार, भ्रस्टाचार जैसे मुद्दों के अलावे बिहार में जाति एक ऐसा मुद्दा है जो हर चुनाव में यहां हावी रहता है. यहां की जातिगत समीकरण को समझना उतना ही जटिल है जितना क्रिकेट के नियमों का.
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पुर्णिया के एक स्थानीय व्यापारी कौशिक कुमार कहते हैं,”बिहार में जातिगत समीकरण विकास पर भारी पङता है और इन परतों को जितना खोदिएगा वह उतना ही जटिल होता जाएगा.
“यहां इसी साल चुनाव है मगर वोटिंग के दिन कौन कैसे मतदान करेगा यह भी बहुत अहम है.”
विकास के साथ जाति को साधना
बिहार में जातिगत आधार पर किस तरह वोट पङते हैं इस को समझने के लिए पहले यह गणित समझना भी जरूरी होगा.
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल को यादवों की पार्टी कहा जाता है और इस का समर्थन मुसलमान भी करते हैं, वहीं सत्तारूढ़ दल जनता दल यूनाइटेड को कुर्मीकोइरी जाति की पार्टी कहा जाता है.
रेखा भारतीय, बिहार भाजपा प्रदेश कार्यकारणी सदस्य
इस की आबादी बिहार में लगभग 9% है वहीं दलितों की अधिसंख्या आबादी पर रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की पकङ है.
कह सकते हैं कि बिहार में विकास के साथसाथ जाति को साधना भी राजनीतिक महत्त्व रखता है. राजनीतिक दल भी तकरीबन यही मानते हैं.
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शायद तभी हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बेटे, पूर्व उपमुख्यमंत्री और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि साल 2020 में आरजेडी की सरकार बनाने के लिए सब को अपने आचरण और व्यवहार में बदलाव लाना होगा.
उन का यह बयान तब आया है जब बिहार में विधानसभा चुनाव को ले कर चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि चुनाव समय पर होंगे.
तेजस्वी ने कार्यकर्ताओं से यह भी कहा कि आप सभी को राम बनना होगा और न सिर्फ सबरी के बेर खाने होंगे, कृष्ण की तरह सुदामा के चरण भी धोने होंगे.
तेजस्वी के इस बयान पर जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने चुटकी लेते हुए कहा,”सबरी के बेर उन के पिता लालू यादव भी खाने का दावा करते थे, जिस का गरीबगुरबा की राजनीति से कोई वास्ता नहीं रहा. गरीब सवर्ण के 10% आरक्षण का विरोध करने वाली आरजेडी अकेली पार्टी थी और जनता अब भी ‘भूरा बाल साफ़ करो’ का नारा भूली नहीं है.”
प्रतिमा पासवान, सदस्य, बिहार दलित महिला विकास मंच
भूरा बाल साफ करो का नारा
कभी ‘भूरा बाल साफ़ करो’ की बात तेजस्वी के पिता लालू यादव ने ही कही थी और यह वही नारा था जिस के बलबूते लालू प्रसाद यादव ने लगातार 15 वर्षों तक बिहार की सत्ता पर एकतरफा राज किया था.
बिहार की राजनीति में जातिवाद का जहर किस कदर हावी है, यह बतलाने से पहले साल 1990 का दशक का वह दौर याद करना जरूरी होगा जब मंडल कमीशन लागू करने की मांग की जा रही थी और इसी दौरान लालू प्रसाद यादव ने अगड़ी जातियों के विरुद्ध भूरा बाल यानी भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला को साफ करो का नारा दिया था.
लेकिन यह भी सही है कि बिहार जैसे राज्य में चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो या कोई अन्य क्षेत्र, अगङी जातियों ने कभी भी पिछङी जातियों को आगे बढ़ने देना पसंद नहीं किया.
दलितों के खिलाफ हिंसा
आज भी बिहार में मैला ढोने की कुप्रथा है और बिहार में दलितों के खिलाफ हिंसा का लंबा इतिहास रहा है.
अभी पिछले साल 24 नवंबर की रात भागलपुर जिले के बिहपुर के झंडापुर गांव में एक दलित परिवार के 3 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. हत्या के बाद उन की आंखें निकाल दी गई थीं और धारदार हथियार से गला रेत दिया गया था.
बिहपुर के झंडापुर गांव में मिलीजुली आबादी है. यहां कई दलित परिवार मछली के कारोबार से जुड़े हैं.
कनिक राम ने जलकर को ठेके पर लिया था. जलकर पर उस समय इलाके की ऊंची जातियों का कब्जा था. इस हत्या के पीछे जलकर विवाद और दलितों का समाज में आगे बढ़ना भी एक वजह बताया गया था.
जिस बच्ची के साथ बलात्कार हुआ, वह 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. चौधरी टोला में स्थित सरकारी स्कूल में वह पढ़ने जाती थी, जहां उस के साथ कुछ दबंगों ने छेड़खानी की, जिस का उस ने विरोध किया था.
वैशाली के दलित आवासीय विद्यालय में एक लड़की की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, भागलपुर में दलित महिलाओं पर हमला और रोहतास जिले के काराकाट थाना क्षेत्र के मोहनपुर गांव में 15 साल के एक दलित लड़के को दबंगों द्वारा जिंदा जला दिए जाने समेत कई बड़े मामले बिहार में जातपात की दीवारें खड़ी करते नजर आती हैं.
बिहार में कभी एक स्कूल में दलित बच्चे अलग और अगङी जातियों के बच्चों को अलग बैठा कर खाना दिया जा रहा था. तब पूरे देश में इस पर खूब होहल्ला मचा था.
एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक आबादी के हिसाब से दलित हिंसा की दर सब से ज्यादा 42.6% बिहार में है जबकि मध्य प्रदेश दूसरा और राजस्थान तीसरे स्थान पर है.
हां, यह बात भी सही है कि देशभर में दलितों पर हुई हिंसा और रोहित वेमुला या ऊना में गाय को ले कर दलितों की पिटाई जैसी घटनाओं को बिहार के दलित आज भी भूले नहीं हैं.
विकास का सब्जबाग, नहीं हुआ विकास
आरजेडी के एक समर्थक आदित्य बताते हैं,”एक समय लालू प्रसाद यादव ने दबंग जातियों से हमें राहत दिलाई थी और हम इसे कभी भूलेंगे नहीं. बिहार के कमजोर तबके के लोग आज के माहौल में बीजेपीजदयू गठबंधन को वोट देगा, यह संभव नहीं है. यह वोट तो हमें ही मिलना है.”
राजद के विधायक व मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र सिंह कहते हैं,”देखिए, पिछले 15 सालों में नीतीश कुमार ने बिहार का भला नहीं किया. उन के राज में किसी भी जाति का भला नहीं हुआ है. उन्होंने जनता को विकास का सब्जबाग दिखाया था लेकिन खुद ही जातपात की राजनीति कर रहे हैं.
“बिहार में इस बार राष्ट्रीय जनता दल पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी.”
जातिवाद नहीं विकास पर वोट
दूसरी तरफ बिहार जदयू महिला मोरचा की उपाध्यक्ष सीमा पुर्बे का मानना है कि बिहार में इस बार विकास के मुद्दे पर वोट पङेंगे.
सीमा बताती हैं,”बिहार में सड़क, बिजली और पानी को ले कर काफी काम किए गए हैं. इन सब पर बहुत ही अच्छे तरीके से काम हुआ है और थोड़ाबहुत जो भी बाकी है उसे भी पूरा किया जाएगा. बिहार में उद्योगधंधे स्थापित किए जाएंगे. कानून का राज बिहार में स्थापित हो चुका है इसलिए अब नए सिरे से कलकारखाने खोले जाने पर काम होगा.
“रही बात जातिवाद की तो जदयू ने कभी भी जातिवाद को बढ़ावा नहीं दिया, बल्कि समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के बारे में पार्टी सोचती है और हर जाति हर धर्म के लोगों को साथ ले कर चलने में विश्वास रखती है.”
बिहार प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यकारणी सदस्या, रेखा भारतीय कहती हैं,”यह सही है कि बिहार में जातिगत आधार पर वोट पङते रहे हैं मगर इधर कुछ सालों से बिहार की जनता विकास पर वोट कर रही है और भाजपाजदयू गठबंधन की सरकार ने समाज के हर तबके का खयाल रखा है.
“बिहार में एक समय महिलाएं घर से बाहर निकलने तक में डरती थीं, अब ऐसा नहीं है. सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को हमेशा तवज्जो दी है.”
अमीरीगरीबी के बीच की खाई
मगर बिहार ऐसा प्रदेश है जहां की महिलाएं हमेशा हाशिए पर खङी रही हैं खासकर पिछङी तबके की महिलाएं. इस ने अमीरीगरीबी के बीच एक दीवार जरूर खङी कर दी है. नेताओं को यह पता है कि चोट खाई जनता वोट विकास से ज्यादा जाति के नाम पर दे सकते हैं और तभी लगभग हर पार्टी में जातिगत आधार पर नेताओं को टिकट भी दिए जाते हैं.
बिहार प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता व नेता रमेश शर्मा कहते हैं,”बिहार में जातिवाद का जहर बांटने वाली भाजपा है और नीतीश कुमार उस के पिछलग्गू. यहां कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिस ने जातिधर्म के नाम पर कभी वोट नहीं मांगी.
“देश को हिंदुमुसलिम में बांटने वाली भाजपा रही है और यह पार्टी कभी मंदिर के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर वोट मांगती है.
“भाजपा ने कभी गरीबों का हित नहीं किया. नोटबंदी में इस ने गरीबों के घरों के रूपए छिन लिए, जीएसटी में अफसरशाही चरम पर है और तो और कोरोनाकाल में भी भाजपा सरकार पूरी तरह फेल ही साबित हुई है. करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और करोड़ों के सामने भुखमरी तक की नौबत आ गई.
“भाजपा केवल सत्ता पाने की लालची पार्टी है और इस बार बिहार की जनता भाजपाजदयू गठबंधन को सबक सिखाने के मूड में है.”
मगर जिस राज्य के सामाजिक संरचना में दलित आज भी हाशिए पर खङे हैं,जहां नक्सलवाद आंदोलन की जड़ें गहरी रही हैं, जहां दलितों के खेतखलिहान जलते रहे हैं, वहां जाति के नाम पर वोट नहीं डाले जाएंगे इस में संशय ही है.
दूसरी तरफ यह भी सच है कि बिहार ने कई हिंसक जातीय दंगे देखे हैं. दलितों और गरीब महिलाओं का नरसंहार किया गया है. गर्भवती महिलाओं के गर्भ पर हमला किया गया है और औरतों के स्तन तक काट डाले गए हैं.
इस तरह की हिंसा ने बिहारी समाज को कई खानों में बांट दिया है और इस का असर राजनीति और वोट डालने में भी देखा जा सकता है.