ओटीटी प्लेटफौर्म की लगातार बढ़ती लोकप्रियता ने पहले ही बौलीवुड के स्क्रीन प्रदर्शन को चुनौती देनी शुरू कर दी थी और कोरोना वायरस के चलते जहां बौलीवुड ठप पड़ने लगा वहीं ओटीटी ने रफ्तार पकड़ ली. क्या बौलीवुड ओटीटी प्लेटफौर्म्स की मार से बच पाएगा?

सिनेमा मनोरंजन का अहम साधन है. विज्ञान व तकनीक के विकास के साथसाथ सिनेमा भी विकसित होता रहा है. तो वहीं समय के साथ सिनेमा को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कई बार तरहतरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा और हर चुनौती में सिनेमा सदैव निखर कर आता रहा है. यह कटु सत्य है कि कोरोना वायरस  व लौकडाउन के चलते कुछ फिल्मों के ओटीटी अर्थात ‘ओवर द टौप मीडिया सर्विसेस’ प्लेटफौर्म्स पर सीधे प्रसारित होने की वजह से चर्चा गरम है कि ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने बौलीवुड अर्थात सिनेमा पर हमला कर दिया है. मगर यह दौर अस्थायी है.

यदि ओटीटी प्लेटफौर्म्स के कर्ताधर्ताओं ने अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं किया, तो ओटीटी प्लेटफौर्म्स के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट गहरा जाएगा. कोरोना वायरस व लौकडाउन के

चलते 17 मार्च से फिल्म, टीवी सीरियल्स और वैब सीरीज की शूटिंग्स बंद हो गईं. परिणामस्वरूप, इन  ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने फिल्मकारों  की व्यावसायिक सोच पर हमला करते हुए प्रदर्शन के लिए तैयार फिल्में खरीदनी शुरू कर दीं. इधर कई फिल्में मार्च, अप्रैल व मई माह में प्रदर्शन के लिए तैयार थीं. फिल्मों के निर्माताओं के सामने भी समस्याएं थीं क्योंकि हर फिल्म के निर्माण में कई सौ करोड़ रुपए लगे होते हैं. इसी के चलते कुछ निर्माताओं ने अपनी फिल्में ओटीटी  प्लेटफौर्म को बेच दीं. मगर ओटीटी प्लेटफौर्म ने अवसर का बेहतर फायदा उठाते हुए कुछ बड़ी फिल्मों के साथसाथ छोटी फिल्मों और उन फिल्मों को भी हासिल कर लिया, जो शायद कमतर गुणवत्ता के चलते सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पा रही थीं.

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इस समय एंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में केवल ओटीटी प्लेटफौर्म्स ही ऐसे हैं जो फायदे में हैं. बहुचर्चित शोज और फिल्मों को लोग लौकडाउन के चलते बिंजवौच कर रहे हैं, जिन के जरिए इन प्लेटफौर्म्स की व्यूअरशिप बढ़ी है. भारत में इस समय 40 ओटीटी प्लेटफौर्म्स हैं जिन का मार्केट साल 2018 में कुल 2,150 करोड़ रुपए का था. वहीं, साल 2019 में इस इंडस्ट्री ने 17,300 करोड़ की कमाई की थी. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि साल 2020 में इन प्लेटफौर्म्स की कमाई के कितने रिकौर्ड टूटेंगे. ओटीटी का किंग कहे जाने वाले नैटफ्लिक्स ने न केवल यूएस बल्कि भारत में भी मजबूती से पैर जमा लिए हैं.

‘नैटफ्लिक्स एंड चिल’ का मजा जहां केवल कुछ लोग ही उठा रहे थे वहीं जरूरत से ज्यादा मिले खाली समय ने लोगों को बेवक्त फिल्में और शोज देखने की आदत डलवा दी है. नतीजतन, नैटफ्लिक्स की कमाई पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है और वैश्विक स्तर पर इस का सब्सक्रिप्शन 25 फीसदी बढ़ा है. लेकिन, यह सफलता की सीढि़यां केवल नैटफ्लिक्स ही नहीं चढ़ा है बल्कि अमेजोन प्राइम भी इस में शामिल है. अपनी ग्लोबल पौलिसी के चलते प्राइम ने आंकड़े नहीं बताए हैं लेकिन तेजी से बढ़ रहे प्रचारप्रसार और हालिया शो ‘पाताललोक’ सफलता की कहानी कह रहा है. इस प्लेटफौर्म पर कुछ और ओरिजिनल सीरीज की एडिटिंग का काम चल रहा है जो जल्द ही प्रसारित होंगी.

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लौकडाउन के दौरान हिंदीभाषी शोज भी लोगों को इन प्लेटफौर्म्स की तरफ अत्यधिक आकर्षित कर रहे हैं. जहां इंग्लिश भाषा के शोज केवल पढ़ेलिखे व इंग्लिश के जानकार, जिन में ज्यादातर युवा हैं, देख सकते हैं तो हिंदी शोज की पहुंच हर घर तक है. हिंदी के दर्शकों में औरतें, बुजुर्ग, युवा व हिंदीभाषी पुरुष हैं. यह भी एक कारण है कि छोटे ओटीटी प्लेटफौर्म वूट के शो ‘असुर’ को अप्रत्याशित सफलता मिली. हिंदी में होने के कारण इस शो को लौकडाउन की शुरुआत में ही अनेक लोगों ने देखा जिस से वूट की व्यूअरशिप अत्यधिक बढ़ गई. वहीं, फिल्मों की बात करें तो चाहे कुछ फिल्में ओटीटी पर न भी चली हों, फिर भी दर्शक अनेक फिल्में देख रहे हैं. इसी के चलते डिज्नी+हौटस्टार ने अक्षय कुमार की फिल्म ‘लक्ष्मी बौंब’ को 150 करोड़ रुपए में खरीदा है. इतनी महंगी फिल्म को खरीदने का मतलब साफ है कि लोगों का ध्यान इस ओटीटी प्लैटफौर्म की तरफ आकर्षित हो और ज्यादा से ज्यादा लोग फिल्म को देखने के लिए सब्सक्रिप्शन लें.

ओटीटी प्लेटफौर्म की लोकप्रियता और कोरोनाकाल में अत्यधिक कमाई का सब से बड़ा कारण इस का भारी स्टौक है. ओटीटी पर किसी भी साल की, कितनी ही पुरानी सीरीज या फिल्म को दिखाया जाता है. लोगों को विंटेज शोज अत्यधिक पसंद आते हैं. ‘ब्रैंड्स’, ‘ब्रूकलिन नाइन नाइन’, ‘मनी हाइस्ट’, ‘द औफिस’ जैसे कई सालों पुराने शोज आज भी यूथ की पहली पसंद हैं. न केवल यह अत्यधिक मनोरंजक हैं बल्कि बौलीवुड की दोहरी मानसिकता वाली फिल्मों से बेहद अलग भी हैं. ओटीटी पर केवल बौलीवुड या हौलीवुड शोज और मूवीज ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश, एशियन खासकर कोरियन शोज की भी भरमार है. ये शोज न केवल लोगों को दूसरे देशों के कल्चर और क्रिएटिविटी से अवगत कराते हैं बल्कि कुएं का मेंढक बने रहने की भावना से बाहर भी निकालते हैं. हर तबके और उम्र के व्यक्ति में बिंज वौच की जो आदत पनपी है, उसे लौकडाउन ने और ज्यादा हवा दी है. खाली समय और घर में मौजूदा हर आराम के बीच एक पैर पर दूसरे पैर को चढ़ा मोबाइल हाथ में ले शो देखते हुए आजकल हर कोई दिख जाता है. चाहे आंखें पथरा जाएं, चाहे नींद पूरी न हो लेकिन शो एक ही दिन में पूरा हो जाना चाहिए. यही भावना है जो व्यक्ति को इन प्लेटफौर्म्स से जोड़े रखती है. अब हर तरफ नए शो की चर्चा चल रही हो तो उस में भाग लेने का आनंद ही कुछ और है. ऐसे में बौलीवुड फिल्मों की चर्चा भर के लिए हर कोई सिनेमाघर का रास्ता नहीं ताकता. इसलिए यह एक बड़ा कारण है कि ओटीटी प्लेटफौर्म्स बौलीवुड को पछाड़ने की पूरी क्षमता रखते हैं.

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ऐप डिस्ट्रिब्यूशन प्लेटफौर्म मोमैजिक के हालिया सर्वे के अनुसार, 72 फीसदी दर्शकों का कहना है कि कोरोना के चलते सिनेमाघरों में फिल्म देखने से बेहतर वे अपने पैसे एक बड़े एलईडी टीवी और होम थिएटर पर खर्च करना अधिक पसंद करेंगे और घर पर ही नई फिल्मों का आनंद लेंगे.

ओटीटी प्लेटफौर्म की शुरुआत

पहला भारतीय ओटीटी प्लेटफौर्म बिगफ्लैक्स था जिसे 2008 में रिलायंस एंटरटेनमैंट ने लौंच किया था. 2010 में डिगिविव ने भारत की पहली मोबाइल ओटीटी ऐप नैक्सजीटीवी लौंच की थी जिस पर आईपीएल लाइव देखा जा सकता था. ओटीटी प्लेटफौर्म्स को भारत में डिट्टो टीवी और सोनी लाइव के लौंच होने के बाद सफलता मिलनी शुरू हुई.

नैटफ्लिक्स भारत में साल 2016 में आया जिसे वैश्विक शोज के कारण यूथ के बीच अपार लोकप्रियता मिली. इस के बाद से अनेक ओटीटी प्लेटफौर्म्स लौंच हुए जिन में से कुछ शुरुआत में फ्री थे, लेकिन जल्द ही वे सब्सक्रिप्शन पर उपलब्ध होने लगे. अमेजोन प्राइम (अमेजोन), नैटफ्लिक्स (नैटफ्लिक्स आईएनसी), विऊ (एच के टैलीविजन एंटरटेनमैंट), मुबी (मुबी आईएनसी), हौटस्टार+डिज्नी (स्टार इंडिया, द वाल्ट डिज्नी कंपनी इंडिया), औल्ट बालाजी (बालाजी टैलीफिल्म्स), इरोस नाओ (इरोस इंटरनैशनल), एमएक्स प्लेयर (टाइम्स इंटरनैट), सोनी लाइव (सोनी पिक्चर्स नैटवर्क्स इंडिया), वूट (वाइकौम 18), द वायरल फीवर, जी5 (जी एंटरटेनमैंट एंटरप्राइसेस), उल्लू ऐप आदि कुछ ओटीटी प्लेटफौर्म्स हैं जो भारत में लोकप्रिय हैं.

इन में कुछ क्षेत्रीय ओटीटी प्लेटफौर्म्स हैं जिन में होईचोई (श्री वेंकटेश्वर फिल्म्स) पहला भारतीय रीजनल ओटीटी प्लेटफौर्म था. होईचोई पर 200 से अधिक बंगाली फिल्में, शोज व कुछ ओरिजिनल कंटैंट भी हैं. इस प्लेटफौर्म पर हिंदी और इंग्लिश का डब कंटैंट भी है व इस की पहुंच केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि बंगलादेश और यूनाइटेड अरब अमीरात में भी इस के दर्शक हैं. इस के अलावा साउथ इंडियन भाषाओं के प्लेटफौर्म्स सन एनएक्सटी (सन टीवी नैटवर्क्स) और अहा (अरहा मीडिया एंड ब्रौडकास्ट प्राइवेट लिमिटेड) भी दर्शकों के लिए उपलब्ध हैं.

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शुरुआत में फिल्मकारों ने ओटीटी प्लेटफौर्म्स को महत्त्व नहीं दिया. तब नए लेखक, निर्देशक और कलाकारों ने ओटीटी प्लेटफौर्म्स के लिए लघु फिल्में और वैब सीरीज बनानी शुरू कीं. ओटीटी प्लेटफौर्म पर प्रसारित होने वाली लघु फिल्मों या वैब सीरीज को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से सैंसर प्रमाणपत्र लेने की भी जरूरत नहीं होती है. इस वजह से  90 प्रतिशत वैब सीरीज अश्लील दृश्यों व खूनखराबे से परिपूर्ण ही प्रसारित हुईं.

इस नई संस्कृति का फायदा उठाने में यशराज फिल्म्स भी पीछे नहीं रहा. यशराज फिल्म्स ने  ‘बैंड बाजा बरात’ और ‘सैक्स चैट विद पप्पू एंड पापा’ जैसी युवाओं को आकर्षित करने वाली वैब सीरीज बनाईं, तो वहीं एकता कपूर ने ‘ट्रिपलएक्स’, ‘गंदी बात’ व ‘रागिनी एमएमएस’ जैसी सैक्स से भरपूर इरोटिक वैब सीरीज परोसीं. इस के बाद इस तरह की वैब सीरीज का ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर बोलबाला हो गया. ऐसे में शाहरुख खान भी पीछे नहीं रहे. शाहरुख खान की कंपनी रैड चिली ने नैटफ्लिक्स के लिए ‘बार्ड औफ ब्लड’ और जौंबी पर आधारित हौरर रोमांचक ‘बेताल’ जैसी वैब सीरीज का निर्माण किया.

सैक्स से सराबोर वैब सीरीज की सफलता से प्रेरित हो कर सैक्स को भुनाने के लिए ओटीटी प्लेटफौर्म पर ‘उल्लू’ की शुरुआत हो गई. ‘उल्लू’ ने तो सारी मर्यादाएं लांघ डालीं. अब तो लोग कहते हैं कि पौर्न फिल्म देखने के बजाय ‘उल्लू’ पर जा कर वैब सीरीज देखें. शुरुआत में ‘उल्लू’ ने प्रतिमाह 16 रुपए का शुल्क रखा था पर इसे इतने दर्शक मिले कि अब उस का शुल्क 99 रुपए हो गया है.

यों हुए हौसले बुलंद

अनुराग कश्यप व विक्रमादित्य मोटवाणे ने विक्रम चंद्र के 2006 के चर्चित उपन्यास ‘सैक्रेड गेम्स’ पर इसी नाम की वैब सीरीज बनाई. ‘सैक्रेड गेम्स’ के पहले सीजन में सैफ अली खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, कुबरा सैत, पंकज त्रिपाठी, राधिका आप्टे जैसे दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया. इस का पहला सीजन 5 जुलाई, 2018 को  नैटफ्लिक्स पर प्रसारित हुआ. सैक्स, हिंसा सहित हर तरह के मसाले से भरपूर इस वैब सीरीज को जबरदस्त शोहरत मिली. इस के बाद अमेजोन, हौटस्टार, एमएक्स प्लेयर व जी 5 जैसे ओटीटी प्लेटफौर्म के अंदर नया जोश पैदा हुआ. इन सभी ने लगातार तमाम वैब सीरीज प्रसारित करनी शुरू कीं. हर ओटीटी प्लेटफौर्म पर कुछ वैब सीरीज सफल हुईं, पर ज्यादातर वैब सीरीज ने सैक्स व हिंसा को ही परोसा.

नैपोटिज्म की मार

बौलीवुड में व्याप्त नैपोटिज्म के चलते बहुत से कलाकरों के लिए बौलीवुड की राह जरूरत से ज्यादा लंबी हो गई है. उन कलाकारों, जिन्हें बौलीवुड में काम नहीं मिलता, छोटे परदे का सहारा लेने को मजबूर थे, को ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने एक नई मंजिल दी है. शमा सिकंदर, वत्सल सेठ, राधिका आप्टे कुछ ऐसे ही कलाकार हैं जिन्होंने ओटीटी की राह पकड़ी. और इस बात में तो कोई दोराय नहीं कि जितनी सफलता राधिका आप्टे को अपनी फिल्मों से नहीं मिली थी उस से कहीं ज्यादा शोहरत नैटफ्लिक्स से मिली है.

अब सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद बौलीवुड की गलियों में एक बार फिर नैपोटिज्म के नारे गूंजने लगे. सोशल मीडिया पर भी हर तरफ नैपोटिज्म और नैपोटिज्म के लिए सितारों को बुरी तरह खदेड़ा जा रहा है, चाहे फिर वे आलिया भट्ट हों या वरुण धवन.

बौलीवुड के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो कुछ फिल्मकारों ने न चाहते हुए भी अपनी फिल्में ओटीटी प्लेटफौर्म्स को बेच दीं. वास्तव में सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कंगना रनौत, शेखर सुमन जैसे कई लोगों ने करण जौहर व सोनाक्षी सिन्हा सहित कुछ निर्माताओं व कलाकारों की फिल्मों को बैन करने का ऐलान कर दिया. ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी फिल्में ओटीटी प्लेटफौर्म को देने में ही भलाई सम?ा.

फिर संकट में बौलीवुड

80 के दशक में वीडियो तकनीक के प्रादुर्भाव के बाद हर घर में किराए के वीडियो कैसेट मंगा कर टीवी पर फिल्में देखने का सिलसिला शुरू हुआ था. परिणामस्वरूप, लोगों ने फिल्म देखने के लिए सिनेमाघरों में जाना बंद कर दिया था. तब कई निर्माताओं ने ऐलान कर दिया था कि अब देश के सभी सिनेमाघरों  के अंत का समय आ गया. तब कहा गया था कि देश में ‘सिनेमाघर जा कर फिल्में देखने की संस्कृति’ का खात्मा हो जाएगा.

इस वीडियो संस्कृति के चलते कुछ समय के लिए सिनेमा का नुकसान हुआ था. देखते ही देखते हजारों घटिया वीडियो फिल्में बन कर बाजार में आ गई थीं. आखिरकार, एक दिन दर्शकों को एहसास हुआ कि वे तो चंद रुपयों को  बचाने के चक्कर में पायरेटेड सिनेमा और घटिया वीडियो फिल्मों को बढ़ावा दे रहे हैं. तो वहीं फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में बदलाव करते हुए भव्यता को महत्त्व दिया. अब इन फिल्मों को वीडियो कैसेट के माध्यम से टीवी पर देखने का मजा किरकिरा हो गया. परिणामस्वरूप,  लोगों ने फिल्म देखने के लिए फिर सिनेमाघर जाना शुरू कर दिया.

टीवी भी खतरा बना था

अक्तूबर 1992 में जी टीवी जैसे सैटेलाइट चैनल की शुरुआत के साथ ही मनोरंजन क्षेत्र में बड़ा धमाका हुआ था. तब भी लोगों ने घर में रहते हुए टीवी से मुफ्त मनोरंजन पाना शुरू कर दिया था और सिनेमाघर के भीतर जाना बंद कर दिया था. उस वक्त चर्चा गरम हो गई थी कि अब सिनेमा का अस्तित्व खत्म हो गया. इसी चर्चा के चलते इंडस्ट्री 2 भागों में विभाजित हो गई थी. जो लोग टीवी सीरियल के निर्माण, निर्देशन व लेखन के अलावा टीवी सीरियलों में अभिनय कर रहे थे, उन के साथ फिल्मकारों ने अछूत जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया था. इसी के साथ फिल्मकारों ने अपनी फिल्म के कथानक आदि पर खास ध्यान दिया. मगर टीवी के लिए कार्य करने वालों को अपने ऊपर से अछूत का ठप्पा हटाने में 15 वर्ष से अधिक का समय लग गया. अब टीवी कलाकार फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं. टीवी सीरियल के निर्मातानिर्देशक फिल्में भी बना रहे हैं, जिस के चलते टीवी चैनलों और फिल्मों दोनों का अपना अस्तित्व बरकरार रहा. दोनों जगह मनोरंजन का अपना अलग मजा है.

स्टूडियो सिस्टम का बोलबाला

2001 में फिल्म ‘लगान’ के साथ स्टूडियो सिस्टम आया. ‘स्टूडियो सिस्टम’ के नाम पर कई भारतीय कौर्पोरेट कंपनियों और कुछ विदेशी कंपनियों यानी कि व्यवसायियों ने भारतीय सिनेमा पर धावा बोला था. विदेशी धन की ताकत पर इन स्टूडियो ने 10 रुपए वाले कलाकार को हजार रुपए दे कर अपने स्टूडियो के साथ जोड़ फिल्में बनानी शुरू कीं और अपनी तरफ से भारतीय सिनेमा व सिनेमाघरों को तहसनहस करने के साथसाथ भारतीय आम जनमानस की गाढ़ी कमाई को बटोरने की असफल कोशिश की थी. आखिरकार, 90 प्रतिशत स्टूडियो कब आए और कब गए, पता ही न चला. हम यहां हर स्टूडियो के इतिहास को दोहराना नहीं चाहते, मगर कुछ समय के लिए लगा था कि बौलीवुड का खात्मा हो जाएगा. मगर फिर मल्टीप्लैक्स का जाल  बिछना शुरू हो गया. देखते ही देखते सिनेमाघर फिर भरने लगे.

हमें याद रखना होगा कि ‘गुलाबो सिताबो’, ‘धूमकेतु’ फिल्मों के बजाय ‘पाताललोक’, ‘पंचायत’ जैसी वैब सीरीज ज्यादा चर्चा में रहीं. जो पैसा इन फिल्मों के सिनेमाघर में प्रसार से कमाया जा सकता था उतना ओटीटी से नहीं कमाया जा सका.

ऐसे संभली ओटीटी

‘सैक्रेड गेम्स’ के पहले सीजन को मिली जबरदस्त सफलता के बाद नैटफ्लिक्स ने इस का दूसरा सीजन बनाया, जो 15 अगस्त, 2019 को प्रसारित हुआ. मगर सैक्रेड गेम्स का दूसरा सीजन बुरी तरह से असफल हो गया. परिणामस्वरूप,  हर ओटीटी प्लेटफौर्म के अंदर गहन मंथन की शुरुआत हुई. वहीं,  हौटस्टार और डिज्नी एक हो गया. अब जी 5 जैसे भारतीय ओटीटी प्लेटफौर्म के साथ अमेजोन, नैटफ्लिक्स और डिजनी हौटस्टार के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हुई. इसी बीच, इन के अमेरिका में बसे मूल मालिकों ने लंबीचौड़ी रकम इन्वैस्ट कर दी. परिणामस्वरूप, उन्होंने बड़े बजट की भव्य वैब सीरीज बनवानी शुरू कीं, जिस के चलते 17 मार्च, 2020 को हौटस्टार+डिज्नी पर बेहतरीन वैब सीरीज ‘स्पैशल ओप्स’ प्रसारित हुई.

नीरज पांडे निर्मित इस वैब सीरीज को काफी पसंद किया गया. 3 अप्रैल, 2020 को अमेजोन पर हास्य वैब सीरीज ‘पंचायत’ ने सफलता दर्ज कराई. दीपक कुमार मिश्रा निर्देशित इस वैब सीरीज को काफी पसंद किया गया. इस का दूसरा सीजन भी बनवाया जा रहा है. इस के बाद अमेजोन पर ही 15 मई, 2020 को अपराध व रोमांचप्रधान वैब सीरीज ‘पाताललोक’ ने  सफलता दर्ज कराई. तो वहीं 2020 में जी 5 पर ‘कोड एम’ को पसंद किया गया, जबकि हौटस्टार पर ‘क्रिमिनल जस्टिस’ के साथ  ‘आर्या’ भी काफी पसंद की गईं. वहीं लगभग हर ओटीटी प्लेटफौर्म पर घटिया वैब सीरीज व कुछ फिल्में भी प्रसारित हुईं.

क्या 5 लाख दर्शक मिलेंगे

ओटीटी प्लेटफौर्म्स के लिए खासतौर पर बनवाई गई कुछ वैब सीरीज की सफलता के बाद हर ओटीटी प्लेटफौर्म की मूल मालिकाना कंपनी को भारत में बड़ा बाजार नजर आने लगा. परिणामस्वरूप, अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच इन ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने भारत में 5 लाख नए ग्राहक बनाने की चुनौती रखते हुए इन की मूल कंपनियों ने लंबीचौड़ी रकम इन्वैस्ट कर दी. नैटफ्लिक्स पर मौलिक भारतीय कंटैंट को खरीदने के लिए इस की मूल कंपनी ने 3,000 करोड़ रुपए इन्वैस्ट किए हैं जबकि अमेजोन के सीईओ जेफ बेजोस भी कह चुके हैं कि भारतीय कंटैंट के लिए दोगुनी राशि इन्वैस्ट की है. इस वर्ष अप्रैल माह में डिज्नी हौटस्टार में 1,113 करोड़ रुपए इन्वैस्ट किए गए हैं. इस से पहले मार्च माह में स्टार इंडिया और स्टार अमेरिका ने एक हजार 66 करोड़ रुपए इन्वैस्ट किए थे. तो क्या इस रकम को जल्द से जल्द फिल्म खरीद कर खत्म करने की आपाधापी तो नहीं है.

इस के अलावा सभी ओटीटी प्लेटफौर्म्स की पैतृक कंपनियों ने उन पर 5 लाख नए ग्राहक बनाने की चुनौती भी सामने रखी है, जोकि असंभव है. इतना ही नहीं, लौकडाउन में यदि ग्राहक मिल भी गए तो सिनेमाघर शुरू होते ही ये ग्राहक ओटीटी से दूरी बना लेंगे, यदि उन्हें अच्छा कंटैंट नहीं दिया गया. अफसोस है कि दर्शक बढ़ाने के लिए हर ओटीटी प्लेटफौर्म कंटैंट की गुणवत्ता पर कम ध्यान दे रहा है.

सिनेमा एक उत्सव 

लोगों के लिए सिनेमा महज मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि सिनेमा देखना एक उत्सव है. लोग अपने दोस्तों या परिवार के साथ सिनेमाघर में फिल्म देख कर जिस आनंद की अनुभूति करते हैं, उस आनंद की अनुभूति वे अपने घरों में बंद हो कर टीवी, मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर पर ओटीटी प्लेटफौर्म की फिल्में देखते हुए कदापि नहीं पा सकते.

इस के अलावा दर्शक सिनेमाघरों में फिल्में देखते हुए उस में इस कदर मगन हो जाते हैं कि वे दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं, फिल्म के किरदारों के साथ जुड़ कर वे उसी की तरह के सपने देखने लगते हैं, कुछ घंटों के लिए वे अपना दुखदर्द, तनाव सबकुछ भूल जाते हैं. यह तो बिलकुल नहीं नकारा जा सकता कि गर्लफ्रैंड के साथ जो मजा मूवीडेट का है, वह और कहीं नहीं.

यहां पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी के विचार बहुत माने रखते हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म पर नवाजद्दीन सिद्दीकी की ‘घूमकेतु’ के अलावा ‘रात अकेली है’ जैसी 2 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं, मगर खुद नवाजुद्दीन सिद्दीकी खुश नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म के रिलीज को सही नहीं मानता. मेरी राय में ओटीटी पर फिल्म के रिलीज होने से कलाकार की अभिनय क्षमता को नुकसान होता है और अमूमन असफल फिल्म ही ओटीटी पर आती हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म से कलाकार की क्षमता की चर्चा नहीं होती है और न ही उसे सही समय पर यह पता चलता है कि उस ने फिल्म के किरदार को कितना सही ढंग से निभाया है. दर्शकों की प्रतिक्रिया भी सही ढंग से नहीं मिल पाती है.’’

इतना ही नहीं, अभिनेता पंकज त्रिपाठी के इस कथन से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि ‘‘दर्शकों का जो अनुभव थिएटर में होता है, वह तो ओटीटी प्लेटफौर्म पर नहीं होगा. बड़ी स्क्रीन पर फिल्म देखने का जो मजा होता है, वह टीवी की 20 से 25 इंच की स्क्रीन पर या मोबाइल पर देखते समय नहीं मिल सकता. मोबाइल, टीवी तथा सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने का अनुभव एकजैसा कभी नहीं हो सकता.’’

इसी के साथ एक तबका प्रचारित करने लगा कि अब बौलीवुड पूरी तरह से ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर ही निर्भर रहेगा. ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने यह भी प्रचारित किया कि अब सिनेमाघरों में लोग फिल्में देखने नहीं जाएंगे. इस तरह के प्रचार के साथ ओटीटी प्लेटफौर्म्स अपनी मूल कंपनियों से मिले धन का उपयोग फिल्मों को खरीदने में कर रहे हैं.

अब तक ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर ‘घूमकेतु’, ‘शकुंतला देवी’ और ‘गुलाबो सिताबो’ जैसी जो फिल्में प्रदर्शित हुई हैं, उन का हश्र कुछ अच्छा नहीं रहा. सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘दिल बेचारा’ को बिना ग्राहक बने भी लोग देख सकते थे, फिर भी इसे अपेक्षित दर्शक नहीं मिले.

‘गुलाबो सिताबो’ देख कर यह एहसास हो गया कि यह फिल्म बौक्सऔफिस पर औंधेमुंह गिर जाती. ‘घूमकेतु’ को पिछले 5 वर्षों से कोई खरीद नहीं रहा था. जी 5 पर यह आई, इसे कितने दर्शक मिले, यह शोध का विषय हो सकता है. इस के बाद अनुराग कश्यप की ‘चोक्ड: पैसा बोलता है’ और उर्वशी रौतेला की ‘वर्जिन भानुप्रिया’ का भी ओटीटी प्लेटफौर्म पर बुरा हश्र  हो चुका है.

अभी ओटीटी प्लेटफौर्म पर अक्षय कुमार की ‘लक्ष्मी बौंब,’ अजय देवगन की ‘भुज: द प्राइड औफ इंडिया,’ अभिषेक बच्चन की ‘लूडो,’ संजय दत्त की ‘टोरबाज,’ कोंकणा सेन शर्मा की ‘डोली किट्टी और वो चमकते सितारे,’ विक्रांत मैसे और यामी गौतम की ‘गिन्नी वैड्स सन्नी’ जैसी फिल्में प्रसारित होने वाली हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर इन फिल्मों का भविष्य क्या होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

तूफान के पहले की खामोशी

कलाकारों के कथन में यह बात छिपी है कि सिनेमाघरों को नजरंदाज कर ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर फिल्मों के प्रदर्शन से कलाकार खुश नहीं हैं. ‘गुलाबो सिताबो’ में अमिताभ बच्चन थे, इसलिए कलाकारों ने मुखर हो कर अपनी बात कहने में संकोच दिखाया. मगर सच यही है कि फिल्म के सब से पहले ओटीटी प्लेटफौर्म पर आने से हर कलाकार के स्टारडम पर गहरा असर होने वाला है. उन का स्टारडम बढ़ने के बजाय घटने वाला है.

कटु सत्य यही है कि ओटीटी  प्लेटफौर्म के चलते धीरेधीरे कलाकार की हालत ‘घर की मुरगी दाल बराबर’ जैसी हो जाएगी, जिस का असर उन के द्वारा किए जाने वाले विज्ञापन की राशि पर भी पड़ना लाजिमी है. यही वजह है कि कलाकारों के बीच तूफान के आने से पहले की खामोशी दिखाई दे रही है.

वैसे, कुछ कलाकारों ने दबी आवाज में कहा है कि उन्होंने फिल्म के लिए कई तरह की तैयारियां की थीं. मेकअप में लंबा समय खर्च किया था, मेहनत से फिल्म बनाई थी कि दर्शक सिनेमाघर में बड़े परदे पर उन को देखेंगे और अब जब यही फिल्म ओटीटी प्लेटफौर्म पर आने जा रही है, तो यह उन की मेहनत के साथ पूरा अन्याय है. मगर कुछ नए कलाकार, जोकि निर्मातानिर्देशक के रहमोकरम पर हैं, कह रहे हैं कि एक फिल्म में अभिनय करने के बाद कलाकार के वश में नहीं रहता कि वह तय करे कि उन की फिल्म कब, कैसे और कहां रिलीज होगी.

कड़वा सत्य यह भी है कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म के आने से कलाकार का आत्मविश्वास भी हिलेगा और उस का बाजार भी. इतना ही नहीं, ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म के असफल होने का सारा ठीकरा कलाकार के मत्थे मारा जाएगा. इस तरह, सब से अधिक नुकसान कलाकार को होना तय है. ऐसे में हर कलाकार को इस मसले पर गंभीरता से विचार कर अपनी फिल्म के निर्माताओं से बात करनी होगी. हर कलाकार को याद रखना होगा कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर स्टार कलाकार और नए कलाकार को एक ही नजर से देखा जाता है.

हिंदी फिल्मों के लिए नया ओटीटी प्लेटफौर्म

भारतीय फिल्मों को समर्पित एक नया ओटीटी प्लेटफौर्म ‘सिनेमाप्रेन्योर’ तेजी से उभर रहा है. इस ओटीटी प्लेटफौर्म का ग्राहक बनने की जरूरत नहीं है, बल्कि हर फिल्म देखने के लिए एक अलग राशि दे कर देख सकते हैं. इस पर फीचर फिल्मों के साथ ही डौक्यूमैंट्री व लघु फिल्में भी उपलब्ध हैं. यह ओटीटी प्लेटफौर्म दिल्ली निवासी गौरव रतुरी व रुपिंदर कौर ले कर आए हैं.

फिल्म बाजार में यदि हर साल 300 फिल्में बनती हैं तो उन में से 15 को थिएटर रिलीज मिलती है, 10 नैटफ्लिक्स पर जाती हैं, 5 अमेजोन पर जाती हैं. तो, बाकियों का क्या होता है? अनेक छोटे बजट की फिल्में व डौक्यूमैंट्री कहीं कोने में धूल खाती रह जाती हैं. इन छोटी बजट की फिल्मों को विदेशों में तो फिल्म फैस्टिवल्स में जगह मिलती है परंतु भारत में इन की कोई सराहना नहीं होती. उदाहरण के तौर पर, अनिरबान दत्ता की फिल्म ‘जहनबी’ को रोमानिया, यूके व हंगरी फिल्म फैस्टिवल्स में जगह मिली. इसे अमेजोन प्राइम यूके, कनाडा व यूएस में भी दिखाया गया लेकिन, अमेजोन इंडिया में इसे जगह नहीं मिली.

ओटीटी प्लेटफौर्म ‘सिनेमाप्रेन्योर’ को लाने के पीछे मकसद यह है कि आर्टिस्टिक और छोटे बजट की फिल्मों को भी भारतीयों तक पहुंचाया जा सके.

सिनेमा जगत छुआछूत के दौर में तो नहीं लौट रहा? सिनेमा खुलने के बाद बौलीवुड में एक बार फिर 90 के दशक यानी 1992-2000 के बीच का इतिहास दोहराया जा सकता है. उस वक्त जिस तरह से टीवी को फिल्म वालों ने ‘अछूत’ मान लिया था, उसी तरह सिनेमाघर खुलने के बाद एक बार फिर बौलीवुड में 2 भाग हो जाएंगे और ओटीटी प्लेटफौर्म के लिए वैब सीरीज व फिल्मों का निर्माण, निर्देशन, लेखन व अभिनय करने वालों को मेनस्ट्रीम सिनेमा से अलग कर अछूत जैसा व्यवहार किया जा सकता है.

टीवी ऐक्टर्स और बौलीवुड स्टार्स को आज भी कई स्तरों पर एकदूसरे से अलग माना जाता है. जो रुतबा, शोहरत, नाम और एक्सपोजर बौलीवुड स्टार्स को मिलता है, वह टीवी स्टार्स को नहीं मिलता. यही कारण है कि टीवी स्टार्स बौलीवुड की ओर बढ़ना चाहते हैं. ओटीटी एक ऐसा प्लेटफौर्म बन कर उभरा जिस ने टीवी और बौलीवुड के ऐक्टर्स को एकसमान स्तर देने की कोशिश की. देखना, वाकई दिलचस्प होगा कि क्या यह स्तर कायम रह पाता है.

 

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