उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी के रामनगर थाना क्षेत्र में स्थित है घाघरा पुल.24 दिसंबर, 2019 की सुबह इसी पुल के नीचे किसी अज्ञात युवती की लाश पड़ी मिली. तपेसिपाह गांव के कुछ लोग उधर आए तो उन लोगों ने उस लाश को देखा. इस की खबर आग की तरह पूरे गांव में फैल गई. गांव के प्रधान महेंद्र सिंह यादव को जब यह खबर मिली तो वह भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद लोगों से पूछा कि क्या कोई इस युवती को जानता है, तो वहां उपस्थित लोगों ने इनकार कर दिया. तब सुबह के सवा 9 बजे प्रधान महेंद्र सिंह ने इस की सूचना संबंधित थाना रामनगर को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर के.के. मिश्रा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का मुआयना किया तो मृतका की उम्र यही कोई 21 से 25 साल के बीच लगी. उस के गले में दुपट्टे का फंदा पड़ा था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या उसी दुपट्टे से गला घोंट कर की गई होगी.

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इस के अलावा शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. कपड़ों की तलाशी ली गई तो जैकेट की जेब से एक कागज की परची मिली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. इंसपेक्टर मिश्रा ने कागज की वह परची अपने पास रख ली. वहां मौजूद किसी व्यक्ति द्वारा शिनाख्त न किए जाने पर पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

इस के बाद प्रधान महेंद्र सिंह की ओर से पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इंसपेक्टर के.के. मिश्रा ने मृतका की जैकेट से मिली परची पर लिखा मोबाइल नंबर मिलाया तो किसी आयशा नाम की युवती ने फोन रिसीव किया. जैसे ही इंसपेक्टर मिश्रा ने आयशा को अपना परिचय दिया, आयशा ने अपना मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिया.

कई बार नंबर रिडायल करने के बाद भी आयशा ने काल रिसीव नहीं की तो इंसपेक्टर मिश्रा ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि वह नंबर उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के थाना कौडि़या अंतर्गत आर्यनगर निवासी शिल्पी द्विवेदी पुत्री ओमप्रकाश द्विवेदी के नाम से लिया गया था.

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इंसपेक्टर मिश्रा ने एक पुलिस टीम उक्त पते पर भेज दी. वहां पर ओमप्रकाश द्विवेदी मिले. उन्हें युवती की बरामद लाश के बारे में बताया तो उन्होंने लाश की शिनाख्त करने से मना कर दिया. उन्होंने यह जरूर कहा कि यह नंबर उन की बेटी के नाम पर ही है, लेकिन उन की बेटी इस समय कहां है, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता.

उन्होंने बताया कि कई साल पहले शिल्पी ने लखनऊ के थाना ठाकुरगंज क्षेत्र निवासी किसी मुसलिम युवक से प्रेम विवाह कर लिया था, उस के बाद से ही उन्होंने शिल्पी से संबंध खत्म कर लिए थे.

इस का मतलब यह था कि जिस युवती ने इंसपेक्टर मिश्रा की काल रिसीव की थी, असल में वह शिल्पी द्विवेदी ही थी. इंसपेक्टर के.के. मिश्रा लखनऊ के ठाकुरगंज थाने में काफी समय तैनात रहे थे, इसलिए वहां के अपने मुखबिरों को उन्होंने आयशा नाम की युवती का पता लगाने के लिए लगा दिया. जल्द ही मुखबिरों ने आयशा के बारे में सारी जानकारी दे दी.

उन्हें बताया गया कि शिल्पी द्विवेदी ने शहंशाह नाम के शख्स से शादी करने के बाद अपना नाम आयशा रख लिया था. इतना ही नहीं, घटना की रात 24 दिसंबर को आयशा और उस का पति शहंशाह खान एक अन्य युवती और युवक के साथ घर से कार द्वारा निकले थे.

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मुखबिर से शहंशाह का पता मिल गया था. वह ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हसरत टाउन बरौरा हुसैनबाड़ी में आयशा के साथ रह रहा था. यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलते ही इंसपेक्टर मिश्रा ने उन के घर दबिश दी.

शहंशाह और आयशा घर पर ही मिल गए. पुलिस उन दोनों को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. थाने में जब दोनों को घाघरा पुल के नीचे मिली युवती की लाश के फोटो दिखाए गए तो उन के चेहरे का रंग उड़ गया.

इंसपेक्टर मिश्रा समझ गए कि ये दोनों मृतका के बारे में जानते हैं, इसलिए उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने स्वीकार कर लिया कि यह फोटो आलिया का है. उन्होंने ही योजनाबद्ध तरीके से उस की हत्या की थी. आलिया कौन थी और उन्होंने उसे क्यों मारा, इस बारे में पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा के कौडि़या थाना क्षेत्र के गांव आर्यनगर में ओमप्रकाश द्विवेदी रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा एक बेटी शिल्पी और एक बेटा शिवम था. ओमप्रकाश के पास खेती की कुछ उपजाऊ जमीन थी, जिस पर खेती कर के वह परिवार का खर्च उठाते थे.

उन की बेटी शिल्पी पढ़ने में काफी तेज थी. खूबसूरती में भी वह अव्वल थी. उस ने अपनी मेहनत और लगन से एमए तक पढ़ाई की. एक छोटे से गांव में रहने के बावजूद शिल्पी का हौसला ही था कि वह जो चाह रही थी, वह कर भी रही थी.

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उस ने सिपाही की भरती में भाग लिया और सेलेक्ट हो गई. उस ने ट्रेनिंग भी पूरी की, लेकिन उस के दिमाग में न जाने क्या आया कि उस ने सिपाही की नौकरी करने का खयाल दिलोदिमाग से निकाल दिया. फिर वह लखनऊ आ गई और एक मैडिकल कालेज से जीएनएम का डिप्लोमा कोर्स करने लगी.

रहने के लिए उस ने लखनऊ के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के बालागंज में हसरत टाउन बरौरा हुसैनबाड़ी में एक कमरा किराए पर ले लिया था. डिप्लोमा करने के बाद उस ने नौकरी की कोशिश की तो उसे लखनऊ के प्रसिद्ध चरक हौस्पिटल में नौकरी मिल गई.

इसी हौस्पिटल में शहंशाह खान नाम का व्यक्ति आताजाता था. शहंशाह उसे कई बार वहां देखा तो उस का चेहरा जानापहचाना सा लगा. उस ने दिमाग पर जोर दिया तो याद आया कि इस लड़की को उस ने कई बार अपने घर के आसपास देखा था. वह नाम तो नहीं जानता था, मगर चेहरा पहचानता था.

शहंशाह खान के पिता करीम खान का इंतकाल हो चुका था. उन के इंतकाल के कुछ समय बाद ही उस की मां का भी इंतकाल हो गया था. शहंशाह का सिर्फ एक भाई था, जो उस से अलग रहता था.

शहंशाह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. इसी काम के सिलसिले में वह इधरउधर जाता रहता था. चरक हौस्पिटल में भी वह किसी न किसी से मिलने जाया करता था.

शहंशाह को जब याद आ गया कि वह उस के मोहल्ले में ही कहीं रहती है तो परिचय बढ़ाने की सोच कर वह शिल्पी के पास पहुंचा. शिल्पी उस समय किसी काम में मशगूल थी. उस ने सिर उठा कर शहंशाह की ओर देखा और बोली, ‘‘हैलो, मैं आप की क्या मदद कर सकती हूं सर?’’

‘‘जी, मैं कुछ जानने आया हूं, उसी के लिए आप की मदद चाहिए.’’ शहंशाह मुसकरा कर हुए उस के चेहरे को देखते हुए बोला.  ‘‘जी, क्या मतलब?’’ शहंशाह की बात पर चौंकते हुए शिल्पी पूछ बैठी.

‘‘अरे चौंकिए नहीं, मेरा नाम शहंशाह खान है. मैं प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता हूं और बालागंज में हसरत टाउन बरौरा हुसैनबाड़ी में रहता हूं. मैं यहां हौस्पिटल में जब भी आता हूं, तो आप को देख कर मुझे आप का चेहरा जानापहचाना सा लगता है, जैसे कहीं देखा हो. मैं ने आप को अपने मोहल्ले में भी देखा है. क्या आप वहां रह रही हैं या किसी से मिलने जाती हैं?’’ शहंशाह खान ने पूछा.

शहंशाह की बात सुनने के बाद शिल्पी ने तसल्ली की सांस ली, फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जी, मैं वहीं किराए पर कमरा ले कर रहती हूं. इसीलिए आप ने मुझे आतेजाते देखा होगा.’’‘‘चलिए, हौस्पिटल आने का मुझे कुछ तो फायदा हुआ, आप जैसी खूबसूरत पड़ोसी के बारे में पता चल गया. अगर आप कहें तो एकएक कप कौफी हो जाए.’’ वह बोला.

‘‘जी, अभी तो पौसिबल नहीं, लेकिन नेक्स्ट टाइम जरूर…’’ बड़ी ही प्यारी मुसकान बिखेरते हुए शिल्पी ने मना किया. उस की मुसकान शहंशाह का दिल चुराने लगी.

‘‘कोई बात नहीं, शाम को ड्यूटी से फ्री होने के बाद मेरे घर आइए. मैं आप को खुद अपने हाथों से कौफी बना कर पिलाऊंगा. वैसे मेरी बनाई कौफी लोगों को बहुत पसंद आती है. आप को पसंद आती है या नहीं, वह आप पी कर ही बता सकती हैं. उस के लिए आप को आना पड़ेगा.’’ शहंशाह ने इस अंदाज में कहा कि शिल्पी मना ही नहीं कर पाई.शिल्पी के सहमति देने के बाद शहंशाह चलने को हुआ तो जैसे उसे कुछ याद आया, वह रुक कर शिल्पी से बोला, ‘‘अरे, इतनी बात हो गई और आप ने अपना नाम तो बताया ही नहीं.’’  ‘‘आप ने पूछा ही नहीं.’’ शिल्पी ने मजाकिया लहजे में कहा तो शहंशाह हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर शिल्पी ने अपना नाम बता दिया, जिस के बाद शहंशाह वहां से चला गया.

शाम को ड्यूटी पूरी करने के बाद शिल्पी अपने कमरे पर पहुंची और फ्रैश होने के बाद ढंग से तैयार हुई. फिर शहंशाह का घर पूछते हुए उस के घर पहुंच गई.  शहंशाह ने उसे बड़े प्यार से बिठाया और फिर खुद कौफी बना कर ले आया. कौफी का घूंट पीते ही उस के मुंह से निकला ‘वाह’.

शहंशाह भी समझ गया कि उस की बनाई कौफी शिल्पी को पसंद आई है. शिल्पी ने भी उस की खूब तारीफ की. इस के बाद उन के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं. दोनों ने एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जाना. उस बातचीत के दौरान दोनों ने अपने फोन नंबर भी एकदूसरे को दिए. इस के बाद शिल्पी जाने लगी तो शहंशाह उसे उस के कमरे तक छोड़ कर आया.

इस के बाद तो उन का रोज ही मिलनाजुलना होने लगा. शहंशाह का साथ शिल्पी को भी अच्छा लगने लगा. दोनों साथ घूमते, फिल्में देखते. धीरेधीरे वे एकदूसरे के करीब आने लगे. दोनों के दिलों में चाहत का दीया जला तो उस की रोशनी से उन की आंखें भी जगमगाने लगीं.

उस रोशनी की जगमगाहट को उन्होंने महसूस किया तो अपने प्यार का इजहार भी एकदूसरे से कर दिया. फिर जल्दी ही दोनों की दूरियां सिमट गईं.

दोनों साथ जिंदगी जीने के इरादे से आगे कदम बढ़ाते गए. शिल्पी जानती थी कि उस के पिता कभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगे, फिर भी उस ने अपनी तरफ से उन्हें पूरी बात बताई. किसी मुसलिम युवक से विवाह करने की बात सुन कर पिता ओमप्रकाश द्विवेदी बौखला गए.

उन्होंने शिल्पी को चेतावनी दी कि उस ने मुसलिम युवक से विवाह किया तो उस से उन का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. शिल्पी ने परिवार के बजाए अपने प्रेमी को चुना. उस ने एक बार भी अपने पिता और परिवार की फिक्र नहीं की.

सन 2013 में शिल्पी ने घर वालों को दरकिनार करते हुए शहंशाह खान से निकाह कर लिया और अपना नाम शिल्पी से आयशा रख लिया. कालांतर में आयशा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अनम रखा. यह 4 साल पहले की बात है. इसी दौरान शहंशाह की एक दिन आलिया नाम की युवती से मुलाकात हुई.

आलिया बरेली के प्रेमनगर थाना क्षेत्र के कोहाड़ापीर में रहने वाले अकबर अली की बेटी थी. अकबर अली के परिवार में पत्नी सलमा के अलावा 2 बेटियां शीबा और आलिया थीं. अकबर अली प्राइवेट जौब करते थे. समय रहते शीबा का उन्होंने महमूद हुसैन नाम के व्यक्ति से विवाह कर दिया.

आलिया ने हाईस्कूल पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. आलिया देखने में काफी खूबसूरत थी, उस के रिश्ते भी आने लगे थे. इस पर अकबर अली को लखनऊ के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के अकबरी गेट मोहल्ले में रहने वाले शमशेद अंसारी का रिश्ता पसंद आया. उन्होंने जल्द ही रिश्ता पक्का कर के आलिया का निकाह शमशेद से कर दिया.

शमशेद दुबई में रहता था. निकाह के बाद कुछ समय बिता कर दुबई चला गया. आलिया यहां ससुराल के लोगों के बीच रह कर भी अकेली थी, वजह थी उस का पति उस से बहुत दूर था. जब भी दोनों की बात होती, आलिया उस के साथ दुबई में रहने की बात करती. लेकिन शमशेद कुछ न कुछ बहाना बना कर उसे टाल देता था.

बारबार कहने पर भी शमशेद नहीं माना तो आलिया का शमशेद और अपने ससुराल वालों से आए दिन झगड़ा होने लगा. निकाह होने के बाद भी वह अनब्याही लड़कियों की तरह अकेले जिंदगी गुजारने को विवश थी.

एक दिन आलिया अपने एक परिचित के यहां गई थी. वहीं शहंशाह भी आया हुआ था. उस परिचित ने ही आलिया और शहंशाह का परिचय कराया था. 23 वर्षीय आलिया की खूबसूरती 41 वर्षीय शहंशाह को भा गई.

शहंशाह ने अपने बारे में आलिया को बताया तो उस के व्यक्तित्व और उस की कमाई देख कर आलिया भी दंग रह गई. आलिया ने शहंशाह को अपने विवाहित होने के बावजूद एकाकी जीवन जीने को मजबूर होने की बात बताई तो शहंशाह की बांछें खिल गईं.

अपने से 18 साल छोटी आलिया की जवानी का आनंद लेने का मौका मिलता दिखने लगा. कमसिन नवयौवना आलिया के यौवन का पराग उस के पति को चखने का मौका नहीं मिला था. वहीं भरी जवानी में पति सुख से वंचित रहने का दुख आलिया को भी कम नहीं था. इसी दुख पर मरहम लगाने का काम शहंशाह को करना था. इस में शहंशाह माहिर था.

उस मुलाकात के बाद उन की मुलाकातों का दौर चल निकला. शहंशाह उस पर जम कर पैसा उड़ाने लगा. आलिया भी शहंशाह की जर्रानवाजी से बहुत खुश थी.

वह अपने शौहर को छोड़ कर शहंशाह के साथ जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी. उसे मालूम था कि शहंशाह विवाहित है और उस के एक बेटी भी है. इस के बावजूद वह शहंशाह से निकाह करने को तैयार थी. दूसरी ओर शहंशाह उसे पाना तो चाहता था, लेकिन उस ने यह तय कर लिया था कि किसी भी हाल में उस से निकाह नहीं करेगा. दोनों की चाहत इस कदर बढ़ी कि जल्द ही दोनों के जिस्म एक हो गए. एक बार उन के बीच जिस्मों का जो खेल खेला गया तो वह बारबार दोहराया जाने लगा.

आलिया अपनी ससुराल हमेशा के लिए छोड़ कर चली आई. तब शहंशाह ने उसे अपने घर से कुछ दूर किराए पर एक कमरा दिला दिया. आलिया उस में रहने लगी. शहंशाह उस से मिलने के लिए आता रहता था.

आलिया उस से निकाह करने के लिए कहती तो शहंशाह टालमटोल कर जाता. वह कहता कि जब उस ने दिल से उसे अपना लिया और उसे पत्नी के रूप में ही अपने साथ रख रखा है तो निकाह की क्या जरूरत है. आलिया समझ जाती कि शहंशाह उस से निकाह करने से बच रहा है.

बिना निकाह वह उसे रखैल की तरह रखना चाहता था. ऐसे में वह शहंशाह से अपने हक और संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती थी, न उस का कोई अधिकार होता. उस पर केवल उस की पत्नी आयशा का ही हक रहता.

जब शहंशाह को इस संबंध में कोई कदम उठाते नहीं देखा तो आलिया ने खुद अपना हक हासिल करने की ठान ली. वह शहंशाह के घर भी जाती रहती थी. उस ने आयशा से दोस्ती भी कर ली थी. काफी दिनों तक आयशा को आलिया और उस के पति शहंशाह के संबंधों के बारे में पता नहीं चला.

23 दिसंबर, 2019 को आलिया शहंशाह के घर पहुंच गई और आयशा को शहंशाह से अपने संबंधों के बारे में बताते हुए कहा कि वह भी शहंशाह की पत्नी है और अब वह भी उस के साथ घर में रहेगी. आयशा का जितना हक शहंशाह पर है, उतना ही हक उस का भी है. शहंशाह की संपत्ति पर भी उस का हक है. यह सुन आयशा सन्न रह गई.

आयशा ने इस बारे में अपने पति शहंशाह से बात की तो शहंशाह ने उस से कह दिया कि उस के आलिया के साथ संबंध जरूर हैं, लेकिन वह उसे कभी उस की सौतन नहीं बनाएगा.

आयशा शहंशाह के जवाब से संतुष्ट हुई तो उस ने शहंशाह के साथ मिल कर आलिया को समझाने की काफी कोशिश की लेकिन आलिया नहीं मानी. इस पर आयशा शहंशाह के साथ मिल कर आलिया नाम की मुसीबत को दूर करने का उपाय सोचने लगी.

आलिया बातों से मानने वाली नहीं थी. शहंशाह ने आयशा को भी बताया कि वह काफी समय से उस के पीछे पड़ी थी, लाख समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी. ऐसे में दोनों ने आलिया को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. इस योजना में शहंशाह ने अपने दोस्त और साथ में प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने वाले आफताब को भी शामिल कर लिया.

23 दिसंबर की रात को शहंशाह आलिया को बाराबंकी के रामनगर क्षेत्र में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के यहां छोड़ने की बात कह कर कार में ले कर चल दिया. कार में आफताब भी था. उस के साथ उस की पत्नी आयशा भी थी.

रास्ते में आलिया को सर्दी लगी तो आयशा ने उसे अपनी जैकेट पहनने को दे दी. आलिया ने वह जैकेट पहन ली. रास्ते में कुछ जरूरी काम निपटाने का बहाना बना कर शहंशाह ने आलिया को आयशा और आफताब के साथ कार से उतार कर बस से भेज दिया.

रात लगभग साढ़े 3 बजे रामनगर थाना क्षेत्र के घाघरा पुल पर तीनों बस से उतर गए. आयशा और आफताब आलिया को ले कर घाघरा घाट पर पहुंचे. वहां आफताब ने मौका देख कर आलिया को दबोच लिया तो आयशा ने आलिया के गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला कस दिया, जिस से दम घुटने से उस की मौत हो गई. इस के बाद लाश पुल से नीचे गिरा कर आयशा और आफताब वहां से निकल कर वापस लखनऊ में अपने घर आ गए.

आयशा ने कुछ दिन पहले एक दुकान से अपनी आईडी पर एक सिम कार्ड खरीदा था. उस सिम का मोबाइल नंबर याद रखने के लिए उस ने दुकानदार से एक परची पर फोन नंबर लिखवा लिया था.

वह परची उस ने अपनी जैकेट की जेब में रख ली थी. वही जैकेट आयशा घटना वाले दिन पहने थी. जब आलिया को ठंड लगी तो उस ने आलिया को वही जैकेट पहनने के लिए दे दी थी. उस समय वह भूल गई थी कि उस की जैकेट की जेब में वह परची पड़ी है, जिस पर उस का फोन नंबर लिखा है. नंबर लिखी उसी परची के सहारे पुलिस उन तक पहुंच गई.

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर के.के. मिश्रा ने मुकदमे में धारा 120बी आईपीसी और बढ़ा दी. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद आयशा और शहंशाह खान को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक आफताब फरार था. पुलिस सरगरमी से उस की तलाश कर रही थी.

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