लौकडाउन लगभग समाप्त हो जाने के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर चलती नजर नहीं आ रही है. आयातनिर्यात इस का एक पैमाना है. जून माह में आयात लगभग 49 प्रतिशत कम हुआ और निर्यात 120 प्रतिशत कम हुआ. वहीं, देश में कोरोना के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इस का मतलब है कि पहले सरकारी हुक्म की वजह से कामधाम बंद हुए थे, लेकिन अब लोग खुद काम कम ही कर रहे हैं और आयातनिर्यात का जोखिम नहीं ले रहे क्योंकि आज और्डर दें या लें तो वह 3 माह बाद पूरा होता है.
कोरोना की वजह से मालूम नहीं कि कब कौन सा शहर, कौन सा राज्य, कौन सा व्यापारिक इलाका बंद हो जाए. कोरोना के कारण बंद हुआ बाजार जब खुलता है तो भी ग्राहक नहीं लौट रहे, यह आयातनिर्यात के आंकड़ों से साफ है.
इस का कारण सिर्फ कोरोना ही नहीं है. सरकार के पहले की और कोरोना के बाद की नीतियां ही जिम्मेदार हैं. कोरोना से पहले ही अर्थव्यवस्था मरने सी लगी थी. भवन निर्माण और औटो सैक्टर मंदी के कारण बंद होने लगे थे. दूसरे बहुत से सैक्टर्स भी छटपटा रहे थे. अगर कोरोना के चलते लौकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद देशभर के मजदूर घर लौटने लगे थे, तो इसलिए कि उन्हें एहसास हो गया था कि अब सरकार से देश संभल नहीं रहा है. उन्होंने गांव में जा कर मरने को ज्यादा अच्छा समझा. करोड़ों मजदूरों को वह एहसास हो गया जो देश के भक्त व्यापारियों को नहीं हुआ और वे आस लगाए रहे कि सबकुछ ठीक हो जाएगा.