संपादकीय

लद्दाख की सीमा पर विवाद को इस बार चीन बहुत ही गंभीरता से ले रहा है. वह भारत के साथ एक लंबे मुकाबले की तैयारी कर रहा लगता है. उस ने न केवल भारत-चीन सीमा तक पहुंचने के लिए पक्की सड़कें बना ली हैं, पुल भी बना लिए हैं बल्कि हजारों सैनिक भी तिब्बत में सीमा से सिर्फ 200 किलोमीटर दूर जमा किए हैं. वह कम हवा में उड़ सकने वाले अपने जैट-20 हैलिकौप्टर भी ले आया है. वह ट्रकों पर कसी भारी पीसीएल-181 तोपें भी ले आया है जो 50 किलोमीटर दूर तक मार कर सकती हैं और औटोमैटिक निशाना भी लगाती हैं, बम लोड भी खुद करती हैं.

वहीं, भारतीय सेना भी कम नहीं है और यह 1962 भी नहीं जब जवाहरलाल नेहरू जैसे शांति का राग अलापने वाले प्रधानमंत्री थे.

चीन, कुछ कयासों के अनुसार,50 किलोमीटर तक भारतीय सीमा में घुस चुका है. अब वह बातचीत भी नहीं कर रहा. जो भी बातचीत हो रही है वह स्थानीय सीमा पर मौजूद सैन्य अधिकारियों के बीच हो रही है, दिल्ली और बीजिंग में बैठे विदेश मंत्रालयों के सचिवों, मंत्रियों या प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के बीच नहीं.

चीन अभी 2 कदम आगे एक कदम पीछे वाली नीति अपना रहा है जिसे खींचो और ढीला छोड़ो भी कहा  जा सकता है यानी आगे बढ़ो, जमीन हथिया लो और फिर थोड़ा पीछे हट जाओ. दुश्मन जैसे ही थोड़ा सुस्ताए, फिर आक्रमण कर दो.

भारत और चीन के बीच खुल कर युद्ध होगा, इस की संभावना कोविडग्रस्त दुनिया में नहीं है. पर यह अवश्य है कि चीन इस का इस्तेमाल भारत की अमेरिका से बढ़ती दोस्ती में दरार डालने के लिए कर रहा है, साथ ही भारत के बहुत ही लंबी सोच वाले बैल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव से जुड़ने को सबक सिखाने के लिए सीमा विवाद का बहाना बना रहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहले तो नरेंद्र मोदी से दोस्ती बढ़ाई पर जब उन्हें लगा कि भारत कुछ ज्यादा ही दंभी और ज्यादा ही सेना पर इतरा रहा है, तो उन्होंने 2-2 हाथ करने की नीति अपनाई है.

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