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किसान न हों लाचार जब पौधे हों बीमार

हरित क्रांति के बाद से पैदावार बढ़ी है. आबादी के लिए न सिर्फ अनाज मयस्सर हुआ, बल्कि भंडार भी भरे. इस के अलावा कैमिकल खाद व जहरीली दवा के साइड इफैक्ट से फसलों में लगने वाली बीमारियां भी तेजी से पनपीं. इन सब की वजह से हर साल पैदावार का एक बड़ा हिस्सा किसानों के हाथ से निकल जाता है.

बहुत से किसान गेहूं की करनाल बंट जैसी बीमारी को अहमियत नहीं देते, लेकिन इस बीमारी ने गेहूं की पैदावार घटाई है. साथ ही, दूसरे देशों को भेजने वाले गेहूं ने भी समस्याएं खड़ी कर दी हैं. फसलों में लगने वाली बीमारियां किसानों के लिए सिरदर्द और खेती के वैज्ञानिकों के लिए चुनौती साबित हो रहे हैं.

किसान दिनरात मेहनत कर के फसलें उगाते हैं, अपना खूनपसीना बहाते हैं, पूरी लागत लगाते हैं, लेकिन देखभाल व चौकसी के बावजूद भी कई बार फसल में कोई न कोई बीमारी लग जाती है. ऐसे में किसानों का जोखिम व उन की परेशानी बढ़ जाती है. अगर रोकथाम न हो तो फसल चौपट हो जाती है, जिस से किसानों को नुकसान होता है.

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क्या है पौधों की बीमारी

सिर्फ जानवर और इनसान ही नहीं, पौधे भी बीमार होते रहते हैं. आमतौर पर पौधे जमीन से पानी, खनिज और सूरज से रोशनी वगैरह ले कर सभी हिस्सों को खुराक भेजते हैं, लेकिन कुछ पौधे जब यह काम ठीक से नहीं कर पाते तो उन में बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. ऐसे पौधे अपनी ही किस्म के दूसरे पौधों से अलगथलग दिखने लगते हैं.

बीमारी से पौधों के साइज, बनावट व बढ़त पर बुरा असर पड़ता है. उपज घट जाती है. उस की क्वालिटी खराब हो जाती है या उपज बिलकुल नहीं होती. लगातार कीड़ेमार दवाओं के जहरीले असर, कैमिकल खाद, आंधीतूफान, पौलीथिन की भरमार और पानी के कटाव, बहाव वगैरह से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी आती है. खेती की उपजाऊ ताकत घटने लगती है. खड़ी फसल में तमाम तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं.

कुछ बीमारियां असंक्रामक यानी छूत की नहीं होतीं. जमीन में जरूरत से ज्यादा नमी की कमी या बहुत इजाफा, सूरज की गरमी या बहुत सर्दी वगैरह से भी पौधों के कुदरती मिजाज बदलते हैं. बीज, जमीन और हवा के जरीए भी पौधे बीमार होते हैं.

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फफूंदी, जीवाणु, काई, वायरस, निमेटोड यानी सूत्रकृमि जैसे जानदार सूक्ष्म परजीवी पौधों में बाहर या अंदर से उन की खुराक चट करने लगते हैं. सूक्ष्मजीवों के इस हमले से पौधों की बढ़वार घट जाती है इसलिए वे कमजोर और बीमार हो जाते हैं. कारगर रोकथाम के लिए रोग की सही पहचान करना लाजिम है वरना रोग महामारी में भी बदल सकते हैं.

रोकथाम है जरूरी

पौधों की बीमारी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को समयसमय पर निगरानी करते रहना चाहिए. इस के लिए वे अपने व आसपास के दूसरे खेतों पर भी नजर डालते रहें ताकि मर्ज बढ़ने से पहले ही शुरुआती लक्षणों का पता लग जाए और समय रहते फसल में लगी बीमारी की रोकथाम की जा सके.

दिल्ली में चल रहा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान देश में सब से अव्वल नंबर पर है. इस संस्थान के माहिर वैज्ञानिकों ने फसलों के रोग व उन की रोकथाम के उपायों पर बहुत खोजबीन के बाद कई कारगर तरीके निकाले हैं. रोग पैदा करने वाली वजह व माकूल माहौल न मिलने से फसलों में रोग तेजी से पनपते हैं. इसलिए इस जुगलबंदी को तोड़ने के लिए कई तरह के उपाय अपनाने जरूरी हैं. इसी को समेकित रोग प्रबंधन कहते हैं.

आमतौर पर रोगों के जनक फल, फूल, बीज, कंद व पौध वगैरह में छिपे रहते हैं. पहला उपाय तो यह है कि अप्रमाणित व अनजानी पौध सामग्री का बहिष्कार, रोक व पाबंदी. खेती में कई बीमारियों के जीवाणु दूसरे देशों से आ जाते थे, इसलिए साल 1997 से पौधों की बेरोकटोक आवाजाही पर नकेल कसी गई. दुनिया के डेढ़ सौ देश यह उपाय कर रहे?हैं. इस में कोशिश यह की जाती है कि एक इलाके के रोग दूसरे इलाकों में फैलने से रोके जाएं.

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किसानों को चाहिए कि वे रजिस्टर्ड संस्थाओं व पंजीकृत विक्रेताओं से हमेशा प्रमाणित बीज ही खरीदें, क्योंकि वे स्वस्थ फसल व स्वस्थ खेत से माहिरों की मौजूदगी में लिए जाते हैं. इस के अलावा रोग पैदा करने वाले सूक्ष्म जीवों को खेत की सफाई कर के खत्म किया जा सकता है.

अमूमन रोगी पत्तियां, जड़ें व डालियां कटने के बाद खेत में ही पड़ी रह जाती हैं. उन हिस्सों और खरपतवारों पर रोगाणुओं के दूसरी फसलों पर लगने व बढ़ने का मौका मिल जाता है. खरपतवार सहित ऐसे सारे कचरे को सावधानी से एक जगह इकट्ठा कर के जला देना चाहिए.

गेहूं, जौ, ज्वार व मक्का की फसल में यदि कंड रोग दिखे तो बीमार बालियों को किसी थैली से ढक कर तोड़ें व जला दें.

ऐसा न करने पर कंड के बीजाणु हवा के जरीए फैल कर दूसरी बालियों को भी अपनी चपेट में ले लेते हैं. इसी तरह फलदार पेड़ों की टहनियां काट कर जला दें व कटे हुए बचे हिस्सों पर फफूंदीनाशक लगा दें. फफूंदी से कई रोग होते हैं. इसलिए बोआई से पहले 50 डिगरी सैल्सियस से कम गरम पानी में भिगोने के बाद बीज धूप में सुखा लेने चाहिए.

सूरज की गरमी भी रोग खत्म करने की ताकत देती है. बीमारी के असर वाली जमीन में पानी दे कर खेत को प्लास्टिक की शीट से

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ढक दें. इस से नम जमीन से गरमी बढ़ने से नमी कम होने लगती है इसलिए उस में रोगाणु मरने लगते हैं, लेकिन इस तरीके का इस्तेमाल जमीन के छोटे हिस्से में करना आसान होता है.

पौधों को बीमारी से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने रोगरोधी किस्में ईजाद की हैं. इसलिए किसानों को रोगरोधी किस्मों को ही तरजीह देनी चाहिए. गेहूं के सेहू कीट व बाजरे में लगने वाले चेंपा कीट पैदा करने वाले तत्त्वों को अलग करने के लिए 5 फीसदी नमक के घोल में डुबो कर बीज छलनी से छान लेना चाहिए.

फसलों को रोगों से बचाने में जैव उपाय बहुत कारगर साबित हुए हैं. जमीन में मिले रोगाणुओं से लड़ने के लिए ट्राइकोडर्मा जैसे प्रतिजीवियों को गेहूं, कपास, तरबूज व सूरजमुखी वगैरह बहुत सी फसलों में डाला जाता है. ये प्रतिरोधी अपनी आदत के मुताबिक बगैर प्रदूषण के रोगाणुओं को कमजोर कर उन का सफाया कर देते हैं.

आजकल सघन खेती करने पर ज्यादा जोर है, लेकिन ऐसे कई तरीके हैं जिन पर ज्यादातर किसान कम ध्यान देते हैं. मसलन, कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से फसल चक्र अपनाना, बोआई का सही समय, गहरी जुताई, उर्वरकों की खुराक, नमी पर काबू, बीज की मात्रा व मिश्रित खेती करने जैसे कारगर तरीकों से भी फसलों को काफी हद तक रोगों से बचाया जा सकता है.

ज्यादातर किसान और वैज्ञानिक पौधों में लगने वाले रोगों की रोकथाम का आसान उपाय कैमिकल दवाओं को मानते हैं. यह सच है कि कैमिकल दवाओं का इस्तेमाल यदि सही तरीके से किया जाए तो उन का असर सीधा व जल्दी होता?है. बाजार में आजकल बहुत सी छोटीबड़ी कंपनियों के फफूंदीनाशक, जीवाणुनाशक, विषाणुनाशक व खरपतवारनाशक मिलते हैं.

माहिरों की सलाह से कैप्टान व थीरम का इस्तेमाल बीजोपचार में करें. साथ ही, क्लोरोपिकरीन का जमीन उपचार में व गंधक, जिनैब और मैनेब वगैरह दवाओं का सतही छिड़काव किया जाता है. कई दवाएं पौधों के भीतर घुस कर अंदर फैल जाती हैं और रोग पैदा करने वाले जरीए को ही खत्म कर देती हैं.

रोगी पौधों के इलाज में फफूंदीनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, जो रोगों के पैदा करने वालों का खात्मा कर देते हैं. खुद अपने खेत, किसी किसान या आम दुकानदार से खरीदे गए अप्रमाणित बीज को उपचारित करना जरूरी होता है. इस के लिए बीजों को एक ड्रम में डाल कर उस में फफूंदीनाशक पाउडर डाल कर 10 मिनट तक घुमाना अच्छा रहता है.

खेत की मिट्टी को उपचारित करने के लिए बोआई से पहले पैकेट पर दी गई हिदायत के मुताबिक मात्रा को पानी में मिला कर इस तरह इस्तेमाल किया जाता है कि वह घोल 15 सैंटीमीटर गहराई तक पहुंच जाए.

ध्यान रहे कि जो फफूंदीनाशक वाष्पीकृत नहीं होते हैं, उन्हें मिट्टी या उर्वरक में मिला कर बिखेर कर मिला दिया जाता है. हवा के जरीए फैलने वाले रोगों के लिए फफूंदीनाशक के घोल का स्प्रे किया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश की ज्यादातर चीनी मिलों में गरम हवा से गन्ना बीजोपचार करने के संयंत्र लगे हुए?हैं. साथ ही, यह काम मुफ्त में होता है. उत्तर प्रदेश के खेती महकमे में कृषि रक्षा शाखा के तहत हर जिले पर कृषि रक्षा अधिकारी व ब्लौक स्तर पर कृषि रक्षा इकाइयां चल रही हैं. किसान सलाहमशवरा के लिए इन माहिरों से मिल सकते हैं.

पिछले दिनों पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने पौधों का समुचित इलाज करने के लिए आधुनिक सहूलियतों वाला अस्पताल बना कर एक अच्छी पहल की है. खास बात यह है कि खेती के इस अस्पताल में पौधों की हर तरह के कीड़े व बीमारी की जांच व इलाज मुफ्त किया जाता है. कृषि रक्षा शाखा के इस काम के लिए 4 तजरबेकार वैज्ञानिकों की टीम बनाई गई है.

लुधियाना इलाके के किसान अपने बीमार पौधों को ले कर इस अस्पताल में आते हैं. जो लोग दूरदराज बसे हैं, वे अपने पौधों की तसवीरें पूरे ब्योरे के साथ व्हाट्सएप नंबर 9876450766 या फिर हैल्पलाइन नंबर 0161-401960 पर भी भेज सकते हैं.

Nutrition Special: साबुत अनाज, हेल्थ का राज

बाजार में ओट्स या कहें जई की धूम है. जई को कभी अमीर लोगों की रसोई का हिस्सा नहीं माना गया था पर आज ओट केक, ओट ब्रैड, मैगी बना कर, तो पोहा या दलिया के रूप में ही नहीं और भी तमाम तरीके बता कर इसे बेचा जा रहा है. मल्टीग्रेन आटा जिस में जौ, बाजरा, चना, मक्का आदि मिले हों, बाजार पकड़ चुका है, तो अब रागी और गेहूं के मिश्रण से बनी सेवईं सरीखी वर्मिसेली भी लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

रैस्तरां और अच्छे होटल भी ओट्स डोसा और मल्टीग्रेन डोसा बना और परोस रहे हैं. मल्टीग्रेन आटे, बिस्कुट, ब्रैड की ही नहीं, बाजार में मोटे अनाज वाले तमाम उत्पादों की मांग भी बढ़ रही है. फास्ट वर्किंग स्टाइल और फास्टफूड वाली जिंदगी ने समृद्धि दी है तो साथ में कई बीमारियां भी नई जीवनशैली से उपजीं. तमाम तरह की बीमारियों के भय से, मोटे अनाज की घृणा के स्तर तक उपेक्षा करने वाले अमीर तबके ने अब इन्हें अपने सिरमाथे बिठा लिया है.

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बात बहुत पुरानी नहीं है जब लोग अपनी गरीबी का रोना रोते कहते थे, बस, किसी तरह मोटा झोटा खा कर गुजर हो रही है. गांवों में इसी बात को कुछ इस तरह कहते थे, ‘भाई, जौ, मटर, सावां, कोदो खा कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं.’ यानी जौ, चना, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, सावां, टेंगुन, कोदो आदि गरीब मजबूर, मजदूर किसान की थाली का हिस्सा थे तो अमीर लोग मशीन से पिसा गेहूं का महीन आटा, मैदा, ब्रैड, बढि़या चावल और दूसरे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ प्रयोग करते थे.

मध्यवर्ग के लोगों के भोजन में गेहूं, चावल के साथ मोटा अनाज भी शामिल था, पर कुछ दशकों पहले लोगों ने मोटा अनाज खाना छोड़ कर केवल गेहूं, चावल का इस्तेमाल शुरू कर दिया. शहरों में ज्यादातर लोगों ने इस के साथ फास्टफूड और प्रसंस्कृत भोजन को भी अपनी थाली का हिस्सा बना लिया.

धीरेधीरे मोटे अनाज खाद्य शृंखला से बाहर हो गए, क्योंकि सरकार ने भी रियायती दरों पर गेहूं और चावल बांटना और इस के लिए सरकारी खरीद शुरू कर दी, तो किसान इसे कम उपजाने लगे. बाजार में यह कम और महंगा हुआ तो लोग भी कम खाने लगे. उधर, मौका देख कर बाजार ने धावा बोला और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों से दुकानें पट गईं.

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सेहत का भय

अचानक कुछ ही दशकों में यह तथाकथित विकास का पहिया उलटा कैसे घूमा, इस की तह में है जीवन में सेहत का भय. देश डायबिटीज की वैश्विक राजधानी बनने की ओर है तो दिल के मरीजों की संख्या देश में बेतहाशा बढ़ती जा रही है. हाइपरटैंशन, बीपी, मोटापा, क्रौनिक रैस्पिरेटरी जैसी बीमारियां घरघर आम हो गई हैं. सेहत पर यह आफत पिछले कुछ दशकों से ही बुरी तरह बढ़ी है. कह सकते हैं कि जब से हमारी कार्यशैली बदली, खानपान में भी बाजारी उदारवाद का असर पड़ा, हम ने अपने भोजन में शामिल मोटे अनाज छोड़ प्रसंस्कृत खाद्य अपना लिए और मूलतया गेंहू व चावल पर निर्भर हो गए. नतीजा यह हुआ कि हमारे रोजमर्रा के खाने से प्राकृतिक रेशे और कई तरह के प्रोटीन गायब हो गए.

कुछ बेहद जरूरी पोषक तत्त्व भी इस नई आदत के चलते हम से दूर हो गए. परिणाम यह हुआ कि बढ़ते शारीरिक तनाव, दबाव, सक्रियता और दूसरी जरूरी चीजों को  झेलने में शरीर पर्याप्त सक्षम नहीं रहा, तिस पर बनावटी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के अपने अवगुण तो थे ही. धीरेधीरे बीमारियां सामने आईं. उन्होंने घर बना लिया.

जब आंकड़ों के विश्लेषण और शोध के बाद यह बात सामने आई तो चिकित्सकों और डाइटीशियंस ने लोगों को चेताया कि अगर इन जानलेवा बीमारियों से बचना है तो मोटा अनाज खाने में फिर से शामिल करना होगा.

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स्वास्थ्य के लिए लौटना होगा

आज ज्यादातर डाक्टर अपने मरीजों को बता रहे हैं कि पहले लोग गेहूंचावल के साथसाथ समयसमय पर मोटा अनाज जौ, चना, बाजरा, रागी इत्यादि भी खाते थे. इसलिए मोटे अनाज से उन्हें जो खास पौष्टिक तत्त्व मिलते थे उस से वे तंदुरुस्त रहते थे. आजकल लोगों ने मोटा अनाज खाना छोड़ कर केवल गेहूं का उपयोग करना शुरू कर दिया है. इस से उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्त्व नहीं मिल पाते हैं. सो, हमें इस ओर लौटना होगा.

बीमारियों का भय और चिकित्सकों की सीख से बहुत से लोग खानपान के मामले में पुराने दिनों की तरफ लौटने लगे हैं. इस का सुबूत है बाजार में मोटे अनाजों और उस से बनने वाले उत्पादों की बढ़ती मांग. मगर अभी भी बहुतों को यह जानना बाकी है कि सेहत सही रखनी है और उम्रदराज होना है तो प्रसंस्कृत या प्रोसैस्ड व रिफाइंड फूड के बजाय मोटे अन्न खाने में बाकायदा शामिल करने होंगे.

साबुत या मोटे अनाज जैसे मक्का, गेहूं, जई, सोयाबीन, ज्वार, बाजरा का संबंध आप की सेहत के साथसाथ दीर्घायुता से भी है. शोधार्थियों के अनुसार, मोटे अनाज सामान्यतौर पर किसी व्यक्ति को 25 वर्षों तक हृदय रोग से दूर रखते हुए मौत के खतरे को काफी हद तक कम करते हैं. यह तथ्य एक नए अध्ययन में सामने आया है. बड़े पैमाने पर किए गए सर्वेक्षण और उस के आधार पर साबुत अनाजों के संबंध में किया गया एक प्रायोगिक वैज्ञानिक शोध यह बताता है कि मोटे अनाजों से मिलने वाले कई तत्त्व, जो शरीर को दोषमुक्त कर सबल बनाते हैं, हृदयरोग से होने वाली मौत के खतरे को कम तो करते ही हैं, मनुष्य को दीर्घायु भी बनाते हैं.

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हार्वर्ड स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ में न्यूट्रिशन की असिस्टैंट प्रोफैसर डा. की सन का कहना है, ‘‘मैं मानती हूं कि यह काफी निर्णायक है कि अगर आप साबुत अनाज खाते हैं तो आप हमेशा फायदे में रहते हैं.’’

शोध ने साबित किया

व्यापक शोध के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने कई बड़े अध्ययनों पर गौर किया है, जिन में 74 हजार महिलाओं ने बतौर नर्स स्वास्थ्य अध्ययन के अंतर्गत हिस्सा लिया तो लगभग 44 हजार पुरुषों ने भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में अध्ययन में भागीदारी निभाई. इन सभी प्रतिभागियों द्वारा साबुत अनाज खाद्य के रूप में लिए जाने का प्रत्येक 2 से 4 वर्ष में सर्वे किया गया.

अध्ययन में देखा गया कि 24 से 26 साल बाद 26,920 लोगों की मौत हो गई. डा. की सन कहती हैं कि अध्ययन में मुख्यतया 3 तथ्य पाए गए. पहला, शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग पूरे अध्ययन के दौरान एकदम से साबुत अनाज नहीं खाते थे उन के मुकाबले जो लोग 28 ग्राम साबुत अनाज दिनभर में खाते थे, उन में मौत के खतरे 5 फीसदी कम पाए गए, हृदयरोग संबंधित मौत के खतरे में 9 फीसदी की कमी देखी गई. दूसरे कई टैस्ट भी लिए गए और पाया गया कि सामान्य जीवन में रोजमर्रा की सेहत समस्याएं उन्हें कम हुईं जो मोटा अनाज खाते रहे.

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जो लोग साबुत अनाज का कुछ हिस्सा ही खाते थे, जैसे अन्न के ऊपरी आवरण को जिसे छिलका, भूसी या चोकर कहते हैं, उस के चलते न सिर्फ पेट की समस्याओं में लाभ हुआ बल्कि हृदयरोग की वजह से होने वाली मौत के संबंध में उस का सकारात्मक प्रभाव देखा गया, मृत्युदर कम ही रही.

हार्वर्ड स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ के अनुसार, चोकर एक तरह का कठिन आवरण है जोकि साबुत अनाजों को आच्छादित करता है यानी इन के ऊपर छिलके के बतौर चढ़ा रहता है और इस में एंटीऔक्सीडैंट, विटामिन बी और फाइबर होते हैं. आप जो आटा खाते हैं अगर वह बाजार का है और उस पर होलग्रेन नहीं लिखा तो वह भी साबुत गेहूं का आटा नहीं है. जब साबुत अनाज को रिफाइंड अनाज के रूप में प्रसंस्कृत किया जाता है तो अनाज के ऊपर से चोकर को हटा दिया जाता है, साथ ही, उस के बीच के महत्त्वपूर्ण हिस्से को भी दूसरे कार्यों के लिए अलग कर लिया जाता है.

बाजार में तमाम उत्पाद मल्टीग्रेन, होलग्रेन इत्यादि के नाम पर बिक रहे हैं. पर जरूरी नहीं कि वे शतप्रतिशत सही ही हों. देश में मोटे अनाज का उत्पादन लगातार घट रहा है जबकि बाजार मोटे अनाज के उत्पादों से पट रहा है. ऐसे में इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि आखिर यह मोटा अनाज कहां से आ रहा है.

यह अनाज खास फार्महाउसों की उपज हो सकता है जो बाजारू जरूरतों के मुताबिक उपजाया गया हो और पूरी तरह निरापद नहीं भी हो सकता है. ऐसे में अपने खास किराना और देशी स्रोतों पर भरोसा करें और मोटे अनाज को अपनी थाली का हिस्सा बनाएं. ये आप को लंबा, सेहतमंद जीवन देंगे. द्य

इन को अपनाएं, खुद को बचाएं

ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ, जई जैसे मोटे अनाज पोषण के मामले में गेहूं और चावल से बीस ही ठहरते हैं. कई मोटे अनाजों में प्रोटीन का स्तर गेहूं के बराबर ही है जबकि वे विटामिन बी, आयरन, फास्फोरस तथा अन्य कई पोषक तत्त्वों के मामले में उस से बेहतर हैं. मोटे अनाज आंतों को कसरत कराते हैं जिस के चलते इसे खाने वालों को कब्ज नहीं होता. आज ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल और मधुमेह में शुगर का स्तर संतुलित बनाए रखने के लिए मोटे अनाज अमीरों और शहरी मध्यवर्ग के भोजन का अनिवार्य हिस्सा बनते जा रहे हैं.

1.ओट्स :

मोटे अनाज में सब से अधिक फायदेमंद है ओट्स. इसीलिए यह बाजार में खूब बिक रहा है. ओट्स या जई में विशेष प्रकार का फाइबर बीटा ग्लूकैन होता है. यह रसायन खून में कोलैस्ट्रौल को संतुलित रखता है. इस में पाया जाने वाला इनोजिटाल भी इसी काम को बखूबी करता है. यह दिल की बीमारी से बचाता है. यही नहीं, ब्लडशुगर और इन्सुलिन को भी नियंत्रित रखने के कारण यह मधुमेह के रोगियों को भी बहुत भाता है.

2.रागी :

रागी उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है. इस के हर 100 ग्राम में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है. दूसरे किसी भी अनाज में कैल्शियम की इतनी अधिक मात्रा नहीं पाई जाती है. हड्डियों के लिए यह शानदार है.

3.बाजरा :

बाजरे के गुणों को बखानने के लिए पूरी किताब चाहिए. यह मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, दिल की बीमारियों समेत कई मामलों में उपयोगी है. इस के 100 ग्राम खाद्य हिस्से में लगभग 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्त्व और 132 माइक्रोग्राम कैरोटिन मौजूद होता है. यह हमारी आंखों की भी हिफाजत करता है.

4.ज्वार :

ज्वार को शराब, डबलरोटी जैसे उद्योग में तो इस्तेमाल किया ही जाता है, कई बार बाजरा, गेहूं और चावल, सोयाबीन के साथ मिला कर इस से शिशु आहार समेत विभिन्न उत्पाद बनाए जाते हैं. इस के प्रति 100 ग्राम की मात्रा में 10.4 ग्राम प्रोटीन, 66.2 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.7 ग्राम रेशा और अन्य सूक्ष्म तथा ढेरों पौष्टिक तत्त्व मौजूद होते हैं.

मीठा खाने का है मन तो बनाएं ब्रेड हलवा

वैसे तो ब्रेड से कई प्रकार के डिश बनाएं जाते हैं. यह लगभग हर किसी के घर में मौजूद रहता है. आइए आज जानते हैं ब्रेंड हलवा की रेसिपी .

सामग्री

– ब्रेड ( 08 पीस)

– दूध  (400 मिलीलीटर)

– शक्कर (200 ग्राम)

– घी  (02 बड़े चम्मच)

– किशमिश  (15 से 20)

– काजू (10 से 12 बारीक कतरे हुए)

– बादाम (बारीक कतरे हुए)

बनाने की विधि

– सबसे पहले एक बरतन में दूध गर्म करें.

– जब तक दूध गर्म हो रहा है, ब्रेड के छोटे-छोटे टुकड़े कर लें.

– इसी के साथ काजू के भी छोटे-छोटे टुकड़े कर लें.

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– जब दूध हल्का गर्म हो जाए, गैस की आंच एकदम धीमी कर दें.

– जिससे दूध गर्म होता रहे.

– अब एक नान स्टिक कड़ाही में घी गर्म करें.

– जब घी गर्म हो जाए, तो उसमें ब्रेड के टुकड़े डाल दें और चलाते हुए भूनें.

– जब ब्रेड के टुकड़े हलके भूरे और खस्ता हो जाएं.

– तो  उसमें किशमिश और काजू के टुकड़े डाल दें.

– मिश्रण को अच्छी तरह से चला लें.

– इसके बाद मिश्रण में शक्कर मिला लें और उसे चलाते हुए पकायें.

– थोड़ी देर में शक्कर गर्म होकर पिघलने लगेगी.

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– जैसे ही शक्कर पिघलने लगे, कड़ाही में दूध डाल दें.

– और मिश्रण को चलाते हुए पांच मिनट तक पकायें.

– जब ब्रेड का मिश्रण हलवे जैसा गाढ़ा हो जाए, गैस बंद कर दें.

– अब ब्रेड के हलवा को किसी बाउल में निकाल लें.

– और ऊपर से बारीक कटे हुए बादाम के टुकड़ों से सजा लें.

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– लीजिये आपकी ब्रेड का हलवा बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

– अब आपका स्वादिष्ट ब्रेड का हलवा तैयार है.

इसे गर्मा-गरम प्लेट में निकालें और परिवार के साथ आनंद लें.

मुहुर्त के साये में शिक्षित भारतीय

भोपाल निवासी शर्मा जी के बेटे की जब से शादी तय हुई है उनकी रातों की नींद हराम हो गयी है. कारण शादी करने के लिए किसी समुचित स्थान का प्रबंध न हो पाना. सितंबर माह में शादी तय होने के बाद पंडितजी ने दिसंबर के प्रथम सप्ताह में तीन मुहूर्त बताए. पंडित जी के अनुसार इसके बाद 6 माह तक कोई मुहूर्त नहीं है, अब इन तिथियों में भोपाल, इंदौर और उज्जैन तक में भी कोई होटल या समुचित स्थान  उन्हें नहीं मिल पा रहा है सो इसी बात को लेकर शर्मा जी और उनका परिवार हैरान परेशान हैं उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि इस मुहूर्त में वे कैसे बेटे का विवाह संपन्न करें और यदि शादी अभी  नहीं हुई तो 6 माह तक रुकना पड़ेगा.

रजिस्ट्रार आफिस में अधिकारी सुनयना ने जब अपना घर खरीदा तो उनके पंडित जी ने रजिस्ट्री करवाने के लिए शनिवार शाम 4 बजे का मुहूर्त बड़ा अच्छा बताया. गुरुवार और शुक्रवार को आफिस अवकाश होने के बावजूद सुनयना ने बरसते पानी में जाकर शनिवार 4 बजे ही घर की रजिस्ट्री करवाई भले ही इसके लिए उसे क्लर्क को कुछ रिश्वत भी देनी पड़ी.

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एक कंपनी में सी. ए. रेणु नेअपने पंडित जी के बताए शुभ मुहूर्त में डिलीवरी करवाने के लिए जबर्दस्ती ऑपरेशन करवाया जब कि डॉक्टर के अनुसार उसकी नॉर्मल डिलीवरी होने के शत प्रतिशत चांस थे परंतु रेणु के दिमाग में तो मुहूर्त ने डेरा डाल रखा था.

स्कूल टीचर पारुल के पंडित जी ने उसके नए घर के गृहप्रवेश के लिए जून माह की तारीख बताई जब कि पारुल का घर फरवरी में बनकर तैयार हो गया था. मुहूर्त के चक्कर में तीन माह का अतिरिक्त किराया देना पड़ा ऊपर से भरी गर्मी में मेहमानों के लिए कूलर ऐसी की व्यवस्था करनी पड़ी सो अलग.

ये हमारे शिक्षित भारतीय समाज के कुछ उदाहरण हैं जो बताते हैं कि किस प्रकार पूर्ण शिक्षित और नौकरी पेशा लोग भी अपनी शिक्षा और तार्किक क्षमता को दरकिनार करके मुहूर्त के चक्कर में फंसकर अनेकों समस्यायें उत्पन्न कर लेते हैं. इस मुहूर्त के चक्कर में वे अपना सुख, शांति और धन को भी दांव पर लगा देते हैं.

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क्या है मुहूर्त का चक्कर

युवा पंडित राहुल शर्मा के अनुसार मुहूर्त दो प्रकार के होते हैं शुभ और अशुभ मुहूर्त. शुभ मुहूर्त अर्थात ग्राह्य समय और अशुभ मुहूर्त अथवा अग्राह्य समय. पंडित जी के अनुसार शुभ अर्थात ग्राह्य समय में किये गए कार्य सफल होते हैं क्योंकि यह कार्य को प्रारम्भ करने का वह समय होता है जब तमाम ग्रह नक्षत्र शुभ परिणाम देने वाले होते हैं. मुहूर्त निकालते समय पंडित वक़्त, तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, चौघड़िया और लग्न आदि का ध्यान रखते हैं. पंडितों के अनुसार मांगलिक कार्यों को शुभ मुहूर्त में करने से वे भविष्य में सफल और सुखद परिणाम देने वाले होते हैं.

कितना कारगर हैं मुहूर्त

इसे समझने के लिए हम कुछ उदाहरणों पर नजर डालते हैं-

कर्नल सिंह ने अपनी इकलौती बेटी की शादी सितंबर माह में की क्योंकि उनका दामाद उन्हीं दिनों अवकाश लेकर अमेरिका से भारत आया था. भारतीय पंडितों के अनुसार उस समय देव सोये रहते हैं इसलिए शुभ कार्यो को अंजाम नहीं दिया जा सकता परन्तु कर्नल सिंह ने अपनी उन्नत सोच के चलते इन दकियानूसी विचारों को नकारते हुए धूम धाम से अपनी बेटी की शादी की. बेटी के विवाह को आज 10 वर्ष हो चुके हैं और वह अपने दो प्यारे बच्चों के साथ सुखद दाम्पत्य जीवन का आनंद ले रही है. वहीं त्रिपाठी जी ने अपने बेटे का विवाह अपने खानदानी पुरोहित की राय के अनुसार जन्म कुंडली और गुण मिलाकर शुभ मुहूर्त और शुभ घड़ी में सम्पूर्ण विधि विधान से  किया था परंतु विवाह के दो वर्ष बाद ही उनका दाम्पत्य तलाक की प्रक्रिया में कोर्ट में लंबित है.

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हमारे पड़ोसी रश्मि ने अपने घर की रजिस्ट्री करवाने से लेकर गृहप्रवेश तक सारे कार्य पंडित जी की सलाह के अनुसार शुभ मुहूर्त में किये यहां तक कि बनारस से भोपाल आकर 5 पंडितों ने 10 दिन तक घर मे नियमित पूजा, हवन आदि करके गृहप्रवेश करवाया परंतु उसी घर में से हरदम पति पत्नी के चीखने चिल्लाने और लड़ाई झगड़ों की आवाजें आती रहतीं हैं. माता पिता के हरदम होने वाले कलह से बच्चे भी परेशान रहते हैं. रश्मि के विपरीत नीता ने अपने घर में प्रवेश के लिए किसी पंडित से मुहूर्त निकलवाने के स्थान पर केवल रविवार का दिन और अपने परिवार के सदस्यों की सहूलियत को प्राथमिकता दी और बिना किसी पूजा पाठ और पंडित जी के घर में शिफ्ट हो गई. आज उसे घर में रहते 3 साल हो गए हैं पर आज तक कभी किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. उसके अनुसार घर में आने के बाद उसे बेटे की नौकरी लगने, बेटी की शादी तय होने और पति के प्रमोशन जैसी तमाम खुशियां प्राप्त हुईं हैं.

उपरोक्त उदाहरण बताते हैं कि विवाह, गृहप्रवेश, जन्म और जीवन को भली भांति चलाने के लिए किसी विशेष मुहूर्त या शुभ घड़ी की नहीं बल्कि समझदारी की आवश्यकता होती है. विवाह की सफलता पति पत्नी की परस्पर समझ, त्याग,समर्पण, और सहयोग पर निर्भर करती है. कितने भी शुभ मुहूर्त में खरीदे और प्रवेश किये घर में यदि परिवार के सदस्य आपस में लड़ते झगड़ते और मारते पीटते रहेंगे तो इसमें घर का क्या दोष ? शुभ मुहूर्त में जन्म लिए बच्चे की परवरिश यदि ढंग से नहीं की जाएगी तो बच्चा एक अच्छा और सफल इंसान कैसे बन पाएगा ? वास्तव में किसी भी रिश्ते और कार्य की सफलता कभी मुहूर्त से नहीं बल्कि इंसान के प्रयास पर निर्भर होती है. शुभ अशुभ मुहूर्त और घड़ी केवल पंडितों के बनाये चोचले और अपनी कमाई करने का जरिया मात्र हैं क्योंकि उनकी रोजी रोटी का एकमात्र साधन ही इसी प्रकार के कर्म कांड हैं. आजकल तो पंडितों ने दीवाली, दशहरा, मकर संक्रांति, होली और रक्षाबन्धन जैसे पर्वों पर भी पूजा करने का मुहूर्त बताना प्रारम्भ कर दिया है जिससे आम जनता भी सुखद फल की चाह में उसी शुभ घड़ी में पूजा करके पंडितों को भरपूर दान दक्षिणा से नवाजती है.

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वास्तव में मुहूर्त, शुभ अशुभ घड़ी जैसे शब्द पंडे पुजारियों के फैलाये हुए जाल हैं आवश्यक है कि उनके इस जाल में फंसने के बजाय दिमाग से काम लिया जाए. विचारणीय प्रश्न है कि जब सभी दिन और घंटे एक भौगोलिक प्रक्रिया है इसमें शुभ और अशुभ कैसे हो सकता है. मुहूर्त वाले दिनों में जहां स्थान,केटरिंग, पार्लर जैसी सर्विसेज बहुत महंगे दामों पर प्राप्त होती हैं वहीं बिना मुहूर्त के दिनों में इनकी उपलब्धता बहुत सुगम्य होती है जिससे बहुत अधिक आर्थिक बचत हो जाती है. आज के तकनीक के युग में इस प्रकार कीविचारधारा से मुक्ति पाना अत्यंत आवश्यक है तभी सच्चे मायनों में उन्नतिशील कहलाने के हकदार हो पाएंगे.

 

Crime Story: शक का कीड़ा

सौजन्य-सत्यकथा

कहा जाता है कि शक का कोई इलाज नहीं है. पतिपत्नी के संबंध विश्वास की बुनियाद पर ही

कायम रहते हैं. यदि इन संबंधों से भरोसा उठा कर बेवजह शक का कीड़ा मन में बैठा लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है. ये कहानी भी ऐसे ही एक शक्की पति सुदर्शन वाल्मीकि की है, जिस ने अपनी पत्नी पर किए गए

शक की वजह से अपनी गृहस्थी खुद उजाड़ दी.

मध्य प्रदेश के जबलपुर के तिलवारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत मदनमहल की पहाडि़यों के पास के एक इलाके का नाम भैरों नगर है,  इस जगह पर गिट्टी क्रेशर लगे होने के कारण इसे क्रेशर बस्ती के नाम से भी जाना जाता है. इसी बस्ती में दशरथ वाल्मीकि का परिवार रहता है. दशरथ के परिवार में उस की पत्नी के अलावा उस का 39 साल का बेटा सुदर्शन उर्फ मोनू वाल्मीकि, उस की पत्नी प्रीति और 22 माह की बेटी देविका भी रहती थी.

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दशरथ के परिवार के सभी वयस्क सदस्य जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मैडिकल कालेज में साफसफाई का काम करते थे. सुदर्शन मैडिकल कालेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. परिवार के सदस्यों के कामधंधा करने से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है और परिवार हंसीखुशी से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

17 जनवरी, 2020 की सुबह सभी लोग अभी बिस्तर से सो कर उठे भी नहीं थे कि सुदर्शन और उस की पत्नी ने घर में यह कह कर कोहराम मचा दिया कि उन की बेटी देविका बिस्तर पर नहीं है. उन्होंने अपने मातापिता को बताया कि शायद किसी ने देविका का अपहरण कर लिया है. देविका के दादादादी का तो यह खबर सुन कर बुरा हाल हो गया था. देविका को वे बहुत लाड़प्यार करते थे.

जैसे ही बस्ती में देविका के कमरे के भीतर से गायब होने की खबर फैली तो आसपास के लोगों की भीड़ सुदर्शन के घर पर जमा हो गई. लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी छोटी सी बच्ची का अपहरण कर सकता है.

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चूंकि कुछ दिनों पहले ही जबलपुर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सुदर्शन के मकान का पिछला हिस्सा तोड़ दिया था, जिस की वजह से पीछे की ओर ईंटें जमा कर उस हिस्से को बंद कर दिया था.

लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी दीवार की ईंटों को हटा कर अपहर्त्ता शायद अंदर घुसे होंगे. देविका की मां प्रीति लोगों को रोरो कर बता रही थी कि 16 जनवरी की रात वे अपनी बेटी देविका को बीच में लिटा कर ही सोए थे, पर अपहर्त्ताओं ने देविका के अपहरण को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उन्हें इस की आहट तक नहीं हुई.

लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन ऐसा दुस्साहस कर सकता है कि अपने मां बाप के बीच सो रही बच्ची का अपहरण कर के ले जाए. मासूम बच्ची देविका की खोजबीन आसपास के इलाकों में लोगों द्वारा करने के बाद भी उस का कोई अतापता नहीं चला तो उस के गायब होने की रिपोर्ट जबलपुर के तिलवारा पुलिस थाने में दर्ज करा दी.

पुलिस थाने में सुदर्शन ने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि रात को 11 बजे वह खाना खा कर पत्नी और बच्ची के साथ सो गया था, रात लगभग 2 बजे देविका ने उठने की कोशिश की तो उसे दोबारा सुला दिया गया. सुबह 8 बजे वह सो कर उठे तो विस्तर से देविका गायब थी.

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तिलवारा थाने की टीआई रीना पांडेय ने आईपीसी की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी तुरंत ही पुलिस के आला अधिकारियों को दे दी और वह घटनास्थल की ओर निकल पड़ीं. जैसे ही रीना पांडेय भैरों नगर पहुंचीं, वहां तब तक भारी भीड़ जमा हो

चुकी थी.

उन्होंने एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी वहां बुला कर मौका मुआयना करवाया. खोजी कुत्ता

सुदर्शन के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहा.

घटना की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर के एसपी अमित सिंह ने एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल एवं एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान के मार्गदर्शन में थानाप्रभारी तिलवारा रीना पांडेय के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसआई राजेश शुक्ला, विनोद द्विवेदी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने भैरों नगर के तमाम लोगों से जानकारी ले कर कुछ संदिग्ध लोगों को पुलिस थाने में बुला कर पूछताछ भी की, मगर किसी से भी देविका का कोई सुराग हासिल नहीं हो सका. इस घटनाक्रम से भैरों नगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों की पुलिस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रशासन के खिलाफ धरना देना शुरू कर दिया था. वे पुलिस प्रशासन से मांग कर रहे थे कि जल्द ही मासूम बच्ची देविका को खोज निकाला जाए.

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इधर पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो चुकी थी. देविका को गायब हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका था, पर पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि देविका का अपहरण आखिर किसलिए किया गया है. यदि फिरोती के लिए अपहरण हुआ है तो अभी तक किसी ने फिरोती की रकम के लिए सुदर्शन के परिवार से संपर्क क्यों नहीं किया. पुलिस टीम को जांच करते एक माह से अधिक समय हो गया था,

लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी.

26 फरवरी 2020 को भैरों नगर की नई बस्ती इलाके में बने एक कुएं के इर्दगिर्द बच्चे खेल रहे थे. खेल के दौरान कुएं में अंदर झांकने पर उन्हें कोई चीज तैरती दिखाई दी, तो बच्चों ने चिल्ला कर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया. बस्ती के लोगों ने कुएं में उतराते शव को देखा तो इस की सूचना तिलवारा पुलिस को दे दी. सूचना पा कर पुलिस दल मौके पर पहुंचा और शव को कुएं से बाहर निकलवाया गया. शव की हालत इतनी खराब हो चुकी थी, कि उसे पहचान पाना मुश्किल था.

शव के सिर की ओर से रस्सी से लगभग 15 किलोग्राम वजन का पत्थर बंधा हुआ था. पुलिस की मौजूदगी में आसपास के लोगों ने मोटरपंप लगा

कर कुएं का पानी खाली किया तो कुएं की निचली सतह पर कपड़े मिले, जिस के आधार पर सुदर्शन के परिजनों

द्वारा उस की पहचान देविका के रूप में की गई.

पुलिस ने काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर द्वारा देविका की मृत्यु पानी में डूबने के कारण होनी बताई. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पुलिस ने प्रकरण में धारा 364, 302 और इजाफा कर दी.

अब पुलिस के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि देविका के हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए. 40 दिनों तक चली तफ्तीश में टीआई रीना पांडेय को बस्ती के लोगों ने बताया था कि सुदर्शन और उस की पत्नी में अकसर विवाद होता रहता था. सुदर्शन अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. जब सुदर्शन के शक का कीड़ा कुलबुलाता तो उन के बीच विवाद हो जाता.

इसी आधार पर पुलिस टीम को यह संदेह भी हो रहा था कि कहीं इसी वजह से सुदर्शन ने ही तो देविका की हत्या नहीं की? जांच टीम ने जब देविका की मां प्रीति और पिता सुदर्शन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

पूछताछ के दौरान प्रीति ने जब यह बताया कि कुछ माह पहले सुदर्शन देविका को जान से मारने का प्रयास कर चुका है, तो पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि देविका का कातिल उस का पिता ही है. जब पुलिस ने सुदर्शन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही अपना गुनाह कबूल कर लिया.

अपनी फूल सी नाजुक बेटी की हत्या करने का गुनाह करने वाले सुदर्शन उर्फ मोनू ने पुलिस को जो कहानी बताई उस ने तो बस यही साबित कर दिया कि अपने दिमाग में शक का कीड़ा पालने वाला मोनू देविका को अपनी बेटी ही नहीं मानता था.

सुदर्शन की शादी अब से 3 साल पहले बड़े धूमधाम से रांझी, जबलपुर निवासी प्रीति से हुई थी.

शादी के पहले से सुदर्शन रंगीनमिजाज नौजवान था और उस की आशिकमिजाजी शादी के बाद भी जारी रही. इसी के चलते भेड़ाघाट में एक लड़की के बलात्कार के मामले में शादी के 2 माह बाद ही उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी.

जैसेतैसे वह कुछ माह बाद जमानत पर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की पत्नी गर्भ से है. बस उसी समय से सुदर्शन के दिमाग के अंदर शक का कीड़ा बैठ गया. वह बारबार यही बात सोचता कि मेरे जेल के अंदर रहने पर प्रीति गर्भवती कैसे हो गई.

देविका के जन्म के बाद तो अकसर पतिपत्नी में इसी बात को ले कर विवाद होता रहता. सुदर्शन प्रीति को हर समय यही ताने देता कि यह लड़की न जाने किस की औलाद  है. इसी तरह लड़तेझगड़ते जिंदगी गुजारते प्रीति फिर से गर्भवती हो गई.

पत्नी के चरित्र पर हरदम शक करने वाले सुदर्शन को लगता था कि देविका उस की बेटी नहीं है. उस का मन करता कि देविका का काम तमाम कर दे.

एक बार तो उस ने देविका को मारने की कोशिश भी की थी, मगर वह कामयाब न हो सका. पतिपत्नी के विवाद की वजह से देविका की देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी, जिस की वजह से वह अकसर बीमार रहती थी.

16 जनवरी, 2020 की रात 10 बजे सुदर्शन मैडिकल कालेज के बाहर बैठा अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था. तभी उस की पत्नी प्रीति का फोन आया कि जल्दी से घर आ जाओ, देविका की तबीयत ठीक नहीं है. सुदर्शन को तो देविका की कोई फिक्र ही नहीं थी. वह तो चाहता था कि उस की मौत हो जाए.

इधर प्रीति देविका की तबीयत को ले कर परेशान थी. वह बारबार पति को फोन लगाती और वह जल्दी आने की कह कर शराब पीने में मस्त था.

प्रीति के बारबार फोन आने पर वह तकरीबन 11 बजे अपने घर पहुंचा तब तक उस के मातापिता दूसरे कमरे में सो चुके थे. देविका की तबीयत के हालचाल लेने की बजाय वह बारबार फोन लगाने की बात पर पत्नी से विवाद करने लगा, जिसे देख कर मासूम देविका रोने लगी.

सुदर्शन ने गुस्से में देविका का गला दबा दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. देविका की हालत देख कर प्रीति जोरजोर से रोने लगी तो सुदर्शन ने उसे डराधमका कर चुप करा दिया. सुदर्शन ने प्रीति को धमकाया कि यदि इस के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ उसे भी खत्म कर देगा. बेचारी प्रीति अपने होने वाले बच्चे की खातिर इस दर्द को चुपचाप सह कर रह गई.

सुदर्शन ने प्रीति को पाठ पढ़ाया कि सुबह लोगों को देविका के अपहरण की कहानी बता कर मामले को शांत कर देंगे.

इस के लिए उस ने घर के पिछले हिस्से में रखी कुछ ईंटों को हटा दिया, जिस से लोग यह अनुमान लगा सकें कि यहीं से घुस कर देविका का अपहरण किया गया है. रात के लगभग 2 बजे सुदर्शन एक रस्सी ले कर देविका के शव को कंधे पर रख कर घर के बाहर कुछ दूरी पर बने एक कुएं के पास ले गया.

वहां पर उस ने रस्सी के सहारे शव को एक पत्थर से बांध कर कुएं में फेंक दिया और वापस आ कर चुपचाप सो गया. सुबह उठते ही उस ने अपनी

बेटी देविका के गायब होने की खबर फैला दी.

6 मार्च 2010 को जबलपुर के पुलिस कप्तान अमित सिंह, एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान, एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल, टीआई तिलवारा रीना पांडेय की मौजूदगी में प्रैस कौन्फ्रैंस कर हत्याकांड के राज से परदा उठाते हुए आरोपी को प्रेस के समक्ष पेश किया.

सुदर्शन को देविका की हत्या के अपराध में धारा 363, 364, 302, 201 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जबलपुर जेल भेज दिया गया.

अर्जुन कपूर के बाद गर्लफ्रेंड मलाइका अरोड़ा को भी हुआ कोरोना , बहन ने किया खुलासा

बॉलीवुड स्टार अर्जुन कपूर ने कुछ दिनों पहले  ही अपने सोशल मीडिया के जरिए कोरोना पॉजिटीव होने की जानकारी दी थी. अर्जुन कपूर ने इस बात का खुलासा किया था कि वह अपन डॉक्टर के सलाह के अनुसार खुद को होम कोरेंटाइन रखा हुआ है.

इस खबरे के आते ही फैंस अर्जुन कपूर के ठीक होने की कामना करने लगे. इसी बीच सबसे चौकाने वाली खबर यह आ गई कि अर्जुन कपूर की गर्लफ्रेंड मलाइका अरोड़ा की कोरोना पॉजिटीव हैं. इस बात की जानकारी मलाइका अरोड़ा की बहन अमृता अरोड़ा ने दी है.

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एक रिपोर्ट में अमृता अरोड़ा ने इस बात का खुलासा किया है हालांकि मलाइका अरोड़ा को अभी तक कोई लक्षण महसूस नहीं हो रहे हैं. वहीं मलाइका अरोड़ा के चाहने वाले उनकी सलामति के लिए दुआ कर रहे हैं.

मलाइका अरोड़ा की खबर आने से पहले अर्जुन कपूर ने इस बात का खुलासा किया था कि सोशल मीडिया पर लिखते हुए कि हालांकि मैं आप सभी को बता दूं कि मैं ठीक महसूस कर रहा हूं लेकिन यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं आप सभी को यह बताऊं की मैंने डॉक्टर की राय को मानते हुए खुद को कोरेंटाइन कर लिया है.

 

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Happy bday my crazy,insanely funny n amazing @arjunkapoor … love n happiness always

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आप सभी के प्यार और समर्थन के लिए धन्यवाद मैं आगे की जानकारी भी आपको देता रहूंगा. यह समय बेहद ही कठीन है उम्मीद है कि जल्द ही ठीक हो जाएगा.

 

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बता दें मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर इन दिनों सुर्खियों में बने रहते हैं. वह दोनों कोरोना टाइम से पहले एक दूसरे के साथ खूब एंजॉय करते नजर आते थें.

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मलाइका और अर्जुन कई बार विदेश भी एक साथ घूमने जा चुके हैं. मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर अपने प्यार का इजहार खुलकर सभी के सामने करते आते हैं. इन दोनों के प्यार को लोग पसंद भी करते हैं. फैंस को दोनों के शादी का इंतजार है.

नागिन 5: आदिनागिन बानी और वीर का रोमांस देख फैंस ने किए ऐसे कमेंट

एकता कपूर का सुपर नेचुरल शो नागिन 5 सभी फैंस का दिल जीत लिया है. इन दिनों यह सीरियल सभी को खूब पसंद आ रहा है. फैंस को इसके ड्रामें खूब पसंद आ रहे हैं. हिना खान के जाने के बाद इस शो में सुरभी चंदना की एंट्री हुई थी.

सुरभी चंदना इन दिनों बानी के दमदार किरदार से सभी फैंस का दिल जीत लिया है. इस कहानी में बानी के किरदार में नजर आ रही सुरभी चंदना को यह नहीं पता है कि वह दूसरी बार इस धरती पर किस मकसद से आई हैं, और जय वीर से इनका क्या रिश्ता है यह भी उन्हें पता नहीं है. कुछ ऐसा ही हाल जय और वीर का भी है.

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@TellyDrama Presents BEST OF AUGUST!!


शो के बीते एपिसोड में दिखाया गया है कि जय ना चाहते हुए भी बानी का जान बचाता है और उसे एहसास होता है कि उसे बानी से प्यार हो गया है.

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बेहोशी के हालात में वीर बानी का काफी ख्याल रखता है. इस दौरान वीर प्यार भरी निगाह से बानी को निहारता रहता है. फैंस को वीर बानी का प्यार बहुत ज्यादा पसंद आ रहा है. इस एपिसोड को लोगों ने खूब पसंद किया है. शायद यही वजह है कि लोगों को दोनों का प्यार और रोमांस बहुत ज्यादा पसंद आ रहा है.

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इस शो के खत्म होते ही सोशल मीडिया पर फैंस ने कमेंट करने शुरू कर दिए. एक यूजर ने लिखा है कि मुझे इसी दिन का इंतजार था. वीर कितने प्यार से बानी को देख रहा है. अब इस सीरियल का आखिरी ड्रामा शुरू होने वाला है जिसमें दिखाया जाएगा कि आखिर जय, वीर और बानी का आपस में क्या रिश्ता है. इसके बाद से इस सीरियल की कहानी में और भी ज्यादा ट्विस्ट आएगा.

अब तुम पहले जैसे नहीं रहे

आराधना की शादी टूटने की कगार पर है. महज़ पांच साल पहले बसी गृहस्थी अब पचास तरह के झगड़ों से तहस-नहस हो चुकी है. आराधना और आशीष दोनों ही मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हैं. हाइली एडुकेटेड हैं. बड़ी तनख्वाह पाते हैं. पॉश कॉलोनी में फ्लैट लिया है. सब कुछ बढ़िया है सिवाय उन दोनों के बीच सम्बन्ध के. दो साल चले प्रेम प्रसंग के बाद आराधना और आशीष ने शादी का फैसला किया था. शादी से पहले तक दोनों दो जिस्म एक जान थे. साथ-साथ खूब घूमे-फिरे, फ़िल्में देखीं, शॉपिंग की, हिल स्टेशन साथ गए, एक दूसरे को ढेरों गिफ्ट दिए. एक दूसरे की कंपनी खूब इंजॉय की. लगा कि इससे अच्छा मैच तो मिल ही नहीं सकता. इतना अच्छा और प्यारा जीवनसाथी हो तो जीवन स्वर्ग हो जाए, लेकिन शादी के दो साल के अंदर ही सबकुछ बदल गया. शादी के बाद धीरे-धीरे दोनों का जो रूप एक दूसरे के सामने आया तो लगा इस व्यक्तित्व से तो वे कभी परिचित ही नहीं हुए. एक दूसरे से बेइंतहां प्यार करने वाले आराधना और आशीष अब पूरे वक़्त एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं. छोटी-छोटी सी बात पर गाली-गलौच, मारपीट तक हो जाती है. फिर या तो आराधना अपने कपड़े बैग में भर कर अपनी दोस्त के वहां रहने चली जाती है या आशीष रात भर के लिए गायब हो जाता है.

दरअसल शादी से पहले दोनों का अच्छा पक्ष ही एक दूसरे के सामने आया. मगर शादी के बाद उनकी वो आदतें और व्यवहार एक दूसरे पर खुले जो घर के अंदर हमेशा से उनके जीवन का हिस्सा थे. शादी के बाद आशीष की बहुत सी आदतें आराधना को नागवार गुज़रती थी, खासतौर पर उसका गंदे पैर ले कर बिस्तर पर चढ़ जाना. आशीष को घर में नंगे पैर रहने की आदत है. दिन भर जूते में उसके पैर कसे रहते हैं, लिहाज़ा घर आते ही वो जूते उतार कर नंगे पैर ही रहता है. आराधना उसकी इस आदत को कभी स्वीकार नहीं कर पायी. आराधना सफाई के मामले में सनकी है. कोई गंदे पैर ले कर उसके बिस्तर पर कैसे आ सकता है ? शादी के पहले ही साल उसने बैडरूम में लगे डबल बेड को दो सिंगल बेड में बाँट दिया. अपने बिस्तर पर वह आशीष को हरगिज़ चढ़ने नहीं देती है. कभी आशीष का मूड रोमांटिक हुआ और उसने उसके बिस्तर में घुसने की कोशिश की तो वो उसके गंदे पैरों को ले कर चिढ़ी दिखती है और सारे मूड का सत्यानाश कर देती है. उनके रिश्ते में दरार बढ़ने की शुरुआत भी दरअसल यहीं से हुई.

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एक दूसरे की नज़दीकियां ना मिलने से दूरियां तो बढ़नी ही थीं. और भी कई आदतें आशीष की थीं जो आराधना को बर्दाश्त नहीं थीं. नहाने के बाद भीगा तौलिया बाथरूम में ही छोड़ देना,  धुलने वाले कपड़े वाशिंग मशीन में डालने की जगह इधर उधर रख देना, बिस्तर छोड़ने के बाद उसको टाइडी ना करना, खाने में हरी सब्ज़ियों से परहेज़, हर दूसरे-तीसरे दिन नॉनवेज खाने की फरमाइश, ना मिलने पर बाहर से मंगवा लेना, यह तमाम बातें आराधना को परेशान करती हैं. आराधना की भी आदतें आशीष को खटकती हैं. उसका ज़रूरत से ज़्यादा सफाई पसंद होना, पूरी शाम फ़ोन पर सहेलियों या अपने घर वालों से बातें करना, उसका डाइटिंग वाला खाना जो कभी भी आशीष के गले नहीं उतर सकता, अपने रूप रंग को बरकरार रखने के लिए ब्यूटी पार्लर में पानी की तरह पैसे बहाना, हर वीकेंड पर शॉपिंग करना, फ़ालतू की मंहगी चीज़े खरीद लाना और फिर गिफ्ट के तौर पर किसी सहेली को पकड़ा देना, कोई फ्यूचर प्लानिंग ना करना, ऐसी बहुतेरी बातें आशीष को भी खटकती हैं. इन्ही पर दोनों के बीच झगडे होते हैं.

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दोनों आर्थिक रूप से सक्षम हैं लिहाज़ा किसी के दबने का सवाल ही नहीं पैदा होता है. झगड़ा होता है तो दोनों कई कई दिन तक एक छत के नीच दो अजनबियों की तरह रहते हैं. दोनों में से कोई सॉरी नहीं बोलता. अब तो दोनों को ही यह लगने लगा है कि वे अलग-अलग ही रहें तो बेहतर है. कम से कम ऑफिस से घर आने पर सुकून तो होगा. बेकार की बातों पर कोई खिचखिच तो नहीं करेगा.  सात जन्मों तक साथ रहने की कसमें खाने वाले आराधना और आशीष पांच सालों में ही एक दूसरे से बुरी तरह ऊब चुके हैं.

कोई भी रिलेशनशिप आसानी से नहीं टूटता है. रिलेशनशिप में छोटी- छोटी बातों का ध्यान रखना होता है. रिश्तों में धीरे-धीरे दूरियां बढ़नी शुरू होती हैं और एक समय ऐसा आता है जब दूरियां इस कदर बढ़ जाती हैं कि रिलेशनशिप टूट जाता है. अक्सर रिलेशनशिप में देखा जाता है कि छोटी-छोटी समस्याएं होती रहती हैं, जिनको अधिकतर हम नजरअंदाज कर देते हैं. परंतु इन समस्याओं को नजरअंदाज करने से आपके रिश्ते में दरार पड़ सकती है. इन समस्याओं को हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, हमें इन समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए. आइये हम आपको बताएं कि रिलेशनशिप में किन समस्याओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और रिश्ते को बचाए रखने के लिए आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.

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स्वभाव में अंतर

अगर आपके और आपके पार्टनर के स्वभाव में काफी अंतर है तो ये अंतर बाद में रिलेशनशिप में समस्याएं पैदा कर सकता है. हर किसी का अपना अलग स्वभाव होता है. हो सकता है आपके पार्टनर को घूमने का शौक हो और आप घर पर रहना ही पसंद करते हों. हो सकता है आपके पार्टनर को बाहर जाकर पार्टी करने का शौक हो और आपको घर पर ही पार्टी करने का शौक रखते हों. अलग- अलग स्वभाव होने की वजह से भी रिलेशनशिप में दूरियां बढ़ने लगती हैं.

स्वभाव में अंतर होना आम बात है, पर इस अंतर को दूर किया जा सकता है. अगर आप चाहते हैं कि आपके रिश्ते में हमेशा प्यार बना रहे तो एक दूसरे के स्वभाव में ढलने का प्रयास करें. रिलेशनशिप को सफल बनाने के लिए पति-पत्नी दोनों को प्रयास करना होता है.

अलग चाहतें

रिलेशनशिप में एक दूसरे को समझना काफी महत्वपूर्ण होता है. अगर आपकी और आपके पार्टनर की प्राथमिकताएं और चाहतें एक दूसरे से हैं तो समय रहते इस बात पर ध्यान देना आपके रिलेशनशिप के लिए बेहतर रहेगा. अगर आप समय रहते इस बात पर ध्यान नहीं देंगे तो आपके रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगेंगी. रिलेशनशिप सिर्फ एक व्यक्ति के चाहने भर से नहीं चल सकता. एक अच्छा रिलेशनशिप होने के लिए जरूरी है कि एक दूसरे की प्राथमिकताओं को समझा जाए. जीवन में हर इंसान की कुछ न कुछ प्राथमिकताएं होती हैं. आपकी और आपके पार्टनर की भी कुछ प्राथमिकताएं होंगी. आप एक दूसरे की प्राथमिकताओं को समझने का प्रयास करेंगे तो आपके रिलेशनशिप में कोई भी समस्या नहीं आएगी.

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उनके फैसले को तवज्जो दें

अगर रिश्ते में छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव होने लगे तो आपको समझ जाना चाहिए कि रिलेशनशिप में समस्याएं आ रही हैं. एक दूसरे पर अधिकार जमाने के कारण या पार्टनर द्वारा अपने ही फैसलों को तवज्जो देने का कारण रिश्ते में तनाव बढ़ने लगता है. तनाव बढ़ने के कारण रिश्ता टूट सकता है. अगर आप चाहते हैं कि आपके रिश्ते में कभी भी कोई भी परेशानी न आए तो एक-दूसरे पर अधिकार जमाना छोड़ दें और हर काम में एक-दूसरे का साथ निभाएं. रिलेशनशिप में प्यार से रहने से किसी भी तरह का कोई तनाव नहीं रहता है. पार्टनर के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का प्रयास करें.

भावनाएं साझा करें

एक-दूसरे से बातचीत के जरिए अपनी भावनाओं को साझा करें और कहां कमियां रह गई है, इस बात पर विचार करें. रिलेशनशिप में आपस में किसी को भी चलताऊ न लें. अगर आपका पार्टनर आपके लिए कुछ कर रहा है तो उसे अहमियत दें. अहमियत देने से रिश्ते और ज्यादा मजबूत होते हैं और आपसी प्यार भी बढ़ता है. अगर आपका पार्टनर आपके प्रति प्यार जता रहा है तो उसकी भावनाओं की कद्र करें.

उनको सम्मान दें

एक-दूसरे को सम्मान देने से ही प्यार बढ़ता है. बिना सम्मान के कोई भी रिश्ता नहीं चलता है. इसलिए हमेशा एक-दूसरे को सम्मान दें. जमकर एक-दूसरे की तारीफ करें. अगर आपसे कोई गलती हुई है तो उसे फौरन स्वीकार कर लें. इससे आपका रिश्ता और ज्यादा मजबूत होगा और दरार नहीं आएगी. अक्सर हम अपनी गलतियों को कभी नहीं मानते और दूसरे की गलती स्वीकार कराने में ही पूरा वक्त लगा देते हैं. इससे रिश्ते कमजोर होते हैं. रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए एक-दूसरे को भरपूर वक्त देने के साथ ही अपने शौकों को एक-दूसरे के साथ साझा करें.

कभी तंज ना करें

हमेशा एक-दूसरे पर तंज कसते रहने से रिश्ता कमजोर होने लगता है. गलतियां सबसे होती हैं, परंतु अगर हम उन गलतियों के लिए बार-बार अपने पार्टनर पर तंज कसते रहेंगे तो रिश्ता कमजोर होने लगेगा और रिलेशनशिप में दूरियां बढ़ने लगेंगी.

पुरानी गलतियां याद ना करें

जीवन में हर किसी से गलतियां होती हैं. कुछ ऐसी बातें भी होती हैं जिन्हें आपका पार्टनर याद नहीं करना चाहता होगा. उन बातों को पार्टनर को याद न दिलाएं. अगर आप बार-बार पार्टनर को उन बातों को याद दिलाएंगे तो आपके रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगेंगी और रिश्ता कमजोर होने लगेगा.

कम्यूनिकेशन गैप

अक्सर कम्यूनिकेशन गैप होने की वजह से भी रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगती हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपका रिलेशनशिप मजबूत रहे तो अपने पार्टनर से बातचीत करते रहें. अपनी घर-बाहर की बातें उनसे शेयर करें. अपने पार्टनर से खुल कर बातें करें. रिलेशनशिप को मजबूत बनाने के लिए इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि आपने पार्टनर की बातों को अनसुना नहीं करना है.

एक्स के बारे में बात करने से बचें

एक्स के बारे में बात करने से भी रिलेशनशिप टूटने का खतरा रहता है. बार-बार एक्स के बारे में बात करने से रिश्ते में दूरियां बढ़नी शुरू हो सकती हैं. एक्स के बारे में बात करने से लड़ाई- झगड़े भी अधिक होने की संभावना रहती है. इसलिए पुराने ज़ख्मों को कभी ना कुरेदें.

भरोसा पैदा करें

रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए भरोसा बहुत जरूरी होता है. भरोसा किसी भी रिश्ते की नींव होता है. रिलेशनशिप में धोखा देने का मतलब है कि रिश्ते में दूरियां बढ़ना. पार्टनर को धोखा देने से, झूठ बोलने से, बातें छिपाने से रिश्ता मजबूत नहीं होता है. धोखा देने से रिलेशनशिप में कई तरह की समस्याएं आनी शुरू हो जाती हैं. दो लोग एक छत के नीचे ख़ुशी-ख़ुशी तभी रह सकते हैं जब उनके व्यवहार में पारदर्शिता हो. एक दूसरे के लिए प्यार और सम्मान हो. किसी बात का अहंकार ना हो बल्कि आपसी विश्वास मजबूत हो.

अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिए-भाग 5

चौथे अंक में आप ने पढ़ा था : अब आप की बछिया मां बन चुकी है. इस का विशेष फोकस होना चाहिए. इस में हरा चारा, भूसा और रातिब बहुत अहम होता है. गाय के दूध उत्पादन को ले कर 3 तरह की स्थितियां होती?हैं, जिस में गाय कितना दूध देती है, यह बहुत अहम होता है. तभी उन का चारा तय किया जाता है.

10 लिटर दूध उत्पादन वाली गाय का भरणपोषण स्थितियां वही 3 हो सकती हैं :

1. आप के पास हरा चारा बहुत कम है. और जो हरा चारा उपलब्ध है, वह गैरदलहनी चारा है और आप के पास पर्याप्त भूसा और प्रचुर मात्रा में रातिब मिश्रण उपलब्ध है.

2. आप के पास गैरदलहनी हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा में है और भूसा भी और रातिब मिश्रण भी.

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3. आप के पास दलहनी और गैरदलहनी हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, भूसा भी है, मगर रातिब मिश्रण लिमिटेड है या बिलकुल नहीं है.

स्थिति 1 : इस स्थिति में 10 लिटर दूध देने वाली गाय को 8 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 5 किलोग्राम भूसा और 7.5 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण देना होगा. चूंकि इस में रातिब मिश्रण की मात्रा अधिक है, इसलिए यह अधिक महंगा साबित होगा और उत्पादन लागत बहुत अधिक होगी. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर लगभग 34 रुपए प्रति लिटर होगी. लागत मूल्य से अधिक विक्रय मूल्य होने पर ही आप कुछ कमाई कर पाएंगे.

16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर 40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को भलीभांति मिलाने की जरूरत होगी.

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स्थिति 2 : इस स्थिति में 10 लिटर दूध वाली गाय को 10 किलोग्राम दलहनी चारा, 20 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 3 किलोग्राम भूसा और 3 किलोग्राम 16 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे.

इस की उत्पादन लागत सभी खर्च जोड़ कर तकरीबन 27 रुपए प्रति लिटर होगी. दूध 40 रुपए प्रति लिटर बेच कर भी आप कुछ न कुछ बचा ही लेंगे.

स्थिति 3 : इस स्थिति में 10 लिटर दूध देने वाली गाय को 22 किलोग्राम दलहनी हरा चारा, 22 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा,

3 किलोग्राम भूसा और मात्र 100 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर प्रतिदिन देने से भी सभी पोषण आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी और यह सब से सस्ता भी होगा. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 23 रुपए प्रति लिटर होगी. यह सब से अधिक लाभ देने वाली स्थिति है.

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अब फैसला आप को करना है कि आप हरे चारे के बल पर उत्पादन लेना चाहते हैं या रातिब मिश्रण के बल पर. वैसे, हरे चारे पर पाले गए पशु के दूध से बने घी में एक विशेष सुगंध होती है.

15 लिटर दूध उत्पादन वाली गाय का भरणपोषण स्थितियां वही 3 हो सकती हैं :

1. आप के पास हरा चारा बहुत कम है. और जो हरा चारा उपलब्ध है,

वह गैरदलहनी चारा है और आप के पास पर्याप्त भूसा और प्रचुर मात्रा में रातिब मिश्रण उपलब्ध है.

2.आप के पास गैरदलहनी हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा में है और भूसा भी और रातिब मिश्रण भी.

3. आप के पास दलहनी और गैरदलहनी हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, भूसा भी है, मगर रातिब मिश्रण लिमिटेड है या बिलकुल नहीं है.

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स्थिति 1 : इस स्थिति में 15 लिटर दूध देने वाली गाय को 15 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 3 किलोग्राम भूसा और

10 किलोग्राम 16 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण देना होगा.चूंकि इस में रातिब मिश्रण की मात्रा अधिक है, इसलिए यह अधिक महंगा साबित होगा और उत्पादन लागत बहुत अधिक होगी.

इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 28 रुपए प्रति लिटर होगी. लागत मूल्य से अधिक विक्रय मूल्य होने पर ही आप कुछ कमाई कर पाएंगे.

16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर 40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को भलीभांति मिलाने की जरूरत होगी.

स्थिति 2 : इस स्थिति में 15 लिटर दूध वाली गाय को 10 किलोग्राम दलहनी चारा,

20 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा,2 किलोग्राम भूसा और 7 किलोग्राम 16 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे.

इस की उत्पादन लागत सभी खर्च जोड़ कर लगभग 25 रुपए प्रति लिटर होगी. दूध 40 रुपए प्रति लिटर बेच कर भी आप कुछ न कुछ बचा ही लेंगे.

स्थिति 3 : इस स्थिति में 15 लिटर दूध देने वाली गाय को 22 किलोग्राम दलहनी हरा चारा, 22 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा,

2 किलोग्राम भूसा, 3.5 किलोग्राम 16 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण और मात्र 50 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर प्रतिदिन देने से भी सभी पोषण जरूरत पूरी हो जाएंगी और यह सब से सस्ता भी होगा.

इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 22 रुपए प्रति लिटर होगी. यह सब से अधिक लाभ देने वाली स्थिति है.

अब फैसला आप को करना है कि आप के पास किस प्रकार का चारा और कितनी मात्रा में उपलब्ध है.

वैसे तो आमतौर पर गाय या भैंस लगभग 18 से 25 दिनों के बाद हीट में आती है, परंतु कभीकभी, खासकर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं की हीट अनियमित हो जाती है. उदाहरण के तौर पर पशु लगातार 5 से 6 दिन तक हीट में रहता है और मैला या तोड़ा भी गिराता है, उस का मद चक्र बहुत थोड़े अंतराल का होता है यानी मादा पशु बहुत कम अंतराल में रिपीट करते हैं जैसे 10, 12 दिन या 15 दिन बाद हीट में आना. ऐसे पशु एआई करने पर गाभिन नहीं होते और उन की गुदा परीक्षण द्वारा जांच करने पर अकसर उन के अंडाशय में गांठ पाई जाती है, जिस में अंडा बनता तो है, परंतु बाहर नहीं निकल पाता. इस बीमारी को सिस्टिक ओवरी भी कहा जाता है. यह बीमारी अकसर बहुत अधिक दूध देने वाले पशुओं में देखी जाती है और इस की खास वजह शरीर में हार्मोंनस का असंतुलन व दुग्ध उत्पादन के अनुसार उन के खानपान में कमी होना है.

1. इस का एकमात्र उपचार हार्मोंनस के इंजैक्शन हैं, जिन्हें योग्य पशु चिकित्सक की सलाह के बाद ही लगवाना चाहिए.

2. ध्यान रहे कि सब से पहले पशु का खानपान ठीक करना है, जो उस के दुग्ध उत्पादन के अनुसार हो, तभी हार्मोंनस के इंजैक्शन काम करेंगे.

 

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