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नई सुबह -भाग 2: कुंती ने आश्रम में ऐसा क्या देखा कि उसकी सोच बदल गई?

रमेशजी का बड़े महाराज से बहुत स्नेह था. वे उन के समय में दोचार महीने में एक बार आ ही जाते थे. अब तो आना कम हो गया है पर उन की धार्मिक भावना उन्हें कचोटती रहती है. समिति के अध्यक्ष मुकेशजी ही स्वामी प्रेमानंद के साथ उन के घर गए थे ताकि पहले की तरह आनाजाना शुरू हो जाए. आश्रम के नए निर्माण पर उन्होंने पैसा भी लगाया था. वे जब भी आते थे, कौटेज में ही उन के ठहरने की व्यवस्था होती थी पर आज जब वे नहीं आए, उन्होंने कुंती को बस से भेज दिया. छीत स्वामी ने उन्हें सूचित कर दिया कि सभी महिलाओं को पूरी सुविधा से सुरक्षित रखा गया है. सुबह तक स्वामीजी आ जाएंगे, तभी पूजा है. 12 बजे भंडारा है, उस के बाद वापसी की बस मिल जाएगी. कोई दिक्कत नहीं होने पाएगी.

आश्रम के बाहर ही कुंती को जगन्नाथजी मिल गए थे. वे अपनी पत्नी के साथ आए हुए थे. वे बता रहे थे कि वे यहां पिछले 50 साल से आ रहे हैं. तब यहां एक छोटी सी कुटिया थी जहां बड़े स्वामीजी विराजते थे. तब वहां बहुत कम लोग आते थे. सुबह एक बस आती थी. वह आगे निमोदा तक जाती थी. वहीं से वह दोपहर में लौटती थी. वहां से आगे बस मिलती थी. पर अब तो सब बदल गया है. जमीन तो तब भी यही थी, पर अब जमीनों का भाव बहुत बढ़ गया है. अब तो एक बीघा जमीन भी 50 लाख रुपए की है. अब आश्रम में झगड़ा पूजापाठ को ले कर नहीं, संपत्ति को ले कर है. तभी उधर कौटेज से भगवा वेश में काली दाढ़ी पर हाथ फिराता हुआ एक संन्यासी पास आता दिखाई दिया. कुंती उसे देख कर चौंकी, वह उस के पांव छूने के लिए आगे बढ़ गई.

‘‘रहने दे, कुंती, रहने दे, यह साधुसंत नहीं है,’’ जगन्नाथजी धीरे से बोले.

‘‘पर यह तो…,’’ कुंती ने टोका.

‘‘यह तो प्रेमानंदजी का पुराना ड्राइवर है.’’

‘‘ड्राइवर!’’ कुंती चौंक गई.

‘‘हां, ड्राइवर क्या उन का बिजनैस पार्टनर है. मैं तो यहां 7 दिन पहले ही आ गया था, पर पता लगा कौटेज में यही एक माह से ठहरा हुआ है. एक महिला भी है, पर वह बहुत कम बाहर निकलती है. सुना यही है, इस ने या इस के बेटे ने महोबा में कोई कत्ल कर दिया है, या इस के परिवार के साथ कुछ घटना ऐसी ही घटी है. कुछ सही पता नहीं, यही यहां रुका हुआ है. आश्रम का मेहमान है.’’

‘‘किसी ने मना नहीं किया?’’ कुंती ने टोका.

‘‘मना कौन करता? समिति के सभी लोग स्वामी प्रेमानंद के हो गए हैं. मुकेश भाई को प्रेमानंद ने फोन कर दिया था. छीत स्वामी ही सारी व्यवस्था देख रहे हैं. अब तो दान भी यहां बहुत आने लग गया है. बड़े महाराज के जमाने में बहुत ही कम लोग आते थे, अब तो भीड़ रहती है.

‘‘समाधि के आसपास इमारतें बनेंगी. ठेकेदार आया है. कल भंडारा है. 10 हजार आदमी होंगे. भंडारा दिन भर चलेगा. लोगों में श्रद्धा है. चढ़ावा कल ही लाखों में आ जाएगा. खर्च है क्या, हिसाब सब प्रेमानंद ही रखते हैं. 2-4 महात्माओं को वे साथ ले आते हैं. उन्हें हजारों की भेंट दिलवा देते हैं फिर वे महात्मा उन्हें भेंट दिलवा देते हैं. अब धर्म तो रहा नहीं. धंधा ही सब जगह हो गया है.’’

‘‘पर यह ड्राइवर?’’ कुंती ने टोका.

‘‘यही बता रहा था, यह उन का बिजनैस पार्टनर है. इन की बसें चलती हैं. कह रहा था, जो नई बड़ी गाड़ी प्रेमानंद के पास है वह इसी ने दी है.’’ कुंती अवाक् थी. रमेशजी ने तो कभी यह बात उसे नहीं बताई. वे तो वकील हैं. संस्था के उपाध्यक्ष भी हैं. शायद जानते होंगे, तभी नहीं आए, फिर मुझे क्यों भेज दिया? सवाल पर सवाल उस के मन में उभर रहे थे. गांवों की औरतें गीत गाते हुए आने लग गई थीं. पास ही व्यायामशाला में जोरशोर से धार्मिक आयोजन शुरू हो गया था. लाउडस्पीकर पर कोई भक्त बारबार कह रहा था, स्वामी प्रेमानंद सुबह तक आ जाएंगे. उन के साथ उज्जैन से भी साधुसंन्यासी आ रहे हैं. लोगों में उत्सुकता थी.

‘जगन्नाथजी तो कह रहे थे, वे रात को ही आ जाएंगे. फिर माइक पर बारबार यह क्यों बोला जा रहा है, वे सुबह आएंगे,’ कुंती चौंकी. भोजन बाहर ही बड़े आंगन में हो गया था. बहुत भीड़ थी. जैसेतैसे उस हौल में आई. उस फर्श पर बिछे गदेले पर लेट गई. वृंदाजी तो लगभग सो गई थीं. घर पर बड़ा सा बैडरूम और यहां इस फर्श पर नींद थकावट के बाद भी नहीं आ रही थी. टैंटहाउस के 2 गद्दे उस ने बिछा लिए थे, बिस्तर भी पंखे के नीचे लगा लिया था. पर नींद को न आना था, न ही आई. वह उठ कर बाहर बरामदे की बैंच पर बैठ गई. दूर रसोईघर में देखा, लोग जग रहे हैं. लगा, वहां चाय बन रही है. उठी और रसोईघर की तरफ बढ़ गई. वहां छीत स्वामी अब तक जगे हुए थे.

‘‘अरे, आप सोए नहीं?’’ वह बोली.

‘‘अभी कहां से, मैं तो घर चला गया था, तभी वहां स्वामीजी का फोन आ गया था. बोले, हम लोग आ रहे हैं. आधे घंटे में पहुंच जाएंगे. व्यवस्था तो पहले से ही थी, पर चायदूध का इंतजाम देखना था. चला आया, पर आप तो विश्राम करो,’’ वे हंसते हुए बोले. ‘तो जगन्नाथजी सही कह रहे थे,’ कुंती बड़बड़ाई, ‘चलो, बाद में भीड़ हो जाएगी, महाराज से अभी ही मिलना हो जाएगा.’ वह आश्वस्त सी हुई. भीतर सब सो रहे थे. वह भी भीतर आ कर लेट गई. अभी झपकी लगी ही थी कि कारों के हौर्न व शोरशराबे से उस की नींद खुल गई. लगता है स्वामीजी आ गए हैं. वह उठी और दरवाजे के पास आ कर खड़ी हो गई. 2-4 गाडि़यां थीं. सामान था, जो उतारा जा रहा था. वहीं पेड़ के नीचे स्वामी आत्मानंद खड़ा हुआ था.

‘‘और आत्मानंद, कैसे हो?’’ स्वामी प्रेमानंद ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘सब आप की कृपा है.’’

‘‘भदोही कहला दिया है. पुलिस कप्तान अपना ही शिष्य है. वह कह रहा था, भंडारे की परसादी सब जगह जानी होगी. घबराओ मत, वारंट अभी तामील नहीं होगा. तुम पहले वहां जा कर रामभरोसी को पुटलाओ, काबू में करो. गवाह वही है. वह फूट गया तो फिर तुम्हारा कुछ नहीं होगा. यहां तो कोई दिक्कत नहीं हुई. समिति अपनी ही है. जब झंझट निबट जाए तो यहीं आ जाना. यहां के लोग बहुत धार्मिक हैं.’’

‘‘हां महाराज, सब  आप की कृपा है.’’

‘‘और सब ठीक है, देवीजी को तकलीफ तो नहीं हुई?’’ वे मुसकराते हुए बोले.

‘‘प्रसन्न हैं, आप मिल लें, आप की ही प्रतीक्षा में हैं.’’

‘‘तभी तो आधी रात को आया हूं,’’ वे हंसे. स्वामी प्रेमानंद सीधे कौटेज की ओर बढ़ गए, वहां देवीजी उन की ही प्रतीक्षा में थीं. आत्मानंद बाहर ही पेड़ के नीचे बैठ गया था. वह बैठा हुआ निश्ंिचत भाव से बीड़ी पी रहा था. कुंती अवाक् थी, यह क्या हो गया, क्या वह कोई सपना देख रही है या कुछ और. जब बड़े महाराज थे तब आश्रम कैसा था, अब क्या हो गया है? यह आत्मानंद उस का पति है या कुछ और. उसे लगा उसे चक्कर आ जाएगा, वह निढाल सी बैंच पर ही पसर गई. सुबह पूजा होगी. प्रेमानंद के पांव पखारे जाएंगे. वह झूमझूम कर बड़े महाराज की प्रशंसा में गीत गाएंगे. लोग नाचेंगे. प्रार्थना होगी. कहा जाएगा, बड़े महाराजजी की समाधि की पूजा होगी. हजारों आदमियों का भंडारा होगा. कहा जाता है, भंडारा मुफ्त का भोजन होता है, पर गरीब से गरीब भी रोटी मुफ्त की नहीं खाता, वह भी भेंट करता है. यह भंडारा रहस्य है. हिसाब सब समिति के पास, समिति का हिसाब स्वामी प्रेमानंद के पास.

धान में लगने वाले कीटों और उनका प्रधबंन

खरीफ फसलों में धान की खेती खास माने रखती है. देश के अनेक हिस्सों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल वगैरह में काफी मात्रा में धान की खेती की जाती है.

धान की फसल से बेहतर पैदावार लेने के लिए अच्छी प्रजाति के बीज के साथ ही जल प्रबंधन का भी खास ध्यान रखना होता है. इस के अलावा फसल में लगने वाली कीट बीमारी से बचाना भी बहुत जरूरी है. यहां इसी विषय पर खास जानकारी दी जा रही है.

सिंचाई से पहले के हालात

  1. 1.दीमक

दीमक के श्रमिक ही हानिकारक होते हैं. ये जड़ और तने को खा कर नष्ट करते हैं. प्रकोपित सूखे पौधे को आसानी से उखाड़ा जा सकता है. उखाड़ने पर पौधों के साथ मिट्टी और गंदले सफेद पंखहीन, 6-8 मिमी लंबे श्रमिक दीमक दिखाई देते हैं.

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2.प्रबंधन

* दीमक से प्रभावित क्षेत्र में कच्चे गोबर की खाद का प्रयोग न करें.

* फसलों के अवशेष को नष्ट करें.

प्रकोप होने पर

* सिंचाई के साथ क्लोरोपायरीफास  20 ईसी 4-5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.

3.पत्ती लपेटक कीट

इस की सूंड़ी हानिकारक होती है. इन सूंडि़यों का शरीर पीले हरे रंग का और गहरे भूरे रंग के सिर वाली 2-2.5 सैंटीमीटर लंबी होती हैं. ये पत्तियों के दोनों सिरों को जोड़ कर नाली जैसी संरचना बना देती हैं और उसी के अंदर रह कर हरे भाग को खुरच कर खाती रहती हैं. इस के कारण सफेद रंग की पारदर्शी धारियां बन जाती हैं. एक सूंड़ी अपने जीवनकाल में कई पत्तियों को नुकसान पहुंचाती है.

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4.प्रबंधन

* संतुलित उरर्वक का प्रयोग करें.

* प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण करें.

* प्रति हील 2 नालीनुमा पत्तियां दिखाई देने पर क्विनालफास 25 ईसी तकरीबन 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें.

5.गंधी बग

इस कीट के पीले रंग के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही धान की दुग्धावस्था में बालियों से रस चूस लेते हैं, जिस के कारण दाने नहीं बन पाते हैं.

6.प्रबंधन

* छिटपुट रोपाई/बोआई जहां तक संभव हो, न करें.

* खेत में खरपतवार को नष्ट कर दें.

* फूल आने के बाद औसतन 2-3 कीट पर हील दिखाई देने पर फेंथोएट 2 प्रतिशत, फेनवेलरेट 0.4 प्रतिशत या लिंडेन 1.3 प्रतिशत धूल 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह हवा कम होने पर बुरकाव करें.

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7. सैनिक कीट

इस कीट की सूंड़ी फसल को नुकसान पहुंचाती है. ये सूंडि़यां दिन में कल्ले अथवा दरारों में छिपी रहती हैं. प्रारंभ में ये धान की पत्तियों को खाती हैं, बाद में धान के पकने के समय शाम को पौधों पर चढ़ कर बालों से 2-3 या कई धान वाले टुकड़े काट कर जमीन पर गिरा देती हैं.

ये गंदे भूरे या पीले रंग की और भूरे सिरे वाली होती हैं. इन की ऊपरी सतह पर गहरी भूरे रंग की पट्टी और बगल में 2 भूरे रंग की पट्टी पाई जाती हैं.

8. प्रबंधन

* नली और देर से पकने वाली प्रजातियों का चयन करें.

* धान की रोपाई जुलाई के पहले हफ्ते तक जरूर कर दें.

* बैसिलस थुरिनजिएनसिस 0.5-1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* 4-5 सूंड़ी प्रति वर्गमीटर क्षेत्र में दिखाई देने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 1.5 लिटर, क्विनालफास 25 ईसी 1.5 लिटर, डाइक्लोरोवास 76 ईसी 0.5 ला., क्विनालफास 1.5 डी. 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से शाम को छिड़काव करें.

9.सिंचाई के हालात में

गोभ गिडार

प्रौढ़ मक्खी धूसर भूरे रंग की और सूंडि़यां बिना पैर वाली पीले रंग की होती हैं. सूंडि़यां गोभ में बन रही पत्तियों के किनारों को खाती हैं. ये पत्तियां निकलने पर किनारे से कटी हुई दिखाई देती?हैं.

10. प्रबंधन

* समय से धान की रोपाई करें.

* जल निकास का प्रबंधन करें.

* 20 प्रतिशत से अधिक प्रकोपित पत्तियां दिखाई पड़ने पर कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफास 36 ईसी 10 लिटर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करें.

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11.तना बेधक

इस कीट की सूंडि़यां हानिकारक होती हैं. पूर्ण विकसित सूंड़ी हलके पीले शरीर वाली और नारंगी पीले सिरे वाली होती हैं. प्रौढ़ मादा के पंख पीले होते हैं और अगले दोनों पंखों के बीच एक काला धब्बा होता है. इस के उदर के अंतिम सिरे पर पीलेभूरे रंग के बालों वाला गुच्छा होता है.

मादा अंडों को पत्तियों के अगले सिरे की ऊपरी सतह पर समूह में देती हैं. इस के हमले से फसल की वानस्पतिक अवस्था में मृत गोभ और बाली अवस्था में सफेद बाली बन जाती है.

12. प्रबंधन

* गरमी में खेत की गहरी जुताई करें.

* पौधे के रोपाई के पहले ऊपर की पत्तियों को काट दें.

* तना बेधक कीट के प्रकोप का पूर्वानुमान के लिए 6 और 6 महीने टपिंग के लिए 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं.

* प्रतिरोधी किस्मों को लगाएं, जैसे  साकेत-4, आईआर-26, आईआर-36, रत्ना वगैरह.

* संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें.

* 5:30-7:00 (सुबह) पतंगों को पकड़ कर नष्ट कर दें.

* अंडे, जो पत्तियों की ऊपरी सतह पर दिए गए हैं, खोज कर नष्ट कर दें.

* कीट के प्राकृतिक शत्रु टाइकोग्रामा जेपोनिकम को 2.5 कार्ड (20,000 अंडे प्रति कार्ड) प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के

30 दिनों के बाद 6 बार छोड़ें.

* 5 प्रतिशत मृत गोभ अथवा एक अंडे का समूह वानस्पतिक अवस्था में और एक पतंगा प्रति वर्गमीटर बाल निकलने की अवस्था में दिखाई पड़ने पर कारटौप हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रतिशत दानेदार रसायन के 17-18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर का प्रयोग फायदेमंद होता है.

* कटाई जमीन से सटा कर करें.

* 1.5 लिटर नीम औयल प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लिटर पानी में डाल कर छिड़काव करें.

हरा फुदका

इस कीट का प्रौढ़ हरे रंग का होता है. इस के पंख के अंतिम भाग पर काले रंग का धब्बा होता है. इस के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही पौधे का रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं. प्रभावित पत्तियां पहले पीली पड़ती हैं, फिर बाद में कत्थई रंग की हो कर नोंक से नीचे की तरफ सूख जाती हैं. ये फुदके टुंगरू वायरस के वाहक होते हैं.

प्रबंधन

* खेत को खरपतवार से मुक्त कर दें.

* नाइट्रोजन उर्वरक जरूरत से ज्यादा प्रयोग न करें और संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें.

* कल्ले बनते समय 10 कीट और बाल आते समय 10-20 कीट प्रति हील दिखाई देने पर क्विनालफास 25 ईसी 1.5 लिटर की दर से छिड़काव करें.

* बैसिलस थुरिनजिएनसिस 0.5-1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल कर छिड़काव करें.

* 1.5 लिटर नीम औयल प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* विवेरिया बैसियाना का प्रयोग करें.

भूरा फुदका

इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही पौधों के कल्ले के बीच रह कर तने के निचले भाग और पर्ण कुंचकी से रस चूसते रहते हैं. ये कीट मधुस्राव करते हैं. इस से कवक उग जाते हैं और पत्तियों पर काली पपड़ी पड़ जाती है, जिस से प्रकाश संश्लेषण में अवरोध उत्पन्न होता है.

वानस्पतिक अवस्था में इस के प्रकोप के फलस्वरूप गोलाई में पौधों छोटे रह जाते हैं और सूख जाते हैं. इसे ‘हौपर बर्न’ कहते हैं. बाद में प्रकोप होने पर पौधे गिर जाते हैं और धान से चावल नहीं बन पाते हैं. यह कीट ‘ग्रसी स्टंट’ वायरस का वाहक है. इस कीट के शिशु और प्रौढ़ कत्थई रंग के पंख वाले होते हैं अथवा बिना पंख वाले होते हैं.

प्रबंधन

* खेत को खरपतवार से मुक्त कर दें.

* 30-35 दिन के बाद से 10 दिन के अंतराल पर पानी देना और निकालना लाभदायक होता है.

* संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें और नाइड्रोजन का प्रयोग जरूरत से ज्यादा न करें.

* 1.5 लिटर नीम औयल प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* 10 कीट प्रति हील दिखाई देने पर फोरेट 10 जी. 10 किलोग्राम या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी. 18.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग 3-5 सैंटीमीटर पानी से भरे खेत में करें.

* वीपीएमसी एक मिलीलिटर के मिश्रण को पानी में घोल कर आवश्यक मात्रा का छिड़काव करें. यह अंडों को नष्ट करने के साथसाथ प्रौढ़ को भी नष्ट करता है.

सफेद पीठ वाला फुदका

इस कीट के प्रौढ़ काले से भूरे रंग के और पीले शरीर वाले होते हैं. इन के पंखों के जोड़ पर सफेद पट्टी होती है. शिशु सफेद रंग के पंखहीन होते हैं. इन के उदर पर सफेद और काले धब्बे पाए जाते हैं. इन के प्रौढ़ और शिशु कल्लों के बीच रह कर रस चूसते रहते हैं, जिस के फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते हैं.

प्रबंधन

* इस कीट का प्रबंधन भूरे फुदके की तरह किया जाता है.

हिस्पा

इस कीट का प्रौढ़ चमकीला काले रंग का होता है,

जिस के शरीर पर छोटेछोटे कांटे जैसी संरचना होती है. ये पत्ते के हरे

भाग को खुरच कर खाते रहते हैं. इस के कारण पत्तियों पर सफेद समानांतर धारियां बन जाती हैं.

कीट की सूंडि़यां पत्तियों में सुरंग बना कर हानि पहुंचाती हैं.

प्रबंधन

* धान की रोपाई से पहले पत्तियों के ऊपरी भाग को कतर दें.

* खेत से खरपतवार को नष्ट कर दें.

* 2 प्रौढ़ या 2 ग्रसित पत्तियां प्रति हील दिखाई देने पर इंडोसल्फान

35 ईसी 1.2 लिटर क्विनालफास 25 ईसी 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

बंका कीट

प्रौढ़ कीट सफेद पंख वाला होता है. पंखों पर टेढ़ीमेढ़ी लकीरें पाई जाती हैं.

सूंडि़यां हलके हरे रंग की और भूरे सिर वाली होती हैं. ये पत्तियों को अपने बराबर काट कर खोल बना लेती हैं

और अंदर रह कर दूसरी पत्तियों से चिपक कर उन के हरे भाग को खुरच कर खाती रहती हैं.

प्रबंधन

* खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़ कर पौधों के ऊपर तेजी से वे हिल जाते हैं और सूंडि़यां पानी में गिर जाती हैं. इस पानी को निकाल देने से इन की संख्या कम हो जाती है.

* क्विनालफास 25 ईसी 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

गाल मिज

इस कीट का प्रौढ़ मच्छर के आकार का होता है. मादा का उदर चमकीले पीले लाल रंग का होता है. हानि सूंडि़यां द्वारा होती हैं. फलस्वरूप, इस के प्रकोप से बाल न बन कर प्याज की पत्ती के आकार की संरचना बन जाती है, जिसे ‘सिल्वर सूट’ या ‘ओनियन सूट’ कहते हैं.

प्रबंधन

* धान की रोपाई 15 जुलाई से पहले करें.

* अवरोधी प्रजातियों को बाएं. आईआर-20, आईआर-26, साकेत आदि.

* संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें.

* 5 प्रतिशत कल्ले प्रभावित होने पर कार्बोफ्यूरान 3 जी. 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर  की दर से या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी. 18.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.

गंधी बग

इस कीट की पहचान और प्रबंधन असिंचित परिस्थिति में होता है.

बाढ़ के हालात में

पहचान सिंचित परिस्थिति के अनुसार.

तना बेधक

इस तरह से अगर किसान धान की फसल में कीटों से बचाव करेंगे, तो बेहतर उपज ले सकते हैं.

प्रबंधन

* बाढ़ अवरोधी प्रजाति का चयन करें.

* रोपाई के 30 दिन बाद लगातार 6 सप्ताह तक 2-5 कार्ड (प्रति कार्ड 20,000 अंडे)

प्रति हेक्टेयर टाइकोग्रामा जेपोनिकम प्रति हफ्ते छोड़ें और बीटी 0.5-1.0

किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घोल कर छिड़काव करें.

 

मेरे पति दिल्ली में जौब करते हैं और उन का अपने ही औफिस की एक 40 वर्षीया अविवाहित महिला के साथ अफेयर है, मैं क्या करूं?

सवाल
मेरी शादी को 22 वर्ष हो गए हैं और हमारे 2 बच्चे हैं जिन की हायर स्टडीज की वजह से मैं उन के साथ पुणे में रह रही हूं. मेरा मायका भी पुणे में ही है, जबकि मेरे पति दिल्ली में जौब करते हैं और उन का अपने ही औफिस की एक 40 वर्षीया अविवाहित महिला के साथ अफेयर है. इस बारे में मुझे उन के औफिस में काम कर रही एक सहकर्मी से पता चला, जबकि पति ने ऐसा कभी एहसास होने ही नहीं दिया कि वे हम से प्यार नहीं करते. वे बराबर मुझे फोन भी करते हैं. ऐसे में समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं?

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जवाब

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घबराने से नहीं बल्कि समझदारी से काम लेने की जरूरत है. यह जरूरी नहीं कि औफिस की सहकर्मी ने जो कुछ बताया वह सब सच हो. पहले तो अपने पति पर विश्वास रखें. आप के बच्चे बड़े हैं, उन की आप पीजी या होस्टल में रहने की व्यवस्था कर सकती हैं. बच्चों को सैटल करने के बाद खुद पति के पास लौट जाएं.

पति के साथ समय बिताएं. उन्हें रिझाएं. इस के बाद भी यदि आप को उन के हावभाव में कुछ शक हो तो उन पर नजर रखें. जब बात पुख्ता हो जाए कि वास्तव में पति का अफेयर है तो उन से खुल कर बात करें, क्योंकि इस तरह का संबंध प्यार का नहीं, बल्कि एकदूसरे की मजबूरी का होता है. चूंकि आप पति से दूर रहती हैं और पति का जिस के साथ अफेयर है वह अविवाहित है तो ऐसे संबंध केवल देहसुख के लिए होते हैं. आप जब अपने पति के साथ रहने लगेंगी तो धीरेधीरे सबकुछ ठीक हो जाएगा.

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अवैद्य संबंधों ने उजाड़ दिया एक पूरा परिवार

विश्वप्रसिद्ध पर्यटनस्थल मांडू के नजदीक के एक गांव तारापुर में पैदा हुई पिंकी को देख कर कोई सहसा विश्वास नहीं कर सकता था कि वह एक आदिवासी युवती है. इस की वजह यह थी कि पिंकी के नैननक्श और रहनसहन सब कुछ शहरियों जैसे थे. इतना ही नहीं, उस की इच्छाएं और महत्त्वाकांक्षाएं भी शहरियों जैसी ही थीं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह कोई भी जोखिम उठाने से कतराती नहीं थी.

बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेमगाथा कहने वाले मांडू के आसपास सैकड़ों छोटेछोटे गांव हैं, जहां की खूबसूरत छटा और ऐतिहासिक इमारतें देखने के लिए दुनिया भर से प्रकृतिप्रेमी और शांतिप्रिय लोग वहां आते हैं. वहां आने वाले महसूस भी करते हैं कि यहां वाकई प्रकृति और प्रेम का आपस में गहरा संबंध है.

यहां की युवतियों की अल्हड़ता, परंपरागत और आनुवांशिक खूबसूरती देख कर यह धारणा और प्रबल होती है कि प्रेम वाकई प्रेम है, इस का कोई विकल्प नहीं सिवाय प्रेम के. नन्ही पिंकी जब मांडू आने वाले पर्यटकों को देखती और उन की बातें सुनती तो उसे लगता कि जैसी जिंदगी उसे चाहिए, वैसी उस की किस्मत में नहीं है, क्योंकि दुनिया में काफी कुछ पैसों से मिलता है, जो उस के पास नहीं थे.

मामूली खातेपीते परिवार की पिंकी जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे यौवन के साथसाथ उस की इच्छाएं भी परवान चढ़ती गईं. जवान होतेहोते पिंकी को इतना तो समझ में आने लगा था कि यह सब कुछ यानी बड़ा बंगला, मोटरगाड़ी, गहने और फैशन की सभी चीजें उस की किस्मत में नहीं हैं. लिहाजा जो है, उसे उसी में संतोष कर लेना चाहिए.

लेकिन इस के बाद भी पिंकी अपने शौक नहीं दबा सकी. घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने के उस के सपने दिल में दफन हो कर रह गए थे. घर वालों ने समय पर उस की शादी धरमपुरी कस्बे के नजदीक के गांव रामपुर के विजय चौहान से कर दी थी. शादी के बाद वह पति के साथ धार के जुलानिया में जा कर रहने लगी थी.

पेशे से ड्राइवर विजय अपनी पत्नी की इस कमजोरी को जल्दी ही समझ गया था कि पिंकी के सपने बहुत बड़े हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए बहुत दौलत चाहिए. उन्हें कमा कर पूरे कर पाना कम से कम इस जन्म में तो उस के वश की बात नहीं है. इस के बाद भी उस की हर मुमकिन कोशिश यही रहती थी कि वह हर खुशी ला कर पत्नी के कदमों में डाल दे.

इस के लिए वह हाड़तोड़ मेहनत करता भी था, लेकिन ड्राइवरी से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी कि वह सब कुछ खरीदा और हासिल किया जा सके, जो पिंकी चाहती थी. इच्छा है, पर जरूरत नहीं, यह बात विजय पिंकी को तरहतरह से समयसमय पर समझाता भी रहता था.

लेकिन अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की आदी होती जा रही पिंकी को पति की मजबूरी तो समझ में आती थी, लेकिन उस की बातों का असर उस पर से बहुत जल्द खत्म हो जाता था. शादी के बाद कुछ दिन तो प्यारमोहब्बत और अभिसार में ठीकठाक गुजरे. इस बीच पिंकी ने 2 बेटों को जन्म दिया, जिन के नाम हिमांशु और अनुज रखे गए.

विजय को जिंदगी में सब कुछ मिल चुका था, इसलिए वह संतुष्ट था. लेकिन पिंकी की बेचैनी और छटपटाहट बरकरार थी. बेटों के कुछ बड़ा होते ही उस की हसरतें फिर सिर उठाने लगीं. बच्चों के हो जाने के बाद घर के खर्चे बढ़ गए थे, लेकिन विजय की आमदनी में कोई खास इजाफा नहीं हुआ था.

अकसर अपनी नौकरी के सिलसिले में विजय को लंबेलंबे टूर करने पड़ते थे. इस बीच पिंकी की हालत और भी खस्ता हो जाती थी. पति इस से ज्यादा न कुछ कर सकता है और न कर पाएगा, यह बात अच्छी तरह उस की समझ में आ गई थी. अब तक शादी हुए 17 साल हो गए थे, इसलिए अब उसे विजय से ऐसी कोई उम्मीद अपनी ख्वाहिशों के पूरी होने की नहीं दिखाई दे रही थी.

लेकिन जल्दी ही पिंकी की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आ गया, जो अंधा भी था और खतरनाक भी. यह एक ऐसा मोड़ था, जिस का सफर तो सुहाना था, परंतु मंजिल मिलने की कोई गारंटी नहीं थी. इस के बाद भी पिंकी उस रास्ते पर चल पड़ी. उस ने न अंजाम की परवाह की न ही पति और बच्चों की. इस से सहज ही समझा जा सकता है कि इच्छाओं और गैरजरूरी जरूरतों के सामने जिम्मेदारियों ने दम तोड़ दिया था. पिंकी को संभल कर चलने के बजाय फिसलने में ज्यादा फायदा नजर आया.

विजय का एक दोस्त था दिलीप चौहान. वह बेरोजगार था और काम की तलाश में इधरउधर भटक रहा था. काफी दिनों बाद दोनों मिले तो विजय को उस की हालत पर तरस आ गया. उस ने धीरेधीरे दिलीप को ड्राइविंग सिखा दी. धार, मांडू और इंदौर में ड्राइवरों की काफी मांग है, इसलिए ड्राइविंग सीखने के बाद वह गाड़ी चलाने लगा. दोस्त होने के साथसाथ विजय अब उस का उस्ताद भी हो गया था.

ड्राइविंग सीखने के दौरान दिलीप का विजय के घर आनाजाना काफी बढ़ गया था. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा हो गया था. जब विजय दिलीप को ड्राइविंग सिखा रहा था, तभी पिंकी दिलीप को जिस्म की जुबान समझाने लगी थी. उस के हुस्न और अदाओं का दीवाना हो कर दिलीप दोस्तीयारी ही नहीं, गुरुशिष्य परंपरा को भी भूल कर पिंकी के प्यार में कुछ इस तरह डूबा कि उसे भी अच्छेबुरे का होश नहीं रहा.

ऐसे मामलों में अकसर औरत ही पहल करती है, जिस से मर्द को फिसलते देर नहीं लगती. दिलीप अकेला था, उस के खर्चे कम थे, इसलिए वह अपनी कमाई पिंकी के शौक और ख्वाहिशों को पूरे करने में खर्च करने लगा. इस के बदले पिंकी उस की जिस्मानी जरूरतें पूरी करने लगी. जब भी विजय घर पर नहीं होता या गाड़ी ले कर बाहर गया होता, तब दिलीप उस के घर पर होता.

पति की गैरहाजिरी में पिंकी उस के साथ आनंद के सागर में गोते लगा रही होती. विजय इस रिश्ते से अनजान था, क्योंकि उसे पत्नी और दोस्त दोनों पर भरोसा था. यह भरोसा तब टूटा, जब उसे पत्नी और दोस्त के संबंधों का अहसास हुआ.

शक होते ही वह दोनों की चोरीछिपे निगरानी करने लगा. फिर जल्दी ही उस के सामने स्पष्ट हो गया कि बीवी बेवफा और यार दगाबाज निकला. शक के यकीन में बदलने पर विजय तिलमिला उठा. पर यह पिंकी के प्रति उस की दीवानगी ही थी कि उस ने कोई सख्त कदम न उठाते हुए उसे समझाया. लेकिन अब तक पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका था.

चूंकि पति का लिहाज और डर था, इसलिए पिंकी खुलेआम अपने आशिक देवर के साथ रंगरलियां नहीं मना रही थी. फिर एक दिन पिंकी कोई परवाह किए बगैर दिलीप के साथ चली गई. चली जाने का मतलब यह नहीं था कि वह आधी रात को कुछ जरूरी सामान ले कर प्रेमी के साथ चली गई थी, बल्कि उस ने विजय को बाकायदा तलाक दे दिया था और उस की गृहस्थी के बंधन से खुद को मुक्त कर लिया था.

कोई रुकावट या अड़ंगा पेश न आए, इस के लिए वह और दिलीप धार आ कर रहने लगे थे. पहले प्रेमिका और अब पत्नी बन गई पिंकी के लिए दिलीप ने धार की सिल्वर हिल कालोनी में मकान ले लिया था. मकान और कालोनी का माहौल ठीक वैसा ही था, जैसा पिंकी सोचा करती थी.

यह पिंकी के दूसरे दांपत्य की शुरुआत थी, जिस में दिलीप उस का उसी तरह दीवाना था, जैसा पहली शादी के बाद विजय हुआ करता था. पति इर्दगिर्द मंडराता रहे, घुमाताफिराता रहे, होटलों में खाना खिलाए और सिनेमा भी ले जाए, यही पिंकी चाहती थी, जो दिलीप कर रहा था. खरीदारी कराने में भी वह विजय जैसी कंजूसी नहीं करता था.

यहां भी कुछ दिन तो मजे से गुजरे, लेकिन जल्दी ही दिलीप की जेब जवाब देने लगी. पिंकी के हुस्न को वह अब तक जी भर कर भोग चुका था, इसलिए उस की खुमारी उतरने लगी थी. लेकिन पत्नी बना कर लाया था, इसलिए पिंकी से वह कुछ कह भी नहीं सकता था. प्यार के दिनों के दौरान किए गए वादों का उस का हलफनामा पिंकी खोल कर बैठ जाती तो उसे कोई जवाब या सफाई नहीं सूझती थी.

जल्दी ही पिंकी की समझ में आ गया कि दिलीप भी अब उस की इच्छाएं पूरी नहीं कर सकता तो वह उस से भी उकताने लगी. पर अब वह सिवाय किलपने के कुछ कर नहीं सकती थी. दिलीप की चादर में भी अब पिंकी के पांव नहीं समा रहे थे. गृहस्थी के खर्चे बढ़ रहे थे, इसलिए पिंकी ने भी पीथमपुर की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. क्योंकि अपनी स्थिति से न तो वह खुश थी और न ही संतुष्ट.

इस उम्र और हालात में तीसरी शादी वह कर नहीं सकती थी, लेकिन विजय को वह भूल नहीं पाई थी, जो अभी भी जुलानिया में रह रहा था. पिंकी को लगा कि क्यों न पहले पति को टटोल कर दोबारा उसे निचोड़ा जाए. यही सोच कर उस ने एक दिन विजय को फोन किया तो शुरुआती शिकवेशिकायतों के बाद बात बनती नजर आई.

ऐसा अपने देश में अपवादस्वरूप ही होता है कि तलाक के बाद पतिपत्नी में दोबारा प्यार जाग उठे. हां, यूरोप जहां शादीविवाह मतलब से किए जाते हैं, यह आम बात है. विजय ने दोबारा उस में दिलचस्पी दिखाई तो पिंकी की बांछें खिलने लगीं. पहला पति अब भी उसे चाहता है और उस की याद में उस ने दोबारा शादी नहीं की, यह पिंकी जैसी औरत के लिए कम इतराने वाली बात नहीं थी.

वह 28 जुलाई की रात थी, जब दिलीप रोजाना की तरह अपनी ड्यूटी कर के घर लौटा. उसे यह देख हैरानी हुई कि उस के घर में धुआं निकल रहा है यानी घर जल रहा है. उस ने शोर मचाना शुरू किया तो देखते ही देखते सारे पड़ोसी इकट्ठा हो गए और घर का दरवाजा तोड़ दिया, जो अंदर से बंद था.

अंदर का नजारा देख कर दिलीप और पड़ोसी सकते में आ गए. पिंकी किचन में मृत पड़ी थी, जबकि विजय बैडरूम में. जाहिर है, कुछ गड़बड़ हुई थी. हुआ क्या था, यह जानने के लिए सभी पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. मौजूद लोगों का यह अंदाजा गलत नहीं था कि दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं.

हैरानी की एक बात यह थी कि आखिर दोनों मरे कैसे थे? पुलिस आई तो छानबीन और पूछताछ शुरू हुई. दिलीप के यह बताने पर कि मृतक विजय उस की पत्नी पिंकी का पहला पति और उस का दोस्त है, पहले तो कहानी उलझती नजर आई, लेकिन जल्दी ही सुलझ भी गई.

दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. पुलिस वालों ने दिलीप से पूछताछ की तो उस की बातों से लगा कि वह झूठ नहीं बोल रहा है. उस ने पुलिस को बताया था कि वह काम से लौटा तो घर के अंदर से धुआं निकलते देख घबरा गया. उस ने मदद के लिए गुहार लगाई. इस के बाद जो हुआ, उस की पुष्टि के लिए वहां दरजनों लोग मौजूद थे.

दरवाजा सचमुच अंदर से बंद था, जिसे उन लोगों ने मिल कर तोड़ा था. सभी ने बताया कि पिंकी की लाश जली हालत में किचन में पड़ी थी और विजय की ड्राइंगरूम में. उस के गले में साड़ी का फंदा लिपटा था. पिंकी के चेहरे पर चोट के निशान साफ दिखाई दे रहे थे.

जल्दी ही इस दोहरे हत्याकांड या खुदकुशी की खबर आग की तरह धार से होते हुए समूचे निमाड़ और मालवांचल में फैल गई, जिस के बारे में सभी के अपनेअपने अनुमान थे. लेकिन सभी को इस बात का इंतजार था कि आखिर पुलिस कहती क्या है.

धार के एसपी वीरेंद्र सिंह भी सूचना पा कर घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से जायजा लिया. पुलिस को दिए गए बयान में पिंकी की मां मुन्नीबाई ने बताया था कि पिंकी और विजय का वैवाहिक जीवन ठीकठाक चल रहा था, लेकिन दिलीप ने आ कर न जाने कैसे पिंकी को फंसा लिया.

जबकि दिलीप का कहना था कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस की गैरमौजूदगी में पिंकी पहले पति विजय से मिलतीजुलती थी या फोन पर बातें करती थी. पिंकी के भाई कान्हा सुवे ने जरूर यह माना कि उस ने पिंकी को बहुत समझाया था, पर वह नहीं मानी. पिंकी कब विजय को तलाक दे कर दिलीप के साथ रहने लगी थी, यह उसे नहीं मालूम था.

तलाक के बाद दोनों बेटे विजय के पास ही रह रहे थे. विजय के भाई अजय के मुताबिक हादसे के दिन विजय राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिकस्थल सांवरिया सेठ जाने को कह कर घर से निकला था.

वह छोटे बेटे अनुज को अपने साथ ले गया था. अनुज को उस ने एक परिचित की कार में बिठा कर अपनी साली के पास छोड़ दिया था, जो शिक्षिका है.

अब पुलिस के पास सिवाय अनुमान के कुछ नहीं बचा था. इस से आखिरी अंदाजा यह लगाया गया कि विजय पिंकी के बुलाने पर उस के घर आया था और किसी बात पर विवाद हो जाने की वजह से उस ने पिंकी की हत्या कर के घर में आग लगा दी थी. उस के बाद खुद भी साड़ी का फंदा बना कर लटक गया. फंदा उस का वजन सह नहीं पाया, इसलिए वह गिर कर बेहोश हो गया. उसी हालत में दम घुटने से उस की भी मौत हो गई होगी.

बाद में यह बात भी निकल कर आई कि विजय पिंकी से दोबारा प्यार नहीं करने लगा था, बल्कि उस की बेवफाई से वह खार खाए बैठा था. उस दिन मौका मिलते ही उस ने पिंकी को उस की बेवफाई की सजा दे दी. लेकिन बदकिस्मती से खुद भी मारा गया.

सच क्या था, यह बताने के लिए न पिंकी है और न विजय. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक दोनों की मौत दम घुटने से हुई थी, लेकिन पिंकी के पेट पर एक धारदार हथियार का निशान भी था, जो संभवत: तवे का था. विजय के सिर पर लगी चोट से अंदाजा लगाया गया कि खुद को फांसी लगाते वक्त वह गिर गया था, इसलिए उस के सिर में चोट लग गई थी.

यही बात सच के ज्यादा नजदीक लगती है कि विजय ने पहले पिंकी को मारा, उस के बाद खुद भी फांसी लगा ली. लेकिन क्यों? इस का जवाब किसी के पास नहीं है. क्योंकि वह वाकई में पत्नी को बहुत चाहता था, पर उस की बेवफाई की सजा भी देना चाहता था. जबकि पिंकी की मंशा उस से दोबारा पैसे ऐंठने की थी. शायद इसी से वह और तिलमिला उठा था.

पिंकी समझदारी से काम लेती तो विजय की कम आमदनी में करोड़ों पत्नियों की तरह अपना घर चला सकती थी. पर अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की जिद और ख्वाहिशें उसे महंगी पड़ीं, जिस से उस के बच्चे अनाथ हो गए. अब उन की चिंता करने वाला कोई नहीं रहा.

दिलीप कहीं से शक के दायरे में नहीं था. उस का हादसे के समय पहुंचना भी एक इत्तफाक था. परेशान तो वह भी पिंकी की बढ़ती मांगों से था, जिन से इस तरह छुटकारा मिलेगा, इस की उम्मीद उसे बिलकुल नहीं रही होगी.

ऐसे बनाएं घर पर दम आलू

घर पर आसान तरीके से बनाएं दम आलू, मेहमान भी हो जाएंगे खुश.

सामग्री-

– आलू (400 ग्रा.)

– 3 टमाटर

– 2 हरी मिर्च

– 1 टुकड़ा अदरक

– जीरा (1/2 टी स्पून)

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– हल्दी (1/2 टी स्पून)

– धनियां (1 टी स्पून)

– क्रीम (50 ग्रा.)

– दही (50 ग्राम)

– मिर्च (1 टी स्पून)

– गरम मसाला (1/4 टी स्पून)

– तेल (2 टी स्पून)

– नमक (स्वादानुसार)

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बनाने की विधि

– सबसे पहले उबले हुए आलू को छील कर साफ करले और उनमे चाकू या काटे की सहायता से छेद कर ले.

– अब कढ़ाई मे तेल गरम करे उसमे इन आलू को डालकर धीमी आंच पर तल ले.

– जब सभी आलू तल जाए तो उन्हें किसी बर्तन मे निकाल कर रख दें.

– इतना करने के बाद टमाटर, अदरक, हरी मिर्च मिक्सी मे डालकर उन्हें पीस ले.

– इस मिश्रण को निकाल लें.

– गैस पर कढाई रखे उसमे तेल डाले साथ ही ज़ीरा डाले अब इसमें हल्दी, धनिया, गरम मसाला और     मलाई डालकर अच्छे से मिलाएं.

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– अब इसमें पिसा हुआ मिश्रण डालें, इस सारे मिश्रण को अच्छे से मिक्स करें.

– अब इस मिश्रण मे नमक और लाल मिर्च डाले और अच्छे से भूनें.

– इतना करने के बाद इसमें जब तेल मसाले से अलग होने लगे तो दही डाल दे और मिला लें.

– कुछ देर पकाने के बाद इसमें तरी के अनुसार पानी डाले जब इसमें उबाल आने लगें तो तले हुए आलू     डाले और सारे मिश्रण को अच्छे से मिला दें.

– कुछ देर पकने के लिए छोड़ दें, 4-5 मिनट बाद देखें आपके गरमा गरम दम आलू तैयार है.

Crime Story: 3 बहनों की साजिश

सौजन्य- मनोहर कहानियां

सीमा, प्रियंका और बबीता सगी बहनें थीं. तीनों की जिंदगी भी मजे से गुजर रही थी, इन की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि भी नहीं थी. लेकिन तीनों बहनों ने जो जघन्य अपराध किया उसे जान कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाते. और वजह सिर्फ यह थी कि तीनों बहनों में से एक बहन सीमा गौना कर के ससुराल न जा पाए…

इसी 11 अगस्त की बात है. सुबह के करीब 9 बजे थे. सूर्यनगरी के नाम से विख्यात राजस्थान के जोधपुर शहर में नांदड़ी गोशाला के पीछे नगर निगम

की एक टीम सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की हौदी की सफाई कर रही थी. सफाई करते समय टीम को कचरे की एक थैली मिली.

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इस थैली में इंसान के कटे हुए 2 हाथ और 2 पैर थे. कटे हाथपैर मिलने से वहां काम कर रहे सफाई कर्मचारियों में दहशत फैल गई. सफाई कर्मियों ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी.

सूचना मिलते ही बनाड़ थाना पुलिस वहां पहुंच गई. वहां प्लांट सुपरवाइजर पूनमचंद बाल्मीकि और औपरेटर पप्पू मंडल ने बताया कि प्लांट में जाने वाली हौदी की सफाई करते समय कपड़े की एक थैली निकली.

थैली में किसी इंसान के कटे हुए 2 हाथ और 2 पैर हैं. सफेदलाल रंग इस थैली पर भाग्य लक्ष्मी टेक्सटाइल, कपड़े के व्यापारी, आनंदपुर कालू, जिला पाली छपा हुआ है.

इंसान के कटे हाथपैर मिलने का मामला गंभीर था. पुलिस टीम ने संबंधित जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. इस पर जोधपुर के डीसीपी (ईस्ट) धर्मेंद्र सिंह यादव, एडीसीपी (ईस्ट) भागचंद, मंडोर एसीपी राजेंद्र दिवाकर, बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजना मौके पर पहुंच गए.

कटे हाथपैरों का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंग किसी पुरुष के हैं, जिन्हें किसी धारदार कटर मशीन से काटा गया है. निस्संदेह किसी व्यक्ति की निर्दयता से हत्या कर उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर फेंके गए थे.

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पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि मृतक का सिर और धड़ कहां है? क्योंकि केवल हाथपैरों से उस की शिनाख्त मुश्किल थी और बिना शिनाख्त के केस आगे नहीं बढ़ सकता था. इसलिए अधिकारियों ने डौग स्क्वायड और एफएसएल टीम को मौके पर बुला लिया, लेकिन पुलिस को तत्काल ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल सकी, जिस से मृतक या कातिल के बारे में कुछ पता चल पाता. पुलिस ने कटे हुए हाथपैर एमजीएच अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिए.

सब से पहले मृतक का सिर और धड़ मिलना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने आसपास के इलाकों और ट्रीटमेंट प्लांट हौदी से जुड़ी सीवरेज पाइप लाइनों में जेट मशीनों से धड़ व सिर की तलाश शुरू कराई. इस के अलावा आसपास के जिलों में वायरलैस संदेश भेज कर गुमशुदा लोगों की जानकारी भी मांगी गई.

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी कि उसी दिन शाम करीब 4 बजे सूचना मिली कि ट्रीटमेंट प्लांट की सीवरेज लाइन में एक और थैली मिली है, जिस में कटा हुआ सिर है. इस पर पुलिस अधिकारी दोबारा प्लांट पर पहुंचे. जिस थैली में सिर मिला, उस पर नागौर

जिले के मेड़ता सिटी की एक दुकान का पता छपा था.

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जरूरी जांच पड़ताल के बाद कटा सिर भी अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया गया. बनाड़ पुलिस थाने में एएसआई गोरधन राम की रिपोर्ट पर अज्ञात मुलजिमों के खिलाफ अज्ञात व्यक्ति की हत्या कर सबूत नष्ट करने का केस दर्ज कर लिया गया.

अपराध की गंभीरता को देखते हुए जांच पड़ताल के लिए पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर एडीसीपी भागचंद के नेतृत्व में एसीपी राजेंद्र दिवाकर, बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजना और डांगियावास थानाधिकारी लीलाराम की टीम गठित की गई.

धड़ की तलाश जरूरी थी. इस के लिए अधिकारियों ने सीवरेज प्लांट में आने वाले नाले में आधुनिक तकनीकी मशीनों से धड़ की तलाश शुरू कराई.

उसी दिन रात को जोधपुर पुलिस को नागौर जिले से सूचना मिली कि चरणसिंह उर्फ सुशील चौधरी 10 अगस्त से लापता है. उस की गुमशुदगी का मामला मेड़ता सिटी थाने में दर्ज है. जोधपुर पुलिस ने चरणसिंह के फोटो मंगा कर सीवरेज लाइन में मिले कटे सिर के फोटो से मिलान किया, तो दोनों में समानता पाई गई.

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जोधपुर पुलिस ने मेड़ता सिटी थाना पुलिस को सूचना भेज कर चरणसिंह के परिजनों को बुलाया. दूसरे दिन यानी 12 अगस्त को मिले कटे अंगों की शिनाख्त मेड़ता के खाखड़की गांव निवासी 27 वर्षीय चरणसिंह उर्फ सुशील जाट के रूप में हो गई. चरणसिंह के मामा के बेटे राजेंद्र गोलिया ने की.

राजेंद्र गोलिया ने जोधपुर पुलिस को बताया कि 2 महीने पहले ही चरणसिंह राजस्थान सरकार के कृषि विभाग में सहायक कृषि अधिकारी के रूप में नियुक्त हुआ था. उस की पोस्टिंग नागौर जिले के डेगाना तहसील के खुडि़याला गांव में थी. चरणसिंह 10 अगस्त को घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा.

मिलने लगे सुराग

कटे हुए अंगों की शिनाख्त हो जाने से पुलिस को तहकीकात में कुछ मदद मिली. पुलिस ने चरणसिंह के परिजनों से जरूरी पूछताछ की ताकि कत्ल के कारण और कातिलों का पता लगाया जा सके.

पूछताछ में पता चला कि 2013 में चरणसिंह की शादी बोरूंदा निवासी पोकर राम जाट की बेटी सीमा से हुई थी, लेकिन अभी गौना (शादी के बाद की एक रस्म) नहीं हुआ था.

इन दिनों उस के गौने की बात चल रही थी. यह भी सामने आया कि चरणसिंह के परिवार और उस की ससुराल वालों के बीच बोरूंदा स्थित एक चूना भट्ठे को ले कर कुछ विवाद था.

दरअसल, चरणसिंह के पिता नेमाराम कई सालों से बोरूंदा में पोकर राम के चूना भट्ठे पर काम करते थे. बाद में चरणसिंह की शादी पोकरराम की बेटी सीमा से हो गई. कुछ साल पहले पोकर राम को लकवा आ गया था, तब नेमाराम ने चूना भट्ठे का सारा काम संभाल लिया था.

बाद में इस भट्टे के मालिकाना हक को ले कर नेमाराम और पोकर राम के बीच विवाद हो गया. नेमाराम अपने बेटे चरणसिंह का गौना करवाना चाहते थे, जबकि पोकर राम के परिवार वाले पहले भट्ठे का विवाद सुलझाना चाहते थे.

एक तरफ पुलिस मामले की गहराई में जा कर हत्या के कारणों और हत्यारों की तलाश में जुटी थी, वहीं दूसरी तरफ सीवरेज प्लांट से जुड़े नालों और पाइप लाइनों में चरणसिंह के धड़ की तलाश की जा रही थी. इस बीच, जोधपुर पुलिस को सूचना मिली कि मेड़ता सिटी में पब्लिक पार्क के पास एक लावारिस मोटरसाइकिल खड़ी मिली है, जो चरणसिंह की है.

पुलिस ने इस पब्लिक पार्क के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. इन फुटेज में 10 अगस्त की शाम करीब 4:50 बजे सलवारसूट पहने 2 युवतियां मोटर साइकिल खड़ी करती नजर आईं. चरणसिंह की बाइक पर सवार हो कर आई 2 युवतियों से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्या की कडि़यां उस की ससुराल से जुड़ी हो सकती हैं.

अब पुलिस ने अपनी जांच का फोकस मानव अंग मिलने वाले जोधपुर के नांदड़ी इलाके के साथसाथ मेड़ता और बोरूंदा पर केंद्रिंत कर दिया. इस में साइबर टीम के जरिए तकनीकी जानकारियां भी जुटाई गईं.

3 सगी बहनों के नाम आए सामने

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए चरणसिंह की पत्नी के अलावा 2 सालियों, एक साले और चूना भट्टे से जुड़े कई लोगों से पूछताछ की.  गहन पूछताछ और जांच पड़ताल कर जरूरी सबूत जुटाने के बाद जोधपुर पुलिस ने 13 अगस्त को सहायक कृषि अधिकारी चरणसिंह उर्फ सुशील चौधरी की हत्या के मामले में उस की 23 वर्षीय पत्नी सीमा के अलावा 2 बड़ी सालियों 25 वर्षीया प्रियंका और 27 वर्षीया बबीता के साथ प्रियंका के बौयफ्रैंड भींयाराम जाट को गिरफ्तार कर लिया.

भींया राम खींवसर थाना इलाके के गांव कांटिया का रहने वाला था जबकि तीनों बहनें सीमा, प्रियंका और बबीता बोरूंदा के डांगों की ढाणियों की रहने वाली थी. ये तीनों बहनें शादीशुदा थीं. पोकर राम जाट की इन तीनों बेटियों में सीमा का अभी गौना नहीं हुआ था.

तीनों बहनों और भींयाराम की निशानदेही पर पुलिस ने उसी दिन शाम को मंडोर 9 मील इलाके में नाले की तलाशी करवाकर चरणसिंह का धड़ भी बरामद कर लिया.

पुलिस की पूछताछ में चरणसिंह की नृशंस हत्या के लिए राक्षसी बनीं तीनों सगी बहनों की सामने आई कहानी में फिल्मों की तरह थ्रिल भी था और सस्पेंस भी. इस में प्यार भी था और नफरत भी. कुल जमा 5 किरदारों की कहानी थी यह. ये किरदार थे पति चरणसिंह, उस की पत्नी सीमा, साली प्रियंका और बबीता. साथ ही प्रियंका से 15 साल बड़ा उस का बौयफ्रैंड भींयाराम.

इसे कथा कहानी पटकथा कुछ भी कहें, इस में आजाद ख्याल तीनों बहनों की महत्वाकांक्षाएं शामिल थीं. अपनी इच्छा से आजाद जीवन जीने के लिए तीनों बहनों ने ऐसा खूनी खेल खेला, जिस के बारे में चरणसिंह तो क्या कोई भी सोच तक नहीं सकता था कि उस की पत्नी और सालियां ऐसी नृशंसता करेंगी. हत्या की आरोपी तीनों बहनों और भींयाराम से पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

बोरूंदा के डांगों के रहने वाले पोकर राम की 7 बेटियां हैं और एक बेटा. पोकर राम का बोरूंदा में चूना भट्टा था. इस से उस की ठीकठाक कमाई हो जाती थी. इसी कमाई से उस ने एकएक कर 7 बेटियों की शादी कर दी थी. इन में 4 बेटियां अपने ससुराल में पति और बच्चों के साथ सुखी हैं.

बाकी रह गई 3 बेटियां सीमा, प्रियंका और बबीता. इन तीनों की भी शादी हो चुकी थी. इन में बबीता और प्रियंका ने अपनेअपने पति को छोड़ दिया था. सीमा सब से छोटी थी. उस की शादी 2013 में नागौर जिले के मेड़ता सिटी निवासी नेमाराम जाट के बेटे चरणसिंह उर्फ सुशील से हुई थी, लेकिन गौना नहीं होने के कारण सीमा अभी तक ससुराल नहीं गई थी.

तीनों बहनें पढ़ीलिखी थीं. सीमा वेटनरी (पशुपालन) सहायक थी. बबीता ने एएनएम (नर्सिंग) का कोर्स कर रखा था, लेकिन अभी उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली थी. वह पटवारी भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रही थी. प्रियंका भी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. वह एक मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनी से जुड़ी हुई थी और सौंदर्य व स्वास्थ्य संबंधी प्रसाधन सामग्री औनलाइन मंगा कर बेचने का काम करती थी.

नागौर जिले के खींवसर थाना इलाके के कांटिया गांव का रहने वाला भींयाराम प्रियंका के साथ काम करता था. इसीलिए प्रियंका और भींयाराम की दोस्ती थी. भींयाराम पूर्व फौजी था. हालांकि वह प्रियंका से 15 साल बड़ा था, फिर भी दोनों में दोस्ती थी. प्रियंका और बबीता पतियों से अलग होने के बाद जोधपुर शहर के नांदड़ी इलाके में किराए पर रहती थीं. हालांकि इस बीच बबीता का रिश्ता दूसरी जगह तय हो गया था.

अगर चरणसिंह की बात करें तो वह प्रतिभाशाली युवक था. 10वीं और 12वीं की परीक्षा में मेरिट हासिल करने के बाद उस ने बीएससी की पढ़ाई की थी. इसी दौरान उस की शादी सीमा से हो गई थी. बाद में चरणसिंह ने जोधपुर के मंडोर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में एसआरएफ के रूप में काम किया.

इसी दौरान चरणसिंह अच्छी नौकरी हासिल करने के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं देता रहा. इसी के चलते उस का चयन बैंक अधिकारी के रूप में हो गया. उसे पहली नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अयोध्या में मिली. करीब 10-12 महीने काम करने के दौरान चरणसिंह का चयन राजस्थान के कृषि विभाग में सहायक कृषि अधिकारी के रूप में हो गया. इसी साल 23 मई को उस ने नौकरी ज्वाइन की थी.

चरणसिंह की शादी हुए 7 साल हो चुके थे. उस की उम्र भी 27 साल हो गई थी. साथ ही अच्छी सरकारी नौकरी भी मिल गई थी, लेकिन विवाहित होने के बावजूद वह पत्नी सुख से वंचित था.

चरणसिंह के परिवार वाले काफी दिनों से सीमा का गौना कराने का दबाव डाल रहे थे, लेकिन सीमा के कहने पर उस के परिजन हर बार टाल जाते थे जबकि सीमा भी 23 साल की हो चुकी थी.

चूंकि सीमा पत्नी थी, इसलिए चरणसिंह कई बार उस से मोबाइल पर बात कर लेता था. सीमा वैसे तो हंसहंस कर प्यार की बातें करती थी, लेकिन गौने के नाम पर भड़क जाती थी.

चरणसिंह हंसमुख, स्मार्ट, सरकारी अधिकारी था, फिर भी पता नहीं किन कारणों से सीमा उसे पसंद नहीं करती थी. कहा जाता है कि वह समलैंगिंक थी. उस के किसी महिला से संबंध थे. वह पुरुषों से दूर रहना पसंद करती थी. इसीलिए वह गौना करा कर ससुराल नहीं जाना चाहती थी.

आरोप है कि सीमा के व्यवहार से परेशान चरणसिंह अपनी बड़ी साली प्रियंका से फ्लर्ट करता था. प्रियंका जीजासाली के रिश्ते को देखते हुए इस का विरोध नहीं कर पाती थी, लेकिन वह चरणसिंह की बातों से परेशान जरूर हो जाती थी.

षडयंत्र ऐसा कि पुलिस भी चकरा गई

कुछ दिन पहले जब चरणसिंह के परिवार की ओर से गौने का ज्यादा दबाव पड़ा, तो सीमा ने अपनी दोनों बड़ी बहनों प्रियंका और बबीता से कहा कि वह आत्महत्या कर लेगी लेकिन चरणसिंह के साथ नहीं जाएगी. इस पर बबीता और प्रियंका ने उस से कहा कि उसे आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है, हम मिल कर उसे ही निपटा देंगे, जिस से तू परेशान है.

इस के बाद तीनों बहनें चरणसिंह की हत्या की साजिश रचने लगी. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने अपनी योजना को अंतिम रूप दे दिया. चरणसिंह की हत्या को अंजाम देने के लिए उन्होंने बाजार से इलैक्ट्रिक ग्राइंडर कटर मशीन खरीदी. यह मशीन जोधपुर में प्रियंका व बबीता के मकान पर रख दी गई.

योजना के तहत सीमा ने फोन कर चरणसिंह को 10 अगस्त को जोधपुर बुलाया. चरणसिंह उसी दिन अपनी मोटर साइकिल से जोधपुर पहुंच गया.

सीमा उसे इंतजार करती मिली. वह चरणसिंह की मोटर साइकिल पर बैठ कर उसे अपनी दोनों बहनों के मकान पर नांदड़ी ले गई. वहां सीमा, प्रियंका व बबीता ने कुछ देर तो इधरउधर की बातें की, फिर चरणसिंह को शराब पिलाई. बाद में कोल्डड्रिंक में नींद की गोलियां मिला कर उसे पिला दी गईं.

कुछ ही देर में चरणसिंह अचेत हो गया, तो उसे एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया गया ताकि उस के होश में आने की कोई गुंजाइश ही न रहे. बाद में तीनों बहनों ने उसे गला दबा कर उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया.

इस के बाद तीनों ने इलैक्ट्रिक ग्राइंडर कटर मशीन से चरणसिंह के शव को 6 टुकड़ों में काटा. इन टुकड़ों को 3 थैलियों में भर दिया गया. शव के टुकड़े करने के दौरान फर्श पर फैले खून को साफ करने के लिए पूरे घर को धो दिया गया.

इस सब के बाद तीनों बहनें मकान पर ताला लगा कर चरणसिंह की मोटर साइकिल से बोरूंदा पहुंची. वहां सीमा को उतार दिया गया. फिर प्रियंका और बबीता उसी मोटर साइकिल से मेड़ता सिटी गईं. वहां इन दोनों ने पब्लिक पार्क के बाहर चरणसिंह की मोटर साइकिल खड़ी कर दी.

मेड़ता सिटी से दोनों बहनें बस से जोधपुर आ गईं. इन बहनों के पास केवल एक स्कूटी थी. जिस पर शव के टुकड़ों को ले जा कर ठिकाने लगाना जोखिम भरा काम था. इसलिए प्रियंका ने अपने बौयफ्रैंड भींयाराम को फोन कर के जरूरी काम होने की बात कह कर बुलाया.

 

भींयाराम 10 अगस्त की रात कार ले कर उन के मकान पर पहुंचा, तो प्रियंका और बबीता ने उसे चरणसिंह की हत्या कर टुकड़े थैलियों में भर कर रखने की बात बताई. साथ ही उस से उन्हें ठिकाने लगाने में मदद मांगी. भींयाराम ने इस काम में उन का साथ देने से इनकार कर दिया, तो प्रियंका व बबीता ने कहा कि अगर वह साथ नहीं देगा, तो तीनों बहनें सुसाइड कर लेंगी और सुसाइड नोट में मौत का जिम्मेदार उसे बता देंगी.

डरासहमा भींयाराम आखिर उन का साथ देने को राजी हो गया. उस ने तीनो थैलियां अपनी कार की पिछली सीट पर रखीं. दोनों बहनें आगे की सीट पर बैठ गईं. इन्होंने चरणसिंह के कटे हाथपैर और सिर वाली 2 थैलियां नांदड़ी में अपने घर से करीब 100 मीटर दूर सीवरेज लाइन में डाल दीं.

धड़ वाली तीसरी थैली इन्होंने रातानाड़ा पुलिस लाइन के पीछे नाले में डालने की सोची, लेकिन वहां पुलिस का नाका देख कर वे लोग नागौर रोड़ की तरफ निकल गए, वहां नाले में तीसरी थैली फेंक दी.

इस के बाद तीनों नांदड़ी आ गए. प्रियंका ने रात को डर लगने की बात कह कर भीयाराम को रोकने की कोशश की, लेकिन उस ने रुकने से इनकार कर दिया और अपने घर चला गया.

हाथपैर व सिर वाली 2 थैलियां 11 अगस्त को नांदड़ी गोशाला के पीछे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की हौदी की सफाई के दौरान मिली थी. चारों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद 13 अगस्त को उन की निशानदेही पर धड़ वाली थैली बरामद की गई.

 

पुलिस ने 14 अगस्त को जोधपुर के एमजीएच अस्पताल में 5 डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से शव के 6 टुकड़ों का पोस्टमार्टम कराया. डाक्टरों की टीम ने शव के सभी 6 टुकड़ों के डीएनए सैंपल लिए ताकि पुष्टि हो सके कि ये एक ही व्यक्ति के थे.

तीनों बहनें इतनी शातिर निकली कि जब चरणसिंह के लापता होने और मेड़ता सिटी थाने में गुमशुदगी दर्ज होने की खबरें सोशल मीडिया पर चलने लगीं, तो उन्होंने चरणसिंह के रिश्तेदारों को फोन कर पूछा कि वे कहां गायब हो गए?

पुलिस ने 12 अगस्त को जब तीनों बहनों से अलगअलग पूछताछ की, तो वे पूरे आत्मविश्वास से पुलिस को छकाती रहीं और चरणसिंह की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार करती रहीं.

बाद में पुलिस ने भींयाराम को भी हिरासत में ले लिया और सीसीटीवी फुटेज सहित अन्य कई सबूत उन के सामने रख कर पूछताछ की, तो वे टूट गईं और चरणसिंह की हत्या कर उस के शव के टुकड़े कर सीवरेज के नालों में फेंकने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद 13 अगस्त को चारों को गिरफ्तार कर लिया गया.

पति चरणसिंह से नफरत करने वाली सीमा ने अपनी आजादी और शौक पूरे करने के लिए उसे मौत के घाट उतार कर खुद के साथ अपनी 2 बड़ी बहनों और एक बहन के दोस्त का जीवन बरबाद कर दिया. अपने पतियों की ना हो सकी तीनों बहनों ने पिता पोकर राम को बुढ़ापे में ऐसा दर्द दिया है कि वह जीते जी उसे सालता रहेगा.

Nutrition Special: टीनएज गर्ल्स को आयरन की कमी से हो सकते हैं ये नुकसान

नेहा खाती तो बहुत थी, लेकिन उस के खाने में पौष्टिक तत्त्वों की हमेशा कमी रहती थी जिस कारण किशोरावस्था में उस की ग्रोथ रुक गई थी. यही नहीं वह कोई भी काम करती तो उसे जल्दी थकान होने लगती. यह बात उस ने अपने पेरैंट्स से भी छिपाई. फिर एक दिन वह अचानक बेहोश हो गई. जब उसे अस्पताल में दाखिल किया गया तो पता चला कि उस के शरीर में आयरन की बहुत कमी है.

ऐसा सिर्फ नेहा के साथ ही नहीं बल्कि बहुत सी किशोरियों के साथ होता है, जो अपने खानपान का बिलकुल ध्यान नहीं रखती हैं, जबकि इस उम्र में उन के शरीर को ज्यादा आयरन की जरूरत होती है. इसलिए उन्हें अपनी डाइट में भरपूर मात्रा में पौष्टिक तत्त्व लेने चाहिए ताकि वे स्वस्थ रहें.

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शरीर में आयरन की भूमिका

आयरन रक्त में हीमोग्लोबिन का सब से महत्त्वपूर्ण घटक होता है. यह शरीर में औक्सीजन पहुंचाने के साथसाथ उसे ऊर्जा देने का भी काम करता है. यही नहीं यह शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. इस की कमी से कमजोरी आना, जल्दी थक जाना, सिरदर्द, चेहरे का पीला पड़ना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

न होने दें आयरन की कमी

अपनी डाइट में आयरनयुक्त खा-पदार्थों को शामिल करने के साथसाथ चिकित्सक की सलाह से आयरन सप्लिमैंट्स का भी प्रयोग कर सकती हैं. इस के अलावा निम्न बातों का भी ध्यान रखें:

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– शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से ऐनीमिया होता है. लाल रक्त कोशिकाएं मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करती हैं. इस में आयरनयुक्त भोजन लेने की जरूरत होती है.

– फौलिक ऐसिड नई कोशिकाओं को विकसित करता है. यदि किशोरी के शरीर में खून की मात्रा जरूरत से ज्यादा कम होने लगे तो चिकित्सक की सलाह से इस की पूर्ति के लिए सप्लिमैंट्स लिए जा सकते हैं.

– फौलिक ऐसिड ब्रैस्ट कैंसर और कोलोन कैंसर की आशंका को कम करता है.

– आयरन और फौलिक ऐसिड प्राकृतिक रूप से पाने के लिए सही मात्रा में हरी पत्तेदार सब्जियां, साबूत दालें और फल खाने की जरूरत होती है.

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– आयरन और फौलिक ऐसिड की कमी से शरीर का मैटाबोलिज्म सही तरीके से काम नहीं करता, जिस के कारण पर्याप्त मात्रा में भोजन न मिलने की वजह से शरीर की ऊर्जा तेजी से खत्म हो जाती है.

– आजकल के प्रतिस्पर्धा के दौर में अच्छा कैरियर सुनिश्चित करने के लिए लड़कियों को काफी मेहनत करनी पड़ती है. ऐसे में समय पर पोषक पदार्थों से युक्त भोजन कर पाना उन के लिए संभव नहीं हो पाता जिस के चलते उन्हें जल्दीजल्दी थकान महसूस होती है.

– पीरियड्स के दौरान रक्तस्राव की वजह से आयरन की कमी किशोरियों में अधिक होती है. यह एक बड़ी वजह है, पर वे इस पर ध्यान नहीं देतीं, जबकि उन्हें आयरन सप्लिमैंट लेने की जरूरत होती है.

आयरन की कमी के लक्षण

– आयरन की कमी से थकान महसूस होती है, क्योंकि हीमोग्लोबिन को बनाने के लिए आयरन की जरूरत होती है. हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं होने के कारण हड्डियों और टिशू तक कम औक्सीजन पहुंच पाती है तो थकान महसूस होती है.

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– स्किन में पीलापन आयरन की कमी से आता है. इस से स्किन अनहैल्दी लगती है. उस की रैडनैस खत्म होने लगती है.

– आयरन की कमी के कारण शरीर में हीमोग्लोबिन के कम होने से औक्सीजन का स्तर घटता है, जिस से सांस लेने में दिक्कत आती है. सिरदर्द की समस्या का भी सामना करना पड़ता है. पैरों में भी वीकनैस आ जाती है.

– आयरन की कमी से स्किन और बालों तक औक्सीजन की सप्लाई नहीं होने के कारण वे ड्राई और कमजोर हो जाते हैं.

– नाखूनों का कमजोर होना भी आयरन की कमी का मुख्य कारण है. इसलिए किशोरियों को अपनी डाइट में आयरन को जरूर शामिल करना चाहिए.

अगले भाग में पढ़िए कैसे पूरा करें आयरन की कमी और किन चीजों को खाने से मिलता है आयरन?

आशा भोसले ने लोनावाला में पूरे परिवार के साथ मनाया अपना 87वां जन्मदिन

अपनी आवाज में स्वरबद्ध गीतों के माध्यम से पिछले सत्तर वर्ष से भारतीय सिनेमा जगत और दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती आयी गायिका आशा भोसले ने अपना 87वां जन्मदिन मुंबई से तकरीबन दो सौ किलोमीटर दूर अपने लोनावाला वाले फार्म हाउस में पूरे परिवार के साथ मनाया.आशा ताई के रूप में मशहूर आशा भोसले ने अपनी चिर परिचित मुस्कान और ऊर्जा के साथ अपनी आने वाली उम्र की घोषणा करते हुए कहा कि वह अपने नए शाकाहारी और नॉन-वेज व्यंजनों को आजमाने के लिए शेफ को लेने जा रही है,जिन्हें लॉकडाउन के दौरान उन्होने स्वयं बनाया था.उन्होने कहा-‘‘मैं हर काम तेजी से करती हूं.फिर चाहे गाना हो या खाना बनाना हो.इसलिए जब मैं व्यंजनों का निर्माण करती हूं, तो अन्य लोगों को रसोई से बाहर निकल देती हॅूं. क्योकि वह मेरी गति से मेल खाने में सक्षम नहीं होते हैं!‘‘

आशा भोसले कुछ समय से अपने बेटे आनंद,बहू पूजा, पोती रंजाई  के साथ लोनावला में ही रही है.पर उनके जन्म दिन को मनाने के लिए उनकी पोती जनाई मुंबई से खास तौर पर आशा ताई की पसंदीदा फलों और सूखे मेवों से बनी फ्रेश क्रीम फ्रूट केक लेकर आयी थी,जिसे काटकर जन्म दिन मनाया गया.लॉक डाउन के बावजूद सिर्फ अपनी दादी आशा ताई का जन्मदिन मनाने के लिए जनाई लॉकडाउन के बावजूद मुंबई से लोनावाला पहुंची.इतना ही नही मुंबई से जनाई द्वारा लाया गया आशा ताई का पसंदीदा जापानी और चीनी खाने का भी आशा ताई व पूरे परिवार ने स्वाद चखा.

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आशा ताई गर्व के साथ कहती हैं-‘‘मेरे दोनों बच्चे बहुत प्रतिभाशाली हैं.जानई बहुत अच्छा गाती है.मैं उसमें खुद को एक बच्चे के रूप में देखती हूं.’’

आशा ताई यह भी मानती हैं कि उनके अंदर का बच्चा जिंदा है और गा रहा है.उनका दावा है कि उम्र के 87 से 88 की यात्रा में उनके पास बहुत कुछ करने को है.वह कहती हैं-‘‘अपने टैलेंट शो ‘आशा की आशा’ में 3000 से अधिक आवाजें सुनने के बाद मुझे सर्वश्रेष्ठ चुनने के बहुत मुश्किल काम को अभी अंजाम है.दुनिया भर की युवा प्रतिभाओं ने अपनी रिकॉर्डिंग भेजी है.उनमें से कुछ बहुत गरीब हैं.कुछ कठोर परिस्थितियों में रहते हैं,.लेकिन वास्तव में इन्हें ईश्वरीय-दिव्य आवाज भेंट में मिली है.मुझे पता है कि इनमें से किसी एक को चुनना मेरे लिए आसान काम नहीं होगा.लेकिन युवाओं के साथ अपने 70 साल के अनुभव को साझा करने और मुझे जो संगीत मिला,उसे वापस देने के लिए यह मेरा बदलाव है.और मैं इसके लिए हर एक दिन भगवान का आभारी हूं.‘‘

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आशा ताई अपने लाइव कॉन्सर्ट्स,खाना पकाने और लोगों को खिलाने के लिए भी तत्पर रहती हैं.उनके पास घर और रेस्टारेंट में विस्तार की योजनाएँ हैं.वह लोनावला में महिलाओं के लिए रोजगार पैदा करने के लिए काम करना चाहती हैं.वह कहती है-‘‘मैं इन महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद करना चाहती हूं.कोरोना के दौरान आम आदमी के लिए यह आसान नहीं रहा है.और यहाँ से उन गरीब महिलाओं के लिए यह आसान नहीं है, जिन्हें मैंने महामारी के दौरान देखा है.मैं उनके लिए कुछ ठोस करना चाहता हूं.”

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वह आगे कहती हैं-‘‘जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं,तो मुझे किसी बात का कोई पछतावा नहीं है.मुझे खुशी है कि मैंने जिंदगी को जिया और प्यार किया है.मैंने एक ईमानदार जीवन जिया है.मुझे खुशी है कि मैं 10 साल के अपने पहले गाने के रूप में अपने पैरों पर खड़ा हुई.आज 87 साल की उम्र में भी मैं  गा रही हूं और अपने पैरों पर खड़ी हूं.मेरा एक सुंदर परिवार है और एक बड़ा प्रशंसक परिवार भी है.मुझे इससे अधिक क्या चाहिए..’’

फिल्म‘‘आई एम नॉट ब्लाइंड’’के समर्थन में क्यों आगे आए कुछ आई ए एस अफसर और केंद्रीय मंत्री

जब किसी उत्साहवर्धक और प्रेरित करने वाली कहानी पर फिल्म बनती है,तो उसके समर्थन में काफी लोग एकत्र हो जाते हैं.कुछ बड़े दिग्गज फिल्मकार सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों से अपनी फिल्म का जबरदस्त प्रचार करने में सफल रहते हैं.मगर छोटे फिल्मकार एक उत्कृष्ट फिल्म का निर्माण करने के बावजूद उसका प्रचार करने में असफल रहते हैं.

जी हॉ!यह कटु सत्य है.अंबिकापुर,छत्तीसगढ़ निवासी आनंद गुप्ता पिछले 24 वर्ष से थिएटर करते आ रहे हैं.लगभग पांच वर्ष पहले उन्होने हर गरीब को शिक्षा मिले इस पर एक बेहतरीन फीचर फिल्म ‘‘लंगड़ा राजकुमार’’का निर्माण करने के साथ उसमें मुख्य भूमिका निभायी थी.अब बतौर निर्माता व अभिनेता वह एक फिल्म‘‘आई एम नॉट ब्लाइंड’’ लेकर आए हैं,जिसका निर्देशन गोविंद मिश्रा ने किया है.पर उनके पास इस फिल्म को प्रचारित करने के लिए धन की कमी है.मगर उन्हे दिव्यांग आई ए एस अफसरों व कुछ मंत्रियो का साथ जरुर मिला है.

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हमारे देश में राजेश कुमार सिंह,अजय अरोड़ा,रवि प्रकाश गुप्ता, कृष्ण गोपाल तिवारी और प्रांजल पाटिल सहित तकरीबन एक दर्जन दिव्यांग आई ए एस अफसर हैं,जो कि आंखों से देख नहीं सकते,मगर आई ए एस अफसर के रूप में बेहतरीन काम कर रहे हैं.इन सभी ने फिल्म‘‘आई एम नॉट ब्लाइंड’’देखी और फिल्म से प्रभावित होकर  कृष् ण गोपाल तिवारी और प्रांजल मेहता ने तो वीडियो के माध्यम से इस फिल्म की प्रशंसा भी की है.इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह और छत्तीगढ़ के मंत्री अमरजीत भगत ने भी फिल्म की सफलता के लिए शुभकामना संदेश जारी किया है

‘‘मदारी आर्ट्स’’ और ‘‘पिस्का इंटरटेनमेंट’’के बैनर तले बनी फिल्म ‘आई एम नॉट ब्लाइंड‘, आँखों से दिव्यांग व्यक्ति विमल कुमार के ‘‘आई ए एस‘‘ अफसर बनने तक की कहानी है.इसमें विमल कुमार का किरदार आंनद गुप्ता ने ही निभाया है.इस फिल्म में दो गाने हैं,जिन्हें अमी मिश्रा और हिमांशु कोहली ने गाया है तथा अंकित षाह ने संगीतबद्ध किया है.

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भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में एक सशक्त निर्माता और अभिनेता के रूप में उभर रहे आनन्द कुमार अब किसी परिचय के मोहताज नही हैं.पिछले 22 वर्षों से नुक्कड़ नाटक के माध्यम से करोंड़ो लोगों को अपना संदेश दे चुके आनन्द की नई फिल्म ‘‘ आइ एम नाट ब्लाईंड-ओनली माई आईज कान्ट सी‘‘ के चलते उनकी देष विदेष में चर्चा हो रही है.यह फिल्म अमरीका के फिल्म फेस्टिवल ‘ग्रेट सिनेमा नाउ‘ में दूसरे नंबर पर थी.विष्व के कई फिल्म फेस्टिवल में इसे सराहा जा चुका है.अमरीका के एक फेस्टिवल निदेशक निक मिल्स ने इस फिल्म को अमेरिका में प्रदर्शन करने की बात की थी, पर इस फिल्म के निर्माता पहले इसे भारत में प्रदर्शन करना चाहते थे,जो कि अब ओटीटी प्लेटफार्म ‘एम एक्स प्लेअर’पर आयी है.

खुद आनंद गुप्ता कहते हैं-‘‘यह फिल्म एक सच्ची घटना से प्रेरित है.हमारे भारत देश में आज 5 से 6 आंखों से दिव्यांग आई ए एस हैं, जिसमें एक महिला प्रांजल पाटिल भी शामिल हैं.हमारे दिव्यांगजन भाई-बहन जो सोचते हैं कि वह कुछ नहीं कर सकते,तो उन्हें इस फिल्म से बहुत कुछ करने की प्रेरणा मिलेगी.एक अंधे व्यक्ति के आई.ए.एस. बनने की सफलता की कहानी पर आधारित यह फिल्म दिव्यांगजनों को हौसला प्रदान करेगी.यह फिल्म माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के सपनों को साकार करने वाली फिल्म है.इसमें हमने दिव्यांगों के लिए लागू की गयी सुगम योजना का भी जिक्र किया है.’’

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कुछ वर्ष पहले ‘‘मदारी आर्टस’’द्वारा बनाई गई फिल्म ‘‘लंगड़ा राजकुमार’’को भी कई राष्ट्रीय व  अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुके हैं.यह फिम जल्द ही ‘एमएक्स प्लेअर’पर आएगी.इसी तरह आंनद कुमार गुप्ता निर्मित डाक्यूमेन्ट्री फिल्म ‘‘स्वयं बीइंग माई सेल्फ‘‘ साक्षर भारत एक नई रोषनी डालती है.तो वहीं आंनद कुमार गुप्ता निर्मित व अभिनीत लघु फिल्मों ‘ हेल्प टु अदर’,‘डोन्स से अगेन’,‘डोन्ट से लंगड़ा’,‘पागल’, ‘हैंडपम्प’ को राष्ट्रीय स्तर पर एन.एफ.डी.सी. द्वारा पुरूस्कृत किया जा चुका है.

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फिल्म ‘लंगड़ा राजकुमार’में गरीब मजदूर और ‘आई एम नॉट ब्लाइंड’’ में अंधे इंसान विमल कुमार के किरदार में आनन्द ने खुद को सषक्त अभिनेता के रूप में स्थापित किया है.वह कहते हैं-‘‘आज सार्थक और इंस्पायरिंग सिनेमा का दौर है.मेरा मानना है कि फिल्म समाज का आईना होता है.मैं संदेष परक फिल्में करना चाहता हूं, फिल्मों के माध्यम से सरगुजा छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति को अन्र्तराष्ट्रीय पटल पर स्थापित करना चाहता हूं.’’

संजय लीला भंसाली की ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से बॉलीवुड डेब्यू करेंगे पार्थ समथान

पार्थ समथान इन दिनों लगातर सुर्खियों में बने हुए हैं. जबसे उन्होंने सीरियल ‘कसौटी जिंदगी 2’ छोड़ने का फैसला लिया है उस समय से लगातार पार्थ समथान  को लेकर कई बड़ी खबरें आ रही हैं. पार्थ समथान के इस फैसले से फैंस ज्यादा खुश नहीं थें.

वहीं शो की प्रॉड्यूसर एकता कपूर ने पार्थ समथान को रोकने की पूरी कोशिश की थी लेकिन वह रोक नहीं पाई. पार्थ के जानें के बाद लगातार एकता कपूर की टीम नए एक्टर की तलाश में लगे हुए हैं हालांकि की अभी तक किसी का नाम बाहर नहीं आया है.

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वह एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पार्थ समथान जल्द ही संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाले हैं. इस फिल्म में पार्थ समथान आलिया भट्ट के साथ  ऑपाजिट किरदार में नजर आएंगे. वहीं खबर यह भी आ रही है कि पार्थ अपने डेब्यू को लेकर बेहद ही एक्साइटेड हैं.

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फैंस को दुखी करने वाली खबर यह है कि ‘कसौटी जिंदगी 2 ‘की आखिरी शूटिंग 3 अक्टूबर को होगी. जिसके बाद से इस शो को बंद कर दिया जाएगा.

 

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सीरियल की शूटिंग के दौरान खबर यह भी आ रही थी कि पार्थ समथान सेट पर ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करते थें. उन्हें अपने काम से ही मतलब होता था. पार्थ अपने काम को पूरा करने बाद अपने घर वापस लौट जाते थें. पार्थ की यह हरकत लोगों को अच्छी नहीं लगती थी.

ब्यॉफ्रेंड विक्की के साथ अंकिता लोखंडें का वीडियो देख फैंस ने सुशांत को किया याद

बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद से उनकी एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंड़े लगातार चर्ता में बनी हुई हैं. वह सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय कि मांग कर रही हैं. वहीं साल 2016 में फैंस को अंकिता और सुशांत से शादी की उम्मीद थी. उस दौरान खबर आ रही थी दोनों जल्द शादी करने वाले हैं.

लेकिन उस समय अंकिता और सुशांत ने जो फैसला लिया था उस खबर ने सभी को हिलाकर रख दिया था. दोनों ने एकदूसरे से अलग होने का फैसला ले लिया था. उनके रिश्ते में अचानक एक मोड़ आया और दोनों ने एक-दूसरे से अलग होने का फैसला ले लिया.

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इसके बाद से अंकिता लोखंडें के बाद को विक्की जैन में अपना प्यार दिखा. कुछ समय पहले अंकिता और विक्की की सगाई की खबर आ रही थी. हालांकि इस बात पर अंकिता और विक्की ने कुछ खुलासा नहीं किया था.

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वहीं 14 जून को मुंबई के ब्रांदा स्थित फ्लैट में सुशांत ने सुसाइड कर लिया . इस खबर के बाद से लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि सुशांत सिंह ने ऐसा क्यों किया.

 

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अंकिता लोखंडें उसके बाद से लगातार सुशांत सिंह के लिए न्याय कि मांग कर रही हैं. अंकिता विश्वास नहीं कर सकती है कि सुशांत सिंह राजपूत ऐसा कदम कैसे उठा सकता है.

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अंकिता लगातार सुशांत सिंह के परिवार के साथ खड़ी है इसलिए लोग अंकिता लोखंडें की तारीफ कर रही हैं. वहीं इसी बीच अंकिता और उनके ब्यॉफ्रेंड विक्की की वीडियो वायरल हो रही है जिसमें अंकिताको देखकर फैंस ने कहा है कि हमें इस जोड़ी से ज्यादा अंकिता और सुशांत की जोड़ी अच्छी लगती है.

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सुशांत सिंह राजपूत हमारे दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे. अंकिता की इस जोड़ी को देखकर हमें एतराज नहीं हैं लेकिन सुशांत को हम कभी भूल नहीं सकते हैं. फैंस लगातार इस फोटो पर कमेंट कर रहे हैं.

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