बाजार में ओट्स या कहें जई की धूम है. जई को कभी अमीर लोगों की रसोई का हिस्सा नहीं माना गया था पर आज ओट केक, ओट ब्रैड, मैगी बना कर, तो पोहा या दलिया के रूप में ही नहीं और भी तमाम तरीके बता कर इसे बेचा जा रहा है. मल्टीग्रेन आटा जिस में जौ, बाजरा, चना, मक्का आदि मिले हों, बाजार पकड़ चुका है, तो अब रागी और गेहूं के मिश्रण से बनी सेवईं सरीखी वर्मिसेली भी लोग खूब पसंद कर रहे हैं.
रैस्तरां और अच्छे होटल भी ओट्स डोसा और मल्टीग्रेन डोसा बना और परोस रहे हैं. मल्टीग्रेन आटे, बिस्कुट, ब्रैड की ही नहीं, बाजार में मोटे अनाज वाले तमाम उत्पादों की मांग भी बढ़ रही है. फास्ट वर्किंग स्टाइल और फास्टफूड वाली जिंदगी ने समृद्धि दी है तो साथ में कई बीमारियां भी नई जीवनशैली से उपजीं. तमाम तरह की बीमारियों के भय से, मोटे अनाज की घृणा के स्तर तक उपेक्षा करने वाले अमीर तबके ने अब इन्हें अपने सिरमाथे बिठा लिया है.
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बात बहुत पुरानी नहीं है जब लोग अपनी गरीबी का रोना रोते कहते थे, बस, किसी तरह मोटा झोटा खा कर गुजर हो रही है. गांवों में इसी बात को कुछ इस तरह कहते थे, ‘भाई, जौ, मटर, सावां, कोदो खा कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं.’ यानी जौ, चना, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, सावां, टेंगुन, कोदो आदि गरीब मजबूर, मजदूर किसान की थाली का हिस्सा थे तो अमीर लोग मशीन से पिसा गेहूं का महीन आटा, मैदा, ब्रैड, बढि़या चावल और दूसरे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ प्रयोग करते थे.
मध्यवर्ग के लोगों के भोजन में गेहूं, चावल के साथ मोटा अनाज भी शामिल था, पर कुछ दशकों पहले लोगों ने मोटा अनाज खाना छोड़ कर केवल गेहूं, चावल का इस्तेमाल शुरू कर दिया. शहरों में ज्यादातर लोगों ने इस के साथ फास्टफूड और प्रसंस्कृत भोजन को भी अपनी थाली का हिस्सा बना लिया.
धीरेधीरे मोटे अनाज खाद्य शृंखला से बाहर हो गए, क्योंकि सरकार ने भी रियायती दरों पर गेहूं और चावल बांटना और इस के लिए सरकारी खरीद शुरू कर दी, तो किसान इसे कम उपजाने लगे. बाजार में यह कम और महंगा हुआ तो लोग भी कम खाने लगे. उधर, मौका देख कर बाजार ने धावा बोला और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों से दुकानें पट गईं.
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सेहत का भय
अचानक कुछ ही दशकों में यह तथाकथित विकास का पहिया उलटा कैसे घूमा, इस की तह में है जीवन में सेहत का भय. देश डायबिटीज की वैश्विक राजधानी बनने की ओर है तो दिल के मरीजों की संख्या देश में बेतहाशा बढ़ती जा रही है. हाइपरटैंशन, बीपी, मोटापा, क्रौनिक रैस्पिरेटरी जैसी बीमारियां घरघर आम हो गई हैं. सेहत पर यह आफत पिछले कुछ दशकों से ही बुरी तरह बढ़ी है. कह सकते हैं कि जब से हमारी कार्यशैली बदली, खानपान में भी बाजारी उदारवाद का असर पड़ा, हम ने अपने भोजन में शामिल मोटे अनाज छोड़ प्रसंस्कृत खाद्य अपना लिए और मूलतया गेंहू व चावल पर निर्भर हो गए. नतीजा यह हुआ कि हमारे रोजमर्रा के खाने से प्राकृतिक रेशे और कई तरह के प्रोटीन गायब हो गए.
कुछ बेहद जरूरी पोषक तत्त्व भी इस नई आदत के चलते हम से दूर हो गए. परिणाम यह हुआ कि बढ़ते शारीरिक तनाव, दबाव, सक्रियता और दूसरी जरूरी चीजों को झेलने में शरीर पर्याप्त सक्षम नहीं रहा, तिस पर बनावटी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के अपने अवगुण तो थे ही. धीरेधीरे बीमारियां सामने आईं. उन्होंने घर बना लिया.
जब आंकड़ों के विश्लेषण और शोध के बाद यह बात सामने आई तो चिकित्सकों और डाइटीशियंस ने लोगों को चेताया कि अगर इन जानलेवा बीमारियों से बचना है तो मोटा अनाज खाने में फिर से शामिल करना होगा.
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स्वास्थ्य के लिए लौटना होगा
आज ज्यादातर डाक्टर अपने मरीजों को बता रहे हैं कि पहले लोग गेहूंचावल के साथसाथ समयसमय पर मोटा अनाज जौ, चना, बाजरा, रागी इत्यादि भी खाते थे. इसलिए मोटे अनाज से उन्हें जो खास पौष्टिक तत्त्व मिलते थे उस से वे तंदुरुस्त रहते थे. आजकल लोगों ने मोटा अनाज खाना छोड़ कर केवल गेहूं का उपयोग करना शुरू कर दिया है. इस से उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्त्व नहीं मिल पाते हैं. सो, हमें इस ओर लौटना होगा.
बीमारियों का भय और चिकित्सकों की सीख से बहुत से लोग खानपान के मामले में पुराने दिनों की तरफ लौटने लगे हैं. इस का सुबूत है बाजार में मोटे अनाजों और उस से बनने वाले उत्पादों की बढ़ती मांग. मगर अभी भी बहुतों को यह जानना बाकी है कि सेहत सही रखनी है और उम्रदराज होना है तो प्रसंस्कृत या प्रोसैस्ड व रिफाइंड फूड के बजाय मोटे अन्न खाने में बाकायदा शामिल करने होंगे.
साबुत या मोटे अनाज जैसे मक्का, गेहूं, जई, सोयाबीन, ज्वार, बाजरा का संबंध आप की सेहत के साथसाथ दीर्घायुता से भी है. शोधार्थियों के अनुसार, मोटे अनाज सामान्यतौर पर किसी व्यक्ति को 25 वर्षों तक हृदय रोग से दूर रखते हुए मौत के खतरे को काफी हद तक कम करते हैं. यह तथ्य एक नए अध्ययन में सामने आया है. बड़े पैमाने पर किए गए सर्वेक्षण और उस के आधार पर साबुत अनाजों के संबंध में किया गया एक प्रायोगिक वैज्ञानिक शोध यह बताता है कि मोटे अनाजों से मिलने वाले कई तत्त्व, जो शरीर को दोषमुक्त कर सबल बनाते हैं, हृदयरोग से होने वाली मौत के खतरे को कम तो करते ही हैं, मनुष्य को दीर्घायु भी बनाते हैं.
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हार्वर्ड स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ में न्यूट्रिशन की असिस्टैंट प्रोफैसर डा. की सन का कहना है, ‘‘मैं मानती हूं कि यह काफी निर्णायक है कि अगर आप साबुत अनाज खाते हैं तो आप हमेशा फायदे में रहते हैं.’’
शोध ने साबित किया
व्यापक शोध के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने कई बड़े अध्ययनों पर गौर किया है, जिन में 74 हजार महिलाओं ने बतौर नर्स स्वास्थ्य अध्ययन के अंतर्गत हिस्सा लिया तो लगभग 44 हजार पुरुषों ने भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में अध्ययन में भागीदारी निभाई. इन सभी प्रतिभागियों द्वारा साबुत अनाज खाद्य के रूप में लिए जाने का प्रत्येक 2 से 4 वर्ष में सर्वे किया गया.
अध्ययन में देखा गया कि 24 से 26 साल बाद 26,920 लोगों की मौत हो गई. डा. की सन कहती हैं कि अध्ययन में मुख्यतया 3 तथ्य पाए गए. पहला, शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग पूरे अध्ययन के दौरान एकदम से साबुत अनाज नहीं खाते थे उन के मुकाबले जो लोग 28 ग्राम साबुत अनाज दिनभर में खाते थे, उन में मौत के खतरे 5 फीसदी कम पाए गए, हृदयरोग संबंधित मौत के खतरे में 9 फीसदी की कमी देखी गई. दूसरे कई टैस्ट भी लिए गए और पाया गया कि सामान्य जीवन में रोजमर्रा की सेहत समस्याएं उन्हें कम हुईं जो मोटा अनाज खाते रहे.
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जो लोग साबुत अनाज का कुछ हिस्सा ही खाते थे, जैसे अन्न के ऊपरी आवरण को जिसे छिलका, भूसी या चोकर कहते हैं, उस के चलते न सिर्फ पेट की समस्याओं में लाभ हुआ बल्कि हृदयरोग की वजह से होने वाली मौत के संबंध में उस का सकारात्मक प्रभाव देखा गया, मृत्युदर कम ही रही.
हार्वर्ड स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ के अनुसार, चोकर एक तरह का कठिन आवरण है जोकि साबुत अनाजों को आच्छादित करता है यानी इन के ऊपर छिलके के बतौर चढ़ा रहता है और इस में एंटीऔक्सीडैंट, विटामिन बी और फाइबर होते हैं. आप जो आटा खाते हैं अगर वह बाजार का है और उस पर होलग्रेन नहीं लिखा तो वह भी साबुत गेहूं का आटा नहीं है. जब साबुत अनाज को रिफाइंड अनाज के रूप में प्रसंस्कृत किया जाता है तो अनाज के ऊपर से चोकर को हटा दिया जाता है, साथ ही, उस के बीच के महत्त्वपूर्ण हिस्से को भी दूसरे कार्यों के लिए अलग कर लिया जाता है.
बाजार में तमाम उत्पाद मल्टीग्रेन, होलग्रेन इत्यादि के नाम पर बिक रहे हैं. पर जरूरी नहीं कि वे शतप्रतिशत सही ही हों. देश में मोटे अनाज का उत्पादन लगातार घट रहा है जबकि बाजार मोटे अनाज के उत्पादों से पट रहा है. ऐसे में इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि आखिर यह मोटा अनाज कहां से आ रहा है.
यह अनाज खास फार्महाउसों की उपज हो सकता है जो बाजारू जरूरतों के मुताबिक उपजाया गया हो और पूरी तरह निरापद नहीं भी हो सकता है. ऐसे में अपने खास किराना और देशी स्रोतों पर भरोसा करें और मोटे अनाज को अपनी थाली का हिस्सा बनाएं. ये आप को लंबा, सेहतमंद जीवन देंगे. द्य
इन को अपनाएं, खुद को बचाएं
ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ, जई जैसे मोटे अनाज पोषण के मामले में गेहूं और चावल से बीस ही ठहरते हैं. कई मोटे अनाजों में प्रोटीन का स्तर गेहूं के बराबर ही है जबकि वे विटामिन बी, आयरन, फास्फोरस तथा अन्य कई पोषक तत्त्वों के मामले में उस से बेहतर हैं. मोटे अनाज आंतों को कसरत कराते हैं जिस के चलते इसे खाने वालों को कब्ज नहीं होता. आज ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल और मधुमेह में शुगर का स्तर संतुलित बनाए रखने के लिए मोटे अनाज अमीरों और शहरी मध्यवर्ग के भोजन का अनिवार्य हिस्सा बनते जा रहे हैं.
1.ओट्स :
मोटे अनाज में सब से अधिक फायदेमंद है ओट्स. इसीलिए यह बाजार में खूब बिक रहा है. ओट्स या जई में विशेष प्रकार का फाइबर बीटा ग्लूकैन होता है. यह रसायन खून में कोलैस्ट्रौल को संतुलित रखता है. इस में पाया जाने वाला इनोजिटाल भी इसी काम को बखूबी करता है. यह दिल की बीमारी से बचाता है. यही नहीं, ब्लडशुगर और इन्सुलिन को भी नियंत्रित रखने के कारण यह मधुमेह के रोगियों को भी बहुत भाता है.
2.रागी :
रागी उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है. इस के हर 100 ग्राम में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है. दूसरे किसी भी अनाज में कैल्शियम की इतनी अधिक मात्रा नहीं पाई जाती है. हड्डियों के लिए यह शानदार है.
3.बाजरा :
बाजरे के गुणों को बखानने के लिए पूरी किताब चाहिए. यह मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, दिल की बीमारियों समेत कई मामलों में उपयोगी है. इस के 100 ग्राम खाद्य हिस्से में लगभग 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्त्व और 132 माइक्रोग्राम कैरोटिन मौजूद होता है. यह हमारी आंखों की भी हिफाजत करता है.
4.ज्वार :
ज्वार को शराब, डबलरोटी जैसे उद्योग में तो इस्तेमाल किया ही जाता है, कई बार बाजरा, गेहूं और चावल, सोयाबीन के साथ मिला कर इस से शिशु आहार समेत विभिन्न उत्पाद बनाए जाते हैं. इस के प्रति 100 ग्राम की मात्रा में 10.4 ग्राम प्रोटीन, 66.2 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.7 ग्राम रेशा और अन्य सूक्ष्म तथा ढेरों पौष्टिक तत्त्व मौजूद होते हैं.