कामिनी सिंगल मदर है. छह साल का सुमित उसके जीवन की इकलौती ख़ुशी है. करीब पांच साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में कामिनी के पति चल बसे. तब सुमित सिर्फ एक साल का हुआ था. यह तो अच्छा था कि दिल्ली जैसे शहर में उसके पति का खुद का फ्लैट था, वरना दुधमुए बच्चे के साथ विधवा औरत का किसी किराये के मकान में जिंदगी बसर करना तमाम खतरों से भरा हुआ है. कामिनी को अपना यह फ्लैट बहुत प्यारा है. उसके पति की निशानी है. बिल्डिंग के चौथे और अंतिम फ्लोर पर रहने वाली कामिनी को बिल्डिंग की छत को इस्तेमाल करने का अधिकार मिला हुआ है. कामिनी के बहुत सारे काम छत पर होते हैं. छत के एक हिस्से को उसने किचेन गार्डन का रूप दिया हुआ है, जिसमे खूब हरियाली रहती है. उसके करीब ही उसने एक छोटी टेबल, दो चेयर्स, रंगीन मोढ़े और एक टेबल फैन लगा कर नन्हा सा ऑफिस बना लिया है, जहाँ हरियाली के बीच बैठ कर वह अपने लैपटॉप पर ऑफिस का काम भी कर लेती है.
शनिवार और इतवार की उसकी शामें सुमित के साथ इसी छत पर बीतती हैं. नन्हा सुमित छत पर स्केटिंग करता है, माँ के साथ गार्डनिंग में हाथ बंटाता है, वह ऑफिस का काम करती है तो सुमित जमीन पर रंगों के साथ खेलते हुए पेंटिंग में मशगूल रहता है. कामिनी अच्छी कंपनी में कार्यरत है, अच्छा कमा लेती है, अपने बेटे को अच्छी परवरिश दे रही है और उसके साथ बहुत खुश है. नौकरीपेशा कामिनी ने बड़ी हिम्मत के साथ खुद को और अपने बेटे को सम्भाला हुआ है. वह अकेली है इस बात का अहसास उसको साल में सिर्फ एक बार होता है - करवाचौथ के दिन, जब शाम होते ही उसकी छत पर बिल्डिंग के सभी फ्लोर पर रहने वाली औरतें नख-शिख तक श्रृंगार करके, करवे की थालियां सजा कर, दिए और मिठाइयां ले कर ढोल-मजीरे के साथ उसकी छत पर आ धमकती हैं, और उसके सुकून में आग लगा देती हैं.
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