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प्रियंका का दांव महिलाओं पर

कांग्रेस पार्टी का उत्तर प्रदेश विधानसभा में महिला कैंडिडेट्स को 40 प्रतिशत सीटें देना बड़े बदलाव वाला कदम है. ये महिलाएं जीतें या न, लेकिन देश की राजनीति में यह कदम महिला नेतृत्व को उभारेगा जरूर.

राजनीति में महिलाओं को मजबूत करने के लिए कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट दिए. कांग्रेस ने 160 महिलाओं को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए. उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी दल ने महिलाओं को इतनी बड़ी संख्या में टिकट दिए हैं.

दूसरे दलों की महिला नेता भी मानती हैं कि महिला राजनीति की दिशा में यह बड़ा कदम है. समाजवादी पार्टी की महिला नेता पूनम चंद्रा मानती हैं कि प्रियंका गांधी के इस कदम का प्रभाव मौलिक और अत्यंत व्यापक होगा.

कांग्रेस की महिला नेता ममता सक्सेना कहती हैं, ‘‘अब महिलाओं को यह लगने लगा है कि किसी दल में उन के लिए भी जगह है. उन को पिछलग्गू बन कर नहीं रहना पड़ेगा. बड़े नेताओं का रहमोकरम नहीं होगा. कांग्रेस ने घरेलू और समाज के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं को टिकट दिया. मैं खुद हाउसवाइफ हूं. मैं कांग्रेस की राजनीति में हूं. मैं पार्टी के कई पदों की जिम्मेदारी संभाल रही हूं. अब मु झे भी भरोसा है कि हमें भी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लड़ने का मौका मिल सकेगा.’’

लखनऊ जिले की मोहनलालगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाली ममता चौधरी कहती हैं, ‘‘अगर प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने का काम न किया होता तो हम जैसी साधारण कार्यकर्ता को विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका न मिलता.’’

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लखनऊ से ही विधानसभा का चुनाव लड़ीं सदफ जफर कहती हैं, ‘‘महिलाएं सालोंसाल राजनीतिक दलों में कार्यकर्ता के रूप में काम करती थीं. इस के बाद भी जब कट देने का नंबर आता था, राजनीतिक दल कोई न कोई बहाना बना कर महिलाओं को पीछे ढकेल देते थे. 40 प्रतिशत टिकट देने के वादे के बाद अब हर महिला को यह भरोसा हो चला है कि उस की मेहनत जाया नहीं होगी. उसे भी विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ने का हक मिलेगा.’’

सदफ जफर का नाम नागरिकता कानून के विरोध में होने वाले आंदोलनों में प्रमुखता के साथ उभरा था. पूरे प्रदेश में कांग्रेस ने ऐसी महिलाओं को भी टिकट दिया जो किसी न किसी तरह से समाज द्वारा प्रताडि़त की गई थीं. उन्नाव के बहुचर्चित बलात्कार कांड की शिकार लड़की की मां आशा सिंह को भी टिकट दिया गया. कांग्रेस ने इस के जरिए यह संदेश दिया कि हिंसा की शिकार महिलाओं व उन के परिवार के लोगों को मजबूत किया जाएगा, जिस से वे दबंगों का सामना कर सकें. कांग्रेस ने प्रियंका मौर्य, पल्लवी सिंह और वंदना सिंह को ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ अभियान की पोस्टरगर्ल बनाया. टिकट वितरण में हुई दिक्कतों के कारण ये नाराज हो गईं. इन का कद इतना बढ़ गया और इतनी इन की चर्चा हुई कि भाजपा ने इन को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में महिलाएं

उत्तर प्रदेश में 65 सालों में 336 महिलाएं अब तक विधायक बन चुकी हैं. 1957 में जहां केवल 39 महिलाएं चुनाव लड़ीं और 18 जीती थीं, वहीं 2017 में 482 महिलाएं चुनाव लड़ीं और 42 ने जीत दर्ज की. 2022 के विधानसभा चुनाव में सब से अधिक महिलाओं ने चुनाव लड़ा. कांग्रेस द्वारा 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने के बाद अब महिलाओं को राजनीति भाने लगी है.

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1957 से अब तक 65 सालों में प्रदेश में कुल 336 महिलाएं ही विधानसभा चुनाव जीत पाई हैं. महिलाओं को पीछे रखने में मनुवादी सोच का भी बड़ा हाथ है.

मनुवादी सोच का प्रभाव

मनुस्मृति के अनुसार, एक स्त्री को हर उम्र में पुरुष द्वारा संरक्षण दिए जाने की जरूरत होती है. जब वह लड़की होती है तो उस की रक्षा की जिम्मेदारी उस के पिता के ऊपर होती है. विवाह के बाद पति उस की जिम्मेदारी उठाता है. यदि वह विधवा हो जाए तो उस के पुत्र की जिम्मेदारी होती है कि वह उस की रक्षा करे.

कहने के लिए धर्म महिलाओं को देवी का स्थान देता है. उन की पूजा करता है. जबकि असल बातों में पुरुष कभी भी महिला को बराबरी का हक नहीं देता. महिलाओं को जब राजनीति में आरक्षण दिए जाने की बात होती है तो उस को नजरअंदाज किया जाता है.

इस वजह से मुख्यधारा की राजनीति में महिलाएं अलगथलग पड़ जाती हैं. इस का सीधा असर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर पड़ता है. संसद और विधानसभा में महिला मुद्दे दरकिनार कर दिए जाते हैं.

पहली बार साल 1974 में संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठा और सीटों के आरक्षण की बात चली. 48 साल बीत जाने के बाद भी महिला आरक्षण का मुद्दा जस का तस है.

महिला आरक्षण पर टालमटोल

1993 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायतीराज में महिलाओं को 33 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया. यह व्यवस्था केवल पंचायतों और नगरपालिकाओं तक सीमित रही. 3 वर्षों बाद 1996 में संसद और विधानसभा में महिला आरक्षण दिए जाने के संबंध में महिला आरक्षण विधेयक पहली बार संसद में पेश किया गया. देवगौड़ा सरकार अल्पमत में थी, जिस की वजह से यह विधेयक पास नहीं हो सका. इस का पुरुष नेताओं ने जम कर विरोध किया. साल 1998 में महिला आरक्षण विधेयक दोबारा ‘अटल सरकार’ के समय संसद में पेश हुआ. इस बार भी भारी विरोध के बाद विधेयक पास नहीं हो सका.

साल 2010 में कांग्रेस महिला आरक्षण विधेयक पहली बार राज्यसभा में पास तो हो गया लेकिन लोकसभा में अटक गया. तब से इस की स्थिति यही बनी हुई है. इस से भारत की राजनीति में महिलाओं के प्रवेश का रास्ता कठिन होता जा रहा है. यह विधेयक राज्यसभा से पारित होने के बाद भी तब से लोकसभा में लंबित पड़ा है. पंचायतों में जरूर महिलाओं को 33 फीसदी रिजर्वेशन मिल चुका है.

पुरुषवादी मानसिकता की खामी

भारत की राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण एक गंभीर मुद्दा है. इस की वजह है सक्रिय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 12 प्रतिशत होना. देश की आधी आबादी के हिसाब से महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण न भी मिले तो भी कम से कम 33 प्रतिशत आरक्षण तो मिलना ही चाहिए. पंचायतीराज चुनाव में यह अधिकार मिला हुआ है. इस का असर भी दिख रहा है. महिला आरक्षण की राह में तमाम मुश्किलें हैं. इन में सब से बड़ी बाधा पुरुष मानसिकता है.

विधेयक का विरोध करने वाले नेता हालांकि सीधेसीधे ऐसा नहीं कहते हैं लेकिन वे विधेयक में खामियां बताते हुए इस का विरोध करते हैं. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि दलित और ओबीसी महिलाओं के लिए अलग आरक्षण दिया जाना चाहिए. कुछ नेताओं का मानना है कि आरक्षण से केवल शहरी महिलाओं को फायदा होगा.

दुनिया के दूसरे कई देशों में महिला आरक्षण की व्यवस्था चल रही है. इन में बंगलादेश, जरमनी, आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश तक शामिल हैं. वहां राजनीति में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं हैं. बेल्जियम, मैक्सिको जैसे देशों में भागीदारी लगभग 50 प्रतिशत है. फ्रांस में स्थानीय निकायों से ले कर मुख्य राजनीति में भी महिलाएं काफी ऐक्टिव हैं. पेरिस की लोकल बौडी में महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा हो गया था, जिस पर वहां एतराज उठा था.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 2: जाति का बंधन जब आया राघव और रम्या के प्यार के बीच

कंपनी के गेट तक रम्या अपने अप्पा के साथ आई थी. वे वहीं से लौट गए, क्योंकि औफिस में शनिवार के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिन आगंतुक का अंदर प्रवेश प्रतिबंधित था. उस का स्वागत करने को कई मित्र गेट पर ही रुके थे. उस ने मुसकरा कर सब का धन्यवाद दिया. राघव एक गुलदस्ता लिए सब से पीछे खड़ा था.

रम्या ने खुद आगे बढ़ कर उस के हाथ से गुलदस्ता लेते हुए कहा, ‘‘शायद तुम इसे मुझे देने के लिए ही लाए हो.’’

एक सम्मिलित ठहाका गूंज उठा. ‘तुम्हारी यही जिंदादिली तो मिस कर रहे थे हम सब,’ राघव ने मन ही मन सोचा.

रम्या को औफिस आ कर ही पता चला कि आज की लंच पार्टी रम्या की स्वागतपार्टी और राघव की विदाई पार्टी है. दोनों ही सोच में डूबे हुए अपनेअपने कंप्यूटर की स्क्रीन से जूझने लगे.

राघव सोच रहा था कि रम्या की जिंदगी के इस दिन का उसे कितना इंतजार था कि स्वस्थ हो दोबारा औफिस जौइन कर ले. मगर वही दिन उसे रम्या की जिंदगी से दूर भी ले कर जा रहा था.

रम्या सोच रही थी कि जब मैं अस्पताल में थी तो राघव नियम से मुझ से मिलने आता था और कितनी बातें करता था. शुरूशुरू में तो मां को उसी पर शक हो गया था कि यह रोज क्यों आता है? कहीं इसी ने तो हमला नहीं करवाया और अब हीरो बन सेवा करने आता है? और अप्पा को तो मामा पर शक हो गया था, क्योंकि मैं ने मामा से शादी करने को मना कर दिया था और छोेटा मामा तो वैसे भी निकम्मा और बुरी संगत का था. अप्पा को लगा मामा ने ही मुझ से नाराज हो कर हमला करवाया है. जब राघव को मैं ने मामा की शादी के प्रोपोजल के बारे में बताया तो वह हैरान रह गया. उस का कहना था कि उन के यहां मामाभानजी का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है. अगर गलती से भी पैर छू जाए तो भानजी के पैर छू कर माफी मांगते हैं. पर हमारी तरफ तो शादी होना आम बात है. मामा की उम्र अधिक होने पर उन के बेटे से भी शादी कर सकते हैं.

उन दिनों कितनी प्रौब्ल्म्स हो गई थीं घर में… हर किसी को शक की निगाह से देखने लगे थे हम. राघव, मामा, हमारे पड़ोसियों सभी को… अम्मां को भी अस्पताल के पास ही घर किराए पर ले कर रहना पड़ा. आखिर कब तक अस्पताल में रहतीं. 1 महीने बाद अस्पताल छोड़ना पड़ा. मगर लकवाग्रस्त हालत में गांव कैसे जाती? फिजियोथेरैपिस्ट कहां मिलते? राघव ने भी मुझ से ही पूछा था कि अगर वह शनिवार, रविवार को मुझ से मिलने घर आए तो मेरे मातापिता को कोई आपत्ति तो नहीं होगी. अम्मांअप्पा ने अनुमति दे दी. वे भी देखते थे कि दिन भर की मुरझाई मैं शाम को उस की बातों से कैसे खिल जाती हूं, हमारा अंगरेजी का वार्त्तालाप अम्मां की समझ से दूर रहता. मगर मेरे चेहरे की चमक उन्हें समझ आती थी.

मामा ने गुस्से में आना कम कर दिया तो अप्पा का शक और बढ़ गया. वह तो 2 महीने पहले ही पुलिस ने केस सुलझा लिया और हमलावर पकड़ा गया वरना राघव का भी अपने घर जाना मुश्किल हो गया था. मैं ने आखिरी कौल राघव को ही की थी कि मैं स्टेशन पहुंच गई हूं, तुम भी आ जाओ. उस के बाद उस अनजान कौल को रिसीव करने के बीच ही वह हमला हो गया.

घर में ऐसे बनाएं हर्बल किचन गार्डन

हम अपनी भाभी के साथ उन की सहेली के घर गए थे. बड़ी आत्मीयता से मिलने के साथ उन्होंने हमें कुछ जलपान परोसा मगर हम ने यह कह कर कि मुंह में छाले हैं, कुछ भी खाने से इनकार कर दिया. वे बोलीं, ‘‘कब से हैं ये छाले? जरा रुकिए,’’ कह कर वे घर के पिछवाड़े चली गईं और कुछ ही पलों में कुछ पत्ते हाथ में लिए आईं. हम ने देखा पत्ते एकदम साफ और हरे थे.

वे बोलीं, ‘‘नैना, ये तुम्हारे छालों के लिए हैं. ये चमेली के पत्ते हैं. इन्हें चबा लो, तुम्हारे छाले ठीक हो जाएंगे. भई, मैं ने तो अपने घर के पिछले हिस्से में बहुत से ऐसे हर्बल प्लांट्स लगा रखे हैं.’’

मैं ने भाभी से कहा, ‘‘इन के पास हर्बल गार्डन भी है?’’

वे बोलीं, ‘‘गार्डन तो नहीं. मैं ने घर के पिछले हिस्से में किचन गार्डन जरूर बना रखा है. बस, उसी में कुछ सब्जियों के पौधों के साथ कुछ हर्बल पौधे लगाए हैं ताकि सागसब्जियां मिलती रहें और बच्चों वाले घर में कभी कुछ कट गया, चोट लग गई, कभी जल गया तो ऐसी मुसीबतों से निबटने के लिए कुछ औषधीय पेड़पौधे उपलब्ध रहें.’’

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हम भी ऐसा किचन गार्डन बना सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं,’’ वे बोलीं, ‘‘इसे बनाना बहुत आसान है और ऐसे गार्डन से बाजार के मुकाबले सस्ती, सुलभ, स्वादिष्ठ और पौष्टिक सब्जियां आप पा सकते हैं. बस, शुरुआत छोटे पैमाने पर ही करें. उत्साहित हो कर बड़े पैमाने पर न करें कि संभाल ही न सकें. सब से पहले यह देखना जरूरी है कि परिवार में लोग कितने हैं, खपत कितनी है, उसी के अनुसार जमीन देखें. हां, यह देखना जरूरी है कि धूप कितनी देर आती है. कम से कम 6-8 घंटे धूप आनी चाहिए. जहां गार्डन लगाएं वहां पानी का नल अवश्य हो ताकि पेड़ों को समुचित पानी दिया जा सके. जमीन का चुनाव करते वक्त यह अवश्य परख लें कि जमीन कीट या दीमकयुक्त तो नहीं है.

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जल निकासी :

पानी की निकासी का समुचित प्रबंध है या नहीं, यह देखना जरूरी है. इस के लिए पाइप से पानी डालें. थोड़ी देर बाद पानी की निकासी जांचने के लिए गीली मिट्टी हाथ में लें, उसे दबाएं. दबाने पर मिट्टी से पानी निकलता है तो इस का मतलब है कि नाली सही नहीं है. पौधे जल्द सड़ जाएंगे. पानी की निकासी को दुरुस्त करने के लिए उस में कंपोस्ट या रासायनिक खाद मिलाएं. इस के बाद ही पौधा रोपित करें.

क्यारियों में पौध :

यदि स्थान पर्याप्त है, ग्राउंड फ्लोर में है या बंगले में है तो क्यारियां बना कर उस में रास्ता छोड़ सकते हैं. क्यारियों में कम से कम 18-20 इंच की दूरी रहे. अब उत्तर की ओर सब से पहले लंबाई वाले पौधे लगाएं, जैसे टमाटर, सेम, खीरा, ककड़ी इत्यादि.

आप चाहें तो मनपसंद आकार के बिना पैंदे के लकड़ी के बौक्स बना सकते हैं, जैसे आयताकार, तिकोना, गोल या चौकोर.

रोपणयुक्त मिट्टी में ये बक्से अपने घर में उपलब्ध जमीन के अनुरूप अपने किचन गार्डन में सेट कर दें, चाहें तो रसोई की रोजमर्रा की जरूरत के लिए सब्जियां, हर्बल गार्डन की चीजें जैसे पुदीना, धनिया, सौंफ, ऐलोवेरा, किडनीबींस आदि पौधे लगा सकते हैं. हल्दी, लहसुन, तुलसी, प्याज भी लगा सकते हैं.

इसी प्रकार सब्जियों में करेला, बैगन, भिंडी, शिमलामिर्च, टिंडा, तोरई, सीताफल, गोभी, शलगम, गाजर, मूली, खीरा, पालक और ब्रोकली लगा कर परिवार को सालभर पौष्टिक आहार उपलब्ध करवा सकती हैं. इतना ही नहीं, आप चाहें तो अपनी इसी छोटी सी बगिया में अंगूर की बेल, अनार का पौधा, इंसुलिन प्लांट, मेहंदी की बाड़ तथा खाद और कीटनाशक के लिए नीम का पेड़ भी लगा सकते हैं.

  1. ऐलोवेरा :

औषधीय गुणों से युक्त गद्देदार पत्तों वाले ऐलोवेरा के पौधे में विद्यमान रसदार जैली को चेहरे पर लगाया जा सकता है और खाया भी, ताकि त्वचा कांतिमय हो चमक उठे. जरा सी त्वचा कट जाए या चोट लग जाए या जल जाए, खरोंच आए या फिर कोई जहरीला कीड़ा काट ले तो ऐलोवेरा की जैली उस पर लगाएं, चोट ठीक हो जाएगी. यह पौधा गमले या जमीन में सीधा रोप सकते हैं. इस में पानी की खपत कम होती है और इस को ज्यादा देखरेख की जरूरत नहीं होती.

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  1. मेहंदी की बाड़ :

बालों की चमक के लिए मेहंदी की बाड़ लगाएं. इस की पत्तियों को पीस कर तैयार किया गया लेप शरीर को ठंडक प्रदान करता है. ब्लडप्रैशर के रोगी मेहंदी को लगा कर अच्छा महसूस करते हैं.

  1. चमेली :

चमेली के फूलों की खुशबू निराली होती है. इस से बना तेल सिर को ठंडक देता है, इस के पत्तों को चबाने से मुंह के छालों से निजात मिलती है.

  1. अनार :

अनार का छोटा सा पेड़ यदि आप अपने किचन गार्डन में लगा लें और इस के फल का सेवन करें तो यह आप के जिस्म का खून साफ करेगा. पेट खराब हो, पेचिश का रोग हो तो अनार का रस आराम देगा.

  1. करीपत्ता :

महाराष्ट्रियन पोहा हो या फिर नमकीन सेंवई या उत्तर प्रदेश का चनामुरमुरा, उस में करीपत्ते का छौंक सब को प्रिय है. किचन गार्डन में यह मझोले कद का पेड़नुमा पौधा आसानी से जमीन या गमले में लग जाता है.

  1. लैमन ग्रास :

जैसा कि नाम ही बताता है-नीबू घास, यह लंबीलंबी घासनुमा खुशबूदार लंबी सी पत्ती होती है जिसे चाय में डालने से उस का जायका बेहतर हो जाता है. इसे तो क्यारियों के कोने पर या कहीं भी बचीखुची जमीन पर लगाया जा सकता है.

  1. हाइड्रैंजिया फूल :

यदि आप पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं या कुछ ठंडी जलवायु में हैं तो आप के किचन गार्डन की शान को औषधीय गुणों से युक्त नीले, उनाबी, सफेद, गुलाबी रंगत वाले ये फूल और भी बढ़ा सकता है. इस फूल से बनी चाय गुरदे और गौलब्लैडर को स्वस्थ रखने में सहायक होती है. इस पौधे के हर भाग में औषधीय गुण पाए जाते हैं.

इस तरह किचन गार्डन में सूझबूझ तथा ढेर सारी जानकारी इकट्ठा कर ऐसे पौधे लगाए जा सकते हैं जो स्वास्थ्यवर्धक हों.

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मिट्टी की जांच

मिट्टी जांचने के लिए किचन गार्डन की कुछ मिट्टी हाथ में ले कर गोला बनाएं. यदि गोला न बने, भुरभुरा कर टूट जाए, तो मिट्टी रेतीली है. यदि मिट्टी का गोला बहुत सख्त हो जाए. उंगली घुसेड़ने पर भी न घुसे तो समझो यह मिट्टी सख्त है और पौधा लगाने के लिए उपयुक्त नहीं है. यदि गोला बने, उंगली भी घुस जाए, गोला टूटे भी नहीं तो यह मिट्टी उत्तम किस्म की है और खेती योग्य है. मिट्टी की जांच के बाद पौधा लगाने की तैयारी करें. जमीन को अच्छी तरह खुरपी से खोद लें. मिट्टी से कंकड़पत्थर निकाल दें. उस में कंपोस्ट डाल कर मिक्स करें. पानी दे कर उसे धूप लगने के लिए छोड़ दें.

बेटी का जन्म: महिला प्रताड़ना का अनवरत सिलसिला

क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आज के इस आधुनिक समय में भी हमारे देश में आए दिन महिला प्रताड़ना की खबरें सुर्खियों में रहती हैं. यौन अपराध का सिलसिला तो जारी है इसके साथ ही सबसे बड़ी सोचनीय विषय परिवार में किसी महिला का बेटी को जन्म देना.

दरअसल सच्चाई यह है कि हम आज भी शताब्दियों पहले के समाज में जी रहे हैं, जाने कितनी जन जागरण अभिव्यक्ति प्रयास के बावजूद अगर महिला के मां बनने पर बेटी के जन्म पर उसे परिजन गर्म सरिये से दाग दें तो यह अत्याचार गंभीर श्रेणी में माना जाएगा. और उसकी सजा कुछ ऐसे हो कि लोग कांप उठे और समाज में फिर कोई ऐसी कोई घटना ना हो.

आइए! आज हम आपको कुछ ऐसे ही घटनाओं से रूबरू कराएं  जिससे पता चलता है कि समाज में आज भी महिला उत्पीड़न अपनी चरम सीमा को स्पर्श कर रहा है .

सरकार की लाख जागृति शिक्षा, समाज के संवेदनशील लोगों द्वारा लगातार प्रयास के बावजूद ऐसी घटनाओं में कमी नहीं आ रही है देखिए कुछ हाल की घटनाएं.

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पहली घटना-

बिहार के पटना में एक महिला ने जब बेटी को जन्म दिया तो ससुराल वालों ने उसे  मायके भेज दिया और यह तो सिर्फ बेटियां ही पैदा करती है ताना देकर हमें नहीं चाहिए ऐसी बहू उसे प्रताड़ित किया जाता रहा.

दूसरी घटना –

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिला जगदलपुर में एक शासकीय अधिकारी ने अपनी बहू के साथ इसलिए प्रताड़ना की कि उसने बेटी को जन्म दिया था.

तीसरी घटना-

अंबिकापुर सरगुजा के एक व्यवसायी ने जब देखा कि पत्नी चौथे बच्चे के रूप में एक बालिका को जन्म देने वाली है तो उसके साथ प्रताड़ना अत्याचार का दौर शुरू हो गया.

अत्याचार की इंतेहा

मध्यप्रदेश में देवास जिले के एक गांव में बेटी को जन्म देने पर 22 वर्षीय एक महिला को उसके ससुराल पक्ष ने कथित रूप से रस्सी से बांधकर गरम सरिए से दागा, जिससे उसके हाथ-पैरों में जख्म हो गए. इस घटना की खबर मायके पक्ष के लोगों को मिली तो मामला पुलिस तक पहुंच गया.

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इस अत्याचार के मामले में  महिला रजनी ( काल्पनिक नाम) के पति, सास और ससुर सहित पांच लोगों पर मामला दर्ज किया गया है. बरोठा के थाना प्रभारी शैलेंद्र मुकाती के मुताबिक   घटना देवास जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर बरोठा थानाक्षेत्र के नरियाखेड़ा गांव में होली उत्सव के पूर्व 16 मार्च को घटित हुई. इस मामले का खुलासा तब हुआ जब पीड़िता के मायके वाले अपनी बेटी से मिलने होली व्यवहार के दरमियान उसके गांव आए. पुलिस अधिकारी ने बताया कि इंदौर जिले में खुड़ेल क्षेत्र के तिल्लोर की रजनी की तीन साल पहले देवास के नरियाखेड़ा के बबलू झाला के साथ सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुरूप विवाह हुआ था और एक साल बाद उसने बेटी को जन्म दिया.

पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया देवरानी ने बेटे को जन्म दिया था, तो घरवाले रजनी को प्रताड़ित करने लगे. पुलिस के मुताबिक पति बबलू और ससुराल वाले हर वक्त रजनी को ताना देते थे और स्थिति धीरे धीरे मारपीट और सरिया से दागने तक पहुंच गई.16 मार्च को लक्ष्मी के पति बबलू, उसके ससुर भेरू झाला, सास मंजू झाला, देवर अंकित झाला एवं देवरानी काजल झाला ने प्रताड़ना की हदें पार कर दीं और उन्होंने एक नवजात को जन्म देने वाली रजनी को बांधकर गरम सरिए से दाग दिया.यह घटना आज सुर्खियों में है और समाज को एक दफा पुनः महिलाओं के संदर्भ में संवेदनशील होने के लिए उदाहरण है और जागरूकता फैलाने वाली सामाजिक संस्थाओं के लिए एक गंभीर मसला.

TMKOC: दया बेन की होगी वापसी? जेठालाल ने दिया ये हिंट

टीवी का पॉपुलर कॉमडी शो के हर किरदार को दर्शक काफी पसंद करते हैं. शो में पॉपुलर केरेक्टर दया बेन लंबे समय से नजर नहीं आ रही है. फैंस शो में दयाबेन की वापसी पर अपडेट पाने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में शो में जेठालाल ने एक बड़ा हिंट दिया है. आइए बताते है जेठालाल ने दयाबेन की वापसी को लेकर क्या कहा है?

‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के लेटेस्ट एपिसोड में जेठालाल, रोशन से कहता है कि वह खुशकिस्मत है कि उसकी पत्नी 2-4 दिनों में वापस आ जाएगी. दरअसल इस बातचीत में के जेठालाल कहते हैं कि दया जब से अहमदाबाद गई है तब से वह घर नहीं लौटी है. तारक ने फिर जेठालाल से कहा कि वो अब भाभी को घर वापस लेकर आए, क्योंकि अहमदाबाद दूर नहीं है.

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शो में जेठालाल उदास दिखे और तारक से कहा कि जब भी वह दया को वापस लाने के लिए वहां जाने की योजना बनाते हैं  तो कोविड-19 नियम उन्हें रोकते हैं और यह खेल बिगाड़ देता है. बता दें कि जेठालाल ने दयाबेन की वापसी के बारे में एक बड़ा संकेत देते हुए कहा कि एक बार जब कोविड-19 खत्म हो जाए तो वह, दया और उनका परिवार यात्रा पर निकल जाएगा. अंत में जब कृष्णन अय्यर ने पूछा कि जेठा क्या करने जा रहा है, तो उन्होंने कहा कि यह सब अब दया पर निर्भर करता है.

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इस एपिसोड को देखने के बाद कयास लगाया जा रहा है कि नई दया भाभी मिल गई हैं, या फिर दिशा वकानी ही शो में वापसी करने करने वाली है.

 

रिपोर्ट के अनुसार, कुछ समय पहले शो के निर्माता असित मोदी ने दया बेन की वापसी के बारे में बात करते हुए कहा था कि हम अभी भी दिशा वकानी के वापस आने का इंतजार कर रहे हैं और अगर वह छोड़ना चाहती हैं तो शो एक नई दया के साथ चलेगा.

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TV पर फिर दिखेगी Shivangi Joshi और मोहसिन खान की जोड़ी

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में शिवांगी जोशी(Shivangi Joshi)  और मोहसिन खान की (Mohsin Khan) जोड़ी ने  फैंस का दिल जीतने में कामयाब हुई थी. फैंस को शिवांगी और मोहसीन की ऑनस्क्रीन जोड़ी बेहद पसंद आई. लेकिन इस जोड़ी ने शो को अलविद कह दिया. इस खबर से फैंस का दिल टूट गया था. लेकिन अब फैंस के लिए खुशखबरी है. आइए बताते है क्या है वह खुशखबरी.

एक खबर सामने आई है, जिससे शिवांगी जोशी और मोहसिन खान के फैन्स काफी खुश हैं. खबर आ रही है कि शिवांगी जोशी और मोहसिन खान एक नए प्रोजेक्ट में एक साथ फिर से काम करने वाले हैं.जी हां सही सुना आपने. टीवी पर एक बार फिर आप अपने फेवरेट जोड़ी को देखेंगे.

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फैंस इस जोड़ी को बहुत मिस कर रहे थे. अब फैन्स का इंतजार खत्म हो गया है क्योंकि शिवांगी जोशी और मोहसिन खान की जोड़ी छोटे पर्दे पर फिर से नजर आएगी. दरअसल शिवांगी जोशी और मोहसिन खान जल्द ही राजन शाही के नए प्रोजेक्ट में साथ नजर आने वाले हैं.

 

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एक रिपोर्ट के अनुसार, शिवांगी जोशी ने कहा है कि मैं इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सकती हूं, लेकिन हां एक प्रोजेक्ट की बातचीत जारी है और जब भी यह प्रोजेक्ट शुरू होगा. हर किसी को इस बारे में पता चल जाएगा.

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शिवांगी जोशी ने आगे कहा कि अगर राजन सर ने कहा है कि हम जल्द साथ आ रहे हैं तो जाहिर है कि हम आ रहे होंगे. जब भी होगा, जैसे भी होगा, मैं दावे से कह सकती हूं कि बहुत खूबसूरत होगा. बता दें कि ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में दोनों की केमिस्ट्री को बहुत पसंद किया गया था. फैंस ने सोशल मीडिया पर उनके ऑनस्क्रीन नाम कार्तिक और नायरा को मिलाकर #कायरा बना दिया था.

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हिंदू-मुसलिम, हिंदू- मुसलिम

देश में जब महंगाई, बेरोजगारी, ठप होते व्यापारों, किसानों की दुर्दशा जैसे मामले सामने खड़े हों और यूरोप में यूक्रेन को ले कर रूस का पैदा किया भयंकर युद्ध का खतरा मंडरा रहा हो, भारतीयों को ‘हिंदूमुसलिम हिंदूमुसलिम’ का पाठ पढ़ाया जा रहा है. उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को भारतीय जनता पार्टी किसी तरह हिंदूमुसलिम समस्या की ओर ले जाने में जुटी रही.

जब हत्या हुई, उत्तर प्रदेश के 3 चरणों के वोट डल चुके थे और चाहे आदित्यनाथ, अमित शाह और स्वयं नरेंद्र मोदी ने बुल्डोजरों, जिन्ना, साइकिलों पर आंतकवादियों के बमों, टोपियों, बुर्कों की बारबार कितनी ही बात की हो लेकिन प्रदेश की जनता को अपनी रोजीरोटी की ही पड़ी रही और राज्य के मतदाताओं का मूड भाजपाई सरकार से उखड़ा रहा. चुनाव के दौरान हिंदू नेताओं की बहुत बड़ी भीड़ राज्य की गलीगली में मौजूद रही. हर मंदिर का पुजारी, मंदिर के सामने फूल बेचने वाला, मंदिर के नाम पर जमीन हथिया कर वहां दुकान खुलवाने वाला, शादीब्याह में पूजापाठ कराने वाला, कुंडलियां तैयार करने वाला, ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद के नाम पर धंधा करने वाला आदि हर जना भारतीय जनता पार्टी के हिंदूमुसलिम एजेंडे का एजेंट है.

यही लोग हर समय ‘हिंदू एक हैं’ का नारा लगाते हैं, ‘जयश्रीराम’ का नारा जबरन लगवाते हैं. इन लोगों का आज असली मकसद मेहनतकश लोगों को लूटना है. आज अगर व्यापार ठप हो रहे हैं तो उन पिछड़ी जातियों के व्यापारियों के जिन्होंने पिछले 20-25 वर्षों में थोड़ीबहुत पढ़ाई करने के बाद अपना जुगाड़ बैठा कर छोटामोटा धंधा शुरू किया था. आज अगर कुछ हजार नौकरियों के लिए सवा करोड़ एप्लीकेशनें आती हैं तो वे पिछड़ों की होती हैं जिन्होंने सरकारी स्कूलों का फायदा उठा कर थोड़ीबहुत पढ़ाई कर के सरकारी नौकरी के सपने देखने शुरू किए. पर हकीकत में भारतीय जनता पार्टी और उस के जैसे धर्म का व्यापार करने वाले कह रहे हैं, ‘हिंदुओ एक हो जाओ.’ यह एकता का नारा उन पिछड़ों को दिया जा रहा है जो कम से कम लाठी चलाना तो जानते हैं. एक हो कर वे क्या करें. किसी मुसलमान का सिर फोड़ें. क्यों, क्या मुसलमान किसी का हक मार रहे हैं?

हिटलर व्लादिमीर पुतिन

नहीं, इसलिए कि ये हिंदूहिंदू करेंगे तो हिंदू धर्म से जुड़े व्यापार चमकेंगे. बाकी व्यापार ठप होंगे और भव्य मंदिर बनेंगे. बाजारों में सूनापन पर मंदिरों के आगे भीड़ जुटेगी. हिंदूमुसलिम कर के हिंदुओं, खासतौर पर पिछड़ों, को लूटने की कोशिश हो रही है. साथ में ऊंची जातियों की औरतों को लपेटे में ले लिया जाता है. उन्हें भी गुलाम बनाए रखना हिंदू धर्म का पहला उद्देश्य सदियों से रहा है. आज जैसे पढ़लिख कर पिछड़ों का युवा भड़क रहा है वैसे ऊंची ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य जातियों की औरतें भड़क न जाएं, यह कोशिश जारी है.

हिजाब के सहारे इसलाम धर्म के पाखंडी दुकानदार भी यही कर रहे हैं. छोटी लड़कियों को बिना कारण धर्म के दलदल में धकेल दिया गया है. उन्हें अपने साथ की पिछड़ी जमात की लड़कियों से दूर कर दिया गया है. उन्हें घरों में बंद रहने को मजबूर कर दिया गया है. मुसलिम पाखंडी चाहते हैं कि लड़कियां हिजाब पहन कर अपना धर्म जगजाहिर करती फिरें. इस से जब वे दूसरों से अलग दिखेंगी तो उन के पास कोई नहीं फटकेगा.

जैसे कोई भगवा साड़ी पहनी साध्वियों को अपना दोस्त नहीं बनाता वैसे ही हिजाब पहनने वालियां केवल धर्म की दीवारों की कैद में, दोस्तों के बिना खुले आसमां को भूल कर, रहने को मजबूर हो रही हैं. पिछड़ी जातियां, चाहे हिंदुओं की हों या मुसलमानों की, जो कुछ भी कदम आगे बढ़ी थीं, अब वे फिर अंधेरे कुएं में धकेली जा रही हैं.

बच्चों में दिल की बीमारी

देश में हर साल 17 लाख लोग हृदय संबंधी रोग के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं. इस में एक बड़ी संख्या छोटे बच्चों की भी है. विडंबना यह है कि सरकारी अस्पतालों की कमी और प्राइवेट अस्पतालों की ऊंची फीस ने इस बीमारी को बच्चों के लिए घातक बना दिया है.

देश में लगातार तेजी से हृदय संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है. भारत में हर साल 17 लाख लोगों की हृदय रोग से मौत हो जाती है. लोग अकसर इस बीमारी को सिर्फ बुढ़ापे की बीमारी मान कर चलते हैं जोकि सरासर गलत है. एक रिसर्च के अनुसार, प्रति 1,000 में 10 बच्चे हृदय रोग से संबंधित बीमारियों से ग्रस्त हैं.

जब से कोविड महामारी आई है तब से हृदय रोग संबंधित बीमारियों ने और भी घातक रूप ले लिया है. कोविड की वजह से बच्चों की दिल की बीमारी को ले कर मातापिता काफी परेशान रहते हैं. आएदिन छोटे बच्चों में जन्मजात दिल की बीमारियों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है.

दुखद यह कि इस बीमारी से जू झ रहे बच्चों का महज 10-15 फीसदी ही इलाज हो पाता है. यही कारण है कि जवान होने से पहले ही ये बच्चे दम तोड़ देते हैं. जिन बच्चों की बीमारी डाइगनोस हो चुकी है उन्हें कोविड महामारी ने और भी गंभीर बना दिया है क्योंकि कई सरकारी अस्पतालों में कोविड की वजह से इन बच्चों का इलाज नहीं हो पाया.

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ज्यादातर बच्चों में जन्म से ही दिल में छेद, खून की नसों का सिकुड़ना, आर्टरी का ब्लौक होना और वौल्व में परेशानी की समस्या आती है. एक शोध में पाया गया है कि हर साल उत्तरी भारत में करीब 14 हजार बच्चे वहीं पूर्वी और दक्षिणी भारत में 1500 और 6500 सीएचडी यानी जन्मजात हृदय विकार के साथ पैदा होते हैं जिन्हें जन्म के पहले ही साल में इलाज की जरूरत होती है, पर ऐसा हो नहीं पाता, जो चिंता का विषय है.

8 साल का रयान खान भी ऐसे ही बच्चों में से एक है. बचपन से ही रयान को हार्ट की समस्या थी. रयान के पिता मुस्तकीम खान, जोकि गढ़मुक्तेश्वर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, ने बताया, ‘‘मैं अपने बच्चे की बीमारी को ले कर बहुत परेशान था. मैं कई सरकारी अस्पतालों में गया लेकिन कहीं से भी मु झे सही तरीके से इलाज नहीं मिल पाया. दिनोंदिन इस की हालत बिगड़ती जा रही थी. तब जा कर किसी ने बताया कि हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया, जो दिल्ली में है, जाओ और बच्चे को दिखाओ.

‘‘मैं वहां पर पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई. वहां रयान के सारे डौक्यूमैंट्स तैयार कराए गए और मु झे 19 नवंबर, 2017 को मेदांता अस्पताल भेजा गया. जहां रयान की कई जांचें की गईं और

21 नवंबर, 2017 को इस का औपरेशन हो गया. आज मेरा बच्चा ठीक है.’’

मुस्तकीम खान एक बहुत साधारण व्यक्ति हैं. उस दौरान परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी, वे यह सोच भी नहीं सकते थे कि उन के बेटे रयान का औपरेशन मेदांता जैसे बड़े अस्पताल में भी हो सकता है, क्योंकि इस से पहले

वे सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगातेलगाते थकहार चुके थे. आज हकीकत यह है कि दिल की बीमारियों से जुड़े बच्चों में से महज 17 फीसदी ही बच्चों का इलाज हो पाता है जो कि बेहद चिंताजनक स्थिति है. दरअसल, रोगियों के अभिभावक सरकारी अस्पतालों की भारी कमी और प्राइवेट अस्पतालों की महंगी फीस के चलते अपने पांव पीछे खींचने को मजबूर रहते हैं.

10 वर्षीया आफिया गाजीपुर की रहने वाली है. आफिया को भी बचपन से दिल की बीमारी थी. आफिया की मां अफसाना बेहद भावुक हो कर अपनी बात सा झा करने लगीं. वे कहती हैं, ‘‘जब आफिया 3-4 महीने की थी तो इसे वौमिटिंग, सर्दीजुकाम, पसीना आना और बुखार होने लगा था. लोकल डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने कुछ दवाएं दीं मगर उस से ठीक नहीं हुई. फिर डाक्टर ने कहा कि इसे सरकारी अस्पताल एम्स में ले जाओ.

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‘‘एम्स में कहा गया कि इस की सर्जरी करनी पड़ेगी, जिस का एक से डेढ़ लाख रुपए खर्च बताया गया था. प्राइवेट अस्पताल में जा नहीं सकती थी क्योंकि मेरी आर्थिक स्थिति किसी तरह से घर चलाने की ही बन पा रही थी.

‘‘उस के बाद एक डा. बी बी गुप्ता ने बताया कि आप जा कर डाक्टर योगेश से मिलना जो कि इस की फ्री में सर्जरी करा देंगे. डा. योगेश से मिलने के बाद मेरी मुलाकात डा. कृष्ण कुमार अग्रवाल से हुई थी. उन्होंने सबकुछ चैक करने के बाद ही हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया संस्था की तरफ से मु झे डौक्यूमैंट्स तैयार कर एक बड़े प्राइवेट अस्पताल भेज दिया, जहां मेरी बच्ची के हार्ट की सर्जरी हुई.’’

बच्चों की हार्ट से संबंधित कई बीमारियां हैं जो नन्ही सी जान को भी नहीं बख्शतीं. ऐसी बीमारियां असियानौटिक कौन्जेनिटल हार्ट डिजीज वैंट्रीकुलर सैप्टल डिफैक्ट, एट्रियल सैप्टल डिफैक्ट, हाइपोप्लास्टिक लैफ्ट हार्ट सिंड्रोम जैसे नामों से जानी जाती हैं. इस के और भी कई प्रकार हैं और ये बच्चों पर अलगअलग तरह से इफैक्ट करती हैं.

5 वर्षीया लक्षिता शर्मा को हार्ट की समस्या थी. लक्षिता की मां अनीता शर्मा ने बताया, ‘‘जब लक्षिता 8 महीने की थी तो उसे खांसी बहुत होती थी. बहुत से डाक्टर्स को दिखाया पर कोई फायदा नहीं हुआ. एक डाक्टर ने इको के लिए सजेस्ट किया. पता चला कि उसे तो दिल की बीमारी है.’’ फिर अनीता भागीभागी एम्स गईं लेकिन वहां की भीड़ देख कर उन्हें नंबर ही नहीं मिला.

नंबर मिला तो लंबी डेट्स के कारण वे निराश हो गईं. तब उन्हें हार्ट केयर फाउंडेशन के बारे में किसी ने बताया. वे कहती हैं, ‘‘वहां जाने के बाद मु झे उम्मीद की किरण दिखने लगी और मैं हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया की वजह से अपनी बच्ची का इलाज करा पाई. आज मैं उस संस्था की शुक्रगुजार हूं कि मेरी बच्ची को जीवनदान मिल गया.’’

ऐसे ही 13 वर्षीय विवेक को भी दिल की बीमारी थी. विवेक के मातापिता बहुत परेशान थे. विवेक की मां रेखा का दर्द भी कुछकुछ अफसाना जैसा था. उन्होंने बताया, ‘‘विवेक जब 11 महीने का था तो इस को फीवर रहता था और फीवर उतरता नहीं था. डाक्टर को दिखाया तो पता चला, इसे हार्ट की बीमारी है और सर्जरी की जरूरत है. प्राइवेट अस्पतालों में गई तो 2-3 लाख रुपए का खर्चा बताया.’’

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वे आगे कहती हैं, ‘‘मेरे पति की कमाई इतनी नहीं थी कि प्राइवेट अस्पतालों के बिल भर सकें. कई सरकारी अस्पतालों के धक्के खाने के बाद मु झे पता चला कि एक संस्था है जो न सिर्फ इलाज कराती है बल्कि औपरेशन का भी खर्चा भी उठाती है. बस, फिर क्या था, आज मेरा बच्चा आप के सामने बिलकुल स्वस्थ है.’’

देखा गया है कि अमेरिका जैसे देशों में 5 साल की उम्र में ही दिल से संबंधित बीमारी से पीडि़त बच्चों की सर्जरी कर दी जाती है. विडंबना यह है कि भारत में इस तरह की सर्जरी ज्यादातर मामलों में देरी से होती है. इस के कई कारण हैं जैसे, सरकारी अस्पतालों की कमी, इलाज सही से न होना, लंबीलंबी डेट्स मिलना इत्यादि. मगर वहीं हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया जैसी संस्था भी है जो अपने स्तर पर ऐसे बच्चों का मुफ्त में इलाज करवा कर परिवार की मदद कर रही है.

हार्ट केयर फाउंडेशन फंड की डा. वीणा अग्रवाल बताती हैं, ‘‘फंड संस्थापक का उद्देश्य यही है कि किसी व्यक्ति को दिल की बीमारी से इसलिए नहीं मरना चाहिए कि वह इलाज का खर्च नहीं उठा सकता है.’’ वहीं नैना अग्रवाल आहूजा ने बताया, ‘‘आज जरूरत इस बात की है कि बीमारी का सही समय पर डाइगनोस होना और सही तरीके से इलाज कराना या सही इलाज होना.’’

यह बात सही है कि हमारे देश में न तो सही समय पर डाइगनोस का पता लगाया जाता है, न ही इलाज होता है. इस का बड़ा कारण है कि सरकारी अस्पतालों में भीड़ और लंबीलंबी डेट्स का मिलना, जिस के चलते लोग इलाज नहीं करा पाते. वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट अस्पतालों की फीस इतनी ऊंची होती है कि आम इंसान के लिए उन की फीस भर पाना मुश्किल होता है. ऐसे में जरूरत है कि सब से पहले केंद्र सरकार हैल्थ सैक्टर को मजबूत और सक्षम बनाए क्योंकि इस की लचर व्यवस्था को हम सब कोविड महामारी के दौरान  झेल चुके हैं.

घर आंगन में ऐसे लगाएं सब्जियां

घर के बगीचे में सब्जियों की खेती करने को हम किचन गार्डन कह सकते हैं. किचन गार्डन यानी गृहवाटिका में सब्जी उत्पादन का प्रचलन पुराने समय से ही चला आ रहा है. इस में सब्जी उत्पादन का खास मकसद यह होता है कि पूरे परिवार को सालभर ताजा सब्जी मिलती रहे.

इस किचन गार्डन में सब्जियों के अलावा फलफूल वगैरह को भी उगाया जा सकता है. इसी वजह से इसे परिवार आधारित रसोई उद्यान यानी गृहवाटिका या किचन गार्डन भी कहते हैं.

इस तरह के सब्जी उत्पादन में खास मकसद माली फायदा न हो कर परिवार के पोषण लैवल को बढ़ाना व घर में ही ताजा सब्जियों का उत्पादन करना होता है. सब्जियों का चयन परिवार के सदस्यों के मुताबिक ही किया जाता है.

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आप अपने घर के आंगन में, गमलों में, घर की छत पर या आप के आसपास कोई खाली जगह है, तो आसानी से घर में सब्जी का बगीचा यानी किचन गार्डन बना सकते हैं. इस से आप को ताजा सब्जियां भी मिलेंगी और साथ ही साथ उत्पादन ज्यादा हो तो आप इन सब्जियों को बेच कर कुछ पैसे भी कमा सकते हैं.

घर पर सब्जियां लगाने के तरीके

घर पर सब्जियां लगाने के कुछ खास तरीके हैं :

* गमले और प्लास्टिक ट्रे में सब्जी लगाना.

* घर की छत पर सब्जी लगाना.

* घर में खाली पड़ी जमीन में क्यारी बना कर सब्जी लगाना.

गमले और प्लास्टिक ट्रे में सब्जी लगाना : गमले में सब्जी उगाने के लिए आप को ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती है. बालकनी या ऐसी थोड़ी सी भी खाली जगह, जहां गमला रख सकते हैं, वहां बहुत आसानी से गमले में सब्जियों को उगा सकते हैं.

गमला मिट्टी का हो, तो यह काफी अच्छा रहेगा. इस के अलावा आप अपने घर पर पड़ी खराब बालटियां, तेल के कनस्तर, लकड़ी की पटरियां आदि भी इस्तेमाल कर सकते हैं, बस उन के नीचे 2 या 4 छेद कर के पानी की निकासी जरूर कर दें.

गमले के पेंदे के छेद पर कुछ कंकड़ डाल देंगे तो मिट्टी जम कर छेद बंद नहीं होंगे. गमलों में टमाटर, बैगन, गोभी जैसी सब्जियां आसानी से उगाई जा सकती हैं.

टिन या प्लास्टिक की ट्रे, जिस में 3 या 5 इंच मिट्टी आती हो, उस में हम हरा धनिया, मेथी, पुदीना वगैरह सब्जियां उगा सकते हैं. भिंडी वगैरह के पौधे को गमले में गिरने से बचाने के लिए सपोर्ट देते हुए कुछ स्टिक जरूर गाड़ दें.

गमले में लौकी, तुरई, करेला, मूली, गोभी, भिंडी, प्याज वगैरह सब्जियों को लगा सकते हैं. इस तरह के पौधों के लिए गमले का आकार थोड़ा बड़ा होना चाहिए, जिस में 10-12 किलोग्राम मिट्टी आ सके.

बेलदार सब्जियों जैसे लौकी, तुरई, टिंडा, करेला, सेम आदि के लिए बड़े गमले की जरूरत होती है. कम से कम 12 इंच या उस से बड़े गमले में बेलदार सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

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बैगन, मिर्च, टमाटर, प्याज, अदरक, मिर्च जैसी छोटी सब्जियों के लिए मध्यम आकार के गमले (6 से 10 इंच) सही रहते हैं. धनिया, पालक, मेथी, सौंफ जैसी सब्जियों के लिए कम ऊंचाई, लेकिन ज्यादा चौड़ाई वाले गमले सही रहते हैं.

घर की छत पर सब्जी लगाना : सब्जियां लगाने से पहले छत पर एक मोटी प्लास्टिक की चादर बिछा दें, फिर ईंटों या लकड़ी की पट्टियों से चारदीवारी बना लें. उस में समान रूप से मिट्टी बिछा दें और पानी की निकासी भी रखें.

छत पर सब्जी लगाने से गरमी के दिनों में आप का घर भी ठंडा रहता है, जिस से आप को काफी राहत मिलेगी.

घर में खाली पड़ी जमीन में क्यारी बना कर सब्जी लगाना : हमारे घर में या घर के आसपास कोई खाली जगह हो, तो ऐसी जगह का इस्तेमाल हम सब्जियां उगाने के लिए कर सकते हैं.

यदि वहां की मिट्टी ठोस हो, तो पहले उसे खुदाई कर के खेत जैसी बना लें और अगर मुमकिन हो, तो उस में किसी तालाब की उपजाऊ मिट्टी और गोबर की सड़ी खाद वगैरह डाल कर अच्छी तरह से जुताई कर दें. उस के बाद उस में छोटीछोटी क्यारियां बना कर आप अपनी मनपसंद सब्जियों को लगा सकते हैं.

अगर आप के पास सिंचाई के लिए पानी की कमी हो, तो किचन से निकले फालतू पानी को पाइप द्वारा सब्जियों की सिंचाई कर सकते हैं. आजकल आरओ से पानी के शुद्धीकरण में काफी पानी बरबाद होता है, इसलिए आप एक पतली नली से यह पानी किसी सब्जी की क्यारी में या पेड़ की जड़ में छोड़ सकते हैं.

अगर आप के पास बड़ा किचन गार्डन लगाने की जगह है, तो आप क्यारी बना कर लगा सकते हैं. उस में एक भाग में फल वाले पेड़ और दूसरे भाग में सब्जियों के पौधे लगाए जा सकते हैं.

पेड़ इस तरह से लगाएं कि वे दूसरे पौधों पर छाया न डालें. इस हिसाब से आप के प्लौट का उत्तर और उत्तरपश्चिम का कोना फलदार पेड़ों के लिए सही रहता है.

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कुछ फलदार पेड़ और सब्जियां साथसाथ भी लगाई जा सकती हैं. किचन गार्डन बड़ा होने पर हम इस तरह की सब्जियां भी लगा सकते हैं, जिन को निकाल कर उन को लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है, जैसे प्याज, लहसुन, टमाटर, अदरक वगैरह. इसी तरह मटर को भी लगाया जा सकता है.

सब्जियों का चयन आप को इस तरह से करना चाहिए कि बाजार में आने से पहले वे सब्जियां आप को मिल जाएं. जो सब्जियां महंगी होती हैं, उन को भी किचन गार्डन में प्राथमिकता देनी चाहिए.

घर के पिछले हिस्से में ऐसी जगह का चुनाव करें, जहां सूरज की रोशनी पहुंचती हो, क्योंकि सूरज की रोशनी से ही पौधे का विकास मुमकिन है. पौधों को रोज 5-6 घंटे सूरज की रोशनी मिलना बहुत जरूरी होता है, इसलिए गार्डन छाया वाली जगह पर न बनाएं.

बगीचे के एक किनारे खाद का गड्ढा बनाएं, जिस में घर का कचरा और पौधों का अवशेष डाला जा सके, जो बाद में सड़ कर खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.

बगीचे की सुरक्षा के लिए कंटीली झाड़ी व तार से बाड़ लगाएं, जिस में लता वाली सब्जियां उगाएं. रोपाई की जाने वाली सब्जियों के लिए किसी किनारे पर पौधशाला बनाएं, जहां पौध तैयार की जा सके.

जड़ वाली सब्जियों को मेंड़ों पर उगाएं. समयसमय पर निराईगुड़ाई करें. सब्जियों, फलों व फूलों के तैयार होने पर तुड़ाई करते रहें. सब्जियों का चयन इस तरह करें कि सालभर मिलती रहें.

घर में कौनकौन सी सब्जियां लगा सकते हैं?

रबी के मौसम की सब्जियां : इस मौसम की सब्जियां सितंबरअक्तूबर महीने में लगा सकते हैं, जैसे फूलगोभी, पत्तागोभी, शलजम, बैगन, मूली, गाजर, टमाटर, मटर, सरसों, प्याज, लहसुन, पालक, मेथी वगैरह.

खरीफ के मौसम की सब्जियां : इस मौसम की सब्जियों को लगाने का सही समय जूनजुलाई का महीना है. इस समय भिंडी, मिर्च, लोबिया, अरबी, टमाटर, करेला, लौकी, तोरई, शकरकंद वगैरह सब्जियों को लगा सकते हैं.

जायद के मौसम की सब्जियां : इस मौसम की सब्जियां फरवरीमार्च और अप्रैल महीने में लगाई जाती हैं. इस में टिंडा, खरबूजा, तरबूज, खीरा, ककड़ी, टेगसी, करेला, लौकी, तुरई, भिंडी जैसी सब्जी लगा सकते हैं.

गमले में फलसब्जी के पौध लगाने की विधि

  1. गमले में पौध तैयार करने के लिए आप को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई विधि बताई जा रही है. इस विधि का आप इस्तेमाल कर सकते हैं.
  2. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, गमले में पौधे लगाने के लिए गमले का आकार थोड़ा बड़ा होना चाहिए, जिस में तकरीबन 10-12 किलोग्राम या ज्यादा मिट्टी आ जाए.
  3. गमले को सूखी उपजाऊ मिट्टी से भर कर फिर उस में से 2 किलोग्राम के तकरीबन मिट्टी निकाल दें और बाकी मिट्टी को फर्श या जमीन पर डाल कर इस में 200 ग्राम डीएपी, 100 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश, एक किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट अच्छी तरह से मिला लें.
  4. अगर मिट्टी में पोषक तत्त्वों (जिंक, सल्फर, कौपर, मैगनीज, बोरोन वगैरह) की कमी हो, तो बाजार से ले कर इन की थोड़ी मात्रा मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें, फिर इस मिट्टी को गमले में भर दें.
  5. गमला ऊपर से तकरीबन 2-3 इंच खाली रखना चाहिए.
  6. गौरतलब है कि गमलों में लगाने के लिए कलम, बडिंग या गूटी से तैयार अच्छी प्रजाति के पौधे ही लगाने चाहिए. ऐसे पौधे 1 से 2 साल में फल देने लगते हैं. नीबू की प्रजाति ऐसी लगाएं, जिन पर साल में 2 बार फल जरूर आएं या 12 महीने फलफूल लगे रहें.
  7. गमले में पौधे लगा कर उस में पानी लगाएं, इस तरह मिट्टी नीचे दब जाएगी. गमला ऊपरी सतह पर 2-3 इंच खाली रहना चाहिए, ताकि समयसमय पर पानी लगाया जा सके.
  8. गमलों में जरूरत के मुताबिक पानी देते रहें. फूल आते समय ज्यादा पानी दें. पौधों को रोशनी भी मिलनी चाहिए, इसलिए ऐसी जगह रखें कि दिन में कुछ घंटे उन को सूरज की रोशनी मिल सके.
  9. जिन गमलों में सीधे बीज बो कर सब्जी (जैसे भिंडी, पालक, मेथी, धनिया वगैरह) लगानी हो, तो उन में बीजों को मिट्टी में मिला कर फिर हलका पानी लगाएं. आने वाले दिनों में सही नमी बनाए रखें. घर में गमलों की नियमित देखभाल करते रहें.

छत पर सब्जी लगाना

अगर आप के मकान की छत खुली हुई है, तो उस पर पौलीथिन की शीट डाल कर उस के ऊपर 4-5 इंच मोटी गोबर की सड़ी खाद मिली मिट्टी की परत डाल कर भी उथली जड़ वाली सब्जियां, जैसे पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, टमाटर, धनिया, पुदीना, बथुआ, पालक, मेथी वगैरह उगा सकते हैं.

12 इंची या जरूरत के मुताबिक (उगाए जाने वाले पेड़पौधों के मुताबिक) या इस से बड़े मिट्टी, सीमेंट या प्लास्टिक के बने गमलों का इस्तेमाल करें.

गमलों को सूखी उपजाऊ मिट्टी से भर लें और फिर तकरीबन एक किलोग्राम मिट्टी को गमले से वापस निकाल लें, बाकी मिट्टी को फर्श या जमीन पर पलट दें. अब इस में 50 ग्राम डीएपी, 50 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश या फिर 100 ग्राम डीएपी, 500 ग्राम केंचुआ की खाद (वर्मी कंपोस्ट) या गोबर की खाद अच्छी तरह मिला दें.रोग व कीट नियंत्रण बैगन, भिंडी, फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर में सफेद मक्खी सूंड़ी की समस्या ज्यादा होती है. यदि पत्तियां हिलाने से हरे रंग के कीट या रस चूसने वाले कीट या बारीक सफेद मक्खी दिखाई दे, तो पौधों पर पानी की बौछार मार कर धुलाई करें या नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर, उस पानी को ठंडा कर के छान कर पौधों पर छिड़काव करें, वरना कृषि माहिरों से भी संपर्क कर सकते हैं.

अगर आप को गमले में सब्जी की तैयार नर्सरी बैगन, टमाटर, पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, मिर्च, शिमला मिर्च आदि में से कोई भी (जिस का मौसम हो) लगानी है, तो उस का एक पौधा या बड़े गमले में एक से ज्यादा पौधे लगा कर उस में पानी डालें और ध्यान रखें कि पानी गमले से बाहर न निकले, इस के लिए गमलों को तकरीबन 2 इंच खाली रखें. पानी लगाने पर अगर पौधा गिर जाता है, तो उसे सीधा खड़ा कर मिट्टी का सहारा दें.

रूसी बर्बर हमला: पुतिन, दुनिया का विलेन

व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अद्भुत साहस और क्षमता का प्रदर्शन कर सारे विश्व को संदेश दे दिया है कि एक बहुत छोटा देश भी बड़े देश के सामने सिर झुकाने से इनकार कर सकता है. अमेरिका और यूरोप अभी आर्थिक शिकंजा ही कस रहे हैं पर उन से भी रूस गरीबी के गहरे गड्ढे में दशकों तक के लिए सिर्फ व्लादिमीर पुतिन की हठधर्मिता के कारण गिर जाएगा.

रूस और यूक्रेन के बीच विवाद नया नहीं है. यह विवाद 2014 से जारी है. यह वर्चस्व की एक लंबी लड़ाई है, जिस का पूर्ण समाधान हालफिलहाल निकलता नहीं दिख रहा है. इस लड़ाई में एक तरफ खुद को महाशक्ति मानने वाला रूस और उस की समर्थक सेनाएं हैं और दूसरी तरफ यूक्रेन व उस के पीछे नाटो की शक्ल में अमेरिका की कूटनीतिक ताकत है.

1991 तक यूक्रेन पूर्ववर्ती सोवियत संघ (यूएसएसआर) का हिस्सा था. यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुड़ी हुई है. रूस के विघटन के बाद जो देश अलग हुए थे उन में यूक्रेन भी एक था. क्रीमिया भावनात्मक रूप से रूस के साथ जुड़ा हुआ था, जिस को वर्ष 2014 में रूस ने आजाद कर अपने नियंत्रण में ले लिया था. इस के अलावा यूक्रेन के डोनबास, लुहांस्कन और डोनेस्ततक इलाकों में रूसी समर्थक लोग बहुत ज्यादा संख्या में हैं. यूक्रेन के बाहर बेलारूस और जौर्जिया पूरी तरह से रूस के साथ हैं. यानी एक तरह से यूक्रेन पूरी तरह रूस और उस के समर्थक देशों से घिरा हुआ है.

आइए उन कारणों की बात करते हैं जिन की वजह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है. कई महीनों तक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर हमले की किसी भी योजना से इनकार करते रहे, लेकिन अचानक उन्होंने यूक्रेन में ‘स्पैशल मिलिटरी औपरेशन’ का ऐलान कर दिया.

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इस लड़ाई को सम?ाने के लिए हमें 8 साल पीछे यानी साल 2014 में जाना होगा जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. उस वक्त रूस समर्थित विद्रोहियों ने देश के पूर्वी हिस्से में एक अच्छेखासे इलाके पर कब्जा कर लिया था. उस वक्त से ले कर आज तक इन विद्रोहियों की यूक्रेन की सेना से भिड़ंत लगातार जारी है. पुतिन ने मिन्स्क शांति सम?ाते को खत्म कर यूक्रेन के 2 अलगाववादी क्षेत्रों में सेना भेजने की घोषणा के बाद कहा था, ‘हम इन क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के लिए सेना भेज रहे हैं. मगर अब उन का इरादा यूक्रेन में तख्तापलट का है.’

यूक्रेन से चिढ़ते हैं पुतिन

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को पश्चिमी देशों की कठपुतली मानते हैं. वे यूक्रेन की यूरोपियन यूनियन, नाटो और अन्य यूरोपीय संस्थाओं के साथ नजदीकी का विरोध करते रहे हैं. उन का कहना है कि यूक्रेन पूर्णरूप से कभी एक देश था ही नहीं. वहां रहने वाले भावनात्मक रूप से रूस से जुड़े हुए हैं. ऐसी धारणा फैला कर रूस काफी वक्त से यूक्रेन पर पूर्वी हिस्से में ‘जनसंहार’ का आरोप लगा कर युद्ध के लिए माहौल तैयार कर रहा था. उस ने विद्रोही इलाकों में लगभग 7 लाख लोगों के लिए पासपोर्ट भी जारी किए हैं. माना जाता है कि इस के पीछे रूस की मंशा अपने नागरिकों की रक्षा के बहाने यूक्रेन पर कार्रवाई को सही ठहराना है.

विवाद की बड़ी वजह है नाटो

यों तो रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई की कई वजहें हैं लेकिन इन में सब से बड़ी वजह है नौर्थ अटलांटिक ट्रीटी और्गेनाइजेशन यानी नाटो. इसी की वजह से सारा बवाल शुरू हुआ है. गौरतलब है कि वर्ष 1949 में तत्कालीन सोवियत संघ से निबटने के

लिए अमेरिका ने नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) का गठन किया था. इस संगठन को रूस को काउंटर करने के लिए बनाया गया था.

अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं. यदि कोई देश नाटो देश पर हमला करता है तो वह हमला पूरे नाटो देश पर माना जाता है और उस का मुकाबला सभी नाटो सदस्य देश एकजुट हो कर करते हैं. यूक्रेन भी नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन यह बात रूस को रास नहीं आ रही है. इसी वजह से ही विवाद जारी है.

रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ तो उस के सैनिक रूस-यूक्रेन सीमा पर डेरा जमा लेंगे. इस वजह से रूस को लगता है कि नाटो जैसे संगठन के सैनिक अगर उस सीमा पर आ जाते हैं तो उस के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी. रूस चाहता है कि नाटो अपना विस्तार न करे.

राष्ट्रपति पुतिन इसी मांग को ले कर यूक्रेन व पश्चिमी देशों पर दबाव डाल रहे थे. गौरतलब है कि नाटो में 30 लाख से अधिक सैनिक हैं, जबकि रूस के पास सिर्फ 12 लाख सैनिक हैं. इस की वजह से रूस को बड़ा खतरा महसूस होता है. यही वजह है कि रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन को इस का सदस्य नहीं बनने देना चाहता. रूस चाहता है कि नाटो उसे लिखित रूप में यह आश्वासन दे कि वह यूक्रेन को नाटो में कभी शामिल नहीं करेगा. इस के अलावा रूस का कहना है कि नाटो उन देशों को शामिल न करे, जो देश सोवियत संघ से अलग हुए हैं.

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क्रीमिया विवाद

रूस ने वर्ष 2014 में यूक्रेन के शहर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. दरअसल, क्रीमिया में रूस समर्थित लोग बहुसंख्यक हैं. वे रूसी भाषा बोलते थे और रूस से अधिक लगाव रखते थे. साल 2014 में रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति थे, लेकिन राजधानी कीव में हिंसक प्रदर्शन के बाद यानुकोविच को सत्ता गंवानी पड़ी थी. इस के बाद रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. क्रीमिया में हुए जनमत संग्रह में लोगों ने रूस के साथ जाने के लिए मतदान किया. मगर तब से यूक्रेन और पश्चिमी देश क्रीमिया को रूस में मिलाने को अवैध मानते हैं.

इस के साथ ही क्रीमिया में एक बंदरगाह है, सेवस्तोपोल पोर्ट, जो रूस के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है. यह ऐसा बंदरगाह है जो रूस को साल के बारहों मास समुद्र से कनैक्टिविटी देता है. इस वजह से यूक्रेन डरा हुआ है कि रूस उस के और भी क्षेत्रों पर कब्जा कर सकता है. सो, यूक्रेन नाटो में शामिल हो कर खुद की सुरक्षा चाहता है.

गैस पाइपलाइन

रूस और यूरोप गैस पाइपलाइन विवाद भी लड़ाई की एक वजह है. रूस इस पाइपलाइन के जरिए गैस को यूरोप तक भेजता था. यह पाइपलाइन यूक्रेन से हो कर जाती थी, रूस को उन्हें ट्रांजिट शुल्क देना पड़ता है. रूस हर साल करीब 33 बिलियन डौलर का भुगतान युक्रेन को कर रहा था. यह राशि यूक्रेन के कुल बजट की 4 फीसदी है. रूस को इस कारण बहुत महंगी (10 बिलियन डौलर) नौर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन की शुरुआत करनी पड़ी. इस के जरिए रूस ने समुद्र में पाइपलाइन डाल कर यूरोप को गैस पहुंचाई थी. ऐसे में रूस को लगता है कि अगर वह यूक्रेन के कुछ क्षेत्र पर कब्जा करता है तो उसे गैस पाइपलाइन भेजना आसान होगा.

भीषण संघर्ष जारी

रूस और यूक्रेन के बीच भीषण जंग जारी है. यूक्रेन की राजधानी कीव और खारकीव में रूसी सेना के ताबड़तोड़ हमले जारी हैं. दोनों देशों के बीच बेलारूस में हुई बातचीत बेनतीजा रही. एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र यूक्रेन की मदद के लिए कमर कस कर खड़ा है वहीं राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना को ‘स्पैशल अलर्ट’ पर रखने का आदेश दिया है जिस में परमाणु हथियार भी शामिल हैं. अब तक दोनों ओर से सैकड़ों सैनिकों की मौत हो चुकी है. साथ ही, दर्जनों लड़ाकू विमान, हैलिकौप्टर और टैंक नष्ट हो चुके हैं.

राजधानी कीव के करीब 40 मील तक रूसी सेना का जमावड़ा लगा है. वहीं संसाधनों की कमी के बावजूद यूक्रेन पूरी मुस्तैदी से अपनी सरहदों की रक्षा में जुटा है. चारों ओर तबाही का मंजर है. अब तक यूक्रेन में 352 लोगों की जान जा चुकी है, जिन में 16 बच्चे भी शामिल हैं. इन के अलावा 1,684 लोग घायल हुए हैं. यूनाइटेड नैशंस के मुताबिक, यूक्रेन छोड़ कर दूसरे देशों में पलायन करने वाले शरणार्थियों की संख्या 3 लाख 86 हजार से ज्यादा हो गई है.

ईयू ने लगाए प्रतिबंध

यूक्रेन पर हमला करने के बाद रूस पर ईयू ने कई कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. इस के जवाब में रूस ने भी बड़ा पलटवार किया है. रूस ने 36 देशों के लिए हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है जिन में यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश जरमनी, फ्रांस, स्पेन और इटली भी शामिल हैं.

इस बीच यूरोपियन यूनियन की सदस्यता के लिए यूक्रेन ने आवेदन कर दिया है. यूक्रेन के राष्ट्र्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए एक आवेदन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यूक्रेन की संसद ने बाकायदा इस का ऐलान किया है. जेलेंस्की के इस कदम से पुतिन का पारा और चढ़ गया है.

यूक्रेन को 50 करोड़ यूरो की आर्थिक मदद

यूक्रेन पर रूस के हमले ने दुनिया को 2 धड़ों में बांट दिया है. एक तरफ भारत जैसा देश तटस्थ रहने की कोशिश में है तो वहीं चीन और पाकिस्तान ने भी दूरी बना रखी है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जरमनी जैसे पश्चिमी व यूरोपीय देश खुल कर रूस के सामने आ गए हैं. इन में से कई देशों ने यूक्रेन को सैन्य हथियार मुहैया कराने से ले कर अन्य मदद देने की बात कही है.

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नाटो चीफ ने यूक्रेन को एंटी टैंक हथियार और मिसाइल देने का एलान किया है. अब तक कुल 21 देशों की ओर से यूक्रेन को मदद देने का एलान हो चुका है. यूरोपीय संघ ने औपचारिक रूप से यूक्रेनी सशस्त्र बलों को उपकरण और आपूर्ति के लिए 50 करोड़ यूरो (लगभग 42 अरब 37 करोड़ 10 लाख रुपए) उपलब्ध कराने के प्रावधान को मंजूरी दे दी है. ईयू ने इस मदद में पहली बार घातक हथियारों को भी शामिल करने का फैसला लिया है.

क्यों है भारत तटस्थ

भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करने से दूरी बनाई हुई है और वार्त्ता के जरिए समस्या का समाधान खोजने पर जोर दे रहा है. भारत यूक्रेन को ले कर सावधानी से कदम उठा रहा है. वह रूस और अमेरिका दोनों से ही नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता. कुछ खास वजहों पर नजर डालते हैं.

भारत के लिए यूक्रेन संकट 2 खंभों के बीच बंधी रस्सी पर चलने जैसा है, जिस की वजह से उसे अपने पुराने दोस्त रूस और पश्चिम में नए दोस्तों का दबाव ?ोलना पड़ रहा है.

रूस भारत के हथियारों की सप्लाई करने वाला सब से बड़ा आपूर्तिकर्ता है और उस ने भारत को एक बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन दी है.

भारत के पास 272 सुखोई, 30 फाइटर जेट हैं. ये भारत को रूस से ही मिले हैं. भारत के पास पनडुब्बियां और 1,300 से ज्यादा टी-90 टैंक्स हैं, जो रूस ने ही मुहैया कराए हैं.

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत रूस से एस-400 एयर डिफैंस सिस्टम खरीदने के लिए अडिग रहा. एस-400 रूस की सब से एडवांस्ड लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है. इस मिसाइल सिस्टम की खरीद के लिए भारत ने रूस से 2018 में 5 अरब डौलर की डील की थी.

रूस यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में सभी मुद्दों पर भारत के साथ खड़ा रहा है.

उधर, अमेरिका ने रूस के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया के लिए भारत पर दबाव बना रखा है. भारत के लिए अमेरिका भी रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कट्टरपंथी, धार्मिक और दंभी नेता ज्यादा पसंद आते हैं जिन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी हैं.

अपने लोगों को निकालने की कवायद

जैसेजैसे युद्ध का रूप भयानक होता जा रहा है और रूस यूक्रेन पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, वैसेवैसे वहां फंसे विदेशी नागरिकों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, खासतौर से छात्रछात्राओं की, जिन को निकालने की कोशिशें लगातार हो रही हैं. यूक्रेन में 80 हजार विदेशी छात्रों में सब से ज्यादा भारतीय हैं. इस के बाद मोरक्को, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान और नाइजीरिया के छात्रों का नंबर आता है.

खारकीव में भारतीय छात्र की मौत

खारकीव यूक्रेन का दूसरा सब से बड़ा शहर है जिसे रूस की सेना का पहला रणनीतिक लक्ष्य माना जा रहा है. जब रूसी सैनिक इस शहर में घुसे तो उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिस के बाद से रूस यहां बम बरसा रहा है. रूसी सेना खारकीव पर क्लस्टर बम और वैक्यूम बम जैसे विनाशकारी हथियारों से कहर बरपा रही है.

खारकीव में करीब 3,000 भारतीय छात्र फंसे हुए हैं. यहां हो रही गोलाबारी में एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत के बाद से छात्रों का भय चरम पर है. वहीं फंसे एक भारतीय डाक्टर स्वाधीन ने पिछले दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से वहां के बदतर होते जा रहे हालात का जिक्र करते हुए कहा था कि वहां फंसे भारतीय छात्रों की हालत बहुत खराब है.

उन्होंने कहा था कि लोगों को खानेपीने की बहुत दिक्कत है. वे छात्रों को खाना दे रहे हैं लेकिन खुद उन के पास एक या दो दिन का ही खाना बचा था. उन्होंने कहा था कि अगर भारत सरकार ने जल्दी कोई ऐक्शन नहीं लिया तो छात्रों के लिए हालात बहुत खराब होने जा रहे हैं.

गौरतलब है कि खारकीव यूक्रेन की पश्चिमी सीमाओं से बहुत दूर है. इसलिए यहां से छात्रों को निकालना भी बहुत बड़ी चुनौती है. हवाई हमलों के बीच 1,500 किलोमीटर पैदल चल कर रोमानिया सीमा तक पहुंचना उन के लिए संभव नहीं है.

एक अनुमान के मुताबिक यूक्रेन में 20 हजार भारतीय छात्र हैं. ये वहां विभिन्न मैडिकल कालेजों में पढ़ रहे हैं. मैडिकल शिक्षा की कम लागत और आसान प्रवेश प्रक्रिया के कारण फिलीपींस और यूक्रेन को प्राथमिकता दी जाती है. भारतीय छात्रों को यूक्रेन से सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया रोमानिया, हंगरी और पोलैंड के भारतीय दूतावासों के संयुक्त प्रयासों से पूरी की जा रही है. इन छात्रों ने सोशल मीडिया पर मोदी सरकार की बहुत छीछालेदरी की तो वह हिली और अंत में अपने नागरिकों को वापस लाने में सहयोग दिया.

युद्ध बनाम जनयुद्ध 

युद्ध सिर्फ त्रासदियों को जन्म देता है. हम ने इतिहास में कई युद्ध देखेसुने और ?ोले हैं. उन युद्धों से कुछ भी ऐसा हासिल नहीं हुआ जिसे सहेजा जाए. उन की कड़वी यादें और उन से हुए भारी नुकसान ही इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों से अंकित हुए.

मौजूदा समय में पुतिन ने रूस के कपोलकाल्पनिक अस्थिर हो जाने के खतरे की संभावना मात्र के चलते एक लोकतांत्रिक व अपने से काफी कमजोर देश यूक्रेन को अस्थिर कर दिया है. सोचिए, एक शहर बसने में सदियां लग जाती हैं, सुंदर इमारतों के खड़े होने में संपत्तियां लुट जाती हैं, लेकिन उन के उजड़ने और बिखरने में मिनटभर भी नहीं लगा. आग में धूधू हो रहे कितने बेकुसूर यूक्रेनियन लोगों के घर उजड़ गए, कितने बेघर हो गए हैं, कितने मारे जा रहे हैं और कितने डर के साए में जी रहे हैं.

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रूस के और्थोडौक्स राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सनक ने दुनिया को महायुद्ध की स्थिति में ला खड़ा किया है. पुतिन एक ऐसा शासक है जो बिना जनता की राय के खुद को आजीवन सत्ता में बनाए रखने के लिए संविधान में संशोधन कर चुका है. उसी की राह पर चीन का राष्ट्रपति जिनपिंग भी वही संशोधन कर चुका है. वहीं, हमारे देश भारत के कई भारतीयों को डर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी राह जाते दिख रहे हैं, कहीं यहां भी वैसा ही न हो जाए.

दुनिया का हर तानाशाह ?ाठ बोलता है, ?ाठ नहीं बोलेगा तो तानाशाही नहीं चलेगी. हिटलर के ?ाठ से आज भी दुनियाभर के तानाशाह अपने लिए नाजीर सैट करते हैं. लेकिन वे सब यह भूल जाते हैं कि भ्रम की दुनिया एक समय तक ही रहती है.

जाहिर तौर पर पुतिन की आक्रामक हरकत से दुनियाभर में पुतिन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. यहां तक कि रूस की राजधानी मास्को में भी कई रशियन नागरिक बिना राष्ट्रवाद का उन्माद लिए अपने ही राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन करते देखे गए और नारे लगाते रहे कि ‘‘पुतिन 21वीं सदी ने नया ‘जार’ है.’’

पुतिन को नागरिकों का एक युद्ध बाहर से तो एक युद्ध उस की सेना को युद्धभूमि में यूक्रेनवासियों से ?ोलने को मिल रहा है. जिस दौरान रूस के सैनिकों ने अपने भयानक हथियारों से यूक्रेन पर चढ़ाई की तो यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अपनी भावुक अपील से यूक्रेन और दुनिया के नाम एक संदेश दिया. उन्होंने अपने संदेश में कहा, ‘‘दुनिया ने हमें अकेला छोड़ दिया है, लेकिन हम अपनी आजादी के लिए लड़ेंगे.’’ इस संदेश के बाद जेलेंस्की खुद भी युद्ध मोरचे में चले गए.

यह बात इतिहास में दर्ज होने जा रही है कि यह युद्ध ऐसा है जिस में तकरीबन निहत्थी, कमजोर सेना व छोटे से देश के मुकाबले दुनिया की दूसरी सब से बड़ी ताकत रूस पूरी दमखम से उतर गई और उस के कमांडर इन चीफ ने जरा भी नैतिकता नहीं बरती बल्कि परमाणु बम की धमकी तक दे डाली. इस के बावजूद यूक्रेन की जनता अपनी आजादी के लिए लगातार संघर्ष करती रही.

क्या ऐसा मंजर हम ने अतीत में शीतयुद्ध के दौर में हुए अमेरिका-वियतनाम युद्ध में नहीं देखा, जब दुनिया की सब से बड़ी महाशक्ति एक नवजात, कमजोर और अपनी नईनई आजादी का जश्न मना रहे देश वियतनाम को ध्वस्त करने पर आमादा थी. लेकिन वियतनामी लड़ाकुओं के आगे अंत में अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी. इतिहास में जब इस का जिक्र आता है तो अमेरिकी आक्रमणकारी और वियतनामी संघर्ष की गाथा ही कानों में सुनाई देती है.

आज गलियारों में ऐसी चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं कि कहीं पुतिन के लिए यह युद्ध ‘वाटरलू’ न साबित हो जाए. इस में सब से बड़ी बात यह कि यूक्रेन का युद्ध अब जनयुद्ध में तबदील हो गया है. यूक्रेन की जनता इस युद्ध में खुद ही शामिल हो गई है. यह यूक्रेन के लिए इमोशनल वार में बदल चुका है. इसी का परिणाम है कि पुतिन जो सोच रहे थे कि वे 2-3 दिनों के भीतर ही यूक्रेन के दो चीरे कर आगे बढ़ जाएंगे और यूक्रेन अपने हथियार डाल देगा, वह नहीं हो सका. रूस के दांत फिलहाल यूक्रेन की साहसी जनता व सेना के आगे खट्टे हो गए हैं. इस की फ्रस्ट्रेशन इसी से सम?ा जा सकती है कि अपने हिसाब से सबकुछ ठीक नहीं होने के चलते पुतिन को परमाणु बम की गीदड़ भभकी देनी पड़ गई.

मान भी लें कि अगर भविष्य में रूस यूक्रेन को कब्जा भी ले या सत्ता परिवर्तित कर किसी कठपुतली को वहां बैठा भी दे तो यह जनता को कतई मंजूर नहीं होगा.

अब परिणाम चाहे जो हो पर यह तय है कि इतिहास के पन्नों में जेलेंस्की और यूक्रेन का नाम अपनी आजादी के लिए लड़ने में शामिल होगा और पुतिन का नाम हत्यारे व आक्रमणकारी के तौर पर लिया जाने वाला है. साथ ही, इस युद्ध ने यह फिर साबित कर दिया है कि बड़ी बात, बड़ी ताकत वाले जीत ही जाएं, यह जरूरी नहीं. आज या कल, वे इतिहास के पन्नों में हारे हुए देखे जाते हैं.

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