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गरमियों में मूंग की खेती से मुनाफा कमाएं

Writer- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक)

गरमियों में विभिन्न दलहनी  फसलों में मूंग की खेती का विशेष स्थान है. जहां पानी की अच्छी व्यवस्था हो, वहां मूंग की खेती इस समय की जा सकती है. इस की खेती करने से अतिरिक्त आय, खेतों का खाली समय में सदुपयोग, भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार, पानी का सदुपयोग आदि के कई फायदे बताए गए हैं. साथ ही, यह भी बताया है कि रबी की दलहनी फसलों में हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो जाएगी.

जलवायु

मूंग में गरमी सहन करने की क्षमता अधिक होती है. इस की वृद्धि के लिए 27-35 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान अच्छा रहता है.

मिट्टी व खेत की तैयारी

उपजाऊ व दोमट या बलुई दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 6.3 से 7.3 तक हो और जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए.

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बोआई का उचित समय

25 फरवरी से 15 अप्रैल के पहले तक बोआई अवश्य कर दें. देर से बोआई करने से फूल व फलियां गरम हवा के कारण और वर्षा होने से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं.

उन्नतशील किस्में

पंत मूंग-2, नरेंद्र मूंग-1, मालवीय जाग्रति, सम्राट, जनप्रिया, विराट, मेहा आदि खास हैं. ये किस्में सिंचित इलाकों में गरमियों के मौसम में उगाई जाती हैं, जो 60 से 70 दिनों में पक कर तैयार हो जाती हैं. इस की पैदावार प्रति एकड़ 4-5 क्विंटल है.

बीज की मात्रा,

बीजोपचार और दूरी

गरमियों में 10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में डालना चाहिए. कूंड़ों मे 4-5 सैंटीमीटर की गहराई पर पंक्तिसे पंक्ति की दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 सैंटीमीटर पर बोने से जमाव ठीक होता है.

मूंग के बीजजनित रोगों से बचाव के लिए उपचार हेतु प्रति किलोग्राम बीज में 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा का प्रयोग करें. इस के बाद बोआई के 8-10 घंटे पहले 100 ग्राम गुड़ को आधा लिटर पानी में घोल कर गरम कर लें. ठंडा होने के बाद मूंग के राईजोबियम कल्चर के एक पैकेट को गुड़ वाले घोल में डाल कर मिला लें और उसे बीजों पर छिड़क कर हाथ से अच्छी तरह से मिला दें, जिस से प्रत्येक दाने पर टीका चिपक जाए. इस के बाद बीज को छाया में सुखा कर बोआई करनी चाहिए.

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खाद व उर्वरक प्रबंधन

मिट्टी जांच के आधार पर खाद व उर्वरक का प्रयोग करें. आमतौर पर 40 किलोग्राम डीएपी, 13 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश और 50 किलोग्राम फास्फोजिप्सम प्रति एकड़ में प्रयोग से उपज में विशेष वृद्धि होती है. बोआई के समय उर्वरक कूंड़ों में दें.

सिंचाई

भूमि के प्रकार, तापमान और हवा की तीव्रता पर सिंचाई निर्भर करती है. 3-4 सिंचाई सही होती हैं. पहली सिंचाई बोआई के तकरीबन 20 से 25 दिन के बाद करें. उस के बाद

सिंचाई जरूरत होने पर 10-15 दिन के अंतराल पर करें. बोआई के 50-55 दिन बाद सिंचाई न करें.

खरपतवार प्रबंधन

गरमी में खरपतवार कम उगते हैं, फिर भी बोआई के क्रांति काल (बोआई के 20-25 दिन बाद) तक फसल को खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी है.

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तुड़ाई

जब फलियां पक जाएं, तो उन की तुड़ाई कर सकते हैं. फलियां तोड़ने के बाद फसल को खेत में दबाने से यह हरी खाद का काम करती है और खेत को मजबूती मिलती है.

भारत भूमि युगे युगे: मोदी महिषासुर

छाती तक  झूलती श्वेत दाढ़ी, माथे पर चंदन का किंग साइज का तिलक और चेहरे से टपकता तथाकथित तेज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पौराणिक हिमालयी ऋषि और देवता होने का आभास कराते हैं. उन के कई अनुयायी तो उन्हें अवतार घोषित कर भी चुके हैं लेकिन चूंकि अभी देवलोक से इस आशय की पुष्टि करती कोई आकाशवाणी नहीं हुई है इसलिए शक तो बरकरार है कि वे ऋषिभेष में आम मानव हैं.

पश्चिम बंगाल के स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान मिदनापुर के वार्ड नंबर एक में एक पोस्टर लगा था जिस में मोदी और शाह देवी बनीं ममता बनर्जी के त्रिशूल के नीचे एक मायावी राक्षस महिषासुर, जिस ने रूप बदल कर देवी को 25 बार छकाया था, की जगह अधमरे से पड़े हैं.

भाजपाइयों ने बवाल तो मचाया लेकिन यह भूल गए कि यह शुरुआत तो उन्होंने ही विधानसभा चुनाव के दौरान ममता को शूर्पणखा और ताड़का कहते की थी. हालांकि, कौन क्या है यह तो विधानसभा के बाद निकाय चुनाव के नतीजे भी बता ही चुके हैं.

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विश्वास(घात)

कुमार विश्वास एक मंचीय कवि हैं जो इन दिनों अंदर घुसने के लिए बाहर से भगवा गैंग को खुला सपोर्ट कर रहे हैं. पेट पालने के लिए उन्होंने मोरारी बापू की तरह रामकथा बांचनी भी शुरू कर दी है. इस के पीछे इस मनुवादी कुंठित कवि की ख्वाहिश इतनी भर है कि भाजपा इन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा देने के बजाय राज्यसभा में लेले, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने उन्हें इसी मांग पर आम आदमी पार्टी से धकिया दिया था. तब से बिना नागा निरंतर तिलमिला रहे कुमार विश्वास अपने मुख्यमंत्री सखा को कोसने के नएनए मौके ईजाद करते रहते हैं.

विधानसभा चुनावों के वक्त जैसे ही आप पंजाब में वजनदार दिखी तो विश्वास घात पर उतरते केजरीवाल को आतंकवादी कह बैठे, जो भगवा गैंग की भाषा है, जिस की नजर में हर वह आदमी देशद्रोही, आतंकवादी, नक्सली, वामपंथी और नास्तिक है जो पोंगापंथ और दक्षिणपंथ से इत्तफाक नहीं रखता. लेकिन इधर मुद्दा कवि की हीनता, प्रतिशोध, तनाव, अनिद्रा, कुंठा, बेचैनी और जलन है.

हताश साध्वी

उमा भारती इन दिनों व्यथित हैं. उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा ने उन्हें स्टार प्रचारकों की लिस्ट में न रख कर जता दिया था कि अब उन्हें भी निर्देशक मंडल में शिफ्ट हो जाना चाहिए. सेहत भी उन का साथ नहीं दे रही है.

इसी खी झ में उन्होंने सार्वजानिक तौर पर बयान दे डाला कि सरकार मैं बनाती हूं लेकिन उसे चलाता कोई और है.

कल की तेजतर्रार, कट्टरवादी नेत्री से अपनी यह रानी दयमंती सरीखी दयनीय दशा बरदाश्त नहीं हो रही है. लिहाजा, उन्होंने एक खामखां की घोषणा कर दी कि 2024 का लोकसभा चुनाव वे लड़ेंगी.

इस से चिडि़या ने चूं तक नहीं की और न ही ऊपर के या दिल्ली के देवताओं ने फूल बरसाए. अब कौन उमा को सम झाए कि उन के दिन वाकई लद गए हैं और उन्हें भजन तपस्या के लिए हिमालय की तरफ प्रस्थान कर लेना चाहिए.

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मुसलिमविहीन यूपी

कौन आया कौन गया, यह तो 10 मार्च को पता चलेगा लेकिन मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने ऐलान कर दिया है कि अगर योगी आदित्यनाथ की सत्ता रही तो वे उत्तर प्रदेश छोड़ देंगे. मुनव्वर के बाद एक फिल्म स्टार केआरके ने तो एक कदम आगे बढ़ते देश छोड़ने का ही ऐलान कर दिया.

इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह चुनाव किस मुद्दे पर पूरी शिद्दत से लड़ा गया था. मुमकिन है बड़े पैमाने पर आम मुसलमान भी कहीं और पलायन की सोच रहा हो.

बिलाशक शायर और कलाकार दोनों निराशाजनक बात कह रहे हैं. उन्हें लोकतंत्र और संविधान में भरोसा रखना चाहिए. कुछ लोग अतिवादी हो सकते हैं लेकिन सभी लोग नहीं. इस तरह की धौंसधपट से कट्टरवादियों को शह ही मिलती है. शायरों, लेखकों, पत्रकारों और कलाकारों की जिम्मेदारी समाज को सही राह दिखाने की होती है, डर कर पीठ दिखाने की नहीं.

विधायक की बहू की दर्दनाक आपबीती

सौजन्य- मनोहर कहानियां

प्रस्तुति : सुनील वर्मा 

मेरा नाम नीतू सिंह ठाकुर है. मैं मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में गोटेगांव के एक प्रतिष्ठित परिवार की बेटी हूं. मेरे पिता चंद्रभान सिंह पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं. परिवार में मां के अलावा भाई, बहन सब हैं. पिता का अच्छा कारोबार है. कुल मिला कर परिवार हर तरह से संपन्न और खुशहाल है.

इसे अपनी खुशकिस्मती समझूं या बदकिस्मती कि एक प्रतिष्ठित परिवार की पढ़ीलिखी और सुंदर लड़की हूं. क्योंकि एमबीए की पढ़ाई करने के बाद जब मेरे मातापिता और परिवार के लोग मेरी शादी के लिए एक अच्छा वर और अच्छे खानदान की तलाश कर रहे थे, तभी मेरे लिए मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के एक सजातीय विधायक जालम सिंह के बेटे मणिनागेंद्र सिंह उर्फ मोनू सिंह का रिश्ता आया.

जालम सिंहजी के बड़े भाई प्रह्लाद पटेल भी बीजेपी के बड़े नेता हैं और इन दिनों केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री हैं.

यह 2016 की बात है, जब मेरी उम्र करीब 26 साल थी. मैं उन दिनों गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर नौकरी कर रही थी. जालम सिंहजी का परिवार गाडरवारा में रहता था.

मेरे मातापिता ने मुझे जालम सिंहजी के बेटे मोनू पटेल के बारे में बता कर कहा कि उन्हें रिश्ता पसंद है. अगर मैं आ कर एक बार लड़के से मिल कर पसंद कर लूं तो बात पक्की कर के वे मेरी शादी की जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाएंगे. हालांकि मेरे पिता खुद राजनीति में हैं, लेकिन पता नहीं क्यों मैं हमेशा से राजनीति से जुड़े लोगों से दूर रहना चाहती थी.

आत्मनिर्भर होने के बावजूद हमारे संस्कारों में यही सिखाया गया है कि मातापिता बेटी के लिए हमेशा अच्छा सोचते हैं. लिहाजा मैं मोनू से मिलने के लिए तैयार हो गई.

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जालम सिंह व उन के बड़े भाई प्रह्लाद पटेल के अलावा उन के परिवार के लोग हमारे घर आए. साथ में मेरे सपनों का राजकुमार मणिनागेंद्र सिंह उर्फ मोनू सिंह भी था. सुदर्शन व्यक्तित्व और बेहद आकर्षक कदकाठी वाले मोनू को पहली नजर में देखने के बाद तो मैं ने पंसद कर लिया.

लेकिन जब कुछ समय अकेले में हम दोनों की बात हुई तो मुझे लगा कि उस के मेरे विचार तथा व्यक्तित्व एकदम अलग हैं. कहीं भी मोनू के अंदर एक शरीफ इंसान और अच्छे व्यक्ति होने के लक्षण मुझे नहीं दिखे थे.

हालांकि मुलाकात के दौरान मुझे बताया गया कि वह एमिटी से पोस्टग्रैजुएट हैं. मेरे सामने मोनू को एक सोशल वर्कर के रूप में पेश किया गया था, जो महिलाओं के कल्याण लिए काम करता है.

मेरे घर वालों ने जब मोनू के परिवार के जाने के बाद मेरी राय पूछी तो मैं ने साफ कह दिया कि मुझे मोनू पसंद नही हैं और मुझे ये शादी नहीं करनी है.

सुन कर घर वाले हैरान रह गए. मुझ से पूछा गया तो मैं ने बता दिया कि मीडिया में मैं ने उस के बारे में काफी पढ़ा व सुना है कि उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हैं और वह सिगरेट, शराब पीने के अलावा रसिया किस्म का इंसान भी है.

इसलिए मैं ने साफ कह दिया कि मुझे वह अच्छा इंसान नहीं लगा. घर वालों ने समझा कि मैं बाहर रह कर नौकरी करती हूं तो कहीं ऐसा न हो कि किसी और को पसंद करती हूं. इसलिए घर वालों ने कुरेदकुरेद कर मुझ से पूछा, लेकिन ऐसी कोई बात थी नहीं तो क्या कहती.

तब घर वालों ने समझा कि शायद राजनीतिक परिवार का तेजतर्रार लड़का होने के कारण मैं ने मोनू को नापसंद किया है. मुझ पर हर तरह का दबाव डाला गया. मुझे बताया गया कि वह सिगरेट या शराब नहीं पीता है और उस पर जो मुकदमे हैं, वो सब राजनीति से प्रेरित हैं.

वही हुआ जैसा आमतौर पर भारतीय परिवारों की सामान्य लड़कियों के साथ होता है. मेरे घर वालों ने तरहतरह की बातें समझा कर मुझे मोनू से शादी करने के लिए हां कहने पर मजबूर कर दिया. मैं ने भी सोचा कि शायद मैं ही गलत हूं, वाकई मोनू एक अच्छा इंसान हो.

मेरे हां करने के तुरंत बाद 10 दिन के भीतर ही सगाई की डेट तय कर दी गई. पता नहीं क्यों, उस वक्त मेरे घर वाले एक अनजाने से दबाव में फैसले ले रहे थे.

मुझ से कहा गया कि मैं इस बारे में किसी को न बताऊं. अपने किसी रिश्तेदार से भी इस रिश्ते को ले कर चर्चा न करूं. सब कुछ इतनी जल्दबाजी में हो रहा था कि मैं समझ ही नहीं पा रही थी क्या हो रहा है.

जब भी पूछती तो कहा जाता कि राजनीति में ये सब करना पड़ता है. तर्क दिया जाता कि विरोधी लोग नहीं चाहेंगे कि ये शादी हो, अलगअलग पार्टियों से जुड़े 2 परिवारों में कोई रिश्ता बने. मातापिता तर्क देते कि हम नहीं चाहते कि ये रिश्ता टूटे. उसी समय उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर बंद करा दिया और मुझे एक नया नंबर दे दिया.

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रोज मुझ से यही कहा जाता कि मैं ने किसी को इस रिश्ते के बारे में बताया तो नहीं. इतना ही नहीं मेरे घर वालों ने एंगेजमेंट से एक दिन पहले ही हमारे रिश्तेदारों को भी सगाई के बारे में बताया. धूमधाम से सगाई का समारोह संपन्न हो गया, जिस में हमारे व मोनू के परिवार के चुनिंदा रिश्तेदार ही शामिल हुए थे.

सगाई होते ही मोनू का परिवार मेरे परिवार पर जल्द से जल्द शादी का दबाव बनाने लगा. लेकिन हमारी जन्मकुंडली के मिलान के कारण शादी की तिथि जल्द नहीं मिल रही थी. 6 महीने बाद शादी का एक अच्छा मुहूर्त निकल रहा था. दोनों परिवारों की सहमति से शादी की डेट भी फिक्स हो गई.

मैं सगाई के बाद वापस गुरुग्राम चली गई. सगाई के 15 दिन बाद मोनू ने मुझे भोपाल से फोन कर के कहा कि वह भोपाल में अपने पापा के सरकारी मकान पर है और मुझ से मिलना चाहता है. हालांकि मैं शादी से पहले इस तरह मिलना नहीं चाहती थी, लेकिन उन्होंने इतना दबाव डाला कि मुझे जाना पड़ा, आखिरकार हमारी शादी तो होनी ही थी.

लेकिन मैं जब भोपाल उन से मिलने गई तो मुझे जैसी आशंका थी पहली बार मोनू का असली चरित्र देखने को मिल ही गया. उन्होंने उस समय न सिर्फ शराब पी, बल्कि मुझसे जबरन शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की.

दबाव बना कर नौकरी छुड़वा दी

मैं ने किसी तरह अपनी इज्जत तो बचा ली, लेकिन इस के बाद मोनू मुझ से काफी नाराज हो गए थे. मैं ने कहा कि अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं यह शादी नहीं करूंगी.

मैं ने शादी से मना करने की धमकी दी तो उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि तुम मुझे जानती नहीं हो, शादी के लिए मना करने के बारे में सोचना भी मत. वरना परिवार बरबाद हो जाएगा तुम्हारा.

शारीरिक संबध न बनाने और शादी से इंकार की धमकी से शायद उन के अहं को चोट लगी थी. मैं सिर्फ शारीरिक रिश्ते के लिए शादी नहीं करना चाहती थी. कोई भी लड़की सिर्फ फिजिकल रिलेशन के लिए शादी नहीं करती है. उस के पीछे उस की कुछ भावनाएं भी होती हैं.

काफी बहस और विवाद के बाद मैं वापस गुरुग्राम लौट गई. एक दिन मैं गुरुग्राम में शौपिंग कर रही थी तो एक ऐसा वाकया हो गया, जिस से मुझे उन के बारे में और ज्यादा जानने का मौका मिला.

मुझ से मोनू का काल मिस हो गया. पलट कर फोन किया तो उन्होंने मुझे गालियां दीं और कहा कि तुम्हें पता नहीं कि किस के साथ तुम्हारा रिश्ता हुआ है. कहां आवारागर्दी करती फिरती हो.

मेरा दिमाग घूम गया ये सब सुन कर. मैं ने साफ बोल दिया कि मैं इस रिश्ते में नहीं रहना चाहती हूं. मैं इतनी निगरानी में नहीं रह सकती. मेरे घर वालों ने कभी मुझ से ऐसे बात नहीं की, आप भी नहीं कर सकते. मोनू ने फिर मुझे बहुत गालियां दीं और परिवार को बरबाद करने का भय दिखाया. मैं ने रिश्ता तोड़ने की बात की तो कहा गया कि अब ये शादी हो कर ही रहेगी चाहे जो हो जाए.

उन्होंने यहां तक कह दिया कि चाहे मैं तुम्हें शादी के एक दिन बाद छोड़ दूं, लेकिन शादी अब मैं कर के ही रहूंगा, ये मेरी जिद है.

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एक बार फिर मुझ पर हर तरह से दबाव डाला जाने लगा. मेरा परिवार भी मुझ पर दबाव बना रहा था जिस से मैं हार गई. अब मुझे लगता है कि अगर मैं ने तब हिम्मत दिखाई होती तो शायद हालात ऐसे न होते.

मेरे परिवार पर दबाव डाल कर 2 महीने बाद मोनू के परिवार ने मेरी गुरुग्राम की नौकरी छुड़वा दी और मैं नरसिंहपुर में मातापिता के पास आ गई.

हालांकि अभी हमारी शादी नहीं हुई थी. लेकिन मेरे घर पर आते ही उन्होंने मेरे कहीं भी आनेजाने पर रोक लगा दी. किसी से भी मिलने से मना कर दिया. मुझ पर नजर रखी जाने लगी. अगर मैं ने फोन पर किसी से बात की तो उस की डिटेल्स निकाल ली जाती थी और फिर सवाल किया जाता कि मैं ने क्यों और क्या बात की. वो मेरे फोन काल तक पर नजर रखने लगे.

मैं कभी बाजार जाती तो ड्राइवर को फोन कर के कहा जाता कि 10 मिनट हो गए हैं, वह कार में क्यों नहीं बैठी हैं. ये सब मुझे बहुत अजीब लग रहा था. मैं ने अपनी फैमिली से भी इस बारे में बात की और कहा कि मुझे ये रिश्ता ठीक नहीं लग रहा है.

लेकिन बात अब इतनी बढ़ चुकी थी कि घर वाले मुझ से कहते कि अगर रिश्ता टूटता है तो समाज में बदनामी होगी, गलत संदेश जाएगा. शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. मेरी मां को लग रहा था कि एक बार तय होने के बाद अब अगर ये रिश्ता टूटता है तो मेरे लिए ठीक नहीं होगा.

एंगेजमेंट से पहले तक मैं सोशल मीडिया पर नहीं थी. लेकिन मोनू ने मेरी फेसबुक आईडी बना कर अपने साथ मेरी तसवीरें उस में लगा दीं. मुझ से कहा कि मैं कभी भी अकेले तसवीर पोस्ट न करूं.

लेकिन शादी से करीब 3-4 महीने पहले मोनू की एक गर्लफ्रैंड ने फेसबुक मैसेंजर के जरिए मुझ से संपर्क किया. उस ने अजीब सी भद्दी भाषा में मुझ से बात की और कहा कि जिस से तेरी शादी हो रही है वो तुझे पत्नी मानता ही नहीं है. वो मेरा है और मेरा ही रहेगा.

मोनू की गर्लफ्रैंड ने मुझ से दोबारा भी संपर्क किया और मुझ से काफी बदतमीजी से बातें की, उस ने मुझे बताया कि कई सालों से उस का मेरे होने वाले पति मोनू से अफेयर चल रहा है. ऐसी कई बातें उस ने मुझे बताईं जो मेरे और मेरे होने वाले पति से जुड़ी थीं.

मैं ने इस बारे में मोनू से बात की तो उस ने कहा कि ऐसे बहुत से लोग हैं, जो नहीं चाहते कि ये रिश्ता रहे. इस के बाद उस ने मेरा फेसबुक अकाउंट भी बंद कर दिया.

मुझे काफी चीजें पता चल रही थीं, लेकिन मैं इस रिश्ते में इतना फंस चुकी थी कि मैं परिवार के भावनात्मक दबाव के कारण शादी से पीछे नहीं हट पाई. मैं ने इस उम्मीद में शादी कर ली कि हो सकता है आगे चल कर सब ठीक हो जाए.

2017 में आखिर वो दिन भी आ गया जब धूमधाम से हमारी शादी हुई. मेरी शादी में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत कई बड़े राजनेता शामिल हुए थे. सब ने शुभकामनाएं दी थीं, लेकिन न जाने क्यों मेरे अंतर्मन से आवाज आ रही थी कि मैं गलत जगह फंस गई हूं.

शादी के अगले दिन ही मुझे दानदहेज और शादी में रस्मों की कमी गिना कर मेरे पूरे परिवार को सब के सामने बेइज्जत किया गया. मैं ने व परिवार ने बरदाश्त कर लिया.

पति का चरित्र होने लगा उजागर

शादी के 10 दिन बाद मेरे पति मोनू मुझे मायके छोड़ने के बाद अपनी गर्लफ्रैंड्स से मिलने के लिए भोपाल चले गए. हमारे बीच बहुत बात नहीं हो रही थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि शादी के 10 दिन बाद ही उन्होंने मुझ से बात करनी क्यों बंद कर दी है, लेकिन सच यह था कि वह अपनी गर्लफ्रैंड्स के साथ थे और उन के पास मेरे लिए समय ही नहीं था.

मेरे सामने मोनू के चरित्र की एकएक सच्चाई उजागर हो रही थी. मायके से ससुराल आने पर मैं ने पति से साफ कहा कि आप अच्छे से रहिए लेकिन मुझे तलाक दे दीजिए. लेकिन मुझे धमकी दे कर कह दिया गया कि भूल कर भी मैं तलाक के बारे में बात न करूं.

दोबारा ससुराल आने के बाद से मुझे सब कुछ बहुत अजीब लगा. मेरे पति पूरा दिन सोते, शाम को उठते, दफ्तर जा कर दारू पीते और लेट नाइट घर आते और सुबह तक जागते. मैं 2 घंटे भी नहीं सो पा रही थी.

रात में मुझे उन के साथ जागना पड़ता और दिन में परिवार के साथ. जब तक वो गहरी नींद में न सो जाएं, मुझे झपकी लेने की भी इजाजत नहीं थी. मेरा पूरा रूटीन खराब हो गया था, इस का असर मेरी सेहत पर पड़ रहा था, मेरा वजन कम हो गया. मैं मानसिक अवसाद में आ गई.

ये बाहर से दूसरी लड़कियों के साथ फिजिकल हो कर आते और फिर घर में मेरे साथ रिश्ते बनाते. इस से मुझे इंफेक्शन हो गया. डाक्टर ने कहा कि अब मैं 6 महीनों तक कंसीव नहीं कर पाऊंगी.

डर मेरे भीतर तक बैठ गया था. मैं अचानक सो कर उठ जाती थी. मुझे पता नहीं चल पा रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है.

हमारे बीच संबंध सिर्फ शारीरिक थे. वो भी जबरदस्ती के. अपनी मर्दाना कमजोरी का गुस्सा वो मेरे जिस्म पर निकालते. मैं खुश थी या नहीं, इस की उन्हें कोई परवाह नहीं थी. मैं साल भर उन के साथ रही, उन्होंने एक बार भी मेरी आंखों में नहीं देखा.

शादी के बाद मुझे किसी से बात नहीं करने दी गई. एक बार भी मैं अकेले घर से बाहर नहीं निकली. मैं इतनी कमजोर हो गई थी कि मुझे सही से दिख भी नहीं रहा था. जबलपुर के एक अस्पताल में मुझे भरती किया गया.

मैं 10 दिनों तक अस्पताल में रही. मेरी बैकबोन में इंजेक्शन दिया गया, इस की वजह से मैं 2 महीनों तक बैठ नहीं पाई. ये सब शादी के 4 महीनों के भीतर हुआ. मुझे दिल्ली के एक साइकियाट्रिस्ट के पास ले जाया गया था, लेकिन उस से भी मैं अकेले बात नहीं कर पाई थी.

मेरा फोन भी उन्होंने ले लिया था. कभी किसी का मैसेज आता तो वही जवाब देते. मैं जब भी अपनी सास से उन के व्यवहार के बारे में बात करती तो वो यही कहतीं, ‘तुम उसे समझो और उस के साथ एडजस्ट करो.’

मैं कभी भी अपने पति से अपने रिश्ते के बारे में कोई बात कर ही नहीं पाई. मैं कुछ भी बोलती तो वो मुझ से मारपीट करते और छोड़ कर भोपाल अपनी गर्लफ्रैंड्स के पास चले जाते. मेरे पास बात करने के लिए कोई नहीं था. मैं बिलकुल अकेली हो गई थी.

घर में वो मझे एक नौकर की तरह इस्तेमाल करते. बाहर सब को यह बताते कि ये शादी उन की मरजी से नहीं हुई है. वो यह दिखाने की कोशिश करते कि उन की शादी हुई ही नहीं है.

शादी के 6-7 महीनों तक मैं ने एडजस्ट करने की कोशिश की. मैं बहुत बीमार रहने लगी. अवसाद मुझ पर हावी होता जा रहा था. मुझ पर बच्चा पैदा करने का दबाव बनाया जा रहा था, लेकिन जब तक मेरे रिश्ते पति से बेहतर न हों, मैं इसे और आगे बढ़ाना नहीं चाह रही थी.

धीरेधीरे इन की दूसरी गर्लफ्रैंड्स ने मुझ से संपर्क करना शुरू किया. हर बार जब ऐसा हुआ और मैं ने उन से ये बताया तो मुझे मारापीटा गया. ससुराल में किसी ने भी मेरा पक्ष लेने की कोशिश नहीं की. इन से जुड़ी लड़कियों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि यहां बयां नहीं की जा सकती. मेरे फोन में हजारों तसवीरें हैं, जिन में ये अपनी अलगअलग गर्लफ्रैंड्स के साथ हैं.

पति की गर्लफ्रैंड्स भेजती रहती थीं तसवीरें

ये सभी गर्लफ्रैंड्स 20-22 साल की थीं, जो शायद ड्रग्स या पैसे के लिए इन के पास आई हों. एक के बाद एक मुझे मैसेज करतीं, इन्हें पता चलता और मुझे बहुत मारापीटा जाता.

मैं सोचती कि इस में मेरी क्या गलती है मैं ने तो कभी किसी से बात करने की या कुछ जानने की कोशिश नहीं की, फिर ये सब क्यों हो रहा है. मेरा मायके जाना बंद करा दिया.

ये गर्लफ्रैंड्स के साथ ड्रग्स लेते. उन की बौडी पर रख कर ड्रग्स लेते और वो मुझे ये बात बतातीं. मैं ये सोच नहीं पा रही थी कि इस सब से मेरा क्या संबंध है, मुझे इतना प्रताडि़त क्यों किया जा रहा है. शादी से पहले मुझे पता नहीं था कि ये ऐसा भी करते हैं.

मैं ने अपने ससुर से बात की तो हमेशा उन्होंने यही कहा कि सब ठीक हो जाएगा. शादी के बाद ही मुझे पता चला कि शराब और ड्रग्स लेना इन की रोज की आदत है.

शादी के बाद मेरा पहला बर्थडे था. ये मेरे साथ नहीं थे, अपनी गर्लफ्रैंड के साथ थे. मुझे इस बारे में पता चला तो फिर मुझे बहुत मारापीटा गया.

मैं ने कभी इन्हें गर्लफ्रैंड्स से बात करने से नहीं रोका, मेरी हिम्मत ही नहीं हुई, क्योंकि मुझे पता था कि अगर मैं कुछ बोलूंगी तो फिर मेरे साथ मारपीट की जाएगी.

हमारा रिश्ता ऐसा था कि ये बस फिजिकल होने के लिए मेरे साथ होते. उस में भी बस जबरदस्ती ही करते. मैं ने न किया तो कभी उस का सम्मान नहीं किया गया. मैं न करती तो इतनी जोर से मेरा गला दबाया जाता कि मैं सांस तक नहीं ले पाती.

सब को पता था कि मेरे साथ गलत हो रहा है, लेकिन परिवार में किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की. मुझ से कहा जाता कि उसे जो करना है, वो करेगा. मुझे ही सहना होगा. रात भर मैं प्रताडि़त होती और दिन भर घर का काम संभालती.

पहले मुझे लग रहा था कि मेरे पति ही गलत हैं, फिर लगा कि इस में सब शामिल हैं. मेरे लिए सब से दर्दनाक यह था कि परिवार की कोई महिला कभी मेरी मदद के लिए आगे नहीं आई. उस घर में मेरी हमउम्र ननदें व अन्य लड़कियां थीं, लेकिन उन्होंने भी कभी मेरे दर्द को नहीं समझा.

शिकायत करने पर ससुराल वालों ने इसे कुंडली का दोष बता दिया. मुझ से कहा कि किसी ने टोटका किया है.

इन सारी चीजों से गुजरने के बाद मैं ने एक बार अपने ससुर जालम सिंह से हिम्मत कर के उन्हें सारी बातें बताईं. उन्होंने मुझ से कहा कि ये सब राजनीति में होता रहता है.

ससुराल छोड़ कर मायके आने के बाद पहली दीवाली पर मैं ने अपने मायके में ससुराल वालों को घर पर मिलने बुलाया था, लेकिन मेरे ससुर के अलावा कोई नहीं आया. मैं ने अपने ससुर से तलाक के लिए कहा तो उन्होंने मुझे धमकी दी कि इस बार तो तुम्हारी जुबान पर तलाक का नाम आ गया आगे से आया तो मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूं, पता नहीं.

एक दादी थीं, जो मुझ से कहती थीं कि तू यहां रहेगी तो मर जाएगी. यहां से भाग जा, लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई. मैं दरवाजे की तरफ उम्मीद से देखती थी कि कोई आए और मुझे इस नरक से निकाल ले.

जब मुझे लगा कि अब मैं यहां जिंदा नहीं रह पाऊंगी या मेरे पति ही मुझे मार देंगे तो मैं ने बहुत हिम्मत कर के अपने भाई को अपनी ससुराल बुलाया. सिर्फ अपनी डिग्री और दस्तावेज लिए और शादी के 12 महीने बाद बाद एक दिन मौका पा कर उस घर से हमेशा के लिए निकल गई.

मायके आ कर मिला सुकून

मेरे पूरे जिस्म पर जख्म थे. मैं इतना कमजोर थी कि बिना सहारे के खड़ी नहीं हो पाती थी. मेरे चेहरे पर भी निशान थे. मेरी मां ये सब जान कर बहुत दुखी हुईं. अपने घर पहुंच कर 2 दिन तक बस सोती रही. मैं ने जब अपने पिता को ये सब बताया तो वह बुरी तरह टूट गए.

उन्होंने सोचा नहीं था कि मेरे साथ ये सब हुआ है. वो बस खामोश हो गए. सिर्फ इतना ही कहा कि जो भी हो, हम तुम्हारे साथ हैं. मैं डेढ़ साल अपने मायके में रही. फिर हिम्मत कर के नौकरी करने दिल्ली आ गई. अब मैं एक छोटी सी नौकरी कर रही हूं. किसी भी तरह इस रिश्ते से निकलने की कोशिश कर रही हूं.

मेरी मां अब अवसाद में हैं. मेरे पिता बीमार हैं. मेरे खराब रिश्ते का उन पर गहरा असर हुआ है. मैं उन का ध्यान रखने की कोशिश कर रही हूं.

मुझे शादी के बाद ही ये पता चला कि मेरे पति मोनू सिंह पर 45 आपराधिक मुकदमे हैं, जिन में हत्या और हत्या के प्रयास जैसे आरोप भी शामिल हैं. मुझ से उन की एजूकेशन के बारे में भी झूठ बोला गया था. महिलाओं की समाजसेवा के नाम पर वह उन की अस्मत से खिलवाड़ करते हैं.

अब मैं अकेले दिल्ली में रह कर नौकरी करती हूं और अदालत में तलाक के लिए लड़ रही हूं. मैं बहुत हिम्मत कर के अपनी कहानी बता रही हूं. मेरी इस कहानी से आप लोग विचलित हो सकते हैं, लेकिन ये मेरा और हमारे समाज का सच है.

मैं ने नरसिंहपुर में अपने ससुराल वालों के खिलाफ अपने उत्पीड़न, दहेज उत्पीड़न व अपने साथ हुई घरेलू हिंसा के लिए कई बार एफआईआर कराने की कोशिश की. मेरी शिकायत तो ली गई, लेकिन उस पर कभी कोई काररवाई नहीं हुई.

मैं ने भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं को संदेश दिए और अपने मामले की तरफ ध्यान खींचने की कोशिश की, लेकिन सब ने नजरअंदाज कर दिया. मैं ने तो प्रधानमंत्रीजी को भी पत्र लिख कर पूछा कि क्या इस देश में 2 कानून हैं. एक आम आदमी के लिए और दूसरा सत्ता में बैठे लोगों के लिए.

दिल्ली के थाने में कराई रिपोर्ट दर्ज

मैं ने दिल्ली की एक अदालत में अपने पति से तलाक लेने के लिए आवेदन किया हुआ है. सवा साल हो गया है, लेकिन कोई पहल नहीं हुई है. मेरी उम्मीद पूरी तरह से टूट गई है. शुरुआत में सिर्फ एक साल मैं अपनी ससुराल में थी, उस के बाद डेढ़ साल मैं अपने मायके में रही.

मैं सब कुछ छोड़ कर अपने मायके आ गई, जौब की तैयारी की, 3 साल बाद मैं सब छोड़ कर गुड़गांव चली आई. और अब दिल्ली में नौकरी करते हुए अपने लिए इंसाफ की लडाई लड़ रही हूं.

ससुर और सास सुमन पटेल को कई बार बताया लेकिन उन्होंने मोनू का ही साथ दिया. मैं ने दिल्ली आने के बाद सब से पहले 17 नवंबर, 2020 को दिल्ली के वसंत कुंज थाने में बड़े ससुर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल, ससुर विधायक जालम सिंह पटेल, पति मोनू पटेल, सास सुमन सिंह पटेल, बड़ी सास पुष्पलता पटेल, ननद फलित सिंह पटेल, देवर प्रबल पटेल के खिलाफ दहेज उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी.

इसी दौरान इन्हीं लोगों के खिलाफ घरेलू हिंसा का एक आवेदन भी दिया गया था. मैं ने दिल्ली में घरेलू हिंसा व दहेज उत्पीड़न का जो मामला दर्ज कराया था, उस में कोई काररवाई नहीं हुई है. इस के बाद मैं ने फिर 5 जनवरी, 2022 को महिला अत्याचार निवारण सेल साउथ दिल्ली के एसीपी को शिकायत की.

पूरी तरह निराश हो कर अब मैं अपनी मीडिया के सामने इंसाफ की गुहार ले कर आई हूं और जानना चाहती हूं कि आखिर मेरा दोष क्या है.

बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार को बताना चाहिए कि बेटी को किस से बचाना है और कैसे बचाना है. वो अपनी गर्लफ्रैंड्स के साथ हैं. उन की ड्रग्स पार्टियां चल रही हैं, लेकिन मेरे 6 बेशकीमती साल इस खराब रिश्ते में गुजर गए.

कितनी ही बार आत्महत्या का खयाल मेरे मन में आया था. मैं ने हर दिन हालात से जंग लड़ी है. मैं जानती हूं कि ये लड़ाई बहुत लंबी है और मुझे बहुत हौसले की जरूरत होगी.

अब मैं अपनी ये कहानी इसलिए बता रही हूं ताकि किसी और लड़की के साथ ऐसा न हो. कोई और लड़की ऐसे खराब रिश्ते में हो तो निकलने की कोशिश करे. सरकार और समाज उसे न्याय दिलाने के लिए आगे आए.

(नीतू सिंह ठाकुर द्वारा सुनाई गई आपबीती पर आधारित)

घर पर यूं बनाएं रसीले चावल और टमाटरी राजमा

रसीले चावल

सामग्री :

1 कप पके चावल, 1 कप कटे फल (संतरा, सेब, अनार, कीवी, चीकू, अनन्नास, अमरूद, पपीता और केला), 1/2 कप क्रीम, 1 बड़ा चम्मच चीनी पाउडर, 1 बड़ा चम्मच शहद, 1/4 बड़ा चम्मच इलायची पाउडर.

विधि :

  • फलों को धो कर मनचाहे आकार में काट लें.
  • एक बड़े बाउल में पके चावल लें. दूसरे बाउल में कटे फल, चीनी पाउडर, इलायची पाउडर, शहद व क्रीम एकसाथ मिला लें.
  • अब चावलों को फलों के साथ मिलाएं. तैयार फ्रूटी राइस यानी रसीले चावल पर अनार के दाने या अन्य फल सजा कर लंच बौक्स में दें.

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टमाटरी राजमा

सामग्री :

1/2 कप मैदा, 1/2 कप मक्की का आटा, 2 बड़े चम्मच तेल, 1 कप उबले राजमा, 1 प्याज, 2 टमाटर, 1-2 कली लहसुन, 1 बड़ा चम्मच तेल, 1 हरी मिर्च, 1 बड़ा चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि :

  • मैदा, मक्की का आटा व नमक छान लें.
  • इस में तेल डाल कर गूंध लें व एक बड़ी सी पतली रोटी बेल लें.
  • गरम तवे पर इसे दोनों तरफ से सेंक लें.
  • कड़ाही में तेल गरम कर प्याज, लहसुन भूनें व टमाटर डाल कर पकाएं.
  • इस में राजमा स्वादानुसार नमक, हरीमिर्च मिलाएं व आंच से उतारें.
  • आधी रोटी में राजमा की परत लगाएं और बची आधी रोटी से ढक दें व गरम तवे पर दोनों तरफ मक्खन लगा कर सेंकें. बीच से आधा काट कर दें.

सब्जी के त्रिकोण

सामग्री :

1 कप व्हाइट सौस, 2 कप सब्जियां (गाजर, पत्तागोभी, शिमलामिर्च, ब्रोकली, पालक, बींस, प्याज, टमाटर), 1/2 कप मैश पनीर, 1/4 बड़ा चम्मच कालीमिर्च पाउडर, 1 कप मैदा, 1 बड़ा चम्मच तेल तलने के लिए, नमक स्वादानुसार.

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विधि :

  • मैदे में नमक व2 बडे़ चम्मच तेल डाल कर गूंध लें.
  • ब्रोकली, प्याज, गाजर, पत्तागोभी, बींस और शिमलामिर्च को1 बड़े चम्मच तेल में हलका पका लें. नमक व कालीमिर्च पाउडर मिला लें.
  • अब इस में टमाटर व पनीर को मिला लें.
  • इन सभी पकी सब्जियों को व्हाइट सौस में मिलाएं.
  • मैदे की छोटी गोलियां बनाएं व बेल लें, बीच से आधा काट कर तिकोना मोड़ लें.
  • इस त्रिकोण में सब्जियां भर कर किनारों पर बंद करें व गरम तेल में तल लें.
  • सब्जी के त्रिकोण तैयार हैं.

 

भाजपाई हथकंडे, कांग्रेसी मौन

जहां भारतीय जनता पार्टी और उस का पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बिना बड़े नेताओं के हर समय आम जनता के बीच बने रहते हैं, वहां कांग्रेस, आम जनता से दूर, अपने बड़े और बूढ़े नेताओं की खैरखबर में लगी रहती है. पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा में हार और उत्तर प्रदेश में नाममात्र की पार्टी रह जाने के बाद मातमपुरसी के लिए कांग्रेस की जो बैठक हुई उस में नेताओं ने अपने ख़याल न रखे जाने की शिकायत ज्यादा की, पार्टी के प्रभावी कार्यक्रमों की कमी की कम.

आम जनता को एक राजनीतिक दल की जरूरत इसलिए होती है कि देश का काम सुचारु रूप से चल सके और सरकार हर कोने पर उसे सहायता करती दिखाई दे. पिछले 40-50 सालों में कांग्रेस ने राज किया पर कभी भी जनता के साथ चलने का काम नहीं किया. चुनाव जीते तो इसलिए कि उस के पास कुछ इतिहास पुरुष थे जो कांग्रेस की पूंजी थे पर जैसेजैसे वे इतिहास पुरुष किताबों की कब्रों में दफन होते गए, उन ‘कंकालों’ की जगह म्यूजियमों में रह गई, चुनावी रणक्षेत्रों में नहीं.

भारतीय जनता पार्टी ने पौराणिक पुरुषस्त्री खोज कर निकाले और इस के साथ उन को पूजापाठ, सुखी जीवन, भविष्य और जीने की कला से जोड़ दिया गया. भाजपा के पास लाखों पुजारी हैं जो बिना पैसे लिए काम करते हैं. उन्हें पैसा तो भक्त अपनेआप देते हैं. उधर कांग्रेसी नेता कानूनों के सहारे जनता पर हावी होते चले गए. जनता को कांग्रेस के नेताओं की जरूरत कांग्रेस सरकार के बनाए व बुने मकडज़ाल से निकालने के लिए होती थी. कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान सैकड़ों कानून बनवाए जिन्होंने जनता का गला पकड़ रखा है और नेता अगर कुछ काम करते थे तो सिर्फ अपने कुछ चहेतों को इन जाल से निकालने का करते थे.

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आज भी कांग्रेस समझ नहीं पा रही है कि उस की दुर्गति नेताओं की अवहेलना से हुई है या जनता को भूल जाने से. कांग्रेस आज भी भाजपा के बाद सब से बड़ी पार्टी है पर उस का एजेंडा क्या है, यह सवाल उस के खुद के लिए मुंहबाए खड़ा है. सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को सिरमाथे पर रखना तो उद्देश्य नहीं हो सकता. उत्तर प्रदेश में दिए नारे ‘लडक़ी हूं, लड़ सकती हूं’ का मतलब कुछ होता अगर कांग्रेस राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तमिलनाडू, जहां सत्ता में है या भागीदार है, में इस प्रोग्राम को लागू करती या करवा पाती.

भाजपा इस के विपरीत हर एकादशी, अमावस्थ्या, पूर्णिमा, दशमी, चौदस… यानी लगभग हर रोज कुछ न कुछ तमाशा अपने मंदिरों में कराती रहती है. ‘जय बम बोले’, ‘जय श्री राम’, ‘जय माता दी’ आदि नारों के साथ ‘जय भाजपा’ अपनेआप निकलता है.

कांग्रेस पहले समाज का परिवर्तन कर रही थी. आज भाजपा उस के परिवर्तन पर सीमेंट का लेप लगा रही है. और कांग्रेस चुप है. उसे कोई चिंता नहीं. वह विरोध नहीं कर रही कि दिए गए आरक्षण को खत्म किया जा रहा है, औरतों को संस्कृति के नाम पर पूजापाठी बनाया जा रहा है, जनता के टैक्स का पैसा भगवा सरकार द्वारा मंदिरों, घाटों और आरतियों में फूंका जा रहा है.

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कांग्रेस में चाहे ऊंची जातियों के नेता सदा भरे रहे पर उन में से काफी उदार थे जो संवैधानिक मूल्यों को समझते थे. आज उन की दूसरीतीसरी पीढ़ी समाज से कट गई है. वह ???……??? के दंभ में गरीबों से बहुत दूर हो गई है. नाक पर फुनैल रख कर चुनाव से मात्र 10 दिनों पहले गंदी गलियों की पदयात्रा से जीत नहीं मिलती. जीत तो उन पुजारियों से मिलती है जो अछूतों के घरों में भी जाते रहते हैं और दक्षिणा में उन से पैसा भी बनाते हैं और वोट भी.

कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया कि यह आम गरीब, सताए जाने वालों की पार्टी है और रहेगी. कमेटी को तो गांधी परिवार को कोसने के अलावा कुछ नहीं मिला.

शक: भाग 2- क्या शादीशुदा रेखा किसी और से प्रेम करती थी?

कई हफ्तों तक राकेश ने रेखा की गतिविधियों पर सूक्ष्म नजर रखी, मन ही मन पड़ताल की, उस की अलमारी टटोली, पर ऐसा कोई सुबूत हाथ नहीं लगा जिसे वह रेखा के सामने रख देता. आखिर एक रात को खाना खाते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘यह राजीव कौन है?’’

‘‘मेरे साथ बैंक में काम करता है,’’ रेखा ने जवाब दिया.

‘‘तुम इसे कब से जानती हो?’’ राकेश ने रोटी का टुकड़ा प्लेट में ही रख दिया.

‘‘इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हो?’’ रेखा ने पति की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘इसलिए कि आजकल यह अकसर तुम्हारे साथ दिखाई देता है,’’ राकेश ने तनिक तेज स्वर में कहा.

‘‘हम बैंककर्मी 8-10 घंटे साथसाथ काम करते हैं. जाहिर है, कभी चायकौफी भी साथ बैठ कर पी लेते हैं,’’ रेखा ने ठंडे स्वर में कहा.

राकेश खाना खाते हुए सोचने लगा कि दफ्तर में सहयोगियों का आपस में हंसनाबोलना, साथसाथ चाय पीना, लंच करना तो चलता ही रहता है, इस का गलत मतलब नहीं निकालना चाहिए और गृहस्थी की तो नींव ही विश्वास पर टिकी है. उसे रेखा पर शक नहीं करना चाहिए. आखिर वह घर और दफ्तर दोनों की जिम्मेदारी कितनी कुशलता से निभाती है.

राकेश ने अपनी शादी से पहले ही यह तय कर लिया था कि वह अपने अहं को कभी बैडरूम में नहीं ले जाएगा. टूटने की हद तक बात को बढ़ा देना किसी भी रिश्ते के लिए नुकसानदेह होता है और वैवाहिक संबंधों की तो नींव ही सैक्स पर आधारित है. सैक्स उतना ही जरूरी है जितना कि पेड़पौधे को पनपने के लिए खादपानी जरूरी है. सो, राकेश ने रेखा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘चलो, सब सोते हैं.’’

रेखा भी बिना किसी विरोध के तुरंत मोनू को गोदी में उठा कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई.

सुबह जब राकेश की आंख खुली तो रेखा कमरे में नहीं थी.

राकेश बाथरूम से फारिग हो कर जब ड्राइंगरूम में आया तो देखा, रेखा धीरेधीरे किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस के बातचीत का स्वर इतना धीमा था कि राकेश को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. राकेश को देखते ही रेखा ने फोन काट दिया और बोली, ‘‘अरे, आप उठ गए, मैं तो कौफी के लिए आप का इंतजार कर रही थी.’’

रेखा रसोई की तरफ चली गई और राकेश आरामकुरसी पर बैठ कर अखबार की खबरें देखने लगा. कुछ ही क्षणों बाद रेखा ने राकेश की तरफ कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह लो, कौफी.’’

राकेश को कौफी का कप दे कर रेखा अपने कमरे की तरफ बढ़ गई. राकेश ने पत्नी से पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

रेखा ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘रेखा, तुम ने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया, यह सुबहसुबह किस का फोन था?’’ राकेश ने कमरे में आते हुए पूछा.

‘‘मेरे बैंक की एक महिला कर्मचारी का फोन था. आज वह बैंक नहीं आएगी, यही बताने के लिए उस ने फोन किया था,’’ रेखा ने कहा.

‘‘पर तुम इतनी उखड़ीउखड़ी क्यों हो?’’ राकेश ने पत्नी की तरफ ध्यानपूर्वक देखते हुए पूछा.

‘‘तुम मेरे दफ्तर के तनाव को नहीं सम?ा सकते,’’ रेखा ने शांत स्वर में जवाब दिया.

‘‘दफ्तर में कोई तनाव है तो उसे कहो, मिलजुल कर ही घरबाहर की समस्याओं से निबटा जा सकता है,’’ राकेश ने पत्नी के पास खड़े होते हुए कहा.

रेखा शून्य में ताकती रही, कुछ बोली नहीं. फिर अपने दैनिक कार्यों को निबटाने में लग गई.

राकेश ने घड़ी देखी और वह जल्दी से बाथरूम में घुस गया. सुबह का समय कामकाजी दंपतियों के लिए व्यस्त होता है.

धीरेधीरे एक हफ्ता बीत गया. इस बीच राकेश ने रेखा की मनपसंद फिल्म के टिकट ला कर उसे अचानक चौंका दिया और एक शाम उस की मनपसंद का खाना भी उसे होटल में खिलाया. वह  दांपत्य में आई एकरसता को तोड़ देने में विश्वास करता था. राकेश ने एकएक ईंट जोड़ कर अपनी गृहस्थी की इमारत खड़ी की थी, कभी पत्नी का दिल न दुखाया था और न ही किसी सुखसुविधा की कमी होने दी थी.

एक दिन राकेश गुस्से से भरा हुआ दफ्तर से लौटा और आते ही रेखा से बोला, ‘‘यह राजीव तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था?’’

‘‘हां, कैरम और बैडमिंटन में वह मेरा पार्टनर होता था. वह मेरा अच्छा दोस्त था,’’ रेखा ने निर्विकार भाव से कहा.

‘‘सिर्फ अच्छा दोस्त…’’ अर्थपूर्ण नजरों से रेखा को घूरते हुए राकेश बोला, ‘‘और आजकल तुम दोनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी?’’

‘‘खिचड़ी, कैसी खिचड़ी? यह महज एक इत्तफाक है कि शादी के 3 वर्षों बाद वह अचानक उसी बैंक में तबादला हो कर आ गया जहां मैं काम करती हूं. बस और कुछ नहीं,’’ रेखा ने संयत स्वर में जवाब दिया.

‘‘तुम जानती हो मैं उसे नापसंद करता हूं,’’ राकेश ने कहा.

‘‘यह जरूरी तो नहीं कि तुम मेरे सभी बैंककर्मियों को पसंद करो,’’ रेखा ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘रे…खा…’’ राकेश चीखा.

‘‘चीखो मत, मैं तुम्हारी पत्नी हूं, कोई निर्जीव किताब नहीं हूं. राकेश, आज मु?ो इस बात का गहरा अफसोस हो रहा है कि मैं तुम्हारी कल्पना की पोषण मूर्ति नहीं बन सकी,’’ रेखा का स्वर शांत था.

‘‘पहेलियां मत बुझाओ,’’ राकेश बोला, ‘‘जो कहना चाहती हो, साफसाफ कहो.’’

‘‘सबकुछ साफ है, तुम अपने गुस्से के कारण साफ नहीं देख पा रहे हो.’’

दोनों कुछ देर चुप बैठे रहे, फिर रेखा उठी और अपने घरेलू काम में व्यस्त हो गई.

कई दिन ठीक से गुजर गए. एक शाम राकेश दफ्तर से लौटा तो रेखा घर पर नहीं थी. मोनू घर की नौकरानी के साथ था. राकेश ने नौकरानी से पूछा, ‘‘मोनू ने दूध पिया?’’

‘‘नहीं साहब, मोनू मेरे हाथ से आज दूध ही नहीं पी रहा है,’’ विमला ने दूध से भरी बोतल उठा कर दिखाते हुए कहा.

राकेश ने मोनू को गोद में उठा लिया और विमला के हाथ से दूध की बोतल ले कर मोनू को दूध पिलाने लगा. अपने पिता की गोद में लेटा मोनू खुश था और बालसुलभ चंचलता के साथ दूध पी रहा था. राकेश ने घड़ी पर नजर डाली और सोचने लगा, अब तक तो रेखा को घर पहुंच जाना चाहिए. रोज तो वह इस समय तक घर आ जाती है. तभी फोन की घंटी बजी. राकेश ने रिसीवर उठाया, उधर से दीदी की आवाज आई, ‘‘भैया, रेखा घर पहुंच गई?’’

‘‘दीदी, क्या रेखा तुम्हारे पास गई थी?’’ राकेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां, उसे मैं ने बुलाया था. यहां से आधा घंटा पहले गई है, पहुंचती ही होगी,’’ कह कर उधर से फोन कट गया.

अपनी दीदी का फोन सुन कर राकेश का गुस्सा शांत हो गया और वह चिंता में डूब गया. दीदी ने रेखा को क्यों बुलाया था और रेखा भी उसे बताए बगैर दीदी के पास चली गई. आखिर रेखा के मन में क्या उधेड़बुन चल

रही है, क्या राजीव को ले कर कोई समस्या है?

तभी रेखा ने घर में प्रवेश किया, वह बेहद थकी हुई और तनाव में थी. उस ने आते ही अलमारी खोल कर उस में अपना पर्स टांगा और गाउन उठा कर बाथरूम में घुस गई.

रेखा नहाधो कर निकलती सीधी रसोई में पहुंची. उस के सधे हाथ जल्दीजल्दी रात के खाने का प्रबंध करने लगे. राकेश ने कुछ देर इंतजार किया कि रेखा उसे खुद ही दीदी के घर जाने का कारण बता देगी, परंतु वह चुप थी.

राकेश ने रसेई में आ कर पूछा, ‘‘आज तुम दीदी के यहां गई थीं?’’

रेखा ने आश्चर्य से पति की तरफ देखा क्योंकि उसे यह उम्मीद नहीं थी कि दीदी के घर जाने की बात राकेश को मालूम हो जाएगी, पर राकेश को यह कैसे पता चला कि वह दीदी के यहां गई थी? रेखा ने स्थिति पर विचार करते हुए धीरे से कहा, ‘‘हां.’’

‘‘दीदी के यहां तुम क्यों गई थीं?’’

‘‘मिलने,’’ गैस पर दाल चढ़ाते हुए रेखा बोली.

‘‘मु?ो बिना बताए दीदी के यहां जाने का उद्देश्य क्या है?’’ राकेश अब परेशान हो गया था.

‘‘अगर दीदी फोन कर के यह न बतातीं कि तुम वहां गई थीं तो मु?ो पता भी नहीं चलता.’’

‘‘तुम्हें दीदी ने बताया है?’’ रेखा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘आज तक जो तुम मु?ा से छिपाती आ रही हो, वह अब तुम्हें सचसच बताना होगा, रेखा,’’ राकेश ने सख्त स्वर में कहा.

‘‘तुम मु?ा पर इतना शक करने लगे हो कि अब अपमान करने पर उतर आए,’’ कहते हुए रेखा फफकफफक कर रो पड़ी.

आखिरी मुलाकात: भाग 3

Writer- Shivi Goswami

मैं बस फोन को देखे जा रहा था और नीलेश मुझे देखे जा रहा था. उस का मेरे प्यार को स्वीकार करना जितना खूबसूरत सपने की तरह था, उतना ही आज उस का यह बोलना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. मैं चाहता था कि दोनों बातों में से सिर्फ एक ख्वाब बन जाए, लेकिन दोनों ही हकीकत थीं.

आज इस बात को पूरे 3 साल हो गए. उस दिन के बाद मैं ने कभी सुमेधा को न तो फोन किया और न ही उस ने मेरा हाल जानने की कोशिश की. जिस दिन उस की शादी थी उसी दिन मुझे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी से इस नौकरी का औफर आया था. यहां की सैलरी से दोगुनी सैलरी और एक फ्लैट. सब कुछ ठीक ही नहीं बल्कि एकदम परफैक्ट. आज जो मेरे पास है अगर वह मेरे पास 3 साल पहले होता तो शायद आज सुमेधा मिसेज समीर होती.

वक्त बदल गया और वक्त के साथ लोग भी. आज मैं जिस मुकाम पर पहुंच गया हूं शायद उस समय इन सब चीजों की कल्पना उस ने कभी की ही नहीं होगी. उस वक्त मैं सिर्फ समीर था लेकिन आज एक मल्टीनैशनल कंपनी का जनरल मैनेजर. आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरी सफलता को बांटने के लिए वह नहीं है जिस के लिए शायद मैं यह सब करना चाहता था.

अचानक मेरे मोबाइल की बजी. घंटी ने मुझे मेरी यादों से बाहर निकाला.

नीलेश का फोन था. सब कुछ बदल जाने के बाद भी मेरी और नीलेश की दोस्ती नहीं बदली थी. शायद कुछ रिश्ते सच में सच्चे और अच्छे होते हैं.

‘‘कब तक पहुंचेगा?’’ नीलेश ने पूछा.

‘‘निकलने वाला हूं बस,’’ मैं ने नीलेश से कहा.

‘‘जल्दी निकल यार,’’ कह कर नीलेश ने फोन रख दिया.

नीलेश की शादी है आज. शादी दिल्ली में ही हो रही थी. मुझे सीधे शादी में ही शरीक होना था. अपने सब से अच्छे दोस्त की शादी में न जाने का कोई बहाना होता भी तो भी मैं उस को बना नहीं सकता था.

मैं फटाफट तैयार हुआ. अपनी कार निकाली और चल दिया. वहां पहुंचा तो चारों तरफ फूलों की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. नीलेश बहुत स्मार्ट लग रहा था. मैं ने उस की तरफ फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत है और मेरी दिल से शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं.’’

नीलेश मेरे गले लग गया. और लोगों को भी उसे बधाइयां देनी थीं, इसलिए मैं स्टेज से नीचे उतर गया. उतर कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ा तो देखा कि लाल साड़ी में एक महिला मेरे पीछे खड़ी थी. उस के साथ उस का पति और बेटा भी था.

वह कोई और नहीं सुमेधा थी, जो मेरी ही तरह अपने दोस्त की शादी में शामिल होने आई थी. मुझे देख कर वह चौंक गई. वह मुझ से कुछ कहती, इस से पहले ही मेरी पुरानी कंपनी के सर ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वैल डन समीर. मुझे तुम पर बहुत गर्व है. थोड़े से ही समय में तुम ने बहुत सफलता हासिल कर ली है. मैं सच में बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए.’’

मैं बस हां में सिर हिला रहा था और जरूरत पड़ने पर ही जवाब दे रहा था. मेरा दिमाग इस वक्त कहीं और था.

सुमेधा अपने पति के साथ खड़ी थी. उस का पति एक बिजनैसमैन था, लेकिन उस की कंपनी इतनी बड़ी नहीं थी. आज मेरा स्टेटस उस से ज्यादा था.

यह मैं क्या सोच रहा हूं? मेरी सोच इतनी गलत कब से हो गई? मुझे किसी की व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिंदगी से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. मेरा दम घुट सा रहा था. अब इस से ज्यादा मैं वहां नहीं रुक सकता था. मैं जैसे ही बाहर जाने लगा सुमेधा ने पीछे से मुझे आवाज लगाई.

‘‘समीर…’’

उस के मुंह से अपना नाम सुनते ही मन में आया कि उस से सारे सवालों के जवाब मांगूं. पूछूं उस से कि जब प्यार किया था तो विश्वास क्यों नहीं किया? सब कुछ एकएक कर के उस की आवाज से मेरी आंखों के सामने आ गया.

लेकिन अब वह पहले वाली सुमेधा नहीं थी. अब वह मिसेज सुमेधा थी. मुझे उस का सरनेम तो क्या उस के पति का नाम भी मालूम नहीं था और मुझे कोई दिलचस्पी भी नहीं थी ये सब जानने की. न मैं उस का हाल जानना चाहता था और न ही अपना बताना.

मैं ने पलट कर उस की आंखों में आखें डाल कर कहा, ‘‘क्या मैं आप को जानता हूं?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखती रही. अगर मैं पहले वाला समीर नहीं था तो वह भी पहले वाली सुमेधा नहीं रही थी.

शायद मेरा यही सवाल हमारी आखिरी मुलाकात का जवाब था. उस की चुप्पी से मुझे मेरा जवाब मिल गया और मैं वहां से चल दिया.

कार्तिक-नायरा की तरह सगाई से पहले छाये अभिमन्यू-अक्षरा

स्टार प्लस का पॉपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में  अक्षरा और अभिमन्यु की शादी का ट्रैक चल रहा है.  दोनों की जल्द ही सगाई होने वाली है. अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई की तैयारी खूब धूम-धाम से चल रही है.  ऐसे में दोनों की सगाई से जुड़ी कुछ फोटोज जमकर वायरल हो रही है.

इन फोटोज को देखकर आप कह सकते हैं कि अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई, नायरा और कार्तिक की सगाई से भी ज्यादा रॉयल होने वाली है. जी हां, आइए दिखाते हैं आपको सगाई की फोटोज.

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इन फोटोज में अक्षरा ब्लू ड्रेस में नजर आई तो वहीं अभिमन्यु भी उससे ट्विनिंग करता दिखाई दिया. अक्षरा और अभिमन्यु की केमिस्ट्री फिर से सोशल मीडिया पर छा गई है. सगाई के गेटअप में दोनों की जोड़ी शानदार दिखाई दे रही है.

 

अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई नायरा और कार्तिक की सगाई की तरह ही शानदार अंदाज में होने वाली है. ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ का पूरा परिवार इस मौके पर एक साथ आने वाला है.

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शो में दिखाया गया कि आरोही की कार से अभिमन्यु की मां मंजरी का एक्सीडेंट हो गया था. तो वही अभिमन्यु, आनंद और महिमा मिलकर मंजरी की जान बचा लेते हैं, लेकिन दूसरी ओर अभि पुलिस से जल्दी से जल्दी अपनी जांच करने के लिए कहता है.

 

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मंजरी की गंभीर हालत को देखते हुए अभिमन्यु और अक्षरा अपनी शादी टालने का फैसला लेते हैं। वे इस बात को पूरे परिवार के सामने भी कहते हैं. जहां एक तरफ बिरला परिवार राजी हो जाता है तो वहीं मिमी कहती हैं कि यह शादी नहीं टलनी चाहिए. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अभिमन्यू और अक्षरा की शादी के दौरान क्या-क्या परेशानी आती है?

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क्या बंद हो सकता है कपिल शर्मा का शो?

मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा के शो को दर्शक काफी पसंद करते हैं. लेकिन  अब फैंस के लिए बुरी खबर आ रही है कि यह शो जल्द बंद होने वाला है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

दरअसल  कुछ दिन पहले ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) फिल्म के प्रमोशन से जुड़ा कपिल शर्मा का विवाद सामने आया था. लेकिन अब खबर आ रही है कि ‘द कपिल शर्मा शो’ (The Kapil Sharma Show) जल्द ही ऑफ एयर हो सकता है.

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बता दें कि हाल ही में ये हिंट कपिल शर्मा के एक पोस्ट से मिली. जिसमें उन्होंने कनाडा टूर पर जाने का ऐलान किया था. इसके बाद से शो के बंद होने की खबरें तेजी से वायरल हो रही है. कपिल शर्मा ने कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर कनाडा टूर को लेकर एक पोस्ट किया था.

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कपिल ने इस पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा था, साल 2022 में अपने यूएस-कनाडा टूर के बारे में घोषणा करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. जल्द ही आप लोगों से मिलना होगा.

 

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इस पोस्ट के आने के बाद शो के ऑफ एयर होने की खबरें आ रही है. हालांकि कपिल शर्मा का शो आधिकारिक तौर पर बंद होने का ऐलान नहीं किया गया है.

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मीठी छुरी- भाग 2: कौन थी चंचला?

Writer- Reeta Kumari

पूरी तरह टूट चुके नवीन भैया देर तक ड्राइंगरूम के एक कोने में सुबकसुबक कर रोते रहे थे. उन का तो आत्मविश्वास के साथ जैसे स्वाभिमान भी खत्म हो रहा था. दूसरे ही दिन नौकरी की तलाश में जाने के लिए उन्होंने बाबूजी से ही रुपए मंगवाए थे. भाई की दुर्दशा से आहत बड़े भैया ने दूसरा कोई रास्ता न देख समझाबुझा कर उन का दाखिला ला कालेज में करवा दिया.

नवीन भैया के ऐसे कठिन समय में उन का साथ देने के बदले चंचला भाभी मां और बाबूजी के पास बैठी उन्हें कोसती रहतीं और आंसू बहाती रहतीं जिस से उन लोगों की पूरी सहानुभूति बहू के साथ होती चली गई और नवीन भैया के लिए उन के अंदर गरम लावे की तरह उबलता गुस्सा ही बचा रह गया था.

क्षणिक आवेश में लिए गए जीवन के एक गलत फैसले ने नवीन भैया को कहां से कहां पहुंचा दिया था. विपरीत परिस्थितियों के शिकार नवीन भैया के मन की स्थिति समझने के बदले जबतब उन के जन्मदाता बाबूजी ही उन के विरुद्ध कुछ न कुछ बोलते रहते. वे अपनी सारी सहानुभूति और वात्सल्य  चंचला भाभी पर न्योछावर करते और अपनी सारी नफरत नवीन भैया पर उड़ेलते.

चंचला भाभी ने अपनी मीठी जबान और सेवाभाव से सासससुर को अपने हिसाब से लट्टू की तरह नचाना शुरू कर दिया था. वे जो चाहतीं, जैसा चाहतीं, मांबाबूजी वैसा ही करते. नवीन भैया वकालत पास कर कोर्ट जाने तो लगे पर उन की वकालत ढंग से चल नहीं पा रही थी. पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती.

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इस दौरान उन के 2 लड़के भी हो गए अंश और अंकित. शुरू से ही बड़ी होशियारी से चंचला भाभी अपने दोनों बच्चों को नवीन भैया से दूर अपने अनुशासन में रखतीं. बातबात में जहर उगल कर बच्चों के मन में पिता के प्रति उन्होंने इतना जहर भर दिया था कि अपने पिता की अवज्ञा करना उन के दोनों बेटों के लिए शान की बात थी. घर के बड़े ही जब घर के किसी सदस्य की उपेक्षा करने लगते हैं तो क्या नौकर, क्या बच्चे, कोई भी उसे जलील करने से नहीं चूकता.

अंश और अंकित पूरी तरह बाबूजी के संरक्षण में पलबढ़ रहे थे पर उन का रिमोट कंट्रोल हमेशा चंचला भाभी के पास रहता. नवीन भैया तो अपने बच्चों के लिए भी कोई फैसला लेने से वंचित हो गए थे. धीरेधीरे उन के अंदर भी एक विरक्ति सी उत्पन्न होने लगी थी, अब वे देर रात तक यहांवहां घूमते रहते. घर आते बस खाने और सोने के लिए.

घर के लोग चंचला भाभी की चाहे जितनी बड़ाई करें पर मैं जब भी उन के स्वभाव का विश्लेषण करती, मुझे लगता कुछ है जो सामान्य नहीं है. चंचला भाभी की जरूरत से ज्यादा फर्ज निभाने का उत्साह मेरे मन में संशय भरता. मैं अकसर मां से कहती, ‘‘मां, ज्यादा मिठास की आदत मत डालो, कहीं तुम्हें डायबिटीज न हो जाए.’’

मेरी बातें सुनते ही बड़ों की आलोचना करने के लिए मां दस नसीहतें सुना देतीं.

यह चंचला भाभी के मीठे वचनों का ही असर था जो मयंक भैया अंश और अंकित को भी अपने तीनों बच्चों में शामिल कर अपने बच्चों की तरह पढ़ातेलिखाते और उन की सारी जरूरतों को पूरा करते. पर्वत्योहार में जैसी साड़ी भैया भाभी के लिए खरीदते वैसी ही साड़ी चंचला भाभी के लिए भी खरीदते. वैसे भी मां की मयंक भैया को सख्त हिदायत थी कि कपड़ा हो या और कोई दूसरी वस्तु, दोनों बहुओं के लिए एक समान होनी चाहिए. भैया भी मां की इस बात का मान रखते.

वैसे चंचला भाभी भी कुछ कम नहीं थीं, जबतब बड़ी भाभी के कीमती सामान पर भी मीठी छुरी चलाती रहतीं. कभी कहतीं, ‘‘हाय भाभी, कितने सुंदर कर्णफूल आप ने बनवाए हैं. इन पर तो मेरी पसंदीदा मीनाकारी है. मैं तो इन के कारण लाचार हूं, इन्होंने इतनी छोटीछोटी चीजों को भी मेरे लिए दुर्लभ बना दिया है.’’

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झट बड़ी भाभी अपना बड़प्पन दिखातीं, ‘‘अरे नहीं, चंचला, इतना मायूस मत हो. तू इन्हें रख ले. मैं अपने लिए दूसरे बनवा लूंगी.’’

पहले वे मना करतीं, ‘‘नहींनहीं, भाभी, मैं भला इन्हें कैसे ले सकती हूं. ये आप ने अपने लिए बनवाए हैं.’’

बड़ी भाभी जब जिद कर उन्हें थमा ही देतीं तब बोलतीं, ‘‘मैं खुश हूं कि मुझे आप जैसी जेठानी मिलीं. भला इस दुनिया में कितने लोग हैं जिन के दिल आप के जैसे सोने के हैं. आप मुझे छोटी बहन मानती हैं तो पहन ही लूंगी.’’

चंचला भाभी की तारीफ सुन कर बड़ी भाभी फूल कर कुप्पा हो जातीं.

सुनंदा दी जब भी चेन्नई से आतीं, सब के लिए साडि़यां लातीं. यह सोच कर कि नवीन तो शायद ही चंचला के लिए अच्छी साड़ी ला पाता होगा, सब से पहले चंचला भाभी को ही साड़ी पसंद करने को बोलतीं और चंचला भाभी अकसर 2 साडि़यों के बीच कन्फ्यूज हो जातीं कि कौन सी साड़ी ज्यादा अच्छी है. तब सुनंदा दी इस का हंस कर समाधान निकालतीं, ‘‘तुम दोनों ही साडि़यां रख लो.’’

जितना जादू चंचला भाभी के मधुर वचनों का घर के लोगों पर बढ़ता जा रहा था, उतना ही नवीन भैया अपने घर में  बेगाने होते जा रहे थे.

नवीन भैया की शादी के समय बाबूजी ने छत पर एक कमरा बनवाया था, उसी कमरे में नवीन भैया और चंचला भाभी रहते थे. जब भाभी नीचे का काम खत्म कर सोने जातीं तब सीढि़यों से दरवाजा बंद कर लेतीं.

एक बार देर रात तक पढ़तेपढ़ते मैं बुरी तरह थक कर आंगन में आ बैठी. सामने सीढि़यों का दरवाजा खुला देख, मैं ठंडी हवा  का आनंद उठाने छत पर आ गई. तभी चंचला भाभी की कर्कश और फुफकारती हुई धीमी आवाज सुन जैसे मेरी रीढ़ की हड्डी में एक ठंडी लहर सी दौड़ गई. नवीन भैया को चंचला भाभी किसी बात पर सिर्फ डांट ही नहीं रही थीं, अपशब्द भी बोल रही थीं. फिर धक्कामुक्की की आवाज सुनाई पड़ी. उस के तुरंत बाद ऐसा लगा जैसे कुछ गिरा. मेरा तो यह हाल हो गया था कि काटो तो खून नहीं.

अचानक नवीन भैया दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. कमरे से आती धीमी रोशनी में भी मुझे सबकुछ साफसाफ दिख रहा था. वे बुरी तरह हांफ रहे थे, उन के बाल बिखरे और कपड़े जगहजगह से फटे हुए नजर आ रहे थे. अपने हाथ से रिसते खून को अपनी शर्ट के कोने से साफ करने की कोशिश करते नवीन भैया को देख, मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरा कलेजा चाक कर दिया हो.

मेरी उपस्थिति से अनजान चंचला भाभी ने फटाक से दरवाजा बंद कर लिया और नवीन भैया सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी सीढि़यों पर जलते बल्ब की रोशनी में हम दोनों की आंखें टकराईं. भैया मुझे विवश दृष्टि से देख तेजी से आगे बढ़ गए.

हमेशा से सहनशील रहे नवीन भैया का चेहरा उस समय इतना दयनीय दीख रहा था कि वहां खड़ी मैं हर पल शर्म के बोझ तले दबती जा रही थी. इन्हीं चंचला भाभी की लोग मिसाल अच्छी बहू के रूप में देते हैं जिन्होंने अपने पति को इस कदर प्रताडि़त करने के बाद भी, दुनियाभर में उन पर तरहतरह के आरोप लगा उन को बदनाम कर रखा था. मैं ने किसी से कुछ भी नहीं कहा. परिवार के लोगों पर तो अभी भाभी का जादू छाया हुआ था. मेरी कौन सुनता.

उन्हीं दिनों मयंक भैया का ट्रांसफर रांची हो गया था. संयोग से उसी साल मुझे भी रांची मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया. मैं पटना से रांची आ गई.

मयंक भैया के पटना से हटते ही बाबूजी की चिंता नवीन भैया के परिवार के लिए कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. अभी तक बड़े भैया एक परिवार की तरह सब को संभाले हुए थे. घर से बाहर निकलने पर कई तरह के खर्चे बढ़े, फिर भी अंश और अंकित की पढ़ाई का पूरा खर्च भेजते रहे. लेकिन बाबूजी संतुष्ट नहीं थे. वे नवीन भैया के परिवार की निश्चित आय की व्यवस्था करना चाहते थे.

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