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प्यार ने तोड़ी मजहब की दीवार

बिहार के जिला बेगूसराय के थाना साहेबपुर कमाल की रहने वाली चांदबीबी का नाम ऐसे ही चांदबीबी नहीं था. वह चांद जैसी सुंदर भी थी. और किसी के लिए भले ही वह चांद जैसी सुंदर न रही हो, पर मांबाप को तो वह चांद का ही टुकड़ा लगती थी.  यही वजह थी कि उस की अम्मी की नजर हर वक्त उस पर टिकी रहती थी.

चांदबीबी जैसे ही 16 साल की हुई नहीं थी कि अम्मी हर बात में रोकटोक करने लगी थीं. वह घर से निकलने लगती, तुरंत पूछ लेतीं, ‘‘कहां जा रही है चांद? कब तक लौटेगी? किस के साथ जा रही है? क्यों जा रही है?’’

चांदबीबी अम्मी के इन सवालों से खीझ उठती. लेकिन न चाहते हुए भी उसे मां के सवालों के जवाब देने ही पड़ते. भले ही वह झूठ बोल देती. क्योंकि हर बार वह सच बता नहीं सकती थी. अगर सच बता देती तो उस की अम्मी उसे कतई न जाने देतीं.

इतना ही नहीं, उस की अम्मी उस के सजनेधजने और कपड़ों पर ही उतना ध्यान ही रखती थीं. वह कितना सज रही है, कैसे कपड़े पहन रही है, इन बातों पर भी उन की नजर रहती थी.

यही वजह थी कि चांदबीबी को अम्मी का स्वभाव बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. वह उसे रोजाना तो छोड़ो, रविवार को भी देर तक नहीं सोने देती थीं.

सवेरा होते हो वह चिल्लाने लगती थीं, ‘‘चल उठ जा चांद, देख सूरज सिर पर आ गया है. पढ़नेलिखने वाले बच्चों को इतनी देर तक बिलकुल नहीं सोना चाहिए. फिर तू तो लड़की है. लड़कियों को मर्दों से पहले उठ जाना चाहिए. कल को ससुराल जाएगी तो वहां इस तरह देर तक सोएगी तो सासससुर क्या कहेंगे? कहेंगे कि मांबाप ने यही सब सिखाया है. कितनी बदनामी होगी हमारी.’’

मां की ये बातें चांदबीबी को जरा भी नहीं सुहाती थीं. वह मन ही मन सोचती, अभी तो उस की खेलने, खाने और जिंदगी के मजे लेने की उम्र है. और एक अम्मी हैं, अभी से शादीब्याह की बातें कर रही हैं. जैसे वह सिर्फ ब्याह करने के लिए ही पैदा हुई है. अरे वह लड़की है तो क्या हुआ? क्या वह पढ़लिख कर लड़कों की तरह नौकरी नहीं कर सकती? अब्बा तो कहते भी हैं कि ‘चांद मेरी बेटी नहीं, बेटा है.’

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चांदबीबी सचमुच पढ़लिख कर सरकारी स्कूल में अध्यापिका बनना चाहती थी. इसलिए वह पढ़ने में खूब मेहनत करती थी. परिणामस्वरूप वह क्लास में प्रथम श्रेणी में पास होती थी. इसीलिए तो वह अपने अब्बू की लाडली थी. अम्मी उस की उन से कितनी भी शिकायत करतीं, वह कभी भी उसे कुछ नहीं कहते थे.

क्योंकि उन्हें अपनी बिटिया पर पूरा भरोसा था. कोई भी बात होती तो वह मुसकराते हुए कहते, ‘‘चांद की अम्मी, तुम हमेशा उस के पीछे क्यों पड़ी रहती हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि चांद मेरा नाम चांद की ही तरह रोशन करेगी.’’

चांदबीबी सचमुच अपने अब्बा का नाम रोशन करती, पर उसी बीच वह प्यार की राह पर चल पड़ी. बात 5 साल पहले यानी सन 2016 की है. चांद ने उस समय 11वीं की परीक्षा दी थी. मार्च महीने का अंतिम सप्ताह था. उस दिन रविवार था.

परीक्षा खत्म हो जाने की वजह से वह उस दिन जी भर कर सोना चाहती थी, क्योंकि एक दिन पहले ही शनिवार को उस की परीक्षा खत्म हुई थी. पर रोज की ही तरह सवेरा होते ही उस की अम्मी चिल्ला पड़ीं, ‘‘चांद सवेरा हो गया है, अब उठ जा.’’

उठने की कौन कहे, चांद ने कानों पर चादर लपेटी और करवट बदल कर सो गई. क्योंकि अभी उस का मन बिलकुल उठने का नहीं था. पर इस घर में उस के मन की कहां चलती थी. यहां तो वही होता था, जो अम्मी चाहती थीं.

उस ने सोचा था कि परीक्षाएं खत्म हो गई हैं, इसलिए अम्मी एक आवाज लगा कर शांत हो जाएंगी. पर अम्मी तो एक बार जो ठान लेती थीं, उसे कर के ही दम लेती थीं. ऐसा ही उस दिन भी हुआ.

चांदबीबी की उम्मीद के विपरीत उस की अम्मी ने चादर पकड़ कर खींची तो मजबूरन उसे उठना पड़ा. उठ कर वह चारपाई पर बैठेबैठे आंखें मल रही थी कि तभी उसे याद आया कि आज तो उसे सहेलियों के साथ बलिया कस्बे में लगा डिजनीलैंड मेला देखने जाना है. यह याद आते ही वह इस तरह फुरती से चारपाई से उठी, जैसे उसे करंट लगा हो.

उस ने घड़ी देखी तो अब तक साढ़े 8 बज चुके थे. उस की सहेलियों ने 9 बजे तक तैयार होने के लिए कहा था. अब इतने कम समय में वह कैसे तैयार होगी, यह सोच कर वह फुरती से उठ कर मां से बोली, ‘‘अम्मी, आप थोड़ा पहले नहीं उठा सकती थीं?’’

‘‘अरे, तू तो अभी भी उठने को तैयार नहीं थी. अब उठ गई है तो कह रही कि थोड़ा पहले नहीं उठा सकती थीं. कहीं जाना है क्या?’’

‘‘आज सहेलियों के साथ बलिया कस्बे में लगा डिजनीलैंड मेला देखने जाना है,’’ चांदबीबी ने कहा.

‘‘कल ही तो तुम्हारी परीक्षा खत्म हुई है. एकदो दिन आराम कर लो. उस के बाद मेला देखने चली जाना,’’ चंदा की अम्मी ने कहा, ‘‘अरे बिटिया मेला ही तो देखने जाना था. तू तो इस तरह झटके से उठी, जैसे तेरी गाड़ी छूटने वाली हो.’’

‘‘9 बजे का टाइम दिया है अम्मी. साढ़े 8 तो बज ही गए हैं. 9 बजे मेरी सहेलियां आ जाएंगी.’’ कह कर चांद दैनिक क्रियाओं से निबटने के लिए भागी.

यह तो अच्छा था कि घर में टौयलेट था, वरना उसे खेतों में जाना पड़ता तो और देर हो जाती. जल्दीजल्दी फ्रैश होने के बाद नहा कर वह कपड़े निकाल ही रही थी कि तभी उस की सारी सहेलियां आ गईं.

सहेलियों से कह कर वह अपने कमरे में कपड़े पहन रही थी कि तभी उस की अम्मी कमरे में आ गईं. जो कपड़े उस ने मेला जाने के लिए निकाले थे, उन्हें देख कर उस की अम्मी भड़क गईं. बाहर उस की सहेलियां बैठी थीं, इसलिए वह चिल्लाईं तो नहीं, फिर भी वह जिस तरह जोर से फुसफुसा कर बोली थीं, वह एक तरह से चिल्लाने जैसा ही था.

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उन्होंने कहा था, ‘‘तेरे पास मेला जाने के लिए यही कपड़े हैं? इस के अलावा और कपड़े नहीं हैं क्या?’’

‘‘इन कपड़ों में क्या बुराई है अम्मी?’’ चांदबीबी ने हैरानी से पूछा.

‘‘ये कपड़े पहन कर तू बाहर मेले में जाएगी?’’

‘‘खरीदा तो पहनने के लिए ही है न अम्मी. अगर इन्हें पहन कर बाहर नहीं जाऊंगी तो क्या इतने महंगे कपड़े घर में पहनूंगी.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. तू इन्हें पहन कर मेले में नहीं जाएगी बस. तेरे पास सलवारसूट नहीं क्या, जो तू इन्हें पहन रही है.’’ चांदबीबी की अम्मी बड़बड़ाईं.

अम्मी की इस बात से चंदा का मूड खराब हो गया. उस ने कपड़े फेंक कर गुस्से में कहा, ‘‘ठीक है, तुम नहीं चाहती कि मैं ये कपड़े पहनूं, तो मैं मेला देखने नहीं जा रही. जाओ, मेरी फ्रैंड्स से कह दो कि चांद मेला देखने नहीं जा रही.’’

‘‘जा तेरी जो मरजी हो, वह कर. तुझे यही कपड़े पहनने हैं तो इन्हें ही पहन कर जा. आजकल के बच्चे वही करते हैं, जो उन के मन में आता है. मांबाप की तो सुनते ही नहीं. कल को शादी करनी होगी, तब भी इसी तरह जिद कर लेना कि मैं तो अपने मनपसंद लड़के से ही शादी करूंगी, वरना करूंगी ही नहीं.’’

‘‘बात कपड़ों की हो रही है तो बीच में शादीब्याह कहां से आ गया,’’ चांदबीबी बोली.

‘‘तेरी जैसी लड़कियां ही शादी में भी ऐसी ही जिद करती हैं. खैर छोड़, तुझे मेला देखने जाना है न. अब अपने मन की कर के जा. तेरी सहेलियां बाहर बैठी राह देख रही हैं,’’ अम्मी बड़बड़ाईं.

कपड़े पहन कर चांदबीबी कमरे से बाहर आई तो आंगन में उस के अब्बू बैठे थे. उन के सामने हाथ फैलाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब्बू मेला देखने जा रही हूं, खर्चापानी.’’

अब्बू ने बिना कुछ कहे 500 का नोट निकाल कर उस के हाथ पर रख दिए. 500 रुपए देते देख उस की अम्मी ने कहा, ‘‘इतने पैसे क्या करेगी?’’

‘‘मेले में कुछ पसंद आ गया तो वहां किस के सामने हाथ फैलाएगी. जा बेटी, तू जा.’’ चांदबीबी के अब्बू ने कहा.

बहरहाल, चांदबीबी अपनी पसंद के कपड़े पहन कर बाहर आई तो एकदम परी लग रही थी. उस की सहेलियां उसे देखती ही रह गईं. घर में तो वह कुछ नहीं बोलीं, पर घर के बाहर आते ही उन में से एक ने कहा, ‘‘यार चांद, आज तो कोई हम लोगों की ओर देखेगा ही नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ चांदबीबी ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘अरे जिसे देखना होगा वह तुझे ही देखेगा. तेरे आगे हम लोगों को कौन देखेगा?’’ उसी सहेली ने हंसते हुए कहा.

‘‘सचमुच मैं इतनी सुंदर लग रही हूं?’’

‘‘एकदम परी लग रही है आज तो तू.’’

‘‘चल, आज मैं ही मिली थी तुझे उल्लू बनाने को.’’

इसी तरह की बातें करते हुए सारी सहेलियां सड़क पर आ गईं. सड़क पर आते ही उन्हें शेयरिंग आटो मिल गया, जिस में बैठ कर सभी डिजनीलैंड मेला पहुंच गईं.

पूरा दिन मेले का आनंद लेने के बाद चांदबीबी सहेलियों के साथ दोपहर बाद 4 बजे चाट खाने पहुंची. मेला तो चाटपकौड़ी का होता ही है. चांदबीबी ने सभी के लिए आलू की टिक्की की चाट बनवाई.

उस ने जैसे टिक्की का पहला चम्मच मुंह में रखा, उस के मुंह में जैसे आग लग गई. पहले ही चम्मच में तीखी मिर्च का टुकड़ा उस के मुंह में चला गया था.

मुंह में डाला टिक्की का टुकड़ा उगल कर वह सी… सी… करने लगी. उस की आंखों से आंसू धार की तरह बह रहे थे. उस की सहेलियां ही नहीं, वहां खड़े सभी लोग उस की ओर ताकने लगे थे.

कोई कुछ समझ पाता, उस के पहले ही वहां खड़े एक युवक ने दौड़ कर उसे पानी का गिलास थमा दिया. पानी पीने से भी चांदबीबी को आराम नहीं मिल रहा था. मिर्च शायद बहुत तीखी थी.

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उसे परेशान देख कर उस की सहेलियां ही नहीं, दुकानदार और वहां खड़े सभी लोग परेशान थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.

हां, कुछ लोग सलाह जरूर दे रहे थे कि चीनी खा लो या मिठाई खा लो. पर कर कोई कुछ नहीं रहा था. तभी चांदबीबी को पानी पिलाने वाले युवक ने आइसक्रीम ला कर चांद से कहा, ‘‘इसे खा लो, तुरंत आराम मिल जाएगा.’’

किसी भी तरह की शर्म या संकोच किए बगैर चांदबीबी ने युवक से आइसक्रीम ले कर खानी शुरू कर दी. थोड़ी सी आइसक्रीम खाते ही उसे आराम मिल गया.

युवक का धन्यवाद अदा करते हुए चांदबीबी ने युवक से आइसक्रीम के पैसे पूछे तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘दोस्त से कोई पैसे लेता है क्या? कभी आप भी मुझे इसी तरह आइसक्रीम खिला दीजिएगा.’’

‘‘प्रौमिस, पर आप को भी मुझ से आइसक्रीम खाने के मेरी तरह ही तीखी मिर्च खानी होगी.’’

‘‘आप के हाथ की आइसक्रीम खाने के लिए मिर्च तो क्या, मैं न जाने क्याक्या खा लूं,’’ युवक ने कहा.

उस की इस बात पर सभी हंसने लगे. चांदबीबी के लिए दुकानदार ने टिक्की की दूसरी प्लेट बना कर दी. चाट खाने के बाद चांदबीबी सहेलियों के साथ घर जाने के लिए सड़क पर आई, तो देखा वही युवक आटो लिए सवारियों के इंतजार में खड़ा था. चांदबीबी ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘आप आटो चलाते हैं क्या?’’

‘‘जी, आप लोग कहां जाएंगी?’’

‘‘साहेबपुर कमाल.’’

‘‘आइए बैठिए. मैं उधर ही जा रहा हूं,’’ युवक ने कहा.

सारी लड़कियां उस युवक के आटो में सवार हो गईं. 1-2 सवारियां और ले कर युवक आटो ले कर चल पड़ा.

रास्ते में बातचीत में पता चला कि उस युवक का नाम राजीव कुमार था. वह भी बिहार के ही जिला बेगूसराय के थाना बलिया के सतीचौक के रहने वाले कैलाश पासवान का बेटा था. वह पढ़ाई छोड़ कर आटो चलाता था.

उस का अपना आटो था, इसलिए उस की ठीकठाक कमाई हो जाती थी. उस दिन भी वह अपना आटो चला रहा था. शाम को भूख लगी तो वह चाट खाने चला गया था, जहां उस की मुलाकात चांदबीबी से हो गई थी. उसी मुलाकात में राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच दोस्ती हो गई थी. यह सन 2016 की बात है.

राजीव कुमार पासवान थाना साहेबपुर कमाल और बलिया के बीच ही अपना आटो चलाता था.

चांदबीबी इसी रास्ते से स्कूल आतीजाती थी, जिस से अकसर उस की मुलाकात हो राजीव कुमार से हो जाती थी. जब भी चांदबीबी उसे मिलती, वह आटो रोक कर उस का हालचाल जरूर पूछता था. इसीलिए धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी.

राजीव कुमार अकसर उसी समय उस रास्ते से गुजरता था, जब चांदबीबी स्कूल जा रही होती थी. शायद चांदबीबी राजीव कुमार को भा गई थी. भाती भी क्यों न, वह थी ही इतनी सुंदर.

राजीव कुमार को ही नहीं, वह तो सभी लड़कों को अच्छी लगती थी. पर वह राजीव के अलावा किसी अन्य लड़के को घास तक नहीं डालती थी.

चांदबीबी उन दिनों उम्र के उस दौर में थी, जब इंसान के जो मन में आता है,  वही करना उसे अच्छा लगता है. उस का परिणाम क्या होगा, इस बारे में वह नहीं सोचता. 17-18 साल की उम्र लड़का हो लड़की, बहुत ही खतरनाक होती है. इस उम्र में लड़का हो या लड़की, उसे बहकते देर नहीं लगती.

आखिरकार लगातार राजीव कुमार से मिलने की वजह से चांदबीबी भी बहक गई. उसे राजीव कुमार से मिलना और बातें करना अच्छा लगने लगा था. शायद यही वजह थी कि वह अब राजीव का इंतजार करने लगी थी.

राजीव कुमार चांदबीवी से उम्र में थोड़ा बड़ा था. पर इतना भी बड़ा नहीं था कि चांदबीबी से उस का मिलनाजुलना ठीक नहीं था. वह उस से ढाईतीन साल ही बड़ा था. चांदबीबी सुंदर थी, इसलिए राजीव भी उसे पसंद करता था.

लड़कों को जवानी में वैसे भी हर लड़की अच्छी लगती है. बात तो तब गंभीर हो जाती है, जब उसे किसी लड़की से सचमुच में प्यार हो जाता है.

लड़का हो या लड़की, उन्हें एकदूसरे के मन की बात सामने वाले के हावभाव से ही पता चल जाती है. ऐसा ही राजीव कुमार और चांदबीबी के मामले में भी हुआ.

लगातार मिलने से उन के मनों में चाहत जागी तो उन का देखना और बातचीत करने का तरीका बदल गया. फिर तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया है.

फिर तो चांदबीबी और राजीव कुमार ने एकदूसरे से प्यार ही नहीं किया, बल्कि एक साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. उस समय दोनों ने यह भी नहीं सोचा कि उन के बीच जातिपांत की ही नहीं, धर्म की इतनी चौड़ी खाई है कि उन्हें एक होने के लिए उस खाई को पार करना आसान नहीं होगा.

चांदबीबी और राजीव कुमार ही इस बारे में कैसे सोचते, इस बारे में तो कोई भी प्रेम करने वाला नहीं सोचता. राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच धर्म की बहुत ही चौड़ी खाई थी. राजीव कुमार जहां हिंदू था, वहीं चांदबीवी मुसलिम थी. राजीव कुमार के घर वाले तो किसी तरह मान भी जाते, पर चांदबीबी के घर वाले तो अपनी बेटी की शादी एक हिंदू लड़के से करने को कभी तैयार न होते.

दिनोंदिन चांदबीबी और राजीव कुमार का प्रेम गहराता गया. चांदबीबी भले ही राजीव कुमार से प्यार करती थी, लेकिन वह उस के प्यार में पागल नहीं थी. पागल वह इसलिए नहीं थी, क्योंकि वह हर हाल में राजीव कुमार को पाना चाहती थी.

इस के लिए उसे अपना कैरियर बनाना जरूरी था. क्योंकि नौकरी लगने के बाद घर वाले उस से संबंध तोड़ भी देते तो उसे अपना जीवन बिताने में खास परेशानी न होती. इसीलिए वह राजीव कुमार से इस तरह मिलती थी कि किसी को पता नहीं चल पाता था.

चोरीछिपे राजीव कुमार से मिलते हुए चांदबीबी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली. चांदबीबी भले ही बहुत संभाल कर अपने प्रेमी से मिलती थी, पर उस के प्यार की हलकीफुलकी भनक उस के घर वालों को लग ही गई थी.

क्योंकि प्यार को कितना भी छिपाओ, वह छिपता नहीं है. लेकिन यहां मजे की बात यह थी कि कभी किसी ने उसे राजीव कुमार के साथ इस तरह नहीं देखा था कि उस की पढ़ाई बंद करा दी जाती या उसे घर में कैद कर दिया जाता.

फिर भी उस पर थोड़ीबहुत नजर तो रखी ही जाने लगी थी. उन दोनों की मुलाकातों को भी शक की नजरों से देखा जाने लगा था. इसलिए दोनों ज्यादातर फोन पर ही दिल की बातें कर लेते थे. अगर मिलते भी थे तो बड़ी सावधानी से.

चांदबीबी ग्रैजुएशन कर के नौकरी की तैयारी कर रही थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद चांदबीबी बहुत कम घर से बाहर जा पाती थी. इस की एक वजह यह भी थी कि भले ही घर वालों ने उसे कभी रंगेहाथों नहीं पकड़ा था, पर उन्हें उस पर शक तो था ही.

इधर जब से स्मार्टफोन आ गया है, तब से प्रेम करने वालों को बड़ी सुविधा मिल गई है. अगर उन्हें आमनेसामने मिलने या बात करने का मौका नहीं मिलता तो वे वीडियो काल कर के एकदूसरे को देख तो लेते ही हैं. बातचीत नहीं कर पाते तो दिल की बातें संदेश भेज कर कह देते हैं.

ऐसा ही कुछ राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच भी चल रहा था. क्योंकि शक होने की वजह से उसे घर के बाहर नहीं जाने दिया जाता था.

वह राजीव कुमार को फोन भी नहीं कर पाती थी. जो कुछ भी कहना होता था, संदेश भेज कर कह देती थी. उस ने उस का नंबर भी अपनी सहेली के नाम से सेव कर रखा था. क्योंकि कभीकभी भाई उस का मोबाइल ले कर देखने लगता था.

चांदबीबी चाहती थी कि जल्द से जल्द उस की नौकरी लग जाए, जिस से वह कोर्ट में राजीव से शादी कर ले. क्योंकि अब तक वह बालिग हो चुकी थी. वह अध्यापिका बनना चाहती थी, जिस के लिए वह बड़ी मेहनत से तैयारी कर रही थी.

परीक्षा की तैयारी के लिए उसे कुछ किताबों की जरूरत थी, जो शहर में ही मिल सकती थीं. घर वालों से वह किताबों के लिए कह नहीं सकती थी. अगर कहती भी तो कोई न लाता. इसलिए उस ने किताबों के लिए राजीव कुमार को संदेश भेजा.

राजीव कुमार के लिए तो यह खुशी की बात थी. चांदबीबी के लिए वह किताबें तो क्या, अगर वह कह देती तो वह उस के लिए चांदतारे भी तोड़ कर लाने को तैयार हो जाता.

चांदबीबी ने जो किताबें मंगाई थीं, राजीव कुमार शहर से उन्हें खरीद लाया. इस बात का उस ने चांदबीबी को संदेश भेजा तो चांदबीबी ने उसे देने का स्थान बता कर रात को बुला लिया.

राजीव कुमार प्रेमिका से मिलने की खुशी में किताबें ले कर 24 अगस्त, 2021 की रात को उस स्थान पर पहुंच गया, जहां चांदबीबी ने उसे बुलाया था. चांदबीबी और राजीव कुमार ने सोचा था कि रात होने की वजह से उन्हें कोई देख नहीं पाएगा.

पर राजीव कुमार से मिलने के लिए जैसे ही चांदबीबी घर से निकली थी, संदेह होने की वजह से उस के भाई उस के पीछ लग गए थे.

यही वजह थी कि जैसे ही चांदबीबी और राजीव कुमार एकदूसरे से मिले, चांदबीबी के भाइयों ने राजीव कुमार को पकड़ लिया. इस के बाद उसे गांव ला कर उस की जम कर पिटाई की और उसे पुलिस के हवाले कर दिया.

राजीव कुमार की पिटाई से चादबीबी को बहुत दुख पहुंचा. इस बात से आहत चांदबीबी ने जहर खा लिया. क्योंकि इस पूरी घटना के लिए उस ने खुद को दोषी माना. उस का सोचना था कि अगर उस ने राजीव कुमार को न बुलाया होता तो न वह रात को उस से मिलने आता और न उस की पिटाई होती और न उसे पुलिस के हवाले किया जाता.

जहर खाने के बाद जब चांदबीबी की हालत बिगड़ी तो घर वाले उसे जिला अस्पताल ले गए. मामला आत्महत्या करने का था, इसलिए अस्पताल वालों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. फिर तो यह बात मीडिया तक पहुंच गई.

मीडिया ने जब अस्पताल जा कर चांदबीबी से बात की तो उस ने साफ कहा कि वह राजीव के बिना नहीं रह सकती. अगर उस का ब्याह राजीव कुमार से नहीं किया गया तो वह जान दे देगी.

जब मीडिया द्वारा यह बात आम लोगों तक पहुंची तो चांदबीबी और राजीव कुमार के इस प्यार के बारे में जान कर लोगों में उन के प्रति संवेदना जाग उठी.

मीडिया द्वारा ही यह बात बजरंग दल को भी पता चली तो सभी ने मिल कर राजीव कुमार और चांदबीबी की शादी कराने का निर्णय लिया. पर दिक्कत यह थी कि चांदबीबी के घर वालों ने राजीव कुमार को जेल भिजवा दिया था.

पहले तो सभी ने राजीव कुमार की जमानत कराई. उस के बाद पुलिस की ही मदद से 27 अगस्त, 2021 को राजीव कुमार और चांदबीबी का विवाह बरौनी प्रखंड के गडहरा के आर्यसमाज मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज के अनुसार करा दिया. सैकड़ों लोग इस विवाह के गवाह बने.

विवाह के बाद शपथ पत्र दे कर चांदबीबी ने हिंदू धर्म अपनाते हुए अपना नाम चांदबीबी की जगह चंदा देवी रख लिया है.

चांदबीबी के घर वाले शादी से पहले उसे काफी परेशान कर रहे थे, इसलिए उस की और राजीव कुमार की जान का खतरा महसूस करते हुए विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय संयोजक शुभम भारद्वाज ने पुलिस प्रशासन से मिल कर दोनों की सुरक्षा की मांग की. बहरहाल, दोनों प्रेमी इस विवाह से बहुत खुश हैं.

Manohar Kahaniya: पति को उड़ा ले गई इश्क की आंधी

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इसी दौरान रोशनी पति के दोस्त सोनू कुशवाहा के संपर्क में आई. इन दोनों के इश्क की आंधी मूलचरण को इतनी दूर उड़ा कर ले गई कि…

जालौन जिले के कुंवरपुरा गांव के कुछ लोग सुबह करीब 7 बजे अपने खेतों की तरफ जा रहे थे

तो उन्होंने बंबी पुलिया के पास झाडि़यों में एक युवक की लाश देखी. लाश देखते ही उन के पैर वहीं रुक गए और वह उसे गौर से देखने लगे. उस युवक का सिर ईंट से कुचला हुआ था. खून लगी ईंट भी वहीं पड़ी थी. इस के बाद कुछ ही देर में यह खबर कुंवरपुरा गांव सहित माधौगढ़ कस्बे तक फैल गई. जिस से थोड़ी ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने इस की सूचना थाना माधौगढ़ में फोन द्वारा दे दी.

सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना पा कर थानाप्रभारी प्रवीण कुमार का मन कसैला हो गया. उन्होंने इस सूचना से पुलिस अधिकारियों को अवगत करा दिया. इस के बाद एसआई रामवीर सिंह, कांस्टेबल देवेंद्र सिंह व विपिन कुमार को साथ ले कर वह घटनास्थल पहुंच गए.

उस समय वहां भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटा कर उन्होंने झाडि़यों में पड़े शव को देखा. फिर सहयोगियों की मदद से शव को बाहर निकलवाया. शव के पास ही मोटरसाइकिल भी पड़ी थी. उसे भी उन्होंने निकलवाया. यह बात 3 जून, 2021 की है.

मृत युवक की उम्र 30 साल के आसपास थी. उस के सिर में पीछे की ओर गहरा जख्म था. मोटरसाइकिल पर भी ईंट के निशान थे. यह शायद इस वजह से किया गया था ताकि युवक की मौत दुर्घटना से हुई लगे.

अन्य सबूत तलाशने के दौरान पुलिस को झाडि़यों से एक ईंट मिली, जिस पर खून लगा था. थानाप्रभारी प्रवीण कुमार को समझते देर नहीं लगी कि इसी ईंट से प्रहार कर युवक को मौत के घाट उतारा होगा. फिर दुर्घटना का रूप देने के लिए कातिलों ने उस की मोटरसाइकिल भी ईंट से तोड़फोड़ कर झाडि़यों में गिरा दी होगी. उन्होंने ईंट को सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

इसी बीच सूचना पा कर एसपी यशवीर सिंह, एएसपी राकेश कुमार सिंह तथा डीएसपी (माधौगढ़) विजय आनंद भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा थानाप्रभारी प्रवीण कुमार से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. उन्होंने बताया कि अब तक दरजनों लोग शव को देख चुके हैं. लेकिन शव की शिनाख्त नहीं हो पाई है.

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पुलिस अधिकारी शव की शिनाख्त कराने का प्रयास कर ही रहे थे कि एक युवक बदहवास हालत में वहां आया और शव देख कर रो पड़ा. पुलिस अधिकारियों ने उस युवक से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का नाम मंगल सिंह कुशवाहा है. वह माधौगढ़ कस्बे के मोहल्ला जवाहर नगर का रहने वाला है.

यह शव उस के छोटे भाई मूलचरण कुशवाहा का है. वह बीती शाम को मोटरसाइकिल ले कर घर से निकला था. तब से घर वापस नहीं लौटा था. उस की पत्नी रोशनी ने उसे सुबह उस के लापता होने की सूचना दी थी. तब से वह परेशान था. कुछ देर पहले उसे बंबी में लाश पाए जाने की खबर लगी थी, उसी के बाद वह यहां आया है.

मृतक की शिनाख्त होते ही पुलिस अधिकारियों ने 2 सिपाहियों सहित पुलिस जीप भेज कर मृतक की पत्नी रोशनी को घटनास्थल पर बुलवा लिया. रोशनी पति की लाश देखते ही फूटफूट कर रोने लगी.

डीएसपी विजय आनंद ने उसे समझाबुझा कर शांत कराया और वहां की सारी औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जालौन के जिला अस्पताल भिजवा दी.

इस के बाद पुलिस थाना माधौगढ़ लौट आई. एसपी यशवीर सिंह ने हत्या के इस मामले की जांच इंसपेक्टर प्रवीण कुमार को सौंप दी. उन्होंने सहयोगियों के साथ जांच शुरू की तो उन्हें मृतक की पत्नी रोशनी पर शक हुआ.

क्योंकि घटनास्थल पर जब रोशनी रो रही थी, तो उन्होंने महसूस किया था कि पति की मौत पर कोई पत्नी जिस तरह रोती है, वैसा दर्द रोशनी के रोने में नहीं था. लग रहा था जैसे वह दिखावे के लिए रो रही है. इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत रोशनी से ही की.

प्रवीण कुमार ने रोशनी को थाने बुला कर पूछताछ शुरू की. उन्होंने सरसरी निगाह से रोशनी को देखा फिर पूछा, ‘‘यह सब कैसे हुआ?’’

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रोशनी नजरें चुराते हुए बोली, ‘‘बीती शाम उन का अंडे खाने का मन हुआ, तो वह अंडे लेने निकले. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. मुझे लगा कि वह किसी दोस्त के साथ होंगे और उसी के घर रुक गए होंगे. रात 12 बजे तक मैं ने उन का इंतजार किया फिर मैं सो गई.’’

रोशनी का बयान इंसपेक्टर प्रवीण कुमार के गले नहीं उतर रहा था. जिस औरत का पति रात को घर न आए, भला वह निश्चिंत हो कर कैसे सो सकती है? उन्हें लग रहा था कि किसी न किसी रूप में रोशनी पति की हत्या में शामिल है. लेकिन उस के खिलाफ उन के पास कोई ठोस सबूत न होने की वजह से वह उस पर सीधा आरोप नहीं लगा पा रहे थे.

सबूत जुटाने के लिए थानाप्रभारी प्रवीण कुमार ने मृतक के बड़े भाई मंगल कुशवाहा से पूछताछ की. उस ने बताया कि रोशनी चंचल स्वभाव की है. जिस की वजह से मूलचरण और रोशनी की पटरी नहीं बैठती थी. उस का चालचलन भी अच्छा नही है.

उस के घर मोहल्ले के युवक सोनू कुशवाहा का आनाजाना है. सोनू को ले कर पतिपत्नी में अकसर तनाव रहता था. कई बार दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ था.

‘‘मूलचरण की हत्या में कहीं रोशनी और सोनू तो शामिल नही हैं?’’ प्रवीण कुमार ने मंगल कुशवाहा से पूछा.

‘‘साहब, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन शक मुझे भी है.’’ मंगल सिंह ने कहा.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. प्रवीण कुमार ने सोनू की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने पुलिस टीम के साथ उस के जवाहर नगर स्थित घर पर छापा मारा तो वह घर से फरार था. पता चला कि वह अपनी बहन के घर कोंच गया है.

प्रवीण कुमार ने उस की बहन की ससुराल में दबिश दी तो पता चला कि वह वहां गया ही नहीं था. प्रवीण कुमार ने अब अपने मुखबिरों के माध्यम से सोनू की तलाश शुरू कर दी.

आखिरकार 6 जून की सुबह 7 बजे उन्हें मुखबिर से पता चला कि सोनू कस्बे की गल्लामंडी गेट पर मौजूद है. वह मुखबिर को साथ ले कर गल्लामंडी गेट पर पहुंचे तो सोनू पकड़ में आ गया.

उसे थाना माधौगढ़ लाया गया. वहां उस की जामातलाशी ली गई तो उस के पास से एक मोबाइल फोन तथा 300 रुपए नकद बरामद हुए.

थाने में जब सोनू से मूलचरण की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि मूलचरण उस का दोस्त था. घर आतेजाते उस का नाजायज रिश्ता उस की पत्नी रोशनी से बन गया था. जानकारी होने पर वह विरोध करने लगा.

वह रोशनी को अपने साथ हरियाणा ले जाना चाहता था, लेकिन रोशनी पति के साथ नहीं जाना चाहती थी. वह स्वयं भी नहीं चाहता था कि रोशनी उस का साथ छोड़ कर पति के साथ जाए.

इसी खुन्नस में उस ने रोशनी के कहने पर अपने दोस्त पवन के साथ मिल कर मूलचरण की हत्या की योजना बनाई और 2 जून, 2021 की रात 10 बजे उस की हत्या कर शव को बंबी किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. उस की मोटरसाइकिल को भी ईंट से क्षतिग्रस्त कर वहीं झाडि़यों में डाल दी.

पवन को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कई संभावित ठिकानों पर छापा मारा, लेकिन वह हाथ नहीं आया. चूंकि षडयंत्र में रोशनी शामिल थी, अत: पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी प्रवीण कुमार ने मूलचरण की हत्या का परदाफाश करने तथा आरोपियों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एएसपी राकेश कुमार सिंह ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित की और मूलचरण की हत्या का खुलासा किया. उन्होंने परदाफाश करने वाली टीम की पीठ भी थपथपाई.

चूंकि आरोपी सोनू कुशवाहा तथा उस की प्रेमिका रोशनी ने जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी प्रवीण कुमार ने मृतक के भाई मंगल सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत सोनू कुशवाहा, रोशनी तथा पवन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा सोनू व रोशनी को गिरफ्तार कर लिया.

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पुलिस पूछताछ में एक ऐसी महिला की कहानी सामने आई, जिस ने प्रेमी की मदद से अपना ही सुहाग उजाड़ दिया था.

रोशनी के पिता रामनाथ कुशवाहा जालौन जिले के गांव देवरा के रहने वाले थे. रामनाथ की आजीविका खेतीकिसानी से चलती थी. उस का परिवार बड़ा था, पर जिस खेती के सहारे उस का परिवार चल रहा था, वह काफी कम थी. रामनाथ की 3 बेटियां तथा एक बेटा था. 2 बड़ी बेटियों की वह शादी कर चुके थे. अब छोटी बेटी रोशनी व बेटा गगन कुंवारे थे.

अपनी बहनों में रोशनी सब से छोटी थी. खूबसूरत तो वह बचपन से ही थी, लेकिन किशोरावस्था पार करते ही उस की खूबसूरती में और भी निखार आ गया था.

पिता को रोशनी के जवान होने का अहसास था. इसलिए वह उस के लिए वर की तलाश में जुटे थे. लेकिन माली हालत खराब होने के कारण वह उस का रिश्ता तय नहीं कर पा रहे थे.

इधरउधर काफी प्रयास करने के बाद उन्होंने मूलचरण को रोशनी के लिए पसंद कर लिया. मूलचरण के पिता छोटेलाल कुशवाहा जालौन जिले के माधौगढ़ कस्बे के रहने वाले थे. जवाहर नगर मोहल्ले में उन का मकान था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे मंगल सिंह तथा मूलचरण थे.

मंगल सिंह का विवाह हो चुका था, जबकि मूलचरण अभी कुंवारा था. मूलचरण का मन खेतीकिसानी में नहीं लगता था. इसलिए वह पानीपत (हरियाणा) चला गया था. वहां वह पानीपूरी बेचने का काम करता था.

हालांकि मूलचरण का रंग सांवला व उम्र भी अधिक थी, इस के बावजूद उस की मजबूत आर्थिक स्थिति को देख कर रामनाथ ने उसे अपनी बेटी रोशनी के लिए पसंद कर लिया था. मई 2015 में रामनाथ ने अपनी बेटी रोशनी का विवाह मूलचरण के साथ कर दिया.

रोशनी सुंदर तो थी ही, दुलहन के वेश में उस की सुंदरता और निखर आई थी. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की तारीफ किए बिना न रह सका.

सब खुश थे, लेकिन रोशनी खुश नहीं थी. क्योंकि वह सांवला व अधिक उम्र का था, इसलिए उस से शादी कर के वह बहुत दुखी थी. उस के सारे अरमान चकनाचूर हो गए थे.

फिर भी उस ने नियति के इस निर्णय को सिर झुका कर स्वीकार कर लिया. दांपत्य जीवन की गाड़ी आगे बढ़ी तो बढ़ती ही चली गई. रोशनी को सपनों का राजकुमार नहीं मिला था, पर मूलचरण को उस के सपनों की रानी जरूर मिल गई थी. वह उस की हर जरूरत का खयाल रखता था.

रोशनी संयुक्त परिवार में रहती थी. कामकाज को ले कर उस की अपनी जेठानी उमा से नहीं पटती थी. रोशनी को जहां अपने हुस्न पर गर्व था, वहीं उमा को अपने हुनर पर. रोशनी की सास उस की जेठानी का ज्यादा पक्ष लेती थी, जिस से रोशनी सास से नाराज रहती थी.

रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर छोटेलाल कुशवाहा ने दोनों बेटों के बीच घर व जमीन का बंटवारा कर दिया था. बंटवारे के बाद मूलचरण अपनी पत्नी रोशनी के साथ अलग मकान में रहने लगा.

रोशनी अलग रहने लगी तो वह स्वच्छंद हो गई. अब उस पर किसी का बंधन नहीं था. वह बनसंवर कर कस्बे के बाजार में घूमती और मनपसंद खरीदारी करती.

मूलचरण का एक दोस्त था सोनू कुशवाहा. वह जवाहर नगर में ही रहता था. उस के पिता की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह व्यापार करते थे. सोनू भी पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. दोस्ती के चलते मूलचरण को जब कभी पैसों की जरूरत होती, वह सोनू से उधार मांग लेता था. पैसा आने पर उधारी चुकता कर देता था.

सोनू की कदकाठी अच्छी थी. वह दिखने में भी बांका जवान था. सोनू और मूलचरण की उम्र में वैसे तो अंतर था, लेकिन दोनों के आचारविचार में काफी समानता थी. इसलिए उन में पटती भी खूब थी. मूलचरण जब घर में होता, तो सोनू उस के घर पहुंच जाता.

दोनों में गपशप होती और कभीकभी खानेपीने का भी दौर चल जाता. इन्हीं नजदीकियों ने उन के संबंधों को और भी प्रगाढ़ बना दिया. सोनू उस के घर के छोटेमोटे काम भी निपटा देता था, इसलिए उस का मूलचरण के घर आनाजाना लगा रहता था. मूलचरण की पत्नी रोशनी को वह भाभी कहता था. रोशनी से उस की खूब गपशप होती थी.

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रोशनी के चेहरे पर ऐसी कशिश थी, जिसे देख कर कोई भी उस की तरफ खिंचा चला आए. उस की झील सी गहरी आंखों में सम्मोहन शक्ति थी. वह जिसे भरपूर निगाहों से देख लेती, वह उस की ओर आकर्षित हो जाता. सोनू पर भी उस के रूप का जादू चल गया था. इसलिए वह रोशनी को मन ही मन चाहने लगा था. वह किसी भी तरह उसे हासिल करना चाहता था.

रोशनी का पति मूलचरण पानीपत (हरियाणा) में पानीपूरी बेचने का काम करता था. महीना-2 महीना में वह घर आता था. हफ्ता-10 दिन रहने के बाद वह वापस चला जाता था.

पति के जाने के बाद रोशनी की रातें बेचैनी से कटती थीं. वह जवान थी. उस की देह में वासना भरी हुई थी. हसरतें हसीन रातों का सपना देखती थीं.

औरत जवान हो और पति का साथ न मिले तो सावन की मदमाती बयार भी उसे लू के थपेड़ों जैसी लगने लगती है. रोशनी की दशा भी कुछ ऐसी ही थी. तनहाई में उस की रातें पहाड़ जैसी कटती थीं. उस का मन भटकने लगा था. वह सोचती कुछ और करती कुछ और.

ऐसे में रोशनी को सोनू का घर आनाजाना तथा गपशप लड़ाना अच्छा लगने लगा था. वह भी हैंडसम, हंसमुख व स्मार्ट सोनू पर फिदा हो गई थी. वह सोचने लगी थी कि चेहरामोहरा अच्छा है, आंखें चंचल हैं और शरीर भी हट्टाकट्टा है. रोशनी को लगा यही वह शख्स है, जिस की उस की कामनाओं को तलाश है.

एक दिन सोनू घर आया तो रोशनी आईने के सामने बैठी सजसंवर रही थी. रोशनी को उस रूप में देख कर सोनू से रहा नहीं गया. उस ने पीछे से रोशनी को अपनी बांहों में भर लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

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रोशनी ने भी शरमाते हुए अपना चेहरा सोनू के सीने पर रख दिया. इस के बाद 2 शरीर एक हो गए. मर्यादा की दीवार लांघ कर दोनों ही बहुत खुश थे.

मनपसंद पुरुष के साथ बिस्तर का सुख निराला था, सो उसी दिन से रोशनी तनमन से सोनू की हो गई. वह भूल गई कि वह मूलचरण की ब्याहता है और शादी के वक्त 7 वचनों को निभाने का वादा किया था. उस ने सोनू को ही सब कुछ मान लिया. सोनू ने नारी सान्निध्य का सुख पाया तो वह भी रोशनी का मुरीद हो कर रह गया.

सोनू को जब भी मौका मिलता वह रोशनी को बाजार घुमाने ले जाता. रोशनी जिस चीज की मांग करती, सोनू उसे पूरी कर देता. मूलचरण को दोस्त पर जरा भी शक न था, जबकि सोनू उस की आंखों में घूल झोंक रहा था.

कहते हैं गलत काम को कितना भी छिपा कर किया जाए, एक न एक दिन उस की भनक लोगों को लग ही जाती है. पहले मोहल्ले में दोनों के संबंधों की हवा फैली फिर धीरेधीरे उन के कारनामों की भनक मूलचरण के कानों में भी पड़ गई.

मूलचरण ने रोशनी को बैठा कर ऊंचनीच समझाई. उसे अपनी इज्जत और समाज का वास्ता दिया, लेकिन रोशनी वास्तविकता से साफ मुकर गई. उस ने मूलचरण से कहा, ‘‘जरूर किसी ने हमारे घर में कलह पैदा करने के लिए तुम्हारे कान भर दिए हैं. सोनू को तो मैं अपने भाई जैसा मानती हूं.’’

रोशनी ने यह बात पति से इतनी दृढ़ता के साथ कही थी कि मूलचरण को उस के चरित्र पर भरोसा हो गया था. लेकिन मूलचरण को उन पर भी भरोसा था, जिन्होंने पत्नी के कारनामों को बताया था. ऐसे में उस ने निर्णय लिया कि वह अपनी आंखों देखी पर विश्वास करेगा.

वह पत्नी की असलियत जानने के लिए तानेबाने बुनने लगा. लेकिन वह रोशनी को रंगेहाथों पकड़ नहीं पाया. कारण रोशनी बेहद सतर्कता बरतने लगी थी. कुछ दिन मूलचरण पत्नी के साथ रहा, फिर हरियाणा चला गया.

अवैध रिश्तों के चलते मंगल कुशवाहा की मोहल्ले में बदनामी हो रही थी. इसलिए उस ने बहू को समझाने का प्रयास किया, लेकिन प्रेम दीवानी रोशनी ने जेठ की बात को दरकिनार कर दिया. परिवार की निगरानी के बावजूद रोशनी किसी न किसी जतन से पे्रमी से मिल ही लेती थी.

मई 2021 के पहले हफ्ते में महामारी के कारण मूलचरण हरियाणा से अपने घर माधौगढ़ आ गया. पति के घर आ जाने से रोशनी और सोनू के मिलन में बाधा पहुंचने लगी. सोनू अब जबतब ही मूलचरण से मिलने के बहाने घर आता था. दोनों पर मूलचरण कड़ी नजर रखता था. मिलन न हो पाने के कारण दोनों परेशान हो उठे थे.

एक रोज मूलचरण ने रोशनी से कहा कि लौकडाउन खत्म होते ही उसे उस के साथ हरियाणा चलना है. अब वह उसे अकेला नहीं छोड़ेगा. लोग तरहतरह की बातें कर उस की इज्जत उछालते हैं. इस पर रोशनी ने जवाब दिया कि वह उस के साथ परदेश नहीं जाएगी. वह घर में ही रहेगी.

इस के बाद तो हर रोज हरियाणा जाने या न जाने को ले कर मूलचरण व रोशनी में तूतूमैंमैं होने लगी. मूलचरण का फरमान था कि उसे उस के साथ जाना है, जबकि रोशनी जिद कर रही थी कि वह उस के साथ नहीं जाएगी. किसीकिसी दिन तो झगड़ा इतना बढ़ जाता कि मूलचरण रोशनी को बेतहाशा पीट देता.

31 मई को भी मूलचरण ने इसी बात को ले कर रोशनी को पीटा फिर वह शराब के ठेके पर चला गया. उस के जाने के कुछ देर बाद सोनू आ गया. सोनू को देखते ही रोशनी सुबकसुबक कर रोने लगी. इस पर सोनू बोला, ‘‘बताओ, क्या बात है?’’

रोशनी बोली, ‘‘वह मुझे अपने साथ ले जाना चाहता है, लेकिन मैं जाना नहीं चाहती. इसी बात पर वह लातघूंसों से मारने लगता है. सोनू, किसी तरह इस राक्षस से मेरी जान छुड़ाओ. नहीं तो किसी दिन तुम्हें मेरी लाश ही मिलेगी.’’

‘‘लाश तुम्हारी नहीं उस की मिलेगी.’’ सोनू दांत पीस कर बोला.

‘‘सोनू, अब मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती. तुम कुछ भी करो बस, मुझे अपनी बना लो.’’ रोशनी उस से लिपट कर बोली.

‘‘अगर मैं कहूं कि तुम्हें अपने सुहाग की बलि देनी पड़ेगी तो…’’

‘‘मुझे मंजूर है,’’ रोशनी ने सहमति

जता दी.

इस के बाद सोनू ने रोशनी के साथ मिल कर मूलचरण की हत्या का षडयंत्र रचा. इस षडयंत्र में उस ने अपने दोस्त पवन को भी शामिल कर लिया. पैसों के लालच में पवन सोनू का साथ देने के लिए राजी हो गया.

2 जून, 2021 की शाम 7 बजे सोनू मूलचरण से मिला और उसे पार्टी देने का न्यौता दिया. मूलचरण पहले तो राजी नहीं था, लेकिन जोर देने पर राजी हो गया. उस के बाद सोनू मूलचरण की मोटरसाइकिल पर बैठ कर शराब ठेके पर पहुंचा. वहां उस ने फोन कर अपने दोस्त पवन को भी बुला लिया. फिर तीनों ने बैठ कर खायापीया.

उस के बाद तीनों घूमने के बहाने निकले और कुंवरपुरा स्थित बंबी पुलिया पर पहुंचे. इस पुलिया पर बैठ कर तीनों बातचीत करने लगे. अब तक रात के

10 बज चुके थे और चारों तरफ सन्नाटा पसरा था.

उचित मौका देख कर सोनू और पवन ने मूलचरण को दबोच लिया और उस का सिर पुलिया के पत्थर पर पटकने लगे. उस का सिर फट गया और वह वहीं लुढ़क गया. इसी समय सोनू की निगाह ईंट पर पड़ी. उस ने ईंट से भी उस के सिर पर प्रहार किया.

हत्या करने के बाद पवन व सोनू ने मूलचरण के शव को बंबी के किनारे झाडि़यों में छिपा दिया. उस की मोटरसाइकिल को भी ईंट से क्षतिग्रस्त कर शव के पास झाडि़यों में डाल दी. ऐसा उन्होंने इसलिए किया, ताकि देखने वालों को लगे कि मूलचरण की मौत ऐक्सीडेंट से हुई है.

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इस के बाद दोनों वहां से फरार हो गए. सोनू ने फोन पर रोशनी को बता दिया कि उस की राह का कांटा दूर हो गया है. लेकिन अभी वह सावधान रहे.

इधर 3 जून की सुबह कुंवरपुरा गांव के लोग जब खेतों की तरफ जा रहे थे तो उन्होंने बंबी में लाश पड़ी देखी. उन्होंने इस की सूचना माधौगढ़ पुलिस को दी. सूचना पाते ही इंसपेक्टर प्रवीण कुमार घटनास्थल पर पहुंचे और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का खुलासा हुआ.

7 जून, 2021 को पुलिस ने आरोपी सोनू तथा रोशनी को जालौन की जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक तीसरा आरोपी पवन फरार था. पुलिस उसे गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित

शूटिंग के दौरान Rubina Dilaik हुई जख्मी, देखें Photo

टीवी एक्ट्रेस और बिग बॉस 14 की विनर रुबीना दिलाइक (Rubina Dilaik) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन फैंस के साथ अपनी फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने एक ऐसी फोटो शेयर की है, जिसमें एक्ट्रेस के पीठ और कंधे पर बैंडेज लगा हुआ दिखाई दे रहा है. एक्ट्रेस की ये फोटो देखने के बाद फैंस भी हैरान गए हैं

रुबीना दिलाइक ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर दी है. एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि कुछ भी आपकी प्लानिंग की मुताबिक नहीं होता है.’ फैंस बार-बार कमेंट्स कर पूछ रहे हैं कि ये कैसे हुआ?

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एक्ट्रेस का कैप्शन  पढ़ने के बाद ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि रुबीना दिलाइक के साथ शूटिंग के दौरान ये हादसा हुआ है. हालांकि उन्होंने केवल फोटो शेयर की है कि ये नहीं बताया कि चोट कैसे लगी?  एक्ट्रेस के इस फोटो पर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा, ये क्या रुबीना आपको? ये चोट कैसे लगी सब ठीक तो है ना.’ तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा कि ‘आप अपना ध्यान रखो.’

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वर्कफ्रंट की बात करें तो बिग बॉस 14 की विनर बनने के बाद रुबीना दिलाइक ने बड़े कई शोज के लिए काम किया. खबरों के अनुसार रुबीना दिलाइक जल्द ही अपने पति अभिनव शुक्ला के साथ एमएक्स प्लेयर की एक सीरीज में दिखाई देंगी. एक्ट्रेस आने वाली दिनों में फिल्म ‘अर्ध’ में दिखाई देंगी. इस फिल्म की शूटिंग चल रही है.

 

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यूक्रेन संकट: टाटा एयर, निजी करण का दंश

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्रीय सरकार ने एयर इंडिया को निजी हाथों में देकर अपनी पीठ थपथपाई थी. और टाटा के  जाने पहचाने नामचीन सर परस्तों ने एयर इंडिया को अधिग्रहित करने के बाद बड़ी बड़ी देश हित की बातें की थी.

मगर आज यूक्रेन संकट के समय में जब सैकड़ों  भारतीय  यूक्रेन में फंसे हुए थे. नरेंद्र मोदी के एयर इंडिया के निजी करण का सच उघड़ कर सामने आ गया.

टाटा एयर ने भी दिखा दिया कि देश के लोगों से, मानवता से और किसी दुनियावी संकट से उनका कोई लेना देना नहीं है. हम तो पैसे कमाने के लिए बैठे हैं कोई चाहे मरे चाहें जीएं.

यही कारण है कि यूक्रेन में फंसे लोगों से टाटा एयर ने टिकट फेयर से दुगनी से ज्यादा लंबी चौड़ी राशि की मांग की. और जब यह पैसा उन्हें मिला तभी यूक्रेन से टाटा एयर का विमान भारत की उड़ान भरता है.

आपको यह खबर किसी समाचार पत्र में टीवी चैनल में दिखाई नहीं देगी. मीडिया के मुंह पर ताला लगा हुआ है.क्योंकि निजी करण की पोल खोलना सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की नीतियों की धज्जियां उड़ाना होगा. और टाटा एयर जैसे स्वनामधन्य  पूंजीपति की पोल खोलना भला ऐसा साहस किसमें है… आइए! आज हम आपको यह सच बताते चलें और बताएं कि किस तरह यूक्रेन फंसे भारत माता के सपूतों के साथ केंद्र सरकार के संरक्षण में टाटा एयर ने आमनवीयता  की हद पार कर दी और उनके लिए रूपए पैसे ही सब कुछ था.सवाल है

तो क्या इसी कारण भारत सरकार ने एयर इंडिया को बेचा है क्या कोई ऐसे नियम कायदे नहीं बनाए गए युद्ध के समय टाटा एयर को भी एयर इंडिया की ताजा भारत के जन-जन की सेवा करनी होगी इसी सेवा से बचाव के कारण भारत सरकार ने एयर इंडिया को टाटा को बेच दिया है.

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दिखावा करती मोदी सरकार

टाटा इंडिया की दो निकासी उड़ानें यूक्रेन में फंसे 490 भारतीय नागरिकों को लेकर रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट और हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट से  दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुंचीं. भारत ने यूक्रेन में रूसी सेना के आक्रमण के बीच वहां फंसे अपने नागरिकों को निकालने के लिए शनिवार को अभियान शुरू किया. पहली निकासी उड़ान एआई1944 से बुखारेस्ट से 219 लोगों को भारत लाया गया.

अधिकारियों ने बताया कि दूसरी निकासी उड़ान  बुखारेस्ट से करीब दो बजकर 45 मिनट पर 250 भारतीय नागरिकों को लेकर दिल्ली हवाईअड्डे पहुंची. उन्होंने बताया कि एअर इंडिया की तीसरी निकासी उड़ान एआई1940 हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट से रवाना हुई और रविवार सुबह नौ बजकर 20 मिनट पर 240 लोगों के साथ दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुंची.

मजे की बात यह है कि शायद यह दृश्य लोगों ने पहली बार देखा होगा कि नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यूक्रेन से लौटे भारतीयों को “गुलाब का फूल” देकर हवाईअड्डे पर उनका स्वागत किया. स्वदेश लौटे लोगों से सिंधिया ने कहा -” मैं जानता हूं कि आप सभी बहुत बहुत कठिन दौर से गुजरे हैं, बहुत कठिन समय रहा, लेकिन यह जान लीजिए कि प्रधानमंत्री

हर कदम पर आपके साथ हैं.”

यूक्रेन के अधिकारियों ने स्थितियां बिगड़ते ही यात्री विमानों के परिचालन के लिए अपने देश का हवाई क्षेत्र बंद कर दिया था, इसलिए भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए ये उड़ानें बुखारेस्ट और बुडापेस्ट से परिचालित की जा रही हैं. अधिकारियों ने बताया कि जो भी भारतीय नागरिक सड़क मार्ग से यूक्रेन रोमानिया और यूक्रेन-हंगरी सीमा पर पहुंचे थे, उन्हें भारत सरकार के अधिकारियों की मदद से सड़क मार्ग से क्रमशः बुखारेस्ट और बुडापेस्ट ले जाया गया ताकि उन्हें एअर इंडिया की उड़ान के जरिए स्वदेश लाया जा सके.

मोदी कैबिनेट के नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुताबिक  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के संपर्क में हैं तथा सभी की सुरक्षित वापसी के लिए बातचीत चल रही है. उन्होंने बताया कि रूस की सरकार के साथ भी बातचीत चल रही है और भारत सरकार तभी चैन की सांस लेगी जब यूक्रेन से प्रत्येक भारतीय वापस आ जाएगा.

मंत्री ने कहा कि इसलिए कृपया यह संदेश अपने सभी मित्रों तथा सहकर्मियों तक पहुंचाएं कि हम उनके साथ हैं और हम उन्हें सुरक्षित वापस लाने की गारंटी देंगे. सिंधिया के मुताबिक मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आपका स्वागत करता हूं. मैं एअर इंडिया की टीम को भी बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने आप सभी को वापस लाने के लिए इतना प्रयास किया.

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इस तरह देश ने देखा कि किस तरह टाटा इंडिया  का निजीकरण का दोनों हाथ से युद्ध की इस भीषण समझ में भी लाभ उठा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी कि निजीकरण की नीति का सच भी अब उघड़ कर देश के सामने आ चुका है

त्यौहार 2022: खुशी के आंसू- भाग 2

“पापा ने मरते समय मुझ से वादा लिया था, मैं ज्योति का अच्छे से ध्यान रखूं,उस की हर इच्छा का खयाल रखूं. और उस की इच्छा तुम हो, आनंद.”

“पागल तो नहीं हो गई हो तुम, क्या बोल रही हो, जरा सोचो.”

“सही सोच रही हूं आनंद. तुम से अच्छा लड़का ज्योति के लिए कहां मिलेगा मुझे?”

“शटअप छाया, पागल मत बनो. ज्योति से मैं 8 साल बड़ा हूं.”

“मेरी मां, मेरे पापा से 9 साल छोटी थीं.”

“ओह माई गौड, क्या हो गया तुम्हें, आई लव यू ओनली.”

“बट, ज्योति लव्स यू.”

“उसे हमारे बारे में नहीं पता है, सब सच बता दो उसे. तुम्हारे पापा का आशीर्वाद भी मिल चुका है हमें. हम तो शादी करने वाले थे. जब वह यह सब सच जानेगी तब वह सब समझ जाएगी.”

“वह दिनभर, बस, तुम्हारी बातें किया करती है. तुम ने पढ़ाते समय उसे जो उदाहरण दिए हैं, उन्हें उस ने जीवन के सूत्र बना लिए हैं. वह बच्ची है आनंद, सच जान कर उस का दिल टूट जाएगा. वह बिखर जाएगी. वह तुम्हें बहुत चाहने लगी है आनंद.”

“इस का मतलब?”

“मतलब यह है, ज्योति तुम को चाहती है और मैं ज्योति को तुम्हें सौपना चाहती हूं.”

नहीं, छाया नहीं, मैं जीतेजी मर जाऊंगा. तुम इतनी कठोर कैसे हो सकती हो, क्या तुम्हारा प्यार झूठा था, नकली था? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?”  आनंद बिफर गया.

“तुम ने अभीअभी मेरी हर समस्या का हल निकालने की बात कही थी, और अब मुकरने लगे,” छाया ने बिलकुल शांत स्वर में कहा.

“मतलब, तुम मेरे बिना रह लोगी?” आनंद ने व्यंग्य करते हुए कहा.

“यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है,” छाया ने फिर अपनी बात रखनी चाही.

“तुम मुझे प्यार नहीं करती न,” आनंद बात से हटना चाह रहा था.

“यही समझ लो, ज्योति तो करती है न.”

“मैं पागल हो जाऊंगा छाया, मुझ पर रहम करो.”

“तुम ज्योति को अपना लो. बस, मेरी इतनी बात मान लो आनंद. अगर कभी भी मुझे प्यार किया होगा, उसी का वास्ता देती हूं मैं तुम्हें.”

“मैं मां से क्या कहूंगा,” आनंद ने आखिरी दांव फेंका.

“कुछ भी कह देना, बदल गई छाया, बिगड़ गई छाया, जो चाहे सो कह देना.”

“तुम बहुत स्वर्थी हो गई हो छाया. तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. तुम्हें बस अपनी बहन से प्यार है. तुम ने मुझे जीतेजी मार दिया. आज का दिन मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा.”

“चलो, मुझे छोड़ दो.”

“मैं क्या छोडूंगा तुम्हें, तुम ने मुझे छोड़ दिया.”

आनंद ने बाइक स्टार्ट की. छाया चुपचाप पीछे बैठ गई. आनंद उसे घर से कुछ दूरी पर छोड़ छाया को बिना देखे तेजी से निकल गया. छाया रातभर सो न सकी. वह सारी रात बेचैन रही. उस का स्कूल जाने का मन नहीं था, पर आज जाना जरूरी था, इसलिए उसे जाना पडा. वह सीधे क्लासरूम में चली गई. क्लास लेने के बाद वह लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई.

आज उस में आनंद की सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने पर्स से एक किताब निकाली और पढ़ने की बेकार कोशिश करने लगी. पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लग रहा था. पर समय काटना था क्योंकि अभी आनंद स्टाफरूम में होगा. घंटी लगने के बाद वह उठी और क्लास लेने चली गई. उस दिन छाया दिनभर आनंद के सामने आने से बचती रही.

अब छाया ने सोच लिया, बस, पापा के साल होने में मात्र 3 महीने हैं. उसे अब ज्योति की विवाह की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. उसे आनंद पर विश्वास था, वह उसे धोखा नहीं देगा. अब उसे ज्योति को आनंद से विवाह की बात बता देनी चाहिए.

उस ने जब ज्योति को बताया, वह खुशी से झूम उठी. उस का चेहरा लज्जा से लाल हो गया. उस ने कहा कि शायद इसी कारण आनंद जी अब उसे पढ़ाने नहीं आ रहे हैं. छाया क्या कहती, वह चुप रही. अगले महीने से स्कूल में परीक्षा है. और  स्कूल के अंदर की परीक्षा का कार्यभार छाया के पास था. वह परीक्षा प्रभारी थी. इन दिनों छुट्टी लेना मुश्किल हो जाता है. उस ने सोचा, परीक्षा के बाद से वह विवाह की तैयारी में जुट जाएगी.

खुशियों के फूल: भाग 3

लिपि अपने अपार्टमैंट के गेट पर ही हमारा इंतजार करती मिली. मिताली के औफिस रवाना होते ही लिपि ने कहा, ‘‘आंटी, आप से ढेर सारी बातें करनी हैं. आइए, पहले इस पार्क में धूप में बैठते हैं. मैं जानती हूं कि आप तब से आज तक न जाने कितनी बार मेरे बारे में सोच कर परेशान हुई होंगी.’’

‘‘हां लिपि, चौधरी साहब के गुजरने के बाद तुम ग्वालियर से लखनऊ चली गई थीं, फिर तुम्हारे बारे में कुछ पता ही नहीं चला. चौधरी साहब की अचानक मृत्यु ने तो हमें अचंभित ही कर दिया था. प्रकृति की लीला बड़ी विचित्र है,’’ मैं ने अफसोस के साथ कहा.

‘‘आंटी जो कुछ बताया जाता है वह हमेशा सच नहीं होता. रौनक भैया उस दिन आप के यहां से आ कर चुप, पर बहुत आक्रोशित थे. पापा ने रात को शराब पी कर भैया से कहा कि अब तुम लिपि को समझाओ कि यह मां के गम में रोनाधोना भूल कर मेरा ध्यान रखे और अपनी पढ़ाई में मन लगाए.

‘‘सुन कर भैया भड़क गए थे. पापा के मेरे साथ ओछे व्यवहार पर उन्होंने पापा को बहुत खरीखोटी सुनाईं और कलियुगी पिता के रूप में उन्हें बेहद धिक्कारा. बेटे से लांछित पापा अपनी करतूतों से शर्मिंदा बैठे रह गए. उन्हें लगा कि ये सारी बातें मैं ने ही भैया को बताई हैं.

‘‘भैया की छुट्टियां बाकी थीं लेकिन वे मुझे झांसी दीदी के पास कुछ दिन भेज कर किसी अन्य शहर में मेरी शिक्षा और होस्टल का इंतजाम करना चाहते थे. वे मुझे झांसी के लिए स्टेशन पर ट्रेन में बिठा कर वापस घर पहुंचे तो दरवाजा अंदर से बंद था.

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‘‘बारबार घंटी बजाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो भैया पीछे आंगन की दीवार फांद कर अंदर पहुंचे तो पापा कुरसी पर बैठे सामने मेज पर सिर के बल टिके हुए मिले. उन के सीधे हाथ में कलम था और बाएं हाथ की कलाई से खून बह रहा था. भैया ने उन्हें बिस्तर पर लिटाया. तब तक उन के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. भैया ने डाक्टर अंकल और झांसी में दीदी को फोन कर दिया था. पापा ने शर्मिंदा हो कर आत्महत्या करने के लिए अपने बाएं हाथ की कलाई की नस काट ली थी और फिर मेरे और भैया के नाम एक खत लिखना शुरू किया था. ‘‘होश में रहने तक वे खत लिखते रहे, जिस में वे केवल हम से माफी मांगते रहे. उन्हें अपने किए व्यवहार का बहुत पछतावा था. वे अपनी गलतियों के साथ और जीना नहीं चाहते थे. पत्र में उन्होंने आत्महत्या को हृदयाघात से स्वाभाविक मौत के रूप में प्रचारित करने की विनती की थी.

‘‘भैया ने डाक्टर अंकल से भी आत्महत्या का राज उन तक ही सीमित रखने की प्रार्थना की और छिपा कर रखे उन के सुसाइड नोट को एक बार मुझे पढ़वा कर नष्ट कर दिया था.

‘‘हम दोनों अनाथ भाईबहन शीघ्र ही लखनऊ चले गए थे. मैं अवसादग्रस्त हो गई थी इसलिए आप से भी कोई संपर्क नहीं कर पाई. भैया ने मुझे बहुत हिम्मत दी और मनोचिकित्सक से परामर्श किया. लखनऊ में हम युवा भाईबहन को भी लोग शक की दृष्टि से देखते थे लेकिन तभी अंधेरे में आशा की किरण जागी. भैया के दोस्त केतन ने भैया से मेरा हाथ मांगा. सच कहूं, तो आंटी केतन का हाथ थामते ही मेरे जीवन में खुशियों का प्रवेश हो गया. केतन बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं. मेरे दुख और एकाकीपन से उबरने में उन्होंने मुझे बहुत धैर्य से प्रेरित किया. मेरे दुख का स्वाभाविक कारण वे मम्मीपापा की असामयिक मृत्यु ही मानते हैं.

‘‘मैं ने अपनी शादी का कार्ड आप के पते पर भेजा था. लेकिन बाद में पता चला कि अंकल के रिटायरमैंट के बाद आप लोग वहां से चले गए थे. मैं और केतन

2 वर्ष पहले ही कनाडा आए हैं. अब मैं अपनी पिछली जिंदगी की सारी कड़ुवाहटें भूल कर केतन के साथ बहुत खुश हूं. बस, एक ख्वाहिश थी, आप से मिल कर अपनी खुशियां बांटने की. वह आज पूरी हो गई. आप के कंधे पर सिर रख कर रोई हूं आंटी. खुशी से गलबहियां डाल कर आप को भी आनंदित करने की चाह आज पूरी हो गई.’’

लिपि यह कह कर गले में बांहें डाल कर मुग्ध हो गई थी. मैं ने उस की बांहों को खींच लिया, उस की खुशियों को और करीब से महसूस करने के लिए.

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‘‘आंटी, मैं पिछली जिंदगी की ये कसैली यादें अपने घर की दरोदीवार में गूंजने से दूर रखना चाहती हूं, इसलिए आप को यहां पार्क में ले आई थी. आइए, आंटी, अब चलते हैं. मेरे प्यारे घर में केतन भी आज जल्दी आते होंगे, आप से मिलने के लिए,’’ लिपि ने उत्साह से कहा और मैं उठ कर मंत्रमुग्ध सी उस के पीछेपीछे चल दी उस की बगिया में महकते खुशियों के फूल चुनने के लिए.

जहर का पौधा: भाग 3

उसी वक्त मनीष के सहायक डाक्टर रामन ने कमरे में प्रवेश किया. ‘‘हैलो, सर, मीराजी अब खतरे से बाहर हैं,’’ रामन ने टेबललैंप की रोशनी करते हुए कहा.

‘‘थैंक्यू डाक्टर, आप ने बहुत अच्छी खबर सुनाई,’’ मनीष ने कहा, ‘‘लेकिन आगे भी मरीज की देखभाल बहुत सावधानी से होनी चाहिए.’’

‘‘ऐसा ही होगा, सर,’’ डाक्टर रामन ने कहा.

‘‘मीराजी के पास एक और नर्स की ड्यूटी लगा दी जाए,’’ मनीष ने आदेश दिया.

‘‘अच्छा, सर,’’  डाक्टर रामन बोला. एक सप्ताह में मनीष की भाभी का स्वास्थ्य ठीक हो गया. हालांकि अभी औपरेशन के टांके कच्चे थे लेकिन उन के शरीर में कुछ शक्ति आ गई थी. मनीष भाभी से मिलने के लिए रोज जाता था. वह उन्हें गुलाब का एक फूल रोज भेंट करता था.

एक महीने बाद भाभी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. मनीष भैया भाभी को टैक्सी तक छोड़ने गया. सारी राह भैया अस्पताल की चर्चा करते रहे. भाभी कुछ शर्माई सी चुपचुप रहीं.

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मनीष ने कहा, ‘‘भाभीजी, मेरी फीस नहीं दोगी.’’

‘‘क्या दूं तुम्हें?’’ भाभी के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘सिर्फ गुलाब का एक फूल,’’ मनीष ने मुसकराते हुए कहा.

घर पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही भाभी के स्वस्थ हो जाने की खुशी में महल्लेभर के लोगों को भोज दिया गया. भाभी सब से कह रही थीं, ‘‘मैं बच ही गई वरना इस खतरनाक रोग से बचने की उम्मीद कम ही होती है.’’

लेकिन भाभी का मन लगातार कह रहा था, ‘मनीष ने अस्पताल में मेरे लिए कितना बढि़या इंतजाम कराया. मैं ने उसे बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किंतु उस ने मेरा औपरेशन कितने अच्छे ढंग से किया.’

भाभी बारबार मनीष को भुलाने का प्रयास करतीं किंतु उस की भोली सूरत और मुसकराता चेहरा सामने आ जाता. वे सोचतीं, ‘आखिर बेचारे ने मांगा भी क्या, सिर्फ एक गुलाब का फूल.’

आखिर भाभी से रहा नहीं गया. उन्होंने अपने बाग में से ढेर सारे गुलाब के फूल तोड़े और अपने पति के पास गईं.

‘‘जरा सुनिए, आज के भोज में सारे महल्ले के लोग शामिल हैं, यदि मनीष को भी अस्पताल से बुला लें तो कैसा रहेगा वरना लोग बाद में क्या कहेंगे?’’

‘‘हां, कहती तो सही हो,’’ भैया बोले, ‘‘अभी बुलवा लेता हूं उसे.’’

एक आदमी दौड़ादौड़ा अस्पताल गया मनीष को बुलाने, लेकिन मनीष नहीं आ सका. वह किसी दूसरे मरीज का जीवन बचाने में पिछली रात से ही उलझा हुआ था. मनीष ने संदेश भेज दिया कि वह एक घंटे बाद आ जाएगा.

किंतु मरीज की दशा में सुधार न हो पाने के कारण मनीष अपने वादे के मुताबिक भोज में नहीं पहुंच सका. भाभी द्वारा तोड़े गए गुलाब जब मुरझाने लगे तो भाभी ने खुद अस्पताल जाने का निश्चय कर लिया.

भोज में पधारे सारे मेहमान रवाना हो गए, तब भाभी ने मनीष के लिए टिफिन तैयार किया और गुलाब का फूल ले कर भैया के साथ अस्पताल की ओर रवाना हो गईं.

अस्पताल पहुंचने पर पता चला कि मनीष एक वार्ड में पलंग पर आराम कर रहा है. उस ने मरीज को अपना स्वयं का खून दिया था, क्योंकि तुरंत कोई व्यवस्था नहीं हो पाई थी और मरीज की जान बचाना अति आवश्यक था.

भाभी को जब यह जानकारी मिली कि मनीष ने एक गरीब रोगी को अपना खून दिया है तो उन के मन में अचानक ही मनीष के लिए बहुत प्यार उमड़ आया. भाभी के मन में वर्षों से नफरत की जो ऊंची दीवार अपना सिर उठाए खड़ी थी, एक झटके में ही भरभरा कर गिर पड़ी. उन के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘मनीष वास्तव में एक सच्चा इंसान है.’’

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भाभी के मुंह से निकली इस हलकी सी प्रेमवाणी को मनीष सुन नहीं सका. मनीष ने तो यही सुना, भाभी कह रही थीं, ‘‘मनीष, तुम्हारी भाभी ने तुम्हारे लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया. लेकिन आश्चर्य है, तुम इस के बाद भी भाभी की इज्जत करते हो.’’

‘‘हां, भाभी, परिवाररूपी मकान का निर्माण करने के लिए प्यार की एकएक ईंट को बड़ी मजबूती से जोड़ना पड़ता है. डाक्टर होने के कारण मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी भाभी के मन में कहीं न कहीं स्नेह का स्रोत छिपा है.’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष,’’ कहते हुए भावावेश में भाभी ने मनीष का हाथ पकड़ लिया. उन की आंखों में आंसू छलक आए. वे बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हारा बहुत बुरा किया है, मनीष. मेरे कारण ही तुम्हें घर छोड़ना पड़ा.’’

‘‘अगर घर न छोड़ता तो कुछ करगुजरने की लगन भी न होती. मैं यहां का प्रसिद्ध डाक्टर आप के कारण ही तो बना हूं,’’ कहते हुए मनीष ने अपने रूमाल से भाभी के आंसू पोंछ दिए.

देवरभाभी का यह अपनापन देख कर भैया की आंखें भी खुशी से गीली हो उठीं.

#Tejran New Song: तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा के ‘रूला देती है’ गाने का पोस्टर हुआ रिलीज

तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा की जोड़ी टीवी की दुनिया की सबसे प्यारी जोड़ी में से एक है और अब यह कपल ‘देसी म्यूजिक फैक्ट्री’ के आगामी गीत ‘रूला देती है’ के साथ अपने फैंस का दिल जितने के लिए तैयार है. हाल ही में संगीत बैनर ने इस गाने का पोस्टर रिलीज किया है जिसमें तेजस्वी और करण एक-दूसरे की बांहों में खोए हुए नजर आ रहे हैं.

बिग बॉस 15 में बनी थी तेजरन की जोड़ी

बिग बॉस सीजन 15 के बाद ‘रूला देती है’ उनका पहला प्रोजेक्ट है जिसमें वे एक साथ नज़र आएंगे. इस जोड़ी ने बिग बॉस सीजन 15 के दौरान दर्शकों का दिल जीत लिया और अब उम्मीद है कि दर्शक इस गाने में भी उन्हें अपना भरपूर प्यार देंगे.

 

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रियलिटी शो के दौरान इस जोड़ी के बीच कई सारे उतार-चढ़ाव देखने को मिले और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गाने में वे किस तरह की केमिस्ट्री बिखेरते है.

फैंस का रिएक्शन जानने के लिए बेकरार हूं- तेजस्वी

इस गाने के पोस्टर रिलीज के बारे में तेजस्वी प्रकाश का कहना है कि  “करण और मैं एक-दूसरे के साथ काम करने के मौके का इंतजार कर रहे थे और जिन लोगों ने हमें इतना प्यार दिया है, वे भी इन्तजार कर रहे कि हम एक साथ कब काम करेंगे. मुझे बहुत खुशी है कि ‘रूला देती है’ के माध्यम से हम आ रहे है. यह एक दिल को छू लेने वाला गाना है जिसकी शूटिंग गोवा में हुई है. मुझे अपनी कंपनी और गाना दोनों ही बहुत पसंद आया. मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि फैंस इसे कितना प्यार देते है.”

 

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करण ने कही ये बात…

करण कुंद्रा कहते है कि  ” ‘रूला देती है’ कई मायने में एक विशेष गीत है. यह तेजस्वी के साथ मेरा पहला गीत है, जिसे रजत द्वारा बहुत ही खूबसूरती से संगीतबद्ध किया गया है और यासर ने अपनी मधुर आवाज़ से गाने में अपना दिल निकाल के रख दिया है. गोवा में गाने की शूटिंग करने का अनुभव कमाल का रहा और मुझे खुशी है कि इसका पोस्टर रिलीज हो गया है.”

 

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देसी म्यूजिक फैक्ट्री के फाउंडर और सीईओ अंशुल गर्ग कहते है कि “रूला देती है’ के लिए तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा के साथ काम करना अद्भुत रहा है. बिग बॉस सीजन 15 के बाद यह उनका एक साथ किया हुआ पहला प्रोजेक्ट है, जिसे अपने लेबल के तहत श्रोताओं के लिए पेश करते हुए हमें बेहद ख़ुशी हो रही है. श्रोताओं के लिए गाने का पोस्टर रिलीज करके बेहद खुश हूं.”

‘रुला देती है’ जल्द ही देसी म्यूजिक फैक्ट्री के यूट्यूब चैनल पर रिलीज होगी. इस गाने को राणा सोतल ने लिखा है और यासर देसाई ने गाया है तथा रजत नागपाल ने संगीत सजाया है. यह एक दर्द से भरा हुआ रोमांटिक गीत है, जिसकी शूटिंग गोवा में हुई है.

निर्णय: भाग 2- सुचित्रा और विकास क्यों दुविधा में पड़ गए

‘‘बेटा, अब क्या कहूं तुम से… मैं नहीं समझती कि उस लड़की ने तुम्हारे साथ छल किया होगा. स्वयं वह भी कदाचित अपने अतीत से अनजान है. समझ में नहीं आता और विश्वास करने को जी भी नहीं चाहता, पर तुम्हारे पिताजी ने भी पूरी तहकीकात कर के ही कहा है सबकुछ मुझ से, स्वयं वे भी दुखी हैं.’’

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‘‘पर बात क्या है, मां? स्पष्ट कहो.’’

सुचित्रा धीरेधीरे सबकुछ बताती चली गई. सुन कर जय हतप्रभ रह गया. कुछ पल चुप रह कर शांत स्वर में बोला, ‘‘जूही ने जानबूझ कर हम से कुछ छिपाया हो, यह तो मैं सोच भी नहीं सकता. रही बात उस की मां की, सो मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. फिर भी मां, मैं सबकुछ तुम पर छोड़ता हूं. तुम्हें यदि जूही हमारे घर के अनुपयुक्त लगे तो तुम कह दोगी कि उस का खयाल छोड़ दो तो मैं तुम्हारी बात मान लूंगा. मगर मां, मुझे विश्वास है कि तुम किसी निरपराध के साथ अन्याय नहीं करोगी,’’ फिर वह बेफिक्री से चला गया.

रातभर चिंतन कर के सुचित्रा ने एक निर्णय लिया और सुबह पति से बोली, ‘‘मैं देहरादून जाना चाहती हूं.’’

‘‘सुचित्रा, तुम जाना ही चाहती हो तो जाओ, पर फायदा कुछ भी नहीं होगा.’’

‘‘सभी कार्य फायदे के लिए नहीं किए जाते, नुकसान न हो, इसलिए भी कुछ काम किए जाते हैं.’’

‘‘ठीक है, कल चली जाना.’’

‘‘मां, तुम देहरादून जा रही हो, मैं भी चलूं?’’ जय ने धीरे से पूछा.

‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं. और हां, जूही को कुछ मत बताना.’’

पति के बताए पते पर गाड़ी जा कर खड़ी हुई. दिल्ली से देहरादून की लंबी यात्रा से सुचित्रा पूरी तरह थक चुकी थी.

छोटे से सुंदर बंगले के बाहर उतर कर सुचित्रा ने ड्राइवर को 2 घंटे के लिए बाहर खापी कर घूम आने को कहा और स्वयं अंदर चली गई.

2-3 मिनट में ही जो स्त्री बाहर आई, उसे देख कर सुचित्रा हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. लगभग 40 वर्षीया उस अत्यंत रूपसी आकृति को देख कर वह ठगी सी रह गई.

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‘‘मैं दिल्ली से आई हूं. आप से पूर्व परिचय न होने पर भी मिलने चली आई. मेरा पुत्र जय…’’  लेकिन सुचित्रा की बात अधूरी ही रह गई.

‘‘मेरी पुत्री जूही को पसंद करता है. उस से ब्याह करना चाहता है. माफ कीजिएगा, मैं ने आप की बात काट दी… लेकिन जूही के अतीत की भनक पड़ते ही आप भागी चली आईं. मैं आप लोगों की तरफ से किसी के आने का इंतजार ही कर रही थी. पिछले सप्ताह मेरे भाई का फोन आया था सुलतानपुर से कि जूही की सगाई दिल्ली में कर दी है. खैर…हां, तो आप क्या पूछना चाहती हैं, कहिए?’’ बहुत ही ठहरे हुए दृढ़ शब्दों में वह बोली.

जूही की मां के सौंदर्य से सुचित्रा  अभिभूत जरूर हो गई थी और  उस के दृढ़ शब्दों की गूंज से अचंभित भी. लेकिन उस के जीवन को ले कर समूचा मन व्यथित हो रहा था.

‘‘जूही मेरे बेटे की ही नहीं, हम पतिपत्नी की भी पसंद है. उस ने हमें बताया था कि बचपन में उस के मातापिता चल बसे. मामा ने ही उस का पालनपोषण किया. मेरे पति सुलतानपुर जा कर रिश्ता भी तय कर आए थे, किंतु बाद में मालूम हुआ कि…’’

‘‘उस की मां जीवित है. आप ने जो कुछ भी सुना, सत्य है. मुझे इतना ही कहना है कि जूही को मेरे बारे में कुछ भी मालूम नहीं है. सो, इस सारी कहानी के साथ उसे मत जोड़ें. वह निरपराध है. वह आप के पुत्र की पत्नी बने, ऐसा अब शायद नहीं हो सकेगा. मांबाप के अच्छेबुरे कर्मों का फल संतान को भुगतना ही पड़ता है. और अधिक क्या कहूं?’’

उस का गौरवान्वित मुखमंडल व्यथा- मिश्रित निराशा से घिर गया. पर मेरे बेटे ने मुझे जिस चक्रव्यूह में फंसा दिया था, उस से मुझे निकलना भी तो था.

‘‘हम ने जूही को कभी दोषी नहीं माना है लेकिन आप ने ऐसा क्यों किया? माफ कीजिएगा, यह मेरे बेटे के जीवन का प्रश्न है, इसलिए आप की निजी जिंदगी के बारे  में पूछने की गुस्ताखी कर रही हूं?’’

‘‘मुझे कुछ भी बताने में कोई संकोच नहीं है किंतु इस से फायदा भी कुछ नहीं होगा. मेरे जीवन की भयानक त्रासदी सुन कर भी मेरे प्रति आप के मन में आए नफरत के भाव कभी दूर नहीं हो सकते. मेरी पुत्री का वरण आप का पुत्र कर सके, यह शायद अब संभव नहीं. फिर पुरानी बातें कुरेदने का अर्थ ही क्या रह जाता है?’’

‘‘न रहे कोई अर्थ, पर मुझे अपने इनकार के पीछे सही व ठोस कारण तो जय को बताना ही होगा. एक मां को उस की संतान गलत न समझे, मेरे प्रति उस के मन के विश्वास को ठेस न लगे, इस का वास्ता दे कर मैं आप से विनती करती हूं. कृपया आप हकीकत से परदा उठा दें. जूही को इस की भनक भी नहीं लगेगी. यह वादा रहा.’’

‘‘आप चाहती हैं तो सुनिए…

‘‘करीब 11-12 वर्ष पहले की बात है, आप को याद होगा, यह वह वक्त था जब आतंकवाद अपनी जड़ें जमा रहा था. एक दिन मैं अपने मायके सुलतानपुर से अपनी ससुराल भटिंडा जा रही थी, अपने पति के साथ. जूही उस समय 9-10 वर्ष की थी. मेरे भाई और उन के तीनों बेटों ने जबरन उसे सुलतानपुर में ही रख लिया था. इकलौती बहन की इकलौती पुत्री के प्रति भाई और भतीजों का विशेष स्नेह था.

‘‘उन के विशेष आग्रह पर मुझे कुछ दिनों के लिए जूही को वहीं छोड़ना पड़ा. बीच रास्ते में ही 8-10 आतंकवादियों ने बस रोक कर कहर बरपा दिया. हम 9-10 औरतों पर उस दिन जो जुल्म हुआ उसे देख कर न धरती धंसी, न आसमान फटा. बस में बैठे सभी मर्द, जिन्हें ‘मर्द’ कहना एक गाली ही है, थरथर कांपते हुए अपनी बहन, बेटी व पत्नी की आबरू लुटते देखते रहे. उन में से एक भी माई का लाल ऐसा न निकला जिस के सर्द लहू में उबाल आया हो. वरना क्या 40-45 पुरुष उन 8-10 सिरफिरों पर भारी न पड़ते? बेशक उन के पास बंदूकें थीं, वे गोलियों से भून देते, जैसा कि बाद में उन्होंने किया भी. पर वे प्रतिकार तो करते.

‘‘लेकिन नहीं, किसी ने भी अपनी जान दांव पर लगाने की जहमत नहीं उठाई. बाद में उन आतंकवादियों ने सभी यात्रियों को गोलियों से छलनी कर दिया. मुझे भी मरा समझ कर छोड़ गए थे. पर उस कुचले शरीर की सांस भी बड़ी बेशर्म थी, जो चल रही थी, बंद नहीं हुई थी.’’

रबड़ स्टैंप “महामहिम” नीतीश कुमार…!

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की पहल बड़ी मजबूती से की गई है. यह पहल  उनके राजनीतिक सलाहकार रहे प्रशांत किशोर ने की है. एक तरफ अच्छा खासा समर्थन मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ प्रश्न भी खड़े हो गए हैं.

आईए इस रिपोर्ट में हम आपको बताते चलें कि आगामी जुलाई 2022  में जब राष्ट्रपति पद का चयन होगा.

ऐसे में पहले पहल नीतीश कुमार जो कि भाजपा के साथ हैं मगर वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री हैं अपनी राजनीतिक रस्साकशी में फंस कर के क्या राष्ट्रपति पर शोभायमान करेंगे. महामहिम राष्ट्रपति बन सकेंगे अथवा 2 वर्ष बाद 2025 में जब बिहार में विधानसभा का चुनाव होगा तो लालू प्रसाद यादव पुत्र तेजस्वी यादव की आंधी में हाशिए पर चले जाएंगे.

दरअसल,भारतीय राजनीति में कुछ अनोखे मजेदार खेल होते रहते हैं . कभी-कभी वे अपनी पूर्णता को भी प्राप्त कर लेते हैं, कभी उनकी भूण हत्या हो जाती है.

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ऐसा ही एक खेल है जो आज देश भर में चर्चा का बयास बना हुआ है वह है- नीतीश कुमार का महामहिम राष्ट्रपति बनना.

यह मजेदार खेल इसलिए है कि कभी नीतीश कुमार विपक्ष में प्रधानमंत्री का चेहरा हुआ करते थे. 2017 के लोकसभा चुनाव के पहले विपक्ष के प्रधानमंत्री के प्रमुख चेहरा बने नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने जा रहे नरेंद्र दामोदरदास मोदी के कट्टर विरोधी हुआ करते थे .और तो और मोदी के संप्रदायिक चेहरे के कारण उन्होंने उनके साथ मंच शेयर करना भी स्वीकार नहीं किया था.

ऐसे में राजनीति किस कदर बदलती है.यह मजेदार घटनाक्रम बड़े ही रोचक होते हैं. ऐसा ही एक प्रसंग नीतीश कुमार का महामहिम बनना भी हो सकता है. पाठकों को हमें बताते चलें कि नीतीश कुमार 2017 में भाजपा के नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरे-धीरे अपना हृदय परिवर्तन करते हैं और लालू यादव को छोड़ कर के बिहार में भाजपा के साथ सरकार बना लेते हैं. यह हम सब ने देखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और नीतीश कुमार का घात प्रतिघात खुली किताब की तरह है. केंद्रीय मंत्रिमंडल में कटौती के बाद नितीश कुमार का चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेना और आगे चलकर के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को पटखनी मिलने के बाद नरेंद्र मोदी का उन्हें मुख्यमंत्री पद पर आसीन कराना यह सब हमारे सामने है. ऐसे संबंधों की गुत्थी के बीच सबसे लाख टके का सवाल यह है कि क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद पर देखना पसंद करेंगे या फिर चाहेंगे कि कोई “स्टांप पैड”  पुनः राष्ट्रपति बने.

नीतीश, मोदी के लिए एक “दर्द”

कुल मिलाकर के विपक्ष द्वारा नीतीश कुमार को जिस तरह राष्ट्रपति पद के लिए प्रोजेक्ट किया जा रहा है और यह संदेश दिया जा रहा है कि सर्वसम्मति से नीतीश कुमार राष्ट्रपति बन सकते हैं . यह गूगली प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और भाजपा के लिए एक सर दर्द बन सकती है.

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क्यों और कैसे हम इस रिपोर्ट में खुलासा करने जा रहे हैं.

पहले यह जानते चलें कि

विपक्ष द्वारा साझा उम्मीदवार बनाने की संभावनाओं पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा -” इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। ना ही ऐसा कोई आइडिया है.”

इसी तरह भाजपा गठबंधन में में शामिल “हम” सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने की पहल का समर्थन किया है.जदयू नेताओं ने कहा है कि यह बिहार के लिए गौरव की बात होगी.

राजनीतिक हलचल से आप यह कयास लगा सकते हैं कि आने वाला समय जब राष्ट्रपति चुनाव अपने उफान पर होगा क्या-क्या स्थितियां बन बिगड़ सकती हैं.

दरअसल, प्रशांत किशोर पहले चरण के गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों को इस मुद्दे पर सहमत करने के प्रयास में हैं. इस सिलसिले में प्रशांत किशोर ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से सहमति ले ली है. आगे क्षेत्रीय दलों में सहमति बनने पर प्रशांत किशोर का अगला कदम कांग्रेस से सहमति लेने का होगा. इसमें वे सफल हुए तो भाजपा एक चक्रव्यूह में होगी.

अब हम आपको बताते चलें कि  नीतीश कुमार के नाम पर सर्वसम्मति बन सकती है .  तब क्या भाजपा‌ और उसके वर्तमान नेतृत्व को यह मंजूर होगा.

शायद कतई नहीं. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के मनोविज्ञान  या कहें प्रकृति को जानने वाले मानते हैं कि नीतीश कुमार का राष्ट्रपति बनना यह माना जाएगा कि भाजपा के भविष्य के लिए सरदर्द बन सकता है.

क्योंकि नीतीश कुमार को जानने वाले यह जानते हैं कि वे कुछ भी हों, मगर रबड़ स्टांप तो नहीं हो सकते.

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