देश में हर साल 17 लाख लोग हृदय संबंधी रोग के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं. इस में एक बड़ी संख्या छोटे बच्चों की भी है. विडंबना यह है कि सरकारी अस्पतालों की कमी और प्राइवेट अस्पतालों की ऊंची फीस ने इस बीमारी को बच्चों के लिए घातक बना दिया है.

देश में लगातार तेजी से हृदय संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है. भारत में हर साल 17 लाख लोगों की हृदय रोग से मौत हो जाती है. लोग अकसर इस बीमारी को सिर्फ बुढ़ापे की बीमारी मान कर चलते हैं जोकि सरासर गलत है. एक रिसर्च के अनुसार, प्रति 1,000 में 10 बच्चे हृदय रोग से संबंधित बीमारियों से ग्रस्त हैं.

जब से कोविड महामारी आई है तब से हृदय रोग संबंधित बीमारियों ने और भी घातक रूप ले लिया है. कोविड की वजह से बच्चों की दिल की बीमारी को ले कर मातापिता काफी परेशान रहते हैं. आएदिन छोटे बच्चों में जन्मजात दिल की बीमारियों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है.

दुखद यह कि इस बीमारी से जू झ रहे बच्चों का महज 10-15 फीसदी ही इलाज हो पाता है. यही कारण है कि जवान होने से पहले ही ये बच्चे दम तोड़ देते हैं. जिन बच्चों की बीमारी डाइगनोस हो चुकी है उन्हें कोविड महामारी ने और भी गंभीर बना दिया है क्योंकि कई सरकारी अस्पतालों में कोविड की वजह से इन बच्चों का इलाज नहीं हो पाया.

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ज्यादातर बच्चों में जन्म से ही दिल में छेद, खून की नसों का सिकुड़ना, आर्टरी का ब्लौक होना और वौल्व में परेशानी की समस्या आती है. एक शोध में पाया गया है कि हर साल उत्तरी भारत में करीब 14 हजार बच्चे वहीं पूर्वी और दक्षिणी भारत में 1500 और 6500 सीएचडी यानी जन्मजात हृदय विकार के साथ पैदा होते हैं जिन्हें जन्म के पहले ही साल में इलाज की जरूरत होती है, पर ऐसा हो नहीं पाता, जो चिंता का विषय है.

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