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Anupamaa: अनुज-अनुपमा की होगी शादी? वनराज को लगेगा झटका

सुधांशु पांडे, रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और गौरव खन्ना (Gaurav Khanna) स्टारर सीरियल दर्शकों का मोस्ट फेवरेट शो बन चुका है. शो की कहानी में लगातार नये-नये ट्विस्ट के कारण दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो में अनुज-अनुपमा के लव एंगल का काफी समय से दर्शकों को इंतजार था. अब वो इंतजार भी खत्म हो गया है. अनुपमा ने भी प्यार का इजहार कर दिया है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के आने वाले एपिसोड में अनुज अनुपमा को शादी के लिए प्रपोज करने वाला है.  जी हां, शो में आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा साथ में बैठकर टीवी देख रहे होंगे. इसी बीच लाइट चली जाती है. तो वहीं अनुज के पत्ते से एक अंगूठी बनाकर अनुपमा के हाथ में रखता है और कहता है वह उससे शादी करना चाहता है.

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इसके बाद कहता है कि किसी खूबसूरत जगह पर या महंगे लोकेशन पर कीमती अंगूठी देते हुए प्रपोज करना उसे ठीक नहीं लगा. उसे यूं साथ में बैठकर मटर छीलते हुए ही हमसफर बनाना चाहता है. वह कहता है कि वह उसके साथ ऐसे ही आम लोगों की तरह एक जिंदगी जीना चाहता है. अनुपमा जवाब नहीं देती लेकिन शरमा के चुप हो जाती है.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि समर अनुपमा की बर्थडे के लिए तैयारी करेगा. तभी वनराज पूछेगा कि आखिर ये सब क्या है. तब समर बताता है कि अनुपमा की बर्थडे पार्टी बापूजी दे रहे हैं. ये बात सुनकर वनराज को झटका लगेगा.

 

तो दूसरी तरफ पाखी छिपकर किसी से बात करती है लेकिन किंजल के आते ही वह फोन रख देती है. इसके बाद किंजल पाखी से कहती है कि वह उससे भी अपने सीक्रेट शेयर कर सकती है वह उसकी दोस्त बन सकती है. तो पाखी कहती है कि वह अपने दोस्तों के साथ स्लीपओवर के लिए जाना चाहती है लेकिन बा नहीं समझेगी.

जेलकटटू राम रहीम पर “भाजपा” मेहरबान है

देश की आम जनता अब चौक चौराहे पर यह चर्चा कर रही है कि गंभीर आरोपों में जेल में बंद एक डेरा प्रमुख राम रहीम को अखिर हरियाणा की भाजपा सरकार ने किस जुगत में फरलो के तहत 21 दिन के लिए जेल से बाहर लाने कारनामा कर दिखाया है .

बात यह है कि सत्ता उसके हाथ पैर – यानी पुलिस के नुमाइंदे और प्रशासन अब राम रहीम की सुरक्षा को खतरा है कह कर जेड प्लस सुरक्षा दे दी गई है.

एक जेल कट्टू को देश की सर्वाधिक महत्वपूर्ण जेड प्लस सुरक्षा को देना बहुत कुछ सच दिखा गया है. चुनाव के इस समय में जब शुचिता सबसे ज्यादा महत्व रखती है भाजपा के नेताओं ने सत्ता सुंदरी की खातिर सारे नियम कानून और नैतिकता को ताक पर रख दिया है.

यह बड़े ही शर्म की बात नहीं है क्या कि जो लोग  देश प्रेम, और राष्ट्रवाद की बात करते नहीं अघाते हैं और दूसरों को देशद्रोही साबित करने मे थोड़ा भी समय नहीं लगाते ऐसे लोग जिन्हें नैतिकता का पालन करना चाहिए. यह लोग राम रहीम के मामले में बीच चौराहे पर देश में नंगे हो चुके हैं.

आखिर भाजपा राम रहीम पर इतनी तबीयत से निछावर क्यों है सिर्फ चुनाव के कारण, पंजाब में चल रहे चुनाव को प्रभावित करने के लिए राम रहीम को तुरुप के पत्ते के रूप में भाजपा उपयोग करने में लगी है.

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राजनीति का यह पतन यह दिखाता है कि सत्ता के लिए राजनीतिक पार्टियां क्या-क्या नहीं कर गुजरती है और सबसे चिंता का सवाल यह है कि देश का संविधान जिसमें सारे नियम कायदे दर्ज हैं वह मौन रह जाता है. क्योंकि जिनके ऊपर संविधान का पालन कराने का दायित्व है वह भी इसमें शामिल हो जाते हैं.

खूंखार अपराधियों से खतरा

अर्थात जो ” जेड प्लस सुरक्षा ” देश के प्रथम श्रेणी के नेताओं को मिलती है, प्रधानमंत्री जैसी विभूतियों को मिलती है, यह जेड सुरक्षा अगर बाबा राम रहीम को दी जा रही है तो प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है.

राम रहीम, जैसा सारे देश ने देखा है कि किस तरह कानून को अपने हाथ में लेकर न्यायालय पर, पुलिस पर दबाव बनाने का प्रयास किया गया कि राम रहीम तो निर्दोष है उसे फंसाया जा रहा है. मगर अपने गंभीर अपराधों के कारण आखिरकार राम रहीम को जेल जाना पड़ा और सजा भी घोषित हो चुकी है.

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ऐसे में अचानक जब पंजाब में और अन्य चार राज्यों में चुनाव चल रहा है तब राम रहीम को फरलो, 21 दिन की जमानत दे देना उसके बाद जेड प्लस सुरक्षा देना. यह दर्शाता है कि राम रहीम की पंजाब के चुनाव में इस्तेमाल करने की पूरी तैयारी है. अब पुलिस यह भी कह रही है कि राम  रहीम को तो खूंखार आतंकवादियों से खतरा है इसलिए जेड प्लस सुरक्षा दिया जाना अनिवार्य है. यह  चित्र देखकर शर्म आती है आज की राजनीति और सत्ता के खातिर बड़े-बड़े नेताओं के समर्पण को देख कर के ऐसा महसूस होता है कि आने वाले समय में क्या हमारे लोकतंत्र पर बाबा राम रहीम जैसे लोगों का वर्चस्व हो जाएगा.

देश की जनता जिस तरीके से इन सब मामलों को देखते हुए चर्चा कर रही है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि अब तो सिर्फ न्यायालय पर ही भरोसा है.

फिल्म स्टार्स: शादी के ठुमकों से भी करोड़ों की कमाई

वाकया अब से कोई 8 साल पहले का है. मशहूर बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान एक शादी में शामिल होने के लिए दुबई गए थे. विवाहस्थल था नामी मेडिनाट जुमैराह होटल, मेजबान थे अहमद हसीम खूरी और मरियम ओथमन,

जिन की गिनती खाड़ी के बड़े रईसों में शुमार होती है. मौका था इन दोनों के बेटे की शादी का, जो इतने धूमधाम से हुई थी कि ऐसा लगा था कि इस में पैसा खर्च नहीं किया गया बल्कि फूंका और बहाया गया है. इस की वजह भी है कि शायद ही खुद अहमद हसीम खूरी को मालूम होगा कि उन के पास कितनी दौलत है.

एक आम पिता की तरह इस खास शख्स की यह ख्वाहिश थी कि बेटे की शादी इतने धूमधाम से हो कि दुनिया याद रखे और ऐसा हुआ भी, जिस में शाहरुख खान का वहां जा कर नाच का तड़का लगाना एक यादगार लम्हा बन गया था.

चूंकि खूरी शाहरुख के अच्छे परिचित हैं, इसलिए यह न सोचें कि वे संबंध निभाने और शिष्टाचारवश इस शादी में शिरकत करने गए थे, बल्कि हकीकत यह कि वह वहां किराए पर नाचने गए थे. आधे घंटे नाचने की कीमत शाहरुख ने 8 करोड़ रुपए वसूली थी और मेजबानों ने खुशीखुशी दी भी थी.

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रियल एस्टेट से ले कर एयरलाइंस तक के कारोबार के किंग अहमद हसीम खूरी जो दरजनों छोटीबड़ी कंपनियों के मालिक हैं, के लिए यह वैसी ही बात थी जैसे किसी भेड़ के शरीर से 8-10 बाल झड़ जाना. लेकिन शाहरुख के लिए यह पैसा पूरी तरह से बख्शीश तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन बोनस जरूर था.

यह डील राशिद सैय्यद ने करवाई थी, जो दुबई में शाहरुख के इवेंट आयोजित करवाते हैं. इस डील में भी उन्हें तगड़ा कमीशन मिला था. यह वह दौर था जब शाहरुख खान अपनी बीमारी की वजह से निजी आयोजनों में जाने से परहेज करते थे, पर आधे घंटा ठुमका लगाने के एवज में मिल रही 8 करोड़ की रकम का लालच वह छोड़ नहीं पाए थे. क्योंकि सौदा कतई घाटे का न हो कर तगड़े मुनाफे का था.

ऐसा नहीं है कि शाहरुख देश की शादियों में नाचनेगाने की फीस चार्ज न करते हों. हां, वह कम जरूर होती है. आजकल वह शादियों में शामिल होने के 2 करोड़ लेते हैं और मेजबान अगर उन्हें नचाना भी चाहे तो यह फीस 3 करोड़ हो जाती है.

लेकिन समां ऐसा बंधता है कि लड़की या लड़के वाले के पैसे वसूल हो जाते हैं. शान से शादी करना हमेशा से ही लोगों की फितरत रही है और इस के लिए वे ज्यादा से ज्यादा दिखावा और खर्च करते हैं, जिस का बड़ा हिस्सा मनोरंजन पर खर्च होता है.

करोड़ों के ठुमके

एक दौर था जब अमीरों और जमींदारों के यहां की शादियों में नामी रंडियां, बेड़नियां और तवायफें दूरदूर से नाचने के लिए बुलाई जाती थीं. इन का नाच देखने और मुजरा सुनने के लिए खासी भीड़ इकट्ठी होती थी.

प्रोग्राम के बाद लोग मान जाते थे कि वाकई मेजबान इलाके का सब से बड़ा रईस और दिलदार आदमी है, जिस ने 11 बेड़नियां नचा कर फलां को मात दे दी, जो अपने बेटे की शादी में केवल 5 तवायफें ही ला पाया था.

5 हों या 7 या फिर 11, इन पेशेवर नचनियों को खूब मानसम्मान दिया जाता था और उन की खातिर खुशामद में कोई कमी नहीं रखी जाती थी. इन की फीस भी तब के हिसाब से तौलें तो किसी शाहरुख, सलमान, रितिक रोशन, अक्षय कुमार, कटरीना कैफ, अनुष्का शर्मा, रणवीर सिंह या प्रियंका चोपड़ा से कम नहीं होती थी.

ये सभी फिल्म स्टार शादियों और दूसरे निजी आयोजनों में हिस्सा लेने में अपनी और मेजबान की हैसियत के हिसाब से फीस लेते हैं, जो फिल्मों के अलावा इन की अतिरिक्त आमदनी होती है. हालांकि पैसों के लिए ये अब उद्घाटन के अलावा शपथ ग्रहण समारोहों तक में शामिल होने लगे हैं और विज्ञापनों व ब्रांड प्रमोशन से भी अनापशनाप कमाते हैं. लेकिन शादियों की बात कुछ अलग हटकर है.

वक्त के साथ शादियों के पुराने तौरतरीके बदले तो बेड़नियों और तवायफों की जगह फिल्म स्टार्स ने ले ली. शादियों में खासतौर से इन की मांग ज्यादा होती है, क्योंकि खुशी के इस मौके को लोग यादगार बना लेना चाहते हैं. ऐसे में अगर कोई फिल्मी सितारा वे अफोर्ड कर सकते हैं तो उसे बुलाने से चूकते नहीं.

ये डील सीधे भी होती हैं, पीआर एजेंसी और इवेंट कंपनियों के जरिए भी. और किसी जानपहचान वाले का फायदा भी उठाया जाता है. हालांकि अधिकांश बड़े सितारों ने इस बाबत अपने खुद के भी बिजनैस मैनेजर नियुक्त कर रखे हैं.

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शाहरुख खान वक्त की कमी के चलते साल में 3-4 से ज्यादा शादियों में नहीं जाते. इस से ही उन्हें कोई 10 करोड़ की सालाना कमाई हो जाती है. शाहरुख की तरह ही सलमान खान भी साल में 3-4 शादियों में ही शिरकत करते हैं. हां, उन की फीस थोड़ी कम 2 करोड़ रुपए है.

सलमान शादियों में दिल से नाचते हैं और घरातियों और बारातियों को भी खूब नचाते हैं. शाहरुख के बाद सब से ज्यादा मांग उन्हीं की रहती है. आप जान कर हैरान हो सकते हैं कि इन दोनों के पास साल में ऐसे यानी पेड डांस के कोई 200 न्यौते आते हैं, लेकिन ये जाते सिर्फ 3 या 4 में ही हैं.

अक्षय नहीं दिखाते ज्यादा नखरे

जिन्हें शाहरुख या सलमान खान से मंजूरी नहीं मिलती, वे अक्षय कुमार जैसे स्टार की तरफ दौड़ लगा देते हैं जो आसानी से मिल जाते हैं और इन की फीस भी उन से कम होती है. आजकल अक्षय कुमार डेढ़ करोड़ में नाचने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि उन का बाजार ठंडा चल रहा है.

अक्षय कुमार की यह खूबी है कि बेगानी शादी में यह दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे वर या वधु पक्ष के बहुत अजीज हैं. अब यह और बात है कि समझने वाले समझ जाते हैं कि वे आए तो किराए पर नाचने हैं.

अक्षय कुमार से भी सस्ते पड़ते हैं रणवीर सिंह, जिन की शादी में नाचने की फीस सिर्फ एक करोड़ रुपए है और केवल शादी में शामिल होना हो यानी नाचना न हो तो वे 50 लाख में भी मुंह दिखाने को तैयार हो जाते हैं.

‘कहो न प्यार है’ फिल्म से रातोंरात स्टार बन बैठे रितिक रोशन शादी में शामिल होने के लिए एक करोड़ फीस चार्ज करते हैं और नाचना भी हो तो इस अमाउंट में 50 लाख रुपए और जुड़ जाते हैं. यानी डेढ़ करोड़ रुपए

कपूर खानदान के रणबीर कपूर कभीकभार ही ऐसे न्यौते स्वीकारते हैं, उन की फीस डेढ़ करोड़ रुपए है.

सस्ती पड़ती हैं एक्ट्रेस

नायकों के मुकाबले शादियों में नचाने को नायिकाएं सस्ती पड़ती हैं जबकि उन में आकर्षण ज्यादा होता है. सब से ज्यादा डिमांड कटरीना कैफ की रहती है, जिन की फीस बड़े नायकों के बराबर ढाई करोड़ रुपए है.

कटरीना को अपनी शादी में नाचते देखने का लुत्फ वही उठा सकता है, जो घंटा आधा घंटा के एवज में यह भारीभरकम रकम खर्च कर सकता हो. हालांकि ऐसे शौकीनों की कमी भी नहीं. कटरीना के बराबर ही मांग प्रियंका चोपड़ा की रहती है. उन की फीस भी ढाई करोड़ है, जिसे अदा कर उन से ठुमके लगवाए जा सकते हैं.

इन दोनों को टक्कर देने वाली करीना कपूर डेढ़ करोड़ में शादी को यादगार बनाने के लिए तैयार हो जाती हैं और नाचती भी दिल से हैं. तय है कपूर खानदान की होने के नाते वे भारतीय समाज और उस की मानसिकता को बारीकी से समझती हैं कि लोग बस इस मौके को जीना चाहते हैं जिस में उन का रोल एक विशिष्ट मेहमान का है.

उन के दादा राजकपूर की हिट फिल्म ‘प्रेम रोग’ में अचला सचदेव नायिका पद्मिनी कोल्हापुरे की शादी में बहैसियत तवायफ ही आई थीं. इस दृश्य के जरिए राजकपूर ने दिखाया था कि ठाकुरों और जमींदारों के यहां शादियों में नाचगाना 7 फेरों से कम अहमियत नहीं रखता और इस पर वे खूब पैसे लुटाते हैं.

रणवीर सिंह की पत्नी दीपिका पादुकोण भी सस्ते में शादी में जाने तैयार हो जाती हैं उन की फीस महज एक करोड़ रुपए है. नामी अभिनेत्रियों में सब से किफायती अनुष्का शर्मा हैं, जो शादी में शामिल होने के 50 लाख और नाचना भी हो तो एक करोड़ रुपए लेती हैं. क्रिकेटर विराट कोहली से शादी करने के बाद भी उन की फीस बढ़ी नहीं है.

वजह कुछ भी हो, शादी को रंगीन और यादगार बनाने के लिए अभिनेत्रियां कम पैसों में मिल जाती हैं. मसलन, सोनाक्षी सिन्हा जो मोलभाव करने पर 25 लाख में भी नाचने को राजी हो जाती हैं, जबकि वह भारीभरकम फीस वाली अभिनेत्रियों से उन्नीस नहीं और उन के मुकाबले जवान और ताजी भी हैं.

युवाओं में उन का खासा क्रेज है. सोनाक्षी से भी कम रेट में उपलब्ध रहती हैं दीया मिर्जा, सेलिना जेटली और गुजरे कल की चर्चित ऐक्ट्रेस प्रीति झिंगयानी और एक वक्त का बड़ा नाम अमीषा पटेल, जिन्होंने रितिक रोशन के साथ ही ‘कहो न प्यार है’ फिल्म से डेब्यू किया था.

इमेज है बड़ा फैक्टर

अपने बजट को ही नहीं बल्कि लोग इन कलाकारों को बुलाते समय अपनी प्रतिष्ठा और उन की इमेज को भी ध्यान में रखते हैं. क्या कोई अरबपति उद्योगपति राखी सावंत को अपने यहां शादी में बुलाएगा, जबकि उस की फीस महज 10 लाख रुपए है? जबाब है बिलकुल नहीं बुलाएगा, क्योंकि राखी की इमेज कैसी है यह सभी जानते हैं.

राखी सावंत को बुलाया तो जाता है और वह हर तरह से नाचती भी हैं लेकिन उन के क्लाइंट आमतौर पर वे नव मध्यमवर्गीय होते हैं जो अपनी धाक समाज में जमाना चाहते हैं.

यही हाल केवल 25 लाख में नाचने वाली पोर्न स्टार सनी लियोनी का है, जिन की क्लाइंटल रेंज उन्हीं की तरह काफी कुछ हट कर है.

राखी और सनी जैसी दरजन भर छोटी अभिनेत्रियों की आमदनी का बड़ा जरिया ये शादिया हैं, जिन में शिरकत करने और नाचने को वे एक पांव पर तैयार रहती हैं. इसी क्लब में मलाइका अरोड़ा भी शामिल हैं, जिन की फीस भी कम 15 लाख है.

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हरियाणवी डांसर सपना चौधरी के धमाकेदार डांस और बेबाक अंदाज को तमाम लोग पसंद करते हैं. स्टेज शो के अलावा शादी समारोह में जाने के लिए वह एक लाख रुपए में ही तैयार हो जाती हैं. लेकिन वह 50 प्रतिशत एडवांस लेती हैं.

बड़े नायक और नायिकाएं अपने यहां शादियों में नचवा कर लोग न केवल अपनी रईसी झाड़ लेते हैं बल्कि धाक भी जमा लेते हैं. लेकिन कोई कभी खलनायकों को नहीं बुलाता. कभीकभार शक्ति कपूर शादियों में 10 लाख रुपए में ठुमका लगाने चले जाते हैं पर अब उन की इमेज कामेडियन और चरित्र अभिनेता की ज्यादा बन चुकी है. वैसे भी वह जिंदादिल कलाकार हैं जिस का बाजार और कीमत अब खत्म हो चले हैं.

बदलता दौर बदलते लोग

शादी में हंसीमजाक, नाचगाना न हो तो वह शादी कम एक औपचारिकता ज्यादा लगती है. इसलिए इन में हमेशा कुछ न कुछ नया होता रहता है.

60-70 के दशक में बेड़नियां और तवायफें नचाना उतने ही शान की बात होती थी, जितनी कि आज नामी स्टार्स को नचाना होती है. जरूरत बस जेब में पैसे होने की है. शादियों में नाचने से फिल्मी सितारों को आमदनी के साथसाथ पब्लिसिटी भी मिलती है.

इन के दीगर खर्च और नखरे भी आमतौर पर मेजबान को उठाने पड़ते हैं मसलन हवाई जहाज से आनेजाने का किराया, 5 सितारा होटलों में स्टाफ सहित ठहरने का खर्च और कभीकभी तो कपड़ों तक का भी. बशर्ते मेजबान ने यदि कोई ड्रेस कोड रखा हो तो नहीं तो ये लोग अपनी पसंद की पोशाक पहनते हैं.

शादियों में फिल्मी सितारों का फीस ले कर नाचने और ठुमकने का कोई ज्ञात इतिहास नहीं है, लेकिन इस की शुरुआत का श्रेय उन छोटीबड़ी आर्केस्ट्रा पार्टियों को जाता है, जिन्होंने 80 के दशक से शादियों में गीतसंगीत के स्टेज प्रोग्राम देने शुरू किए थे.

बाद में इन में धीरेधीरे छोटे और फ्लौप कलाकार भी नजर आने लगे. आइडिया चल निकला तो देखते ही देखते नामी सितारों ने इसे धंधा ही बना डाला.

शादियों में इस दौर में महिला संगीत और हल्दी मेहंदी का चलन भी तेजी से समारोहपूर्वक मनाने का बढ़ा था, जिस में रंग इन स्टार्स ने भरना शुरू कर दिया. थीम वेडिंग के रिवाज से भी इन की मांग बढ़ी.

इस के बाद भी यह बाजार बहुत बड़ा नहीं है क्योंकि इन की फीस बहुत ज्यादा है, जिसे कम लोग ही अफोर्ड कर पाते हैं. हां, सपना हर किसी का होता है कि उन के यहां शादी में कोई सलमान, शाहरुख, अक्षय, कटरीना या प्रियंका नाचें, लेकिन यह बहुत महंगा सपना है.

जानिए बाईं करवट सोने के हैरान कर देने वाले फायदे

सोते वक्त लोग किस पोजिशन में सो रहे हैं ये उन्हें पता नहीं होता. पर क्या आपको बता है कि आपके सोने के तरीके में आपके स्वास्थ का राज छिपा है? इसका सीधा असर आपकी हेल्थ पर होता है. ऐसे में हम आपको सोने की ऐसी पोजिशन के बारे में बताने वाले हैं जो सेहत की बेहतरी में काफी मददगार होगा.

बाईं करवट सोना होता है सेहत के लिए अच्छा. इस खबर में हम आपको बाईं करवट सोने के फायदों के बारे में बताएंगे.

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  • जानकारों की माने तो बाईं करवट सोना सबसे अच्छा होता है. ऐसा इस लिए क्योंकि शरीर के सारे अंग इस पोजिशन में बेहतर काम करते हैं.
  • जिन लोगों को खर्राटे की परेशानी है उनके लिए ऐसे सोना ज्यादा जरूरी होता है. असल में बाईं करवट सोने से जुबान और गला न्यूट्रल पोजिशन में रहते हैं, जिससे सोते समय सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होती है.
  • बाईं करवट सोने से गर्दन और कमर दर्द में राहत मिलती है. किडनी और लीवर के लिए भी ये पोजिशन अच्छा रहता है. गैस और सीने में जलन के अलावा अल्जाइमर का खतरा भी कम होता है.
  • इस ओर से सोने से पाचनतंत्र अच्छा रहता है. असल में होता है कि बाईं करवट सोने से शरीर में मौजूद सारे वेस्ट्स आसानी से छोटी आंत से बड़ी आंत में पहुंच जाते हैं. ऐसे में पेट की बीमारी का खतरा कम रहता है.

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  • जानकारों की माने तो गर्भवती महिलाओं को अधिकतर बाईं करवच ही सोना चाहिए. ऐसा इस लिए क्योंकि बाईं करवट सोने से महिलाओं के कमर पर कम दबाव पड़ता है इसके अलावा गर्भाशय और भ्रूम में खून का बहाव सही तरीके से होता है.
  • हमारा दिल बाईं ओर होता है, ऐसे में जब हम उसी ओर करवट कर के सोते हैं तो इससे दिल पर कम दबाव पड़ता है और दिल सेहतमंद रहता है.

 

Manohar Kahaniya: नेस्तनाबूद हुआ मेरठ का चोरबाजार

  सौजन्य- मनोहर कहानियां 

मेरठ के सोतीगंज को गाडि़यों के ‘कमेले’ के नाम से जाना जाता है, जहां चोरी की गाडि़यों के पुरजेपुरजे अलग कर दिए जाते थे. ढाई दशक से होने वाला ये काम किसी से छिपा नहीं था, लेकिन इस बाजार पर एक आईपीएस अफसर की ऐसी नजर लगी कि चंद महीनों में ही इस के नेस्तनाबूद होने की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में पलेबढ़े सूरज राय के लिए मेरठ एकदम अलग तरह के माहौल का शहर था. एकदम नया शहर और नए मिजाज के लोग थे. आईपीएस सूरज राय मेरठ (सदर) के सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर 2 दिसंबर, 2020 को नियुक्त हो कर आए थे.

तैनाती के 2 दिन बाद ही सूरज अपनी मां के साथ मेरठ के सदर बाजार कैंट इलाके में स्थित प्रतिष्ठित औघड़नाथ मंदिर में दर्शन करने  के लिए गए. मंदिर में दर्शन व पूजा के बाद मंदिर परिसर में कृष्ण मंदिर के पुजारी को उदास देख कर सूरज राय ने उन से सहज ही पूछ लिया, ‘‘क्या बात है पुजारीजी, बड़े उदास लग रहे हो. सब खैरियत है तबीयत ठीक है ना?’’

‘‘सब कुछ ठीक है साहब, बस थोड़ा नुकसान हो गया इसीलिए मन परेशान है.’’ पुजारी ने कहा.

‘‘क्षमा चाहता हूं पुजारीजी, क्या बड़ा नुकसान हो गया जो इतनी चिंता में हैं. बता दीजिए, हो सकता है हम कुछ मदद कर दें.’’ सूरज राय ने सरल स्वभाव में पूछ भी लिया.

‘‘नुकसान छोटा है लेकिन हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए बड़ा भी है. दरअसल, बेटे की बाइक चोरी हो गई है हीरो होंडा पैशन. 3-4 महीने पहले ही खरीदवाई थी और कल चोरी हो गई.’’ पूजा की थाली सूरज राय के हाथों में वापस करते हुए पुजारी ने कहा.

‘‘फिर तो हम ही आप की मदद कर पाएंगे पुजारीजी.’’ सूरज राय बोले.

सूरज राज ने अपना परिचय दे कर पुजारी को बताया कि वह सदर सर्किल के सीओ हैं और वे बाइक चोरी की रिपोर्ट लिखवाएं, पुलिस उन की गाड़ी को जरूर बरामद कर लेगी.

परिचय जानने के बाद भी पुजारी के चेहरे पर आशा की चमक दिखाई नहीं पड़ी तो उन्होंने पुजारी से पूछ ही लिया, ‘‘महाराजजी, आप को कोई खुशी नहीं हुई क्या?’’

‘‘नहीं साहब, रिपोर्ट तो हम ने लिखा दी थी कल ही. लेकिन इस गाड़ी का मिलना आसान काम नहीं है. आप शायद नहीं जानते, यहां सोतीगंज है, जहां एक बार चोरी की गाड़ी चली जाए तो वह उसी तरह कतराकतरा हो जाती है, जैसे पशुओं के कमेले में मरे हुए जानवर की हड्डी, खाल, मांस और दूसरे हिस्सों के छोटेछोटे हिस्सों में बांट कर बहुत सारे लोगों को बेच दिया जाता है. बस, फर्क ये है कि सोतीगंज चोरी की मोटरसाइकिल और कारों के बेचे जाने का वो बाजार है, जहां एक बार गाड़ी पहुंच गई तो उस का मालिक भी नहीं पहचान सकता कि वहां मौजूद छोटेछोटे पुरजों में से कौन सा पुरजा उस की गाड़ी का है.’’

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पुजारीजी ने इतने साधारण ढंग से एएसपी सूरज राय को ये बात समझाई कि ज्यादा कहे बिना ही वह सारी बात समझ गए.

उन्होंने पुजारी से कहा कि वह कोशिश करेंगे कि उन के बेटे की बाइक जल्द बरामद हो जाए.

यह कह कर सूरज राय अपनी माताजी के साथ वहां से चले गए. लेकिन सोतीगंज को ले कर कही गई हर बात उन के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह उतर गई.

सूरज राय ने खंगाली कबाडि़यों की कुंडली

एएसपी सूरज राय ने उसी दिन अपने सर्किल के तीनों थानों के प्रभारी और वहां तैनात सबइंसपेक्टरों की एक मीटिंग बुलाई. उन्होंने सभी से एकएक कर सोतीगंज के बाजार के बारे में जानकारी ली कि आखिर वहां क्या होता है, क्यों इस इलाके के बारे में लोगों की धारणा इतनी गलत है.

इस के बाद उन के सामने जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर तो एएसपी सूरज राय को लगा कि मानो वे मुंबई के कौफर्ड मार्केट के बारे में कोई कहानी सुन रहे हैं, जहां चोरी व तसकरी कर के लाया गया इंपोर्टेड सामान खुलेआम मिलता है.

सूरज राय ने जब अपने मातहत अफसरों से पूछा कि सोतीगंज बाजार के कबाडि़यों के खिलाफ वे काररवाई क्यों नहीं करते तो कारण भी पता चल गया कि इस बाजार में सब कुछ इतना संगठित तरीके से होता है कि पुलिस को कोई सबूत हाथ नहीं लगता.

स्थानीय पुलिस ही नहीं, दूसरे राज्यों व दूसरे जिलों की पुलिस भी अकसर वाहन चोरों से पूछताछ के बाद वहां छापा मारने आती है. पहली बात तो इस इलाके से किसी को गिरफ्तार कर के ले जाना ही बेहद मुश्किल काम है लेकिन अगर कोई ले भी जाए तो पुलिस के पास ऐसे साक्ष्य ही नहीं होते कि इन कबाडि़यों को बहुत दिनों तक सलाखों के पीछे रखा जा सके.

सूरज राय को जो कुछ जानकारी मिली, जाहिर है उस में बहुत सी बातें ऐसी थीं जो हकीकत में पुलिस के सामने एक चुनौती होती है. लेकिन सूरज राय औघड़नाथ मंदिर के पुजारी की पीड़ा और तंज सुनने के बाद इतने बेचैन हो चुके थे कि उन्होंने मन बना लिया था कि जो आज तक नहीं हो सका, उसे वह संभव कर के दिखाएंगे. वह चोरी की गाडि़यों के कमेले सोतीगंज का वजूद मिटा कर रहेंगे.

कहते हैं, जहां चाह होती है वहां राह होती है. एएसपी सूरज राय ने जो ठाना था मुश्किल जरूर था, लेकिन नामुमकिन नहीं. लिहाजा उन्होंने अपने सर्किल के सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि वे अपने स्टाफ और मुखबिरों को लगा कर ऐसी लिस्ट बनाएं, जिस से पता चले कि कि सोतीगंज के कबाड़ी बाजार में कितने दुकानदार हैं, जो चोरी किए वाहनों को खरीद कर उसे कटवाते हैं और फिर पुरजापुरजा कर के बेच देते हैं.

किस कबाड़ी के खिलाफ स्थानीय पुलिस से ले कर बाहर से आने वाली पुलिस टीमों की क्या शिकायतें हैं. इन कबाडि़यों के गोदाम कहां हैं, उन के साथ कितने लोग काम करते हैं और क्या उन के पास गाडि़यों के पुरजे बेचने का कोई वैध पंजीकरण है तथा वे ये पुरजे कहां से लाते हैं, इस का विवरण रखने के उन के पास क्या इंतजाम हैं.

करीब एक पखवाड़े बाद जब एएसपी सूरज राय ने दोबारा मीटिंग ली तो मातहत अफसरों ने उन के सामने सोतीगंज बाजार के बारे में मांगी गई तमाम जानकारियों का पुलिंदा रख दिया.

सवाल था कि अब इस पर काररवाई कैसे हो. लिहाजा सूरज राय ने सब से पहले अपने एसएसपी अजय साहनी और एडीजी स्तर के अधिकारियों को विश्वास में ले कर अपने इरादों से अवगत कराया और उन से अनुमति हासिल की.

इस के बाद उन्होंने जनवरी, 2021 के शुरुआती हफ्ते में ही स्थानीय पुलिस और पीएसी के अतिरिक्त बल को साथ ले कर सब से पहले बाइक चोरी करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया.

सूरज ने सोतीगंज में सक्रिय दोपहिया वाहनों के कबाड़ माफिया मन्नू कबाड़ी और इरफान उर्फ राहुल काला पर पर सब से पहले शिकंजा कसते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस काररवाई का विरोध इस बाजार की फितरत है, लेकिन सूरज राय की तैयारी पूरी थी. जिस ने भी विरोध किया उसे बल प्रयोग कर के सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया. सब से बड़ी चुनौती उस दुरुस्त कागजी काररवाई की थी, जिस के अभाव में अभी तक ये कबाड़ माफिया छूट जाते थे.

मन्नू कबाड़ी से शुरू हुई काररवाई

इस के लिए सूरज राय ने गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का सहारा लिया. इस सेक्शन के अनुसार अगर जांच अधिकारी को यह जानकारी मिलती है कि अपराधी ने अपनी संपत्ति अपराध के बल पर अर्जित की है तो उस संपत्ति को जब्त किया जा सकता है.

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सूरज राय ने मन्नू कबाड़ी की फाइल खोली. उस से संपत्ति की जानकारी, पिछले 10 साल के इनकम टैक्स रिटर्न, बैंक स्टेटमेंट मांगे गए तो पाया गया कि मन्नू कबाड़ी के पास संपत्ति से जुड़े कोई भी दस्तावेज मौजूद नहीं हैं.

सूरज राय ने सब से पहले गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का उपयोग कर के मन्नू कबाड़ी की 6 बीघा जमीन, 2 बसें और एक करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति जब्त की.

मन्नू कबाड़ी के जरिए सूरज राय इस पूरे बाजार के सभी कबाडि़यों को एक बड़ा संदेश देना चाहते थे. इसलिए उस की संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों के तहसील से जमीन के कागज, रजिस्ट्रार औफिस से रजिस्ट्रैशन के पेपर, संभागीय परिवहन कार्यालय से वाहनों की जानकारी के साथ नगर निगम और आयकर विभाग से जानकारी जुटाने में 6 महीने से अधिक समय लग गया.

एएसपी सूरज राय ने हर विभाग से जानकारी जुटाने के लिए अलगअलग टीमों का गठन किया था. इसी प्रक्रिया के

तहत मार्च में गिरफ्तार हुए राहुल काला के सोतीगंज में गोदाम और उस के मकान की कुर्की कराई गई.

इस कड़ी काररवाई का असर यह हुआ कि मेरठ और आसपास के जिलों में अचानक कुछ ही महीनों में दोपहिया वाहनों की चोरी में 70 फीसद की गिरावट आ गई. क्योंकि दोपहिया वाहनों की बिक्री के सब से बड़े सौदागर सलाखों के पीछे पहुंच चुके थे और छोटे कबाड़ी चोरी का माल खरीदने में या तो सावधानी बरत रहे थे या बच रहे थे.

मन्नू कबाड़ी के भाई जावेद और आकिब भी दोपहिया वाहन काटने के धंधे में सहयोग करते थे, लेकिन इन का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. लेकिन सूरज राय ने जावेद और आकिब को गुंडा ऐक्ट में नामजद करवा कर उन की हिस्ट्रीशीट खुलवाई तथा 6 महीने के लिए दोनों को जिलाबदर करा दिया.

सोतीगंज में एक साल के दौरान करीब 10 से 12 हजार चोरी के दोपहिया वाहन काटे जाते थे, जिसे मई 2021 तक आतेआते पुलिस ने पूरी तरह बंद करा दिया.

सोतीगंज में दोपहिया वाहनों की कटान भले ही बंद हो गई थी, लेकिन चारपहिया वाहनों की कटान अभी भी जारी थी. इसी बीच एसएसपी अजय साहनी का तबादला हो गया और जून में प्रभाकर चौधरी ने एसएसपी की कमान संभाली.

प्रभाकर चौधरी को सूरज राय के सोतीगंज बाजार के खिलाफ छेड़े गए अभियान की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए उन्होंने सूरज राय को बुला कर कहा कि छोटी मछलियों का शिकार बहुत हो गया सूरज, अब बड़े मगरमच्छों का सफाया करो.

अपराध के खिलाफ संघर्ष करने वाले किसी पुलिस अधिकारी के लिए अपने उच्चाधिकारी का ऐसा आदेश किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होता. जो अभियान थोड़ा सुस्त हुआ, सोतीगंज में वही अभियान अब चारपहिया वाहनों की चोरी और अवैध कटान के धंधे को नेस्तनाबूद करने के इरादे से दोबारा शुरू हो गया.

प्रभाकर चौधरी ने कबाड़ माफिया के इस कमेले के खिलाफ अभियान चलाने की पूरी जिम्मेदारी सूरज राय को सौंप दी. काररवाई करने के इरादे पहले से ही थे, इसीलिए सूरज राय ने तैयारी भी पहले से कर रखी थी.

सोतीगंज के 2 बड़े माफिया हाजी गल्ला और हाजी इकबाल के कारोबार से जुड़ी सारी जानकारियां उन्होंने पहले से जुटा कर पूरी फाइल तैयार करा ली थी. उन के घर, कारोबारी ठिकानों, गोदामों साथ में काम करने वालों से ले कर काली कमाई से हासिल की गई संपत्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ली थी.

इस के बाद अगस्त 2021 में शुरू हुआ मेरठ पुलिस का वह अभियान जिस की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ने लगी.

कबाड़ बाजार की बड़ी मछली है हाजी गल्ला

हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम कितना बड़ा चोर, चोरी के माल को खरीदने वाला कितना बड़ा कबाड़ी है, इस का अनुमान आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि उस के खिलाफ चोरी व लूट के वाहन खरीदने के 32 मुकदमे अलगअलग थानों में दर्ज हैं. बेटों के साथ हाजी गल्ला के फरार होते ही पुलिस ने उस के व उस के बेटों के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी.

साल 2017 से पहले हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम पर कभी काररवाई नहीं हुई. 2017 से पहले पुलिस ने गल्ला के घर पर कभी दबिश नहीं दी थी. हाजी गल्ला के पैसों की धमक सत्ता के गलियारों तक गूंजती थी, वह सत्ताधारी नेताओं से साठगांठ बड़ी मजबूती से रखता था.

उस की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अखिलेश यादव की सरकार में हाजी गल्ला ने एक मंत्री से सांठगांठ कर रात में ही एक इंसपेक्टर और एक उच्च अधिकारी का ट्रांसफर करा दिया था.

हाजी गल्ला का दुस्साहस ऐसा था कि उस के गुर्गे थानों में खुलेआम कहते फिरते थे कि गल्ला पर हाथ डालने का मतलब है मेरठ से ट्रांसफर.

लेकिन सूरज राय इस बार हाजी गल्ला को पुलिस और कानून की ताकत का अहसास कराने की सौंगध ले चुके थे. लिहाजा उन्होंने हाजी गल्ला के खिलाफ एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी.

जब हाजी गल्ला के ऊपर सूरज राय की अगुवाई में पहली बार पुलिस प्रशासन का डंडा चला तो हाजी गल्ला अपने 4 बेटों के साथ भाग निकला और किसी बिल में जा कर छिप गया.

पुलिस प्रशासन ने उस पर पर 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया. लेकिन इस बार पुलिस गल्ला की फरारी से संतुष्ट हो कर चुप बैठने वाली नहीं थी. इस बार काली कमाई के इस कबाड़ी को कंगाल बनाने की सारी तैयारी थी.

लिहाजा पुलिस ने हाजी गल्ला व उस के बेटों फुरकान, अलीम, बिलाल व इलाल के खिलाफ अदालत से अगस्त 2021 महीने में ही कुर्की वारंट हासिल कर लिया.

गल्ला को जैसे ही इस की जानकारी मिली तो सिंतबर में एक दिन मौका पा कर उस ने अपने चारों बेटों के साथ अदालत में सरेंडर कर दिया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

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हाजी गल्ला के ठिकाने कहांकहां हैं और उस का नेटवर्क कितना बड़ा है, इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे 3 दिन के रिमांड पर ले कर गहन पूछताछ की.

मेरठ में कबाड़ के कमेले के नाम से मशहूर सोतीगंज के बारे में आगे जानने से पहले हाजी गल्ला के बारे में जानना बेहद जरूरी है, जो इस कथानक का सब से अहम पात्र है.

गल्ला उर्फ नईम की कहानी शुरू होती है साल 1990 से जब गल्ला के पिता निजाम कुरसी बुनते थे और तैयार माल बाजार में बेचते थे. उस से पूरे परिवार का पेट पलता था.

साल 1993 में गल्ला जो पेशे से बाइक मैकेनिक था, उस ने पिता के कारोबार के साथ ही सोतीगंज में दोपहिया वाहनों के रिपेयरिंग की दुकान खोली. धीरेधीरे गल्ला कबाड़ वाला बन गया और इसी कबाड़ के धंधे की आड़ में उस ने चोरी की बाइक काटने का धंधा शुरू किया.

दिल्ली में वाहनों की बढ़ती संख्या और सुरक्षित पार्किंग की जगह न होने से वाहन चोरी करना आसान हो गया था. 50 हजार की बाइक को वाहन चोर मेरठ के सोतीगंज में 5 से 10 हजार में बेच देते और गल्ला जैसे कबाड़ी कुछ ही मिनटों में उसे काट कर उस के हर पुरजे को अलग कर देते और फिर उन पुरजों को अलगअलग खुलेआम बेच कर 30 हजार से अधिक की कमाई कर लेते.

हाजी गल्ला ने मुनाफे के इसी गणित को समझा और इस का पूरा फायदा उठा कर गाडि़यों के कटान के धंधे का सरताज बन बैठा. बाइक और इस के बाद चोरी के चारपहिया वाहनों को काटने का धंधा जोरों से चल निकला और इस अवैध कारोबार को उस ने धीरेधीरे सोतीगंज के अलावा कई स्थानों पर फैला दिया.

हाजी गल्ला पर पहली सख्त काररवाई जनवरी, 2015 में तत्कालीन युवा एएसपी और 2011 बैच के आइपीएस अधिकारी अभिषेक सिंह ने की थी.

अभिषेक ने हाजी गल्ला के वेस्ट एंड रोड स्थित गोदाम पर छापा मार कर बड़ी संख्या में वहां से गाडि़यों के अवैध कलपुरजे बरामद किए थे. इस के बाद 10 फरवरी, 2015 को हाजी गल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया था.

इस धंधे से अरबपति हो गया हाजी गल्ला

हालांकि बाद में हाजी गल्ला न केवल जमानत पर रिहा हो गया बल्कि उस ने अपनी राजनैतिक पहुंच का फायदा उठा कर प्रोन्नत हो कर मेरठ के एसपी (सिटी) के पद पर तैनात हुए अभिषेक सिंह का दूसरे जिले में तबादला भी करवा दिया.

इस के बाद हाजी गल्ला बिना किसी डर के अपने अवैध कारोबार में लगा रहा. पुलिस में भी हाजी गल्ला की राजनीतिक पहुंच का डर बैठ गया था.

बेशुमार दौलत कमाई और 2021 में हाजी गल्ला पहले करोड़पति और फिर अरबपति हो गया. हाजी गल्ला ने पिछले 25 सालों में अरबों रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया. उस ने सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में 2 आलीशान मकान खड़े कर दिए. 5 साल पहले पटेल नगर में कोठी खरीदी.

इस के अलावा गल्ला के उत्तराखंड में भी 100 करोड की संपत्ति खरीदने की बात सामने आई. गल्ला के कई प्लौट सदर बाजार इलाके में थे, जिन में ऊंची बाउंड्री कर गोदाम बना रखे थे. 6 गोदाम और कैंट जैसी जगह में फार्महाउस बना हुआ था.

गल्ला ने जितनी भी संपत्ति हासिल की थी, वो चोरी की गाडि़यों के कबाड़ को बेच कर अर्जित की गई थी. लेकिन उस की संपत्तियों में सब से चर्चित प्रौपर्टी थी वेस्ट एंड रोड की वो 235 नंबर की कोठी, जो असल में रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है और 15 साल पहले हाजी गल्ला ने इस पर कब्जा कर के गोरखधंधे से अपने नाम करा ली थी.

60 साल के हाजी नईम उर्फ गल्ला वैसे तो मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के सोतीगंज का रहने वाला है. सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में गल्ला के कुछ समय पहले तक उस के 6 गोदाम थे. इन गोदामों में चोरी व लूट के वाहन काटे जाते थे.

सोतीगंज के कबाडि़यों की 65 करोड़ की संपत्ति जब्त

हाजी नईम ने 2016 में देहलीगेट थाना क्षेत्र के पटेलनगर में 353 वर्गगज में 3 मंजिला आलीशान कोठी सवा 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी. इस समय पटेल नगर की इस कोठी की कीमत सरकारी तौर पर 4 करोड़ 10 लाख रुपए है.

जांच में सामने आया कि गल्ला ने अपने गिरोह के साथ मिल कर चोरी के वाहन काटने से अवैध संपत्ति अर्जित करते हुए इस कोठी को खरीदा था.

दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय का कहना है कि हाजी गल्ला के बंगला नंबर 235 की 2048 वर्गमीटर जमीन पर बना गोदाम रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है जिस के संबध में रक्षा संपदा विभाग की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कराई गई है.

इसी जमीन पर बने आलीशान बंगले में हाजी गल्ला चोरी और लूट के वाहनों को कटवाता था, जिस की बाजार कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है.

मेरठ पुलिस ने पहली जनवरी, 2022 को इसी 235 नंबर बंगले को कुर्क कर लिया. इस बंगले को कबाड़ी हाजी नईम उर्फ गल्ला ने 15 साल पहले फरजी दस्तावेजों के सहारे अपने नाम पर पंजीकृत करा लिया था.

बंगला नंबर 235 का एक भाग चोरी के वाहन कटान का मुख्य केंद्र था. इस बंगले के गेट ऐसे डिजाइन किए गए थे कि ट्रक और 16 पहिया वाहन आसानी से दाखिल हो जाते थे. बंगले का गेट इतना बड़ा था कि बड़े से बड़ा वाहन आसानी से अंदर दाखिल हो जाया करता था.

लेकिन इस गेट के अंदर दाखिल होने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी. पुलिस जब इस बंगले के अंदर दाखिल हुई तो चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ वाहनों के पुरजे देख कर दंग रह गई.

हाजी गल्ला के इस अवैध बंगले के अंदर दाखिल होते ही पुलिस को लगा, जैसे वे किसी जंगल में दाखिल हो गए हों. बंगले के अंदर मौजूद वाहनों के पुरजेपुरजे चीखचीख कर गवाही दे रहे थे कि यहां क्या काम हो रहा था.

हाजी इकबाल भी निकला बड़ा माफिया

पुलिस ने हाजी गल्ला के बाद इस इलाके के दूसरे सब से बड़े कबाड़ी हाजी इकबाल और तीसरे बड़े कबाड़ माफिया शाकिब उर्फ गद्दू को भी बेनकाब कर दिया. पुलिस ने जब इस इलाके के दूसरे सब से बड़े

कबाड़ी हाजी इकबाल के खिलाफ काररवाई शुरू की तो उस के भी जबरदस्त कारनामे उजागर हुए.

आरोप है कि इकबाल ने सोतीगंज में गुरुद्वारा रोड पर 5 करोड़ रुपए की कीमत की वक्फ बोर्ड की जमीन पर कब्जा किया हुआ था. यहां पर इकबाल चोरी के वाहन काटता और गाडि़यों में इंजन चेसिस नंबर बदलने का धंधा करता था. वक्फ बोर्ड ने इस की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी है जिस के बाद पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत इस संपत्ति को भी जब्त कर लिया.

इकबाल का नेटवर्क भी दूसरे जिलों तक फैला हुआ था. लखनऊ में चोरी की 500 गाडि़यां पुलिस ने बरामद की थीं. इन में इकबाल के बेटे अफजाल, अबरार का नाम भी सामने आया था. सोतीगंज के कबाडि़यों के पंजाब के अलावा उत्तराखंड में भी जमीन बताई गई. जहां पर करोड़ों की जमीन होनी बताई जा रही है. कबाडि़यों ने दूसरे राज्यों में होटल और अन्य कारोबार भी चला रखे हैं.

लूट और चोरी के वाहन काटने वाले सोतीगंज के हाजी गल्ला सहित 18 कबाडि़यों की संपत्ति का रिकौर्ड पुलिस खंगालने में जुट गई. बैंक खातों से ले कर संपत्ति की जानकारी लेने के लिए अब पुलिस के साथ जीएसटी की टीम भी लग गई.

पुलिस का दावा कि 18 कबाडि़यों ने गिरोह बना कर कई राज्यों में अपना नेटवर्क फैलाया था. सोतीगंज के कबाडि़यों पर शिकंजा कस चुकी पुलिस अब गिरफ्तार किए गए गल्ला व इकबाल के अलावा, जीशान उर्फ पौवा, मन्नू उर्फ मोईनुद्दीन, गद्दू और राहुल काला सहित अन्य कबाडि़यों की काली कमाई से अर्जित अवैध संपत्तियों का पता लगाने में जुट गई.

इन सभी के खिलाफ दस्तावेजी सबूत जुटा कर पुलिस ने इन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट सेक्शन 14 (1) के तहत काररवाई कर के इन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. कबाड़ी गद्दू की 5 करोड़ की संपत्ति जब्त करने की काररवाई भी पुलिस ने शुरू कर दी.

चेसिस नंबर भी बदलने में माहिर थे माफिया

एसएसपी प्रभाकर चौधरी के आदेश पर सितंबर महीने में गाजियाबाद स्थित पुलिस फोरैंसिक लैब की एक टीम को भी सोतीगंज बुलाया गया. फोरैंसिंक टीम ने यहां बिक रहे गाडि़यों के 110 इंजनों की जांच की. जांच में पता चला कि इन में से 70 से ज्यादा इंजनों पर दर्ज नंबर से छेड़छाड़ की गई थी.

फोरैंसिक टीम ने 30 गाडि़यों के मूल इंजन नंबर भी प्राप्त कर लिए, जिन के आधार पर यह पता चला कि ये इंजन चोरी की गाडि़यों से निकाले गए हैं. इस के बाद पुलिस ने सोतीगंज में चोरी की गाडि़यों के अवैध कटान से जुड़े 50 दूसरे कबाड़ कारोबारियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इस अभियान में तेजी लाते हुए सोतीगंज में मोटर पार्ट्स बेचने वाली 300 दुकानों की एक सूची तैयार कर सभी दुकानों की अलगअलग फाइलें बनाईं. इन सभी दुकानों का ब्यौरा वाणिज्यकर विभाग को भेज कर इन का जीएसटी रजिस्ट्रैशन कराने का अनुरोध किया, ताकि इन दुकानों से बिकने वाले मोटर पार्ट्स पर नजर रखी जा सके.

कागजी काररवाई को दुरुस्त रखने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के सेक्शन 91 और 149 का सहारा लिया गया है. 91 सीआरपीसी के अनुसार विवेचक किसी भी अपराध से संबंधित सूचना किसी से भी मांग सकता है. इस के तहत सोतीगंज में 101 दुकानदारों को नोटिस जारी कर उन के

यहां बिकने वाले सभी सामानों की जानकारी मांगी गई.

सीआरपीसी के सेक्शन 149 में पुलिस को संज्ञेय अपराध रोकने के लिए काररवाई करने की शक्ति दी गई है. इस के तहत दुकानदारों को जारी नोटिस में निर्देश दिया कि जांच जारी रहने तक प्रतिष्ठान में रखे मोटर पार्ट्स व अन्य सामानों से कोई भी छेड़छाड़ न की जाए. इसी नोटिस के चलते सोतीगंज में मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से लगातार बंद हैं.

कुख्यात वाहन माफियाओं ने चोरी के वाहनों का धंधा कर के अरबों रुपए की संपत्ति जुटाई थी. लेकिन अब पुलिस ने इस चोर बाजारी का धंधा करने वालों पर नजरें टेढ़ी कर ली हैं. पिछले 5 महीनों में पुलिस ने 32 से ज्यादा वाहन माफियाओं के खिलाफ गैंगस्टर की काररवाई को अंजाम दिया.

इस के अलावा इन की 40 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को कुर्क कर ली. वहीं पुलिस ने वाहन चोरी और चोरी के पार्ट्स बेचने वाले 100 से ज्यादा आरोपियों की क्राइम कुंडली तैयार कर ली.

पुलिस ने बाकायदा ऐसे दुकानदारों को नोटिस भी जारी कर दिए. वहीं नोटिस का जवाब न देने तक दुकानें बंद करवा दीं.

मेरठ का सोतीगंज आटो पार्ट्स मार्केट अब बंद हो गया. जिन गलियों में कभी आटो पार्ट्स मिलते थे, वहां अब कपड़े की दुकानें लगने लगी हैं. जो लोग आटो पार्ट्स बिक्री के नाम पर भरीपूरी कार को ठिकाने लगा दिया करते थे, वो अब विंटर वियर बेच रहे हैं. सोतीगंज कार बाजार को मेरठ पुलिस अब बंद करा चुकी है.

रद्दी, कोयला और चारे की बिक्री का केंद्र बन गया कबाड़ का कमेला

क्याआप ने कभी सोचा है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि जगहों से रोजाना सैकड़ों कारें और दोपहिया वाहन चोरी हो जाते हैं, पर ये सभी चोरी के वाहन गायब कहां हो जाते हैं और इन के गायब होने में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सोतीगंज इलाके का क्या हाथ था?

सोतीगंज एक ऐसा बाजार था, जिस में शामिल पूरा तंत्र मुसलिम समुदाय से था, चोरी करने वाले अधिकांश वाहन चोर भी मुसलिम समाज से थे तो इन्हें खरीद कर व काट कर पूरे भारत में आटो पार्ट्स की आपूर्ति करने वाले भी यही लोग थे.

मेरठ के सोतीगंज में हाल के दिनों तक लगभग 32 बड़े कबाड़खाने थे और इन सभी कबाड़खानों के मालिक मुसलिम हैं. उन्हें चोरी का माल हड़प लेने में इतनी विशेषज्ञता हासिल है कि वे पूरी कार को सिर्फ 20 मिनट में काट देते हैं और कार के हर हिस्से को अलग कर के पूरे भारत में आटो पार्ट्स बाजार में बड़ी पैकिंग के साथ बेचने के लिए भेज देते हैं.

पुलिस ने अब तक जो सबूत जुटाए हैं, उस के मुताबिक सोतीगंज के चोर बाजार से अवैध रूप से करीब 48 अरब रुपए की संपत्ति बनाई गई है, वह भी बिना किसी निवेश के.

वैसे इलाके के इतिहास पर नजर डालें तो सोतीगंज बाजार हमेशा से चोरी की गाडि़यों के लिए फेमस नहीं था. यहां 1960 के दौर में रद्दी, कोयला, पशुओं का चारा बिका करता था. सन 1980 के बाद से दौर बदलना शुरू हुआ और यह चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स का गढ़ बन गया.

कहते हैं कि सब से पहले यहां 4 दुकानें खुली थीं. फिर क्या, घरों के अंदर दुकानें और गोदाम खुलते गए और कुछ ही सालों में सोतीगंज बाजार चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स की बिक्री और नई गाड़ी तैयार कर उन्हें बेचने का गढ़ बनता गया. आज यहां की तंग गलियों में सैकड़ों की संख्या में दुकानें और गोदाम बन गए.

दोपहिया हो या चारपहिया, यहां चोरी, पुरानी और ऐक्सिडेंट में खराब हुई गाडि़यां आतीं और सजसंवर कर बाहर निकलतीं. सोतीगंज मार्केट एशिया की सब से बड़ी स्क्रैप मार्केट बन गया.

सोतीगंज मार्केट में आज के दौर की गाडि़यों के हिस्से तो मिलते ही थे, यहां पर सालों पुरानी और दूसरे विश्वयुद्ध के दौर की विंटेज जीप के टायर, 45 साल पहले की एंबेसडर कार का ब्रेक पिस्टन, 1960 की बनी महिंद्रा जीप क्लासिक का गीयर बौक्स तक मिल जाया करता था.

यहां कबाड़ के ऐसेऐसे कारीगर बैठे थे, जो कुछ ही घंटों में दोपहिया और चारपहिया गाडि़यों के हर पार्ट अलग कर के रख देते थे. इंजन, पहिए, दरवाजे, बौडी, सीट सब अलगअलग दुकानों पर भेज दी जाती थीं. फिर उन्हीं पुरजों को कबाड़ बना कर मेरठ से ले कर दिल्ली के जामा मसजिद और गफ्फार मार्केट तक में बेचा जाता था.

सोतीगंज मार्केट में चोरी की गाडि़यों के सैकड़ों कौन्ट्रैक्टर सक्रिय थे, जो दिल्ली एनसीआर, वेस्ट यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल तक चोरी की गाडि़यों को अपने यहां मंगवा कर उन्हें काटने का धंधा करते थे.

सोतीगंज बाजार में चोरी की गाडि़यों के आरोपी कई तरह से काम करते थे. अगर गाड़ी की स्थिति ठीक है तो फिर चेसिस, इंजन वगैरह बदल कर उसे बेच भी दिया जाता था. अगर गाड़ी की कंडीशन ठीक नहीं होती तो उसे कबाड़ में खपा दिया जाता.

दुर्घटनाग्रस्त नीलाम गाडि़यों के कागजात भी बेचे जाते थे. लग्जरी गाडि़यों के रजिस्ट्रैशन एक से डेढ़ लाख रुपए में, सामान्य गाडि़यों को 40-50 हजार में बेचते थे.

कबाड़ी पुलिस से भी कर बैठते थे मारपीट

मेरठ का सोतीगंज एक ऐसा आपराधिक तिलिस्म है, जिस से मेरठ का पुलिसप्रशासन कभी खौफ खाता था. चोरी की गाडि़यों के कलपुरजे अवैध रूप से बेचे जाने की सूचना पर 23 जनवरी, 2015 को पहली बार मेरठ के सोतीगंज में दिल्ली पुलिस की स्पैशल क्राइम ब्रांच की टीम और सदर पुलिस बड़ी छापेमारी करने पहुंची थी.

पुलिस के सोतीगंज पहुंचने पर हथियारों से लैस कबाडि़यों ने हमला कर दिया. पुलिस को घेर कर पीटा और गाडि़यों के अवैध कटान में शामिल जान मोहम्मद को पुलिस कस्टडी से छुड़ा लिया. पुलिस को जान बचा कर भागना पड़ा. बाद में पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.

इस से पहले भी 16 नवंबर, 2014 को मेरठ के सदर थाने की पुलिस ने सोतीगंज में चल रहे अवैध मोटर गैराज की जांच के लिए अभियान शुरू किया. पहले ही दिन पुलिस को कबाडि़यों ने घेर कर मारपीट की. नतीजा पुलिस को अभियान बंद करना पड़ा.

बौलीवुड फिल्म सरीखी ये घटनाएं बताती हैं कि मेरठ में सदर थाने से सटा हुआ सोतीगंज इलाके में कबाड़ माफिया किस कदर बेखौफ थे. लेकिन इसी सोतीगंज का माहौल अब पूरी तरह से बदल चुका है. यहां चल रही मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से बंद हैं. ग्राहकों से पटी रहने वाली सड़कों पर सन्नाटा है.

कबाड़ माफियाओं के गोदामों और घर पर कुर्की के नोटिस चस्पा हैं. पुलिस दबिश मार कर सोतीगंज के मोटर गैराज में रखे सामानों की जांच में जुटी है.

इस सोतीगंज में हुआ यह अभूतपूर्व बदलाव उस वक्त चर्चा में आया जब 18 दिसंबर को शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेसवे के शिलान्यास के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस का जिक्र किया.

साल 1991 के बाद उदारीकरण के दौर में भारतीय बाजार महंगी इंपोर्टेड गाडि़यों के लिए खुला. 4 और 2 पहिया गाडि़यों की अचानक बाजार में आवक बढ़ी. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में मोटर बाइक और कारों की बिक्री में इजाफा हुआ.

इसी के साथ मेरठ के सोतीगंज इलाके में गाडि़यों की मरम्मत का धंधा भी शुरू हुआ. साल 1995 तक सोतीगंज में गाडि़यों की मरम्मत करने के लिए छोटेबड़े करीब 25 ही गैराज थे जो ढाई दशक बाद वर्ष 2021 में बढ़ कर 1000 से अधिक हो गए.

दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों से गाडि़यां चोरी हो कर सोतीगंज कटने के लिए पहुंचती लगीं. चोरी की गाडि़यों को सस्ते में खरीद कर उन के पार्ट्स बेच कर कबाड़ कारोबारी 20 से 30 गुना मुनाफा कमाते थे.

तेजी से इस अवैध कारोबार के बढ़ने के पीछे यही अर्थशास्त्र था. पुलिस के अनुमान के मुताबिक सोतीगंज में एक साल में चोरी की गाडि़यां काट कर निकाले गए मोटर पार्ट्स का सालाना कारोबार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है.

इंजन पार्ट्स की पूरी मार्केट बंद हो जाने के बाद अब सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं. सोतीगंज को वाहन कटने के कलंक से मुक्ति दिलाने के बाद पुलिस की जिम्मेदारी यहां पर बेरोजगार हुए लोगों के पुनर्वास का माहौल बनाने की है ऐसा नहीं हुआ तो सोतीगंज में फिर गाडि़यां कटने को पहुंचने लगेंगी.

प्रेम का इजहार प्रेमपत्र से

Writer- शोभा कटारे

हम और आप इनकार नहीं कर सकते हैं कि आज से कुछ वर्षों पहले तक प्यार के इजहार का जो तरीका हुआ करता था, उस में अब काफी बदलाव आ चुका है.

आजकल प्यारभरे संदेश भेजने के लिए भले ही अब व्हाट्सऐप और ईमेल, फेसबुक, चैट जैसी तमाम हाईटैक सुविधाएं हों, पर पुराने समय के पत्र लिखने के तरीके को आज भी सब से अच्छा माना जाता है.

आज से कुछ वर्षों पहले प्यार के इजहार का जो तरीका हुआ करता था, उस में अब काफी बदलाव आ चुका है उस की जगह व्हाट्सऐप और ईमेल, फेसबुक, चैटिंग आदि ने ले ली है.

भला इंटरनैट और मोबाइल के जमाने में पत्र लिखने का क्या काम, लेकिन यकीन मानिए यदि आप अपने प्यार के इजहार के लिए पत्र लिखेंगे तो आप अपनी भावनाएं बहुत अच्छे से उन तक पहुंचा पाएंगे और आप द्वारा लिखे शब्द उन के दिल पर गहरा असर डालेंगे क्योंकि कई बार डिजिटल मीडिया हमारे मन के ऊपर वह प्रभाव नहीं डाल पाता है जो कि एक लिखा हुआ पत्र.

जब आप किसी को पत्र लिखते हैं तो दिल की गहराइयों से और बहुत सोचसम  झ कर लिखते हैं और कुछ शब्द हमारे दिल में हमेशा के लिए बस जाते हैं. आखिर जब कोई बात दिल से निकलेगी तो उन के दिल तक अवश्य ही पहुंचेगी. पत्र दो दिलों को जोड़ने में सेतु का काम करता है.

प्यार के इजहार के लिए इमोजी नहीं उपयोग कीजिए प्रेमभरे शब्दों को आजकल हम कुछ भी कहने के लिए शब्दों का कम और इमोजी का उपयोग ज्यादा करते हैं. लेकिन यकीन मानिए, आप के शब्दों में जो जादू है वह इमोजी कभी भी नहीं ले सकती. इसलिए प्यार के इजहार के लिए खत लिखें.

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जब बात आप के दिल से निकलेगी तो उन के दिल तक अवश्य ही पहुंचेगी. आप दिल की प्यारभरी बातें जरा विस्तार से कीजिए, शौर्टकट से नहीं. इस के लिए मदद लीजिए प्रेमभरे शब्दों की.

प्यार जताने का सब से आसान तरीका

प्यार एक बहुत ही खूबसूरत शब्द है और इस के एहसास मात्र से ही हम खुशी महसूस करने लगते हैं. हमारे प्यार में जितनी सादगी हो, वह उतना ही और खूबसूरत हो जाता है. फूहड़ता किसी भी चीज में, खासकर प्रेम में, अच्छी नहीं लगती.

प्रेम में प्रेमपत्र का इंतजार करना बहुत ही सुखद होता है. प्रेमपत्र जितना सादा हो, उतना ही कारगर साबित होता है. अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र से अच्छा कोई और सादगीभरा तरीका नहीं हो सकता.

प्रेमपत्र सहेज कर रख सकते हैं

प्रेमपत्र प्रेम करने वालों के लिए एक अनमोल चीज है, जिसे वे सालोंसाल सहेज कर रखना चाहते हैं. ये आप के प्यार को हमेशा नया बनाए रखते हैं और जब भी आप अपने बीते दिन याद करना चाहें तो आप समयसमय पर उन खतों को निकाल कर बारबार पढ़ सकते हैं और अपने प्यार की पहली पहल को याद कर सकते हैं. उस में आप के प्रेम की जो खुशबू आती है उस का मुकाबला आधुनिक तकनीक नहीं कर सकती.

प्रेमपत्र को सजा भी सकते हैं

प्यार में लाल गुलाब का एक अलग ही महत्त्व होता है. अकसर हम हमारे प्यार के इजहार के लिए इस का उपयोग अवश्य ही करते हैं इसलिए जब भी आप प्रेमपत्र लिखें, उसे आप लाल गुलाब की पंखुडि़यों से सजा सकती हैं और अपने प्यार की खुशबू उन तक पहुंचा सकती हैं, अपने प्यार को और भी महका सकती हैं.

प्रेमपत्र मन की उल  झन को दूर करता है

यदि आप के मन में अपने प्यार को ले कर कुछ भी शंकाएं और उल  झनें हैं या कुछ बातें करने में हम हिचकिचाते या संकोच महसूस करते हैं तो प्रेमपत्र बहुत ही आसानी से दूर कर सकते हैं क्योंकि कई बार हम कुछ बातें आमनेसामने नहीं कर पाते हैं और हड़बड़ाहट में कुछ बातें करना भूल जाते हैं, तो ये आप की उल  झन को दूर करने में मददगार साबित हो सकते  हैं.

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इस में हम अपनी सारी शंकाएं, भावनाएं आदि बहुत ही आसानी से लिख कर व्यक्त कर सकते हैं और बिना संकोच के पूछ सकते हैं.

पत्र एहसास कराते हैं हमेशा पास होने का

प्यार में इंतजार का वक्त काटे नहीं कटता. जब भी आप को उन की याद आए तो आप पढ़ें उन के लिखे हुए प्यारभरे पत्र, जो कि हमेशा ही आप को उन के पास होने का एहसास कराते रहेंगे मानो वे यहीं पास में बैठे हुए हैं.

लेकिन इंटरनैट के आने से हम पत्र लिखना भूल गए हैं. इन की जगह ईमेल ने ले ली है और हमारे पास आपस में बातचीत करने के लिए कुछ आधुनिक साधन आ गए हैं, जैसे व्हाट्सऐप और मोबाइल फोन.

यकीन मानिए जो मजा पत्र लिखने और पढ़ने में है वह ईमेल में नहीं, क्योंकि पत्र के शब्द कई बार हमारे दिल को छूने का काम करते हैं और हमारे ऊपर एक गहरा प्रभाव छोड़ते हैं. पत्रों की जगह कोई तकनीक नहीं ले सकती तो इस वैलेंटाइन डे करें अपने प्यार का इजहार एक प्यारभरा पत्र लिख कर.

चूक गया अर्जुन का निशाना: भाग 3

सजा सुनाए जाने के बाद दिनेश को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया था. एक दिन केतन की दुकान पर चाय पीते हुए करसन ने अपने दिल की कही, ‘‘यार कान्हा, एक बार हमें अहमदाबाद चल कर दिनेश से मिलना चाहिए. मेरी आत्मा कहती है कि दिनेश इस तरह का घटिया काम नहीं कर सकता.’’

‘‘छोड़ न यार करसन, उस की कोई बात मुझ से मत कर. अब मैं उस कलमुंहे का मुंह भी नहीं देखना चाहता. अब तो उसे दोस्त कहने में भी शरम आती है.’’ कान्हा ने दुखी मन से कहा.

‘‘ऐसा मत कह यार कान्हा. बुरा ही सही, पर दिनेश हमारा बहुत अच्छा दोस्त है. दोस्ती की खातिर बस एक बार चल कर मिल लेते हैं. फिर दोबारा उस से मिलने के लिए कभी नहीं कहूंगा. एक बार मिलने से मेरी आत्मा को थोड़ा संतोष मिल जाएगा.’’ करसन ने कान्हा से दिनेश से मिलने की सिफारिश करते हुए कहा.

‘‘तू इतना कह रहा है तो चलो एक बार मिल आते हैं. पर इस मिलने से कोई फायदा नहीं है. ऐसे आदमी से क्या मिलना, जो इस तरह का घिनौना काम करे. मेरे खयाल से उस से मिल कर तकलीफ ही होगी.’’ कान्हा ने कहा.

‘‘कुछ भी हो, मैं एक बार उस से मिलना चाहता हूं.’’ करसन ने कहा.

अगले दिन दोनों दोस्त दिनेश से मिलने के लिए अहमदाबाद जा पहुंचे. जेल में मिलने की जो प्रकिया होती है, उसे पूरी कर दोनों दिनेश से मिलने जेल के अंदर पहुंचे.

अपने जिगरी दोस्त की हालत देख कर कान्हा और करसन की आंखों में आंसू आ गए. दाहिने हाथ की हथेली से आंसू साफ करते हुए भर्राई आवाज में कान्हा ने कहा, ‘‘यह सब क्या है दिनेश?’’

‘‘भाई कान्हा, मैं एकदम निर्दोष हूं. मैं ने कुछ नहीं किया. मैं कसम खा कर कह रहा हूं कि इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता.’’ यह कहतेकहते दिनेश फफक कर रो पड़ा.

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‘‘जब तू ने कुछ किया ही नहीं था तो फिर थाने और अदालत में यह क्यों कहा कि सविता के साथ तू ने ही दुष्कर्म कर के उस की हत्या की है?’’ कान्हा ने प्रश्न किया.

‘‘पुलिस ने मुझे मारमार कर कहलवाया है कि मैं ने यह अपराध किया है. थानाप्रभारी ने कहा कि अगर मैं ने उस की बात नहीं मानी तो वह मेरे सारे दोस्तों को पकड़ कर जेल भिजवा देगा. मजबूरन मुझे वह सब कहना पड़ा, जो पुलिस ने कहा. क्योंकि मैं तो फंसा ही था. मै नहीं चाहता था कि मेरे दोस्त भी फंसें. तुम्हीं बताओ कि ऐसे में मैं क्या करता. पुलिस की बात मानने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था.’’

दिनेश कुछ और कहता, जेल के सिपाही ने आ कर कहा, ‘‘चलिए भाई, आप लोगों का मिलने का समय खत्म हो चुका है.’’

‘‘दोस्त, तू धीरज रख, अगर तू ने यह अपराध नहीं किया है तो मैं असलियत का पता लगा कर रहूंगा.’’ चलतेचलते कान्हा ने कहा.

दिनेश दोनों मित्रों को तब तक ताकता रहा, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो गए. गांव में दिनेश के निर्दोष होने की बात करने का अब कोई फायदा नहीं था.

इसलिए दोनों दोस्त दिनेश के निर्दोष होने के सबूत बड़ी ही गोपनीयता से खोजने शुरू कर दिए. पर कोई कड़ी हाथ नहीं लग रही थी. इसी तरह धीरेधीरे 7 महीने का समय बीत गया.

दूसरी ओर अर्जुन ने बेटे और पुत्रवधू की मौत के बाद गांव वालों से कहा था कि अब उस का गांव में है ही कौन, इसलिए वह  दुकानें, मकान और जमीन बेच कर हरिद्वार जा कर किसी आश्रम को सारा पैसा दान कर देगा और वहीं जब तक जीवित रहेगा, भगवान के भजन करेगा.

गांव में ऐसे तमाम लोग थे, जो इस तरह के मौके की तलाश में रहते थे. इसलिए अर्जुन की दुकानें, मकान और जमीनें अच्छे दामों में बिक गईं. करोड़ों रुपए बैंक में जमा कर अर्जुन एक दिन हरिद्वार जाने की बात कह कर हमेशा के लिए गांव छोड़ कर चला गया.

बहुत हाथपैर मारने के बाद भी कान्हा और करसन अपने दोस्त दिनेश को निर्दोष साबित करने का सबूत नहीं खोज सके. धीरेधीरे पूरा एक साल बीत गया.

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बरसात खत्म होते ही खेती के सारे काम निपटा कर करसन के बड़े भाई रामजी अपने 2 दोस्तों के साथ मोटरसाइकिलों से द्वारकाजी के दर्शन के लिए निकले. रात होने तक ये सभी खंभाडि़या पहुंचे.

आराम करने के लिए ये लोग एक गांव के पंचायत घर में रुके. गांव वालों ने पंचायत घर में एक कमरा अतिथियों के लिए बनवा रखा था. क्योंकि द्वारकाजी जाने वाले तीर्थयात्री अकसर उस गांव में रात में आराम करने के लिए ठहरते थे.

रामजी भी दोस्तों के साथ पंचायत घर के उसी कमरे में ठहरा था. अगले दिन सुबह उठ कर हलके उजाले में रामजी पंचायत घर के बरामदे में बैठे कुल्लादातून कर रहे थे, तभी अचानक उन की नजर सिर पर पानी का घड़ा रख कर ले जाती एक औरत पर पड़ी.

उन के मन में तुरंत एक सवाल उठा, ‘लगता है इस औरत को पहले कहीं देखा है.’ उन्होंने उसे दोबारा देखने के लिए नजर उठाई तो वह दूर निकल गई थी. अभी वह फिर पानी भरने आएगी तो उसे पहचान लूंगा, यह सोच कर रामजी वहीं बैठे रहे.

थोड़ी देर बाद वह औरत घड़ा ले कर फिर पानी के लिए आई तो रामजी ने उसे पहचान लिया. उसे पहचान कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

उन्होंने खुद से ही कहा, ‘अरे, यह तो मोहन की पत्नी सविता है. पर सविता यहां कहां से आएगी? वह तो मर चुकी है. दिनेश ने उस की हत्या की बात खुद स्वीकार की है. उस की लाश भी बगल के गांव के कुएं से बरामद हुई थी.’ वह सोच में पड़ गया कि कहीं वह जागते में सपना तो नहीं देख रहा है. उस के मन में भूकंप सा आ गया. शंकाकुशंका के बादल उस के मन में घुमड़ने लगे.

द्वारिकाधीश के दर्शन कर के वह गांव लौटे तो उन्होंने यह बात अपने छोटे भाई करसन को बताई तो करसन ने अपने दोस्त कान्हा को. वे दोनों भी यह जान कर हैरान थे. अगर सविता जीवित है तो फिर वह लाश किस की थी? यह एक बड़ा सवाल उन दोनों के सामने आ खड़ा हुआ था.

परदे: भाग 2- क्या स्नेहा के सामने आया मनोज?

Writer- अपूर्वा चौमाल

स्नेहा एक उभरती हुई स्क्रिप्ट राइटर व रंगकर्मी है. मनोज भी हालांकि एक लेखक और रंगकर्मी है, लेकिन वह कभी अपना रचनाकर्म सा झा नहीं करता, क्योंकि वह खुद को अभी मिरर आर्टिस्ट ही सम झता है. हां, वह सब की पोस्ट पढ़ता जरूर है. आज भी ग्रुप में उंगलियां घुमातेघुमाते वह एक जगह ठिठक गया. होंठों की लंबाई दो इंच से बढ़ कर तीन इंच हो गई. आंखों की पुतलियां थिरकने लगीं.

‘आज पकड़ी गई,’ मनोज स्नेहा की पोस्ट देख कर उछल पड़ा. आज उस ने अपने मंचित नाटक की एक क्लिप ग्रुप में पोस्ट की थी.

मनोज ने तुरंत उस वीडियो को डाउनलोड किया और हरेक पात्र को गौर से देखने लगा. महिला पात्रों पर तो उस ने आंखें ही चिपका दीं.

पूरी क्लिप समाप्त हो गई और मनोज बाबू लौट के बुद्धू घर को आए सिर खुजाते रह गए, लेकिन स्नेहा को नहीं पहचान पाए, क्योंकि यह एक वृद्धाश्रम पर आधारित नाटक था, जिस में लगभग हरेक पात्र सफेद बालों की विग लगाए, एकाध दांत काला किए था. सब की कमर  झुकी हुई, आंखों पर चश्मा और हाथ में छड़ी थी.

नीचे लिखे स्नेहा के कमैंट ने जलते पर मिर्च बुरका दी सो अलग. लिखा था, ‘बू झो तो जानूं.’

यह देख मनोज खिसिया कर रह गया, लगा मानो कटाक्ष से निशाना साध कर उसे ही बेधा गया हो. मनोज ने उसे नाटक के प्रभावी मंचन पर बधाई दी. साथ ही, उत्तरोत्तर प्रगति करने व अपने क्षेत्र में ऊंचाइयां छूने के प्रतीक स्वरूप उड़ते हुए हवाईजहाज की इमोजी भेजी.

उस के बाद वह अकसर ऐसा ही करने लगा. जब भी स्नेहा अपनी किसी उपलब्धि की पोस्ट ग्रुप में डालती, वह उसे शुभकामनाओं के साथ हवाईजहाज की इमोजी अवश्य ही पोस्ट करता.

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धीरेधीरे यह अघोषित सा नियम ही बन गया. कभी वह हवाईजहाज भेंट करने से चूक जाता तो स्वयं स्नेहा चुहल करते हुए उस से जहाज मांग बैठती. मनोज ने भी उड़ता हुआ जहाज सिर्फ स्नेहा के लिए आरक्षित रखना शुरू कर दिया. वैसे भी, अमूमन इस तरह के प्रतीक कोई किसी को भेंट नहीं करता.

पिछले सप्ताह किसी ने ग्रुप में एक स्क्रिप्ट लेखन प्रतियोगिता की विज्ञप्ति पोस्ट की. हर नई पोस्ट की तरह इस पर भी सब से पहले उछलती हुई स्नेहा ही आई.

‘‘भई, हम तो इस प्रतियोगिता में अपनी ताजा, करारी और धमाकेदार स्क्रिप्ट भेजने वाले हैं. पहला इनाम तो अपना ही सम झो. यदि किसी को यह चुनौती लगती है तो वह अपना देख ले,’’ स्नेहा ने लिखा.

‘‘अग्रिम शुभकामनाएं. पुरस्कार में हमें हिस्सा मिले तो जुगाड़ की व्यवस्था की कोशिश की जा सकती है,’’ मनोज ने दांव पर प्रतिदांव मारा.

‘‘10 प्रतिशत पर डन करो तो प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है,’’ स्नेहा ने अगला पासा फेंका.

‘‘मैं 8 प्रतिशत पर राजी हूं,’’ एक अन्य कमैंट आया.

‘‘मैं 5 पर ही,’’ दूसरा कमैंट भी

आ गया.

धीरेधीरे इस चुहल में अन्य

लोग भी जुड़ते गए और हलकीफुलकी नोक झोंक का यह दौर देरशाम तक चलता रहा.

पता नहीं क्या सोच कर मनोज ने भी यहां अपनी प्रतिभा आजमाने की सोची. हालांकि वह पटकथा लेखक नहीं था, लेकिन लेखक तो था ही और वैसे भी पढ़ेलिखे को फारसी क्या? कौन जाने, वक्त ने क्या तय कर रखा है.

‘शायद नियति ने स्नेहा से मिलवाने का यही जरिया चुना हो,’ एक खयाल आया और मनोज स्क्रिप्ट लिखने में जुट गया. उस के प्रयास सफल हुए और उसे एक अछूता सा विषय मिल ही गया. बहुत मन लगा कर मनोज ने नाटक के प्लौट पर कल्पनाओं की नींव खोदी और चिनाई शुरू कर दी. 10 दिनों में स्क्रिप्ट का ढांचा खड़ा हो गया. अब उस पर रंगरोगन कर उसे प्रस्तुतीकरण के लिए तैयार करना था.

अगले 10 दिनों में यह काम भी हो गया. अब मनोज ने स्क्रिप्ट की इमारत की अंतिम रूप से साफसफाई कर के यानी उसे फाइनल टच दे कर उस पर ताला जड़ दिया.

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इधर प्रतियोगिता की अंतिम तारीख पास आ रही थी और उधर मनोज था कि स्क्रिप्ट के भवन का ताला खोलने यानी अपनी प्रविष्टि भेजने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहा था. तभी एक दिन ग्रुप में स्नेहा का मैसेज पढ़ कर मनोज मुसकरा दिया.

‘‘भई, हम ने तो अपनी प्रविष्टि भेज दी. सोने वालो, जाग जाओ. अंतिम तिथि का इंतजार मत करो. आज ही अपनी प्रविष्टि भेजो, वरना कहोगे कि चेताया नहीं. पहला पुरस्कार तो खैर मेरा ही है, कहीं दूसरेतीसरे से भी न चूक जाओ, इसलिए आज अभी लिफाफा बनाओ और डाकघर जा कर पोस्ट कर आओ,’’ स्नेहा ने आंख दबाती ढेर सारी इमोजी के साथ लिखा था.

‘‘आधा हिस्सा मिलेगा क्या?’’ मनोज ने उसे फिर छेड़ा.

‘‘हम तो तैयार हैं, लेकिन ऐसी ही उम्मीद आप से भी करते हैं. है मंजूर तो बोलो हां,’’ स्नेहा ने एक हिंदी फिल्म के गीत की पंक्ति जोड़ते हुए लिखा.

‘‘सारा आप का. मगर कुछ मिले तो सही,’’ यह लिख कर मनोज ने प्रस्ताव स्वीकार करने वाला अंगूठा दिखा दिया. ग्रुप के शेष सदस्यों ने ताली बजा कर उस का उत्साहवर्धन किया.

आखिर मनोज ने भी कांपते हाथों से, मन ही मन खुद को शुभकामनाएं देते हुए अपनी प्रविष्टि पंजीकृत डाक से भेज दी.

अंतिम तिथि निकल गई. अब सब को प्रतियोगिता के परिणाम की प्रतीक्षा थी. इस बीच ग्रुप में हलकीफुलकी नोक झोंक और स्नेहा के चुलबुले कमैंट्स जारी थे.

आज सुबह जैसे ही मनोज ने मोबाइल चालू किया, ग्रुप में बहुत से बधाई संदेश देख कर माथे पर असमंजस की 3 रेखाएं तनिक अधिक गहरी हो गईं. देखा तो स्क्रिप्ट लेखन प्रतियोगिता का परिणाम जारी हो चुका था. परिणाम की पूरी सूची देखी तो मन खुशी से  झूम उठा. न… न, मनोज विजेता नहीं हुआ था, बल्कि स्नेहा को सांत्वना पुरस्कार मिला था. खुद उस का तो सूची में कहीं नाम तक न था.

मनोज स्नेहा की जीत पर अपनी खुशी का कारण नहीं सम झ पा रहा था. शायद मन अपनी खुशी से अधिक अपनों की खुशी में खुश होता है.

मनोज ने स्नेहा सहित सभी विजेताओं को बधाई दी और उत्साह के अतिरेक में यह मैसेज भी पोस्ट कर दिया कि वह विजेताओं की हौसलाअफजाई करने व उन के सम्मान में तालियां बजाने को समारोह में अवश्य आएगा.

‘‘यदि नहीं आए तो आप को काला कौआ काटेगा, क्योंकि  झूठ बोले कौआ काटे,’’ स्नेहा ने बधाई स्वीकारते हुए चुटकी ली.

‘‘चलिए, इस बहाने हवाईजहाज वाले पायलट बाबू के दर्शन भी हो जाएंगे,’’ स्नेहा ने आगे लिखा तो मनोज ने अंगूठा दिखाते हुए स्नेहा के आमंत्रण पर मुहर लगा दी.

मनोज इन दिनों बादलों पर चल रहा था. उस का मन स्नेहा की तसवीर में मनचाहे रंग भर रहा था, रहरह कर उस की आभासी छवि को साकार करने लगा था. कभी जींसटौप तो कभी सलवारदुपट्टे में लिपटी स्नेहा कभीकभार 6 गज की साड़ी में भी दिखाई देने लगती थी.

‘बस रे मन, बस कर. अब तो बस दीदार हुआ ही जाता है. जरा ठहर, धीरज धर, क्यों बावला हुआ जाता है,’ मनोज की कविताई मुखर होने लगी.

इन दिनों वह स्नेहा से ग्रुप में कम और व्यक्तिगत चैट अधिक करने लगा था, क्योंकि उसे भय था कि कहीं लोग ग्रुप में उन की उन्मुक्त चैटिंग का गलत मतलब न निकालने लगें. शायद इसी डर ने ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ वाली कहावत को जन्म दिया हो. कई बार उस का मन स्नेहा की आवाज सुनने और उसे देखने को बहुत उमड़ा भी, लेकिन अब जब नाव किनारे लगने ही वाली है तो फिर पानी में क्यों कूदना. अब तो इंतजार खत्म हुआ ही सम झो. मनोज किसी तरह खुद को रोके हुए था.

हर्ष लिंबाचिया नहीं करना चाहते थे Bharti Singh से शादी! सामने आया ये Video

भारती सिंह (Bharti Singh) और हर्ष लिंबाचिया (Haarsh Limbachiyaa) की जोड़ी को  घर-घर में पसंद किया जाता है. दोनों का कॉमेडी अंदाज दर्शकों का दिल जीत लेता है. अक्सर सेट पर ये दोनों एक-दूसरे का मजाक उड़ाते हैं तो कभी रोमांस करते नजर आते हैं. दर्शकों का इनका मस्ती भरा अंदाज काफी पसंद आता है. अब हर्ष और भारती का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें हर्ष लिंबाचिया कह रहे हैं कि उन्हें भारती सिंह से शादी करने का पछतावा हो रहा है. आइए बताते हैं, क्या है पूरा मामला.

दरअसल भारती और हर्ष यूट्यूब पर ‘लाइफ ऑफ लिंबाचिया’ लेकर आते हैं.  दोनों अक्सर फैंस के लिए फनी वीडियोज अपलोड करते हैं. इन वीडियोज में दोनों का नोक-झोक देखने को मिलता है.  हाल ही में भारती और हर्ष ने एक नया वीडियो अपने यूट्यूब पर शेयर किया है जिसमें दोनों बहस करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

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भारती सिंह और हर्ष लिंबाचिया के इस वीडियो में अपने बच्चे से जुड़े सवालों का जवाब फैंस को दे रहे होते हैं. तभी दोनों में तू-तू-मैं-मैं हो जाती है. भारती सिंह कहती हैं, अगर इतनी दिक्कत थी तो मुझसे शादी क्यों की. हर्ष मजाकिया अंदाज में जवाब देते हुए कहते हैं, दिमाग खराब हो गया था मेरा. आज तक पछतावा हो रहा है. ऐसे में भारती सिंह का मुंह देखने लायक होता है.

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किस ने सवाल किया कि बच्चा कॉमेडियन बनेगा या राइटर? इस पर भारती कहती हैं, बच्चा कॉमेडियन होगा क्योंकि राइटर्स को पैसे नहीं मिलते हैं. तो वहीं हर्ष लिंबाचिया फनी अंदाज में कहते हैं, वेब सीरीज लिखने ओटीटी पर लिखने वाले राइटर्स की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, इतने पैसे मिलते हैं कि उतने में 5-6 भारती सिंह आ जाएं.

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कही अनकही: भाग 3- तन्वी की हरकतों से मां क्यों परेशान थी

Writer- Reeta Kumari

‘‘धीरेधीरे मम्मी और पापा के प्रति मेरे मन में एक गहरी असंतुष्टि  हलचल मचाए रहती और एक अघोषित युद्ध का गंभीर घोष मेरे अंदर गूंजता रहता. मैं मम्मीपापा की सुखशांति को, मानसम्मान को यहां तक कि अपनेआप को भी तहसनहस करने के लिए बेचैन रहती. हर वह काम लगन से करती जो मम्मीपापा को दुखी करता… मेरी उद्दंडता और आवारागर्दी की कहानी पापा तक पहुंच कर उन्हें दुखी कर रही है, यह जान कर मुझे असीम सुख मिलता. आज भी मेरी वही मानसिकता है, दूसरे को चोट पहुंचाना. शायद इसी कारण मैं ऐसी हूं.

‘‘मेरे बीमार पड़ने पर जिस प्यार और अपनेपन से आप ने मेरी देखभाल की वह मेरे दिल को छू गया. मुझे लगा आप ही वह पात्र हैं जिस के सामने मैं अपने दिल की व्यथा उड़ेल सकती हूं. अब सबकुछ जानने के बाद आप से मिली सलाह ही मेरी पथप्रदर्शक होगी. इसलिए प्लीज, आंटी, मेरी मदद कीजिए. मैं बहुत कन्फ्यूज्ड हूं.’’

तन्वी सबकुछ उगल चुपचाप बैठ गई. उस के गालों पर ढुलक आए आंसुओं को अपने आंचल से पोंछ कर मैं बोली थी, ‘‘कितनी मूर्ख हो तुम. बिना गहराई से परिस्थितियों का अवलोकन किए, तुम ने अपनी मां को ही अपना दुश्मन मान लिया और उन के दुखदर्द और शोक का कारण बनी रहीं. अपनी मम्मी की तरफ से सोचो कि वे अपनी मरजी से शादी कर, अपने सारे रिश्तों को खो चुकी थीं. वे मजबूर थीं. आवश्यकताओं की लंबी फेहरिस्त, दिल्ली जैसे महानगर के बढ़ते खर्चे, तुम्हारी देखभाल, सभी के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसों की जरूरत थी और इस के लिए वे जीतोड़ कोशिशें कर रही थीं.

‘‘वहीं नौकरी में तुम्हारी मां का दिनोदिन बढ़ता कद तुम्हारे पापा के पुरुषार्थ के अहं को आहत कर रहा था. एक दिन वे अपने अहं की तुष्टि के लिए सारी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ कर परिवार से ही पलायन कर गए. रह गईं अकेली तुम्हारी मां, जिन्हें तुम्हारे साथसाथ नौकरी की भी जिम्मेदारी संभालनी थी. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी… पर तकदीर की विडंबना देखो कि जिस बेटी के लिए वे इतना संघर्ष कर रही थीं, वही उन की व्यथा को समझने में सर्वदा असमर्थ रही और उन्हें चोट पहुंचा कर अपनी नादानियों से सबकुछ नष्ट करने पर उतारू हो गई.’’

तन्वी चुपचाप बड़े ही ध्यान से मेरी बातें सुन रही थी.

‘‘कभी तुम ने सोचा है कि जिंदगी बिगाड़ना बहुत आसान है पर जो एक बार बिगड़ गया, उसे संभालने में कभीकभी बरसों और कभीकभी तो पूरी जिंदगी निकल जाती है. खुद को चोट दे कर अपनों को दुख पहुंचाना कहां की बुद्धिमानी है. मेरी नानी अथर्ववेद का एक वाक्य मुझे हमेशा सुनाया करती थीं :

‘‘प्राच्यो अगाम नृत्ये हंसाय.’’

(अर्थात यह जीवन हंसतेखेलते हुए जीने के लिए है. चिंता, भय, शोक, क्रोध, निराशा, ईर्ष्या और तृष्णा में बिलखते रहना मूर्खता है.)

‘‘तुम्हारे जीवन में जो घटा वह तुम्हारे बस में नहीं था. वह वक्त का कहर था, मगर अब जो घट रहा है यह सब तुम्हारी विपरीत सोच का परिणाम है, जो तुम्हारी मां की खुशियों को ही नहीं तुम्हें भी बरबाद कर रहा है. जब कोई खुशियों का इंतजार करतेकरते अचानक दुखों को न्योता देने लगे तो समझो वह परिवार के विनाश को बुलावा दे रहा है. तुम विनाश का कारण क्यों बनना चाहती हो? क्या मिलेगा दुख बांट कर? एक बार सुख बांट कर देखो, तुम्हारे सारे दर्द मिट जाएंगे.

‘‘अपने सारे आक्रोश त्याग कर, बीते समय को भुला कर, अपनी खुशियों के लिए सोचो, उन्हें पाने की कोशिश करो तो तुम्हारे सारे मनस्ताप खुदबखुद धुल जाएंगे. वक्त का कर्म तुम्हारे साथ होगा, अगर तुम ने अब भी देर कर दी और वक्त को मुट्ठी में नहीं लिया तो धीरेधीरे समय तुम्हें तोड़ देगा. बस, मुझे इतना ही कहना है. अब फैसला तुम्हारे हाथों में है.’’

वह धीरे से उठी और मेरी गोद में सिर रख कर फर्श पर बैठ गई. प्यार से उस के बालों में उंगलियां फिराते ही वह निशब्द रोने लगी. मैं ने भी उसे रोका नहीं, जी भर रो लेने दिया. थोड़ी देर बाद शांत हो कर बोली, ‘‘आंटी, आज आप ने मेरी जिंदगी की उलझनों को कितनी आसानी और सरलता से सुलझाया, मेरे अंदर भरे गलतफहमियों के जहर को दूर कर दिया. अपनी गलतियों के एहसास ने तो मेरी सोच ही बदल दी. अब तक तो मैं सभी के दुख का कारण बनी रही, लेकिन अब सुख का कारण बनने की कोशिश करूंगी.’’

दूसरे दिन मैं बरामदे में बैठी सुन रही थी. वह बालकनी में खड़ी वहीं से अपने दोस्तों को लौट जाने के लिए कह रही थी.

‘‘नहींनहीं…तुम लोगों के साथ मुझे कहीं नहीं जाना. मुझे पढ़ना है.’’

उस के दोस्तों ने साथ चलने के लिए काफी मिन्नतें कीं, पर वह नहीं मानी. एक दिन मैं नेहाजी के साथ लौन में बैठी बातें कर ही रही थी कि तभी तन्वी हाथ में ट्रे ले कर पहुंच गई. 2 कप चाय के साथ पकौड़ों की प्लेट भी थी.

‘‘आंटी, आज मैं ने पकौड़े किताब पढ़ कर बनाए हैं. जरा चख कर तो देखिए.’’

अनाड़ी हाथों के अनगढ़ पकौड़ों में मुझे वह स्वाद आया जो आज से पहले कभी नहीं आया था. बेटी के बदले रूप को देख, नेहा की आंखों में मेरे लिए कृतज्ञता के आंसू झिलमिला रहे थे.

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