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रूसी बर्बर हमला: पुतिन, दुनिया का विलेन

व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अद्भुत साहस और क्षमता का प्रदर्शन कर सारे विश्व को संदेश दे दिया है कि एक बहुत छोटा देश भी बड़े देश के सामने सिर झुकाने से इनकार कर सकता है. अमेरिका और यूरोप अभी आर्थिक शिकंजा ही कस रहे हैं पर उन से भी रूस गरीबी के गहरे गड्ढे में दशकों तक के लिए सिर्फ व्लादिमीर पुतिन की हठधर्मिता के कारण गिर जाएगा.

रूस और यूक्रेन के बीच विवाद नया नहीं है. यह विवाद 2014 से जारी है. यह वर्चस्व की एक लंबी लड़ाई है, जिस का पूर्ण समाधान हालफिलहाल निकलता नहीं दिख रहा है. इस लड़ाई में एक तरफ खुद को महाशक्ति मानने वाला रूस और उस की समर्थक सेनाएं हैं और दूसरी तरफ यूक्रेन व उस के पीछे नाटो की शक्ल में अमेरिका की कूटनीतिक ताकत है.

1991 तक यूक्रेन पूर्ववर्ती सोवियत संघ (यूएसएसआर) का हिस्सा था. यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुड़ी हुई है. रूस के विघटन के बाद जो देश अलग हुए थे उन में यूक्रेन भी एक था. क्रीमिया भावनात्मक रूप से रूस के साथ जुड़ा हुआ था, जिस को वर्ष 2014 में रूस ने आजाद कर अपने नियंत्रण में ले लिया था. इस के अलावा यूक्रेन के डोनबास, लुहांस्कन और डोनेस्ततक इलाकों में रूसी समर्थक लोग बहुत ज्यादा संख्या में हैं. यूक्रेन के बाहर बेलारूस और जौर्जिया पूरी तरह से रूस के साथ हैं. यानी एक तरह से यूक्रेन पूरी तरह रूस और उस के समर्थक देशों से घिरा हुआ है.

आइए उन कारणों की बात करते हैं जिन की वजह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है. कई महीनों तक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर हमले की किसी भी योजना से इनकार करते रहे, लेकिन अचानक उन्होंने यूक्रेन में ‘स्पैशल मिलिटरी औपरेशन’ का ऐलान कर दिया.

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इस लड़ाई को सम?ाने के लिए हमें 8 साल पीछे यानी साल 2014 में जाना होगा जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. उस वक्त रूस समर्थित विद्रोहियों ने देश के पूर्वी हिस्से में एक अच्छेखासे इलाके पर कब्जा कर लिया था. उस वक्त से ले कर आज तक इन विद्रोहियों की यूक्रेन की सेना से भिड़ंत लगातार जारी है. पुतिन ने मिन्स्क शांति सम?ाते को खत्म कर यूक्रेन के 2 अलगाववादी क्षेत्रों में सेना भेजने की घोषणा के बाद कहा था, ‘हम इन क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के लिए सेना भेज रहे हैं. मगर अब उन का इरादा यूक्रेन में तख्तापलट का है.’

यूक्रेन से चिढ़ते हैं पुतिन

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को पश्चिमी देशों की कठपुतली मानते हैं. वे यूक्रेन की यूरोपियन यूनियन, नाटो और अन्य यूरोपीय संस्थाओं के साथ नजदीकी का विरोध करते रहे हैं. उन का कहना है कि यूक्रेन पूर्णरूप से कभी एक देश था ही नहीं. वहां रहने वाले भावनात्मक रूप से रूस से जुड़े हुए हैं. ऐसी धारणा फैला कर रूस काफी वक्त से यूक्रेन पर पूर्वी हिस्से में ‘जनसंहार’ का आरोप लगा कर युद्ध के लिए माहौल तैयार कर रहा था. उस ने विद्रोही इलाकों में लगभग 7 लाख लोगों के लिए पासपोर्ट भी जारी किए हैं. माना जाता है कि इस के पीछे रूस की मंशा अपने नागरिकों की रक्षा के बहाने यूक्रेन पर कार्रवाई को सही ठहराना है.

विवाद की बड़ी वजह है नाटो

यों तो रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई की कई वजहें हैं लेकिन इन में सब से बड़ी वजह है नौर्थ अटलांटिक ट्रीटी और्गेनाइजेशन यानी नाटो. इसी की वजह से सारा बवाल शुरू हुआ है. गौरतलब है कि वर्ष 1949 में तत्कालीन सोवियत संघ से निबटने के

लिए अमेरिका ने नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) का गठन किया था. इस संगठन को रूस को काउंटर करने के लिए बनाया गया था.

अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं. यदि कोई देश नाटो देश पर हमला करता है तो वह हमला पूरे नाटो देश पर माना जाता है और उस का मुकाबला सभी नाटो सदस्य देश एकजुट हो कर करते हैं. यूक्रेन भी नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन यह बात रूस को रास नहीं आ रही है. इसी वजह से ही विवाद जारी है.

रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ तो उस के सैनिक रूस-यूक्रेन सीमा पर डेरा जमा लेंगे. इस वजह से रूस को लगता है कि नाटो जैसे संगठन के सैनिक अगर उस सीमा पर आ जाते हैं तो उस के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी. रूस चाहता है कि नाटो अपना विस्तार न करे.

राष्ट्रपति पुतिन इसी मांग को ले कर यूक्रेन व पश्चिमी देशों पर दबाव डाल रहे थे. गौरतलब है कि नाटो में 30 लाख से अधिक सैनिक हैं, जबकि रूस के पास सिर्फ 12 लाख सैनिक हैं. इस की वजह से रूस को बड़ा खतरा महसूस होता है. यही वजह है कि रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन को इस का सदस्य नहीं बनने देना चाहता. रूस चाहता है कि नाटो उसे लिखित रूप में यह आश्वासन दे कि वह यूक्रेन को नाटो में कभी शामिल नहीं करेगा. इस के अलावा रूस का कहना है कि नाटो उन देशों को शामिल न करे, जो देश सोवियत संघ से अलग हुए हैं.

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क्रीमिया विवाद

रूस ने वर्ष 2014 में यूक्रेन के शहर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. दरअसल, क्रीमिया में रूस समर्थित लोग बहुसंख्यक हैं. वे रूसी भाषा बोलते थे और रूस से अधिक लगाव रखते थे. साल 2014 में रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति थे, लेकिन राजधानी कीव में हिंसक प्रदर्शन के बाद यानुकोविच को सत्ता गंवानी पड़ी थी. इस के बाद रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. क्रीमिया में हुए जनमत संग्रह में लोगों ने रूस के साथ जाने के लिए मतदान किया. मगर तब से यूक्रेन और पश्चिमी देश क्रीमिया को रूस में मिलाने को अवैध मानते हैं.

इस के साथ ही क्रीमिया में एक बंदरगाह है, सेवस्तोपोल पोर्ट, जो रूस के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है. यह ऐसा बंदरगाह है जो रूस को साल के बारहों मास समुद्र से कनैक्टिविटी देता है. इस वजह से यूक्रेन डरा हुआ है कि रूस उस के और भी क्षेत्रों पर कब्जा कर सकता है. सो, यूक्रेन नाटो में शामिल हो कर खुद की सुरक्षा चाहता है.

गैस पाइपलाइन

रूस और यूरोप गैस पाइपलाइन विवाद भी लड़ाई की एक वजह है. रूस इस पाइपलाइन के जरिए गैस को यूरोप तक भेजता था. यह पाइपलाइन यूक्रेन से हो कर जाती थी, रूस को उन्हें ट्रांजिट शुल्क देना पड़ता है. रूस हर साल करीब 33 बिलियन डौलर का भुगतान युक्रेन को कर रहा था. यह राशि यूक्रेन के कुल बजट की 4 फीसदी है. रूस को इस कारण बहुत महंगी (10 बिलियन डौलर) नौर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन की शुरुआत करनी पड़ी. इस के जरिए रूस ने समुद्र में पाइपलाइन डाल कर यूरोप को गैस पहुंचाई थी. ऐसे में रूस को लगता है कि अगर वह यूक्रेन के कुछ क्षेत्र पर कब्जा करता है तो उसे गैस पाइपलाइन भेजना आसान होगा.

भीषण संघर्ष जारी

रूस और यूक्रेन के बीच भीषण जंग जारी है. यूक्रेन की राजधानी कीव और खारकीव में रूसी सेना के ताबड़तोड़ हमले जारी हैं. दोनों देशों के बीच बेलारूस में हुई बातचीत बेनतीजा रही. एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र यूक्रेन की मदद के लिए कमर कस कर खड़ा है वहीं राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना को ‘स्पैशल अलर्ट’ पर रखने का आदेश दिया है जिस में परमाणु हथियार भी शामिल हैं. अब तक दोनों ओर से सैकड़ों सैनिकों की मौत हो चुकी है. साथ ही, दर्जनों लड़ाकू विमान, हैलिकौप्टर और टैंक नष्ट हो चुके हैं.

राजधानी कीव के करीब 40 मील तक रूसी सेना का जमावड़ा लगा है. वहीं संसाधनों की कमी के बावजूद यूक्रेन पूरी मुस्तैदी से अपनी सरहदों की रक्षा में जुटा है. चारों ओर तबाही का मंजर है. अब तक यूक्रेन में 352 लोगों की जान जा चुकी है, जिन में 16 बच्चे भी शामिल हैं. इन के अलावा 1,684 लोग घायल हुए हैं. यूनाइटेड नैशंस के मुताबिक, यूक्रेन छोड़ कर दूसरे देशों में पलायन करने वाले शरणार्थियों की संख्या 3 लाख 86 हजार से ज्यादा हो गई है.

ईयू ने लगाए प्रतिबंध

यूक्रेन पर हमला करने के बाद रूस पर ईयू ने कई कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. इस के जवाब में रूस ने भी बड़ा पलटवार किया है. रूस ने 36 देशों के लिए हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है जिन में यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश जरमनी, फ्रांस, स्पेन और इटली भी शामिल हैं.

इस बीच यूरोपियन यूनियन की सदस्यता के लिए यूक्रेन ने आवेदन कर दिया है. यूक्रेन के राष्ट्र्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए एक आवेदन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यूक्रेन की संसद ने बाकायदा इस का ऐलान किया है. जेलेंस्की के इस कदम से पुतिन का पारा और चढ़ गया है.

यूक्रेन को 50 करोड़ यूरो की आर्थिक मदद

यूक्रेन पर रूस के हमले ने दुनिया को 2 धड़ों में बांट दिया है. एक तरफ भारत जैसा देश तटस्थ रहने की कोशिश में है तो वहीं चीन और पाकिस्तान ने भी दूरी बना रखी है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जरमनी जैसे पश्चिमी व यूरोपीय देश खुल कर रूस के सामने आ गए हैं. इन में से कई देशों ने यूक्रेन को सैन्य हथियार मुहैया कराने से ले कर अन्य मदद देने की बात कही है.

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नाटो चीफ ने यूक्रेन को एंटी टैंक हथियार और मिसाइल देने का एलान किया है. अब तक कुल 21 देशों की ओर से यूक्रेन को मदद देने का एलान हो चुका है. यूरोपीय संघ ने औपचारिक रूप से यूक्रेनी सशस्त्र बलों को उपकरण और आपूर्ति के लिए 50 करोड़ यूरो (लगभग 42 अरब 37 करोड़ 10 लाख रुपए) उपलब्ध कराने के प्रावधान को मंजूरी दे दी है. ईयू ने इस मदद में पहली बार घातक हथियारों को भी शामिल करने का फैसला लिया है.

क्यों है भारत तटस्थ

भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करने से दूरी बनाई हुई है और वार्त्ता के जरिए समस्या का समाधान खोजने पर जोर दे रहा है. भारत यूक्रेन को ले कर सावधानी से कदम उठा रहा है. वह रूस और अमेरिका दोनों से ही नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता. कुछ खास वजहों पर नजर डालते हैं.

भारत के लिए यूक्रेन संकट 2 खंभों के बीच बंधी रस्सी पर चलने जैसा है, जिस की वजह से उसे अपने पुराने दोस्त रूस और पश्चिम में नए दोस्तों का दबाव ?ोलना पड़ रहा है.

रूस भारत के हथियारों की सप्लाई करने वाला सब से बड़ा आपूर्तिकर्ता है और उस ने भारत को एक बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन दी है.

भारत के पास 272 सुखोई, 30 फाइटर जेट हैं. ये भारत को रूस से ही मिले हैं. भारत के पास पनडुब्बियां और 1,300 से ज्यादा टी-90 टैंक्स हैं, जो रूस ने ही मुहैया कराए हैं.

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत रूस से एस-400 एयर डिफैंस सिस्टम खरीदने के लिए अडिग रहा. एस-400 रूस की सब से एडवांस्ड लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है. इस मिसाइल सिस्टम की खरीद के लिए भारत ने रूस से 2018 में 5 अरब डौलर की डील की थी.

रूस यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में सभी मुद्दों पर भारत के साथ खड़ा रहा है.

उधर, अमेरिका ने रूस के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया के लिए भारत पर दबाव बना रखा है. भारत के लिए अमेरिका भी रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कट्टरपंथी, धार्मिक और दंभी नेता ज्यादा पसंद आते हैं जिन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी हैं.

अपने लोगों को निकालने की कवायद

जैसेजैसे युद्ध का रूप भयानक होता जा रहा है और रूस यूक्रेन पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, वैसेवैसे वहां फंसे विदेशी नागरिकों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, खासतौर से छात्रछात्राओं की, जिन को निकालने की कोशिशें लगातार हो रही हैं. यूक्रेन में 80 हजार विदेशी छात्रों में सब से ज्यादा भारतीय हैं. इस के बाद मोरक्को, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान और नाइजीरिया के छात्रों का नंबर आता है.

खारकीव में भारतीय छात्र की मौत

खारकीव यूक्रेन का दूसरा सब से बड़ा शहर है जिसे रूस की सेना का पहला रणनीतिक लक्ष्य माना जा रहा है. जब रूसी सैनिक इस शहर में घुसे तो उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिस के बाद से रूस यहां बम बरसा रहा है. रूसी सेना खारकीव पर क्लस्टर बम और वैक्यूम बम जैसे विनाशकारी हथियारों से कहर बरपा रही है.

खारकीव में करीब 3,000 भारतीय छात्र फंसे हुए हैं. यहां हो रही गोलाबारी में एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत के बाद से छात्रों का भय चरम पर है. वहीं फंसे एक भारतीय डाक्टर स्वाधीन ने पिछले दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से वहां के बदतर होते जा रहे हालात का जिक्र करते हुए कहा था कि वहां फंसे भारतीय छात्रों की हालत बहुत खराब है.

उन्होंने कहा था कि लोगों को खानेपीने की बहुत दिक्कत है. वे छात्रों को खाना दे रहे हैं लेकिन खुद उन के पास एक या दो दिन का ही खाना बचा था. उन्होंने कहा था कि अगर भारत सरकार ने जल्दी कोई ऐक्शन नहीं लिया तो छात्रों के लिए हालात बहुत खराब होने जा रहे हैं.

गौरतलब है कि खारकीव यूक्रेन की पश्चिमी सीमाओं से बहुत दूर है. इसलिए यहां से छात्रों को निकालना भी बहुत बड़ी चुनौती है. हवाई हमलों के बीच 1,500 किलोमीटर पैदल चल कर रोमानिया सीमा तक पहुंचना उन के लिए संभव नहीं है.

एक अनुमान के मुताबिक यूक्रेन में 20 हजार भारतीय छात्र हैं. ये वहां विभिन्न मैडिकल कालेजों में पढ़ रहे हैं. मैडिकल शिक्षा की कम लागत और आसान प्रवेश प्रक्रिया के कारण फिलीपींस और यूक्रेन को प्राथमिकता दी जाती है. भारतीय छात्रों को यूक्रेन से सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया रोमानिया, हंगरी और पोलैंड के भारतीय दूतावासों के संयुक्त प्रयासों से पूरी की जा रही है. इन छात्रों ने सोशल मीडिया पर मोदी सरकार की बहुत छीछालेदरी की तो वह हिली और अंत में अपने नागरिकों को वापस लाने में सहयोग दिया.

युद्ध बनाम जनयुद्ध 

युद्ध सिर्फ त्रासदियों को जन्म देता है. हम ने इतिहास में कई युद्ध देखेसुने और ?ोले हैं. उन युद्धों से कुछ भी ऐसा हासिल नहीं हुआ जिसे सहेजा जाए. उन की कड़वी यादें और उन से हुए भारी नुकसान ही इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों से अंकित हुए.

मौजूदा समय में पुतिन ने रूस के कपोलकाल्पनिक अस्थिर हो जाने के खतरे की संभावना मात्र के चलते एक लोकतांत्रिक व अपने से काफी कमजोर देश यूक्रेन को अस्थिर कर दिया है. सोचिए, एक शहर बसने में सदियां लग जाती हैं, सुंदर इमारतों के खड़े होने में संपत्तियां लुट जाती हैं, लेकिन उन के उजड़ने और बिखरने में मिनटभर भी नहीं लगा. आग में धूधू हो रहे कितने बेकुसूर यूक्रेनियन लोगों के घर उजड़ गए, कितने बेघर हो गए हैं, कितने मारे जा रहे हैं और कितने डर के साए में जी रहे हैं.

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रूस के और्थोडौक्स राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सनक ने दुनिया को महायुद्ध की स्थिति में ला खड़ा किया है. पुतिन एक ऐसा शासक है जो बिना जनता की राय के खुद को आजीवन सत्ता में बनाए रखने के लिए संविधान में संशोधन कर चुका है. उसी की राह पर चीन का राष्ट्रपति जिनपिंग भी वही संशोधन कर चुका है. वहीं, हमारे देश भारत के कई भारतीयों को डर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी राह जाते दिख रहे हैं, कहीं यहां भी वैसा ही न हो जाए.

दुनिया का हर तानाशाह ?ाठ बोलता है, ?ाठ नहीं बोलेगा तो तानाशाही नहीं चलेगी. हिटलर के ?ाठ से आज भी दुनियाभर के तानाशाह अपने लिए नाजीर सैट करते हैं. लेकिन वे सब यह भूल जाते हैं कि भ्रम की दुनिया एक समय तक ही रहती है.

जाहिर तौर पर पुतिन की आक्रामक हरकत से दुनियाभर में पुतिन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. यहां तक कि रूस की राजधानी मास्को में भी कई रशियन नागरिक बिना राष्ट्रवाद का उन्माद लिए अपने ही राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन करते देखे गए और नारे लगाते रहे कि ‘‘पुतिन 21वीं सदी ने नया ‘जार’ है.’’

पुतिन को नागरिकों का एक युद्ध बाहर से तो एक युद्ध उस की सेना को युद्धभूमि में यूक्रेनवासियों से ?ोलने को मिल रहा है. जिस दौरान रूस के सैनिकों ने अपने भयानक हथियारों से यूक्रेन पर चढ़ाई की तो यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अपनी भावुक अपील से यूक्रेन और दुनिया के नाम एक संदेश दिया. उन्होंने अपने संदेश में कहा, ‘‘दुनिया ने हमें अकेला छोड़ दिया है, लेकिन हम अपनी आजादी के लिए लड़ेंगे.’’ इस संदेश के बाद जेलेंस्की खुद भी युद्ध मोरचे में चले गए.

यह बात इतिहास में दर्ज होने जा रही है कि यह युद्ध ऐसा है जिस में तकरीबन निहत्थी, कमजोर सेना व छोटे से देश के मुकाबले दुनिया की दूसरी सब से बड़ी ताकत रूस पूरी दमखम से उतर गई और उस के कमांडर इन चीफ ने जरा भी नैतिकता नहीं बरती बल्कि परमाणु बम की धमकी तक दे डाली. इस के बावजूद यूक्रेन की जनता अपनी आजादी के लिए लगातार संघर्ष करती रही.

क्या ऐसा मंजर हम ने अतीत में शीतयुद्ध के दौर में हुए अमेरिका-वियतनाम युद्ध में नहीं देखा, जब दुनिया की सब से बड़ी महाशक्ति एक नवजात, कमजोर और अपनी नईनई आजादी का जश्न मना रहे देश वियतनाम को ध्वस्त करने पर आमादा थी. लेकिन वियतनामी लड़ाकुओं के आगे अंत में अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी. इतिहास में जब इस का जिक्र आता है तो अमेरिकी आक्रमणकारी और वियतनामी संघर्ष की गाथा ही कानों में सुनाई देती है.

आज गलियारों में ऐसी चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं कि कहीं पुतिन के लिए यह युद्ध ‘वाटरलू’ न साबित हो जाए. इस में सब से बड़ी बात यह कि यूक्रेन का युद्ध अब जनयुद्ध में तबदील हो गया है. यूक्रेन की जनता इस युद्ध में खुद ही शामिल हो गई है. यह यूक्रेन के लिए इमोशनल वार में बदल चुका है. इसी का परिणाम है कि पुतिन जो सोच रहे थे कि वे 2-3 दिनों के भीतर ही यूक्रेन के दो चीरे कर आगे बढ़ जाएंगे और यूक्रेन अपने हथियार डाल देगा, वह नहीं हो सका. रूस के दांत फिलहाल यूक्रेन की साहसी जनता व सेना के आगे खट्टे हो गए हैं. इस की फ्रस्ट्रेशन इसी से सम?ा जा सकती है कि अपने हिसाब से सबकुछ ठीक नहीं होने के चलते पुतिन को परमाणु बम की गीदड़ भभकी देनी पड़ गई.

मान भी लें कि अगर भविष्य में रूस यूक्रेन को कब्जा भी ले या सत्ता परिवर्तित कर किसी कठपुतली को वहां बैठा भी दे तो यह जनता को कतई मंजूर नहीं होगा.

अब परिणाम चाहे जो हो पर यह तय है कि इतिहास के पन्नों में जेलेंस्की और यूक्रेन का नाम अपनी आजादी के लिए लड़ने में शामिल होगा और पुतिन का नाम हत्यारे व आक्रमणकारी के तौर पर लिया जाने वाला है. साथ ही, इस युद्ध ने यह फिर साबित कर दिया है कि बड़ी बात, बड़ी ताकत वाले जीत ही जाएं, यह जरूरी नहीं. आज या कल, वे इतिहास के पन्नों में हारे हुए देखे जाते हैं.

क्या यही प्यार है

लेखक- जोगेश्वरी सुधीर

दीपाली की शादी में कोई अड़चन नहीं हो सकती थी, क्योंकि वह बहुत सुंदर थी. किंतु उस के मातापिता को न जाने क्यों कोई लड़का जाति, समाज में जंचता नहीं था. खूबसूरत दीपाली की शादी की उम्र निकलती जा रही थी. पिता कालेज में प्रिंसिपल थे. किसी भी रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहे थे. अंतत: हार कर दीपाली ने एक गुजराती युवक अरुण के साथ अपने प्रेम की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं. दीपाली और अरुण का प्रेम 3-4 साल चला. मृत्युशैया पर पड़े प्रिंसिपल साहब ने मजबूरन अपनी सुंदर बेटी को प्रेम विवाह की इजाजत दे दी.

दीपाली के विवाह बाद उस के पिता की मौत हो गई. उधर अरुण एक सच्चे प्रेमी की तरह दीपाली को पत्नी का सम्मान देते हुए अपने परिवार में अपनी मां के पास ले गया. घर का व्यवसाय था. आर्थिक स्थिति मजबूत थी. अरुण दीपाली को जीजान से चाहता था. किंतु दीपाली को अरुण की मां कांतिबेन का स्वभाव नहीं सुहाता था.  कांतिबेन अपनी पारिवारिक परंपराओं का पालन करती थीं जैसे सिर पर पल्लू डालना आदि. वे दीपाली को जबतब टोक देतीं कि वह हाथपांव ढक कर रखे, सिर पर आंचल डाले आदि. यह सब गुजराती परिवार में बहू का सामान्य आचरण था. किंतु दीपाली को यह कतई पसंद नहीं था.

इसी वजह से इस अंतर्जातीय विवाह में दरार पड़ने लगी. शुरू में अरुण ने दीपाली को समझाबुझा कर शांत रखने की मनुहार की. किंतु अरुण की मानमनौअल तब बेकार हो गई जब दीपाली इस टोकाटाकी से बेहद चिढ़ गई और अरुण के बहुत समझाने पर भी मायके चली गई. दीपाली मायके गई तो उस की मां माया ने उसे समझाने के बदले अपनी दूसरी बेटियों संग भड़काना शुरू कर दिया.

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दीपाली की बहन राजश्री ने तो आग में घी डालने का काम कर दिया. वैसे भी राजश्री की आदत सब के घर मीनमेख निकाल कर कलह कराने की थी. दीपाली के विवाह को भी उस ने नहीं छोड़ा. सभी बहनों को वह सास के प्रति कठोरता बरतने की शिक्षा देने लगी.  मां और बहन के बहकावे में आ कर दीपाली ने अपने पति अरुण के प्यार से मुख मोड़ लिया. बेचारा अरुण कितनी बार आता, रूठी पत्नी को मनाता पर न तो दीपाली टस से मस हुई, न उस की मां माया. मायके में भाभी सारा काम कर लेती, दीपाली मां के साथ घूमतीफिरती रहती. रात को खापी कर सो जाती.

घरेलू कामकाज न होने तथा खाने और बेफिक्री से सोने से दीपाली का शरीर  काफी भर गया. अब वह सुकोमल की जगह मोटी सी बन गई. हालांकि आकर्षक वह अब भी थी. पर पति के प्रेम को ठुकराने से उस के सौंदर्य में वह मासूमियत नहीं छलकती.  दीपाली अपने मायके में खानेसोने में दिन गुजारने में मस्त थी तो दूसरी तरफ अरुण अपनी पत्नी के लिए हमेशा उदास रहता. कांतिबेन भी चाहती थीं कि उन की बहू घर लौट आए तो बेटे का परिवार आगे बढ़े और वे भी बच्चों को खेलाएं.  मगर फिर दीपाली अपनी ससुराल नहीं गई. अरुण उस से पहले मिलने आता रहा, पर बाद में फोन तक ही शादी सिमट गई. अकेले रहते हुए भी अरुण ने न कहीं चक्कर चलाया और न ही दीपाली ने उसे तलाक दिया. वह अरुण की जिंदगी को अधर में लटकाए रही.

अरुण मनातेमनाते थक गया. दिल में दीपाली के लिए सच्ची चाहत थी. जिंदगी ऐसे ही खाली व अकेले कटने लगी. वह नहीं सोच सका कि दीपाली से अलग भी दुनिया हो सकती है. पत्नी से दूर रह कर वह खोयाखोया सा रहता था. एक दिन न जाने बाइक चलाते किन खयालों में गुम था कि एक ट्रक से टकरा गया. माथे पर गहरी चोट लगी.  कांतिबेन व उस के पति ने दीपाली को खबर भेजी. मगर न दीपाली ने और न ही उसकी मां ने अस्पताल जा कर अरुण को देखना उचित समझा. उलटे इस नाजुक मौके पर दीपाली की मां ने अरुण के पिता से सौदेबाजी शुरू कर दी.  उधर अरुण अस्पताल में इलाज करा रहा था, इधर दीपाली की मां ने कहला भेजा कि दीपाली अब उस की सास के संग हरगिज नहीं रहेगी. उसे एक नई जगह, नए क्वार्टर में बसाया जाए.

अपने घायल बेटे के सुख के लिए उस के पिता नारायण ने यह शर्त भी कबूल कर ली. किंतु जख्मी बेटे की तीमारदारी में वे ऐसे व्यस्त रहे कि अलग से घरगृहस्थी से मुक्त सजासजाया कमरा बेटे के लिए अरेंज नहीं कर सके.  इसी तरह कुछ दिन और निकल गए, पर अपने कमजोर हो चुके जख्मी पति को देखने दीपाली अस्पताल नहीं आई. वह बस नए कमरे की मांग पर अड़ी रही. मानो उसे अपने पति से ज्यादा परवाह अपने लिए अलग कमरे की थी.  अरुण को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर उस के पिता घर ले आए. फिर बेटे की नई गृहस्थी बसाने के लिए नए कमरे की व्यवस्था में जुट गए.  किंतु घायल अरुण के दिल पर दीपाली की इस स्वार्थी शर्त का और बुरा प्रभाव पड़ा. वह अब और ज्यादा गुमसुम रहने लगा. पहले की भांति वह रूठी पत्नी को मनाने के लिए अब फोन भी नहीं करता. न ही दीपाली अपनी अकड़ छोड़ कर पति से बात करती.

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इसी निराशा ने अरुण को भीतर से तोड़ दिया. वह जैसे समझ गया कि जिसे उस ने इतना जीजान से चाहा, वह गर ब्याहता हो कर भी उसे जख्मी हालत में देखने नहीं आई, तो उस के संग आगे की जिंदगी व्यतीत करने की क्या अपेक्षा करनी. अरुण के सारे स्वप्न झुलस गए. जो प्रेम का भाव उसे जीवन जीने की ऊर्जा देता था, वह अब लुप्त हो गया था. वह खाली सा महसूस करता.  इसी हालत में एक रात अरुण उठा. सिर पर अभी भी पट्टी बंधी थी. मां दूसरे कमरे में सोई थीं. पत्नी से फोन पर बात होती नहीं थी. दीपाली से अब उसे प्रेम की आशा नहीं थी. उस ने देख लिया था कि जिसे वह अभी तक चाह रहा था, वह तो पत्थर की एक मूर्त भर थी.  बेखयाली में, बेचैनी में अरुण उठा और जीने की तरफ बढ़ा और फिर चंद सैकंडों में सीढि़यां लुढ़कता चला गया. सीढि़यों के नीचे पहुंचने तक उस के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. जिस जख्मी पति को दीपाली देखने नहीं आई थी, वही पति की मौत पर उस के मांबाप से पति का हिस्सा मांगने अपनी मां, बहन, भाई व जीजा को ले कर आ गई.

जिस ने भी दीपाली को देखा वह समझ गया कि इस मतलबपरस्त लड़की ने एक विजातीय लड़के को झूठे प्रेमजाल में फंसा उस का जीवन बरबाद कर उसे मरने को मजबूर कर दिया. वही अब सासससुर से अपने पति का हिस्सा मांग रही है. तो क्या यही है प्यार? क्या यही विवाह का हश्र है?

YRKKH: ‘अनुपमा’ करेगी अक्षरा और अभिमन्यू को एक

स्टार प्लस का पॉपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है.  शो में अक्षरा और अभिमन्यु की शादी की ट्रैक चल रहा है. इस शो में अब अनुपमा की एंट्री होने वाली है.जी हां सही सुना आपने, शो के नये प्रोमो के अनुसार अनुपमा का तड़का लगने वाला है. आइए बताते है, शो में क्या होने वाला है.

नए प्रोमो के अनुसार दर्शकों को जल्द दिलचस्प ड्रामा देखने को मिलने वाला है. यह ट्रैक अब अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई का है. जहां अक्षरा और अभिमन्यु एक दूसरे से मिलते हैं और साथ में डांस करने वाले हैं.

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शो में आप देखेंगे कि अभिमन्यु, अक्षरा से पूछेगा कि क्या उसने नायरा के झुमके नहीं पहने? इस पर अक्षरा कहती है कि झुमके गायब हो गए हैं.  अभिमन्यु को आरोही पर शक होता है और अक्षरा को भी इसके बारे में बताता है. लेकिन अक्षरा अभिमन्यु से आरोही पर भरोसा रखने के लिए कहेगी. तभी उन दोनों के बीच लड़ाई होगी.

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दरअसल अक्षरा चाहती है कि अभिमन्यु आरोही पर भरोसा करे. इस दौरान दोनों लड़ने लगेंगे. ऐसे में अनुपमा की एंट्री होगी. अनुपमा यानि रूपाली गांगुली उन्हें अब एक-दूसरे से प्यार करने और शादी के बाद के समय के लिए झगड़े बचाकर रखने की सलाह देगी.

 

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शो में दिखाया जा रहा है कि मंजरी अस्पताल में भर्ती है. नील को हिट एंड रन मामले के बारे में पता चलता है. तो वहीं आरोही काफी डरी हुई है. वह नहीं चाहती कि अभिमन्यु को सजा दी जाए. आरोही इस तरह अक्षरा को देखती है और उसे गले लगा लेती है.

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आरोही को लगता है कि अक्षरा उसे किसी तरह बचा लेगी. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अक्षरा कैसे सामना करती है.

Anupamaa: अपने रोल की वजह से ट्रोल हो रहा है ये एक्टर

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ की कहानी अक्सर चर्चे में रहती है. शो में हर किरदार घर-घर में मशहूर है. शो में वनराज की भूमिका निभाने वाले सुधांशु पांडे को अक्सर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है. दरअसल उनके किरदार की वजह से ट्रोलर्स सोशल मीडिया पर खरी-खोटी सुनाते हैं. शो में वनराज के इतने शेड्स हैं कि लोग इनसे नफरत करने लगे हैं.

शो में वनराज कब अपना रंग बदल ले, ये कहना मुश्किल है. ‘अनुपमा’ में वनराज का रोल कभी पॉजिटिव हो जाता है तो कभी इतना निगेटिव होता है कि फैंस उनसे नफरत करने लगते हैं. सुधांशु पांडे के लिए यह किरदार मुसिबत बन गया है.

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एक इंटरव्यू के अनुसार वनराज शाह यानी सुधांशु पांडे ने कहा है कि मैं सोशल मीडिया पर अपने किरदार के बारे में कमेंट्स पढ़ता हूं. मेरे लिए ये सब बहुत नया है. मैं पहली बार टीवी शो में काम कर रहा हूं. मुझे नहीं पता कि टीवी की ऑडियंस किस तरह रिस्पॉन्स करेगी.

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रिपोर्ट के मुताबिक वनराज शाह यानी सुधांशु पांडे ने ट्रोलिंग को लेकर कहा है कि लोग मेरे किरदार को पसंद कर रहे हैं. जनता वनराज के बारे में सोशल मीडिया पर लिखती है. लोगों को लगने लगा है कि वनराज का किरदार सच है. मुझे अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है.

 

एक्टर ने आगे कहा कि लोग मेरे बारे में गलत भाषा का भी इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि यूजर्स के कमेंट्स पढ़ने में मुझे मजा आता है. मैं बस एक बात कहना चाहता हूं कि लोग रील और रियल लाइफ में अंतर करना भूल गए हैं.

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हिटलर व्लादिमीर पुतिन

छोटे पड़ोसी देशों की स्वतंत्रता से अकसर बड़े देश जल्दी ही नाराज हो जाते हैं और उन्हें धमकाने लगते हैं. रूस ने यूक्रेन को हथियाने और महान सोवियत संघ के सपने को फिर से साकार करने के लिए उस पर हमला तो कर दिया पर यह रूस को खुद कितना महंगा पड़ेगा, इस का अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता. अमेरिका ने वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक पर हमले किए पर अमेरिका की अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी है कि वह इस तरह के हमलों का खर्च बरदाश्त कर सकती है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दूसरी तरफ उन नेताओं में से हैं जो सिर्फ धौंस जमाने के लिए बेसिरपैर के फैसले लेने को तैयार रहते हैं ठीक नरेंद्र मोदी की तरह जो आज उन का हर कदम पर साथ दे रहे हैं.

4 करोड़ की आबादी वाले छोटे से देश यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की ने हार न मानते हुए ?ाकने से इनकार कर पुतिन के लिए शायद मुसीबत खड़ी कर दी. पुतिन को भरोसा था कि यूक्रेन जल्दी ही घुटने टेक देगा और कौमेडियन से राष्ट्रपति बने जेलेंस्की देश छोड़ कर भाग जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और लड़ाई की शुरुआत में हर दिन रूस को एक नई बाधा का सामना करना पड़ा.

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आज रूस की प्रतिव्यक्ति आय

11,000 डौलर है और अमेरिका व यूरोप के बाकी देशों की प्रतिव्यक्ति आय 40,000 से 60,000 डौलर है. यूरोप के बाकी देश रूस का आर्थिक मुकाबला लंबे समय तक कर सकते हैं. रूस की सेना आज खासी आत्मनिर्भर तो है पर रूसी व्यापार व अर्थव्यवस्था पूरी तरह पश्चिमी देशों पर निर्भर है. दूरदर्शिता के अभाव वाले पुतिन को यह सम?ा नहीं आया कि यूक्रेन पर हिंसक कार्रवाई यूरोप को एक नए हिटलर की याद दिला सकती है और शायद अब वे, यूरोपीय देश, जोखिम नहीं लेंगे कि यूक्रेन पर रूस सफल हो कर पूर्व के सोवियत संघ के दूसरे देशों की ओर नजर डालने लगे.

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इधर भारत सरकार का रूस के प्रति मोह खतरनाक है क्योंकि जो दबाव पश्चिमी देश बना सकते हैं वह चीन और रूस मिल कर नहीं बना सकते. भारत को अपनी सीमाओं पर शांति चाहिए तो उसे हर देश के हमले का विरोध करना होगा. रूस ने बिना कारण जो हमला यूक्रेन पर किया है वह सफल हुआ तो वह बहुत से देशों को पाठ पढ़ा जाएगा.

भारत में कुछ लोग पाकिस्तान पर हमला कर कश्मीर को वापस लेने की बात करते रहते हैं. पर वे भूल जाते हैं कि सामने वाला चुप नहीं रहेगा. देश का आकार नहीं, देश के नेता की बुद्धि और दूरदर्शिता चाहिए होती है. जो नेता यूक्रेन पर हमला कर यूरोप में दबदबा जमाने के लिए अपनी सेना को ?ांक दे या जो बिना कारण नोटबंदी कर के पूरे देश को लाइनों में खड़ा कर दे, बेबात के कृषि कानून ला कर किसानों को दुश्मन बनाने पर ताली बजाए, गौपूजा के दुष्परिणाम -छुट्टे जानवरों- के बारे में पहले न सोच सके, वे इतिहास में मूर्ख ही दर्ज किए जाते हैं. ऐसे ही नेताओं में हिटलर, मुसोलिनी, माओ गिने जाते हैं. इन में अब व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हो गए हैं. ऐसे कुछ नेता और भी हैं जो फिलहाल लाइन में हैं.

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हिजाब जरूरी या आजादी

कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने की जिद हजम नहीं होती. हिजाब महिला आजादी की पहचान नहीं हो सकता, बल्कि यह गुलामी को दर्शाता है. हिजाब विवाद की आग एक जिले से निकल कर पूरे राज्य में ही नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों तक पहुंच चुकी है.

शबनम (बदला हुआ नाम) को जब पहली दफा हिजाब उतार कर फ्रांस में अपने परिवार के साथ घूमनेफिरने का मौका मिला तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह पहली बार अपनी जुल्फों को हवाओं के साथ उड़ते हुए महसूस कर रही थी. हवाओं का स्पर्श उसे रोमांचित कर रहा था. वह पहली बार अपने बालों को अपने हिसाब से स्टाइल कर सकती थी.

आज वह खुद को बहुत स्वतंत्र और खुश महसूस कर रही थी, पर कहीं न कहीं एक डर भी उस के दिल में था. उसे याद था अपनी मातृभूमि में कैसे उसे सिर न ढकने पर पुलिस द्वारा पकड़ लिए जाने का खौफ सताता था. वह एक पल को भी घर के बाहर बाल खोल कर नहीं घूम सकती थी.

शबनम का बचपन और युवावस्था ईरान में बीता जहां महिलाओं को घरों से बाहर हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जाता है. अफगानिस्तान जैसे कई देशों में भी ऐसा ही होता है. वैसे बहुत से मुसलिम देशों की सरकारें महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य नहीं करती हैं. इस के बावजूद रूढि़वादी परिवार धर्म के नाम पर अपनी बेटियों पर बड़े होने के बाद हिजाब थोपते हैं.

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अरबी में ‘हिजाब’ का अर्थ ‘बाधा’ या ‘विभाजन’ है. इस शब्द का उपयोग उस परिधान के लिए किया जाता है जिस का उपयोग कई मुसलिम महिलाएं शरीयत, इसलामी धार्मिक कानून के तहत शील बनाए रखने के उद्देश्य से सार्वजनिक रूप से अपने सिर को ढकने के लिए करती हैं.

इस के कई रूप हैं. उदाहरण के लिए हिजाब के अलावा नकाब और बुर्का भी इसी के रूप हैं. नकाब में आंखों के ऊपर एक स्लिट होती है ताकि महिला सामने देख सके. उस के बालों के साथ चेहरा भी ढका होता है. केवल आंखें खुली होती हैं. जबकि बुर्के में आंखों के स्थान पर या तो एक खिड़कीनुमा जाली बनी होती है या हलका कपड़ा होता है जिस से आरपार दिख सके. इस के साथ ही पूरे शरीर पर एक बिना फिटिंग वाला लबादा होता है. यह अकसर एक ही रंग का होता है.

हाल ही में 7 मुसलिम बहुल देशों (ट्यूनीशिया, मिस्र, इराक, लेबनान, पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की) में मिशिगन विश्वविद्यालय के सामाजिक अनुसंधान संस्थान द्वारा कराए गए एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि ज्यादातर मुसलिम लोग पसंद करते हैं कि महिलाएं अपने बालों को पूरी तरह से ढक कर रखें. केवल तुर्की और लेबनान के 4 में से एक से अधिक लोग सोचते हैं कि एक महिला के लिए सार्वजनिक रूप से अपना सिर न ढकना उचित है.

सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने महिलाओं के उस रूप को सही बताया जिस में उन के बाल और कान पूरी तरह से एक सफेद हिजाब से ढके हुए थे. इस में ट्यूनीशिया के 57 फीसदी, मिस्र के 52 फीसदी, तुर्की के 46 फीसदी और इराक के 44 फीसदी लोगों की सोच यही थी. इराक और मिस्र के ज्यादातर लोगों ने महिलाओं के उस रूप को वरीयता दी जिस में उस के बाल और कान काले हिजाब से ढके थे.

पाकिस्तान के ज्यादातर लोगों ने उस नकाब को पसंद किया जिस में महिला की केवल आंखें दिख रही हों. सऊदी अरब के (63 फीसदी) ज्यादातर लोगों ने महिलाओं को नकाब में देखना पसंद किया. जबकि इन से अलग एकतिहाई (32 फीसदी) तुर्क इस दृष्टिकोण को मानते हैं कि एक महिला के लिए सार्वजनिक रूप से अपने बालों को नहीं ढकना स्वीकार्य है. लेबनान में लगभग आधे (49 फीसदी) भी इस बात से सहमत हैं कि एक महिला के लिए बिना सिर ढके सार्वजनिक रूप से उपस्थित होना स्वीकार्य है.

इस बात को ज्यादा समय नहीं हुआ है जब अफगानिस्तान में महिलाओं ने अपने अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले तालिबान सरकार के नियमों के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया जिस के तहत हिजाब पहनना अनिवार्य है. बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. कुछ महिलाओं ने प्रतिरोध के संकेत के रूप में अपना बुर्का उतार कर जला दिया. ऐसा ही कुछ अफगानिस्तान में भी हुआ. महिलाओं के प्रदर्शनों की एक लहर चल पड़ी. इधर हमारे देश में मामला उलटा है. यहां खुद मुसलिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने की पैरवी की जा रही है.

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आज दुनियाभर में लोग जिंदगी आसान करने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं, विकास और आधुनिक सोच की धारा बह रही है, नएनए आविष्कार हो रहे हैं, विचारों की क्रांति आ रही है, परंपरागत रूप से चले आ रहे बंधनों व संकीर्णताओं से इंसान आजाद हो रहा है, स्त्रीपुरुष समानता, धार्मिक सहिष्णुता और सब के लिए शिक्षा का चलन बढ़ रहा है, दुनियाभर में लड़कियों व महिलाओं को परदे में रखने वाले परिधानों का लगभग परित्याग किया जा चुका है. हमारे देश में भी घूंघट का चलन कुछ पिछड़े गां?वों तक ही सिमट कर रह गया है. ऐसे में कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने की जिद हजम नहीं होती. पिछले साल शुरू हुए इस हिजाब विवाद की आग एक जिले से निकल कर देश के दूसरे राज्यों तक पहुंच चुकी है.

देखा जाए तो यह जिद खुद को सदियों पहले के जमाने में धकेलने जैसी है. इसे हम कूपमंडूकता या एक किस्म की धर्मांधता व कट्टरता भी कह सकते हैं. यह स्त्री स्वतंत्रता में बाधक उन कुरीतियों से खुद को जकड़े रखने की सनक जैसा है जिन का मकसद ही महिलाओं को दोयम दर्जे का साबित करना होता है. इस हिजाब या बुर्के की पैरवी खुद लड़कियां करें तो अजीब सा लगता है. खुल कर सांस लेने के बजाय सुरक्षा के नाम पर चेहरा या सिर छिपाने का फैसला कहीं से भी उचित नहीं लगता.

हिजाब को लेकर हल्ला क्यों

हिजाब के लिए प्रोटैस्ट करने वाली कुछ वे लड़कियां भी हैं जिन के सोशल मीडिया अकाउंट में जींस और शौर्ट ड्रैसेस में बहुत सारी तसवीरें भरी पड़ी हैं. वैसी लड़कियां जो चिल करने, घूमनेफिरने या दोस्तों के साथ कहीं जाते समय अगर मौडर्न ड्रैसेस पहनने में कोताही नहीं करतीं तो फिर वे कालेज या स्कूल में हिजाब की अनिवार्यता पर जोर क्यों दे रही हैं. यह बात सम?ा नहीं आती.

आखिर स्त्री हो या पुरुष, हर किसी को आजादी से जीने व आधुनिक समाज में सब के साथ कदम से कदम मिला कर चलने का पूरा हक है. आज के समय में जब हम महिलाओं को चांद पर भेज रहे हैं, देश की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी दे रहे हैं, बेटियों को परिवार में बेटे से कहीं ज्यादा प्यार व सुविधाएं दे रहे हैं, ऐसे में यदि हम हिजाब या बुर्के के रूप में घूंघट प्रथा का समर्थन करें तो यह एक तरह से खुद को सालों पीछे ले जाने जैसा है.

सदियों तक भारतीय महिलाएं पुरुषवादी समाज की ज्यादतियों का शिकार रहीं. धर्मगुरुओं ने उन्हें पुरुषों से दब व ढक कर रहने के उपदेश दिए. महिलाओं को दोयम दर्जा दिया गया और उन से उम्मीद की गई कि वे अपना वजूद भूल कर केवल पुरुष वर्ग की दासी की तरह रहें. मुसलिम महिलाओं को भी अपने शौहर की कनीज बन कर रहने की तालीम दी गई. ज्यादातर हक शौहर को दे दिए गए, उन्हें कईकई शादियों की इजाजत के साथ ही जब चाहा बेकुसूर बीवी को तलाक देने का हक भी मिला.

हिंदुओं में भी औरतों को घूंघट प्रथा के जरिए आगे बढ़ने से रोका गया, सती प्रथा उन के जीने के हक को निगल गया, दहेजप्रथा ने उन की कीमत कम कर दी तो बाल विवाह ने बहुत नादान उम्र में ही उन के कदमों को बांध दिया. इन प्रथाओं से लड़ कर वापस अपना वजूद स्थापित करने में महिलाओं ने बहुत कुर्बानियां दीं. सामाजिक क्रांति की लौ जली और तब सालों प्रयास करने के बाद आज महिलाएं फिर से खुद को साबित कर रही हैं. वे अपनी आजादी का जश्न मना रही हैं. ऐसे में हिजाब के नाम पर फिर से उसी घूंघट प्रथा को बड़े नाज के साथ स्वीकारना और उस की पैरवी करना क्या अजीब नहीं है?

जहां तक बात सुरक्षा की है तो उस के लिए स्त्रियों को खुद पर परदे डालने के बजाय अपनी शक्ति और मनोबल बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. यदि बिना हिजाब या बुर्के के स्त्री को देख कर पुरुषों की नजरें खराब होने का अंदेशा होता हो तो इस के लिए परदादारी के बजाय आंखें मिला कर बात करने और गरदन ऊंची कर चलने का रिवाज अपनाना ज्यादा उचित है. अगर किसी की नजर खराब होती है तो महिला अपनी एक नजर से सामने वाले को सीधा करने का हौसला भी रखती है. अपनी बेटियों को मजबूत बनाना जरूरी है न कि परदे में छिपाना.

स्कूलकालेज में हिजाब से समस्या

गौर करने वाली बात यह है कि यदि हिजाब या बुर्का पहन कर छात्राएं स्कूलकालेज में जाती हैं तो यह वहां के मैनेजमैंट के लिए भी गलत ही होगा. बुर्के के अंदर से यदि कोई छात्रा कुछ अनुचित बात करती है, सहेली से बातें करती है या फिर शोर मचाती है तो टीचर के लिए यह सम?ाना कठिन होगा कि यह शरारत किस ने की. क्लास में डिसिप्लिन के लिए हिजाब बड़ी बाधा है.

यही नहीं, एग्जाम के समय यदि कोई छात्रा चाहे तो हिजाब के अंदर बहुत आराम से कई सारी चिटें छिपा सकती है. नकल करने के लिए वह बड़े आराम से अपने हिजाब की सहायता ले सकती है. एग्जाम के दौरान हिजाब के साथ छात्राओं की चैकिंग आसान नहीं होगी. इसलिए अगर कोई छात्रा हिजाब पहन कर कालेज आती भी है तो उचित यही होगा कि वह कालेज परिसर में आ कर उसे उतार दे.

विवाद की शुरुआत

हिजाब विवाद की शुरुआत हुई देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 2 हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक प्रदेश के उडुपी जिले से. अक्तूबर 2021 में सरकारी पीयू कालेज की कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनने की मांग शुरू कर दी. इस के बाद 31 दिसंबर को 6 छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कालेज में नहीं जाने दिया गया. छात्राओं ने कालेज के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया.

कालेज प्रशासन ने 19 जनवरी, 2022 को छात्राओं, उन के मातापिता और अधिकारियों के साथ बैठक की थी. लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला. 3 फरवरी को पीयू कालेज में हिजाब पहन कर आने वाली छात्राओं को फिर से रोका गया. इस के बाद 5 फरवरी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हिजाब पहन कर स्कूल आने वाली मुसलिम छात्राओं के समर्थन में आ गए.

छात्राओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 5 फरवरी को यूनिफौर्म का आदेश जारी हुआ और राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 की धारा 133(2) लागू कर दी. इस के अनुसार, सभी छात्रछात्राओं के लिए कालेज में तय यूनिफौर्म पहनना अनिवार्य कर दिया गया. यह आदेश सरकारी और निजी दोनों कालेजों पर लागू किया गया.

8 फरवरी को विवाद ने हिंसक रूप ले लिया. कर्नाटक में कई जगहों पर ?ाड़पें हुईं. कई जगहों से पथराव की खबरें भी सामने आईं. शिवमोगा का एक वीडियो सामने आया जिस में एक कालेज छात्र तिरंगे के पोल पर भगवा ?ांडा लगा रहा था. मांड्या में बुर्का पहनी हुई एक लड़की के साथ अभद्रता की गई. इधर उडुपी जिले के एमजीएम कालेज में हिजाब और भगवा की लड़ाई शुरू हो गई. कुछ हिजाब पहने छात्राएं कालेज में आईं. दूसरा पक्ष भगवा पगड़ी और शौल डाल कर कालेज आया.

इस बीच कर्नाटक के शिवमोगा जिले में रात लगभग 9 बजे बजरंग दल के एक 23 साल के कार्यकर्ता की चाकू मार कर हत्या कर दी गई. मारे गए बजरंग दल कार्यकर्ता की पहचान हर्ष नाम के युवक के तौर पर की गई है. घटना के बाद इलाके में स्कूलकालेज बंद कर दिए गए. मृतक के समर्थक सड़कों पर उतर आए और अपना आक्रोश प्रकट किया. कुछ दिनों पहले इस युवक ने सोशल मीडिया पर हिजाब विवाद को ले कर पोस्ट लिखी थी. अपनी इस पोस्ट में युवक ने हिजाब का विरोध किया था और भगवा गमछे का समर्थन किया था.

कर्नाटक में हिजाब विवाद नया नहीं

कर्नाटक में हिजाब पहनने को ले कर विवाद नया नहीं है. यहां 2009 में बंटवाल के एसवीएस कालेज में ऐसा मामला सामने आया था. उस के बाद 2016 में बेल्लारे के डा. शिवराम करांत सरकारी कालेज में भी हिजाब को ले कर विवाद हुआ था. 2018 में भी सैंट एग्नेस कालेज में बवाल हुआ था. उडुपी जैसा विवाद बेल्लारे में भी हुआ था. उस समय कई छात्रों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग को ले कर भगवा गमछा पहन कर प्रदर्शन किया था.

फिलहाल हिजाब विवाद का मसला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया. शीर्ष अदालत ने इस मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई उचित समय पर की जाएगी.

वैसे कर्नाटक एजुकेशन एक्ट के तहत सभी शैक्षिक संस्थानों को अपनी यूनिफौर्म तय करने का अधिकार दिया गया है. शर्त बस, इतनी है कि यूनिफौर्म कोड की घोषणा सत्र शुरू होने से काफी पहले करनी होगी और उस में 5 साल तक बदलाव नहीं होना चाहिए.

हिजाब के पक्ष में दलील

यह दलील दी जा रही है कि यदि हिंदू लड़कियों को बिंदी लगाने से कभी नहीं रोका गया तो फिर मुसलिम लड़कियों को हिजाब या बुर्का पहनने से क्यों रोका जा रहा है, पर यहां सोचने वाली बात यह है कि बिंदी से इंसान का चेहरा नहीं ढकता, यह इंसान की पहचान को नहीं छिपाता. मगर नकाब या बुर्के में लड़की की सिर्फ आंखें नजर आती हैं, इसलिए यह ड्रैस शिक्षण संस्थानों के लिए मान्य नहीं हो सकती. यहां सब बराबर होते हैं और एकदूसरे के साथ मिल कर रहते हैं, साथ में पढ़ते हैं, जीवन में आगे बढ़ने के गुर सीखते हैं. ऐसे में कुछ छात्राएं अगर अलग दिखना चाहें तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता. प्रैक्टिकली देखें तो लड़कियां परिसर में हिजाब पहन सकती हैं लेकिन कक्षाओं में नहीं.

छात्राएं पहले भी कक्षाओं में प्रवेश करने के बाद हिजाब और बुर्का हटाती रही हैं. इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं है. जिन के घर में हिजाब को ले कर ज्यादा सख्ती है उन्हें कोएड कालेज के बजाय किसी वूमन कालेज में दाखिला लेना चाहिए क्योंकि वहां नकाब की जरूरत ही नहीं होगी.

गौर करने की बात यह है कि जिस सऊदी अरब से हिजाब, बुर्का आदि का चलन शुरू हुआ, आज वह देश आधुनिक तौरतरीके अपना रहा है. नए तौरतरीकों के साथ आगे बढ़ रहा है. सिर्फ वही नहीं, बल्कि दुनिया के कई अन्य इसलामिक देशों में भी हिजाब को ले कर कोई सख्त या अनिवार्य प्रावधान नहीं हैं.

आज यह बात सब को सम?ा आने लगी है कि कोई भी समाज स्त्रियों को पीछे रख कर आगे नहीं बढ़ सकता. स्त्रीपुरुष मिल कर, कंधे से कंधा मिला कर चलेंगे तभी उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकेंगे. अफसोस, भारत में कुछ लड़कियां और उन के घर वाले इस बात को सम?ा नहीं पा रहे.

कई देशों में प्रतिबंधित है हिजाब

जहां भारत में कुछ लोग इसलाम की दुहाई दे कर हिजाब की पैरवी करने में लगे हैं वहीं दुनिया के कई मुसलिम देशों में शिक्षण संस्थानों, सरकारी भवनों आदि में हिजाब प्रतिबंधित है. इन देशों ने माना कि महिलाओं पर जबरन पहनावा थोपना सही नहीं है. अपने यहां महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए समानता का माहौल देना सुनिश्चित किया.

मिस्र : मिस्र में पढ़ालिखा तबका हिजाब का विरोध करता है. कई संस्थानों ने अपने स्तर पर हिजाब, नकाब को प्रतिबंधित किया हुआ है और इन प्रतिबंधों को लोगों का समर्थन मिला है.

सऊदी अरब : यहां हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है.

इंडोनेशिया : यहां हिजाब पूरी तरह वैकल्पिक है. जौर्डन में भी ऐसा ही है.

कजाखिस्तान : यहां सितंबर 2017 में कुछ स्कूलों ने हिजाब प्रतिबंधित कर दिया था. इस के खिलाफ अभिभावकों ने अपील की थी लेकिन प्रतिबंध बना रहा. 2018 में सरकार ने नकाब और इस तरह के परिधानों को सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिबंधित कर दिया.

सीरिया : विश्वविद्यालयों में चेहरे को ढकने वाले पहनावे पर प्रतिबंध लगा है. हिजाब पर कोई व्यवस्था नहीं है.

कुछ देशों में अनिवार्य

अफगानिस्तान, इराक समेत कुछ देशों में सार्वजनिक स्थान पर महिलाओं के लिए हिजाब, नकाब और बुर्का जैसे परिधान अनिवार्य किए गए हैं. ईरान में भी पिछली सदी के 8वें दशक में हुई इसलामिक क्रांति के बाद से महिलाओं के लिए ढीले कपड़े और हिजाब अनिवार्य हैं. इसलामिक कट्टरपंथी महिलाओं के लिए ऐसे पहनावों की वकालत करते हैं हालांकि इन देशों में भी समयसमय पर इन के विरोध में आंदोलन देखने को मिले हैं.

इस मसले पर गरम होती सियासत और अदालती लड़ाई के बीच फैसला कुछ भी आए लेकिन एक बात तो तय है कि इस मसले को समर्थन वाली जिद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महिलाओं के सशक्तीकरण को कुंद करने वाली है.

कुछ छात्राएं मानती हैं कि हिजाब उन की धार्मिक पहचान का हिस्सा है, पर क्या जरूरी यह नहीं कि लड़कियों को इस उम्र में हिजाब या धर्म के मुकाबले शिक्षा और कैरियर पर ज्यादा जोर देना चाहिए. लड़कियों को सभी वर्ग के लोगों से दोस्ती करनी चाहिए और एक जैसा रहना चाहिए.

नशे का कारोबार, युवाओं की चिंता

Writer- संदीप मित्तल

अब युवाओं की नसों में खून की जगह ड्रग्स दौड़ रहा है. पहले केवल शहरों में फलफूल रहे ड्रग्स के धंधे ने अब गांवदेहातों को भी अपनी चपेट में ले लिया है. चिंताजनक यह भी है कि इस गैरकानूनी व जानलेवा कृत्य में युवाओं की भारीभरकम लिप्तता है.

ऐक्टर सुशांत सिंह राजपूत की नशे की लत का मामला बहुत तूल पकड़ा पर असल में यह युवाओं को नशे से बचाने की जगह राजनीतिक बदले का हथियार और कमाई का हिस्सा बन गया.

नशा और नशे से संबंधित काले कारोबार से भारत सहित पूरा विश्व परेशान है. ड्रग्स का फैलता अवैध कारोबार और नशे में डूबते जा रहे युवावर्ग से निबटना हमारे लिए चिंता भी है और चुनौती भी. आज विश्व के सामाजिक और आर्थिक विकास में सब से बड़ी बाधा अवैध दवाएं बन चुकी हैं.

पंजाब के चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा रहा है क्योंकि नशे के कारण हुई मौतों से गांव के गांव परेशान हैं और वे चाहते हैं कि आने वाली सरकार इस बीमारी को दूर करे. कूमकलां नाम के एक छोटे गांव में 10 साल में 55 युवा नशे के कारण असमय मौत के गर्त में समा गए.

इस अवैध कारोबार ने देश को किस कदर अपने लपेटे में ले लिया है, इस का ताजा उदहारण मुंबई में गिरफ्तार हुए शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान का है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) देश में बड़े ड्रग्स रैकेटों का भंडाफोड़ करता रहता है. हालांकि एनसीबी अब राजनीतिक हथियार बन गया है और अपने असली मकसद से भटक गया है.

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यूनाइटेड नेशंस औफिस औन ड्रग्स (यूएनओडीसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशियाई देशों में ड्रग्स का सेवन करने वालों में केवल भारत में ही 60 फीसदी लोग हैं जिन में अधिकतर युवावर्ग शामिल है. ऐसे में एचआईवी प्रसार का खतरा भी बढ़ जाता है, क्योंकि भारतीय ड्रग्स यूजर्स में करीब 72 फीसदी संक्रमित सूई से ड्रग लेते हैं.

ड्रग्स का अवैध कारोबार और आतंकवाद एक चुनौती

इस का जाल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी फैलता जा रहा है. इस से आतंकवाद को भी बढ़ावा मिलता है. आतंकवादी नैटवर्क को बड़ी मात्रा में धन, हथियार आदि नारकोटिक धंधे के माध्यम से उपलब्ध होते हैं. इस अवैध कारोबार से पूरी तरह निबटना होगा.

अफगानिस्तान में तालिबानियों की आय का मुख्य स्रोत नशीली हेरोइन ही है. आज भी इस बारे में सरकार बहुत गंभीर नहीं है. उदाहरण के तौर पर जो प्रतिबंधित नशीली दवाइयां पकड़ी जाती हैं उन का कोई सदुपयोग नहीं होता है. वे गलत हाथों में न पड़ जाएं, इसलिए उन्हें जला कर नष्ट कर देने का दावा किया जाता है पर कोई स्वतंत्र निगरानी नहीं है जो इन को बाजार में फिर बेचे जाने से रोक सके.

अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां मदद करती हैं और जब भी बड़ी खेप आती है वे पूर्व सूचना देने की कोशिश करती हैं. हाल ही में हम ने भारत और विदेशों में एकसाथ छापेमारी इन्हीं एजेंसियों की मदद से की.

नशीले पदार्थों की तस्करी और खपत

इंडो-म्यांमार बौर्डर अब फिर सक्रिय हो गया है. अफगानिस्तान में भी तालिबानी सरकार की स्थापना के बाद से भारत में ड्रग्स के कारोबार में काफी तेजी आई है. भारत में अफीम आधारित जो ड्रग्स आ भी रही हैं, वे दोबारा विदेशों में जाने के लिए आती हैं. राजधानी दिल्ली में भी ड्रग्स कारोबार रैकेट का भंडाफोड़ आएदिन होता ही रहता है, पर देश में भी खपत बढ़ती जा रही है.

चिंता की बात यह है कि इन की संख्या ग्रामीण इलाकों में बढ़ रही है. राजधानी में नशाखोरों में एक ओर जहां फुटपाथ पर रह कर गुजारा करने वालों की जमात है तो दूसरी ओर कौल सैंटर व क्रिएटिव आर्ट से जुड़े फैशन डिजाइनर, फिल्म एड बनाने वाले यंग प्रोफैशनल्स हैं. एक वर्ग गरीबी के चलते नशे की गिरफ्त में फंस कर नशे से उबर नहीं पा रहा तो दूसरा वर्ग देखादेखी या रोब गांठने के चक्कर में ड्रग का शिकार हो रहा है.

नशीले पदार्थों की बिक्री में लड़कियों की भी बढ़ती संख्या प्रमुख चिंता है. इस धंधे में लगे माफिया लड़कियों का इस्तेमाल इसलिए भी करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पुलिस को अकसर लड़कियां धोखा देने में सफल हो जाती हैं.

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दूसरे, इन को बेचने वाली ज्यादातर लड़कियां होती हैं, जिन्हें नशीले पदार्थों के सेवन की लत पड़ चुकी होती है और उसे खरीदने के लिए ही वे इसे बेचने के धंधे में शामिल हो जाती हैं. इंटरनैट के जरिए भी ड्रग्स का कारोबार बढ़ रहा है.

ऐसे कौल सैंटर्स व वैबसाइट्स पनप रही हैं जहां पर इस की डीलिंग व क्रैडिट कार्ड और बिटकौइन के जरिए पैसे के लेनदेन होने की संभावना रहती है. अन्य नशीले पदार्थों की तुलना में ब्राउन शुगर और स्मैक की मांग ज्यादा होती है. स्कूलकालेज के विद्यार्थी एवं युवावर्ग बहुत ज्यादा कीमत का नशा नहीं खरीद पाता, इसलिए स्मैक ही खरीदता है.

वहीं, हेरोइन सब से महंगा नशीला पदार्थ है. अफीम के पौधे से सब से पहले हेरोइन के रूप में पाउडर प्राप्त होता है. इस के बाद बचे हुए पदार्थ से अन्य चीजें मिला कर ब्राउन शुगर बनाई जाती है और उस के बाद में बचे हुए पदार्थ में लोहे लकड़ी का बुरादा और अन्य अनेक प्रकार के रसायन तथा अन्य चीजें मिला कर उसे और नशीला बनाया जाता है.

नशीली दवाओं और स्वापक पदार्थों की खेती, उत्पादन, निर्माण, वितरण, ब्रिकी, आयात और निर्यात करना अपराध है. विशेष न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई सजा में 10 से 30 वर्ष की कैद के साथ आर्थिक जुर्माना भी है.

अगर यह अपराध साबित हो जाता है कि दवा की खपत व्यक्तिगत रूप से की जा रही है तो कम से कम 6 महीने और अधिक से अधिक एक साल की सजा का प्रावधान है.

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने 2022 में इवैंट शुरू किया ताकि डार्कवैब के जरिए हो रहे नशे के धंधे पर नियंत्रण करने के उपाय ढूंढ़े जा सकें. अच्छे सु?ावों पर

2.5 लाख रुपए तक का पुरस्कार देने की घोषणा है पर जिस व्यापार में खरबों रुपया दुनियाभर का लगा हो, उस पर नियंत्रण करना असंभव सा है.

मजेदार बात यह है कि दिल्ली में एनसीबी का दफ्तर जहां है वहीं पड़ोस में अंबेडकर बस्ती है जहां नशे का कारोबार धड़ल्ले से चलता है. एक इंग्लिश दैनिक समाचारपत्र की रिपोर्ट के अनुसार, इस बस्ती की गलियों में माचिस की तीलियां, फौयल, सिगरेटों के टुकड़े आराम से दिख जाते हैं, जो हमारे ड्रग कंट्रोल प्रयासों की पोल खोलते हैं. पंजाब में गरीब मजदूरों से काम लेने के लिए उन्हें नशेड़ी जानबू?ा कर बनाया गया था, पर बाद में इस ने पैसे वालों, जमीन मालिकों के युवा बच्चों को भी गिरफ्त में ले लिया.

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इस कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों, नौजवानों व महिलाओं में जागृति लाना है. इस अभियान में विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री, महिला एवं विकास विभाग, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो एवं यूएनओडीसी के प्रतिनिधि, खेलजगत व फिल्मी जगत से जुड़े सितारे भी शामिल होते हैं. अभियान को आकर्षित करने के लिए दौड़, नुक्कड़ नाटक, थीम संबंधी नृत्यनाटिका, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि को भी शामिल किया जाता है.

ड्रग्स एडिक्ट यानी नशेडि़यों को इस से छुटकारा दिलाए जाने के लिए सब से पहले तो उन्हें काउंसलिंग की जरूरत होती है. उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए नशा मुक्ति केंद्र का भी सहारा लिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें इस लत से छुटकारा दिलाया जा सके और वे एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें.

उन का प्यार बर्फ में जम गया: भाग 3

डेनियल ने वाटर सप्लाई को फोन किया तो उस ने कहा, “यह सिर्फ आप की समस्या नहीं है. अपने शहर के अतिरिक्त अन्य अनेकों शहरों में बिजली और पानी नहीं है. हम समझ सकते हैं कि यह इमर्जेंसी है, पर कुछ कर नहीं सकते हैं. जगहजगह पाइप में बर्फ जमने से पाइप फट गई है. इस में काफी समय लगेगा. असुविधा के लिए खेद है.“

डेनियल ने लोयला से कहा, “ऐसी स्थिति के बारे में कभी किसी ने सोचा ही न था, इसीलिए घरों में हम

पानी कभी स्टोर नहीं करते हैं. तुम पैंट्री से पानी की कुछ बोतलें निकालो, उसी से काम चलाना होगा. दोनों के बाथरूम के फ्लश टैंक में पहले से जमा पानी से एक बार फ्लश कर सकते हैं हम दोनों.“

किसी तरह दोनों ने फ्रेश हो कर नाश्ता किया. डेनिएल बोला, “फिलहाल तो बाथरूम का काम चल गया. इस के बाद टायलेट फ्लश नहीं होगा.“

“होगा कैसे नहीं. बाहर से बर्फ ला कर टैंक में डाल देंगे हम लोग, कुछ देर में वह पिघल जाएगा.“

“वाह, तुम्हारा दिमाग मेरी बीवी जैसा तेज कैसे हो सकता है?“

“बीवी नहीं तो बीवी जैसा ही सही.”

“हम दोनों का दिमाग मिल जाए तो और बहुतकुछ हो सकता है.“

“तुम्हारी बात सुन कर मुझे भी आइडिया आया. गेराज में एक बालटी होगी. मैं बाहर से बर्फ लाता हूं. फ्लश टैंक में बर्फ डालने के बाद एक बालटी बर्फ और ला कर रखते हैं. इमर्जेंसी में बर्फ का पानी ही काम आएगा.“

“मैं भी चलती हूं आप के साथ.“

बाहर दरवाजे पर भी बर्फ जमा थी. किसी तरह उसे तोड़ कर अंदर लाए, कुछ फ्लश टैंक में डाला और

कुछ बालटी में रहने दिया. लोयला ने बैकयार्ड में ग्रिल के पास एक गैस सिलिंडर देख कर कहा, “हम ने गेराज में एक सिंगल गैस ओवन देखा है. इस में गैस बचा है क्या? अगर होगा, तो हम खाना गरम कर सकते हैं.“

“वाह, क्या आइडिया है, बीवी होती तो वह भी ऐसा ही कहती.”

“वैसे भी आप को बीवी नहीं तो एक हमसफर की जरूरत है. आप को कुछ भी याद नहीं रहता है.”

“और तुम को साथ की जरूरत नहीं है?“

“हां, मैं भी तो इनसान हूं.”

“अच्छा मौका मिला है सोचने का. हम दोनों 3-4 दिन साथ हैं.”

डेनियल स्टोव और प्रोपेन सिलिंडर ले कर आया. दोनों ने मिल कर कुछ खाना बनाया और कुछ फ्रिज से निकाल कर गरम किए और अंत में कौफी बनाई. फिर दोनों बैठ कर कौफी पीने लगे. लोयला बोली, “खाने को बाहर ही रहने देना, फ्रिज में रखने की जरूरत नहीं है. इतनी ठंड में खाना

खराब नहीं होगा.”

डेनियल और लोयला दोनों फोन का इस्तेमाल बहुत कंजूसी से कर रहे थे. कोई एक मौसम का हाल जान लेता. दोनों एक बार अपने बच्चों को मैसेज कर देते. दोनों के बच्चे जान रहे थे कि डेनियल और लोयला एक ही घर में साथ रह रहे हैं.

दूसरे दिन भी मौसम में कोई सुधार नहीं था. उस रात दोनों ने अपने प्यार का खुल कर इजहार किया और हमसफर बनने का फैसला किया. सुबह तीसरे दिन दोनों ने अपनेअपने बच्चों को मेसेज भेजा – ‘अब हम दोनों ने साथ रहने का निर्णय लिया है.’

कुछ देर बाद बच्चों के जवाब मिले. दोनों ने लिखा – ‘यह बहुत अच्छी बात है, हमें जान कर खुशी हुई. हम लोग स्प्रिंग वैकेशन में मार्च में आएंगे, उसी समय आप लोग वेडिंग प्लान करें.’

तीसरी रात मौसम और ज्यादा खराब हो गया. बारिश, आंधीतूफान और हिमपात ने मिल कर कहर ढा रखा था. घर के अंदर भी तापमान करीब शून्य था. डिनर के बाद डेनियल ने गरम कौफी पीने की इच्छा जताई, तो लोयला कफी बनाने गई. अभी दूध पूरा गरम भी न हो सका कि गैस खत्म हो गई. वह बोली, “लगता है, सिलिंडर खाली हो गया. दूध पूरा गरम भी न हो सका था.”

कोई बात नहीं, जैसा है उसी में कौफी बनाओ. थैंक्स गौड अभी खाना काफी बचा है. कल शाम से मौसम बेहतर होने का अनुमान है.”

कौफी पीने के तकरीबन एक घंटे बाद दोनों सोने गए. डेनियल बोला, “अब हम एक ही रूम में साथ सो सकते हैं. ठीक है न. जल्द ही दोनों गहरी नींद में सो गए. इसी बीच बैकयार्ड का एक पेड़ टूट कर बैडरूम की छत पर गिरा और लकड़ी की छत को चीरता हुआ उन के बेड पर जा गिरा. दोनों बुरी तरह से दब कर रह गए, निकलने की कोई गुंजाइश न थी. ऊपर खुला आसमान और स्नो फाल.

रातभर बहुत ठंड में रहने से दोनों जम गए.

सुबह में पड़ोसी ने देखा, तो उस ने 911 को फोन किया. 15 मिनट के अंदर पुलिस और एंबुलेंस पहुंच गए. पुलिस ने देखा कि वे दोनों एकदूसरे के हाथ थामे चिरनिद्रा में थे. उन के शरीर पर बर्फ की एक परत जम गई थी. पर उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उन के शरीर के निचले भाग

लगभग निर्वस्त्र थे. पुलिस उन की मृत्यु को संदेह की दृष्टि से देखने लगी. उसे शक था कि ठंड से मरना न हो कर कहीं यह कोई सैक्स क्राइम या ड्रग का मामला हो. बहरहाल, पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने डेनियल और लोयला दोनों के बच्चों से जानकारी ली कि कहीं उन्हें नशे की लत तो नहीं थी. मेसन ने बताया कि डेनियल ने कभी ड्रग नहीं लिया है. लोयला की बेटी मार्था ने बताया कि उस की मम्मी ड्रग की आदी नहीं थी. हालांकि एक या दो बार शायद उस ने लिया था. पुलिस का शक और गहरा गया.

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से कहीं किसी शक की गुंजाइश नहीं थी. न ड्रग की और न सैक्स की. रिपोर्ट के अनुसार, दोनों की मौत “हाइपोथर्मिया“ यानी अत्यधिक ठंड के कारण हुई थी.

फोरेंसिक एक्सपर्ट ने बताया कि हाइपोथर्मिया में व्यक्ति का ऐसा आचरण असाधारण बात नहीं है. उस के अनुसार हाइपोथर्मिया से मरने के ठीक पहले व्यक्ति को बहुत ज्यादा गरमी महसूस होती है और वह आंशिक या पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होना चाहता है. आमतौर पर वह अपने वस्त्र नीचे से उतारना शुरू करता है, जूते, मोजे और पूर्णतः नग्न भी हो जाता है. इस क्रिया को “पाराडौक्सियल अनड्रेसिंग“

कहते हैं. “पाराडौक्सियल अनड्रेसिंग“ के तत्काल बाद आदमी बेहोश हो जाता है या मर जाता है.

डेनियल का बेटा मेसन और लोयला की बेटी मार्था दोनों बच्चे अपने पिता और माता के अंतिम संस्कार के लिए आए थे. मेसन ने मार्था से कहा, “प्रकृति भी कितनी निर्दयी है. कितने दुख की

बात है कि मेरे पिता और तुम्हारी माता के प्राण प्रकृति ने एक होने से पहले ही छीन लिए. हम दोनों

अगले महीने इन का वेडिंग प्लान कर रहे थे. जो भी हो, कम से कम मरने के पहले दोनों कुछ पल साथ रहे. जीसस, उन की आत्मा को शांति मिले.“

मार्था ने पूछा, “क्या हम इन के कब्र एकदूसरे के पास बना सकते हैं?“

“तुम ने ठीक कहा है. इन की आत्मा की शांति के लिए इस से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है.“

त्यौहारों में सूखे फूलों से यूं सजाएं घर

इंसान की जिंदगी में फूलों का एक अलग ही महत्त्व है. सौंदर्य व सजावट के अलावा संस्कारों, समारोहों और महत्त्वपूर्ण कार्यकलापों में फूलपौधों का इस्तेमाल किया जाता है. हर फूल एक निर्धारित समय के लिए अनुकूल मौसम और परिस्थितियों में ही खिलता और पनपता है. यदि इन फूल व पुष्पीय उत्पादों की कुदरती अवस्था में सुखाने की तकनीक विकसित की जाए तो इन्हें कुछ दिनों के बजाय महीनों और वर्षों तक घरों, दफ्तरों में सजाया जा सकता है.

फूल सुखाने के तरीके

कृत्रिम ऊर्जा के सहारे पौधों के खूबसूरत हिस्सों को नियंत्रित तापमान, नमी व हवा के बहाव में सुखाने की प्रक्रिया को डिहाइड्रेशन कहते हैं. इस प्रक्रिया द्वारा पौधों के खूबसूरत हिस्सों से नमी इस तरह निकाली जाती है कि उन की कुदरती अवस्था ज्यों की त्यों बनी रहती है. इस के उलट जब उन्हें प्रकृति में अपनेआप सूखने दिया जाता है तब औक्सीडेटिव प्रक्रिया से ये भूरे व काले पड़ जाते हैं.

हालांकि कुछ ऐसे पौधे, जिन में नमी कम हो, जल्दी ही सामान्य तापमान व हवा में कम नमी के होते सूख जाते हैं. इन में खासकर स्ट्रा फूल, पेपर फूल, स्टैटिस, धूप, फ्लेमिंजिया आदि शामिल हैं. कई पौधों के सुंदर फल, बीज व टहनियां अपनेआप सूख जाते हैं. ऐसे पौधों में अमलतास, रत्ती, क्लिमैटस, चीड़, रीठा आदि खास हैं.

खुले में लटका कर सुखाना :

यह फूल व पुष्पीय पदार्थों के सुखाने की सब से आसान व साधारण प्रक्रिया है. इस में फूल व पुष्पीय पदार्थों को रस्सी या तार से बांध कर उलटा लटका देते हैं. जब तक वे पूरी तरह सूख नहीं जाते, उसी अवस्था में रहने दिया जाता है. वहां पर नमी की मात्रा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और हवा का आवागमन पर्याप्त होना चाहिए. स्ट्रा फूल, पेपर फूल, स्टैटिस, धूप, फ्लेमिंजिया रूमैक्स कप व सौसर और बोगनबेलिया वगैरह इस प्रक्रिया से सूखने वाले खास फूल हैं. इस प्रक्रिया में दूसरे फूलों को सुखाने से वे सिकुड़ जाते हैं.

दबा कर सुखाना :

बहुत से फूल ऐसे होते हैं जिन्हें खुला उलटा लटका कर सुखाने से उन की पंखडि़यां व पत्तियां सिकुड़ जाती हैं व उन की सजावटी खूबसूरती भी खत्म हो जाती है. ऐसे फूलों को ‘दबा कर माध्यम’ के तहत सुखाया जाता है. जैसे :

  1. ऐसे माध्यम जो फूल व फूल उत्पादों को उस में दबाने पर नमी सोख लेता हो, उपयुक्त माध्यम कहलाता है. ध्यान रहे माध्यम, फूल व फूल उत्पादों पर कोई दुष्प्रभाव न छोड़ता हो. खासतौर पर उपयोग होने वाले माध्यमों में सिलिका जेल, सफेद व नीला बोरेक्स, बोरिक एसिड, नदी की साफ रेत, फिटकरी, ऐल्युमिनियम सल्फेट, बुरादा आदि शामिल हैं. इन्हें अकेले या मिश्रण बना कर इस्तेमाल किया जा सकता है.
  2. फूल व फूल उत्पादों को दबाने के लिए किसी भी किस्म के बरतन जैसे ऐल्युमिनियम, टिन, लोहे, कांच, मिट्टी या चीनी मिट्टी वगैरह के इस्तेमाल किए जा सकते हैं.

बरतन में 3 से 5 सैंटीमीटर पहले माध्यम को डालें व उस के बाद फूल या फूल भाग को एक हाथ से ऊपर उठा कर पकड़ें व दूसरे हाथ से धीरेधीरे माध्यम डालते रहें और इसे फूल से 2 या 3 सैंटीमीटर ऊपर तक डालें. इस के बाद बरतन को कमरे में रखें या रोजाना दिन के समय धूप में सुखाएं या हौट एअर ओवन यानी सोलर ड्रायर में 45 से 70 डिगरी सैल्सियस तापमान में रखें. फूलों को शीशे या प्लास्टिक के बरतनों में 2 से 5 मिनट तक मीडियम या 450 से 750 हर्ट्स पर 2-3 बार क्रमवार सुखाएं और बरतन को कमरे में 5 से 10 घंटे रखे रहने दें. इस तरीके से फूल जल्दी सूख जाते हैं.

कारोबारी तौर पर फूलों को वैक्यूम कक्ष या फ्रिज ड्रायर में 35 डिगरी सैल्सियस तापमान पर सुखाया जाता है. विभिन्न प्रकार के शुभकामना कार्ड या सजावटी सीनरी बनाने के लिए फूलपत्तियों को हरबेरियम प्रैस में सुखाया जाता है. फूल पत्तियां काली या भूरी न हों, इस के लिए उन्हें रोजाना अपनी जगह से बदल कर रखें. उन्हें बनावटी रंगों में रंग कर भी आकर्षक बनाया जा सकता है.

खाएं मगर सावधानी से

भागतीदौड़ती जिंदगी में जब सबकुछ फास्ट हो गया है तो फूड भला पीछे क्यों रहे. बनने में आसान, स्वाद में बेजोड़ रेडी टु ईट फूड आज किचन की शान बनते जा रहे हैं. ऐसे में जानें रेडी टु ईट फूड के खतरे व कैसे बना सकते हैं आप इन्हें सेहतमंद.

पुलाव, मटरपनीर, पालकपनीर,  दालमखनी, छोले, कोफ्ता, नवरतन कोरमा, बिरयानी, मटनकोरमा, शाही पनीर, टिक्का कबाब ही नहीं, बल्कि नूडल्स, सूप, चिकन नगेट्स, चिकन बौल्स, मीट बौल्स, मटन नगेट्स और न जाने क्याक्या, बनाने का झंझट नहीं और खाने में भी स्वादिष्ठ, मन तो आखिर ललचाएगा ही न.

जीवन की आपाधापी में तो कभी शौकिया और कभी अचानक किसी मेहमान के आ जाने पर पैकेट फूड या फ्रोजन फूड का बड़ा सहारा होता है. हम इसीलिए रेडी टु ईट फूड की तरफ  जानेअनजाने बढ़ ही जाते हैं. सब से बड़ी बात यह कि ये रेडी टु ईट फूड मौल्स से ले कर नुक्कड़ की दुकानों तक हर जगह उपलब्ध हैं. महानगर या शहर ही नहीं, गांव और कसबे में भी रेडी टु ईट फूड ने किचन में अपनी जगह बना ली है. पैकेट बंद फ्रोजन फूड अनाज की दुकानों तक में मिल जाते हैं.

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बनाना आसान

एक जमाना था जब छोले बनाने होते थे तो रात से ही तैयारी करनी पड़ती थी. छोले को भिगोना और सुबह तमाम मसाले को तालमेल के साथ तैयार करना व फिर छोले उबालना, मसाले पीसना, भूनना वगैरह. लेकिन आज मसाले तो क्या, मौसमबेमौसम हर तरह की सब्जीभाजी से ले कर मछलीमीट तक प्रीकुक्ड यानी पहले से तैयार खाने के सामान बंद पैकेटों में मिल जाते हैं और स्वाद, उस का तो कहना ही क्या.

स्वाद में बेजोड़ होने के कारण इन का बाजार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. अगर किसी परिवार में पैकेट फूड का इस्तेमाल नहीं भी किया जाता है तो भुना तैयार मसाला, गार्लिक पेस्ट, जिंजर पेस्ट के लिए उस के किचन में जगह निकल ही आती है. कुल मिला कर इन तैयार खाने के सामानों ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है, खासतौर पर उन कामकाजी महिलाओं के, जिन पर घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी है.

फलताफूलता व्यवसाय

पैकेटबंद फूड के चलन के चलते खाद्य प्रसंस्करण एक बढ़ता, फलताफूलता उद्योग बनता जा रहा है. केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि पिछले एक दशक में आसानी से तैयार हो जाने वाले पैकेटबंद फूड के बाजार में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

कोलकाता के यादवपुर विश्वविद्यालय के फूड टैक्नोलौजी के प्रो. उत्पल राय चौधुरी का कहना है कि ऐसे पैकेटबंद या रेडी टु ईट खाने के सामानों के साथ ढेर सारे ‘लेकिन’, ‘किंतु’ और ‘परंतु’ जुड़े हुए हैं. खाने में स्वादिष्ठ पैकेटबंद सामानों के बारे में फौरी तौर पर कहा जाए तो अव्वल इन में बहुत ज्यादा सोडियम यानी नमक होता है. इस के अलावा कार्बोहाइड्रेट्स, बड़ी मात्रा में फ्रूटोज, ट्रांसफैट होते हैं. उस में सेहत के लिए जरूरी विटामिंस विशेषरूप से विटामिन बी1 और विटामिन सी व मिनरल्स की कमी होती है. दरअसल, इसे तैयार करने में इन के पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं. दूसरे, इन में अच्छीखासी मात्रा में प्रिजरवेटिव्स के साथ कृत्रिम रंग और खुशबू का इस्तेमाल होता है.

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हकीकत यह है कि बड़ी से बड़ी या नामीगिरामी कंपनी क्यों न हो, पैकेट में कोई भी इस बात का सहीसही जिक्र नहीं करती है कि उस में कितनी मात्रा में प्रिजरवेटिव्स और रंग का इस्तेमाल किया गया है. प्रो. उत्पल राय कहते हैं कि हालांकि इन का इस्तेमाल करने का न केवल एक मानक तय कर दिया गया है बल्कि इस से संबंधित कानून भी हैं लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो रहा है.

रेडी टु ईट फूड के खतरे

ज्यादातर रेडी टु ईट या फ्रोजन फूड में उपादानों की सूची में हमें उन उपादानों का जिक्र देखने को नहीं मिलता जो हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. ज्यादातर प्रोडक्ट में मोनोसोडियम ग्लुटैमेट या एमएसजी होता है, लेकिन सूची में इन का जिक्र अजीनोमोटो के रूप में या नैचुरल फ्लेवरिंग के तौर पर होता है.

इन में इतना अधिक नमक होता है कि लगातार इन का सेवन करने वालों को हाइपरटैंशन का खतरा बन जाता है. गर्भवती महिलाओं के लिए तो यह जहर बराबर है. इन्हें हाइड्रोजेनेटेड या आंशिक तौर पर हाइड्रोजेनेटेड तेल में तैयार किया जाता है. इन में आमतौर पर बहुत अधिक कैलोरी होती है. इस कैलोरी को खाद्य विशेषज्ञ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं.

इन में मौजूद ट्रांसफैट की मात्रा सेहत के लिए हानिकारक होती है. यह ट्रांसफैट हाइड्रोजन गैस और तेल के मिश्रण से तैयार होता है. हालांकि प्राकृतिक रूप से यह ट्रांसफैट बीफ और मिल्क प्रोडक्ट में पाया जाता है. यह कोलैस्ट्रौल को बढ़ाता है. इस से मोटापे के खतरे के साथ धमनियों में चरबी जमने की आशंका होती है.

नूडल्स और सूप में काफी मात्रा में स्टार्च और नमक होता है. इस के अलावा एमएसजी यानी मोनोसोडियम ग्लुटैमेट होता है. पैकेट बंद गार्लिक व जिंजर पेस्ट का इस्तेमाल करने वालों को इस में एक विशेष तरह की गंध की शिकायत होती है. उत्पल रायचौधुरी का कहना है कि यह गंध दरअसल प्रिजरवेटिव्स की होती है. अलगअलग कंपनियां 1 साल से 6 महीने तक इस्तेमाल लायक बनाने के लिए उन में अधिक मात्रा में प्रिजरवेटिव्स उपादान डालती हैं.

सेहत का रखें खयाल

आज की भागती जिंदगी में रेडी टू ईट का हम सब को बड़ा सहारा है. खासतौर पर सूप और नूडल्स का. इस से होने वाले नुकसान को कम कर के इसे पौष्टिक बनाने के कुछ तरीके भी हैं. पैकेटबंद खाने में सोडियम की मात्रा को कम करने के लिए इस के मसाले के पाउच का इस्तेमाल आधा या उस से कम करें. रेडी टू ईट सूप को सेहत के लिए उपयुक्त बनाने के लिए इस में उबला अंडा, घर पर तैयार किया गया चिकन, हरे पत्तों वाली सब्जी, मसलन, नूडल्स में पत्तागोभी और सूप में पालक के अलावा गाजर, बींस, शिमलामिर्च और मटर डाला जा सकता है. पैकेटबंद खाना खाना अगर मजबूरी ही है तो इस बात का ध्यान रखें कि इसे अपनी आदत न बनाएं. कभीकभार ही इस का सहारा लें.

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खरीदारी के समय सावधानी

  1. पैकेट के लेबल को जरूर पढ़ कर जान लें कि आप जो चीज खरीद रही हैं, उस की पौष्टिकता का मान क्या है? इस की ‘मैन्यूफैक्चरिंग डेट’, ‘बैस्ट बिफोर ईट’, पैकेजिंग सील और लीकेज के प्रति सुनिश्चित हो लें.
  2.  फ्रोजन फूड को घर पर फ्रिज में हमेशा किसी इंसुलेटेड बौक्स या बैग में ही रखें. वह भी 0 से 4 डिगरी सैल्सियस के बीच तापमान पर. इस से इस में बैक्टीरिया पनपने का खतरा कम हो जाता है.
  3. एक बार पैकेट खोल लिया है तो पूरा का पूरा पैकेट खत्म कर दें. खुला पैकेट फिर से इस्तेमाल के लिए न रखें. हालांकि कुछ सामग्री के लेबल पर लिखा होता है कि पैकेट खोलने के बाद इतने समय के लिए फ्रिज में सुरक्षित रखा जा सकता है लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि खुले पैकेट में खाना जल्दी खराब हो जाता है, साथ ही उस का स्वाद भी कम हो जाता है.
  4. ज्यादातर फ्रोजन फूड में एक खास तरह के लिस्टेरिया बैक्टीरिया होते हैं, जो कम तापमान में नहीं मरते. इसीलिए ऐसी खाद्य सामग्री के लेबल में इन्हें गरम करने से संबंधित निर्देश को ध्यान से पढ़ कर उन्हीं के अनुरूप खाना गरम करें.

सीनियर डायटीशियन रश्मी रायचौधुरी का कहना है कि प्रसंस्करण के दौरान खाद्य सामग्री की पौष्टिकता नष्ट हो जाती है. प्रिजरवेटिव्स और रंग की मिलावट के कारण आजकल समय से पहले अधेड़ दिखने के साथ ही साथ कैंसर जैसी बीमारी की आशंका भी देखी जा रही है. हालांकि पैकेटबंद खाद्य सामग्री तैयार करने वाली कंपनियों की तरफ से सहनीय मात्रा में प्रिजरवेटिव्स और रंग का उपयोग करने का जो दावा किया जाता है, अगर वे सही हैं तो उन से खतरे की गुंजाइश नहीं होती है लेकिन विशेषज्ञों की राय यह है कि कंपनियां आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते पैकेटबंद खाद्य सामग्रियों की ऐक्सपायरी डेट बढ़ाने के लिए ‘परमिसेबल’ मात्रा से कहीं अधिक प्रिजरवेटिव्स का इस्तेमाल करती हैं.

जहां तक सूप और नूडल्स का सवाल है तो एक तरफ इस की कीमत इतनी कम होती है कि स्कूली बच्चे अपनी पौकेट मनी से खरीद लेते हैं. जबकि संतुलित भोजन का उपादान इस में बिलकुल नहीं होता, क्योंकि इस में न तो प्रोटीन होता है और न ही विटामिन और खनिज. जहां तक फाइबर का सवाल है तो वह भी नहीं होता. इसीलिए यह आंतों में चिपक जाता है.

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