छोटे पड़ोसी देशों की स्वतंत्रता से अकसर बड़े देश जल्दी ही नाराज हो जाते हैं और उन्हें धमकाने लगते हैं. रूस ने यूक्रेन को हथियाने और महान सोवियत संघ के सपने को फिर से साकार करने के लिए उस पर हमला तो कर दिया पर यह रूस को खुद कितना महंगा पड़ेगा, इस का अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता. अमेरिका ने वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक पर हमले किए पर अमेरिका की अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी है कि वह इस तरह के हमलों का खर्च बरदाश्त कर सकती है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दूसरी तरफ उन नेताओं में से हैं जो सिर्फ धौंस जमाने के लिए बेसिरपैर के फैसले लेने को तैयार रहते हैं ठीक नरेंद्र मोदी की तरह जो आज उन का हर कदम पर साथ दे रहे हैं.

4 करोड़ की आबादी वाले छोटे से देश यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की ने हार न मानते हुए ?ाकने से इनकार कर पुतिन के लिए शायद मुसीबत खड़ी कर दी. पुतिन को भरोसा था कि यूक्रेन जल्दी ही घुटने टेक देगा और कौमेडियन से राष्ट्रपति बने जेलेंस्की देश छोड़ कर भाग जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और लड़ाई की शुरुआत में हर दिन रूस को एक नई बाधा का सामना करना पड़ा.

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आज रूस की प्रतिव्यक्ति आय

11,000 डौलर है और अमेरिका व यूरोप के बाकी देशों की प्रतिव्यक्ति आय 40,000 से 60,000 डौलर है. यूरोप के बाकी देश रूस का आर्थिक मुकाबला लंबे समय तक कर सकते हैं. रूस की सेना आज खासी आत्मनिर्भर तो है पर रूसी व्यापार व अर्थव्यवस्था पूरी तरह पश्चिमी देशों पर निर्भर है. दूरदर्शिता के अभाव वाले पुतिन को यह सम?ा नहीं आया कि यूक्रेन पर हिंसक कार्रवाई यूरोप को एक नए हिटलर की याद दिला सकती है और शायद अब वे, यूरोपीय देश, जोखिम नहीं लेंगे कि यूक्रेन पर रूस सफल हो कर पूर्व के सोवियत संघ के दूसरे देशों की ओर नजर डालने लगे.

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