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कब्ज से छुटकारा पाने के लिए अपनाएं ये 3 आसान उपाय

अगर आप कब्ज की परेशानी से जूझ रहे हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद अहम है. इस खबर में  आपको वो तरीका बताएंगे जिससे आपको कब्ज की परेशानी से राहत मिलेगी. तो आइए जानते हैं.

  1. टौयलेट में बैठने के तरीके में बदलाव करना होगा. हाल ही में हुई एक स्टडी में ये पाया गया कि टौयलेट में बैठने के तरीके पर आपके पेट की सेहत का राज छिपा है.
  2. स्टडी करने वाले शोधकर्ताओं के मुताबिक टौयलेट में फूटस्टूल का इस्तेमाल करने से आपका पेट आसानी से साफ हो जाएगा. इसके पीछे कारण है कि इसके इस्तेमाल से आपका शरीर स्कैवट की पोजिशन में आ जाता है जिससे रेक्टम सीधा हो जाता है और बोवेल मूवमेंट पहले से बेहतर हो जाता है.
  3. फ्रेश टौयलेट में बोवेल एक महत्वपूर्ण कारक है. कब्ज की परेशानी बोवल में समस्या होने से आती है. ऐसे में जानकारों का मानना है कि बोवेल की समस्या से निजात पाने के लिए स्टूल एक बेहतर और सस्ता तरीका है. इस शोध को 52 लोगों पर किया गया था और 4 हफ्ते तक बोवेल के मूवमेंट का डेटा कलेक्ट किया गया.

स्टडी के बाद 70 फीसदी लोगों ने बोवेल मूवमेंट में बहतरी महसूस किया जबकि 90 फीसदी लोगों ने माना की पेट की सफाई में उन्हें अब कम मेहनत करनी पड़ी.

पिंपल्स से राहत पाने के लिए आजमाएं ये 4 टिप्स

जब चेहरे पर बहुत सारे पिंपल्स निकलने लगते हैं. ऐसे में आप चाहें कितनी ही कोशिशें कर लें ये पिंपल्स हैं जाने का नाम नहीं लेते. कुछ लोग तो इसके लिए दवाईयां भी लेते हैं. तो चलिए आज आपको कुछ घरेलू टिप्स बताते हैं, जिससे आपको पिंपल्स से राहत मिल सकती है.

  1. अगर आपकी त्वचा तैलीय है, तो क्लींजिंग के बाद एस्ट्रिजेंट का इस्तेमाल करना चाहिए. रूई पर एस्ट्रिजेंट लगाएं और इससे चेहरा साफ करें. एस्ट्रिजेंट का प्रयोग आमतौर पर चेहरे से धूल-गर्द और तेल हटाने के लिए होता है.

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  1. साफ-सफाई का ख्याल न रखने पर मुंहासे और बढ़ सकते हैं. इससे बचने के लिए सही ढंग से चेहरे की क्लींजिंग, मौश्चराइजिंग और टोनिंग करें. बिना धुले हाथों से चेहरा न छुएं.
  2. मुंहासे-रोधी खूबियों वाले सौंदर्य उत्पादों का इस्तेमाल करें. जैल वाले फेसवाश से मुंह धोने के बाद टोनर लगाएं और उसके बाद जैल वाला मौश्चराइजर लगाएं.
  3. ब्लैकहैड्स से बचने से मुंहासे से बचने में भी मदद मिलती है. अगर आपको ब्लैकहैड्स हैं, तो उस जगह पर स्क्रब का प्रयोग करें. मुंहासे, फुंसी या दाने वाली जगह पर स्क्रब न लगाएं.

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एक ऐसी भी मां

बाजार से सामान ले कर लक्ष्मी जब घर लौटी तो उस की 10 वर्षीय बेटी सोनम घर पर नहीं थी. घर के दरवाजे खुले हुए थे और कमरे में टीवी चल रहा था. यह सब देख कर वह बड़बड़ाई, ‘लापरवाही की भी हद है, सारा घर खुला छोड़ कर न जाने कहां चली गई साहबजादी.’

सामान रसोई में रख कर सब से पहले उस ने कमरे में चल रहा टीवी बंद किया फिर बेटी की तलाश में घर के बाहर निकल गई. उस ने अड़ोसपड़ोस से ले कर पूरे मोहल्ले में सोनम को तलाशा, पर उस का कहीं पता नहीं चला. सोनम को ढूंढतेढूंढते रात हो चली थी. मोहल्ले वालों ने बताया कि उन्होंने उस दिन सोनम को घर से बाहर कहीं नहीं देखा था.

यह सुन कर लक्ष्मी का चिंतित होना लाजमी था. अचानक उसे ध्यान आया कि कहीं सोनम उसे बिना बताए अपने पिता और दादादादी के घर तो नहीं चली गई. ऐसा वह पहले भी कर चुकी थी. यह सोच कर वह सोनम का पता लगाने धक्का बस्ती की ओर चल पड़ी. यह बात 16 जनवरी, 2019 की है.

लक्ष्मी की शादी आज से लगभग 15 साल पहले धक्का बस्ती, करनाल निवासी दिलावर के साथ हुई थी. शादी के बाद उस के 2 बच्चे हुए बेटा सुशील और बेटी सोनम. दोनों की उम्र क्रमश: 13 और 10 साल थी.

शादी के लगभग 5-6 साल बाद पतिपत्नी के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर झगड़े होने लगे थे. धीरेधीरे नौबत यहां तक आ गई कि दोनों का साथ रहना संभव नहीं रहा. फलस्वरूप सन 2000 में दोनों अलग हो गए थे.

पति से अलग होने के बाद लक्ष्मी करनाल के थाना सदर क्षेत्र में रघुनाथ मंदिर के पास किराए का मकान ले कर अलग रहने लगी. दोनों बच्चे सुशील और सोनम अपने पिता और दादी के पास धक्का बस्ती में ही रहते थे.

बेटी को ढूंढती हुई लक्ष्मी धक्का बस्ती पहुंची. पता चला कि सोनम वहां आई ही नहीं थी. सोनम न घर पर थी और न ही दादादादी के पास तो आखिर वह गई कहां. इस मामले में लक्ष्मी ने अब और समय व्यर्थ करना उचित नहीं समझा और 16 जनवरी, 2019 को थाना सदर पहुंच कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

सोनम को लापता हुए 15 दिन बीत गए लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. इस बीच लक्ष्मी ने पुलिस के सामने शक जताया कि सोनम के लापता होने के पीछे उस की दादी और पिता का हाथ हो सकता है.

पुलिस इस मामले में अभी छानबीन कर ही रही थी कि 29 फरवरी को पश्चिमी यमुना नहर में हांसी रोड कच्छवा पुल के पास प्लास्टिक का एक कट्टा मिला. उस कट्टे पर मक्खियां भिनभिना रही थीं और बहुत तेज बदबू भी आ रही थी. देख कर लग रहा था कि उस में किसी की लाश है. उस कट्टे को वहां खेल रहे कुछ बच्चों ने देखा था. उन्होंने ही शोर मचा कर लोगों को इकट्ठा किया और फिर पुलिस को सूचना दी गई थी.

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वह इलाका थाना सिटी, करनाल के अंतर्गत आता था, इसलिए सूचना मिलते ही थाना सिटी से इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह जल्दी ही यमुना नहर पर पहुंच गए. पुलिसकर्मियों की मदद से कट्टे को खोल कर देखा गया. उस में एक नाबालिग बच्ची की लाश निकली, जो काफी हद तक सड़ चुकी थी.

अनुमान लगाया गया कि लाश काफी दिनों से वहां पड़ी रही होगी. इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने क्राइम टीम सहित एफएसएल की टीम को भी मौके पर बुला लिया. लाश के पंचनामे की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया.

लावारिस लाश किस की थी, उस की शिनाख्त करना सब से अहम काम था. शिनाख्त के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था. इसलिए इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने लाश की शिनाख्त के लिए मृतका के पोस्टर बनवा कर शहर के सार्वजनिक स्थानों पर लगवाए. इस के अलावा उन्होंने करनाल सहित आसपास क्षेत्रों के थानों से पिछले महीने की दर्ज मिसिंग लोगों की रिपोर्ट भी मंगवा ली.

इस बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. रिपोर्ट के अनुसार मृतका बच्ची की उम्र 8 से 10 साल के बीच थी और उस की हत्या किसी चीज से गला दबा कर की गई थी. शिनाख्त छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाने की भी कोशिश की गई थी. हत्या लगभग 17-18 दिन पहले की गई थी.

इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने जब लापता लोगों की लिस्ट खंगाली तो एक मिसिंग रिपोर्ट पर उन की नजर ठहर गई. यह रिपोर्ट थाना सदर क्षेत्र से लापता हुई सोनम नाम की 10 वर्षीय बच्ची की थी, जिस का अभी तक पता नहीं लगा था.

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इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने थाना सदर पुलिस से फाइल मंगवा कर जांच शुरू की. पता चला कि सोनम की गुमशुदगी उस की मां लक्ष्मी ने दर्ज करवाई थी. हरजिंदर सिंह ने लक्ष्मी को मोर्चरी में बुलवा कर जब लाश की शिनाख्त करवाई तो उस ने लाश पहचान कर बताया कि वह उसी की लापता बेटी सोनम ही है.

पूछताछ के दौरान लक्ष्मी ने बताया कि सोनम दूसरी जगह अपने पिता दिलावर के साथ रहती थी. उन दिनों सोनम के स्कूल की छुट्टियां थीं. उस का स्कूल 15 जनवरी को खुलने वाला था, इसलिए कुछ दिन अपनी मौसी के घर रहने के बाद वह उसे अपने घर ले आई थी, जहां से वह अचानक लापता हो गई थी.

लक्ष्मी ने यह भी बताया कि उस की किसी से दुश्मनी या कोई लेनदेन का झगड़ा नहीं है. हां, इस मामले में उस ने अपने पति दिलावर पर शक जरूर जताया. हरजिंदर सिंह ने उस से पूछा कि उस का पिता दिलावर अपनी ही बेटी की हत्या क्यों करेगा?

इस बारे में लक्ष्मी कुछ नहीं बता पाई. फिर भी हरजिंदर सिंह ने दिलावर को थाने बुलवा कर पूछताछ की पर वह निर्दोष साबित हुआ. उस का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं था. हरजिंदर सिंह ने लक्ष्मी की ससुराल धक्का बस्ती और वर्तमान में जहां वह रह रही थी, के आसपड़ोस से पूछताछ करवाई तो कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं.

इस के बाद उन्होंने लक्ष्मी से दोबारा पूछताछ की. पुलिस ने सोनम की गुमशुदगी में दर्ज बयानों और उस के द्वारा हाल में दिए बयानों की बारीकी से निरीक्षण किया तो उन में काफी अंतर पाया गया. इस के अलावा लक्ष्मी बारबार अपना बयान भी बदल रही थी.

इस से इंसपेक्टर हरजिंदर को लग रहा था कि सोनम के मामले में लक्ष्मी का कहीं न कहीं हाथ जरूर है. कोई पुख्ता सबूत पास न होने के कारण उन्होंने लक्ष्मी से उस समय कुछ कहना उचित नहीं समझा, पर इस दौरान पुलिसकर्मी लक्ष्मी पर बराबर अपनी नजर रखे हुए थे.

इंसपेक्टर हरजिंदर ने लक्ष्मी के घर के पास के सारे सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर जब चैक किए तो 10 जनवरी, 2019 के फुटेज में लक्ष्मी किसी व्यक्ति के साथ बाइक पर एक कट्टा रख कर कहीं जाती हुई नजर आई. उन्होंने लाश से बरामद कट्टे और बाइक पर ले जाने वाले कट्टे को गौर से देखा तो दोनों कट्टों पर एक ही मार्का लगा हुआ पाया गया.

सोनम की गुमशुदगी की सूचना थाना सदर में लक्ष्मी ने 16 जनवरी को दर्ज करवाई थी और फुटेज में वह 10 जनवरी की रात कट्टा ले कर जाती दिखाई दी. इस का मतलब था कि पुलिस को सूचना देने से 6 दिन पहले ही उस की हत्या कर दी थी.

अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही थी. इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने लक्ष्मी को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह तरहतरह की कहानियां सुनाने लगी. लेकिन जब उसे लेडी कांस्टेबल के हवाले किया गया तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने प्रेमी अमित के साथ मिल कर सोनम की हत्या की थी.

लक्ष्मी की निशानदेही पर पुलिस ने सदर बाजार निवासी उस के प्रेमी अमित को भी गिरफ्तार कर के पहली फरवरी को अदालत में पेश किया और 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में सोनम के लापता होने से ले कर उस की हत्या होने तक की कहानी इस प्रकार निकली—

पति से अलग होने के बाद लक्ष्मी ने जब सदर बाजार के रघुनाथ मंदिर के पास किराए के मकान में रहना शुरू किया, तब उस की मुलाकात अमित नामक व्यक्ति से हुई. अमित भी उसी मोहल्ले का रहने वाला था. वह शादीशुदा था और उस के 3 बच्चे भी थे.

अमित का छोटा सा ठेकेदारी का काम था. वह मरीजों की देखभाल के लिए कामवालियां उपलब्ध करवाया करता था. लक्ष्मी को भी उसी ने काम पर लगवाया था. इसी कारण वह लक्ष्मी के घर आनेजाने लगा था.

लक्ष्मी अपने पति से अलग अकेली रहती थी. इसलिए उसे पुरुष साथी की जरूरत थी. दोनों के बीच पहले दोस्ती हुई और फिर जल्दी ही दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए. अमित लक्ष्मी की शारीरिक जरूरतों के अलावा वह सब जरूरतें पूरी करने लगा, जिस की लक्ष्मी ने तमन्ना की थी. दोनों के बीच सब ठीकठाक ही चल रहा था. किसी को इस बात की भनक तक नहीं थी.

10 जनवरी, 2019 को लक्ष्मी का मकान मालिक वैष्णो देवी की यात्रा पर गया हुआ था और उन दिनों लक्ष्मी की बेटी सोनम स्कूल की छुट्टियां होने के कारण पिता के पास से अपनी मां के घर रहने आई हुई थी.

उसी शाम अमित भी लक्ष्मी से मिलने उस के घर आ पहुंचा था. अमित को आया देख लक्ष्मी ने सोनम को कुछ पैसे देते हुए कहा कि वह दुकान से अपने खानेपीने की चीज ले आए. 10 साल की सोनम बड़ी समझदार और होशियार बच्ची थी.

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अमित के आते ही मां का इस तरह अचानक बाहर भेजना उस की समझ में नहीं आया. वह मां से पैसे ले कर कमरे से बाहर तो निकल आई पर दुकान पर जाने के बजाय छत पर चली गई.

कुछ समय बाद जब वह वापस नीचे आई तो मकान का मुख्य दरवाजा बंद पाया. मां जिस कमरे में थी, उस में से मां और अमित के हंसनेखिलखिलाने की आवाजें आ रही थीं. लक्ष्मी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. क्योंकि सोनम को बाहर भेजने के बाद लक्ष्मी निश्चिंत हो गई थी कि सोनम जल्दी घर नहीं आएगी.

बेपरवाह हो कर वे दोनों वासना का खेल खेल रहे थे कि सोनम ने कमरे में प्रवेश कर उन्हें चौंका दिया. दोनों की चोरी रंगेहाथों पकड़ी गई थी. उन का भांडा फूट चुका था और दोनों बुरी तरह से डर गए थे. सोनम ने अपनी मां लक्ष्मी को धमकी देते हुए कहा, ‘‘मम्मी, तुम्हारी इस करतूत को मैं पापा और दादी को जरूर बताऊंगी कि उन से अलग रह कर तुम यहां क्या गुल खिला रही हो.’’

अमित और लक्ष्मी ने सोनम को अपने विश्वास में ले कर काफी समझाने का प्रयास किया और उसे रुपयों का लालच भी दिया. पर सोनम अपनी बात पर अड़ी रही. सोनम की जिद को देखते हुए और समाज के डर से बचने के लिए उन दोनों ने सोनम को ही हमेशा के लिए चुप कर देने का फैसला ले कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

सोनम की हत्या करने के बाद अमित बाहर जा कर दुकान से प्लास्टिक का बड़ा सा खाली कट्टा खरीद लाया. दोनों ने कट्टे में सोनम की लाश भर दी. फिर दोनों बाइक से उस की लाश यमुना नहर में फेंक आए.

जिस समय उन्होंने लाश फेंकी थी, उस समय वहां पानी था. उन्होंने सोचा था कि लाश पानी में बह कर कहीं दूर चली जाएगी पर अगले दिन ही नहर में पानी का बहाव कम हो गया था और लाश कुछ आगे जा कर रुक गई थी. सोनम की लाश 19 दिनों तक एक ही जगह पर पड़ी रही.

सोनम की लाश ठिकाने लगाने के एक सप्ताह बाद लक्ष्मी ने उस की गुमशुदगी थाने में इसलिए दर्ज करवाई थी कि उस के स्कूल की छुट्टियां खत्म होने वाली थीं.

सोनम के स्कूल न जाने के कारण लोग उस से पूछ सकते थे इसलिए उस ने उस के लापता होने की सूचना थाने में लिखवा कर यह ड्रामा रचा, जिसे इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने अपनी सूझबूझ से नाकाम कर दिया.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने अमित और लक्ष्मी को सोनम की हत्या के आरोप में फिर से अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

5 टिप्स: हाथों की फीकी मेहंदी को ऐसे हटाएं

कोई शादी या पूजा में मेहंदी लागाना शुभ माना जाता है. मेहंदी हमारे हाथों को अलग ही लुक देती है, लेकिन कुछ ही दिनों में मेहंदी का कलर फीका पड़ने लगता है. वहीं मेहंदी का कलर फीका पड़ने से आपके हाथों की खुबसूरती भी कम हो जाती है और अगर आप मेहंदी को हटाने के लिए किसी कैमिकल का इस्तेमाल करते हैं तो यह आपकी स्किन को भी नुकसान पहुंचा देता है. इसीलिए आज हम आपको कुछ होममेड टिप्स बताएंगे, जिससे आप बिना किसी साइड इफेक्ट के हाथों की फीकी पड़ी मेहंदी को हटा सकते हैं.

मेहंदी छुटाने के लिए नींबू है बेस्ट औप्शन

नींबू में ब्लीचिंग गुण होते हैं, जिससे यह मेहंदी हटाने का एक सेफ और आसान तरीका है. नींबू का एक टुकड़ा लेकर अपने मेहंदी लगे हाथों पर रगड़ें. रोजाना ऐेसा करने से कुछ ही दिनों में मेहंदी होथों से हट जाएगी.

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ब्लीच का भी कर सकते हैं इस्तेमाल

अपने हाथों को क्लोरीन और पानी के मिश्रण में कम से कम 5 मिनट तक डुबो कर रखें. इन्हें इस मिश्रण में अच्छे से भिगो कर रखें और इसके बाद ठंडे पानी से धो लें. इससे मेहंदी का रंग जल्दी निकल जाएगा.

टूथपेस्ट करेगा मेंहदी हटाने में मदद

टूथपेस्ट के इनग्रीडिएंट्स मेहंदी के रंग को जल्दी छुड़ाने में मदद दरेंगे. टुथपेस्ट की पतली-सी परत मेहंदी पर लगाएं और इसे नेचुरली सूखने दें. सूखे हुए टुथपेस्ट को मसल कर निकालें, जल्दी परिणाम पाने कि लिए इसे हर दूसरे दिन अप्लाई करें.

एक अच्छा क्लींजर है नमक

नमक एक अच्छा क्लींजर है. एक बाउल में पानी डालकर उसमें कुछ चम्मच नमक घोल डाले लें. अब इस नमक वाले पानी में 15-20 मिनटों तक अपने मेहंदी वाले हाथों को डाल दें. उसके बाद हाथों को अच्छे से धो लें.

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ब्लीचिंग गुण से भरपूर है बेकिंग सोडा

बेकिंग सोडा में ब्लीचिंग गुण होते हैं. एक चम्मच बेकिंग सोडे में कुछ बूंदे नींबू के रस की डालें और अच्छे से मिला लें. कुछ देर हाथ में लगाने के बाद 15 मिनट के लिए रहने दें और उसके बाद हाथों को गुनगुने पानी से धो दें.

गणपति का जन्म

फूलचंद ने फटा हुआ कंबल खींचखींच कर एकदूसरे के साथ सट कर सो रहे तीनों बच्चों को ठीक से ओढ़ाया और खुद राख के ढेर में तब्दील हो चुके अलाव को कुरेद कर गरमी पाने की नाकाम कोशिश करने लगा.

जाड़े की रात थी. ऊपर से 3 तरफ से खुला हुआ बरामदा. सांयसांय करती हवा हड्डियों को काटती चली जाती थी. गनीमत यही थी कि सिर पर छत थी.

अंदर कमरे में फूलचंद की बीवी सुरना प्रसव वेदना से तड़प रही थी. रहरह कर उस की चीखें रात के सन्नाटे को चीरती चली जाती थीं. पड़ोसी रामचरन की घरवाली और सुखिया दाई उसे ढाढ़स बंधा रही थीं.

मगर फूलचंद का ध्यान न तो सुरना की पीड़ा की ओर था, न ही उस के मन में आने वाले मेहमान के प्रति कोई उल्लास था. सच तो यह था कि अनचाहे बोझ को ले कर वह चिंतित ही था.

परिवार की माली हालत पहले से ही खस्ता थी. जब तक मिल चलती रही तब तक तो गनीमत थी. मगर पिछले 8 महीने से मिल में तालाबंदी चल रही थी और अब वह मजदूरी कर के किसी तरह परिवार का पेट पाल रहा था.

लेकिन रोज काम मिलने की कोई गारंटी न थी. कई बार फाकों की नौबत आ चुकी थी. कर्ज था कि बढ़ता ही जा रहा था. ऐसे में वह चौथा बच्चा फूलचंद को किसी नई मुसीबत से कम नजर नहीं आ रहा था. लेकिन समय के चक्र के आगे बड़ेबड़ों की नहीं चलती, फिर फूलचंद की तो क्या बिसात थी.

तभी सुरना की हृदय विदारक चीख उभरी और धीरेधीरे एक पस्त कराह में ढलती चली गई. फूलचंद ने भीतर की आवाजों पर कान लगाए. अंदर कुछ हलचल तो हो रही थी. मगर नवजात शिशु का रुदन सुनाई नहीं पड़ रहा था.

अब फूलचंद को खटका हुआ, ‘क्या बात हो सकती है?’ कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई? मगर पूछूं भी तो किस से? अंदर जा नहीं सकता.

फूलचंद मन मार कर बैठा रहा. अब तो दोनों औरतों में से ही कोई बाहर आती, तभी कुछ पता चल पाता. हां, सुरना की कराहें उसे कहीं न कहीं आश्वस्त जरूर कर रही थीं.

प्रतीक्षा की वे घडि़यां जैसे युगों लंबी होती चली गईं. काफी देर बाद सुखिया दाई बाहर निकली. फूलचंद ने डरतेडरते पूछा, ‘‘सब ठीक तो है न?’’

‘‘हां, लड़का हुआ है,’’ सुखिया ने निराश स्वर में बताया, ‘‘मगर…’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ फूलचंद व्यग्र हो उठा.

‘‘अब मैं क्या कहूं. तुम खुद ही जा कर देख लो.’’

इस के बाद सुखिया तो चली गई, लेकिन फूलचंद की उलझन और बढ़ गई, ‘ऐसी क्या बात है, जो सुखिया से नहीं बताई गई? कहीं बच्चा मरा हुआ तो नहीं? मगर यह बात तो सुखिया बता सकती थी.’

कुछ देर बाद रामचरन की घरवाली भी यह कह कर चली गई, ‘‘कोई दिक्कत आए तो बुला लेना.’’

अब फूलचंद के अंदर जाने में कोई रुकावट नहीं थी. वह धड़कते दिल से अंदर घुसा. सुरना अधमरी सी चारपाई पर पड़ी थी. बगल में शिशु भी लेटा था.

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सुरना ने आंखें खोल कर देखा. मगर फूलचंद की कुछ पूछने की हिम्मत न हुई. हां, उस की आंखों में कौंधती जिज्ञासा सुरना से छिपी न रह सकी. उस ने शिशु के मुंह पर से कपड़ा हटा दिया और खुद आंखें मूंद लीं.

आंखें तो फूलचंद की भी एकबारगी खुद ब खुद मुंद गईं. सामने दृश्य ही ऐसा था. नवजात शिशु का चेहरा सामान्य शिशुओं जैसा न था. माथा अत्यंत संकरा और लगभग तिकोना था. आंखें छोटीछोटी और कनपटियों तक फटी हुई थीं. कान भी असामान्य रूप से लंबे थे. सब से विचित्र बात यह थी कि शिशु का ऊपरी होंठ था ही नहीं. हां, नाक अत्यधिक लंबी हो कर ऊपरी तालू से जा लगी थी.

फूलचंद जड़ सा खड़ा था, ‘यह कैसी माया है? हुआ ही था तो अच्छाभला होता. नहीं तो जन्म लेने की क्या जरूरत थी. मुझ पर हालात की मार पहले ही क्या कम थी, जो यह नई मुसीबत मेरे सिर आ पड़ी. क्या होगा इस बच्चे का? अपना यह कुरूप ले कर इस दुनिया में यह कैसे जिएगा? क्या होगा इस का भविष्य?’

फूलचंद ने डरतेडरते पूछा, ‘‘इस की आवाज?’’

‘‘पता नहीं,’’ सुरना ने कमजोर आवाज में बताया, ‘‘रोया तक नहीं.’’

‘हैं,’ फूलचंद ने सोचा, ‘क्या यह गूंगा भी होगा?’

सुरना पहले ही काफी दुखी प्रतीत हो रही थी. इसलिए फूलचंद ने और कोई सवाल न किया. बस, अपनेआप को कोसता रहा और बाहर सोए तीनों बच्चों को ला ला कर अंदर लिटाता रहा. फिर खुद भी उन्हीं के साथ सिकुड़ कर लेटा रहा.

मगर उस की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. रहरह कर नवजात शिशु का चेहरा आंखों के आगे नाचने लगता था. तरहतरह की आशंकाएं मन में उठ रही थीं. फूलचंद ने सुना था कि उस तरह के बच्चे कुछ दिनों के ही मेहमान होते हैं. मगर वह बच्चा अगर जी गया तो…?

इसी तरह की उलझनों में पड़े हुए फूलचंद ने बाकी रात आंखों में ही काट दी.

सुबह होतेहोते रामचरन की घरवाली के माध्यम से यह बात महल्ले भर में जंगल की आग की तरह फैल गई कि फूलचंद के यहां विचित्र बालक का जन्म हुआ है.

बस, फिर क्या था. तमाशबीन औरतों के झुंड के झुंड आने शुरू हो गए. उन का तांता टूटने का नाम ही नहीं लेता था. वह एक ऐसी मुसीबत थी जिस की फूलचंद ने कल्पना तक नहीं की थी. मगर चुप्पी साधे रहने के सिवा कोई दूसरा चारा भी नहीं था.

तभी तमाशबीन औरतों के एक झुंड के साथ भगवानदीन की मां राधा आई. उस ने सारा वातावरण ही बदल कर रख दिया.

राधा ने बच्चे को देखते ही हाथ जोड़ कर प्रणाम किया. फिर जमीन पर बैठ कर माथा झुकाया और साथ आई औरतों को फटकार लगाई, ‘‘अरी, ऐसे दीदे फाड़फाड़ कर क्या देख रही हो? प्रणाम करो. यह तो साक्षात गणेशजी ने कृपा की है सुरना पर. इस की तो कोख धन्य हो गई.’’

साथ आई औरतें अभी तक तो राधा के क्रियाकलाप अचरज से देख रही थीं. किंतु उस की बात सुनते ही जैसे उन की भी आंखें खुलीं. सब ने शिशु को प्रणाम किया. सुरना की कोख को सराहा और हाथ में जो भी सिक्का था, वही चारपाई के सामने अर्पित करने के बाद जमीन पर माथा टेक दिया.

अब राधा बाहर फूलचंद के पास दौड़ी आई. वह थकान और चिंता के कारण बाहर चबूतरे पर घुटनों में सिर डाले बैठा था. राधा ने उसे झिंझोड़ कर उठाया, ‘‘अरे, क्या रोनी सूरत बनाए बैठा है यहां. तुझे तो खुश होना चाहिए, भैया. सुरना की कोख पर साक्षात ‘गणेशजी’ ने कृपा की है. तेरे तो दिन फिर गए. और देख, वह तो माया दिखाने आए हैं अपनी. वह रुकेंगे थोड़ा ही. जब तक हैं, खुशीखुशी उन की सेवा कर. हजारों वर्षों में किसीकिसी को ही ऐसा अवसर मिलता है.’’

फूलचंद चमत्कृत हो उठा, ‘‘यह बात तो मेरे दिमाग में आई ही नहीं थी, काकी.’’

‘‘अरे, तुम लोग ठहरे उम्र व अक्ल के कच्चे,’’ राधा ने बड़प्पन झाड़ा, ‘‘तुम्हें ये सब बातें कहां से सूझें. और हां, लोग दर्शन को आएंगे तो किसी को मना न करना, बेटा. उन पर कोई अकेले तेरा ही हक थोड़ा है. वह तो साक्षात ‘परमात्मा’ हैं, वह सब के हैं, समझा?’’

फूलचंद ने नादान बालक की तरह हामी भरी और लपक कर अंदर पहुंचा. दरअसल, अब वह शिशु को एक नई नजर से देखना चाहता था. मगर चारपाई के पास पड़े पैसों को देख कर वह एक बार फिर चक्कर खा गया. सुरना से पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘वही लोग चढ़ा गए हैं,’’ सुरना ने बताया, ‘‘काकी कहती थीं, गणेशजी…’’

‘‘और नहीं तो क्या,’’ फूलचंद में जैसे नई जान पड़ने लगी थी, ‘‘न तो तेरी मति में यह बात आई, न ही मेरी. मगर हैं ये साक्षात गणेशजी ही.’’

‘‘हम लोग उन की माया क्या जान सकें. अपनी माया वही जानें.’’

फूलचंद को एकाएक शिशु की चिंता सताने लगी, ‘‘यह तो हिलताडुलता भी नहीं. देख सांस तो चलती है न?’’

सुरना ने कपड़ा हटा कर देखा. सांसें चल रही थीं.

फूलचंद को अब दूसरी चिंता हुई, ‘‘भला एकआध बार दूधवूध चटाया या नहीं?’’

सुरना ने तनिक दुखी स्वर में कहा, ‘‘दूध तो मुंह में दाब ही नहीं पाता.’’

‘‘ओह,’’ फूलचंद झल्लाया, ‘‘क्या इसे भूखा मारोगी? देखो, मैं रुई का फाहा बना कर देता हूं. तुम उसी से दूध इस के मुंह में टपका देना. गला सूखता होगा.’’

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शिशु का गला सींचने का यह उपक्रम चल ही रहा था कि कुछ और लोग कथित गणेशजी के दर्शनार्थ आ पहुंचे. इस बार औरतों के अलावा मर्द भी आए थे. दूसरी खास बात यह थी कि कुछ लोगों के हाथों में फूल और फल भी थे.

फूलचंद ने लपक कर प्रसन्न मन से सब का स्वागत किया, ‘‘आइएआइए, आप लोग भी दर्शन कीजिए.’’

दोपहर ढलतेढलते कथित गणेशजी के जन्म की खबर पासपड़ोस के महल्लों तक फैल गई. श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी. मिठाई, फल, मेवा, फूल आदि जो बन पाता, लिए चले आ रहे थे. उस के अलावा नकदी का चढ़ावा भी कम न था.

शाम को किसी पड़ोसी ने सलाह दी, ‘‘कुछ परचे छपवा कर बांट दिए जाएं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को खबर हो जाए और वे दर्शन का लाभ प्राप्त कर सकें.’’

फूलचंद को वह सलाह जंची. पता नहीं, कब उस की भी यह दिली इच्छा हो आई थी कि जितने ज्यादा लोग दर्शन का लाभ उठा लें, उतना ही अच्छा.

आननफानन मजमून बनाया गया और एक पड़ोसी ने खुद आगे बढ़

कर परचे छपवा कर अगले ही दिन मुहैया कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली.

रात करीब 10 बजे दर्शनार्थियों का तांता टूटा. तब फूलचंद ने दर्शन बंद होने की घोषणा की. उस रात फूलचंद के परिवार ने बहुत दिनों बाद तृप्ति भर सुस्वाद भोजन का आनंद उठाया था.

दूसरे दिन परचे बंटे और एक स्थानीय अखबार के प्रतिनिधि आ कर बच्चे की तसवीर खींच ले गए. अखबार में बच्चे की तसवीर और विचित्र बालक के जन्म की खबर छपते ही, शहर में जैसे आग सी लग गई. दूरदराज के महल्लों से भी लोग दर्शन के लिए टूट पड़े.

फूलचंद के घर के सामने मेला सा लग गया. पता नहीं, कहां से फूल आदि ले कर एक माली बैठ गया. उस के अलावा महल्ले के हलवाई को दम मारने की फुरसत न थी. उस भीड़ को व्यवस्थित ढंग से दर्शन कराने के लिए फूलचंद को अपने कमरे का दूसरा दरवाजा (जो अभी तक बंद रखा जा रहा था) खोलना पड़ा. अब लोग कतार बांधे एक दरवाजे से अंदर आते थे और दर्शन कर के दूसरे दरवाजे से बाहर निकल जाते थे.

फूलचंद और उस के बच्चे सुबहसुबह ही नहाधो कर साफसुथरे कपड़े पहन लेते और दर्शन की व्यवस्था में जुट जाते. घर में अब न तो पहले जैसा तनाव था, न ही कुढ़न. सभी जैसे उल्लास की लहरों में तैरते रहते थे.

फूलचंद थोड़ीथोड़ी देर बाद सुरना के पास आ कर उस के कान में शिशु को रुई के फाहे से दूध चटाते रहने की हिदायत देता रहता था. इस बहाने वह अपनेआप को आश्वस्त भी कर लेता था कि शिशु अभी जीवित है.

रात को भी वह कई बार शिशु को देखता और उस की सांसें चलती देख कर चैन से सो जाता.

सब कुछ सामान्य ढंग से चल रहा था. कहीं कोई समस्या न थी. हां, एक समस्या यह जरूर पैदा हो गई थी कि चढ़ावे में चढ़ी मिठाई का क्या किया जाए. उसे उपभोग के लिए ज्यादा दिन बचाए रखना संभव न था. यों फूलचंद ने महल्ले में अत्यंत उदारतापूर्वक प्रसाद बांटा था. फिर भी मिठाई चुकने में न आती थी.

लेकिन उस समस्या का हल भी निकल आया. रात में मिठाई फूलचंद के यहां से उठा कर हलवाई के हाथों बेच दी जाती, फिर सुबह श्रद्धालुओं के हाथों में होती हुई दोबारा फूलचंद के यहां चढ़ा दी जाती.

छठे दिन भोर में ही सुरना ने फूलचंद को जगाया और घबराई हुई आवाज में कहा, ‘‘देखो, इस को क्या हो गया?’’

फूलचंद ने हड़बड़ा कर शिशु को उघाड़ दिया. झुक कर गौर से देखा. उस की सांसें बंद हो चुकी थीं. हताश हो कर सुरना की ओर देखा, ‘‘खेल खत्म हो गया.’’

सुरना की रुलाई खुद व खुद फूट पड़ी. मगर फूलचंद ने उसे रोका, ‘‘नहीं, रोनाधोना बंद करो. इस को ऐसे ही लेटा रहने दो. देखो, किसी से जिक्र न करना. थोड़ी देर में लोग दर्शन के लिए आने लगेंगे.’’

सुरना ने रोतेरोते ही कहा, ‘‘मगर यह तो…’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ फूलचंद ने कहा, ‘‘यह तो वैसे भी न तो रोता था, न ही हिलताडुलता था. लोगों को क्या पता चलेगा? हां, शाम को कह देंगे कि भगवान ने माया समेट ली.’’

और फिर जैसे सुरना को समझाने के बहाने फूलचंद अपनेआप को भी समझाने लगा, ‘कोई हम ने तो भगवान से यह स्वरूप मांगा न था. यह तो उन्हीं की कृपा थी. शायद हमारी गरीबी ही दूर करने आए थे. आज दिन भर लोग और दर्शन कर लेंगे तो कुछ बुरा तो नहीं हो जाएगा.’

सुरना घुटनों पर माथा टेके सिसकती रही.

फूलचंद ने फिर समझाया, ‘‘देखो, अब ज्यादा दुख न करो. ज्यादा दिन तो इसे वैसे भी नहीं जीना था. और जी जाता तो क्या होता इस का. उठो, तैयार हो कर रोज की तरह बैठ जाओ. लोग आने ही वाले हैं.’’

सुरना बिना कुछ बोले तैयार होने के लिए उठ गई.

थोड़ी देर बाद ही वहां दर्शनार्थियों का तांता लगना शुरू हो गया और भेंट व प्रसाद के रूप में फूलों, मिठाइयों एवं सिक्कों के ढेर लगने लगे.

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सुशील शुक्ल

रत्नमाया

स्वर्ण रेखा नदी के तट पर स्थित एक मंदिर के द्वार पर एक असहाय तरुणी ने आश्रय की भीख मांगी. उसे आश्रय मिल गया, किंतु वह यह नहीं जानती थी कि मंदिर का वह द्वार नारी देह का व्यापार करने वालों का एक विशाल गृह है.

कल क्या होने वाला है कौन जानता है. तरुणी अपने को समय के हाल पर छोड़ चुकी थी. वह जहां थी जिस हाल में थी अपने को महफूज समझ रही थी.

तभी एक दिन गोधूली की बेला में, मंदिर में होने वाली आरती के समय एक युवक ने वहां प्रवेश किया. एकत्रित भक्त मंडली की भीड़ को चीरता हुआ वह अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा हुआ.

आरती खत्म होने पर जब अपने पायलों की रुनझुन बजाती हुई, थाल को हाथों में लिए हुए, देव मंदिर की वह नवयुवती सीढि़यों से उतरी और स्वर्ण रेखा नदी के तट पर आ दीपों को एकएक कर के जल में प्रवाहित करने लगी, तभी पीछे से उस युवक ने पुकारा, ‘‘रत्नमाया.’’

युवती चौंक गई. पीछे मुड़ कर उस ने बलिष्ट कंधों वाले उस गौरांग सुंदर युवक को देखा तो उस के कपोल लाज की गरिमा से आरक्त हो उठे. साड़ी का आंचल धीरे से सिर पर खींच उस ने कहा, ‘‘रत्नसेन, तुम यहां कैसे?’’

‘‘होनी ले आई,’’ युवक ने उत्तर दिया.

‘‘किंतु मैं ने तो समझा था कि हूणों से मेरी रक्षा करने में उस दिन तुम ने अपने जीवन की इति ही कर दी,’’ तरुणी बोली.

युवक हंसा और बोला, ‘‘नहीं,  जीवन अभी शेष था, इसलिए बच गया. तुम कौन हो नहीं जानता, किंतु ऐसा लगता है कि युगोंयुगों से मैं तुम्हें पहचानता हूं. एक लहर ने हमें परिचय के बंधन में पुन: उस दिन बंधने का आयोजन किया था. क्या तुम मुझ पर विश्वास करोगी और मेरे साथ चल सकोगी?’’

युवती कटाक्ष करती हुई बोली, ‘‘मुझ पर इतना अखंडित विश्वास हो गया तुम्हें.’’

युवक बोला, ‘‘मन जो कहता है.’’

‘‘उसे कभी बुद्धि की आधारतुला पर भी तौल कर तुम ने देखा है. एक असहाय नारी की जीवन रक्षा करने का प्रतिफल ही आज तुम मुझ से मांग रहे हो.’’

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युवक यह सुन कर हतप्रभ रह गया. उसे लगा नारी के इस उत्तर ने उसे बहुत प्रताडि़त किया है. वह सहमा घूमा और सीढि़यों पर पग रखता हुआ, आगे चल दिया. तभी युवती ने फि र से पुकारा, किंतु उसे पीछे लौटते न देख वह स्वयं उस के निकट आ गई और बोली, ‘‘रत्नसेन, तुम तो बुरा मान गए. काश, तुम समझ सकते कि मैं एक दुर्बल नारी हूं, जो खुल कर अपनी बात नहीं कह सकती.

‘‘हृदय में क्या है और होंठों पर क्या शब्द आ जाते हैं, या मेरे चेहरे पर क्या भाव आते हैं? यह मैं स्वयं नहीं जानती,’’  यह कहतेकहते उस युवती की आंखों में आंसू आ गए, किंतु रत्नसेन पाषाण शिला सा खड़ा रहा. रत्नमाया ने अपने दोनों हाथ उस की भुजा पर रख दिए और बोली, ‘‘एक प्रार्थना है, मानोगे, कल गोधूलि की इसी बेला में आरती के समय तुम आ जाना और मैं नदी के तट पर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी. तभी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी दे दूंगी. अब मैं चलती हूं.’’

इतना कह कर रत्नमाया जाने लगी तो रत्नसेन ने कहा, ‘‘सुनो, रत्नमाया, मेरा कर्तव्य पथ कठिन है. मैं एक साधकमात्र हूं. आज जहां हूं, उस स्थान से मैं परिचित नहीं. अपने उद्देश्य पूर्ति के निमित्त मगध जाने के रास्ते में आज यहां रुका. मेरे भरोसे ने मुझ से कहा था कि तुम यहीं कहीं इसी नगरी में होगी और वही आस की प्रबल डोर मुझे बांधेबांधे यहां इसी नदी के तट तक तुम्हारे समीप ले आई.’’

उस ने आगे कहा, ‘‘किंतु तुम मुझे समझने में भूल कर गईं. तुम्हारी जीवन रक्षा कर के उस के प्रतिदान रूप में तुम्हें उपहारस्वरूप मांगने का मेरा कोई  विचार न था,’’ यह कहते हुए रत्नसेन तेजी से आगे बढ़ गया.

उस के जाने के बाद पीछे से रत्नमाया ने अपना सुंदर चेहरा उस पाषाण शिला पर वहीं रख दिया जहां अभीअभी रत्नसेन के चरण पडे़ थे. उसे अपने आंसुओं से धो कर रत्नमाया अपने कक्ष की ओर चल पड़ी.

वहां उन देवदासियों की भीड़ में देवबाला ही इकलौती उस की प्रिय थी. उस से ही रत्नमाया अपनी विरहव्यथा कहती थी. देवबाला उस के अतीत को जानती थी. इसीलिए जब उस दिन स्वर्णनदी में द्वीप प्रवाहित कर वह लौटी तो सहसा देवबाला बोली थी, ‘‘रत्नमाया, यह क्यों भूलती है कि तू एक देवदासी है? उस युवक की शब्द छलना में फंस कर अपनी सुंदर देह को मत गला. भला नारी की छविमाया के सामने पुरुष द्वारा दिए हुए विश्वासों का मूल्य ही क्या है? तू उसे भूल जा. तेरा यह जीवन चक्र तुझे जिस पथ पर ले आया है, उसे ही अब ग्रहण कर.’’

किंतु सब सुनते और समझते हुए भी रत्नमाया ने अपने चेहरे को न उठाया. वह पहले की तरह ही देवबाला के सामने सुबकती रही. बाहर मंदिर में घंटों के बजने का स्वर चारों ओर गूंजने लगा था.

तभी पुजारी ने आ कर पुकारा तो देवबाला ने उठ कर कक्ष के कपाट खोल दिए.

आगंतुक पुजारी ने कहा, ‘‘देवबाला, मंगल रात की इस बेला में रत्नमाया को अलंकृत कर दो. रसिक जनों के आगमन का समय हो गया है. शीघ्र ही उसे भीतर विलास कक्ष में भेजा जाएगा.’’

‘‘नहीं,’’  देवबाला बोली. उस के स्वर में दृढ़ता साफ झलक रही थी और आंखों से प्रतिशोध की भावना. उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया तो अस्वस्थ है इसलिए विलास नृत्य में वह भाग नहीं ले सकेगी.’’

‘‘अस्वस्थता का कारण मैं खूब जानता हूं,’’ पुजारी बोला, ‘‘एक दिन जब तुम भी इस द्वार पर देवदासी बन कर आई थीं तब भी तुम ने ऐसा ही कुछ कहा था. किंतु मेरे दंड के विधान की कठोरता तुम्हें याद है न.’’

यह कहतेकहते पुजारी की पैशाचिक भंगिमा कठोर हो गई. देवबाला उन्हें देख कर सिहर उठी. खिन्न मन बिना कुछ उत्तर दिए हुए, वापस लौट आई.

‘‘रत्नमाया,’’ देवबाला आ कर बोली, ‘‘औरत की बेबसी ही उस का सब से बड़ा अभिशाप है. तू तो जानती ही है अत: अपने मन को स्वस्थ कर और देख तेरा वह अनोखा भक्त मंदिर में पुन: आया है, जिस ने एक दिन आरती की बेला में तुझे अपने प्रेम विश्वासों की सुरभि से मतवाला किया था.’’

‘‘सच, कौन रत्नसेन?’’ चकित सी वह पूछ बैठी.

‘‘हां, तेरा ही रत्नसेन,’’ देवबाला ने उत्तर दिया.

‘‘आह, बहन एक बार फिर कहो,’’ रत्नमाया कह उठी और तत्काल ही देवबाला को उस ने अपनी बांहों में कस कर बांध लिया. भावनाओं के उद्वेग में हाथ ढीले हुए तो सरकती हुई वह देवबाला के सहारे धरती पर बैठ गई.

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कुछ क्षणों के लिए आत्मविभोर देवबाला ठिठकी खड़ी रह गई. फिर उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया, तू अब जा और अपनी देह को अलंकृत कर…शीघ्र ही मंदिर में आ जा, आज देवनृत्य का आयोजन है.’’

रत्नमाया तुरंत उठी. उस दिन फिर उस ने अपने अद्भुत रूप को आभूषणों का पुट दे सजाया. गोरे रंग की अपनी देह पर लहराते हुए केशों की एक वेणी गूंथी. केतकी के सुवासित फूलों को उस में पिरो कर गले में देवबाला के दिए हुए हीरक हार को पहना.

रात्रि की उस बेला में ऊपर नीले आकाश में अनेक तारे टिमटिमा रहे थे. उन की छाया के तले अपने हाथों में आरती के थाल को सजाए वह पायलों को रुनझुन बजाती हुई चल दी.

‘‘ठहरो,’’ सहसा देवबाला ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रत्नमाया, सुन दुर्भाग्य मुझे एक दिन देवदासी बना कर यहां लाया था किंतु रूप के इतने विपुल भार को लिए हुए अभागिन तेरा समय तुझे यहां क्यों लाया है?’’

रत्नमाया विस्मित रह गई. धीमे से उस ने उत्तर दिया, ‘‘बहन, रूप की बात तो मैं जानती नहीं, किंतु समय के चक्र को मैं अवश्य पहचानती हूं. बर्बर हूणों के आक्रमण में राज्य लुटा, वैभव और सम्मान गया. परिवार का अब कुछ पता नहीं. सबकुछ खो कर जिस प्रकार तुम्हारे द्वार तक आई हूं, वह तुम से छिपा है कुछ क्या?’’

देवबाला ने उत्तर नहीं दिया. किन्हीं विचारों में वह कहीं गहरे तक खो गई. फिर बोली, ‘‘रत्नमाया, क्या रत्नसेन का पता तू जानती है?’’

‘‘नहीं, केवल इतना कि वह एक दिन हठात कहीं से आया और अपने जीवन को दांव पर लगा कर मेरी रक्षा की थी.’’

‘‘और तू ने अपना हृदय इतनी सी बात पर न्योछावर कर दिया,’’ देवबाला बोली.

किंतु उत्तर में रत्नमाया का गोरा चेहरा बस, लाज से आरक्त हो उठा.

देवबाला बोली, ‘‘सुन, रत्नसेन यहां नहीं है और वह मंदिर भी भगवान का उपासना गृह नहीं बल्कि नारी के रूप का विक्रय घर है. आज की इस रात को तू विलास कक्ष में मत जा. यदि तुझे जीवन का मोह नहीं है तो वहां जा, जो इस रूप का मोल कर ले. हां, नहीं तो जीवन की सारी मोहममता त्याग कर तू जहां भी आज जा सकती है…वहां इसी पल इस द्वार को छोड़ कर चली जा.’’

उस समय सामने मंदिर की सीढि़यों से टकराती हुई बरसाती स्वर्णरेखा नदी बही चली जा रही थी. एक असहाय तरुणी के क्लांत हृदय सी चीत्कार करती हुई उस की लहरें वातावरण को क्षुब्ध कर रही थीं.

रत्नमाया ने देवबाला की बात को पूरी तरह सुना अथवा नहीं, किंतु उसी क्षण उस ने अपनी सुंदर देह से स्वर्ण आभूषणों को निकाल कर फेंक दिया. केशों की वेणी में गुथे हुए केतकी के फूलों को नोच कर चारों ओर छितरा दिया और सत की ज्वाला सी धधकती हुई वह रूपवती अद्भुत नारी देवबाला को देखतेदेखते ही क्षणों में वहां से विलीन हो गई. दिन बीतते गए…समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा.

…और फिर एक दिन रात्रि के आगमन पर एक छोटे से गांव के मंदिर में किसी सुंदरी ने दीप जलाया. बाहर आकाश में बादल घिरे थे और हवा के एक ही झोंके में सुंदरी के हाथों में टिमटिमाते हुए उस दीपक की लौ बुझ गई.

तभी मंदिर के बाहरी द्वार पर किसी अश्वारोही के रुकने का शब्द सुनाई पड़ा. एकएक कर बडे़ यत्न से वह अश्वारोही मंदिर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा. मानो शक्ति का उस की देह में सर्वथा अभाव हो. किसी प्रकार आगे बढ़ कर वह देवालय के उस द्वार पर आ कर खड़ा हो गया, जहां 2 क्षण पहले ही, उस ने एक छोटा दीपक जलते हुए देखा था.

लेकिन उस के पैरों की आहट सुन कर भी कक्ष की वह नारी मूर्ति हिली नहीं. मन और देह से ध्यान की तंद्रा में तल्लीन वह देव प्रतिमा के समक्ष पुन: दीप जला, पहले की तरह अचल बैठी रही.

युवक के धैर्य का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘हे विधाता, जीवन का अंत क्या आज यहीं होने को है?’’

इस बार युवती मुड़ी और पूछा, ‘‘बटोही, तुम कौन हो?’’

‘‘मैं एक सैनिक हूं,’’ उस ने उत्तर दिया और कहा, ‘‘हूणों द्वारा शिप्रा पार कर इस ओर आक्रमण करने के प्रयास को आज सर्वथा विफल किया है, किंतु लगता है कि देह में जीवन शक्ति अब शेष नहीं है. किंतु इस गहन रात्रि में मुझे आज यहां क्या अभय मिल सकेगा?’’

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युवती उठ खड़ी हुई. वह द्वार तक आई तभी आकाश में बिजली चमकी और उस के क्षणिक प्रकाश में उस ने रक्त में भीगे युवक के काले केश, उस के गीले वस्त्र और खून में लिपटे चेहरे को देखा. वह चीख उठी अैर अचानक ही उस के मुख से निकला गया, ‘‘कौन? रत्नसेन?’’

हर्ष और विस्मय से रत्नसेन का हृदय स्पंदित होने लगा. सम्मुख ही गौरांगिनी रत्नमाया खड़ी थी.

उस दिन रत्नमाया फिर रत्नसेन को अपने कक्ष में ले गई और अपने मृदुल हाथों से उस बटोही के घावों को धोया, स्नेह के अमृत रस को ढुलका कर उसे स्वस्थ और चेतनयुक्त बनाया.

बाहर गहन अंधकार अभी भी व्याप्त था. कक्ष में जलते दीपक की धीमी रोशनी में रत्नसेन ने कहा, ‘‘रत्नमाया, वक्त की मुसकान और उस के आंसू विचित्र हैं. कब ये हंसाएगी और कब ये रुला जाएंगी, कोई नहीं जानता? एक दिन बर्बर हूणों से तुम्हारी रक्षा कर सकने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ और फिर अचानक ही उस दिन स्वर्णरेखा नदी के तट पर तुम से पुन: भेंट हो गई.’’

रत्नमाया शांत बैठी सुनती रही. उस ने…अपने कोमल हाथों को उठा कर रत्नसेन के उन्नत माथे पर मृदुलता के साथ रख दिया.

रत्नसेन ने फिर कहा, ‘‘रत्नमाया, तुम्हारी इस रूपशिखा के सतरंगी प्रकाश को अपने से दूर न हटने दूं, मेरा यह दिवास्वप्न अब तुम्हारी कृपा से पूरा होगा.’’

‘‘मन की इच्छापूर्ण कर सकने का सामर्थ्य आप में भला कब नहीं रहा,’’ यह कह रत्नमाया वहां से उठी और अंदर के प्रकोष्ठ में चली गई.

दूसरे दिन जब ऊषा अपने स्वर्णिम रथ पर बैठी सुनहरी चादर को खुले नीलाकाश में फहराती चली आ रही थी, तभी रत्नसेन की खोज में अनेक सैनिकों ने उस गांव में प्रवेश किया. रत्नसेन बाहर मंदिर के प्रांगण में आ कर खड़ा हो गया और एक वृद्ध सैनिक को संकेत से पुकारा, ‘‘सिंहरण, इधर इस ओर मंदिर के समीप.’’

अगले पल में वह देवालय सैनिकों की चहलपहल और कोलाहल से भर गया. वहां का आकाश भी वीर सामंत रत्नसेन की जयजयकार से निनादित हो उठा.

निकट के उद्यान से तभी संचित किए हुए पुष्पों को ले कर, रत्नमाया उस ओर आई. कनकछरी सी कमनीय काया युक्त शुभ्रवसना, उस सुंदरी को देखते ही सहसा सिंहरण विस्मित रह गया. उस ने पुकारा, ‘‘कौन राजकुमारी, रत्नमाया.’’

रत्नमाया ठिठकी. घूम कर उस ने सिंहरण की ओर देखा और बोली, ‘‘सेनापति सिंहरण, अरे, तुम यहां कैसे?’’ फिर जैसे उसे ध्यान हो आया. वह बोली, ‘‘तो बर्बर विदेशियों से आर्यावर्त को मुक्त करने का संकल्प लिए हुए तुम अभी जीवित हो?’’

‘‘हां, राजकुमारी,’’ सिंहरण ने कहा, ‘‘वृद्ध सिंहरण ही जीवित रह गया. तात तुल्य जिस राजा ने सदैव पाला और  मेरे कंधों पर राज्य की रक्षा का भार सौंपा था, यह अभागा तो न उन की ही रक्षा कर सका, न उस धरती की ही. आज भी यह जीवित है, इस दिन को देखने के लिए. आह, स्वर्ण पालने और फूलों की सेज पर जिस राजकुमारी को मैं ने कभी झुलाया था, उस की असहाय बनी इस दीन कुटिया में आज अपने दिन बिताते देखने को यह अभागा अभी जीवित ही है.’’

सिंहरण ने पुन: सामंत रत्नसेन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तात, शूरसेन प्रदेश के वीर राजा घुमत्सेन की पुत्री यही राजकुमारी रत्नमाया है.’’

मन की किसी रहस्यमयी अज्ञात प्रेरणावश उस ने रत्नमाया को प्रणाम किया. उत्तर में उस की प्रेमरस से अभिसिंचित शुक्रतारे सी उज्ज्वल मोहक मुसकान को पा, वह आत्मविभोर हो उठा.

किंतु उस दिन अति आग्रह पर भी रत्नमाया रत्नसेन के साथ नहीं गई. उस के अभावों और कष्टों के पीडि़त दिनों में ग्रामीणजनों ने निश्चल, निस्वार्थ भाव से एक दिन उसे आश्रय प्रदान किया था. वह उन्हीं की सेवा में पूर्ववत तनमन से ही संलग्न रही.

गुप्तकाल के यशस्वी मानध्वज के नीचे सामूहिक रूप से संगठित हो एक दिन आर्य वीरों ने जब भारत भूमि को हूणों की पैशाचिक सत्ता से मुक्त कर लिया, तभी प्रभात की एक बेला में एक स्वर्णमंडित रथ रत्नमाया के उस छोटे से गांव में आया. उस पर से पराक्रमी मालव सामंत वीर रत्नसेन उतरे. उन के साथ ही फूल सी कोमल कुंदकली सुंदर राजवधू रत्नमाया को ग्रामीण जनों ने स्नेह के आंसू दे विदा कर दिया.

उस दिन ग्रामवधुओं ने रथ को घेर लिया था और उस के पथ को अपने मोहक प्रेमफूलों से पूरी तरह सजा दिया. उस रास्ते पर से जाते समय अपने दुख के दिनों में भी जिस रत्नमाया के नयन आंसुओं से कभी इतने आर्द न हो सके थे, जितने आज हुए.

नच बलिए सीजन 9: ये दिलकश जोड़ा बनेगा इस शो का हिस्सा

नच बलिए सीजन 9 में छोटे पर्दे का ये दिलकश जोड़ा हिस्सा लेने जा रहे हैं. हाल ही में मिली जानकारी के अनुसार मधुरिमा तुली अपने एक्स बौयफ्रेंड विशाल आदित्य के साथ नच बलिए सीजन 9 का हिस्सा बनने जा रही हैं. वैसे तो डांस शो में हिस्सा लेने के लिए इस जोड़ी के अलावा कई टीवी कपल्स के नाम भी सामने आ रहे हैं. इसी बीच एक और टीवी के इस जानेमाने कपल ने इस डांस रियलिटी शो का हिस्सा बनने का हामी भर दी है.

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आपको बता दें, सीरियल शक्ति में किन्नर का दमदार रोल निभा रही रुबीना दिलाइक की जो कि अपने पति के साथ ‘नच बलिए’ के मंच पर ताल से ताल मिलाती नजर आएंगी. वैसे भी इन दोनों के फैंस उनकी लवस्टोरी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं. ऐसे में इस रियलिटी शो के मंच के जरिए दर्शक को इस कपल के बारे में काफी कुछ जानकारी मिलेगी.

सूत्रों के अनुसार डांस रियलिटी शो में रुबिना और अभिनव के अलावा श्रीसंथ- भुवनेश्वरी, फैजल खान-मुस्कान कटारिया, वही एक्स जोड़ियों की लिस्ट में ऊर्वशी ढ़ोलकिया-अनुज सचदेवा का नाम सामने आ रहा है.

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ये है इंडिया: स्तरहीन पटकथा व निर्देशन

रेटिंग: आधा स्टार

निर्माताः संदीप चैधरी

लेखक व निर्देशक: लोम हर्ष

कलाकार:गैवी चहल, लोम हर्ष, सुरेंद्र पाल, मोहन अगाषे, डायना उपल, मोहन जोशी, अंतरा बनर्जी, विक्रमजीत कंवरपाल  व  अन्य.

सिनेमा एक ऐसी विधा है, जिसमें उत्कृष्ट रचनात्मक काम करना हर इंसान के वस की बात नहीं है. अमूमन फिल्मकार एक बेहतरीन विषयवस्तु व कथानक पर अजेंडे वाली फिल्म बनाने का निर्णय तो ले लेता है, पर उसे अमली जामा नही पहना पाता. ऐसा ही कुछ फिल्मकार लोम हर्ष के साथ हुआ. आस्टे्लिया में छह वर्ष बिताते हुए वहां पर भारत को लेकर लोगों की सोच से विचलित होकर भारत महज गरीब या सपेरों का देश नहीं है, यह बताने और भारतीयों को भी उनके अपने देश की महत्ता याद दिलाने के मकसद से फिल्मकार लोम हर्ष फिल्म ‘‘ये है इंडिया’’ लेकर आए हैं, पर अफसोस यह फिल्म महज बेसिर पैर की कहानी से युक्त चूंचूं का मुरब्बा के अलावा कुछ नहीं है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी लंदन में बसे अप्रवासी भारतीय मिथिलेश कुमार उर्फ मिक्की (गैवी चहल) के इर्द गिर्द घूमती है. मिक्की के माता पिता तीस वर्ष पहले लंदन चले गए थे. मिक्की का जन्म वहीं पर हुआ, पर उसे हमेशा अपने वतन भारत की याद आती रहती है. वह लंदन में रहते हुए भारत को लेकर जो कुछ सुनता है, और जो कुछ किताबों में पढ़ता है उसमें उसे विरोधाभास नजर आता है. वह सच जानने के लिए राजस्थान, भारत अपने मित्र पंडित के घर आता है. पंडित के दादाजी (सुरेंद्र पाल) मिक्की को भारत के बारे में काफी कुछ बताते हैं. वह भारत घूमना शुरू करता है. भारतीयों की मेहमान नवाजी व अपनेपन से प्रभावित होकर यहां के सिस्टम के खिलाफ युद्ध छेड़ देता है. मिक्की की प्रेमिका जेनी (डायना उपल) उसे लेने आती है, पर वह उसे वापस भेज देता है. एक दिन वह नालंदा विश्वविद्यालय के गाइड से भिड़ जाता है कि वह विदेशी पर्यटकों के सामने भारत के गौरवशाली इतिहास का जिक्र करते हुए यह क्यों नहीं बताता कि यदि विदेशियों ने हमारे देश को न लूटा होता, तो आज हमारा देश विश्व का सर्वशक्तिमान देश होता. तो वहीं वह राज्य के पर्यटन मंत्री के बेटे यशवर्धन (लोम हर्ष )द्वारा बच्चो से जबरन भीख मंगवाने के रैकेट का भांडा फोड़कर टीवी पर छा जाते हैं. यषवर्धन जब सड़क पर कचरा फेंकता है, तो मिक्की सारा कचरा उसके सिर पर डाल कर टीवी पर हीरो बनकर उभरता है. नाराज होकर राज्य के पर्यटन मंत्री उसे गिरफ्तार करवा देते हैं. देश की जनता मंत्री के खिलाफ धरने पर बैठकर मिक्की को छोड़ने की मांग करती है. मिक्की जमानत पर जेल से बाहर आता है. भारत के प्रधानमंत्री (मोहन अगाषे) मिक्की को बुलाकर मिलते हैं और भारत में होने वाले विश्व शांति समिट के लिए मिक्की को भारत का प्रतिनिधि बना देते हैं. मिक्की इस समिट में हिंसा व अहिंसा के अलावा विश्व शांति को लेकर लंबा चैड़ा भाषण देते है. पूरे विश्व के प्रतिनिधि मिक्की से प्रभावित होकर उसकी प्रशंसा करते हैं.

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पटकथाः

अति लचर व घटिया पटकथा के चलते यह फिल्म प्रभावहीन बन गयी है. कहानीकार व पटकथा लेखक को सिर्फ यह पता है कि उन्हें इस फिल्म में किन मुद्दों को पिरोना है, मगर उन्हें यह नहीं पता कि इन मुद्दों को किस तरह मनोरंजक कहानी का रूप देकर पेश करना है. सारे चरित्र अजीबों गरीब हैं. फिल्म में सिर्फ शुष्क भाषणबाजी के अलावा कुछ नही है. परिणामतः यह फिल्म अपने मकसद को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रहती है.

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निर्देशनः     

निर्देशक के तौर पर लोम हर्ष का प्रयास सराहनीय नहीं कहा जा सकता.

अभिनयः

जब चरित्र चित्रण सही न हो, तो दिग्गज कलाकार भी कुछ नहीं कर सकते. गैवी चहल पंजाबी फिल्मों के सुपर स्टार हैं, मगर वह भी इस फिल्म में अपनी प्रतिभा से प्रभावित नही करते. मोहन अगाषे व सुरेंद्र पाल को जाया किया गया है. लोम हर्ष लेखक, निर्देशक के साथ साथ अभिनेता के रूप में भी पूरी तरह से असफल रहे.

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गुड़ के इतने फायदे जानकर रह जाएंगे हैरान

गुड़ का सेवन सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. इसके सेवन से शरीर में कई जरूरी तत्वों की पूर्ति की जा सकती है. आइए जानते हैं गुड़ के सेवन से क्या लाभ होता है.

सर्दी-जुकाम में

मौसम के बदलने से या दूसरी वजहों से कई बार आप भी सर्दी-जुकाम से परेशान हो जाते हैं. इनसे बचाव के लिए भी गुड़ काफी अहम साबित होता है. गुड़ की मदद से सर्दी-जुकाम आदि से आसानी से निजात दिलाई जा सकती है.

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हिमोग्लोबिन

गुड़ में आयरन होता है. आयरन शरीर में हिमोग्लोबिन बनाने में मदद करता है. हिमोग्लोबिन की पूर्ति के लिए गुड़ का सेवन करना फायदेमंद रहता है.

कब्ज दूर

अक्सर गर्मियों में कब्ज की समस्या हो जाती है. इससे बचाव के लिए भी गुड़ का इस्तेमाल करना काफी अच्छा रहता है. गुड़ में अनरिफाइन्ड शुगर पाया जाता है. जिससे डाइजेस्टिव एंजाइम को सक्रिय करने और बच्चों में पाचन को बढ़ावा देने में मदद मिलती है.

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हड्डियां मजबूत

गुड़ मिनरल्स, कैल्शियम और फौस्फोरस से भरपूर होता है. इसकी मदद से हड्डियों को मजबूत करने में भी मदद मिलती है. गुड़ की मदद से मजबूत की जा सकती है.

कई बार तो ऐसा लगता है जैसे मेरा माइंड रेस्ट मोड में जा रहा है…

सवाल

मैं 30 वर्षीया विवाहिता हूं. शादी के बाद से ही मुझे बहुत जल्दीजल्दी थकान महसूस होने लगी थी. लेकिन पिछले दिनों तबीयत काफी खराब होने के कारण चैकअप व टैस्ट करवाने पर पता चला कि मेरा शुगर लैवल 50 है जोकि काफी कम है. मुझे आनेजाने में भी काफी थकान महसूस होती है और कई बार तो ऐसा लगता है जैसे मेरा माइंड रैस्ट मोड में जा रहा है. ऐसे में मुझे कैसी डाइट लेनी चाहिए व किन बातों का ध्यान रखने की जरूरत है?

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जवाब

अभी आप की उम्र काफी कम है और इतनी सी उम्र में आप को लो शुगर की प्रौब्लम होने लगी है, जो चिंता का विषय है. ऐसे में आप डाक्टर की गाइडैंस में ही सबकुछ करें ताकि समय रहते आप की शुगर प्रौब्लम को कंट्रोल किया जा सके.

साथ ही, आप थोड़ीथोड़ी देर में कुछ खाती रहें और अगर आप वर्किंग हैं तो अपने बैग में चीनी, टाफी व खानेपीने का सामान जरूर रखें ताकि रास्ते में दिक्कत होने पर आप के पास उसे कंट्रोल करने के लिए चीजें हों. और भूल कर भी डाइटिंग वगैरह के बारे में न सोचें. रोज वौक पर जाएं और ओवर वर्कलोड से बचें. इस से धीरेधीरे आप की प्रौब्लम कंट्रोल में आने लगेगी.

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