एक ट्रांसजेंडर होने के बावजूद दिल्ली के ललित होटल में पीआर और एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करने वाली किआरा ने अपनी इच्छा से लिंग परिवर्तन कराया क्योंकि लड़के के शरीर में वे खुद को कम्फर्टेबल महसूस नहीं कर रही थी. लड़की बन कर वे एक संतुष्ट और जिन्दादिल जिंदगी जी रही है. आइये जानते हैं एक ट्रांसजेंडर के रूप में उन्हें किस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और किस तरह वह आगे बढ़ती गईं .

अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों के बारे में बताइये.

मेरा जन्म जुलाई 1988 को कोलकाता में मिडिल क्लास फैमिली में एक लड़के के रूप में हुआ था. मेरी मां बंगाल से और पिता चेन्नई से थे. घर में दोनों तरह के कल्चर का प्रभाव दिखता था. मैं छोटी थी. मुझ से 6 साल बड़ी एक बहन थी. जब मैं क्लास 10 में थी तभी मां को कैंसर डायग्नोज़ हुआ. मैं मां के इलाज के लिए कौल सेंटर में काम करने लगी. मां के गुजरने के बाद पापा को भी कैंसर डायग्नोज़ हो गया. उन दोनों के गुजरने के बाद मैं ने अपने बारे में सोचना शुरू किया.

आप को कब महसूस हुआ कि आप दूसरों से अलग हैं?

मुझे बचपन से ही महसूस होता था जैसे मैं दूसरों से अलग हूं. मुझे लड़कों के साथ घूमना, दौड़भाग वाले खेल खेलना पसंद नहीं था. इस के विपरीत मुझे घरघर खेलना, साड़ी लपेटना , दीदी को तैयार होते देखना ,खाना बनाना ,फीमेल टीचर बनना जैसी बातें पसंद थीं. मुझे लगता था जैसे मैं लड़की के शरीर में एक लड़का हूँ. मुझे लड़के के शरीर में तकलीफ होने लगी थी. मैं दूसरों को धोखा देना नहीं चाहती थी. मैं नहीं चाहती थी कि किसी लड़की से शादी कर मैं उस की जिंदगी खराब करूं और उसे वह सब न दे सकूं जो एक वास्तविक लड़का उसे दे सकता था. सो मैं ने तय किया कि मैं अपना औपरेशन करवाउंगी और वास्तव में एक लड़की बन कर ही जीऊंगी. लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह मुझे नहीं थी.

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आप का लड़के से लड़की बनने का सफर कैसा रहा?

2010 में मैं ने लड़की बनने का फैसला ले लिया था. सोचा था कि दिल्ली आ कर अपना पूरा ट्रीटमेंट करवाउंगी. 2011 से मैं लड़की बन कर बाहर निकलने लगी. दिल्ली में मिस ट्रांसक्वीन इंडिया की डायरेक्टर रीना राय ने मेरा काफी सपोर्ट किया. उन्होंने मुझे होटल ललित के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर केशव सूरी से मिलवाया जिन्होंने इस फैसले को हकीकत में ढालने में मेरी काफी मदद की .

2017 में मेरी सर्जरी हुई और मैं पूरी तरह लड़की बन गई. सर्जरी में 8 से साढ़े 8 लाख तक का खर्च आया. सर्जरी से सिर्फ शरीर और हार्मोन्स ही नहीं बल्कि मेरी आवाज भी बदली गई. आज एक महिला के शरीर में मैं बहुत खुश हूँ.

फिलहाल मैं दिल्ली के होटल ललित में पीआर और मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रही हूं. केशव सूरी ने जौब के पहले दिन ही कहा था कि हम ने आप के टैलेंट के आधार पर आप को काम दिया है. आप के कपड़े या जेंडर से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. जैसे आने में आप को अच्छा लगे वैसे आएं.

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आप लोगों को जीवन में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ?

शुरुआत में जब इंसान मर्द से औरत बन रहा होता है तो ट्राजिसन के उस दौर में काफी समस्याएं आती हैं. इस समय न आप मर्द होते हैं और न महिला. वह दौर बहुत कठिन होता है क्यों कि लोग आप का मजाक उड़ाते हैं.

रिश्तेदारों द्वारा हमारे साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है. लोग हमें घिन की नजर से देखते हैं. यह बर्दास्त के बाहर होता है.

हर कम्युनिटी में कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे. किन्नर माइनॉरिटी में आते हैं इस लिए उन के बारे में लाउडली बोला जाता है.

किन्नर जबरदस्ती अपने जैसे बच्चों को उठा कर ले जाते हैं, यह सोच गलत है. दरअसल जब ऐसे बच्चे के घरवाले ही उन्हें अकेला छोड़ देते हैं तभी किन्नर इन्हें अपनाते हैं और अपने साथ रखते हैं.

मुझे लोगों से यह शिकायत है कि वे किन्नरों को उस समय तो बुलाते हैं जब उन्हें दुआएं चाहिए होती हैं. मगर बाकी समय दुत्कार दिया जाता है. यह दोगला व्यवहार क्यों?

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