रेटिंगः तीन स्टार
निर्माताःकुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक,एससीआईपीएल
निर्देशकः अजय बहल
लेखकः मनीश गुप्ता
संगीतकारः क्लिंटन सिरिजो
कैमरामैनः सुधीर के चैधरी
कलाकार: अक्षय खन्ना, रिचा चड्डा, मीरा चोपड़ा, राहुल भट्ट, कृतिका देसाई, कुमुद मिश्रा, अतुल कुलकर्णी, संध्या मृदुल
अवधिः दो घंटे चार मिनट
2012 के निर्भयाकांड के बाद सरकार ने ‘बलात्कार’ के कानून में कुछ बदलाव किए. फिर 2013 में नया कानून आ गया. जिसके तहत इंडियन पैनल कोड के ‘‘सेक्शन 375’’ के अनुसार यौन संबंधों में लड़की या औरत की सिर्फ ‘हां’ के साथ ‘मर्जी’ भी जरुरी हो गयी. यानी कि एक लड़की किसी लड़के के साथ यौन संबंध रखती है और मेडीकली यौन संबंध बनने की बात साबित हो जाए, उसके बाद यदि लड़की अदालत मे कह देती है कि यह यौन संबंध उसकी मर्जी/इच्छा के विपरीत हुआ, तो उसे बलात्कार माना जाएगा. इसी ‘‘सेक्शन 375’’ के इर्दगिर्द लेखक मनीश गुप्ता और निर्देशक अजय बहल एक बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा वाली फिल्म लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने हर पक्ष को पेश किया है.
कहानीः
मशहूर फिल्म निर्देशक रोहण खुराना (राहुल भट्ट) की फिल्म की सहायक कास्ट्यूम डिजायनर अंजली दांगले (मीरा चोपड़ा) उनके घर पर कुछ कस्ट्यूम दिखाने आती है. रोहण अपनी नौकरानी को बाजार भेज देते हैं और फिर रोहण व अंजली के बीच सेक्स/यौन संबंध स्थापित होते हैं. कुछ देर बाद अंजीली दांगले अपने चेहरे को अपने दुपट्टे छिपाए हुए रिक्शे से अपने घर पहुंचती है, उसका भाई उससे पूछता है कि आखिर हुआ क्या? तब अंजली अपने भाई को कुछ बताती है. फिर पता चलता है कि पुलिस ने रोहण खुराना को गिरफ्तार कर लिया है. अस्पताल में अंजली और रोहण दोनों का मेडिकल परीक्षण होता है. मामला सेशन कोर्ट में पहुंचता है और सेशन कोर्ट रोहण खुराना बलात्कार करने का दोषी मानकर रोहण को दस साल की सजा सुना देता है. रोहण अपनी पत्नी से कहता है कि वह बेगुनाह है. अंजली ने उसे जानबूझकर फंसाया है.