चंद्रकला कौलोनी का प्राइवेट ओल्डएज होम रंगीन पन्नियों, फूलों और रंग-बिरंगे जगमगाते बल्बों के बीच बिल्कुल दुल्हन सरीखा नजर आ रहा था. ओल्डएज होम यानी वृद्धाश्रम, जहां जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर मौत का इंतजार करते, जिन्दगी से बेजार, लाचार, दुखी, अकेले और अपने ही घरों से जबरन बाहर ढकेल दिये गये बुजुर्ग रहते हैं, वहां इस तरह का नजारा आसपास रहने वाले लोगों में कौतूहल पैदा कर रहा था. जो लोग इस वृद्धाश्रम की ओर कभी झांकते तक न थे, आज वे भी उसके बरामदे में इकट्ठा थे. थोड़ी देर में एक पंडितजी भी अपने दो चेलों के साथ आ पहुंचे. वृद्धाश्रम के मालिक रामदयाल मनसुख को पंडितजी के आने की खबर मिली तो वे भागे-भागे द्वार तक आये और बड़े आदर-सत्कार के साथ उन्हें भीतर ले गये. अन्दर छोटे से आंगन में लगन-मंडप सज रहा था. अनुपम दृश्य था. चारों तरफ बुजुर्गों की चहल-पहल थी. बूढ़े चेहरों पर आज अनोखी खुशी छलक रही थी. फूलों और इत्र की महक के साथ-साथ पकवानों की सुगंध उड़ रही थी. हल्का-हल्का म्यूजिक बज रहा था. स्पष्ट था कि आज यहां किसी की शादी है. मगर किसकी? आखिर वृद्धाश्रम में कौन युवा है, जो आज शादी के बंधन में बंधने जा रहा है?

थोड़ी ही देर में मोहल्ले वालों की जिज्ञासा शान्त हुई. कुछ ही देर में रेशमी लाल साड़ी में सजी 75 वर्षीया सुहासिनी काला और सफेद धोती-कुर्ते पर रंगीन सदरी में 79 वर्षीय कांतिदास लगन मंडप में आ बैठे. पंडित जी ने मंत्र पढ़ने शुरू किये, हवनकुंड में आहुतियां पड़ीं, फेरे हुए और कांतिदास ने सुहासिनी काला की मांग में सिंदूर भर कर गले में मंगलसूत्र पहना दिया. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शुभकामनाओं की झड़ी लग गयी. शादी में शरीक सभी लोगों को वृद्धाश्रम के मालिक ने खाने का निमंत्रण दिया और शर्माते-लजाते दूल्हा-दुल्हन को लेकर खाने की टेबल की ओर चल पड़े.

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