एक था राजा एक थी रानी चलो भई शुरू हो गई एक नई कहानी. जी हां बचपन की कुछ खट्टी  कुछ मीठी यादें ही हैं कहानियां. जो कभी सुना  करते  थे.  दादी और नानी की जुबानी. पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो शाम ढलते ही सबकी  एक जुट हो कर जमा करती थी. कहानियों की मंडली और बच्चे सब भूल कर रम जाते थे इन कहानियों में,कभी कभी तो बड़े भी  इस मंडली का हिस्सा बन जाया करते थे. लेकिन आज कल  टीवी और इंटरनेट की दुनिया ने बचपन को तो छिना ही है, साथ ही कहानियों को भी गुम  कर दिया है . बचपन भले ही बेफिक्र होता है पर जाने अनजाने उलझ सा जाता है. कहानियां एक सहारा है उस उलझन से निकलने का.

जोड़े संस्कृति से

बच्चों को पारम्परिक ,ऐतिहासिक कहानियां अवश्य सुनाये क्योंकि आजकल बच्चे अंग्रेजी स्कूल मे पढ़ते है जिसकारण अपनी सभ्यता और परम्पराओं से दूर होते जा रहे हैं.

काल्पनिक दुनिया दिखाएं

बच्चा कहानी सुनता ही नहीं है बल्कि गढ़ता भी है वो  कहानी सुनतेसुनते वर्ण, स्थान आदि की कल्पना करने लगता  है. इससे उनकी  सोच अच्छी होती  है और दिमाग को क्रिएटिव बनती है .

खुद बनते हैं वक्ता

जब बच्चा कहानी सुनता है तो वो खुद भी कुछ समय पश्चात एक कहानी वक्ता बन जाता है और जो कहानी वो सुनता है उन्ही मे अपने गठजोड़ लगा कर अपनी एक मनगढ़त कहानी रचने लगता है.

ये भी पढ़ें- लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप को कैसे बनाएं स्ट्रौंग

शब्दावली होती है अच्छी

बच्चो का शब्दों का ज्ञान बढ़ता है उनकी सोच को सकारत्मक करती हैं कहानी .उन्हे दुनिया भर की कहानी सुनने का शोक होता है जिससे उन्हे नई नई बातें सीखने को मिलती है व उनका ज्ञान बढ़ती  हैं .

टीवी और इंटरनेट से बढ़ती है दूरी

अगर बच्चों को  रोज नई नई कहानियां सुनाते है तो वह इंटरनेट से दूर रहेंगे. इससे वह स्वस्थ भी रहेंगे और परिवार में प्यार भी बढ़ेगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...