मां अक्सर चूल्हे पर दाल या दूध की पतीली चढ़ा कर भूल जाती हैं. ड्राइंग रूम या बेडरूम में जब हमलोगों को घर में कुछ जलने की तीव्र गंध आती है, तब पता चलता है कि मां पतीली चढ़ा कर या तो सो गयीं या अन्य कामों में बिजी हो गयीं. उनकी यह हालत कोई साल भर से है. एक दिन तो वह बाजार से सामान खरीदने गयीं और सामान से भरा एक झोला किसी सब्जीवाले के ठेले पर भूल आयीं, वह तो भला हो उस ठेलेवाले का जो मां को जानता था, सो आकर झोला वापस कर गया. मां यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उन्हें भूलने का रोग यानी अल्जाइमर हो गया है. डौक्टर के पास चलने को कहो तो उल्टे नाराज हो जाती हैं. कहती हैं कि मैं काम की अधिकता में कुछ भूल जाती हूं तो तुम लोग मुझे भुलक्कड़ साबित करने लगते हो... अब उन्हें कौन समझाए कि उम्र के साथ यह रोग लग ही जाता है. उम्र के साथ शरीर की ही नहीं, बल्कि दिमाग की कोशिकाएं भी सुस्त पड़ने लगती हैं या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिसके चलते इंसान चीजों को भूलने लगता है.

भूलने का रोग यानी अल्जाइमर रोग भारत में तेजी से पैर पसार रहा है. इसे डिमेंशिया भी कहते हैं. अलोइस अल्जाइमर के नाम पर इसे अल्जाइमर कहा गया, जिन्होंने सबसे पहले इस रोग के लक्षणों को पहचाना था. बुढ़ापे में यह बीमारी आमतौर पर देखी जाती है, मगर कई बार सिर में चोट लगने या आधुनिक जीवनशैली, शराब या ड्रग्स का सेवन भी इस रोग का कारण हो सकते हैं. इसमें इंसान की याददाश्त कम होने लगती है, वह निर्णय नहीं ले पाता या उसको बोलने में दिक्कत आने लगती है, जिसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक दायरे में गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो जाती है. उच्च रक्तचाप, तनाव, मधुमेह भी इस रोग की वजहों में से एक है.

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