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संचार के हर माध्यम के लिये जरूरी है कौशल होना

संचार एक वो कला है जिस के जरिये हम किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकते है. और किसी के भी सामने अपनी छवि खराब करा सकते है. जरूरी नहीं की एक डिग्री धारक ही बहुत अच्छे से सवांद कर सकता है. संचार का पढ़ाई लिखाई से कोई लेना देना नहीं है. आपके संवाद का तरीका ही आपकी पर्सनालिटी के बारे में दर्शाता है. संचार कौशल  दूसरो को समझने और समझाने का बेहतर तरीका है.

संचार क्या है

संचार कौशल वह क्षमता है जिसके जरिये हम विभिन प्रकार की जानकारी देने और प्राप्त करने के लिए करते हैं. संचार मानव जीवन के लिए बुनियादी जरूरतों में से एक है. जिसके न होने से मानव जीवन अधूरा लगता है. इसमें सुनना, बोलना, अवलोकन और सहानुभूति ये सभी शामिल होते है. संचार फेस-टू-फेस इंटरैक्शन, फोन वार्तालाप और ईमेल और सोशल मीडिया जैसे डिजिटल संचार के माध्यम से संवाद किया जा सकता है लेकिन इन सभी माध्यमों के संचार का तरीका थोड़ा अलग होता है.

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फेस-टू-फेस इंटरेक्शन

फेस-टू-फेस इंटरैक्शन वह संचार है जो किसी भी मध्यस्ता तकनीक के बिना किया जाता है. फेस-टू-फेस इंटरैक्शन मे केवल वार्तलाप  ही मायने नहीं रखती बल्कि मनुष्य की शाररिक भाषा भी मायने रखती है. क्योंकि ऐसा कई बार होता है कि लोग बोलते कुछ हैं और उनकी बौडी लैंग्वेज कुछ और ही बोलती है. तो इसके लिए जरूरी है की वार्तलाप के समय आपकी बौडी लैंग्वेज भी वही बोले जो आप बोल रहे हो. आई कांटेक्ट बना कर बात करें अगर आप ऐसा नहीं करते है तो सामने वाले पर नकरात्मक प्रभाव पड़ता है. सहज इंसान बने, सही शब्दों  का प्रयोग करें, तकिया कलम लगा कर बात न करे.

फोन वार्तालाप

फोन पर बात करते समय आपकी आवाज ही आपकी पहचान होती है. कुछ जरूरी बातें हैं, जिनका पूरा ध्यान रखना चाहिये जैसे उत्साह के साथ बात करें. जिससे  की दूसरे को लगे की आप उससे बात कर के खुश हैं व साफ बोलें जिससे दूसरे को आपकी बात सही से समझ आ सके. यदि आप फोन पर इंटरव्यू देना चाहते हैं तो जरूरी है कि उसके लिये फोन पर प्रेक्टिस करें और अटक अटक कर बात न करें, फोन पर बात करते समय केवल फोन पर ही ध्यान रखें. न की किसी और काम पर भी ध्यान लगाएं क्योंकि इससे आपका ध्यान भटक सकता है, सुनने की क्षमता को बढ़ाएं क्योंकि अगर आप बात सुन नहीं पाएंगे तो आप सही जवाब भी नहीं दे पाएंगे. गलत भाषा का प्रयोग न करें जैसे हम्म, याह जैसे फिलर्स का प्रयोग गलत है. इनकी की जगह ‘आप जानते हैं’ जैसे शब्दों को शामिल करें, बात को बार बार दोहराएं नहीं.

मेल संचार के तरीके

ईमेल एक ऐसा तरीका है जिसमें न आप का शरीर न आपकी आवाज पहचान होती है बल्कि आपका लेखन आपकी पहचान होता है आपके लेख मे विस्वश्नीयता हो, विनम्रता हो, अपनी बात को ज्यादा लम्बा न खींचे, अधिक से अधिक 150  शब्दों में आपकी बात पूरी हो जाये क्योंकि लम्बा लिखा हुआ उबाऊ लगने लगता है. अपने लेख के बारे में बताने के लिये सब्जेक्ट अवश्य डालें. स्पेलिंग को एक बार फिर से चेक कर लें.

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सोशल मीडिया

सोशल मीडिया दैनिक सामाजिक संपर्क के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बनता जा रहा है. यह लोगों को एक दूसरे के साथ बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है जो लोगों को सामाजिक रूप से प्रेरित करने के लिए सहायक और आवश्यक दोनों है. आज कल की पीढ़ी को यह काफी सुहाता है, इसमे आप अपने विचारो को लोगों के साथ प्रकट कर सकते हैं लेकिन ध्यान रहे की आपका कोई भी विचार किसी को आघात न पहुंचाए. यह औनलाइन तरीका है. बातचीत का इसमे आप औनलाइन फेस टू फेस बात भी कर सकते है और इसमे आप  शब्दों को संक्षिप्त रूप मे अधिक लिखते है जैसे “K”, “ttyl”, “ur”, “der”, “gr8”, “cu”, “tc” जो की आपकी भाषा व्याकरण को भी बिगाड़ते हैं. इस के जरिये आप देश विदेश के लोगों के साथ जुड़ सकते है व संवाद कर सकते हैं.

फिल्म ‘कबीर सिंह’ की आलोचना पाखंडपना है : शाहिद कपूर

16 साल के करियर में शाहिद कपूर ने काफी उतार चढ़ाव झेले हैं. पर उन्होंने हार नही मानी. मगर अब फिल्म ‘‘कबीर सिंह’’ को मिली अपार सफलता ने सारे समीकरण बदलकर रख दिए हैं. ‘कबीर सिंह’ अब तक लगभग तीन सौ करोड़ रूपए कमा चुकी है. शाहिद कपूर के लिए यह एक नया अनुभव है. दर्शक फिल्म को पसंद कर रहे हैं, जबकि फिल्म आलोचकों ने काफी आलोचना की थी. इतना ही नहीं कई समाजसेवियों ने भी फिल्म के खिलाफ आवाज उठायी थी. पर शाहिद कपूर को कबीर सिंह का किरदार निभाते समय और आज भी पूरा यकीन है. उनका मानना है कि इस तरह के इंसान होते हैं.

प्रस्तुत है शाहिद कपूर के संग हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश

आपके 16 साल के कैरियर में टर्निंग प्वाइंट क्या रहे?

मेरी नजर में पहली फिल्म ‘इश्क विश्क’ का मिलना ही एक बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. उसके बाद दूसरा टर्निंग प्वाइंट मेरे लिए फिल्म ‘‘कमीने’’ था. क्योंकि इस फिल्म से पहले मैं एक इमेज में अटक गया था. लोग मुझे रोमांटिक ब्वाय या चौकलेटी ब्वाय वाले किरदार और प्रेम कहानी वाली फिल्मों में ही देखना चाह रहे थे. जबकि मुझे लगता था कि मेरे अंदर कुछ दूसरे किरदार निभाने के गुण हैं. जिसे फिल्मकार मेरी शक्ल और उम्र की वजह से देख नहीं पा रहे हैं. ऐसे में जब विशाल भारद्वाज ने मुझे बुलाकर फिल्म ‘‘कमीने’’ दी, तो यह मेरे करियर का दूसरा सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा. मैं हमेशा विशाल सर का शुक्रगुजार रहूंगा. उन्होंने मुझे ऐसा काम करने का मौका दिया, जो मैंने उस वक्त तक नहीं किया था और ना ही कोई सोचता था कि मैं ऐसा कुछ कर पाऊंगा. मुझे लगता है कि अब तीसरा बसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट फिल्म‘ ‘कबीर सिंह’’ के रूप में आया है. इस फिल्म को जिस तरह की सफलता मिली है, उसकी वजह से हर कोई मेरे बारे में बात करने लगा है.

आपको लगता है कि ‘कमीने’’ का ही एक्सटेंशन ‘‘उड़ता पंजाब’’ थी और फिर उसका एक्सटेंशन ’’कबीर सिंह’’ है?

लोगों को ऐसा लग सकता है. यदि लोगों को ऐसा लगता है, तो गलत भी नहीं है. फिर भी मेरे नजरिए से इन तीनों फिल्मों के किरदारों में कोई समानता नहीं है. पर किरदारों के ग्राफ को देखते हुए लोग सही हैं. एक कलाकार के तौर पर ज्यादा से ज्यादा काम करने की तमन्ना हमेशा थी. मैं हमेशा चाहता था कि कोई ऐसा किरदार मिले, जिसे सुनकर ऐसा लगे कि मैं यह नहीं कर पाऊंगा. जरुरत से ज्यादा चुनौतीपूर्ण किरदार हो. उसे करते हुए मेरे अंदर का उत्साह बरकरार रहे. तो सच यही है कि ‘‘उड़ता पंजाब’’ मेरे लिए बहुत बड़ा चुनौतीपूर्ण किरदार रहा. उसके बाद उससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण किरदार कबीर सिंह रहा. मेरी निजी राय यह है कि कबीर सिंह अब तक का मेरा सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण किरदार है.

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फिल्म ‘‘कबीर सिंह’’ को जिस तरह की सफलता मिली है, उससे आपके करियर पर क्या असर हुआ?

फिल्म की सफलता से संतुष्टि मिली. भावुक भी हुआ. मैं अपने दर्शकों का आभारी हूं. इस फिल्म की सफलता ने मेरे अंदर भी काफी कुछ बदला है. तो वहीं दर्शकों के साथ मेरे रिश्ते में बदलाव आया है. अब मैं दर्शको के लिए ही काम करना चाहता हूं. मैं भविष्य में वही फिल्में अपने दर्शकों को दूंगा, जिस तरह की फिल्में वह पसंद करते हैं.

बहुत जल्द अवार्ड का मौसम शुरू होने वाला है. तो आपको भी अवार्ड पाने की उम्मीदे होंगी?

यह तो समय ही बताएगा. हमने देखा कि दर्शक किस तरह से परिपक्व हुआ है. अब देखना है कि बाकी लोग परिपक्व हुए हैं, या अभी भी दकियानूसी हैं. कबीर सिंह को किस तरह से लोगों ने पसंद किया है, उस पर विवाद तो हो ही नहीं सकता. यह फिल्म किरदार ड्राइवेन रही.

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पर फिल्म को लेकर काफी आलोचना ?

फिल्म के रिव्यू बहुत क्रिटिकल आए. जब हौलीवुड फिल्मों में रौ सीन दिखाते हैं, तो लोग कहते हैं कि यह बहुत महान सिनेमा है. यह पाखंड ही है कि 2013 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘द वोल्फ आफ वाल स्ट्रीट’’ में लियोनार्डो डिकाप्रियो ने जो किरदार निभाया था, उसमें तो कबीर सिंह से ज्यादा समस्याएं थीं. लेकिन सभी आलोचकों ने उसकी जमकर तारीफ की थी, पर वही लोग कबीर सिंह की अलोचना कर रहे हैं. जबकि दर्शकों ने ‘द वोल्फ आफ वाल स्ट्रीट’’ की ही तरह. ‘‘कबीर सिंह’’ को पसंद किया है. सच कह रहा हूं कि एक तरफ मुझे बहुत ही हिप्पोक्रेटिकल फीलिंग आयी. रिव्यूज बहुत हिप्पोक्रेटिकल थे.

आपको लगता है कि लोग कबीर सिंह के किरदार की गलत आलोचना कर रहे हैं?

देखिए, वायलेंस और अग्रेशन एक गलत इमोशन है, तो उसको गलत कहना सही बात है. जो गलत है, वह गलत है. मगर सबसे अहम सवाल यह है कि हीरो के अंदर कोई गलती क्यों नहीं हो सकती? क्या हीरो इंसान नहीं होता. हीरो शब्द भी नहीं इस्तेमाल करना चाहूंगा, क्योंकि हीरो और विलेन बहुत ही आउट डेटेड हो गए हैं. फिल्म का जो प्रोटोगौनिस्ट है, जिसके ऊपर आपकी पूरी फिल्म आधारित है, या फिल्म का जो मुख्य किरदार है, वह गलत नही हो सकता, यह कहां लिखा है. यह कहा लिखा है कि उसके अंदर हर चीज अच्छी होनी चाहिए. ऐसा कहां लिखा है कि अगर उसके अंदर खामी है, तो दर्शक उसको खामी की तरह नहीं देखेगी. मेरे हिसाब से आज का दर्शक हमसे ज्यादा बुद्धिमान है. दर्शक को कोई चीज क्यों अच्छी लगती है, वह बहुत साफ है. इसके अलावा हम किस तरह की फिल्म बनाएं? किस तरह की न बनाएं. किसको अच्छा लगेगा, किसको नही, इन्हीं बातों में हम उलझे रहते हैं. जबकि दर्शक की सोच एकदम साफ रहती है. हम ही बेकार की चीजों में उलझे रहते हैं. कबीर सिंह के प्वाइंट औफ व्यू से भी दर्शक सहमत नजर आए. उनको फिल्म बहुत पसंद आयी. भले ही फिल्म के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है. फिल्म ने बाक्स आफिस पर बहुत कमाल की कमाई की है. कुछ लोगों ने का कि यह फिल्म सिर्फ मर्दों को पसंद आएगी, मगर मुझे पता है कि मर्दों से ज्यादा औरतों ने फिल्म को सबसे ज्यादा देखा.

दूसरी बात दर्शक हर किरदार को पसंद करें, यह भी जरुरी नहीं है. किरदार को समझना जरूरी होता है. अगर आपको एक जटिल किरदार समझ में आ जाता है, तो यह फिल्म, फिल्म के कलाकार के साथ साथ पूरी टीम के लिए बहुत बड़ा कंप्लीमेंट होता है

कबीर सिंह जैसे जटिल किरदार को निभाने के लिए आपने अपने आपको दिमागी रूप से कैसे तैयार किया?

देखिए,पहली बात तो एक कलाकार के तौर पर मैं अपने किरदार को जज नहीं करता हूं कि वह अच्छा इंसान है या बुरा इंसान है. क्योंकि अगर मैं किरदार को जज करने बैठा, तो उसे न्याय संगत ढंग से परदे पर नहीं उतार सकता. मैं जैसा किरदार है, वैसा बन ही नही पाउंगा. यदि वैसा बनना है,तो उसको जज करना नहीं चाहिए.

मेरे किरदार को जज करना दर्शकों का काम है. दर्शक तय करेगा कि उसे मेरा काम, मेरा अभिनय अच्छा लगा या नहीं. मेरा काम है, पटकथा के अनुसार किरदार को दर्शाना. यदि किरदार बेहूदा है, तो भी मेरा काम है कि उस हद तक मैं उसे निभाउं कि दर्शक कहे कि यह बेहूदा है. यानी कि किरदार जैसा है, वैसा दर्शकों को महसूस हो. कबीर सिंह नफरत के योग्य है, तो मुझे उसे उसी तरह से निभाना था कि दर्शक नफरत करे. मैंने कबीर सिंह को उसी तरह से पोट्रेट किया है. मैंने कहीं भी उसको केयरफुल बनाने की कोशिश नहीं की. कहीं भी उसको ब्रेक लगाने की कोशिश नहीं की. या उसको थोड़ा सा सौफ्ट करने की कोशिश नहीं की. क्योंकि अगर मैं उसको सौफ्ट करूंगा, तो उसकी खामियां छिप जाएंगी. किसी भी किरदार की खामियों को अगर उभारना है, तो उन्हें पूरी ईमानदारी के साथ और खुलेपन के साथ दर्शाना चाहिए. ताकि दर्शक उसको उस वक्त पसंद ना करें. इसके लिए अगर मैं किरदार को जस्टीफाई करने लगा, तो फिल्म बेकार हो जाएगी. मुझे इमोशंस के साथ पूरी तरह से उतरना था. मुझे ऐसा लगा कि यह कबीर सिंह वह किरदार है, जो मुझे ऐसा मौका देता है कि मैं पूरी तरह से उन चीजों में उतर सकूं.

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आपने कबीर सिंह जैसे नेगेटिव किरदार में भी पूरे अग्रेशन के साथ काम किया है. तो किस तरह की तैयारी की थी?

मैंने निर्देशक के साथ काफी वक्त बिताया था. क्योंकि वह किरदार व कहानी के साथ काफी हद तक जुड़े हुए थे. देखिए,कबीर सिंह नेगेटिव नहीं है. कबीर के अंदर कुछ खामियां हैं और उन खामियों की वजह से वह बहुत बुरी तरह व्यवहार करता है. लेकिन उसके अंदर अच्छी चीजें भी है. वह एक आम इंसान जैसा ही होता है. मेरा इंटरप्रिटेशन यही था कि कबीर के अंदर एक ही खामी है कि वह अपने गुस्से पर काबू नही रख पाता. अन्यथा वह एक अच्छा स्टूडेंट है, स्पोर्ट्स में भी अच्छा है. इंटेलीजेंट बंदा है. अच्छा डौक्टर है. जब पेशंट से बात करता है, तो बहुत प्यार से बात करता है. बहुत अच्छे स्पेस में है. उसकी अपने टीचर के साथ भी अच्छी रिलेशनशिप है, जो अब वह खराब कर रहा है. क्योंकि अगर आप देखेंगे तो उसका जो टीचर के साथ पहला सीन है, उसमें वह बोलता है कि, ‘आई एम वेरी डिसअप्वाइंटेड विथ यू.’ मतलब कि उनकी उससे कुछ अपेक्षाएं रही होंगी, जिसे वह पूरा नहीं कर पा रहा है. तभी तो वह डिसअप्वाइंट हो रहा है. कहने का अर्थ कोई एक अच्छा रिश्ता तो होगा. मुझे लगता है कि कबीर सिंह की सिर्फ एक ही गलती थी ‘एंगर मैनेजमेंट प्रौब्लम’/क्रोध पर काबू न रख पाना.’ इस एक गलती की वजह से वह अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर देता है. यही बात फिल्म में दिखायी गयी है. इंटरवल से लेकर क्लायमैक्स तक आपने सिर्फ उसे नीचे गिरते हुए ही देखा है. सेल्फ डिस्ट्रक्ट. दूसरी रोचक बात यह लगी कि एक ऐसा इंसान, जिसे ‘एंगर मैनेजमेंट का प्रौब्लम’ है, जो अपने प्वाइंट औफ यू से बाहर निकलकर दूसरे की बात समझना ही नहीं चाहता. वही इंसान एक लड़की से इतना प्यार करता है, कि एक बार प्यार कर लिया, तो उसके प्यार में खुद को ही बर्बाद कर लिया.

आपको नहीं लगता है कि यह जो गुस्से पर काबू न रख पाने वाली बात लोगों के गले नहीं उतरी?

शिक्षा ग्रहण करने के लिए लोग स्कूल व कालेज जाते हैं, सिनेमा देखने नहीं. फिल्म का काम नही है कि वह लोगों को शिक्षित करे. फिल्म का काम है जिंदगी को दर्शाना. ज्यादातर फिल्में जिंदगी को दर्शाती हैं. अब उस फिल्म को देखकर दर्शक क्या बाहर लेकर जाता है, यह तो उस पर निर्भर करता है. मेरी राय में दर्शक जो देखना था, जो समझना था, वह उसने किया. उसने एक प्रेम कहानी देखी. थिएटर से बाहर निकल तारीफ की. उसने कहानी के नएपन की भी तारीफ की.

यदि हम आपके सवाल के अनुसार देखें तो मिस्टर बच्चन ने एंग्री यंग मैन को किया. वह भी 15 साल पहले लगातार बीस साल तक. तो क्या वह गलत थे. हम कई एक्शन फिल्मों मे दिखाते हैं कि चोर, पुलिस को गोली मार देता है. तो क्या फिल्म देखकर बाहर निकलते ही दर्शक पुलिस को गोली मारने लगे. यह कहां की आउटडेटेड सोच है, मेरी समझ में नहीं आता. हम 2019 में यह बातें कर रहे हैं, जो कि फंडामेंटल औफ फिल्म मेकिंग है. ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के समय भी यह सवाल नहीं उठते थे.

फिल्म के प्रदर्शन को तीन माह हो गए. इस बीच किसी ने ऐसा कोई कमेंट किया हो, जो आपके दिल को छू गया हो?

ऐसी कुछ बातें हुई हैं, पर यह पर्सनल होती हैं, जिन्हें इस तरह से पब्लिक प्लेटफौर्म पर बोलना शायद सही ना हो. क्योंकि मैं किसी दूसरे एक्टर या कलाकार का नाम भी नहीं लेना चाहता हूं. लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया है. अच्छी-अच्छी बातें बोली. सबसे ज्यादा रिस्पांस जो मुझे मिला वह लड़कियों से मिला. लड़कियों ने कहा- ‘‘हमारी लाइफ में ऐसा लड़का क्यों नहीं आता है, जो हमें उस लेवल तक प्यार करें, जिस शिद्दत से कबीर ने प्रीति के साथ किया है. मेरी जिंदगी में ऐसा लड़का क्यों नहीं आता है, जो वैसा प्यार कर सके.’’ हमारी फिल्म का मकसद भी प्यार की इंटेंसिटी /संजीदगी को समझना था.

आपकी अगली फिल्म को रहस्य बना हुआ है?

फिल्म ही नहीं मेरी जिंदगी ही मेरे साथ रहस्य बनी हुई है. मैं तो यह घोषणा करने के लिए मरा जा रहा हूं कि मैं यह नई सर्वश्रेष्ठ फिल्म करने जा रहा हूं. मैं तो ‘कबीर सिंह’ के प्रदर्शन से पहले ही नई फिल्म अनुबंधित करना चाहता था. क्योंकि मैं घर पर खाली नहीं बैठना चाहता. फिलहाल मेरे पास कई चीजें आ रही हैं, जिन्हे पढ़ रहा हूं. और अभी तक किसी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंचा. जबकि कुछ पसंद आया है.

इन दिनों सोशल मीडिया पर जो नई पीढ़ी स्टार बन रही है, उन्हें अब फिल्म, टीवी सीरियल व वेब सीरीज में प्रधानता दी जा रही है. क्या किसी कलाकार के सोशल मीडिया के फालोअर्स बाक्स आफिस पर प्रभाव डालते हैं?

जी नहीं. क्योंकि सोशल मीडिया के फालोअर्स और बाक्स आफिस का सीधे कोई जुडाव ही नहीं है.फिर भी दोनो एक दूसरे से जुड़े हैं. लेकिन जरूरी नहीं है कि सोशल मीडिया पर अगर आपके बहुत सारे फालोअर्स हैं, तो वह आपकी फिल्म देखने भी आएंगे. या आपकी फिल्म को जितने दर्शकों ने देखा, उतने ही आपके फालोअर्स सोशल मीडिया पर होंगे. मगर आपकी फिल्में बाक्स आफिस पर ज्यादा सफल हो रही हैं, तो इसके चलते सोशल मीडिया पर आपके फालोअर्स बढ़ सकते हैं. लेकिन उससे आपकी फिल्म नहीं चलेगी.

लेकिन इन दिनों कुछ फिल्मकार कलाकार के सोशल मीडिया पर मौजूद फालोअर्स की संख्या देखकर कलाकारों को काम दे रहे हैं?

यदि ऐसा हो रहा है, तो यह अच्छी बात है. जैसे मैं आपको बता रहा था कि मुझे अपने संघर्ष के दिनो में अपनी फोटो लेकर एक औफिस से दूसरे औफिस के चक्कर लगाना पड़ रहा था. आज आप मुफ्त में इंस्टाग्राम या किसी अन्य सोशल मीडिया पर अपना खाता खोल लीजिए, उस पर अपनी तस्वीरें पोस्ट कर अपने टैलेंट को भारत ही नहीं पूरे विश्व के फिल्मकारों तक पहुंचा सकते हैं. अगर आपकी तस्वीर या आपके द्वारा पोस्ट किया गया वीडियो लोगों को पसंद आता है, तो उस आधर पर लोग आपको बुलाकर काम दे सकते हैं. मेरे हिसाब से यह अच्छा ही है. लोगों को अपनी प्रतिभा दिखने व कुछ अच्छा करने का मौका मिल रहा है. अच्छे-अच्छे टैलेंटेड लोग जो कहीं छिपे हुए थे, उनको मौका मिल रहा है. उन्हें कुछ दिखाने का मौका मिल रहा है. दूसरी बात यह कहां लिखा है कि फिल्म या टीवी में ही अपनी प्रतिभा दिखाना जरूरी है. लोग अपनी प्रतिभा सोशल मीडिया के माध्यम से भी लोगों तक पहुंचा सकते हैं. मुझे लगता है कई लोग सोशल मीडिया पर ऐसी परफार्मेंस कर जाते हैं, जो शायद मैं भी नहीं करता हूं.

आप सोशल मीडिया पर क्या लिखना व किस तरह की फोटो पोस्ट करना पसंद करता हैं?

सब कुछ मेरे मूड़ पर निर्भर करता है.

आप सोशल मीडिया को कितनी गंभीरता से लेते हैं?

मैं सोशल मीडिया पर काफी वक्त बिताता हूं. लेकिन इसे गंभीरता से बिलकुल नहीं लेता.

इसके अलावा क्या करना पसंद करते हैं?

फिलहाल तो परिवार और बच्चों के साथ समय बिताना ज्यादा पसंद है. मुझे ऐसा लगता है कि जब तक बच्चे पांच साल के ना हो जाएं, आप उनके साथ वक्त बिता सकते हैं. फिर वह स्कूल चले जाएंगे, उनके दोस्त बन जाएंगे और शायद ऐसा फिर मौका ना मिले. जब आप काम से लौटे, तो बच्चे आपका इंतजार करते मिले कि पापा मम्मी आप कहां थे. फिर कुछ साल बाद उल्टा हो जाएगा. मां-बाप अपने बच्चों के घर आने का इंतजार कर रहे होते हैं.उस वक्त बच्चों  के पास अपने माता पिता के लिए वक्त ही नही होता.इसलिए अभी मैं जितना समय दे सकता हूं,उतना देने की कोशिश करता हूं.

आपके दो बच्चे हैं. दोनों के साथ आपकी किस तरह की ट्यूनिंग है? फिलहाल किसमें क्या खूबी नजर आ रही है?

जेन छोटा है, लेकिन बहुत क्यूट है. मिशा बड़ी है, उसके साथ ज्यादा वक्त बिताती है. फिलहाल सबसे ज्यादा मजा दोनों को साथ साथ देखने में आता है. दोनों की आपस में रिलेशनशिप शुरू हो रही है. निशा तीन साल की है, जेड एक साल का है. तो आपस में उनका जो इंटरेक्शन है, वह किसी कौमेडी शो से कम नहीं है. दोनों को साथ में देखकर बहुत मजा आता है.

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हर कलाकार फिल्म प्रोडक्शन या लेखन या निर्देशन में कदम रख रहा है. आपने ऐसा कुछ नहीं सोचा?

कुछ तैयारी चल रही है. पर निर्देशन नहीं. फिल्म निर्माण करने की सोची है.

आप वेब सीरीज में अभिनय करना चाहेंगे?

वेब सीरीज के लिए समय बहुत चाहिए. अगर मुझे लगा कि मैं फिल्मों से अपना वक्त निकाल सकूंगा, तो जरूर करूंगा. देखिए, मैं मूंछ दाढ़ी चिपका कर एक साथ तीन तीन फिल्में नहीं कर सकता. मुझे हर किरदार में खुद को ढालना पसंद है. किरदार के अनुसार अपना लुक बदलना अच्छा लगता है. उसके बारे में सोचना और उसको धीरे धीरे अपने अंदर बिठाना मेरा ‘वर्क प्रोसेस’ है. इस वजह से मुझे एक फिल्म करने में आठ से नौ माह का वक्त लग जाता है.

जब आप कबीर सिंह जैसे किरदार में खुद को ढाल लेते है, तो उससे छुटकारा पाने के लिए क्या करते हैं ?

कुछ नहीं.. सर मैं घर आता हूं, बच्चों के साथ खेलता हूं. कबीर सिंह को भूल जाता हूं. कबीर सिंह के अंदर भी इतनी ताकत नहीं है कि वह मुझे मेरे बच्चों से जुदा करे.

कभी किसी किरदार ने…?

‘हैदर’ ने डिस्टर्ब किया था. लेकिन तब शादी नहीं हुई थी, बच्चे नहीं थे. इसलिए अकेलेपन में डिस्टर्ब हुआ था. लेकिन जब परिवार होता है, तो हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. ऐसे में हम किसी भी किरदार को घर पर नहीं ला सकते. ‘हैदर’ का समय अलग था, इसलिए उससे बाहर निकलने में मुझे थोड़ा वक्त लगा था.

क्लाइमेक्स पर पटवारी और पटवारियों की जंग! 

हुआ यूं कि एक आदमी ने नवाब साहब को गधा कह दिया इस पर ताव खाये नवाब साहब अदालत जा पहुंचे और उस आदमी पर मुकदमा ठोक दिया. जज साहब ने मामला सुना और फैसला नवाब साहब के हक में देते उस आदमी को नवाब साहब से माफी मांगने का हुक्म दिया. आदमी ने पूरी शराफत दिखाते नवाब साहब से माफी मांग ली फिर जज साहब की तरफ मुखातिब होकर पूछा हुजूर नवाब को गधा कहना गुनाह है लेकिन अगर मैं किसी गधे को नवाब कहूं तो यह तो जुर्म नहीं होगा न. जज साहब बोले नहीं होगा नहीं होगा इस पर आदमी नवाब साहब की तरफ मुड़कर बोला अच्छा चलता हूं नवाब साहब ….

चुटकुला पुराना है लेकिन मध्यप्रदेश के पटवारियों की हड़ताल पर फिट बैठता है जिन्हें लेकर  चार दिन पहले उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने बयान दे डाला था कि सभी पटवारी घूसखोर होते हैं इस आरोप से तिलमिलाए पटवारी काम काज ठप्प कर हड़ताल पर जाकर बैठ गए और ऐलान कर डाला कि जब तक उन्हें घूसखोर कहने वाले मंत्री जी माफी नहीं मांगेगे तब तक हड़ताल जारी रहेगी. तहसीलें और कलेक्ट्रेटों में सन्नाटा पसर गया और गुस्साए कई पटवारियों ने अपने बस्ते जमा करा दिये.

इधर हड़ताल से सूबे में हाहाकार मच गया. किसानों के कामकाज बंद हो गए बारिश से हुई फसलों का सर्वे ठप्प पड़ गया, जाति प्रमाण पत्र, राशन कार्ड बनना बंद हो गए और और भी बहुत कुछ हुआ जिससे सरकार सकते में आ गई. एक दफा इन्द्र देवता नाराज हो जाये या ब्रह्मा पृथ्वी का संचालन रोक दे तो नीचे वालों को कोई खास फर्क नहीं पड़ना लेकिन पटवारी अपनी पर आ जाये तो जरूर कहर सा आ जाता है . मध्यप्रदेश में भी यही हुआ कि एक मंत्री के बयान से पटवारियों की मुद्दत से सो रही गैरत जाग उठी और वे पटवारी संघ के बैनर तले  अड़ गए कि जीतू पटवारी माफी मांगे फिर ही कामकाज करेंगे नहीं तो अपना बस्ता सिरहाने रखकर सो ही रहे हैं जिससे जो बन पड़े सो कर ले.

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जीतू पटवारी भी खासे ठसक वाले मंत्री हैं. हंसी ठिठोली में पटवारियों को घूसखोर कह तो दिया पर यह बात उनकी शान के खिलाफ है कि वे पटवारी जैसे तुच्छ मुलाजिम से माफी मांगे लिहाजा गिट्टी सुलझने के बजाय और उलझ गई. आम लोग भी दो धड़ों में बंट गए एक का कहना था कि अब जो है सो है, हकीकत सब जानते हैं लेकिन सार्वजनिक मंच से ऐसा कम से कम किसी मंत्री को तो नहीं कहना चाहिए और जरूरी नहीं कि सभी पटवारी घूसखोर होते हों. दूसरी तरफ पटवारी पीड़ितों की राय यह थी कि इसमें गलत क्या, कौन नहीं जानता कि सभी पटवारी बिना घूस लिए कागज का तिनका भी इधर का उधर नहीं करते.

अब बहस बजाय घूसखोरी के इस मुद्दे पर आकर ठहर गई कि सभी पटवारी घूसखोर होते हैं या नहीं और घूसखोरों को घूसखोर कहना कौन सा गुनाह है. जब बवंडर बढ़ने लगा, 24 महकमों के कामकाज पर फर्क पड़ने लगा और किसान हाय हाय करने लगा कि पटवारी जैसे भी हैं ठीक हैं, इस हड़ताल से सबसे ज्यादा नुकसान तो हमारा हो रहा है लिहाजा यह हड़ताल खत्म होना चाहिए. बात सच भी है कि किसान और पटवारी का रिश्ता पीढ़ियों पुराना है आदिकाल से किसान नामांतरण, बटान, वही और खसरा खतौनी बगैरह के लिए घूस दे रहा है और पटवारी ले रहा है. और जब इस सनातनी रिश्ते को दोनों पक्षों ने दहेज की तरह स्वीकार कर रखा है तो मंत्री जी होते कौन हैं. काजीगिरी करने वाले और कर ही दी है तो अब सुलझाएं मसला और हमारे काम सुचारु रूप से होने दें.

चार में से दो दिन आरजू और दो इंतजार में कट गए कि अब शायद हड़ताल खत्म हो जाएगी और मामले की नजाकत देखते मंत्री जी माफी मांग लेंगे उनका तो सरनेम ही पटवारी है. लिहाजा उन्हें पटवारी बिरादरी पर यूं उंगली नहीं उठानी चाहिए अब घूस कौन नहीं खाता थाने के सिपाही से लेकर आला पुलिस अफसरों की चुनरी कौन सी बेदाग है. अदालत का क्लर्क तो सरेआम जज के सामने टेबल के नीचे से तारीख बढ़ाने के पैसे लेता है और जज साहब ऐसे अंजान बने रहते हैं मानों काली पट्टी न्याय की देवी वाली मूर्ति की नहीं बल्कि उनकी आखो पर बंधी हो. सरकारी अस्पताल में इलाज तभी होता है जब लोग डाक्टर, कंपाउंडर, नर्स, वार्ड बौय , दाई आदि आदि की जेब गरम नहीं कर देते सार ये कि घूस सर्वत्र है, सर्वव्यापी और सर्वमान्य है तो गाज बेचारे पटवारियों पर ही क्यों.

बात सच है लेकिन दिक्कत यह है कि वाकई पटवारियों को बिना घूस लिए काम न करने की लत पड़ गई है दूसरे महकमों में तो कभी कभार बिना लेनदेन के भी काम हो जाते हैं यानि डिस्काउंट मिल जाता है. मिसाल मध्यप्रदेश की ही लें तो वहां हर महीने कम से कम डेढ़ दर्जन भर पटवारी घूस लेते धरे जाते हैं जबकि पहले ऐसा नहीं था पटवारी कभी कभार ही पकड़ाता था. हकीकत में इसकी अपनी वजहें भी हैं जिन्हें कोई जीतू पटवारी दिग्विजय सिंह या कमलनाथ नहीं समझ सकते कि गड़बड़ कहां से शुरू हुई और क्यों कभी खत्म नहीं होगी.

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बहुत कम शब्दों में बयां करें तो आजादी से पहले और आजादी के सालों बाद तक 80 से 90 फीसदी पटवारी कायस्थ जाति के हुआ करते थे जो गुणा भाग के अलावा जोड़ तोड़ में भी माहिर होते थे वे अधिकतर सालाना एक मुश्त रिश्वत खाते थे और सरकार और किसानों के बीच पुल का भी काम करते थे. घूस को उन्होंने भी अनिवार्य बना रखा था लेकिन उनका तरीका अलग था. वे घूस लेने नहीं जाते थे बल्कि घूस उनके पास चलकर आती थी ठीक वैसे ही, जैसे पंडे पुजारियों के पास दान दक्षिणा खुद दौड़कर आते हैं. जब पटवारी भर्तियों में जाति का यह अघोषित आरक्षण दरका तो किसान परेशान होने लगे क्योंकि दूसरी जाति के पटवारियों ने रोज एक अंडे के बजाय पूरी मुर्गी ही हलाल करना शुरू कर दिया.

इधर किसानों को भी जागरूकता के चलते यह समझ आया कि पटवारी तो सरकारी मुलाजिम होता है जिसे पगार मिलती है तो हम क्यों बात बात पर घूस दें. लिहाजा उन्होंने शिकायतें करना शुरू कर दीं नतीजतन पटवारी भी घूस लेते पकड़ाने लगे. अब हालत यह है कि दो चार दिन किसी पटवारी के घूस लेते पकड़ाये जाने की खबर अखबारों में न छ्पे तो उनके हड़ताल पर होने का शक गहराने लगता है.

पटवारी चूंकि सबसे ज्यादा मलाईदार पोस्ट है इसलिए हर कोई पटवारी बनने को बेताब होने लगा. एक वक्त में कायस्थों को यह नौकरी मुफ्त में मिल जाती थी वह लाखों में बिकने लगी तो शामत किसानों की आने लगी. इस घूस की कीमत भी उन्हें ही चुकाना पड़ रही है जो पटवारी बनने उम्मीदवार देता है. अब तो हालत यह है कि पटवारी 56 इंच का सीना तानकर कहते नजर आते हैं कि यह घूस कोई अकेले हम नहीं डकार जाते बल्कि तहसीलदार, कलेक्टर, कमिश्नर और रेवेन्यू मिनिस्टर तक का हिस्सा इसमें रहता है. जो हमें घूसख़ोरी के लिए मजबूर करते हैं. और हम ऐसा न करें तो हर कभी हमारा तबादला कर और दूसरे तरीकों से भी हमें परेशान किया जाता है.

भोपाल के एक पटवारी की मानें तो सच यही है कि बंदर बांट तो होती है ऐसे में मीडिया का रोल अहम हो जाता है जो गांव गांव जाकर किसानों के इंटरव्यू लेकर उनसे उगलवा तो रहा है कि पटवारी बिना घूस के कोई काम नहीं करते लेकिन यह सच नहीं दिखा पा रहा कि घूस ऊपर तक जाती है.

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मौजूदा हड़ताल को लेकर जीतू पटवारी और सभी पटवारी भी चाहते हैं कि मामला जल्द रफा दफा हो लेकिन दिलचस्प दिक्कत यह पेश आ रही है कि अगर पटवारी, बिना पटवारी के माफी मांगे हड़ताल खत्म कर देंगे तो उन पर घूसख़ोरी का ठप्पा ठीक वैसे ही लग जाएगा जैसे दीवार फिल्म में अमिताभ बच्चन की बांह पर लिखा था कि मेरा बाप चोर है. इधर जीतू पटवारी की दिक्कत उनकी ठसक और अड़ियलपन है जिसके चलते यह हड़ताल खत्म होते होते रह गई . 6 अक्तूबर को मुख्यमंत्री कमलनाथ की पहल पर राजस्व मंत्री गोविंद सिंह हड़ताली पटवारियों से मिले और जाने कौन सी घुट्टी पिलाई की शाम होते होते पटवारियों ने हड़ताल खत्म करने का ऐलान कर दिया. इससे संदेशा यह गया कि जीतू पटवारी ने माफी मांग ली है .

जैसे यह हल्ला मचा तो जीतू पटवारी ने इंदौर में मीडिया के सामने प्रकट होकर साफ साफ कह दिया कि उन्होंने कोई माफी नहीं मांगी है. हां खेद जरूर जताया था तो 2 घंटे बाद पटवारियों ने फिर हड़ताल का ऐलान कर डाला. अब तक पटवारी माफी के साथ साथ सातवे वेतन आयोग की पगार के साथ साथ दूसरी मांगों का भी पिटारा खोल चुके थे. पटवारी संघ के महासचिव धर्मेंद्र शर्मा के मुताबिक सभी पटवारी जीतू पटवारी के बयान से आहत हुये हैं.

अब दिक्कत में मुख्यमंत्री कमलनाथ हैं कि कैसे मामला सुलझाएं. जीतू पटवारी के राजनैतिक गुरु पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी हड़ताल को लेकर ट्वीट कर डाला कि पटवारी घूस लेते तो हैं अगर वे घूस न खाएं तो नेताओं को उनसे क्या दिक्कत. दिग्विजय सिंह बेवजह इस झगड़े में नहीं कूदे हैं बल्कि उनका मकसद कमलनाथ के लिए दिक्कतें खड़ी करना है. इससे भी मामला और गर्मा उठा  बीच का रास्ता ढूंढ रहे नेता अफसर हैरान परेशान हैं कि कैसे पटवारी और पटवारियों की इस जंग में सुलह करवाई जाये जिससे सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. हाल फिलहाल तो पटवारियों की एकजुटता देख लग यही रहा है कि झुकना पटवारी को ही पड़ेगा. फिए भले ही वह यह बयान दे दें कि सभी पटवारी घूसखोर नहीं होते .

यानी नवाब साहब कहलाएंगे तो गधे ही.    

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कायरव की कस्टडी छीन जाने के बाद नायरा हो जाएगी गायब

टीवी का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में दर्शकों को लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे है. फिलहाल इस सीरियल की कहानी कायरव के कस्टडी केस के इर्द गिर्द घुम रही है. इस केस के कारण कार्तिक और नायरा में लड़ाई बढ़ते जा रही है.

इस शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि आखिरकार कार्तिक ही कायरव की कस्टडी केस जीतता है. लेकिन कार्तिक के पास कायरव की कस्टडी केस आने से कार्तिक नायरा के रिश्ते पर असर तो पड़ता ही है. इसके अलावा कायरव पर भी असर पड़ता है.

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आपको बता दें, कार्तिक के पास कायरव की कस्टडी केस आने के बाद नायरा कछ दिनों के लिए शो से गायब हो जाएगी. जिसके कारण कायरव काफी परेशान हो जाएगा. तो उधर कार्तिक अपने बेटे के लिए नायरा को वापस लाने के लिए जिम्मेदारी लेगा.

तो वही दूसरी ओर वेदिका नहीं चाहती है कि कायरव का कस्टडी केस कार्तिक को मिले. क्योंकि वेदिका ये सोचती है कि अगर कार्तिक को कायरव की कस्टडी केस मिल जाती है तो कायरव कार्तिक के पास रहेगा और कार्तिक नायरा की यादों में खोया रहेगा, उन यादों से कभी नहीं निकल पाएगा. इन सब के बीच कायरव को कार्तिक के साथ देख वेदिका परेशान हो जाएगी.

खबरों के अनुसार अपकमिंग एपिसोड कार्तिक और नायरा की लव स्टोरी एक नया मोड़ ले सकती है. जी हां, कार्तिक और नायरा सारी गलकफहमियों को किनारा कर एक हो सकते हैं. दर्शकों के नायरा कार्तिक की ये नयी लव स्टोरी काफी पसंद आएगी. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या वाकई में कार्तिक और नायरा एक हो जाएंगे. वेदिका इन दोनों को दूर करने के लिए फिर कौन सी नई चाल चलेगी.

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ऐसे बनाएं कुरकुरी नमकीन कचोरी

त्यौहारों का सीजन चल रहा है. जाहिर सी बात है, ऐसे में आप तरह तरह के डिश बनाती होगी. तो आइए आपको कुरकुरी नमकीन बनाने की रसिपी बताते है, जो आप मेहमनों और फैमिली को सर्व कर सकती हैं और उन्हें काफी पसंद भी आएगा.

सामग्री

गेहूं का आटा (1 कटोरी)

मैदा (1 कटोरी)

मोयन का तेल (2 चम्मच)

नमक (स्वादानुसार)

अजवाइन (कम मात्रा में)

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भरावन सामग्री :

1 कटोरी बेसन, धनिया, गरम मसाला, मोयन का तेल, नमक, लाल मिर्च, जीरा, सौंफ, तिल्ली.

बनाने की विधि

सबसे पहले आटे में सब सामग्री मिलाकर पूड़ी जैसा आटा गूंथ कर थोड़ी देर के लिए रख दें.

अब बेसन में सारे मसाले और इतना मोयन डालें कि उसकी गोली बन जाए, उसे छोटी छोटी गोलियां बना लें.

अब आटे की लोई बनाकर पूरी बेलें, फिर उसमें बेसन की गोली रखकर हाथ से गोल-गोल दबाते हुए कचोरी बना लें.

एक कड़ाही में तेल गरम करके धीमी आंच पर कचोरी कुरकुरी होने तक तल लें.

गरमा-गरम कचोरी को चटनी के साथ सर्व करें.

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अनोखा प्रेमी : भाग 2

नारी को एक प्राकृतिक उपहार प्राप्त है कि वह पुरुष के मन की बात बगैर कहे ही जान लेती है. इसीलिए संध्या को सुधांशु का झुकाव भांपने में देर नहीं लगी. आखिर एक दिन इन अप्रत्यक्ष भावनाओं को शब्द भी मिल गए, सुधांशु ने अपने प्रेम का इजहार कर दिया. प्रतीक्षारत संध्या का रोमरोम पुलकित हो उठा.
संध्या में उल्लेखनीय परिवर्तन आने लगा. अपने हृदय के जिस कोने को वह अब तक टटोलने से डरती थी, उसे अब उड़ेलउड़ेल कर निकालने को इच्छुक हो उठी थी. संध्या हमेशा सुधांशु की ही यादों में खोई रहती. हमेशा खामोश, नीरस रहने वाली संध्या अब गुनगुनाती, मुसकराती देखी जाने लगी.

संध्या ने एक दिन मां को सबकुछ बता दिया. मां को तो सुधांशु पसंद था ही, वह खुश हो गईं. पापा भी उसे पसंद करते थे. आखिर एक दिन पापा ने सुधांशु से उस के पिताजी का पता मांग लिया. वे वहां जा कर शादी की बात करना चाहते थे. सुधांशु ने बताया कि अगले महीने ही उस के पिताजी पटना आ रहे हैं, यहीं बात कर लीजिएगा.

3 महीने बीत गए, सुधांशु के पिताजी नहीं आए. सुधांशु ने भी धीरेधीरे आनाजाना बहुत कम कर दिया. एक सप्ताह तक सुधांशु संध्या से नहीं मिला तो वह सीधे उस के औफिस जा पहुंची. वहां पता चला कि आजकल वह छुट्टी पर है. संध्या सीधे सुधांशु के घर जा पहुंची और दरवाजा खटखटाया. सुधांशु ने ही दरवाजा खोला, ‘अरे, संध्या, तुम. आओ, अंदर आओ.’

‘यह क्या मजाक है, सुधांशु, तुम एक सप्ताह से मिले भी नहीं, और…’ संध्या गुस्से में कुछ और कहती कि उस ने सामने बालकनी में एक लड़की को देखा, तो अचानक चुप हो गई.

सुधांशु ने चौंकते हुए कहा, ‘अरे, मैं परिचय कराना तो भूल ही गया. आप संध्याजी हैं, मेरी फैमिली फ्रैंड, और आप हैं, रूपाली मेरी गर्लफ्रैंड.’
इस से पहले कि संध्या कुछ पूछती, सुधांशु ने थोड़ा झेंपते हुए कहा, ‘बहुत जल्दी ही रूपाली मिसेज रूपाली बनने वाली हैं. अरे, रूपाली, संध्या को चाय नहीं पिलाओगी.’

संध्या को मानो काटो तो खून नहीं. उसे यह सब अजीब लग रहा था. उस का मन करता कि सुधांशु को झकझोर कर पूछे कि आखिर यह सब क्या कह रहे हो.
रूपाली रसोई में गई तो संध्या ने आंखों में गुस्सा जताते हुए कहा, ‘सुधांशु, प्लीज, मजाक की भी कोई सीमा होती है. यह क्या कि जो मुंह में आया बक दिया.’

‘यह मजाक नहीं, सच है संध्या, कि हम दोनों शादी करने वाले हैं,’ सुधांशु ने बेहिचक कहा. संध्या को लगा मानो वह फफक कर रो पड़ेगी. वह झटके से उठी और बाहर चली गई.

वह कैसे घर पहुंची, उसे होश भी नहीं था. घर पहुंच कर देखा तो सामने मां बैठी थीं. वह अपनेआप को रोकतेरोकते भी मां से लिपट गई और फफक कर रो पड़ी. मां ने भी कुछ नहीं पूछा. वह जानती थी कि रोने से मन हलका होता है.
इस घटना से संध्या को बहुत बड़ा आघात लगा. वह इस बेवफाई की वजह जानना चाहती थी. पर उस का अहं उसे पूछने की इजाजत नहीं दे रहा था. संध्या एक समझदार लड़की थी, इसीलिए सप्ताहभर में ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया. वह फिर से शांत और खामोश रहने लगी थी. धीरेधीरे सुधांशु के प्रति उस की नफरत बढ़ती गई. उधर सुधांशु ने भी अपना तबादला रांची करवा लिया और संध्या से दूर चला गया.

इस समूची घटना से पूरे परिवार में सब से ज्यादा आहत संध्या के पापा थे. ऐसा लगता था जैसे मौत ने जिंदगी को परास्त कर उन्हें काफी पीछे ढकेल दिया है. मीनू भी इन दिनों संध्या का कुछ ज्यादा ही खयाल करने लगी थी. मां की डांट न जाने कहां गायब हो गई थी. संध्या को लग रहा था कि वह आजकल सहानुभूति की पात्र बन चुकी है. यह एहसास उसे सुधांशु की बेवफाई से कहीं ज्यादा ही आहत करता था.

एक दिन संध्या ने पापा से मनोहर बाबू के साथ रिश्ते की स्वीकृति दे दी.
संध्या की शादी हो गई. मनोहर बाबू के साथ एडजस्ट होने में संध्या को तनिक भी परेशानी महसूस नहीं हुई. संध्या ने पूरे परिवार का दिल जीत लिया.
आज शादी को 4 साल बीत गए हैं, मगर संध्या को पता है कि उस के लिए जीवन मात्र एक नाटक का मंच बन कर रह गया है. संध्या एक पत्नी, एक बहू, एक प्रोफैसर और एक मां बन कर तो जी रही थी, मगर सुधांशु के उस अमानवीय तिरस्कार से इतनी आहत हुई थी कि उसे पुरुष शब्द से ही नफरत हो गई थी. यही वजह थी कि वह मनोहर बाबू के प्रति आज तक भी पूरी तरह समर्पित नहीं हो पाई है.

बैरे ने कौफी ला कर मेज पर रखी, तब अचानक ही संध्या की तंद्रा टूटी. इस से पहले कि वह रूपाली से कुछ पूछती, एक पुरुष की आवाज पीछे से आई, ‘‘ओह, रूपाली, तुम यहां बैठी हो, और मैं ने सारा सुपर मार्केट छान मारा.’’
‘‘ये मेरे पति हैं, विक्रम,’’ रूपाली ने परिचय कराया, ‘‘और यह मेरी मित्र संध्या.’’

‘‘हेलो,’’ बड़े सलीके से अभिवादन करता हुआ विक्रम बोला, ‘‘अच्छा आप लोग बैठो, मैं सामान की पैकिंग करवा कर आता हूं,’’ और सामने वाली दुकान पर चला गया.

‘‘तुम चौंक गईं न,’’ रूपाली ने मुसकराते हुए संध्या से कहा.
‘‘तो तुम्हें भी सुधांशु ने धोखा दे दिया? इतना गिरा हुआ इंसान निकला वह?’’
‘‘नहीं संध्या, सुधांशुजी बेहद नेक इंसान हैं. उस दिन तुम ने जो कुछ देखा वह सब नाटक था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो, तुम?’’ संध्या लगभग चीख उठी थी.
रूपाली संध्या को हकीकत बयां करने लगी.

‘‘सुधांशु मुझे ट्यूशन पढ़ाया करता था. एक दिन सुधांशु को परेशान देख कर मैं ने कारण पूछा. पहले तो सुधांशु बात को टालता रहा, फिर उस ने तुम्हारे साथ घटी पूरी प्रेमकहानी मुझे सुनाई कि मेरी बड़ी बहन शोभा ने पटना आते वक्त उसे तुम्हारे बारे में काफीकुछ बता दिया था कि तुम हीनभावना की शिकार हो.

‘‘मनोविज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते सुधांशु को यह समझने में तनिक भी देर नहीं लगी कि तुम्हारे इस हीनभावना से उबारने का क्या उपाय हो सकता है. पहले तो सुधांशु ने तुम्हारे मन में दबे हुए आत्मविश्वास को धीरेधीरे जगाया, जिस के लिए तुम से प्रेम का नाटक करना जरूरी था.’’

‘‘लेकिन इस नाटक का फायदा?’’ संध्या आगे जानने के लिए जिज्ञासु थी.
‘‘इसीलिए, कि तुम मनोहर बाबू से विवाह कर लो.’’

‘‘लेकिन तुम और सुधांशु भी तो शादी करने वाले थे. उस दिन सुधांशु ने कुछ ऐसा ही कहा था.’’

‘‘वह भी तो सुधांशु के नाटक का एक अंश था,’’ रूपाली ने कौफी का प्याला उठा कर एक घूंट भरते हुए आगे कहा, ‘‘संध्या, मैं भी तुम्हारी तरह उन की एक शिकार हूं, मैं रंजीत से प्रेम करती थी. रंजीत ने किसी और लड़की से शादी कर ली, तो मैं इतना आहत हुई कि अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी थी. डाक्टरों ने मुझे मानसिक आघात का पहला चरण बताया. उन्हीं दिनों पिताजी को सुधांशुजी मिल गए और मुझे सुधांशुजी ने अपनी चतुराई से उस कुंठा से बाहर निकाला और जिंदगी से प्रेम करना सिखाया. उन दिनों सुधांशु से मैं प्रभावित हो कर उन से प्रेम करने लगी थी. लेकिन उन्होंने तो बड़ी शालीनता से, बड़े प्यार से मुझे समझाया कि वे मुझ से शादी नहीं कर सकते हैं.’’

‘‘हां, लड़कियों के दिलों से खेलने वाले लोग भला शादी क्यों करने लगे?’’ संध्या बोल पड़ी.

‘‘नहीं संध्या, नहीं,’’ बीच में ही बात काट कर रूपाली ने कहा, ‘‘उन्होंने मुझे कसम दिलाई थी, पर अब मैं वह कसम तोड़ रही हूं. आज मैं सबकुछ तुम्हें बता दूंगी. सुधांशुजी को गलत मत समझो. उन्होंने कभी किसी से कोई फायदा नहीं उठाया है.

‘‘असल में सुधांशुजी इसलिए शादी नहीं करना चाहते, क्योंकि उन की जिंदगी, मौत के दरवाजे पर दस्तक दे रही है. सुधांशु को ब्लड कैंसर है.’’
मौन, खामोश संध्या की आंखों से आंसू, बूंद बन कर टपक पड़े. रूमाल से आंख पोंछती हुई संध्या ने भरे गले से पूछा, ‘‘अब वे कहां हैं?’’

‘‘पता नहीं, जाते वक्त मैं ने लाख पूछा, मगर वह मुसकरा कर टाल गए,’’ रूपाली ने एक पल रुक कर फिर कहा, ‘‘सुधांशुजी जहां भी होंगे, किसी न किसी रूपाली या संध्या के जीवन का आत्मविश्वास जगा रहे होंगे.’’

रूपाली तो चली गई, पर संध्या को लग रहा था कि अगर आज रूपाली नहीं मिलती तो जीवनभर सुधांशु के बारे में हीनभावनाएं ले कर जीती रहती. सुधांशु जैसे विरले ही होते हैं जो अपनी नेकनामी की बलि चढ़ा कर भी परोपकार करते रहते हैं.

खाने के बाद भूलकर भी न करें ये 6 काम

रवि जबसे रांची से मुम्बई काम के लिए आया है, उसका पाचनतन्त्र बिल्कुल बिगड़ गया है. इसकी वजह है जल्दीबाजी, तनाव, भागमभाग और किसी भी चीज के लिए वक्त न होना. इन सारी बातों ने एकजुट होकर उसकी सेहत खराब कर दी है. साल भर के अन्दर उसका दस किलो वजन घट गया है. फिर उस पर कभी एसिडिटी और जलन तो कभी लूज मोशन लग जाते हैं. कभी-कभी तो रात भर वह गैस के मारे बेचैन रहता है. दरअसल वक्त की कमी के कारण रवि दौड़ते-भागते नाश्ता करता है, उसके बाद तुरंत नहा लेता है. रात में भी खाना खाते-खाते उसको ग्यारह बज जाते हैं और खाने के तुरंत बाद वह सोने के लिए बिस्तर पर गिर जाता है. जबकि रांची में जब वह अपने घर पर था तब उसके पास नाश्ते, खाने और नहाने के बीच काफी वक्त होता था. वहां उसकी सेहत बिल्कुल दुरुस्त थी.

आजकल की भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल के चलते हमारे खाने, नहाने, सोने आदि का कोई तय समय नहीं होता है. जब भी समय मिला तब कर लिया. बस इन्हीं बातों का हमारी सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है और हम बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. डौक्टर कहते हैं कि अगर अच्छी सेहत पानी है तो खानपान से लेकर तमाम दिनचर्या को समय से किया जाना बहुत जरूरी है. कुछ काम ऐसे हैं जो खाने या नहाने के तुरंत बाद तो कतई नहीं करने चाहिए. आइये जानते हैं वह बातें जिनसे बचना ही हमारी सेहत के लिए अच्छा है –

  1. खाने के तुरंत बाद न सोएं

महानगरों में हमारा बहुत सारा वक्त दफ्तर से घर आने-जाने में बर्बाद हो जाता है. कुछ लोग तो डेढ़ दो घंटे बस या मेट्रो का सफर तय करके घर पहुंचते हैं. नतीजा उनके पास शाम को अपने लिए वक्त ही नहीं रहता. बस फटाफट खाना बनाया, खाया और बिस्तर पर पहुंच गये सोने के लिए. दिन भर की थकान और खाना खाने के बाद आलस्य भी घेर लेता है. मगर क्या आप जानते हैं कि खाना खाने के तुरंत बाद सो जाना आपकी सेहत के लिए बहुत हानिकारक है. ऐसा करने से जहां आपका मोटापा बढ़ता है, वहीं पाचन सम्बन्धी कई विकार पैदा हो जाते हैं. जैन सम्प्रदाय के लोग तो रात का खाना सूर्य डूबने से पहले ही खा लेते हैं, ताकि खाने और सोने के बीच पर्याप्त समय हो. मगर महानगरों में नौकरीपेशा लोगों के लिए ऐसा करना सम्भव नहीं है. ऐसे में इतनी कोशिश तो जरूर करनी चाहिए कि आपके रात के खाने और सोने के बीच कम से कम डेढ़ से दो घंटे का गैप रहे. इससे आपका पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है. खाना भली प्रकार पचता है और गैस या एसिडिटी की शिकायत नहीं होती है. बेहतर होगा कि खाना खाने के आधे घंटे बाद आप थोड़ा खुली हवा में निकल जाएं और आधे घंटे हल्के-हल्के चहलकदमी करें. इससे आपका तन-मन फ्रेश होगा और तनाव से भी मुक्ति मिलेगी.

2. खाने के बाद फल न खायें

कहा जाता है कि खाने के बाद फल या मीठा जरूर खाना चाहिए लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि खाना खाने के तुरंत बाद फल खाना सेहत की दृष्टि से कतई ठीक नहीं होता है. खाना और फल दोनों दोनों का एकसाथ सेवन करने से हमें पेट संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए हमें खाने के बाद फल नहीं खाना चाहिए. रात के खाने के बाद तो फल  बिल्कुल नहीं खाने चाहिएं. फल खाने का सही समय नाश्ते और लंच के बीच का है. यह वक्त फल खाने के लिए बेहतर माना गया है.

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3. खाने के बाद न नहाएं

स्वस्थ्य शरीर के लिए सही समय पर नहाना और खाना बहुत जरूरी है. बहुत से लोग खाना खाने के बाद ही नहाना पसंद करते हैं लेकिन इससे उनकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि खाना खाने के बाद नहाने से जो खून हमारे अमाशय की ओर खाने को पचाने में सहायता पहुंचाने के लिए जाता है, वह नहाने के कारण शरीर में पैदा होने वाली ठंड से लड़ने के लिए वापस दूसरे अंगों की ओर पलटने लगता है, इससे हमारी पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है और कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं. सुबह उठ कर नहाने और उसके आधे घंटे बाद ही भोजन करने को सही माना जाता है. ठंडे पानी से नहाने के कारण हमारे अंग ठंडे होते हैं, इनको गर्माहट देने के लिए रक्त का संचार हाथों-पैरों और दिमाग की ओर होता है. आधे घंटे में यह अपना काम कर लेता है. इसके बाद जब हम भोजन करते हैं तो भोजन को पचाने के लिए अब रक्त का संचार अमाशय की ओर ज्यादा होता है. इसलिए भोजन हमेशा नहाने के आधे घंटे बाद ही ग्रहण करना चाहिए.

4. खाने के बाद चाय-कौफी न पियें

कुछ लोग चाय के बहुत ज्यादा शौकीन होते हैं. उन्हें इस चीज की लत सी लग जाती है. इसी कारण वह खाना खाने के बाद तुरंत बाद चाय पी लेते है, लेकिन आप जानते हैं कि इससे आपको पाचन संबंधी कई समस्या हो सकती हैं. खाने के बाद चाय-कौफी पीने से एसिडिटी की समस्या होने लगती है, जो बाद में अल्सर जैसे रोग को जन्म देती है.

5. खाने के बाद न करें धूम्रपान

हमारे आस-पास कई ऐसे लोग होते हैं कि जो खाना खाने के बाद तुरंत स्मोकिंग करते हैं. ऐसा करना भी सेहत के लिए काफी हानिकारक होता है. खाना खाने के बाद शरीर का अधिकतर रक्त खाना पचाने के लिए फेफड़ों से आवश्यक ऑक्सीजन लेकर अमाशय की ओर जाता है. ऐसे में स्मोकिंग करने से शरीर में कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ती है जो शरीर और दिमाग को नुकसान पहुंचाती है.

6. खाने के बाद थोड़ा टहलें

खाना खाने के बाद थोड़ा चलने से हमारा खाना ठीक ढंग से पच जाता है. मगर खाने के तुरन्त बाद नहीं, बल्कि आधा घंटा गुजर जाने के बाद ही आप टहलने के लिए जाएं. खाने के तुरंत बाद टहलने से हमारे पूरे शरीर को पोषण नहीं मिल पाता है और इससे हमारी पाचन क्रिया भी कमजोर हो जाती है. खाने के बाद कभी भी जौगिंग या दौड़ नहीं लगानी चाहिए. हल्के कदमों से धीरे-धीरे टहलना ही अच्छा होता है.

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शातिर बहू की चाल: भाग 2

शातिर बहू की चाल: भाग 1

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आखिरी भाग

सतनाम कौर ने पूरी बिरादरी में हरजोत और उस के बच्चों, जो कि उन के पोतापोती थे को बदनाम कर रखा था. इस घटना से 2 सप्ताह पहले हरजोत कौर यह शिकायत ले कर अपने मामा ससुर यानी सतनाम कौर के भाई राजिंदर सिंह के पास गई थी कि वह अपनी बहन को समझाएं.

वह उसे और उस के बच्चों को बेवजह बदनाम करना छोड़ दें. नहीं तो वह जहर खा कर आत्महत्या कर लेगी. राजिंदर सिंह ने सतनाम कौर को समझाया भी था, लेकिन सतनाम कौर अपनी आदत से बाज नहीं आई थीं. इसलिए हरजोत कौर ने अपनी सास को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली थी.

अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने ये सारी बातें विक्रमजीत को बताईं. विक्रम नशे का आदी था. सो थोड़ा सा नशा करने के बाद वह हरजोत का साथ देने के लिए तैयार हो गया. रिमांड के दौरान दिए गए अपने बयान में हरजोत ने बताया कि उस ने पति के जीवित रहते 2 साल पहले अपनी सास की कोठी की रेकी कर ली थी.

अब ताजा स्थिति में उस ने आदर्श नगर जा कर यह देखा था कि सतनाम कौर की कोठी तक पहुंचने के लिए रास्ते में किनकिन सीसीटीवी कैमरों का सामना करना पड़ सकता है. नए हिसाब से उस ने नई योजना तैयार की थी.

घटना वाले दिन 29 मार्च को वह अपनी एक्टिवा पर सवार हो कर विक्रम के साथ सतनाम पुरा पहुंची. विक्रम ने उस से 500 रुपए मांगे और पैसे ले कर पहले नशा किया. इस दौरान वह एक दुकान पर बैठ कर बर्गर खाती रही. इस के बाद दोनों सतनाम कौर की आदर्श नगर स्थित कोठी पर पहुंचे.

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सतनाम कौर उसे देखते ही भड़क उठी और दोनों को वहां से चले जाने को कहा, लेकिन कोई जरूरी बात करनी है. बोल कर दोनों सतनाम के बेडरूम में बैठ गए. फिर मौका पाते ही विक्रम ने अपने गले में डाला हुआ काले रंग का साफा सतनाम के गले में डाल दिया, फिर दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

आदर्शनगर, सतनामपुरा इलाके में सतनाम कौर कोठी नंबर 534 बी की ऊपरी मंजिल पर अकेली रहती थी. जबकि कोठी की नीचली मंजिल पर संदीप शर्मा व रामशरण 2 लोग किराए पर रहते थे. दिनांक 29 मार्च की सुबह किराएदार अपने काम पर चले गए थे, और देर रात घर लौटे थे. आ कर दोनों सो गए थे.

30 तारीख की सुबह जब किराएदार अध्यापक संदीप शर्मा ऊपर गया तो सतनाम कौर को आवाजें लगाने पर भी जब कोई आवाज नहीं आई, तो उसे शक हुआ. उस ने ऊपर जा कर देखा तो सतनाम कौर को मरा पाया और पुलिस को सूचना दे दी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर काले रंग का साफा बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने सतनाम कौर का गला घोंट कर हत्या की थी. पुलिस ने आननफानन में 24 घंटे के भीतर सतनाम कौर के हत्यारों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

आरोपियों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पर एक बात अभी तक पुलिस को हजम नहीं हो रही थी कि हरजोत कौर ने बिना किसी विरोध के साथ अपना अपराध स्वीकार कैसे कर लिया.

जबकि हत्या जैसा संगीन अपराध कोई भी आरोपी इतनी आसानी से कबूल नहीं करता. पुलिस ने पूरे मामले की दोबारा गहनता से जांच की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. 2 दिन बाद इस मामले में अचानक एक नया मोड़ आ गया.

पुलिस ने इस केस की एक और अभियुक्त  अंजू को हिरासत में ले लिया. पूछताछ के दौरान उस ने स्वीकार किया कि उस ने हरजोत के कहने पर विक्रम के साथ जा कर सतनाम कौर की हत्या की थी.

हरजोत कौर तो मौकाएवारदात पर गई ही नहीं थी. दरअसल सीसीटीवी फुटेज को बारीकी से चेक करने पर पुलिस को पता चला था कि एक्टिवा पर सवार औरत की कद काठी और उस समय पहने हुए कपड़े हरजोत से मेल नहीं खा रहे थे.

जब हरजोत से दोबारा सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने सब सच उगल दिया. वह और विक्रम अब तक पुलिस से झूठ बोलते आए थे. दरअसल, पुलिस को गुमराह करने और जांच की दिशा भटकाने के लिए यह हरजोत की चाल थी.

अंजू कई सालों से हरजोत के घर काम करती थी और उसी गांव की रहने वाली थी. हरजोत ने उसे अपनी बातों के जाल में फंसा कर इस काम के लिए राजी किया था. अंजू के अनुसार उस ने यह काम पैसों या किसी अन्य लालच में नहीं किया था.

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वह हरजोत को अपनी बड़ी बहन जैसी मानती थी. हरजोत ने इसी बात का फायदा उठाया था. घटना वाले दिन 29 मार्च को अंजू, विक्रम और हरजोत तीनों एक साथ सतनामपुरा आए थे. हरजोत बर्गर की एक दुकान पर रुक गई थी और अंजू विक्रम के साथ हरजोत की एक्टिवा पर घटना को अंजाम देने सतनाम कौर के घर पहुंच गई.

सतनाम की हत्या करने के बाद हरजोत की योजना अनुसार वे दोनों अपने गांव दादूवाल लौट गए थे. गांव पहुंच कर अंजू ने अपना पहना हुआ सूट जला दिया था. ऐसा करने के लिए उस से हरजोत ने ही कहा था. पुलिस ने अंजू की निशानदेही पर वह अधजला सूट भी बरामद कर लिया.

3 अप्रैल को अंजू, विक्रम और हरजोत को पुन: अदालत में पेश किया गया. उस दिन विक्रम और हरजोत का रिमांड समाप्त हो गया था, इसलिए उन दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि अंजू को 5 अप्रैल तक पुलिस रिमांड पर लिया गया.

बाद में रिमांड अवधि समाप्त होने पर अंजू को भी जेल भेज दिया गया. पुलिस जांच भटकाने के पीछे हरजोत का मकसद यह था कि जरूरत पड़ने पर वह यह साबित कर सकती है कि घटना के समय वह मौका ए वारदात पर मौजूद नहीं थी. और अगर वह पकड़ी भी गई तो उस के बच्चों की देखभाल अंजू कर लेगी. दोनों हालातों में एक औरत का बाहर रहना तय था, पर पुलिस जांच में हरजोत की पोल खुल गई और उस के साथ अंजू भी पुलिस की गिरफ्त में आ फंसी.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

औफिस अफेयर: बन सकता है जी का जंजाल

औफिस रोमांस सुनने में तो बहुत अच्छा है मगर असल में वह अच्छा है या नहीं यह पता होना बेहद जरूरी है. असल में औफिस रोमांस शुरू शुरू में बहुत अच्छा लगता है. यूं कहे तो बहुत ज्यादा ही रोमांचकारी होता है. एक दूसरे से गलती से टकरा जाना, काम के बहाने आस पास से गुजरना, वक्त बे वक़्त एक दूसरे को देखना और नजरों का आपस में मिलना अच्छा लगता है. यह छोटी छोटी चीजें रोमांटिक टर्न लेती हैं और आप अपने को वर्कर के साथ रिलेशनशिप में आ जाते हैं या आप दोनों में अफेयर शुरू हो जाता है. यहीं से शुरू होती है असली परेशानियां और औफिस रोमांस के नुक्सान. हालांकि, औफिस अफेयर में स्थितियां काफी अलगअलग तरह की होती हैं और उन की अच्छी बुरी बातें भी काफी अलग होती हैं.

को वर्कर के साथ रोमांटिक रेलशनशिप

औफिस  में कई तरह के अफेयर होते हैं जिन में से एक है को वर्कर के साथ रोमांटिक रिलेशनशिप. रोमांटिक रिलेशनशिप का मतलब है कि इस में दोनों ही व्यक्ति एकदूसरे को प्यार भरी नजर से देखते हैं और इन की फीलिंग्स म्यूच्यूअल होती हैं. कविता और सौरीश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. वे दोनों एकदूसरे के कोवर्कर्स थे और एकदूसरे के अच्छे दोस्त भी. कुछ ही दिनों बाद उन दोनों को ही यह महसूस हो गया कि वे दोस्त से कुछ ज्यादा हैं और उन्हें रिलेशनशिप में आ जाना चाहिए.

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रिलेशनशिप में आ जाने के बाद दोनों का व्यवहार काफी बदल गया. वे काम के बीच में ही कभी अकेले कोने में गप्पे मारते नजर आते तो कभी चाय पीने के बहाने साथ निकल जाते. उन दोनों के हावभाव से पूरा औफिस  परिचित होने लगा और सभी को यह जानने में देर नहीं लगी कि दोनों के बीच क्या चल रहा है. उन का रिलेशनशिप उन के काम में अड़ंगे डाल रहा था जिसे उन के कई सीनियर्स समझ रहे थे. दोनों को कई बार डेस्क के नीचे हाथ पकड़ते भी देखा गया. उन दोनों की परफौरमेंस पर काफी असर पड़ने लगा था. हद तो तब होने लगती जब दोनों के बीच किसी बात पर झगड़ा होता और उन के काम करने के ढंग से ही सब को पता लग जाता. लोग उन के पीठ पीछे बातें भी बनाते और हंसी मजाक में मुंह पर व्यंग्य भी कस जाते. दोनों का औफिस  में जीना मुश्किल तो हुआ ही और खुद बौस उन से चिढ़ने लगे वो अलग.

वन साइडेड लव अफेयर

एक तरफा प्यार चाहे स्कूल कालेज में हो या औफिस में, दुख, तकलीफ और इग्नोर गेम्स से भरा हुआ होता है. लेकिन, औफिस में हुआ एक तरफा प्यार जरुरत से ज्यादा दर्द देता है. कारण साफ है कि यहां आप अपने कोवर्कर से भाग नहीं सकते. आप को उसे हर दिन फेस करना ही होता है. निताशा और लक्ष्य कई महीनों से अच्छे दोस्त है जिस के चलते निताशा को लक्ष्य से प्यार हो गया. निताशा ने लक्ष्य को अपनी फीलिंग्स बताई और लक्ष्य ने भी कहा कि उसे निताशा से प्यार है. दोनों का अफेयर शुरू हुआ. औफिस  में किसी को भी उन के रेलशनशिप के बारे में कुछ नहीं पता था. दोनों के बीच सब अच्छा चल रहा था लेकिन निताशा नोटिस करने लगी कि लक्ष्य का इंटरेस्ट दिन-ब-दिन औफिस  में आई नई इंटर्न की तरफ बढ़ता ही जा रहा है. निताशा ने एक दिन लक्ष्य से पूछ ही लिया कि आखिर माजरा क्या है जिस पर लक्ष्य ने कहा कि उसे ऐसा लगा कि वह निताशा से प्यार करता है जबकि असल में ऐसा नहीं है, वे अच्छे दोस्त ही हैं.

इस बाबत उन दोनों की रिलेशनशिप तो खत्म हुई ही, साथ ही निताशा का दिल भी टूट गया. वह जितना अपने काम में मन लगाने की कोशिश करती उतना ही उस का ध्यान लक्ष्य की तरफ जाता. यह कालेज भी नहीं था जहां वह उसे इग्नोर कर सकती. जबजब वह लक्ष्य के पास कोई फाइल ले कर जाती तो उस के हाथ कांपने लगते. उस की धड़कनें इतनी तेज हो जातीं जैसे अभी सीने से बाहर निकल आएंगी. यह स्थिति निताशा के लिए किसी मानसिक प्रताड़ना से कम नहीं थी. लेकिन, वह करती भी तो क्या.

फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स

औफिस अफेयर्स में  फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स काफी कौमन है. लेकिन इस में होता यह है कि इस तरह के अफेयर्स के बारे में औफिस में बात फैलने में देर नहीं लगती और दो लोग कब पूरे औफिस की चर्चा का केंद्र बन जाएं उन्हें खुद पता नहीं चलता. केशव एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता है. उस के औफिस में दो लोगों को ले का चर्चाएं हमेशा गर्म रहती हैं. यह दो लोग शादीशुदा हैं, नहीं नहीं आपस में नहीं. यहीं से तो असली बात शुरू होती है. एक सुबह केशव 10 की जगह साढ़े नौ बजे ही औफिस  पहुंच गया. औफिस  पहुंच कर वह वाशरूम की तरफ जा ही रहा था कि उस ने कोयल मैम को जेंट्स वाशरूम से निकलते देखा. एक मिनट बाद कोयल मैम के पीछे ही उसे अपने सीनियर गौतम सर वाशरूम से निकलते दिखे.

उस ने भी इन दोनों के किस्से खूब सुने थे लेकिन जब अपनी आंखों से देखा तब असल में यकीन किया. उस ने यह बात अपने दोस्त नीरज को बताई, नीरज ने प्रिया को, प्रिया ने किसी और को और किसी और ने किसी और को. इस तरह पूरे औफिस में कोयल और गौतम के चर्चे होने लगे. अब तो सभी कोयल के मुंह पर मुस्कुराते हैं और पीठ पीछे उसे स्लट कहते हैं. गौतम की इमेज भी कुछ खास नहीं. सीनियर होने के बावजूद उन की इज्जत लोगों के लिए कोई माने नहीं रखती तभी तो हर किसी के लिए वे हंसी के पात्र बनकर रह गए हैं.

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बौस से अफेयर

बौस के साथ न दुश्मनी अच्छी और न ही दोस्ती, यह तो शायद आप ने सुना ही होगा. लेकिन, बौस के साथ अफेयर अच्छा है या बुरा. इस के बारे में तो सभी की राय अलगअलग ही होगी. टीवी के कई सीरियलों में बौस और सेक्रेटरी की प्रेम कहानी का कांसेप्ट दिखाया गया है. इन में से अधिकतर में यह भी दिखाया जाता रहा है कि गरीब घर की लड़की से जब अमीर बौस को प्यार हुआ तो दोनों की जिंदगी बदल गई. अंत में दोनों की शादी हो जाती है और दोनों खुशीखुशी घर परिवार संभालते हैं.

मगर असल में ऐसा कुछ नहीं होता. अमीर बौस का दिल इतना मुलायम नहीं होता कि उसे सेक्रेटरी भा जाए और वह उस से शादी रचा ले. बौस के साथ अफेयर में लड़की को अक्सर गोल्ड डिगर यानी पैसा खाने वाली की ख्याति ही मिलती है. फिर चाहे लड़की या लड़का कितना ही टैलेंटेड क्यों न हो पर बौस से संबंध रखने पर यदि किसी भी  तरह की सफलता हाथ लगती है तो श्रेय चापलूसी को ही दिया जाता है.

यानी कुल मिलाकर औफिस अफेयर एक अच्छा आईडिया नहीं है. कई बार तो यह भी होता है कि जिस के साथ आप रिलेशनशिप में हैं उस की कोई और भी रिलेशनशिप है जिस के बारे में आप को कुछ खबर ही नहीं है. वैसे भी, जिन के साथ आप काम कर रहे हैं जरूरी नहीं कि आप उन्हें सचमुच जानते ही हों. औफिस अफेयर्स में बदनामी और प्रोफेशनल लाइफ पर असर दो मुख्य बातें हैं जिन का सभी को ध्यान होना चाहिए. हां, कई बार जब दोनों तरफ से चीजें सही हों और आप दोनों को ही लगे कि आप दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा है और रिलेशनशिप में आना एक अच्छा सुझाव है, तो बेहतर है कि रिलेशनशिप में आइए, लेकिन इस शर्त पर कि इस से आप की प्रोफेशनल लाइफ पर असर नहीं पड़ेगा.

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धर्म की आड़ में सब्जबाग

धर्म के नाम पर दान दक्षिणा देने का पाखंड शुरू से ही चला आ रहा है लेकिन अब यह सिर्फ एक व्यापार का साधन बन चुका है. आज हर धार्मिक स्थान पर आपको ऐसे व्यापारी बैठे मिलेंगे जो पूजा-पाठ का सहारा लेकर लोगों के न सिर्फ भावनाओं और विश्वास के साथ खेलते हैं, उन्हें कंगाल भी बना देते हैं.

सोनाली को भी ऐसे ही एक बाबा ने फंसाने की कोशिश की. कानपुर की रहने वाली गृहणी सोनाली की शादी को 6 साल हो गए हैं और उस की 4 साल की बेटी भी है. सोनाली के पति का खुद का साईकिल का स्टोर है. शादी के 4 साल बाद सोनाली के जीवन में सब कुछ बदलने लगेगा ऐसा उस ने शायद ही सोचा होगा. सोनाली को जिस बात की जानकारी मिली कि उस के पति का किसी और साथ अफेयर चल रहा है, तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. यह बात सोनाली को तब पता चली जब एक दिन वह अपने पति के फोन से अपनी मां से बात कर रही थी. तभी उस लड़की का मैसेज आया. सोनाली ने जब पूरा चैट पढ़ा तो वह हैरान रह गई. हालांकि उस ने उस वक्त समझदारी दिखाई और अपने पति से कुछ सवाल जवाब नहीं किया. कुछ महीने बाद उस के पति की हरकतें ज्यादा बदलने लगीं. रात को देर से आना, कभी शराब पीकर आ जाना, पूरे दिन फोन पर व्यस्त रहना और बात बात पर सोनाली को डांटना. यह सब देख कर सोनाली बहुत परेशान हो चुकी थी. सोनाली उस लड़की के चंगुल से अपने पति को दूर करना चाहती थी. लेकिन उसे कोई उपाय नहीं मिल रहा था. एक दिन उसकी नजर अखबार के विज्ञापन पर गई तो वह चौंक पड़ी. उसमें लिखा था ‘शक्ति चमत्कार देखें, घर बैठे 2 घंटे में समाधान, गुरु सिकंदर कलकत्ते वाला, मेरे किए की कोई काट नहीं,घर बैठे 2 घंटे में समाधान. प्रेम विवाह, मनचाह प्यार, ग्रहकलेश, सौतन, दुश्मन आदि से छुटकारा पाएं.इन सभी समस्याओं का हल, एक बार फोन करें.’नंबर है 9997096520.

यह पढ़ते ही सोनाली को लगा शायद इस से सब ठीक हो जाए. उस ने उस विज्ञापन में दिए गए नंबर पर फोन किया. फोन पर बात करने पर एक आदमी ने फोन उठाया. सोनाली ने उस आदमी को अपनी सारी दुख भरी कहानी सुना दी. सोनाली की बात सुनने के बाद उस व्यक्ति ने उस से कहा “ बेटी तू चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा. अगले दिन तेरा पति तेरे आसपास घूमेगा. हम तेरे, तेरे पति और उस लड़की के नाम पर हवन करेंगे. इस हवन से तेरा पति हमेशा के लिए तेरा हो जाएगा,” यह सुन कर सोनाली खुश हो गई. उस ने फिर एक सवाल किया, “ मैं हवन के लिए कब आऊं?” यह सुनकर उस व्यक्ति ने बोला “आपको आने की जरूरत नहीं है, बस आपको हवन सामाग्री और जाप के लिए पैसे देने होंगे.” सोनाली ने जब पूछा कि कितने पैसे देने होंगे? तो उस व्यक्ति ने कहा कि आपको 3000 रुपए देने होंगे. सोनाली ने पूजा के लिए हां कर दी. फोन कट ने से पहले उस व्यक्ति ने सोनाली को समझाया कि इस पूजा में बहुत शक्ति है सब ठीक हो जाएगा. मैं अभी आप के मोबाइल नंबर पर बैंक अकाउंट नंबर भेज रहा हूं उस में आप 3000 रुपए भेज दो. आप का काम हो जाएगा.

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उस बाबा ने बिना देरी किए सोनाली के फोन पर  बैंक अकाउंट की डिटेल भेज दिया.

बाबा का बैंक अकाउंट नंबर 511200608 और आईएफ़एससी कोडKKBK0000148 था. साथ ही बाबा ने इस बैंक अकाउंट यूजर का नाम नफीस लिख कर भेजा हुआ था.

पूजा के नाम पर धोखा

सोनाली ने बहुत सोचा फिर उसे लगा कि पति और मेरे परिवार के लिए मैं इतना तो कर ही सकती हूं. उस ने उस व्यक्ति के अकाउंट में पूरे 3000 रुपए ट्रांसफर कर दिए. पैसे ट्रांसफर करने के बाद उस व्यक्ति का फिर फोन आया. वह सोनाली से कहने लगा, “बेटी, अब तेरा काम हो जाएगा. सोनाली को भी लगा कि अब उस की जिंदगी बादल जाएगी और पति पहले की तरह प्यार करने लगा.

इधर सोनाली का पति कुछ दिनों के लिए अपने गांव गया हुआ था. वहां से वह हर रोज सोनाली को फोन करता था और बहुत प्यार से हालचाल पूछता. सोनाली को यकीन होने लगा कि अब सब ठीक हो रहा है.

2-3 दिन बाद जब सोनाली का पति घर आया तो उसके व्यवहार में कुछ बदलाव नहीं दिखा.वह पहले की ही तरह हरकतें करता था. रोज शराब पी कर आना, और उस युवती के संपर्क में रहना. यह सब देख कर सोनाली सोच में पड़ गई की सबकुछ पहले जैसा ही क्यों है? उस बाबा ने तो कहा था सब ठीक हो जाएगा. उसने उस बाबा से फिर से बात करने के लिए फोन उठाया कि तभी गांव से उसकी सासु मां का फोन आ गया. सोनाली ने भावुक हो कर अपनी सारी कहानी अपनी सासु मां को बता दी. तब उसकी सासु मां ने सोनाली को बताया की उसका पति अपनी मर्जी से सोनाली को फोन नहीं करता था उसके कहने पर करता था. बाबा वाली बात सुनकर सोनाली की सास ने बहुत गुस्सा किया और उसे समझाया की ‘कोई बाबा रिश्तों को नहीं जोड़ सकता. उसने तो सिर्फ तुम्हें ठगा है. अगर उसकी बाबा की बात सच होती तो अभी तुम्हारा पति तुम्हारे साथ बैठा होता.

उसकी सास ने उसे समझाया कि रिश्तों को जोड़ना और तोड़ना हमारे हाथ में होता है. तुम जा कर अपने पति से बात करो पहले. बात करने से समस्या का समाधान जरूर निकलता है.

उस दिन सोनाली को लगा सच में उसने गलती की उस बाबा से बात कर के उसने 3000  रूपए भी लिए और कुछ ठीक भी नहीं हुआ.

सोनाली जैसे कई औरतें हर दिन हर रोज ऐसे बाबाओं के जाल में फंसती रहती हैं.

आधुनिक दौर में इन लूटेरों ने लूटने का तरीका भी बादल लिया है. वे अब आधुनिक तरीका अपन ने लगे हैं. टीवी हो या यूट्यूब ये ढपोरशंखी अपना पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं और अपने लच्छेदार बातों से लोगों को खूब मूर्ख बनाते हैं.

ऐसे ही एक ढपोरशंखी के जाल में फंसी मीनू

ठगी का आधुनिक तरीका

मीनू 25 वर्षीय है. वैसे तो मीनू मथुरा की रहने वाली है लेकिन पिछले 3 साल से नौकरी के वजह से वह दिल्ली में अपने दोस्तों के साथ रहती है. स्वभाव से अंधविश्वासी मीनू की एक अजीब आदत है. वह अपनी दिन की शुरुआत अखबार में राशिफल पढ़ने से करती है या फिर सुबह सुबह टीवी पर ज्योतिषि का कार्यक्रम देख कर. कई बार तो वह यूट्यूब पर भी भविष्यवाणी बताने वाली वीडियोज भी देखने लग जाती है. एक बार ऐसे ही वह यूट्यूब पर वीडियो देख रही थी, जिसमें ज्योतिषि ओमप्रकाश राशि के अनुसार आने वाला दिन कैसा होगा, क्या करना चाहिए, कोई संकट आने वाला है तो उससे कैसे बचें. मीनू इस वीडियो को बहुत ध्यानपूर्वक देख रही थी. जब ज्योतिषि मीनू के राशि पर आए तो उन्होंनें बहुत कुछ अच्छा तो बहुत कुछ ऐसा बताया जिससे मीनू परेशान हो गई. उस वीडियो में ज्योतिषि का नंबर भी दिया गया था.

मीनू ने 8527654519 जो ज्योतिषि ओमप्रकाश का नंबर था उस पर फोन किया. जब मीनू ने ज्योतिषि से बात की तो उस ने मीनू का जन्मदिवस, जन्मदिन, माता-पिता का नाम आदि पूछने लगे. मीनू ने सब ज्योतिषि को बता दिया. सब कुछ देखने के बाद ज्योतिषि का कहना था कि आप मांगलिक हो,आप पर शनि ग्रह भी है जिस से आगे चल कर आपके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, आने वाले समय में आपके में बाधा आ सकती है. ज्योतिषि का कहना था कि वह आपकी कुंडली बना कर देगा लेकिन इस के लिए उस यहां आना होगा.

जब मीनू ने खर्चा पूछा तो ज्योतिषि ने कुंडली बनवाने, बताने और उपाय बताने का 2500 रुपए बता दिए.

मीनू ने यह सारी बातें जब अपने दोस्तों को बताने लगी तब उसके दोस्तों ने उसे उस ज्योतिषी के पास जाने से मना कर दिया और उसे समझाने लगें कि ये लोग बातों को बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं. सिर्फ पैसों के लिए. यह सब इनका धंधा होता है. दोस्तों की बात मीनू मान तो गई लेकिन ज्योतिषी की बात सुन कर मीनू बहुत परेशान हो गई थी और उसके व्यवहार में भी एक चिड़चिड़ापन आ गया था. जब कि उसके जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था.

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कह सकते हैं कि आज के समय में लोगों को खुद पर से भरोसा ही उठ गया है. उन्हें भरोसा है तो उंगलियों में रंगबिरंगी अंगूठी पहनने वाले और राम नाम का चोला लटका कर घूमने वाले बहरूपियों पर. यदि जिंदगी में कुछ ठीक नहीं चल रहा, पति-पत्नी में लड़ाई हो रही है तो यहां इन ज्योतिषियों के अनुसार राहु और शनी की महादशा चल रही होती है. जीवन में कुछ भी हो रहा है तो माना जाता है कि यह सब ग्रहनक्षत्रों का खेल है. धर्म के नाम पर लूट मचाने वाले इन बहरूपियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और इन्हें बढ़ावा देने वाला हमारा समाज ही है.

बाबाओं की असलियत

टीवी पर लोग कई बाबाओं को देखते और सुनते हैं. एक समय के बाद यह उन्हें अपना ईश्वर मान बैठते हैं. लोगों के अंदर इन के प्रति आस्था जाग जाती है. लेकिन ऐसे कई बाबा और ज्योतिषी हैं जिन्होंनें धर्म के नाम पर खूब पैसा कमाया. लेकिन अभी इन की हालत ऐसी है कि ये खुद अपने दुखों का निवारण नहीं कर सकते. खुद को साधू संत बोलने वाले राम रहीम को कोई कैसे भूल सकता है. धर्म के नाम पर बड़ीबड़ी बाते करने वाला, धर्म के नाम पर फिल्म बनाने वाला आज जेल में राम राम कर रहा है. ऐसे ही आसाराम बापू भी है. खुद को धर्मगुरु बताने वाला आसाराम भी कई सालों से जेल में है. बलात्कार जैसे अपराध को अंजाम देने वाले ये दोनों ही तथाकथित पाखंडी साधु और धर्मगुरु ने लोगों की आस्था के साथ जम कर खिलवाड़ किया था.

देखने में लगता था इनका जीवन सादे भोजन की तरह है लेकिन यह सब तो सिर्फ दिखावा होता है. असल में ये इतनी ऐयाशी करते हैं जिस का किसी को शायद अंदाज़ा ही नहीं होगा. इन के पास पैसों की कमी नहीं. धर्म के नाम पर इन की कमाई इतनी अधिक हो जाती है कि इनकी जेब नोटों से भरी होती हैं. ऐसे अनेक बाबा हैं जो अभी भी टीवी पर आते हैं और बेतुकी बातें करते हैं, लेकिन फिर भी लोग उन्हें सुनते हैं.

अजब गजब अंधविश्वास

त्योहारों के समय कोई आपको बंदर, गाय तो कोई सांप लटकाए घरघर घूमते दिखेंगे. लोग इन्हें हनुमान, शिव, पार्वती का रूप मानकर खुल कर दान दक्षिणा देते हैं. यही नहीं, इन के धंधे का दिन भी तय होता है. सब से ज्यादा इन को फायदा मंगलवार और शनिवार को होता है. कई बार ये लोग दान के कई फायदे बताकर लोगों से जबरदस्ती धन देने को बोलते हैं.

जबरदस्ती करवाते हैं दान

आप को यकीन नहीं होगा कि जिन पंडित, बाबा या गुरुओं को लोग भगवान का दर्जा देते है वही इन लोगों को लूटने का प्रयास सब से ज्यादा करते हैं. भारत में कई धार्मिक स्थल हैं जिस में से मथुरा वृन्दावन, गोकुल भी एक है. गोकुल में जो मंदिर है वहां एक बहुत अजीब मान्यता है. वहां के मंदिर में लोग दीवारों, जमीन. और मंदिर के अंदर नाम लिखवाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि नाम लिखवाने से सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं. अगर आप जमीन पर नाम लिखवाते हैं तो इस का दक्षिणा कम लिया जाता है, दीवार पर लिखवाते है तो यह दक्षिणा थोड़ा ज्यादा महंगा होता है और अगर आप मंदिर के अंदर नाम लिखवाते हैं तो यहां आप को सब से ज्यादा दक्षिणा देना होता है. मंदिर में जगहजगह पंडित आप को दिखेंगे जो लोगों को इस के बारे में बताते है और अगर किसी ने मना किया तो यह उन को सुखी जीवन का लालच देत हैं, नाम लिखवाने से जीवन में कई तरह से लाभ होगा ऐसा बोलकर जबरदस्ती अपना काम बनवा लेते हैं.

लेकिन यह सब सुनने के बाद अगर कोई व्यक्ति नाम लिखवाने से मना करता है तो यह उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते. अचानक इन के व्यवहार में बदलाव दिखाई देने लगता है.

यह नाम लिखवाना, जानवरों के नाम पर बाबाओं की जेबें भरना, टीवी पर अनेक गुरु या बाबा को पूजना यह सब आस्था के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाने का जरीया हैं.

चढ़ावे से व्यापार

मंदिरों में कितना चढ़ावा चढ़ता है, क्या आपने सोचा है? इतना चढावा हर रोज जाता कहा है? दरअसल, यह सभी चढ़ावे वापस बाजार में जा कर बिकते हैं. कोई भी धार्मिक त्योहार के समय मंदिरों में अधिक भीड़ होती है. ऐसे में लोग अधिक से अधिक फल-फूल चढ़ाते हैं और यही फलफूल वापस बाजार में बिकने के लिए दे दिए जाते हैं.

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आज धर्म एक व्यापार का केंद्र बन चुका है. आज के लोगो कि धार्मिक सोच है कि जितना चढ़ावा चढ़ाओ उतना लाभ होगा. पंडितों को खुश रखो तो ईश्वर अपने आप खुश हो जाएगा. पर ये ईश्वर हैं.

कहां और कैसे दिखते हैं? यह शायद ही किसी को पता हो.

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