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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: 3000वें एपिसोड में कार्तिक और नायरा आए करीब!

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला शो “ये रिश्ता क्या कहलाता है”  के 3000 एपिसोड पूरे हो चुके हैं. और इस शो का 3000 वां एपिसोड भी औन एयर हुआ था, जिसमें काफी लंबे समय बाद कार्तिक और नायरा को एक साथ समय बिताते हुए देखा गया. इस शो के फैंस के लिए ये एपिसोड बेहद खास रहा.

टीवी की इस दिलकश जोड़ी को रोमांस करते देखकर फैंस काफी खुश होंगे. इस शो के फैंस की खुशी सोशल मीडिया पर भी देखने को मिली. फैंस के लाइक और कमेंट्स के जरिए इस शो के लिए उनका प्यार नजर आया. इस शो 11 साल के लंबे खूबसूरत सफर को फैंस ने याद किया.

तो आईए कुछ फैंस के कमेंट आपको बताते है. एक यूजर ने ट्वीटर पर कमेंट करते हुए लिखा, मैं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की टीम के लिए बहुत खुश हूं. आप सब ने 11 साल तक टीवी की दुनिया पर राज किया है और मुझे उम्मीद है कि आगे भी आग अपन सफर ऐसे ही जारी रखेंगे.

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तो वही दूसरे यूजर ने लिखा कि मुझे बीता एपिसोड बहुचत पसंद आया. मैं इस शो के मेकर्स से गुजारिश करता हूं कि,  कुछ समय तक इस ट्रैक को यूं ही दिखाया जाए. मुझे कार्तिक और नायरा का साथ बहुत खुशी देता है.

इतना ही नहीं  एक यूजर ने लिखा कि ‘आज का एपिसोड बहुत ही खूबसूरत था. क्योंकि एक लंबे वक्त के बाद कार्तिक और नायरा एक-दूसरे के इतने करीब नजर आए. इन दोनों को साथ देखकर मैं आज बहुत खुश हूं.

फैंस के कमेंट्स देख कर इतना तो साफ है कि, बीती रात के एपिसोड ने दर्शकों का दिल जीत लिया है. जब कार्तिक और नायरा करीब आए हैं तो ऐसे में अब दर्शक चाहते हैं कि उनकी नजदीकीयां कायम रहे.

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‘‘सेक्शन 375″: यौन अपराधों पर प्रासंगिक व बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताःकुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक,एससीआईपीएल

निर्देशकः अजय बहल

लेखकः मनीश गुप्ता

संगीतकारः क्लिंटन सिरिजो

कैमरामैनः सुधीर के चैधरी

कलाकार: अक्षय खन्ना, रिचा चड्डा,  मीरा चोपड़ा, राहुल भट्ट, कृतिका देसाई, कुमुद मिश्रा, अतुल कुलकर्णी, संध्या मृदुल

अवधिः दो घंटे चार मिनट

2012 के निर्भयाकांड के बाद सरकार ने ‘बलात्कार’ के कानून में कुछ बदलाव किए. फिर 2013 में नया कानून आ गया. जिसके तहत इंडियन पैनल कोड के ‘‘सेक्शन 375’’ के अनुसार यौन संबंधों में लड़की या औरत की सिर्फ ‘हां’ के साथ ‘मर्जी’ भी जरुरी हो गयी. यानी कि एक लड़की किसी लड़के के साथ यौन संबंध रखती है और मेडीकली यौन संबंध बनने की बात साबित हो जाए, उसके बाद यदि लड़की अदालत मे कह देती है कि यह यौन संबंध उसकी मर्जी/इच्छा के विपरीत हुआ, तो उसे बलात्कार माना जाएगा. इसी ‘‘सेक्शन 375’’ के इर्दगिर्द लेखक मनीश गुप्ता और निर्देशक अजय बहल एक बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा वाली फिल्म लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने हर पक्ष को पेश किया है.

कहानीः

मशहूर फिल्म निर्देशक रोहण खुराना (राहुल भट्ट) की फिल्म की सहायक कास्ट्यूम डिजायनर अंजली दांगले (मीरा चोपड़ा) उनके घर पर कुछ कस्ट्यूम दिखाने आती है. रोहण अपनी नौकरानी को बाजार भेज देते हैं और फिर रोहण व अंजली के बीच सेक्स/यौन संबंध स्थापित होते हैं. कुछ देर बाद अंजीली दांगले अपने चेहरे को अपने दुपट्टे छिपाए हुए रिक्शे से अपने घर पहुंचती है, उसका भाई उससे पूछता है कि आखिर हुआ क्या? तब अंजली अपने भाई को कुछ बताती है. फिर पता चलता है कि पुलिस ने रोहण खुराना को गिरफ्तार कर लिया है. अस्पताल में अंजली और रोहण दोनों का मेडिकल परीक्षण होता है. मामला सेशन कोर्ट में पहुंचता है और सेशन कोर्ट रोहण खुराना बलात्कार करने का दोषी मानकर रोहण को दस साल की सजा सुना देता है. रोहण अपनी पत्नी से कहता है कि वह बेगुनाह है. अंजली ने उसे जानबूझकर फंसाया है.

तब फिल्म निर्देशक रोहण खुराना की पत्नी कैनाज(श्रीस्वरा) शहर के मशहूर और अति मंहगे वकील तरूण सलूजा (अक्षय खन्ना) के पास पहुंचती है. वह चाहती है कि तरूण सलूजा हाईकोर्ट में रोहण खुराना का मुकदमा लड़कर उसे बरी कराए. तरूण सलूजा अपनी पत्नी (संध्या मृदुल) की इच्छा के विपरीत जाकर यह मुकदमा ले लेता है. तरूण सलूजा, जेल में रोहण से मिलकर सच बताने के लिए कहता है. अब मुकदमा हाईकोर्ट की दो जजों /न्यायाधीशों (किशोर कदम और कृतिका देसाई) की बेंच सुनती है. पहले दिन तरूण सलूजा का प्रयास होता है कि वह रोहण खुराना को जमानत पर रिहा करवा ले, पर अंजली की तरफ से मुकदमा लड़ रही सरकारी वकील हीरल गांधी (रिचा चड्डा) के कानूनी दांव पेंच के चलते रोहण को जमानत नही मिलती. यहीं पर पता चलता है कि कभी वकील हीरल गांधी, तरूण सलूजा की सहायक हुआ करती थी.

बहरहाल, एक तरफ अदालत में इस मुकदमें पर तीखी बहस होती रहती है, तो दूसरी तरफ मीडिया ट्रायल चलता रहता है. तीसरी तरफ सोशल मीडिया के चलते लोग सड़क पर प्रदर्शन भी करते हैं. पर अंततः अदालत रोहण की सजा बरकरार रखती है. हीरल गांधी चैन की सांस लेती है कि उसने जीत हासिल कर अंजली को न्याय दिला दिया. पर कुछ देर में हीरल को अहसास हो जाता है कि न्याय हुआ ही नही.

निर्देशनः

एक कसी हुई पटकथा पर बनी फिल्म ‘‘सेक्शन 375’’ में सिनेमाई स्वतंत्रता कम से कम लेते हुए यथार्थ पर जोर दिया गया है. कोर्ट के अंदर के दृश्य लाजवाब हैं. कहीं कोई मजाक नहीं. अदालत की गरिमा को बरकरार रखा गया है, जबकि अमूमन दूसरी फिल्मों मे अदालतों का मजाक बनाकर रखा जाता रहा है. संजीदा विषय पर एक अति गंभीर फिल्म है, जो दर्शकों को बांधकर रखती है. मगर इसमें मनोरंजन बिलकुल नही है. फिल्म के कुछ संवाद काफी बेहतरीन हैं. फिल्म में अक्षय खन्ना का एक संवाद है- ‘‘हम कानून के व्यवसाय में हैं, न्याय के व्यवसाय में नही है.’’ मगर इस संवाद की ही तरह ज्यादातर संवाद अंग्रेजी भाषा में है. अदालती बहस के दौरान कुछ संवाद ऐसे हैं, जिन्हे आम दर्षक समझ नहीं पाएगा. फिल्म में वकील तरूण स्वीकार करते हैं कि न्याय अमूर्त है और कानून न्याय प्राप्त करने का उपकरण है.

फिल्म के लेखक व निर्देशक इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के एक तरफ जहां इस बात का चित्रण किया है कि डाक्टर, पुलिस व वकीलों की सोच के चलते बलात्कार पीड़िता को न्याय मिलने में कठिनाई आती है, वहीं इस ओर भी इशारा किया है कि महिलाएं ‘सेक्शन 375’ का उपयोग पुरूषों से बदला लेने के लिए करती हैं.

फिल्म ‘वयस्क’ प्रमाणपत्र वाली है. इसलिए सिंगल थिएटर में इसे दर्शक मिलने की संभावनाएं कम हैं. महानगरों में मल्टीलैक्स तक ही सीमित रहेगी.

अभिनयः

रेप पीड़िता के किरदार में मीरा चोपड़ा ने काफी सहज अभिनय किया है. उनके चेहरे पर दर्द के भाव साफ झलकते हैं. वकील के किरदार में अक्षय खन्ना और रिचा चड्डा ने जानदार अभिनय किया है. रिचा चड्डा ने बहुत कौशल पूर्ण अभिनय करते हुए बहुत बेहतरीन अभिनय का प्रदर्शन किया है. राहुल भट्ट अपने किरदार में काफी सहज व स्वाभाविक रहे. जजों के किरदार में किशोर कदम और कृतिका देसाई ने काफी अच्छा काम किया है. बीच बीच में किशोर कदम धूर्त हास्य के क्षण भी लाते हैं.

खूबसूरती को कम करती इलेक्ट्रौनिक डिवाइसेज की लाइट

मौजूदा समय में व्यक्ति बहुत सी ऐसी चीजों के संपर्क में आता है, जिससे ब्लू लाइट निकलती है, जैसे एलईडी, सीएफएल, टैबलेट, टेलीविजन और कंप्यूटर. ऐसे में यह साफ है कि लोगों की जिंदगी में लगातार ब्लू लाइट बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से त्वचा पर बुरा असर पड़ रहा है.

खूबसूरती को किसी  की नजर ना लगें  इसके लिए महिलाएं ना जानें क्या क्या करती हैं  पर ये  क्या इतनी  केयर  के बाद  भी  आपकी  सुंदरता  बढ़ने  के बजाये  कम  होती जा रही है.  जी  हां, शायद  आपको पता  नहीं  कि  आप  जो इलेक्ट्रौनिक डिवाइसेज यानि  मोबाइल,  टैब और लैपटौप  का इस्तेमाल  कर  रहीं  हैं  इससे  निकलने  वाली  रौशनी ही आपकी खूबसूरती को  छीन रहीं  है.  इस बारे  में  स्किन  स्पेशलिस्ट डौक्टर  कहते  हैं  कि आज  की  लाइफ  स्टाइल  में  लोग  इलेक्ट्रौनिक डिवाइसेज के बिना  नहीं  रह  सकते, जिसका  नुकसान  उनको  खुद  भुगतना  पड़  रहा  है. देर  रात  तक  लाइट  औफ  करके  मोबाइल  की  रौशनी में कुछ  ना  कुछ पढ़ते  हैं,  जिससे  इन उपकरण से  निकलने  वाली  रौशनी  जहां  खराब  नींद  के लिए  जिम्मेदार है , वहीं मेलाटोनिन हार्मोन के असंतुलन के  लिए भी  जिम्मेदार है.

यू वी किरणों से ज्यादा खतरनाक है

डौक्टरों  के  अनुसार  इलेक्ट्रौनिक डिवाइस से  निकलने  वाली रौशनी सूरज  से  निकलने  वाली  किरणों से  ज्यादा नुकसानदेह है.  ये रौशनी  स्किन  में  रिंकल और हाईपर पिग्में टेशन आदि  का  कारण  बन  रही  हैं. जरनल औफ इन्वेसिटगेटिव डर्मटोलॉजिस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के  अनुसार हमारी स्किन हमेशा सूरज की हानिकारक किरणों के संपर्क  में नहीं  रहती बल्कि चारों ओर  मौजूद  इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज से निकले ब्लू  लाइट  रेडिएशन के संपर्क में  भी  रहती है. लंबे  समय  तक नीली  रौशनी  में रहने  से  स्किन का कलर  खराब  होने,  सूजन  और उम्र  से पहले  एजिंग के  लक्षण नजर  आने  लगते  हैं.

डर्मटोलौजिस्टकहते  हैं  कि लाइट  स्पेक्ट्रम में अल्ट्रावायलेट इंफ्रारेडऔर  विजीबल किरण होती  है.  ब्लू  लाइट  इन विजीबल किरणों का हिससा है,  जिसकी  एनर्जी  वेव लेंथ सबसे  जायदा  होती  है.  ये रौशनी  स्किन  की  संवेदना शील त को बढ़  देती  है,  इससे  मेलेनिन सिंथेसिस बढ़  जाता  है,  जिससे त्वचा  पर पिगमेंटशन होने  लगता  है पर  इसका  असर  तुरंत  नज़र  नहीं  आता मगर लंबे  समय  तक  अगर  इस  रौशनी  के  संपर्क  में  हैं  तो  त्वचा  पर  इसका  प्रभाव  पड़ता  हैं.

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कैसे  रहें  सुरछित

मोबाइल  की  ब्राइटनेस कम  कर  दें.

लाइट  जलाकर  मोबाइल  व  लैपटौप पर काम  करें.

फोन  सेटिंग से  नीली  रौशनी  को  कम  करें.

एलोवेरा  और  मुल्तानी  मिटटी स्किन  पर  लगाएं.

सोने से करीब 2 घंटे पहले इन सभी डिवाइस से दूर रहें.

बार-बार मोबाइल या अन्य डिवाइस को चेक करने की आदत बदलें.

सोते समय अपने मोबाइल को बेड से दूर रखें.

टीवी या लैपटौप पर कोई फिल्म आदि देखने से अच्छा है कि कुछ देर कोई किताब या कुछ और पढ़ें.

टेलीविजन, लैपटौप आदि को बेडरूम से बाहर रखें.

कमरे में सोते समय लाल रंग की लाइट का इस्तेमाल करें.

ब्लू लाइट से बचाने वाले ऐप मोबाइल में इंस्टौल करें.

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अगर आप बहुत देर तक लैपटौप आदि पर काम करते हैं तो अधिकतम 20 मिनट बाद लैपटौप से ध्यान हटाएं और करीब 20 फुट दूर रखी किसी चीज को करीब 20 सेकेंड तक देखें और फिर अपना काम शुरू करें.

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आप अपनी उम्र को तो बढ़ने से नहीं रोक सकतीं, मगर बढ़ती उम्र के असर को जरूर कम कर सकती हैं. सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल की सीनियर डाइटीशियन निधि धवन के मुताबिक हम क्या खाते हैं और कैसे खाते हैं, इस का हमारी सेहत और सक्रियता से सीधा संबंध होता है.

क्या खाएं

– ऐंटीऔक्सीडैंट्स से भरपूर खाना जैसे सूखे मेवे, साबूत अनाज, चिकन, अंडे सब्जियां और फल खाएं. ऐंटीऔक्सीडैंट्स फ्री रैडिकल्स से लड़ते हैं और बुढ़ापे के लक्षणों को धीमा करते है. ये इम्यून सिस्टम मजबूत बना कर संक्रमण से भी बचाते हैं.

– दिन में कम से कम 1 कप ग्रीन टी पीने से उम्र बढ़ने पर याददाश्त ठीक रहती है.

– ओमेगा 3 फैटी ऐसिड्स और मोनो सैचुरेटेड फैट से भरपूर खानेपीने की चीजें जैसे मछली, सूखे मेवे, जैतून के तेल का इस्तेमाल करें, ओमेगा 3 आप को जवां और खूबसूरत बनाता है.

– विटामिन सी शरीर के लिए नैचुरल बोटोक्स के समान कार्य करता है. इस से स्किन टिश्यू हैल्दी रहते हैं और झुर्रियां नहीं पड़तीं. इस के लिए संतरा, मौसंबी, पत्तागोभी आदि खाएं.

– अगर कुछ मीठा खाने का मन करे तो गहरे रंग की चौकलेट खाएं. यह फ्लैवेनोल से भरपूर होती है जो ब्लड सर्कुलेशन सही रखने में सहायता करता है.

– दोपहर के खाने के साथ एक कटोरी दही जरूर खाएं. इस में कैल्सियम होता है जो औस्टियोपोरोसिस की परेशानी से बचाता है.

– युवा और सक्रिय रहना चाहती हैं तो ओवर ईटिंग से बचें. आप को जितनी भूख है उस का 80% खाएं.

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क्या न खाएं

– खानेपीने की जिन चीजों से खून में शुगर का स्तर बढ़ जाता है. मीठे फल, जूस, चीनी आदि कम खाएं.

– सोयाबीन, कौर्न, कनोला औयल से बचें, क्योंकि इन में पौली सैचुरेटेड वसा अधिक मात्रा में होती है. जैतून के तेल का सेवन करें.

– लाल मांस, पनीर, फुल फैट दूध और क्रीम में अत्यधिक मात्रा में सैचुरेटेड फैट होता है. इस से दिल की धमनी ब्लौक हो सकती है.

– सफेद ब्रैड, पास्ता, पिज्जा आदि कम खाएं.

डा. निधि कहती हैं, ‘‘मोटापे और कैलोरी इनटेक में सीधा संबंध है. मोटापा बढ़ने से न केवल सेहत खराब होगी, बल्कि शारीरिक सक्रियता भी घटेगी.’’

जीवनशैली में बदलाव

जेपी हौस्पिटल, नोएडा की डा. करुणा चतुर्वेदी के मुताबिक अपनी रोजमर्रा की आदतों में ये छोटेछोटे बदलाव ला कर हम लंबे समय तक युवा और सक्रिय रह सकते हैं:

– अपने दिमाग को हमेशा व्यस्त रखें. कुछ नया सीखती रहें ताकि दिमाग सक्रिय रहे.

– अपने हारमोन स्तर पर नियंत्रण रखें ताकि आप एजिंग से जुड़े लक्षणों से दूर रह सकें.

– कम से कम 6-7 घंटे जरूर सोएं. जब आप सो रही होती हैं तो त्वचा की कोशिकाएं अपनी मरम्मत करती हैं जिस से त्वचा की झुर्रियां और फाइन लाइंस दूर हो जाती है.

– आप चीजों को किस नजरिए से देखती हैं यह भी महत्त्वपूर्ण है. हर चीज के सकारात्मक पहलू को देखें, अपनेआप को खुश और मोटिवेटेड रखें.

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त्वचा को जवां और सुरक्षित रखें

– धूप में जाने से त्वचा का रंग काला पड़ जाता है. फिर काले हिस्सों पर झुर्रियां जल्दी पड़ती हैं. इसलिए बाहर जाने से पहले सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें.

– त्वचा को स्वस्थ व हाइड्रेटेड बनाए रखने के लिए त्वचा के अनुसार नौनटौक्सिक मौइश्चराइजर चुनें. सोने से पहले इसे जरूर लगाएं.

फेशियल ऐक्सरसाइज

चेहरे की पेशियों की कसरत चेहरे को झुर्रियों से बचाती है. माथे को झुर्रियों से बचाने के लिए अपने दोनों हाथों को माथे पर रखें और उंगलियों को हेयरलाइन और भौंहों के बीच फैला लें. धीरेधीरे उंगलियों को हलके दबाव के साथ बाहर की ओर खिसकाएं.

कुछ फेशियल ऐक्सरसाइज

चीकू लिफ्ट: अपने होंठो को हलके से बंद करें और गालों को आंखों से बंद करें और गालों को आंखों की ओर खींचने की कोशिश करें. चौड़ी मुसकान के साथ अपने होंठों के बाहरी कोनों को उठाएं. कुछ समय इसी मुद्रा में रहें. मुसकराना गालों के लिए अच्छा व्यायाम है.

फिश फेस: यह गालों और जबड़ों के लिए अच्छा व्यायाम है. इस से आप के होंठ सही शेप में आ जाते हैं. हलके से होंठ बंद करें. गालों को जितना हो सके भीतर की ओर खींचे. इसी मुद्रा में मुसकराने की कोशिश करें और 15 सैकंड्स तक इसी मुद्रा में रहें. इसे 5 बार दोहराएं.

पपेट फेस: यह व्यायाम पूरे चेहरे पर काम करता है. यह गालों की पेशियों को मजबूत बनाता है, जिस से वे ढीली नहीं पड़तीं. अपनी उंगलियों के पोरों को गालों पर रखें और मुसकराएं. गालों को ऊपर की ओर खींचे और मुसकान की मुद्रा में कुछ समय तक रहें.

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कीटो डायट: ऐसे बनाएं पनीर सूप

पनीर सूप एक बेहद आसान डिश है. इसमें पत्ता गोभी, पनीर के क्यूब्स और पत्तागोभी से बनाया जाता है. इसके अतिरिक्त कुछ मसालों का भी इस्तेमाल किया जाता है. आगर आप कीटो डायट पर हैं तो इस सूप को जरूर ट्राई करें. तो चलिए जानते हैं इस सूप के बनाने की रेसिपी.

सामग्री

वेजिटेबल औइल- 1 चम्मच

सरसों के दाने- आधा चम्मच

काली मिर्च – 2 चम्मच

कुटी अदरक – 1 चम्मच

कुटा लहसुन – 1 चम्मच

पनीर क्यूब्स-  200 ग्राम

बारीक कटी पत्ता गोभी-  आधा कप

करी पत्ता 6

नमक चुटकी भर

पानी 4 कप

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बनाने की वि​धि

सबसे पहले एक पैन में तेल गर्म करें और फिर उसमें सरसों के दाने डाल दें.

जब सरसों तड़कने लगे तो उसमें करी पत्ता, बारीक कटा अदरक-लहसुन डालकर कुछ सेकंड्स के लिए फ्राई करें.

अब इसमें पनीर डालकर अच्छे से मिक्स करें औऱ फिर इसमें 4 कप पानी, नमक, काली मिर्च और बारीक कटी पत्ता गोभी डालें और अच्छी तरह से मिक्स करें.

ढक्कन से कवर करके सूप को करीब 10 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं.

अब आपका सूप रेडी है इसे गर्मा गर्म सर्व करें.

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बिखर गई खुशी: भाग 2

बिखर गई खुशी: भाग 1

अब आगे पढ़ें- 

आखिरी भाग

19 वर्षीय खुशी परिहार मध्य प्रदेश के जिला सतना के एक गांव की रहने वाली थी. उस के पिता जगदीश परिहार सर्विस करते थे. वह खुशी को एक अच्छी शिक्षिका बनाना चाहते थे लेकिन खुशी तो कुछ और ही बनना चाहती थी.

खुशी जितनी खूबसूरत और चंचल थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह बचपन से ही टीवी सीरियल्स, फिल्म और मौडलिंग की दीवानी थी. वह जब भी किसी मैगजीन और टीवी पर किसी मौडल, अभिनेत्री को देखती तो उस की आंखों में भी वैसे ही सतरंगी सपने नाचने लगते थे.

पढ़ाईलिखाई में तेज होने के कारण परिवार खुशी को प्यार तो करता था, लेकिन उस के अरमानों को देखसुन कर घर वाले डर जाते थे. क्योंकि उन में बेटी को वहां तक पहुंचाने की ताकत नहीं थी.

यह बड़े शहर में रह कर ही संभव हो सकता था. गांव के स्कूल से खुशी ने कई बार ब्यूटी क्वीन का अवार्ड अपने नाम किए थे लेकिन उस की चमक गांव तक ही सीमित थी.

खुशी बचपन से ही अपनी मौसी के काफी करीब थी. उस की मौसी नागपुर में रहती थीं. वह भी खुशी के शौक से अनजान नहीं थीं. उन्होंने खुशी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और 10वीं पास करने के बाद उसे अपने पास नागपुर बुला लिया.

नागपुर आ कर जब उस ने अपना पोर्टफोलियो विज्ञापन एजेंसियों को भेजा तो उसे इवन फैशन शो कंपनी में जौब मिल गई. जौब मिलने के बाद खुशी ने अपनी आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी. उस ने नागपुर के जानेमाने स्कूल में एडमिशन ले लिया. अब खुशी अपनी पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम विज्ञापन कंपनियों और फैशन शो के लिए काम करने लगी.

धीरेधीरे खुशी की पहचान बननी शुरू हुई तो उस के परिचय का दायरा भी बढ़ने लगा. फैशन और मौडलिंग जगत में उस के चर्चे होने लगे. धीरेधीरे सोशल मीडिया पर उस के हजारों फैंस बन गए थे. खुशी भी उन का दिल रखने के लिए उन का मैसेज पढ़ती थी और अपने हिसाब से जवाब भी देती थी. वह अपने नएनए पोजों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी.

इस तरह नागपुर आए उसे 3 साल गुजर गए. अब उस का बी.कौम. का अंतिम वर्ष था. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूरी तरह मौडलिंग और टीवी की दुनिया में उतरती, इस के पहले ही उस की जिंदगी में मनचले अशरफ शेख की एंट्री हो गई.

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अपने प्रति अशरफ शेख की दीवानगी देख कर खुशी भी धीरेधीरे उस के करीब आ गई. कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अशरफ शेख दिल खोल कर खुशी पर पैसा बहा रहा था. वह उस की हर जरूरत पूरी करता था.

अशरफ शेख और खुशी की दोस्ती की खबर जब खुशी के परिवार वालों और मौसी तक पहुंची तो उन्होंने उसे आड़े हाथों लिया. उन्होंने उसे समझाया भी. चूंकि अशरफ दूसरे धर्म का था, इसलिए उसे समाज और रिश्तों के विषय में भी बताया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. खुशी अशरफ शेख के प्यार में गले तक डूब चुकी थी.

मौसी और परिवार वालों की बातों पर ध्यान न दे कर वह अशरफ शेख के लिए मौसी का घर छोड़ कर उस के साथ गिट्टी खदान में किराए का मकान ले कर लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

अब खुशी पूरी तरह से आजाद थी. कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. अशरफ शेख उस का बराबर ध्यान रखता था. उसे उस के कालेज और फैशन शो में ले कर जाता था.

बाद में खुशी ने तो अपना नाम भी बदल कर जास शेख रख लिया था. प्यार का एहसास दिलाने के लिए उस ने हाथ और दिल पर टैटू भी बनवा लिए थे.

खुशी अशरफ शेख के साथ खुश थी. वह मौडलिंग के क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाने में लगी  थी. उस का सपना था कि वह सुपरमौडल बने, जिस से देश भर में उस का नाम हो. लेकिन अशरफ शेख ने जब से खुशी के साथ निकाह करने का फैसला किया था, दोनों के बीच तकरार बढ़ गई थी.

इस की वजह यह थी कि अशरफ नहीं चाहता था कि खुशी बाहरी लोगों से मिले और देर रात तक घर से बाहर रहे. वह अब खुशी के हर फैसले में अपनी टांग अड़ाने लगा था. वह चाहता था कि खुशी अब मौडलिंग वगैरह का चक्कर छोड़े और सारा दिन उस के साथ रहे और मौजमस्ती करे.

लेकिन खुशी को यह सब मंजूर नहीं था. उस का कहना था कि उस ने जो सपना बचपन से देखा है, उसे हर हाल में पूरा करना है. मौडलिंग की दुनिया में वह अपने आप को आकाश में देखना चाहती थी, जो अशरफ को गवारा नहीं था. इसी सब को ले कर अब खुशी और अशरफ के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों में अकसर तकरार और छोटेमोटे झगड़े भी होने लगे थे.

अशरफ को यकीन हो गया था कि खुशी अपने इरादों से पीछे हटने वाली नहीं है. अब तक वह खुशी पर बहुत रुपए खर्च कर चुका था और खुशी उस का अहसान मानने को तैयार नहीं थी. खुशी का मानना था कि प्यार में पैसों का कोई मूल्य नहीं होता.

यह बात अशरफ को चुभ गई थी. उस ने अपने 5 महीनों के प्यार और दोस्ती को ताख पर रख दिया और घटना के 2 दिन पहले 12 जुलाई, 2019 को अपनी कार नंबर एमएच03ए एम4769 से खुशी को ले कर एक लंबी ड्राइव पर निकल गया.

दोनों नागपुर शहर से काफी दूर ग्रामीण इलाके में आ गए थे. कुछ समय वह पाटुर्णानागपुर रोड पर यूं ही कार को दौड़ाता रहा फिर दोनों ने सावली गांव के करीब स्थित कलमेश्वर इलाके के शर्मा ढाबे पर  खाना खाया और जम कर शराब पी.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इलाका सुनसान हो गया था. कार में बैठने के बाद अशरफ शेख ने अपना वही पुराना राग छेड़ दिया, जिस से खुशी नाराज हो गई. खुशी पर भी नशा चढ़ गया था. उस का कहना था कि वह आजाद थी और आजाद रहेगी. वह जिस पेशे में है, उस में उसे हजारों लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है. उन का कहना मानना पड़ता है. अगर तुम्हें मुझ से कोई तकलीफ है तो तुम मुझ से बे्रकअप कर सकते हो.

‘‘मुझे लगता है कि अब तुम्हारा मन मुझ से भर गया है और तुम किसी और की तलाश में हो.’’ अशरफ बोला.

‘‘यह तुम्हारा सिरदर्द है मेरा नहीं. मैं जैसी पहले थी अब भी वैसी ही रहूंगी.’’ खुशी ने कहा तो दोनों की कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई. उसी समय अशरफ अपना आपा खो बैठा और कार के अंदर ही खुशी के सिर पर मार कर उसे बेहोश कर दिया.

खुशी के बेहोश होने के बाद अशरफ इतना डर गया कि वह अपनी कार सावली गांव के इलाके में एक सुनसान जगह पर ले गया और उस ने खुशी को हाइवे किनारे जला दिया.

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इस के बाद अपनी और खुशी की पहचान छिपाने के लिए उस ने कार के अंदर से टायर बदलने का जैक निकाल कर उस का चेहरा विकृत किया और उस के ऊपर बैटरी का एसिड डाल दिया.

खुशी का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने खुशी का मोबाइल अपने पास रख लिया, जिसे क्राइम टीम ने बरामद कर लिया था. इस के बाद वह आराम से अपने घर चला गया और खुशी की मौसी को फोन पर बताया कि उस का और खुशी का झगड़ा हो गया है. वह अपने गांव चली गई है.

उस का मानना था कि 2-4 दिनों में खुशी के शव को जानवर खा जाएंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. लेकिन यह उस की भूल थी. वह क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार के हत्थे चढ़ गया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने अशरफ से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे केलवद ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मट्टामी को सौंप दिया. आगे की जांच टीआई सुरेश मट्टामी कर रहे थे.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

अभिनेता : भाग 2

दूसरे दिन अनिल त्यागी के आग्रह पर इंटरव्यू देने के लिए साहिल शर्मा नियत समय पर रेडियो स्टेशन पहुंच गया. सागर कपूर स्टूडियो में उसका इंतजार कर रहे थे. अनिल त्यागी के साथ अन्दर आते उस नौजवान को देखकर एकबारगी तो सागर कपूर हक्का-बक्का से रह गये. अनिल त्यागी ने दोनों का परिचय कराया. साहिल को देखकर सागर कपूर को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह साहिल नहीं, बल्कि उसकी जगह पर वह स्वयं खड़े हों… पच्चीस-छब्बीस साल पहले का सागर… ऐसा ही लम्बा… खूबसूरत… वही चेहरा… वही आंखें…

आज सफेद बालों और झुर्रियों वाले पचपन साला सागर को देखकर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता कि पच्चीस साल पहले वे बिल्कुल इस नौजवान की तरह दिखते थे. साहिल को देखकर तो सागर कपूर सारे सवाल ही भूल गये. वे टकटकी लगाये उस चेहरे में डूब गये. साहिल अनिल त्यागी से बातें कर रहा था… उसकी खिलखिलाहट, उसकी उन्मुक्त हंसी, उसकी बातचीत का ढंग हर चीज में सागर को बार-बार कोई जानी-पहचानी सी छवि दिख रही थी… कौन…? उसे याद नहीं आ रहा था.

उस दिन सागर कपूर ने बड़ी मुश्किल से साहिल का इंटरव्यू खत्म किया. बीस मिनट के अपने कार्यक्रम के लिए उन्होंने मॉडलिंग और रैम्प से जुड़े साहिल के अनुभवों और स्ट्रगल के बारे में बातें कीं… उसकी पसन्द के कई गानों के रिकॉर्ड्स भी बजाए… लेकिन कुछ सवाल रह गये जो सागर कपूर के सीने में तूफान बन कर उठ रहे थे… होंठों पर आने के लिए मचल रहे थे… मगर कैसे? हिम्मत नहीं हो रही थी….

इंटरव्यू खत्म हो चुका था. साहिल जाने की तैयारी में था. उसने सागर कपूर से हाथ मिलाया, ‘थैंक यू’ कहा और बाहर की ओर चल पड़ा. सागर कपूर उसके साथ ही उठ खड़े हुए.

स्टूडियो से बाहर निकलते हुए उन्होंने हौले से पुकारा, ‘साहिल…’

‘यस…!’ साहिल ने पलट कर पूछा.

‘एक सवाल रह गया था…’ उन्होंने झिझकते हुए कहा, ‘आपके माता-पिता… उनके बारे में मैंने कुछ नहीं पूछा… क्या मैं उनके बारे में जान सकता हूं….?’

‘सर, मेरे पिता नहीं हैं… सात-आठ बरस का था मैं, जब उनका देहान्त हो गया… मां हैं… यहीं इसी शहर में रहती हैं… आज उन्हीं का स्नेह और आशीर्वाद है जो मैं यहां तक पहुंच पाया हूं… मां ही मेरा सबकुछ हैं… मैं उनसे बहुत प्यार करता हूं…’

‘क्या मैं उनका नाम…?’ सागर की जुबान लड़खड़ा गयी.

‘मेरी मां का नाम सरिता शर्मा है… मौका मिले तो घर आइये… मैं अभी हफ्ते भर यहीं हूं… ये रहा मेरा एड्रेस…’ साहिल ने अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर सागर कपूर को थमा दिया और लम्बे-लम्बे डग भरता अपनी कार की तरफ बढ़ गया.

‘सरिता शर्मा… सरिता… सरिता…’ यह नाम सागर कपूर के दिमाग पर हथौड़े की तरह बज रहा था. उनका सारा शरीर सुन्न हो गया, खून जैसे नसों में जम गया था. ‘तो क्या सरिता इसी शहर में है…? और यह साहिल… बिल्कुल मेरी जेरॉक्स कॉपी… सरिता शर्मा का बेटा….? सरिता शर्मा और विनय शर्मा का…? या सरिता और सागर कपूर का…?’

वक्त भी इंसान को क्या-क्या रंग दिखाता है. इंटरव्यू के जरिये दूसरों की जिन्दगी खंगालने वाले सागर कपूर की अपनी जिन्दगी के पन्ने अगर कोई उलट दे तो शायद एक ऐसा किरदार उभर कर सामने आये जो अपनी जवानी के दिनों में न सिर्फ रंगमंच पर अभिनय करता था, वरन उसने अपनी निजी जिन्दगी में भी कई नाटक खेले थे. हुस्न की आगोश और सपनों की दुनिया में विचरण करने वाला सागर… दौलत से दुनिया खरीदने का दम रखने वाला सागर… खूबसूरत लड़कियां जिसकी कमजोरी थीं. अब तो उसे गिनती भी याद नहीं कि कितनी लड़कियां उसकी जिन्दगी में आयीं-गयीं… मगर एक लड़की… जिसे वह कभी भुला नहीं पाया… सरिता शास्त्री… एक कुशल लेखिका और पत्रकार… मुम्बई के एक ख्यात अखबार की रिपोर्टर थी सरिता…

सागर का मुम्बई में अभिनय का सफर अभी शुरू ही हुआ था, जब एक नाटक की समाप्ति के पश्चात सरिता शास्त्री बैकस्टेज उसका इंटरव्यू लेने पहुंची थी. सागर के अभिनय से वह बेहद प्रभावित दिख रही थी. बार-बार उसकी तारीफ कर रही थी. मगर उसकी तारीफ में कोई चापलूसी नहीं थी, जो आमतौर पर उसके जवां हैंडसम लुक को देखकर लड़कियां करने लगती थीं. सरिता की बातों में सच्चाई समाहित थी. कुछ सीन पर उसने विस्तार से बात भी की थी. इसका मतलब था कि सरिता ने नाटक को काफी गम्भीरता से देखा और समझा था. उस रोज सागर ने मंच पर वाकयी बहुत अच्छा काम किया था. वह उस दिन खेले गये नाटक का नायक था और अपनी एक्टिंग को लेकर वह खुद भी काफी संतुष्ट महसूस कर रहा था. मेकअप रूम में बैठ कर वह सरिता के सवालों का जवाब विस्तार से दे रहा था. सरिता के सवाल दूसरे रिपोटर्स के सवालों से भिन्न थे. गहरे थे. सरिता के फीचर्स तो बहुत शार्प नहीं थे, रंग भी गेहुआं था, मगर उसका व्यक्तित्व और उसकी बातें बहुत आकर्षित करने वाली थीं. उसकी बोलती हुई सी बड़ी-बड़ी आंखें, लम्बे बाल, मीठी आवाज और कसे हुए सवाल. आमतौर पर कल्चरल बीट कवर करने वाले पत्रकार चाहे वह प्रिंट के हों या टीवी के, काफी बन-संवर कर रहते हैं. मेकअप और उत्तेजक कपड़ों में बेहद ग्लैमरस दिखते हैं, मगर सरिता उनसे भिन्न थी… उसके चेहरे पर कोई लीपापोती नहीं थी… कोई बनावटीपन नहीं था…. वह बेहद सीधी और सहज नजर आती थी.

पूरे एक घंटे की बातचीत के दौरान सागर को पल भर के लिए भी अनकम्फर्टेबल महसूस नहीं हुआ. एक घंटे में वह अपने तमाम सपनों और ख्वाहिशों के बारे में सरिता को बताता चला गया. उस सरिता के बुद्धिमत्ता भरे सवालों के जवाब देने में उसे बहुत खुशी महसूस हो रही थी. इससे पहले किसी ने इतने विस्तार से उसका इंटरव्यू नहीं लिया था. अक्सर नाटक खत्म होने के बाद रिपोटर्स की भीड़ कलाकारों को घेर लेती थी और चंद उड़ते-उड़ते सवाल पूछ कर छंट जाती थी.

दूसरे दिन अखबार का पूरा अन्तिम पेज सागर कपूर के फोटोग्राफ्स और उसके अभिनय की तारीफों से रंगा हुआ था. यह पहली बार था जब किसी प्रमुख अखबार ने उसे इतना स्पेस दिया था. उस एक इंटरव्यू ने रातों-रात सागर को इतनी शोहरत दे दी, कि चंद दिनों में ही उसकी झोली में कई नये प्रोजेक्ट्स आ गिरे. यह सब सरिता की लेखनी का कमाल था. सागर खुशी से फूला नहीं समा रहा था. उसने सरिता शास्त्री को फोन करके धन्यवाद दिया और दोबारा उससे मिलने की ख्वाहिश प्रकट की.

‘अब तो आपके अगले नाटक में ही मुलाकात होगी…’ सरिता ने हंसते हुए कहा था.

‘हां-हां, मेरा अगला नाटक तीस तारीख को है, आप जरूर आइयेगा…’ वह बड़ी उत्सुकता से बोला.

‘इंविटेशन कार्ड भेजेंगे तो जरूर आऊंगी…’ वह हंसती हुई बोली.

और फिर तीस तारीख से हफ्ता भर पहले ही सागर स्वयं कार्ड लेकर उसके अखबार के दफ्तर में पहुंच गया. अखबार की कैंटीन में सरिता के साथ बातचीत करते और कॉफी पीते हुए सागर इस बात को अच्छी तरह समझ रहा था कि ग्लैमर की दुनिया में पैर जमाने हैं तो मीडिया को अपना साथी बनाना पड़ेगा.

सरिता ने सागर को अपने अखबार में जगह दी तो शहर के अन्य अखबारवाले भी उसको कवर करने लगे थे. अब सागर कपूर के प्रत्येक नाटक की समीक्षा, उसके अभिनय की प्रशंसा नित्य ही समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थी. यह सब सरिता की बदौलत था कि एक अदना सा रंगमंच का कलाकार तेजी से शोहरत की ओर बढ़ रहा था. उसके लिए कामयाबी के दरवाजे एक के बाद एक खुलते जा रहे थे. दूसरी तरफ सागर और सरिता की दोस्ती भी गहरी होती जा रही थी. वे फोन पर खूब बातें करते, मौका मिलते ही एक दूसरे से मिलने पहुंच जाते. साथ घूमने जाते, शॉपिंग करते और अपनी पसंद-नापसंद, करियर के बारे में तमाम बातें करते. तकल्लुफ की कोई दीवार अब उनके बीच नहीं रह गयी थी, दोस्ती बढ़ते-बढ़ते प्यार के दायरे में जा पहुंची थी.

जब बुढ़ापे में हो जाए प्यार

चंद्रकला कौलोनी का प्राइवेट ओल्डएज होम रंगीन पन्नियों, फूलों और रंग-बिरंगे जगमगाते बल्बों के बीच बिल्कुल दुल्हन सरीखा नजर आ रहा था. ओल्डएज होम यानी वृद्धाश्रम, जहां जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर मौत का इंतजार करते, जिन्दगी से बेजार, लाचार, दुखी, अकेले और अपने ही घरों से जबरन बाहर ढकेल दिये गये बुजुर्ग रहते हैं, वहां इस तरह का नजारा आसपास रहने वाले लोगों में कौतूहल पैदा कर रहा था. जो लोग इस वृद्धाश्रम की ओर कभी झांकते तक न थे, आज वे भी उसके बरामदे में इकट्ठा थे. थोड़ी देर में एक पंडितजी भी अपने दो चेलों के साथ आ पहुंचे. वृद्धाश्रम के मालिक रामदयाल मनसुख को पंडितजी के आने की खबर मिली तो वे भागे-भागे द्वार तक आये और बड़े आदर-सत्कार के साथ उन्हें भीतर ले गये. अन्दर छोटे से आंगन में लगन-मंडप सज रहा था. अनुपम दृश्य था. चारों तरफ बुजुर्गों की चहल-पहल थी. बूढ़े चेहरों पर आज अनोखी खुशी छलक रही थी. फूलों और इत्र की महक के साथ-साथ पकवानों की सुगंध उड़ रही थी. हल्का-हल्का म्यूजिक बज रहा था. स्पष्ट था कि आज यहां किसी की शादी है. मगर किसकी? आखिर वृद्धाश्रम में कौन युवा है, जो आज शादी के बंधन में बंधने जा रहा है?

थोड़ी ही देर में मोहल्ले वालों की जिज्ञासा शान्त हुई. कुछ ही देर में रेशमी लाल साड़ी में सजी 75 वर्षीया सुहासिनी काला और सफेद धोती-कुर्ते पर रंगीन सदरी में 79 वर्षीय कांतिदास लगन मंडप में आ बैठे. पंडित जी ने मंत्र पढ़ने शुरू किये, हवनकुंड में आहुतियां पड़ीं, फेरे हुए और कांतिदास ने सुहासिनी काला की मांग में सिंदूर भर कर गले में मंगलसूत्र पहना दिया. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शुभकामनाओं की झड़ी लग गयी. शादी में शरीक सभी लोगों को वृद्धाश्रम के मालिक ने खाने का निमंत्रण दिया और शर्माते-लजाते दूल्हा-दुल्हन को लेकर खाने की टेबल की ओर चल पड़े.

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उस रात वृद्धाश्रम का एक कमरा सुहासिनी काला और कांतिदास का सुहागकक्ष बना और बाद में उन दोनों का सामान भी उसी कमरे में शिफ्ट कर दिया गया. अब वह उन दोनों का कमरा था. आखिर वे पति-पत्नी जो बन गये थे. उम्र के अंतिम पड़ाव पर दोनों के मन में एक बार फिर से जिन्दगी जीने की ललक उठी थी. एक दूसरे के लिए प्रेम उत्पन्न हुआ था. एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था. घंटों एक दूसरे के साथ बिताने के बाद भी मन नहीं भरता था. उन्हें एक दूसरे की चिन्ता होती थी. सुबह शाम का खाना दोनों साथ ही खाते थे. बाहर के छोटे से लॉन में साथ बैठ कर धूप सेंकते थे. उनकी गहरी दोस्ती सबको नजर आ रही थी. एक रोज वृद्धाश्रम के मालिक रामदयाल मनसुख ने बातों-बातों में कांतिदास से कह दिया कि सुहासिनी जी के साथ उनकी जोड़ी अच्छी जमती है, क्यों नहीं उन्हें जीवनसाथी बना लेते हैं?

कांतिदास झेंप गये. फिर धीरे से बोले, ‘अब इस उम्र में क्या शादी करूंगा?’ हालांकि उनके मन में तो इस बात से ही चुलबुली होने लगी थी. खुशियों के लड्डू फूटने लगे थे. और यह खुशी उनके चेहरे पर भी छलक आयी थी. रामदयाल उनके दिल की बात समझ रहे थे. अनुभवी आदमी थे और वैसे भी प्यार छिपाये नहीं छिपता, वह समझाते हुए बोले, ‘प्यार के बीच में उम्र कहां से आ गयी? आप दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लगता है, आप दोनों एक दूसरे को पसन्द करते हैं तो शादी क्यों नहीं कर लेते? आपको शादी से रोकने वाला कौन है? हमें तो बहुत खुशी होगी अगर हमारे वृद्धाश्रम से इस बात की शुरुआत होगी? आखिर अकेले रहने की सजा क्यों भुगतना? अगर मन को कोई अच्छा लगता है तो छाती ठोंक कर उसे अपना बना लीजिए. हम सब आपके साथ हैं. आप सुहासिनी जी से बात करिये. मुझे लगता है वह भी न नहीं कहेंगी.’ और बस बात बन ही गयी. घर, परिवार, बच्चों और नाती-पोतों से दूर कर दिये गये दो अकेले बुजुर्गों को एक-दूसरे का साथ और प्यार मिल गया.

सुहासिनी काला इस आश्रम में पिछले पांच साल से रह रही हैं. उनकी तीन शादीशुदा बेटियां इसी शहर में हैं, मगर मां के लिए उनके घरों में कोई जगह नहीं है. पिता की मौत के बाद तीनों ने मिलबैठ कर गुपचुप उनकी प्रॉपर्टी एक बिल्डर के हाथों बेच दी और सारे पैसे आपस में बांट लिये. मां को कुछ दिन के लिए कभी एक बहन तो कभी दूसरी बहन अपने पास रखने लगी, मगर जल्दी ही यह सिलसिला भी खत्म हो गया. तीनों ने मां के लिए यह वृद्धाश्रम खोज निकाला और एक सूटकेस के साथ उन्हें यहां पटक गयीं. पहले एकाध साल तक तो हफ्ते-दो हफ्ते में कोई न कोई आकर उन्हें देख जाता था, मगर धीरे-धीरे सबका आना बंद हो गया. कांतिदास का भी यही हाल था. उन्होंने अपने जीवनभर की कमाई अपने दोनों बेटों को पालने और उन्हें अच्छी नौकरी में सेट करने में लगा दी. बाद में दोनों विदेश जाकर सेटल हो गये. अब विधुर पिता को कोई पूछता भी नहीं है. कांतिदास बिल्कुल अकेले पड़ गये थे. सारा दिन अकेले घर में भूत की तरह बैठे पुराने दिनों को याद करके रोया करते थे. तब किसी ने उनको इस वृद्धाश्रम का पता बताया. उनकी उम्र के यहां काफी लोग थे, लिहाजा कांतिदास अपना छोटा सा घर बेचकर यहां आ गये ताकि मरने के बाद कोई दाहसंस्कार करने वाला तो हो. मगर अब सुहासिनी काला से शादी के बाद कांतिदास में जीने की नई इच्छा जाग उठी है.

ऐसे कितने ही बुजुर्ग हैं जो घर-परिवार, बच्चों-रिश्तेदारों के होते हुए भी नितान्त अकेले हैं. ऐसा नहीं है कि घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद भावनाएं, प्रेम और इच्छाएं भी इन्सान को मुक्त कर देती हैं. हरगिज नहीं, बल्कि बुढ़ापे में तो प्यार और स्नेह की जरूरत पहले के मुकाबले और ज्यादा महसूस होती है. हर बूढ़े व्यक्ति की ख्वाहिश होती है कि कोई न कोई उसके पास हो, जिससे वे जीवन भर के अनुभवों को साझा कर सकें. जब करने को कुछ न हो तो फिर बातें ही होती हैं, जिन्हें सुनने वाला भी कोई चाहिए. ऐसे में जब पति या पत्नी में से कोई एक पहले चला जाए तो अकेला जीवन बड़ा कठिन हो जाता है.

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अक्सर मौर्निंग वाक पर निकलने वाले बुजुर्गों को आपने देखा होगा कि वे अपनी उम्र के लोगों से जल्दी ही दोस्ती कर लेते हैं. पार्क इत्यादि में अपने पसन्द के साथी के साथ गुफ्तगू करने में उन्हें खूब आनन्द आता है. हालांकि समाज और परिवार क्या कहेगा, इस डर से स्त्री-पुरुष अकेले बैठ कर बातचीत करते कम ही नजर आते हैं, लेकिन ग्रुप में वह खूब हंसी-ठिठोली करते हैं. आज अगर सामाजिक मान्यताओं-बंदिशों और बदनामी का डर न हो तो उम्र के अन्तिम पड़ाव पर पहुंच चुके लोगों में भी जीवन के प्रति वही रंग और रोमांच दिखने लगे, जो जवानों में होता है.

जरूरत है एक साथी की

जीवनसाथी की जरूरत सिर्फ यौन आवश्यकताएं पूरी करने या बच्चे पैदा करने के लिए नहीं होती, बल्कि इससे अलावा भी कई मानसिक और भावनात्मक जरूरतें हैं, जिसके लिए कोई करीबी साथी चाहिए. एक बुजुर्ग व्यक्ति की जरूरतों और उसकी भावनाओं को उसका हमउम्र व्यक्ति जितनी सरलता से समझ सकता है, वह जवान या बच्चे नहीं समझ सकते हैं. बूढ़ों के पास बहुत सारी बातें होती हैं, पुरानी यादें होती हैं, अनुभव और उदाहरण होते हैं, जो वे बांचना चाहते हैं, लेकिन युवाओं या बच्चों के पास उन्हें सुनने का वक्त कहां होता है? ऐसे में इन बुजुर्गों को जरूरत होती है एक ऐसे साथी की, जो हर वक्त उनके पास रहे. अपनी-अपनी लाइफ में बिजी युवाओं को अपने अकेले रह गये माता या पिता की इस इच्छा की ओर देखने और समझने की जरूरत है और अगर उन्हें कोई हमउम्र साथी पसन्द है तो सामाजिक बंधनों और मान्यताओं को ताक पर रख कर अपने बुजुर्गों की खुशी को पूरा करने की पहल करनी चाहिए, ताकि जीवन के प्रति उनका उत्साह भी अंतिम सांस तक बना रहे.

वृद्ध मेट्रीमोनी सर्विस की शुरुआत

यह एक ऐसा काम है जिसकी शुरुआत विदेशों में हो चुकी है, वहां वृद्धावस्था कोई बोझ नहीं है, लोग बुढ़ापे में भी खूब शादियां कर रहे हैं, मगर भारतीय समाज अभी तक कुंठाओं और मान्यताओं में दबा कराह रहा है. हाय, इस उम्र में शादी करेंगे तो लोग क्या कहेंगे… ऐसी मानसिकता से लोग बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं. इस दिशा में चेतना फैलाए जाने और वृद्ध मेट्रीमोनी सर्विस शुरू करने की जरूरत है. इसके अलावा वृद्धाश्रमों में रह रहे बूढ़ स्त्री-पुरुषों को भी आपस में शादी करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि झिझक त्याग कर वे खुले दिल से अपनी जिन्दगी में उसका स्वागत कर सकें जिससे वे प्यार करने लगे हैं.

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बच्चों को भी मिलेगी राहत

आजकल महानगरों में ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों में भी ज्यादातर युवा रोजगार के कारण दूसरे शहरों या विदेशों में रहते हैं. दिल्ली जैसे शहर में हर दूसरे-चौथे घर में कोई न कोई बुजुर्ग मिल जाएगा, जो अकेला जीवन व्यतीत कर रहा है. ऐसे में उनसे दूर रह रहे बच्चे यह सोच कर परेशान होते रहते हैं कि – पता नहीं आज मेड आयी या नहीं, उनको खाना मिला या नहीं, वे बीमार तो नहीं है आदि आदि. वे फोन पर उनका हालचाल लेते हैं और इनमें से कोई भी बात पता चलने पर व्याकुल हो जाते हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए यदि वे अपने अकेले रह गये माता या पिता के लिए एक अच्छा रिश्ता ढूंढ दें और उनका घर फिर से बसा दें, तो उनकी रोजमर्रा की चिन्ता से मुक्त हो सकेंगे. मृत्यु तो एक दिन सबको आनी है मगर उसका इंतजार करने में जिन्दगी जाया करने बेहतर है कि जिन्दगी को किसी मनपसंद साथी के साथ खुशी-खुशी जिया जाए.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान: स्थापना दिवस पर पद्मश्री किसानों ने दिए खेती के टिप्स

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली ने 1 अप्रैल, 2019 को अपना स्थापना दिवस मनाया. यह एक दिन का उत्सव था जो 4 अलगअलग सत्रों में चला. इस मौके पर डाक्टर पीके मिश्रा, प्रधान सचिव (प्रधानमंत्री कार्यालय), डाक्टर त्रिलोचन महापात्रा, सचिव डेयर और डीजी, आईसीएआर की मौजूदगी में आईएआरआई में कृषि नवाचार केंद्र की आधारशिला रखी.

डाक्टर एके सिंह, डीडीजी (ऐक्सटैंशन) और निदेशक, आईएआरआई, डाक्टर जेपी शर्मा, संयुक्त निदेशक (ऐक्सट्रीम), डाक्टर एके सिंह, संयुक्त निदेशक (आरईएस) और?डाक्टर रश्मि अग्रवाल, डीन और संयुक्त निदेशक (शिक्षा) भी इस मौके पर मौजूद थे.

पहले सत्र के दौरान संस्थान में चित्रकला और वादविवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिन में 13 स्कूलों के 130 बच्चों ने हिस्सा लिया. इस प्रतियोगिता का विषय ‘स्वच्छ भारत’ था. संस्थान में स्थापना दिवस में इस मौके पर दिल्ली प्रैस के प्रतिनिधि भी वहां मौजूद थे जिन्होंने प्रतियोगिता में?भाग लेने वाले सभी बच्चों को बच्चों की पसंदीदा पत्रिका ‘चंपक’ बांटी और साथ में वहां मौजूद किसानों को भी खेतीकिसानी की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ वितरित की गई. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाक्टर पीके मिश्रा ने विजेताओं को पुरस्कार दिए.

स्वागत भाषण में?डाक्टर एके सिंह ने कहा कि यह संस्थान 114 वर्षों से कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में और कृषि शिक्षा में बेहतर भूमिका निभा रहा?है. उन्होंने खेतों और बागबानी फसलों की अच्छी उपज देने वाली किस्मों के विकास में आईएआरआई की भूमिका पर जोर दिया.

डाक्टर पीके मिश्रा ने भी आईएआरआई की भूमिका की प्रशंसा की. उन्होंने हरित क्रांति में योगदान के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि आईएआरआई की यह विरासत देश के हित में होने वाले अनुसंधानों को और आगे बढ़ाए ताकि भारत भूख और कुपोषण से लड़ने में सक्षम हो सके. संरक्षण कृषि और जलवायु परिवर्तन के शमन पर किए जा रहे कामों के बारे में रोशनी डाली. उन्होंने कहा कि यह संस्थान किसानों, सरकार और अन्य लोगों की उम्मीदों को पूरा करेगा.

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किसानों के अनुभवों को साझा किया गया. किसानों के लिए इस शानदार सत्र की शुरुआत संयुक्त निदेशक (ऐक्सटैंशन) डाक्टर जेपी शर्मा ने की. मंच पर पद्मश्री से सम्मानित किसानों में कंवल सिंह चौहान, सुलतान सिंह, भारत भूषण?त्यागी, हुकुमचंद पाटीदार और राम शरण वर्मा अधिकारियों के साथ मौजूद थे. उन्होंने अपने संघर्षों, अनुभवों और उपलब्धियों को दूसरे लोगों के साथ साझा किया.

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कार्यक्रम का तीसरा सत्र डाक्टर शेखर सी. मांडे, महानिदेशक, सीएसआईआर और सचिव डीएसआईआर, जीओआई द्वारा प्रस्तुत किया गया था. डाक्टर सी. मांडे ने अनुसंधान और विकास के?क्षेत्र में अपने अनुभव और उपलब्धियों को साझा किया.

इस सत्र के दौरान प्रशासनिक, तकनीकी और सहायक कर्मचारियों की प्रत्येक श्रेणी में 2 कर्मचारियों को आईएआरआई बैस्ट वर्कर अवार्ड भी दिए गए. कार्यक्रम का समापन पूसा इंस्टीट्यूट लेडीज एसोसिएशन (पीआईएलए) के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए गए मनोरंजक

व सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक शृंखला के साथ हुआ.

कामयाब किसानों की कहानी उन्हीं की जबानी

कंवल सिंह चौहान : अटेरना, सोनीपत, हरियाणा के रहने वाले कंवल सिंह चौहान ने बताया कि उन्होंने साल 1978 में खेती की शुरुआत की. वे एमए, एलएलबी भी हैं. उन्होंने बताया ‘‘मेरा रुझान राजनीति में भी रहा. 1982 में मैं ने युवाओं को इकट्ठा करने का काम किया और समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ आंदालेन भी चलाया. गांव में सरपंच का चुनाव भी लड़ा जिस में 2 बार जीत हासिल की.’’

उन्होंने आगे बताया ‘‘पहले हम धान की खेती करते थे लेकिन 1980 में उस में बीमारी आने लगी. फिर मैं ने बायोगैस प्लांट लगाया. चावल की मिल भी लगाई लेकिन कामयाबी नहीं मिली. उस के बाद 1998 में बेबीकौर्न की जैविक खेती शुरू की. मछलीपालन, मशरूम उत्पादन का भी काम किया, जिस में अनेक मजदूरों को रोजगार मिला.

‘‘आज देश में खेती को?घाटे का सौदा समझा जाने लगा है, लेकिन ऐसा नहीं?है. हरियाणा के किसान इस के उदाहरण?हैं. आज हमारे अटेरना गांव के किसान बेबीकौर्न की खेती कर लाखों रुपए कमा रहे?हैं. यहां बेबीकौर्न की खेती की शुरुआत मैं ने ही की थी और इस में फायदा देख बाकी किसान भी इस की खेती करने लगे.’’

कंवल सिंह चौहान ने बताया कि किसानों ने अपने प्रयास से किसान समिति का गठन किया और अपनी फसल को सब्जी मंडी में न बेच कर खुद ही पैकिंग कर सीधे ग्राहक तक पहुंचा रहे?हैं जिस में दिल्ली और आसपास के बड़े होटलों में सप्लाई भी की जाती?है.

हुकुमचंद पाटीदार : गांव मानपुरा, जिला झालावाड़, राजस्थान के हुकुमचंद पाटीदार जैविक खेती की मिसाल हैं. उन्होंने कहा कि देश में औद्योगिक क्षेत्र को नजर में रख कर नीतियां बनीं, न कि किसानों को ध्यान में रख कर. किसान प्रकृति से दूर होते चले गए, पशुपालन और पारंपरिक खेती खत्म होने लगी. 60 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत हुई, उस के बाद अन्न की पैदावार तेजी से बढ़ने लगी, अनाज गोदामों में सड़ने लगा. इन गोदामों में अनाज को लंबे समय तक स्टोर करते समय अनेक गैसें भी पैदा होती हैं. बाद में इसी अनाज को 1-2 रुपए किलो के हिसाब से राशन में गरीबों को बांटा जा रहा है. यह कम कीमत में मिलने वाला जहर है जिस से कैंसर जैसी अनेक बीमारियां हो रही हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैं मानता हूं, देश को अन्न की जरूरत भी है, लेकिन सुधार की भी जरूरत?है. हमारा पर्यावरण बहुत प्रदूषित है. देश में दूध की खान हैं, पर वह हाईवे पर फैल रहा?है. इस के लिए एक ऐसा आधुनिक मौडल तैयार हो जो पूरी तरह स्वास्थ्यवर्धक हो.’’

उन्होंने आगे बताया, ‘‘मैं ने साल 2004 से जैविक खेती की शुरुआत की. पर शुरुआती दौर में बहुत दिक्कतें आई, लोगों के उलाहने मिले. परंतु हम ने हार नहीं मानी और हमें इस में सफलता मिली. 2012 में हमारे इस मौडल का जिक्र फिल्म अभिनेता आमिर खान ने भी टीवी चैनल शो ‘सत्यमेव जयते’ में भी किया.’’

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हुकुमचंद पाटीदार का कहना?है कि किसान प्रकृति के अनुरूप खेती करें तो उन्हें जरूर सफलता मिलेगी. नीम, अमलताश जैसे पेड़ों को खेतों की मेंड़ पर लगाएं. औषधीय पौधों की खेती करें. पशुपालन पर जोर दें.

अंत में उन्होंने कहा कि ‘जैसा खाएगा अन्न, वैसा बनेगा मन’ इसलिए हमें अच्छा उगाना है, अच्छा खाना है.

राम शरण वर्मा : बाराबंकी, उत्तर प्रदेश के रहने वाले किसान राम शरण वर्मा ने बताया कि वह केवल 10वीं जमात तक पढ़े हैं. उन्होंने साल 1986 से एक एकड़ जमीन से खेती की शुरुआत की जो अब बढ़ कर 150 एकड़ पर खेती कर रहे हैं. साल 1990 में टिश्यू कल्चर केले की शुरुआत की. इस के अलावा वे टमाटर, मेंथा (जापानी पुदीना) की भी खेती कर रहे हैं.

केले की फसल के बारे में उन्होंने बताया कि यह हम जुलाई में लगाते?हैं. एक पेड़ पर 100 रुपए का खर्च आता है जिस से आमदनी बहुत अच्छी मिलती है. केले की बड़ी मार्केट दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में हैं.

मेंथा के बारे में उन्होंने बताया कि हम मेंथा की कोशी वैरायटी लगाते हैं जिस पर एक एकड़ में 15-20 हजार रुपए का खर्च आता है. फसल तैयार होने पर 60 किलोग्राम मेंथा औयल निकलता है. यह 3 महीने की फसल होती है जो जून के पहले हफ्ते में काटने लायक हो जाती है. उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि अगर किसान फसल चक्र के साथ खेती करें तो उन्हें अच्छा फायदा मिलेगा.

आखिर में उन्होंने बताया कि इस समय वे 200 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे?हैं जिस में अनेक तरह की फसलें उगाते हैं. सालभर में हम तकरीबन 25,000 लोगों को रोजगार देते हैं जिस में 300 से 400 रुपए मजदूरी दी जाती है.

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इस एयरपोर्ट पर होती है बिना रनवे के विमानों की लैंडिंग

हर एयरपोर्ट की अपनी अपनी खासियत होती है. आपने कई एयरपोर्ट के बारे में सुना होगा, जिसकी कई खूबी अपने आप में अलग हो. लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसे एयरपोर्ट के बारे में सुना है जिसका कोई रनवे ही ना हो. पर  फिर भी वहां से विमान उड़ान भरते हैं.

जी हां एक ऐसा एयरपोर्ट भी है, जहां बिना रनवे के विमान उड़ान भरते हैं. दरअसल, स्कौटलैंड के बारा द्वीप पर ये एयरपोर्ट है. जो अपने आप में सबसे खास है. ये एयरपोर्ट  उत्तर अटलांटिक महासागर के तट  पर स्थित है जो दुनिया का पहला ऐसा हवाईअड्डा है जहां कोई रनवे नहीं है.

आपको बता दें, यहां बीच पर ही प्लेन लैंड करते हैं. उच्च ज्वार की स्थिति में यहां बाकायदा चेतावनी जारी की जाती है कि विमान लैंड ना करें. बारा दुनिया का अकेला एयरपोर्ट है, जहां शेड्यूल फ्लाइट्स लैंड करती हैं.

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इस एयरपोर्यट के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह एयरपोर्ट ग्लासगो एयरपोर्ट से भी जुड़ा हुआ है. समुद्री तूफान की आने की दशा में इसकी सूचना पर एयरपोर्ट बंद कर दिया जाता है और सभी उड़ानें रद्द कर दी जाती हैं. बारा एयरपोर्ट पर ज्यादातर छोटे विमान ही लैंड करते हैं. यहां रोजाना स्कौटिश एयरलाइन की दो फ्लाइट्स पहुंचती हैं.

यहां विमान रेत पर ही लैंड करता है. ज्वार आने के दौरान लैंडिंग का वक्त बदल दिया जाता है. यही नहीं बीच के किनारे एक छोटी सी बिल्डिंग बनाई गई है, जिसे टर्मिनल कहा जाता है. इसी टर्मिनल से एयरक्राफ्ट से बिल्डिंग तक जाने के लिए भी किसी भी तरह का ब्रिज या पट्टी नहीं बनाई गई है.

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