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सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री: भाग 1

लेखक: निखिल अग्रवाल

डा. प्रकाश सिंह वैज्ञानिक थे. उन का हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक दिन उन के फ्लैट में परिवार के सभी सदस्यों की लाशें मिलीं?

एक जुलाई की बात है. सुबह के करीब 7 बजे का समय था. रोजाना की तरह घरेलू नौकरानी जूली डा. प्रकाश सिंह के घर पहुंची. उस ने मकान की डोरबैल  बजाई. बैल बजती रही, लेकिन न तो किसी ने गेट खोला और न ही अंदर से कोई आवाज आई.

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. डा. प्रकाश सिंह का परिवार सुबह जल्दी उठ जाता था. रोजाना आमतौर पर डा. सिंह की पत्नी सोनू सिंह उर्फ कोमल या बेटी अदिति डोरबैल बजने पर गेट खोल देती थीं. उस दिन बारबार घंटी बजाने पर भी गेट नहीं खुला तो जूली परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज ऐसी क्या बात है, जो साहब की पूरी फैमिली अभी तक नहीं जागी है.

बारबार घंटी बजने पर घर के अंदर से पालतू कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं. कुत्तों की आवाज पर भी गेट नहीं खुलने पर जूली को चिंता हुई. उस ने पड़ोसियों को बताया. पड़ोसियों ने भी डोरबैल बजाई. दरवाजा खटखटाया और आवाजें दीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. थकहार कर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी.

यह बात हरियाणा के जिला गुरुग्राम के सेक्टर-49 स्थित पौश सोसायटी ‘उप्पल साउथ एंड’ की है. डा. प्रकाश इसी सोसायटी के एफ ब्लौक में 3 मंजिला बिल्डिंग के भूतल पर स्थित आलीशान फ्लैट में रहते थे.

वह वैज्ञानिक थे और नामी दवा कंपनी सन फार्मा में निदेशक रह चुके थे. करीब एक महीने पहले ही डा. सिंह ने इस सन फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ी थी. कुछ दिनों बाद उन्हें हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में नई नौकरी जौइन करनी थी.

55 वर्षीय डा. सिंह के परिवार में उन की पत्नी डा. सोनू सिंह, 20 साल की बेटी अदिति और 14 साल का बेटा आदित्य था. चारों इसी फ्लैट में रहते थे. डा. प्रकाश सिंह दवा कंपनी में वैज्ञानिक की नौकरी के साथसाथ पत्नी के साथ स्कूल भी चलाते थे. गुरुग्राम और पलवल में उन के 4 स्कूल थे. बेटी अदिति भी बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी जबकि बेटा नवीं कक्षा में पढ़ता था.

सोसायटी के लोगों की सूचना पर कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने भी पहले तो डा. सिंह के मकान की डोरबैल बजाई और कुंडी खटखटाई, लेकिन जब गेट नहीं खुला तो खिड़की तोड़ने का फैसला किया गया. खिड़की तोड़ कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो वहां का भयावह नजारा देख कर हैरान रह गई.

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बैडरूम में 3 लाशें पड़ी थीं. खून फैला हुआ था. घर की लौबी में लगे पंखे में बंधी नायलौन की रस्सी से एक अधेड़ आदमी लटका हुआ था. रूम में बैड पर एक लड़की का और बैड से नीचे एक किशोर के शव पड़े थे. इन से करीब 6 फुट दूर जमीन पर अधेड़ महिला की लाश पड़ी थी. तीनों पर हथौड़े जैसी भारी चीज से वार करने के बाद गला काटने के निशान थे.

पुलिस ने बैड और जमीन पर पड़े तीनों लोगों की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उन की सांसें थम चुकी थीं. उन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. पंखे से लटके अधेड़ की जान भी जा चुकी थी.

पड़ोसियों से पुलिस ने उन लाशों की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि पंखे से लटका शव डा. प्रकाश सिंह का था और बैड पर उन की बेटी अदिति व बेटे आदित्य की लाशें पड़ी थीं. जमीन पर पड़ा शव डा. सिंह की पत्नी डा. सोनू सिंह का था.

पुलिस ने खोजबीन की तो डा. प्रकाश सिंह के पायजामे की जेब से 4 लाइनों का अंगरेजी में लिखा सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट में उन्होंने परिवार संभालने में असमर्थता जताते हुए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया था. सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी.

डा. प्रकाश सिंह के घर में पुलिस को 4 पालतू कुत्ते भी मिले. जमीन पर खून फैला होने के कारण कुत्ते भी खून से लथपथ थे. इन में 2 कुत्ते जरमन शेफर्ड और 2 कुत्ते पग प्रजाति के थे. परिवार के चारों सदस्यों ने ये अलगअलग कुत्ते पाल रखे थे.

जरमन शेफर्ड कुत्ते डा. प्रकाश और उन के बेटे आदित्य को तथा पग प्रजाति के कुत्ते डा. सोनू व उन की बेटी अदिति को प्रिय थे. ये चारों कुत्ते कमरे में शवों के पास बैठे थे. पुलिस के घर आने पर ये कुत्ते भौंकने लगे थे. नौकरानी जूली ने उन्हें पुचकार कर शांत किया.

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प्रारंभिक तौर पर यही नजर आ रहा था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या करने के बाद फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. डा. प्रकाश के पूरे परिवार की मौत की जानकारी मिलने पर पूरी सोसायटी में सनसनी फैल गई.

लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात पुलिस के सामने नहीं आई, जिस से यह पता चलता कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या के बाद खुद फांसी क्यों लगा ली. पड़ोसियों ने बताया कि डा. प्रकाश और उन का परिवार खुशमिजाज था. उन्हें पैसों की भी कोई परेशानी नहीं थी.

पड़ोसियों से पूछताछ कर पुलिस ने डा. प्रकाश के परिजनों और रिश्तेदारों का पता लगाया. फिर उन्हें सूचना दी गई. सूचना मिलने पर सब से पहले डा. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा वहां पहुंचीं.

दिल्ली में रहने वाली सीमा अरोड़ा हाईकोर्ट में वकील हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछली रात 11 बजे तक डा. प्रकाश के घर में सब कुछ ठीकठाक था. वह खुद रात 11 बजे तक अदिति से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थीं.

सीमा अरोड़ा की बातों से यह तय हो गया कि यह घटना रात 11 बजे के बाद हुई. दूसरा यह भी था कि सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी. एक जुलाई रात 12 बजे शुरू हुई थी. सीमा अरोड़ा से बातचीत में पुलिस को ऐसा कोई कारण पता नहीं चला, जिस से इस बात का खुलासा होता कि डा. प्रकाश ने ऐसा कदम क्यों उठाया.

वैज्ञानिक के परिवार के 4 सदस्यों की मौत की जानकारी मिलने पर गुरुगाम पुलिस के तमाम आला अफसर मौके पर पहुंच गए. एफएसएल टीम भी बुला ली गई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने घर में विभिन्न स्थानों से घटना के संबंध में साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने डा. प्रकाश का शव फंदे से उतारा. दोपहर में चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

इस दौरान पुलिस ने घर के बाथरूम से 3 मोबाइल फोन बरामद किए. ये फोन पानी से भरी बाल्टी में पड़े थे. तीनों मोबाइलों के अंदर पानी चले जाने से ये चालू नहीं हो रहे थे. इसलिए तीनों मोबाइल फोरैंसिक लैब भेज दिए गए. पुलिस ने इस के अलावा मौके से रक्तरंजित एक तेज धारदार चाकू अैर एक हथौड़ा बरामद किया. माना गया कि इसी चाकू व हथौड़े से पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या की गई.

पुलिस ने इसी दिन सीमा अरोड़ा के बयानों के आधार पर सेक्टर-50 थाने में मामला दर्ज कर लिया. डा. सिंह के परिवार के चारों कुत्ते देखभाल के लिए फिलहाल पड़ोसियों को सौंप दिए गए.

अस्पताल में चारों शवों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की काररवाई में रात हो गई. अगले दिन 2 जुलाई को डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवारों के लोग सुबह ही गुरुग्राम पहुंच गए. पुलिस ने दोनों पक्षों के बयान लिए और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सुबह करीब पौने 12 बजे चारों शव परिजनों को सौंप दिए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि सोनू के सिर व गले पर तेज धारदार हथियार से 20 से ज्यादा वार किए गए थे. बेटे व बेटी के सिर पर भी धारदार हथियार के 12 से 15 निशान मिले.

शव सौंपे जाने पर अंत्येष्टि को ले कर डा. प्रकाश सिंह और उन की पत्नी के पक्ष के बीच विवाद हो गया. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ने कहा कि वह सोनू और दोनों बच्चों के शवों की अंत्येष्टि दिल्ली ले जा कर करेंगी. इस पर डा. प्रकाश के परिजन बिफर गए. उन की बहन शकुंतला ने कहा कि अंत्येष्टि कहीं भी करो, लेकिन चारों की एक साथ ही होनी चाहिए.

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बाद में अन्य लोगों के दखल पर यह तय हुआ कि चारों की अंत्येष्टि गुरुग्राम में सेक्टर-32 के श्मशान घाट में की जाए. बाद में जब मुखाग्नि देने की बात आई तो इस बात को ले कर भी विवाद होतेहोते बचा. आपसी सहमति से सोनू, अदिति व आदित्य के शव को मुखाग्नि सीमा अरोड़ा के परिवार वालों ने दी. जबकि डा. प्रकाश के शव को उन की बहन के परिवार वालों ने मुखाग्नि दी.

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले डा. प्रकाश सिंह के पिता रामप्रसाद सिंह उर्फ रामू पटेल एक किसान थे. प्रकाश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की थी. सोनू सिंह भी उन के साथ ही पढ़ती थीं, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. फिर वे एकदूसरे से प्यार करने लगे.

बाद में दोनों ने ही रसायन विज्ञान में एम.एससी. की. एम.एससी. में दोनों ने गोल्ड मैडल हासिल किए थे. इस के बाद दोनों ने डाक्टरेट की डिग्री हासिल की. डाक्टरेट की पढ़ाई के दौरान दोनों ने अपनेअपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ 1996 में शादी कर ली.

दोनों ने भले ही शादी कर ली, लेकिन इस के बाद दोनों के ही परिवारों के बीच गांठ बन गई, जो नाराजगी के रूप में शवों की अंत्येष्टि के दौरान नजर आई.

विवाह के बाद डा. प्रकाश की पत्नी डा. सोनू ने पहले बेटी अदिति को जन्म दिया. इस के करीब 6 साल बाद बेटा हुआ. उस का नाम आदित्य रखा. डा. प्रकाश सिंह ने सब से पहले बेंगलुरु में नौकरी की थी. इस के बाद से ही उन का पैतृक गांव रघुनाथपुर में आनाजाना कम हो गया था.

करीब 12 साल पहले डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गए. दिल्ली में डा. प्रकाश ने रैनबैक्सी फार्मा कंपनी में नौकरी शुरू की. कुछ समय बाद वे गुरुग्राम आ कर बस गए और डा. प्रकाश सिंह सन फार्मा में नौकरी करने लगे. गुरुग्राम में उन्होंने ‘उप्पल साउथ एंड’ नाम की सोसायटी में फ्लैट ले लिया.

डा. प्रकाश की अच्छीखासी नौकरी थी. घर में सुखसुविधाओं और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित थे, इसलिए कोई परेशानी भी नहीं थी. डा. सोनू सिंह ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बजाए सामाजिक कार्यों में रुचि लेती थीं. इसलिए एक एनजीओ बना कर उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया.

सोनू सिंह ने करीब 8 साल पहले गुरुग्राम के फाजिलपुर में किराए का भवन ले कर गरीब बच्चों के लिए क्रिएटिव माइंड स्कूल खोला था. बाद में उन्होंने सेक्टर-49 में ‘दीप प्ले हाउस’ नाम से दूसरा स्कूल खोल लिया. सोनू सिंह के एनजीओ के माध्यम से इन दोनों स्कूलों का संचालन केवल गरीब बच्चों के उत्थान के लिए किया जाता था.

रसायन वैज्ञानिक होने के बावजूद डा. प्रकाश सिंह भी बच्चों को पढ़ाने का शौक रखते थे, इसलिए उन्होंने सोहना में ‘क्रिएटिव माइंड स्कूल’ खोला. यह स्कूल बिना लाभहानि के चलाया जाता था. डा. प्रकाश ने अप्रैल 2018 में पलवल में व्यावसायिक नजरिए से एन.एस. पब्लिक स्कूल खोल लिया. पहले यह स्कूल एग्रीमेंट पर लिया गया और बाद में दिसंबर, 2018 में इसे रजिस्ट्री करवा कर खरीद लिया गया.

डा. प्रकाश सिंह की बेटी अदिति जामिया हमदर्द से बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी. इस साल वह अंतिम वर्ष की छात्रा थी. उस ने पढ़ाई के साथ सन फार्मा कंपनी में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी. अदिति ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर पिछले साल सोप डायनामिक्स नाम से स्टार्टअप शुरू किया था. डा. दंपति का सब से छोटा बेटा गुरुग्राम के ही डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ रहा था.

डा. प्रकाश और उन की पत्नी सहित परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो जाने से चारों स्कूलों के संचालन पर सवालिया निशान लग गए हैं. चारों स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक स्टाफ है. इन कर्मचारियों को वेतन और भविष्य की चिंता है. इस क ा मुख्य कारण यह है कि इन में 2 स्कूलों में खर्चे जितनी भी आमदनी नहीं होती.

पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि डा. प्रकाश के घर उन के रिश्तेदारों का बहुत कम आनाजाना था. ज्यादातर सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ही आती थीं. घटना से 10 दिन पहले भी वह परिवार के साथ यहां आई थीं. सीमा अरोड़ा के मुताबिक उस समय ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस का इतना भयावह परिणाम सामने आता.

डा. प्रकाश के परिवार से बहुत कम लोग कभीकभार ही यहां आते थे. डा. प्रकाश की मां अपने अंतिम समय में कुछ दिन उन के पास रही थीं. डा. प्रकाश 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर के थे. 2 बहनें उन से बड़ी थीं और 2 छोटी. इन में एक बड़ी बहन का निधन हो चुका है. एक बहन परिवार के साथ नोएडा में और 2 बहनें बनारस में रहती हैं. डा. प्रकाश के मातापिता का निधन हो चुका है.

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानियां

फलदार पौधों की नर्सरी आमदनी का मजबूत जरीया

हमारे देश की बदलती आबोहवा और प्रदूषण की समस्या ने खेती की मुश्किलों को काफी ज्यादा बढ़ा दिया है. ऐसे में जरूरत है ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपे जाएं. इस में किसानों से ले कर आम आदमी को आगे आने की जरूरत है.

पेड़पौधों की अंधाधुंध कटाई ने फसलों की खेती की मुश्किलें बढ़ा दी हैं क्योंकि पेड़ों की घटती तादाद से बारिश में तेजी से कमी आई है. इस वजह से फसल की सिंचाई के लिए पानी की किल्लत बढ़ी है, वहीं किसानों के साथ आम लोगों को सांस लेने के लिए साफसुथरी औक्सिजन के लिए भी तरसना पड़ रहा है.

अगर इन सब समस्याओं से समय रहते छुटकारा पाना है तो ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपने की तरफ हमें ध्यान देना होगा. इस से न केवल आबोहवा साफ होगी, बल्कि रोपे गए पौधे अतिरिक्त आमदनी का जरीया भी बन सकते हैं.

वैसे, हाल के सालों में उन्नतशील फलदार पौधों की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है, लेकिन मांग की अपेक्षा अच्छी प्रजाति के पौधों की पूर्ति में पौधे तैयार करने वाली नर्सरियां सक्षम नहीं हो पा रही हैं. अगर उन्नतशील फलदार पौधों की नर्सरी तैयार करने का व्यवसाय किया जाए तो अच्छीखासी आमदनी हो सकती है.

फलदार पेड़ों में सब से ज्यादा बागबानी में आम, लीची, बेल, अनार, आंवला, अमरूद वगैरह शामिल हैं. इस में कुछ की नर्सरी कलम विधि से तो कुछ की नर्सरी गूटी विधि से तैयार करना अच्छा होता?है.

फलदार पौधों की बागबानी शुरू करने के लिए जरूरत होती है, ज्यादा पैदावार देने वाली अच्छी प्रजाति के पौधों की. ये पौधे उद्यान विभाग की नर्सरी या प्राइवेट नर्सरियों से खरीदे जा सकते हैं. इस के लिए पौध की किस्मों के मुताबिक 30 रुपए से ले कर 200 रुपए प्रति पौधों की दर से पैसा दे कर खरीदना पड़ता है.

अगर हमारे किसान स्वयं फलदार पौधों की उन्नत प्रजातियों की नर्सरी तैयार कर बागबानी के लिए उपयोग में लाएं तो उन्हें विश्वसनीय प्रजाति के साथ अच्छे उत्पादन देने वाले पौधे कम लागत में मिल सकते हैं. इसी के साथ आम की नर्सरी को कारोबारी लैवल पर तैयार कर दूसरे किसानों और बागबानी के शौकीनों को बेच कर अच्छीखासी आमदनी हासिल की जा सकती है.

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 कलम विधि से नर्सरी

फलदार पौधों में अगर आम की नर्सरी तैयार करनी है तो उस के लिए सब से सही कलम विधि होती है क्योंकि इस विधि से हम जिस प्रजाति के पौधों को तैयार करना चाहते?हैं, वह कम समय और कम लागत में तैयार हो जाती है. साथ ही, पौधे में फल भी जल्दी आना शुरू हो जाते हैं.

इस के लिए जरूरत होती है कि जिस प्रजाति के पौधे तैयार करने हों, उसी प्रजाति के 5-6 साल पुराने पौधे, जिसे उद्यान की भाषा में मदर प्लांट कहा जाता है, आप के पास लगे हों. इन्हीं पुराने पौधों के कल्ले को कलम कर बीज से तैयार पौधों में संवर्धित किया जाता है.

बीज व गुठलियों से पौध

आम या दूसरे फलदार पौधे, जिस की कलम विधि से नर्सरी तैयार की जा सकती है, उस के लिए बीज पौधों की जरूरत पड़ती है. इस में गुठलियों या बीज को जमीन में रोप कर तैयार किया जाता है. बीज से पौध तैयार करने के लिए जमीन के चयन पर ध्यान देना जरूरी होता?है. इस के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सही होती है. इस में सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट मिला कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेते?हैं.

इस में यह भी ध्यान देना होता है कि जिस जगह पर हम बीज या गुठलियों को नर्सरी में डाल रहे हैं, वहां की जमीन समतल व ऊंची हो, जहां बरसात का पानी न ठहरे.

नर्सरी में बीज या गुठलियों से पौध तैयार करने के लिए हमें देशी प्रजाति के बीजों की जरूरत होती है, जो हमें जिला उद्यान विभाग या लखनऊ के मलीहाबाद में बीज मुहैया कराने वाली फर्मों से मिल सकते हैं.

देशी आम की गुठलियां अमरूद, आंवला, बेल वगैरह के बीज को जुलाई माह के पहले हफ्ते से ले कर अगस्त के पहले हफ्ते तक 8-8 फुट की क्यारियां बना कर डालनी चाहिए.

ध्यान रखें कि?क्यारियों में डाली जाने वाली बीज या गुठलियां मिट्टी में दबने न पाएं, क्योंकि इस से पौध की जगह बदलने पर जड़ के टूटने का डर रहता है.

बीज से तैयार होने वाले पौधे हम पौली बैग में भी उगा सकते हैं. अगर क्यारी में पौधा तैयार किया जा रहा है, तो बाद में सड़ी गोबर की खाद व आम की पत्तियों से उन की ढकाई कर देनी चाहिए. नर्सरी में डाली गई गुठलियों व बीज का जमाव 15-20 दिनों में हो जाता है.

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पौधों की ट्रांस प्लांटिंग

जब क्यारी के फलदार पौधे 25-35 दिन के हो जाएं तो इस की ट्रांस प्लांटिंग यानी पौधे की जगह बदलने का काम किया जाता है.

पौधों की ट्रांस प्लांटिंग पहले जमीन से जमीन में की जाती थी, पर अब नई तकनीक में पौधों की?ट्रांस प्लांटिंग पौली बैग में की जाने लगी है. इस से पौधों के सूखने का डर नहीं होता है.

ये पौली बैग पहले से तैयार कर के रखने चाहिए, जिस में सड़ी हुई गोबर की खाद, मिट्टी, बालू व भूसी को बराबर मात्रा में मिला कर भरा जाता है. इस तैयार पौली बैग में क्यारी से पौधों को निकाल कर लगाने के बाद स्प्रिंकलर या प्लास्टिक के पाइप द्वारा जरूरत के मुताबिक 2-3 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

यों करें कलम तैयार

कलम बांधने से पहले कुछ सावधानी बरतनी होती है, खासकर आम की कलम तैयार करने में, क्योंकि हमें जिस भी प्रजाति के आम का पौधा तैयार करना है, उस के 4-6 साल पुराने पौधे हमारे पास मुहैया होने चाहिए. उस के लिए ज्यादा उत्पादन और अच्छी क्वालिटी वाली किस्मों को रोपना चाहिए. ये किस्में बंबई ग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, चौसा, गौरजीत, पंत सिंदूरी, लखनऊ सफेदा, मल्लिका, खजली, आम्रपाली, रामकेला, अरुणिमा, नीलम वगैरह हैं.

कलम तैयार करने के लिए अगर आप के पास आम की अच्छी प्रजाति के पेड़ नहीं हैं तो बागबानी करने वालों से भी आप मिल सकते हैं. इसी तरह से दूसरे फलदार पौधों की जरूरत भी पड़ती है.

जिस प्रजाति के पौधों की नर्सरी कलम विधि से तैयार करनी हो, उन पौधों की पुरानी टहनियों की काटछांट कर लें, वहीं आम की गुठलियों को नर्सरी में डालने के पहले ही तैयार कर लें. जब इन में नए कल्ले निकल आएं और 60-70 दिन पुराने हो जाएं तो इन कल्लों के पत्तों की जड़ को डेढ़ इंच ऊपर से काट दिया जाता है. कल्लों से 1-2 हफ्ते के अंदर पत्तों की जड़ें झड़ जाने के बाद ये बीज पौधों में कलम लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं.

ऐसे बांधें कलम

आम की गुठलियों या बीजों से तैयार दूसरे फलदार पौधे 8-9 महीने में कलम बांधने लायक हो जाते हैं. अकसर मध्य जून से मध्य सितंबर तक का समय फलदार पौधों की नर्सरी के कलम बांधने के लिए मुफीद होता है. वैसे तो आम की कलम की बंधाई गरमी के महीनों को छोड़ कर हर महीने की जाने लगी है.

कलम बांधने के लिए हमें पहले से तैयार किए गए पौधे के कल्ले, जो डेढ़ इंच से 2 इंच ऊपर से काटे गए हों, उन्हें 6 इंच लंबाई में पेड़ से काट कर अलग कर लिया जाता है, फिर बीज से तैयार पौधे के ऊपरी हिस्से को काट दिया जाता है और काटी गई जगह में चाकू से चीरा लगा दिया जाता है. इस के बाद इन कल्लों के निचले सिरे को दोनों तरफ से छील लेते?हैं, फिर बीज वाले पौधे के सिरे में इस को फिट कर दिया जाता है.

कलम लगाने के बाद इसे प्लास्टिक की पन्नी से कस कर बांध देते हैं. बांधी गई कलम में पौलीथिन कैप, जिसे क्लैप्ट विधि कहा जाता है, ऊपर से लगा दिया जाता है.

यह पौलिथीन कैप बांधी गई कलम को सूखने से बचाती है और कलम पर मौसम का असर भी कम पड़ता है. साथ ही, यह प्लास्टिक कैप कलम की नमी को बनाए रखने का भी काम करती है.

कलम लगाने के बाद यह ध्यान रखना जरूरी है कि पौधे में सही नमी बनी रहे. कलम बांधे गए हिस्से में जड़ की तरफ निकलने वाले हिस्से को तोड़ दिया जाता है,?क्योंकि उस से पौधा बीज हो जाता है.

इस के अलावा साइड विधि से भी कलम लगाई जाती है. इस में कल्ले व बीज पौधे को छील कर आपस में बांध दिया जाता है. लेकिन इस तरह की कलम में 20 फीसदी पौधों के मरने की आशंका बनी रहती है.

कलम बांधने के 5-6 माह में पौधे बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं, पर पौलीथिन बैग में लगाए गए कलम के पौधे 30-40 दिन के अंदर ही बिकने के लिए तैयार हो पाते हैं.

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गूटी विधि से नर्सरी

कुछ फलदार पौधे ऐसे भी होते हैं, जिस की नर्सरी कलम विधि से न कर के गूटी विधि से किया जाना अच्छा माना जाता है. वैसे तो अलगअलग फलदार पेड़ों को तैयार करने के लिए अलगअलग विधियों से नर्सरी लगाई जाती है. इस में बीज द्वारा, कलम विधि द्वारा, कटिंग विधि द्वारा, ऊतक संवर्धन विधि द्वारा व गूटी विधियां खासतौर पर इस्तेमाल होती हैं.

अगर आप के पास नीबू, लीची, अनार, माल्टा की उन्नत किस्मों का बाग है, तो आप भी कारोबारी लैवल पर गूटी विधि से नर्सरी का काम शुरू कर सकते?हैं. इस विधि में उन्नत किस्म के पौधों को ज्यादा मात्रा में तैयार किया जा सकता?है.

बस जरूरत होती है कि गूटी लगाए जाने वाले पेड़ 5 साल पुराने हों. अगर आप के पास गूटी लगाने के लिए फलदार पौधे नहीं हैं, तो आप अपने यहां की आबोहवा के मुताबिक उन्नत किस्मों को रोपित कर नर्सरी का काम शुरू कर सकते हैं.

गूटी लगाने के लिए पेड़ की उन्नत किस्म

गूटी लगाने के लिए उन्नत किस्में ही चुनें जो ज्यादा पैदावार देने वाली हो, ताकि पौधे का अच्छा बाजार भाव आप को मिल सके.

जिन प्रजातियों के पौधों की मांग किसानों में ज्यादा हो, वह पौधे तैयार करना कारोबारी लैवल के लिए ज्यादा सही होता है. जिन पौधों की नर्सरी गूटी विधि से तैयार की जा सकती है, उन की कुछ उन्नत किस्मों के पुराने पौधे पहले से तैयार होने चाहिए.

लीची की उन्नत किस्में : शाही, त्रिकोलिया, अझौली ग्रीन, देशी, सबौर बेदाना, रोज सैंटेड, बेहरारोज, अर्ली बेदाना, स्वर्ण रूपा खास हैं.

नीबू की उन्नत किस्में: पहाड़ी नीबू, इटैलियन लैमन, विक्रम, पंत लैमन एक, कागजी नीबू खास हैं.

अनार की किस्में: गणेश, धोलका, अलाड़ी, पेपर सैल स्पैनिश, रूबी मृदुला, रूबी प्रमुख हैं.

माल्टा : हैमलिन वैलीसियालेट, कौमन माल्टा प्रमुख हैं.

गूटी बांधने का तरीका

गूटी बांधने का सही समय जुलाई के पहले हफ्ते से अगस्त माह का होता है. उस के लिए जिस फलदार पेड़ की नर्सरी के लिए पौध तैयार करनी हो, उस के  सेहतमंद व सीधी टहनियों को 1-2 फुट नीचे से चाकू द्वारा चारों तरफ 3 इंच की दूरी से छिलके उतार दिए जाते हैं.

उस के बाद उतारे गए छिलके के स्थान पर मास घास, जो हमें नर्सरी के लिए सामान बेचने वाली दुकानों से मुहैया हो जाता?है, ऊपर लगा कर पन्नी लपेटते हुए सूतली से कस कर बांध दिया जाता है.

5 दिनों के अंदर बांधी गई गूटी में जड़ें फूटनी शुरू हो जाती?हैं. इस के अलावा रूटैक्स पाउडर द्वारा भी गूटी की बंधाई की जाती है.

गूटी लगाने के एक माह बाद उन टहनियों को पौधे से काट कर अलग कर लेना चाहिए. काटी गई टहनियों को पहले से तैयार किए गए पौली बैग, जिस में सड़ी गोबर की खाद, मिट्टी, भूसी व बालू मिला कर भरा गया हो, मास घास के ऊपर की पन्नी हटा कर रोपित कर देना चािहए. रोपे गए पौली पैक के इन पौधों को क्यारी में रख कर स्प्रिंकलर के पाइप से सिंचाई करते रहें. यह पौधे एक माह में ही बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती में उद्यान वैज्ञानिक डाक्टर दिनेश यादव का कहना है कि नर्सरी में उन्नत पौधे 30 रुपए से ले कर 200 रुपए तक में बिकते हैं. किसान खुद की नर्सरी में तैयार कर अतिरिक्त आमदनी ले सकते हैं.

आम्रपाली प्रजाति की मांग बस्ती जिला समेत उत्तर प्रदेश, बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में भी है. आम्रपाली प्रजाति कम समय में फल देना शुरू करती है. साथ ही, दूसरी प्रजातियों की अपेक्षा यह जगह भी कम घेरती है.

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प्रकृति के नियमों पर कैसे चढ़ा धार्मिक रंग

क्या आप ने कभी देखा की चींटियों ने अपने ईष्ट देव के मंदिर बनाए, मूर्तियां गढ़ीं और पूजा की या मसजिद बनाईर् और नमाज पढ़ी? चींटियों, दीमक की बांबियों में, मधुमक्खियों के छत्तों में क्या कोई कमरा ईश्वर के लिए भी होता है? क्या आप ने कभी देखा कि बंदरों ने व्रत रखा या त्योहार मनाया. पक्षी अपने अंडे देने के लिए कितनी कुशलता और तत्परता से सुंदरसुंदर घोंसले बनाते हैं, मगर इन घोंसलों में वे ईश्वर जैसी किसी चीज के लिए कोई पूजास्थल नहीं बनाते? ईश्वर जैसी चीज का डर मानव के सिवा धरती के अन्य किसी भी जीव में नहीं है. ईश्वर का डर मानवजाति के दिल में हजारों सालों से निरंतर बैठाया जा रहा है.

इस धरती पर करीब 87 लाख जीवों की विभिन्न प्रजातियां रहती हैं. इन लाखों जीवों में से एक मनुष्य भी है. ये लाखों जीव एकदूसरे से भिन्न आकारव्यवहार के हैं, मगर इन में एक चीज समान है कि इन में से प्रत्येक में 2 जातियां हैं, एक नर और एक मादा. प्रकृति ने इन 2 जातियों को एक ही काम सौंपा है कि वे एकदूसरे से प्रेम और सहवास के जरिए अपनी प्रजाति को आगे बढ़ाए और धरती पर जीवन को चलाते रहें.

जीवविज्ञानियों ने धरती पर पाए जाने वाले लाखों जीवों के जीवनचक्र को जानने के लिए तमाम खोजें, अनुसंधान और प्रयोग किए हैं. मगर आज तक किसी वैज्ञानिक ने अपनी रिसर्च में यह नहीं पाया कि मनुष्य को छोड़ कर इस धरती का कोई भी अन्य जीव ईश्वर जैसी किसी सत्ता पर विश्वास करता हो.

ईश्वर की सत्ता को साकार करने के लिए उस के नाम पर धर्म गढ़े गए. धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिद, शिवाले, गुरुद्वारे, चर्च ईजाद हुए. इन में शुरु हुए पूजा, भक्ति, नमाज, प्रार्थना जैसे कृत्य. इन कृत्यों को करवाने के लिए यहां महंत, पुजारी, मौलवी, पादरी, पोप बैठाए गए और उस के बाद यही लोग पूरी मानवजाति को धर्म और ईश्वर का डर दिखा कर अपने इशारों पर नचाने लगे. अल्लाह कहता है 5 वक्त नमाज पढ़ो वरना दोजख में जाओगे. ईश्वर कहता है रोज सुबह स्नान कर के पूजा करो वरना नरक प्राप्त होगा जैसी हजारों अतार्किक बातें मानवजगत में फैलाई गईं. हिंसा के जरीए उन का डर बैठाया गया. स्वयंभू धर्म के ठेकेदार इतने शक्तिशाली हो गए कि कोई उन से यह प्रश्न पूछने की हिम्मत ही नहीं कर पाया कि ईश्वर कब आया? कैसे आया? कहां से आया दिखता कैसा है? सिर्फ तुम से ही क्यों कह गया सारी बातें, सब के सामने आ कर क्यों नहीं कहीं?

मानवजगत ने बस स्वयंभू धर्माचार्यों की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास किया, उन्होंने जैसा कहा वैसा किया. धर्माचार्यों ने तमाम नियम गढ़ दिए. ऐसे जियो, ऐसे मत जीयो. यह खाओ, वह न खाओ. यह पहनो, वह मत पहनो. यहां जाओ, वहां मत जाओ. इस से प्यार करो, उस से मत करो. यह अपना है, वह पराया है. अपने से प्यार करो, दूसरे से घृणा करो. इस में कोई संदेह नहीं है कि धर्माचार्यों ने इस धरती पर मानवजाति को भयंकर लड़ाइयों में झोंका है. किसी भी धर्म की जड़ों को तलाश लें, उस धर्म का उदय लड़ाई से ही हुआ है. हजारों सालों से धर्म के नाम पर भयंकर जंग जारी है. आज भी धरती के विभिन्न हिस्सों पर ऐसी लड़ाइयां चल रही हैं. यहूदी, मुसलमानों, ईसाइयों, हिंदुओं को हजारों सालों से धर्म और ईश्वर के नाम पर लड़ाया जा रहा है.

क्या इस धरती पर रह रहे किसी अन्य जीव को देखा है धर्म और ईश्वर के नाम पर लड़ते? वे नहीं लड़ते, क्योंकि उन के लिए इन 2 शब्दों (ईश्वर और धर्म) का कोई वजूद ही नहीं है. वे जी रहे हैं खुशी से, प्रेम से, जीवन को आगे बढ़ाते हुए, प्रकृति और सृष्टि के नियमों पर.

धर्म ने सब से ज्यादा प्रताडि़त और दमित किया है औरत को, जो शारीरिक रूप से पुरुष से कमजोर है. अगर उस ने अपने ऊपर लादे जा रहे नियमों को मानने से इनकार किया तो उस के पुरुष को उस पर जुल्म करने के लिए उत्तेजित किया गया. उस से कहा गया अपनी औरत से यह करवाओ वरना ईश्वर तुम्हें दंड देगा. तुम नर्क में जाओगे, तुम जहन्नुम में जाओगे. और पुरुष लग गया अपने प्यार को प्रताडि़त करने में. उस स्त्री को प्रताडि़त करने में जो उस की मदद से इस धरती पर मानवजीवन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी निभाती है.

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धर्म की देन है वेश्यावृत्ति

प्रकृति ने पुरुष और स्त्री को यह स्वतंत्रता दी थी कि युवा होने पर वे अपनी पसंद के अनुरूप साथी का चयन कर के उस के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करें और सृष्टि को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें. धर्म ने मानवजाति को अलगअलग दायरों में बांध दिया. हिंदू दायरा, मुसलिम दायरा, क्रिश्चियन दायरा, पारसी, जैनी वगैरहवगैरह. इन दायरों के अंदर भी अनेक दायरे बन गए हैं. इंसान विभाजित होता चला गया.

हर दायरे को नियंत्रित करने वाले धर्माचार्यों ने नायकों या राजाओं का चयन किया और उन्हें तमाम अधिकारों से सुसज्जित किया. इन्हीं अधिकारों में से एक था स्त्री का भोग. धर्माचार्यों ने स्त्रीपुरुष समानता के प्राकृतिक नियम को खारिज कर के पुरुष को स्त्री के ऊपर बैठा दिया.

धर्माचार्यों ने राजाओंनायकों को समझाया कि स्त्री मात्र भोग की वस्तु है. रंगमहलों में, हरम में भोग की इस वस्तु को जबरन इकट्ठा किया जाने लगा. 1-1 राजा के पास सैकड़ों रानियां होने लगीं. नवाबों के हरम में दासियां इकट्ठा हो गई. इसी बहाने से धर्माचार्यों ने अपनी ऐय्याशियों के सामान भी जुटाए.

देवदासी प्रथा की शुरुआत हुई. स्त्री नगरवधू बन गई. मरजी के बगैर सब के सामने नचाई जाने लगी. सब ने उस के साथ जबरन संभोग किया. देवदासियों का उत्पीड़न एक रिवाज बन गया. कालांतर में औरत तवायफ, रंडी, वेश्या के रूप में कोठों पर कैद हो गई और आज प्रौस्टीट्यूट या बार डांसर्स के रूप में होटलों में दिखती है. स्त्री की इस दशा का जिम्मेदार कौन है? सिर्फ धर्म.

धर्म की देन है वैधव्य

पुरुष साथी की मृत्यु के बाद स्त्री द्वारा दूसरे साथी का चुनाव करने पर धर्म और ईश्वर का डर दिखा कर धर्माचार्यों ने प्रतिबंध लगा दिया. पुरुष की मृत्यु किसी भी कारण से क्यों न हुई हो, इस का दोषी स्त्री को ठहराया गया. सजा उसे दी गई. उस से वस्त्र छीन लिए गए. बाल उतरवा लिए गए. शृंगार पर प्रतिबंध लगा दिया.

उसे उसी के घर में जेल जैसा जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया. उसे नंगी जमीन पर सोने के लिए मजबूर किया गया. जिस ने चाहा उस के साथ बलात्कार किया. उसे रूखासूखा भोजन दिया गया. स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ये सारे हिंसात्मक कृत्य धर्माचार्यों ने ईश्वर का डर दिखा कर पुरुष समाज से करवाए. विधवा को वेश्या बनाने में भी वे पीछे नहीं रहे.

इस धरती पर किसी अन्य जीव के जीवनचक्र में क्या ऐसा होते देखा गया है? किसी कारणवश नर की मृत्यु के बाद मादा दूसरे नर के साथ रतिक्रिया करती हुई सृष्टि के नियम को गतिमान बनाए रखती हैं. मादा की मृत्यु के बाद ऐसा ही नर भी करता है. वहां प्रताड़ना का सवाल ही पैदा नहीं होता, वहां सिर्फ प्रेम होता है.

धर्म की देन है सती और जौहर प्रथा

धर्माचार्यों ने अपने धर्म के प्रसार के लिए पहले लड़ाइयां करवाईं. उन में लाखों पुरुषों को मरवाया. लूटपाट मचाई, जीते हुए राजाओं और उन के सैनिकों ने हारने वाले राजाओं और उन के कबीले की औरतों पर जुल्म ढाए. सैनिकों ने उन से सामूहिक बलात्कार किए, उन की हत्याएं कीं, उन्हें दासियां बना कर ले गए. धर्माचार्यों ने इस कृत्य की सराहना की. इसे योग्य कृत्य बताया. कभी किसी धर्माचार्य ने इस कृत्य पर उंगली नहीं उठाई.

औरतों ने इस प्रताड़ना, शोषण, उत्पीड़न और बंदी बनाए जाने के डर से अपने राजा की सेना के हारने के बाद सती और जौहर का रास्ता इख्तियार कर लिया. धर्माचार्यों ने इस कृत्य को भी उचित ठहरा दिया. औरतें अपने पुरुष सैनिकों की लाशों के साथ खुद को जला कर खत्म करने लगीं. सामूहिक रूप से इकट्ठा हो कर आग में जिंदा कूद कर जौहर करने लगीं.

जरा सोचिए, कितना दर्द सहती होंगी वे. आप की उंगली जल जाए, फफोला पड़ जाए तो कितना दर्द होता है. और वे समूची आग में जलती रहीं, किसी धर्माचार्य ने उन के दर्द को महसूस नहीं किया, यह उस वक्त का सब से पुनीत धार्मिक कृत्य बताया जाता था.

बाल विवाह भी धर्म की देन

धर्म के ठेकेदारों ने अपनेअपने धर्म के दायरे खींचे और स्त्रीपुरुष की इच्छाअनिच्छा को अपने कंट्रोल में कर लिया. पुरुष और स्त्री अपने धर्म के दायरे से निकल कर कहीं दूसरे के धर्म में प्रवेश न कर जाएं, किसी अन्य के धर्म के व्यक्ति को अपना जीवनसाथी न बना लें, इस पर नियंत्रण करने के लिए बाल विवाह की प्रथा शुरू की गई. नवजात बच्चों तक की शादियां करवाई जाने लगीं ताकि जवान होने के बाद वे अपनी पसंद या रुचि के अनुसार अपना प्रेम न चुन सकें.

परदा प्रथा की जड़ में धर्म

क्या आप ने कभी शेरनी को मुंह छिपा कर भ्रमण करते देखा है या कबूतरी को परदा करते पाया है? अगर प्रकृति की मंशा यह होती कि मादा जाति पुरुष से अपना मुंह छिपा कर रखे तो वह इस के लिए सभी जीवों में कुछ न कुछ इंतजाम जरूर करती. चाहे पत्तों का आंचल क्यों न होता, पंखों का मुखौटा क्यों न होता, मादा पक्षी उसी से अपना मुंह छिपा कर रखतीं. मगर ऐसा तो कहीं नजर नहीं आता. ऐसा सिर्फ इंसानी दुनिया में ही दिखता है कि औरत परदा करने को बाध्य है. मुंह और शरीर को छिपाए रखने के लिए मजबूर की जाती है. क्यों? क्योंकि धर्माचार्यों ने कहा कि अगर औरत पुरुष से परदा नहीं करती तो यह पाप है, वह जहन्नुम में जाएगी.

हाल ही में एक घटना भारत के केंद्र शासित राज्य अंडमान में घटी. अंडमान के सैंटिनल द्वीप में 60 हजार साल पुरानी एक आदिम जाति निवास करती है. प्रकृति के नियमों को मानते हुए वहां स्त्रीपुरुष आज भी वैसा ही जीवन जीते हैं जैसा कि इस धरती के अन्य जीव जीते हैं. वहां धर्म, ईश्वर, धर्मांधता, वस्त्र, आभूषण जैसी चीजों का कोई स्थान नहीं है. वहां स्त्रीपुरुष समान रूप से बिना वस्त्रों के जंगलों में विचरण करते हैं. शिकार कर के अपना भोजन पाते हैं और स्वच्छंद रूप से समागम कर के अपने जीवन को आगे बढ़ाते हैं.

वहां स्त्री और पुरुष समान हैं. कोई बड़ा या कोईर् छोटा नहीं है. इस द्वीप पर टूरिस्टों के प्रवेश पर प्रतिबंध है. मगर ईसाई धर्म के एक अनुयायी ने उन के जीवन में घुसपैठ करने की कोशिश की. उस का मकसद था कि वह ईसाई धर्म का प्रचारप्रसार उन के बीच कर सके. उन्हें अपनी तर्कहीन बातों में उलझा कर उन के भीतर ईश्वर और धर्म का डर बैठा सके.

उन्हें ललचाने के लिए वह अपने साथ फुटबौल, मैडिकल किट वगैरह भी ले गया, जैसा कि आमतौर पर ईसाई मिशनरियां अपने धर्म को फैलाने के लिए किया करती हैं. जौन ऐलन चाऊ नामक इस अमेरिकी नागरिक ने इस द्वीप पर पहुंच कर आदिवासी लोगों से संपर्क साधा, उन्हें अपनी बातों को समझाने की कोशिश की, मगर वह आदिम प्रजाति उस की घिनौनी मंशा को भांप गई. जौन ऐलन चाऊ को घेर कर तीरों से छलनी कर दिया गया.

इस एक घटना से स्पष्ट है कि प्रकृति के नियमों को समझने वाले आज भी उन नियमों में फेरबदल नहीं चाहते हैं, मगर धर्म और ईश्वर जैसी अतार्किक चीजों को गढ़ने वाले प्रकृति के नियमों की धज्जियां उड़ा चुके हैं, उन का मूल स्वरूप इस कदर बिगाड़ चुका है कि फिर से दुरुस्त होने के लिए किसी प्रलय का इंतजार ही करना होगा.

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मनुष्य में बुद्धि का विकास धरती के अन्य जीवों की तुलना में काफी अधिक है, परंतु इस का इस्तेमाल उस ने विध्वंसकारी गतिविधियों में अधिक किया गया है. इस के विपरीत अगर स्त्रीपुरुष संबंध के विषय में प्रकृति के नियमों को और गहराई से समझने की कोशिश की जाती तो परिणाम ज्यादा बेहतर होते.

क्या आप को भी है परफैक्ट साथी की तलाश ?

पहले बिना फोटो देखे शादी हो जाया करती थी. फिर दौर आया मिलने का और शादी होने का. उस के बाद अखबार, पंडित और रिश्तेदार, लेकिन अब समय है औनलाइन साथी ढूंढ़ने का. जी हां अब जीवनसाथी की तलाश करना बेहद आसान हो गया है और आप की इस मुश्किल को आसान बना रहा है. यह वर्किंग लोगों के लिए एक वरदान है, क्योंकि जब आप यहां जीवनसाथी की तलाश में आते हैं, तो आप को एक रिलेशनशिप मैनेजर आप की सहायता के लिए दिया जाता है, जो आप को आप की पसंद के अनुसार तब तक प्रोफाइल दिखाते हैं जब तक कि आप को अपना मनचाहा प्रोफाइल नहीं मिल जाता है.

शादी करना और शादी करने के लिए सही साथी ढूंढ़ना और चुनना बेहद मुश्किल है, हर माता पिता की इच्छा होती है कि उनकी बेटी की शादी किसी अच्छे घर में हो. वे हमेशा चिंतित रहते है इस ख्याल से कि रिश्ता अच्छा मिले.

स्वर्ग में बनती हैं जोडि़यां

विक्रम कहते हैं मैंने सुना है कि जोडि़यां स्वर्ग में बनती हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि धरती पर जोडि़यां बनाने का काम मैच मेकिंग करता है.

विक्रम और रुची भी नेट के जरिए मिले. रुची कहती हैं कि मैं विक्रम से मिल कर बहुत खुश हूं. उन्होंने मेरे जीवन में इतनी बड़ी खुशी दी और हमारी जिंदगी बदल दी.

अंकित अग्रवाल और शिखा जिंदल  बेहतरीन मैच मेकिंग का उदाहरण है. शिखा के पिताजी कहते हैं कि मैं अपनी बेटी के लिए ऐसे जीवनसाथी की तलाश में था जो प्रोफैशन से डाक्टर हो क्योंकि मेरी बेटी भी डाक्टर है और मैच मेकिंग ने मेरी तलाश को पूरा कर दिया और मेरी बेटी के लिए अंकित जैसा लड़का ढूंढ़ा. मैं इन दोनों की शादी से बेहद खुश हूं.

हर बात की होती है परख

मैट्रीमोनियल साइट्स पर शादी योग्य विभिन्न लड़के लड़कियों की प्रोफाइल मौजूद होती हैं लेकिन बहुत से लोगों के मन में इन प्रोफाइलों की सही जानकारी को ले कर संशय बना रहता है कि यहां मौजूद जानकारी कितनी सही है और कितनी गलत. लेकिन अब घबराने की जरूरत नहीं. ये वैबसाइट किसी भी रजिस्ट्रेशन से पहले उस की पुख्ता जानकारी हासिल कर लेती है. सबसे पहले हर प्रोफाइल का आधार, पैनकॉर्ड या पासपोर्ट को अपलोड करके उसका वैरिफिकेशन किया जाता है. फिर मोबाइल ईमेल वैरीफिकेशन होता है. इतना ही नहीं मेंबर का फेसबुक और लिंकडिन प्रोफाइल का भी वैरीफिकेशन होता है. इस तरह 5 पौइंट ऑथैंटिकेशन के जरिए ये कोशिश रहती है कि मेंबर की ज्यादा से ज्यादा डिटेल मिल सके.

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ऑनलाइन पार्टनर ढूंढ़ने के फायदे

ऑनलाइन पार्टनर ढूंढ़ने पर आप को कई विकल्प मिलते हैं जिन से मिल कर आप तय कर सकती हैं कि कौन सा विकल्प आप के लिए अच्छा है.

ऑनलाइन पार्टनर ढूंढ़ने का सब से बड़ा फायदा यह है कि आप को रिजैक्शन की कोई टैंशन नहीं होती है.

यहां आप को अपने ही फील्ड के बहुत सारे पार्टनर मिल जाते हैं और आप के कैरियर से समझौता नहीं होता है.

भरोसा कर के देखें

विश्वसनीय जानकारी देना वैवाहिक सेवाओं का आधार है और  वे शादी के लिए भरोसेमंद और सुरक्षित प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा सकें, जिसमें वे सफल हो रहे हैं और उनसे जुड़े लोगों को सिर्फ पुख्ता जानकारी ही मुहैया कराते हैं. गौरव कहते हैं कि जब दो लोग शादी करते हैं, तो वे दिल से एक दूसरे के ऊपर भरोसा कर अपना जीवन एक दूसरे के नाम करते हैं और इसी भरोसे को जीतने का काम करता है और दुल्हे व दुल्हन की हर तरह की समस्या का समाधान करता है.

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फेस्टिवल स्पेशल 2019 : घर पर बनाएं मिक्स दाल का हलवा

आज आपको मिक्स दाल का हलवा बनाने की रेसिपी बताते हैं. जो  फेस्टिवल के मौके पर आसानी से बना सकती है. तो झट से आपको बताते है मिक्स दाल का हलवा बनाने की रेसिपी.

सामग्री :

100 ग्राम मूंग दाल

100 ग्राम चना दाल

50 ग्राम उड़द दाल

50 ग्राम सोयाबीन

150 ग्राम घी

250 ग्राम शक्कर

1/2  टी स्पून पिसी इलायची

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बनाने की विधि

सभी दालों को बीन कर साफ करें, फिर इन्हें धोकर 2-3 घंटे भिगोएं.

भीगी दालों का पानी निथारें एवं मिक्सी में पीस लें.

शक्कर में 1 कप पानी डालकर 1 तार की चाशनी बनने तक पका लें.

तैयार चाशनी अलग रखें.

एक कडा़ही में घी गर्म करके पिसी दाल डालें एवं धीमी आंच पर हिलाते हुए भूनें.

दाल अच्छी भून जाने एवं खुशबू आने पर इसमें चाशनी मिलाकर पकाएं.

हलवे की तरह गाढ़ा होने पर पिसी इलायची डालें.

अब गर्मागर्म हलवा सर्व करें.

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3 टिप्स : कम समय में ऐसे घटाएं वजन

‘नवंबर’ में मेरी बहन की शादी है और फिट होने के लिए मेरे पास केवल एक महीना है,’’ या फिर ‘‘आने वाली छुट्टियां मुझे मियामी में बितानी हैं और मुझे उस के लिए वजन कम करना है,’’ ऐसे संकल्प हम अपने दोस्तों, परिजनों और परिचितों से किसी न किसी समय आमतौर पर सुनते रहते हैं. अपने इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लोग कई तरह की क्रैश डाइट्स और तेजी से वजन घटाने वाले व्यायाम करते हैं. जबकि ये सभी प्रयास लंबी अवधि में प्रभावी नहीं होते. इसलिए बहुत से जागरूक और समझदार लोग वजन घटाने के ऐसे प्रयास करते हैं, जिन में वजन का घटना लगातार जारी रहता है. वे फिटनैस के लिए पूरे शरीर पर असर करने वाले जुंबा और शरीर को मजबूती देने वाली वेट लिफ्टिंग का सहारा लेते हैं. इस की वजह मांसपेशियों की स्थायी मजबूती और फैट बर्निंग के प्रति बढ़ती जागरूकता है. फिटनैस के दीवाने लोगों के बीच ये दोनों वर्कआउट्स बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं.

हालांकि, जुंबा के लिए भी कई लोग जिम जाना पसंद करते हैं, लेकिन जिम के उपकरणों और मशीनों पर वही परंपरागत तरीके से वर्कआउट बड़ी संख्या में फिटनैस प्रेमियों के लिए नीरस हो जाता है. अब वे अपने फिटनैस लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ विविधता, उत्साह और मनोरंजन से भरपूर तकनीक चाहते हैं.

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जुंबा का आविष्कार 90 के दशक में एक फिटनैस प्रशिक्षक अल्बर्टो बेटो पेरेज के हाथों हुआ. यह एक मस्ती और ऊर्जा से भरपूर ऐरोबिक फिटनैस प्रोग्राम है, जो दक्षिणी अमेरिकी डांस की विभिन्न शैलियों से प्रेरित है. यह वर्कआउट शैली तेजी से कैलोरी बर्न करने के लिए कारगर है. दरअसल, इस में अपने पंजों पर खड़े रह कर हिपहौप और सालसा की चुस्त बीट्स पर अपनी बौडी को मूव कराना होता है. मुख्य रूप से गु्रप में किया जाने वाला वर्कआउट जुंबा उत्साही बने रहने और फिटनैस लक्ष्यों पर केंद्रित है. चूंकि जुंबा तेज गति से होने वाला डांस है, इसलिए यह अन्य वर्कआउट्स जैसे ट्रेडमिल पर दौड़ने या क्रौसट्रेनर पर समय बिताने के मुकाबले तेजी से फैट बर्न करता है.

बढ़ाएं लचीलापन

जुंबा एक बेहतरीन कार्डियोवैस्क्युलर ऐक्सरसाइज है, जो तेज और मध्यम गति से की जाती है और इंटरवेल ट्रेनिंग की तरह काम करती है, इसलिए हर मांसपेशी खासतौर पर पीठ और पेट पर असरकारक है. जुंबा में होने वाले पेचीदा मूव मसल्स में लचीलापन बढ़ाते हैं और शरीर को संतुलित बनाते हैं. जुंबा के परिणाम यहीं तक सीमित नहीं हैं, ताकत से भरपूर इस वर्कआउट का दूसरा फायदा यह है कि यह सभी मांसपेशियों को सक्रिय करता है और पूरे शरीर को फिट करने में मदद करता है. सब से अच्छी बात यह है कि जुंबा में उम्र कोई रुकावट नहीं है, क्योंकि इस का जोड़ों पर बहुत कम असर पड़ता है. फिट रहने के लिए 5 से 65 वर्ष तक का कोई भी व्यक्ति जुंबा कर सकता है.

वेट ट्रेनिंग

वेट ट्रेनिंग भी वजन घटाने के लिए एक अन्य प्रभावी वर्कआउट है, जो परंपरागत रूप से बौडीबिल्डर्स के बीच लोकप्रिय रहा है. आश्चर्य हो रहा है? हम में से बहुत से लोग सोचते हैं कि वेट ट्रेनिंग केवल मसल्स बनाने के लिए ठीक है. यही वजह है कि वजन घटाने की कोशिश करने वाले वेट लिफ्ंिटग को प्राथमिकता नहीं देते और इस के बजाय कार्डियो और कैलीस्थैनिक्स को अपनाते हैं.

वेट लिफ्टिंग

वेट लिफ्टिंग शरीर की मजबूती के साथ ही वजन घटाने के लिए भी महत्त्वपूर्ण व्यायाम है. परंपरागत रूप से स्ट्रैंथ ट्रेनिंग में सहनशक्ति और मांसपेशियां बढ़ाने के लिए फ्री वेट या वेट मशीनों का उपयोग किया जाता रहा है. मैटाबोलिक स्ट्रैंथ ट्रेनिंग में उच्च तीव्रता वाले इंटरवेल सर्किट्स और चेंजिंग कौंबिनेशंस के साथ फ्री वेट्स, कैटलबेल्स, डंबल्स आदि का उपयोग करते हुए दोहराना होता है. वर्कआउट के दौरान रैजिस्टैंस बैंड्स मैटाबोलिज्म रेट को बढ़ा देते हैं. कार्डियो ट्रेनिंग में केवल वर्कआउट के दौरान हृदय की गति एवं फेफड़ों की क्षमता बढ़ने से कैलोरीज बर्न होती हैं, इस के उलट वेट ट्रेनिंग में व्यायाम खत्म होने के 72 घंटे बाद तक कैलोरी बर्निंग जारी रहती है. यह शरीर की मैटाबोलिक दर को भी बढ़ाता है, जो दिन भर कैलोरी को तेजी से बर्न करने में मदद करता है.

वेट लिफ्टिंग के फायदे केवल वजन घटाने तक ही सीमित नहीं हैं, वेट ट्रेनिंग बौडी मसल्स बनाने और हड्डियों की सघनता बढ़ाने में भी कारगर है, जिस से औस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों से बचने में मदद मिलती है. रोजाना वेट लिफ्टिंग करने से डायबिटीज का खतरा कम होता है और इस से पीठ दर्द में भी आराम मिलता है. मानसिक मजबूती बढ़ती है और फिटनैस के दीवाने लोगों को काम के दौरान उत्साही बनाए रखती है.

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इसलिए शरीर की मजबूती के लिए फिटनैस की धुन में भले ही जुंबा को चुनें या वेट ट्रेनिंग को, ये दोनों ही वर्कआउट्स आप के फिटनैस लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकते हैं, चाहे आप वजन कम करना चाहें या मांसपेशियों की मजबूती. जुंबा और वेट लिफ्टिंग दोनों ही बेहतरीन रास्ते हैं. तो क्या आप पसीना बहाने के लिए तैयार हैं.

फेस्टिवल स्पेशल : चेहरे को दें चांद सा निखार

फेस्टिव सीजन चल रहा है और इस फेस्टिव सीजन में महिलाएं संजने सवरने का मौका कैसे छोड़ सकती है भला. जी हां आपके संजन सवरने का यही तो फेस्टिव सीजन है. तो ऐसे में महंगे ब्यूटी प्रोडक्टस के बजाए आप घरेलू टिप्स को अपनाकर भी अपने चेहरे को चांद जैसा निखार दे सकती हैं. तो चलिए जानते हैं, आप कैसे इन फेस्टिव सीजन में सबसे खूबसूरत दिख सकती हैं.

  • त्यौहार  से 3 दिन पहले हाथ और पैर की सुंदरता पर फोकस करने के बाद मेहंदी लगाएं. मेहंदी लगाने के 2 घंटे बाद नींबू और चीनी के मिश्रण से इसे हटा दें.
  • अपनी त्वचा को साफ करके उस पर सनस्क्रीन और मौइस्चराइजर का प्रयोग कीजिए. औइली स्किन के लिए एस्ट्रीजंट लोशन का प्रयोग करने के बाद पाउडर लगाएं.
  • पूरे चेहरे और गर्दन पर हल्के गीले स्पंज से पाउडर का प्रयोग करें. इससे चेहरे का सौंदर्य लंबे समय तक बना रहता है.

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  • 2 चम्मच गेहूं का चोकर, 1 चम्मच बादाम तेल,  दही, शहद और गुलाब जल का पेस्ट बनाकर इसे चेहरे पर लगाकर 20 मिनट बाद धोने से चेहरे की सुंदरता निखर जाती है और चेहरा खिला खिला रहता है.
  • अपनी ड्रेस से मिलते जुलते रंग की सजावटी बिंदी यूज करें. छोटे चमकीले रत्नों से जड़ित बिंदी काफी आर्कषक लगती है.

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दस्तखत : सुखिया की जवानी का सबने लिया मजा

सुरेंद्र सुखिया की जवानी पर फिदा था. उस के भरे उभारों, मांसल जिस्म और तीखे नैननक्श को देख कर दूसरे लोगों की तरह ही कई बार सुरेंद्र की नीयत भी बिगड़ गई थी. पिछले दिनों सुखिया के पति की ट्रक की टक्कर से मौत हो गई थी. जमींदार के बिगड़े बेटे सुरेंद्र के लिए तो यह सोने पे सुहागा हो गया था, इसलिए कई बार वह सुखिया से अपने दिल की बात कह चुका था.

इस बीच सुखिया लोगों के घर बरतन मांज कर कुछ पैसे कमा लेती थी. एक वकील ने उस से मिल कर उस के पति के बीमे के पैसे के लिए उसे तैयार किया और केस लगा दिया था.

एक दिन सुरेंद्र ने सुखिया से कहा, ‘‘तू कोर्टकचहरी के चक्कर में कहां पड़ी है. जितना तुझे बीमा से मिलेगा, उस से दोगुना मैं तुझे देता हूं. बस, तू एक बार राजी हो जा.’’

सुखिया उस की बात को अनसुना कर देती. सुखिया की गरीबी और जवानी का हर कोई फायदा उठाना चाहता था, इसलिए एक दिन वकील ने कहा, ‘‘सुखिया, तेरा केस लड़तेलड़ते मैं थक गया हूं. अब एक दिन घर आ जा, तो थकान मिट जाए.’’

सुखिया एक दिन कचहरी आ रही थी, तभी उस का केस देखने वाला जज सामने टकरा गया और बोला, ‘‘सुखिया, तेरा केस तो एक ही बार में खत्म कर दूंगा और पैसा भी बहुत दिलवा दूंगा. बस, तू मुझ से मिलने आ जा.’’

लेकिन सुखिया किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं देती. बस, अपने चेहरे पर दिलफेंक मुसकराहट ला देती. आखिरकार जज साहब ने 2 लाख रुपए के मुआवजे का फैसला ले लिया. जज और वकील की मिलीभगत थी, इसलिए और्डर की कौपी वकील ने ले ली और हिसाब पूरा करने के बाद उसे सुखिया को देने के लिए राजी हो गया.

कचहरी में चैक बनाने वाले बाबू ने जब सुखिया को देखा, तो उस का भी ईमान डोल गया. वह सुखिया को चैक देने के बहाने बुलाने लगा और सामने बैठा कर उस के उभारों पर नजर गड़ाए रखता.

एक दिन बाबू ने कहा, ‘‘तेरी फाइल और चैक के ऊपर सभी के दस्तखत होंगे, तभी मिलेगा.’’ सुखिया ने परेशान हो कर कहा, ‘‘बाबू, कुछ पैसा चाहिए तो ले लो, क्यों रोजरोज परेशान करते हो?’’

इस पर बाबू उसे अपनी बातों में बहला लेता था. एक दिन जब सुखिया आई, तब बाबू ने कहा, ‘‘मैं फाइल और चैक तैयार रखूंगा. तुम आ जाना, फिर वहीं सब के दस्तखत करा कर चैक दे देंगे.’’ सुखिया इस के लिए तैयार हो गई.

यह खबर जब दारोगा को मिली, तो वह भी इस में शामिल हो गया. इस से यह डर भी खत्म हो गया कि अगर सुखिया ने कहीं शिकायत वगैरह की, तो कुछ नहीं होगा. बाबू की पत्नी मायके गई थी, इसलिए सुखिया को उसी के कमरे में बुलाया.

सुखिया ने वहां पहुंच कर परेशान होते हुए कहा, ‘‘अब तो चैक पर दस्तखत कर के दे दो, क्यों इतना परेशान कर रहे हो?’’ कचहरी के बाबू ने कुटिल हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘सुखिया, ऐसी भी क्या जल्दी है, थोड़ा रुको तो.’’

इधर सुखिया कसमसाती रही, उधर फाइलचैक पर दस्तखत होते रहे.

अपनी अपनी खुशियां : भाग 1

‘कौन कहता है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं? आदमी में समझ होनी चाहिए,’ रूपेश ने दिल ही दिल में कहा. फिर उस ने अर्चना के सुंदर मुखड़े की ओर ताका व उस के बाद उस की नजरें अपनी पत्नी शिखा के चेहरे पर पड़ीं. शिखा अपनी प्लेट में धीरेधीरे उंगलियां चला रही थी. अर्चना से रूपेश की मुलाकात अपने एक मित्र के कार्यालय में हुई थी, जो उसे इंतजार करने को कह कर खुद कहीं चला गया था. एकडेढ़ घंटे की बातचीत के बाद अर्चना और रूपेश में इतनी घनिष्ठता हो गई थी कि रूपेश को अर्चना के बगैर रहना कठिन महसूस होने लगा था.

कुछ दिनों तक सिनेमाघरों, पार्कों और होटलों में मुलाकातों के बाद रूपेश उसे अपने घर लाने की लालसा को न दबा पाया. शिखा को रूपेश ने जब यह कहा कि वह अर्चना को भी अपने घर में रहने दे तो शिखा पर मानो बिजली गिर पड़ी थी. वह काफी चीखीचिल्लाई थी किंतु रूपेश ने उस को समझाया था कि जब हम अपने हर रिश्तेदार, मित्रों और जानपहचान वालों की खुशियों के लिए सबकुछ करने को तैयार रहते हैं, तब यह कितनी अजीब बात है कि पतिपत्नी, जिन का रिश्ता संसार में सब से बड़ा और गहरा होता है, एकदूसरे की खुशियों का खयाल न रखें.

रूपेश ने शिखा से कहा कि अर्चना पर और घर पर उसे पूरा अधिकार होगा. उस को अपनी हर इच्छा को पूरा करने का अधिकार होगा. बस, वह अर्चना को उस के साथ इस घर में रहने पर आपत्ति न उठाए. पड़ोसियों को वह यही बताए कि अर्चना उस की मामी की या चाची की लड़की है और वह, यहां पर नौकरी करने आई है तथा अब उन लोगों के साथ ही रहेगी. आखिर जब शिखा ने देखा कि रूपेश को समझानेबुझाने का अब कोई फायदा नहीं है तो एक हफ्ते की खींचतान के बाद उस ने रूपेश की इच्छा के आगे सिर झुका दिया.

रूपेश के पांव धरती पर न टिकते थे. वह उसी दिन जा कर अर्चना को अपने घर ले आया. पड़ोसियों से कहा गया कि वह शिखा की बहन है. रिश्तेदारों ने आपत्ति उठाई तो रूपेश ने यह कह कर मुंह बंद कर दिया कि जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी. शिखा ने अर्चना का खुले दिल से स्वागत किया. उस के रहने की व्यवस्था रूपेश के कमरे में कर दी गई. अर्चना को नहानेधोने के लिए शिखा स्नानघर में खुद ले गई. अपने हाथों से तौलिया, साबुन, तेल वहां पहुंचाया. बाथरूम स्लीपर खुद अर्चना के पांव के पास रख दिए. रूपेश मानो खुशियों के हिंडोलों में झूल रहा था. नहाने के बाद नाश्ते की मेज पर बड़े आग्रह के साथ शिखा ने अर्चना को खिलायापिलाया. शिखा से ऐसे बरताव की आशा रूपेश को कभी न थी.

रूपेश मन ही मन मुसकरा रहा था और अपने सुंदर जीवन की कल्पना में डूबतैर रहा था. औटोरिकशा की भड़भड़ाहट से उस की कल्पना में सहसा विघ्न पड़ा. औटोरिकशा से एक लंबाचौड़ा खूबसूरत युवक उतरा और ‘हैलो शिखा’ बोलते हुए घर में घुस गया. शिखा एकाएक उस की तरफ बढ़ी. किंतु फिर थोड़ा रुक गई. उस नौजवान ने आगे बढ़ कर शिखा के कंधे पर अपनी बांह रख दी.

‘‘रूपेश भैया, जरा औटोरिकशा से सामान तो उतार लाना,’’ उस नवयुवक ने रूपेश की तरफ मुंह फेर कर कहा.

कुछ न समझते हुए भी रूपेश ने औटोरिकशे वाले से उस नवयुवक का सामान अंदर रखवाया और उसे पैसे दे कर चलता किया. शिखा और वह युवक सोफे पर पासपास बैठे बातों में मग्न थे जैसे जिंदगीभर की सारी बातें आज ही खत्म कर के दम लेंगे.

‘‘आप की तारीफ,’’ रूपेश ने शिखा से पूछा. शिखा थोड़ा सा मुसकराई और शर्म से सिमटसिकुड़ गई. फिर उस ने एक बार उस नवयुवक के सुंदर मुखड़े की ओर ताका.

‘‘यह संजय है. तुम्हें शायद याद होगा कि एक बार तुम्हारे बहुत जोर देने पर मैं ने स्वीकार किया था कि शादी से पहले मैं भी किसी से प्यार करती थी. मेरी अधूरी प्रेमकहानी का हीरो यही है.’’ रूपेश को झटका सा लगा. उस की आंखें फैल गईं.

‘‘जब मैं ने अर्चना को साथ रखने की बात सुनी और तुम ने मेरा पूरा हक और मेरी खुशियां मुझे देने का वचन दे दिया, तब मैं ने संजय को अपने साथ रखने का फैसला कर लिया,’’ शिखा ने अपनी आंखों को नचाते हुए कहा, ‘‘अपने मिलनेजुलने वालों से हम यही कहेंगे कि संजय आप के मामाजी, फूफाजी या चाचाजी का बेटा है और यह नौकरी के सिलसिले में यहां आया हुआ है और अब हमारे साथ ही रहेगा.’’

‘‘अरे, शिखा डार्लिंग, पहले तो मुझे यकीन ही नहीं आया. किंतु जब तुम ने बताया कि तुम लोग एकदूसरे की खुशियों के लिए झूठे रस्मोरिवाज तोड़ रहे हो तब मैं ने उस महान आदमी के दर्शन करने के लिए यहां आने का निश्चय कर ही लिया,’’ संजय बोला.

‘‘अब तुम इन से खुद पूछ लो,’’ शिखा ने संजय की तरफ देखा और फिर वह अपने पति की तरफ घूम गई, ‘‘क्यों जी, है न यही बात? आप मेरी खुशियों के आगे दीवार तो नहीं बनेंगे? प्यार की जिस प्यास से मैं आज तक तड़पती रही हूं, अब उसे बुझाने में आप मुझे पूरा सहयोग देंगे न?’’

‘‘हांहां.’’ रूपेश आगे कुछ न कह सका.

‘‘डार्लिंग, तुम थकेहारे आए हो. आओ, नहाधो लो ताकि थकावट दूर हो जाए.’’

‘‘स्नानघर किधर है?’’ संजय ने पूछा.

‘‘जाइए जी, इन को स्नानघर बताइए,’’ शिखा ने कहा, ‘‘और हां, यह तौलिया और साबुन वहां रख दीजिएगा.’’ रूपेश ने तौलिया और साबुन हाथ में ले लिया और स्नानघर की ओर मुड़ा. संजय उस के पीछेपीछे चल पड़ा.

‘‘अरे हां, यह बाथरूम स्लीपर भी साथ ले जाइए.’’ शिखा ने संजय का ब्रीफकेस खोल कर उस में से बाथरूम स्लीपर निकाले.

संजय बाथरूम से स्लीपर लेने के लिए पलटा.

‘‘अरे, नहीं. आप चलिए. ये ले कर आते हैं.’’ शिखा ने बाथरूम स्लीपर रूपेश की तरफ बढ़ा दिए. रूपेश ने कंधे उचकाए और फिर बाथरूम स्लीपर पकड़ कर आगे बढ़ गया.

स्नानघर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी और संजय मग्न हो कर गुनगुना रहा था.

‘‘यह क्या मजाक है?’’ रूपेश ने शिखा से कमरे में लौटते ही कहा.

‘‘कैसा मजाक, क्या आप को संजय का यहां आना अच्छा नहीं लगा?’’ शिखा ने पूछा.

‘‘नहीं, यह बात नहीं, मैं पूछता हूं कि संजय के बाथरूम स्लीपर मुझ से उठवाना क्या तुम्हें शोभा देता है?’’

‘‘डार्लिंग, मैं आप की खुशी के लिए अर्चना बहन की दिल से सेवा कर रही हूं. आप मेरी खुशी के लिए माथे पर बल न डालिए. कहीं ऐसा न हो कि संजय के दिल को चोट पहुंचे. वह बहुत भावुक है,’’ शिखा ने कहा.

रूपेश मन ही मन ताव खाए कंधे हिला कर रह गया.

‘‘अब ऐसा करिए, दो?पहर के खाने के लिए कुछ सब्जी वगैरह लेते आइए. आप डब्बों में बंद सब्जी ले आइए.’’

रूपेश ने अर्चना की तरफ देखा.

‘‘यदि अर्चना बहन आराम करना चाहती हैं तो आराम करें या आप के साथ जाना चाहती हैं तो बाजार घूम आएं. मैं रसोई की तैयारी करती हूं.’’

‘‘नहीं, अर्चना यहीं रहेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा.

‘‘क्या आप मुझे संजय के साथ अकेले छोड़ते हुए डरते हैं?’’ शिखा ने तीखी नजरों से रूपेश की तरफ देखा.

‘‘नहीं, मैं ऐसा तंगदिल नहीं हूं. मैं तो इसलिए कह रहा हूं कि यह काम में तुम्हारी मदद करेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा और फिर थैला उठा कर बाहर निकल गया.

बुढ़ापे में जो दिल बारंबार खिसका : भाग 3

सब बच्चों को तो मजा आया पर जाने क्यों रणवीर को अच्छा नहीं लगा था, जबकि उस ने उसे कितनी ही बार चिढ़ाया, कितने ही नाम दिए थे. वह सोचता, ‘इसे तो आज इस अनोखी प्रतिभा के लिए इनाम मिलना चाहिए था.’

जयंति के मस्ताना के साथ सुबह टहलने जाने से पार्क में रामशरण और उन के दोस्तों की मस्ती थोड़ी कम हो गई थी. एक तो साथियों में से वह एक की बहू थी, उस पर से उस का खूंखार नजरों से घूरता अल्सेशियन डौग मस्ताना. कभी जयंति शाम को जल्दी घर आती तो वह शाम को भी मस्ताना को ले कर निकल पड़ती सखियों के पास टहलते हुए. फिर तो रामशरण और उन के दोस्तों की शाम भी खराब होती.

चाटगोलगप्पे वालों के यहां उन का लड़कियों से छेड़खानीचुहल करने का मजा किरकिरा हो जाता. जयंति अपने मस्तमौला स्वभाव के कारण जल्दी ही नेहा, शिखा आदि लड़कियों से घुलमिल गई. इतवार व छुट्टियों के दिनों में अकसर वे सुबह अपनीअपनी स्कूटी पर पास की पहाड़ी की ओर खुली हवा में सैर कर आतीं. इन बुड्ढों के दिल में हूक उठती, पार्क में रौनक जो नहीं दिखती.

एक दिन आखिर एक बुड्ढे ने कमैंट कर ही दिया, ‘‘अरे, कहां जाती हो घूमने अकेलेअकेले, हमें भी तो कभी घुमा दिया करो, तरस खाओ हम पे.’’

सुन लिया था जंयति ने भी. मस्ताना को ले कर वह थोड़ा आगे बढ़ गई थी नेहा के पास. उस ने नेहा से धीरे से कहा, ‘‘बोल दो, ‘हांहां, एकएक बैठ जाओ स्कूटी पर’ तुम चारों अपनीअपनी स्कूटी पे इन्हें वहीं पहाड़ी के पीछे झरने के पास दूर छोड़ कर वापस आ जाना. आज इन्हें मजा चखा ही देते हैं. फिर सारी आशिकी भूल जाएंगे. मैं फोन पर कौंटैक्ट में रहूंगी. ससुर हैं एक, इसलिए मैं नहीं जा सकती. तब तक मैं घर जा कर वापस मस्ताना को दोबारा टहलाने यहां आती हूं.’’

नेहा ने पलक झपकते ही कहे पर अमल किया और बाकी सहेलियों को आंख मारी.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, अंकल, जरूर. हम 4 हैं, आप भी 4 स्कूटी पर बैठ सकेंगे? तो आइए, आप लोग भी क्या याद करेंगे.’’ ‘‘बुड्ढों का चौगड्डा खुशी की बौखलाहट में जल्दी ही एकएक कर के चारों लड़कियों के पीछे मजे लेने बैठ गया. लड़कियों ने आपस में एकदूसरे को आंख मारी, तो बुड्ढों ने अपने साथियों को. सब के अपने मंसूबे थे. लड़कियों ने जो झटके से स्कूटी स्टार्ट की तो अंकल लोगों की मानो हलक में सांस अटक गई. और जो स्पीड पकड़ी तो वे लाललाल हुए मुंह से रोकने के लिए चिल्लाते रहे.

लड़कियां आज दूर निकल कर पहाड़ी के पीछे झरने के पास तक चली गईं, जिसे देखने की तमन्ना तो थी पर अकेली वे वहां जाने से डरती थीं. आज मौका मिल गया, एक पंथ दो काज. वे सोचने लगीं कि काश, जयंति भी साथ आ पाती तो कितना मजा आता.

‘‘अंकल, आप लोग यहां पत्थरों पर चैन से बैठो. हम थोड़ा दूसरी ओर से भी देख कर आती हैं.’’ उन्होंने कहा.

‘‘ओके गर्ल्स,’’ बुड्ढे मस्त थे.

‘‘हां जयंति, तुम्हारे कहे अनुसार हम ने चारों बुड्ढों को वहीं झरने के पास धोखे से छोड़ दिया है. अब हम वापस आ रही हैं, आधे घंटे में मिलते हैं, ओके,’’ आगे बढ़ कर नेहा ने जयंति को मिशन पहाड़ी सफल हुआ बता दिया था.

अंकल लोग तो अभी अपनी सांसें ही ठीक कर रहे थे, वे दूसरी ओर के दूसरे रास्ते से निकल कर वापस पार्क पहुंच कर देर तक मजा लेती रहीं. जयंति वहीं इंतजार कर रही थी. मोबाइल पर सारा डायरैक्शन उन्हें वही दे रही थी.

‘‘काश, तू भी साथ चल सकती तो सब की बिगड़ी शक्लें देखती.’’

‘‘कोई नहीं, अब घर पर बिगड़ी शक्लों के साथ बुरी हालत भी देख लूंगी, वह हंसी थी.’’

‘‘बुरे फंसे सारे बुढ़ऊ. वहां न कोई सवारी, न कोई आदमी. पैदल जब इतनी दूर चल कर आएंगे हांफतेकांपते, तब असली मजा आएगा.’’

‘‘आज अच्छी तरह ले लिया होगा लड़कियों के संग सैर का मजा.’’

‘‘अब शायद सुधर जाएं और हमें छेड़ने की हिमाकत न करें,’’ सब अपने मिशन पर खूब हंसीं.

अब यह देखो, चारचांद लगाने के लिए और क्या लाई हूं.’’ जयंति बैग से कुछ निकालने लगी तो सभी उत्सुकतावश देखने लगीं.

‘‘अरे वाह, कैप्स, स्कार्फ. कितना प्यारा रैड कलर. पर एक ही कलर क्यों? किस के लिए? हमारे लिए?’’ शिखा, सीमा, नेहा, ज्योति सब खुश भी थीं, हैरान भी.

‘‘अब सीक्रेट सुनो, मेरे फादर इन लौ नई कैप के लिए मेरे हबी से कह रहे थे. मैं ने कहा कि मैं ले आऊंगी, और मैं एक नहीं, 4-4 लाल रंग की टोपियां उठा लाई, इसी चौकड़ी के लिए. जानती हो क्यों? क्योंकि मस्ताना, द हीरो, को लाल रंग से सख्त चिढ़ है. कल पार्क में आ कर बैठने तो दो बुड्ढों को. जब ज्यादा लोग टहल के चले जाते हैं, पार्क तकरीबन खाली हो जाता है. ये बुड्ढे तब भी बैठे मजे ले रहे होते हैं. बस, तभी इन्हें ये गिफ्ट पहना कर और फिर उन्हें मजा दिलाएंगे. आइडिया कैसा लगा?’’

‘‘हां, स्कार्फ की गांठ जरा कस के लगाना सभी, ताकि जल्दी खोल न सकें वे,’’ शिखा ने कहा तो सभी हंस पड़ीं.

‘‘हां, मैं और शिखा पार्क के दोनों गेट बंद कर के रखेंगी,’’ नेहा ने योजना को सफल बनाने में एक और टिप जोड़ा.

‘‘और मस्ताना को पार्क के अंदर छोड़ कर वहां से थोड़ी देर के लिए बाहर निकल जाऊंगी. फिर मस्ताना अपना काम करेगा और मैं 5-7 मिनट बाद लौट आऊंगी स्थिति संभालने,’’ हाहा, सब खूब हंसीं.

‘‘बुढ़ापे में जब रेबीज की कईकई सुइयां लगेंगी, तो सारी लोफरी निकल जाएगी.’’ उन के सम्मिलित ठहाकों से पार्क गुंजायमान हो उठा.

दूसरे दिन कांड हो चुका था. टोपियां संभालते स्कार्फ खोलने की कोशिश में गिरतेपड़तेचिल्लाते उन आशिकमिजाज बुड्ढों की हालत देखने लायक थी. बाकी खड़े लोगों ने भी लड़कियों का साथ दिया.

‘‘जो हुआ, ठीक हुआ इन के साथ.’’

‘‘अच्छा सबक है. सभी को तंग कर रखा था.’’

‘अच्छा हुआ, सबक तो मिला. जोर किस का बुढ़ापे में जो दिल खिसका,’ रेवती भी चिढ़ से बुदबुदा उठी. पास खड़ी जयंति ने सुना, उन की आंखों में कोई दर्द भी न दिखा तो उसे राहत मिली कि वह उन की दोषी नहीं है.

पास के अस्पताल में रोज इंजैक्शन लगवाने जाते दोस्त आंसुओं में कराहते हुए मिलते, पर कुछ न कह पाते न आपस में, न घर वालों से, न ही और किसी से. जयंति की टीम ने उन्हें एक नारे से सावधान कर दिया था, ‘जब तक बहूबेटियों के लिए इज्जत आप के पास, तब तक खैर मनाओ आप…वरना और भी तरीके हैं अपने पास…’

रणवीर सोच रहा था चारों में से किसी के घर वालों ने रिपोर्ट क्यों नहीं की. उस ने आंगन में मस्ताना के साथ बैठी पेपर पर कुछ लाइनें खींचती जयंति की ओर देखा तो पास चला आया, देखा तो वह मुसकराने लगा. पार्क में कैपस्कार्फ में गिरतेपड़ते मस्ताना के डर से भाग रहे उन चारों बुड्ढों का कितना सटीक कार्टून बनाया था जयंति ने.

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