बौलीवुड में दूसरे लेखक की कहानी को हड़प कर फिल्म बना लेना,दूसरी सफल फिल्मों की कहानी चुराकर फिल्म बनाना आम बात हो गयी है.अब तक कई फिल्मकारों पर आरोप लगते हैं.कुछ दिन पहले प्रदर्शित फिल्म‘‘साहो’’पर एक फ्रेंच फिल्म निर्देशक ने आरोप लगाया. पर इन मोटी चमड़ी वाले भारतीय फिल्मकारों पर कोई असर नहीं होता. अब फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माता पर भी चोरी का इल्जाम लगा है. निर्माता दिनेश वीजन व ‘जियो स्टूडियो’ की फिल्म ‘‘बाला’’ में आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यामी गौतम, जावेद जाफरी जैसे कलाकार हैं. मजेदार बात यह है कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मकार प्रवीण मोरछले ने जब फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माताओं को अपनी ‘‘मिस्टर योगी’’ कहानी को चुराने का आरोप लगाते हुए कानूनी नोटिस भेजी, तो फिल्म ‘‘बाला’’के निर्माता ने इस नोटिस का जवाब देने की बजाय आनन फानन में अपनी फिल्म की शूटिंग कर डाली. और अब यह फिल्म 15 नवंबर को सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है.
‘बाला’के निर्माता के इस रवैये को देखते हुए अंततः प्रवीण मोरछले ने फिल्म ‘बाला’ के निर्माता व अभिनेता आयुष्मान खुराना के खिलाफ ‘‘कौपीराइट एक्ट’’ के उल्ल्ंघन का आरोप लगाते हुए मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हमने इसी मसले पर प्रवीण मोरछले से ‘‘एक्सक्लूसिव’’बातचीत की.
आपको फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माता के खिलाफ अदालत जाने का कदम क्यो डठाना पड़ा?
मैं इस साल की शुरूआत से ही अपनी कश्मीर पर आधारित नई फिल्म ‘‘विडो आफ सायलेंस’’को लेकर अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में घूम रहा था. मई 2019 में जब मैं मुंबई आया, तो मैंने एक दिन अखबार में पढ़ा कि ‘‘प्री मैच्योर बाल्डिंग मतलब कम उम्र में बाल गिरने की कहानी’’ पर एक फिल्म ‘बाला’ बना रही है. जिसमें व्यंग भी है. तो मुझे एकदम से झटका लगा. क्योंकि इस विषय पर मैंने 2005 में ‘‘मिस्टर योगी’’नामक कहानी लिखकर ‘राइटर्स एसोसिएशन’ में रजिस्टर्ड कराया था. उसके बाद इस पर फिल्म बनाने के लिए मैंने बौलीवुड में कई बार कई लोगों को कहानी सुनायी थी. मेरी इस कहानी की जानकारी मेरे दोस्तों को भी है. मेरे दोस्त जानते हैं कि एक न एक दिन मैं इस फिल्म को बनाऊंगा. जो कि हर किसी को पसंद भी आएगी. खबर पढ़ने के बाद मैंने खोजबीन की.
औनलाइन जो कुछ पढ़ा, उससे यह पक्का हो गया कि यह कहानी लगभग लगभग वही है, जो मैंने 2005 में लिखी थी.तब मैंने कानूनी सलाहकार से बातकर फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माता को कानूनी नोटिस भेजी.उनेहोंने कहा कि हमें कुछ समय दीजिए. उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया. तो एक माह बाद रिमाइंडर भेजा कि आप जल्दी जवाब दें, यह कापीराइट का मसला है. जिस तरह से हमारी फिल्म इंडस्ट्री में होता, कापीराइट के मसले को बहुत हल्के तरीके से लिया जाता है.
आपकी कहानी का शीर्षक क्या था, जिस पर फिल्म‘‘बाला’’बन रही है?
मैंने 2005 में यह कहानी लिखनी शुरू की थी. मैंने अपनी कहानी का रजिस्ट्रेशन ‘‘मिस्टर योगी’’ के नाम से कराया था. यह कहानी इक्कीस बाइस साल के युवक की है. उसके सिर के बाल गिर रहे हैं और उसकी पूरी जिंदगी उसके बाल गिरने और बचाने के पीछे घूमती है. वह किस तरह से बाल बचाने का प्रयास करता है. क्या-क्या उपाय करता है, किन परिस्थितियों से उबरता है. किस तरह की सिच्युएशन में फंस जाता है. यही सब हमारी कहानी में है. जो कि बहुत ही सटायर रीयल सोशल कहानी थी. कौमेडी फिल्म थी. जब मैंने लोगों को यह कहानी सुनायी थी,तो लोगों ने मुझसे कहा-‘अरे यार, ऐसी फिल्म तो नहीं चलती.’ तो मुझे लगा था कि मैंने समय से बहुत पहले ही इस फिल्म को लिख दिया था. उस समय लोग इस बारे में सोचते भी नहीं थे. तब तो मल्टीप्लैक्स भी नहीं थे.
मैं अपने लेखन में समय से पहले ही नयापन ले आया था. मेरी ज्यादातर कहानियां बहुत अलग होती है. मेरी दूसरी दो कहानियों पर भी हिंदुस्तान में फिल्में बन चुकी हैं. इनमें बड़े स्टार कलाकार थे. उस वक्त मैं चुप रहा. अब तीसरी बार हुआ है. इस बार पीछे नही हटूंगा.
उनका जिक्र करना चाहेंगे?
जी नहीं. क्योंकि जो हो गया,वह हो गया. अब उन पर बात करना कोई मतलब नहीं है. यदि उसी समय कुछ कदम उठाया होता,तो आज नाम ले सकता था.जबकि वह फिल्में ‘100 करोड़ क्लब’ का हिस्स बनी.
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फिल्म‘‘बाला’’के निर्माता ने आपके द्वारा भेजी गयी कानूनी नोटिस का जवाब दिया नहीं?
फिल्म‘बाला’के निर्माताओं के लिए लेखक और उसके आइडिया की लगभग कोई वैल्यू नहीं है. हमने उन्हें दूसरी बार नोटिस भेजी, तब उन्होंने जवाब दिया कि उनकी फिल्म मौलिक है. तब मुझे लगा अब मुझे ‘कापीराइट एक्ट’ के इस मसले को अदालत में ले जाना चाहिए. क्योंकि यह बहुत जरूरी है कि एक लेखक की मौलिक सोच, मौलिक आइडिया या पटकथा या कहानी को निश्चित रूप से एक मुकाम मिलना चाहिए. बौलीवुड में तो हमेशा कापीराइट को बहुत हल्के ढंग से लिया जाता है. यह एक बहुत बड़ा मिसकंसेप्शन चलाया जाता रहा है कि,‘जब आपने मुझे कहानी नही सुनायी, तो मैंने आपकी कहानी कैसे चुरायी.’ मान लीजिए आपने मुझे कहानी नही सुनाई, तो मैं कैसे आपकी कहानी चुरा सकता हूं. क्योंकि मान लीजिए दो इंसानों को एक ही आइडिया आ जाए, तो फिर पहले किसका हक माना जाएगा. तो फिर जिसकी आइडिया पहले आयी,उसको जाना चाहिए. जी हां या तो फिर दोनों में कितनी समानता है, इसे तय करना पड़ेगा.लेकिन चोरी जैसा इल्जाम तो तब होता,जब मैं सीधे कहूं कि मैंने आपको कहानी सुनायी और आपने मुझे बिना बताए उसे छाप दिया. मेरा कहना है कि यह कापीराइट का उल्लंघन ही माना जाएगा, यदि मैंने अपनी कहानी, अपनी आइडिया पहले लिखा और उसे लेखक संघ में रजिस्टर्ड किया है. दूसरी बात मैंने यह कहानी बौलीवुड से जुड़े कम से कम सौ लोगों को सुनाई है. तो मुझे लगा कि बौलीवुड में कहीं ना कहीं कोई ना कोई आदमी एक दूसरे से जुड़ा ही रहता है. मैंने किसी को कहानी सुनाई,उसने आपको सुना दी हो. फिर आपने सोचा कि इस पर काम किया जाए. मुझे तो यह सब मालूम नहीं है. इसलिए अदालत को इस मसले पर निर्णय लेने देते हैं. मुझे अदालत पर पूरा भरोसा है. अदालत का जो भी निर्णय आएगा, वह लेखक व कौपीराइट कानून दोनों के लिए बेहतर होगा. उनके लिए बहुत ही फायदेमंद होगा.
यह कहना कि हमसे मिले नहीं, आपने हमको कहानी नहीं सुनाई थी, इसलिए हम गलत नही है. कहना ही गलत है. गलत तरीके से लोग बातें फैला रहे हैं. कापीराइट एक्ट का मतलब यह नहीं है. कापीराइट एक्ट का मतलब है कि माने लीजिए मैंने लिखा. हमारे पास हजार शब्द है, मैंने इन हजार शब्द को एक अलग ढंग से व्यवस्थित कर दूं, अरेंज कर दूं, तो एक कविता बन जाएगी. वह कविता मेरी रचना होगी. शब्द मेरे नहीं है. उसी तरह से जो आप का स्क्रीनप्ले होगा, जो आपकी कहानी होगी, वह मेरा कापीराइट है. तो देखते हैं कि अब कोर्ट क्या बोलता है.
आप इस मामले को लेकर अदालत कब पहुंचे?
मैंने उनको नोटिस देने के बाद दो माह तक उनके जवाब का इंतजार किया. 28 अगस्त को हम लोगों ने हाई कोर्ट में अप्रोच किया और हमने अपने वकील के माध्यम से केस दायर कर दिया.
अभी इसमें कोई प्रगति हुई है या नहीं हुई है?
नहीं…अभी तो अदालत में मामला गए हुए 10 दिन ही हुए हैं.अदालत की एक कार्यशैली है. वह सामने वालों को नोटिस भेजेगी. उनका जो भी कानूनी प्रोसेस है,वह होगा.
बौलीवुड से जुड़े लोगों का संघ राइटर्स एसोसिएशन है. वह इस मामले में ढीली क्यों रहती है. कभी भी लेखक का साथ दे नहीं पाती है?
अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो राइटर एसोसिएशन की अपनी सीमाएं हैं. उनका काम है, जिस दिन हम अपनी कहानी या पटकथा लेकर उनके पास रजिस्ट्रड कराने गए, तो वह उस पर एक स्टैंप लगा तारीख लिखकर हमें वापस दे देते हैं. इसके बाद उनका काम खत्म. मगर ऐसा सिस्टम राइटर्स एसोसिएशन मे होना चाहिए, जिससे इस तरह के कौपीराइट के मसले अदालत के बाहर भी सुलझाए जा सकें. मान लीजिए मैंने कहा कि यह मेरी कहानी है. एक अन्य लेखक ने दावा किया कि यह उनकी कहानी है. ऐसे में राइटर्स एसोसिएशन एक पैनल बनाए. यह पैनल दोनों की कहानी को पढ़़कर आदेश जारी करे. यदि पूरे पांच दृश्य में से एक भी दृश्य मिलता है, तो आप कौपीराइट के निशाने पर आ जाते हैं. यदि दोनो में कोई समानता नही है तो कोई समस्या ही नही है. अदालत तक जाने की नौबत ही न आए.
अदालत का रूख करने से पहले आपने राइटर्स एसोसिएशन में बात की थी?
नहीं…मुझे लगा कि पहले भी ऐसे कई केस हुए हैं,जहां राइटर्स एसोसिएशन ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि,‘हम क्या कर सकते है. अगर आपको किसी तरह का कोई औब्जेक्शन है,तो यह कानूनी मसला बनता है.’ मुझे ऐसा लगता है कि राइटर एसोसिएशन भी इस मुद्दे पर ज्यादा रूचि नहीं लेना चाहता.
अक्सर होता यह है कि लोग फिल्म की पूरी शूटिंग करते हैं. फिर अदालत में कह देते हैं कि हमारी फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है. उस अदालत के भी हाथ बंधे होते हैं. तक कुछ दंडस्वरुप रकम के साथ मामला रफा दफा हो जाता है.
जी हां! ऐसा होता है,मगर यह गलत तरीका है.
तो इस मामले में आप अदालत के सामने किस तरह की मांग रखेंगें ?
जब इनकी शूटिंग शुरू होने वाली थी, तभी हमने इन्हें नोटिस दी थी. मैंने निवेदन किया था कि यह कहानी आपकी नहीं मेरी है, इसलिए शूटिंग न करें. और आगे किसी भी तरह की गतिविधि इस फिल्म को लेकर न करें. मैंने जिस दिन इन्हें कानूनी नोटिस भेजी, उसी दिन मेरा केस रजिस्टर्ड हो गया. मैंने साफ साफ कहा था कि आप आगे न बढ़े. इनको उसी वक्त शूटिंग करने की बजाय हमसे इस मसले को निपटाना चाहिए था. पर इन्होंने हमारी कानूनी नोटिस को महत्व ही नही दिया. तो यह उनकी गलती है. खैर,हमें तो यह देखना है कि अब हमसे अदालत क्या कहती है. पर उनका अदालत में जाकर यह कहना कि उन्होंने फिल्म की शूटिंग कर ली है या उनकी फिल्म सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है, हमने कई करोड़ रूपए इस पर खर्च कर दिए हैं. मायने नही रखना चाहिए.
वास्तव में हमारे देश में ‘कौपीराइट एक्ट’को बहुत आसानी से लिया जाता है. विदेशों में तो इसका बहुत कठोरता से पालन होता है. विदेश में आप एक करोड़ लगाएं या सौ करोड़ या हजार करोड़ रूपए लगाएं.
यदि आपने अपनी फिल्म किसी लेखक की आइडिया से प्रेरित होकर बनाया है, यह उससे मिलती जुलती आइडिया पर उसको बनाया है, तो कापीराइट एक्ट के तहत आप दोषी हैं. वहां यह नहीं देखा कि गलती करने वाले ने कितना खर्च/इंवेस्ट किया है.क्योंकि जिसने लिखा था, या जिसकी स्क्रिप्ट है और जिसका कौपीराइट है,वह भी कल को इस पर हजार करोड़ की फिल्म बना सकता था. उसके लिए ऐसा क्यों माना जाए कि वह नहीं बना सकता है या नहीं बना पाएगा.
आपने किसी अन्य के सपने को तोड़ने की कोशिश की है. तो अदालत इस बात को भी देखेगी. मुझे लगता है कि हिंदुस्तान की कोर्ट दोनों पक्षों का हित रखा जाएगा . लेकिन अगर ऐसे तत्व मिलते हैं जिनसे कापीराइट एक्ट का उल्लंघन किया हुआ है,तो कठोर निर्णय सुनाया जाएगा.
हमारे देश में कौपीराइट के मुकदमों को सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट मानकर छोड़ दिया जाता है. कुछ समय बाद लोग भूल जाते हैं.
इसी परंपरा को तोड़ना है.बौलीवुड के फिल्म निर्माता हर बार एक ही बात कहते हैं कि अब तो हमने करोड़ों रूपए खर्च कर फिल्म बना दी. तो अब हम क्या करें. हमारा नुकसान हो जाएगा? इस बहाने पर रोक लगाना जरुरी है.
दूसरी बात यह तो हमसे कभी मिलने नहीं आए,इसलिए इन्होंने हमे कभी अपनी कहानी सुनाई नहीं. तो फिर हमने इनका आइडिया कैसे लिया? इस तरह की बहाने बाजी पर भी पूर्ण विराम लगवाना जरुरी है. आप मुझे बताएं, आज अगर मैं विलियम शेक्सपियर की किताब पर फिल्म बना डालूं और फिर कहूं कि मैं तो विलियम शेक्सपिअर से कभी मिला ही नहीं. मैं तो अपने जीवन में लंदन ही नहीं देखा. तो उसका गुनाह माफ. क्या संसार के किसी भी लेखक के उपन्यास पर फिल्म बनाकर इस तरह की बहाने बाजी करने का आपका जन्मसिद्ध अधिकर है.
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मान लीजिए, हौलीवुड की किसी फिल्म को देखकर कापी कर दो और फिर दावा करो कि आप अमरीका नही गए, आप कभी इस फिल्म के कलाकार या निर्देशक से नही मिले.
इसी तरह से जो भ्रांति फैला दी गई है कि कौपीराइट एक्ट का उल्लंघन तभी होता है,जब प सामने वाले से मिल चुके होते हैं,गलत है. पीराइट एक्ट का मतलब ही होता है कि मैंने लिखा है,आपने कहां से सुना है,उससे मतलब नहीं है.इससे फर्क नहीं पड़ता है.
हमारे देश में कहानियों का भंडार है फिर भी सिर्फ पैसे के लिए आप इतना सब कुछ करते जाएं, किसी भी नियम कानून को ना माने, यह तो बहुत गलत है.
इसीलिए शायद आज इंडस्ट्री की यह हालत है. बामुश्किल में 12 फिल्में सफल हो पा रही हैं. अगर सिनेमा सिनेमाघर थिएटर देखने नहीं जा रहे हैं, इसके लिए फिल्मकार ही जिम्मेदार हैं. यदि आप किसी एक ही चीज को साइकल करते रहेंगे. ल्म की नकल करते रहेंगे,कुछ नया नही देंगे,आप अपना खुद का कुछ नया नहीं सोचेंगे,तो निश्चित रूप से आप अपनी इंडस्ट्री को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं.
लेकिन बौलीवुड के फिल्मकारों की ऐसी प्रवृत्ति क्यों हो गई है? कुछ दिन पहले फ्रेंच निर्देशक ने भी फिल्म ‘‘साहो’’पर उनकी फिल्म की कहानी ज्यों की त्यों चुराने का आरोप लगाया?
यह शर्मनाक हरकत है. वास्तव में सभी असुरक्षा का शिकार है. यदि एक कहानी या फिल्म को थोड़ी सी सफलता मिल गयी,तो दूसरे लोग उसकी नकल करने की चूहा दौड़ में शामिल हो जाते हैं. यह सोच गलत है. यदि ऐसा होता, तो हम कभी नई कहानी पर फिल्म न बनाते. पर इसी गलत सोच के चलते हम नया सोचने, नई कहानी पर फिल्म बनाने का साहस नही दिखा पा रहे हैं. और अंत में हम लोग सारा दोष दर्शक को देते हैं.
जब स्टूडियो सिस्टम और मल्टीप्लेक्स शुरू हुए थे,तो लोगों को लगा था कि अब कुछ अच्छा काम होगा.लेकिन उसके बाद से ही चोरियां ज्यादा हो रही है?
क्योंकि अब सिनेमा सिर्फ 3 दिन, शुक्रवार, शनीवार व रवीवार के लिए बनता है. फिल्मकार सोचता है कि मेरी फिल्म ने तीन दिन कमाई कर ली, तो मेरा बेड़ा पार. जबकि मेरी राय में सिनेमा ऐसा बनना चाहिए, जो कि सदियों तक जीवित रहे. यदि हम पीछे मुड़कर देखेंगे,तो 50 व 60 व 70 के दशक की फिल्में, हम आज भी देखते हैं. हम उन फिल्मों पर बात करते हैं. क्योंकि वह कालजयी फिल्में हैं. अगर आपका सिनेमा 10 साल सरवाइव नहीं करता, तो वह सिनेमा है ही नहीं. पर यहां छह माह बाद ही फिल्म का नाम याद नहीं रहता. इसलिए इसे सिनेमा नही कहा जाना चाहिए.
फिल्म‘‘बाला’’के निर्माता तो नवंबर माह में फिल्म को प्रदर्शित करने की तैयारी कर रहे हैं?
हम इस पर अदालत से रोक लगाने के लिए निवेदन करेंगे.