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संबंध : भाग 2

मां तो यहां तक कहती हैं कि दहेज भी उन्होंने मौसी को मां से बढ़ कर ही दिया था. पुराने जमाने में रिश्ते निबाहना लोग भली प्रकार जानते थे शायद. वे हमेशा नानाजी के एहसानों से दबी रहती थीं. यदाकदा अमेरिका से आ कर ढेर सारे उपहारों से हमारा घर भर देतीं. हम भाईबहन को बहुत प्यार करतीं. वे दोनों सगी बहनों से बढ़ कर थीं.

‘‘लड़की स्वभाव से सुशील है, सुंदर है और सब से बड़ी बात एमबीए है,’’ खुशी के अतिरेक में मां बही चली जा रही थीं.

‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि वह रूपवती है?’’

मां फोटो निकाल लाई थीं. ऐसा लगा जैसे चांद धरती पर उतर आया हो, पर न जाने क्यों मेरा शंकालु हृदय इस रिश्ते को अनुमति नहीं दे रहा था.

‘‘मां, विदेश में पलीबढ़ी लड़की क्या यहां पर तारतम्य बिठा पाएगी? वहां के रहनसहन और यहां के तौरतरीकों में बहुत अंतर है.’’

‘‘तू नहीं जानती देविका का स्वभाव. मेरे ही साथ पलीबढ़ी है. उस के और मेरे संस्कारों में कोई अंतर थोड़े ही है. क्या उसे नहीं मालूम कि मैं विपिन के लिए कैसी लड़की पसंद करूंगी?’’

मैं देख रही थी भैया की भी मूक अनुमति थी इस संबंध में. बाबूजी का हस्तक्षेप सदा ही नकारात्मक रहा है ऐसे मामलों में. संबंध को स्वीकृति दे दी गई. ब्याह की तारीख 2 माह बाद दी गई थी. मांबाबूजी का विश्वास देखते ही बनता था.

मेरे जाने से जो सूनापन वहां आ गया था उसे अंजू भाभी पाट देंगी, ऐसा उन का अटूट विश्वास था. बारबार कहते, ‘जाओ, बाजार से खरीदारी कर के आओ.’ रोज मैं मां के साथ खरीदारी करती. उस के काल्पनिक गोरे रंग पर क्या फबेगा, यह सोच कर कपड़ा लिया जाता. इस घर में धनदौलत, मोटरबंगला, नौकरचाकर किसी की भी कमी नहीं थी. हीरेमोती के सैट लिए गए थे. समधियों के रहने का इंतजाम एक होटल में किया गया था. हर तरह की सुखसुविधाएं उन के लिए मुहैया थीं. मुझे भी कीमती साड़ी व जड़ाऊ सैट बाबूजी ने दिलवाया था. अश्विनी मना करते रह गए थे. मां का तर्क था कि इकलौते भाई की शादी में यह सब लेने का हक था मुझे.

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एकएक दिन युग के समान प्रतीत हो रहा था. कब वह दिन आए और मैं भाभी से मिलूं? आकांक्षाएं आसमान छू रही थीं. मां का उत्साह इकलौती बहू के प्रति देखते ही बनता था. बारबार कहतीं, ‘जोड़ी सुंदर तो लगेगी न?’ हम मुसकरा कर अपनी सहमति देते थे. विवाह का समय ज्योंज्यों नजदीक आता मांबाबूजी की बेचैनी बढ़ती जाती थी. सब काम अलगअलग लोगों में बंटा था. किसी प्रकार की कमी वह सह नहीं पा रहे थे.

भैया सदैव से अल्पभाषी रहे हैं, पर उन की उत्सुकता मां से छिपी न थी. आज भाभी और उन के पिताजी जो आ रहे थे. बारबार आंखों के सामने एक खूबसूरत चेहरा, छरहरा बदन व लंबे कद की रूपसी खड़ी हो जाती.

हम सब हवाई अड्डे पहुंच चुके थे. वहां पहुंच कर अश्विनी ने छेड़ा, ‘‘मां, अपनी बहू को कैसे पहचानोगी?’’

‘‘देविका के साथ जो सब से सुंदर लड़की होगी वही मेरी बहू है,’’ मां का अटूट विश्वास देखते ही बनता था.

उद्घोषिका ने सूचित किया, अमेरिका से आने वाला वायुयान आ गया है. उत्सुक निगाहें हर आगंतुक में भाभी को ढूंढ़ रही थीं.

सहसा मां को किसी ने अंक में भर लिया था, देविका मौसी थीं.

‘‘हमारी बहू कहां है?’’

‘‘और मेरी भाभी?’’ मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी.

उन्होंने एक 5 फुट की लड़की को आगे कर के कहा, ‘‘यही तो है तुम्हारी बहू.’’

मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. कहां वह फोटो वाली रूपसी और कहां यह कुम्हलाया सा चेहरा? कहीं ये मजाक तो नहीं कर रही हैं, या मैं ही कोई दुस्वप्न देख रही हूं? उस के दोनों हाथ जुड़े हुए थे, शायद कभी पक्षाघात का शिकार हुई थी. कदकाठी का पूर्ण विकास हुआ लगता ही न था.

बाबूजी संज्ञाशून्य से परिस्थिति का विवेचन कर रहे थे और भैया अपना गांभीर्य ओढ़े कभी अंजू को निहार रहे थे, कभी हम सब को. अपनी जीवनसंगिनी को इस रूप में देख कर उन की आकांक्षाओं पर बुरी तरह तुषारापात हुआ था. मां गश खा कर गिर पड़ी थीं. किसी प्रकार उन्हें उठाया. रुग्ण सी काया व संतप्त मन लिए वे कांपती रही थीं. कितने अनदेखे दंश खाए होंगे उन्होंने, यह मैं भली प्रकार से महसूस कर पा रही थी. शक्ति की स्रोत मां बुरी प्रकार से टूट चुकी थीं.

पर ऊपरी तौर पर सभी सामान्य थे. किसी ने एक शब्द भी न कहा था. मेरा हृदय चीत्कार कर के देविका मौसी को बुराभला कहने को चाह रहा था. खूब बदला लिया था उन्होंने हम सब से अपने पर किए गए एहसानों का. जाने कब का बदला लिया था उन्होंने भैया से? किंतु मातापिता की शिक्षा के कारण कुछ भी तो अनर्गल न कहा गया था.

फोटो वाली सुंदरसलोनी अंजू की तुलना इस अपाहिज से कर के मन दुखी सा हो गया था. भविष्य की सुंदर सुनहरी हरीतिमा की कल्पना यथार्थ की धरती पर मरुभूमि की सफेदी में परिवर्तित हो गई थी. सारे बिंबप्रतिबिंब टूट पड़े थे. ऐसा प्रतीत होता था कि सामने पड़े वैभव को किसी ने कालिमा से पोत दिया हो.

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समधियों को उन के रहने के स्थान पर छोड़ा गया. उन की आवभगत के लिए कुछ लोग तैनात थे. एक बात कुछ विचित्र सी लगी थी, देविका मौसी सामान्य ही थीं. उन के व्यवहार से ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने हमारे साथ विश्वासघात किया हो.

घर आ कर हर परिचित, रिश्तेदार की जबान पर एक ही प्रश्न था, ‘बहू कैसी है?’

क्या बताते? मृत्यु के बाद का सा सन्नाटा छा गया था. ऐसा लगता, हम सब के शरीर का रक्त किसी ने चूस लिया हो. रात्रिभोज तक हम सब सामान्य थे या सामान्य होने का प्रयत्न कर रहे थे. अभी विवाह में 3 दिन का समय बाकी था. रहरह कर मां व बाबूजी पर क्रोध आ रहा था. इस नवीन विचारधारा के युग में महज फोटो देख कर ब्याह निश्चित करना कितनी बड़ी भूल थी. कुंठा कहीं दिल में कैद थी और जबान को मानो ताला लग गया था.

अगले भाग में पढ़ें- मां से भी कहा था, ‘धनदौलत तो हाथों का मैल है

संबंध : भाग 1

मैं काफी देर से करवट बदल रही थी. नींद आंखों से ओझल थी. अंधेरे में भी घड़ी की सूई सुबह के 4 बजाते हुए प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही थी. हर ओर स्तब्धता छाई हुई थी. एक नजर अश्विनी की ओर देखा. वे गहरी नींद में थे. पूरे दिन दौड़धूप वही करते रहते हैं. मुझ से तो किसी प्रकार की सहानुभूति या अपनत्व की अपेक्षा नहीं करते वे लोग. किंतु आज मेरे मन को एक पल के लिए भी चैन नहीं है. मृत्युशय्या पर लेटी मां व भाभी का रुग्ण चेहरा बारबार आंखों के आगे घूम जाता है.

क्या मनोस्थिति होगी बाबूजी व भैया की आज की रात?

डाक्टरों ने औपरेशन के बाद दोनों की ही स्थिति को चिंताजनक बताया था. मां परिवार की मेरुदंड हैं और अंजू भाभी गृहलक्ष्मी. यदि दोनों में से किसी को भी कुछ हो गया तो परिवार बिखर जाएगा. किस प्रकार जोड़ लिया था उन्होंने भाभी को अपने साथ. घर का कोई काम, कोई सलाह उन के बिना अधूरी थी. मैं ही उन्हें अपना न पाई. एक पल के लिए भी अंजू की उपस्थिति को बरदाश्त नहीं कर पाती थी मैं.

उसे प्यार करना तो दूर, उस की शक्ल से भी मुझे नफरत थी. उसी के कारण मां को भी तिरस्कृत करती रही थी. जाने क्यों मुझे लगता उस के कारण मेरे परिवार की खुशियां छिन गईं. भैया का जीवन नीरस हो गया. क्या मां का जी नहीं चाहता होगा कि उन का घरआंगन भी पोतेपोतियों की किलकारियों से गूंजे. आज के इस भौतिकवादी युग में रूप, गुण और शिक्षा से संपन्न स्त्री को भी कई बार यातनाएं सहनी पड़ती हैं.

किंतु मेरे परिवार के सदस्यों ने तो उस अपाहिज को स्वीकारा था. उस की कई बार सेवाशुश्रूषा की थी. शारीरिक व मानसिक संबल प्रदान किया था. भाभी के प्रति मां को असीम स्नेह लुटाता देख मैं ईर्ष्या की अग्नि में जलने लगी थी.

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ससुराल में अपना स्थान बनाने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ा था मुझे? इस अपाहिज नारी के कारण भी कुछ कम आक्षेप तो नहीं सहे थे. मेरे मातापिता दहेज के लोभी बन गए थे. कैसे समझाती इस समाज को कि उन्होंने यह सब मानवता के वशीभूत हो कर किया था. और मैं क्या एक पल को भी भाभी के किसी गुण से प्रसन्न हो पाई थी? मेरी दृष्टि में भाभी का जो काल्पनिक रूप था उस से तो वे अंशमात्र भी मेल न खाती थीं.

कुढ़ कर मैं ने मां से कहा भी था, ‘‘यह तो ग्रहण है तुम्हारे बेटे के जीवन पर और तुम्हारे परिवार पर एक अभिशाप.’’

मां स्तब्ध रह जाती थीं मेरे शब्दों पर. उन्हें कभी कोई शिकायत थी ही नहीं उन से.

सुबह के 5 बजे थे. फोन की घंटी बज रही थी. कहीं कोई अप्रिय समाचार न हो, धड़कते दिल से फोन का चोगा उठाया, बाबूजी थे.

‘‘रीना बेटी, तुम्हारी मां की तबीयत कुछ ठीक है, पर अंजू अभी खतरे से बाहर नहीं है,’’ उन के स्वर का कंपन स्पष्ट था.

मैं स्वयं को कोस रही थी. क्यों बाबूजी व अश्विनी के कहने पर घर आ गई थी. बाबूजी व भैया के पास बैठना चाहिए था मुझे. नितांत अकेले थे वे दोनों. पर मुझ से सहानुभूति की अपेक्षा वे रखते भी न होंगे. उन्हें क्या मालूम हर समय अंजू को तिरस्कृत करने वाली रीना आज पश्चात्ताप की अग्नि में इस तरह जल रही है.

पहले भी तो वह कई बार अस्पताल आई थीं, किंतु तब मेरे मन के किसी कोने से अस्फुट सी यही आवाज उठती थी कि भाभी इस दुनिया से चली जाएं और मेरे भैया का जीवन बंधनों से मुक्त हो जाए. एक पल को न समझ पाई थी कि भैया का जीवन भाभी के बिना अधूरा है. मां ने एक बार समझाया था कि एक बार वह इस घर की बहू बनी है तो अब वह मेरी बेटी भी बन गई है. उस की देखभाल करना हमारा नैतिक ही नहीं, मौलिक दायित्व भी है.

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‘‘और उन के मायके वालों का क्या कर्तव्य है? धोखे से अपनी बीमार बेटी दूसरे के पल्ले बांध कर खुद चैन की नींद सोएं? कहने को तो करोड़ों का व्यापार है, टिकटें भेजते रहते हैं अपनी बेटी व दामाद को. अमेरिका घूम आने के निमंत्रण भेजते रहते हैं पर बीमार बेटी की सेवा नहीं की जाती उन से,’’ मैं गुस्से से कांपकांप जाती थी.

‘‘रीना, वह स्वयं मायके नहीं जाना चाहती. जानती है, कल मेरे गले में हाथ डाल कर बोली थी, ‘मां, मेरी मां व पिताजी से बढ़ कर प्यार आप लोगों ने मुझे दिया है. मेरा जी आप लोगों को छोड़ने को नहीं चाहता.’’’

‘‘बस तुम से तो कोई मीठा बोले तो पिघल जाती हो.’’

बड़ी मुश्किल से अश्विनी मुझे चुप करवाते. दिखावे के संबंध मुझे हमेशा विचलित करते रहे हैं. मां के पास जा कर भी अंजू को अपना न पाती थी मैं. कितना प्रतिरोध किया था भैया के ब्याह पर मैं ने? उन के जैसे सौम्य, सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी के लिए रिश्तों की क्या कमी थी? उन्होंने एमबीए किया था. बाबूजी का लाखों का व्यापार था. भैया दाहिने हाथ के समान उन की मदद करते थे. मैं मचल कर बाबूजी से कहती, ‘‘भैया के लिए सुंदर सी भाभी ला दीजिए न.’’

‘‘पहले तुझे इस घर से निकालेंगे तब बहू आएगी यहां.’’

पर मैं एक सखी के समान भाभी के साथ रहना चाहती थी. हमउम्र ननदभाभी सखियों के समान ही तो होती हैं. पर मेरी किसी ने भी न सुनी थी. उन का तर्क था, ‘‘हम तुझे इसी शहर में ब्याहेंगे, जब जी चाहे आ जाना.’’

और धूमधाम से ब्याह दी गई थी मैं. आदर्श पति के समान अश्विनी रोज मुझे मां से मिलवा लाते थे. पूरा दिन मां से बतियाती, मेरी पसंद के पकवान बनते. मां बताती रहती थीं भैया के रिश्तों के बारे में. बाबूजी भी पास बैठे रहते. भैया का स्वभाव कितना मृदु था. उन की आवाज की पारदर्शी सरलता से उन का आकर्षक व्यक्तित्व परिलक्षित होता था.

मुझे नाज था अपने भाई पर. मेरी कितनी सहेलियां उन पर फिदा थीं.

पर वे तो आदर्श पुत्र थे अपने माता-पिता के.

एक दिन मां ने बताया था, ‘‘तेरी देविका मौसी का पत्र आया है अमेरिका से. वे अपनी देवरानी की बेटी का रिश्ता करना चाहती हैं विपिन के साथ.’’

ये वही देविका मौसी थीं जिन्होंने अपने मातापिता को बचपन में ही खो दिया था. दरदर की ठोकरें खाने के बाद भी उन्हें किसी ने सहारा न दिया था. अभागिन कह कर लोग दुत्कार देते थे. मेरे नाना ने उन्हें पालापोसा, पढ़ायालिखाया और उच्च कुल में ब्याहा था.

अगले भाग में पढ़ें- ‘‘और मेरी भाभी?’’ मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी.

छत पर तैयार किया गन्ने का पौधा

गन्ने की फसल किसानों के लिए फायदा देने वाली फसल मानी जाती है. एक बार गन्ने की फसल लगाने के बाद 3 सालों तक गन्ने का उत्पादन होता रहता है. कम लागत और सामान्य देखभाल वाली इस फसल पर मौसम की मार भी ज्यादा नहीं पड़ती. परंपरागत तरीके से गन्ने की खेती करने से लागत अधिक और उत्पादन कम मिलता है. इस समस्या से निबटने के लिए किसान गन्ने की खेती में नएनए प्रयोग करने लगे हैं.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक किसान परिवार ने अपने घर की छत पर गन्ने की पौध तैयार कर के दूसरे किसानों के लिए भी एक मिसाल कायम की है. किसान द्वारा किए गए इस नवाचार को गांवकसबे के दूसरे किसान भी अपनाने लगे हैं.

आमतौर पर किसान फसल की पौध को खेत या खलिहान में तैयार करते हैं, पर खेतखलिहान में तैयार पौध को छुट्टा जानवरों और पशुपक्षियों द्वारा नुकसान पहुंचता है. इसी बात के मद्देनजर गाडरवारा तहसील के एक छोटे से गांव टेकापार के 2 सगे भाइयों भगवान सिंह राजपूत और कृष्णपाल सिंह राजपूत ने घर की छत पर गन्ने की पौध तैयार कर दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा देने का काम किया है.

अपने खेत की 6 एकड़ जमीन पर गन्ना लगाने के लिए दोनों किसानों ने यह नया तरीका अपनाया है. उन के बताए अनुसार खेतों में सीधे गन्ना लगाने से ज्यादा गन्ने की जरूरत पड़ती है और इस में से 10 से 20 फीसदी गन्ने की गांठों से अंकुरण नहीं होता है, जबकि गन्ने की एक आंख से इस तरह की पौध तैयार करने से 100 फीसदी गन्ने से पौधे उग आते हैं और फसल बीमारियों से भी पूरी तरह महफूज रहती है.

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इस तरह तैयार की नर्सरी

किसान कृष्णपाल सिंह राजपूत ने बताया कि उन्होंने सब से पहले बडचिपर मशीन के प्रयोग से गन्ने से एक आंख वाले टुकडे़ लिए और बाकी गन्ने का उपयोग गुड़ बनाने में कर लिया. इस से बीज के रूप में गन्ने की मात्रा कम लगने से लागत में कमी आई.

छत पर प्लास्टिक ट्रे और पौली बैग में मिट्टी व जैविक खाद भर कर गन्ने की एक आंख को इस तरह रोपा जाता है कि आंख का ऊपरी हिस्सा दिखाई देता रहे. रोपे गए इस गन्ने की पौध में पानी देने औैर दवाओं के छिड़काव में उन्हें आसानी हुई.

लगभग एक सप्ताह में गन्ने की आंख से पौधे का अंकुरण हो जाता है. छत पर पौध लगाने से आवारा जानवरों से फसल की हिफाजत भी हो गई और अंकुरण भी अच्छा हुआ.

पहलेपहल तो इन भाइयों के इस काम को ले कर साथी किसानों ने उन का मजाक उड़ाया, लेकिन जब गन्ने की पौध तैयार हुई तो आसपास के गांव के किसानों की भीड़ लगने लगी.

बम्हौरी गांव के किसान कीरत सिंह पटेल कहते हैं कि छत पर पौध लगाने के इस नए तरीके से उन्हें भी प्रेरणा मिली है. वहीं दूसरी ओर किसान भगवान सिंह राजपूत गन्ने की नर्सरी की जानकारी देते हुए बताते हैं कि उन्हें शुगर मिल द्वारा बनाई गई गन्ने की नर्सरी को देख कर यह प्रेरणा मिली. शुगर मिल की नर्सरी में 300 रुपए प्रति सैकड़ा के हिसाब से गन्ने की बिक्री की जा रही थी. तभी उन के मन में यह विचार आया कि  घर में ही गन्ने की नर्सरी तैयार की जाए. उन के द्वारा घर की छत पर तैयार किए गए गन्ने के पौधों की लागत 100 रुपए प्रति सैकड़ा आई है.

छत पर तैयार गन्ने के पौधे जब एक से डेढ़ माह के हो जाते हैं, तो उन्हें ट्रैक्टरट्रौली में भर कर खेतों में पहुंचाया जाता है. खेतों में 4-4 फुट की दूरी पर बनी घारों में 1-1 फुट के अंतर से पौधे रोपने का काम किया जा रहा है. इस विधि से तैयार गन्ने की यह फसल दूसरे किसानों के खेत में उगे गन्ने से बेहतर होती है.

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इस नवाचार में राजपूत परिवार का युवा बेटा योगेश भी उन की मदद कर रहा है. योगेश का कहना है कि किसानों को परंपरागत खेती छोड़ नए प्रयोग करने होंगे, तभी उन्नत खेती की जा सकती है.

छत पर गन्ने की पौध लगाने की जानकारी कृष्णपाल सिंह राजपूत के मोबाइल नंबर 9669621660 और भगवान सिंह के मोबाइल नंबर 8120713346 पर संपर्क कर के ली जा सकती है.

Valentines’ Special : प्यार के इकलौते युवा त्यौहार पर धर्म का डंडा – भाग 2

इन दलों का मकसद अपनी बहनबेटियों को इस पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से बचाना, अश्लीलता से बचाना और शादी से पहले सैक्स जैसी क्रिया से दूर रखना है. लेकिन, यह कौन होते हैं किसी भी लड़की को यह बताने वाले कि उसे शादी से पहले या बाद में क्या करना चाहिए और क्या नहीं? इन में इतनी हिम्मत कहां से आती है कि ये खुलेआम चलती सड़क पर नारे लगाते हैं, लड़केलड़कियों को मारतेपीटते हैं?

इन्हें संरक्षण देता है धर्म. इन के ऊपर धर्म का हाथ है जिस के बल पर ये लड़केलड़कियों को अपनी उस संस्कृति में फंसाए रखना चाहते हैं जिस के अनुसार कृष्ण खुलेआम रासलीला रचाए तो सही और सीता रावण की लंका से अनछुई लौट भी आए तो गलत.

भगवाधारियों की लगातार बढ़ती गुंडागर्दी

एक दिन पहले ही इन भगवाधारियों के द्वारा यह चेतावनी दे दी जाती है कि ‘यदि कोई लड़कालड़की वैलेंटाइंस डे वाले दिन एकसाथ पार्क, गार्डन में दिख गए तो उन का स्वागत लाठी से करेंगे.’ यहां तक कि यह लड़केलड़कियों को उठवा भी लेते हैं. ऐसा नहीं है कि यह चेतावनी गुपचुप दी जाती है या पहचान छिपा कर मुखरित हुआ जाता है. ये लोग बाकायदा सड़कों पर उतर कर, मीडिया के सामने अपनी नफरत का खुलेआम एलान करते हैं, धमकियां देते हैं और बीच सड़क पर प्रदर्शन करते हैं. 14 फरवरी के दिन जगहजगह भगवाधारी घूम रहे होते हैं. इस दिन खासतौर पर पुलिसकर्मियों को कई इलाकों में तैनात किया जाता है ताकि कहीं भी किसी भी प्रकार की गुंडागर्दी न हो. यह खासकर मुजफ्फरनगर जैसे इलाकों में ज्यादा देखने को मिलता है. पुलिस की मौजूदगी में भी ये लोग अपना काम आसानी से कर जाते हैं.

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आरएसएस द्वारा लव जिहाद के नाम पर कितने ही लड़केलड़कियों को शोषित किया गया. इस और इस जैसे अन्य दलों के अनुसार मुसलिम लड़के हिंदू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उन से शादी करते हैं और फिर उन का धर्म परिवर्तन करा देते हैं. ये लोग वैलेंटाइन डे के दिन जिन लड़केलड़कियों को पकड़ते हैं वे यदि अलग धर्म या जाति के हों तो सम झो उन्हें, खासकर लड़कों को इन की मार से शायद ही कोई बचा पाए. धर्म के नाम पर हिंसा को बढ़ाने में भी इन्हीं गुटों का हाथ है.

पिछले साल ही फेसबुक पर ‘हिंदुस्तान वार्त्ता’ के नाम से एक ग्रुप था जिस में 100 से ज्यादा विधर्मी कपल्स की लिस्ट थी. यानी वे कपल्स जिन में लड़का मुसलमान और लड़की हिंदू थी. उस लिस्ट के साथ लिखा गया था, ‘हर हिंदू शेर से गुहार है कि वह इन लड़कों को पकड़े और मार गिराए.’ इस पेज को कुछ समय बाद ही फेसबुक से रिमूव कर दिया गया.

संस्कृति के ढकोसले क्यों

धर्म के चरमपंथियों का कहना है, ‘हम विदेशी संस्कृति की तरफ बढ़ते जा रहे हैं और वैलेंटाइन डे भी विदेशी संस्कृति की ही निशानी है.’ लेकिन जिन लोगों को यह लगता है कि प्रेम का प्रदर्शन करना या इस तरह का कोई दिन यानी वैलेंटाइन डे पश्चिमी सभ्यता की देन है और हमारी संस्कृति को बरबाद कर रहा है तो उन्हें तो हर रूप में फिर भारतीय संस्कृति को अपनाना चाहिए. हमारी संस्कृति जींसटीशर्ट की नहीं, बल्कि, कुर्ताधोती की है. टैलीग्राफ, टैलीफोन, इंटरनैट, रेडियो, नैविगेशन सैटेलाइट्स, पैंसिल, बोलपौइंट पैन, फोटोकौपियर, इंकजैट प्रिंटर, प्लाज्मा डिस्प्ले स्क्रीन, स्टीम इंजन, मोटर, ट्रांसफौर्मर, इलैक्ट्रिक पावर, ग्लास, रबर, औटोमोबाइल, एरोप्लेन, साइकिल इत्यादि सभी पश्चिम की देन हैं. अगर पश्चिमी सभ्यता इतनी ही अखरती है तो इन सब चीजों को त्यागने के बारे में ये लोग क्यों नहीं सोचते?

ब्राह्मणों का वैलेंटाइन डे को या प्रेम को इतना दोयम दर्जे का मानने व बनाने की कोशिश के पीछे साफ कारण है – उन की दलाली पर चोट. ब्राह्मणों का काम आखिर है ही क्या? शादी कराना, कुंडलियां मिलाना, मंदिर में आए लोगों को प्रवचन सुनाना. जितना ये पंडित शादियों में कमाते हैं उतना तो शायद ही कहीं कमाते हों. जब लड़केलड़कियां लव मैरिज करने लगेंगे तो ये बीच में दलाली कैसे करेंगे. इन्हें बिचौलिया बनने के पैसे फिर कौन देगा.

हिंदू धर्म में कोई त्योहार हो या पूजापाठ, पंडितों को बुला कर उन्हें खाना खिलाया जाता है और दानदक्षिणा भी दी जाती है. कई त्योहारों में तो ये खुद घरघर घूमते हैं और जेबें भरते हैं. राखी, होली, दीवाली ये इन के कुछ ऐसे प्रमुख त्योहार हैं जिन में इन्हें दानदक्षिणा इन की इच्छा के अनुसार मिल जाती है. लेकिन, वैलेंटाइन डे ऐसा दिन है जिस में इन की जेबें खाली ही रह जाती हैं. वैलेंटाइंस डे है यानी प्यार है, प्यार यानी प्रेमविवाह, और जब प्रेमविवाह होगा तो इन जैसों को कौन पूछेगा.

किस ने दिया अधिकार

सवाल उठता है कि किसी भी प्रेमी जोड़े, वह भी बालिग जोड़े, के साथ इस तरह पेश आने का अधिकार क्या किसी संगठन या समाज के ठेकेदारों को है? नहीं. कोई भी आ कर किसी भी लड़कालड़की के साथ मनमानी क्यों करने लग जाता है? लड़कियों के चरित्र पर सवाल उठाया जाता है. प्रेमियों को धमकियां दी जाती हैं कि घरवालों को बुलाया जाएगा, उन के सामने बेइज्जत किया जाएगा. यदि कोई लड़कालड़की क्लब जाते हैं, साथ गाते हैं, नाचते हैं, तो इन्हें इस बात से भी दिक्कत है. क्या इन लोगों ने कभी जागरण और कीर्तन में औरतों का फूहड़ तरीके से नाचना नहीं देखा? देखा तो सब ने होगा लेकिन इस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता क्योंकि यह धर्म से जुड़ा है.

अरे, अब क्या लड़केलड़कियां जीना छोड़ दें? सतयुग में चले जाएं और कमर से 6 इंच ऊंचा ब्लाउज पहन राजामहाराजों को नृत्य दिखाएं, उन का मनोरंजन करें? यह संस्कृति के खिलाफ नहीं है. लेकिन लड़केलड़कियां मनमुक्त घूमें तो वह संस्कृति की धज्जियां उड़ाना है? अगर यह भारतीय संस्कृति है जहां लड़की भोगविलास और घर में बंद रहने के लिए ही है तो ऐसी संस्कृति की धज्जियां उड़नी ही चाहिए.

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प्रेम की आजादी आखिर क्यों नहीं

लड़केलड़कियां यदि एकदूसरे से प्यार करते हैं, एकदूसरे के साथ घूमफिर कर के बातें करना चाहते हैं, वैलेंटाइन डे मनाना चाहते हैं, सैक्स करना चाहते हैं तो इस में गलत क्या है? जब यह तर्क दिया जाता है कि 17 साल की लड़की मां बनी घूम रही है तो इस के पीछे सैक्स एजुकेशन की कमी को कोई उजागर क्यों नहीं करता? जब यह तर्क दिया जाता है कि देश की संस्कृति पर चोट हो रही है तो प्रेमियों की जबरदस्ती शादी करा कर देश के कानून पर चोट क्यों की जाती है? जब लड़की के अस्तित्व को बहन, बेटी और बीवी के रूप में बांधने की कोशिश की जाती है, तो दुर्गाकाली को पूजने का दिखावा क्यों किया जाता है?

देश में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन में ये भगवाधारी अपना योगदान दें तो देश का और समाज का भला हो जाए. बेचारे बच्चे यदि अपने जीवन में प्रेम पा कर थोड़े खुश हो भी रहे हैं तो ये अपनी नाक घुसाने चले आते हैं. समाज में चूंकि प्यार को गलत ठहराया जाता है, खुलेआम करने पर मारपिटाई होती है, घर में अपनी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड को लाना मना होता है इसलिए प्रेमी छिपछिप कर मिलनेजुलने के लिए मजबूर होते हैं. आप प्रेम को सही कह कर देखिए, जिस अश्लीलता की दुहाई देते हैं वह बंद हो जाएगी, गले मिलना, साथ बैठना भी साधारण लगने लगेगा. प्रेम को प्रेम ही रहने दो, धर्म का चप्पू चला कर उस की नैया मझधार में मत डुबाओ.

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Valentines’ Special : प्यार के इकलौते युवा त्योहार पर धर्म का डंडा- भाग 1

Valentine’s Special : ब्यूटी प्रोडक्ट्स हों खास

वैलेंटाइन डे पर खूबसूरत दिखने की चाह हर युवती, हर महिला की होती है ताकि उन का पार्टनर उन्हें देखता ही रह जाए, उन की नजरें उन पर से हटे ही नहीं. मगर वे खुद को खूबसूरत दिखाने के लिए कोई भी मेकअप प्रोडक्ट यूज कर लेती हैं जिस से उन की नैचुरल ब्यूटी भी छिप जाती है और देखने वालों के मुंह से तारीफ भी नहीं निकलती है. ऐसे में आप की उम्मीदों पर पानी न फिरे और सब आप की ब्यूटी की तारीफ किए बिना न रह सकें.

आज वही प्रोडक्ट मार्केट में टिक पाता है जो यूनीक होता है और अपने यूनीक होने के कारण ही लोगों की पसंद बन गया है. क्योंकि यह इंटरनैशनल ट्रैंड्स, थीम और कस्टमर्स की डिमांड को ध्यान में रख कर अपने प्रोडक्ट्स को लौंच जो करता है.

आप को बता दें कि यह कंपनी हर साल करीब 120 प्रोडक्ट ले कर आती है और सभी एक से बढ़ कर एक होते है. इन प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल से ऐलर्जी प्रौब्लम नहीं होती, साथ ही ये सभी स्किन को सूट करते हैं क्योंकि इन में ऐसे तत्वों को इस्तेमाल किया गया है जो स्किन को सूट करते हैं.

डे लुक को बनाएं ऐसे बेहतर

 क्या खूब हैं तेरी आंखें: आंखों की खूबसूरती देख हर कोई आप पर मर मिटने के लिए तैयार हो जाएगा और अगर आप इस वैंलेंटाइन ऐसा कुछ करना चाहती हैं तो कैटवौक स्टार आईब्रो पाउडर से अपनी भौंहों को बनाएं खूबसूरत. क्योंकि यह भौंहों के बीच की खाली जगह को भरने के साथसाथ उन्हें मनचाही शेप देने का काम जो करता है जिसे आप अभी तक सपना ही समझ रही थीं और दूसरों की बेहतरीन भौंहें देख कर मन ही मन बस यही सोच रही थीं कि काश मेरी भी ऐसी भौंहें होतीं तो क्या खूब होता. तो अब इसे यूज कर आप भी पा सकती हैं तारीफ.

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इसी के साथ आप अपनी भौंहों को नैचुरल लुक देने के लिए ट्रांसपेरैंट जैल का यूज करें जो आप की भौंहों को पूरे दिन परफैक्ट बनाए रखेगा और अगर आप अपनी भौंहों को शेप देने के साथसाथ डिफरैंट कलर भी देना चाहती हैं तो ब्रो डिफाइनर पेंसिल का यूज करना न भूलें. इस का टैक्स्चर बहुत ही सौफ्ट होने के साथसाथ यह लंबे समय तक टिका भी रहता है जो इस की खासीयत है, साथ ही ये प्रोडक्ट्स आप की आंखों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. इन्हें नाजुक त्वचा वाले भी बिना सोचसमझे इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि ये पैराबिन फ्री हैं व इन में किसी तरह की खुशबू को नहीं डाला गया है यानी पूरी तरह सेफ.

हैल्दी ग्लो मेकअप बेस: आज एयरब्रश मेकअप का ट्रैंड चल पड़ा है और ऐसे में इसे और परफैक्ट बनाने के लिए इस्तेमाल करें हैल्दी ग्लो मेकअप बेस जिस से मेकअप दिखेगा खास और चेहरे पर आएगी चमक. तैलीय त्वचा वाले मैट मेकअप बेस का यूज करें यानी रिजल्ट के लिए त्वचा के हिसाब से मेकअप बेस का इस्तेमाल करना जरूरी है.

नाइट लुक के लिए कुछ अलग 

वैंलेंटाइन नाइट को और रोमांटिक बनाने के  लिए आंखों को ऐसे दें स्मोकी लुक.

कलर स्विंग आइैशैडो: इस में ढेरों आईशैडो की वैरायटी है जो आप की आंखों को अमेजिंग टच देगी जिसे आप सिंगल कलर भी अप्लाई कर सकती हैं और दूसरे कलर्स के साथ खेल कर भी.

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कलर बिग्गी लौंग लास्टिंग: जहां यह यूज करने में काफी आसान है वहीं इस पेंसिल को आप आईशैडो, काजल, हाईलाइटर के रूप में यूज कर इस वैलेंटाइन खुद को खास दिखा सकती हैं. इस के शैड्स 347, 375, 212 आंखों को स्मोकी लुक देने के लिए काफी हैं. इस का लौंग लास्टिंग होने के साथसाथ वाटर प्रूफ होना यूनीक क्वालिटी है साथ ही कलर स्विंग आईशैडो नंबर 174 झुर्रियों को अच्छे से कवर करने में सक्षम है.

न्यूट्री पावर फाउंडेशन: वैलेंटाइन ईव पर परफैक्ट ग्लो के लिए पेश है न्यूट्री पावर फाउंडेशन. इस में Hyaluronic  एसिड, विटामिन सी, शी बटर होने के कारण यह त्वचा को मौइश्चर देने का काम करता है और इस से चेहरे पर चमक सिर्फ कुछ देर के लिए ही नहीं बल्कि घंटों तक रहती है, जिसे देखने वाले बस देखते ही रह जाते हैं. इसे लगाना भी आसान है जिस से न तो चेहरा डल लगता है और न ही धब्बे दिखते हैं.

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स्मूदनिंग लिप बेस: जब आप अपने किसी खास के साथ वैलेंटाइन ऐंजौय कर रही हो तो आप के होंठ अलग ही चमकें और साथ ही इतने सौफ्ट हो कि आप का कौंफिडैंस बात करते वक्त कई गुना बढ़ जाए तो इस के लिए लिप बेस बैस्ट औप्शन है.

स्ट्रौब और डिफाइन पैलेट: आप अपनी स्किन टोन को देख कर इस के 4 डिफरैंट शैड्स को मिक्स मर्ज कर चार्मिंग लुक की मलिका बन सकती है. ये आप के फेशियल फीचर्स को परफैक्ट बनाने के साथसाथ आप को सैंटर औफ अट्रैक्शन बना देगा.

मोटापे से हैं परेशान तो चबाएं इलायची, मिलेगा फायदा

आज लोगों के बीच मोटापा एक गंभीर समस्या बनी हुई है. लोगों के खानपान में इतने बदलाव हुए हैं की मोटापा को रोक पाना अब मुश्किल हो गया है. पर आप परेशान ना हों. हम आपको ऐसे घरेरू उपाय बताएंगें जिससे आपको मोटापे को कम करना बेहद आसान हो जाएगा.

मोटापे को कम करने में इलायची काफी कामगर होती है. इसे चबाने से आपको कई फायदे मिलते हैं, जिनमें से वजन कम करना प्रमुख है. कई शोधों में ये बात सामने आई है कि इलायची के सेवन से वजन कम होता है.

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कई जानकारों की माने तो हरी इलायची शरीर के चयापचय को बढ़ा कर आपके पाचन तंत्र को साफ, शरीर की सूजन को कम करने तथा कोलेस्ट्रौल के स्तर को कम करती है, जिससे वजन कम करने में सहायता मिलती है. इलायची सिस्टोलिक और डायस्टोलिक को कम करने में सहायक है, इनसे ब्लड प्रेशर लेवल प्रभावित होता है.

benefits of cardamom

चाय के साथ करें इलायची का सेवन

चाय में इलायची डाल कर पीना काफी असरदार होता है. रिसर्च के अनुसार अगर इलायची के पावडर का सेवन किया जाए तो, पेट की चर्बी को कम की जा सकती है.

पेट में गैस या शरीर में पानी की वजह से सूजन आने पर भी मोटापा बढ़ता है. इस परेशानी में भी इलायची काफी असरदार है.

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ऐसे करें इलायची को अपनी डाइट में शामिल

आप इसे चाय में डाल कर पी सकते हैं. इलायची के दानों को पीस कर पाउडर बना लें और उसे अपनी दूध, चाय या खाने में प्रयोग करें. इसके अलावा आप खाने के बाद एक इलायची चबा सकते हैं.

हाय बौस बाय बौस

बौस के गुस्से के गरम तवे पर जब नेहा अपने हुस्न और अदाओं के छींटे मारती है तो उन का गुस्सा छन्न से धुएं में उड़ कर पलभर में काफूर हो जाता है. अपने एक पल्लू से बौस को तो दूसरे से क्लाइंट को बांधे गुमशुदा नेहा को आखिर हर कोई क्यों तलाश रहा है?

औफिस पहुंचते ही बौस वह लैटर ढूंढ़ने लगे जो उन्होंने नेहा को टाइप करने के लिए दिया था. जब लैटर नहीं मिला तो उन्होंने चपरासी से कहा, ‘‘जरा नेहा को भेजना.’’

‘‘साहब, वे तो अभी आई नहीं हैं,’’ चपरासी ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, जैसे ही आएं, फौरन मेरे केबिन में भेज देना,’’ इस बार बौस की आवाज में थोड़ी तुर्शी थी, ‘‘हद होती है लापरवाही की,’’ बौस झुंझलाए.

तभी सीढि़यों से आती हाई हील सैंडल की तेज आवाज और परफ्यूम के तेज झोंके ने यह चेतावनी दी कि आखिरकार ‘उन का’ आगमन हो ही गया है. लगता है कि राखी सावंत ने लटकेझटके दिखाने और अंगप्रदर्शन की ट्रेनिंग इन्हीं से ली होगी. ‘मैं किसी से नहीं डरती’ की तर्ज पर हमेशा ये निशाना साधे खड़ी रहती हैं. किसी ने कुछ कहा नहीं कि दाग दी विषाक्त शब्दों की गोली, कमर पर हाथ रख मोरचा लेने को तैयार.

नेहा मैडम के दस्तक देते ही चपरासी ने सूचना दी, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’

‘‘मिल लेती हूं, जरा सांस तो ले लूं. बस में आज इतनी भीड़ थी कि मेकअप तक खराब हो गया. अभी ठीक कर के आती हूं. हां, जरा चाय के लिए बोल देना,’’ कहतेकहते वे वाशरूम में घुस गईं.

‘‘गुड मौर्निंग सर,’’ नेहा मैडम की आवाज में मानो मिसरी घुली हुई थी.

‘‘गुड मौर्निंग तो ठीक है पर वह मैटर कहां है जो मैं ने तुम्हें कल टाइप करने को दिया था?’’

‘‘सर, शाम को तो टाइम ही नहीं मिला, अभी 10 मिनट में टाइप कर देती हूं,’’ अपने साड़ी के पल्लू से खेलते हुए वे बोलीं. उन की आंखों में अजीब सी शरारत तैर रही थी.

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ बौस थोड़ा पिघले. उन की इन्हीं अदाओं के सामने ही तो बौस की बोलती बंद हो जाती है. आखिर वे नेहा मैडम हैं, जिन्हें पता है कि बौस को कैसे पटाया जाता है. कभी हंस कर तो कभी हमदर्दी बटोर कर, बौस से अपनी बात मनवा लो. इठलाती हुई वे केबिन से बाहर निकल आईं.

हया का चोला तो कभी पहना ही नहीं इन्होंने. डिमांड भी कहां है इस की, यही तर्क देती हैं वे अकसर. कोई बेशर्म होता है तो उसे उन्हीं की तरह अदा से हंसते हुए झेल जाता है, वरना शरीफ बंदा तो दोबारा उन से उलझने की हिम्मत ही नहीं करता है. औफिस रोज आती हैं पर फिर भी उन का जायजा लेने के लिए रोज ही एक बार ऊपर से नीचे तक उन्हें देखना जरूरी होता है. हर दिन नया रूप. फिल्मी फैशन को जिस ने फौलो नहीं किया उस की जिंदगी बिलकुल बेरंग होती है.

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आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर उन में ऐसी क्या खासीयत है कि उन के इतने गुणगान किए जा रहे हैं. खासीयत तो है, यह बात अलग है कि कुछ लोगों के गुणगान उन की काबिलीयत व कार्यकुशलता की वजह से किए जाते हैं और कुछ के उन की अदा व लटकेझटकों के लिए.

नेहा मैडम को तैयार होने में कम से कम 1 घंटा तो लगता ही होगा. आखिर शरीर के सौष्ठव का प्रदर्शन करने के लिए विभिन्न माध्यमों को ईजाद करना भी सब के बूते की बात नहीं है. सुना है, अंतरंग वस्त्रों में कुछ पैडिंग भी करती हैं. फिटिंग और उभार जरूरी हैं कि नहीं. ऊपर से नीचे तक सब मैचिंग.

खैर, एक वैंप स्टाइल में अपने बालों को लहराते हुए उन्होंने कमरे में प्रवेश किया और अपनी ‘खास’ को हाथ से हाय उछालते हुए अपनी सीट पर जा बैठीं. फटाफट लैटर टाइप किया. इतने में एक सहयोगी वर्मा सीट के पास आ कर खड़ा हो गया. दोनों में अच्छी पटती थी.

‘‘क्या हाल हैं?’’ होंठों को गोलगोल घुमाते हुए वर्मा बोला.

‘‘बढि़या हैं. कल जो तुम ने परफ्यूम दिया था न, वही लगा कर आई हूं.’’

‘‘अच्छा लगा न?’’

‘‘ठीक है, पर अगली बार थोड़ा और महंगा देना,’’ लैटर को प्रिंटर से निकालने के लिए मैडम थोड़ा झुकीं तो वर्मा की आंखें चौड़ी हो गईं.

‘‘जो हुक्म सरकार, अगली बार तुम ही साथ चल कर खरीद लेना.’’

उस के बाद बौस के केबिन में जा कर हलके से अपनी मुद्रा को कटावदार बनाते और झुकते हुए बोलीं, ‘‘सर, लैटर टाइप हो गया है.’’

अब तक बौस का मूड भी शायद ठीक हो गया था, इसलिए उन की मुद्रा देख बौस का दिल तो जैसे बल्लियों उछल गया. तुरंत डस्टबिन के अंदर ‘पिच्च’ से थूक उगला और तंबाकू से रोशन पीले दांतों की आकारहीन पंक्ति को बाहर कर बोले, ‘‘लैटर तो ठीक है पर आज देर से औफिस पहुंचीं, सब ठीक तो है न?’’

बौस के बकरीनुमा चेहरे पर टिकी आंखों में ऐसे भाव उभरे मानो नेहा के सौंदर्य को पी लेना चाहती हों. निगाहें डीपनेक ब्लाउज पर से सरकती हुई उभारों पर जा टिकीं. होंठों पर जीभ फेरते हुए थूक को इस बार निगल लिया. मानो थूक के साथ मजा भी गटक लिया हो.

‘‘सौरी सर, कल रातभर सो नहीं पाई, इसलिए सुबह उठा ही नहीं जा रहा था. देखिए न, कैसे तो शरीर में बल पड़ रहे हैं. हलकीहलकी टीसें भी उठ रही हैं, पर काम था, इसीलिए औफिस चली आई. आज क्लाइंट के साथ भी तो मीटिंग है.’’

‘‘देखो, पार्टी हाथ से निकलने न पाए. कैसे भी कर के संभाल लेना.’’

‘‘डू नौट वरी, सर. सब हैंडल कर लूंगी,’’ कहतेकहते नेहा मैडम ने अपने पूरे शरीर को नागिन की तरह झुलाते हुए कुछ इस तरह फुंकार मारी कि बेचारे बौस के लिए अपने को संभालना मुश्किल हो गया.

‘‘ओह हो, क्या कर रही हो? मैं तो आउट औफ कंट्रोल हो रहा हूं. थकी होने पर भी बिजलियां गिरा रही हो. क्यों शुभ्रा मैडम, सही कह रहा हूं न?’’ अपनी बात की पुष्टि करने के लिए बौस ने शुभ्रा मैडम को पुकारा.

शुभ्रा मैडम, यानी नेहा मैडम की खास सहेली. वह तो इंतजार में बैठी ही थी कि कब बौस बुलाएं और कुछ चुहलबाजी हो. काम का क्या है, वह तो होता ही रहेगा. बौस काम को ले कर न तो खुद परेशान रहते हैं न ही अपने खास लोगों को करते हैं. सीमा मैडम हैं न, सब संभाल लेती हैं. वह क्या जाने इस हासपरिहास का आनंद क्या है.

नेहा मैडम को देख कर सब से ज्यादा खुशी उन्हें ही होती है. आखिर दोनों ने एकदूसरे को मोहरा जो बना रखा है. कहती हैं कि हम तो एक नाव हैं, बिलकुल संतुलित वाली नाव. एक अदाओं का पिटारा तो दूसरी ऐसी घुन्नी कि उस के एक हाथ को पता नहीं चलता कि दूसरा क्या कर रहा है.

नेहा मैडम बौस का दायां हाथ हैं तो वह बायां हाथ, मिस दायां हाथ, यानी नेहाजी हमेशा झुकने को तैयार रहती हैं. केक काटना हो, फाइलें बौस को थमानी हों, सदैव झुक कर ही करती हैं. मिस बायां हाथ इस मामले में मजबूर हैं.

बौस के केबिन में अभी हंसीठिठोली चल ही रही थी कि सीमा मैडम आ गईं. फिर तो महफिल बर्खास्त करनी ही पड़ी. उन की गंभीरता बड़ी भारी पड़ती है इन पर. बौस जानते हैं कि इन के बगैर काम नहीं चल सकता इसलिए उन के सामने तो घिघियाने लगते हैं.

मिस बायां हाथ और मिस दायां हाथ, दोनों अपनीअपनी सीटों पर खिसक लीं, पर बडे़ बेमन से. कितनी तो बातें थीं अभी करने की. शुभ्रा मैडम को अपनी सास के जुल्मों का बखान करना था और नेहा मैडम को अपने तीसरे पति के साथ बीत रहे दिनों की चटखारेदार बातें सुनानी थीं.

सीट पर बैठ नेहाजी ने कंप्यूटर खोला, फाइलें मेज पर रखीं और बाथरूम में जा कर लिपस्टिक की परत पर एक और पोंछा मार कर लौटीं. कुछ देर किसी से बहुत ही मंद स्वर में फोन पर बात की. फोन औफिस संबंधी काम के लिए नहीं था, पर्सनल था.

अभी 1 बजने ही वाला था कि वे उठीं और बौस के केबिन में पहुंचीं, ‘‘सर, बड़ी भूख लग रही है. मैं तो जल्दीजल्दी में कुछ ला ही नहीं सकी.’’

‘‘तुम मेरा लंच ले लो. यहीं बैठ जाओ. लंच टाइम होने में तो समय है,’’ बिना खाए ही लार टपकने लगी थी उन की. वे एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहते थे. नैनसुख का मजा ही सही.

तभी शुभ्रा मैडम भी वहां आ कर विराजमान हो गईं और घर से आए गरमगरम खाने का स्वाद लेने और बौस को देने लगीं.

नेहा मैडम का बारबार खिसकता सिंथेटिक साड़ी का पल्लू संभाले नहीं संभल रहा था. बेचारे बौस का पेट तो यों ही भर गया. 2 बजे तक का समय तीनों का बहुत सुख से कटा.

सवा 2 बजे क्लाइंट महाशय आ गए तो नेहा मैडम उन्हें संभालने रिसैप्शन पर पहुंच गईं. क्लाइंट तो आज तक उन्हीं की वजह से और्डर देता आ रहा था. आज तो वह उन के लिए एक घड़ी भी लाया था.

‘‘मेरा छोटा सा तोहफा कुबूल करें,’’ क्लाइंट ने अपनी आंखों को उन के उभारों पर टिकाते हुए कहा.

‘‘आप की इन्हीं बातों पर तो मरती हूं मैं. कितना ध्यान रखते हैं आप मेरा. माल को ले कर एकदम निश्ंिचत हो जाएं. हर बार की तरह इस बार भी छूट दिला दूंगी,’’ वे इठलाईं.

‘‘तो आज शाम डिनर पर चलें?’’ क्लाइंट के यह कहते ही घड़ी के डब्बे को हाथ में थामते हुए वे बोलीं, ‘‘क्यों नहीं? मिलते हैं फिर शाम को.’’

ढाई बजे नेहाजी को महसूस हुआ कि उन का गला बुरी तरह सूख रहा है और जी मिचलाने लगा. ‘लगता है इस सियार ने कल रात का खाना खिलाया है. इस की गंवार बीवी 2 दिन का खाना बना लेती है ताकि बचत हो. भिंडी तो सड़ ही गई थीं शायद,’ मन ही मन बौस के डब्बे के खाने को कोसा और बड़ी सी डकार मार कर उन के केबिन के आगे जा खड़ी हुईं. अपनी आवाज में शहद जैसी मिठास घोलते और अपनी डकार को रोकते हुए बोलीं, ‘‘बड़ी प्यास लगी है, जरा बाहर जा कर कोल्ड ड्रिंक पी कर आती हूं सर.’’

जवाब सुनने की जहमत वे नहीं उठातीं. उन के साथ मिस बायां हाथ भी हो लीं. आज लंच टाइम में गप नहीं हो पाई थी.

10 मिनट बाद लौटीं तो फर्राटे से चलते हुए इस तरह सीट पर बैठीं मानो सारी फाइलें आज ही निबटा देंगी.

नेहा मैडम कंप्यूटर पर कुछ एंट्री कर ही रही थीं कि सीमा मैडम ने कुछ फाइलें उन्हें देते हुए कहा, ‘‘इन सब को आज जवाब देना है.’’

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खा जाने वाली निगाहों से नेहा ने उन्हें घूरा. उन का बस चले तो उन्हें वे चक्की के पाट के अंदर रख कर चक्की चला दें. खुद तो दिन भर लगी रहती है, दूसरों को भी कोल्हू का बैल बनाना चाहती है.

‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कल करूंगी. जल्दी है तो किसी और से करा लो,’’ हाथ नचाते हुए ढिठाई से उन्होंने कहा. बौस मुट्ठी में हो तो क्यों दबें.

इधर ये नामुराद उबासियां कैसे उन के मुंह को जबरन खुलवाए जा रही हैं. बहुत संभाला पर सिर मुआ टेबल पर जा ही टिका. थोड़ी देर बाद उन्होंने टेबल से सिर उठाया और ऊंघते हुए बगल में बैठे सुधीर से पूछा, ‘‘सैलरी बैंक में क्रैडिट हो गई कि नहीं?’’

‘‘वह तो सुबह ही हो गई थी.’’

कुछ चौकन्नी हुईं वे तो चाय की तलब जाग उठी. वैसे भी 3 बज गए थे. लौबी में जा कर चाय का कप भर लाईं. औफिस में चायकौफी की मशीन लगी हो तो वारेन्यारे हो जाते हैं.

साढ़े 3 बजे बौस चक्कर लगाते हुए उन की सीट पर पहुंचे. उन की नींद से बोझिल आंखों को देख सांत्वना देने की खातिर उन की पीठ पर हाथ रखा. मैडम की आंखों के बल्ब जले और बौस उन में खाक होने लगे.

‘‘ओह हो, क्यों अपने को इतना टौर्चर कर रही हैं, जाइए घर. आप तो खिलीखिली ही अच्छी लगती हैं. कितना मुरझा गई हैं.’’

बौस तो सचमुच आउट औफ कंट्रोल हो रहे थे. वैसे भी उन्हें छूने भर से करंट तो लग गया था. उन की भूखी नजरें और अतृप्त इच्छाएं औफिस में ही करतब दिखाने को व्याकुल हो उठी थीं.

सामान उठातेधरते और शुभ्रा के साथ बातें करतेकरते करते 4 बज गए. ‘बाय सर’ कहते हुए अपने मैचिंग पर्स को झुलाते हुए सैंडल खटखटाते यों निकलीं जैसे औफिस का काम करतेकरते उन के शरीर में न जाने कितने बल पड़ गए हों.

नेहा मैडम का यह सिलसिला मजे से चल रहा था. बौस, क्लाइंट और वर्मा तीनों को लग रहा था वे पट गई हैं. लेकिन नेहा मैडम को तो सिर्फ इस बात से मतलब था कि किस से क्या गिफ्ट मिल रहा है या क्या फायदा हो रहा है, कौन उसे सुबहशाम लिफ्ट दे रहा है.

क्लाइंट से तो वे और भी तरह के फेवर लेती रहती थीं. बहन की नौकरी लगवानी थी तो उसी से मदद ली थी. नेहा मैडम ने बौस से 50 हजार, क्लाइंट से 15 हजार और वर्मा से 5 हजार रुपए भी उधार लिए हुए थे. नैनसुख और नेहा मैडम की अदाओं का आनंद लेने के चक्कर में तीनों बेवकूफ बन रहे हैं, यह बात तो वे समझ ही नहीं पा रहे थे. एक दिन वे औफिस पहुंचीं तो सीधे लीव एप्लीकेशन बौस को थमा दी.

‘‘सर, मेरे फादर बहुत बीमार हैं, कल ही भोपाल के लिए निकलना है.’’

‘‘जाओ भई और कोई टैंशन मत लेना.’’ हालांकि उन्हें इस बात की तकलीफ थी कि वे अब किस के साथ फुलझडि़यां छोड़ेंगे.

‘‘सर, आई विल मिस यू.’’

केबिन से बाहर आईं तो वर्मा के सामने भी उन्होंने यही बात दोहरा दी.

इस बात को 3 महीने हो गए पर नेहा मैडम का कहीं अतापता नहीं. बौस, वर्मा और क्लाइंट तीनों उन्हें ढूंढ़ रहे हैं. पैसे तो गए, वे तीनों उन चीजों का हिसाब भी लगा रहे हैं जो गिफ्ट में उन्होंने नेहा मैडम को दी थीं.

पहली ही रात भागी दुल्हन

26 साल के छत्रपति शर्मा की आंखों में नींद नहीं थी. वह लगातार अपनी नईनवेली बीवी प्रिया को निहार रहा था. जैसे ही प्रिया की नजरें उस से टकराती थीं, वह शरमा कर सिर झुका लेती थी. 20 साल की प्रिया वाकई खूबसूरती की मिसाल थी. लंबी, छरहरी और गोरे रंग की प्रिया से उस की शादी हुए अभी 2 दिन ही गुजरे थे, लेकिन शादी के रस्मोरिवाज की वजह से छत्रपति को उस से ढंग से बात करने तक का मौका नहीं मिला था.

छत्रपति मुंबई में स्कूल टीचर था. उस की शादी मध्य प्रदेश के सिंगरौली शहर के एक खातेपीते घर में तय हुई थी और शादी मुहूर्त 23 नवंबर, 2017 का निकला था. इस दिन वह मुंबई से बारात ले कर सिंगरौली पहुंचा और 24 नवंबर को प्रिया को विदा करा कर वापस मुंबई जा रहा था. सिंगरौली से जबलपुर तक बारात बस से आई थी. जबलपुर में थोड़ाबहुत वक्त उसे प्रिया से बतियाने का मिला था, लेकिन इतना भी नहीं कि वह अपने दिल की बातों का हजारवां हिस्सा भी उस के सामने बयां कर पाता.

बारात जबलपुर से ट्रेन द्वारा वापस मुंबई जानी थी, जिस के लिए छत्रपति ने पहले से ही सभी के रिजर्वेशन करा रखे थे. उस ने अपना, प्रिया और अपनी बहन का रिजर्वेशन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस के एसी कोच में और बाकी बारातियों का स्लीपर कोच में कराया था. ट्रेन रात 2 बजे के करीब जब जबलपुर स्टेशन पर रुकी तो छत्रपति ने लंबी सांस ली कि अब वह प्रिया से खूब बतियाएगा. वजह एसी कोच में भीड़ कम रहती है और आमतौर पर मुसाफिर एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.

ट्रेन रुकने पर बाराती अपने स्लीपर कोच में चले गए और छत्रपति, उस की बहन और प्रिया एसी कोच में चढ़ गए. छत्रपति की बहन भी खुश थी कि उस की नई भाभी सचमुच लाखों में एक थी. उस के घर वालों ने शादी भी शान से की थी.

जब नींद टूटी तो…

कोच में पहुंचते ही छत्रपति ने तीनों के बिस्तर लगाए और सोने की तैयारी करने लगा. उस समय रात के 2 बजे थे, इसलिए डिब्बे के सारे मुसाफिर नींद में थे. जो थोड़ेबहुत लोग जाग रहे थे, वे भी जबलपुर में शोरशराबा सुन कर यहांवहां देखने के बाद फिर से कंबल ओढ़ कर सो गए थे. छत्रपति और प्रिया को 29 और 30 नंबर की बर्थ मिली थी.

जबलपुर से जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, छत्रपति फिर प्रिया की तरफ मुखातिब हुआ. इस पर प्रिया ने आंखों ही आंखों में उसे अपनी बर्थ पर जा कर सोने का इशारा किया तो वह उस पर और निहाल हो उठा. दुलहन के शृंगार ने प्रिया की खूबसूरती में और चार चांद लगा दिए थे. थके हुए छत्रपति को कब नींद आ गई, यह उसे भी पता नहीं चला. पर सोने के पहले वह आने वाली जिंदगी के ख्वाब देखता रहा, जिस में उस के और प्रिया के अलावा कोई तीसरा नहीं था.

जबलपुर के बाद ट्रेन का अगला स्टौप इटारसी और फिर उस के बाद भुसावल जंक्शन था, इसलिए छत्रपति ने एक नींद लेना बेहतर समझा, जिस से सुबह उठ कर फ्रैश मूड में प्रिया से बातें कर सके.

सुबह कोई 6 बजे ट्रेन इटारसी पहुंची तो प्लैटफार्म की रोशनी और गहमागहमी से छत्रपति की नींद टूट गई. आंखें खुलते ही कुदरती तौर पर उस ने प्रिया की तरफ देखा तो बर्थ खाली थी. छत्रपति ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. वह उस के वापस आने का इंतजार करने लगा.

ट्रेन चलने के काफी देर बाद तक प्रिया नहीं आई तो उस ने बहन को जगाया और टायलेट जा कर प्रिया को देखने को कहा. बहन ने डिब्बे के चारों टायलेट देख डाले, पर प्रिया उन में नहीं थी. ट्रेन अब पूरी रफ्तार से चल रही थी और छत्रपति हैरानपरेशान टायलेट और दूसरे डिब्बों में प्रिया को ढूंढ रहा था.

सुबह हो चुकी थी, दूसरे मुसाफिर भी उठ चुके थे. छत्रपति और उस की बहन को परेशान देख कर कुछ यात्रियों ने इस की वजह पूछी तो उन्होंने प्रिया के गायब होने की बात बताई. इस पर कुछ याद करते हुए एक मुसाफिर ने बताया कि उस ने इटारसी में एक दुलहन को उतरते देखा था.

इतना सुनते ही छत्रपति के हाथों से जैसे तोते उड़ गए. क्योंकि प्रिया के बदन पर लाखों रुपए के जेवर थे, इसलिए किसी अनहोनी की बात सोचने से भी वह खुद को नहीं रोक पा रहा था. दूसरे कई खयाल भी उस के दिमाग में आजा रहे थे. लेकिन यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि आखिरकार प्रिया बगैर बताए इटारसी में क्यों उतर गई? उस का मोबाइल फोन बर्थ पर ही पड़ा था, इसलिए उस से बात करने का कोई और जरिया भी नहीं रह गया था.

एक उम्मीद उसे इस बात की तसल्ली दे रही थी कि हो सकता है, वह इटारसी में कुछ खरीदने के लिए उतरी हो और ट्रेन चल दी हो, जिस से वह पीछे के किसी डिब्बे में चढ़ गई हो. लिहाजा उस ने अपनी बहन को स्लीपर कोच में देखने के लिए भेजा. इस के बाद वह खुद भी प्रिया को ढूंढने में लग गया.

भुसावल आने पर बहन प्रिया को ढूंढती हुई उस कोच में पहुंची, जहां बाराती बैठे थे. बहू के गायब होने की बात उस ने बारातियों को बताई तो बारातियों ने स्लीपर क्लास के सारे डिब्बे छान मारे. मुसाफिरों से भी पूछताछ की, लेकिन प्रिया वहां भी नहीं मिली. प्रिया नहीं मिली तो सब ने तय किया कि वापस इटारसी जा कर देखेंगे. इस के बाद आगे के लिए कुछ तय किया जाएगा. बात हर लिहाज से चिंता और हैरानी की थी, इसलिए सभी लोगों के चेहरे उतर गए थे. शादी की उन की खुशी काफूर हो गई थी.

प्रिया मिली इलाहाबाद में, पर…

इत्तफाक से उस दिन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस खंडवा स्टेशन पर रुक गई तो एक बार फिर सारे बारातियों ने पूरी ट्रेन छान मारी, लेकिन प्रिया नहीं मिली.

इस पर छत्रपति अपने बड़े भाई और कुछ दोस्तों के साथ ट्रेन से इटारसी आया और वहां भी पूछताछ की, पर हर जगह मायूसी ही हाथ लगी. अब पुलिस के पास जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. इसी दौरान छत्रपति ने प्रिया के घर वालों और अपने कुछ रिश्तेदारों से भी मोबाइल पर प्रिया के गुम हो जाने की बात बता दी थी.

पुलिस वालों ने उस की बात सुनी और सीसीटीवी के फुटेज देखी, लेकिन उन में कहीं भी प्रिया नहीं दिखी तो उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इधर छत्रपति और उस के घर वालों का सोचसोच कर बुरा हाल था कि प्रिया नहीं मिली तो वे घर जा कर क्या बताएंगे. ऐसे में तो उन की मोहल्ले में खासी बदनामी होगी.

कुछ लोगों के जेहन में यह बात बारबार आ रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रिया का चक्कर किसी और से चल रहा हो और मांबाप के दबाव में आ कर उस ने शादी कर ली हो. फिर प्रेमी के साथ भाग गई हो. यह खयाल हालांकि बेहूदा था, जिसे किसी ने कहा भले नहीं, पर सच भी यही निकला.

पुलिस वालों ने वाट्सऐप पर प्रिया का फोटो उस की गुमशुदगी के मैसेज के साथ वायरल किया तो दूसरे ही दिन पता चल गया कि वह इलाहाबाद के एक होटल में अपने प्रेमी के साथ है. दरअसल, प्रिया का फोटो वायरल हुआ तो उसे वाट्सऐप पर इलाहाबाद स्टेशन के बाहर के एक होटल के उस मैनेजर ने देख लिया था, जिस में वह ठहरी हुई थी. मामला गंभीर था, इसलिए मैनेजर ने तुरंत प्रिया के अपने होटल में ठहरे होने की खबर पुलिस को दे दी.

एक कहानी कई सबक

छत्रपति एक ऐसी बाजी हार चुका था, जिस में शह और मात का खेल प्रिया और उस के घर वालों के बीच चल रहा था, पर हार उस के हिस्से में आई थी.

इलाहाबाद जा कर जब पुलिस वालों ने उस के सामने प्रिया से पूछताछ की तो उस ने दिलेरी से मान लिया कि हां वह अपने प्रेमी राज सिंह के साथ अपनी मरजी से भाग कर आई है. और इतना ही नहीं, इलाहाबाद की कोर्ट में वह उस से शादी भी कर चुकी है.

बकौल प्रिया, वह और राज सिंह एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं, यह बात उस के घर वालों से छिपी नहीं थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी छत्रपति से तय कर दी थी. मांबाप ने सख्ती दिखाते हुए उसे घर में कैद कर लिया था और उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था, जिस से वह राज सिंह से बात न कर पाए.

4 महीने पहले उस की शादी छत्रपति से तय हुई तो घर वालों ने तभी से उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. लेकिन छत्रपति से बात करने के लिए उसे मोबाइल दे दिया जाता था. तभी मौका मिलने पर वह राज सिंह से भी बातें कर लिया करती थी. उसी दौरान उन्होंने भाग जाने की योजना बना ली थी.

प्रिया के मुताबिक राज सिंह विदाई वाले दिन ही जबलपुर पहुंच गया था. इन दोनों का इरादा पहले जबलपुर स्टेशन से ही भाग जाने का था, लेकिन बारातियों और छत्रपति के जागते रहने के चलते ऐसा नहीं हो सका. राज सिंह पाटलिपुत्र एक्सप्रैस ही दूसरे डिब्बे में बैठ कर इटारसी तक आया और यहीं प्रिया उतर कर उस के साथ इलाहाबाद आ गई थी.

पूछने पर प्रिया ने साफ कह दिया कि वह अब राज सिंह के साथ ही रहना चाहती है. राज सिंह सिंगरौली के कालेज में उस का सीनियर है और वह उसे बहुत चाहती है. घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती की थी. प्रिया ने बताया कि अपनी मरजी के मुताबिक शादी कर के उस ने कोई गुनाह नहीं किया है, लेकिन उस ने एक बड़ी गलती यह की कि जब ऐसी बात थी तो उसे छत्रपति को फोन पर अपने और राज सिंह के प्यार की बात बता देनी चाहिए थी.

छत्रपति ने अपनी नईनवेली बीवी की इस मोहब्बत पर कोई ऐतराज नहीं जताया और मुंहजुबानी उसे शादी के बंधन से आजाद कर दिया, जो उस की समझदारी और मजबूरी दोनों हो गए थे.

जिस ने भी यह बात सुनी, उसी ने हैरानी से कहा कि अगर उसे भागना ही था तो शादी के पहले ही भाग जाती. कम से कम छत्रपति की जिंदगी पर तो ग्रहण नहीं लगता. इस में प्रिया से बड़ी गलती उस के मांबाप की है, जो जबरन बेटी की शादी अपनी मरजी से करने पर उतारू थे. तमाम बंदिशों के बाद भी प्रिया भाग गई तो उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ. उलटे 8-10 लाख रुपए जो शादी में खर्च हुए, अब किसी के काम के नहीं रहे.

मांबाप को चाहिए कि वे बेटी के अरमानों का खयाल रखें. अब वह जमाना नहीं रहा कि जिस के पल्लू से बांध दो, बेटी गाय की तरह बंधी चली जाएगी. अगर वह किसी से प्यार करती है और उसी से शादी करने की जिद पाले बैठी है तो जबरदस्ती करने से कोई फायदा नहीं, उलटा नुकसान ज्यादा है. यदि प्रिया इटारसी से नहीं भाग पाती तो तय था कि मुंबई जा कर ससुराल से जरूर भागती. फिर तो छत्रपति की और भी ज्यादा बदनामी और जगहंसाई होती.

अब जल्द ही कानूनी तौर पर भी मसला सुलझ जाएगा, लेकिन इसे उलझाने के असली गुनहगार प्रिया के मांबाप हैं, जिन्होंने अपनी झूठी शान और दिखावे के लिए बेटी को किसी और से शादी करने के लिए मजबूर किया. इस का पछतावा उन्हें अब हो रहा है.

जरूरत इस बात की है कि मांबाप जमाने के साथ चलें और जातिपांत, ऊंचनीच, गरीबअमीर का फर्क और खयाल न करें, नहीं तो अंजाम क्या होता है, यह प्रिया के मामले से समझा जा सकता है. – कथा में प्रिया परिवर्तित नाम है.

राजनीति का छपाक

लेखक-  पुखराज सोलंकी

एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल पर बनी मेघना गुलजार की फिल्म है ‘छपाक’, जिस में दीपिका पादुकोण ने न सिर्फ लीड रोल किया है बल्कि संवेदनशील हृदय का परिचय देते हुए दिल दहला देने वाले उस दर्द को भी महसूस किया है. इस फिल्म पर काम शुरू होने से पहले दीपिका पादुकोण और मेघना गुलजार ने लक्ष्मी अग्रवाल से मिल कर इस दर्दनाक घटना के बारे में जानकारी ली और उस के बाद यह महसूस किया कि समाज में इस तरह के हादसे के बाद जिंदा रहना कितना मुश्किल है. महज 15 साल की उम्र में एक मासूम सी स्कूली छात्रा के साथ रोंगटे खड़े कर देने वाला हादसा होने के बावजूद जिंदगी के प्रति जो जज्बा है वह वाकई काबिलेतारीफ है.

सिर्फ लक्ष्मी अग्रवाल का ही नहीं, एसिड अटैक के और भी कई मामले देश के सामने आ चुके हैं, जिन में किसी की खूबसूरती एसिड अटैक की वजह बनी तो किसी सिरफिरे की एकतरफा मोहब्बत. अधिकतर मामलों में एसिड अटैक की शिकार युवतियां ही हुई हैं, क्योंकि या तो उन्होंने किसी लड़के का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था या अपने घरपरिवार व समाज के डर से अपना मुंह न खोल कर हकीकत पर वे परदा डालती रहीं. एकतरफा मोहब्बत के मारे सिरफिरे ऐसे दर्दनाक कृत्य को अंजाम देने का खयाल मन में इसलिए ले आते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि जो मेरी न हो सकी वह किसी और की भी न हो पाए.

देखा जाए तो एसिड अटैक की मूल मानसिकता यही है और लक्ष्मी अग्रवाल भी इसी मानसिकता की शिकार हुई हैं. हालांकि एसिड अटैक को ले कर गांवदेहात से कुछ ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं जिन में औरत का बां झपन या एक के बाद एक लड़की को जन्म देने की वजह से उन पर एसिड अटैक कर के उन से छुटकारा पाने की कोशिश की गई, तो कहीं आपसी रंजिश को ले कर भी इस तरह की घटना को अंजाम दिया गया.

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जेएनयू मामला

इस तरह की सत्य घटनाओं पर बनी फिल्में सत्य की तह तक पहुंचे बिना नहीं बन सकतीं. लक्ष्मी से मुलाकात के दौरान दीपिका ने महसूस किया कि अधिकांश मामलों में एसिड अटैक को अंजाम युवाओं ने ही दिया. बस, यही कारण है कि अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने  अपनी फिल्म ‘छपाक’ की रिलीज से पहले युवावर्ग से मिलने की सोची और उन के जरिए समाज तक यह संदेश पहुंचा कर जागरूक करने की कोशिश करने की ठानी.

यही धारणा ले कर दीपिका दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी पहुंची. जहां पहले से ही जेएनयू में हिंसा को ले कर हो रहे आंदोलन में शामिल हुईं. हालांकि, छात्र आंदोलन के चलते दीपिका वहां अपनी कोई बात नहीं रख पाईं. उन के जेएनयू पहुंचने से छात्रों को तो एक नई ताकत मिल गई और सोशल मीडिया को मिला इस बहाने एक नया मुद्दा. फिर शुरू हुआ दीपिका पर राजनीति का छपाक. ट्विटर पर टर्रटर्र शुरू हो चुकी थी. अखबारों की हैडलाइंस तय हो चुकी थीं, और इसे ले कर हर चैनल पर टीवी डिबेट भी शुरू हो चुकी थी.

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जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों से मिलने पहुंचीं दीपिका को क्या कुछ नहीं  झेलना पड़ा. किसी ने उन्हें देशद्रोही ठहराया, तो किसी ने टुकड़ेटुकड़े गैंग का सदस्य बताया, कोई फिल्म के प्रमोशन हेतु आना सम झ रहा है, कोई इस हिम्मती कदम की दाद दे रहा है तो कोई खामियां निकालते हुए फिल्म का बहिष्कार करने को बोल रहा है.

छात्रों के बीच पहुंच कर दीपिका कुछ बोली नहीं. सिर्फ अपनी मौन अभिव्यक्ति दी. अच्छा होता कि वे राजनीतिक बयानबाजी को दरकिनार कर खुल कर बोलतीं. वैसे भी एसिड अटैक सर्वाइवर का दर्द महसूस कर चुकीं दीपिका पादुकोण जैसी अभिनेत्री के लिए इस दलगत राजनीति का छपाक बरदाश्त करना कोई बड़ी बात नहीं.

न्यूयार्क के स्टूडेंट्स के लिए Anupam Kher ने होस्ट की स्पेशल एक्टिंग क्लास

Anupam Kher एक ग्लोबल आइकन हैं जिनकी स्टारडम के बारे में सभी जानते हैं. ना सिर्फ बौलीवुड में बल्कि वेस्ट में भी उनका बहुत नाम है. बहु-प्रतिभाशाली अभिनेता ने 500 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है और Entertainment Industry के सबसे प्रसिद्ध नामों में से एक हैं.

अनुपम खेर हाल में ही न्यूयार्क विश्वविद्यालय में मौजूद थे, जहां उन्होंने टिस्क स्कूल औफ आर्ट्स के अंडरग्रेजुएट ड्रामा विभाग में मीसनेर स्टूडियो में तीसरी वर्ष की क्लास से बात की. यह पहली बार नहीं है जब अभिनेता ने एक विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ बातचीत की है, पहले भी वह अन्य लोगों के बीच औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय जैसे सम्मानित विश्वविद्यालयों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं. अनुपम खेर ने अक्सर व्यक्त किया है कि वह अपने जीवन और करियर के अनुभवों को अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों के साथ शेयर करना पसंद करते हैं.

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उन्होंने बताया कि वो फिल्में कैसे कर पाए और आज यह उन्हें कहां ले आया है. खेर ने खुलासा किया कि छात्रों को उनके द्वारा दिए गए कई आईडिया उनके दादा द्वारा उन्हें दिए गए थे. एक अलग पीढ़ी से आने के बावजूद, अनुपम खेर को वहां मौजूद लोगों के साथ जुड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा और साथ ही साथ उन्होंने स्टूडेंट्स को प्रेरित भी किया. एनवाईयू में छात्रों के साथ बातचीत करने के अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए, अभिनेता ने कहा, “न्यूयार्क विश्वविद्यालय में ऐसे प्रतिभाशाली छात्रों से बात करना शानदार अनुभव था. वे सभी इतने उज्ज्वल और प्रतिभाशाली हैं; उनके साथ अपने क्राफ़्ट और फिल्मों में मेरे अनुभव को शेयर करके ख़ुशी मिली. मुझे उम्मीद है कि आगे चलकर ये उनकी मदद करेगा.

न्यूयार्क विश्वविद्यालय के आर्ट्स स्कूल के अंडर ग्रेजुएट ड्रामा के प्रोफेसर शांगा पार्कर, एसोक ने वहां के स्टार की उपस्थिति के बारे में बात की और कहा, “अनुपम खेर ने अपने जीवन और करियर के बारे में भावुकता से बात की, कि वह एक्टिंग में कैसे शामिल हुए, और यह उन्हें कहां ले आया. उन्होंने छात्रों के इस ग्रुप से इतने व्यक्तिगत और मार्मिक तरीके से बात की कि वे हमेशा के लिए प्रेरित होंगे. मैं श्री खेर का आभारी हूं कि उन्होंने आज छात्रों से बात करने का समय दिया.”

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