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लॉकडाउन के दौरान अस्पतालों में घटी 80 फीसद मरीजों की संख्या

वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण इन दिनों अस्पतालों में मरीजों की संख्या में  काफी कमी आई है. सरकारी और निजी अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की संख्या में 80 फीसदी की गिरावट आई है.

स्वस्थ खानपान
अस्पताल में मरीजों के कम आने का एक बड़ा कारण लोगों के बीच कोरोना का खौफ भले ही हो पर डॉक्टरों का मानना है कि प्रदूषण में कमी और खानपान में सुधार के कारण भी लोग कम बीमार पड़ रहे हैं.

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प्रदूषण में सुधार
डॉक्टर्स कहते हैं कि लॉकडाउन के कारण प्रदूषण में भी काफी कमी आई है और पर्यावरण में काफी सुधार हुआ है. सड़कों पर वाहनों की आवाजाही बिलकुल बंद है. यहां तक कि रेल और हवाई  यात्रा भी बंद है. ऐसे में प्रदूषण में सुधार होना लाजिमी है. लॉकडाउन के कारण लोग बाहर का खाना भी नहीं खा रहे हैं. घर का बना साफसुथरा भोजन खाने से लोगों की सेहत पर अच्छा प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि वाहनों के कम चलने से सड़क दुर्घटना में भारी कमी आई है. लॉकडाउन के कारण प्रदूषण में सुधार हुआ है, जिस से इन दिनों हार्टअटैक के मरीजों और दमा व सांस संबंधी बीमारी में भी काफी कमी देखी गई है.

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विशषज्ञों की राय
सिविल सर्जन कहते हैं कि लोगों को लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण में आए सुधार और संयमित जीवनशैली से मिलने वाले लाभ के बारे में विचार करना चाहिए. बिना लॉकडाउन के भी हम प्रदूषण में कमी लाएं और संयमित जीवनशैली अपना लें तो बीमारी खुद दूर हो जाएगी. उन्होंने कहा कि वायु और ध्वनि प्रदूषण न होने से ओजोन परत में भी काफी अच्छा प्रभाव पड़ा है.

यह क्या हो गया: भाग 4

‘‘शेखरजी इतने अच्छे इंसान हैं, कोई भी कुछ करना चाहेगा उन के लिए,’’ फिर थोड़ा संकोच करते हुए बोले, ‘‘वन्याजी, शेखरजी से तो नहीं पूछा कभी पर बारबार अब मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि भाभीजी यह बीमारी सुन कर भी यहां…’’ वन्या ने बात पूरी नहीं होने दी. ठंडी सांस लेती हुई बोली, ‘‘जीजाजी इस मामले में दुखी ही रहे कि उन्हें मेरी बहन पत्नी के रूप में मिली.’’ प्रणव ने हैरान होते हुए पूछा, ‘‘अच्छा? शेखरजी जैसे व्यक्ति के साथ किसी को क्या परेशानी हो सकती है?’’

‘‘जीजाजी अपने मातापिता, भाई को बहुत प्यार करते हैं. मेरी बहन की नजर में यह उन की गलती है. मुझे तो समझ नहीं आता कि क्यों कोई पुरुष विवाह के बाद सिर्फ अपनी पत्नी के बारे में ही सोचे. यह क्या बात हुई. मेरी बहन की जिद पूरी तरह गलत है. अपनी बहन के स्वभाव पर मुझे शर्म आती है और अपने जीजाजी पर गर्व होता है. अपने मातापिता को प्यार करना क्या किसी पुरुष की इतनी बड़ी गलती है कि उसे ऐसी बीमारी से निबटने के लिए अकेला छोड़ दिया जाए.’’ धीरेधीरे बोलती हुई वन्या का मुंह गुस्से से लाल हो गया था. उस ने किसी तरह अपने को शांत किया. फिर दोनों ने अंदर जा कर शेखर पर नजर डाली. वे चुपचाप आंख बंद किए लेटे हुए थे. चेहरा बहुत उदास था. प्रणव  यही सोच रहे थे किसी स्त्री पर उस की जिद लालच, क्रोध इतना हावी हो सकता है कि वह अपने पति की इस स्थिति में भी स्वयं को अपने पति से दूर रख सके. उन के दिल में चुपचाप लेटे हुए शेखर के लिए स्नेह और  सम्मान की भावनाएं और बढ़ गई थीं.

शेखर का इलाज शुरू हो गया तो सौरभ और तन्वी ने पिता की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी. बच्चों ने कई बार लतिका को मुंबई आने के लिए समझाया पर उस की जिद कायम थी कि पहले शेखर अपने पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांगें, जो शेखर को किसी भी स्थिति में मंजूर नहीं था. 2 महीने बीत रहे थे. सौरभ ने भागदौड़ कर मुंबई में ही ऐडमिशन ले लिया था जिस से वह पिता की देखभाल अच्छी तरह कर सके. तन्वी की पोस्ंिटग बैंगलुरु  में हो गई थी. कुछ दिन वह मुंबई रह कर काम करती, कुछ दिन बैंगलुरु रहती. उस के औफिस में शेखर की बीमारी सुन कर सब उस के साथ सहयोग कर रहे थे. शेखर को धीरेधीरे आराम आ रहा था. अब वे पहले की तरह चलनेफिरने लगे थे. प्रणव के साथ औफिस भी जाना शुरू कर दिया तो जीवन की गाड़ी एक बार फिर ढर्रे पर आ गई. इलाज तो लंबा ही चलने वाला था. पूरी तरह से ठीक होने में टाइम लगने वाला था. शेखर अपने मातापिता, भाई से लगातार संपर्क में रहते थे. वे परेशान न हों, इसलिए शेखर ने अपनी बीमारी के बारे में बताया था कि उन्हें कमरदर्द परेशान कर रहा है, इसलिए बच्चे उन के साथ ही रहना चाहते हैं. सब हैरान थे, बच्चे भी शेखर के पास  चले गए हैं. लतिका क्यों अकेली रह रही है. सब ने समझाया भी पर लतिका ने किसी की नहीं सुनी. पिता की बीमारी से परेशान बच्चे भी लतिका से बहुत नाराज थे. एक तरह से अब तीनों ने लतिका के बिना जीने की आदत डाल ली थी.

अचानक शेखर और बच्चों ने लतिका से बात करना बहुत कम कर दिया तो लतिका ने सोचा, एक बार मुंबई की सैर कर ही ली जाए. उस ने अपनी फ्लाइट बुक करवाई और मुंबई पहुंच गई. उस ने अपने आने की खबर किसी को नहीं दी थी. उस के पास शेखर के फ्लैट का पता भी नहीं था. एअरपोर्ट पहुंच कर उस ने बन्या को फोन किया.

वन्या हैरान हुई, ‘‘अरे दीदी, बताया तो होता.’’

‘‘बस अचानक प्रोग्राम बना लिया. तेरे जीजाजी और बच्चों को सरप्राइज देने का मूड हो आया. चल, अब उन का पता बता.’’ वन्या ने पता बताया, कहा, ‘‘अभी तो घर पर कोई होगा नहीं. चाबी सामने वाले फ्लैट की मिसेज कुलकर्णी से ले लेना.’’

‘‘लेकिन वे मुझे जानती नहीं, चाबी देंगी?’’

‘‘मैं उन्हें फोन कर के बता दूंगी.’’

‘‘ठीक है, तू कब आएगी?’’

‘‘जल्दी आप से मिलूंगी, वैसे आप अभी मेरे घर आ जाओ, शाम को चली जाना.’’

‘‘नहीं, बाद में ही मिलूंगी तुझ से.’’

‘‘अच्छा हुआ दीदी, आप आ गईं. जीजाजी की तबीयत भी…’’

‘‘बस, तू रहने दे. अपने जिद्दी जीजाजी का पक्ष मत ले.’’

‘‘जिद वे नहीं, आप करती हैं.’’

‘‘अच्छा, मैं सामान ले कर अब बाहर निकल रही हूं, फिर मिलेंगे.’’

लतिका शेखर के फ्लैट पर पहुंच गई. वन्या मिसेज कुलकर्णी को फोन कर चुकी थी. वे एक महाराष्ट्रियन महिला थीं. सौरभ व तन्वी से मिलतीजुलती रहती थीं. शेखर की बीमारी की उन्हें जानकारी थी. उन तीनों से सहानुभूति थी. लतिका ने उन से चाबी ली और दरवाजा खोल कर अंदर आ गई. बैग रख कर पूरे घर पर नजर  डाली. एकदम साफसुथरा, चमकता घर. लतिका को हैरानी हुई. वह किचन में गई. खाना तैयार था, करेले की सब्जी, साग, दाल. फ्रिज खोल कर देखा, सलाद भी कटा रखा था. लतिका अब हैरान थी. आधे घंटे बाद ही सौरभ आ गया. वन्या ने उसे फोन पर बता दिया था. सौरभ ने एक बेहद औपचारिक मुसकान से मां का स्वागत किया, बोला कुछ नहीं. लतिका ने ही पूछा, ‘‘कैसे हो, बेटा?’’

‘‘ठीक हूं, मां, आप कैसे आ गईं?’’

‘‘बस, तुम लोगों को देखने का मन हो आया.’’ सौरभ कुछ नहीं बोला. फ्रैश होने  चला गया. लतिका को धक्का सा लगा. यह बेटा है या कोई अजनबी. लतिका ने फिर पूछा, ‘‘तन्वी कहां है?’’

‘‘बैंगलुरु में, कल आएगी एक हफ्ते के लिए.’’

‘‘तुम्हारे पापा कब तक आएंगे?’’

‘‘बस, आने ही वाले होंगे.’’

‘‘आप चाय पिएंगी?’’

‘‘आने दो उन्हें भी.’’

लतिका देख रही थी, पहले का मस्तमौला सौरभ अब एक जिम्मेदार बेटा बन गया है. उस ने हाथमुंह धो कर शेखर के लिए फल काटे. शेखर के खानेपीने का बहुत ध्यान रखा जाता था. शेखर आ गए. लतिका को देख हैरान हुए, ‘‘कब आईं?’’ ‘‘थोड़ी देर हुई,’’ लतिका उन्हें देखती रह गई. कितने कमजोर हो गए थे शेखर पर उन के चेहरे पर बहुत शांति और संतोष दिखा लतिका को.

शेखर ने पूछा, ‘‘कोई परेशानी तो नहीं हुई घर ढूंढ़ने में?’’

‘‘नहीं, आराम से मिल गया घर.’’

इतने में सौरभ ने कहा, ‘‘पापा, मौसम कुछ ठंडा सा है, गरम पानी से हाथमुंह धो कर फल खा लीजिए,’’ फिर सौरभ उन के लिए फल ले आया, कहने लगा, ‘‘जब तक आप ये खत्म करें, मैं चाय चढ़ा देता हूं.’’शेखर जैसे ही सोफे पर बैठे, सौरभ ने उन की कमर के पीछे मुलायम सा तकिया लगाया. लतिका ने नोट किया शायद शेखर को उठनेबैठने में कहीं दर्द है, बोली, ‘‘कैसी तबीयत है? दर्द है क्या?’’

शेखर ने सपाट स्वर में जवाब दिया, ‘‘नहीं, सब ठीक है.’’ सौरभ 3 कप चाय और कुछ नमकीन ले आया. तीनों ने चुपचाप चाय पी. सौरभ ने कहा, ‘‘पापा, अब आप थोड़ी देर लेट लें, थकान होगी.’’

‘‘हां,’’ कह कर शेखर बैडरूम में चले गए. सौरभ अपना बैग खोल कर कुछ काम करने लगा. लतिका ने खुद को अनचाहा महसूस किया. उसे अपनी स्थिति किसी अनचाहे मेहमान से बदतर लगी. अभी तक वह अपने अहं, जिद में आसमान में ही उड़ती आई थी लेकिन अब यहां आ कर जैसे वह जमीन पर गिर गई. थोड़ी देर में उस ने ही पूछा, ‘‘रात को खाने में क्या करना है?’’ सौरभ ने उस की ओर बिना देखे ही जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं, मां. संध्या काकी आती हैं, सब काम वही कर जाती हैं.’’

‘‘क्या बनाया है?’’ बात जारी रखने के लिए लतिका ने पूछा.

‘‘पापा को करेला और साग देना होता है. वह तो रोज बनता ही है, दाल भी बनी होगी, बस, आप के आने से पहले ही निकली होंगी काकी खाना बना कर.’’

‘‘उस के पास चाबी रहती है?’’

‘‘नहीं, सामने वाली आंटी से लेती हैं.’’ शेखर के पास बैडरूम में जाने की हिम्मत नहीं पड़ी लतिका की. थोड़ी देर आराम कर शेखर ड्राइंगरूम में आ गए. इतने में धोबी आ गया. सौरभ ने गिन कर कपड़े धोबी को दिए. लतिका तो हर बात पर हैरान होती रही. अब तक वह सोफे पर ही अधलेटी थी. टेबल पर डिनर लगाने के लिए जब वह सौरभ के पीछे किचन में जाने लगी तो शेखर ने ठंडे स्वर में कहा, ‘‘रहने दो लतिका, सब हो जाएगा,’’ शेखर का स्वर इतना भावहीन था कि लतिका फिर वापस बैठ गई. खाना लगाते हुए सौरभ ने कहा, ‘‘काकी हम दोनों का ही खाना बना कर रख गई हैं, मां. बस, आप अपने लिए रोटी बना लें.’’ ‘‘हां ठीक है,’’ कह कर लतिका किचन में चली गई और अपने लिए 2 रोटी बना लाई. वह सौरभ को बहुत स्नेह से पिता को खाना परोसते हुए देखती रही. दोनों औफिस की, कालेज की बातें करते रहे. लतिका ने नोट किया, जब भी शेखर से उस की नजरें मिलीं, उन नजरों में पतिपत्नी के रिश्ते की कोई मिठास नहीं थी. एकदम तटस्थ, भावहीन थीं शेखर की नजरें उस के लिए. खाना खत्म होते ही सौरभ ने सब समेट दिया, फिर कहने लगा, ‘‘मां, आप आराम करो, मैं पापा को थोड़ा टहला कर लाता हूं.’’

सौरभ शेखर के साथ बाहर चला गया. लतिका ने अपने कपड़े बदले, गाउन पहना, अपना बैग शेखर के बैडरूम में ले जा कर रखा. बैड पर लेट कर कमर सीधी करने लगी, उसे यही लगता रहा था जैसे वह किन्हीं अजनबियों के साथ है इतनी देर से. दोनों टहल कर आए. सौरभ बाथरूम में था. शेखर ने कहा, ‘‘लतिका, तुम दूसरे रूम में सो जाना. रात को मुझे कोई जरूरत न पड़ जाए, यह सोच कर सौरभ मेरे साथ ही सोता है.’’ लतिका अपमानित सी खड़ी रह गई, कुछ कह नहीं पाई. फिर सौरभ दूध गरम कर के लाया. शेखर को दूध और दवाएं दीं. लतिका दूसरे कमरे में करवटें बदलती रही. कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे, यह क्या हो गया. अगले दिन सुबह उस ने देखा, सौरभ ने वाश्ंग मशीन में कपड़े डाले और सब्जी लेने चला गया. संध्या आई तो उस ने घर के काम निपटाने शुरू कर दिए. संध्या लतिका से मिली तो उस के मुंह से निकला, ‘‘अरे मैडम, आप आ गईं? अच्छा किया, साहब बहुत बीमार रहे. आप के बच्चे तो बहुत ही अच्छे हैं.’’

लतिका ने फीकी सी मुसकान के साथ ‘हां’ में सिर हिला दिया. शेखर औफिस के लिए तैयार हो गए तो सौरभ ने उन्हें नाश्ता और दवाएं दीं. उन का टिफिन पैक कर के उन के हाथ में पकड़ाया. शेखर लतिका से बिना कुछ कहे औफिस चले गए. संध्या ने सब का खाना बना दिया था. वह सब काम कितनी अच्छी  तरह कर के जाती है, यह लतिका देख ही चुकी थी. उस के हाथ में भी स्वाद था, यह भी वह रात को देख चुकी थी. थोड़ी देर में सौरभ ने कहा, ‘‘मां, मैं कालेज जा रहा हूं. तन्वी शाम तक आ जाएगी.’’ दिनभर लतिका घर में इधर से उधर घूमती रही, बेचैन, अनचाही, अपमानित सी. दोपहर में उस ने थोड़ा सा खाना खाया. शाम को सब से पहले तन्वी आई. सौरभ ने उसे बता ही दिया था, मां आई हैं. तन्वी ने देखते ही पूछा, ‘‘मां, आप कैसे आ गईं?’’

‘‘तुम लोगों को देखे काफी दिन हो गए थे.’’

‘‘अब आ ही गई हैं तो इस बात का ध्यान रखना मां, पापा को आप की किसी बात से तकलीफ न हो. हम तीनों बहुत दिनों बाद अब संभले हैं. पापा की तबीयत से बढ़ कर हमारे लिए इस समय और कुछ भी नहीं है.’’ रात को सब इकट्ठा हुए. तीनों हंसीखुशी बातें कर रहे थे. शेखर की हर बात का बच्चे ध्यान रख रहे थे और शेखर बच्चों पर अपना भरपूर स्नेह लुटा रहे थे. घर की सारी व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही थी. कहां तो लतिका ने सोचा था कि उस के बिना तीनों की हालत खराब होगी, उसे देखते ही तीनों उस के आगे झुकते चले जाएंगे कि आओ, अब संभालो घर. पर यहां तो किसी को उस की जरूरत ही नहीं थी. न शेखर को न बच्चों को. वे तीनों किसी बात पर हंस रहे थे और लतिका सोफे पर एक कोने में बैठी दिल ही दिल में कलप रही थी, यह क्या हो गया? बंटवारे की जिद, अपना गुस्सा, लालच, ईगो सब धराशायी होते दिख रहे थे उसे. अब क्या करे वह? क्या वापस चली जाए? पर पति और बच्चों के बिना वहां अकेली कितने दिन रह सकती है या यहां रह कर पति और बच्चों के दिल में जगह बनाने की कोशिश करनी चाहिए? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह अपना सिर पकड़े तीनों को हंसतेमुसकराते देखती रही.

यह क्या हो गया: भाग 3

एक हफ्ते बाद भी उन का दर्द ठीक नहीं हुआ है. तुम बच्चों क मांपिताजी के पास छोड़ कर कुछ दिनों के लिए आ जाओ.’’

लतिका ने चिढ़ कर कहा, ‘‘जो इंसान मेरी बात नहीं मानता, मैं उस की चिंता क्यों करूं, तुम ही बताओ? क्या मैं गलत कहती हूं? क्या हमारा हिस्सा नहीं है पिताजी के मकान में?’’

‘‘लेकिन जीजाजी ऐसी बातें करने वाले इंसान नहीं हैं दीदी, अपने परिवार से प्यार करना बुरी बात तो नहीं.’’

‘‘वन्या, तुम छोटी हो, मुझे उपदेश देने की जरूरत नहीं है,’’ कह कर लतिका ने फोन रख दिया. 10-15 दिन बाद भी शेखर के दर्द में कमी नहीं आईर्. प्रणव फिर उन्हें डाक्टर के पास ले कर गए. शेखर तो लगातार छुट्टी पर ही थे. कुछ और टैस्ट हुए. अब की बार रिपोर्ट्स आईं तो सब का दिल दहल गया. शेखर को स्पाइन का कैंसर था जो कमर के निचले हिस्से से सिर के पीछे के हिस्से तक फैल चुका था, और रीढ़ की हड्डी को 65 प्रतिशत नुकसान पहुंचा चुका था. सब एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. स्वभाव से शांत और नरम शेखर ने अपनी स्थिति को बहुत सहजता से स्वीकार कर लिया. औफिस के और लोग भी थे. वे सब से सामान्य रूप से बातचीत करते रहे, जैसे कुछ हुआ ही न हो उन्हें. उन्हें इतना सामान्य देख कर सब के दिलों में उन के लिए इज्जत और भी बढ़ गई. कमर में दर्द तो उन्हें कई बार होता था लेकिन वे इसे अपने काम का टूरिंग जौब और बढ़ती उम्र का प्रैशर समझ लेते थे. अब और दवाएं तुरंत शुरू हो गईं और कीमोथेरैपी शुरू होेने वाली थी. उन्होंने औफिस से लंबी छुट्टी ले ली थी. उन के बौस आनंद कपूर भी उन का बहुत साथ दे रहे थे. उन्होंने कह दिया था, ‘‘बस, तुम आराम करो, अपना इलाज करवाओ और अब अपनी फैमिली को बुला लो तो ठीक रहेगा, तुम्हें आराम मिलेगा.’’

बहुत सोचसमझ कर शेखर ने तन्वी को फोन किया, ‘‘बेटा, अगर हो सके तो 3-4 दिन की छुट्टी ले कर मुंबई आ जाओ.’’

तन्वी घबरा गई, ‘‘पापा, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘हां ठीक हूं, बस तुम लोगों को देखने का मन कर रहा है. तीनों आ जाओ.’’

तन्वी को पिता के स्वर की उदासी कुछ खटकी. उस ने लतिका से कहा, ‘‘मम्मी, पापा की तबीयत ठीक नहीं लग रही है, हम तीनों मुंबई चलते हैं.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जाना.’’

तन्वी हैरानी से बोली, ‘‘आप कैसी बात कर रही हैं, आप को पापा की चिंता नहीं हो रही है?’’

‘‘जो भी समझो, तुम दोनों को जाना हो तो चले जाओ, मुझे नहीं जाना.’’ तन्वी गुस्से में फिर कुछ नहीं बोली और छुट्टी ले कर सौरभ के साथ मुंबई पहुंच गई. शेखर की हालत देख कर दोनों बच्चे उन के सीने से लग कर फफक पड़े. संध्या वहीं काम कर रही थी. उसे शेखर की बीमारी के बारे में पता था. उस की भी आंखें भर आईं. शेखर से न लेटा जा रहा था, न बैठा. वे बस सोफे पर तकिया रख कर अधलेटे से बैठे रहते थे. रात को भी उसी स्थिति में सोते थे. पिता की हालत देख कर दोनों बच्चे बहुत दुखी हुए. शेखर ने बच्चों को अपने पास बिठा कर अपनी बीमारी के  बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मैं तुम लोगों को दुखी नहीं देख पाऊंगा. इलाज शुरू हो ही चुका है. आजकल तो हर बीमारी का इलाज है,’’ यह कहते हुए शेखर हलके से मुसकरा दिए. बच्चों ने हौसला रखते हुए खुद को संभाला, सौरभ ने कहा, ‘‘हां पापा, आप जरूर ठीक हो जाएंगे. अब हम यहीं रहेंगे, आप के पास.’’

शेखर ने कहा, ‘‘नहीं, तुम दोनों अपने काम का नुकसान नहीं करोगे.’’

तन्वी ने कहा, ‘‘पापा, आप का ध्यान रखने से बढ़ कर हमारे लिए और कोई काम जरूरी नहीं है. आप की देखरेख इस समय हमारा सब से पहला काम है.’’

शेखर ने कहा, ‘‘बस मां, पिताजी और चाचू को कुछ मत बताना.’’

‘‘ठीक है, पापा, मैं फिर मां को आने के लिए कहती हूं.’’

शेखर ने ‘हां’ में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘कह दो.’’ शेखर के दिल में एक आस थी कि शायद उन की बीमारी की बात सुन कर लतिका अपनी जिद, अहं, लालच छोड़ कर फौरन चली आएगी. लतिका ने सारी बात सुन कर तन्वी से कहा, ‘‘उन्हें मेरी जरूरत नहीं है. अगर होती तो इतने दिनों में भी क्या मेरी बात पर ध्यान नहीं देते. अपने परिवार के लिए हमेशा मेरी बात अनसुनी की है. अब उन सब को ही बुलाएं, मुझे क्यों बुला रहे हैं.’’ लतिका ने क्या कहा होगा, तन्वी  का चेहरा देख कर ही शेखर जान गए. फिर वे बहुत देर तक कुछ नहीं बोले.

तन्वी ने कहा, ‘‘सौरभ, हम दोनों में से  कोई एक यहां पापा के पास रहेगा, अभी मैं ने अपने बौस को फोन पर सब बताया है. उन्होंने मुझे घर से ही काम करने की परमिशन दे दी है. अभी तो मैं यहां रहूंगी. तुम चले जाओ. कालेज की छुट्टी होते ही तुम आ जाना. फिर मैं चली जाऊंगी. हम सब मैनेज कर लेंगे.’’ शेखर को अपने बच्चों पर बहुत प्यार आया. तन्वी ने फोन पर वन्या को सब बताया तो वह आकाश के साथ फौरन आ गई. आ कर शेखर के पास बैठ कर रोने लगी, ‘‘दीदी के व्यवहार पर शर्मिंदा हूं मैं जीजाजी, हैरान हूं उन के स्वभाव पर. इस समय भी इतनी जिद और गुस्सा.’’

शेखर ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने बहुत कोशिश की पर उस की सोच को बदल नहीं पाया. अगर मैं अपने मातापिता, भाई और उस के परिवार को अपने से अलग नहीं देख सकता तो क्या मेरी गलती है यह? मेरा भाई जिस की नईनई नौकरी है, जो अभी आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है उस पर मैं घर के बंटवारे का दबाव कैसे डालूं. मैं यह सब नहीं कर सकता. और लतिका को मैं ने कभी कोई कमी कहां होने दी पर उस का लालच समय के साथ बढ़ता ही चला गया. और अब मुझे नहीं पता मैं कितने दिन जिऊंगा. तो क्या मैं अब अपने मातापिता को दुखी करूंगा, हिस्से की बात छेड़ कर. यह तो मुझ से कभी नहीं हो पाएगा,’’ शेखर का स्वर भरा र् गया. वहां बैठा हर व्यक्ति दुखी हो गया. शेखर की कीमोथैरेपी का पहला दिन था. प्रणव की कार से ही शेखर, वन्या और तन्वी हौस्पिटल पहुंचे. सौरभ को तन्वी ने भेज दिया था. डाक्टर से बात कर के प्रणव ने कीमो का दिन शनिवार का रखवाया था ताकि वह शेखर के साथ रह सके. उन्हें हौस्पिटल आनेजाने में परेशानी न हो. प्राइवेट रूम बुक कर लिया गया था. नर्स ने शेखर के कपड़े बदलवा कर इंजैक्शन देने की तैयारी शुरू कर दी थी. अपने मन की घबराहट पर काबू पाने के लिए तन्वी ने बाहर पड़ी बैंच पर बैठ कर अपना लैपटौप खोल लिया था. शेखर बैड पर लेट चुके थे. नर्स डाक्टर के आने का इंतजार कर रही थी. शेखर बिलकुल चुप थे. प्रणव बाहर रखी एक दूसरी बैंच पर बैठा तो वन्या वहीं बैठती हुई बोली, ‘‘आप लोगों का बड़ा सहारा है जीजाजी को.’’

यह क्या हो गया: भाग 2

सौरभ और तन्वी अपने कमरे में सारी बात सुन रहे थे. तन्वी ने बाहर आ कर कहा, ‘‘मां, आप कैसी बातें करती हैं, पापा बिलकुल ठीक कह रहे हैं.’’

लतिका चिल्लाई, ‘‘चुप रहो तुम और जाओ यहां से.’’ तन्वी चुपचाप दुखी हो कर अपने कमरे में चली गई. लतिका के गुस्सैल और लालची स्वभाव से तीनों दुखी ही तो रहते थे. जिस दिन शेखर को जाना था उस दिन भी लतिका ने उन से ठीक से बात नहीं की. वह मुंह फुलाए इधरउधर घूमती रही. शेखर सब से मिल कर मुंबई के लिए रवाना हो गए. मुंबई पहुंच कर शेखर को ठाणे में एक अच्छी सोसायटी में कंपनी की तरफ से टू बैडरूम फ्लैट रहने के लिए मिला जो पूरी तरह से फर्निश था. उन का औफिस मुंबई इलाके में था. उन की बराबर की बिल्ंिडग में उसी कंपनी के एक मैनेजर प्रणव, उन की पत्नी वल्लरी और 2 युवा बच्चे रिया और तन्मय रहते थे. प्रणव के परिवार से मिल कर शेखर खुश हुए. प्रणव की कार से ही शेखर औफिस जाने लगे. शेखर ने किचन के सामान की पूरी जानकारी वल्लरी से ले ली थी. वल्लरी ने अपनी मेड संध्या को शेखर के यहां भी काम पर लगा दिया था. शेखर का पूरा परिवार शेखर से फोन पर संपर्क में रहता था. उन के रहने, खानेपीने के प्रबंध के बारे में पूछता रहता था.

लतिका ने जब भी बात की बहुत ही रूखे ढंग से की. उस की अब भी वही जिद थी. कई बार वह फोन पर ही घर में हिस्से की बात पर लड़ पड़ती. लतिका की छोटी बहन वन्या मुंबई के अंधेरी इलाके में रहती थी. शेखर की शनिवार की छुट्टी होती थी. वन्या अपने पति आकाश और बेटे विशाल के साथ अकसर मिलने आ जाती थी. कई बार उन्हें गाड़ी और ड्राइवर भेज कर शनिवार को बुलवा लेती थी और रविवार की शाम को पहुंचा देती थी. शेखर को उन सब से मिल कर बहुत अच्छा लगता था. उन्हें मुंबई आए 2 महीने हो रहे थे. प्रणव अकसर शेखर को खाने पर बुला लेते थे. शेखर एक शांत और सभ्य व्यक्ति थे. सब उन का दिल से आदर करते थे. एक दिन प्रणव को पूछते संकोच तो हो रहा था पर पूछ ही लिया, ‘‘शेखरजी, भाभीजी कब आ रही हैं?’’

‘‘अभी तो नहीं.’’

‘‘क्यों, आप को अकेले दिक्कत तो होती होगी?’’

‘‘नहीं, कोई दिक्कत नहीं है. सब ठीक है,’’ शेखर ने गंभीरतापूर्वक कहा तो प्रणव ने यह बात यहीं खत्म कर दी. कुछ दिनों बाद एक दिन शेखर नहाने गए तो बाथरूम से निकलते हुए उन का पैर फिसल गया और वे बहुत जोर से फर्श पर गिर पड़े. दर्द की एक तेज लहर उन की कमर में दौड़ गई. वे बिना हिलेडुले ही पड़े रहे. दर्द काबू से बाहर था. बहुत देर बाद किसी तरह जा कर बैड पर लेटे.

शेखर रोज तैयार हो कर प्रणव की बिल्ंिडग के गेट पर औफिस जाने के लिए खड़े होते थे. आज वे नहीं दिखे तो प्रणव ने उन्हें फोन किया. फोन की घंटी बहुत देर तक बजती रही. प्रणव को चिंता हुई. फिर फोन मिलाया. बहुत देर बाद शेखर ने इतना ही कहा, ‘‘प्रणव, मैं गिर गया हूं और उठ नहीं पा रहा हूं. तुम्हारे यहां मेरे घर की जो दूसरी चाबी रहती है उस से दरवाजा खोल कर आ जाओ.’’ प्रणव ने वल्लरी को सब बता कर चाबी ली और शेखर के बैडरूम में पहुंच गए. शेखर दर्द से बेहाल थे, हिला नहीं जा रहा था. कैसे गिरे, सब बताया. प्रणव ने वल्लरी को फोन किया, ‘‘कुछ नाश्ता ले कर और पेनकिलर ले कर जल्दी आओ.’’

वल्लरी तुरंत एक सैंडविच, चाय, पेनकिलर और एक ट्यूब ले कर पहुंची. शेखर के लेटेलेटे ही प्रणव ने उन्हें नाश्ता करवाया. चाय पीने के लिए वे उठ नहीं पाए. वल्लरी को उन की हालत देख कर बहुत दुख हुआ. ट्यूब प्रणव को देती हुई बोली, ‘‘यह भाई साहब को लगा देना, मैं चलती हूं. बच्चों को निकलना है. अभी चादर डलवा दी थी क्योंकि शेखर टौवल में ही थे जब गिरे थे. शेखर की कपड़े पहनने में मदद कर के प्रणव ने उन्हें दवा लगा दी. प्रणव ने औफिस में अपने और शेखर की छुट्टी के लिए फोन कर दिया था. प्रणव शेखर के पास ही बैठे थे. शेखर ने कहा, ‘‘तुम औफिस चले जाते, आज तो शायद मुझे लेटे ही रहना पड़ेगा.’’

‘‘नहीं, शेखरजी, छुट्टी ले ली है. यहीं हूं आप के पास.’’

शेखर मन ही मन प्रणव के प्रति बहुत कृतज्ञ थे. कहने लगे, ‘‘अच्छा ठीक है, घर जा कर आराम ही कर लो. अभी मेरा दर्द कम हो जाएगा. कुछ जरूरत होगी तो फोन कर ही लूंगा.’’ शेखर के बहुत जोर देने पर प्रणव घर चले गए. शेखर का खाना शाम को ही बनाती थी संध्या, नाश्ता और लंच शेखर औफिस की कैंटीन में करते थे. वल्लरी संध्या को निर्देश दे रही थी, ‘‘अब जब तक भाईसाहब घर पर हैं, तीनों समय उन का नाश्ता, खाना ठीक से बनाना.’’ ‘‘हां दीदी, ध्यान रखूंगी,’’ संध्या एक अच्छे स्वभाव की महिला थी. वह ईमानदार और मृदुभाषी थी. शेखर के घर जा कर उस ने सब काम किया. लंच भी बना कर उन के पास ही रख गई. दोपहर को प्रणव फिर आया. शेखर ने बताया, ‘‘दर्द सुबह जितना तो नहीं है लेकिन अब भी है.’’

‘‘चलिए, शाम को डाक्टर को दिखा कर आते हैं.’’

‘‘ठीक है, लगता है जाना ही पड़ेगा.’’

कार में मुश्किल से ही बैठ पाए शेखर. एक अच्छे हौस्पिटल के मशहूर और्थोपेडिक डा. राघव ने सारी जांचपड़ताल की, बैडरैस्ट बताया और कुछ दवाएं लिख दीं. शेखर घर आ गए. एक हफ्ता बीत रहा था. शेखर ने लतिका और बच्चों को अपनी तकलीफ बता दी थी. बच्चे परेशान हो उठे, ‘‘पापा, हम लोग आ रहे हैं, आप को परेशानी हो रही होगी.’’

शेखर ने कहा, ‘‘नहीं बेटा, तुम लोग परेशान मत हो. यहां सब बहुत ध्यान रख रहे हैं मेरा. औफिस से तो रोज ही कोई न कोई आता रहता है और प्रणव तो बहुत ही देखभाल कर रहा है.’’ शेखर हैरान रह गए जब लतिका ने कहा, ‘‘मैं तो आप से बहुत नाराज हूं. आप मेरी बात ही नहीं सुनते. आप को मेरी कोई बात ठीक नहीं लगती.’’ शेखर ने आगे बिना कुछ कहेसुने फोन रख दिया. आज शेखर का मन बुरी तरह आहत हुआ था. पति के दर्द की कोई चिंता नहीं. बस, संपत्ति, पैसा, हिस्से की बातें? कैसी पत्नी मिली है उन्हें? दूसरे शहर में अकेले रह रहे हैं, उन के सुखदुख की उसे कोई चिंता नहीं, यहां रातदिन पराए लोग उन के दुख में हर पल उन के साथ हैं. बिना किसी स्वार्थ के वन्या, आकाश उन्हें देखने कई बार आ चुके थे. फोन पर वन्या ने लतिका को समझाया भी, ‘‘दीदी, जीजाजी की तबीयत ठीक नहीं है.

मैं 17 साल की हूं, मेरा बौयफ्रैंड मेरे साथ सैक्स करना चाहता, वैसे सैक्स करने का मेरा भी मन करता है,मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 17 साल की हूं. मेरा बौयफ्रैंड मेरे साथ सैक्स करना चाहता है जिस से मुझे कभीकभी डर लगता है. वैसे सैक्स करने का मेरा भी मन करता है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?

जवाब
देखिए, यह उम्र आप की सैक्स करने की नहीं बल्कि कैरियर बनाने की है. इस उम्र में प्यार हो जाना आम है, लेकिन प्यार होने का मतलब यह नहीं कि पार्टनर आप पर सैक्स करने का दबाव डाले. भूल कर भी आप अपने पार्टनर की बातों में न आएं.

अगर आप का भी सैक्स करने का मन करता है तो खुद की फीलिंग्स पर कंट्रोल करें. हो सकता है कि पार्टनर आप को यूज कर रहा हो. ऐसे में खुद का मिस यूज न होने दें. भले ही वह आप से नाराज क्यों न हो जाए.

आप उसे प्यार से समझाएं कि कैरियर बनाने के बाद सही समय आने पर घर वालों से बात कर हम दोनों शादी कर लेंगे और इस के बाद तो सैक्स के लिए पूरी उम्र ही है. इसलिए दोनों को थोड़ा पेशंस तो रखना ही होगा. अगर वह आप की बात समझ जाए तो इस का मतलब वह आप से सच्चा प्यार करता है वरना आप खुद समझ जाएं कि वह सिर्फ सैक्स के लिए ही आप से रिश्ता रखे हुए है.

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आपके रोमांटिक पलों के ये हैं एनर्जी बूस्टर

नेहा की शादी को अभी सिर्फ 5 साल ही हुए और अभी से अपने लाइफ पार्टनर के साथ रोमांस में इतनी उदासी. हालांकि उन का रिश्ता उतना पुराना नहीं हुआ जितनी उदासी उन दोनों ने ओढ़ रखी है. बेडरूम में घुसते ही उन्हें बोरियत महसूस होती है ऐसा क्या हुआ जो उन के रिलेशन में वो गरमाहट, वो रोमांस और वो प्यार नहीं रहा जो शादी के तुरंत बाद का था.

एक रिसर्च के मुताबिक मस्तिष्क में मौजूद लव केमिकल डोपामाइन, नोपाइनफ्रिन और फिलेथाइलामान कुछ सालों तक के लिए बहुत एक्टिव रहते हैं पर उम्र के साथसाथ ये कैमिकल थोड़े धीमे पड़ने लगते हैं. जब पतिपत्नी अपने रूटीन शेड्यूल में बिजी हो जाते हैं तब रिलेशन में धीरेधीरे प्रेम की मिठास और उसे पाने की ललक की रफ्तार धीमी पड़ जाती है. ऐसे समय में दोनों पार्टनर को सैक्स लाइफ में फिर से रोमांस भरने के लिए कुछ अलग और अनूठा करने की सलाह दी जाती है.

रिलेशन को बनाएं रोमांटिक

इस बारे में मशहूर साइकोलौजिस्ट अनुजा कपूर का कहना है कि पतिपत्नी के बिजी शेड्यूल और समय की कमी के कारण सैक्स और रोमांस करने में वो बात नहीं रही. बेडरूम में घुसते ही अपने पार्टनर के साथ वही बोरिंग टच, वही घिसीपिटी बातें, वही संतुष्टि और वही अहसास, सैक्स लाइफ का कब स्विच औफ कर देता है, पता ही नहीं चलता, पर चिंता की बात नहीं रिलेशन को रोमांटिक बनाने के लिए दोनों तरफ से पहल की जरूरत होती है. दो लोगों की थिंकिंग, फीलिंग ही किसी रिश्ते को खास बनाती है, कहते हैं न खुशियां हमारे आसपास ही होती हैं बस उसे ढूंढ़ने की जरूरत होती है, तो देर किस बात की, उम्र का कोई भी दौर हो, हर दौर में बौडी की जरूरत को समझते हुए आप अपनी सैक्सुअल लाइफ को उम्रभर रोमांटिक बनाए रखने के लिए कुछ रोमांटिक टिप्स फालो करें. क्योंकि ये ही आप की बोरिंग लाइफ में एनर्जी बूस्ट का काम करेंगे.

रोमांटिक पलों को खास बनाए रोमांटिक एनर्जी बूस्ट

सैक्स भी एक वर्कआउट की तरह होता है. जिस में ढेर सारी कैलोरीज बर्न होती है ऐसे में प्रत्येक महिला को 30 की उम्र के बाद ऐसे ऐनर्जी बूस्ट सप्लीमैंट्स लेने चाहिए जो आप का एनर्जी लेवल बढ़ाए इस के साथ ही एक्सरसाइज, योगा, ऐरोबिक्स आदि करें जिस से बौडी फ्लैक्सीबल बने.

खुद को करें ब्यूटीफाई

बढ़ती उम्र के साथ आप की बौडी में भी काफी चेंजेज आते हैं जैसे चेहरे पर फाइन लाइंस, ढलती स्किन आदि ऐसे में अपने को अपटूडेट रखने के लिए अपना ब्यूटी ट्रीटमैंट हर महीने करवाइए जिस से आप की खूबसूरती में और भी निखार आ सके और आप के पार्टनर आप की खूबसूरती में ही खो जाए.

फ्लर्टिंग है जरूरी

रोमांटिक पलों को खास बनाने के लिए आप को अपनी लाईफ में फ्लर्टिंग जरूर करनी चाहिए और वो भी हैल्दी फ्लर्टिंग. अब आप अपने पार्टनर के अलावा किसी और से हैल्दी फ्लर्टिंग करती हैं तो बौडी में एक्साइटमैंट और एनर्जी आती है और यही एनर्जी आप को अपने पार्टनर के साथ सैक्स के समय गुड फील कराती है कि पार्टनर के अलावा और भी कोई आप को औब्जर्व करता है जिस में, आप के लुक, ड्रेस की तारीफ या आप की पर्सनाल्टी की तारीफ भी हो सकती है, एक औरत को आप बांध नहीं सकते अगर आप किसी लड़के के साथ हैल्दी रिलेशनशिप नहीं रखेंगी तो अपने पार्टनर के साथ भी उदासीन रहेंगी.

पार्टनर की गर्लफ्रैंड बनें

रोमांस के समय अपने लाइफ पार्टनर की वाइफ न बन कर गर्लफ्रैंड बनने की कोशिश करें उस की आंखों में प्यार से देखें और उसे अपनी सैक्सी बातों और अदाओं से फील गुड कराना बहुत जरूरी है तभी आप अपनी सैक्स लाइफ में रोमांस का रंग भर सकती हैं.

ओपननैस बहुत जरूरी

अपनी सैक्स लाइफ में रोमांच भरने के लिए ओपननैस बहुत जरूरी है ऐसे समय में आप अपने पार्टनर से हर तरह की बात कर सकती हैं, उस के साथ पार्न मूवी देखें, जिस से आप अपने अंदर ऐक्साइटमेंट महसूस करें, नौनवेज जोक्स का मजा लें. हफ्ते में एक बार रोमांटिक कैंडल लाइट डिनर पर जरूर जाएं. अगर घर में लाइफ बोरिंग हो रही हो तो सैक्स और रोमांस का मजा लेने के लिए आप दोनों किसी होटल व रिसौर्ट को भी चुन सकते हैं.

लव एंड टच का तड़का

अपने प्यार का प्रदर्शन करने के लिए एकदूसरे को समयसमय पर टच करना, हग करना और किस करने, प्यार की थपकी देना और पब्लिक प्लेस पर हाथ पकड़ने का अहसास ही काफी रोमांटिक होता है.

रूम को करें डेकोरेट

रोमांस में डूबने के लिए अगर मूड नहीं बन रहा है तो कुछ सुझाव आजमाएं. सेंटेड कैंडल और फूलों से कमरा सजाए. असैंसिशयल औयल की कुछ बूंदें चादर और तकिए पर भी छिड़क सकती हैं. इस से प्यार का असर दोगुना होगा.

म्यूजिक थेरेपी से अपनी लव लाइफ को बेहतर बनाने के लिए दोनों गीतसंगीत का आनंद लं. संगीत आप के अंदर छाई उदासीनता को एनर्जी से भर देता है, रोमांटिक संगीत सेक्स और रोमांस में फील गुड साबित होता है, तनाव के स्तर को कम करता है और मन को खुश रखता है. इस से मूड क्रिएट होता है.

यादें संजोए

पुरानी यादों को ताजा करें पुरानी पिक्चर व विडियो देख कर, पुरानी बातों को फिर से दोहराएं. इस से आप का प्यार और गहरा होगा.

कैद करें प्यार के पलों को

जब आप अपने पार्टनर के साथ हों तो उस खूबसूरत अहसास को कैमरे में कैद कर अपनी व अपने पार्टनर की शानदार तस्वीरें लें. इन पलों के कुछ विडियो बनाएं और सयसमय पर इस का आनंद लें.

सैक्सी लांजरी का चुनाव करें

अपनी लव लाइफ को और सैक्सी बनाने के लिए ऐसी लौंजरी का चुनाव करें जो ज्यादा कौंप्लीकेटेड न हो अगर आप की लौंजरी बड़ी सरता से पाट्रनर के हाथों से उतरती तो उस रोमांचित एहसास के कहने ही क्या.

एक नैटवर्किंग साइट के सर्वे के अनुसार 100 में से 80 पुरुष अपने पार्टनर को सैक्सी लौंजरी में देखना पसंद करते हैं, कोई अपने साथी को स्विमसूट में देखना चाहता है तो कोई नैट वाली बिकनी में तो कोई केवल हाफ कप वाली लौंजरी में इस के अलावा रंग भी बहुत मैटर करता है. रेड, ब्लैक जैसे कलर पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं तो अगली बार जब भी लौंजरी की शौपिंग पर जाएं तो उन प्यार भरे एहसासों की छवि अपने जेहन में जरूर बना लें. जब यह सैक्सी लौंजरी पहन कर आप अपने पार्टनर के सामने जाएंगी तो आप का यह रूप आप की सैक्स लाइफ को बूस्ट करेगा.

फुल अटैंशन दें

रोमांस के समय एकदूसरे को फुल अटैंशन देना ही एक प्यारा एहसास है. अपने पार्टनर को यह एहसास दिलाएं कि सिर्फ आप की उस का सब कुछ हो उन के अलावा आप कुछ भी नहीं. ऐसे समय पर और कोई बात न कर के सिर्फ और सिर्फ सैक्स रोमांस की बातें करें.

सेक्सुअल प्लेजर दें

अपने पार्टनर को रोमांस के हर पहलू को समझाएं, उसे हर पौसिबल सैक्सुअल प्लेजर दें. सैक्स के बारे में कम्यूनिकेशन करें, यह जानने के लिए कि आप की रोमांटिक बातों का आप के पार्टनर पर क्या इफैक्ट पड़ता है.

गेम खेलें

अपनी लाइफ में रोमांस को बरकरार रखने के लिए सैक्स गेम्स खेले पर ये मस्ती भरे और एक्साइटमैंट वाले होने चाहिए, ये गेम्स नई चीजें ट्राई करने की नर्वसनेस से पीछा छुड़ाते हैं और आप अपने पार्टनर के साथ खुल कर मजा लेते हैं.

लव नोट्स लिखें

अपने पाट्रनर के लिए दिल की बातें कागज पर लिखें, लव नोट्स बहुत प्रभाव डालते हैं. आप के पार्टनर ने आप के लिए कुछ लिखा है यही सोच कर आप को एक अलग सी फीलिंग्स होगी जो आप के प्यार के पलों को और रोमांटिक बनाएगी.

मूड को करें फ्रेश

मूड को फ्रेश करने के लिए आप सैक्सी अंदाज में चौकलेट केक एक दूसरे को खिलाएं. ये अंदाज सामान्य मूड को भी सैक्सी मूड बना देगा और आप का मूड भी फ्रेश हो जाएगा.

हाइजीन जरूरी

मूड को फ्रेश करने के लिए आप दोनों एकसाथ हर्बल बाथ लें, एकदूसरे की मसाज एसेंशियल औयल करें. ये ही पल खुशनुमा पल आप को और ज्यादा एक्साइटमेंट देंगे. सैक्स और रोमांस के एंजौयमेंट के लिए जरूरी है बौडी पर किस का मजा उठाने के लिए ब्रश करें, माउथवाश से क्लीन करें, महकती साफसुथरी बौडी को किस करना आप का पार्टनर कभी नहीं भूलेगा.

प्यार और रोमांस सिर्फ फिजिकल नहीं होना चाहिए. प्यार में इमोशनल फीलिंग ही रिलेशन को स्ट्रांग बनाती है और अगर इस से आप सैक्स और रोमांस का तड़का लगा देंगी तो लाइफ बनेगी स्ट्रांग से भी स्ट्रांग. तो क्यों ना इन बातों का पालन अभी से किया जाए.

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यह क्या हो गया: भाग 1

हर रोज की तरह जब शेखर औफिस से घर आए तो लतिका का मुंह फिर फूला हुआ था. उन्होंने अपने मांपिताजी को ड्राइंगरूम में उदास बैठे देखा तो उन्हें तुरंत अंदाजा हो गया कि क्या हुआ होगा. पिता सोमेश, मां राधिका ने उन्हें आता देख दीर्घ निश्वास ले कर फीकी सी मुसकराहट लिए देखा. शेखर ने पूछा, ‘‘तबीयत तो ठीक है न?’’

दोनों ने  ‘हां’ में बस गरदन हिला दी. लतिका वहीं खड़ी सब को घूर रही थी. शेखर को देख उस ने त्योरियां चढ़ा लीं, पानीचाय कुछ नहीं पूछा. शेखर के छोटे भाई अजय की पत्नी नीता किचन से निकल कर आदरपूर्वक बोली,  ‘‘भैया, आप फ्रैश हो जाएं, मैं चाय लाती हूं.’’ शेखर  ‘ठीक है’ कह कर फ्रैश होने चले गए. वे समझ गए थे आज लतिका ने कुछ हंगामा किया होगा. मां, पिता अजय, नीता सब को बेकार के ताने दिए होंगे. अपनी मुंहफट झगड़ालू पत्नी के व्यवहार से वे मन ही मन दुखी ही रहते थे. शेखर एक एमएनसी में अच्छे पद पर थे. कोई आर्थिक तंगी नहीं थी. घर में फुलटाइम मेड नैना थी. तब भी लतिका किसी को सुनाने का मौका नहीं छोड़ती थी. उसे हमेशा इस बात पर चिढ़ होती थी कि शेखर अपने परिवार पर अच्छाखासा खर्च करते हैं. शेखर का कहना था कि उन की जिम्मेदारी है. वे उस से मुंह नहीं मोड़ सकते. लतिका का मायका भी उसी शहर बनारस में ही था जहां से उसे यही सीख मिलती थी कि अलग रहने पर वह दोनों बच्चों सौरभ और तन्वी के साथ ज्यादा आराम से रह सकती है. सोमेश रिटायर हो चुके थे. उन की पैंशन पर लतिका की नजरें रहतीं तो शेखर को गुस्सा आ जाता, कहते, ‘तुम्हें किस बात की कमी है. वे पिताजी के पैसे हैं. उन्हें वे जहां चाहें खर्च करेंगे कोई भी त्योहार, कोई मौका हो, वे कभी हम सब को कुछ न कुछ देने का मौका नहीं छोड़ते.’

इस पर लतिका हमेशा यही कहती, ‘तो उन्हें देना भी चाहिए, सारा खर्च हम ही तो उठा रहे हैं.’ ये सब बातें सोचतेसोचते ही शेखर फ्रैश हो व कपड़े बदल कर आए. बच्चे भी आ गए थे. अजय भी आ चुका था. नीता ने सब के लिए चायनाश्ता लगाया. लतिका मुंह फुलाए बैठी रही. किसी से कुछ नहीं बोली. नीता फिर किचन में जा कर नैना के साथ मिल कर डिनर की तैयारी में जुट गई. रात को सोते समय लतिका ने पुराना राग छेड़ दिया, ‘‘शेखर, आप मेरी बात क्यों नहीं सुनते? आगे बच्चों के खर्चे बढें़गे. हमें वह सब भी तो सोचना है. मैं यही तो कह रही हूं कि हम कहीं एक घर ले लेते हैं. अब अजय को संभालने दो यहां के खर्चे. क्या हमेशा हम ही संभालते रहेंगे सब कुछ?’’

‘‘मैं थक गया हूं रोजरोज की तुम्हारी इन बातों से, लतिका. अब मैं सोना चाहता हूं,’’ कह कर शेखर ने करवट ले ली. लतिका थोड़ी देर गुस्से में बुदबुदाती रही, फिर वह भी सोने की कोशिश करने लगी. लतिका शेखर को अलग रहने के लिए मजबूर करती है, यह बात सब ने महसूस की थी. एक दिन सोमेश ने ही कहा, ‘‘शेखर, बहू जो कह रही है, मान जाओ. तुम अलग…’’ शेखर ने पिता की बात पूरी नहीं होने दी, ‘‘नहीं, पिताजी. यह असंभव है. मैं अपने परिवार से अलग नहीं हो सकता.’’

‘‘बेटा, बड़ी बहू सब से नाराज ही रहती है. अलग रह कर वह खुश रह ले तो क्या बुरा है. हम सब दूर थोड़े ही हो जाएंगे. बस, यही आसपास कोई घर देख लो.’’ फिर सब के बहुत जोर देने पर, बहुत विचारविमर्श के बाद शेखर मजबूर हो गए और उन्होंने बहुत पास ही में एक घर खरीद लिया. लतिका की मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. सौरभ और तन्वी नहीं जाना चाहते थे नए घर में. वे भी शेखर की तरह उदास थे. अब घर तो 2 थे पर शेखर और बच्चों का अधिकतर समय मां, पिताजी के साथ ही बीतता था. लतिका अकेले ही खुश थी.

एक दिन शेखर ने औफिस से आ कर बताया, ‘‘मुझे प्रमोशन मिल रहा है नैशनल मैनेजर के पद पर, पर मुंबई पोस्ंिटग होगी.’’ सुन कर लतिका और बच्चे बहुत खुश हुए. शेखर ने आगे कहा, ‘‘पर एक प्रौब्लम है, तन्वी का नयानया जौब है, सौरभ का कालेज है. बच्चों को इस समय शहर बदलना मुश्किल हो सकता है. मेरे रिटायरमैंट में 3 साल ही बचे हैं, वापस यहीं आना है फिर.’’ सौरभ, तन्वी समझदार बच्चे थे. तन्वी ने कहा, ‘‘पापा, आप अकेले कैसे रहेंगे वहां. आप मम्मी को ले जाओ हम दादादादी के पास रह लेंगे. कोई प्रौब्लम नहीं है, पापा.’’ लतिका नहीं चाहती थी बच्चों को उस घर में किसी से ज्यादा लगाव हो, फौरन बोली, ‘‘ऐसा करते हैं, आप ही चले जाओ, हम लोग आतेजाते रहेंगे और आप का तो टूर चलता रहेगा न?’’

‘‘हां, अब तो पूरा इंडिया कवर करना है.’’

‘‘तो ठीक है, उत्तर प्रदेश टूर रहेगा तो घर आना होता ही रहेगा. हां, यह ठीक है, आप ही शिफ्ट करना.’’

शेखर पत्नी का मुंह देखते रह गए, लतिका के साथ न जाने का कारण वे अच्छी तरह समझते थे. पत्नी की नसनस से वे वाकिफ थे. उन्हें दुख हुआ. वे नए शहर में हर चीज का प्रबंध कैसे करेंगे, इस बात की लतिका को जरा भी चिंता नहीं हुई. शेखर ने मातापिता के घर जा कर होने वाले प्रमोशन के बारे में बताया, आगे की प्लानिंग के बारे में भी बात की. उन्होंने शुभकामनाओं की झड़ी लगा दी. राधिका ने उदास स्वर में कहा, ‘‘पर बेटा, प्रबंध करना मुश्किल होगा अकेले, लतिका को ले जाओ, बच्चों को हम देख लेंगे.’’ शेखर ने दुखी होते हुए कहा, ‘‘मां, लतिका को यहीं रहना है.’’

यह सुन कर सब चुप हो गए. सोमेश ने पूछा, ‘‘जाना कब है?’’

‘‘अगले महीने.’’

सब उदास तो थे लेकिन शेखर एक बड़े प्रमोशन पर जा रहे थे, इस बात की खुशी भी थी. मुंबई जाने के दिन करीब आ रहे थे. लतिका के दिमाग में फिर एक फितूर आया, ‘‘शेखर, आप के मातापिता का जो घर है, मैं सोच रही हूं आप उस में से अपना हिस्सा पिताजी से मांग लें.’’

शेखर बुरी तरह नाराज हुए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? यह बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘क्यों, तुम्हारा हिस्सा तो बनता है उस घर में. अपना हक लेने की तो बात कर रही हूं.’’

‘‘आगे से कभी यह बात छेड़ने की कोशिश करना भी मत.’’

‘‘नहीं, मैं ने सोच लिया है, हम अपना हिस्सा लेंगे उस घर में.’’

‘‘लतिका, मैं तुम्हें आखिरी बार कह रहा हूं, इस तरह की बात सोचना भी मत. यह कभी नहीं होगा.’’

‘‘नहीं, तुम्हें करना पडे़गा.’’

शेखर ने लतिका को डांटा, ‘‘बकवास बंद करो, लतिका.’’

लतिका ने क्रोधभरी नजरों से उन्हें घूरते हुए कहा, ‘‘आप को मेरी बात नहीं माननी है तो मुझे भी नहीं करनी आप से बात.’’

‘‘तो ठीक है, मत करो, शांति से जीने दो मुझे.’’

#coronavirus: जीवन बचाने के लिए संघर्षरत महिलाएं

कोरोना वायरस की वजह से चल रहे लॉकडाउन के दौरान जिन औरतों के पास पैसे और आवश्यक सामग्री नहीं है.वे अपने परिवार और बच्चों के पालन पोषण के लिए जदोजहद कर रही हैं.जिन औरतों के पति बाहर मजदूरी करते हैं.वे लॉक डाउन की वजह से महानगरों में फँसे हुवे हैं.विधवा या बुजुर्ग हैं.जिनका देख रेख करने वाला कोई नहीं है.वैसी महिलाओं को कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.घर का काम बच्चों के देखभाल करने के अलावा बहुत सारी ऐसी महिलाएँ हैं जिन्हें राशन पानी से लेकर जलावन तक इंतजाम करना है.आइये मिलवातें हैं कुछ वैसी ही महिलाओं से जो लॉक डाउन के दौरान जिंदगी के साथ जदोजहद कर रहीं हैं.

नसीबन खातून का पति तलाक दे दिया है.उनके चार बच्चे हैं.तीन लड़की और एक लड़का.नसीबन रोजी रोटी के लिए कई घरों में साफ सफाई का काम करती है.लेकिन लॉक डाउन की वजह से लोगों ने काम छोड़वा दिया है. अब तक किसी तरह तो काम चला लेकिन अब घर में कुछ भी नहीं है. किराना दुकानदार का भी 700 रुपये उधार हो गए हैं. वो भी हाँथ खड़ा कर लिया है. बोलता है. पहले का बकाया दे दो तब उधार देंगे.जिन घरों में काम करते थे.वे लोग भी एडवांस पैसा देने के लिए तैयार नहीं हैं. काम भी नहीं करवा रहे हैं क्योंकि इन मालिकों को शक है कि हमलोग गरीब बस्ती में रहते हैं. वहाँ से बीमारी इनके घरों तक आ जाएगी.

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रामकली देवी का पति लुधियाना के कम्पनी में काम करता है. काम धंधा बन्द है.घर आना मुश्किल हो गया है. इसके पति के पास खुद पैसे खत्म हो गए हैं. किसी तरह से आना चाहते हैं. कोई उपाय नहीं निकल रहा है. जिस ठीकेदार के अंदर में काम करते थे.ठीकेदार अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया है. यहाँ तीन बच्चों के साथ रह रही हूं.राशन पानी सब खत्म हो गया है. कुछ लोग मदद स्वरूप आँटा, चावल और आलू एक सप्ताह तक का दिए हैं. राशन कार्ड में हमलोगों का नाम नहीं है. ऑनलाइन किये थे .लेकिन अभी तक राशन नहीं मिल पाया है. एक सप्ताह के बाद क्या होगा.कैसे और क्या खाकर जिंदा रहेंगे.सोंच सोंच कर मन पागल हो गया है.

मंगरी देवी और रामकली देवी जलावन के लिए लकड़ी काट कर घर लौट रही है. जब हमने पूछा कि गैस नहीं मिला तो उसने बतायी की हमलोगों के पास गैस नहीं है.पति क्या करते हैं तो बतायी मजदूरी करते हैं. काम धंधा सब बन्द है. इसकी वजह से हमलोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.घर का खर्च बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेवारी इन गरीब महिलाओं के ऊपर होती है. बच्चे खाने के लिए या अन्य सामान के लिए तंग करते हैं. बच्चों को नहीं मालूम कि पैसे कहाँ से आते हैं. बच्चों को भूख लगेगी माँ से खाना माँगेगा. जब घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं हो और बच्चा खाने के लिए माँग रहा हो .खुद भी जोर से भूख लगी हो.यह सीन याद आते ही कलेजा मुँह को आ जाता है.

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लॉक डाउन की तिथि बढ़ते जा रहा है. गरीब बेबस और लाचार लोग दाने दाने के लिए मुँहताज हैं.टी वी और अखबार में राहत के घोषणाओं का अंबार है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग ही बयाँ कर रहा है. अब तो स्थिति यह आ गयी है. कोरोना से कम लोग भूख और कुपोषण से अधिक मरने लगेंगे.

19 दिन 19 टिप्स: बढ़ती उम्र में सैक्स

इंसान की जिंदगी में सैक्स का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान होता है. मगर 46-48 वर्ष के बाद या इस उम्र के दहलीज पर पहुंचतेपहुंचते आदमी और औरत दोनों में सैक्स का आवेग उदासीन होने लगता है. उम्र के इस पड़ाव पर यह दीये में पड़ी बाती की बुझती हुई लौ के समान होता है. सैक्स की इच्छा तो हर इंसान को ताउम्र होती है मगर इस रसगर्भित आनंद में मन का साथ तन नहीं दे पाता है. अकसर पुरुष या स्त्री इस उम्र में  सैक्स के प्रति इच्छा रहते हुए भी शारीरिक ऊर्जा समाप्त होने के कारण भीतर से अवसादग्रस्त रहने लगते हैं. अवसाद सैक्स को और खत्म कर देता है. डाक्टरों के अनुसार, पुरुष में आए इस ठहराव में शरीर में मौजूद ‘प्रोस्टेट ग्रंथि’ का बहुत बड़ा हाथ होता है. यह ग्रंथि पुरुष की पौरुषता की निशानी है. यह गं्रथि यौवनारंभ से 50-55 वर्ष की आयु तक सक्रिय रहने के बाद अपनेआप आकार में घटने लगती है. मनुष्य में होने वाली यह एक सामान्य प्रक्रिया है.

हजारों मनुष्यों में से एक में पौरुषता की यह निशानी ‘प्रोस्टेट ग्रंथि’ घटने के बजाय बढ़ने लगती है. ऐसे लोगों का आरंभिक अवस्था में संभोग करने को बारबार मन करता है. ऐसे पुरुष जो सप्ताह में एक बार समागम करते थे वे रोज या 2-3 बार संभोग करने को उत्सुक रहते हैं. मगर बाद में वे संभोग करने के योग्य नहीं रह जाते. ऐसे में स्त्री या पत्नी को पति की इस मनोदशा को समझना होगा. पति की उम्र के साथसाथ पत्नी की भी उम्र बढ़ रही है. सैक्स के प्रति अनिच्छा उसे भी हो रही है. लेकिन वह घर के विभिन्न कामधंधों में फंस कर अपने को भुलाए रखती है. यह भी होता है कि स्त्री अपनेआप में यह हार मान लेती है कि अब सैक्स करने की उम्र नहीं रही. साधारणतया स्त्रियों का ऐसा ही विचार होता है, लेकिन उन का यह सोचना गलत होता है. वे अपनी गलत धारणा के कारण प्रकृतिप्रदत्त सैक्स का भरपूर आनंद बढ़ती उम्र के साथ नहीं उठा पातीं. सैक्स एक रति क्रिया है जिस में 2 विपरीत लिंग आपस में एकदूसरे के साथ शारीरिक समागम करते हैं. इस रति क्रिया से शारीरिक ऊर्जा मिलती है. उस से उक्त दोनों शरीर को भरपूर आनंद व संतुष्टि प्राप्त होती है. शरीर फिर से आगे काम करने के लिए रिचार्ज हो जाता है.

समस्याओं का पिटारा

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एक दोस्त की पत्नी का कहना है कि सैक्स तो जरूरी है ही लेकिन इस के लिए मन का साथ होना बहुत जरूरी है. मन का साथ तभी होता है जब घरगृहस्थी के झंझटों से छुटकारा मिले. अशांत मन से सैक्स करने का मजा किरकिरा हो जाता है. एक सवाल के जवाब में उन का कहना है कि 45 प्लस के बाद सैक्स का अनोखा आनंद प्राप्त होता है क्योंकि यौवनावस्था में सैक्स उत्तेजित रहता है जबकि प्रौढ़ावस्था में सैक्स परिपक्व होता है विवेक बताते हैं कि यौवनावस्था में उन की सैक्स की इच्छा चरम पर थी. एक रात में 3-3 बार संबंध बना लेते थे. मगर अब प्रौढ़ावस्था में सैक्स का आनंद सिमट कर हफ्तों और महीनों में चला गया है. अब सैक्स की हार्दिक अभिरुचि एकसाथ कमरे के एक बैड पर साथ में लिपट कर रहने पर भी पैदा नहीं हो पाती है.

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इस संबंध में 46 वर्षीय रमेश का कहना है कि पहले वे रोज अपनी पत्नी के साथ सैक्स करते थे लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि इस में उन की अभिरुचि समाप्त हो गई है. रमेश बताते हैं कि उन्हें सैक्स करने की इच्छा तो होती है. बिस्तर पर साथ लेटी पत्नी के कोमल अंगों को सहलाते भी हैं मगर जहां पहले उत्तेजना तुरंत बढ़ जाती थी, अब उस में शिथिलता आ गई है. सैक्स के लिए आतुर मन को शरीर का साथ नहीं मिल पा रहा है. लिहाजा, वे सैक्स का आनंद नहीं उठा पाने के कारण काफी निराश हैं. 47 वर्षीय मनोज का किस्सा तो वाकई खराब है. उन्हें जब सैक्स की इच्छा होती है तब पत्नी की नहीं होती और जब पत्नी की इच्छा है तो उन की नहीं होती. इन दिनों उन्हें रात में सैक्स करने की अपेक्षा दिन में सैक्स करने की इच्छा ज्यादा बलवती रहती है. जबकि दिन में यह संभव नहीं है. वे बताते हैं कि पहले बच्चे छोटेछोटे थे. दिन में भी यह कभीकभी संभव हो जाता था मगर अब बच्चे बड़े हो गए हैं. रात में सैक्स में अभिरुचि नहीं होने की वजह वे बताते हैं कि रात के अंधेरे में पत्नी के शरीर के कोमल अंगों का साफ न दिख कर केवल छू कर अनुभव करना होता है जोकि रोमांच नहीं पैदा कर पाता है. सैक्स से एकदम मन हट जाता है.

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मनोज आगे कहते हैं कि एक कारण और भी है कि दिनभर के कामधाम के बाद पत्नी जब थक कर चूर हो जाती है और रात को बिस्तर पर निढाल पड़ जाती है, ऐसी स्थिति में सैक्स करना संभव नहीं है. पत्नी ही नहीं, पति भी तो दिनभर दफ्तर के कामों से थकहार कर जब वापस घर लौटता है, उसे सोने के अलावा दूसरे कामों की इच्छा नहीं होती. वहीं, दिन में पत्नी घर में इधरउधर इठलाती, बलखाती, ठुमकती हुई नजर आती है तो बरबस उसे देखपकड़ कर सीने से भींच लेने को जी चाहता है. ऐसे में पत्नी जब तिरछी नजरों के बाण छोड़ती है वह क्षण पूरे शरीर में गुदगुदी पैदा कर देने वाला होता है तथा पत्नी की तरफ से सैक्स के लिए मौन आमंत्रण होता है. यह माना भी जाता है कि रात की अपेक्षा दिन में स्त्री की भावभंगिमाएं एक मर्द को सैक्स के लिए कुछ ज्यादा ही उत्तेजित कर देती हैं. फलस्वरूप, पुरुष बहक जाता है. उम्र के इस पड़ाव पर पत्नी को भी अपने पति का साथ देना चाहिए. ऐसे में पत्नी की जरा सी उपेक्षा गुजरे 45 वर्षों के वैवाहिक जीवन को अशांत कर सकती है.

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स्वस्थ रहने के लिए सैक्स जरूरी

डाक्टरों का कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ सैक्स कमजोर नहीं पड़ता बल्कि शरीर का ‘मेटाबोलिज्म’ खत्म होने लगता है. अपनेआप को स्वस्थ रखने के लिए नियमित सैक्स करना जरूरी है. सैक्स भी एक ऐक्सरसाइज ही है. इस के अलावा एक अनुसंधान से पता चला है कि जांघों की पेशियों में तनाव का यौन समागम से संबंध है. ऐसे व्यायाम, जिस में जांघों की पेशियों का व्यायाम हो, कर के यौन सामर्थ्य को बढ़ाया जा सकता है. डाक्टरों का यह भी कहना है कि यौन सक्रियता के घटने का सब से बड़ा कारण पौष्टिक भोजन का अभाव है. शरीर चुस्त और दुरुस्त तथा ऊर्जावान रखने के लिए सही पौष्टिक खानपान की भी जरूरत होती है. उन के अनुसार बढ़ती उम्र के हिसाब से ज्यादा वसायुक्त भोजन से परहेज करना चाहिए. कभीकभी ऐसा भी होता है कि प्रौढ़ावस्था में पहुंचा व्यक्ति कुछ समय तक जरूरत से ज्यादा संभोग कर चुका हो अथवा बहुत अरसे तक काम के बोझ से दबे रहने के कारण उस का ‘तंत्रिका तंत्’ यानी नर्व सिस्टम थक गया हो, जिस के चलते वह संभोग कार्यों में असफल रह जाता हो. ऐसे समय में उसे कुछ समय तक विश्राम करते हुए पौष्टिक भोजन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.

सैक्स जैसे अंतरंग कार्यों में सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका मस्तिष्क की ही होती है. पत्नी का झगड़ालू स्वभाव, चिंताएं, थकान, एकांत वातावरण का अभाव इत्यादि शिश्न में उत्थान कम आने के कारण बन सकते हैं. मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति इस उम्र में आ कर सैक्स से वंचित रह जाते हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार दिनभर की भागदौड़ से थक कर शरीर जब आराम की मुद्रा में आता है, ऐसे में तुरंत सैक्स करना एक प्रकार का शरीर के साथ व्यभिचार करने के समान है. सैक्स एक प्रकार का 2 विपरीत लिंगों का एकांतिक शारीरिक व्यायाम है. पति व पत्नी चिंता से पूरी तरह मुक्त हो कर फोरप्ले करते हुए सैक्स का आनंद लें. इस से बढ़ती उम्र का खयाल ही नहीं रहेगा.

भीलवाड़ा मॉडल : कोरोनावायरस को हराने में कामयाब

लेखक- डॉ दीपक कोहली

कोरोना के  परिप्रेक्ष्य में आजकल “भीलवाड़ा मॉडल” देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है. एक समय यह लग रहा था कि राजस्थान के भीलवाड़ा में कोरोना का संकट वुहान( चीन का एक शहर ) और इटली की तरह ही भयंकर है. लेकिन भीलवाड़ा ने  देश में सबसे पहले कोरोना जोन बने वायरस के खिलाफ महायुद्ध जीत लिया है. यह देश का एकमात्र शहर है, जिसने 20 दिनों में कोरोना को हरा दिया. यह यूं ही संभव नहीं हुआ. इस महायुद्ध को जीतने में जिला प्रशासन की ठोस रणनीति, कड़े फैसले, चुनाव की तरह कुशल प्रबंधन और जीतने की जिद काम आयी.

भीलवाड़ा जिले के सभी कर्मचारियों ने रात-रात भर जागकर काम किया और भीलवाड़ा को बेमिसाल बना दिया. यहां हालात इस कदर बिगड़े कि राजस्थान में सर्वाधिक 27 मरीज आ गए. ये सभी एक निजी अस्पताल के स्टाफ व मरीज थे. बढ़ती संख्या से घबराए प्रशासन ने खुद कहा था, ‘भीलवाड़ा बारूद (कोरोना) के ढेर पर है.’ लेकिन हौसला बरकरार रहा.

19 मार्च को पहला मरीज आया. अगले दिन पांच और मरीज आते ही जिलाधिकारी श्री राजेंद्र भट्ट ने कर्फ्यू लगा दिया. रोज कई बैठकें , अफसरों से फीडबैक और प्लानिंग. सरकार को रिपोर्टिंग. देर रात सोना. जल्दी उठकर फिर वही रूटीन. 3 अप्रैल को 10 दिन का महाकर्फ्यू. यही कड़ा फैसला महायुद्ध में मील का पत्थर साबित हुआ. आखिरकार जिद की जीत हुई. जिस शहर को पहले देश का वुहान (चीनी शहर) और इटली की संज्ञा दी जाने लगी. वहां गंभीर रोगियों की मौत को छोड़ दें तो डॉक्टरों की कड़ी मेहनत ने कोरोना को मात दे दी. तीन डॉक्टर सहित 21 संक्रमित ठीक कर दिए. अब 4 मरीज हैं. यही वजह है कि भीलवाड़ा को हर तरफ से भी तारीफ मिली. क्लस्टर कंटेनमेंट का यह मॉडल देशभर में लागू हो रहा है, अब कोरोना से लड़ने का तरीका पूरा देश भीलवाड़ा से सीखेगा.

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भीलवाड़ा शहर के 55 वार्डों में नगर परिषद के जरिये दो बार सैनिटाइजेशन करवाया गया. हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी में हाइपोक्लोराइड एक प्रतिशत का छिडकाव कर सैनिटाइज किया गया. प्रशासन ने संक्रमित स्टाफ वाले अस्पताल को सील करवाया. 22 फरवरी से 19 मार्च तक आए मरीजों की सूची निकलवाई. 4 राज्यों के 36 व राजस्थान के 15 जिलों के 498 मरीज आए. इन सभी के जिलाधिकारियों को सूचना देकर उन्हें आइसोलेट कराया. अस्पताल के 253 स्टाफ व जिले के 7 हजार मरीजों की स्क्रीनिंग की.भीलवाड़ा जिले में देश की सबसे बड़ी 25 लाख लोगों की स्क्रीनिंग कराई गई. छह हजार कर्मचारी जुटे. मरीजों के संपर्क में आए लोगों की पहचान की गई . 7 हजार से अधिक संदिग्ध होम क्वारंटीन में रखे. एक हजार को 24 होटलों, रिसोर्ट व धर्मशालाओं में क्वारंटीन किया. सर्वे की जिम्मेदारी चिकित्सा विभाग की थी. गांवों में फील्ड सर्वे की जिम्मेदारी एडीएम श्री राकेश कुमार को दी गई. यह बड़ी चुनौती थी. कोर टीम रात तीन बजे तक संबंधित एसडीएम से डाटा एकत्रित कर कंपाइल करती. अगले दिन सुबह होते ही रिपोर्ट जिलाधिकारी को सोन दी जाती. इसी आधार पर तय होती थी अगली रणनीति कि अब आगे क्या कदम उठाया जाए.

जिले के राजकीय अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए बनाया आइसोलेशन वार्ड. इसमें कार्यरत डॉक्टर्स व मेडिकल स्टाफ की हर सप्ताह ड्यूटी बदली. वे कोरोना से संक्रमित न हों, इसलिए सात दिन की ड्यूटी के बाद उन्हें भी 14 दिन क्वारंटीन में रखा. नतीजा, अब तक 69 स्टाफ में से एक भी संक्रमित नहीं हुआ.

छह कोरोना पॉजीटिव केस आते ही 20 मार्च को भीलवाड़ा शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया. फिर 14 दिन बाद 3 से 13 अप्रैल तक दस दिन के लिए महाकर्फ्यू. ऐसा करना जरूरी था, ताकि लोग घरों में ही रहें और वायरस का सामुदायिक संक्रमण न हो.

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जिले के ग्रामीण क्षेत्र या गांव का व्यक्ति कोरोना से संक्रमित मिला, उस गांव या क्षेत्र को सेंटर प्वाइंट मानते हुए एक किमी की परिधि को नो मूवमेंट जोन घोषित कर दिया यानि वहां कर्फ्यू भी लगाया. भीलवाड़ा प्रशासन ने जिले की सीमाएं सील कर दीं. 20 चेक पोस्ट बनाकर कर्मचारी तैनात कर दिए, ताकि न कोई बाहर से आ सके, न जिले से बाहर जा सके.

शहर व जिले में रोडवेज व प्राइवेट बसें सहित सभी तरह के वाहन व ट्रेन भी बंद करवाए‌ ताकि कोरोना संक्रमित आ-जा न सकें. कर्फ्यू में लोगों को खाने-पीने का सामान भी होम डिलीवरी के माध्यम से मिलता रहे. इसके लिए सहकारी भंडार के जरिये वाहनों से घर-घर राशन सामग्री, फल-सब्जियां व डेयरी के जरिये दूध पहुंचाया गया. श्रमिकों, असहाय व जरूरतमंदों को निशुल्क भोजन पैकेट व किराना सामान भेजा. इस तरह से भीलवाड़ा ने कोरोना के महासंकट पर विजय प्राप्त की. वर्तमान में भीलवाड़ा में मात्र एक ही कोरोना संक्रमित मरीज है. जिसका इलाज किया जा रहा है. भीलवाड़ा मॉडल वहां के प्रशासन की पूरी टीम के सहयोग से ही संभव हुआ. भीलवाड़ा की जनता से भी वहां के प्रशासन को पूरा सहयोग मिला. भीलवाड़ा में कोरोना वायरस से महायुद्ध जीतने के पश्चात इस मॉडल को पूरे देश में लागू किए जाने का कार्य किया जा रहा है . ताकि देश को कोराना के महासंकट से बचाया जा सके. देश ही क्या विदेशों से भी लोग भीलवाड़ा प्रशासन से संपर्क स्थापित कर उनकी कार्यपद्धति जानने में लगे हैं. इस प्रकार “भीलवाड़ा मॉडल” कोरोनावायरस से महायुद्ध जीतने के लिए संपूर्ण विश्व में एक आदर्श मॉडल बन चुका है.

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