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अपने अपने शिखर: भाग 2

‘‘जी आंटी.’’

‘‘अरे, तब तो तुम सच में जुड़वां की तरह ही हो. कैसा संयोग है. इतने सालों बाद तुम दोनों एकसाथ खड़ी हो.’’

साखी और सांची के चेहरों पर प्रसन्नता के भाव आ गए थे.

‘‘तब तो तुम ने अपने पापा की गाड़ी से कालेज आयाजाया करोगी?’’

‘‘नहीं आंटी, शायद बस से… लेकिन बस में तो बहुत समय बरबाद होता है. बहुत घूमघूम कर आती है.’’

‘‘तो औटो से आओजाओ न और लड़कियों के साथ. साखी के लिए तो मैं ने एक औटो वाले से बात कर ली है. कहो तो तुम्हारे लिए भी कर लूं, सिविल लाइंस तो रास्ते में ही पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है आंटी, लेकिन पापा से पूछना पड़ेगा. अच्छा नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, अपनी मम्मी से मेरा नमस्ते बोलना. मैं उन से मिलने आऊंगी. मेरी उन से बहुत पुरानी पहचान है, उतनी पुरानी जितनी तुम्हारी उम्र है,’’ उन के स्वर में उत्साह आ गया था.

फिर दोनों ने साथ आना, साथ जाना शुरू कर दिया और एक ही कोचिंग में पढ़ते हुए 11वीं, फिर 12वीं की परीक्षाएं लगभग बराबर अंक पा कर पास कीं. दोनों का लक्ष्य था, प्री मैडिकल टैस्ट पास कर के एमबीबीएस करना. दोनों ने गंभीरता से पढ़ाई शुरू कर दी.

परीक्षाएं पूरी होने पर दोनों संतुष्ट थीं, परिणाम के प्रति आशान्वित भी. परिणाम घोषित हुआ तो वे अलगअलग शहरों में थीं क्योंकि अपनेअपने पिता के स्थानांतरण के कारण उन के शहर बदल गए थे. लेकिन समाचारपत्र में छपा अपना अनुक्रमांक व उच्च वरीयता क्रम देख कर साखी की आंखों से खुशियां नहीं आंसू छलके. कारण, सांची के अनुक्रमांक का कहीं अतापता नहीं था. उसे यह बहुत अविश्वसनीय सा लगा. साखी अपने वर्ग की मैरिट लिस्ट में बहुत ऊपर थी. उसे प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मैडिकल कालेज में प्रवेश मिला.

एक दिन उस का सांची से सामना हो गया. वह अपने परिजनों के साथ किसी रिश्तेदार मरीज को देखने आई थी. उस से मिल कर साखी को अच्छा लगा. वह इतना हताशनिराश नहीं थी, जितना साखी ने सोच रखा था. उस ने बताया कि बी.एससी. के साथसाथ सीपीएमटी की तैयारी कर रही है. बड़ी आशा के साथ उस ने बताया कि वह इसी कालेज में आएगी, उस की जूनियर बन कर.

उस के बाद 2 वर्षों तक साखी को सीपीएमटी के परिणाम के समय इंतजार रहा कि शायद सांची के बारे में कोई अच्छी खबर मिले. लेकिन ऐसी कोई खबर न मिलने पर अपनी ओर से सीधे फोन कर के उस की असफलता का पता लगाना, उसे व्यावहारिक नहीं लगा. कुछ वर्ष बीतने के बाद उसे यहांवहां से पता चला था कि सांची एम.एससी. करने के बाद सिविल सर्विसेज के लिए कोशिश कर रही है. साखी फाइनल की लिखित परीक्षा से मुक्त हो कर वाइवा के तनावों से घिरी थी. पढ़ने का मन बना रही थी कि होस्टल के चौकीदार ने उस के नाम की पुकार दी. नीचे उतरी तो देखा कि सांची थी. उन्मुक्त भाव से दोनों एकदूसरे से लिपट गईं. उस का बैग लेते हुए साखी ने शिकायत की, ‘‘कोई खबर तो दी होती, इस तरह अचानक?’’

‘‘एक सैमिनार में आई थी. वहां इतना व्यस्त हो गई कि सूचना नहीं दे पाई. फिर सोचा कि चलो आज अपनी पुरानी सखी को सरप्राइज देते हैं. आज रात रुकूंगी तुम्हारे साथ अगर तुम्हें कोई असुविधा न हो तो.’’

‘‘अरे, बिलकुल नहीं,’’ कहते हुए साखी सांची का हाथ पकड़ सीढि़यों की ओर बढ़ने लगी. कमरे में पहुंच कर एक गिलास पानी देते हुए वह सांची से बोली, ‘‘तुम फ्रैश हो लो, मैं मैस से टिफिन मंगवाने का प्रबंध करती हूं. आज यहीं रूम में खाएंगे और खूब बातें करेंगे. मेरा तो पढ़ाई से जी ऊब गया है.’’

खाना खा कर वे खुली हवा में होस्टल की छत पर आ गईं. चांदनी रात थी. मुंडेर पर कोने में टिकते हुए सांची ने छेड़ा, ‘‘ऐ, शादी के बारे में क्या विचार है?’’

‘‘शादी? किस की?’’

‘‘तुम्हारी और किस की?’’

‘‘अरे मम्मीपापा तो पूरी कोशिश में लगे हैं 2-3 साल से. न्यूजपेपर में उन्होंने एड भी दिया, लेकिन अभी तक मेरे योग्य मिला ही नहीं,’’ हंसते हुए साखी ने कहा.

‘‘ये तो कोई नई बात नहीं. मांबाप तो भरपूर कोशिश करते ही हैं इस के लिए. मेरा मतलब है कि तुम ने क्या किया? कोई भाया यहां कालेज में या बाहर?’’

‘‘अरे, यहां कोई कमी है क्या? कितने पीछे लगे रहते हैं. कुछ बैच मेट्स हैं तो कुछ सीनियर्स. कुछ मरीज हैं तो कुछ मरीजों के तीमारदार. एकाध सर भी हैं. बहुत लोग हैं यहां मुहब्बत लुटाने वाले. कितने गिनाऊं तुझे कोई लिस्ट बनानी है क्या?’’

‘‘देख साखी, मैं सीरियसली बात कर रही हूं और तू बात को हवा में उड़ा रही है. सचसच बोल, कोई है?’’

‘‘है तो पर बताऊंगी नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि तुम अपने बारे में तो कुछ बताओगी नहीं.’’

‘‘कोई हो तो बताऊं.’’

‘‘तो समझ मेरा भी कोई नहीं.’’ फिर थोड़ी सी चुप्पी के बाद बोली, ‘‘अच्छा बताती हूं.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां सच. आनन वर्मा को जानती है?’’ साखी ने पूछा.

‘‘वही आनन, जो अपने साथ बायो की कोचिंग में था, जो तुम्हें चाहता था.’’

‘‘चाहता तो वह दोनों को था, लेकिन तुम से डरता था तुम्हारे पापा के पद के कारण. आजकल यहीं है. मैडिकल में हो नहीं पाया तो बी फार्मा कर रहा है. कभीकभी मिलने आता है. मैं भी एकाध बार गई हूं उस के घर. उस के मांबाप मुझे बहुत चाहते हैं. उस के लिए मेरे दिल में भी सौफ्ट कौर्नर है.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘फिर क्या? मेरी लव स्टोरी यहीं खत्म. यहां पढ़ाई से फुरसत नहीं. तुम क्या समझती हो, यहां बौलीवुड की तर्ज पर मैं प्रेम कहानी तैयार कर रही हूं?’’

‘‘देखो साखी, तुम मेरी बात को हमेशा हवा में उड़ा देती हो.’’

‘‘देखो भई, मैं ने अपनी शादी का काम अपने मम्मीपापा पर छोड़ दिया है. जिस दिन वे मुझ से सुपर लड़का ढूंढ़ कर मुझे बता देंगे, मैं जा कर चुपचाप मंडप में बैठ जाऊंगी. लेकिन मैं जानती हूं कि वे अपनी बिरादरी में सुपर लड़का नहीं ढूंढ़ पाएंगे और इंटरकास्ट मैरिज तो मेरे परिवार में किसी के गले ही नहीं उतर सकती. वैसे एक बात बताऊं सांची, अब मेरी विवाह में कोई खास रुचि बची नहीं है. क्या मिलता है विवाह से? थोड़ी सी खुशी और बदले में झंझटों का झमेला. अगर सब ठीक हुआ तो जिंदगी ठीकठाक कट जाती है वरना पूरी जिंदगी ऐडजस्टमैंट करतेकरते गुजार दो, घुटते हुए. नहीं करो तो बस एक ही गम रहता है कि शादी नहीं हुई. अब तुम बताओ अपनी प्रेम कहानी, लेकिन कमरे में चल कर. यहां खड़ेखड़े थकान होने लगी है.’’

वे कमरे में आ गईं और अधलेटी हो कर बतियाने लगीं.

‘‘साखी, तुम तो जानती हो कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता है. जिस चीज की जरूरत हो, हाजिर. अगर कभी बाजार से पेनपैंसिल, किताबकौपी खरीदने का मौका भी मिला तो एक चपरासी अंगरक्षक की तरह साथ में रहता है. अभी तक ऐसा कोई टकराया ही नहीं, जो मुझ से खुल कर कुछ कहे और मुझे भी अभी तक कुछकुछ हुआ नहीं.’’

‘‘तो फिर आज शादी की परिचर्चा क्यों की जा रही है?’’

‘‘इसलिए कि आजकल मेरी शादी के प्रस्ताव बहुत आ रहे हैं. एक से बढ़ कर एक. मेरी बिरादरी में अच्छे रिश्तों की कोई कमी नहीं. कोई बड़ा व्यवसायी है, तो कोई प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार का होनहार. कोई छोटा अधिकारी है, तो कोई बड़ा अधिकारी. मेरे पापा जब से दिल्ली ट्रांसफर हुए हैं, तब से चर्चे कुछ ज्यादा ही हैं. पापा प्रिफर करते हैं कि आईएएस मिले और शायद यह उन के लिए मुश्किल नहीं,’’ सांची ने बिना झिझक के बताया.

साखी चुपचाप उस का मुंह देखती रही.

कुछ महीने बाद साखी को एक भारीभरकम निमंत्रण पत्र मिला, जो सांची के पिता द्वारा भेजा गया था. उस की शादी प्रशांत राय, आईएएस से दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में होने जा रही थी. लेकिन शादी की तारीख वाले दिन साखी का पोस्ट ग्रैजुएशन मैडिकल ऐंट्रैंस ऐग्जामिनेशन था, इसलिए चाह कर भी वह शादी में न जा सकी.

जन्मदिन जीवन का खास दिन लगता है. हर साल आता है और चला जाता है. उस के बाद जीवन फिर उसी ढर्रे पर चलने लगता है. लेकिन साखी का पिछला जन्मदिन ऐसा नहीं था. उस दिन वर्षों से पड़ी उस के मन की एक गांठ खुल गई थी. डाक्टर होने के नाते वह अकसर जिस बात को ले कर शंकित रहती थी, परेशान हो उठती थी, उस का समाधान हो गया था. उस के बाद वह सामान्य नहीं रह पाई. बहुत से विचार उस के मस्तिष्क में घुमड़ते रहते थे. पूरा साल ऐसे ही व्यतीत हुआ.

अपने अपने शिखर: भाग 1

पत्थरकोठी में नए साहब आ गए हैं, यह शहर के लिए नई खबर थी. डाक्टर साखी कांत को तो इस खबर का इंतजार था. यह जान कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ था कि प्रशांत कुमार राय, आईएएस इस संभाग के नए कमिश्नर हो कर आ रहे हैं. वह यहां के मिशनरी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञा है. एमडी की डिगरी पाते ही अनुभव प्राप्त करने की इच्छा से उस ने यहां जौइन किया था. उस के पहले और बाद में इस अस्पताल में कई डाक्टर आएगए. कुछ ने सरकारी नौकरी कर ली, तो कुछ ने धनी बनने की लालसा में अपने नर्सिंग होम खोल लिए.

यहां के वातावरण और अस्पताल प्रशासन के सेवा मिशन से उस का निश्छल मन कुछ ऐसे मिला कि वह यहां ठहर गई या कहा जाए कि यहां रम गई. यहां के शांत और नैसर्गिक हरेभरे वातावरण ने उसे बांध लिया. दिन, महीने, साल बीतते चले गए और समयबद्ध व्यस्त दिनचर्या में उस के 15 वर्ष कैसे बीते पता नहीं चला. अब वह यहां की अनुभवी और सम्मानित डाक्टर है.

चौड़ेऊंचे पठार पर बने अस्पताल के बाहर उसे एक सुसज्जित छोटा सा कौटेज मिला है, जिस के 3 तरफ हराभरा बगीचा और आसपास गुलमोहर और अमलतास के वृक्ष हैं. सामने दूसरे पठार पर चर्च की ऊंची इमारत और चर्च से लगी हुई तलहटी में पत्थरों की चारदीवारी से घिरा कब्रिस्तान है. उस के आगे पहाड़ीनुमा सब से ऊंचे पठार पर दूर हट कर पत्थर कोठी है, जिसे सरकारी भाषा में कमिश्नर हाउस कहा जाता है. चर्च के बगल से लगा हुआ कौन्वैंट स्कूल है. इस ऊंचेनीचे बसे शहर की उतारचढ़ाव व कम आवागमन वाली सड़क घुमावदार है, जो एक छोटे से पुल पर से हो कर गहरी पथरीली नदी को पार करती है. उस की कौटेज से यह नयनाभिराम दृश्य एक प्राकृतिक दृश्य सा दिखाई देता है.

पत्थर कोठी, कब्रिस्तान की चारदीवारी, गिरजाघर और अस्पताल की बिल्डिंग स्लेटी रंग के स्थानीय पत्थरों से बनी है. तलहटी में फैले कब्रिस्तान के सन्नाटे में साखी संगमरमरी समाधियों के शिलालेख पढ़तेपढ़ते इतना खो जाती है कि वहां पूरा दिन गुजार सकती है. वहां से वनस्पतियों और मौसमी फूलों से घिरी उस की कौटेज खूबसूरत पेंटिंग सी लगती है.

डिनर के बाद जब वह फूलों की खुशबू से महकते लौन में चहलकदमी कर रही होती है तो मेहंदी की बाड़ के पार कच्ची पगडंडी पर पत्थर कोठी से लौटता हुआ दीना अकसर दिखाई दे जाता है. दीना पत्थर कोठी में कुक है और कौटेज के पीछे बने स्टाफ क्वार्टर्स में रहता है. वह उस के पास आने पर उसे नमस्ते करता है, जिसे वह मौन रहते हुए सिर हिला कर स्वीकार करती है.

आज उसे दीना का बेसब्री से इंतजार था क्योंकि कब अपने जन्मदिन के फंक्शन पर अच्छा खाना बनाने के अनुरोध के बहाने वह उसे रोक कर उस से बात करना चाहती थी, जिस से पत्थर कोठी का हालचाल जान सके. दीना काम से छुट्टी पा कर थकावट भरी चाल में कोई अस्पष्ट सा गीत गुनगुनाते हुए लौट रहा था. उस के पास आने पर वह नमस्ते बोल कर ठिठक गया, जैसे कुछ कहना चाह रहा हो. उस के अकस्मात ठहराव को साखी ने अनदेखा नहीं किया. लैंप पोस्ट की रोशनी में ठहरे दीना से उस ने पूछा, ‘‘रुक क्यों गए? कुछ कहना चाहते हो?’’

‘‘जी डाक्टर साहब. आज हमारे नए साहब आ गए हैं. बीबीजी बहुत अच्छी हैं, आप जैसी. आप की बहन सी लगती हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या नाम है उन का?’’ वह प्रश्न तो कर गई, परंतु मुसकरा उठी कि इस को कमिश्नर की पत्नी के नाम से क्या लेनादेना. इस के लिए तो बीबीजी नाम ही पर्याप्त है. वह चुप रहा. फिर सिर झुकाए थोड़ी देर खड़ा रह कर चल पड़ा. फिर दीना जब तक ओझल नहीं हो गया वह उसे जाते हुए देखते रही. उस के होंठों पर हंसी आई और ठहर गई. दीना की बात सच है. कौन उन्हें बहनें नहीं समझता था.

दोनों ने तीखे नैननक्श पाए थे और कदकाठी और रूपरंग भी एक से. सगी बहनों सा जुड़ाव था दोनों के बीच. बौद्धिक स्तर भी लगभग समान. कोई किसी से उन्नीस नहीं. संयोग ही था कि दोनों ने कालेज में उस वर्ष जीव विज्ञान वर्ग में 11वीं कक्षा में प्रवेश लिया था और पहले दिन दोनों क्लास में साथसाथ बैठी थीं.

टीचर ने हाजिरी लेते समय पुकारा, ‘‘सांची राय.’’

‘‘यस मैडम,’’ उस की साथी सांची ने हाजिरी दी.

‘‘साखी कांत.’’

‘‘यस मैडम.’’

‘‘टीचर ने मौन साधा और चश्मे को नाक पर नीचे खिसका कर उन की तरफ गौर से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम दोनों जुड़वां हो क्या?’’

‘‘नहीं तो मैडम,’’ सांची ने उत्तर दिया.

‘‘तुम दोनों की डेट औफ बर्थ एक है और दोनों बहन लगती भी हो. नाम भी मिलतेजुलते पर सरनेम अलग,’’ टीचर ने बात वहीं खत्म कर हाजिरी लेना जारी रखा.

टीचर की बात पर दोनों एकदूसरे को आश्चर्य से देख गहराई से मुसकराई थीं, जैसे 2 भेदिए एकदूसरे का कोई भेद जान गए हों. पीरियड पूरा होने तक वे जान गईं कि उन का जन्मस्थान भी एक है. लेकिन वे यह नहीं जानती थीं कि उन का जन्म एक ही अस्पताल में हुआ है, लगभग एक ही समय पर.

उन के जन्म पर 2 परिवार खुश थे. बहुत खुश. दोनों के मातापिता का प्रथम परिचय नर्सिंग होम में ही हुआ. उन्होंने एकदूसरे को मिठाइयां खिलाते हुए बताया कि लड़कियां शुभ घड़ी में आई हैं. दोनों के पापा की पदोन्नति की सूचनाएं आज ही मिली हैं और स्थानांतरण के आदेश आते ही होंगे. खुशियों से सराबोर दोनों के द्वारा एकदूसरे को बधाइयां दी गईं और भविष्य में न भूलने का वादा किया गया. तभी दोनों के नामकरण एक ही अक्षर से किए गए सांची और साखी.

सांची राय के परिचय में उस के पिता आनंद भूषण राय के नाम का उल्लेख हो ही जाता. वे महत्त्वपूर्ण सरकारी अधिकारी जो थे. साखी कांत के नाम को पूर्णता उस के पिता के नाम अमर कांत से मिली. उसे अपना नाम अच्छा लगता था और पूर्ण भी, परंतु बहुतों को उस का नाम अधूरा लगता था क्योंकि उस से किसी जाति विशेष का आभास नहीं मिल पाता था. नाम सुन कर लोगों की जिज्ञासा अशांत सी रह जाती. उन का आशय समझ वह बहुत तेज मुसकराती, अपनी बड़ीबड़ी पलकें कई बार झपकाती और हंसी बिखेरते हुए खनकती आवाज में बात को हंसी में उड़ा देती, ‘‘जी, कांत कोई सरनेम नहीं है. मेरे पापा के नाम का हिस्सा है.’’ जिज्ञासु लगभग धराशायी हो जाता.

छुट्टी होने पर छात्राओं की भीड़ में वे साथसाथ कालेज के गेट से बाहर आईं. गेट के बाहर चौड़ी सड़क पर नेवीब्लू रंग की यूनीफौर्म में छात्राओं के झुंड थे और उन के स्वरों का कलरव. सड़क के उस पार अपनी कार के पास खड़ी साखी की मम्मी अपनी बेटी को भीड़ में पहचानने की कोशिश कर रही थीं. उन के आने का उद्देश्य अपनी बेटी को घर वापस ले जाने का तो था ही, उस से भी जरूरी था बेटी के रोज आनेजाने की व्यवस्था करना. इस के लिए वे एक औटो वाले से बात भी कर चुकी थीं. बड़े शहर की भीड़भाड़ को ले कर वे चिंतित थीं. जहां उन का निवास था, वहां से कालेज की दूरी काफी थी और उस रूट पर कालेज की बस सेवा नहीं थी.

छात्राओं की भीड़ में उन का ध्यान साखी ने भंग किया, ‘‘मम्मी, मैं इधर. इस से मिलिए, यह है मेरी नई फ्रैंड, सांची…सांची राय.’’

सांची ने प्रणाम के लिए हाथ जोडे़ ही थे कि साखी ने परिचय की दूसरी कड़ी पूर्ण कर दी, ‘‘सांची, ये हैं मेरी मम्मी.. बहुत प्यारी मम्मी.’’

मम्मी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कहां रहती हो बेटी?’’

‘‘जी, सिविल लाइंस में.’’

‘‘अरे मम्मी छोडि़ए,’’ साखी ने बात काटते और रहस्योद्घाटन सा करते हुए कहा, ‘‘मम्मी, ये मेरी जुड़वां है. इस की और मेरी डेट औफ बर्थ एक ही है और यह भी रावनवाड़ा में पैदा हुई. है न को इंसीडैंट?’’

‘‘अच्छा, वहीं की रहने वाली हो?’’

‘‘नहीं आंटी, उस समय मेरे पापा की पोस्टिंग वहां थी.’’

पास में खड़ी सरकारी गाड़ी का ड्राइवर उन के करीब आ खड़ा हुआ. सांची ने अपना बैग उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटी, ये मेरे पापा के ड्राइवर हैं, मुझे लेने आए हैं.’’

मम्मी ने घूम कर ड्राइवर की ओर देखा और पास खड़ी सरकारी गाड़ी को देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम ए.बी. राय साहब की बेटी तो नहीं?’’

औलाद की चाह बनी मुसीबत की राह

रमन की शादी हुए 6 साल हो गए, मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई. चूंकि दोनों पतिपत्नी धार्मिक स्वभाव के थे, इसलिए वे देवीदेवता से मन्नतें मांगते रहते थे, लेकिन तब भी बच्चा न हुआ. तभी उन्हें पता चला कि एक चमत्कारी बाबा आए हैं. अगर उन का आशीर्वाद मिल जाए, तो बच्चा हो सकता है. यह जान कर रमन और उस की बीवी सीमा उस बाबा के पास पहुंचे. सीमा बाबा के पैरों पर गिर पड़ी और कहने लगी, ‘‘बाबा, मेरा दुख दूर करें. मैं 6 साल से बच्चे का मुंह देखने के लिए तड़प रही हूं.’’

‘‘उठो, निराश मत हो. तुम्हें औलाद का सुख जरूर मिलेगा…’’ बाबा ने कहा, ‘‘अच्छा, कल आना.’’

अगले दिन सीमा ठीक समय पर बाबा के पास पहुंच गई. बाबा ने कहा, ‘‘बेटी, औलाद के सुख के लिए तुम्हें यज्ञ कराना पड़ेगा.’’

‘‘जी बाबा, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. बस, मुझे औलाद हो जानी चाहिए,’’ सीमा ने कहा, तो बाबा ने जवाब दिया, ‘‘यह ध्यान रहे कि इस यज्ञ में कोई भी देवीदेवता किसी भी रूप में आ कर तुझे औलाद दे सकते हैं, इसलिए किसी भी हालत में यज्ञ भंग नहीं होना चाहिए, नहीं तो तेरे पति की मौत हो जाएगी.’’

‘‘जी बाबा,’’ सीमा ने कहा और बाबा के साथ एकांत में बने कमरे में चली गई. वहां बाबा खुद को भगवान बता कर उस के अंगों के साथ खेलने लगा. सीमा कुछ नहीं बोली. वह समझी कि बाबाजी उसे औलाद का सुख देना चाहते हैं, इसलिए वह चुपचाप सबकुछ सहती रही. लेकिन शरद ऐसे बाबाओं के चोंचलों को अच्छी तरह जानता था, इसलिए जब उस की बीवी टीना ने कहा, ‘‘हमें भी बच्चे के लिए किसी साधुसंत से औलाद का आशीर्वाद ले लेना चाहिए,’’ तब शरद बोला, ‘‘औलाद केवल साधुसंत के आशीर्वाद से नहीं होती है. इस के लिए जब तक पतिपत्नी दोनों कोशिश न करें, तब तक कोई बच्चा नहीं दे सकता.’’

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‘‘मगर हम यह कोशिश पिछले 5 साल से कर रहे हैं. हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है?’’ टीना ने पूछा.

‘‘इस की जांच तो डाक्टर से कराने पर ही पता चल सकती है कि हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है. समय मिलते ही मैं डाक्टर से हम दोनों की जांच कराऊंगा.’’

टीना ने कहा, ‘‘ठीक है.’’

दोपहर को टीना की सहेली उस से मिलने आई, जो उसे एक नीमहकीम के पास ले गई. नीमहकीम ने टीना से कुछ सवाल पूछे, जिस का उस ने जवाब दे दिया. इस दौरान ही उस नीमहकीम ने यह पता लगा लिया था कि टीना को माहवारी हुए आज 14वां दिन है, इसलिए वह बोला, ‘‘तुम्हारे अंग की जांच करनी पड़ेगी.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब. मैं कब आऊं?’’ टीना ने पूछा.

‘‘जांच आज ही करा लो, तो अच्छा रहेगा,’’ नीमहकीम ने कहा, तो टीना राजी हो गई.

तब वह नीमहकीम टीना को अंदर के कमरे में ले गया, फिर बोला, ‘‘आप थोड़ी देर यहीं बैठिए और इस थर्मामीटर को 5 मिनट तक अपने अंग में लगाइए.’’

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टीना ने ऐसा ही किया.

5 मिनट बाद डाक्टर आया. उस के एक हाथ में अंग फैलाने का औजार और दूसरे हाथ में एक इंजैक्शन था, जिस में कोई दवा भरी थी, जिसे देख कर टीना ने पूछा, ‘‘यह क्या है डाक्टर साहब?’’ ‘‘इस से तुम्हारे अंग की दूसरी जांच की जाएगी,’’ कह कर नीमहकीम ने टीना से थर्मामीटर ले लिया और टीना को मेज पर लिटा दिया. इस के बाद वह उस के अंग में औजार लगा कर जांच करने लगा.

जांच के बहाने नीमहकीम ने टीना के अंग में इंजैक्शन की दवा डाल दी और कहा, ‘‘कल फिर अपनी जांच कराने आना.’’ टीना अभी तक घबरा रही थी, मगर आसान जांच देख कर खुश हुई. फिर दूसरे दिन भी यही हुआ. मगर उस दिन इंजैक्शन को अंग में आगेपीछे चलाया गया था. इस के बाद उसे 14 दिन बाद आने को कहा गया.

टीना जब 14 दिन बाद नीमहकीम के पास गई, तब वह सचमुच मां बनने वाली थी.

यह जान कर टीना बहुत खुश हुई. मगर जब यही खुशी उस ने अपने पति शरद को सुनाई, तो वह नाराज हो गया.

‘‘बता किस के पास गई थी?’’ शरद चीख पड़ा.

‘‘यह मेरा बच्चा नहीं है. मैं ने कल ही अपनी जांच कराई थी. डाक्टर का कहना है कि मेरे शरीर में बच्चा पैदा करने की ताकत ही नहीं है. तब मैं बाप कैसे बन गया?’’ शरद ने कहा.

शरद के मुंह से यह सुनते ही टीना सब माजरा समझ गई. वह जान गई कि नीमहकीम ने जांच के बहाने उस के अंग में अपना वीर्य डाल दिया था. मगर अब क्या हो सकता था. टीना औलाद के नाम पर ठगी जा चुकी थी. आज के जमाने में औलाद पैदा करने की कई विधियों का विकास हो चुका है. परखनली से भी कई बच्चे पैदा हो चुके हैं. यह सब विज्ञान के चलते मुमकिन हुआ है. फिर भी लोग पुराने जमाने में जीते हुए ऐसे धोखेबाजों के पास बच्चा मांगने जाते हैं. इस से बढ़ कर दुख की बात और क्या हो सकती है.

नाजायज संबंधों से बढ़ रहे अपराध

आम तौर पर समाज में घटित होने वाले अपराधों के तीन कारण होते हैं जर (रूपया-पैसा), जोरू(औरत),और जमीन.मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा अपराधिक घटनाएं नाजायज संबंधों की वजह से हो रही हैं.

समाज में सेक्स को लेकर खुलकर चर्चा न होने से नौजवानों के मन में सेक्स संबंधों को लेकर जिज्ञासा बनी रहती है. सेक्स का मजा लेने के लिए महिला, पुरुषों द्वारा बनाए गए नाजायज संबंध समाज की नजरों में देर तक छुपे नहीं रहते. नाजायज संबंधों के खुलासा होने पर परिवार में कलह और समाज में बदनामी होने लगती है. दोस्ती में विश्वासघात करके बनाये गये नाजायज संबंधों में लोग एक दूसरे के जान के प्यासे तक हो जाते हैं.

दोस्ती के नाम पर विश्वासघात करने का ऐसा ही मामला नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब ५० किमी दूर गोटेगांव थाना क्षेत्र अंतर्गत जामुनपानी गांव  में सामने आया है.

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लॉक डाउन की सख्ती के बीच जामुनपानी गांव के पास खेत में 21-22 अप्रैल की दरम्यानी रात दो युवकों की धारदार हथियार से गला काट कर नृशंस हत्या कर दी गई.पिपरिया लाठ गांव निवासी मोहन उम्र 30 साल  और कुंजी यादव  उम्र 18 साल दोनों ही जमीन सिकमी पर लेकर खेती करते थे . 21 अप्रैल को  रात 9 बजे दोनों अपने घरों से खाना खाकर खेत पर गए थे. दूसरे दिन दोपहर तक जब दोनों घर नहीं आए और मोबाइल पर संपर्क नहीं हुआ तो मोहन के पिता हीरालाल ने खेत सोचा कि खेत पर जाकर देखते हैं. खेत पर जाकर हीरालाल ने दोनों के शव रक्त रंजित अवस्था में पड़े देखे तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं .

हीरालाल द्वारा पुलिस चौकी झोतेश्वर में इसकी सूचना देने के पर गोटेगांव से पुलिस टीम  मामले की जांच के लिए पहुंची.  मौका मुआयना के बाद लाश का पंचनामा बनाकर गोटेगांव के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद शवों को उनके परिजनों के सुपुर्द किया गया. पुलिस की उपस्थिति में पिपरिया(लाठगांव) में दोनों की अर्थी एक साथ उठीं. लेकिन गांव के लोगों में मोहन और कुंजी के नाजायज संबंधों की खुसर-पुसर होती रही.

दोनों नौजवानों के नाजायज संबंधों की जानकारी गांव के लोगों के साथ घर परिवार के लोगों को भी थी.मृतक कुंजी यादव की दादी ने तो पुलिस के सामने ही गांव के एक युवक गुड्डा ठाकुर पर दोनों की हत्या का आरोप लगा दिया. पुलिस टीम भी  तफशीश में जुट गई.पुलिस ने 22 अप्रैल की रात खेत में बनी गुड्डन गौड़ की झोपड़ी में दबिश दी तो वह झोपड़ी में नहीं मिला।
23 अप्रैल को तड़के पुलिस ने एक बार फिर झोपड़ी में दबिश दी मगर उसकी झोपड़ी में मौजूद कुत्ता दूर से ही पुलिस को देख कर भौंकने लगा , जिस पर गुड्न गौड बिस्तर से उठा और चड्डी बनियान में ही जंगल की ओर भाग गया .जब पुलिस झोपड़ी में पहुंची तो चूल्हा की आग गरम थी, बिस्तर बिछा हुआ था उसने कपड़े और जूते वहीं पर उतार कर रखे थे. झोपड़ी में पुलिस को गुड्डन की बैंक पास बुक और फोटो मिली थी.

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जंगली रास्तों में पुलिस से छिपता फिर रहा गुड्डन

आखिरकर 23 अप्रैल की शाम को झोतेश्वर के हनुमान टेकरी मंदिर के पास पकड़ में आ ही गया.पुलिस पूछताछ में मोहन और कुंजी की हत्या करने का जुर्म कबूल करने के साथ जो कहानी सामने आई , उसमें हत्या का कारण दोस्ती में विश्वासघात कर बनाये गये नाजायज संबंध ही थे.

मोहन और कुंजी , गुड्डा ठाकुर के अच्छे दोस्त थे और इसी वजह से वे गुड्डा के घर आते जाते रहते थे. लेकिन मोहन की नजर गुड्डा की खूबसूरत बीबी रति (परिवर्तित नाम) पर टिकी रहती थी. तीखे नैन-नक्श और गठीले बदन की रति से मोहन हंसी मजाक कर लिया करता था. जब भी गुड्डा ठाकुर घर से बाहर रहता तो मोहन गुड्डा के घर पहुंच जाता. हंसी मज़ाक का सिलसिला धीरे धीरे आगे बढते देख एक दिन मोहन ने रति से कहा – ,” रति भाभी तुम तो मुझे इतनी सुन्दर लगती हो कि जी चाहता है तुम पर सब कुछ लुटा दूं”. रति को भी मोहन की ये अदायें भाने लगी थी तो उसने भी कह दिया-” तुम्हें रोका किसने है”.

फिर क्या था मोहन ने रति को अपनी बाहों में भर लिया और उसके ओंठ चूमने लगा. देखते ही देखते दोनों तरफ से लगी जिस्मानी प्यास तभी बुझी थी, जब तक वे एक उन्हें तृप्ति का एहसास न हो गया.

आखिरकार इन नाजायज संबंधों की जानकारी एक दिन गुड्डा को भी लग गई तो उसने दोनों दोस्तों को समझाने का प्रयास किया,मगर मोहन और कुंजी ने अपनी गल्ती मानने की बजाय उल्टे गुड्डा की मर्दानगी का मजाक बनाना शुरू कर दिया.नाजायज संबंधो की बजह से पति-पत्नी में झगड़े होने लगे और उसकी बीवी अपने मायके जबलपुर के पास चरगवा चली गई.

गुड्डा अपनी घर गृहस्थी उजड़ने से परेशान रहने लगा था .समाज में भी उसकी बदनामी हो गई थी. ऐसे में गुड्डा के दिलों दिमाग में मोहन को  अपने रास्ते से हटाने की योजना बनती रहती थी.

प्रतिशोध की आग में जल रहे गुड्डा ने  निश्चय कर लिया था कि वह मोहन को मौत के घाट उतारकर ही दम लेगा. गुड्डा को पता तो था ही कि मोहन और कुंजी रोज ही खेत पर आते हैं . 21 अप्रैल की रात वह खेत की टपरिया से ही मोहन और कुंजी पर नजर रख रहा था. फसल की गहाई पूरी होने के बाद जब मोहन और कुंजी खेत पर सो गये तो रात 2 बजे के लगभग वह कुल्हाड़ी लेकर खेत पर पहुंच गया और गहरी नींद सो रहे मोहन और कुंजी के सिर पर धड़ाधड़ क‌ई वार करके उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद सुला दिया.उसने कुंजी की हत्या इसलिए की कि कुंजी मोहन और  रति के मिलने में सहायता करता था.

अक्सर ही नाजायज संबंधों का  इसी तरह से दुखद अंत होता है.इस घटना में भी जहां मोहन और कुंजी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तो पत्नी की वजह से हुई बदनामी के कारण गुड्डा ठाकुर को दोहरी हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.

लॉकडाउन फूड: कॉफी टार्ट मिनी एप्पल पाई

लेखिका-रश्मि देवर्षि

टार्ट की सामग्री-

मैदा 1 कप,

ओट्स पाउडर 2 छोटे चम्मच,

1/2 कप ठंडा बटर छोटे टुकड़े में कटा हुआ,

कॉफी पाउडर 2 छोटी चम्मच,

ब्राउन शुगर 2 छोटी चम्मच,

पानी आवश्यकता के अनुसार और दूध 2 छोटी चम्मच

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स्टफिंग की सामग्री-

2 सेब छिले और छोटे टुकड़ों में कटे हुए

पिसी चीनी 4 छोटी चम्मच

दालचीनी पाउडर 1 छोटी चम्मच

चॉकलेट चिप्स 2 छोटी. चम्मच

एक बाउल में सारी सामग्री अच्छे से मिला कर रख लें

टार्ट बनाने की विधि-
मैदा में ओट्स पाउडर और बटर डालकर इन्हें अच्छे से मिलाकर इसमें कॉफी पाउडर, ब्राउन शुगर और दो से तीन चम्मच पानी डालकर सख्त आटा लगा लें. इस आटे की पूरी के आकार की लोई बेलें और इसे छोटे आकार के टार्ट मोल्ड में रखकर टार्ट का आकार दें. तैयार किये हुए टार्ट के मोल्ड को फ्रिज में बीस मिनट के लिये रखें. बीस मिनट बाद 180℃ प्री-हीटेड अवन में 10 मिनट के लिए बेक करें.

10 मिनट बाद अवन से टार्ट निकाल कर इसमें सेब की स्टफिंग भर दें. पहले तैयार किये हुए टार्ट के आटे की पतली-पतली पट्टियां बनाएं और स्टफिंग के ऊपर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पहले आड़ी और फिर तिरछी पट्टियां लगाकर इसे जाली की तरह कवर करें. पट्टियों के सिरों को बेक हो चुके  निचले हिस्से से ठीक से चिपका दें. पट्टियों पर दूध से ब्रशिंग करें तथा फिर 180℃ पर 10 मिनट के लिए बेक करें.

अब भगवान को क्यों चाहिए सरकारी सम्मान?

रामायण सीरियल में राम का किरदार निभाने बाले अरुण गोविल को कोई 33 साल बाद याद आया कि उन्हें अभी तक किसी सरकार ने सम्मान नहीं दिया है  . 62 साल के हो चले अरुण मेरठ से मुंबई गए तो अपने भाई के कारोबार में हाथ बंटाने थे लेकिन जल्द ही उन्हें गलतफहमी हो आई थी कि वे तो बने ही फिल्मों के लिए हैं लिहाजा कोशिश करने पर कुछ फिल्में मिलीं जो उन्हीं की तरह सी ग्रेड की थीं लेकिन थोड़ी बहुत चली सिर्फ एक जिसका नाम था सावन को आने दो . यह फिल्म बड़जात्या केंप की थी इसलिए इसका चलना लाजिमी था पर अरुण गोविल को फिल्म इंडस्ट्री में हाथों हाथ नहीं लिया गया था .

उनके हिस्से छोटे मोटे रोल आते रहे तो उन्होने भगवान बन जाने की ठान ली और देखते ही देखते बन भी गए . रामानन्द सागर से वे मिले और खुद राम की भूमिका निभाने की पेशकश की तो थोड़ी सी ना-नुकुर के बाद बात बन गई . देवी देवताओं के रोल निभाना अपेक्षाकृत आसान काम होता है क्योंकि इसमें कलाकार को कुछ खास नहीं करना रहता आधे से ज्यादा काम तो मेकअप से ही हो जाता है .

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रामायण छोटे पर्दे पर चल निकला तो अरुण पर दौलत और शोहरत की बरसात होने लगी . वे जहां भी जाते थे उनके पैर पड़ने बालों और आरती उतारने बालों की भीड़ उमड़ने लगती थी . हालांकि उनके पहले धार्मिक फिल्मों में देवताओं के रोल निभाने बाले साहू मोड़क और भारत भूषण भी कम लोकप्रिय नहीं हुये थे लेकिन इस सीरियल की बात और थी . तब टीवी नया नया आया था और लोग भी फुरसतिए होते थे सो रामायण सुपर हिट हुआ . उस दौर में लोग इतने अंधविश्वासी और बौराये हुये थे कि सीरियल शुरू होने के साथ ही अगरबत्ती जलाकर टीवी के सामने रखते थे और टीवी पर ही राम सीता लक्ष्मण और हनुमान के चरण छूते थे .

लॉक डाउन के दौरान सरकार ने लोगों का ध्यान धरम करम में उलझाए रखने की गरज से रामायण दौबारा शुरू किया तो इसे 1988 जैसा रेस्पोंस नहीं मिला . नई पीढ़ी ने इस में दिलचस्पी नहीं ली क्योंकि उसकी अपनी प्राथमिकताएं है जिन पर ये पौराणिक पात्र खरे नहीं उतरते बल्कि फूहड़ ही लगते हैं . इसी दौरान फिर रामायण के पात्रों की चर्चा हुई और अरुण गोविल भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुये .

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अब तक गंगा जी का बहुत पानी बह चुका था खुद अरुण को भी समझ आ गया था कि वह दौर और था और यह दौर और है , लेकिन जाने क्यों उनके दिल की दबी कसक या ख़्वाहिश जुबां तक आ ही गई कि राम की भूमिका निभाने पर उन्हें किसी सरकार ने सम्मान नहीं दिया उत्तरप्रदेश में वे पैदा हुये थे और मुंबई में सालों से रह रहे हैं इसके बाद भी …..

अगर राम का रोल नहीं मिलता तो तय है अरुण गोविल भी 80 -90 के दशक के कई कलाकारों की तरह गुमनामी का शिकार होकर रह जाते जिन्हें 2 -4 फिल्में मिलीं लेकिन अभिनय प्रतिभा न होने के चलते दर्शकों ने उन्हें नकार दिया . अब जब रामायण दोबारा दिखाई गई तो उन्हें क्यों याद आ रहा है कि सरकार उन्हें सम्मान देने की अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाई   . शायद ही अरुण गोविल बता पाएँ कि उन्हें कोई सरकार सम्मान क्यों देती या दे . उन्होने ऐसा किया क्या है . राम का रोल निभाना कोई सरकारी काम था क्या और इससे किसका क्या भला हुआ . उन्होने एक्टिंग की थी जिसका मेहनताना उन्हें मिला था लोकप्रियता भी अपार मिली थी ठीक वैसे ही जैसे शोले के गब्बर सिंह यानि अमजद खान को मिली थी .

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पर अरुण  33 साल बाद सरकारी सम्मान के लिए किलप रहे हैं तो इसे लालच और हवस के अलावा इस नजरिए से भी देखा जाना चाहिए कि केंद्र में भगवा सरकार है, अयोध्या में महंगा और भव्य राम मंदिर बन रहा है और बेगारी में बुढ़ापा काट रहे ये भूतपूर्व रामचंद्र जी भी बहती गंगा में हाथ धोना चाह रहे हैं  . कल के इस राम भगवान का दिल अगर किसी सरकारी सम्मान के लिए मचल रहा है तो इसके दूरगामी माने भी भगवा गेंग के हो सकते हैं.

Coronavirus को हराने के बाद परिवार के साथ ऐसे वक्त बिता रही हैं कनिका कपूर

बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर पिछले महीने से लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. इसकी वजह है कनिका का कोरोना का शिकार होना. अब कनिका कपूर इस जंग से लड़कर अपने घर वापस आ चुकी हैं. कनिका को एक लंबे वक्त तक कोरोनटाइन रखा गया था.

इस दौरान इन्हें जमकर सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया. लोगों ने कनिका पर आरोप लगाए थे कि वह जान बुझकर खुद को कोरोना को छुपाने की कोशिश कर रही थीं.

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वह लंदन से आने के बाद घर पर कोरोनटाइन होने की जगह वह घूम-घूम कर पार्टीयां करती नजर आई. जिस वजह से पार्टी में मौजूद लोगों को भी इस खतरनाक बीमारी का सामना करना पड़ा.

 

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All you need is a warm smile, a warm heart and a warm cup of tea ☕️ #familytime #lucknowdiaries #stayhomestaysafe

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हालांकि अब कनिका सुरक्षित अपने घर पर आ गई हैं. घर आने के बाद कनिका ने पहली तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा किया है जिसमें वह अपने मम्मी-पापा के साथ चाय पीते नजर आ रही हैं.

फोटो शेयर करते हुए कनिका ने लिखा है कि ‘हमें सिर्फ एक मुस्कान, जोश भरा दिल के साथ एक कप चाय चाहिए’.

इस तस्वीर में कनिका कपूर बिल्कुल स्वस्थ्य नजर आ रही हैं. कनिका इन दिनों अपने परिवार के साथ लखनऊ स्थित घर में रह रही हैं.

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इस बीच कनिका ने अपने सफाई में जवाब देते हुए कहा था कि मैं गलत नहीं थी जब मैं यूको से घर से आ रही थी तब मेरा चेकअप हुआ था और मेरा रिपोर्ट निगेटिव आया था. बेवजह लोग मुझे परेशान कर रहे हैं. बिना गलती की लोग मुझ पर आरोप लगा रहे हैं.

बता दें कनिका कपूर इससे पहले लंदन में अपने परिवार के साथ रहती थीं. वह होली पार्टी के लिए अपने होमटाउन वापस आई थी. जिसके बाद यह सारी घटना हुई है. इस दौरान कनिका के बच्चे भई उन्हें बहुत ज्यादा मिस कर रहे थे. अब कनिका परिवार के साथ खुशी का समय बीता रही हैं.

मन ‘मानी’ की बात: आयुर्वेद और तीज त्यौहारों के इर्दगिर्द सिमटी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई मन की बात के 64वे एपिसोड पर गौर करें तो उसके प्रमुख की बर्ड्स यूं बनते हैं – पवित्र रमजान , अक्षय तृतीया , इबादत , अग्नि शेषम , बिहू , वैशाखी , विशू ,पुथन्डु ,ईस्टर, आयुर्वेद,  योग , समृद्ध परम्परा , पांडव ,अक्षय पात्र , ईद , भगवान श्रीकृष्ण , जैन परंपरा , ऋषभदेव , भगवान बसवेश्वर

थोड़ी बहुत उम्मीद थी कि इस मासिक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी इस बार राहत की , मजदूरों की , रोजगार की , भुखमरी की और दम तोड़ते उदद्योगों की बात करेंगे लेकिन उन्होने कई गंभीर सामयिक मुद्दों से मुंह मोड़े रखा तो समझने बाले सहज समझ गए कि अब देश की अर्थव्यवस्था और जीडीपी जैसे विषयों पर सोचना ही बंद कर दिया जाए .  ये सब मिथ्या बातें हैं इनका कोई महत्व नहीं . महत्व है तो धर्म और धार्मिक बातों का , मोदी लगभग 30 मिनिट लोगों को यही समझाने की कोशिश करते नजर आए .

लाक डाउन और कोरोना के कहर से हैरान परेशान और अनिशिचतता में जैसे तैसे जी रहे लोगों को मोदी मेसेज यही लगता महसूस हुआ कि वे सब चिंताएँ छोड़ प्रभु का ध्यान करें .  खासतौर से मुसलमानों से उन्होने गुजारिश की कि रमजान के पवित्र महीने में वे ज्यादा से ज्यादा इबादत करें ( वैसे भी लोगों के पास अब करने को बचा क्या है ) . क्या ज्यादा इबादत करने से कोरोना भाग जाएगा , यह बात वे साफ कर देते तो पूरे 130 करोड़ लोग इसमें जुट जाते फिर डाक्टरों की , इलाज की और अस्पतालों की जरूरत ही नहीं रह जाती .

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हकीकत तो यह है कि अब नरेंद्र मोदी के पास बोलने कुछ खास बचा नहीं है . उन्हें मालूम है कि इस घड़ी में ज्यादा लंबी फेंकाफाँकी लोग झेल नहीं पाएंगे लिहाजा उनकी बात भगवान और धर्म के इर्द गिर्द घूमती रही , यह धर्माब्लंबियों के लिए बड़ी कारगर दवा और आजमाया हुआ नुस्खा है . यह भी एकतरफा न लगे इसलिए मौके का फायदा उठाते हुये इसमें रमजान और ऋषभदेव भी घुसेड़ दिये गए .  इससे यह भी साबित हो गया कि ऊपर बाले के मामले पर सरकार की राय नेक और एक है कि किसी धर्म का भगवान तो सुनेगा .

दूसरे यह न तो मौका था और न ही कोई वजह थी कि आयुर्वेद का प्रचार किया जाए बाबजूद यह जानने समझने के कि दूसरी तमाम बीमारियों की तरह कोरोना का इलाज भी एलोपेथिक पद्धति से हो रहा है . इस वायरस के देश में आने के बाद जरूर कुछ लोगों ने कोशिश की थी कि गोबर , कपूर , गिलोय  और गौ मूत्र से ही कोरोना को भगा दिया जाए .  ये ही वे लोग हैं जिनहोने इस जानलेवा वायरस की भयावहता को तात्कालिक समझा और इसे भी भुनाने की कोशिश की जो अब मूर्खता ही साबित हो रही है . प्रसंगवश यह बताना जरूरी है कि चूंकि कोरोना के बारे में उल्लेखनीय और उपयोगी जानकारिया वैज्ञानिकों के पास भी नहीं हैं इसलिए भाई लोगों और भक्तों ने तो हमेशा की तरह अज्ञानता पर अपनी दुकान चमकाने यह तक प्रचार शुरू कर दिया था कि नीबू का सेनेटाइजर बनाकर हाथ धोओ कोरोना दम तोड़ देगा .

अभी भी देश भर में कोरोना भगाने गायत्री मंत्र का जाप किया जा रहा है यज्ञ हवन किए जा रहे हैं पर कोरोना है कि भाग नहीं रहा है . हाँ इतना जरूर हो रहा है कि समाज में पसरा अंधविश्वास कायम है और , और भी पुख्ता हो रहा है . मोदी जी नहीं चाहते कि मुसलमान भी इस कुचक्र और जाल से बाहर आयें सो उन्होने कहा ज्यादा से ज्यादा इबादत करें शायद भगवान और अल्लाह मिलकर कोरोना को नष्ट कर दें . बात सही है कि कोरोना से मिलजुल कर लड़ना है इसलिए ऊपर बालों को भी एक हो जाना चाहिए लेकिन बशर्ते वे कहीं हों तो ….

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मन की बात के ताजे एपिसोड में तुक की बात तो कहीं थी नहीं पर गैरज़रूरी और बेतुकी बातों की भरमार थी .  लगा ऐसा भी कि मुद्दों से दूर नरेंद्र मोदी केवल अक्षयतृतीया की शुभकामनायें रेडियो के जरिये देना चाह रहे थे .  बाकी लड़ना है , स्वास्थकर्मी मोर्चे पर डटे हैं , दो गज की दूरी रखें , थूके नहीं , मुंह पर गमछा बांधे जैसी चलताऊ बातों जो प्रवचन ज्यादा लगती हैं का मूल समस्या से कोई लेना देना है नहीं .

लोगों को इस वक्त चिंता यह है कि जो हो रहा है वह अपनी जगह है लेकिन सरकार उनके लिए क्या कर रही है . लाक डाउन के बाद उनके हाथों को रोजगार मिले इसके लिए सरकार क्या योजना ला रही है . 40 करोड़ रोज कमाने खाने बालों के हाथ पाँव फूले हुये हैं जिन्हें अंदाजा है कि मुफ्त का सरकारी राशन और नाम मात्र की राहत राशि  उनकी परेशानियों का हल नहीं है और वह भी सभी को नहीं मिल रहे हैं . समस्या है सरकार का फोकस 10 – 12 करोड़ लोगों पर होना जिनमे से 4 -5 करोड़ अंन्धभक्त हैं . मन की बात इन्हीं लोगों के लिए थी कि तुम लोग डटे रहो बाकी सब हम मेनेज कर लेंगे .

मेनेज करने का सीधा सा मतलब यह है कि कोई क्रांति या विद्रोह सरकार के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा लेकिन इसके लिए मध्यमववर्गीयों को थोड़ा त्याग करने प्रस्तुत रहना चाहिए .  यह बात लोग बिना समझाये समझ भी रहे हैं इसीलिए डेढ़ साल तक केंद्रीय कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते में कटोती पर कोई खास हलचल नहीं हुई .  यह वर्ग भाजपा का बड़ा वोट बेंक है .

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मन की बात में एक बार विकास शब्द का उल्लेख होना यह स्वीकारोक्ति तो है कि हम अभी भी विकासशील हैं , कल भी थे और कल भी रहेंगे .  5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की बात अब नरेंद्र मोदी नहीं करते और अगली किसी मन की बात में कहेंगे भी कि हमारी तो पूरी तैयारी थी लेकिन कोरोना ने सब गुड गोबर कर दिया और इससे असहमत भी नहीं हुआ जा सकता हाँ इतना जरूर याद रखा जा सकता है कि देश की अर्थव्यव्स्था कोरोना के कहर के काफी पहले से  ही ध्वस्त थी .

बहरहाल संकट और परेशानियों के इस दौर में मन की बात के जरिये नरेंद्र मोदी आम लोगों मजदूरों ,युवाओं , किसानों और छोटे मँझोले व्यापारियों को आश्वस्त नहीं कर पाये हैं इससे ज्यादा हर्ज की बात यह है कि वे 30 में से लगभग 18 मिनिट भगवान , आयुर्वेद , रमजान और इबादत बगैरह करते और कहते रहे जिससे समस्याएँ हल नहीं होतीं उल्टे अनदेखी का शिकार होते और बढ़ती ही हैं . आने बाले वक्त में सरकार इस पर कटघरे में भी खड़ी होगी लेकिन तब तक जो और जितना बिगड़ चुका होगा उसकी भरपाई करने में सदियों लग जाएंगी .

जो बिगड़ा है वह उन बेकबर्ड लोगों का बिगड़ा है जो गाँव देहातों की जकड़नों से जूझते शहरों तक पहुँच पाये थे .  इनका संघर्ष और मकसद सिर्फ रोजगार नहीं था बल्कि अपनी अगली पीढ़ी के लिए शिक्षा और रोजगार के सम्मानजनक मौके मुहैया कराना भी था लेकिन कोरोना और लाक डाउन ने इन्हें वहीं धकेल दिया है जहां से कभी हिम्मत जुटाकर ये लोग चले थे . अफसोस इस बात का है  कि मन की किसी बात में इनके लिए कुछ नहीं होता क्योंकि ये बेकबर्ड हैं.

#coronavirus: लॉकडाउन में बढ़ी ईएमआई के दिक्कते

लॉकडाउन के दौरान ऑटो रिक्शा चालकों और कैब ड्राइवर दोनो का कारोबार ठप्प हो गया है. गाड़िया स्टैंड पर खड़ी हो गई है और उसको चलाने वाले घरो में बैठ गए है. परेशानी की बात यह है कि जो गाड़िया बैंक के लोन पर है उनकी ईएमआई कैसे चुकाई जाय ?

एक माह से ऊपर का समय बीत गया लखनऊ के ऑटो रिक्शा चालक अपने घरों पर बिना काम काज के बैठे है. उनकी ऑटो टैक्सी स्टैंड पर या घरो में खड़ी है. इनमे से कुछ ऑटो चालक ऐसे है जिन्होंने खुद बैंक से लोन लेकर अपना काम शुरू किया और कुछ ऑटो चालक ऐसे है जो केवल रोज की दिहाड़ी के आधार पर अपना काम करते है.

ऐशबाग एरिया में रहने वाले सुनील मिश्रा बताते है “साल भर पहले हमने 4 ऑटो रिक्शा बैंक से लोन पर लिए था. बैंक से लोन लेकर 10 लाख की पूंजी लगाई थी.अब शहर में तमाम ऑटो रिक्शा होने से पहले जैसी कमाई नही रह गई थी फिर भी हर दिन एक ऑटो से 1 हजार रुपये प्रतिदिन की बचत हो जाती थी. इससे हमारा अपना और 4 ऑटो चालको के परिवारों का भरण पोषण हो रहा था. पिछले एक माह से लोक डाउन के कारण सभी 4 ऑटो रिक्शा बिना किसी काम के खड़े है. कमाई तो हो ही नही रही उल्टे बैंकों को दी जाने वाली लोन की ईएमआई का पैसा कैसे दिया जाए समझ मे नही आ रहा.”

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सुनील मिश्रा की ऑटो किराए पर चलाने वाला मोहम्मद शाहिद कहता है “हम ऑटो रिक्शा चला कर अपने परिवार का भी पालन पोषण कर रहे थे और अपने ऑटो रिक्शा मालिक को भी पैसा दे रहे थें. अब सब भुखमरी के शिकार हो रहे है. हमारी परेशानी है कि हम किस तरह से अपना पेट पाले और किस तरह से बैंक का लोन चुकाए”.

ईएमआई बनी मुसीबत :

ऑटो रिक्शा चालकों और मालिको को दोहरी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. एक तो उनका कारोबार खत्म हो गया है दूसरे उनको लोन ली गई बैंक की किश्त चुकानी है. सुनील मिश्रा बताते है “बैंक समय पर ईएमआई खाते से काट रहे है. एक भी माह की ईएमआई नही देने से अगले माह ब्याज सहित यह पैसा देना पड़ेगा. अभी यह साफ नहीं है कि कब तक लॉक डाउन खुलेगा. और कब हमारा काम शुरू होगा”.

परिवहन विभाग ऑटो और टैक्सी के लिए कोरोना संकट से निपटने के लिए कुछ उपाय करने की सोच रहा. इनमे एक उपाय यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए. इसका मतलब यह होगा कि ऑटो में पहले की तरह 3 सवारियों को नही बैठाया जा सकेगा. यह हालत कम से कम 6 माह रहने की उम्मीद है. ऐसे में ऑटो रिक्शा चालकों के सामने परिवहन विभाग की नई गाइड लाइन किसी मुसीबत से कम नही होगी. हालांकि अभी परिवहन विभाग के अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नही है. उनका कहना है कि कोरोना को रोकने के लिए लॉक डाउन खत्म होने के बाद ऑटो रिक्शा चालकों के लिए भी नई गाइड लाइन विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशो के अनुरूप बनाई जा सकेगी.

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लखनऊ में ही केवल 40 हजार ऑटो रिक्शा चालक है. सभी के साथ ऐसी परेशानी आ रही है. केवल ऑटो रिक्शा चालकों के सामने ही यह हालत नही है. पिछले एक साल में ओला और उबर कैब चालको ने भी बैंक से लोन लेकर अपना बिजनेस शुरू किया था. इन सभी ने अपने अपने नाम से बैंक से लोन लिया था. अब यह लोग भी ईएमआई नही दे पा रहे है.

मुसीबत में कैब ड्राइवर :

लखनऊ में करीब 10 हजार ऐसे लोग है जो ओला उबर के लिए गाड़ियों के लिए बैंक से लोन ले चके है. अब यह भी एक माह से बन्द है. ऐसे में कमाई तो खत्म हुई ही है परेशनी यह है कि यह अपनी बैंक की ईएमआई कैसे चुकाए.

कैब ड्राइवर नरेश यादव बताते है “हम मुम्बई में पहले टैक्सी चलाते थे. घर वालो की परेशानी को देख कर हम लखनऊ वापस आ गए. यँहा बैंक से लोन लेकर कार ली और उसका प्रयोग कैब के रूप में करने लगे.हर माह की गाड़ी की किश्त काट कर इतना बच जाता था कि परिवार का भरण पोषण हो जाये. लॉक डाउन के बाद अब सब कुछ ठप्प हो गया है.आगे क्या होगा कैसे बैंक की किश्त जाएगी और कैसे घर परिवार चलेगा समझ नही आ रहा है.

 

# lockdown : टमाटर हुआ खराब हो गई फसल तबाह

टमाटर को बोने वाले किसानों की तो मानो कमर ही टूट गई है. एक ओर कोरोना का डर सता रहा है, वहीं दूसरी ओर फसल बचाने की चिंता. ऊपर से मौसम भी अठखेलियां कर रहा है. कभी जम कर बारिश  हो रही है, तो कहीं ओले गिर रहे हैं. इस वजह से फसल में रोग व कीट लग रहे हैं.

लौकडाउन लगने के बाद जब इन किसानों को खेतों में जा कर काम करने की छूट दी गई तो ये किसान खेतों की ओर दौड़ पड़े, तब तक काफी देर हो चुकी थी. वजह, वहां के खेतों में टमाटर ही टमाटर हैं, लेकिन ज्यादातर खराब हैं क्योंकि समय पर कीटनाशक दवा का छिड़काव नहीं हो पाया.

वहीं दूसरी वजह, लौकडाउन में कीटनाशक दुकानों पर ताले लटके हुए थे, इस वजह से ये किसान कीटनाशक खरीद नहीं पाए और समय पर दवा नहीं छिड़क सके.

इसी तरह की दोचार समस्याओं से जूझ रहे किसानों के सामने माली संकट गहरा गया है, वहीं बचा कर रखे पैसे भी खत्म होने के कगार पर हैं. इतना ही नहीं, किसानों ने कर्ज ले कर टमाटर की फसल उगाई थी, पर अब टमाटर के खरीदार ही नहीं मिल रहे. इस वजह से वे साहूकारों का पैसा नहीं लौटा पा रहे हैं.

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इन किसानों के सपने अब बुरी तरह टूट चुके हैं. समस्याएं विकराल रूप लिए खड़ी हैं. एक ओर मंडी में टमाटर की आवक कम हुई है, वहीं टमाटर के पौधों में तमाम तरह की बीमारी लग गई है. खेतों में समय पर कीटनाशक छिड़काव नहीं हो पाया. इस वजह से टमाटर की पूरी फसल ही तबाह हो गई.

वैसे, टमाटर में मोजैक बीमारी लगने से फलन में जहां कमी आई है, वहीं पत्तियां  भी पीली पड गई हैं और तना सड़ गया है. वहीं, मौसम में अचानक आए बदलाव से टमाटर में ब्लाइट रोग लग गया है.

इस रोग में टमाटर के पौधों के पत्तों पर काले धब्बे पड जाते हैं. इस से नजात पाने के लिए किसानों को समय रहते दवा का छिडकाव करना चाहिए, पर ऐसा हो न सका.

वैसे, इस बीमारी से नजात पाने के लिए ब्लाईटौक्स 30 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर पौधों पर छिडकाव करें. फिर भी पौधों पर असर न दिखे तो 10-12 दिन के अंतराल पर फिर से दोबारा छिडकाव करें.

मुरादनगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं, जहां किसानों की टमाटर की फसल खराब हो गई. किसानों की समस्या यह है कि वे पहले खुद को तो कोरोना से बचा लें. वहीं मजदूरों की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है.

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लौकडाउन में सब्जी की मंदी है. यही कारण है कि कोई बड़ा कारोबारी उसे नहीं खरीद रहा. इस प्रतिबंध की वजह से किसान खुद भी मंडी तक टमाटर नहीं पहुंचा सकते. अगर वे किसी तरह टमाटर मंडी तक पहुंचा भी देते हैं तो उन्हें इस की पूरी लागत नहीं मिल पाती है. उलटा लागत से अधिक ट्रांसपोर्ट का खर्चा आ जाता है.

टमाटर की खेती करने वाले एक किसान का कहना है कि इस बार हमें बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है क्योंकि टमाटर की खेती खराब हो चुकी है. और जो टमाटर बचे हैं, उस के लिए खरीदार नहीं हैं. ऐसे में हम बहुत परेशान हैं.

कुछ ऐसे ही हालात दूसरे किसानों के भी हैं. ठेके पर खेत ले कर टमाटर की खेती करने वाला एक किसान बताता है कि हमारी कमाई का यही जरिया है, लेकिन बीमारी लगने से खेती ही बरबाद हो गई. मुसीबत यह है कि एक तो टमाटर की खेती में लागत नहीं निकल पा रही है, वहीं जमीन मालिकों को भी पैसा देना होता है. एक बीघा टमाटर की खेती करने पर 12,000 से ले कर 14,000 रुपए की लागत आती है, वहीं इसे बेचने पर किसानों को 40,000-50000 रुपए तक की आमदनी होती थी, लेकिन इस बार आमदनी कुछ है ही नहीं.

वहीं एक और किसान के मुताबिक, इस बार टमाटर की 5 से 6 बीघा फसल में तकरीबन 4 लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है. अगर वे सब्जियों को मंडी ले जाने की कोशिश करते भी हैं तो रास्ते में पुलिस तंग करती है यानी एक तरफ कीटनाशक दवा की कमी से टमाटर खराब हो गए हैं, जो बचे भी हैं उसे मौसम ने बरबाद करने में कसर नहीं छोड़ी है.

यही वजह है कि सब्जी की बड़ी मंडियों में टमाटर पहुंच ही नहीं पा रहा है. अगर किसी वजह से पहुंच भी जाए तो वहां उचित कीमत नहीं मिल पा रही. वहीं बाहर के देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान वगैरह में पाबंदी लगने के कारण टमाटर नहीं पहुंच पा रहा है. इस वजह से टमाटर पडे़पडे़ सड़ रहे हैं या खराब हो रहे हैं.

टीकमगढ़ कसबे का एक किसान अपनी परेशानी कहता है कि उस ने कर्ज ले कर 2 एकड़ में टमाटर की फसल तैयार की थी, पर रोग लगने के कारण टमाटर की फसल काली पड़ने के साथ ही सूख गई. अब वह परेशान है कि उस की रोजीरोटी कैसे चलेगी.

एक ओर उत्तर भारत में बीमारी का गहराता संकट है, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र  व दक्षिण भारत के कई इलाकों में किसानों के खेतों में जहां टमाटर की बंपर पैदावार हुई है, पर वहां खरीदार नहीं मिल रहे. औनेपौने दामों में टमाटर के बिकने से किसान परेशान हैं.

उत्तर गुजरात के गांवों में रोज हजारों किलो टमाटर सडकों पर फेंके जा रहे हैं. वजह, मुनासिब दाम न मिलना है. वहां की मंडियों में टमाटर की कीमत महज 2-3 रुपए या इस से कम है. वहीं गुजरात के साणंद जिले के आसपास के गांवों में किसान बाजार में बेचने के बजाय जानवरों को खिलना बेहतर समझ रहे हैं. वजह टमाटर के दाम में आई भारी गिरावट है.

गुजरात में तकरीबन 50,000 टन टमाटर का उत्पादन होता है, वहीं इस साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. लेकिन उत्पादन बढ़ने के बावजूद पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों को होने वाला एक्सपोर्ट भी बंद है. घरेलू मांग कम होने से किसानों के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं. ऐसे किसानों को सरकार से उम्मीद है कि सरकार कम से कम ट्रांसपोर्ट में सब्सिडी दे ,ताकि इन का यह सीजन फेल न हो. पर, किसानों के सामने संकट है कि टमाटर के दाम खेतों से मंडियों तक की ढुलाई लागत से भी नीचे जा चुके हैं.

राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा इकटठा किए गए आंकडों के मुताबिक, महाराष्ट्र में नासिक जिले की बेंचमार्क पिंपलगांव मंडी में पिछले दिनों अच्छी क्वालिटी वाला टमाटर डेढ़ से 2 रुपए प्रति किलों की दर पर बिका. दामों के इस स्तर ने किसानों को चिंता में डाल दिया, क्योंकि खेतों से मंडी तक की ढुलाई लागत इस से कहीं ज्यादा है.

इन किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. छोटे व मंझोले किसानों  पर दोहरीतिहरी मार पड़ी है. इन किसानों को सरकार से उम्मीद तो है, पर कितनी, कहना मुश्किल है. अब सरकार व प्रशासन को समझना है कि इन किसानों की समस्याएं कैसे हल की जाएं.

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