प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई मन की बात के 64वे एपिसोड पर गौर करें तो उसके प्रमुख की बर्ड्स यूं बनते हैं – पवित्र रमजान , अक्षय तृतीया , इबादत , अग्नि शेषम , बिहू , वैशाखी , विशू ,पुथन्डु ,ईस्टर, आयुर्वेद, योग , समृद्ध परम्परा , पांडव ,अक्षय पात्र , ईद , भगवान श्रीकृष्ण , जैन परंपरा , ऋषभदेव , भगवान बसवेश्वर
थोड़ी बहुत उम्मीद थी कि इस मासिक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी इस बार राहत की , मजदूरों की , रोजगार की , भुखमरी की और दम तोड़ते उदद्योगों की बात करेंगे लेकिन उन्होने कई गंभीर सामयिक मुद्दों से मुंह मोड़े रखा तो समझने बाले सहज समझ गए कि अब देश की अर्थव्यवस्था और जीडीपी जैसे विषयों पर सोचना ही बंद कर दिया जाए . ये सब मिथ्या बातें हैं इनका कोई महत्व नहीं . महत्व है तो धर्म और धार्मिक बातों का , मोदी लगभग 30 मिनिट लोगों को यही समझाने की कोशिश करते नजर आए .
लाक डाउन और कोरोना के कहर से हैरान परेशान और अनिशिचतता में जैसे तैसे जी रहे लोगों को मोदी मेसेज यही लगता महसूस हुआ कि वे सब चिंताएँ छोड़ प्रभु का ध्यान करें . खासतौर से मुसलमानों से उन्होने गुजारिश की कि रमजान के पवित्र महीने में वे ज्यादा से ज्यादा इबादत करें ( वैसे भी लोगों के पास अब करने को बचा क्या है ) . क्या ज्यादा इबादत करने से कोरोना भाग जाएगा , यह बात वे साफ कर देते तो पूरे 130 करोड़ लोग इसमें जुट जाते फिर डाक्टरों की , इलाज की और अस्पतालों की जरूरत ही नहीं रह जाती .
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