रामायण सीरियल में राम का किरदार निभाने बाले अरुण गोविल को कोई 33 साल बाद याद आया कि उन्हें अभी तक किसी सरकार ने सम्मान नहीं दिया है  . 62 साल के हो चले अरुण मेरठ से मुंबई गए तो अपने भाई के कारोबार में हाथ बंटाने थे लेकिन जल्द ही उन्हें गलतफहमी हो आई थी कि वे तो बने ही फिल्मों के लिए हैं लिहाजा कोशिश करने पर कुछ फिल्में मिलीं जो उन्हीं की तरह सी ग्रेड की थीं लेकिन थोड़ी बहुत चली सिर्फ एक जिसका नाम था सावन को आने दो . यह फिल्म बड़जात्या केंप की थी इसलिए इसका चलना लाजिमी था पर अरुण गोविल को फिल्म इंडस्ट्री में हाथों हाथ नहीं लिया गया था .

उनके हिस्से छोटे मोटे रोल आते रहे तो उन्होने भगवान बन जाने की ठान ली और देखते ही देखते बन भी गए . रामानन्द सागर से वे मिले और खुद राम की भूमिका निभाने की पेशकश की तो थोड़ी सी ना-नुकुर के बाद बात बन गई . देवी देवताओं के रोल निभाना अपेक्षाकृत आसान काम होता है क्योंकि इसमें कलाकार को कुछ खास नहीं करना रहता आधे से ज्यादा काम तो मेकअप से ही हो जाता है .

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रामायण छोटे पर्दे पर चल निकला तो अरुण पर दौलत और शोहरत की बरसात होने लगी . वे जहां भी जाते थे उनके पैर पड़ने बालों और आरती उतारने बालों की भीड़ उमड़ने लगती थी . हालांकि उनके पहले धार्मिक फिल्मों में देवताओं के रोल निभाने बाले साहू मोड़क और भारत भूषण भी कम लोकप्रिय नहीं हुये थे लेकिन इस सीरियल की बात और थी . तब टीवी नया नया आया था और लोग भी फुरसतिए होते थे सो रामायण सुपर हिट हुआ . उस दौर में लोग इतने अंधविश्वासी और बौराये हुये थे कि सीरियल शुरू होने के साथ ही अगरबत्ती जलाकर टीवी के सामने रखते थे और टीवी पर ही राम सीता लक्ष्मण और हनुमान के चरण छूते थे .

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