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Coronavirus को हराने के बाद परिवार के साथ ऐसे वक्त बिता रही हैं कनिका कपूर

बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर पिछले महीने से लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. इसकी वजह है कनिका का कोरोना का शिकार होना. अब कनिका कपूर इस जंग से लड़कर अपने घर वापस आ चुकी हैं. कनिका को एक लंबे वक्त तक कोरोनटाइन रखा गया था.

इस दौरान इन्हें जमकर सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया. लोगों ने कनिका पर आरोप लगाए थे कि वह जान बुझकर खुद को कोरोना को छुपाने की कोशिश कर रही थीं.

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वह लंदन से आने के बाद घर पर कोरोनटाइन होने की जगह वह घूम-घूम कर पार्टीयां करती नजर आई. जिस वजह से पार्टी में मौजूद लोगों को भी इस खतरनाक बीमारी का सामना करना पड़ा.

 

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All you need is a warm smile, a warm heart and a warm cup of tea ☕️ #familytime #lucknowdiaries #stayhomestaysafe

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हालांकि अब कनिका सुरक्षित अपने घर पर आ गई हैं. घर आने के बाद कनिका ने पहली तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा किया है जिसमें वह अपने मम्मी-पापा के साथ चाय पीते नजर आ रही हैं.

फोटो शेयर करते हुए कनिका ने लिखा है कि ‘हमें सिर्फ एक मुस्कान, जोश भरा दिल के साथ एक कप चाय चाहिए’.

इस तस्वीर में कनिका कपूर बिल्कुल स्वस्थ्य नजर आ रही हैं. कनिका इन दिनों अपने परिवार के साथ लखनऊ स्थित घर में रह रही हैं.

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इस बीच कनिका ने अपने सफाई में जवाब देते हुए कहा था कि मैं गलत नहीं थी जब मैं यूको से घर से आ रही थी तब मेरा चेकअप हुआ था और मेरा रिपोर्ट निगेटिव आया था. बेवजह लोग मुझे परेशान कर रहे हैं. बिना गलती की लोग मुझ पर आरोप लगा रहे हैं.

बता दें कनिका कपूर इससे पहले लंदन में अपने परिवार के साथ रहती थीं. वह होली पार्टी के लिए अपने होमटाउन वापस आई थी. जिसके बाद यह सारी घटना हुई है. इस दौरान कनिका के बच्चे भई उन्हें बहुत ज्यादा मिस कर रहे थे. अब कनिका परिवार के साथ खुशी का समय बीता रही हैं.

मन ‘मानी’ की बात: आयुर्वेद और तीज त्यौहारों के इर्दगिर्द सिमटी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई मन की बात के 64वे एपिसोड पर गौर करें तो उसके प्रमुख की बर्ड्स यूं बनते हैं – पवित्र रमजान , अक्षय तृतीया , इबादत , अग्नि शेषम , बिहू , वैशाखी , विशू ,पुथन्डु ,ईस्टर, आयुर्वेद,  योग , समृद्ध परम्परा , पांडव ,अक्षय पात्र , ईद , भगवान श्रीकृष्ण , जैन परंपरा , ऋषभदेव , भगवान बसवेश्वर

थोड़ी बहुत उम्मीद थी कि इस मासिक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी इस बार राहत की , मजदूरों की , रोजगार की , भुखमरी की और दम तोड़ते उदद्योगों की बात करेंगे लेकिन उन्होने कई गंभीर सामयिक मुद्दों से मुंह मोड़े रखा तो समझने बाले सहज समझ गए कि अब देश की अर्थव्यवस्था और जीडीपी जैसे विषयों पर सोचना ही बंद कर दिया जाए .  ये सब मिथ्या बातें हैं इनका कोई महत्व नहीं . महत्व है तो धर्म और धार्मिक बातों का , मोदी लगभग 30 मिनिट लोगों को यही समझाने की कोशिश करते नजर आए .

लाक डाउन और कोरोना के कहर से हैरान परेशान और अनिशिचतता में जैसे तैसे जी रहे लोगों को मोदी मेसेज यही लगता महसूस हुआ कि वे सब चिंताएँ छोड़ प्रभु का ध्यान करें .  खासतौर से मुसलमानों से उन्होने गुजारिश की कि रमजान के पवित्र महीने में वे ज्यादा से ज्यादा इबादत करें ( वैसे भी लोगों के पास अब करने को बचा क्या है ) . क्या ज्यादा इबादत करने से कोरोना भाग जाएगा , यह बात वे साफ कर देते तो पूरे 130 करोड़ लोग इसमें जुट जाते फिर डाक्टरों की , इलाज की और अस्पतालों की जरूरत ही नहीं रह जाती .

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हकीकत तो यह है कि अब नरेंद्र मोदी के पास बोलने कुछ खास बचा नहीं है . उन्हें मालूम है कि इस घड़ी में ज्यादा लंबी फेंकाफाँकी लोग झेल नहीं पाएंगे लिहाजा उनकी बात भगवान और धर्म के इर्द गिर्द घूमती रही , यह धर्माब्लंबियों के लिए बड़ी कारगर दवा और आजमाया हुआ नुस्खा है . यह भी एकतरफा न लगे इसलिए मौके का फायदा उठाते हुये इसमें रमजान और ऋषभदेव भी घुसेड़ दिये गए .  इससे यह भी साबित हो गया कि ऊपर बाले के मामले पर सरकार की राय नेक और एक है कि किसी धर्म का भगवान तो सुनेगा .

दूसरे यह न तो मौका था और न ही कोई वजह थी कि आयुर्वेद का प्रचार किया जाए बाबजूद यह जानने समझने के कि दूसरी तमाम बीमारियों की तरह कोरोना का इलाज भी एलोपेथिक पद्धति से हो रहा है . इस वायरस के देश में आने के बाद जरूर कुछ लोगों ने कोशिश की थी कि गोबर , कपूर , गिलोय  और गौ मूत्र से ही कोरोना को भगा दिया जाए .  ये ही वे लोग हैं जिनहोने इस जानलेवा वायरस की भयावहता को तात्कालिक समझा और इसे भी भुनाने की कोशिश की जो अब मूर्खता ही साबित हो रही है . प्रसंगवश यह बताना जरूरी है कि चूंकि कोरोना के बारे में उल्लेखनीय और उपयोगी जानकारिया वैज्ञानिकों के पास भी नहीं हैं इसलिए भाई लोगों और भक्तों ने तो हमेशा की तरह अज्ञानता पर अपनी दुकान चमकाने यह तक प्रचार शुरू कर दिया था कि नीबू का सेनेटाइजर बनाकर हाथ धोओ कोरोना दम तोड़ देगा .

अभी भी देश भर में कोरोना भगाने गायत्री मंत्र का जाप किया जा रहा है यज्ञ हवन किए जा रहे हैं पर कोरोना है कि भाग नहीं रहा है . हाँ इतना जरूर हो रहा है कि समाज में पसरा अंधविश्वास कायम है और , और भी पुख्ता हो रहा है . मोदी जी नहीं चाहते कि मुसलमान भी इस कुचक्र और जाल से बाहर आयें सो उन्होने कहा ज्यादा से ज्यादा इबादत करें शायद भगवान और अल्लाह मिलकर कोरोना को नष्ट कर दें . बात सही है कि कोरोना से मिलजुल कर लड़ना है इसलिए ऊपर बालों को भी एक हो जाना चाहिए लेकिन बशर्ते वे कहीं हों तो ….

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मन की बात के ताजे एपिसोड में तुक की बात तो कहीं थी नहीं पर गैरज़रूरी और बेतुकी बातों की भरमार थी .  लगा ऐसा भी कि मुद्दों से दूर नरेंद्र मोदी केवल अक्षयतृतीया की शुभकामनायें रेडियो के जरिये देना चाह रहे थे .  बाकी लड़ना है , स्वास्थकर्मी मोर्चे पर डटे हैं , दो गज की दूरी रखें , थूके नहीं , मुंह पर गमछा बांधे जैसी चलताऊ बातों जो प्रवचन ज्यादा लगती हैं का मूल समस्या से कोई लेना देना है नहीं .

लोगों को इस वक्त चिंता यह है कि जो हो रहा है वह अपनी जगह है लेकिन सरकार उनके लिए क्या कर रही है . लाक डाउन के बाद उनके हाथों को रोजगार मिले इसके लिए सरकार क्या योजना ला रही है . 40 करोड़ रोज कमाने खाने बालों के हाथ पाँव फूले हुये हैं जिन्हें अंदाजा है कि मुफ्त का सरकारी राशन और नाम मात्र की राहत राशि  उनकी परेशानियों का हल नहीं है और वह भी सभी को नहीं मिल रहे हैं . समस्या है सरकार का फोकस 10 – 12 करोड़ लोगों पर होना जिनमे से 4 -5 करोड़ अंन्धभक्त हैं . मन की बात इन्हीं लोगों के लिए थी कि तुम लोग डटे रहो बाकी सब हम मेनेज कर लेंगे .

मेनेज करने का सीधा सा मतलब यह है कि कोई क्रांति या विद्रोह सरकार के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा लेकिन इसके लिए मध्यमववर्गीयों को थोड़ा त्याग करने प्रस्तुत रहना चाहिए .  यह बात लोग बिना समझाये समझ भी रहे हैं इसीलिए डेढ़ साल तक केंद्रीय कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते में कटोती पर कोई खास हलचल नहीं हुई .  यह वर्ग भाजपा का बड़ा वोट बेंक है .

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मन की बात में एक बार विकास शब्द का उल्लेख होना यह स्वीकारोक्ति तो है कि हम अभी भी विकासशील हैं , कल भी थे और कल भी रहेंगे .  5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की बात अब नरेंद्र मोदी नहीं करते और अगली किसी मन की बात में कहेंगे भी कि हमारी तो पूरी तैयारी थी लेकिन कोरोना ने सब गुड गोबर कर दिया और इससे असहमत भी नहीं हुआ जा सकता हाँ इतना जरूर याद रखा जा सकता है कि देश की अर्थव्यव्स्था कोरोना के कहर के काफी पहले से  ही ध्वस्त थी .

बहरहाल संकट और परेशानियों के इस दौर में मन की बात के जरिये नरेंद्र मोदी आम लोगों मजदूरों ,युवाओं , किसानों और छोटे मँझोले व्यापारियों को आश्वस्त नहीं कर पाये हैं इससे ज्यादा हर्ज की बात यह है कि वे 30 में से लगभग 18 मिनिट भगवान , आयुर्वेद , रमजान और इबादत बगैरह करते और कहते रहे जिससे समस्याएँ हल नहीं होतीं उल्टे अनदेखी का शिकार होते और बढ़ती ही हैं . आने बाले वक्त में सरकार इस पर कटघरे में भी खड़ी होगी लेकिन तब तक जो और जितना बिगड़ चुका होगा उसकी भरपाई करने में सदियों लग जाएंगी .

जो बिगड़ा है वह उन बेकबर्ड लोगों का बिगड़ा है जो गाँव देहातों की जकड़नों से जूझते शहरों तक पहुँच पाये थे .  इनका संघर्ष और मकसद सिर्फ रोजगार नहीं था बल्कि अपनी अगली पीढ़ी के लिए शिक्षा और रोजगार के सम्मानजनक मौके मुहैया कराना भी था लेकिन कोरोना और लाक डाउन ने इन्हें वहीं धकेल दिया है जहां से कभी हिम्मत जुटाकर ये लोग चले थे . अफसोस इस बात का है  कि मन की किसी बात में इनके लिए कुछ नहीं होता क्योंकि ये बेकबर्ड हैं.

#coronavirus: लॉकडाउन में बढ़ी ईएमआई के दिक्कते

लॉकडाउन के दौरान ऑटो रिक्शा चालकों और कैब ड्राइवर दोनो का कारोबार ठप्प हो गया है. गाड़िया स्टैंड पर खड़ी हो गई है और उसको चलाने वाले घरो में बैठ गए है. परेशानी की बात यह है कि जो गाड़िया बैंक के लोन पर है उनकी ईएमआई कैसे चुकाई जाय ?

एक माह से ऊपर का समय बीत गया लखनऊ के ऑटो रिक्शा चालक अपने घरों पर बिना काम काज के बैठे है. उनकी ऑटो टैक्सी स्टैंड पर या घरो में खड़ी है. इनमे से कुछ ऑटो चालक ऐसे है जिन्होंने खुद बैंक से लोन लेकर अपना काम शुरू किया और कुछ ऑटो चालक ऐसे है जो केवल रोज की दिहाड़ी के आधार पर अपना काम करते है.

ऐशबाग एरिया में रहने वाले सुनील मिश्रा बताते है “साल भर पहले हमने 4 ऑटो रिक्शा बैंक से लोन पर लिए था. बैंक से लोन लेकर 10 लाख की पूंजी लगाई थी.अब शहर में तमाम ऑटो रिक्शा होने से पहले जैसी कमाई नही रह गई थी फिर भी हर दिन एक ऑटो से 1 हजार रुपये प्रतिदिन की बचत हो जाती थी. इससे हमारा अपना और 4 ऑटो चालको के परिवारों का भरण पोषण हो रहा था. पिछले एक माह से लोक डाउन के कारण सभी 4 ऑटो रिक्शा बिना किसी काम के खड़े है. कमाई तो हो ही नही रही उल्टे बैंकों को दी जाने वाली लोन की ईएमआई का पैसा कैसे दिया जाए समझ मे नही आ रहा.”

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सुनील मिश्रा की ऑटो किराए पर चलाने वाला मोहम्मद शाहिद कहता है “हम ऑटो रिक्शा चला कर अपने परिवार का भी पालन पोषण कर रहे थे और अपने ऑटो रिक्शा मालिक को भी पैसा दे रहे थें. अब सब भुखमरी के शिकार हो रहे है. हमारी परेशानी है कि हम किस तरह से अपना पेट पाले और किस तरह से बैंक का लोन चुकाए”.

ईएमआई बनी मुसीबत :

ऑटो रिक्शा चालकों और मालिको को दोहरी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. एक तो उनका कारोबार खत्म हो गया है दूसरे उनको लोन ली गई बैंक की किश्त चुकानी है. सुनील मिश्रा बताते है “बैंक समय पर ईएमआई खाते से काट रहे है. एक भी माह की ईएमआई नही देने से अगले माह ब्याज सहित यह पैसा देना पड़ेगा. अभी यह साफ नहीं है कि कब तक लॉक डाउन खुलेगा. और कब हमारा काम शुरू होगा”.

परिवहन विभाग ऑटो और टैक्सी के लिए कोरोना संकट से निपटने के लिए कुछ उपाय करने की सोच रहा. इनमे एक उपाय यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए. इसका मतलब यह होगा कि ऑटो में पहले की तरह 3 सवारियों को नही बैठाया जा सकेगा. यह हालत कम से कम 6 माह रहने की उम्मीद है. ऐसे में ऑटो रिक्शा चालकों के सामने परिवहन विभाग की नई गाइड लाइन किसी मुसीबत से कम नही होगी. हालांकि अभी परिवहन विभाग के अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नही है. उनका कहना है कि कोरोना को रोकने के लिए लॉक डाउन खत्म होने के बाद ऑटो रिक्शा चालकों के लिए भी नई गाइड लाइन विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशो के अनुरूप बनाई जा सकेगी.

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लखनऊ में ही केवल 40 हजार ऑटो रिक्शा चालक है. सभी के साथ ऐसी परेशानी आ रही है. केवल ऑटो रिक्शा चालकों के सामने ही यह हालत नही है. पिछले एक साल में ओला और उबर कैब चालको ने भी बैंक से लोन लेकर अपना बिजनेस शुरू किया था. इन सभी ने अपने अपने नाम से बैंक से लोन लिया था. अब यह लोग भी ईएमआई नही दे पा रहे है.

मुसीबत में कैब ड्राइवर :

लखनऊ में करीब 10 हजार ऐसे लोग है जो ओला उबर के लिए गाड़ियों के लिए बैंक से लोन ले चके है. अब यह भी एक माह से बन्द है. ऐसे में कमाई तो खत्म हुई ही है परेशनी यह है कि यह अपनी बैंक की ईएमआई कैसे चुकाए.

कैब ड्राइवर नरेश यादव बताते है “हम मुम्बई में पहले टैक्सी चलाते थे. घर वालो की परेशानी को देख कर हम लखनऊ वापस आ गए. यँहा बैंक से लोन लेकर कार ली और उसका प्रयोग कैब के रूप में करने लगे.हर माह की गाड़ी की किश्त काट कर इतना बच जाता था कि परिवार का भरण पोषण हो जाये. लॉक डाउन के बाद अब सब कुछ ठप्प हो गया है.आगे क्या होगा कैसे बैंक की किश्त जाएगी और कैसे घर परिवार चलेगा समझ नही आ रहा है.

 

# lockdown : टमाटर हुआ खराब हो गई फसल तबाह

टमाटर को बोने वाले किसानों की तो मानो कमर ही टूट गई है. एक ओर कोरोना का डर सता रहा है, वहीं दूसरी ओर फसल बचाने की चिंता. ऊपर से मौसम भी अठखेलियां कर रहा है. कभी जम कर बारिश  हो रही है, तो कहीं ओले गिर रहे हैं. इस वजह से फसल में रोग व कीट लग रहे हैं.

लौकडाउन लगने के बाद जब इन किसानों को खेतों में जा कर काम करने की छूट दी गई तो ये किसान खेतों की ओर दौड़ पड़े, तब तक काफी देर हो चुकी थी. वजह, वहां के खेतों में टमाटर ही टमाटर हैं, लेकिन ज्यादातर खराब हैं क्योंकि समय पर कीटनाशक दवा का छिड़काव नहीं हो पाया.

वहीं दूसरी वजह, लौकडाउन में कीटनाशक दुकानों पर ताले लटके हुए थे, इस वजह से ये किसान कीटनाशक खरीद नहीं पाए और समय पर दवा नहीं छिड़क सके.

इसी तरह की दोचार समस्याओं से जूझ रहे किसानों के सामने माली संकट गहरा गया है, वहीं बचा कर रखे पैसे भी खत्म होने के कगार पर हैं. इतना ही नहीं, किसानों ने कर्ज ले कर टमाटर की फसल उगाई थी, पर अब टमाटर के खरीदार ही नहीं मिल रहे. इस वजह से वे साहूकारों का पैसा नहीं लौटा पा रहे हैं.

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इन किसानों के सपने अब बुरी तरह टूट चुके हैं. समस्याएं विकराल रूप लिए खड़ी हैं. एक ओर मंडी में टमाटर की आवक कम हुई है, वहीं टमाटर के पौधों में तमाम तरह की बीमारी लग गई है. खेतों में समय पर कीटनाशक छिड़काव नहीं हो पाया. इस वजह से टमाटर की पूरी फसल ही तबाह हो गई.

वैसे, टमाटर में मोजैक बीमारी लगने से फलन में जहां कमी आई है, वहीं पत्तियां  भी पीली पड गई हैं और तना सड़ गया है. वहीं, मौसम में अचानक आए बदलाव से टमाटर में ब्लाइट रोग लग गया है.

इस रोग में टमाटर के पौधों के पत्तों पर काले धब्बे पड जाते हैं. इस से नजात पाने के लिए किसानों को समय रहते दवा का छिडकाव करना चाहिए, पर ऐसा हो न सका.

वैसे, इस बीमारी से नजात पाने के लिए ब्लाईटौक्स 30 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर पौधों पर छिडकाव करें. फिर भी पौधों पर असर न दिखे तो 10-12 दिन के अंतराल पर फिर से दोबारा छिडकाव करें.

मुरादनगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं, जहां किसानों की टमाटर की फसल खराब हो गई. किसानों की समस्या यह है कि वे पहले खुद को तो कोरोना से बचा लें. वहीं मजदूरों की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है.

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लौकडाउन में सब्जी की मंदी है. यही कारण है कि कोई बड़ा कारोबारी उसे नहीं खरीद रहा. इस प्रतिबंध की वजह से किसान खुद भी मंडी तक टमाटर नहीं पहुंचा सकते. अगर वे किसी तरह टमाटर मंडी तक पहुंचा भी देते हैं तो उन्हें इस की पूरी लागत नहीं मिल पाती है. उलटा लागत से अधिक ट्रांसपोर्ट का खर्चा आ जाता है.

टमाटर की खेती करने वाले एक किसान का कहना है कि इस बार हमें बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है क्योंकि टमाटर की खेती खराब हो चुकी है. और जो टमाटर बचे हैं, उस के लिए खरीदार नहीं हैं. ऐसे में हम बहुत परेशान हैं.

कुछ ऐसे ही हालात दूसरे किसानों के भी हैं. ठेके पर खेत ले कर टमाटर की खेती करने वाला एक किसान बताता है कि हमारी कमाई का यही जरिया है, लेकिन बीमारी लगने से खेती ही बरबाद हो गई. मुसीबत यह है कि एक तो टमाटर की खेती में लागत नहीं निकल पा रही है, वहीं जमीन मालिकों को भी पैसा देना होता है. एक बीघा टमाटर की खेती करने पर 12,000 से ले कर 14,000 रुपए की लागत आती है, वहीं इसे बेचने पर किसानों को 40,000-50000 रुपए तक की आमदनी होती थी, लेकिन इस बार आमदनी कुछ है ही नहीं.

वहीं एक और किसान के मुताबिक, इस बार टमाटर की 5 से 6 बीघा फसल में तकरीबन 4 लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है. अगर वे सब्जियों को मंडी ले जाने की कोशिश करते भी हैं तो रास्ते में पुलिस तंग करती है यानी एक तरफ कीटनाशक दवा की कमी से टमाटर खराब हो गए हैं, जो बचे भी हैं उसे मौसम ने बरबाद करने में कसर नहीं छोड़ी है.

यही वजह है कि सब्जी की बड़ी मंडियों में टमाटर पहुंच ही नहीं पा रहा है. अगर किसी वजह से पहुंच भी जाए तो वहां उचित कीमत नहीं मिल पा रही. वहीं बाहर के देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान वगैरह में पाबंदी लगने के कारण टमाटर नहीं पहुंच पा रहा है. इस वजह से टमाटर पडे़पडे़ सड़ रहे हैं या खराब हो रहे हैं.

टीकमगढ़ कसबे का एक किसान अपनी परेशानी कहता है कि उस ने कर्ज ले कर 2 एकड़ में टमाटर की फसल तैयार की थी, पर रोग लगने के कारण टमाटर की फसल काली पड़ने के साथ ही सूख गई. अब वह परेशान है कि उस की रोजीरोटी कैसे चलेगी.

एक ओर उत्तर भारत में बीमारी का गहराता संकट है, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र  व दक्षिण भारत के कई इलाकों में किसानों के खेतों में जहां टमाटर की बंपर पैदावार हुई है, पर वहां खरीदार नहीं मिल रहे. औनेपौने दामों में टमाटर के बिकने से किसान परेशान हैं.

उत्तर गुजरात के गांवों में रोज हजारों किलो टमाटर सडकों पर फेंके जा रहे हैं. वजह, मुनासिब दाम न मिलना है. वहां की मंडियों में टमाटर की कीमत महज 2-3 रुपए या इस से कम है. वहीं गुजरात के साणंद जिले के आसपास के गांवों में किसान बाजार में बेचने के बजाय जानवरों को खिलना बेहतर समझ रहे हैं. वजह टमाटर के दाम में आई भारी गिरावट है.

गुजरात में तकरीबन 50,000 टन टमाटर का उत्पादन होता है, वहीं इस साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. लेकिन उत्पादन बढ़ने के बावजूद पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों को होने वाला एक्सपोर्ट भी बंद है. घरेलू मांग कम होने से किसानों के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं. ऐसे किसानों को सरकार से उम्मीद है कि सरकार कम से कम ट्रांसपोर्ट में सब्सिडी दे ,ताकि इन का यह सीजन फेल न हो. पर, किसानों के सामने संकट है कि टमाटर के दाम खेतों से मंडियों तक की ढुलाई लागत से भी नीचे जा चुके हैं.

राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा इकटठा किए गए आंकडों के मुताबिक, महाराष्ट्र में नासिक जिले की बेंचमार्क पिंपलगांव मंडी में पिछले दिनों अच्छी क्वालिटी वाला टमाटर डेढ़ से 2 रुपए प्रति किलों की दर पर बिका. दामों के इस स्तर ने किसानों को चिंता में डाल दिया, क्योंकि खेतों से मंडी तक की ढुलाई लागत इस से कहीं ज्यादा है.

इन किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. छोटे व मंझोले किसानों  पर दोहरीतिहरी मार पड़ी है. इन किसानों को सरकार से उम्मीद तो है, पर कितनी, कहना मुश्किल है. अब सरकार व प्रशासन को समझना है कि इन किसानों की समस्याएं कैसे हल की जाएं.

#coronavirus: लौकडाउन, शराब और फिर हत्या

वे घर की छत पर पी रहे थे शराब. पङोसी ने रोका तो फिर क्या हुआ उस के साथ, जान कर रौंगटे खङे हो जाएंगे…

देश में लागू लौकडाउन के बीच दिल्ली के पटेल नगर के प्रेम नगर इलाके में 6 दोस्तों को शराब की लत ले डूबी.

कई दिनों से शराब न मिलने पर इन दोस्तों ने योजना बनाई और शराब पीने एक घर की छत पर बैठ गए. शराब के साथ ये सिगरेट का कश भी ले रहे थे। नशा परवान चढ़ा तो जबान भी फिसलने लगी. शोर होते देख पास में रहने वाले एक पङोसी ने पहले तो उन्हें समझाया पर जब ये नहीं माने तो इस की शिकायत मकानमालिक से कर दी.

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वारदात वाले दिन…

वारदात शाम के वक्त की है. पुलिस तफ्तीश के मुताबिक 6 लङके पटेल नगर के प्रेम नगर इलाके में एक शख्स की घर के छत पर बैठ कर शराब पी रहे थे. बगल में लगभग 40 साल के एक पङोसी को लगा कि लौकडाउन के बावजूद भी इस तरह बैठ कर ये शराब क्यों पी रहे हैं? इसी बात को ले कर दोनों पक्षों में झगङा शुरू हो गया.

रोकना पङ गया भारी

खबर के मुताबिक 6 लङके पहले तो मकान से उतर गए फिर थोङी ही देर बाद लोहे की रौड, चाकू व डंडे के साथ आए और शिकायत करने वाले पङोसी के साथ मारपीट करनी शुरू कर दी. पहले तो पङोसी भी भिङ गया पर तभी उन में से एक लङके ने उस शख्स को चाकू मार दिया. चाकू तेज मारा गया था लिहाजा शख्स की मौत हो गई.

आरोपियों ने उस शख्स को बचाने आए बेटे और उस के साले पर भी चाकू से हमला किया है, जिस से वे घायल हो गए.

पटेल नगर थाना के एसएचओ रमेश चंदर ने फोन पर बताया,”मामले की सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और संबंधित आरोपियों पर काररवाई शुरू कर दी है.”

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थाना पटेल नगर एसएचओ के मुताबिक, गिरफ्तार लड़कों में 4 नाबालिग हैं जबकि 2 बालिग. पुलिस आगे की काररवाई कर रही है. आरोपियों ने शराब कहां से खरीदी यह जानकारी भी जुटाई जा रही है.

लत है यह गलत

कहते हैं जब लत बुरी लग जाए तो न सिर्फ शरीर, बल्कि पूरी जिंदगी ही तबाह हो जाती है. शराब की गंदी लत ने कम उम्र में ही इन को अपराधी बना दिया.

एक अध्ययन के मुताबिक 12 से 18 साल के लड़कों के बीच शराब या अन्य तरह की नशा करने की आदत बढ़ी है. इस के अलावा वे गांजा व अफीम का सेवन भी कर रहे हैं. ये गंदी लत किशोरों को शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं.नशे की लत के चलते किशोर आक्रामक हो रहे हैं और इस घटना में भी जाहिर है कि आरोपियों में 4 नाबालिग भी नशे की बुरी गिरफ्त में होंगे.

अभिभावकों की जिम्मेदारी

बचपन बचाओ आंदोलन से जुङे व कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के सीनियर पदाधिकारी मनीष शर्मा बताते हैं,”अभिभावकों को भी बढ़ते बच्चों पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. ऐसा देखा गया है कि पारिवारिक कलह, भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच अभिभावक बच्चों की परवरिश के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. इस से बच्चे खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं. उन की सोचनेसमझने की शक्ति बदल जाती है और वे हिंसक हो जाते हैं.”

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उन्होंने बताया,”बढ़ते बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन देना भी आज के समय में खतरनाक बनता जा रहा है. एक सर्वे में यह खुलासा किया गया है कि लौकडाउन के बीच खासकर बच्चों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी काफी बढ़ गया है. अभिभावक बच्चों के हाथों में मोबाइल तो दे देते हैं पर उन पर नजर नहीं रखते. दूसरा, भारतीय कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चों को तंबाकू व नशे से जुङी कोई भी चीज बेचने पर प्रतिबंध है. इसलिए पुलिस को चाहिए कि वे अपने तफ्तीश में यह भी पता लगाएं कि अगर नाबालिगों ने शराब व सिगरेट खरीदे तो कहां से? उन पर भी काररवाई हो.”

कुसूर किस का

आरोपियों पर अब भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत काररवाई होगी. जो आरोपी बालिग हैं वे सालों जेलों में रहेंगे. थोङी सी लापरवाही और गलत परवरिश एकसाथ कई परिवारों को कितना गहरा सदमा दे जाता है.

अनोखा रिश्ता: भाग3

श्रेया जब 2 साल की हुई तो पराग को अमेरिका में अच्छी नौकरी मिल गई. अमेरिका जाने से पहले तीनों आए थे मुझ से मिलने. श्रेया को देख कर, शीतल को याद कर के मेरी आंखें गीली हो गई थीं. मेरा ध्यान गरिमा की ओर गया तो मैं ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. गरिमा को मैं तसवीर में तो देख चुकी थी, पर पहली बार उस से रूबरू होने का मौका मिला था. उस की शक्लसूरत तो अति साधारण थी ही, वह कुछ भीरू और संकोची भी लगी. मैं ने उस से बातचीत करने की कोशिश की तो धीरेधीरे मेरे स्नेहिल व्यवहार के कारण वह मुझ से खुल कर बातें करने लगी. जब वे जाने लगे तो मैं ने गरिमा से संपर्क बनाए रखने को कहा.

गरिमा ने अपना वादा निभाया और मुझ से संपर्क बनाए रखा. कभी फोन पर, तो कभी ई मेल भेज कर. श्रेया 3 साल की थी तो खबर आई कि गरिमा ने बेटे को जन्म दिया है. मैं ने उन्हें बधाई दी. पुत्र के जन्म के 1 साल बाद पूरा परिवार भारत आया तो वे जल्द ही मुझ से मिलने भी आए. श्रेया अब पटरपटर बोलने लगी थी. उस का भाई सांवला, दुबलापतला था. वह अपनी मां पर गया था. पराग और गरिमा बेहद आत्मीयता से हम से मिले.

लेकिन पहले की तरह उन्होंने हमारे साथ संपर्क बनाए रखा. पराग के मुकाबले गरिमा ही ज्यादा बातें किया करती थी. गरिमा ने मुझे बताया कि अब उन्होंने निश्चय किया है कि वे श्रेया को उस की मां का सच बताना चाहते हैं. पराग का मानना था कि अब श्रेया समझने लगी है, इसलिए इस बात का उसे किसी और से पता लगने पर उसे दुख होगा कि हम ने उस से क्यों छिपा कर रखा. यह सुन कर मैं घबरा गई. मैं सोचने लगी कि कहीं वास्तविकता जानने के बाद श्रेया का व्यवहार गरिमा के प्रति बदल गया तो? 2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘दीदी, हम ने श्रेया को शीतल के बारे में बता दिया है. सब कुछ जानने के बाद भी उस का व्यवहार सामान्य है. उस में कोई बदलाव नहीं है.’

पढ़ कर मैं ने राहत की सांस ली. इस बार पराग ने श्रेया को अकेले भारत भेजा. उस का कहना था कि अगर श्रेया अपनी दिवंगत मां के बारे में कुछ जानना चाहे तो अपनी नानी से या मुझ से बेझिझक पूछ सकती है. श्रेया को लेने हम एअरपोर्ट गए. श्रेया जब बाहर निकली तो मैं दंग रह गई उस 13 वर्षीय किशोरी को देख कर वह हूबहू शीतल की तरह दिख रही थी.

श्रेया घर आ कर रिया और राहुल के साथ खेलने में व्यस्त हो गई. मुझे तो जैसे लाइसैंस मिल गया था शीतल के बारे में बातें करने का. मैं जब उसे शीतल के बारे में चंद बातें बताने लगी, तो उस ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. फिर भी मैं चुप नहीं रही और श्रेया को कुछ और बताने लगी शीतल के बारे में, तो श्रेया ने कहा, ‘‘छोडि़ए न बड़ी मां. मुझे उन के बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मेरी मां तो गरिमा हैं.’’

श्रेया जब तक भारत में रही गरिमा के ही गुणगान करती रही. शीतल के बारे में उस ने कुछ नहीं पूछा. राहुल और रिया के साथ चहकती फिरती रही. नियत दिन पर हम से आज्ञा ले कर वह अमेरिका लौट गई.न्यूयार्क के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में राहुल को एम.एस. की पढ़ाई के लिए दाखिला मिल गया. रिया के लिए भी एक अच्छा सा वर मिल जाने के कारण मैं ने उस की शादी कर दी. सुरेश ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. हम सब ने एकसाथ अमेरिका  जाने का फैसला किया.

राहुल को भी क्रिसमस की 1 सप्ताह की छुट्टी मिली. हम सब पराग के घर पहुंचे. पराग और गरिमा ने हमारा दिल खोल कर स्वागत किया. श्रेया अब कालेज में दूसरे शहर में पढ़ती थी. पर उस की भी छुट्टियां शुरू हो गई थीं, इसलिए वह भी वहीं थी. श्रेया 21 साल की सुंदर युवती थी. दोनों बच्चों ने आगे बढ़ कर हमारा अभिवादन किया.

हमारे आने की खबर मिलते ही गरिमा ने ढेर सारी खाने की चीजें बना डाली थीं. नाश्ता करने के बाद सुरेश और पराग किसी चर्चा में मशगूल हो गए. गरिमा रसोईघर की ओर जाने लगी, तो उस के पीछेपीछे मैं ने भी रसोई में प्रवेश किया. मैं ने गरिमा की मदद करनी चाही तो उस ने एक कुरसी खींच कर उस में मुझे बैठा दिया, ‘‘आप यहां आराम से बैठ कर बातें कीजिए. मैं सब कर लूंगी.’’ फिर गरिमा वहां से जाने लगी तो मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘गरिमा, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. शीतल के गुजरने के बाद, श्रेया के बारे में सोच कर मैं बहुत परेशान हो गई थी कि बिन मां की बच्ची का क्या होगा? पर तुम ने तो उसे मां से भी बढ़ कर प्यार दिया.’’

‘‘दीदी, मुझे भी तो श्रेया के बदौलत ही समाज में इतनी इज्जत मिली. उसी की बदौलत तो मैं इस घर में आई.’’

मैं ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘यह तुम्हारा बड़प्पन है गरिमा कि तुम ऐसा सोचती हो.’’

मेरा स्नेहसिक्त स्पर्श पा कर जैसे गरिमा के अंदर दबी हुई ज्वालामुखी फूट पड़ी. मैं ने महसूस किया, गरिमा कितनी आहत थी. आज उस ने मेरे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘‘दीदी, पराग ने आज भी अपने मन में शीतल को बसा रखा है. वहां मेरे लिए अभी भी कोई जगह नहीं है. शादी के बाद कई सालों तक हम दोनों के बीच एक अभेद्य दीवार बनी रही. सिर्फ श्रेया की वजह से हम एकदूसरे से जुड़े थे. मुझे लगता है कि सिर्फ श्रेया के लिए ही पराग ने मुझ से शादी की थी. पराग ने मुझ से शादी के कई साल बाद शारीरिक संबंध बनाए, जिस का नतीजा अमित है. दीदी, आप ही बताइए, जैसा प्यार उन्होंने शीतल के साथ किया था, क्या मैं भी वैसे ही प्यार की हकदार नहीं हूं?’’

अचानक मुझे गरिमा बेहद खूबसूरत लगने लगी. उस की आंतरिक सुंदरता छलक कर बाहर आती हुई दिखाई दी मुझे. मैं ने सोच लिया कि मैं पराग से इस विषय पर अवश्य बात करूंगी. खाना खाने के बाद हम घूमने जाने के लिए निकले. गरिमा और पराग ने अपनीअपनी गाड़ी निकाली. गरिमा का एक और रूप देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गई. पूरे आत्मविश्वास के साथ अमेरिका की सड़कों पर गाड़ी दौड़ा रही थी गरिमा. मेरे आश्चर्य प्रकट करने पर उस ने कहा, ‘‘शुरूशुरू में मैं बहुत डरती थी पर

कार चलाना मेरी मजबूरी थी. यहां सार्वजनिक वाहन नहीं मिलते न. कब तक छोटेछोटे कामों के लिए भी पराग पर निर्भर रहती?’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह, गरिमा, तुम ने बहुत मेहनत की है अपनेआप को ऊपर उठाने में. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही संकोची गरिमा है.’’

सुबह उठने पर जब मैं ने देखा कि सूरज की उजली किरणें बगीचे को स्पर्श करने लगी हैं, तो अपने शरीर पर भी उन किरणों की छुअन महसूस करने के लिए अपने को रोक न पाई और बगीचे में चहलकदमी करने लगी. तभी पीछे से पराग ने पुकारा. मैं ने सोचा यही सही मौका है पराग से बातें करने का. कुछ औपचारिक बातों के बाद में सीधे मुद्दे पर आ गई, ‘‘पराग, गरिमा ने कितनी खूबसूरती से घर और बच्चों को संभाला और उन्हें बड़ा किया है न?’’

‘‘हां दीदी, रिश्तेदारों में अपनेआप को साबित करने के लिए गरिमा को न जाने कितनी बार अग्निपरीक्षा से हो कर गुजरना पड़ा. उसी की बदौलत तो निश्चिंत हो कर मैं नौकरी में अपना ध्यान लगा सका.’’

‘‘गरिमा के योगदान को मानते हो न पराग, फिर क्या तुम ने भी उसे वह सब कुछ दिया, जिस की वह हकदार है?’’

चौंक कर देखा पराग ने मेरी तरफ, ‘‘क्यों दीदी, मैं ने उसे क्या कुछ नहीं दिया? एक आरामदायक घर, पैसा, अपनी इच्छानुसार जीने की छूट और क्या चाहिए जिंदगी जीने के लिए?’’

‘‘पराग, एक स्त्री भौतिक सुखसुविधाओं से बढ़ कर अपने पति के सान्निध्य की भूखी होती है. अपना संकोच छोड़ कर तुम से पूछना चाहती हूं कि क्या तुम ने कभी गरिमा को अपने अंक में भर कर उस से टूट कर प्यार किया? क्या उसे वैसा प्यार देते हो जैसा तुम शीतल को दिया करते थे?’’

‘‘दीदी, क्या गरिमा ने आप से कुछ कहा?’’

‘‘यही तो विडंबना है पराग कि एक नारी अपने मुंह से कुछ नहीं कहेगी. उस की व्यथा को तुम्हें खुद समझना होगा. उस की भी तो शारीरिक जरूरतें हैं, जिन्हें सिर्फ तुम पूरा कर सकते हो. मुझे लगता है, तुम अभी भी शीतल को भुला नहीं पाए हो. शीतल तुम्हारा अतीत थी और गरिमा तुम्हारा वर्तमान. अतीत को वर्तमान पर हावी मत होने दो. इस से पहले कि गरिमा को अपना अस्तित्व बिखरता हुआ महसूस होने लगे, उस के साथ अकेले में वक्त बिताओ, उसे प्यार दो.’’

काफी देर तक सोच में डूबा रहा पराग, मैं ने उसे झकझोरा तो वह बोला, ‘‘दीदी, मुझ से बड़ी भूल हो गई है. आप चिंता न करें, मैं गरिमा को उस का हक दूंगा.’’

बातों ही बातों में पराग ने बताया कि श्रेया किसी विदेशी लड़के को चाहती है. शुरूशुरू में तो वह इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं था पर गरिमा ने समझाया था उसे कि लड़का पढ़ालिखा और होनहार है. और फिर श्रेया इस रिश्ते को ले कर गंभीर है, इसलिए हमें श्रेया का दिल नहीं दुखाना चाहिए.

गरिमा के इस सोच ने फिर मुझे उस का कायल बना दिया. मैं ने कहा, ‘‘गरिमा बिलकुल सही कहती है, पराग. हमें समय के साथ बदलना चाहिए.’’

धूप तेज हो गई थी. हम घर के अंदर आ गए.

गरिमा और पराग भारत आ कर सभी रिश्तेदारों के सामने श्रेया की शादी करना चाहते थे. विदेश में बैठेबैठे ही पराग ने कंप्यूटर द्वारा मुंबई में शादी के लिए जगह, खानपान आदि का प्रबंध कर लिया. नियत दिन से 2 दिन पहले सब भारत आए. दिल्ली से मेरे मांपापा मौसीजी को ले कर मुंबई आए. एकांत मिलने पर गरिमा ने मुझे बताया कि पराग बहुत बदल गया है और उस का बहुत खयाल रखता है. सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं ने गरिमा की आंखों में चमक पहले ही देख ली थी.

नियत दिन पर श्रेया का विवाह हो गया. विवाह में उपस्थित सभी रिश्तेदारों को धन्यवाद देते हुए पराग ने सार्वजनिक रूप से गरिमा की दिल खोल कर प्रशंसा की. गरिमा ने संकोच से सिर झुका लिया, पर वह बहुत प्रसन्न थी. मैं सोचने लगी कि देर से ही सही, उसे न्याय तो मिला.

आज श्रेया की शादी कर के उस ने श्रेया के प्रति अपना यह कर्तव्य भी पूरा कर लिया था. उस ने यह साबित कर दिखाया था कि जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है. गरिमा आज सब की नजरों में ऊपर उठ गई थी. मेरे मुख से बरबस निकल पड़ा, ‘‘गरिमा, तू धन्य है.’’

 

#lockdown: कॉर्न नाचोस विद सालसा

लेखिका-रश्मि देवर्षि

 

सामग्री-
मक्के का आटा 1 कप,

चावल आटा 1/2 कप,

मैदा 2 बड़ी चम्मच,

नमक 1 छोटी चम्मच,

बटर 1/4 कप,

पानी ढाई कप,

1/4 छोटी चम्मच

खाने का सोडा

तेल तलने के लिए

नाचोस के लिये मसाला-

देगी मिर्च 2 छोटी चम्मच

मिक्स हर्ब 1 छोटी चम्मच

लहसुन का पाउडर 1/2 छोटी चम्मच

नमक 1/2 छोटी चम्मच

सभी सामग्री को अच्छे से मिला कर रखें

विधि-
एक बड़े बर्तन में मक्के का आटा, चावल का आटा और मैदा अच्छे से मिक्स करके रख लें। एक भगोनी में  पानी, बटर, नमक और सोडा मिला कर पानी को उबलने दें और जैसे ही पानी में उबाल आ जाये इसमें धीरे -धीरे मिक्स आटा डालकर मिलाते जाएं और धीमी आंच में ढक कर दो मिनट के लिए पका लें। मिश्रण को ठंडा होने दें. मिश्रण के ठंडा हो जाने पर इसे गूंथ और एक से आकार की लोइयां बनालें. लोइयों से चौकोर आकार की रोटी बेल कर लंबी- लंबी पट्टी काट लें और इनमें फोर्क से प्रिक कर लें. पट्टियों को चाकू से तिकोने आकार में काट कर रखते लें. अब हल्के गरम तेल में इन्हें कुरकुरे होने तक तलें और तेल से निकाल कर प्लेट में रखने के साथ ही साथ मसाला भी डालते जाएं.

नाचोस के लिये सालसा-
रोस्ट किये हुए टमाटर 2, लाल शिमला मिर्च 1 रोस्ट की हुई, बारीक कटी प्याज़, लहसुन काली भुनी हुई 5, ऑलिव ऑइल 1 छोटी चम्मच, नीबूं रस 1/2 छोटी चम्मच, टमाटर चिली सॉस 2 छोटी चम्मच, चिली फ़लेक्स 1 छोटी चम्मच, मिक्स हर्ब 1 छोटी चम्मच, नमक 1/2 छोटी चम्मच, बेसिल 1 छोटी चम्मच, फ्रेश पार्सले 2 छोटी चम्मच या सूखा पार्सले 1 छोटी चम्मच।

विधि-
सबसे पहले रोस्ट किये टमाटर और लाल शिमला मिर्च को बारीक काट लें तथा उसमें बारीक कटी प्याज़, लहसुन, ऑलिव ऑइल, नीबूं रस, टमाटर-चिली सॉस, चिली फ्लेक्स, मिक्स हर्ब, नमक, बेसिल और पार्सले डाल कर सारी सामग्री को अच्छे से मिलाकर सालसा तैयार करें। नाचोस के साथ सर्व करें.

 

सावधान रहें जागरूक बनें सब्जी बेचने वाले ही परोस रहे कोरोना

लो जी, गलीगली घूम कर रेहड़ी पर सब्जी बेचने वाले भी  एक नई मुसीबत बन कर सामने आ रहे हैं. यानी ये सब्जी बेचने वाले कोरोना वायरस परोस रहे हैं, इसलिए जरूरी है कि सावधानी बरतें.

ये रेहड़ी वाले ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं होते हैं, दो पैसे कमाने की खातिर गलियों के फेरे लगा कर ये अपना व अपने बच्चों का पेट पाल रहे हैं, पर कोरोना को ले कर ये ज्यादा जागरूक नहीं हैं.

ये रेहड़ी वाले सब्जी की थोक मंडी से थोक में सब्जी ला कर फुटकर में बेचते हैं. ये वहां मंडी में न जाने कितने लोगों से सब्जी लेते हैं, फिर ये सब्जी ला कर किनकिन गलियों में जाते हैं, कौनकौन ग्राहक इन से सब्जी खरीदते हैं, इन्हें खुद पता नहीं होता. आज इस गलीमहल्ले में होते हैं, तो कल किसी दूसरे महल्ले में.

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जब से साप्ताहिक बाजार लगने बंद हुए हैं, तब से नएनए रेहड़ी वाले नजर आ रहे हैं. इन के बारे में कोई सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है.

सरकार तो बारबार अपील कर रही है कि बचाव ही बेहतर इलाज है, घर पर रहें सुरक्षित रहें, पर कोई सुने तब न.

मास्क लगाना तो दूर कहींकहीं तो सामाजिक दूरी की भी धज्जियां उड़ा दी जाती हैं. 2-4 औरतें रेहड़ी वाले को ऐसे घेरे रहती हैं कि फिर कभी सब्जी वाला आएगा ही नहीं. उसी से सब्जी थोक में ले लेती हैं.

वहीं ये सब्जी बेचने वाले भी मास्क को ठीक से नहीं पहन पा रहे, यही वजह है कि इन लोगों के जरिए कोरोना और पैर पसार रहा है.

इन लोगों की नासमझी कहें या अनपढ़ता, ये सच से मुंह मोड़ रहे हैं. यह हकीकत है कि छोटे कामधंधे करने वाले ज्यादा सचेत नहीं हैं. यही कारण है कि इन के जरिए दूसरों में कोरोना संक्रमण ज्यादा फैल रहा है.

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अहमदाबाद में एक सब्जी ठेले वाले ने अपने साथ 65 लोगों को कोरोना वायरस बांट दिया. ये सभी पॉजिटिव पाए गए हैं.

जब जांच की गई तो खुलासा हुआ कि संक्रमितों में ज्यादातर सब्जी वाले हैं. यह देख कर प्रशासन में जबरदस्त हड़कंप मच गया. इस के बाद लोगों को सब्जी खरीदने के दौरान सतर्कता बरतने की हिदायत दी गई.

ऐसा देखसुन लोग डरे हुए हैं, पर अभी भी पूरी तरह से जागरूक नहीं हैं. यही वजह है कि भले ही घर से बाहर नहीं निकल रहे,  पर सब्जी लेना इन्हें भारी पड़ रहा है.

ऐसा नहीं कि कोरोना को ले कर अहमदाबाद में ही यह मामला आया हो, इस से पहले दिल्ली और बिहार से भी ऐसे मामले सामने आए हैं.

सब्जी लेते समय बरतें एहतियात :

– जब भी सब्जी घर लाएं तो साफ पानी से धोएं. साथ ही, अपने हाथ भी अच्छी तरह से धोएं.

– सब्जी लेते समय औरतें हों या मर्द मास्क, गिलव्स जरूर पहन कर जाएं, साथ ही,  सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखें.

– सब्जी ले कर लौटने पर घर का दरवाजा हाथ की हथेली से नहीं खोलें, बल्कि हाथ की कोहनी से ढकेल कर दरवाजा खोल के अंदर जाएं.

– सब्जी को गरम पानी से धोने के बाद ही इस्तेमाल करें या नमक से धुले और धुलने के बाद उसे 1-2 घंटे तक भीगा हुआ रहने दें।

ठेले वाले से जब भी सब्जी लें, इन बातों पर ध्यान दें :

– सब्जी वाले और हमारे बीच कुछ डिस्टेंस हो. अगर वहां कोई पहले से मौजूद हो तो उस के जाने का इंतजार करें. जल्दबाजी न करें. उस के लेने के बाद ही आप सब्जी खरीदें.

– अगर दरवाजे का हैंडल छू लिया है तो उसे सैनेटाइज करें और खुद भी हों.

– छोटी से छोटी बातों का खयाल रखें. सब्जी बनाते समय साफ पानी से धो कर इस्तेमाल करें. ऐसा करने से सब्जी के जरिए वायरस आने की सम्भावना बिलकुल नहीं रहेगी.

आप की जरा सी लापरवाही आप को या किसी और को अपने चपेट में न ले आए, इसलिए समझदार बनें और जागरूक रहें.

19 दिन 19 टिप्स: ज्यादा पपीता खाने से हो सकते हैं ये 5 साइड इफेक्‍ट

पपीता सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. यह लो कैलरी फ्रूट कई तरह का  लाभ देता है. इसे खाने के कई सारे फायदें है. यह पाचन क्षमता को बढ़ाता देता है. इस फल के लगभग हर हिस्से का उपयोग किया जा सकता है. यह एंटीऔक्सीडेंट कैरोटीनोइड जैसे कि बीटा-कैरोटीन का एक अच्छा स्रोत है. इसके अलावा पपीते के पत्तों को डेंगू बुखार में भी काफी प्रभावी होते हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अधिक मात्रा में पपीता खाने से इसके साइड इफेक्‍ट भी होते हैं. जिसे जानना अपके लिए बेहद जरूरी है.

  1. गर्भवती महिलाओं के लिए है हानिकारक

ज्यादातर हेल्‍थ एक्सपर्ट गर्भवती महिलाओं को पपीता खाने से बचने की सलाह देते हैं, क्योंकि पपीते के बीज और जड़ भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकते हैं. पपीते में लेटेक्स की हाई मात्रा होती है जो गर्भाशय सिकुड़न का कारण बन सकती है. पपीते में मौजूद पपेन शरीर की उस झिल्ली को नुकसान पहुंचा सकता है जो भ्रूण के विकास के लिए आवश्यक है.

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2. कम हो सकता है ब्‍लड शुगर

पपीता ब्‍लड शुगर के लेवल को कम कर सकता है, जो डायबिटीज रोगियों के लिए खतरनाक हो सकता है. ऐसे में अगर आप मधुमेह के रोगी हैं, तो डौक्टर से परामर्श करना हमेशा सर्वोत्तम रहेगा.

3. पेट दर्द का कारण

पपीते में भारी मात्रा में फाइबर पाया जाता है. कब्‍ज होने पर ये आपको फायदा दे सकता है. लेकिन ये आपका पेट खराब भी कर सकता है. इसके अलावा, पपीते की बाहरी त्वचा में लेटेक्स होता है, जो पेट को अपसेट कर सकता है और पेट दर्द का कारण भी बन सकता है.

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4. श्वसन विकार

पपीता में मौजूद एंजाइम पपेन को संभावित एलर्जी भी कहा जाता है. अत्यधिक मात्रा में पपीते का सेवन अस्थमा, कंजेशन और जोर जोर से सांस लेना जैसी विभिन्न श्वसन संबंधी विकार पैदा कर सकता है.

 5. एलर्जी होने की है संभावना

पपीते में मौजूद पपेन से एलर्जी होने की संभावना होती है. इसके अधिक सेवन से रिएक्‍शन के तौर पर सूजन, चक्कर आना, सिरदर्द, चकत्ते और खुजली जैसी समस्‍याएं हो सकती हैं.

आशा की नई किरण: भाग 1

स्वाति के मन में खुशी की लहर दौड़ रही थी. महीना चढ़े आज 15 दिन हो गए थे और अब तो उसे उबकाई भी आने लगी थी. खट्टा खाने का मन करने लगा था. वह खुशी से झूम रही थी. पर वह पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहती थी. इतनी जल्दी इस राज को वह किसी पर प्रकट नहीं करना चाहती थी, खासकर पति के ऊपर. 15 दिन और बीत गए. दूसरा महीना भी निकल गया. अब वह पूरी तरह आश्वस्त थी. वह सचमुच गर्भवती थी. शादी के 10 वर्षों बाद वह मां बनने वाली थी, परंतु मां बनने के लिए उस ने क्याक्या खोया, यह केवल वही जानती थी. अभी तक उस के पति को भी मालूम नहीं था. पता चलेगा तो कैसा तूफान उस के जीवन में आएगा इस का अनुमान तो वह लगा सकती थी, लेकिन मां बनने के लिए वह किसी भी तूफान का सामना करने के लिए चट्टान की तरह खड़ी रह सकती थी. इस के लिए वह हर प्रकार का त्याग करने को तैयार थी. 10 वर्ष के विवाहित जीवन में बहुत कष्ट उस ने सहे थे. बांझ न होते हुए भी उस ने बांझ होने का दंश झेला था, सास की जलीकटी सुनी थीं, मातृत्वसुख से वंचित रहने का एहसास खोया था. आज वह उन सभी कष्टों, दुखों, व्यंग्यभरे तानों और उलाहनों को अपने शरीर से चिपके घिनौने कीड़ों की तरह झटक कर दूर कर देना चाहती थी, लोगों के मुंह बंद कर देना चाहती थी. वह सास के चेहरे पर खुशी की झलक देखना चाहती थी और पति…

पति को याद करते हुए उस के मन को झटका लगा, दिल में एक कड़वी सी कसक पैदा हुई, परंतु फिर उस के सुंदर मुखड़े पर एक व्यंग्यात्मक हंसी दौड़ गई. अपने होंठों को अपने दांतों से हलके से काटते हुए उस ने सोचा, पता नहीं उन को कैसा लगेगा? उन के दिल पर क्या गुजरेगी, जब उन को पता चलेगा कि मैं मां बनने वाली हूं. हां, मां, परंतु किस के बच्चे की मां? क्या पीयूष इस सत्य को आसानी से स्वीकार कर लेंगे कि वह मां बनने वाली है. उन के दिमाग में धमाका नहीं होगा, उन का दिल नहीं फट जाएगा? क्या वे यह पूछने का साहस कर पाएंगे कि स्वाति के पेट में किस का बच्चा पल रहा है या वे अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद कर के अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के लिए एक चुप्पी साध लेंगे? कुछ भी हो सकता है. परंतु स्वाति उस के बारे में चिंतित नहीं थी.

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उस ने बहुत सोचसमझ कर इतना बड़ा कदम उठाया था. मातृत्वसुख प्राप्त कर के अपने माथे से बांझपन का कलंक मिटाने के लिए उस ने परंपराओं का अतिक्रमण किया था और मर्यादा का उल्लंघन किया था. परंतु उस ने जो कुछ किया था, बहुत सोचसमझ कर किया था. शादी के वक्त स्वाति एक टीवी चैनल में न्यूजरीडर और एंकर थी. वह अपनी रुचि के अनुसार काम कर रही थी, परंतु शादी के पहले ही पीयूष की मम्मी ने कह दिया था कि शादी के बाद वह काम नहीं करेगी. मन मार कर उस ने यह शर्त मंजूर कर ली थी. पीयूष ने एमबीए किया था. एमबीए पूरा होते ही वह अपने पिता के साथ उन के व्यापार में हाथ बंटाने लगा था. उन्हीं दिनों उस के पिता की असामयिक मौत हो गई. उस के बाद उस ने अपने पिता का कारोबार संभाल लिया. उन दोनों की शादी के समय पीयूष के पिता जीवित नहीं थे.

दोनों की शादी धूमधाम से संपन्न हुई. स्वाति भी खुश थी कि उस को अपने सपनों का राजकुमार मिल गया. परंतु सुहागरात को ही उस की खुशियों पर तुषारापात हो गया, उस के अरमान बिखर गए और सपनों के पंख टूट गए. सुहागरात में दोनों का मिलन स्वाति के लिए बहुत दुखद रहा. पीयूष ने जैसे ही उड़ान भरी कि धड़ाम से जमीन पर आ गिरा, जैसे उड़ान भरने के पहले ही किसी ने पक्षी के पर काट दिए हों. वह लुढ़क कर लंबीलंबी सांसें लेने लगा. स्वाति का हृदय दहल गया. मन में एक डर बैठ गया, अगर ऐसा है तो दांपत्य जीवन कैसे पार होगा? फिर उस ने अपने मन को तसल्ली देने की कोशिश की. हो सकता है, पहली बार के कारण ऐसा हुआ हो. उस ने कहीं पढ़ा था कि प्रथम मिलन में लड़के अत्यधिक उत्तेजना के कारण जल्दी स्खलित हो जाते हैं. यह असामान्य बात नहीं होती है. धीरेधीरे सब सामान्य हो जाता है. काश, ऐसा ही हो, स्वाति ने सोचा. परंतु स्वाति की शंका निर्मूल नहीं थी. उस की आशाओं के पंख किसी ने नोंच कर फेंक दिए. उस की सोच भी सत्य सिद्ध नहीं हुई. पीयूष के पंख सचमुच कटे हुए थे. वह बहुत लंबी उड़ान भर सकने में असमर्थ था. स्वाति अपने पर रोती, परंतु कुछ कर नहीं सकती थी. दांपत्य जीवन के बंधन इतने कड़े होते हैं कि कोई भी उन को तोड़ने का साहस नहीं कर सकता है. अगर तोड़ता है तो शरीर में कहीं न कहीं घाव हो जाता है. स्वाति के जीवन में खुशियों के फूल मुरझाने लगे थे, परंतु वह पढ़ीलिखी थी. उस ने आशा का दामन नहीं छोड़ा. आधुनिक युग विज्ञान का युग था, हर प्रकार के मर्ज का इलाज संभव था.

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स्वाति के मन में पीड़ा थी परंतु ऊपर से वह बहुत खुश रहने का प्रयास करती थी. घर के सारे काम करती थी. सासूमां उस के व्यवहार व कार्यकुशलता से खु थीं, उस का पूरा खयाल रखतीं. स्वाति के साथ घर के कामों में हाथ बंटातीं. स्वाति कहती, ‘‘मांजी, अब आप के आराम करने के दिन हैं, क्यों मेरे साथ लगी रहती हैं. मैं कर लूंगी न सबकुछ.’’

‘‘तू सब कर लेती है, मैं जानती हूं परंतु मैं अपंग नहीं हूं. तेरे साथ काम करती हूं तो शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है. काम न करूंगी तो बीमार हो कर बिस्तर से लग जाऊंगी.’’

‘‘फिर भी कुछ देर आराम कर लिया कीजिए,’’ स्वाति सासूमां को समझाने का प्रयास करती.

‘‘तेरे आने से मुझे आराम ही आराम है. बस, 1 पोता दे कर तू मुझे बचीखुची खुशियां दे दे तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा,’’ मांजी ने स्वाति की तरफ ममताभरी निगाह से देखा.

स्वाति के हृदय में कुछ टूट गया. मांजी की तरफ देखने का उसे साहस नहीं हुआ. सिर झुका कर अपने काम में व्यस्त हो गई. समय बीतने के साथसाथ सासूमां की स्वाति से पोते पैदा करने की अपेक्षाएं बढ़ने लगीं. दिन बीतते जा रहे थे. उसी अनुपात में सासूमां की पोते के प्रति चाहत भी बढ़ती जा रही थी. एक दिन उन्होंने कहा, ‘‘स्वाति बेटा, अब और कितना इंतजार करवाओगी? तुम लोग कुछ करते क्यों नहीं? क्या कोई सावधानी बरत रहे हो?’’ उन्होंने संदेहपूर्ण निगाहों से स्वाति को देखा. ‘‘कैसी सावधानी, मां?’’ स्वाति ने अनजान बनते हुए पूछा. वह अपनी तरफ से क्या कहती, उसे ऐसे पुरुष के साथ बांध दिया था जिस में पुरुषत्व की कमी थी. इस में न उस के घर वालों का दोष था, न ससुरालपक्ष के लोगों का? दोष था तो केवल पीयूष का, जिस ने सबकुछ जानते हुए भी शादी की. स्वाति अभी तक चुप थी. शर्म और संकोच की दीवार उस के मन में थी, परंतु अब इस दीवार को उसे तोड़ना ही होगा. पीयूष से इस बारे में उसे बात करनी होगी, परंतु इस तरीके से कि उस के अहं को ठेस न पहुंचे और वह बात की गंभीरता को समझ कर अपना इलाज करवाने के लिए तैयार हो जाए.

शादी की पहली वर्षगांठ बीत गई. कोई उत्साह उन के बीच में नहीं था. स्वाति कोई जश्न मनाना नहीं चाहती थी. पीयूष और मां दोनों की इच्छा थी कि घर में छोटामोटा जश्न मनाया जाए. केवल खास लोगों को बुलाया जाए परंतु स्वाति ने साफ मना कर दिया. वह लोगों की निगाहों में जगे हुए प्रश्नों की आग में तपना नहीं चाहती थी. अंत में पीयूष और स्वाति एक रेस्तरां में डिनर कर के लौट आए. उसी रात…स्वाति ने खुल कर बात की पीयूष से, ‘‘एक साल हो गया, अब हमें कुछ करना होगा. मम्मी की हम से कुछ अपेक्षाएं हैं.’’

पीयूष चौंका, परंतु बिना स्वाति की ओर करवट बदले पूछा, ‘‘कैसी अपेक्षाएं?’’

स्वाति मछली की तरह करवट बदल कर पीयूष की आंखों में देखती हुई बोली, ‘‘क्या आप नहीं जानते कि एक मां की बेटेबहू से क्या अपेक्षाएं होती हैं?’’

पीयूष की पलकें झुक गईं, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं?’’ उस ने हताश स्वर में कहा. स्वाति ने अपनी कोमल उंगलियों से उस के सिर को सहलाते हुए कहा, ‘‘आप निराशाजनक बातें क्यों कर रहे हैं. दुनिया में हर चीज संभव है, हर मर्ज का इलाज है और प्रत्येक समस्या का समाधान है.’’

पीयूष ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो?’’

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