बिहार के हाजीपुर के रहने वाले बंशीधर बात करतेकरते रो पड़ते हैं. बंशीधर ने 2 हेक्टेयर खेत लीज पर ले कर चीनिया केले की खेती की थ. इस के लिए उन्होंने पहले ही खेत मालिक को 51,000 रुपए पेशगी दिए थे, बाकी का पैसा करार के मुताबिक केले की पहली फसल के बाद देना था. मगर देश में लागू लौकडाउन के बीच केला खरीदार गायब हैं. लिहाजा लागत भी बमुश्किल ही निकली.

मशहूर है चीनिया केला

मालूम हो कि बिहार के हाजीपुर जनपद में चीनिया केले की खेती खूब की जाती है. यहां देश की विभिन्न जगहों से व्यापारी केला खरीदने आते हैं. इतना ही नहीं, हाजीपुर की पहचान अंतर्राष्ट्रीय फलक पर भी इसी केले के कारण है और यहां से मलयेशिया, नेपाल, भूटान आदि देशों में भी केले का निर्यात किया जाता है. मगर देश में लागू लौकडाउन ने इस बार चीनिया केले की खेती करने वाले किसानों की कमर तोड़ दी है.

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छोटा आकार मगर स्वाद में मजेदार

छोटे आकार और अपने अनूठे स्वाद के कारण पूरी दुनिया में एक विशिष्ट पहचान बनाने वाला हाजीपुर का चिनिया केला उचित संरक्षण के अभाव में भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. कभी हजारों एकड़ में हाजीपुर में इस की खेती होती थी जो अब सिमट कर रह गई है. हाजीपुर के साथसाथ समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर आदि जिलों में भी इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.

यों पिछले कुछ सालों से इस की खेती कम की जाने लगी थी. वजह, राज्य सरकार का इस खेती की ओर ध्यान नहीं देना भी है. दूसरा बाजारवाद और तीसरा उचित संरक्षण के अभाव में भी खेती सिमटने लगी.

वीरान होने लगे हैं खेत

एक जमाना था जब पटना के महात्मा गांधी सेतु पुल से होते हुए हाजीपुर आते वक्त दूरदूर तक हजारों एकड़ में चीनिया केले की खेती नजर आती थी, लेकिन अब पूरा इलाका ही वीरान नजर आता है.

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हाजीपुर का नाम सुनते ही सहसा एक नाम उभर कर जबान पर आता है और वह है केला. इस क्षेत्र का मालभोग हो या अलपान या फिर चीनिया, इन सभी केलों का अपना स्वाद और अपनी विशेषता है. इस क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति केले के बागानों की स्थिति पर ही निर्भर करती है. केले की खेती किसानों की आर्थिक व सामाजिक दशा सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. पर एक तो प्राकृतिक आपदाओं ने केले के फसल उत्पादकों की कमर तोड़ दी, दूसरा सरकार द्वारा केला फसल को फसल बीमा में शामिल नहीं किए जाने के कारण क्षेत्र के किसानों को प्रतिवर्ष भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है.

परिणाम यह हुआ कि कभी हजारों हेक्टेयर भूमि पर की जाने वाली केले की खेती सिमट कर लगभग 3,500 हेक्टेयर रह गई है।

नई मुसीबत से मुश्किल में किसान

अब नई मुसीबत कोरोना वायरस के कहर के बीच लागू लौकडाउन है. बाजारों में चहलपहल नहीं के बराबर है और खरीदार भी आ नहीं रहे. इस केले की खेती की वजह से इलाके में ट्रांसपोर्टरों की भी पौबारह हुआ करती थी जो इस बार बंद है. इन के सामने भी भुखमरी की समस्या आ खड़ी हुई है. उधर किसानों की आंखों में भी आंसू हैं मगर उन आंसुओं को पोंछने वाला कोई मिलेगा, इस की संभावना दूरदूर तक नजर नहीं आती.

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