Download App

कोई उचित रास्ता : भाग 1

‘‘मैं बहुत परेशान हूं, सोम. कोई मुझ से प्यार नहीं करता. मैं कभी किसी का बुरा नहीं करती, फिर भी मेरे साथ सदा बुरा ही होता है. मैं किसी का कभी अनिष्ट नहीं चाहती, सदा अपने काम से काम रखती हूं, फिर भी समय आने पर कोई मेरा साथ नहीं देता. कोई मुझ से यह नहीं पूछता कि मुझे क्या चाहिए, मुझे कोई तकलीफ तो नहीं. मैं पूरा दिन उदास रहूं, तब चुप रहूं, तब भी मुझ से कोई नहीं पूछता कि मैं चुप क्यों हूं.’’

आज रज्जी अपनी हालत पर रो रही है तो जरा सा अच्छा भी लग रहा है मुझे. कुछ महसूस होगा तभी तो बदल पाएगी स्वयं को. अपने पांव में कांटा चुभेगा तभी तो किसी दूसरे का दर्द समझ में आएगा.

मेरी छोटी बहन रज्जी. बड़ी प्यारी, बड़ी लाड़ली. बचपन से आज तक लाड़प्यार में पलीबढ़ी. कभी किसी ने कुछ नहीं कहा, स्याह करे या सफेद करे. अकसर बेटी की गलती किसी और के सिर पर डाल कर मांबाप उसे बचा लिया करते थे. कभी शीशे का कीमती गिलास टूट जाता या अचार का मर्तबान, मां मुझे जिम्मेदार ठहरा कर सारा गुस्सा निकाल लिया करतीं. एक बार तो मैं 4 दिन से घर पर भी नहीं था, टूर पर गया था. पीछे रज्जी ने टेपरिकौर्डर तोड़ दिया. जैसे ही मैं वापस आया, रज्जी ने चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. तब पहली बार मेरे पिता भी हैरान रह गए थे.

‘‘यह लड़का तो 4 दिन से घर पर भी नहीं था. अभी 2 घंटे पहले आया और मैं इसे अपने साथ ले गया. बेचारे का बैग भी बरामदे में पड़ा है. यह कब आया और कब इस ने टेपरिकौर्डर तोड़ा. 4 दिन से मैं ने तो तेरे टेपरिकौर्डर की आवाज तक नहीं सुनी. तू क्या इंतजार कर रही थी कि कब सोम आए और कब तू इस पर इलजाम लगाए.’’

बीए फाइनल में थी तब रज्जी. इतनी भी बच्ची नहीं थी कि सहीगलत का ज्ञान तक न हो. कोई नई बात नहीं थी यह मेरे लिए, फिर भी पहली बार पिता का सहारा सुखद लगा था. मुझे कोई सजा-ए-मौत नहीं मिल जाती, फिर भी सवाल सत्यअसत्य का था. बिना कुछ किए इतने साल मैं ने रज्जी की करनी की सजा भोगी थी. उस दफा जब पिताजी ने मेरी वकालत की तब आंखें भर आई थीं मेरी. हैरानपरेशान रह गए थे पिताजी.

‘‘यह बेटी को कैसे पाल रही हो, कृष्णा. कल क्या होगा इस का जब यह पराए घर जाएगी?’’

स्तब्ध रह गया था मैं. अकसर मां को बेटा अधिक प्रिय होता है लेकिन मेरी मां ने हाथ ही झाड़ दिए थे.

‘‘चले ही तो जाना है इसे पराए घर. क्यों कोस रहे हो?’’

‘‘सवाल कोसने का नहीं है. सवाल इस बात का है कि जराजरा सी बात का दोष किसी दूसरे पर डाल देना कहां तक उचित है. अगर कुछ टूटफूट गया भी है तो उस की जिम्मेदारी लेने में कैसा डर? यहां क्या फांसी का फंदा लटका है जिस में रज्जी को कोई लटका डालेगा. कोई गलती हो जाए तो उसे मानने की आदत होनी चाहिए इंसान में. किसी और में भी आक्रोश पनपता है जब उसे बिना बात अपमान सहना पड़ता है.’’

‘‘कोई बात नहीं. भाई है सोम रज्जी का. गाली सुन कर कमजोर नहीं हो जाएगा.’’

‘‘खबरदार, आइंदा ऐसा नहीं होगा. मेरा बच्चा तुम्हारी बेटी की वजह से बेइज्जती नहीं कराएगा.’’

पुरानी बात है यह. तब इसी बात पर हमारा परिवार बंट सा गया था. तेरी बच्ची, मेरा बच्चा. पिताजी देर तक आहत रहे थे. नाराज रहे थे मां पर. क्योंकि मां का लाड़प्यार रज्जी को पहले दरजे की स्वार्थी और ढीठ बना रहा था.

अक्तूबर महीने में फसल संबंधित सलाह

कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर अक्तूबर माह में फसल संबंधित सलाह धान की फसल में यूरिया की दूसरी व अंतिम टौप ड्रैसिंग रोपाई के 55 से 60 दिन बाद 60-65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें. ध्यान रहे कि टौप ड्रैसिंग करते समय खेत में 2 से 3 सैंटीमीटर से अधिक पानी न हो.

* मक्के की फसल में बारिश न होने की स्थिति में जरूरत के मुताबिक हलकी सिंचाई कर उचित नमी बनाए रखें.

* किसान वर्षाकालीन प्याज की पौध की रोपाई इस समय कर सकते हैं. जल निकास का उचित प्रबंध रखें. * जिन किसानों की टमाटर, हरी मिर्च, बैगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है, वे मौसम को मद्देनजर रखते हुए रोपाई मेंड़ों (उथली क्यारियों) पर करें और जल निकास का उचित प्रबंध रखें.

* केले/पपीते के बागों की गुड़ाई कर के तने के चारों तरफ 25 से 30 सैंटीमीटर ऊंची मिट्टी चढ़ा कर स्टैंडिंग करें. फसल सुरक्षा

* इस मौसम में धान की फसल मुख्यत: वानस्पतिक बढ़त की स्थिति में है. लिहाजा, फसल में पत्ता मरोड़ या तना छेदक कीटों की निगरानी करें. तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फैरोमौन प्रपंच 3-4 प्रति एकड़ लगाएं.

* इस समय धान की फसल में खैरा रोग के प्रकोप की संभावना होती है, जिस में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. बाद में इन पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. इस के नियंत्रण के लिए जिंक सल्फेट की 5 किलोग्राम मात्रा को 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 1,000 लिटर पानी में घोल कर प्रयोग करें.

* टमाटर, मिर्च, बैगन, फूलगोभी व पत्तागोभी वगैरह सब्जियों में फल छेदक, शीर्ष छेदक व फूलगोभी व पत्तागोभी में डायमंड बैक मोथ की निगरानी के लिए फैरोमौन ट्रैप 3-4 प्रति एकड़ लगाएं. * कद्दूवर्गीय सब्जियों को ऊपर चढ़ाने की व्यवस्था करें, ताकि वर्षा से सब्जियों की लताओं को गलने से बचाया जा सके.

* किसान प्रकाश प्रपंच यानी फैरोमौन ट्रैप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बड़े बरतन में पानी और थोड़ी कीटनाशक दवा मिला कर एक बल्ब जला कर रात में खेत के बीच में रखे दें. रोशनी से कीट आकर्षित हो कर उसी घोल पर गिर कर मर जाएंगे. प्रकाश प्रपंच से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों का नाश होगा.

* किसानों को सलाह है कि बाजरा, मक्का व सब्जियों में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराईगुड़ाई का काम शीघ्र करें और सभी फसलों में सफेद मक्खी और चूसक कीटों की नियमित निगरानी करें.

* कद्दूवर्गीय व अन्य सब्जियों में मधुमक्खियों का बड़ा योगदान है, क्योंकि वे परागण में मदद करती हैं, इसलिए जितना संभव हो सके, मधुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें. कीड़ों व रोगों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाओं का प्रयोग करें.

लव जिहाद: पौराणिकवाद थोपने की साजिश

पौराणिकवादी विचारधारा का पोषक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू लड़कियों को आजाद नहीं छोड़ना चाहता. वह उन्हें अपनी पसंद का जीवन जीने या जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं देना चाहता. मनुवादी व्यवस्था का समर्थक संघ पितृसत्ता को प्रभावशाली बनाना चाहता है ताकि ब्राह्मणों की दुकान चलती रहे. लव जिहाद का नाम ले कर बनाए गए धर्मांतरण कानून के जरिए हिंदू स्त्री को दहलीज के भीतर धकेले रखने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन यह ‘सरकारी हिंदुत्व’ लव जिहाद की आड़ में और भी बहुतकुछ करना चाहता है.

लव जिहाद जैसे शब्द गढ़ कर कट्टरपंथ और रूढि़यों से चिपके रहने वाले संघ और भाजपा, युवाओं से प्यार करने की स्वतंत्रता छीन कर जीवन जीने के उन के निजी अधिकार को खत्म कर देना चाहते हैं. हालांकि, उन के ‘प्रथमग्रासे मक्षिकापात:’ यानी उन के पहले ही कौर में ही मक्खी पड़ गई है. लव जिहाद कानून के तहत दर्ज पहले ही केस में उत्तर प्रदेश सरकार के मुंह पर कानून का जबरदस्त तमाचा पड़ा है.

ये भी पढ़ें- कोढ़ में कहीं खाज न बन जाए ‘बर्ड फ्लू’

मुरादाबाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार जोड़े को जिस में मुसलिम युवक को हाईकोर्ट के आदेश के बाद रिहा कर दिया गया है और हिंदू युवती, जिस ने उस से विवाह करने के लिए इसलाम कबूल कर लिया था, शेल्टर होम से निकल कर अपने मायके जाने के बजाय अपनी मुसलिम ससुराल पहुंच गई है. यह है प्यार को सर्वोपरि सम झने वाले प्रेमियों का उत्तर प्रदेश की कट्टरपंथी सरकार को करारा जवाब.

उल्लेखनीय है कि संघ और भाजपा द्वारा कथित लव जिहाद का होहल्ला मचा कर युवादिलों को धर्म की सलाखों में कैद रखने की साजिश को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कानूनी जामा पहना दिया है. मानो लाखों धर्म परिवर्तन केवल लव जिहाद के कारण हुए हैं और हिंदुओं की संख्या घट गई है.

ये भी पढ़ें- आईना -भाग 2 : गरिमा की मां उसकी गृहस्थी क्यों बिखरने में लगी हुई थी

नए कानून ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ के लागू होते ही उत्तर प्रदेश पुलिस लाठी के बल पर प्यार करने वालों को अलग करने में जुट गई है. कई गिरफ्तारियां हुई हैं. इन्हीं में एक गिरफ्तारी मुरादाबाद के कांठ नामक गांव की निवासी पिंकी उर्फ मुसकान जहां और उस के पति मोहम्मद राशिद की हुई. पिंकी जहां शादी से पहले दलित हिंदू परिवार से ताल्लुक रखती है, वहीं राशिद मुसलमान परिवार से है. ये दोनों देहरादून में काम करते थे, जहां उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया और दोनों ने शादी करने का फैसला किया.

24 जुलाई, 2020 को मुसलिम रीतिरिवाज से दोनों की शादी हुई, जब योगी सरकार का नया कानून लागू भी नहीं हुआ था. पिंकी ने स्वेच्छा से मुसलिम धर्म अपनाया. शादी के बाद से यह जोड़ा देहरादून में ही रह रहा था. 28 नवंबर, 2020 को योगी का कानून आया और बजरंग दल के तमाशाइयों को तमाशा करने का असंवैधानिक पर कानूनी हथियार मिल गया. उन्होंने पिंकी की मां को डराधमका कर उन से बेटीदामाद के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई. मुरादाबाद पुलिस ने भी ताल से ताल मिलाई और इस शादीशुदा जोड़े को गिरफ्तार कर लिया जबकि पिंकी उर्फ मुसकान जहां 2 महीने की गर्भवती थी.

ये भी पढ़ें- बनफूल: सुनयना बचपन से दृष्टिहीन क्यों थी

लड़की कहती रही कि उस के साथ कोई धोखा नहीं हुआ, कोई जोरजबरदस्ती नहीं हुई, दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे और इसलिए उन्होंने शादी की. उस ने यह भी कहा कि शादी के लिए उस ने अपनी मरजी से इसलाम धर्म कबूल किया था. लेकिन योगी की पुलिस ने उस की एक न सुनी. मजे की बात यह है कि जब वे अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए सरकारी दफ्तर गए हुए थे, उसी समय बजरंग दल के सदस्यों के कहने पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ के तहत केस दर्ज कर के मोहम्मद राशिद व उस के छोटे भाई को जेल भेज दिया और पिंकी उर्फ मुसकान जहां को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के महिला शेल्टर होम में दाखिल कर दिया.

जिम्मेदार कौन

लव जिहाद का बहाना बना कर हिंदू कट्टरपंथी युवाओं की प्रेम करने की स्वतंत्रता भी छीन लेने के लिए कानून चाहते हैं. उन की मंशा है कि युवा प्रेम कर के शादी करें ही नहीं, क्योंकि लड़कियों को प्रेम करने की आजादी कैसे दी जा सकती है. जब लड़कियां अपनी इच्छा से शादी नहीं कर सकेंगी तो युवाओं की प्रेम करने की स्वतंत्रता छिन जाएगी.

ये भी पढ़ें- एहसास-भाग 4 :मालती के प्यार में क्या कमी रह गई थी बहू निधि के लिए

यह कानून लागू हुआ 28 नवंबर, 2020 से और शादी हुई थी 24 जुलाई को. यानी कानून बनने से पहले ही शादी हो चुकी थी. इसलिए यह गिरफ्तारी पूरी तरह गैरकानूनी थी. इस के लिए किसकिस को सजा मिलनी चाहिए और किसकिस को उन पतिपत्नी से माफी मांगनी चाहिए? क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस पर गौर फरमाएंगे? सरकार के लिए कितना शर्मनाक है कि एक महिला, जो गर्भवती थी, ने किस कदर तनाव और डर का सामना किया कि उस का गर्भ गिर गया? इस भ्रूणहत्या का जिम्मेदार कौन है?

गर्भावस्था के जिन पहले 3 महीने में एक गर्भवती को उस के पति और परिजनों की जरूरत होती है, ऐसे वक्त में वह लड़की बिलकुल अकेली, असहाय, तनाव व तकलीफों से भरी सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर तड़पती रही.

यह वाकेआ एक मुसलिम युवा व उस के परिजनों को डराने, उन पर जुल्म करने और एक ब्याहता व गर्भवती हिंदू महिला को प्रताडि़त करने का है, जो बालिग हैं, एकदूसरे से प्रेम करते हैं, शादीशुदा हैं और अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के इच्छुक थे. लेकिन धर्म के ठेकेदारों को यह मंजूर नहीं है.

देश के उन राज्यों, जहां भाजपा या उस के गठबंधन की सरकारों का शासन है, लव जिहाद के नाम पर कानून बनाने को ले कर सियासत चरम पर है. उत्तर प्रदेश में तो नया कानून लागू भी हो गया है और इस नए कानून ने प्रेम करने वालों की गिरफ्तारियां भी शुरू कर दी हैं. बड़े ही शातिराना तरीके से योगी सरकार ने लव जिहाद का नाम लिए बिना ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ बना कर इस के तहत एक भारतीय नागरिक को उस के संविधान द्वारा प्रदान किए गए जीवन जीने के मौलिक अधिकारों से वंचित करने और समाज को पंडेपुजारियों, खापों, धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों की आज्ञानुसार चलने को बाध्य करने की साजिश को मूर्तरूप देना शुरू कर दिया है.

दावा है कि इस नए कानून के तहत उन लोगों को गिरफ्तार कर के जेल भेजा जाएगा जो धोखा दे कर विवाह करेंगे, बलात्कार के दोषी पाए जाएंगे या जबरन धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी होंगे. सवाल यह उठता है कि जब इन सभी अपराधों के लिए पहले ही देश के संविधान में आईपीसी के तहत पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं, तो एक और कानून का औचित्य क्या है?

साफ है कि लव जिहाद का नाम लिए बिना योगी सरकार का यह नया कानून हिंदुओं को छोड़ कर अन्य सभी धर्मों- सिखों, ईसाइयों और मुसलमानों और खासकर दलितों को हताहत करने का नया हथियार है, जिस में अधिकतम 10 वर्ष कारावास और भारी जुर्माने का प्रावधान है और अब इस हथियार को अन्य भाजपा शासित राज्य भी हासिल करने को उतावले हुए जा रहे हैं, ताकि संघ के हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके.

आइए, जरा एक नजर इस नए कानून की मोटीमोटी बातों पर डालें. इस नए कानून को गैरजमानती संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है. अर्थात यदि किसी व्यक्ति ने गैरधर्म के व्यक्ति से विवाह कर लिया और उन में से किसी एक के अथवा दोनों के परिजन, रिश्तेदार ही नहीं अनजान, पड़ोसी, कोई (भगवा) संस्था, कोई (भाजपा) दल या किसी भी दुश्मन ने शिकायत दर्ज करवा दी तो पुलिस बिना देर किए आप के दरवाजे पर पहुंच जाएगी और आप शादी के बाद हनीमून पर जाने की जगह जेल भेज दिए जाएंगे. थाना और जिला स्तर से आप की जमानत नहीं होगी और इस के लिए आप को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

अगर आप का और आप के जीवनसाथी का प्यार सच्चा है और दोनों ने अपनीअपनी मरजी से धर्म परिवर्तन और शादी की है, उस में कोई छलकपट या जबरन विवाह नहीं किया गया है, तो भी इस के सुबूत देने की जिम्मेदारी धर्म परिवर्तन कराने वाले और करने वाले व्यक्ति पर होगी. बिना सुबूत दिए आप को जेल से मुक्ति नहीं मिल सकती. इस कार्रवाई को पूरा होने में एक लंबा समय लगेगा और तब तक आप जेल की सलाखों में रहेंगे और आप का जीवनसाथी उन लोगों की कैद में होगा जो आप दोनों की शादी के खिलाफ थे, जिन्होंने आप के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई, जो प्रेम के दुश्मन हैं, जो रूढि़वादी संस्कृतियों के पोषक हैं, जो स्त्री की आजादी के विरोधी हैं और जो औनर किलिंग जैसे कुकृत्यों को बढ़ावा देने वाले हैं.

इस भयानक तनाव और प्रताड़ना से गुजरने के बाद अगर आप कोर्ट में यह साबित कर पाए कि जबरन कोई धर्म परिवर्तन नहीं हुआ है और दोनों की रजामंदी से शादी हुई है, तब आप अपने वैवाहिक जीवन को प्राप्त कर पाएंगे और वह भी तब जब आप का जीवनसाथी आप की शादी के दुश्मनों के बीच सहीसलामत बच जाए और निडर हो कर आप के पास आ जाए. बहुत संभव है कि ऐसा नहीं हो पाएगा, क्योंकि जब तक आप जेल में रहेंगे, जमानत पाने के लिए जद्दोजेहद करेंगे, कानूनी दांवपेचों से खुद को बचाने और खुद को निर्दोष साबित करने की लड़ाई लड़ेंगे, तब तक आप की जीवनसंगिनी को उस के परिजनों, रिश्तेदारों, समाज और धर्म के ठेकेदारों द्वारा डराधमका कर आप के विरुद्ध कर दिया जाएगा. उस को मजबूर किया जाएगा कि वह आप के खिलाफ कोर्ट में गवाही दे.

अगर कहीं आप की जीवनसाथी आप के लिए वफादार निकली, आप को ही अपना पति मानने की जिद पर अड़ी रही तो उस को औनर किलिंग के तहत खत्म कर दिया जाएगा, जो कि इस देश में मामूली बात है. साफ है कि नया कानून प्यार का ही दुश्मन नहीं है, बल्कि स्त्री की स्वतंत्रता, उस की पसंदनापसंद और उस के जीवन का भी दुश्मन है. वरना स्त्रीविरोधी सड़ी हुई सोच के वाहक और स्त्रीविरोधी अपराधियों को प्रश्रय देने वाले कब से स्त्रियों के मुक्तिदाता हो गए?

रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास कह गए हैं- ‘जिमि स्वतंत्र होई बिगरही नारी’ यानी नारी अगर स्वतंत्र हुई तो बिगड़ जाएगी. तुलसी बाबा के अनुयायियों को ऐसा यकीन भी है. इसलिए हिंदू लड़कियों को वे आजाद नहीं छोड़ना चाहते. उन्हें अपनी पसंद का पति चुनने का अधिकार नहीं देना चाहते.

मनुस्मृति के विधान के आधार पर स्त्रियों को पिता, भाई, पति या पुत्र की छत्रछाया में ही जीवनयापन करना चाहिए. उस के अनुसार, पुरुष आखिर स्त्री के भले के लिए ही तो ऐसा करता है. बहरहाल, हिंदूत्ववादी इस प्रोपेगंडा की मारफत स्त्री को दहलीज के भीतर धकेलने की कोशिश शुरू हो गई है लेकिन यह ‘सरकारी हिंदुत्व’ लव जिहाद की आड़ में और भी बहुतकुछ करना चाहता है.

धर्मांतरण का डर

गौरतलब है कि नए कानून के अनुसार नाबालिगों और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की महिला के मामले में 3 से 10 वर्ष तक की कैद और 25,000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है. आइए, अब इस का थोड़ा और छिद्राविश्लेषण करते हैं. इस कानून में व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह के धर्मांतरण को रोकने का प्रावधान किया गया है. वास्तव में अगर हिंदू लड़कियों के धर्मांतरण और उन के जीवन के लिए यह सरकार इतनी फिक्रमंद है तो सामूहिक धर्मांतरण रोकने के लिए कानून में प्रावधान क्यों किया गया है? कहीं लव जिहाद के नाम पर असली निशाना सामूहिक धर्मांतरण रोकना तो नहीं है?

संघ-भाजपा और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की मंशा को अगर सही मान लिया जाए और मुसलमानों से कथित हिंदुओं की रक्षा की बात को स्वीकार भी कर लिया जाए तो पूछा जाना चाहिए कि सामूहिक धर्मांतरण कौन कर रहा है? क्या हिंदू लड़कियां सामूहिक धर्मांतरण कर रही हैं? नहीं.

एक आंकड़े के अनुसार देश में औसतन तकरीबन 5.8 प्रतिशत अंतरजातीय तो केवल 2.2 प्रतिशत ही अंतरधार्मिक विवाह होते हैं. ऐसे में सोचा जा सकता है कि भाजपा और संघ परिवार इस के नाम पर साजिश कर के लोगों को मूर्ख ही बना रहे हैं.

ऐसे कानून की आवश्यकता इस सरकार को क्यों पड़ी? आखिर हिंदूत्ववादी सरकार को किस के धर्मांतरण का डर सता रहा है? क्या इस के आंकड़े उत्तर प्रदेश सरकार के पास हैं कि कितने हिंदू समूहों ने इसलाम धर्म अपना लिया?

पिछले एक दशक में देश के अलगअलग हिस्सों से सामूहिक धर्मांतरण के जो मामले सामने आए हैं, उन में हिंदुओं द्वारा धर्म परिवर्तन का कोई मामला नहीं है. उन में सत्ता संरक्षित हिंदूत्ववादी तत्त्वों (ब्राह्मणों-क्षत्रियों), जो खुद को सवर्ण हिंदुओं की प्रथम पंक्ति में रखते हैं, द्वारा प्रताडि़त दलितों के धर्मांतरण की घटनाएं सामने आई हैं. कुछ समय पहले ही हाथरस में वाल्मीकि समाज की लड़की के बलात्कार और हत्या के विरोध में गाजियाबाद के वाल्मीकि समाज के कुछ लोगों ने हिंदू धर्म छोड़ कर बौद्ध धर्म अपना लिया था. गुजरात, महाराष्ट्र आदि कई राज्यों में दलितों द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकारने की घटनाएं हुई हैं.

कुछ स्थानों पर दलितों ने इसलाम और ईसाई धर्म को भी अपनाया है. अकसर दबंगों द्वारा सताए जाने पर दलित दुखी हो कर हिंदू धर्म छोड़ने की बात कहते हैं.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया धर्मांतरण विरोधी कानून, दलितों को दलित बनाए रखने की एक शैतानी साजिश है. एक कानून के तहत नाबालिग और दलित लड़कियों व महिलाओं के धर्मांतरण कराने की सजा सामान्य वर्ग के व्यक्ति के धर्मांतरण से दोगुनी यानी अधिकतम 10 साल की जेल और 25 हजार रुपए आर्थिक दंड लगाने का प्रावधान किया गया है. आखिर ऐसा क्यों किया गया? इस के मारफत योगी सरकार दलितों के बीच एक संदेश भेजना चाहती है कि भाजपा सरकार उन के लिए ज्यादा फिक्रमंद है और दलित लड़कियों को मुसलमानों से खतरा है. एक स्तर पर यह दलितों को हिंदू और अपना वोटबैंक बनाए रखने की रणनीति है.

पिछले कुछ समय से दलित और मुसलमानों के बीच एकजुटता भी दिखाई दे रही है. दोनों ही संघ के पैदा किए पौराणिक हिंदुत्व से परेशान और प्रताडि़त हैं. तो यह कानून दलितों और मुसलमानों के बीच एकजुटता को खत्म करने और सांप्रदायिकता की खाई को चौड़ा करने का षड्यंत्र है.

ब्राह्मणवाद के खतरे की चेतावनी

वास्तव में, दलितों को असली खतरा बढ़ते हिंदुत्व से है. बाबा साहब अंबेडकर ने 1946 में दलितों को हिंदू महासभा और आरएसएस से सतर्क रहने की हिदायत दी थी. हिंदू धर्म की वर्णव्यवस्था में पिसते शूद्रोंअछूतों के यातनाभरे अतीत को बाबा साहब बखूबी जानते थे. उन्होंने खुद भी ब्राह्मणवाद की अन्याय और ऊंचनीच की व्यवस्था को भोगा था. इसीलिए उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दौर में दलितों को बौद्ध धर्म अपनाने का विकल्प दिया. 14 अक्तूबर, 1956 को धम्मदीक्षा के समय 3 लाख 80 हजार दलितों ने बौद्ध धर्म अपनाया था. डा. अंबेडकर के निर्वाण (6 दिसंबर, 1956) के समय भी 1 लाख 20 हजार दलितों ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया था.

गौरतलब है कि हिंदू धर्म छोड़ने और बौद्ध धर्म अपनाने का बाबा साहब का फैसला अचानक नहीं था. 1935 में हिंदू धर्म छोड़ने का संकल्प करने से पहले  डा. अंबेडकर ने करीब 2 दशक तक हिंदू धर्म में सुधार के लिए ढेरों प्रयत्न किए.

20 मार्च, 1927 में महाड़ सत्याग्रह कर के उन्होंने अछूतों को सार्वजनिक तालाब से पानी लेने के लिए संघर्ष किया. 25 दिसंबर, 1927 को उन्होंने असमानता और अन्याय की पोथी मनुस्मृति को जलाया. 2 मार्च, 1930 को नासिक के कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश के लिए आंदोलन किया. 1935 तक वे मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन करते रहे. लेकिन ब्राह्मणों और ऊंची जाति के हिंदुओं की सोच में कोई अंतर नहीं आया. इसलिए उन्होंने पाया कि हिंदू धर्म छोड़े बिना असमानता और अन्याय की चक्की में पिसने वाले दलितों के जीवन में उजाला लाना संभव नहीं है.

दलितों पर अत्याचार

अब आज के हालात पर गौर कीजिए. जिन राज्यों में संघ-भाजपा की सत्ता स्थापित हुई वहां कभी गाय के नाम पर, कभी मूंछ रखने के कारण, कभी घोड़े पर सवारी करने पर दलितों के साथ सामूहिक रूप से मारपीट की गई. उन्हें पेशाब तक पिलाया गया. उन की बहनबेटियों को अपमानित किया गया. दलित महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार, बलात्कार, हत्या के तमाम मामले योगी सरकार की नाक के नीचे उत्तर प्रदेश में हुए. मगर किसी को न्याय नहीं मिला.

इसी तरह? गुजरात के ऊना में मरी गाय की खाल निकालने पर दलितों को बांध कर बड़ी बेरहमी से पीटा गया. इस के बाद वहां दलितों ने आंदोलन किया. उस आंदोलन का बहुचर्चित नारा था,  ‘‘गाय की पूंछ तुम रखो, हमें हमारा अधिकार चाहिए.’’ इस के बाद गुजरात में कुछ दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लियदेशा. इन्हीं दलित धर्मांतरण की घटनाओं को रोकने के लिए मुसलामानों को बदनाम कर के और लव जिहाद का नाम दे कर यह नया कानून लाया गया है ताकि भाजपा का हिंदू वोटबैंक बना रहे. जबरा मारे और रोए भी न दे, यानी दलितों पर जूतेलाठियां भी बरसाते रहो और उन्हें कानून का डर दिखा कर हिंदू धर्म त्यागने भी न दो.

2 दशकों की कट्टर हिंदुत्ववादी राजनीति द्वारा सामाजिक परिवर्तन की हर प्रक्रिया को बाधित करने की पुरजोर कोशिश हो रही है. अतीत का गौरवबोध और वर्चस्व भावना पैदा कर के सवर्ण नौजवानों को आक्रामक बना कर भाजपा अपना आधार पुख्ता बनाए रखना चाहती है. आज जिस प्रकार हिंदू धर्म के अतीत की व्यवस्था यानी मनुवादी व्यवस्था को दोबारा स्थापित करने की कोशिश हो रही है, उस के प्रतिरोध में बाबा साहब का रास्ता अपनाने की जरूरत अब दलित ही नहीं, बल्कि चेतनासंपन्न पिछड़ी जाति के लोग भी महसूस कर रहे हैं.

पौराणिकवादियों की मंशा

संघ परिवार और इस की कट्टर पौराणिक रूढि़वादी छत्रछाया में विकसित हुआ भाजपाई मानस लव जिहाद के नाम पर कई चीजें एकसाथ करना चाहता है. वह लव जिहाद के  झूठ के सहारे आम जनता का ध्यान जीवन से जुड़े असली मुद्दों से भटकाना चाहता है. इस समय देश की अर्थव्यवस्था भयंकर दयनीय दौर से गुजर रही है. मोदी सरकार द्वारा देश पर लादे गए नोटबंदी जैसे कुकर्मों के बाद से अर्थव्यवस्था अभी संभली भी नहीं थी कि कोरोना महामारी ने लोगों से उन के रहेसहे रोजगार भी छीन लिए.

मोदी सरकार के देश की जनता पर बिना सोचेसम झे और बिना किसी ठोस कार्ययोजना के थोपे गए लौकडाउन ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा और भी गर्क कर दिया है. आर्थिक संकट की सब से बड़ी मार देश की गरीब जनता के ऊपर पड़ रही है. उन के रोटीरोजगार खत्म हो ही चुके हैं, कुछ तरह के हक भी सरकार द्वारा लगातार छीने जा रहे हैं, जनता पर टैक्सों का पहाड़ बढ़ता जा रहा है, महंगाई कमर तोड़ रही है, बैंकों के पास पैसा नहीं बचा है, तमाम बैंक घाटे में हैं, तमाम बंद हो चुके हैं, युवाओं के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं, शिक्षा व्यवस्था को बरबाद किया जा रहा है, चिकित्सा व्यवस्था बेहाल होती जा रही है, किसानमजदूर सड़कों पर हैं.

दूसरी ओर देश के धन्नासेठ और सरकार के खासमखास उद्योगपति मंदी के इस दौर में भी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं. ऐसा होगा भी कैसे नहीं, भाजपा के चुनावी अभियानों में पूंजीपति जमात रुपयों की बोरियों के जो मुंह खोलती है. उस पैसे को उन के हक में नीतियां बना कर सूद समेत लौटाना भी तो है.

पूंजीपतियों की लूट जारी रह सके, इस के लिए भाजपा सरकार जनता को बांटने और  झूठे मुद्दों पर उल झाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. और असल में संकट की यह स्थिति पूंजीवादी व्यवस्था के लिए कोई संकट न बन जाए, इसीलिए जातिमजहब, मंदिरमसजिद, गाय और लव जिहाद जैसे  झूठे मुद्दों पर राजनीति जारी है.

हिंदुत्ववादी सरकार देश की जनता को हिंदूमुसलमान के  झगड़े में उल झाए रखना चाहती है. दोनों के बीच नफरत की खाई बनी रहे, इसी में सरकार के हिंदुत्व का विकास है. मुसलमानों को निशाना बना कर सरकार उन के लिए बहुसंख्य गरीब हिंदुओं के दिलों में नफरत का जहर घोलना चाहती है और खुद को हिंदू हितरक्षक दिखा कर अपनी फर्जी छवि को चमकाना चाहती है.

जनता अपने जीवन की बरबादी के असल कारणों को न पहचान जाए, इसीलिए उसे बरगला कर आपस में ही सिरफुटौवल के लिए तैयार किया जा रहा है. लव जिहाद जैसा जुमला भी नफरत की राजनीति को बढ़ाने का हथियार है, जिसे कानूनी जामा पहना कर और धारदार बना दिया गया है.

संघ का दूसरा निशाना हैं हिंदू महिलाएं. अपनी स्त्रीविरोधी सोच के तहत वह हिंदू महिलाओं व युवतियों

की स्वतंत्र इच्छा और जीवनसाथी चुनने की आजादी को खत्म करना चाहता है.

वह हिंदू महिलाओं को हिंदुत्ववाद व पितृसत्ता की मातहती में रखना चाहता है. हिंदू महिला आजाद हो और अपनी पसंद से किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय के व्यक्ति से विवाह करे, यह संघ को हरगिज मंजूर नहीं है. वह औरतों को पंडेपुजारियों की इच्छा का दास बनाए रखना चाहता है क्योंकि इसी से उन का धंधा बढ़ेगा, हिंदुत्व परवान चढ़ेगा. हिंदू महिला हिंदू पुरुष से विवाह करेगी, तो विवाहसंबंधी तमाम संस्कार होंगे जिन्हें पंडित पूरा कराएगा. इस से उस का रोजगार बचा रहेगा. मंदिर में दानचढ़ावा आता रहेगा. संतान होने पर भी तमाम तरह के संस्कार पंडित संपन्न कराएगा और मृत्यु होने पर भी तमाम रीतिरिवाज, हवन, दान, भोज आदि का फायदा पंडित को मिलेगा.

वहीं यदि कोई हिंदू महिला किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह कर लेगी तो पंडित का तो पत्ता ही कट जाएगा. अगर हिंदू महिलाओं को अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की आजादी दे दी गई तो पंडितों का घर कैसे चलेगा? लिहाजा हिंदू औरत को धर्म की बेड़ी में बांध कर रखने की साजिश को अंजाम देने के लिए लव जिहाद का डर दिखा कर कानून लाया गया है.

धार्मिक अत्याचार

लव जिहाद का  झूठ चूंकि हिंदूमुसलिम के बीच होने वाली शादियों के संदर्भ में फैलाया गया है, तो पहले इसी संदर्भ में बात करते हैं. हिंदूमुसलिम पहचान रखने वालों के बीच आमतौर पर 3 तरह से अंतरधार्मिक शादियां होती हैं. पहली, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत, जिस में प्रेमी जोड़े में से किसी को भी अपना धर्म बदलने की जरूरत नहीं होती और कोर्ट में स्पैशल मैरिज एक्ट के तहत उन की शादी हो जाती है. इस के अलावा धार्मिक रीतिरिवाज से भी अंतरधार्मिक शादियां होती हैं. अंतरधार्मिक शादियां चूंकि असमान धर्म वालों के बीच होती हैं, इसलिए इन में जोड़े में से किसी एक को अपना धर्म बदलना पड़ता है.

इसलाम धर्म के रीतिरिवाज से होने वाली शादी में युवक या युवती धर्म परिवर्तन कर के इसलाम के रीतिरिवाज से शादी करते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार होने वाली शादी में प्रेमी जोड़े में से कोई एक अपना धर्म परिवर्तन करता है और आर्यसमाज या किसी हिंदू रीति से शादी होती है.

उपरोक्त तीनों ही तरह से होने वाली शादियों के हजारों उदाहरण इस देश में मौजूद हैं. बौलीवुड ऐसी शादियों से भरा पड़ा है. यहां तक कि भाजपा के तमाम हिंदूवादी राग अलापने वाले नेताओं के घरों में भी इसी तरह की शादियों के उदाहरण भरे पड़े हैं. उच्चशिक्षा प्राप्त, धनी, आधुनिकता के हिमायती, पाश्चात्य संस्कृति को अपना चुके और कैरियर को महत्त्व देने वाले तमाम युवा अब धर्म के दायरों से बाहर निकल कर अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने में संकोच नहीं करते हैं.

आमतौर पर धर्म जनता के जीवन में अपनेआप में कोई खास मुद्दा नहीं है. एकसाथ रहने वाले लोग नजदीक भी आते हैं, उन के पूर्वाग्रह भी टूटते हैं और वे रोटीबेटी के बंधन में भी बंधते हैं. यह बेहद सामान्य प्रक्रिया है और इस से व्यापक जनता को कोई परेशानी भी नहीं होती. परेशानी होती है केवल कट्टरपंथियों, फासीवादियों और उन के जहरीले प्रचार से प्रभावित लोगों को, जिन्हें इस बात की चिंता ज्यादा है कि अगर गैरधर्मीय शादियां आम प्रचलन में आ गईं तो उन की अहमियत खत्म हो जाएगी.

स्पैशल मैरिज एक्ट, जिस के तहत विवाह करने पर किसी को अपना धर्म नहीं बदलना पड़ता, लोगों को वह थोड़ा जोखिमभरा लगता है. क्योंकि इस में समस्या यह होती है कि लड़केलड़की को शादी के एक महीना पहले से ही अपनी पहचान और फोटो कोर्ट में सार्वजनिक करने पड़ते हैं, जिस के चलते संघी गुंडागिरोह और प्रेमी जोड़े की राय से असहमत परिजनों को उन्हें प्रताडि़त करने का मौका मिल जाता है. कहींकहीं तो जिन परिजनों को अपने बच्चों की ऐसी शादी से कोई दिक्कत नहीं होती, वहां भी बजरंग दल, हिंदू महासभा और इन्हीं जैसा कोई नफरती गिरोह युवकयुवती की जान के पीछे लग जाता है.

ऐसे सैकड़ों मामले मिल जाएंगे जब अंतरधार्मिक विवाह करने के या साथ रहने के इच्छुक प्रेमी युगलों को मौत के घाट उतार दिया गया. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्य औनर किलिंग के ऐसे मामलों से भरे पड़े हैं. इसलिए आमतौर पर चारों तरफ के दबाव से बचने का आसान रास्ता धार्मिक रीति से विवाह करना लगता है जिस में अग्रिम तौर पर पहचान सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं पड़ती और इस के बाद कोर्ट से भी शादी को रजिस्टर करा लिया जाता है.

अब तथाकथित लव जिहाद के नाम पर बने कानून के अनुसार, हरेक अंतरधार्मिक विवाह में स्थानीय प्रशासन को पहचान के साथ अर्जी देना अनिवार्य कर दिया गया है. धर्म परिवर्तन के लिए 2 महीने पहले से अर्जी देनी जरूरी है. ऐसे में प्रेमी जोड़े की पहचान सार्वजनिक होने का खतरा और भी बढ़ गया है. जैसा कि उत्तर प्रदेश के नए बने कानून के तहत 2 महीने पहले स्थानीय प्रशासन को सूचित करना होगा तथा शादी के लिए धर्मांतरण साबित होने पर गैरजमानती धाराओं के तहत 10 साल तक की कैद का प्रावधान होगा. ऐसे में हिंदूवादी संगठनों, हिंदुत्व के कथित रक्षकों को उत्पात करने, हिंसा फैलाने, दंगे करवाने, औनर किलिंग जैसी कुरीतियों को बढ़ाने का अवसर आसानी से उपलब्ध होगा.

कुल मिला कर अब हिंदू लड़कियों के लिए जीवनसाथी चुनने के हक को कुचलना और भी आसान हो जाएगा और तथाकथित लव जिहाद के नाम पर बने कानून के तहत किसी को भी निशाने पर लेना शासन, सत्ता और सांप्रदायिक गिरोहों के लिए मामूली बात होगी. वे आसानी से कहीं भी पहुंच कर हिंसा और उत्पात मचा सकेंगे. शादी स्थल को मरघट बनाते उन्हें देर न लगेगी.

लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी नागरिकों को बराबरी का दर्जा देती है. यह अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाहों को प्रोत्साहन देती है तथा इस के मार्ग में रुकावट बनने वाले लंपट तत्त्वों को दंडित करती है. लेकिन भारत में इस का उलटा हो रहा है. कहने को हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है. धर्मनिरपेक्षता का असल मतलब होता है धर्म का राजनीति और सामाजिक जीवन से पूर्ण विलगाव. लेकिन हमारे यहां सामाजिक जीवन को नरक बनाने के लिए धर्म का राजनीति में खुल कर इस्तेमाल हो रहा है. लव जिहाद के नाम पर लाया गया ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ है, जो न केवल अंतरधार्मिक विवाहों को हतोत्साहित करेगा, बल्कि जीवन जीने के मौलिक अधिकारों को भी खत्म कर देगा.

–विभागीय लेखक द्य

 

कासिम बन गया करमवीर

 

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में शादी के 8 साल बाद एक मुसलिम व्यक्ति ने अपना धर्मांतरण किया है. 8 साल पहले उस ने हिंदू युवती से शादी की थी. अब वह हिंदू संगठनों की मदद से इसलाम छोड़ हिंदू धर्म अपना कर कासिम खान से करमवीर सिंह बन गया है. 28 वर्षीय कासिम उर्फ करमवीर सिंह का कहना है, ‘‘मु झे किसी ने मजबूर नहीं किया. मैं ने खुद ही यह फैसला लिया है.’’

8 साल पहले कासिम की मुलाकात 24 वर्षीय अनीता कुमारी से हुई थी. कासिम के पिता ने वर्कशौप के लिए अनीता का घर किराए पर लिया था. वहां मुलाकात के बाद दोनों में प्यार हो गया. दोनों ने 2012 में शादी कर ली. शादी मुसलिम रीतिरिवाज से हुई थी. अनीता का परिवार इस शादी के लिए राजी नहीं था.

शादी के एक साल बाद दंपती ने एक और शादी समारोह का आयोजन किया. इस बार यह आयोजन हिंदू रीतिरिवाजों के अनुसार किया गया. इस दंपती के 2 बच्चे कासिफा (7) और अयाज (4) हैं.

यूपी में धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश 2020 लागू होने के बाद कासिम ने मुसलिम धर्म छोड़ कर हिंदू धर्म अपना लिया है. कासिम ने कहा कि उसे अब सुरक्षा चाहिए क्योंकि उसे डर लग रहा है. उस ने कहा, ‘‘मैं ने जिला प्रशासन से सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला. मैं सरकार से फिर से अनुरोध करता हूं,  मु झे सुरक्षा की जरूरत है.’’

उधर उस की पत्नी अनिता का कहना है, ‘‘मु झे अपनी मुसलिम ससुराल में पति या किसी भी ससुरालीजन ने कभी भी धर्मांतरण या हिंदू रीतिरिवाजों का पालन न करने के लिए फोर्स नहीं किया. अब एक हिंदू संगठन की मदद से कासिम ने हिंदू धर्म अपनाया है. उस के ऊपर भी किसी ने दबाव नहीं बनाया है.’’

हिंदू संगठन के एक सदस्य नीरज भारद्वाज ने बताया कि उन्होंने कासिम का धर्मांतरण करवाया है. उन्होंने कहा, ‘‘उन का हिंदू धर्म में स्वागत है.’’

गौरतलब है कि इस मामले में किसी हिंदू संगठन को आपित्त नहीं हुई, किसी ने तमाशा नहीं किया और पुलिस ने भी नए कानून के तहत हस्तक्षेप नहीं किया. अगर कोई मुसलिम संगठन कासिम द्वारा धर्मांतरण पर आवाज उठाए तो सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगेगी.

 

तमतमाया केरल हाईकोर्ट

केरल की श्रुति और अनीस अहमद खुश हैं कि आखिर अदालत ने उन्हें साथ रहने की अनुमति दे दी. इस दंपती की खुशियां उस समय बिखर गई थीं जब श्रुति के पिता ने उन की रजिस्टर्ड शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया और अपनी बेटी को घर पर कैद कर के रखा. कन्नूर जिले के अनीस ने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डाली, जिस की सुनवाई करते हुए जस्टिस वी चिदम्बरेश और जस्टिस सतीश नाइनन की खंडपीठ ने उन के पक्ष में अभूतपूर्व फैसला सुनाया.

कोर्ट ने प्रेमविवाह की नैतिक और सामाजिक मान्यता पर उंगली उठाने वालों को फटकार लगाई और कहा कि प्रेम को धर्म और जाति की संकीर्णता में बांधना बंद करो. केरल में सामुदायिक सौहार्द मत बिगाड़ो.

श्रुति के साहस और धैर्य की प्रशंसा करते हुए कोर्ट ने प्रख्यात अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और कवयित्री माया एजेंलु की कुछ पंक्तियां भी उद्धृत कीं, ‘‘प्रेम नहीं पहचानता कोई अवरोध, वो पार कर लेता है बाधाएं, लांघ जाता है बाड़े, भेद देता है दीवारें, पहुंच जाता है उम्मीदों से भरे अपने गंतव्य पर.’’

कोर्ट ने संवैधानिक अधिकारों के साथसाथ नागरिक दायित्वों की याद भी दिलाई. उस ने न सिर्फ स्त्री अधिकारों पर मुहर लगाई, बल्कि निजता, मानवाधिकार, वयस्क अधिकार पर भी स्थिति स्पष्ट कर दी है. लोकतंत्र का निर्माण जिन उसूलों से होता है, कोर्ट ने उन उसूलों को अपने फैसले में पुनर्स्थापित किया है.

योगी सरकार को कोर्ट की फटकार

लव जिहाद का बवंडर खड़ा कर के देश में सांप्रदायिक उन्माद खड़ा करने की कुचेष्टा में बनाए गए नए कानून के तहत शादीशुदा जोड़ों को गिरफ्तार कर जेल भेजने की घटनाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को कस कर फटकार लगाई है. सरकार के रवैये पर नाराजगी प्रकट करते हुए कोर्ट ने कहा, ‘‘किसी भी शख्स को जीवनसाथी चुनने का मौलिक अधिकार है.’’

हाईकोर्ट ने कहा है कि महज अलगअलग धर्म या जाति का होने की वजह से किसी को साथ रहने या शादी करने से नहीं रोका जा सकता. 2 बालिग लोगों के रिश्ते को सिर्फ हिंदू या मुसलमान मान कर नहीं देखा जा सकता. अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ शादी करने वालों के रिश्ते पर एतराज जताने और विरोध करने का हक न तो उन के परिवार को है और न ही किसी व्यक्ति या सरकार को. अगर राज्य या परिवार उन के शांतिपूर्वक जीवन में खलल पैदा कर रहा है तो वह उन की निजता के अधिकार का अतिक्रमण है.

हाईकोर्ट ने ये बातें प्रियंका खरवार और सलामत अंसारी के विवाह के बारे में कही हैं. दरअसल, कुशीनगर की रहने वाली प्रियंका खरवार ने अपनी पसंद के सलामत अंसारी के साथ प्रेम विवाह किया था. प्रियंका ने शादी से पहले अपना धर्म छोड़ कर इसलाम धर्म अपना लिया था और वह प्रियंका से आलिया हो गई थी. इस के बाद प्रियंका के पिता ने सलामत अंसारी के खिलाफ अपहरण और पोक्सो समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया था. सलामत और प्रियंका ने इसी एफआईआर को रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. अर्जी में कहा गया था कि दोनों ने पिछले साल 19 अक्तूबर को अपनी मरजी से अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ निकाह कर लिया. दोनों पिछले एक साल से खुश रहते हुए अपना जीवन बिता रहे हैं. ऐसे में परिवार और पुलिस के लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं जो उन के निजी व शांतिपूर्ण जीवन में गैरकानूनी खलल है.

योगी सरकार की तरफ से इस अर्जी का विरोध किया गया और कहा गया कि धर्म परिवर्तन सिर्फ शादी के लिए किया गया है. हाईकोर्ट की सिंगल बैंच भी ऐसे मामलों को अवैध करार दे चुकी है. कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि जब बालिग होने पर समान लिंग के 2 लोग साथ रह सकते हैं और उन्हें कानूनी संरक्षण हासिल होता है तो अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने और शादी करने वालों का विरोध सिर्फ हिंदू और मुसलमान होने के आधार पर नहीं किया जा सकता.

अदालत ने साफतौर पर कहा कि एतराज और विरोध करने वालों की नजर में कोई हिंदू या मुसलमान हो सकता है, लेकिन कानून की नजर में अर्जी दाखिल करने वाले प्रेमी युगल सिर्फ बालिग जोड़े हैं और शादी के पवित्र बंधन में बंधने के बाद पतिपत्नी के तौर पर साथ रह रहे हैं. कोर्ट ने धर्म बदलने वाली प्रियंका उर्फ आलिया के पिता की तरफ से पति सलामत अंसारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है.

योगी सरकार की दलील खारिज :  हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में लव जिहाद से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए योगी सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिस में हाईकोर्ट की सिंगल बैंच के फैसलों के आधार पर महज शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने को अवैध बताया गया था. हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच ने सिंगल बैंच से आए फैसलों पर भी असहमति जताई और कहा कि उन फैसलों में निजता और स्वतंत्रता के अधिकारों की अनदेखी की गई थी. जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की डिवीजन बैंच ने इसी आधार पर कुशीनगर में प्रेम विवाह करने वाले युवक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को भी रद्द कर दिया है.

पक्षपातपूर्ण कानून

आज पूरे देश में लव जिहाद पर कानून को ले कर चर्चा गरम है. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के बिधूना कसबे में दिल्ली की रहने वाली एक मुसलिम लड़की ने हिंदू लड़के से हिंदू परंपरा के साथ मंदिर में शादी की और दोनों धर्मसंप्रदाय, रीतिरिवाजों, सड़ीगली परंपराओं से ऊपर उठ कर एकदूजे के हो गए. इन की शादी में न बजरंग दल ने कोई उत्पात मचाया और न ही हिंदू युवा वाहिनी ने.

लड़की और लड़के दोनों के घरवाले शादी से खुश नजर आए. परिवार वालों का कहना है कि जिस में दोनों खुश, उस में वे भी खुश. उल्लेखनीय है कि औरैया जिले के बिधूना के पास के गांव का लड़का अमन दिल्ली में नौकरी करने गया था. इस दौरान अमन की जानपहचान दिल्ली की रहने वाली रेशमा से हुई और दोनों में दोस्ती हो गई. इस के बाद रेशमा और अमन एकदूसरे को चाहने लगे और दोनों ने साथ जीनेमरने का प्रण कर लिया.

जब इस की जानकारी रेशमा एवं अमन के घर वालों को हुई तो दोनों परिवारों के लोग बच्चों की खुशी के लिए उन की शादी पर राजी हो गए. औरैया के बिधूना में दोनों परिवारों की मौजूदगी में अमन और रेशमा हिंदू रीतिरिवाज से एकदूजे के हो गए.

लड़की के पिता सलीम भी अपनी बेटी की शादी से खुश हैं, उन्हें किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है. उन का कहना है कि दोनों बच्चों की खुशी में वे खुश हैं. दोनों बालिग हैं. एकदूसरे से मोहब्बत करते हैं, तो उन की शादी पर हमें क्या एतराज हो सकता है. जो लोग ऐसी शादियों पर एतराज करते हैं, दरअसल, वे मोहब्बत के दुश्मन हैं. वे देश में अमनचैन के दुश्मन हैं. वे हिंदूमुसलिम एकता और भाईचारे के दुश्मन हैं. वे हमें एक होते नहीं देखना चाहते.

इंसाफ की डगर पे : गार्गी के सामने कौन से दो रास्ते थे

‘टिंगटौंग’ दरवाजे की घंटी बजी. टू बीएचके फ्लैट के भूरे रंग के दरवाजे के ऊपर नाम गुदे हुए थे- डा. भाष्कर सेन, श्रीमती गार्गी सेन, आईपीएस. अधपके बालों वाली एक प्रौढ़ा ने दरवाजा खोला और मुसकराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आज बड़ी देर कर दी तुम ने. दादाबाबू तो कब के आए हुए हैं. काफी थकीथकी दिख रही हो,’’ कहतेकहते उस ने महिला के हाथों से बैग ले लिया और फिर कहा, ‘‘तुम जाओ कपड़े बदल लो, मैं खाना गरम करती हूं.’’ ये हैं श्रीमती गार्गी सेन, जौइंट कमिश्नर औफ पुलिस, (क्राइम), आईपीएस 1995 बैच और इस घर की मालकिन. गार्गी जूते उतार कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई. बैडरूम में उस के पति भाष्कर बिस्तर पर सफेद पजामा और कुरता पहने, आंखों पर चश्मा लगाए पैरासाइकोलौजी की किताब पढ़ रहा था.

गार्गी के पैरों की आहट सुनते ही उस ने आंखें किताब से ऊपर उठाईं और आंखों से चश्मा उतारा. किताब को बिस्तर के पास रखी साइड टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आज लौटने में बहुत देर हो गई तुम्हें, उस नए मामले को ले कर उलझी हो क्या?’’ गार्गी उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही बिस्तर पर उस की बगल में जा बैठी. भाष्कर ने उस की तरफ देखा और उस के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बहुत अपसेट लग रही हो, जाओ यूनिफौर्म बदलो, फ्रैश हो कर आओ, डिनर टेबल पर मिलते हैं.’’

ये भी पढ़ें- सारा जहां अपना : अंजलि के लिए पैसा ही माने रखता था

गार्गी ने बिना कुछ कहे सिर हिला कर हामी भरी. बड़ी मुश्किल से रोंआसी आवाज में उस के मुंह से निकला, ‘‘हूं.’’ फिर एक लंबी सांस ले कर भाष्कर की तरफ आंखें उठाईं. उस की आंखों में आंसू लबालब भरे हुए थे, मानो अभी छलकने को तैयार हों. भाष्कर ने पहले ही उस की परेशानी भांप ली थी. उस ने गार्गी को आलिंगन किया और उसे अपने बाहुपाश में जोर से जकड़ते हुए 2-3 दफे उस की पीठ ठोकी.

गार्गी ने अपना सिर भाष्कर के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘तुम कैसे बिना कुछ कहे ही सब समझ जाते हो.’’ भाष्कर ने उस के कंधे पर फिर एक बार थपकी दी और कहा, ‘‘जाओ, हाथमुंह धो कर आओ, बहुत भूख

लगी है.’’ गार्गी ने जबरन अपने होंठों को चीर कर बनावटी मुसकराने की कोशिश की और उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ गई.

ये भी पढ़ें- सहचारिणी-भाग 2 : छोटी मां के आते ही क्या परिवर्तन हुआ

कुछ देर बाद कपड़े बदल कर जब वह डाइनिंग टेबल पर आई तो भाष्कर पहले से ही वहां मौजूद था. सामने टीवी चल रहा था. गार्गी भाष्कर की बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई और रिमोट ले कर टीवी चैनल बदल दिया. इतने में प्रौढ़ा अंदर से आई और खाना परोसने लगी.

टीवी पर एक न्यूज चल रही थी और दिनभर की महत्त्वपूर्ण खबरों को एक ही सांस में न्यूज रीडर पढ़े जा रही थी, ‘‘चांदनी चौक कांड का आज 5वां दिन. मंत्री आशुतोष समाद्दार के भतीजे मंटू समाद्दार और उस के 3 साथियों को पुलिस हिरासत में लिया गया. डैफोडिल अस्पताल के सीएमओ डा. नीतीश शर्मा ने बताया कि नाबालिग लड़की की हालत नाजुक. शरीर पर चोटों के कई निशान पाए गए हैं. हमारे संवाददाता से बातचीत में मंत्री आशुतोष समाद्दार ने बताया, ‘मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे फंसाया जा रहा है. लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सही नहीं है. उस की मां के पेशे के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, मैं और क्या कहूं. ऐसे में आप ऐसी लड़कियों से क्या आशा रख सकते हैं?’’ संवाददाता बोला, ‘पर ऐसा क्यों किया उस ने? व्यक्तिगत स्तर पर आप से कोई दुश्मनी है या विरोधी पार्टी का काम है, आप का क्या मानना है?’

मंत्री बोले, ‘कुछ कह नहीं सकते, विरोधी पार्टी का हाथ इस के पीछे है या नहीं, यह पता लगाना तो पुलिस का काम है. मैं बस इतना ही कहूंगा कि मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे पैसों के लिए फंसाया जा रहा है. ऐसी लड़कियों के लिए यह पैसे कमाने का एक जरिया है.’ न्यूज रीडर ने अब कहा, ‘‘आइए जानते हैं कि इस मामले में पुलिस का क्या कहना है. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन से हमारे संवाददाता ने बात की.’’ ‘मामले की छानबीन हो रही है, मैडिकल रिपोर्ट आने से पहले कुछ कहा नहीं जा सकता. हम अपनी तरफ से मामले की सचाई तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

ये भी पढ़ें- डूबते किनारे- सौम्या और रेवती के बच कौन आ गया था

संवाददाता ने अपना अंदेशा जाहिर किया, ‘मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके आशुतोष समाद्दार की राजनीतिक क्षेत्र में पहुंच काफी तगड़ी है. इसलिए यह आशंका जाहिर की जा रही है कि वे अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या पुलिस जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं. कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और ज्यादा परेशान दिखने लगी. भाष्कर ने परिस्थिति को भांपते हुए झट से अपने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदल दिया. फिर धीमी आवाज में कहा, ‘‘पिछले 4-5 दिनों से यह खबर सभी अखबारों व टीवी चैनलों पर छाई हुई है. मैं रोज इस का फौलोअप देखता रहता हूं. मैं जानता हूं तुम…’’ अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि इतने में गार्गी ने थाली आगे की ओर सरकाते हुए आवाज लगाई, ‘‘बेनु पीसी, मेरी प्लेट उठा लो, खाने का मन नहीं है.’’

प्रौढ़ा रसाईघर से दौड़ती हुई आई और विनय भाव से कहने लगी, ‘‘क्या हुआ दीदीभाई, क्यों खाने का मन नहीं, खाना अच्छा नहीं बना है क्या?’’ भाष्कर ने गार्गी के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘खा लो, वरना तबीयत खराब हो जाएगी.’’ और प्रौढ़ा की ओर मुड़ कर बोले, ‘‘पीसी, जरा रसोई से गुड़ ले आओ, इस का स्वाद बदल जाएगा.’’

गार्गी रोंआसी हो गई. उस ने नजरें उठा कर भाष्कर की आंखों में देखा. उन आंखों में आश्वासन था, समर्थन था और थी एक सच्चे साथी की प्रेमभावना जिस ने हर परिस्थिति में साथ रहने का वादा किया है. उस के मुंह से बस इतना निकला, ‘‘तुम नहीं जानते, भाष्कर कितना पौलिटिकल प्रैशर है.’’ भाष्कर ने इतने में उस के मुंह में निवाला ठूंस दिया और कहा, ‘‘मैं कुछ नहीं जानता, पर मैं सबकुछ समझ सकता हूं. पहले खाना खत्म करो.’’

ये भी पढ़ें- चौदह इंच की लंबी दूरी

गार्गी ने आंखों की पलकों से अपने आंसुओं को छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं क्या करूं भाष्कर, एक तरफ मेरा कैरियर, दूसरी तरफ मेरा जमीर. अगर मैं समझौता नहीं करती हूं तो वे मेरे कैरियर को बरबाद कर देंगे. ऐसे में मुझे क्या

करना चाहिए?’’ भाष्कर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें सालों से जानता हूं. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. चाहे कुछ भी हो जाए तुम कुछ गलत कर ही नहीं सकतीं. तुम सच्ची हो और मैं यह भी जानता हूं कि तुम सचाई के साथ ही रहोगी, और तुम्हारे साथ रहेगा हम सब का विश्वास, मेरे व तुम्हारे शुभचिंतकों का प्रेम और सहयोग. मैं जानता हूं इन सब के साथ तुम जरूर अपनी लड़ाई में विजयी होगी, चाहे विपक्ष कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो. और देखो, बातोंबातों में कैसे खाना भी खत्म हो गया.’’

गार्गी ने देखा, सामने प्लेट खाली थी. उस ने कहा, ‘‘सच, तुम कब मेरे मुंह में निवाला भरते रहे, मुझे पता ही नहीं चला. तुम सचमुच मेरी बच्चों की तरह केयर करते हो. मैं तुम जैसा पति पा कर बहुत खुश हूं. पापा के बाद, बस, तुम ही तो हो जिसे हर मुसीबत में मेरा मार्गदर्शन करते हुए पाती हूं. थैंक्यू.

‘‘आज बहुत दिनों बाद पापा बारबार याद आ रहे हैं. मैं जब छोटी थी वे अकसर कहा करते थे, ‘बेटा, जब भी जीवन में किसी मोड़ पर कोई दुविधा हो तो अपने जमीर की सुनना. ऐसे मोड़ पर तुम्हें 2 रास्ते मिलेंगे. बेईमानी का रास्ता आसान होगा पर अगर तुम लंबी दौड़ में विजयी होना चाहती हो और अपने जीवन में सुखचैन चाहती हो तो कभी भी उस रास्ते को मत अपनाना वरना अपनी ही नजरों में सदा के लिए छोटी हो जाओगी.’’’ बात खत्म होते ही भाष्कर ने कहा, ‘‘चलो, अब बहुत रात हो गई है,

हमें सो जाना चाहिए. कल फिर तुम्हें सुबह उठना भी तो है. ड्यूटी पर जाना है न.’’

गार्गी ने हामी भरते हुए सिर हिलाया. उस के होंठों पर मंद मुसकराहट थी और चेहरे पर बेफिक्री का भाव. अगले दिन शाम को 6 बजे दरवाजे की घंटी बजी. अंदर से बेनु पीसी आई और दरवाजा खोला. गार्गी के चेहरे पर सुकून और अजीब सी खुशी झलक रही थी. अंदर घुस कर जूते उतारते हुए उस ने कहा, ‘‘बेनु पीसी, अलमारी के ऊपर से मेरा सूटकेस उतार कर रखना. ट्रैवल बैग स्टोर में रखा हुआ है, उस में मेरी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और कुछ ड्राईफ्रूट्स डाल देना.’’

प्रौढ़ा ने पूछा, ‘‘क्यों, कहीं जा रही हो क्या?’’ गार्गी बाथरूम की ओर बढ़ती हुई बोली, ‘‘हूं, पहाड़ी इलाका है. परसों निकलूंगी. समझबूझ कर सारा सामान रख देना.’’

प्रौढ़ा प्रश्नों की बौछार करने ही वाली थी, मसलन, ‘कितने दिनों के लिए जाओगी, कब तक लौटोगी, दादाबाबू भी साथ जाएंगे या नहीं…’ पर इतने में गार्गी वहां से बैडरूम की तरफ जा चुकी थी. बैडरूम में पहुंच कर गार्गी ने भाष्कर को फोन किया और कहा, ‘‘जल्दी घर आओ, तुम से कुछ कहना है. नहीं, कुछ नहीं हुआ…न, कुछ नहीं चाहिए. बस, तुम आ जाओ.’’ घंटाभर बाद भाष्कर घर लौटने के बाद कपड़े बदल कर टीवी के सामने बैठ गए. गार्गी उन के पास वाली कुरसी पर जा बैठी. टीवी पर न्यूज चल रही थी, ‘‘ब्रेकिंग न्यूज, चांदनी चौक कांड ने लिया नया मोड़. मामले की देखरेख कर रहे आला पुलिस अधिकारी का मानना है कि मंटू समाद्दार और उस के साथी हैं दोषी. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन ने प्रैस को दिया बयान, ‘मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार दुराचार किया गया है. हम ने नाबालिग लड़की का बयान लिया है. आरोपियों की पहचान हो गई है. कानून अपना काम करेगा. दोषी कोई भी हों, उन के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत कार्यवाही की जाएगी. पीडि़ता को इंसाफ जरूर मिलेगा. मैं ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है और चार्जशीट भी कोर्ट में पेश किए जाने के लिए तैयार है.’ ’’

न्यूज रीडर ने आगे खबर पढ़ी, ‘‘जौइंट सीपी साहिबा के इस बयान के कुछ ही घंटों में उत्तरी बंगाल के किसी दूरस्थ पहाड़ी इलाके में उन के तबादले की घोषणा हुई. इस संबंध में तरहतरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह तबादला क्या उन की सच्ची बयानबाजी की सजा है? क्या राजनीतिक दिग्गजों की स्वार्थसिद्धि न होने के परिणामस्वरूप प्रभाव का इस्तेमाल कर के यह तबादला करवाया गया. अब चलते हैं मौके पर मौजूद संवाददाता के पास. हां, मौमिता, इस मामले में पुलिस का क्या कहना है?’’ संवाददाता मौमिता बताती है, ‘पुलिस का तो यह कहना है कि यह रूटीन तबादला था. इस फैसले पर गार्गी सेन की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.

‘अब सवाल यह उठता है कि क्या इस से पुलिस की छानबीन पर कोई प्रभाव पड़ेगा, क्या राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा सकती है? ऐसी परिस्थिति में क्या पीडि़ता को इंसाफ मिल जाएगा? कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और भाष्कर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. गार्गी ने भाष्कर से पूछा, मैं ने सही किया न?’’

भाष्कर ने उस का हाथ अपने हाथों में लिया और अपनी उंगलियां उस की उंगलियों में फंसा कर मुसकराते हुए हामी भर कर सिर हिला दिया. गार्गी ने अपने सिर का बोझ उस के कंधे पर रख कर आंखें बंद कर लीं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी.

भाष्कर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘यह क्या, तुम रो रही हो? आज तो विजय दिवस है, झूठ पर सच की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय. आज से तुम आजाद हो, तुम्हें और ग्लानि का बोझ वहन नहीं करना पड़ेगा.’’ गार्गी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, ये तो कई दिनों से अंदर जमा थे, आज बाहर आए हैं. कोई और अफसोस नहीं, बस, तुम से दूर…’’ भाष्कर ने बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘अब तो हम और ज्यादा करीब हो गए. साथ रहने का अर्थ क्या हमेशा पास रहना है? अगर मेरी गार्गी बदल जाती तो शायद मैं उसे पहले जैसा प्यार न दे पाता और पास रहने के बावजूद उस से काफी दूर हो जाता. तुम सचाई के साथ हो और सदा रहना, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

इतने में बेनु पीसी ने आ कर टीवी का चैनल बदल दिया था. टीवी पर संगीत बज रहा था, ‘‘इंसाफ की डगर पे…अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय. देखो, कदम तुम्हारा, हरगिज न डगमगाए, रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभलसंभल के…इंसाफ की डगर पे…’’

लॉकडाउन फूड: कॉफी टार्ट मिनी एप्पल पाई

लेखिका-रश्मि देवर्षि

टार्ट की सामग्री-

मैदा 1 कप,

ओट्स पाउडर 2 छोटे चम्मच,

1/2 कप ठंडा बटर छोटे टुकड़े में कटा हुआ,

कॉफी पाउडर 2 छोटी चम्मच,

ब्राउन शुगर 2 छोटी चम्मच,

पानी आवश्यकता के अनुसार और दूध 2 छोटी चम्मच

ये भी पढ़ें-#lockdown: कॉर्न नाचोस विद सालसा

स्टफिंग की सामग्री-

2 सेब छिले और छोटे टुकड़ों में कटे हुए

पिसी चीनी 4 छोटी चम्मच

दालचीनी पाउडर 1 छोटी चम्मच

चॉकलेट चिप्स 2 छोटी. चम्मच

एक बाउल में सारी सामग्री अच्छे से मिला कर रख लें

टार्ट बनाने की विधि-
मैदा में ओट्स पाउडर और बटर डालकर इन्हें अच्छे से मिलाकर इसमें कॉफी पाउडर, ब्राउन शुगर और दो से तीन चम्मच पानी डालकर सख्त आटा लगा लें. इस आटे की पूरी के आकार की लोई बेलें और इसे छोटे आकार के टार्ट मोल्ड में रखकर टार्ट का आकार दें. तैयार किये हुए टार्ट के मोल्ड को फ्रिज में बीस मिनट के लिये रखें. बीस मिनट बाद 180℃ प्री-हीटेड अवन में 10 मिनट के लिए बेक करें.

10 मिनट बाद अवन से टार्ट निकाल कर इसमें सेब की स्टफिंग भर दें. पहले तैयार किये हुए टार्ट के आटे की पतली-पतली पट्टियां बनाएं और स्टफिंग के ऊपर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पहले आड़ी और फिर तिरछी पट्टियां लगाकर इसे जाली की तरह कवर करें. पट्टियों के सिरों को बेक हो चुके  निचले हिस्से से ठीक से चिपका दें. पट्टियों पर दूध से ब्रशिंग करें तथा फिर 180℃ पर 10 मिनट के लिए बेक करें.

अनोखा रिश्ता: भाग 1

दिनचर्या के विपरीत आज कालेज से घर लौटने में मुझे काफी देर हो गई थी. भूख, शारीरिक थकान और मानसिक परेशानी से ग्रस्त मैं जब घर पहुंची, तो मैं ने बैग एक ओर फेंका और बिस्तर पर औंधी गिर पड़ी. खाने को घर में कुछ था नहीं और न कुछ बनाने की इच्छा थी. 2 दिन के लिए घर से जाते हुए मां ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि मैं बाहर का कुछ भी न खाऊं. सोना चाहती थी, पर भूखे पेट होने की वजह से नींद ने भी पास फटकने से इनकार कर दिया था. अचानक दरवाजे पर घंटी की आवाज सुन कर बेमन से भृकुटियों को ताने, शिथिल कदमों से चल कर जब मैं ने दरवाजा खोला, तो सामने शीतल खड़ी थी.

‘‘दीदी, आप के लिए खाना लाई हूं.’’

शीतल के मुंह से यह सुन कर ऐसा लगा जैसे मेरे निर्जीव शरीर में किसी ने प्राण फूंक दिए हों. मैं ने हंस कर उस का स्वागत किया. वैसे भी शीतल का आना हमेशा मुझे ग्रीष्म ऋतु में शीतल बयार के आने जैसा सुकून देता था.

शीतल मेरी मौसी की बेटी थी. उस की और मेरी मांएं चचेरी बहनें थीं. एक ही शहर तो क्या, एक ही महल्ले में रहने के कारण हमारे संबंध घनिष्ठ थे. हम दोनों बहनों का रिश्ता सहेलियों जैसा था. हालांकि शीतल मुझ से 6 साल छोटी थी लेकिन हम दोनों की आपस में बहुत बनती थी. किसी भी विषय में, किसी जानकारी की आवश्यकता हो तो शीतल मुझ से बेझिझक पूछती थी. मैं शीतल के हर प्रश्न का उत्तर देती और उसे ऊंचनीच भी समझाती थी. शीतल बुद्धि और सुंदरता का अच्छाखासा संगम थी. मेरी शादी के वक्त शीतल ने कालेज में प्रवेश ले लिया था. शादी के बाद मुझे दिल्ली छोड़ कर मुंबई जाना था, जहां मेरी ससुराल थी. यह जान कर शीतल बेहद उदास हो गई थी. मैं ने उसे समझाया कि जब कभी मेरी याद आए तो फोन कर लेना मुझे और छुट्टियों में मुंबई आ जाना.

आखिर वह दिन भी आ गया जब अपनों को छोड़ कर नए रिश्तों के बंधन में बंध कर मैं मुंबई आ गई. मेरी शादी के बाद भी शीतल और मेरा स्नेह पूर्ववत बना रहा. सुरेश, मेरे पति भी उस से बेटी जैसा स्नेह करते थे.

समय पंख लगा कर उड़ने लगा और देखते ही देखते मैं राहुल और रिया 2 बच्चों की मां बन गई. रिया की जचगी के लिए जब मैं दिल्ली मां के पास गई थी तो शीतल ने एम.बी.ए. का इम्तहान दे दिया था और नतीजे का इंतजार कर रही थी. नतीजा आने से पहले ही उसे मुंबई में नौकरी मिल गई. पर मौसीजी और मौसाजी शीतल को अपने से दूर नहीं करना चाहते थे. किसी तरह मैं ने और सुरेश ने उन्हें मना ही लिया. शीतल की खुशी का ठिकाना न रहा.

शीतल को मुंबई आए 4 महीने हो गए थे. साथ रहने से हमारी अंतरंगता और बढ़ गई थी. औफिस से घर लौटते ही वह बच्चों के साथ बच्ची बन कर खेलने लगती थी. बच्चे उस पर जान छिड़कते थे. एक दिन उस ने बच्चों की तोतली आवाज में कही कहानियों को टेप किया, तो मैं ने उस से गाना गाने को कहा क्योंकि गाती वह अच्छा थी. मैं ने उस के 4 गाने टेप किए.

उन दिनों मौसीजी शीतल के लिए जीजान से लड़का ढूंढ़ने में लगी हुई थीं. इत्तफाक से उन्हें एक अच्छा रिश्ता मिल गया. वर पक्ष के लोग मुंबई में ही रहते थे, पर उन का बेटा पराग कोलकाता में कार्यरत था. मौसीजी, मौसाजी के साथ मुंबई आईं. लड़का और उस के परिवार वालों से मिलने के बाद दोनों बेहद खुश थे. उन की अनुभवी आंखों ने परख लिया था कि लड़के के बाह्यरूप को यदि ताक पर रख कर देखा जाए तो लड़का हर लिहाज से शीतल के लायक था.

शीतल को देखते ही पराग और उस के घर वालों ने उसे पसंद कर लिया था, पर शीतल के मन में दुविधा थी. उस ने अपने जेहन में एक राजकुमार की तसवीर को बसा रखा था, जैसा कि इस उम्र की लड़कियों के साथ अकसर होता है. लेकिन वास्तविकता तो सपनों की दुनिया से कोसों दूर होती है. मौसीजी ने शीतल को समझाया, ‘‘बेटी, लड़के के रंगरूप पर मत जाओ. लड़का गुणों की खान है. इतनी सारी डिग्रियों से विभूषित, इस छोटी सी उम्र में इतने ऊंचे पद पर कार्यरत है. व्यवहार भी उस का अति शालीन है. मेरा मन कहता है, तुम वहां खुश रहोगी.’’
मौसीजी के समझाने पर शीतल पराग से मिलने के लिए तैयार हो गई. पराग से मिलने के बाद शीतल ने भी शादी के लिए अपनी रजामंदी दे दी. इस तरह शीतल की शादी हो गई और वह पराग के साथ कोलकाता चली गई.

शादी के बाद शीतल जब पराग के साथ पहली बार अपने ससुराल मुंबई आई, तो पहले ही दिन दोनों हम से मिलने चले आए. शीतल बेहद खुश नजर आ रही थी. उस का खिलाखिला रूप व बातबात पर चहकना, उस के सफल दांपत्य जीवन की दास्तान को बयां कर रहा था. फिर भी औपचारिकतावश मैं ने जब शीतल से उस का कुशलक्षेम पूछा, तो उस ने चहकते हुए कहा, ‘‘दीदी, आप, मांपापा सब सही थे. पराग सचमुच गुणों की खान हैं. वे मुझे पलकों पर बैठा कर रखते हैं. ससुराल में भी मुझ से सब बहुत स्नेह करते हैं.’’ सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा.

इस के बाद शीतल की जिंदगी में कुछ बुरा घटा, तो कुछ अच्छा. बुरी घटना यह थी कि हृदयगति रुक जाने के कारण मौसाजी गुजर गए. खुशखबरी यह थी कि शीतल मां बनने वाली थी. रीतिरिवाज यह कह रहे थे कि पहली जचगी के लिए शीतल को मायके जाना चाहिए. पर पराग को शीतल से इतने दिनों का अलगाव मंजूर नहीं था, इसलिए उस ने मौसीजी को ही कोलकाता बुला लिया.

पराग और शीतल दोनों को बेटी की चाह थी. उस की डिलिवरी का दिन करीब आ गया था. हम यहां बेसब्री से खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे. खबर आई कि उन की इच्छानुसार उन्हें बेटी पैदा हुई थी. पर बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद शीतल की हालत बिगड़ने लगी थी. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद शीतल को बचाया नहीं जा सका. यह खबर सुन कर मेरे हाथपैर कांपने लगे. मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि सुरेश मुझे समझासमझा कर थक गए.

‘‘उमा, ऐसी नाजुक घड़ी में तुम्हें संयम बरतना ही होगा. तुम इस कदर टूट जाओगी तो मौसीजी, पराग इन सब को कौन संभालेगा? मैं कोलकाता के टिकट ले कर आता हूं. तुम जाने की तैयारी करो. इस वक्त हमारा वहां रहना बेहद जरूरी है,’’ कह कर सुरेश चले गए.

शाम की फ्लाइट से हम कोलकाता पहुंचे. हम ने अपने आने की सूचना पराग को दे दी थी. एअरपोर्ट से बाहर आने पर हम ने देखा कि पराग बेहद उदास मुद्रा में चल कर हमारी ओर आ रहा था. घर पहुंचने पर हम ने देखा कि मौसीजी एक कोने में दुबकी बैठी थीं. मैं ने उन्हें जा कर गले से लगा लिया. पर इकलौती बेटी की मौत ने उन्हें पत्थर बना दिया था. न रो रही थीं, न ही बातें कर रही थीं. पराग की मां की हालत भी ठीक नहीं थी. उन्हें दमे का दौरा पड़ गया था. पालने में शीतल की बेटी सोई थी, दुनिया से बेखबर.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें